'विदेह' ६५ म अंक ०१ सितम्बर २०१० (वर्ष ३ मास ३३ अंक ६५)
एहि अंकमे अछि:-
३.६.१.मृदुला प्रधान- कविता २. उमेश मंडलक ३ टा कविता
३.७.१.इन्द्र भूषण २. राजेश मोहन झा
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
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१. संपादकीय
किछु गप-सरक्का: कोना मुँपर हँसी राखी आ व्यक्तित्वक विकास करी (संगी-साथी, खास कऽ जे सभ विपणन क्षेत्रमे चाकरी करै छथि हुनकासँ होइत वार्तालापक आधारपर):
क्षणमे क्षणाक.. अहाँ कोनो एहन काज नै करू जे दोसराकेँ कैक बरख धरि प्रतारित करैत रहए।
सदिखन प्रतिभाक ताकिमे रहू। एहिमे जाति-धर्मकेँ स्थान नै दियौ।से अपन धंधामे होअए वा साहित्यमे।आ ओ प्रतिभाशाली व्यक्ति कतेक प्रतिभाशालीकेँ ताकि कऽ देत। जे जाति धर्मक आधारपर निम्न कोटिक प्रतिभाकेँ अहाँ आश्रय देबै तँ मोन राखू जे ओ अपने सन प्रतिभा अहाँकेँ ताकि कऽ देत। आ एहन हारल व्यक्तित्व अपन हारिक लेल सर्वदा अनका दोष देताह। सदिखन अभाव-भाषण, सदिखन गंभीर समस्यापर वितर्क अहाँक उत्साहकेँ मारत। एहिसँ समस्या बढ़बे करत। गंभीर समस्यापर वितर्क नीक गप छै, मुदा सदिखन नै।
क्रोध मनुक्खक सभसँ पैघ शत्रु थिक। क्रोधावस्थामे कोनो निर्णय नै लिअ, जे लेब तँ ओ निर्णय अहाँ लेल गेल खराप निर्णयमे सँ एक होएत।
अपन समस्या अपन माए, बेटी, सखा, महिला-सहकर्मी आकि पत्नीसँ अवश्य साझी करू। कारण खराप परिस्थितिमे महिला द्वारा उचित निर्णय लेबाक आ नीक सलाह देबाक अधिक सम्भावना रहैत अछि। कतबो झगड़ हुअए, वा कतबो समस्यामे रही, पत्नीक कोठलीसँ दोसर कोठलीमे सुतैले नै जाउ।
दोसर केहन छै तकर विवेचन छोड़ू, एहिपर ककरोसँ बहस नै करू। ई अहाँकेँ फुसियाहीक भ्रममे राखत।
नीक काज करबा काल कोनो तरहक एहन विचार नै आनू जे लोक की कहत। खराप काजक विरोध करबामे निर्दय बनू- खराप काजक प्रति “जीरो टोलेरेन्स” राखू।
कोनो बौस्तु अहाँकेँ सुविधा दैए तँ सएह आनन्द प्रदान कर..नै एहि भ्रममे नै रहू। असुविधाजनक आ कएक बरख धरि कएल कठिन काजक बाद जे आनन्द भेटै छै से सुविधापूर्वक कएल काजसँ भेटल आनन्दसँ कएक गुणा होइ छै।
दोसराक प्रति ईर्ष्या अहाँक आनन्दक क्षणकेँ घटाओत।
सभकेँ प्रशंसा सुनब नीक लगै छै आ ताहि लेल ओहि व्यक्तिक कएल नीक काज सभक विषयमे जानकारी राखू आ तखन प्रशंसा करू, मिथ्या प्रशंसा नै करू।
सर्वदा परिवर्तनक संग आगाँ बढ़बा लेल तत्पर रहू, मुदा सावधान! कोनो एहन परिवर्तन जे नैतिक होअए आ अहाँक विचारसँ मेल नै काए, तकर विरोध करू।
अपन समालोचकक संग कहियो नै छोड़ू, वएह अहाँक कठिन बाटक असल संगी सिद्ध होएताह।
अपनापर सर्वदा नियंत्रण राखू।
नकारात्मक विचार अहाँकेँ दुखी करत।
पाइकेँ सफलताक आधार मानैबलाक संख्या कम छै, आ से नै छै तँ होएबाक्ल चाही।
कोनो काज करै काल सर्वदा ओकरा सर्वोत्कृष्ट बनेबाक प्रयास करू, अधिकांश कार्यमे मुदा एकर उनटा भेटत। लोक काजकेँ उत्कृष्ट बनेबाक बदला संपूर्ण बनेबाक प्रयास करै छथि, जेना- ईहो रहबाक चाही, ई छुटि गेल। काज सर्वोत्कृष्ट बनेबाक माने भेल ओ काज जे कल्याणकारी होअए।
कोनो व्यक्ति आकि काजक लेल भारी आशा राखू, काजसँ- विभिन्न नव-नव काजसँ लोककेँ लादि दियौ; काजमे नव मेथोडोलोजी जोड़ू, वएह काज उत्कृष्ट भऽ जाएत। कोनो समस्या आबए तँ घबड़ाउ नै, गहिंकी नजरि ओहि समस्यापर दौगाबू जे कोन नव काज ई अहाँकेँ देमएबला अछि।
सत्य बाजू, एहिसँ अहाँक मस्तिष्कपर कम भार रहत। कोन गप ककरासँ बाजल रही से मोन नै राखऽ पड़त।
सृजनक सुख:कला, साहित्य, कृषि-औद्योगिक उत्पादन आकि नव शिशुक जन्म, एहि सभमे सृजनक सुख भेटै छै। कृषक बीआ बाउग करै छथि आ बीआकेँ उचित समएपर रोपै छथि। फसिलक सेवा करै छथि आ फल पबै छथि।साहित्य, संगीत आ कलामे सेहो लोक कतेको अद्भुत वस्त् बनबै छथि, रचै छथि।संगीत सीखि कऽ ओकरा गेबाक/ बजेबाक आनन्द टेप रेकॉर्डरमे सुनबाक आनन्दसँ फराक होइत अछि। साहित्यक कोनो कृतिक सृजनक बाद सृजनात्मक सुखक अनुभव साहित्यकार करै छथि आ ई ओहेन होइत अछि, जेना बच्चाक जन्मक बाद माताक मुँहपर देखबामे अबैत अछि। मुदा आइ-काल्हि एहनो साहित्यकार सभक प्रवेश साहित्यमे भऽ गेल अछि जे अनकर रचना, से गद्य हुअए वा पद्य, तकर पुनर्लेखन (गद्यक गद्यमे वा कखनो काल पद्यमे सेहो) अपना नामसँ कऽ लैत छथि। गलौसीसँ आ मारि तरहक केफा कऽ, दुर्व्यवहार कऽ पाठकविहीन मैथिली साहित्य जगतमे निर्लज्जतासँ अपन एहि कृत्यसँ दोसर साहित्यकारकेँ हतोत्साहित करै छथि। हिनका सभक द्वारे किछु गोटे मैथिली साहित्य छोड़ि कऽ चलियो जाइत छथि, जकर छद्म-चोर साहित्यकार द्वारा पतनुकान दिअएबाक संज्ञा देल जाइत अछि। मैथिलीसँ ककरो जोड़ब नीक आकि पतनुकान दिआएब नीक? “रचना” पत्रिकाक एहने एकटा “अतिथि सम्पादक”बहुत रास रचना साहित्यकार सभसँ मँगबा कऽ गीड़ि गेलाह। हमरो लग हुनकर चिट्ठी आएल आ हम रचना पठा देलियन्हि, मैथिलीक नामपर। मुदा आब हुनकर किरदानी देखू। फुकियामाक इतिहासक अन्तक हमर व्याख्या ओ की बुझलन्हि आ तकरा अपन कवितामे चोरा लेलन्हि। फुकियामा रूसक कम्यूनिज्मक अन्तक विषएमे कहने छथि जे सभ्यताक इतिहास दू विचारक द्वन्द्वक इतिहास अछि। अमेरिकाक कैपिटलिज्म आ रूसक कम्यूनिज्मक बीचक द्वन्द्व रूसक कम्यूनिज्मक अन्तक बाद खतम भऽ गेल से एकमात्र सत्ता अमेरिका बचल- यूनीपोलर वर्ल्ड। आ ताहि सन्दर्भमे इतिहास खतम भऽ गेल। मुदा बादमे फुकियामा देखलन्हि जे एक्के विचारधाराक भीतर सेहो कएक तरहक विषमता जन्म लेने अछि- हैव आ हैव नॉट्सक बीचक द्वन्द्व अछिये, से ओ फेर अपन गपमे सुधार करैत कहलन्हि जे इतिहास जारी रहत।तहिना भगवानक मृत्युक सम्बन्धमे स्टीफन हॉकिन्सक विचार पूर्ण वैज्ञानिक आ मौलिक छन्हि। हुनकर कहब छन्हि जे कंट्रैक्शन आ एक्सपैनशन दुनू सिद्धान्त एहि विश्वक निर्माणक अलग-अलग सिद्धान्त अछि। मुदा जँ एकरापर एकर कोनो भगवान रूपी आरम्भकर्ताक नियन्त्रण नै छै तखन ओकर आयु भने बेसी होअए मुदा ओकरो मृत्यु एहि सिद्धान्तक अन्तर्गत होएत। मुदा “अतिथि सम्पादक” दोसराक रचना जे चोरेताह तँ काँट-छाँट करताह आ तखन अर्थक अनर्थ तँ होएबे करत- इतिहासक अन्तसँ सभ्यताक अन्त बुझताह आ भगवानक मृत्युसँ नहि जानि की?
