ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ७३ म अंक ०१ जनवरी २०११ (वर्ष ४ मास ३७ अंक ७३)
एहि अंकमे अछि:-
३.६.१. अजित मिश्र- नब वर्ष/ सुन्दर मनगर पर्व महान २. डॉ. शेफालिका वर्मा- नव वर्ष ३. सतीश चन्द्र झा- नव वर्ष ४.सुबोध ठाकुर- प्रतीक्षा
३.७.१.किशन कारीग़र- आबि गेल नव वर्ष २. राम विलास साहु -कविता- कोइली कूहकै आमक डारि
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
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१. संपादकीय
दरभंगाक दोकानमे मैट्रिकक सिलेबसक गाइडक अतिरिक्त कोनो मैथिली पोथी नै भेटै छलै, कोनो एक साहित्यकारक मुँहसँ दोसराक प्रति आदर वचन नै निकलै छलै, कियो अतिथि सम्पादक बनि अहाँक रचनाक चोरि केलक तँ ओकरा अहाँ पकड़ी तँ ताहिपर एकमत नै होइ जाइ छलाह उन्टे दोषीकेँ पीठ ठोकै जाइ छलाह, शब्दशः चोरि आ आक्रान्त वा प्रभावित भेल रचनाक अन्तर ककरा नै बुझल छैक आ ओहि आरिमे शब्दशः चोरि केनिहारक पीठ ठोकब! विदेहक आगमनक बाद एहि सभमे परिवर्तन आएल, एकरा के नकारि सकत।
गजलशास्त्र- आगाँ
आब एक धक्का फेरसँ मैथिलीक उच्चारण निर्देश आ ह्रस्व-दीर्घ विचारपर आउ।
शास्त्रमे प्रयुक्त ‘गुरु’ आ ‘लघु’ छंदक परिचय प्राप्त करू।
तेरह टा स्वर वर्णमे अ,इ,उ,ऋ,लृ - ह्र्स्व आर आ,ई,ऊ,ऋ,ए.ऐ,ओ,औ- दीर्घ स्वर अछि।
ई स्वर वर्ण जखन व्यंजन वर्णक संग जुड़ि जाइत अछि तँ ओकरासँ ‘गुणिताक्षर’ बनैत अछि।
क्+अ= क,
क्+आ=का ।
एक स्वर मात्रा आकि एक गुणिताक्षरकेँ एक ‘अक्षर’ कहल जाइत अछि। कोनो व्यंजन मात्रकेँ अक्षर नहि मानल जाइत अछि- जेना ‘अवाक्’ शब्दमे दू टा अक्षर अछि, अ, वा ।
१. सभटा ह्रस्व स्वर आ ह्रस्व युक्त गुणिताक्षर ‘लघु’ मानल जाइत अछि। एकरा ऊपर U लिखि एकर संकेत देल जाइत अछि।
२. सभटा दीर्घ स्वर आर दीर्घ स्वर युक्त गुणिताक्षर ‘गुरु’ मानल जाइत अछि, आ एकर संकेत अछि, ऊपरमे एकटा छोट -।
३. अनुस्वार किंवा विसर्गयुक्त सभ अक्षर गुरू मानल जाइत अछि।
४. कोनो अक्षरक बाद संयुक्ताक्षर किंवा व्यंजन मात्र रहलासँ ओहि अक्षरकेँ गुरु मानल जाइत अछि। जेना- अच्, सत्य। एहिमे अ आ स दुनू गुरु अछि।
जेना कहल गेल अछि जे अनुस्वार आ विसर्गयुक्त भेलासँ दीर्घ होएत तहिना आब कहल जा रहल अछि जे चन्द्रबिन्दु आ ह्रस्वक मेल ह्रस्व होएत।
माने चन्द्रबिन्दु+ह्रस्व स्वर= एक मात्रा
संयुक्ताक्षर: एतए मात्रा गानल जाएत एहि तरहेँ:-
क्ति= क् + त् + इ = ०+०+१= १
क्ती= क् + त् + ई = ०+०+२= २
क्ष= क् + ष= ०+१
त्र= त् + र= ०+१
ज्ञ= ज् + ञ= ०+१
श्र= श् + र= ०+१
स्र= स् +र= ०+१
शृ =श् +ऋ= ०+१
त्व= त् +व= ०+१
त्त्व= त् + त् + व= ० + ० + १
ह्रस्व + ऽ = १ + ०
