भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार
लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली
पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
Gajendra Thakur
रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व
लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक
रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित
रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक
'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम
प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित
आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha
holds the right for print-web archive/ right to translate those archives
and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).
ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/
पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन
संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक
अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह
(पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव
शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई
पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।
....
भरि पृथ्वी फूटल कोहा-खापड़ि जकाँएहि कालक साक्षात्कार मनुष्य जीवन यात्राक थिक सर्वाधिक अशुभ प्रारब्धक ठाम ! से ठाम की हम स्वयं ई अभागलि राधेहिक देह-प्राण- चित्त ? से खेत कि ई हमर -हमरे देह होअ' श्रीकृष्ण महराज ? यैह निसाफ ?'
जानि ने ककरा पुछलखिन राधा ई प्रश्न बा मने मे उचरलनि, नहि जानि। जानथि श्रीकृष्ण !...
आब राधा-२३म खेप
क्रमश: कोना शिथिल भेल चलि गेलय शरीरक सब अंग ? परलो मे करोट फेरैत पर्यंत होअ' लगैत अछि आलस,
उठि क' बैसबा काल तं एड़ी सं ल' गरदनि पर्यंत होअ' लगैत अछि उद्वेलित | आ जँ कहुना उठि क' बैसि गेलहुं किछु काल , तं उठि क' ठाढ़ होयबा क्षण तं सद्य: बुझायित रहैत अछि जे ई देह मथुरा ककाक खोपड़ी भ' गेलय| कनिक एक रती बसातो बहि जाय तं डोल' लगैत अछि |खसबा-खसबा पर बिर्त जेना कोनो क्षण -मथुरा ककाक खोपड़ी ! संभव दू टा बांस, दू बोझ खरही-खढ़क तैयार कएल गेल अपने हाथें -खोपड़ी,खुट्टा समेत छारल
पर्यंत एतबै सामग्रीक खोपड़ी, कोनो क्षण खसि पड़बाक हालत में टगल ठाड़ !
हमर शरीर सैह भ' गेलए...अनमन । की करी कतय जाय, कोना जाय या जाय किएक ?
एत्तैक असल प्रश्न त यैह कि जयबै कियै करी केकरो समीप ?
मुदा देहक तं अछि प्रतिपल एहि इच्छा कष्ट भरल दिन राति हमरे पर भार
यैह भार त बनि गेलए आब जेना आनक धनक क' रहल होइ रक्षा
आनक अमानतक रक्षा में ई संपूर्ण चेतना, अपने शरीर हाथ पैर आंगुरक शक्ति धरिक क' रहल अछि
दिन दिन हरण। बनौने जा रहल अछि सब प्रात किछु आर दुर्बल आर बेसंभार|
केहेन पालकी में बीच बाट कनिया के राखि चलिए गेलए सब कहार?
ई देह-ठठरी देहक ओहार लागल सबारी राखल रहि गेलए।
आब भ' गेलए कतेक दिन, एहिना, एकहि ठाम!
बाट बटोही एक कात स निकलैत बढि जाइत अछि अपन अपन ठाम
पहिने कौतुहल तखन करूणा, एक रती चिंता, आ अंतत: समाज के गारि पढ़ैत
बढि जाइत अछि अपन गंतव्य|
हम लज्जा में कुंठित असुरक्षित, बिदागरीक कनिया बीच बाट के पालकी में राखल पालकी|
किछु करबाक स्पृहा नहि बांचल अछि, किछुटा करबाक नहि होइत अछि मोन |
मोन-देह तेना असोथकित लगैत रहैये... जेना कै कट्ठा खेत जोति क' आयल हरबाह होइ |
बिना स्नान केने गमछा सं घाम सुखबैत बैसल कोनो गाछ तर।
एक रती आर सुस्ता ली, एके रती आर...|तखनि उठि धार, करवा लेल स्नान
जे मोन हो थीर
ताहि एक रती एक रती में बैसल बैसल निन्न स..झूक' लागल होय आ गाछे में लागि ओठंगि क' भ' गेल हो निन्न।
माथ पर सुस्ताइत चिडै़-चुनमुन्नीक मृदुल कलरवक हरियर पात स झरैत होय जेना देह पर,
आकि बुन्न | मुदा लागि गेल होय अनायास प्रिय |आंखि लागि गेल होय, आंखि लागि गेल होय आ
कियो ताकहु नै आयल होय, बड़ी काल! एत धर जे भ' गेल हो मुन्हाइर सांझ |
जखनि आंखि खुजल त बुझाय लागल भोर...एकदम स भोर
एकर अर्थ जे आई भोर स दुपहरिया त भेल, तकर बाद सांझ,..आ राति नहि भेल ।
से कोना धरफरैलए दतिमन कर गेलौं...त हंस' लागल ठहाका मारि क' मनोरथा ! -
ई की भेलैक, ई त बताह भ' गेलौ रौ, भरलो सांझ क' रहल छहु दतिमन|
तेकर त मतलब जे लदतऊ कनी काल में हर आ बड़द हंकैत बिदा हेतऊ बाध!
