बालानां कृते
१.डॉ. शेफालिका वर्मा- बच्चा आ व्यवस्था/ देश-प्रेम
१
डॉ. शेफालिका वर्मा
बच्चा आ व्यवस्था
छोट छोट नेना के देखू
व्यवस्था कतेक भारी अछि
झुकि रहल कान्ह
लचकि रहल पीठ
ई बस्ता कतेक भारी अछि !
समस्त देश क ज्ञान नुकायल
विदेश क भंडार भरल अछि
अंग्रेजी हिसाब क
गप नहि पुछू
प्रकाशक प्रेसक धूम मचल अछि
निरीह आंखि सँ तकैत नेना
की पढ़ी की नहि पढ़ी में हेरायल नेना....
फुर्सत नहि माय बाप कें
समय नै हुनका लेल केकरो
के सम्झाओत , कोना सम्झाओत
घरो में त चैन नहि
भारी भारी बस्ता देखू
लंच , बोतल पानिक देखू
प्राइवेट स्कूलक धूम मचल
जन जन में होड़ मचल
ककर बच्चा कतेक तेज
ककरा कतेक आयल अंक
आन क नेना आन के भायल
बच्चा फंसल व्यवस्था क पंक
किन्तु, एहि शिक्षा क की अर्थ एत
इंजीनियर करैत ठेकेदारी
डाक्टर खोलल दोकान सड़क पर
की हश्र एहि नौनिहाल के
की भविष्य देशक कर्णधार के ...????
२.देश-प्रेम -डॉ. शेफालिका वर्मा
ई कथा ओहि कालक थीक, जखन रूस आ जापान में युद्ध चलि रहल छलैक . एकटा किला पर रुसी सैनिक क अधिकार छल ,किलाक चारू क़ात बेस गहीर खादि छल आ ओहि में पानि भरल . खादिक उपरका पुल रुसी सब तोड़ी देने छल . किला में रुसी सैनिकक संख्यां बड
कम छल. खादिके पार केने बिना जापानी सैनिक किला पर अधिकार नै कै सकैत छल. आ ओकरा लग पुल बनेवाक कोनो साधन नै छलैक .ओकरा सब के भय होयत छल जे अगिला दिन रुसी सेना ओहिठाम आबी जायत.
सेनापति घबडाय गेल. कनिक काल सोचवाक उपरान्त ओ सैनिक सब स बाजल ----एहि खादिके मानव शरीर स पाटवाक अतिरिक्त आर कोनो उपाय नहि अछ .जापानक लेल जे प्रसन्नता से अपन जीवन उत्सर्ग करवा लेल चाहैत छी ओ दुई डेग आगू आबी जाऊ .
समस्त सेना आगू बढ़ी गेल. एको सैनिक एहेन नै छल जे प्राण देवा से पाछू हटल होथि .
सेनापति संख्या गिनती करवा लेल बाजल . तकर बाद ओ आज्ञा देलक जे प्रति पाँचम सैनिक अपन वस्त्र उतारि , हथियार फेकी खादि में कूदी जायथ....
अपन देश-प्रेम में बताह भेल जापानी सैनिक सब एक के ऊपर एक कूद लागल .पानि स भरल सउँसे खादि सैनिक सबहक शरीर से पाटि पुल बनि गेल . किला पर जापानक आधिपत्य भ गेल .
सब नेना के एहि कथा से देशप्रेमक शिक्षा लेबक चाही. अपन राष्ट्र क रक्षा लेल अपन प्राण क चिंता नै करवाक चाही .' जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ' माता आ मातृभूमि से बढ़ी किछ नहि।
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
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1.होयबला/ होबयबला/ होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला/ होयबाक/होबएबला /होएबाक
2. आ’/आऽ आ
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/ल’/लऽ/लय/लए
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’/
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला / करए बला
8. बला वला
9. आङ्ल आंग्ल
10. प्रायः प्रायह
11. दुःख दुख
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
18. बढ़न्हि बढन्हि
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
25. तखन तँ/ तखन तँ
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
27. निकलय/निकलए लागल बहराय/ बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/ जतए/ ओतए
29. की फूरल जे कि फूरल जे
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद/ यादि (मोन)
32. इहो/ ओहो
33. हँसए/ हँसय हँसऽ
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/ नौ वा दस
35. सासु-ससुर सास-ससुर
36. छह/ सात छ/छः/सात
37. की की’/कीऽ (दीर्घीकारान्तमे ऽ वर्जित)
38. जबाब जवाब
39. करएताह/ करयताह करेताह
40. दलान दिशि दलान दिश/दलान दिस
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
42. किछु आर/ किछु और
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