अ वा दीर्घक बाद बिकारीक प्रयोग नहि होइत अछि जेना दिअऽ आऽ ओऽ (दोषपूर्ण प्रयोग)। हँ व्यंजन+अ गुणिताक्षरक बाद बिकारी दऽ सकै छी।
ह्रस्व + चन्द्रबिन्दु= १+०
दीर्घ+ चन्द्रबिन्दु= २+०
जेना हँसल= १+१+१
साँस= २+१
बिकारी आ चन्द्रबिन्दुक गणना शून्य होएत।
जा कऽ = २+१
क् =०
क= क् +अ= ०+१
किएक तँ क केँ क् पढ़बाक प्रवृत्ति मैथिलीमे आबि गेल तेँ बिकारी देबाक आवश्यकता पड़ल, दीर्घ स्वरमे एहन आवश्यकता नहि अछि।
U- ह्रस्वक चेन्ह
।- दीर्घक चेन्ह
१
बहरे मुतकारिब मुतकारिब आठ–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – चारि बेर
अनेरे धुनेरे जतेको ठकेलौं
बकैतो ढ़कैतो सुझेलौं घनेरौं
बजेने अबैए घुरेने अबैए
सुझै छै बहुत्ते बजै छै अनेरौं
कुकूरो बजैए बिलाड़ीक भाषा
मुदा ई सियारो अजीबे कहेलौं
अहा की सुनेलौं कथा आ पिहानी
सखीयो सुनैले अबैए सरिपौं
२
बहरे मुतदारिक मुतदारिक आठ–रुक्न फा इ लुन (।U।) – चारि बेर
बीकि गेलै तँ की जोतबै खेतमे
झीकि लेतै तँ की बोलतै बेरमे
जानि गेलै तँ बातोसँ काटौ कने
जान एतै तँ देहोसँ जे टेब ने
आरि धेने जँ जाए तँ ठीक छै
भेष धेने जँ से सोझाँ कि नीक-ए
बेर भेलै अबेरेसँ ओ ठाढ़ छै
बात भेने घुरेतै कि विश्वास-ए
३
बहरे कामिल कामिल आठ–रुक्न मु त फा इ लुन (UU।U।) – चारि बेर
इनसान जे कहबैत छै सकुचा कऽ छै जँ ठकैल यौ
बहरा कऽ जे कहतै जँ नै सहिते तँ छै कमजोर यौ
मरखाह जे छी हम छी तँ छी कहबै उमेरक छै कमी
बुढ़हा बकैत तँ की कहौ करतै समेत बकैत यौ
हरबाह जे हम छी कहैत सभे समेटि सकैत छी
चरबाह जे हम छी हँटैत तँ से झमाड़ि सकैत यौ
अकबारमे निकलैत छै कहबैत छै जँ सएह यौ
बिसबासमे सहटैत ओ हटबैत छै बिसबास यौ
४
बहरे वाफिर वाफिर आठ–रुक्न म फा इ ल तुन (U।UU।) – चारि बेर
अबै अछि ओ सुनै अछि ओ जँ जाइत छै बसै अछि ओ
कहै अछि जे सुनै अछि ओ जँ खाइत छै ढकै अछि ओ
बनै अछि आब नै गढ़ि जे जँ से अछि नै बनै अछि की
बनै अछि ओ गढ़ै अछि ओ जँ पाबि कऽ नै करै अछि ओ
हकैम कऽ छी हमेँ बनि गेल अलैस कऽ नै धएल कनी
करै अछि ओ धरै अछि ओ जँ पाबि कऽ नै कतेक ई ओ
हकासल छी पियासल छी निरासल छी अभागल छी
करै अछि ओ नमै अछि ओ जँ जाति कऽ ऐ पियासलो ओ
५
बहरे रमल रमल आठ–रुक्न फा इ ला तुन (।U।।) – चारि बेर
झूरझामो भेल छी से बात ने की काटने की
से समेटू से लपेटू आर की की आरने छी
की कहेलौं की गमेलौं की कहू की बात केलौं
सूनि छी से कैकटा की बात मोने घातमे छी
ऊगि गेलौं डूमि गेलौं के कहैए की कहैए
से अनेरो हे अभागे लेब से तैं बाटमे छी
नानिटा छै से कहै छै पैघकेँ की बात पूछी
देखलौं ई कूहि काटै बात जेतै ताकिमे छी
६
बहरे रजज रजज आठ–रुक्न मुस तफ इ लुन (।।U।) – चारि बेर
