भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Friday, May 14, 2010

'विदेह' ५७ म अंक ०१ मइ २०१० (वर्ष ३ मास २९ अंक ५७)- PART IV


३. पद्य




३.५.गजेन्द्र ठाकुर-गीत-बँसकरमक विश्वकर्मा
स्व.कालीकान्त झा "बुच"
कालीकांत झा "बुच" 1934-2009
हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 0 मे भेलनि  पिता स्व0 पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक
प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह। माता स्व0 कला देवी गृहिणी छलीह। अंतरस्नातक समस्तीपुर कॉलेज, समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि। बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विशेष रूचि छल  मैथिली पत्रिका- मिथिला मिहिर, माटि- पानि, भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समयपर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि। जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि। साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक इतिहास (संपादक डाॅ0 बासुकीनाथ झा )मे हास्य कथाकारक सूची मे, डाॅ0 विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्य"क उल्लेख कयलनि । मैथिली एकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा समय-समयपर हिनका प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल । श्रृंगार रस एवं हास्य रसक संग-संग विचारमूलक कविताक रचना सेहो कयलनि  डाॅ0 दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि |

!!
मातृगीत - 1 !!

सेवा करियौ ने मुंजूर, अचलहुॅ बुलिते बहुतो दूर ।
ऑजुर भरल अढ़ूलक फूल एड़ी गरल बबूरक शूल ।।

हमहूॅ पूत अहींक एक मॉ अपने तॅं जगतक अम्बा छी,
उघ पड़त भार हमरो मॉ अपने सवहक अवलंबा छी,
हे पाथरक मूरूत मोम भपिघलपड़त जरूर ।
सेवा............................................ ।।

भुवनेश्वरि मणिद्विपक रानी, वेटा भुखल मॉटि लोटैए,
मॉ अपने लग सुधा सरोवर प्यासल पूत नोर घोंटैए,
अहॅक हाथ नवरचना हम्मर जीवन चकनाचूर ।
सेवा............................................ ।।

ब्रहमरमणि थाकलि ठेहियायलि पकड़व जखन अपन जप आसन,
ठाढ़ रहव श्रद्धा सुरसरि लराखव भगति भोग केर वासन,
चमकाबू चानक टिकूली मॉ उषा किरण सिनूर
सेवा............................................ ।।



!!
मातृगीत - 2 !!

सिन्धु शैल - भूमि सुते सीते,
पुत्र हम मलीन मॉ पुनीते ।
ऑचर सॅ झाड़ि दिय ।
कर सॅ पुचुकारि दिय,
अधर पर उतारि अमर प्रीते ।
पूत हम मलीन मॉ पुनीते ।।
सुःखक थपथपी दैत,
शांतिक निनियॉ गवैत,
सुना दिय अपन मधुर गीते ।
पूत हम मलीन मॉ पुनीते ।।
पसरल विपत्ति घटा,
छिटकाबू त्राण छटा,
कहिया धरि रहवै भयभीते ।
पूत हम मलीन मॉ पुनीते ।




!!
काटरक महिमा !!