44. पहुँचि/ भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
45. जबान (युवा)/ जवान(फौजी)
46. लय/लए क’/कऽ/लए कए/ लऽ कऽ/ लऽ कए
47. ल’/लऽ कय/ कए
48. एखन/अखने अखन/एखने
49. अहींकेँ अहीँकेँ
50. गहींर गहीँर
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
52. जेकाँ जेँकाँ/ जकाँ
53. तहिना तेहिना
54. एकर अकर
55. बहिनउ बहनोइ
56. बहिन बहिनि
57. बहिन-बहिनोइ बहिन-बहनउ
58. नहि/ नै
59. करबा / करबाय/ करबाए
60. तँ/ त ऽ तय/तए
61. भाय भै/भाए
62. भाँय
63. यावत जावत
64. माय मै / माए
65. देन्हि/दएन्हि/ दयन्हि दन्हि/ दैन्हि
66. द’/ दऽ/ दए
67. ओ (संयोजक) ओऽ (सर्वनाम)
68. तका कए तकाय तकाए
69. पैरे (on foot) पएरे
70. ताहुमे ताहूमे
71. पुत्रीक
72. बजा कय/ कए
73. बननाय/बननाइ
74. कोला
75. दिनुका दिनका
76. ततहिसँ
77. गरबओलन्हि गरबेलन्हि
78. बालु बालू
79. चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
80. जे जे’
81. से/ के से’/के’
82. एखुनका अखनुका
83. भुमिहार भूमिहार
84. सुगर सूगर
85. झठहाक झटहाक
86. छूबि
87. करइयो/ओ करैयो/करिऔ-करइयौ
88. पुबारि पुबाइ
89. झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
90. पएरे-पएरे पैरे-पैरे
91. खेलएबाक
92. खेलेबाक
93. लगा
94. होए- हो
95. बुझल बूझल
96. बूझल (संबोधन अर्थमे)
97. यैह यएह / इएह
98. तातिल
99. अयनाय- अयनाइ/ अएनाइ
100. निन्न- निन्द
101. बिनु बिन
102. जाए जाइ
103. जाइ (in different sense)-last word of sentence
104. छत पर आबि जाइ
105. ने
106. खेलाए (play) –खेलाइ
107. शिकाइत- शिकायत
108. ढप- ढ़प
109. पढ़- पढ
110. कनिए/ कनिये कनिञे
111. राकस- राकश
112. होए/ होय होइ
113. अउरदा- औरदा
114. बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
115. बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
116. चलि- चल
117. खधाइ- खधाय
118. मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
119. कैक- कएक- कइएक
120. लग ल’ग
121. जरेनाइ
122. जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
123. होइत
124. गरबेलन्हि/ गरबओलन्हि
125. चिखैत- (to test)चिखइत
126. करइयो (willing to do) करैयो
127. जेकरा- जकरा
128. तकरा- तेकरा
129. बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
130. करबयलहुँ/ करबएलहुँ/ करबेलहुँ
131. हारिक (उच्चारण हाइरक)
132. ओजन वजन
133. आधे भाग/ आध-भागे
134. पिचा / पिचाय/पिचाए
135. नञ/ ने
136. बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
137. तखन ने (नञ) कहैत अछि।
138. कतेक गोटे/ कताक गोटे
139. कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
140. लग ल’ग
141. खेलाइ (for playing)
142. छथिन्ह छथिन
143. होइत होइ
144. क्यो कियो / केओ
145. केश (hair)
146. केस (court-case)
147. बननाइ/ बननाय/ बननाए
148. जरेनाइ
149. कुरसी कुर्सी
150. चरचा चर्चा
151. कर्म करम
152. डुबाबए/ डुमाबय/ डुमाबए
153. एखुनका/ अखुनका
154. लय (वाक्यक अतिम शब्द)- लऽ
155. कएलक केलक
156. गरमी गर्मी
157. बरदी वर्दी
158. सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
159. एनाइ-गेनाइ
160. तेना ने घेरलन्हि
161. नञि
162. डरो ड’रो
163. कतहु- कहीं
164. उमरिगर- उमरगर
165. भरिगर
166. धोल/धोअल धोएल
167. गप/गप्प
168. के के’
169. दरबज्जा/ दरबजा
170. ठाम
171. धरि तक
172. घूरि लौटि
173. थोरबेक
174. बड्ड
175. तोँ/ तूँ
176. तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
177. तोँही / तोँहि
178. करबाइए करबाइये
179. एकेटा
180. करितथि करतथि
181. पहुँचि पहुँच
182. राखलन्हि रखलन्हि
183. लगलन्हि लागलन्हि
184. सुनि (उच्चारण सुइन)
185. अछि (उच्चारण अइछ)
186. एलथि गेलथि
187. बितओने बितेने
188. करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
189. करएलन्हि
190. आकि कि
191. पहुँचि पहुँच
192. जराय/ जराए जरा (आगि लगा)
193. से से’
194. हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
195. फेल फैल
196. फइल(spacious) फैल
197. होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
198. हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय/हाथ मटिआएब
199. फेका फेंका
200. देखाए देखा
201. देखाबए
202. सत्तरि सत्तर
203. साहेब साहब
204.गेलैन्ह/ गेलन्हि
205.हेबाक/ होएबाक
206.केलो/ कएलहुँ
207. किछु न किछु/ किछु ने किछु
208.घुमेलहुँ/ घुमओलहुँ
209. एलाक/ अएलाक
210. अः/ अह
211.लय/ लए (अर्थ-परिवर्त्तन)
212.कनीक/ कनेक
213.सबहक/ सभक
214.मिलाऽ/ मिला
215.कऽ/ क
216.जाऽ/ जा
217.आऽ/ आ
218.भऽ/भ’ (’ फॉन्टक कमीक द्योतक)
219.निअम/ नियम
220.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
221.पहिल अक्षर ढ/ बादक/बीचक ढ़
222.तहिं/तहिँ/ तञि/ तैं
223.कहिं/ कहीं
224.तँइ/ तइँ
225.नँइ/ नइँ/ नञि/ नहि
226.है/ हए
227.छञि/ छै/ छैक/छइ
228.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
229.आ (come)/ आऽ(conjunction)
230. आ (conjunction)/ आऽ(come)
231.कुनो/ कोनो
२३२.गेलैन्ह-गेलन्हि
२३३.हेबाक- होएबाक
२३४.केलौँ- कएलौँ- कएलहुँ
२३५.किछु न किछ- किछु ने किछु
२३६.केहेन- केहन
२३७.आऽ (come)-आ (conjunction-and)/आ
२३८. हएत-हैत
२३९.घुमेलहुँ-घुमएलहुँ
२४०.एलाक- अएलाक
२४१.होनि- होइन/होन्हि
२४२.ओ-राम ओ श्यामक बीच(conjunction), ओऽ कहलक (he said)/ओ
२४३.की हए/ कोसी अएली हए/ की है। की हइ
२४४.दृष्टिएँ/ दृष्टियेँ
२४५.शामिल/ सामेल
२४६.तैँ / तँए/ तञि/ तहिं
२४७.जौँ/ ज्योँ
२४८.सभ/ सब
२४९.सभक/ सबहक
२५०.कहिं/ कहीं
२५१.कुनो/ कोनो
२५२.फारकती भऽ गेल/ भए गेल/ भय गेल
२५३.कुनो/ कोनो
२५४.अः/ अह
२५५.जनै/ जनञ
२५६.गेलन्हि/ गेलाह (अर्थ परिवर्तन)
२५७.केलन्हि/ कएलन्हि
२५८.लय/ लए (अर्थ परिवर्तन)
२५९.कनीक/ कनेक
२६०.पठेलन्हि/ पठओलन्हि
२६१.निअम/ नियम
२६२.हेक्टेअर/ हेक्टेयर
२६३.पहिल अक्षर रहने ढ/ बीचमे रहने ढ़
२६४.आकारान्तमे बिकारीक प्रयोग उचित नहि/ अपोस्ट्रोफीक प्रयोग फान्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक ओकर बदला अवग्रह (बिकारी) क प्रयोग उचित
२६५.केर/-क/ कऽ/ के
२६६.छैन्हि- छन्हि
२६७.लगैए/ लगैये
२६८.होएत/ हएत
२६९.जाएत/ जएत
२७०.आएत/ अएत/ आओत
२७१.खाएत/ खएत/ खैत
२७२.पिअएबाक/ पिएबाक
२७३.शुरु/ शुरुह
२७४.शुरुहे/ शुरुए
२७५.अएताह/अओताह/ एताह
२७६.जाहि/ जाइ/ जै
२७७.जाइत/ जैतए/ जइतए
२७८.आएल/ अएल
२७९.कैक/ कएक
२८०.आयल/ अएल/ आएल
२८१. जाए/ जै/ जए
२८२. नुकएल/ नुकाएल
२८३. कठुआएल/ कठुअएल
२८४. ताहि/ तै
२८५. गायब/ गाएब/ गएब
२८६. सकै/ सकए/ सकय
२८७.सेरा/सरा/ सराए (भात सेरा गेल)
२८८.कहैत रही/देखैत रही/ कहैत छलहुँ/ कहै छलहुँ- एहिना चलैत/ पढ़ैत (पढ़ै-पढ़ैत अर्थ कखनो काल परिवर्तित)-आर बुझै/ बुझैत (बुझै/ बुझैत छी, मुदा बुझैत-बुझैत)/ सकैत/ सकै। करैत/ करै। दै/ दैत। छैक/ छै। बचलै/ बचलैक। रखबा/ रखबाक । बिनु/ बिन। रातिक/ रातुक
२८९. दुआरे/ द्वारे
२९०.भेटि/ भेट
२९१. खन/ खुना (भोर खन/ भोर खुना)
२९२.तक/ धरि
२९३.गऽ/गै (meaning different-जनबै गऽ)
२९४.सऽ/ सँ (मुदा दऽ, लऽ)
२९५.त्त्व,(तीन अक्षरक मेल बदला पुनरुक्तिक एक आ एकटा दोसरक उपयोग) आदिक बदला त्व आदि। महत्त्व/ महत्व/ कर्ता/ कर्त्ता आदिमे त्त संयुक्तक कोनो आवश्यकता मैथिलीमे नहि अछि। वक्तव्य
२९६.बेसी/ बेशी
२९७.बाला/वाला बला/ वला (रहैबला)
२९८.वाली/ (बदलएवाली)
२९९.वार्त्ता/ वार्ता
300. अन्तर्राष्ट्रिय/ अन्तर्राष्ट्रीय
३०१. लेमए/ लेबए
३०२.लमछुरका, नमछुरका
३०२.लागै/ लगै (भेटैत/ भेटै)
३०३.लागल/ लगल
३०४.हबा/ हवा
३०५.राखलक/ रखलक
३०६.आ (come)/ आ (and)
३०७. पश्चाताप/ पश्चात्ताप