ऐ ओतऽ की छै केहनो आ की अते की छी अए
नै छै कएलो नै सुनै छै की करै भेटैत-ए
भाँमै अए लै छै अरे भेलै कने सैक्त सुझै
नै छै अ अः नै छै अ अः सीधा अनै बैसै अए
आनो अनै बोनो रहै साफे करै नौरीसँ यौ
झाड़ी अनै बाड़ी अनै बेली अनै सूंघै अए
लैतो हए ऐठाँ हए आबै हए जैठाँ हए
बातो अबै झातो अबै सूनै अहौ माथोसँ ए
७
बहरे हजज हजज :-आठ–रुक्न म फा ई लुन (U।।।) – चारि बेर
अबै छै नै सुनै छै नै बहीरो छै बुझै छै से
नरैमे छी कटै की से जजातो छै बुझै छै से
महामाला महाडाला महाभावो महा हा हा
छिनै छै ओ बहै छै जे करै छै से बुझै छै से
एके बेरे समेटै छै एकोटा नै बातो छै की
कहै छी आ करै छी आ सभे गोटा बुझै छी से
लऽ की केलौं भऽ की गेलौं समेटैमे अनेरो ओ
जएबामे संगो भेटै बुझै नै ओ बुझै छी से
१.आब सामिल अराकानक आठ–रुक्नक छः–रुक्न - तीन बेर/ आ चारि–रुक्न - दू बेरक प्रयोग देखब। ई सभ मुफरद बहर अछि माने रुक्नक बेर-बेर प्रयोग होइत अछि।
२.एकर अतिरिक्त सामिल अराकानक १२ टा मुरक्कब बहर अछि माने दू प्रकारक अरकानक बेर-बेर अएलासँ १२ सालिम बहर, संगीतक भाषामे मिश्रित। ई तीन तरहक अछि:- ४ रुक्नक बहर, ६ रुक्नक बहर, ८ रुक्नक बहर / मुरक्कब (मिश्रित) पूर्णाक्षरी (सालिम) बहर- १२ टा –तवील, मदीद, मुनसरेह, मुक्तज़ब, मज़ारे, मुजतस, ख़फीफ, बसीत, सरीअ, जदीद, क़रीब, मुशाकिल।
३.आ तकर बाद सामिल आ मुजाहिफ अराकान दुनूक मेलपेँचसँ बनल १२ टा बहर मख्बून, अखरब, महजूफ, मक्तूअ, मक्बूज, मुज्मर, मरफू, मासूब, महजूज, मकफूफ, मश्कूल, आ अस्लम बहरक चर्च होएत।
४.आ एहिमे मात्र मुजाहिफ अराकानसँ बनल बेशी प्रयुक्त चारिटा बहर (मुक्तजब, मजारे, मुजतस आ खफीफ) क चर्च करब।
१.आब सामिल अराकानक आठ–रुक्नक छः–रुक्न - तीन बेर/ आ चारि–रुक्न - दू बेरक प्रयोग देखब। ई सभ मुफरद बहर अछि माने रुक्नक बेर-बेर प्रयोग होइत अछि।
बहरे मुतकारिब छः–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – तीन बेर
एके बेरमे जे कएलौं
बड़े भेर भेनेँ सुनेलौँ
करिक्का रच्छसा अएलै
डरे भाखणो भेलै कतेकोँ
सुनैतो अरे ओ रहै छै
बनै छै अनेरो सुधगाँ
बड़ी टाक ई बेर बीतै
कनी टाक ई छाह पीटौँ
बहरे मुतकारिब चारि–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – दू बेर
बड़ी दूर ठाढ़े
कनी दूर नाचे
बुझै नै कनीको
बुरै छै दुलारे
सखा ने सहेली
लगै छै बताहे
मनीषी बहूते
कतेको हुलेने
बहरे मुतदारिक छः–रुक्न फा इ लुन (।U।) – तीन बेर
एकरे केलहा केलहीं
तैं अनेरे दुर्गा भेलहीं
घास फूसो सुखा गेलए
मालजालो मरै देखहीं
आसपासो बहूतो छलै
भेल भादो हेलौं कनीं
सेकलो सूखलो जे मकै
रोटिका देखि छूटै हँसीं
बहरे मुतदारिक चारि–रुक्न फा इ लुन (।U।) – दू बेर
