ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ७५ म अंक ०१ फरवरी २०११ (वर्ष ४ मास ३८ अंक ७५)
एहि अंकमे अछि:-
३.६.जगदीश प्रसाद मंडल
३.७.गजेन्द्र ठाकुर
विदेह ई-पत्रिकाक सभटा पुरान अंक ( ब्रेल, तिरहुता आ देवनागरी मे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाँक लिंकपर उपलब्ध अछि। All the old issues of Videha e journal ( in Braille, Tirhuta and Devanagari versions ) are available for pdf download at the following link.
मैथिली देवनागरी वा मिथिलाक्षरमे नहि देखि/ लिखि पाबि रहल छी, (cannot see/write Maithili in Devanagari/ Mithilakshara follow links below or contact at ggajendra@videha.com) तँ एहि हेतु नीचाँक लिंक सभ पर जाऊ। संगहि विदेहक स्तंभ मैथिली भाषापाक/ रचना लेखनक नव-पुरान अंक पढ़ू।
http://devanaagarii.net/ http://kaulonline.com/uninagari/ (एतए बॉक्समे ऑनलाइन देवनागरी टाइप करू, बॉक्ससँ कॉपी करू आ वर्ड डॉक्युमेन्टमे पेस्ट कए वर्ड फाइलकेँ सेव करू। विशेष जानकारीक लेल ggajendra@videha.com पर सम्पर्क करू।)(Use Firefox 3.0 (from WWW.MOZILLA.COM )/ Opera/ Safari/ Internet Explorer 8.0/ Flock 2.0/ Google Chrome for best view of 'Videha' Maithili e-journal at http://www.videha.co.in/ .)
Go to the link below for download of old issues of VIDEHA Maithili e magazine in .pdf format and Maithili Audio/ Video/ Book/ paintings/ photo files. विदेहक पुरान अंक आ ऑडियो/ वीडियो/ पोथी/ चित्रकला/ फोटो सभक फाइल सभ (उच्चारण, बड़ सुख सार आ दूर्वाक्षत मंत्र सहित) डाउनलोड करबाक हेतु नीचाँक लिंक पर जाऊ।
VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभूमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना, सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट सभक समग्र संकलनक लेल देखू "विदेह सूचना संपर्क अन्वेषण"
विदेह जालवृत्तक डिसकसन फोरमपर जाऊ।
"मैथिल आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाऊ।
१. संपादकीय
२. महासुन्दरी देवीकेँ मिथिला चित्रकला लेल 2011 क पद्म श्री
३. महासुन्दरी देवी (89 बर्ख) केँ मिथिला चित्रकला लेल 2011 क पद्म श्री देल जाएत। हिनका पहिने तुलसी सम्मान, शिल्पगुरू सम्मान भेटल छन्हि।
भारतक राष्ट्रपति 128 पद्म पुरस्कारक देलन्हि, जइमे 13 टा पद्म विभूषण, 31 टा पद्म भूषण आ 84 टा पद्म श्री पुरस्कार अछि। ऐ 128 मे 31 टा महिला छथि, एकटा डुओ( गणना लेल एक) आ 12 टा विदेशी/ एन.आर.आइ./ पी.आइ.ओ/ मृत्योपरांत वर्गसँ छथि ।
पद्म पुरस्कार कला, सामाजिक कार्य, सार्वजनिक सेवा, विज्ञान आ आभियांत्रिकी, व्यापार आ उद्योग, चिकित्सा, साहित्य आ शिक्षा, खेलकूद आ लोकसेवा लेल देल जाइत अछि। पद्म विभूषण उत्कृष्ट आ नीक, पद्म भूषण उच्च कोटिक नीक आ पद्म श्री नीक सेवा लेल देल जाइत अछि। गणतंत्र दिवसक अवसरपर एकर घोषणा होइत अछि आ राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति भवनमे मार्च-अप्रैलमे देल जाइत अछि।
४. भारतीय भाषा परिषदक युवा पुरस्कार गौरीनाथ (अनलकांत) केँ मैथिली लेल देल गेल
५. 22 जनवरी, 2011 केँ भारतीय भाषा परिषद, कोलकाताक युवा पुरस्कार (2009-10 ) गौरीनाथ (अनलकांत) केँ मैथिली लेल देल गेल।संगमे युवा पुरस्कार (2009-10 ) हिन्दी लेल नीलेश रघुवंशी, कोंकणी लेल राजय रमेश पवार आ गुजराती लेल जातून जोशीकेँ देल गेल अछि। 12 मार्च 2011 केँ युवा पुरस्कारसँ हुन्दी लेल कुणाल सिंहकेँ, उड़िया लेल दिलीप स्वयंकेँ, नेपाली लेल उदय क्षेत्रीकेँ आ कन्नड़ लेल विक्रम विसाजीकेँ सम्मानित कएल जाएत।
अनलकांत मैथिली त्रिमासिक "अंतिका"क सम्पादक छथि।