ई त बताह भ' गेलौ..हा हा हा!'
लजा क' ओ फेकैत नहि अछि दतमनि| करिते रहि जाइत अछि |
ई बुझैत कि भोरक ज़बर्दस्त भ्रम भैले
छैक
ओकरा | मुदा अखेन सांझे
कहलकै- कि हैतै, कियैक बर्बाद करबै नीमक ई ठाड़ि, जेकर क रहल छी दातमिन
दांते-मुंह साफ करवा लेल त, कैल जाइत छैक दतिमनि
ज लोक कै दिन दू बेर नहा लियै त कोनो दोख नहि, त दू बेर दतमनि क लेबाक लेल एतेक कियैक हंसी
जखन कियो नहि छै ल’ग पास, नितांत असकर अछि राधा
त के हंसलै ये ओकरा पर, भोर भ जेबाक भ्रम में दतमनि कर लगवा पर के हंसलै ए !
कंठ त अवश्ये कोनो सखी अर्थात सखी बहिनपा के नहि छल, तखन हंसल के ई पुरूख
चारू कात आंखि के किछु आर पसारत, तकबाक चिन्हबाक प्रयास करैत भ गेली नब व्याकुल
बड़ी काल धैर माथ में छहक्का बजरैत रहलेन, मोन खिन्न, खौंजाईत रहलेन, आ होयत की
अपन मुंह अपने नोचि ली, अपन झौंटा अपने उपारि ली।
कहुना क' करैत कुल्ला स दांत, सांझक दात्मैन संपन्न, मैल कुचैल आंचर स पोछ लगली मुंह
कि अपने हाथ पर बुझैलें दोसर एकटा परम शीतल अपनत्वक हाथ
अपने आंगुरि भ गेलेन अचानक अनचिन्हार- हम पोछि दिय मुंह राधा !
बड सुस्त छओ तोहर शरीर...' स्नेह कोमल स्पर्श स पोछि रहल छथि हमर भीजल मुंह |
ओह त सैह हाथ थिक ई ???
-छोडू छोड़ू बड आयल छी दया देखबय लेल । राखू अपन नाटकक ई स्नेह अपने लग|
आन ठाम देत काज, अहां के कोन प्रयोजन राधाक ?अहां के एकर कोन चिंता!' .... मुदा झटकल कहां भ' रहल अछि तथापि हुनकर हाथ ?
हमरे आंचर स पोछैत हमर मुख ?
शिवकुमार झा-किछु पद्य३..शिवकुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम : शिव कुमार झा,पिताक नाम: स्व0 कालीकान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम: स्व. चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि : 11-12-1973,शिक्षा : स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुरमोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम + पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति : प्रबंधक, संग्रहण,जे. एम. ए. स्टोर्स लि.,मेन रोड, बिस्टुपुर जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि : वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापतिपरिषदसमस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डा. नरेशकुमारविकल आ श्री उदय नारायण चौधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) कनेतृत्व मेसंलग्न
!! हे तात !!
विलखि रहल छी अन्हर जाल मे, छोड़ि कत चलि गेलहुॅ तात । कॉपि रहल छथि सूर्यमुखी आ, कुहरथि वृद्ध कनैलक पात ।। टोलक सभटा नेना भुटका, आश लगौने घूमथि वथान । के देत उदयन धामक पेड़ा, के देत मिठगर मगही पान ।। पंडित बाबा खाट पकड़लनि, ककरा मुख सॅ सुनता गान । श्यामजी अश्रु इनार मे पैसलनि, आव के कहतनि पैघ अकान ।। आर्या मॉक दुआरि सुन्न अछि, सत्संगी सभ ओलती मे ठाढ़ । भक्ति सागरक धार विलोकित, लुप्त गगन मे अहॅक कहार ।। अनसोहॉत ई दैवक लीला, कोना वनौलनि मर्त्य भुवन ? विज्ञानक ऑगन सॅ बाहर, जन्म मरण जीवन दर्शन ।। करतीह कोना श्रृंगार मेनका, करतनि के रूपक वर्णन । देवराज छथि कोप भवन मे जल विनु करव कोना तर्पण? मुख मलीन कहियो नहि देखलहुॅ, सुख दुख सॅ अहॉ विलग विदेह । अंतिम भीख मॅगै छी बाबू, दर्शन दिऔ एक वेरि सदेह ।।
१.राजदेव मंडल-तीन टा कविता२.सतीश चन्द्र झा-दूटाकविता
ने जानि कोन-सन अनुभूति हमरा करेज सँ बाहर आबि गेल, बाबूजीकक लहास पकड़ि हम फूटि-फूटि कए कानब शुरू क’ देलहुँ.....
हम्मर बाबूजी.........।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:- सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:- 1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)| 2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)| 3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)| 4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल । 5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव । 6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता| 7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/ पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।