काहि काटी एतै
बात बाँटी एतै
से भने भेलहेँ
नेप चूतै एतै
भेल भोरे कुनो
सेप घोंटी ततै
आहि रे आहि रे
जाइ छी की जतै
बहरे हजज :- छः–रुक्न म फा ई लुन (U।।।) – तीन बेर
अनेरे भऽ गेलैं ऐ लड़ैले गै
तखैनो जे भऽ जेतै की गमैए गै
सुनैए जे हँसैए से बुझै छी ई
करैए जे बचैए से कहाँ ई गै
नठैए जे लगैए से चलाको की
लबारी ई बकैए की बुझेलौ गै
बलू ई जे ढकै छै हेँ देखौ ओ छै
सभा भारी सभामध्ये झुकेलौं गै
बहरे हजज :- चारि–रुक्न म फा ई लुन (U।।।) – दू बेर
कने बेगार बेमारी
कते की बात सुनाबी
घटै छै बाध कतेको
बेढ़ै छै गाम नोथारी
चलै छी ओहि सेनामे
जतै भेलौं स-संहारी
चलू बीसो अनेको छै
सहै छी ई भले हो की
बहरे रजज़ छः–रुक्न मुस तफ इ लुन (।।U।) – तीन बेर
ई जे धरा देखैसँ छै हेतै तँ नै
ई जे घटा घूमैसँ घूमै ने तँ नै
जैठाम छी से नै रही ने से कने
ई बात छै ई घात छै ने से हेतै
नै छै कनेको राति बाँचै भाँति ई
के सूनि के की सूतलै ई माटि यै
नै प्रेम नै छै आइ एत्तै संसदोमे
आ छै कने की प्रेम जे भेटै कने यै
बहरे रजज़ चारि–रुक्न मुस तफ इ लुन (।।U।) – दू बेर
भोरे अएलै कोन गै
सोझे न एलै फोन गै
बहरे रमल छः–रुक्न फा इ ला तुन (।U।।)– तीन बेर
की गरीबो की धनीको तैँ सभे छी
की समीपो की कतेको जे घुमै छी
बहरे रमल चारि–रुक्न फा इ ला तुन (।U।।)– दू बेर
की कतेको बात भेलै
की जतेको लात खेलै
बहरे वाफ़िर छः–रुक्न म फा इ ल तुन (U।UU।) – तीन बेर
कने ककरा कहेबइ आ बतेबइ की
जते सुनबै तते कहता बतेबइ की
बहरे वाफ़िर चारि–रुक्न म फा इ ल तुन (U।UU।)– दू बेर
करेजक बात छै कतबो
करेजक हाल ई नञि हो
बहरे कामिल छः–रुक्न मु त फा इ लुन (UU।U।) – तीन बेर
अनका कतौ कहबै कने सुनतै कहाँ
सुनि ओ बजौ करतै कने जितबै जहाँ
बहरे कामिल चारि–रुक्न मु त फा इ लुन (UU।U।) – दू बेर
पहिले अनै तखने सुनै
कहबै कते कखनो करै
२.एकर अतिरिक्त सामिल अराकानक १२ टा मुरक्कब बहर अछि माने दू प्रकारक अरकानक बेर-बेर अएलासँ १२ सालिम बहर, संगीतक भाषामे मिश्रित। ई तीन तरहक अछि:- ४ रुक्नक बहर, ६ रुक्नक बहर, ८ रुक्नक बहर / मुरक्कब (मिश्रित) पूर्णाक्षरी (सालिम) बहर- १२ टा –तवील, मदीद, मुनसरेह, मुक्तज़ब, मज़ारे, मुजतस, ख़फीफ, बसीत, सरीअ, जदीद, क़रीब, मुशाकिल।
बहरे तवील फ–ऊ–लुन U।। मफा–ई–लुन U।।।
कहेबै सुनेबै की मुदा जे कहेतै से
सुनेतै उकारो की मुदा जे बजेतै से
बहरे मदीद फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–लुन।U।
सूनि बाजू मूँहमे कैकटा छै बातमे
बूझि बाजूमीत यौ कैकटा छै घातमे
बहरे मुनसरेह मुस–तफ–इ–लुन ।।U। मफ–ऊ–ला–तु ।।।U
की की रहै की की भेल कोनो भला कोनो सैह
माँ माँ करी पैघो भेल सेहो जरौ सेहो जैह