19 फरबरी, 2011 केँ भारतीय भाषा परिषद, कोलकाताक रचना समग्र सम्मान हिन्दी लेल केदारनाथ सिंहकेँ, तेलुगु लेल ए. रामापति रावकेँ, बांग्ला लेल जय गोस्वामीकेँ मराठी लेल अरुण साधुकेँ, हिन्दी लेल उदय प्रकाशकेँ, असमिया लेल इन्दिरा गोस्वामीकेँ, उर्दू लेल गोपीचन्द नारंगकेँ आ मलयालम लेल एम.टी.वासुदेवन नायरकेँ देल जाएत।
समारोहक विशिष्ट अतिथि- ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त श्री ओ.एन.वी.कुरुप आ श्री शहरयार।
६. "गोविन्द रचनावली": अनेको पत्र-पत्रिकामे छिड़िआयल स्व. गोविन्द चौधरी (1909-2002) क अनुपलब्ध रचना सबहक एक नवीन संग्रह "गोविन्द रचनावली"क नाम सँ पांचजन्य ट्रस्ट दिससँ 2010 मे प्रकाशित भेल, दरभंगामे पुस्तकक लोकार्पण पं चन्द्र नाथ मिश्र "अमर" केलनि। 264 पृष्ठक एहि पुस्तकमे लेखकक दू टा दुर्लभ फोटोक संग 23 टा कथा, एक टा एकांकी नाटक, आठ टा कविता, दू टा संस्मरण एवं मैथिली अनुवाद सहित लहेरियासराय ओकालातिखानासँ संवंधित एक टा अंग्रेजी लेखक संग्रह कैल गेल अछि। पुस्तकक संयोजन एवं सम्पादन प्रो. भीमनाथ झा तथा प्रो. प्रेम शंकर सिंह केलनि अछि।
सूचना: विदेहक ०१ मार्च २०११ अंक महिला अंक आ १५ मार्च २०११ अंक होली विशेषांक रहत। ०१ मार्च २०११ अंक लेल महिला लेखक लोकनिसँ गद्य-पद्य रचना २६ फरबरी २०११ धरि आमंत्रित अछि, रचनाक ने विषयक सीमा छै आ नै शब्दक। आनो लेखक महिला केन्द्रित गद्य-पद्य २६ फरबरी २०११ धरि पठा सकै छथि। होली विशेषांक लेल हास्य विधाक गद्य-पद्य रचना अहाँ १३ मार्च २०११ धरि पठा सकै छी। रचना मेल अटैचमेण्टक रूपमे .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठाओल जाए। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहए जे ई रचना मौलिक अछि आ पहिल प्रकाशनक लेल विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि।
( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ एखन धरि १०७ देशक १,६६९ ठामसँ ५५, ४७७ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,८७,८१० बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
गजेन्द्र ठाकुर http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
१.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र- पोथी समीक्षा- गामक जिनगी- जगदीश प्रसाद मण्डल २.राजदेव मण्डल- कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक (गजेन्द्र ठाकुर) लेल पत्रक शेषांश- ३. डाॅ. योगानन्द झा- मैथिली बाललोककथा : स्थिति आ अपेक्षा
१
डॉ. कैलाश कुमार मिश्र-
पोथी समीक्षा- गामक जिनगी- जगदीश प्रसाद मण्डल
समाजमे परिवर्तन किंवा परिस्थितिक अनुसार कुनो अल्टरनेटिव उपायक ब्यौंत करक हेतु हमेशा कुनो अवतार, पैगम्बर, महान पुरूष, विद्वान, राजा राममोहन राय अथवा महात्मा गान्धीक जरूरत नै। अनेको परिस्थितिमे ऐ तरहक कार्य कियोक- गामक सामान्य एवं निरक्षर महिला, रिक्शा चलबैबला, बारह बर्खक बालिका, चाह बेचैबला युवक, गामक लोककेँ बेर विपत्ति आ पावनि-तिहारमे कार्य आबए वाली वृद्ध महिला, पोखरिमे माछक धंधा करैबला मल्लाह कऽ सकैत अछि। प्रकृति आ संस्कृतिमे सामंजस्य कए कऽ मनुष्य रहि सकैत अछि। जापानमे बेर-बेर भुकम्प होइत छैक। तकर मतलब तँ ई नै जे जापानक लोक जापाने छोड़ि दिअए! जापानक लोक अपना देशसँ बड्ड सिनेह रखैत छथि। ओइ भूमिक रचना आ भुकम्पकेँ देखैत घरक रचना एवं संस्कृतिक विकास करैत छथि। जापान विश्वमे एक चमकैत आ उदीयमान नक्षत्र अछि। तहिना अपन 19 गोट कथाक माध्यमसँ जगदीश प्रसाद मण्डल कहए चाहैत छथि जे बाढ़ि, रौदी एवं अन्य प्राकृतिक विपदाकेँ समाधान अगर मिथिलाक लोक चाहथि आ लगनसँ कार्य करथि तँ स्थानिय तौरपर कएल जा सकैत अछि। लोकक जत्थाक-जत्था पड़ाइनकेँ रोकल जा सकैत अछि। कथामे गामक परिवेश आ परिस्थितिकेँ सटीक वर्णन कएल गेल अछि। अपन छोट-छोट कथासँ लेखक पाठकेँ सोचबाक लेल विवश कऽ दैत छथि। ऐ कथा-संग्रहक नाम थीक- गामक जिनगी। गामक जीवनक लगभग प्रत्येक परिस्थितिक चर्चा अलग-अलग रूपेँ अलग-अलग कथाक माध्यमसँ कएल गेल अछि।