महिमा ई काटर प्रथाक वड़ भारी ।।
बाबा दलाल बाप वरदक व्यापारी,
बेटा बछौड़ बीकि गेलै हजारी ।
शील सौन्दर्यक नहि कोनो सुमारी,
हंसक घर एलै वगुलवा कुमारी ।
मरूआक रोटी पर तरूआ तरकारी,
रेशमक सिक्का पर कनफुट्टा टारी ।
वलकुचही गोरा पर भरल वखारी,
हुवघट्टू ड्राइवर लग मरसल्ली गाड़ी ।
ऑटी भरि धोती तर वोझ वनल साड़ी,
दुव्वर कुमार मुदा दोवरि कुमारी ।
उल्लू लग मयना हरिण लग पारी,
बनराक हाथ पर पद्मिनिया नारी ।
लकलक चतरिया तर चतरल खेसारी,
वाउ सुलहनामा तदाइ फौजदारी ।
आंगनक वाटे नहि कट्ठा भरि वारी,
ऊॅचे जोतॉस मुदा लेया घरारी ।
वऽर प्राइवेटे छथि कनियॉ सरकारी,
वाऊ ब्रहमपुत्र दाई वंगोप खाड़ी ।
एक लोकमाया तएक ब्रहमचारी,
भौजी छतौनी तभैया खरारी ।
ज्योति सुनीत चौधरी
प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षी अफ्रीकासँ
आयल कएक मील उड़ि कऽ
गर्मीमे जीवनयापन लेल
नम्हर दिवस पाबि कऽ
भोजन ताकत बेसी समए
भोजनो बेसी उपलब्ध रहए
भागल अपन देश छोड़ि
भीषण गर्मीसँ निदान भेटय
अपन जन्मस्थानसँ भिन्न
ककरो लागल दुइ तीन दिन
थम्हि थम्हि कऽ आबैमे
कियो लेलक महिना दिन
रंग बिरंगक आकार प्रकार
प्रकृतिक अतिथि ग्रीष्मकाल
साल भरिसँ प्रतीक्षा कएल
भीड़ लगेने सभ देखनिहार       

 

नन्‍द वि‍लास राय
ग्राम,पोस्‍ट- भपटि‍याही, टोला- सखुआ, वाया- नरहि‍या, जि‍ला- मधुबनी, ि‍बहार।

सभसँ पावन ि‍मथि‍ला धाम यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ
जाहि‍ ठाम बहै कोशी, कमला और वागमती बलान यौ,
पावन ि‍मथि‍ला धाम यौ,
ि‍मथि‍लासन नहि‍ आन यौ।
जहि‍ठाम सीतासन भेलीह नारी,
राजा जनक सन सदाचारी,
मानव सेवा करब वड़का काम यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
छथि‍न्‍ह सखड़ामे माए सखेश्‍वरी,
और ठाढ़ीमे माए परमेश्‍वरी,
जहि‍ठाम बरहम बाबा गामेगाम यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
जहि‍ठाम आद्रा, चौथचन्‍द्र, जि‍ति‍या
भाए-बहि‍नि‍क स्‍नेह पावनि‍ अछि‍ भातृ-द्वि‍तीया।
जहि‍ठाम कोजगराकेँ बड़ नाम यौ,
वॉंटथि‍ पान-मखान यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
जहि‍ठाम क्‍यो ने भेटत लफंगा,
सभसँ नीक शहर दरभंगा।
ओहि‍ठाम पैघ-पैघ दोकान यौ,
भेटत सभ समान यौ,
मि‍थि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
नेहरा, सरि‍सव ओ पोखरौनी,
कोयलख, पि‍लखवाड़, मंगरौनी।
आेहि‍ठाम पैघ-पैघ भेल वि‍द्वान यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
जहि‍ठाम नामी माछ-मखान,
आओर अछि‍ फलक राजा आम।
जहि‍ठाम जमाए छथि‍न्‍ह भगवान यौ,
आओर पहुनाकेँ भेटए सम्‍मान यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
भेलाह ललि‍त बावूसन नेता,
ि‍मथि‍लाकेँ सच्‍चा बेटा।
ि‍वकासक खाति‍र देलथि‍न्‍ह अपन प्राण यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
ि‍मथि‍ला वि‍भूति‍ सूरजबावू सन पैघ-पैघ भेल नेता,
आजादीकेँ लड़ाइ लड़बामे रसि‍क, अनन्‍त, गुरमैता,
देशकेँ अजाद करबामे एहि‍ घरतीकेँ बड्ड योगदान यौ,
पावन ि‍मथि‍ला धाम यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
ि‍मथि‍ला पेन्‍टींग मधुबनीकेँ दुनि‍यॉंमे बड्ड नाम छै,
खादी भंडार मधुबनीकेँ भॉंति‍-भॉंति‍क काम छै,
जहि‍ठाम सुग्‍गा बजैत सीताराम यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
ि‍मथि‍लाक कला, ि‍मथि‍लाक साहि‍त्‍य, ि‍मथि‍लाकेँ संस्‍कृति‍ नीक,
फूसि‍ नै बाजब दान करब ई मैथि‍लकेँ प्रवृति‍ छी।
अन्‍न-वस्‍त्र, वर्तनक संगहि‍ करैए लाेक गोदान यौ,
पावन ि‍मथि‍ला धाम यौ,
ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
बड्ड मधुर अछि‍, सुनब-बाजवमे ि‍मथि‍लाक मैथि‍ली-भाषा,
ि‍मथि‍लाकेँ वि‍कास हुअए खूब, हमरो अछि‍ अभि‍लाषा।
ि‍मथि‍लाक वि‍कासक खाति‍र हमहूँ देव योगदान यौ,
पावन ि‍मथि‍ला धाम यौ, ि‍मथि‍ला सन नहि‍ आन यौ।
शिव कुमार झा-किछु पद्य ३..शिव कुमार झा ‘‘टिल्लू‘‘,नाम ः शिव कुमार झा,पिताक नाम ः स्व0 काली कान्त झा ‘‘बूच‘‘,माताक नाम ः स्व0 चन्द्रकला देवी,जन्म तिथि ः 11-12-1973,शिक्षा ः स्नातक (प्रतिष्ठा),जन्म स्थान ः मातृक ः मालीपुर मोड़तर, जि0 - बेगूसराय,मूलग्राम ः ग्राम $ पत्रालय - करियन,जिला - समस्तीपुर,पिन: 848101,संप्रति ः प्रबंधक, संग्रहण,जे0 एम0 0 स्टोर्स लि0,मेन रोड, बिस्टुपुर
जमशेदपुर - 831 001, अन्य गतिविधि ः वर्ष 1996 सॅ वर्ष 2002 धरि विद्यापति परिषद समस्तीपुरक सांस्कृतिक ,गतिवधि एवं मैथिलीक प्रचार - प्रसार हेतु डाॅ0 नरेश कुमार विकल आ श्री उदय नारायण चैधरी (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक) क नेतृत्व मे संलग्न