बहरे मुक्तजब मफ–ऊ–ला–तु ।।।U मुस–तफ–इ–लुन ।।U।
रामोनाम सेहो उठा रामोनाम सेहो जरा
रामोनाम मोहो लए रामोनाम बातो करा
बहरे मजारे मफा–ई–लुन U।।। फा–इ–ला–तुन ।U।।
अरे की छी सैह नै की अरे छी छी वैह ने छी
बिसारी की उघारी की अरे की की देब ने की
बहरे मुजतस मुस–तफ–इ–लुन ।।U। फा–इ–ला–तुन ।U।।
नै छै रमा नै रहीमो नै छै मरा नै मरीजो
नै ई कनेको मृतो छै नै ई कनेको जियै ओ
बहरे खफीफ फा–इ–ला–तुन ।U।। मुस–तफ–इ–लुन ।।U। फा–इ–ला–तुन ।U।।
रेख राखू फेकू तँ नै देख लेलौं
सूनि राखू बेरो तँ नै बीति गेलौं
बहरे बसीत मुस–तफ–इ–लुन ।।U। फा–इ–लुन।U।
की की रहै की भऽ गै की की छलै की भऽ नै
रीतो बितै ने कऽ गै गीतो बितै गाबि नै
बहरे सरीअ मुस–तफ–इ–लुन ।।U। मुस–तफ–इ–लुन ।।U। मफ–ऊ–ला–तु ।।।U
सेहो कने छै ने अते की केहैत
लेरो चुबै छै ने अते की केहैत
बहरे जदीद फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। मुस–तफ–इ–लुन ।।U।
लेलहेँ ई बेगुणो आ भेलै भने
बेलगो ई नैहरो आ गेलै भने
बहरे करीब मफा–ई–लुन U।।। मफा–ई–लुन U।।। फा–इ–ला–तुन ।U।।
चलै छै ई कने बाटो जाइ छै नै
गतातोमे भने कोनो बात छै नै
बहरे मुशाकिल फा–इ–ला–तुन ।U।। मफा–ई–लुन U।।। मफा–ई–लुन U।।।
मोदमानी अहोभागी कनी छै की
क्रोध जानी प्रणो खाली बनै छै की
३.आ तकर बाद सामिल आ मुजाहिफ अराकान दुनूक मेलपेँचसँ बनल १२ टा बहर मख्बून, अखरब, महजूफ, मक्तूअ, मक्बूज, मुज्मर, मरफू, मासूब, महजूज, मकफूफ, मश्कूल, आ अस्लम बहरक चर्च होएत।
मख्बून: बहरे रमल मुसद्दस मख्बून
फा–इ–ला–तुन ।U।। फ–इ–ला–लुन UU।। फ–इ–ला–लुन UU।।
खेल खेला असली ऐ अगबे नै
मिलमिला अँखिगौरो बतहा नै
अखरब: बहरे हजज मुरब्बा अखरब
मफ–ऊ–लु ।।U मफा–ई–लुन U।।।
की भेल लटू बूड़ू
के गेल अत्ते जोड़ू
महजूफ: बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। फा इ लुन । U ।
एनमेनो भेल गेलौ आश आगाँ बीतलौ
सूनि गेलौं नै भगेलौं नाश नारा गीत यौ
मक्तूअ: बहरे मुतदारिक मुसद्दस मक्तूअ
फा–इ–लुन।U। फा–इ–लुन।U। फै–लुन ।।
कीसँ की भेल छी बाबू
कीसँ की कैल छी आगू
मक्बूज: बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक्बूज (एहिमे सभटा मुज़ाहिफ अरकान)
फ ऊ लुन U । । फ ऊ लुन U । । फ ऊ लुन U । । फ–ऊ–लु U।U
अरे रे अहाँ जे कहेलौं सिनेह
अरे रे अहाँ जे बजेलौं सिनेह
मुज्मर: बहरे कामिल मुसद्दस मुज्मर (एहिमे सभटा अरकान सामिल)
मु–त–फा–इ–लुन UU।U। मु–त–फा–इ–लुन UU।U। मुस–तफ–इ–लुन ।।U।
अनठयने रहबै रहबै हरे हे रोमबै
अनठयने रहबै रहबै अरे हे घूरिऐ
मरफू: बहरे मुक्तजिब मुसद्दस मरफू
मफ–ऊ–ला–तु ।।।U मफ–ऊ–ला–तु ।।।U मफ–ऊ–लु ।।U
की की रेह की की सैह निंघेस