पहिल कथा थीक भैंटक लावा। ऐ कथाक तुलना कुनो भाषाक कुनो कालजयी लेखक केर कथासँ कएल जा सकैत अछि। भयंकर बाढ़ि आ बाढ़िक विभाषिका संगहि-संग बाढ़िक बाद जे लोककेँ समस्याक समना करए पड़ैत छै तकर बेजोड़ वर्णन। एहिना स्थितिमे सामान्यतया साहित्यकार लोकनि जखन कुनो जमिन्दारक चरित्रक वर्णन करैत छथि तँ ओकरा क्रूर, नृशंस, हृदएहीन बना मात्र ओकर व्यक्तित्वक गलत पक्षक वर्णन करैत छथि। लेकिन मंडलजी त सामंजस्य स्थापित करबा में माहिर छथि। एहि कथा में महाजनों ओतबे परेशां अछि जतेक कुनो आन ग्रामीण.। बल्कि महाजन ज्यादे परशान अछि- कोना अपन इज्जत आ कोना गामक लोक सबहक भारपन राखत? कथा में माहाजन श्रीकान्त परेशान जे बाढ़िसँ धानक फसलि सुड्डाह। “एक्को धुर धान नहि बंचल अछि जे अगहनोक आशा होइत। जे सभ दिन कीनि-बेसाहि कऽ खाइत अछि ओकरा तँ कोनो नै मुदा हमरा लोक की कहत? चाह-पीबिते-पीबिते श्रीकान्तकेँ चौन्ह आबए लगलन्हि। मन पड़लनि जे बाबा कहने रहथि जे दरबज्जापर जँ क्यो दू-सेर वा दू-टाका मांगए लेल आबए तँ ओकरा ओहिना नहि घुमबिहक। ओहिसँ लक्ष्मी पड़ाइ छथि।” लेखक माहाजनक वेदनाकेँ सेहो उजागर करैमे सफल छथि। समान्यतया अन्य लेखक लोकनि ऐ तरहक भावनाकेँ नै व्यक्त कऽ सकैत छथि। श्रीकान्त बजै छथि- “जहिना सभ किछु बाढ़िमे दहा गेल तहिना जँ अपनो सभ तुर भसि जइतहुँ, से नीक होइत। जाबे परान छुटैत, ततबे काल ने दुख होइत। आगू तँ दुख नहि काटय पड़ैत।”
भैंटक लावा कथाक दोसर आ मुख्य आधार या विशेषता एक निरक्षर महिला- मलाहिन द्वारा भैंटक खोज अनाजक रूपमे करब थीक। कोना भैंटिक दानाकेँ जमा करब, कुटब, छाँटब आ लावा भुजबक प्रक्रिया जे जीबछी मलाहिन करैत अछि से पाठककेँ एको क्षण कथासँ भटकऽ नै दैत अछि। भैंटक दानाक लावा गामक लोककेँ जीबाक एक पैघ सामग्री बनि जाइत अछि आ ओकर श्रेय जीबछीकेँ जाइत छै। जीबछीक लावाकेँ चीखैत श्रीकान्त पत्नीसँ कहैत छथि- “एत्ते सुन्नर वस्तुकेँ एखन धरि जनितहुँ नहि छलहुँ। धन्य अछि जीबछीक ज्ञान आ लूरि जे एहेन सुन्नर हराएल वस्तुकेँ ऊपर केलक। साक्षात देवी छी जीबछी। जाउ, सन्दुकमे सँ एक जोड़ी साड़ी आ आंगी निकालने आउ। जीबछीकेँ अपना ऐठामसँ पहिरा कऽ विदा करब। गरीब-दुखियाक देवी छी जीबछी।” ऐसँ ई पता चलैत अछि जे लेखक समाजक सभ वर्गक लोककेँ ध्यानमे रखैत अपन रचनाकेँ आगा बढ़बैत छथि। जीबछीक ज्ञानक सम्मान होइएत अछि आ जीब्ची एकता क्रांति लाबैत अछ। आहें क्रांति जे समाज में एकटा जीवन जीबाक आधार देत अछि ।
नारी ज्ञान आ बिपत्तिक क्षणमे नारीक सुझाएल ओरियात जइसँ रौदीकेँ, विभिषिकाकेँ सामाना कएल जा सकैत अछि केर ज्ञान बिसाँढ़ कथाक माध्यमसँ होइत अछि। कथाक पात्र डोमन केर पत्नी सुगिया द्वारा ई कहब जे, “जकरा खाइ-पीबैक ओिरयान करैक लूरि बुझल छैक ओ कथीक चिन्ता करत?” ऐ बातक प्रमाण अछि। लगातार तीन-चारि वर्ष रौदी हेबाक कारणे गामक गाम लोक खाली कऽ परदेश भागि गेल। मुदा सुगियाक सोझाएल ओिरयाॅनसँ ओकर पति डोमनकेँ जखन ऐ बातक भान होइत छैक जे पुरैनिक जड़िमे बिसाँढ़ फड़ैत छैक। अल्हुए जकाँ। आ ओ अपन कार्यमे लागि जाइत अछि। कोदारि चलाबैमे जखन परेशानी होइत छै तँ डोमनकेँ सुगिया ई कहि कार्य करबाक प्रति जोश उत्पन्न करैत छैक- “हमर चूड़ी-साड़ी पहीर लिअ आ हमरा धोती िदअ। तखन कोदारि पाड़ि कऽ देखा दै छी।” पुरुषक दंभ ओकरा गतिमान बना देत छैक फेर जोशमे आबि डोमन कोदारि भांजय लगैत अछि। तकर परिणाम ई जे बिसाँढ़क जड़ि भेटलैक। बिसाँढ़क वर्णन जे लेखक करैत छथि तँ यात्रीक कटहरक वर्णनक स्मरण होमय लगैत अछि! बिसाँढ़क वर्णन ने देखू- “उज्जर-उज्जर। नाम-नाम। लठिआहा बाँस जेकाँ। गोल-गोल, मोट। हाथी दाँत जेकाँ चिक्कन, बीत भरिसँ हाथ भरिक। पाव भरिसँ आध सेर धरिक।” लागत एना जेना बिसाँढ़क जड़िसँ उत्म खाद्य पदार्थ दुनियामे कुनो नै! बातो सैह अगर लोक के किछु खेबाक लेल नहि उपलब्ध हेतैक त किछु त चाही जाही स प्राणरक्षा भा सके। ओहो खोज एहेन जे लोकक दोसर ठाम जेनइए रोकि दे । बिसाँढ़ एक उत्तम उपाय अथवा व्योंत बनि जाएत अछि।