३०८. ऽ केर व्यवहार शब्दक अन्तमे मात्र, यथासंभव बीचमे नहि।
३०९.कहैत/ कहै
३१०. रहए (छल)/ रहै (छलै) (meaning different)
३११.तागति/ ताकति
३१२.खराप/ खराब
३१३.बोइन/ बोनि/ बोइनि
३१४.जाठि/ जाइठ
३१५.कागज/ कागच
३१६.गिरै (meaning different- swallow)/ गिरए (खसए)
३१७.राष्ट्रिय/ राष्ट्रीय
उच्चारण निर्देश:
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ , षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ ऐछ
छथि- छ इ थ – छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ– जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू। रहए- रहै मुदा सकैए (उच्चारण सकै-ए)।
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा। पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए।
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- (उच्चारण संजोगने)
केँ/ के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) –रामक आ संगे (उच्चारण राम के / राम कऽ सेहो)
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- (उच्चारण राम सऽ) रामकेँ- (उच्चारण राम कऽ/ राम के सेहो)।
केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक?
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै
त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि। आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचायक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison d’etre एतए सेहो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन
केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)
३.नेपाल आ भारतक मैथिली भाषा-वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक शैली
1.नेपालक मैथिली भाषा वैज्ञानिक लोकनि द्वारा बनाओल मानक उच्चारण आ लेखन शैली
(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
मैथिलीमे उच्चारण तथा लेखन
१.पञ्चमाक्षर आ अनुस्वार: पञ्चमाक्षरान्तर्गत ङ, ञ, ण, न एवं म अबैत अछि। संस्कृत भाषाक अनुसार शब्दक अन्तमे जाहि वर्गक अक्षर रहैत अछि ओही वर्गक पञ्चमाक्षर अबैत अछि। जेना-
अङ्क (क वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ङ् आएल अछि।)
पञ्च (च वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ञ् आएल अछि।)
खण्ड (ट वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे ण् आएल अछि।)
सन्धि (त वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे न् आएल अछि।)
खम्भ (प वर्गक रहबाक कारणे अन्तमे म् आएल अछि।)
उपर्युक्त बात मैथिलीमे कम देखल जाइत अछि। पञ्चमाक्षरक बदलामे अधिकांश जगहपर अनुस्वारक प्रयोग देखल जाइछ। जेना- अंक, पंच, खंड, संधि, खंभ आदि। व्याकरणविद पण्डित गोविन्द झाक कहब छनि जे कवर्ग, चवर्ग आ टवर्गसँ पूर्व अनुस्वार लिखल जाए तथा तवर्ग आ पवर्गसँ पूर्व पञ्चमाक्षरे लिखल जाए। जेना- अंक, चंचल, अंडा, अन्त तथा कम्पन। मुदा हिन्दीक निकट रहल आधुनिक लेखक एहि बातकेँ नहि मानैत छथि। ओ लोकनि अन्त आ कम्पनक जगहपर सेहो अंत आ कंपन लिखैत देखल जाइत छथि।
नवीन पद्धति किछु सुविधाजनक अवश्य छैक। किएक तँ एहिमे समय आ स्थानक बचत होइत छैक। मुदा कतोक बेर हस्तलेखन वा मुद्रणमे अनुस्वारक छोट सन बिन्दु स्पष्ट नहि भेलासँ अर्थक अनर्थ होइत सेहो देखल जाइत अछि। अनुस्वारक प्रयोगमे उच्चारण-दोषक सम्भावना सेहो ततबए देखल जाइत अछि। एतदर्थ कसँ लऽ कऽ पवर्ग धरि पञ्चमाक्षरेक प्रयोग करब उचित अछि। यसँ लऽ कऽ ज्ञ धरिक अक्षरक सङ्ग अनुस्वारक प्रयोग करबामे कतहु कोनो विवाद नहि देखल जाइछ।
२.ढ आ ढ़ : ढ़क उच्चारण “र् ह”जकाँ होइत अछि। अतः जतऽ “र् ह”क उच्चारण हो ओतऽ मात्र ढ़ लिखल जाए। आन ठाम खाली ढ लिखल जएबाक चाही। जेना-
ढ = ढाकी, ढेकी, ढीठ, ढेउआ, ढङ्ग, ढेरी, ढाकनि, ढाठ आदि।