बिना अध्ययनक, दोसराक मेहनति अपन नाम करबाक प्रवृत्तिसँ स्वास्थ्यक दुष्परिणाम सेहो सोझाँ अबै छै। लोक डराएल सन रहैत अछि जे चोरि ने पकड़ा जाए। आ ताहि डरसँ निन्नमे कमी अबै छै- ओना ई निन्नक कमीक कैकटा मे सँ एक कारण अछि- आ कम्मे उमेरमे निन्नक गोलीक सेवन बिना डाक्टरी सलाह लेबाले बाध्य होमए पड़ै छै।अंग्रेजी आ आन भाषासँ अनुवाद कऽ अपना नामे मैथिलीमे रचना छपबाबैक क्रममे अंग्रेजी-हिन्दी कोषसँ निकालल शब्द कखनो काल हास्यास्पद परिणाम सेहो दैत अछि- कोल्;ड ब्लडक एनिमल लेल नृशंस जानवरक अनुवाद तखन तँ भेटबे करत! गद्यक पद्य बनल रूप देखार भऽ जाइत अछि।पोएट्री डॉट कॉम, अमेरिकन पोएट्री डॉट कॉम पद्य आ ढेर रास अन्त साइट व्गद्य उपलब्ध करबैत अछि। मुदा धन्य अछि गूगलक शक्तिशाली सर्च इंजिन जे एहन चोर सभ पकड़ा जाइत छथि।
मेहनतिक कोनो विकल्प नै। अहाँ दू घंटा प्रतिदिन वा प्रति सप्ताह मैथिली लेल समए निकालू, नै तँ सुच्चा साहित्य सेवी सभकेँ गरियाबू, नै अपने काज करू आ ने करए दियौ, आ नाम कमाउ! विकल्प सभक सोझाँ अछि। मेहनतिक कोनो विकल्प नै।
मुदा आब मैथिलीसँ हिन्दीमे चोरि होएत आ तकरा लेल की करब? मैथिली प्रेमी जे हिन्दी साहित्यमे पेशागत वा अन्य कारणवश रुचि रखै छथि, सँ सादर अनुरोध जे एहि तरहक कोनो घटना हुनका नजरिमे अबन्हि तँ ggajendra@videha.com पर सूचित करथि।
विदेहक लघुकथा विशेषांक: विदेहक हाइकू आ गजल विशेषांक प्रकाशित भेल छल आ तकर बाद आब विदेहक ६७म अंक ०१ अक्टूबर २०१० लघुकथा विशेषांक होएत। विदेहक लघुकथा विशेषांकक अतिथि सम्पादक छथि मुन्नाजी। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित लघुकथा सम्बन्धी आलेख आ लघुकथा सभ (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे २९ सितम्बर धरि पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।
साहित्य अकादेमीक फेलोशिप अमरजी केँ:
२४ भाषाक साहित्य/ विद्वता/ दर्शनक “अमर साहित्य” लेल देल जाइत अछि। देशक एहि सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कारक स्थापना १९६८ मे कएल गेल छल आ ओहि वर्ष ई सर्वपल्ली राधाकृष्णन, दार्शनिककेँ देल गेल छल। साहित्य अकादेमीक मानद फेलोशिप गएर भारतीयकेँ भारतीय साहित्यमे उल्लेखनीय योगदान लेल सेहो देल जाइत अछि। एक समएमे २१ सँ बेशी गोटे लग ई फेलोशिप नै रहैत अछि। २०१० मे मैथिली साहित्य लेल ई फेलोशिप चन्द्रनाथ मिश्र “अमर”केँ देल गेल छन्हि। पहिने यात्रीजीकेँ ई फेलोशिप १९९४ ई. मे भेटल छन्हि।
चन्द्रनाथ मिश्र अमर 1925- जन्म: खोजपुर, मधुबनी । वरिष्ठ कवि, कथाकार-उपन्यासकार । हास्य-व्यंग्यक कवितामे बेजोड़। मैथिलीक लेल समर्पित व्यक्तित्व । पांच दर्जनसं बेसी कथा आ विदागरी, वीरकन्या (उपन्यास) जल समाधि (कथा संग्रह) प्रकाशित ।१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास) लेल साहित्य अकादमी पुरस्कारसँ सम्मानित। एम. एल. एकेडमी, लहेरिरियासरायसं शिक्षकक रूपमे अवकाश प्राप्त। आशा दिशा, गुदगुदी, युगचक्र, उनटा पाल आदि कविता संग्रह प्रकाशित। १९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला) लेल साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार।
नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” ) १९११-१९९८, हिन्दी आ मैथिली कवि। १९९४ ई.मे हिनका साहित्य अकादमीक फेलो नियुक्त कएल गेल। साहित्य अकादेमीक भाषा सम्मान
डॉ. शशिनाथ झा 1954-केँ साहित्य अकादमीक भाषा सम्मान 2007 मे क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल देल गेल छलन्हि। साहित्य अकादमीक भाषा सम्मान क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्यक अतिरिक्त गएर मान्यताप्राप्त भाषा सभ लेल सेहो देल जाइत अछि।
डॉ. शशिनाथ झा 1954- , गाम-दीप, जिला- मधुबनी। मैथिली, बांग्ला, नेवारी आ देवनागरी पांडुलिपिक विशेषज्ञ। साहित्य अकादेमीक बाल साहित्य पुरस्कार २०१०
तारानन्द वियोगीकेँ "मैथिली बाल साहित्य लेल पहिल साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०१०", "ई भेटल तँ की भेटल" लेल देल जा रहल अछि। "ई भेटल तँ की भेटल" मैथिली लोक रंग (मैलोरंग), दिल्ली द्वारा २००८ ई. मे प्रकाशित कएल गेल अछि। ई पुरस्कार १४ नवम्बर २०१० केँ बाल दिवसक अवसरपर देल जाएत। एहिमे ५१ हजार टाका देल जाएत। तारानन्द वियोगीजीकेँ बधाइ।
पोथी- "ई भेटल तँ की भेटल"
पृष्ठ संख्या: ३२
दाम: पन्द्रह टाका मात्र
ISBN NO.978-81-904941-2-0
पहिल संस्करण: २००८ ई.