पीरारक फड़ कथामे मण्डलजी एक पात्र धनियाक माध्यमसँ पीरारक फड़'क विशेषताक वर्णन करैत छथि। कोना धनिया अपन पति पिचकुन केर सहायतासँ पीरारक फड़ तोरि-तोरि हाटे-हाटे गामे-गामे बेचैत अछि आ पिचकुन अनेरूआ माछ मारि बेचबो करैत अछि आ खाइतो अछि। धनिया अपन युक्तिसँ पीरारक फड़ आ अनेरूआ माछसँ अपन आर्थिक तंगीकेँ दूर करैत अछि आ जीवनमे सभ किछु जोड़बाक प्रयास। अगर मनुष्य लगन स कार्य करे त सब किछु संभव छैक । अनेरे गाम या मिथिला स पड़ा गेने समस्याक समाधान नहि भा सकैत अछि ।
अनेरूआ बेटा एक एहेन गरीब गृहस्तक थीक जे लगभग पचासक बयसमे अएलाक बादो संतानहीन छल गंगाराम। हाटसँ आबएकाल जखन एकटा जनमौटी अनेरूआ बच्चाकेँ कोरामे लऽ कऽ गंगाराम घर अबैत अछि आ घरवालीकेँ कहैत छैक- “आइ भगवान खुश भऽ एकटा बेटा देलनि।” दुनू परानी प्रसन्न भऽ ओइ बेटाकेँ पोसए लागल। गंगाराम आ विशेष रूप स ओकर पत्नीक ओही अनेरुआ शिशुक प्रति प्रेमक अपूर्व सोहनगर दृश्य उत्पन्न करैत अछि ई कथा। शरीरसँ खिन्न होमाक कारने गंगाराम किछु उपार्जन करबा जोकरक नै रहल। बेटा मंगल किछु पढलक बाद आर्थिक विपन्नताक कारणे पढ़ाइ छोड़ि चाहक दोकान खाेिल लैत छै। मंगल अपन पढ़ाइ चाहक दोकानोमे रहि करैत अछि। मरै काल गंगाराम मंगलकेँ ओकर जन्मक कथा बता देने रहैक। मंगल किताबक संग-संग समाजक बेबहारक अध्ययन सेहो करैत अछि। मंगलक कथा एकटा पत्रकार सुनैत छथि आ ओकरा छापि दैत छथिन्ह। मंगलक एहने कथा पढ़ि सुनयना नामक एक पढ़लि नायिका मंगल लग अबैत छथि आ मंगलक प्रतिभासँ प्रभावित भऽ सुनयना अपन वकील पितासँ दलिल दऽ मंगलसँ विवाह करए लेल पिताकेँ तैय्यार कऽ लैत छथि। आ अंततः मंगल आ सुनयनाक विवाह भऽ जाइत छैक। बिम्बक दृष्टिकोने ई कथा उत्तम संगही अहि कथा केर मध्यम स लेखक समाजक दू वर्गके जोडबक प्रयास केलन्हि अछि। परिवेशक वर्णन यथार्थ आ उत्तम बुझना जायत। एहनो बात नहि जे एहि तरहक कथा पूर्व में नहि लिखल गेल हो मुदा ए कथा एकटा नव परिव्षक जन्म देत अछि, चीज के लिखबाक एकटा सहज आ सुन्दर शैली प्रस्तुत करैत अछि।
दूटा पाइ कथा ओइ तरहक नवयुवकपर कटाक्ष करैत अछि जे दिल्ली, मुम्बई जा कऽ ओतए केर चकाचौंधमे अपन जड़िकेँ बिसरि जाइत अछि। मुदा माइयक ममत्व तँ अथाह समुद्र होइत छैक। फेकुआ अपन कमाइकेँ वस्त्र आ फैशनमे बरबाद कऽ लैत अछि। बिसरि जाइत अछि जे ओकर विधवा माए गाम में कोना जीबैत हेतैक। माए बेटा परदेश गेल अछि आ वापस आएत तँ कमा कऽ ढौआ लाओत तकर ख्याली पोलाव बनबैत छैक।
परन्तु जखन ओकरा बेटाकेँ यर्थाथक पता चलैत छैक तखनो ओ अर्थात माए अपन महानताक परिचए देबए मे बाज नै अबैत छैक। माए बेटाकेँ कहैत छैक- तों वापस गाम आबि जो। हमरा तोहर कमाइक जरूरत नहि अछि। भाड़ा नहि छौक तँ ककरोसँ पैंच लऽ ले, अतय अएलापर दऽ देबै।
बोनिहारिन मरनी कथा मार्मिक ढंगे लिखल गेल अछि। बरबस सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला क स्मरण हरियर भा जेट अछि: वह तोडती पत्तथर इलाहाबाद के पथ पर/ कथाक एक-एक पांति अर्थपूर्ण लागत बिना कुनो बनबत के यथार्थ के जोड़ैत सत्य के बाचैत। कथाक मुख्य पात्र पचास वर्षक मरनीक पति, बेटा आ पुतोहू तीनू बज्र खसलासँ गाछक तरमे खून बोकरि कऽ मरि जाइत छै। असहाय अबला लाचार भऽ पाँच वर्षक पोता आ आठ वर्षक पोतीक आशाक संग जीब रहल अछि। मरनीक देह आ जीबनक विवरण देबामे लेखकक जवाब नै- “कारी झामर एक हड्डा देह, ताड़-खजुरपर