 
!! अभिनव मिथिला धाम !!

‘‘
मॉ मिथिले अभिनव मिथिला धाम ।।
अहॅक कोर केॅ छोड़ि आव हम,
नहि जएव दोसर ठााम ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

वौरयलहुॅ सगरो आर्य भुवन मे,
कतहु न भेटल चैन ।
अकवक विकल दिवस दुःख भोगलहुॅ,
तमस कटै छल रैन ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

नवटोल नववोल देखलहुॅ नवल चालि,
भाउज भावहुक नहि भान ।
तात पूत एक्के संग वैसल,
करथि सुरारस पान ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

मैथिल दीन जनेर फॅकै छथि,
मुदा देव पितरक मान ।
छोट पैघ वीचि लक्षिमन रेखा,
नहि ककरो अपमान ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

उदयन सॅ दर्शन सीखि वॉटव,
अयाची सॅ, आत्म सम्मान ।
भारती मंडन सॅ ब्रहम ज्ञान लेव,
आरसी यात्री सॅ स्वाभिमान ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

उर्मि धिआक त्याग देखिक,
कण-कण भाव विभोर,
वैदेहीक सती धर्म सॅ उमड़ल,
कमला मे हिलकोर ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

गोविन्द मधुपक सुनव पराती,
खोलि क दुनू कान ।
शिव शक्ति केॅ श्रद्धा सॅ पूजव,
सुनवैत विद्यापति गान ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

खोरा चाउर संग भाटा अदौरी,
वथुआ तिलकोर मखान ।
आचमनि श्वेत वलानक जल सॅ,
गलौंठी पतैलीक पान ।
मॉ मिथिले ................................ ।।