प्रकाशक- मैलोरंग, दिल्ली।
तारानन्द वियोगी 1966-
जन्म १५ जनवरी १९६६, बदरिकाश्रम, महिषी, सहरसामे ।पहिल पोथी अपन युद्धक साक्ष्य (गजल संग्रह) १९९१ मे प्रकाशित। अन्य पुस्तक हस्तक्षेप (कविता-संग्रह), अतिक्रमण (कथा-संग्रह), शिलालेख(लघुकथा संग्रह), कर्मधारय, ई भेटल तँ की भेटल। राजकमल चौधरीक कथाकृति एकटा चंपाकली एकटा विषधर संकलन-संपादन।
साहित्य अकादेमी फेलो- भारत देशक सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार (मैथिली)
१९९४- नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी आ मैथिली कवि।
२०१०- चन्द्रनाथ मिश्र अमर (१९२५- )- मैथिली साहित्य लेल।
साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल )
२००७- डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली
१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
२००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
२०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल" लेल
प्रबोध सम्मान
प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
यात्री-चेतना पुरस्कार
२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान
२००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झाकेँ कविता संग्रह “एना त नहि जे”
२००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”केँ नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश
विशेष: विदेह आर्काइवक आधारपर बाल चित्रकथा आ कॉमिक्स महिला वर्गमे विशेष लोकप्रिय भेल अछि। महिलावर्ग द्वारा कीनब ओहि पोथीक बच्चा सभक हाथमे जएबाक सूचक अछि। हमरा सभक सफलता अहीमे अछि जे ई बाल-साहित्य “टारगेट ऑडियेन्स” लग पहुँचल अछि।
ई सभ पोथी आ विदेह आर्काइवक आधारपर प्रकाशित आन मैथिली पोथी एहि सभ ठाम उपलब्ध अछि:
पटना: १.श्री शिव कुमार ठाकुर: ०९३३४३११४५६
२.श्री शरदिन्दु चौधरी: ०९३३४१०२३०५
राँची: श्री सियाराम झा सरस: ०९९३१३४६३३४
भागलपुर: श्री केष्कर ठाकुर: ०९४३०४५७२०४
जमशेदपुर: १.श्री शिव कुमार झा: ०९२०४०५८४०३
२.श्री अशोक अविचल: ०९००६०५६३२४
कोलकाता: श्री रामलोचन ठाकुर: ०९४३३३०३७१६
सहरसा: श्री आशीष झा: ०९८३५४७८८५८
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समस्तीपुर: श्री रमाकान्त राय रमा: ०९४३०४४१७०६
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दिल्ली: १.श्रीमती प्रीति ठाकुर: ०९९११३८२०७८
२.श्री मुकेश कर्ण: ०९०१५४५३६३७
मधुबनी: १.श्री सतीश चन्द्र झा:०९७०८७१५५३०
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गजेन्द्र ठाकुर
शम्भु कुमार सिंह जन्म: 18 अप्रील 1965 सहरसा जिलाक महिषी प्रखंडक लहुआर गाममे। आरंभिक शिक्षा, गामहिसँ, आइ.ए., बी.ए. (मैथिली सम्मान) एम.ए. मैथिली (स्वर्णपदक प्राप्त) तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। BET [बिहार पात्रता परीक्षा (NET क समतुल्य) व्याख्याता हेतु उत्तीर्ण, 1995] “मैथिली नाटकक सामाजिक विवर्त्तन” विषय पर पी-एच.डी. वर्ष 2008, तिलका माँ. भा.विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार सँ। मैथिलीक कतोक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे कविता, कथा, निबंध आदि समय-समय पर प्रकाशित। वर्तमानमे शैक्षिक सलाहकार (मैथिली) राष्ट्रीय अनुवाद मिशन, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर-6 मे कार्यरत।—सम्पादक
निबंध : “मैथिली साहित्यक काल-निर्धारण” (यू. पी. एस. सी. परीक्षार्थीक हेतु उपयोगी)
निबंधकार : डॉ. शंभु कुमार सिंह
मैथिली साहित्यक काल-निर्धारण
ज्ञान राशिक संचित कोष थिक साहित्य। शब्द आ अर्थक यथावत सद्भाव, जाहिमे मनुष्यक भावना आ बेधन चेष्टा समाविष्ट हो सैह थिक साहित्य। जनताक चित्रवृतिक परम्पराक संग ओकर सामञ्जस्य देखाएबे साहित्यक इतिहास थिक। व्यापक, गहन आ अध्ययनक सुविधाक लेल साहित्यकेँ समयक विभिन्न परिधिमे बाँटब काल-विभाजन थिक। मुदा काल विभाजनक ई तात्पर्य कथमपि नहि अछि जे एक कालक समाप्त भेलाक लागले पश्चात् दोसरहि दिन साहित्यक धारा दोसर दिशामे प्रवाहित होमए लगैत अछि। काल-विभाजन कोनो सुनिश्चित मापदण्ड अथवा कसौटी नहि अछि, एहि लेल काल विशेषक नामकरण, कखनहुँ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आ धार्मिक परिस्थितिक परिपेक्ष्यमे होइछ तैँ कखनहुँ रचना विशेषक प्रवृति प्रावल्यक आधार पर। साहित्य अनन्त अछि। कोनो साहित्यक वैज्ञानिक ओ विधिवत ज्ञान ओहि साहित्यक अध्ययन सँ संभव होइत अछि। साहित्यक सम्यक अध्ययनक लेल युग विभाजन वा काल-विभाजन आवश्यक अछि। एकर स्पष्टीकरण ‘मिश्रबन्धु’क निम्न पंक्तिसँ भ’ जाइत अछि:
“काल-विभाजन इतिहास के प्रासाद की दीवारें हैं। काल-विभाजन द्वारा यह माना जा सकता है कि, कब, कैसे और किधर लोगों की मनोवृत्ति और विचारधारा प्रवर्तित हुई। किन्तु काल निर्णय कोई सुकर कार्य नहीं। काल की कड़ी के दोनो छोड़ों को पकड़ना बहुत सूक्ष्मदर्शिता और गहरी विवेचना से हो पाता है। विचारों और उसके प्रकाशन में जब कोई नयी क्रान्ति आ उपस्थित होती है, तभी काल श्रृंखला की नई कड़ी आरंभ होती है।” कोनो निर्जन प्रदेशक शैवलनी सदृश एकर धारा अबाध गतिसँ प्रवाहित होइत रहल अछि। अतः ओकर सम्यक विचारक परिचय पएबाक हेतु काल-विभाजन प्रयोजनीय अछि, उपयोगी अछि।
मैथिली साहित्यक काल-विभाजन पर जखन विचार करैत छी तँ ई एक गोट विचारणीय विषय बनि जाइत अछि। विभिन्न विद्वानक एहि संबंध मे मत अछि एवं प्रसिद्ध इतिहासकार लोकनि एहि प्रसंगे, विभाजन पृथकृ-पृथक कएल अछि। ओना तँ साहित्य प्रवाहमान धाराक सदृश्य अछि, जिकर विभाजन दुःसाध्य नहि प्रत्युत असंभव भ’ जाइत अछि; किन्तु अध्ययनक सुविधाकेँ दृष्टिमे राखि विभिन्न प्रवृतिक प्रधानता आर अप्रधानताक आधार पर विभाजन क’ लेल जाइछ। ई विभाजन दू प्रकारेँ कएल जा सकैछ:
(I) देशकृत
(II) कालकृत
साहित्य तँ सार्वभौमिक ओ सर्वकालिक अछि। यदि देशकृत विभाजन कएल जाए तँ साहित्य पृथक-पृथक स्थान पर भिन्न-भिन्न नाम सँ संबोधित कएल जाएत।
कालकृत विभाजन किछु विशेष प्रवृतिक आधार पर कएल जाइछ। परिवर्तन मनुष्यक संग अवांछनीय रूपसँ अछि। सामाजिक, धार्मिक ओ राजनीतिक परिवर्तन भेल करैछ। कोनो युगमे कोनो खास तरहक प्रवृतिक प्रधानता पाओल जाइत अछि। ‘प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति’। अतः प्रवृतिक अनुरूप ओहि कालक नामकरण कएल जाइछ; जाहिसँ ई कथमपि नहि बुझबाक चाही जे आन-आन प्रवृतिक अवशेष भए जाइछ, अपितु ओ गौण रूपसँ सदिखन वर्तमान रहैछ। जाहिकालमे कोनो विशेष प्रवृतिक रचनाक प्रचुरता भेटैछ तँ ओ स्वतंत्र भ’ ओकर फराक नामकरण कएल जाइछ। एहि प्रकारेँ कालकृत विभाजनक एकगोट आर विशेषता पाओल जाइत अछि ओ थिक ग्रंथकेँ विशेष प्रसिद्धि भेलासँ कोनो कालक भीतर जाहि प्रकारक अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ चलि आबि रहल अछि तेँ ओहि प्रकारक रचनाकेँ ओहिकालक अंतर्गत मानब उचित होएत। यद्यपि आनो-आन पुस्तक सभ ओहि कालक मध्य असाधारण कोटिक किएक नहि प्राप्त हो।
अतः मैथिली साहित्यक युग विभाजन एहि रचना प्रवृतिक आधार पर तीन युगमे भेल अछि—पहिल अछि गीतिकाव्य युग, दोसर—नाटक युग, आ तेसरके—गद्य युगक संज्ञा देब उचित होएत। दोसर शब्दमे पहिलकेँ ‘श्रृंगार युग’ दोसरकेँ ‘भक्ति युग’ आ तेसरकेँ ‘आधुनिक युग’ कहल जा सकैछ।
प्रारंभिक युगमे मिथिलामे गीतिकाव्यक विशेष प्रचार-प्रसार रहलाक कारणेँ प्रायः गीति-युगक संज्ञा देल गेल। एहि युगक प्रवर्तक छलाह अभिनव जयदेव महाकवि विद्यापति ठाकुर। हिनकासँ ल’ कए कवीश्वर चन्दा झा धरि एकर पूर्ण प्रचार-प्रसार रहल। कवीश्वरक मृत्युक पश्चात् एहि युगक अवसान भ’ गेल।
मध्य युगमे आबि कए गीति काव्यक मधुर-मधुर गीत संयोगसँ नाटकक रचना दिस लोकक प्रवृति झुकल। अतः एहि युगकेँ ‘नाटक युग’क संज्ञा देब उचित प्रतीत होइत अछि। एहि युगमे हमरा लोकनिकेँ उमापति उपाध्याय कृत ‘पारिजातहरण’ म.म. रामदास झाक ‘आनंदविजयाभिधान’ काशीनाथकृत ‘विद्याविलाप’ कृष्णदेवकृत ‘महाभारत’ आ धनपतिकृत ‘माधवानल काम कण्डला’ सँ साक्षात्कार होइत अछि।
एवं प्रकारेँ नाट्य कलाक विशेष प्रदर्शन भेलासँ लोकक रूचि ओहिसँ बदलैत गेल एवं वर्तमान युग मे लेखकक प्रवृति गद्य लिखबा दिस विशेष झुकल। एहि युगमे लेखक वृन्द गद्य साहित्यमे अपन मौलिक रचनामे उपन्यास, गल्प, कहानी, निबंध, लिख’ दिस विशेष रूचि देखौलन्हि।
आब प्रश्न उठैत अछि जे एखन धरि जतेक काल-विभाजन मैथिली साहित्य मध्य कएल गेल अछि ओकर तिथि निर्धारण करबामे विद्वान लोकनिमे मतैक्य किएक नहि अछि? मैथिली साहित्यक प्रथम काल-विभाजन करबाक प्रयास (I) म. म. डॉ. उमेश मिश्र, मनबोध रचित कृष्णजन्मक अपन भूमिकामे कएलन्हि अछि। हिनका मतानुसारेँ:
(I) आदिकाल 1100 सँ 1300 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1300 सँ 1800 ई. धरि
(III) आधुनिक काल 1800 सँ अद्यतन।
उपर्युक्त विभाजन एकतँ मैथिलीकेँ ध्यानमे राखने अछि आ भाषाक विभिन्न रूपकेँ ध्यानमे राखि कएल गेल काल-विभाजन साहित्यक इतिहासक काल-विभाजन नहि कहाओत। साहित्यक इतिहासक काल-विभाजन मे भाषाक अतिरिक्त कृत्ति, कर्ता पद्धति ओ विषय पर ध्यान देब आवश्यक अछि।
म. म. डॉ. उमेश मिश्र, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्क वार्षिक अधिवेशन, मार्च 1953 मे अध्यक्ष पदसँ “मैथिली भाषा ओ साहित्य” पर भाषण दैत, राजनीति, सामाजिक ओ भाषाविज्ञानक दृष्टिएँ समस्त साहित्यकेँ निम्न भागमे प्रस्तुत कएने छथि:
(I) आदिकाल 1000 सँ 1600 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1600 सँ 1860 ई. धरि
(III) आधुनिक काल 1860 सँ 1950 ई. धरि।
ओ मिथिला भाषा तथा इतिहासकेँ एहि प्रकारक उपादेयता पर विचार करैत तीनू युगमे नामकरण करैत छथि। आदियुगकेँ गीतियुग, मध्ययुगकेँ नाटकयुग एवं आधुनिक युगकेँ गद्ययुगक संज्ञासँ संबोधित कएल अछि। काल विभाजनक प्रसंगमे अपन विचारक परिवर्तनक कोनो युक्तिसंगत कारण म. म. मिश्रजी नहि देने छथि। परन्तु हिनक पूर्वक काल-विभाजन एवं नवीन काल विभाजनक बीच डॉ. जयकान्त मिश्रक प्रबंध प्रकाशित भ’ चुकल छल। डॉ. मिश्रक काल-विभाजन ऐतिहासिक पृष्ठभूमिमे सर्वमान्य अछि तँ आश्चर्य नहि जे म.म. जी अपन मतमे संशोधन कएने होथि। हिनक एहि प्रकारक विभाजनमे कए प्रकारक दोष आबि गेल अछि जे, सम्प्रति 1950 ई. मे आबि कए आधुनिक युगक समाप्ति मानैत छथि। मिथिला वा कोनो देशक जनताक चित्रवृत्त बहुल किछु राजनीतिक, सामाजिक साम्प्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थितिक होइत अछि, मुदा जखन 1950 पर दृष्टिपात करैत छी तँ सर्वथा असंगत बुझि पड़ैत अछि, एहि कालमे कोनो राजनीतिक वा सामाजिक परिवर्तन नहि पाबि रहल छी जकर आधार मानि म. म. मिश्रजी अपन विभाजन मध्य आधुनिक कालक समाप्ति कएल अछि। जँ हिनक धारणा छनि जे काल-विभाजन राजनीति, सामाजिक एवं भाषाविज्ञानक दृष्टिएँ कएल जाय तँ राजनीतिक परिस्थितिकेँ ध्यानमे राखि सम्प्रति 1947 मानि सकैत छलाह। एहि प्रकारेँ विवेचना कएला उत्तर जखन हिनक विभाजनक साहित्यिक समीक्षा करैत छी, तँ हिनक परिभाषा अमान्य सिद्ध होइत अछि।
(2) डॉ. जयकान्त मिश्र साहित्य अकादमी सँ प्रकाशित अपन शोध-प्रबंध, ‘The history of Maithili Literature, Volume-I’ मे राजनीतिक घटनाक साहित्य परंपरा पर प्रभावक आधार पर काल विभाजनक प्रसंगे निम्न मत प्रस्तुत कएने छथि—
(I) प्राक् मैथिली काल 8म शताब्दीसँ 12हम शताब्दी धरि
(II) प्रारंभिक मैथिली साहित्य 1300 ई.सँ 1600 ई.