ढ़ = पढ़ाइ, बढ़ब, गढ़ब, मढ़ब, बुढ़बा, साँढ़, गाढ़, रीढ़, चाँढ़, सीढ़ी, पीढ़ी आदि।
उपर्युक्त शब्द सभकेँ देखलासँ ई स्पष्ट होइत अछि जे साधारणतया शब्दक शुरूमे ढ आ मध्य तथा अन्तमे ढ़ अबैत अछि। इएह नियम ड आ ड़क सन्दर्भ सेहो लागू होइत अछि।
३.व आ ब : मैथिलीमे “व”क उच्चारण ब कएल जाइत अछि, मुदा ओकरा ब रूपमे नहि लिखल जएबाक चाही। जेना- उच्चारण : बैद्यनाथ, बिद्या, नब, देबता, बिष्णु, बंश, बन्दना आदि। एहि सभक स्थानपर क्रमशः वैद्यनाथ, विद्या, नव, देवता, विष्णु, वंश, वन्दना लिखबाक चाही। सामान्यतया व उच्चारणक लेल ओ प्रयोग कएल जाइत अछि। जेना- ओकील, ओजह आदि।
४.य आ ज : कतहु-कतहु “य”क उच्चारण “ज”जकाँ करैत देखल जाइत अछि, मुदा ओकरा ज नहि लिखबाक चाही। उच्चारणमे यज्ञ, जदि, जमुना, जुग, जाबत, जोगी, जदु, जम आदि कहल जाएबला शब्द सभकेँ क्रमशः यज्ञ, यदि, यमुना, युग, यावत, योगी, यदु, यम लिखबाक चाही।
५.ए आ य : मैथिलीक वर्तनीमे ए आ य दुनू लिखल जाइत अछि।
प्राचीन वर्तनी- कएल, जाए, होएत, माए, भाए, गाए आदि।
नवीन वर्तनी- कयल, जाय, होयत, माय, भाय, गाय आदि।
सामान्यतया शब्दक शुरूमे ए मात्र अबैत अछि। जेना एहि, एना, एकर, एहन आदि। एहि शब्द सभक स्थानपर यहि, यना, यकर, यहन आदिक प्रयोग नहि करबाक चाही। यद्यपि मैथिलीभाषी थारू सहित किछु जातिमे शब्दक आरम्भोमे “ए”केँ य कहि उच्चारण कएल जाइत अछि।
ए आ “य”क प्रयोगक सन्दर्भमे प्राचीने पद्धतिक अनुसरण करब उपयुक्त मानि एहि पुस्तकमे ओकरे प्रयोग कएल गेल अछि। किएक तँ दुनूक लेखनमे कोनो सहजता आ दुरूहताक बात नहि अछि। आ मैथिलीक सर्वसाधारणक उच्चारण-शैली यक अपेक्षा एसँ बेसी निकट छैक। खास कऽ कएल, हएब आदि कतिपय शब्दकेँ कैल, हैब आदि रूपमे कतहु-कतहु लिखल जाएब सेहो “ए”क प्रयोगकेँ बेसी समीचीन प्रमाणित करैत अछि।
६.हि, हु तथा एकार, ओकार : मैथिलीक प्राचीन लेखन-परम्परामे कोनो बातपर बल दैत काल शब्दक पाछाँ हि, हु लगाओल जाइत छैक। जेना- हुनकहि, अपनहु, ओकरहु, तत्कालहि, चोट्टहि, आनहु आदि। मुदा आधुनिक लेखनमे हिक स्थानपर एकार एवं हुक स्थानपर ओकारक प्रयोग करैत देखल जाइत अछि। जेना- हुनके, अपनो, तत्काले, चोट्टे, आनो आदि।
७.ष तथा ख : मैथिली भाषामे अधिकांशतः षक उच्चारण ख होइत अछि। जेना- षड्यन्त्र (खड़यन्त्र), षोडशी (खोड़शी), षट्कोण (खटकोण), वृषेश (वृखेश), सन्तोष (सन्तोख) आदि।
८.ध्वनि-लोप : निम्नलिखित अवस्थामे शब्दसँ ध्वनि-लोप भऽ जाइत अछि:
(क) क्रियान्वयी प्रत्यय अयमे य वा ए लुप्त भऽ जाइत अछि। ओहिमे सँ पहिने अक उच्चारण दीर्घ भऽ जाइत अछि। ओकर आगाँ लोप-सूचक चिह्न वा विकारी (’ / ऽ) लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ए (पढ़य) गेलाह, कए (कय) लेल, उठए (उठय) पड़तौक।
अपूर्ण रूप : पढ़’ गेलाह, क’ लेल, उठ’ पड़तौक।
पढ़ऽ गेलाह, कऽ लेल, उठऽ पड़तौक।
(ख) पूर्वकालिक कृत आय (आए) प्रत्ययमे य (ए) लुप्त भऽ जाइछ, मुदा लोप-सूचक विकारी नहि लगाओल जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : खाए (य) गेल, पठाय (ए) देब, नहाए (य) अएलाह।
अपूर्ण रूप : खा गेल, पठा देब, नहा अएलाह।
(ग) स्त्री प्रत्यय इक उच्चारण क्रियापद, संज्ञा, ओ विशेषण तीनूमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : दोसरि मालिनि चलि गेलि।
अपूर्ण रूप : दोसर मालिन चलि गेल।
(घ) वर्तमान कृदन्तक अन्तिम त लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप : पढ़ैत अछि, बजैत अछि, गबैत अछि।
अपूर्ण रूप : पढ़ै अछि, बजै अछि, गबै अछि।
(ङ) क्रियापदक अवसान इक, उक, ऐक तथा हीकमे लुप्त भऽ जाइत अछि। जेना-
पूर्ण रूप: छियौक, छियैक, छहीक, छौक, छैक, अबितैक, होइक।
अपूर्ण रूप : छियौ, छियै, छही, छौ, छै, अबितै, होइ।
(च) क्रियापदीय प्रत्यय न्ह, हु तथा हकारक लोप भऽ जाइछ। जेना-
पूर्ण रूप : छन्हि, कहलन्हि, कहलहुँ, गेलह, नहि।