बनाओल चिड़ैक खोंता जेकाँ केश, आंगुर भरि-भरिक पीअर दाँत, फुटल घैलक कनखा जेकाँ नाक, गाइयक आँखि जेकाँ बड़का-बड़का आँखि, साइयो चेफड़ी लागल साड़ी, दुरंगमनिया आंगी फटलाक बाद कहियो देहमे आंगीक नसीब नहि भेल। बिना साया-डेढ़ियाक साड़ी पहिरने। यएह छी मरनी।” राष्ट्रीय राजमार्गक पक्की सड़कक िनर्माणमे जखन मरनीकेँ गिट्टी फोड़ैक कार्य भेटैत छै तँ अपन थाकल आ जीर्न शरीर लऽ सेहो अपन छोट-छोट बच्चा सभ लेल ओ ओइमे तल्लीन भऽ जाइत अछि। लेखक गिट्टी फोड़ैत मरनीक बड़ा सजीब आ कारूणिक वर्णन करैत छथि : “पचास वर्खक मरनी जे देखैमे झुनकुट बूढ़ि बूझि पड़ैत। सौंसे देहक हड्डी झक-झक करैत। खपटा जेकाँ मुँह। खैनी खाइत-खाइत अगिला चारू दाँत टूटल। गंगी-जमुनी केश हवामे फहराइत। तहूमे सड़कक गरदासँ सभ दिन नहाइत। मुदा तैयो मरनी अपन आँखि बचेने रहैत। जखन पुरबा हवा बहै तँ पछिम मुँहे घुरि कऽ गिट्टी फोड़ए लगैत आ जखन पछवा बहए लगैत तँ पूब मुँहे घुरि जाइत। बीच-बीचमे सुसताइयो लैत आ खैनियो खा लैत। मुदा तैयो ओकर मुँह कखनो मलिन नै होइ। किएक तँ हृदएमे अदम्य साहस आ मनमे असीम विश्वास सदिखन बनल रहैत। तेँ सदिखन हँसिते रहए।”
मुदा मरनीमे आत्मबल छैक। जखन ठीकेदार मरनीसँ बात करैत छैक तँ अाेकर मन कानय लगैत छैक। ई लेखकक महानता कहल जा सकैत अछि। ठीकेदार की सोचैत अछि से देखू- “एत्ते भारी काज केनिहारक देहपर कारी खट-खट कपड़ा छै, तहूमे सइयो चेफड़ी लागल छै, काज करै जोकर उमेर नै छै, तैपर एते भारी हथौरी पजेबापर पटकैत अछि। ठीकेदारक मन दहलि गेलै।” फेर लेखक द्वारा ठीकेदार मनोदशाक चित्रण देखू : “जहिना आकास आ पृथ्वीक बीच क्षितिज अछि, जाहिठाम जा चिड़ै-चुनमुन्नी लसकि जाइत अछि, तहिना ठीकेदारक मन सुख-दुखक बीच लसकि गेल। जेना सब कुछ मनक हरा गेलै। शून्न भऽ गेलै। ने आगूक बाट सूझै आ ने पाछुक। मरनीसँ आगू की पूछब से मनमे रहबे ने केलै। साहस बटोरि पुछलक- भरि दिनमे कते रूपैया कमाइ छी?” ठीकेदारक प्रश्न सुनि मरनीक मोनमे झड़क उठलै। बाजलि- “कते कमाएब! जेहने बैमान सरकार अछि तेहने ओकर मनसी छै। चारि दिन एकटा पजेबाक ढेरी फोड़ै छी तँ तीन-बीस रूपैया दैए। आइसँ तीन तूरक पेट भरत? भरि दिन ईंटा फोड़ैत-फोड़ैत देह-हाथ दुखाइत रहैए मुदा एकटा गोटियो कीनब से पाइ नै बॅचैए।”
लेखक कथाक निष्कर्ष बड्ड संक्षेपमे करैत छथि : ठीकेदारक आँखिमे नोर आबि गेलै। मनुष्यता जागि गेलै। मुदा ई मनुष्यता कते काल जिनगीमे अँटकतै? जिनगी तँ उनटल छै। जाहिमे मनुष्यता नामक कोनो दरस नहि छैक।
हारि-जीत कथा Internal innovation केर संदेश दैत अछि। एकटा कुम्हारक परिवार जकर गाम कोसीक बाढ़िसँ कोसीमे धँसि जाइत छैक। अपन जरूरी समान लऽ अन्तहीन दिशा िदस बढ़ैत अछि। रस्तामे लछमीपुरक एक बटोही भेट जाइत छै। लछमीपुरमे कुम्हार नै रहैत छैक। सोमन ओही गाममे बैस जाइत अछि धंधा चलि पड़ैत छैक। लेखककेँ विशेषता ई जे कुम्हारक चाकसँ सम्बन्धित तमाम प्रक्रियाक बनाएल समाग्रीक सेहो पैघ फेररिहत प्रस्तुत करैत छथि। लागत जेना कुनो कुम्हार अपन विवरण प्रस्तुत कऽ रहल अछि। खएर : कथा आगाँ बढ़ैत छैक कुम्हारक एक छोट बेटा मेलामे हेरा जाइत छैक। बादमे नै भेटैत छैक। स्टील आ आन तरहक वर्त्तन अएलाक कारणे परम्परागत वर्तन केर मांग खत्म भऽ जाइत छैक। अहिना स्थितिमे दुनू प्राणी इहो गाम छोड़बाक प्रण करैत अछि। सभ ब्यौंत कऽ लैत अछि। ठीक ओही समएमे बिछुरल बेटा जवान भऽ आबि जाइत छैक। समएक अनुसारे ओ नव-नव चीज बनाएब सीख आएल छैक। तँए पुन: कुम्हारक धंधा चलि जाइत छैक। लेखक कथाक अन्तमे शायद ई कहबाक प्रयास केलन्हि अछि जे परम्पराकेँ नूतन परिप्रेक्ष्यमे अपने-आपकेँ मिलान कऽ कऽ चलक चाही। अगर समय अनुसरे परंपरा में परिवर्तन आनब त परंपरा कहिओ नहि मरत। कुनो बस्तुक उपाय जरुरी भागने कही कल्याण संभव छैक?