(III) मध्यकालीन मैथिली साहित्य 1600 ई. सँ 1860 ई.
(IV) आधुनिक मैथिली साहित्य 1860 ई. सँ अद्यतन।
डॉ. मिश्रक उपर्युक्त कथन बहुतो अंशमे तर्कपूर्ण एवं वैज्ञानिक कहल जाएत। यद्यपि अपन काल विभाजनक आधार ओ राजनैतिक घटनाक साहित्य परम्परा पर प्रभावे केँ राखलन्हि अछि। हिनका अनुसारेँ भाषा-वैज्ञानिक आ व्याकरणक दृष्टिएँ ई विभाजन समीचीन अछि। मुदा एहिमे सेहो किछु त्रुटि रहि गेल अछि। प्रारंभिक कालक समय जे 1300 ई. स्थिर कएल गेल अछि तकर आरंभ मानबाक कोनो कारण नहि देल गेल अछि। 1300 ई. मानलाक कारणेँ ओहिसँ पूर्वक बहुत रास रचना एहि परिधिमे नहि आबि सकल। मुदा विद्यापतिक पूर्वक साहित्यकेँ प्राक् विद्यापति साहित्यक संगे विस्तारसँ चर्चा कएने छथि। एहि साहित्यमे ‘वर्णरत्नाकर’ तँ हिनक युग आरंभिक रचना थिके, चर्यापदहुक चर्चा ओ बड़ परिश्रमपूर्वक केने छथि। तखन हिनक उपर्युक्त मत स्वतः संदेहात्मक भ’ जाइत अछि।
1300 ई. मे मिश्रजी मुसलमानक आगमनक कारण प्रस्तुत करैत छथि। मिथिला सर्वदासँ कट्टर धर्मावलम्बी रहल ताहिसँ मिथिलापर मुसलमानक आगमनक कोनो प्रभाव नहि पड़य देल। एकर दोसर हेतु इहो भ’ सकैत अछि जे, जयकान्त बाबूक ध्यान ज्योतिरीश्वरक गद्य ग्रंथ ‘वर्णरत्नाकर’ पर होइन्ह एवं एकर समय 1324 ई. लगभग कहने छथि। 1400 ई. क’ अभ्यन्तर विद्यापतिक प्रभाव साहित्य पर मुख्य रहल। एहि समयमे अपभ्रंशक पतनक अनन्तर पूर्वीय भारतमे मैथिलीक प्रयोग भेटैत अछि। श्री जयकात बाबू एहि काल-विभाजन अवसानक कारण प्रस्तुत करैत ओइनवार वंशक पतनक कारण प्रस्तुत करैत छथि।
एहि प्रकारेँ 1600 ई. सँ मध्यकालक प्रारंभ मानल गेल अछि ताहि हेतु विशेष उल्लेख नहि कएल गेल अछि। एहि युगमे मिथिलामे नाट्य साहित्यक पूर्ण प्रचार-प्रसार छल। जकरा ओ कीर्तनिञा नाटक कहल अछि। हिनका अनुसारेँ विद्यापति पदावलीक जे सशक्त धारा प्रवाहित भेलसे उमापतिसँ नाट्य रचनाक प्राचुर्य द्वारा एक महत्वपूर्ण ओ प्रौढ़ दिशान्तरकेँ प्राप्त कए नवयुग प्रवेश कएल परन्तु हिनक ई धारणा पूर्वाग्रहसँ अनुप्राणित अछि। वस्तुतः जकरा ओ मैथिलीक नाट्य परंपरा कहैत छथि ओ ओहिसँ पूर्व विद्यापति एवं ओहूसँ पूर्व ज्योतिरीश्वरक ‘धूर्तसमागम’ सँ प्रारंभ भेल। एहि समयक उल्लेख करैत मिश्रजी नेपालक जगतप्रकाशमल्ल, उमापति उपाध्याय एवं शंकरदेवक नाम लैत छथि, जे ओ मैथिली नाट्यकलाक प्रवर्तक क’ रूपमे अबैत छथि। एहि कालक अवसान सेहो खण्डवला कुलक अवसानसँ भेल।
डॉ. जयकान्त बाबू आधुनिक युगक आरंभ 1860 ई. सँ मानलन्हि अछि, जखन कि दरभंगा राज कोट ऑफ वार्डस (Courts of Wards)क संरक्षण मे चलि गेल आर दरभंगा शहरमे अंग्रेजी शिक्षाक प्रचार-प्रसार भेल। परन्तु जखन हम मिथिलाक सीमा मैथिलीक क्षेत्रकेँ दरभंगा सँ बाहरो मानैत छिऐक तँ खाली दरभंगेक स्थिति पर साहित्यक निर्धारण करब कतए धरि तर्कसंगत होएत?