अपूर्ण रूप : छनि, कहलनि, कहलौँ, गेलऽ, नइ, नञि, नै।
९.ध्वनि स्थानान्तरण : कोनो-कोनो स्वर-ध्वनि अपना जगहसँ हटि कऽ दोसर ठाम चलि जाइत अछि। खास कऽ ह्रस्व इ आ उक सम्बन्धमे ई बात लागू होइत अछि। मैथिलीकरण भऽ गेल शब्दक मध्य वा अन्तमे जँ ह्रस्व इ वा उ आबए तँ ओकर ध्वनि स्थानान्तरित भऽ एक अक्षर आगाँ आबि जाइत अछि। जेना- शनि (शइन), पानि (पाइन), दालि ( दाइल), माटि (माइट), काछु (काउछ), मासु (माउस) आदि। मुदा तत्सम शब्द सभमे ई निअम लागू नहि होइत अछि। जेना- रश्मिकेँ रइश्म आ सुधांशुकेँ सुधाउंस नहि कहल जा सकैत अछि।
१०.हलन्त(्)क प्रयोग : मैथिली भाषामे सामान्यतया हलन्त (्)क आवश्यकता नहि होइत अछि। कारण जे शब्दक अन्तमे अ उच्चारण नहि होइत अछि। मुदा संस्कृत भाषासँ जहिनाक तहिना मैथिलीमे आएल (तत्सम) शब्द सभमे हलन्त प्रयोग कएल जाइत अछि। एहि पोथीमे सामान्यतया सम्पूर्ण शब्दकेँ मैथिली भाषा सम्बन्धी निअम अनुसार हलन्तविहीन राखल गेल अछि। मुदा व्याकरण सम्बन्धी प्रयोजनक लेल अत्यावश्यक स्थानपर कतहु-कतहु हलन्त देल गेल अछि। प्रस्तुत पोथीमे मथिली लेखनक प्राचीन आ नवीन दुनू शैलीक सरल आ समीचीन पक्ष सभकेँ समेटि कऽ वर्ण-विन्यास कएल गेल अछि। स्थान आ समयमे बचतक सङ्गहि हस्त-लेखन तथा तकनीकी दृष्टिसँ सेहो सरल होबऽबला हिसाबसँ वर्ण-विन्यास मिलाओल गेल अछि। वर्तमान समयमे मैथिली मातृभाषी पर्यन्तकेँ आन भाषाक माध्यमसँ मैथिलीक ज्ञान लेबऽ पड़ि रहल परिप्रेक्ष्यमे लेखनमे सहजता तथा एकरूपतापर ध्यान देल गेल अछि। तखन मैथिली भाषाक मूल विशेषता सभ कुण्ठित नहि होइक, ताहू दिस लेखक-मण्डल सचेत अछि। प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक कहब छनि जे सरलताक अनुसन्धानमे एहन अवस्था किन्नहु ने आबऽ देबाक चाही जे भाषाक विशेषता छाँहमे पडि जाए।
-(भाषाशास्त्री डा. रामावतार यादवक धारणाकेँ पूर्ण रूपसँ सङ्ग लऽ निर्धारित)
2. मैथिली अकादमी, पटना द्वारा निर्धारित मैथिली लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
ग्राह्य
एखन
ठाम
जकर, तकर
तनिकर
अछि
अग्राह्य
अखन, अखनि, एखेन, अखनी
ठिमा, ठिना, ठमा
जेकर, तेकर
तिनकर। (वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
ऐछ, अहि, ए।
2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैकल्पिकतया अपनाओल जाय: भऽ गेल, भय गेल वा भए गेल। जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि। कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत: जैह, सैह, इएह, ओऐह, लैह तथा दैह।
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:- हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे। ’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय, किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
14. हलंत चिह्न निअमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रापर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि। यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20. अंक देवनागरी रूपमे राखल जाय।
21.किछु ध्वनिक लेल नवीन चिन्ह बनबाओल जाय। जा' ई नहि बनल अछि ताबत एहि दुनू ध्वनिक बदला पूर्ववत् अय/ आय/ अए/ आए/ आओ/ अओ लिखल जाय। आकि ऎ वा ऒ सँ व्यक्त कएल जाय।
ह./- गोविन्द झा ११/८/७६ श्रीकान्त ठाकुर ११/८/७६ सुरेन्द्र झा "सुमन" ११/०८/७६
7.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
DATE-LIST (year- 2010-11)
(१४१८ साल)
Marriage Days:
Nov.2010- 19
Dec.2010- 3,8
January 2011- 17, 21, 23, 24, 26, 27, 28 31
Feb.2011- 3, 4, 7, 9, 18, 20, 24, 25, 27, 28
March 2011- 2, 7
May 2011- 11, 12, 13, 18, 19, 20, 22, 23, 29, 30
June 2011- 1, 2, 3, 8, 9, 10, 12, 13, 19, 20, 26, 29
Upanayana Days:
February 2011- 8
March 2011- 7
May 2011- 12, 13