आन धाम सॅ रास सोहनगर,
कुलदेवी क गहवर ।
पच्छिमक त्वरित गीत सॅ रूचिगर
अपन वैन सोहर ।
मॉ मिथिले ................................ ।।
गजेन्द्र ठाकुर
बँसकरमक विश्वकर्मा
भीखूक फारब आ
ओदारि कऽ निकालब
उजरा औषधि वंशलोचन
कोनिञा सूप हकरा पथिया
मुदा खजुरिया बान्हमे बान्हल
हमर आ ओकर वर्तमान आ भविष्य

बकछुछरु खेलाइत हम आ भीखू
डोमासीक कातबला पोखरिक महारपर
थुथुन घोसियेने माँटिमे सुगरक झुण्ड
भीखूक भाए छथि आब सरकारी अधिकारी
दोसर भाए हॉस्पीटलक वार्डबॉय
आ भीखू एखनो डोमासीमे
जिबैत वर्तमानक संग भविष्यक ताकिमे

स्थिर ओहिठाम ठाढ़,
मुन्हारि साँझमे लीलीडाली हाथमे लेने
बजैत जे भाए बनल अछि अधिकारी
मुदा गाम छुटले छै बुझू
बियाहो पैघ घरमे ओकर भेल छै
दोसर भाए तँ गाम अबिते अछि
ओढ़ना पहिरना नीक मुदा काज वएह
हमरे नहि फुराइए करू की?
भविष्य तँ वएह बुझाइत अछि।

आगाँ अहाँ अएलहुँ, कोन काज कहू ?
मुँह झलकि गेलै भीखूक
ओहि मुन्हारि साँझमे

हम चुप्पे रही तावत्
ओहि झण्डी ठाढ़ गाछ लग
ठाढ़ गाछ कुकाठ लग

बाजि उठल भीखू मुदा काज तँ
काज तँ हमर ओ हाकिम भाए नहिए करत
मुदा अहाँले कहबै धरि अबस्से।

आ हम कहैत छी, नहि भीखू
हाकिम तँ काज कइये देत
मुदा काज अछि हॉस्पीटलक
पिता छथि भरती जतए भाए अहाँक छथि काज करैत।

कताक दिन भेलन्हि भरती भेना
मुदा नहि आइ काल्हि होइत
ऑपरेशनक तिथि अछि बढ़ेने जाइत
आ भीखूक मुँह झलकि उठल
मुन्हारि साँझमे।

हँ कहबामे जे होइत छै संतुष्टि
मदति देबामे जे होइत छै आत्मतृप्ति
ताहिसँ।
बँसकरमक विश्वकर्मा भीखूक वंशलोचनसँ
तृप्त होइत हम सेहो।  

 काली नाथ ठाकुर ग्राम सर्वसीमा द्वारा सन १९६८ मे रचित दहेज़ विरोधी रचना
पण्डितजी दण्डित भेलाह  जखनहि कन्या पाँच
पूर्व जन्म के कर्म फल, वा विधिक कोनो ई जाँच।

विधिक कोनो ई जाच, यैह चर्चा भरि गामक
लाबथु नोट निकालि जत्ते सम्पत्ति छन्हि मामक।
पनही गेलन्हि खियाय, कतौ नहि बसिलनि गोरा
धन्यवाद क पात्र छथि कलियुगके घोडा।

सत, रज, तम, सभ व्यर्थ थीक शिक्षा शील स्वभाव
गुण एकहि अछि अर्थ गुण अवगुण अर्थाभाव
अवगुण अर्थाभाव भाव नहि अछि गुण रूपक
कन्या कारी , गोर , मूर्ख वा दिव्यस्वरूपक।
मायक दूध क दाम जोडि गनबओता टाका
पुत्र हुनक गामक गौरब से कहलथि काका