(3) एहि प्रकारेँ प्रो. श्रीकान्त मिश्र सेहो अपन इतिहासमे उपर्युक्त तथ्यक समर्थन कएल अछि। एवं क्रममे अनेक गतिरोधक मुख्य कारण प्रस्तुत करैत मिश्रजीक कथन अछि जे शिक्षा-पद्धतिमे बरोबरि मैथिलीक अवहेलना होइत रहल। समय पाबि साहित्यक आनहु अंग सभ गद्य, पद्य आदिक विशेष प्रगति होइछ।
(4) तेसर काल-विभाजन कुमार श्री गंगानंद सिंहक द्वारा कएल गेल अछि। तथा जकर उल्लेख अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलनक चौदहम अधिवेशनमे ‘मैथिली साहित्यक प्रगति’ शीर्षक निबंध पर भाषण दैत अपन मतक पूर्ण विवेचना कएल अछि:
(I) प्रारंभिक काल 800 सँ 1300 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1300 सँ 1800 धरि
(III) आधुनिक काल 1800 सँ 19म, 20म शताब्दी धरि
प्रारंभिक कालमे ओ चर्यापदक आचार्य लोकनिक रचनाकेँ मानैत छथि, आ वाचस्पति मिश्रक ‘भामति टीका’ आ सर्वानन्दक ‘अमरकोष टीका’मे संस्कृत पर्यायवाची अनेक मैथिली शब्दक उल्लेख कएल अछि। परन्तु चर्यापदक भाषा मैथिलीक पूर्व रूप भनहि भ’ सकैछ मुदा ओकरा मैथिली नहि कहि सकैत छी। भाषाविज्ञानक अनुसारेँ ई बुझि पडैत अछि जे लिपिबद्ध नहि भेलाक कारणेँ ओकरा भाषामे बहुत परिवर्तन भेल ताहिसँ ओ बहुत किछु आधुनिक मैथिलीक रूप धारण कए लेने अछि। प्रारंभिक कालकेँ 800 ई. ल’ जएबाक कोनो तेहन युक्ति नहि भेटैत अछि।
एहि प्रकारेँ सम्प्रति मध्यकालमे जयकान्त बाबूक प्रारंभिक मैथिली साहित्य ओ मध्यकालीन मैथिली साहित्य दुनूकेँ सन्निहित क’ देल गेल अछि। ज्योतिरीश्वरक ‘वर्णरत्नाकर’ केँ मैथिलीक सभसँ प्राचीन उपलब्ध गद्य ग्रंथक रूपमे प्रस्तुत करैत छथि। एहि भाषामे प्रोत्साहन एवं विकास तत्कालीन नृपतिगणक सहयोगक फलस्वरूप भेल। एहिमे अनेक कवि एवं लेखक लोकनिक प्रादुर्भाव भेलासँ साहित्यक अभिवृद्धिमे सहायक सिद्ध भेल।
वस्तुतः साहित्यक प्रारंभ ओ विकास एहिठाम केन्द्रित भ’ जाइत अछि। ताहिसँ 1800 ई. सँ वर्तमान काल मानवामे समुचित कारणक आभाव भेटैत अछि। ओ आधुनिक कालकेँ दू भागमे विभाजित करैत छथि। 19म शताब्दी धरि मैथिलीमे जतेक ग्रंथ सभक चर्चा भेटैत अछि ओहि पर भाषा एवं वाक्यविन्यासक दृष्टिएँ 18म शताब्दीक छाप बुझि पड़ैत अछि। परन्तु 20म शताब्दीमे आबि कए क्रमशः एकर प्रयास भेलैक जे जतए जे छटा भेटलैक ओकरा ग्रहण कए मैथिलीक कायाकल्प कएल जाए। एहि विभिन्नताक मुख्य कारण राजनीतिक थिकैक।
(5) एहि काल विभाजनसँ मिलैत-जुलैत विभाजन श्री भोलालालदास ‘मिथिला मिहिर’क मिथिलांक मे सेहो कएलन्हि अछि जकर समानता एहि विभाजनसँ अछि।
(6) मैथिली साहित्यक मूर्द्धन्य विद्वान आ प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. सुभद्र झा अपन शोध प्रबंध ‘Formation of Maithili Language’ मे सेहो काल-विभाजन करबाक प्रयास कएल अछि। हिनक विभाजनमे सेहो कोनो मतसँ साम्य नहि भेटैत अछि, अतएव एकरा स्वतंत्र विभाजन कहल जा सकैछ। हिनक विभाजन एहि प्रकारेँ अछि:
(I) प्रारंभिक कालक मैथिली A.D 1000 सँ A.D 1300
(II) मध्यकालीन मैथिली A.D 1300 सँ A.D 1800
(III) आधुनिक मैथिली A.D 1800 सँ अद्यतन।
आलोचक क अनुसारेँ डॉ. झा मैथिली भाषा ओ साहित्यक विकास 1000 ई. पश्चाते मानैत छथि। संभव ई मानि जे ‘वर्णरत्नाकर’ मे प्रयुक्त भाषा ओकर रचनाकाल 300 ई. पूर्व विकसित भेल छल। परन्तु की मिथिला-भाषा विकासक प्रक्रियाकेँ बुझबाक हेतु ‘चर्यापद’ क भाषा सहायक सिद्ध नहि भ’ सकैछ? एहि प्रकारेँ डॉ. झा 1000 ई. पूर्वक रचना पर ध्यान नहि रखलन्हि अछि। 1800 ई. धरि मध्यकाल मानबाक हुनक आधार की अछि तकरा स्पष्ट सेहो नहि केने छथि। डॉ. झा काल विभाजनक क्रममे साहित्य परंपरा पर ध्यान नहि दए भाषाक विकासक दृष्टिएँ देखबाक प्रयास कएलन्हि।
मैथिलीक प्रारंभिक काल विद्यापतिक ‘कीर्तिलता’ एवं ‘कीर्तिपताका’ सँ मानैत छथि। एहि प्रकारेँ ओ अपन निबंधमे लिखने छथि—“Hence as the display the genius of the language they are termed pro to Maithili or Maithili at the earliest stage of its development.”
वर्णरत्नाकरसँ कृष्णजन्म धरि मध्यकालीन मैथिलीकेँ उदारहणस्वरूप उपस्थित करैत छथि। ‘कृष्णजन्म’ जकर भाषावलोकन कएलासँ स्पष्ट प्रतीत होइत अछि जे मनबोधक शैली 18म शताब्दीक प्रतिनिधित्व करैत अछि।
जखन कि प्रारंभिक मैथिली एवं मध्यकालीन मैथिलीभाषामे सभ्यता आबि गेल तखन आधुनिक मैथिलीक रूप धारण क’ लेलक। एहि प्रकारेँ एकर उद्भव एवं विकास 19म शताब्दीकेँ मानि सकैत छी। ई कहबामे कठिनता अछि जे कोन युगमे एहि साहित्यक कोन रूप छल एवं कोन स्थितिमे छल मुदा एतबा धरि अवश्य जे प्रत्येक युग अपन युगक छाप लैत अछि।
मैथिली साहित्यक प्रसिद्ध समालोचक स्व. प्रो. रमानाथ झा मैथिली साहित्यक काल विभाजनक प्रसंगमे अपन मनतव्य डॉ. दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’ रचित ‘मैथिली साहित्यक इतिहास’क भूमिकामे उपस्थित करैत छथि जे— “काल विभाजनक समस्यापर कोनहुँ आचार्यक मतसँ हमरा संतोष नहि अछि।” हिनक विभाजन एहि प्रकारेँ अछि:
(क) विद्यापति युग- कृष्ण काव्य युग अथवा प्राचीन युग
(ख) चन्दा झा युग – कृष्ण काव्य युग अथवा नवीन युग।
समालोचक लोकनिक मतेँ निश्चित रूपेँ उपर्युक्त काल-विभाजन रचना पद्धतिक आधार पर समीचीन होइतहुँ सर्वांगपूर्ण नहि कहल जाएत, कारण मैथिली साहित्यक बहुत रास रचना एहि काल विभाजने नहि आबि सकत जेना ‘चर्यापद’, ‘वर्णरत्नाकर’ आदि। चन्दा झाक युगसँ पूर्वक समस्त मैथिली साहित्यकेँ प्राचीन युग मानब उचित नहि बुझना जाइत अछि।