June 2011- 6, 12
Dviragaman Din:
November 2010- 19, 22, 25, 26
December 2010- 6, 8, 9, 10, 12
February 2011- 20, 21
March 2011- 6, 7, 9, 13
April 2011- 17, 18, 22
May 2011- 5, 6, 8, 13
Mundan Din:
November 2010- 24, 26
December 2010- 10, 17
February 2011- 4, 16, 21
March 2011- 7, 9
April 2011- 22
May 2011- 6, 9, 19
June 2011- 3, 6, 10, 20
FESTIVALS OF MITHILA
Mauna Panchami-31 July
Somavati Amavasya Vrat- 1 August
Madhushravani-12 August
Nag Panchami- 14 August
Raksha Bandhan- 24 Aug
Krishnastami- 01 September
Kushi Amavasya- 08 September
Hartalika Teej- 11 September
ChauthChandra-11 September
Vishwakarma Pooja- 17 September
Karma Dharma Ekadashi-19 September
Indra Pooja Aarambh- 20 September
Anant Caturdashi- 22 Sep
Agastyarghadaan- 23 Sep
Pitri Paksha begins- 24 Sep
Jimootavahan Vrata/ Jitia-30 Sep
Matri Navami- 02 October
Kalashsthapan- 08 October
Belnauti- 13 October
Patrika Pravesh- 14 October
Mahastami- 15 October
Maha Navami - 16-17 October
Vijaya Dashami- 18 October
Kojagara- 22 Oct
Dhanteras- 3 November
Diyabati, shyama pooja- 5 November
Annakoota/ Govardhana Pooja-07 November
Bhratridwitiya/ Chitragupta Pooja-08 November
Chhathi- -12 November
Akshyay Navami- 15 November
Devotthan Ekadashi- 17 November
Kartik Poornima/ Sama Bisarjan- 21 Nov
Shaa. ravivratarambh- 21 November
Navanna parvan- 24 -26 November
Vivaha Panchmi- 10 December
Naraknivaran chaturdashi- 01 February
Makara/ Teela Sankranti-15 Jan
Basant Panchami/ Saraswati Pooja- 08 Februaqry
Achla Saptmi- 10 February
Mahashivaratri-03 March
Holikadahan-Fagua-19 March
Holi-20 Mar
Varuni Yoga- 31 March
va.navaratrarambh- 4 April
vaa. Chhathi vrata- 9 April
Ram Navami- 12 April
Mesha Sankranti-Satuani-14 April
Jurishital-15 April
Somavati Amavasya Vrata- 02 May
Ravi Brat Ant- 08 May
Akshaya Tritiya-06 May
Janaki Navami- 12 May
Vat Savitri-barasait- 01 June
Ganga Dashhara-11 June
Jagannath Rath Yatra- 3 July
Hari Sayan Ekadashi- 11 Jul
Aashadhi Guru Poornima-15 Jul
NAAGPHAANS- Maithili novel written by Dr. Shefalika Verma in 2004- Arushi Aditi Sanskriti Publication, Patna- Translated by Dr. Rajiv Kumar Verma and Dr. Jaya Verma- Associate Professors, Delhi University, Delhi.
NAAGPHAANS XIV
Ma, next day thought engulfed me if Shirish had not reached on time what would have been my condition in that dark rainy night – I felt shiver all over the body. I had even failed to thank him.
All of a sudden Shirish appeared before me from nowhere. Bhabhi, where is Vikalpji?
I became overjoyed to see him – I was just thinking about you.
He laughingly replied – I consider myself very fortunate for this.
Please be seated – I get a cup of tea for you.
Shirish started coming to home on a regular basis. One day I had a fight with Vikalp as he disliked Shirish and his regular visit.
Right now I am unwell – Shirish visited just to know about my well being. I know you have developed a snake like misconception which continuously misguides you through its sting.
Yesterday Vikalp came back from his office early. Shirish almost followed him. Vikalp was shocked to see him. It seemed as if he was bitten by a snake. He visualized – Manjul is unwell. Shirish must have touched her forehead followed by …………….