ठेलाबला कथा एक सिद्धान्तक जन्म दैत अछि। भोला नौकरीक तलाशमे कलकत्ता जाइत अछि। ओतय ठेला चलबए लगैत अछि। दूटा बेटा गामपर छैक तकरा कष्टों काटि पढ़बैत अछि। मैट्रिक पास केलाक बाद दुनू भाँइ के अपन पीटक पारिस्थितिक आभाष होइत छैक। पैसाक तंगीक कारण आगाँ नै पढ़ि पबैत छैक, परन्तु गामक स्कूलमे शिक्षा-मित्रक नौकरी दुनू भाँइकेँ लागि जाइत छैक। जखन भोलाकेँ दुनू पुत्र हुनका पत्र लीख कऽ कहैत छन्हि जे आब गाम आबि जाऊ तँ भोला गाम आबि जाइत छथि। बेटाक पत्र पढ़लाक बाद भोलाक मनोदशाक चित्रण बड्ड मार्मिक लगैत अछि : “समाजसँ निकलि छातीपर ठेला घीचि, दूटा शिक्षक समाजकेँ देलिऐक, की ओहि समाजक आरो ऋृण बाकी छैक?” ए कथ्य अपना आप में अभूत किछु छैक!
जीविका कथाक माध्यमसँ परम्परासँ जुड़ल मानक परिवेशसँ सिनेह, परिवारक दायित्वक िनर्वाह करक संदेश देल गेल अछि। लोक शहरीकरणक नकलमे अपन अहितत्वक आ संस्कार कोना समाप्त कऽ लैत अछि, तकर चित्रण कएल गेल अछि। माता-पिताक प्रति दायित्वक िनर्वाह केने कोन लाभ भऽ सकैत अछि तकर वर्णन।
रिक्साबला कथा ई संदेश दैत अछि जे सम्पति अथवा पैसा आ भोग-विलासक वस्तुसँ लोक प्रसन्न नै रहि सकैत अछि। प्रसन्न रहबाक लेल आत्मसंतोष भेनाइ जरूरी। कथाक रचना प्रभावकारी आ उद्देश्यपूर्ण। पात्रकेँ कथा आदिसँ अंत धरि अपनामे सराबोर केने रहैत अछि।
मिथिलामे डोका, सितुआ किंवा खूरचन आदिसँ चून बनेबाक प्रथा प्राचीन छल। ऐ कार्यक सम्पादन करैत छलीह मल्लाह वर्गक महिला लोकनि आब लगभग ई प्रथा समाप्त भऽ गेल। ओकरा बदला लोक आब एक्केठाम बजारसँ चून कीन कऽ लऽ अबैत अछि। सुखल चून। जकरा सहजतासँ गील कय वएह मलाह सभ बजारे-बजारे आ घरे-घरे बेचैत अछि। एे कथाकेँ पढ़लासँ समाप्त प्राय परम्परापर दृष्टि देबाक एक प्रयास कएल गेल अछि।
शिक्षा आ संस्कार अलग-अलग चीज थीक। गामसँ पढ़ इन्जिीनीयर बनि गलत-सलत पैसा कमा जतय गामक दू पितयौत भाय अवकाश प्राप्त करबाक बाद गाममे रहि फइलसँ मकान बनबए लेल सीमित घरारीमे सँ धुरफन्दी कय 10 धूर जमीन ज्यादे लेबाक ब्यौंतमे लागल छथि। डिहक बटबारा कथामे गामक लोक हुनका दुनूकेँ ऐ गलत मंसाकेँ बुझि जाइत अछि आ दुनूसँ पैसा ठकि लैत अछि। अंन्तत: जमीन दुनूमे बहिस्सा बराबर बॅटैत अछि। ने ककरो कम आ ने ककरो बेसी। गामक लोकक दृष्टिमे पढ़ला-लिखलाक बादो दुनू इन्जिनीयर चरित्रहीन आ गामक वातावरणकेँ प्रदुषित केनिहार मानल जाइत छथि। लेखक ऐ परम्पराकेँ मर्मज्ञतासँ उजागर करैत छथि।
भैयारी कथा शहरी जीवनक चकाचौंधसँ लोककेँ सावधान करैत अछि। जे ऐ बातकेँ नहि बुझैत छथि आ अपन परम्परा आ संस्कारकेँ नै ध्यान में राकेट गामक जमीन जत्था बेच, गामक जड़ि के समाप्त कए जे शहरमे बैस जाइत अछि तकर परिणाम नीक नै होइत अछि। ई कथा लेखक केर आत्मासँ नजदिक छन्हि।
बहीन कथाक माध्यमसँ मण्डलजी कहए चाहैत छथि जे केबल माइयक कोरासँ जन्म लेने बहिन या माए नै भऽ सकैत अछि। एक दिस जतऽ अपन बेटी अपना कार्यमे अतेक लीन अछि जे मरनासन्न माएकेँ देखबाले समए नै निकालि पाबि रहल अछि अोतहि दोसरठाम माइयक एक मुसलमान सखी हल्ला-फंसाद रहितहुँ रातिमे चोरा कऽ माएकेँ देखए अबैत अछि। ई कथा हिन्दु-मुसलमानक संग आपसी प्रेमक गंगा-जमुनी प्रवाह कहल जा सकैत अछि। मैथिलीमे ऐ तरहक कथाक रचना हेवाक चाही।