की की रेह की की यैह निंघेस
मासूब – बहरे वाफिर मुसद्दस (एहिमे सभटा अरकान सामिल)
मफा–इ–ल–तुन U।UU। मफा–इ–ल–तुन U।UU। मफा–ई–लुन U।।।
अरे अनलौं सुहागिन यै अनेरो की
अरे अनलौं मुहोथरिमे जनेरो की
महजूज: बहरे मुतदारिक मुसम्मन महजूज (एहिमे सभटा मुज़ाहिफ अरकान)
फा इ लुन । U । फा इ लुन । U । फा इ लुन । U । फा ।
के रहै सूनि यै ई अहाँकेँ
के रहै कूदि यै ई अहाँकेँ
मकफूफ: बहरे हजज मुसम्मन मकफूफ
मफा–ई–लुन U।।। मफा–ई–लुन U।।। मफा–ई–लुन U।।। म–फा–ई–लु U।।U
अनेरे की अनेरे की धुनेरे की कहेलौं हँ
अनेरे की अनेरे की धुनेरे की कहेलौं हँ
मश्कूल: बहरे रमल मुसम्मन मश्कूल
फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। मफ–ऊ–लु ।।U
सूनि सुन्झा केलियै ने कोन पापी छोड़ाइ
सूनि सुन्झा केलियै ने कोन पापी छोड़ाइ
अस्लम: बहरे मुतकारिब मुसद्दस अस्लम
फ–ऊ–लुन U।। फ–ऊ–लुन U।। फ–अल् U।
अरे की अरे की अहाँ
अरे की अरे की अहाँ
४.आ एहिमे मात्र मुजाहिफ अराकानसँ बनल बेशी प्रयुक्त चारिटा बहर (मुक्तजब, मजारे, मुजतस आ खफीफ) क चर्च करब।
बहरे मुक्तजब (मुजाहिफ रूप) (अपूर्णाक्षरी आठ रुक्न):फ ऊ लु U । U फै लुन U । फ ऊ लु U।U फै लुन। ।
कतेक गपो कतेक सप्पो
कतेक मिलै रहैत छै ओ
बहरे मज़ारे (मुजाहिफ रूप) (अपूर्णाक्षरी आठ रुक्न):मफ ऊ लु । । U फा इ ला तु । U । U म फा ई लु U । । U फा इ लुन। U । / फा इ ला न। U । U
ने छैक नै इनाम कते कोन छानि गै
ने छैक नै नकाम कते कोन काज गै
बहरे मुजतस (मुजाहिफ रूप) (अपूर्णाक्षरी आठ–रुक्न):म फा इ लुन U । U । फ इ ला तुन U U । । म फा इ लुन U । U । फै लुन। ।/ फ–इ–लुन UU।
भने भले करतै की भने भले भेटौ
कते कते जरतै ई कते कने देखौ
बहरे ख़फीफ़ (मुजाहिफ रूप) (अपूर्णाक्षरी छः रुक्न):फा इ ला तुन । U । । म फा इ लुन U । U । फै लुन। । / फ इ लुन U U ।
देख लेलौं दिवारसँ बेचै कखनो
बेख देखै गछारसँ हेतै निक ओ
गजल द्वारा किछु संदेश, किछु भावनात्मक अभिव्यक्ति, किछु जीवन दर्शन, सौन्दर्य आकि प्रेम ओ विरहक सौन्दर्य प्रदर्शित रहबाक चाही। किछु एहेन जे सायास नै अनायास होअए। तेँ गजल आन पद्य-कविता जेना- कहल जएबाक चाही, लिखल नै। लिखल तँ चित्र जाइत अछि- मिथिला चित्रकला लिखिया द्वारा लिखल जाइत अछि, संस्कृतमे हम कहै छिऐ- अहं चित्रं लिखामि। गजलक विषय अलग होइत अछि, गजलशास्त्रक अधारपर भजन लिख देलासँ ओ गजल नै भऽ जाएत। अरबीमे तँ गजलक अर्थे होइ छै स्त्रीसँ वार्तालाप। गजल प्रेम विरहक बादो, नै पौलाक बादो, लोकापवाद आ तथाकथित अवैध रहलाक उत्तरो प्रेमक रस लैत अछि। ई प्रेम भगवान आ भक्तक बीच सेहो भऽ सकैत अछि, शारीरिक आ आध्यात्मिक भऽ सकैत अछि। ई राधाक प्रेम भऽ सकैत अछि तँ मीराक सेहो। ई प्रेम दुनू दिससँ हो सेहो जरूरी नै। भावनाक उद्रेक आ संगमे गजल कहि कऽ आत्मतुष्टिक लेल गजलकार भावनाक उद्रेककेँ क्षणिक नै वास्तविक आ स्थायी बनाबथि तखने नीक गजल लिखि सकै छथि।