Shirish had just left and Vikalp screamed – I hate him – I hate you – you are a flying snake – a cobra in the guise of a woman.
Ma, I retaliated and told Vikalp – you always discourage me but look at Shirish –
Shirish -- Shirish – characterless and flirt – you think I do not know his reality.
Look, we are not concerned with his personal life. You must clear your mind of all doubts, suspicion and trash. You should not become a pond or a shallow river – be a large river or a vast ocean.
2
After this incident Vikalp started coming home late in night – sometimes he returned over drunk - I had no option except to lament on my misfortune. His drinking habit went on increasing followed by continuous vomit. I never told Ma-Babuji about this even when we lived together. I had never experienced this kind of situation before but tried to bear with it.
Vikalp avoided me. Everyday after returning from office he used to confine himself to his room. He opened the doors of room only to receive breakfast, lunch and dinner. Ma and Babuji were surprised to see his changed behavior.
What is this Vikalp? Why you remain confined to your room? You have stopped interacting with us.
Ma, these days I am over-worked – and he again shut the door of his room.
Ma-Babuji told me – Kaniya, why do not you persuade him?
How can I win over him, Ma.
Ma – do not you know - women are capable of beautifying even the deserts and shrubbery area.
I did not utter a single word. For the first time in my life I tried to imbibe the suggestion made by my in-laws.
Anticipation of a dark future really shook me up. I trembled to imagine a black snake slowly and gradually sliding and gliding down to my future life.
Time went on – Vikalp started sleeping alone. Our relationship became formal – a relationship based on daily needs i.e. tea, breakfast, lunch and dinner.
Initially I related his changed behavior to his busy work schedule – troubles at his office.
I also came back in the evening as a tired person. I did not take cognizance of his behavior.
In a metropolitan city like Bombay we were blessed with all the amenities of life such as a big bungalow, car, social status and what not. But in the midst of these amenities I had a continuous longing for four letters of love. What good is the bungalow, the cars or the social status if your husband does not love you. Material things are no replacement for human, emotional love.
Otherwise Ma, in this materialistic world everybody is alone. Gone are the days when we had joint families – everybody shared both happiness and sorrow, plenty and paucity.
3
Participation in family activities by all the individual members was its quality. Every member was duty-bound to assume a direct role or responsibility in family. Family was a
unit for all such purposes as socialization, social control, social order etc. Problems used to be solved through love and interaction. Once problem solved, people returned back to work as a light balloon.
No doubt, still we come across some joint families, but now each and every member is guided by his/her own interest and problem. They remain together but only in name.
Ma, I felt alone and secluded. Ma- Babuji also felt loneliness. We lived under the same roof but everybody was alone and secluded. Isolation is devastating to the human psyche. That is why solitary confinement is considered the cruelest of punishments. This is the bane of modern culture and civilization.
One night almost at 12 O’ clock I stood near the window of my room waiting for Vikalp.
A car stopped and two persons got down. I saw Vikalp being embraced by a beautiful woman.
I trembled with anger and asked him about the woman.
Vikalp replied – do not beat about the bush. You have no right to ask about her.
Ma, I hold his hand and shouted – I am your wife -- I have the right to ask about her.
If you are my wife then mind your own business silently. I do not like these interferences.
Interference … I have always tolerated your sting – never retaliated. But I shall never tolerate other woman in your life.
Vikalp slapped me – never retaliated – now tolerate this and he kept on beating me. I am surprised with the fact that how I tolerated this brutality – why I failed to retaliate?
Vikalp developed the habit of beating me without any reason. My position in the house almost got reduced to a housemaid. It not only affected me mentally and physically but wounded my soul. I had never witnessed any husband inflicting injury on his wife. My soul was crying.
You are my mother – who can understand me better than you? Ma- Babuji always sided with their son. Nobody supported me. You are already worried due to Papa. I never tried to add to your tensions by disclosing my pitiable condition. Moreover, why to disclose this in Naiher?
4
I suffered silently. The girl who was so intolerant, carefree, volatile and recalcitrant at parent’s home underwent this kind of transformation – how and why I became so tolerant – I am unable to understand. Gandhi, Dayanand, Vivekanand worked towards the empowerment of women, but my submission to brutality really puzzled me. My education, the knowledge I gained mocked at me.
Sometimes I resolved to fight back but the thought dissipated due to lack of support. Who will back me? My soul was yearning like an encaged bird for sweet voice. I faced a perennial question – everybody says marriages are made in heaven. Ma, is this the perennial relationship spanning over several births?
My dreams of living happily ever after had been dashed against the hard walls of reality. Our love is gone, our relationship is dead. He used to feel close, but not now. He no longer enjoys being with me. I never imagined wife-husband sharing this kind of relationship in a civilized society. When the time is adverse and hostile, everything becomes counter productive. Laughter appears to be blubber. For women every dream is preceded by deceit and deception.
But everything is supposed to come to an end – so is the SIN.
CONTINUED
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