मण्डल जीक रचनाक एक विशेषता हमरा जनैत पात्रक नामकरण छन्हि। हरेक नामक प्रति साकांक्ष रहै छथि आ उद्देश्यपूर्ण ढंगसँ नाम रखैत छथि। एकर उत्तम उदाहरण थीक एक कथा पीहुआ। पात्रक नाओं पीहुआ किएक पड़लैक तकर विवरण सुनू : “छठियार राति, दाइ-माइ पुहुपलाल नामकरण केलखिन। जखन ओ आठ-दस बर्खक भेल, तखन जाड़क मास बाधमे फानी लगबए लागल। गहींर खेत सभमे सिल्लियो आ पीहुओ आबि-आबि धान चभैत। जकरा ओ फानी लगा-लगा फॅसबैत। अपनो खाइत आ बेचबो करैत। किछु दिनक बाद स्त्रीगण सभ पीहुआबला कहए लगलैक। फेर किछु दिनक पछाति भौजाइ सभ पीहुआ कहए लगलैक। तँए पुहुपलाल बदलि पीहुआ भऽ गेल।”
पछताबा एक एहेन कथा थीक जकरा माध्यमसँ ई कहक प्रयास कएल गेल अछि जे आधुनिक आ तकनीकि शिक्षा प्राप्त कए लोक बाहर भागि जाइत अछि। बाहर जाए जीवन मशीन भऽ जाइत छैक। रघुनाथ किछु एहने कार्य केलन्हि। चलि गेलाह अमेरिका। मुदा अन्तमे अपन गलतीक अनुभव भेलन्हि आ अपने-आपकेँ बोनिहार-मजदुरसँ निषिह मानए लेल तैय्यार भेलाह- “हमरासँ सइयो गुना ओ नीक छथि जे अपना माथापर घैल उठा मातृभूमिक फुलवाड़ीक फूलक गाछ सींचि रहल अछि। अपन माए-बाप समाजक संग जिनगी बिता रहल छथि। आइ जे दुनियाँक रूप-रेखा बनि गेल अछि ओ किछु गनल-गूथल लोकक बनि गेल अछि। जिनगीक अन्तिम पड़ावमे पहुँचि आइ बुझि रहल छी जे ने हमरा अपन परिवार चिन्हैक बुद्धि भेल आ ने गाम समाजकेँ।”
डॉ. हेमन्त प्रतिनिधित्व करैत छथि ओइ तमाम डाक्टर समुदायकेँ जे अपन विधाकेँ मर्यादा बिसरि शहरी जीवन जीबैत अछि, पैसा कमाइत अछि, गाम-घर किंवा दुर्गम स्थानमे जेनाइ जहल जेनाइ किंवा कालापानीक सजा बुझैत अछि। जखन डाॅ. हेमन्त कोसिकन्हामे बसल बाढ़िसँ प्रभावित गाम जाइत छथि तँ एक बारह वर्षक किशोरी सुलोचना अपन व्यवहार आ गामक लोकक सिनेह पाबि ओ कृत-कृत भऽ जाइत छथि। अभावक सिनेह कतेक रमनगर आ सुअदगर भऽ सकैत अछि। सुलोचनाक मुँहसँ गाम आ शहरी जीवनक तुलना मिरचाइ आ चीनीक कीड़ासँ कए लेखक कहानीमे नव बिम्वक रचना करैमे सफल होइत छथि। कथामे सुलोचना डॉ. हेमन्तकेँ कहैत छन्हि- “हम तँ बच्चा छी डाॅक्टर सहाएब तेँ बहुत नै बुझै छी। मुदा तइयो एकटा बात कहै छी। जहिना चीनी मीठ होइत अछि आ मिरचाइ कड़ू। दुनूमे कीड़ा फड़ै छै आ ओइमे जीवन-यापन करैत अछि। मुदा चीनीक कीड़ीकेँ जँ मिरचाइमे दऽ देल जाइए तँ एको क्षण नै जीबित रहल। उिचतो भेलै। मुदा की मिरचाइक कीड़ाकेँ चीनीमे देलाक बाद जीबित रहत? एकदम नहि रहत। तहिना गाम आ बाजारक जिनगी होइत।”
बाबी कथाक माध्यमसँ लेखक एक एहेन सामाजिक महिलासँ परिचए करबैत छथि जे ओना तँ अपन नाओं लिखऽ नै जनैत छथि परन्तु व्यवहार आ बुद्धिसँ समास्त गाममे पूज्या थीकी। गामक लोक कुनो कार्य हुनका पुछने बिना नै करैत अछि। बाबी सबहक लेल छथि आ सभ बाबी लेल तत्पर। कथाक प्रारम्भमे एकटा उपमा खाटी देसी आ औरिजनल लगैत अछि कातिक मासक वर्णन करैत बाबी कहैत छथि जे ई एहेन मास थिक जैमे लुंगिया मिरचाइक घौंदा जकाँ पावनिक घौंदा अछि। एहेन उपमा हमरा अन्यत्र नै भेटल अछि। अही कथामे “पथियामे दूटा नारियल, पान छीमी केरा, दूटा टाभ नेबो, दूटा दारीम, दूटा ओल, दूटा अड़ुआ, दूटा टौकुना, दूटा सजमनि, एक मुट्ठी गाछ लागल हरदी, एक मुट्ठी आदी नेने रहमतक माए आंगन पहुँचि बाबीक आगूमे रखि बाजलि- बाबी अपनो डालीले आ हिनकोले नेने एलिएनिहेँ।” ई कथा हिन्दु-मुसलमानक बीच प्रेम आ सांस्कृतिक एकताक कड़ी थीक। अपन बेटा रहमत जे कि बच्चामे बीमार भऽ गेलैक आ बाबी ओकरो लेल छठि मइयासँ कबुला कऽ देलथिन्ह, तँए ओकर माए बाबीक माध्यमसँ पाँच वर्ष धरि निष्ठाक संग छठि मनबैत अछि। ओहिना उपास, सभ चीजक पालन, छठिक प्रति आस्था। बाबी जखन खरनाक खीरक प्रसाद रहमतक माएकेँ दैत छथिन्ह तँ ओ खुशीसँ नाचि उठैत अछि। छठि इमयाकेँ गोर लगैत छन्हि आ बेटाकेँ िनरोग जिनगी जीबैक आशा सेहो लगा लैत अछि।