बहर आ छन्दक मिलानी
वर्ण छन्दमे तीन-तीन अक्षरक समूहकेँ एक गण कहल जाइत अछि। ई आठ टा अछि-
यगण U।।
रगण ।U।
तगण ।। U
भगण । U U
जगण U। U
सगण U U ।
मगण ।।।
नगण U U U
एहि आठक अतिरिक्त दूटा आर गण अछि- ग / ल
ग- गण एकल दीर्घ ।
ल- गण एकल ह्रस्व U
एक सूत्र- आठो गणकेँ मोन रखबा लेल:-
यमाताराजभानसलगम्
आब एहि सूत्रकेँ तोड़ू-
यमाता U।। = यगण
मातारा ।।। = मगण
ताराज ।। U = तगण
राजभा ।U। = रगण
जभान U। U = जगण
भानस । U U = भगण
नसल U U U = नगण
सलगम् U U । = सगण
बहरे मुतकारिब मुतकारिब आठ–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – चारि बेर
वर्णवृत्त भुजंगप्रयात : प्रति चरण यगण (U।।) – चारि बेर। बारह वर्ण। पहिल, चारिम, सातम आ दसम ह्रस्व, शेष दीर्घ। छअम आ आखिरी वर्णक बाद अर्द्ध-विराम।
बहरे मुतकारिब चारि–रुक्न फ ऊ लुन (U।।) – दू बेर
वर्ण वृत्त सोमराजी यगण (U।।) – दू बेर। छह वर्ण। पहिल आ चारिम ह्रस्व, शेष दीर्घ। दोसर आ अन्तिम वर्णक बाद अर्द्ध-विराम।
मात्रिक रूप- प्रति चरण बीस मात्रा। पहिल, छअम, एगारहम आ सोलहम मात्रा ह्रस्व।
बहरे मुतदारिक मुतदारिक आठ–रुक्न फा इ लुन (।U।) – चारि बेर
वर्ण वृत्त स्रग्विणी रगण (।U।) – चारि बेर। बारह वर्ण। दोसर, पाँचम, आठम आ एगारहम ह्रस्व आ शेष दीर्घ। छअम आ आखिरी वर्णक बाद अर्द्ध-विराम।
मात्रिक रूप- प्रति चरण बीस मात्रा। तेसर, आठम, तेरहम आ अठ्ठारहम मात्रा ह्रस्व।
महजूफ: बहरे रमल मुसम्मन महजूफ फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। फा–इ–ला–तुन ।U।। फा इ लुन । U ।
मात्रिक छंद गीतिका -प्रति चरण २६ मात्रा। तेसर, दसम, सत्रहम आ चौबीसम मात्रा ह्रस्व।
गीतिका-वर्णवृत्त २० वर्ण एकटा सगण, दूटा जगण, एकटा भगण, एकटा रगण, एकटा सगण, एकटा लगण आ एकटा गगण। तेसर, पाँचम, आठम, दसम, तेरहम, पन्द्रहम, अठारहम आ बीसम वर्ण दीर्घ आ शेष ह्रस्व। पाँचम, बारहम आ अन्तिम वर्णक बाद अर्द्ध-विराम।
महजूज: बहरे मुतदारिक मुसम्मन महजूज (एहिमे सभटा मुज़ाहिफ अरकान) फा इ लुन । U । फा इ लुन । U । फा इ लुन । U । फा ।
वर्ण वृत्त बाला-१० वर्ण। प्रति चरण रगण । U । तीन बेर आ फेर एकटा दीर्घ ।
मात्रिक रूप- प्रति चरण सत्रह मात्रा। तेसर, आठम, तेरहम मात्रा ह्रस्व आ आखिरीमे एक दीर्घ । आकि दूटा ह्रस्व U
सोमदेवकेँ प्रबोध साहित्य सम्मान २०११ देल जाएत।