बीतल शुद्ध आषाढ के अगहन वैशाख।
पहिल कुलच्छन बुझलनि, जखनहि घुरि अयला सौराठ॥
घुरि अयला सौराठ हाट करथु बेचारे
विधिक लिखल के मेटल आब रहि जेता कुमारे॥
छोरलनि बीस हजार , लोभ मे तीस हजारक।
कए रहला गणना जोतखी, एहि साल बजारक

सुनलनि जखनि सुषेण सँ , दहेज निरोधी न्यूज
तखनहि जेना दिमाग केर ढिबरी भय गेल फ्यूज
ढिबरी भय गेल फ्यूज बराति कन्यागत दुनू
घटकैती के करत घटक केर हाल न सूनू
बर क हाथ कनिया बरियातीक हाथ हथकड,
सरियाी सभ करथु दौडबडहा कचहरी।

लूटन झा त लुटि गेला कए दूई कन्या दान
मोछ पिजौनहि रहि गेलाह करता की बरदान?
करता की बरदान चोट छन्हि नगदी नोटक
उजरल बरदक हाट प्रथम ई बात कचोटक
घटक राज केर संग करथु बरु तीर्थयात्रा
करथु मन्त्रणा गुप्त मुक्त भय सफल सुयात्रा

जाति जनौ बाँचत कोना? कुल मर्यादा मान
अन्तर्जाति ववाह में घोषित नकद ईनाम
घोषित नकद ईनाम संग सर्विस सरकारी
कहय शास्त्र ओ वेद मात्र द्विज छथि अधिकारी
करथु ग्रहण ककरो कन्या हो डोम चमारक
मन डोललनि पण्डित जी के जे उच्च विचारक

भेल मनन मन्थन बहुत, ई समाज केर पाप!!
की दहेज बन्ले रहत समाजक अभिशाप!!
समाजक अभिशाप ब्याज ई पूँजीवादक।
बेचि आत्मसम्मान स्वांग धरि कुल मर्यादक
सिद्धान्त नहि व्यवहारहु केर करू प्रदर्शन
तखनहि त भय सकत रोग उन्मूलन॥
.-राजदेव मंडल-
राजदेव मंडल
1)   ि‍हत-अहि‍त

गप्‍प एकटा गूढ़
कहने रहथि‍ गामक बूढ़
  ‘‘अपन धीया-पुत्ता जानि‍
लि‍अ हमर बात मानि‍,
सॉंपक मन्‍तर आ खाटक बानि‍
अनकर जीवन अपन हानि‍’’
  ‘‘सुनू यौ बाबा
हमरो अछि‍ दावा
अनकर हि‍त तँ अपनो हि‍त
दोसराक करब अहि‍त
अपनहुँ भऽ जाएब कहि‍यो चि‍त
पड़ोसि‍या घरमे जँ लागि‍ जाए आि‍ग
तँ ि‍क हम ओहि‍ठामसँ जाएब भागि‍
लगत पसाही उड़त कुकवाहा
हमरो घर भऽ जाएत स्‍वाहा’’
उनटा घुमए लागल माथक चाक
भऽ गेलाह ओ अवाक्।

2)   प्रयास

बॉंि‍हक लगौने चुट्टा
उखाड़ि‍ रहल छी खुट्टा
ि‍कन्‍तु नहि‍ अछि‍ ई खुट्टा
भऽ रहल भान
ई अछि‍ बरि‍सों पुरान
सुखाएल गाछ रोपल
बाउल माटि‍सँ धोपल
केहेन जाल ि‍खरा देने छी
रोपल गाछमे भि‍ड़ा देने छी
जे अहॉं बूते नहि‍ होएत गारल
से हमरा बूते कोना हएत उखारल
तद्यपि‍
लगा रहल छी जोरपर जोर
ि‍हलबे करते थोड़बो-थोड़
कतेको जोड़ी ऑंखि‍ हँसैत अछि‍
हँसले घर कते बेर बसैत अछि‍।