(8) डॉ. दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’ अपन पुस्तक ‘मैथिली साहित्यक इतिहास’ मे काल विभाजनक प्रसंगमे निम्न मत प्रस्तुत कएने छथि:
(1) आदिकाल, प्राक् ज्योतिरीश्वर काल अथवा अपभ्रंश युग—ई. पू. प्रथम शतकसँ 1300 ई. धरि
(2) विद्यापति युग—1300 सँ 1860
(क) विद्यापति युग—1700
(ख) उत्तर विद्यापति युग—1700 सँ 1860
(3) आधुनिक काल—1860 सँ अद्यःपर्यन्त
(क) वातावरण निर्माण—1860 सँ 1880
(ख) चन्दा झा युग—1880 सँ 1930
(ग) नव-नव विकासक युग—1930 सँ अद्यःपर्यन्त।
आलोचक लोकनिक अनुसारेँ हिनक मत बहुत अंश धरि समीचीन एवं तर्कपूर्ण बुझना जाइत अछि।
(9) डॉ. शैलेन्द्र मोहन झा अपन अप्रकाशित शोध-प्रबंध ‘आधुनिक मैथिली साहित्यक विकास’ एवं मेघातिथिक छद्म नामसँ “मैथिली साहित्यक प्रमुख कविक मैथिली कविताक विकास” शीर्षकमे निम्न तर्क प्रस्तुत कएने छथि:
(I) आदिकाल 1100 सँ 1556 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1556 सँ 1857 धरि
(III) आधुनिक काल 1857 सँ अद्यःपर्यन्त।
आलोचकक अनुसारेँ हिनक दृष्टि शुद्ध साहित्यैतिहासिक होएबाक चाही मुदा से नहि अछि। हिनक विभाजनसँ ‘चर्यापद’ मैथिलीक विवेच्य वस्तु नहि रहि जाइत अछि, आ 1100 ई. धरि तँ एहन कोनो कृत्ति नहि अछि जकरा आधार मानि 1100 ई. सँ आरंभिक काल मानल जायत.....। डॉ. झा काल सीमाक विभाजनमे डॉ. जयकान्त मिश्रसँ प्रभावित बुझि पड़ैत अछि; यद्यपि समग्र रूपेँ ओहो साहित्यिक विकासक मर्म केँ अनुभव करैत अवश्य प्रतीत होइत छथि।
प्रो. शैलेन्द्र मोहन झा अपन अप्रकाशित शोध-प्रबंध ‘आधुनिक मैथिली साहित्यक विकास’ मे उपरोक्त विभाजनक संशोधन करैत निम्नरूपेँ प्रस्तुत कएने छथि:
(I) आदिकाल 1300 सँ 1555 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1555 सँ 1857 धरि
(III) आधुनिक काल 1857 सँ अद्यःपर्यन्त।
(10) स्वर्गीय डॉ. राधाकृष्ण चौधरी अपन पुस्तक ‘A Survey of Maithili Literature’ मे निम्न रूपेँ काल विभाजनक प्रसंगमे अपन मत व्यक्त कएने छथि:
(I) Early Maithili Literature 900-1350 A.D
(II) Middle Maithili Literature 1350-1830 A.D
(III) Early Maithili Literature 1830- till dated।
समालोचकक अनुसारेँ प्रो. चौधरी, अपन काल विभाजनक हेतु सेहो प्रस्तुत कएने छथि मुदा तकर विश्लेषण कएलासँ ओ सभ समीचीन नहि बुझना जाइत अछि। 1830 ई. सँ आधुनिक युगक आरंभ मानबामे कोनो ठोस कारण नहि भेटैत अछि। ने तँ तत्कालीन कोनो साहित्य उपलब्ध अछि आ ने मिथिलामे एहन कोनो राजनीतिक अथवा सामाजिक घटनाक सूत्र प्राप्त होइत अछि, जकर मिथिलाक सांस्कृतिक जीवनमे प्रभाव पड़ल हो।
(11) डॉ. दिनेश कुमार झा ‘मैथिली साहित्यक आलोचनात्मक इतिहास’ नामक अपन पुस्तक मे काल विभाजनक प्रसंगमे अपन निम्न मत प्रस्तुत कएने छथि:
(I) आदिकाल/आधारकाल 800 सँ 1350 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1350 सँ 1857 धरि
(III) आधुनिक काल-
(क) ब्रिटिश काल 1857 सँ 1947 धरि
(ख) स्वतंत्रता काल 1947 सँ अद्यःपर्यन्त।
डॉ. झा आदिकालक आरंभ सिद्ध साहित्यसँ, मध्यकालक आरंभ विद्यापतिक रचनासँ आ आधुनिक कालक आरंभ अंग्रेज सभक द्वारा राज्य स्थापना एवं नवीन शिक्षाक फलस्वरूप जीवनक नव परिस्थिति उत्पन्न भेला तथा साहित्यक ‘स्पिरिट’ बदलि गेलासँ एवं अंग्रेजी एवं अन्य यूरोपीय साहित्यक मैथिली साहित्यपर प्रचुर प्रभावसँ मानैत छथि। हिनक मत समालोचकक अनुसारेँ बहुत अंश धरि तर्कपूर्ण, वैज्ञानिक एवं समीचीन अछि। ई शुद्ध राजनैतिक दृष्टिसँ काल-विभाजन कएने छथि, मुदा आदिकालमे हुनक ओ दृष्टिकोण काज नहि कएलन्हि तहिना आधुनिक कालकेँ ब्रिटिश काल आ स्वतंत्रताकालकेँ भागमे विभक्त करब, उचित नहि बुझाइत अछि। 1947मे भारत अवश्य स्वतंत्र भेल मुदा ओहिसँ मैथिली साहित्यमे कोनहुँ ऐतिहासिक दिशान्तर भेल हो तकर कोनो प्रमाण नहि अछि।
(12) डॉ. बालगोविन्द झा ‘व्यथित’ अपन पुस्तक ‘मैथिली साहित्यक इतिहास’मे मैथिली भाषा ओ मैथिली साहित्यक सुदीर्घ परंपरा कए देखि इतिहासमे काल-विभाजन एकर समस्त उपलब्ध कृत्ति, कर्ता, पद्धति ओ विषयकेँ ध्यानमे राखि निम्न रूपेँ कएल अछि:
(I) प्राचीन काल 700 सँ 1325 ई. धरि
(II) मध्यकाल 1325 सँ 1860 धरि
(III) आधुनिक काल 1860 सँ अद्यःपर्यन्त।
(13) डॉ. नित्यानंद झा ‘मैथिली साहित्यक काल विभाजन’ शीर्षक निबंधमे अपन मत एहि प्रकारेँ व्यक्त कएने छथि:
(I) पूर्व विद्यापति काल 800 ई. सँ 1350 ई. धरि
(II) विद्यापति काल 1350 सँ 1700 ई.धरि
(III) उत्तर विद्यापति काल 1700 सँ 1900 ई.धरि
(IV)आधुनिक काल 1900 सँ अद्यःपर्यन्त।
प्रो. सोमदेव ‘मैथिली भाषा ओ साहित्य’ शीर्षक निबंधमे एहि रूपेँ कहलनि जे मैथिली साहित्यक इतिहासक काल-विभाजन जँ उपलब्ध सामग्री, प्रवृत्ति, एवं मोड़क दृष्टिएँ कएल जाय तँ एहि प्रकारेँ होएबाक चाही:
(I)प्राचीनकाल 8म शताब्दीसँ 1870 ई.धरि
(II) मध्यकाल 1870 ई.सँ 1936 ई. धरि
(III)नव जागरणकाल—
(क) स्वतंत्रतापूर्व 1936 सँ 1947 ई. धरि
(ख) स्वतंत्रता उपरान्त 1947 सँ 1986 ई. धरि
(ग) जनचेतना युग 1986 सँ प्रारंभ।
प्रो. धीरेन्द्र ‘मैथिली प्रकाश’ नवम्बर 1986मे काल विभाजनक प्रसंगे कहैत छथि:
(I)आदिकाल 800 सँ 1324 ई.