सोमदेव 1934- उपन्यासकार ओ कवि । साहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ सम्मानित । प्रकाशित कृति: चानोदाइ, होटल अनारकली (उपन्यास), काल ध्वनि (कविता संग्रह), चरैवेति (गीति नाट्य) सोम सतसइ (दोहा)।२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य) लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। २००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;यात्री-चेतना पुरस्कार, प्रबोध साहित्य सम्मान २०११।
साहित्य अकादेमी फेलो- भारत देशक सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार (मैथिली)
१९९४- नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी आ मैथिली कवि।
२०१०- चन्द्रनाथ मिश्र अमर (१९२५- )- मैथिली साहित्य लेल।
साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल)
२००७- पं. डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
पं. श्री उमारमण मिश्र
साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली
१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
२००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
२०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल" लेल
प्रबोध सम्मान
प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
प्रबोध सम्मान 2011- श्री सोमदेव (1934- )
यात्री-चेतना पुरस्कार
२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
२०१० ई.- डॉ. तारानन्द वियोगी, महिषी, सहरसा
कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान
२००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झा (कविता संग्रह “एना त नहि जे”)
२००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता” (नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश)
२०१० ई.- श्री महाप्रकाश (कविता संग्रह “संग समय के”)
मैथिली-समीक्षा विशेषांक: विदेहक हाइकू, गजल, लघुकथा, बाल-किशोर विशेषांक आ नाटक-एकांकी विशेषांकक सफल आयोजनक बाद विदेहक 15 जनवरी 2011 अंक मैथिली-समीक्षाक विशेषांक रहत। एहि लेल टंकित रचना, जकर ने कोनो शब्दक बन्धन छै आ ने विषएक, 13 जनवरी 2011 धरि लेखक ई-मेलसँ पठा सकै छथि। रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@videha.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १,६४३ ठामसँ ५३, ९३१ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,८२,६७८ बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर
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4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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