3)   ऑफि‍सक भूत

सभ कुरसीपर भूत नाचैत अछि‍
ऑंखि‍ आ अँगुरीसँ दाम बॉंचैत अछि‍
कुरसी अछि‍ वएह
बदलैत अछि‍ ओकर मुख
ि‍कन्‍तु नहि‍ बदलैत अछि‍
हमर दुख
सभ मुखपर अछि‍ ओकरहि‍ं राज
मुँह नहि‍ खुलत तँ होएत कोना काज
कुरसी हो पैघ आि‍क छोट
कऽ रहल चोट कऽ रहल-चोट
ओ नचबैत अछि‍ ओकरा मनकेँ
शोणि‍त पि‍बैत अछि‍ साधारण जनकेँ
हेओ समाज
कोना होएत
हमर अटकल काज
अछि‍ वि‍श्‍वास
लगौने छी आस
आएत कोनो गुणी आर सच्‍चा दूत
जेकरा देखतहि‍ं भागत भूत
वएह करत सबहक उपकार
भऽ जाएत हमरो उद्धार।

हे प्रकाश, जुनि‍ खसाउ नोर
आि‍ब रहल अछि‍ नूतन भोर।

बालानां कृते
गजेन्द्र ठाकुर
नाटक
किछु दिअ

सूत्रधार: आइ एकटा संस्कृत साहित्यक प्रसिद्ध कथापर आधारित नाटक देखा रहल छी। चोटगर कथा अछि। बच्चा आ पैघ सभक लेल। देखू ई भिखमंगा कतऽ सँ आबि रहल अछि।

दृश्य १
(गाममे घुमैत)
भिखमंगा: गरीबकेँ किछु दिअ। पुरान कपड़ा, रुपैआ, पैसा। किछुओ दिअ।
बूढ़ी: लिअ ई कपड़ा। पुरान छै मुदा जाड़मे बड्ड गरम रहै छै। ई अन्न सेहो।
नबका कमौआ: लिअ ई पैसा। किछु कीनि लेब।
(भिखमंगा सूत्रधारक बगलसँ होइत कपड़ाक धोधरिमे अन्न रखैत अछि। पाइ गनैत अछि। फेर दोसर दिस अपन घरक खाटपर बैसैत अछि। एकटा चुकड़ीमे पाइ रखैत अछि, फेर गनैत अछि।)
भिखमंगा: (मोने-मोन) आब तँ ढेर रास पाइ भऽ गेल। मोन अछि जे कमलाक भगता बनि जनकपुर जाइ। भगवान से दिन देखेलन्हि।

दृश्य २

भिखमंगा: (बोगलीमे पाइक चुकड़ी लेने आगाँ जाइत- भोरुका समए)

      चलू चलू यौ
जनकपुरमे कमलाक भगता
करू करू यै
कमला माइ करू हमर उद्धार
चलू चलू यौ जनकपुर
भगता बनि कमलाक

(सोझाँ बालुसँभरल कमलाक तट। भिखमंगा सोचैत अछि।)
-अहा। की विस्तार अछि कमलाक। मुदा एतेक भोरमे कियो एतए नहि अछि। चलू पाइक चुकड़ी कातमे राखि डूम दऽ आबी।
(पाइक चुकड़ी नीचाँ रखैत अछि आ नहाइ लेल बिदा होइत अछि।)
(मोने-मोन सोचैत)- मुदा कियो जे देखि जाएत आ ई पाइ लऽ लेत तखन? एकरा बालुमे नुका दैत छिऐक।
(बालु कोड़ि कऽ चुकड़ी नुकबैत अछि।)
(फेर मोने-मोन सोचैत) मुदा जे कियो ई देखि जाएत तखन? मुदा देखत कोना आब। तेना कऽ नुका देने छिऐक जे आब हमरो नै भेटत।