(II) ज्योतिरीश्वर युग 1324 सँ 1412 ई.
(III)विद्यापति युग 1412 सँ 1527 ई.
(IV)उत्तर विद्यापति युग 1527 सँ 1860
(V)आधुनिक काल 1860 सँ अद्यःपर्यन्त।
(क) पुनर्जागरण युग 1890 सँ 1925
(ख) नवयुग 1950 सँ अद्यःपर्यन्त।
समालोचक प्रो. झाक विद्यापति युग ओ उत्तर विद्यापति युगक मतसँ सहमत छथि, परन्तु ज्योतिरीश्वर नामसँ एक एक पृथक युगक कल्पनाकेँ उचित नहि मानैत छथि। कारण ‘वर्णरत्नाकर’ सन अमूल्य ग्रंथकारक रचना करितहुँ ओ कोनो विशेष परंपराक स्थापना नहि क’ सकलाह। 1956 सँ नवयुग मानव सेहो अनुचित कहैत छथि, किएक तँ 1950 मे भारत अवश्य पूर्ण रूपेँ स्वतंत्र भेल मुदा ओहिसँ मैथिली साहित्यमे कोनहुँ विशेष उल्लेखनीय ऐतिहासिक दिशान्तर उपस्थित भेल हो तकर कोनो प्रमाण नहि अछि।
(15) प्रो. प्रेमशंकर सिंह ‘वैदेही’क 1963 ई., जनवरी-मार्च अंकमे ‘मैथिली साहित्यक काल विभाजन’ शीर्षक निबंधमे नवीन दृष्टिकोणसँ काल-विभाजन प्रस्तुत कएने छथि:
(I)अपभ्रंश काल 1000 ई. सँ पूर्व
(II)प्रारंभिक युग 1100 ई. सँ 1556 ई.
(III)मध्य युग 1556 ई. सँ 1857 ई.
(IV)आधुनिक युग 1857 ई. सँ अद्यःपर्यन्त।
अपभ्रंश युगकेँ मैथिलीक पूर्व पीठिका मानि सकैत छी। अपभ्रंशकालक अनेक रचनासँ हमरा लोकनिक साक्षात्कार होइत अछि। अतः भाषाक आधार पर ओकर नामकरण प्रारंभिक कालक पूर्वमे राखल गेल। तथापि एकर अपभ्रंश साहित्य सर्वदासँ समृद्धशाली रहल अछि। एहि युगक ‘प्राकृत पैंगलम’ सदृश अपूर्व ग्रंथ प्राप्त होइत अछि। ‘चर्यापद’ एवं सिद्ध लोकनिक सेहो अनेक रचना सभकेँ एहि कोटिमे राखल जा सकैत अछि। दिल्लीक बादशाह अकबर जखन सिंहासन पर बैसलाह तँ भारतक राजनैतिक स्थितिमे महान परिवर्तन भेल। एहि समयमे मिथिलाक शासनक भार पं. महेश ठाकुर केँ भेटलन्हि, तथा दिल्ली केन्द्रसँ मिथिलाक साहित्यक सेहो महान परिवर्तन भेल। गीति युगक अवसान भेलाक फलस्वरूप मैथिल विद्वानक ध्यान कीर्तनिञा नाटक लिखबा दिस विशेष भेल, परन्तु एहि नाटक सभमे गीत सभक समावेश भेल ओ पाण्डित्यपूर्ण ओ वर्गीय होमए लागल। म. म. उमापति सँ लए कए वर्तमान युगमे कवीश्वर हर्षनाथ धरि मैथिली नाटकक इएह रूप देखल जाइत अछि।
1854 ई. सँ मैथिली साहित्य मध्य नवीन युगक प्रादुर्भाव होइत अछि। 1857 क पश्चात् देशमे एक नव-जागरणक संचार भेल। सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण सँ एहि सालक नाम इतिहासमे स्वर्णाक्षरमे लिखल जाएत। एकर नेतृत्व नवीन शिक्षित बुद्धिजीवी वर्गक हाथमे रहल। एहि सालमे भारतमे राजक्रांति भेल जकर फलस्वरूप एकर प्रत्येक क्षेत्रमे परिवर्तन भेल। अतएव भाषा एवं साहित्यक क्षेत्रमे परिवर्तन अवांछनीय नहि कहल जा सकैछ। अतएव नवीन दृष्टिकोणकेँ ध्यानमे राखि मैथिली साहित्यक आधुनिक कालक प्रारंभ 1857 सँ मानबा मे आपत्ति नहि होमक चाही।
मुदा प्रस्तुत विभाजन केँ ल’ कए मैथिली साहित्य मध्य एकगोट आविष्कारक विषय बनि गेल अछि। म. म. जी एवं जयकान्त बाबू आधुनिक कालक प्रारंभ 1860 सँ मानैत छथि, एवं कुमार श्री गंगानंद सिंह तथा भोलालालदासक मतानुसारेँ 1800 ई. मानल गेल अछि।
डॉ. जयकान्त बाबू अपन तर्क प्रस्तुत करैत कहैत छथि जे , 1860 मे मिथिलाक शासक ‘कोर्ट ऑफ वर्डस’क अधीन चलि गेल तकर फलस्वरूप भाषा-साहित्य नवरूप धारण कए लेलक, एहिमे हिन्दीक साक्षात् प्रभाव देखना जाइत अछि, जे रवीन्द्रक कवितासँ प्रभावित भए श्री सुमनजी कविता लिखल। एकर अवलोकनसँ साक्षात् ज्ञात होहत अछि जे देशी एवं विदेशी दुनू दृष्टिएँ एकर प्रभाव मिथिलाक आध्यात्मिक जीवन पर पड़ल।
मुदा 1857 सँ आधुनिक युगक प्रारंभ मानबाक सबल प्रमाण भेटैत अछि। अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोणसँ सेहो पर्याप्त छैक। एहि क्रांतिक प्रधान कारण छल जे एहि सँ व्यक्तिक स्वतंत्रताक अभ्युदय हो। एक दिस तँ ई लोकनि अपन प्राचीन सांस्कृतिक सुरक्षा लेल उत्सुकता देखौलन्हि तँ दोसर दिस ओहि सांस्कृतिक परंपराक सुरक्षा एवं विकासक हेतु सचेष्ट रहलाह।
समग्र रूपेँ विचार कएला उत्तर निष्कर्ष रूपेँ कहल जा सकैछ, जे मैथिली साहित्यक मध्य आधुनिक कालक बड़ पैघ महत्व छैक, एतेक दिन धरि भाषा-साहित्य अन्हारमे टापर-टोइया दैत छल मुदा आधुनिक कालमे आबिकए ई नवीन रूप धारण कए लेलक। आधुनिक काव्यक प्रारंभमे चन्दा झाक नाम लेल जाइत अछि। चन्दा झा मैथिलीमे नवयुगक प्रवर्त्तक छलाह। वर्तमानमे मैथिली कवितामे शैली एवं भावधाराक दृष्टिएँ महान परिवर्त्तन भेल। नवीन युगक पदार्पण भेलासँ कविता कामिनी अपन नैसर्गिक सुषमाक भारकेँ वहन करबा मे असमर्थ भेलीह एवं ओकरा संग अग्रलेखक एवं पाठकक अभिरूचि एवं मनोरंजनक हेतु उपन्यास साहित्य पर विशेष जोर देल गेल। एहि सभ दृष्टिकेँ ध्यानमे राखि 1857 सँ आधुनिक कालक प्रारंभ मानब उचित हैत।
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