(फेर सोचैत घुरि अबैत अछि।)
मुदा हम जे नहा कऽ आएब तँ कतऽ ई पाइ गाड़ल अछि से हमरो कोना बूझऽ मे आएत। ठीक छै।
(कोड़लाहा स्थानपर अबैत अछि।)
एतऽ शिवलिंग बना दै छिऐ। ( कोड़लाहा स्थलपर पएर रखैत अछि आ पएरक चारू कात बालु राखए लगैत अछि। चारू कातसँ बालु भरि गेलाक बाद आस्तेसँ पएर हटा लैत अछि आ नीक-नहाँति शिवलिंग बना दैत अछि। फेर निश्चिन्त मोनसँ कमला-स्नानक लेल बिदा भऽ जाइत अछि। एम्हर ओ धार दिस बिदा होइत छथि आ ओम्हर दूरसँ किछु आर स्नानार्थी, पुरुष हाथमे धोती आ महिला हाथमे नुआ लेने, अबैत दृष्टिगोचर होइत छथि।)
(मोने-मोन सोचैत) नीके भेल जे फुरा गेल। कएक सालक कमाइक छी ई पैसा। ई लोक सभ आब स्नान करबा लेल आबि रहल अछि। ने जानि ककर मोनमे खोट हेतै आ ककर मोनमे नै।

(नहाइ लेल मंचसँ नीचाँ धारमे फाँगि जाइत अछि।)
पुरुष स्नानार्थी - (अपन कपड़ा लत्ता राखै अए) चली कमलामे डूम दऽ आबी।
स्त्री स्नानार्थी- (भिखमंगा द्वारा बनाओल शिवलिंग दिस इशारा करैत) हे देखियौ ओ शिवलिंग। लागैए एतऽ स्नान करबाक पहिने शिवलिंग बनेबाक विधान छै।
पुरुष स्नानार्थी- अपना सभ दिस, गंगा कातमे तँ एहेन कोनो परम्परा नै छै।
स्त्री स्नानार्थी- एत्तऽ मुदा छै। आ भोलाबाबाक स्थापना कऽ डूम लै मे हर्जे की।
पुरुष स्नानार्थी- हँ से तँ ठीके।
( दुनू गोटे एक-एकटा शिवलिंगक स्थापनामे लागि जाइत छथि। पएरक चारूकात बालु चढ़बऽ लगै छथि। तावत् आनो लोक सभ आबि कऽ किछु पूछऽ लगै छथि आ अच्छा-अच्छा कहि ओहो सभ एक-एकटा शिव लिंगक स्थापनामे अपन-अपन पएरक चारू कात बालु चढ़बए लगै छथि। कनिये कालमे मंचपर शिवलिंगे-शिवलिंगे भरि जाइत अछि। मंचपर हर-हर महादेवक स्वरसँ अनघोल भऽ जाइए। )
भिखमंगा: (नहा कऽ निकलैत) देखू, जखन आएल रही तँ एकोटा लोक नहि छल आ आब देखू कतेक भीड़ भऽ गेल। हमरा की। जोगी छी, बहैत पानि सन। ई अंगवस्त्र रस्तेमे सुखा जाएत। जए माँ कमलेश्वरी। कमलाक भगता बनि चली आब जनकपुर। मुदा ओ चुकड़ी तँ लऽ ली।
(अपन बनाओल शिवलिंग ताकऽ लगैत अछि। मुदा चारू कात शिवलिंगे-शिवलिंग। एक दूटा शिवलिंगकेँ भखराबैत अछि मुदा ओहि नीचाँसँ किछु नहि बहराइत अछि।)
(भिखमंगा माथपर हाथ राखि मंचपर बैसि जाइत अछि आ आस्ते-आस्ते मंचपरसँ प्रकाश विलीन भऽ जाइत अछि।)
(पटाक्षेप)

 बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी  धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आसर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आघोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आयुवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आनेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आऔषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आमित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽबिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
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मैथिलीमे भाषा सम्पादन पाठ्यक्रम
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1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेबबला, हेमबला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ
/आऽ
3. क
लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल/लऽ/लय/लए
4. भ
गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर
गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय
,दिय,लिअ,दिय/
7. कर
बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/कबला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह
, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ
/ओऽ(सर्वनाम)
20. ओ (संयोजक) ओ
/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे
/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ तखनतँ
26. जा
रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/बहराए लागल निकल
/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत
/ओत/जतए/ओतए
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
30. जे जे
/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ इआद
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस

34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/सात छ/छः/सात
37. की की
/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दालान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
46. लय/लए
/कऽ/लए कए
47. ल
/लऽ कय/कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/नै
59. करबा
/करबाय/करबाए
60. त
/त ऽ तय/तए 61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
66. द
/द ऽ/दए
67. (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका
कए तकाय तकाए
69. पैरे (
on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे


71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि
  गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे

81. से/ के से
/के
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करैऔ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक खेलेबाक
92. खेलाएबाक
93. लगा

94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ(
in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (
play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (
different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (
understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग
 
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
125. चिखैत- (
to test)चिखइत
126. करइयो(
willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा
/ पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग

141. खेलाइ (
for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (
hair)
146. केस (
court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबय/ डुमाबय
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल

155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना
/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेनाने घेरलन्हि
161. नञ
162. डरो
रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के

169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही/तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि

181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ /करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा
(आगि लगा)
193. से से

194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(
spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा

201. देखाय देखा

202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलो
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/
216.जाऽ/जा
217.आऽ/
218.भऽ/भ
( फॉन्टक कमीक द्योतक)219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/नइँ/ नञि/नहि
226.है/ हइ
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (
come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (
conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)- (conjunction-and)/
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए(अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह(बिकारी)क प्रयोग उचित

२६५.केर/-/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझ छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि।वक्तव्य/ वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.बाली/ (बदलएबाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय

उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोगगड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ
छथि- छ इ थ  – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री  रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव  http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) रामक आ संगे राम के/  राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ  रामकेँ- राम कऽ राम के

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)

३.नेपाल भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली


1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक  उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन

१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ,,, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओलोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोकबेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोटसन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽकऽ पवर्गधरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽकऽ ज्ञधरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।

२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आनठाम खालि ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्दसभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।

३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहिसभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।

४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएवला शब्दसभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, याबत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।

५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्दसभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारूसहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।

६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।

७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।

८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क)क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमेसँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख)पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग)स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ)वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ)क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च)क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।

९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटिकऽ दोसरठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु(माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्दसभमे ई नियम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।

१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्दसभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषासम्बन्धी नियमअनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरणसम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्षसभकेँ समेटिकऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनिकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽवला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषीपर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़िरहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषतासभ कुण्ठित नहि होइक, ताहूदिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक
धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)

2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली

1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि
, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-

ग्राह्य

एखन
ठाम
जकर
,तकर
तनिकर
अछि

अग्राह्य
अखन
,अखनि,एखेन,अखनी
ठिमा
,ठिना,ठमा
जेकर
, तेकर
तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ
, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:भ गेल
, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। करगेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।

3. प्राचीन मैथिलीक
न्हध्वनिक स्थानमे लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।

4.
तथा ततय लिखल जाय जतस्पष्टतः अइतथा अउसदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।

5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:जैह
,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।

6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे
के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।

7. स्वतंत्र ह्रस्व
वा प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ वा लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।

8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे
ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।

9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव
लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।

10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-हाथकेँ
, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। मेमे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। क वैकल्पिक रूप केरराखल जा सकैत अछि।

11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद
कयवा कएअव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।

12. माँग
, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।

13. अर्द्ध
ओ अर्द्ध क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ’ , ‘’, तथा क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।

14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय
, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।

15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क
लिखल जाय, हटा कनहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।

16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।

17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।

18. समस्त पद सटा क
लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा कनहि।

19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।

20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।

21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा
' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।

ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६

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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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