कामिनी कथामे कामिनीक पिता भैयाकाका कामिनीक विवाहमे पाँच लाख टाका खर्च केलाक बादो ऐ बातकेँ स्वीकारैत छथि जे ओ कंंजुसाइ केलन्हि। किएक? तँ हुनका दस बीघा जमीन आ अन्य सम्पति। कामिनी तीन भाए-बहिन माने दू भाँइ आ एक बहिन। खेतक मात्र कीमत अस्सी लाख! तै हिसाबे कामिनीक हिस्सा 25 लाख टाकासँ बेसी होमाक चाही मुदा खर्च भेलन्हि पाँच लाख। ओ इहो मानैत छथि जे हिनका लेल जेहने बेटा तेहने बेटी। तँए जखन कामिनीक पति दोसर पत्नी आनि लैत छथि आ कामिनीक प्रति हुनकर सौतिन आ पति किछु प्लान बनबए लगैत छथि तँ कामिनी अप्पन दूटा बच्चाकेँ लऽ सोझे गाम आबि जाइत छथि।
सभ कथा प्रभावोत्पादक आ शिक्षाप्रद लागत। मण्डल जी लोक विधा अथवा फाॅकलाेर केर नीक ज्ञाता छथि। गाम-घरक परिवेशक ठेठ उदाहरण, उपमा, कहावत, इत्यादिक समावेश देखब तँ मोन तीरपीत-तीरपीत भऽ जाएत। रौदीक वर्णन देखू : “जे मूस अगहनमे अंग्रेजी बाजा बजा-बजा सत-सतटा विआह करैत छल ओ या तँ बिलमे मरि गेल वा कतऽ पड़ा गेल तेकर ठेकान नहि।”
“डोमनक मनमे आशा रहए जे जहिना लुल्हियो कनियाँ बेटा जनमा कऽ गिरथाइन बनि जाइत, तहिना तँ पानि भेने परतियो खेत हएत किने।”
पीरारक फड़क वर्णन करैत मण्डलजी लीखै छथि- सहतक कोथी जेकाँ चोखगर काँट, डारि रूपी पहरूदारकेँ सजौने। छड़गर-छड़गर डािरमे चौरगर-चौरगर पात जेना इन्द्रकमल वा तगड़ फूलक होइत। तहिना फूलो।
आन उदाहरण जेना
“अनकर पहीरि कऽ साज-बाज छीनि लेलक तँ बड़ लाज।”
“गांगाी-जमुनी केश हवामे फहराइत।”
“मेघनक दुआरे सतभैंयाँ झँपाएल। जेम्हर साफ मेघ रहए ओन्हुरका तरेगन हँसैत मुदा जेम्हर मेघौन रहए ओम्हुरका मलिन।”
सुभाष चन्द्र यादव मण्डल जीक कथाक बारेमे लिखैत छथि : “हुनक कथाक सन्दर्भमे जे सर्वाधिक उल्लेखनीय बात अछि से ई जे हुनक सभ कथामे औपन्यासिक विस्तार अछि।” परन्तु हमर तँ मानब ई अछि जे हिनक कथा अपने-आपमे सम्पूर्ण अछि आ अपन सम्बाद या निचाेरक सहजतासँ कहि दैत अछि।
हलांकि पोथीमे कतहुँ-कतहुँ छपबामे गलती सभ भेल अछि। जेना कि डाक्टर हेमन्त कथामे हेमन्त केर स्थानपर हमन्त भऽ गेल अछि। मुदा पूरा पाथी अपने-आपमे एकटा उत्तम आ संग्रह योग्य वस्तु थीक। मैथिली पाठककेँ ऐ तरहक कथाकेँ पढ़बाक आदति लगेबाक चाहिएनि।
२
राजदेव मण्डल कुरूक्षेत्रम् अन्तर्मनक (गजेन्द्र ठाकुर) लेल पत्रक शेषांश-
सहस्त्राब्दीक चौपड़पर-
सहस्त्राब्दीक चौपड़पर बैसल अहाँ जिनगीक खेल देख रहल अछि। गहन अन्वेषण करैत एक-एकटा चित्रक रचना कऽ रहल छी आ ओइ उमंगमे डूबि रहल छी।
“असीम समुद्रक कातक दृश्य
हृदय भेल उमंगसँ पूरित....।”
अहाँक अन्तरक कवि रविक चित्र उपस्थित करैत कहैत अछि-
“सूर्य किरण पसरि छल गेल
कतेक रहस्य बिलाएल
तिमिरक धुँध भेल अछि कातर
मुदा ई की.......।”
संग्रहमे किछु हैकू पढ़बाक सुअवसर भेटल। किछु सुआद बदलबाक लेल....। मिथिलांचलक गमकसँ अहाँक कविता हमरा सबहक मोनकेँ गमका रहल अछि :
“मोन पाड़ैत छी धानक खेत
झिल्ली कचौड़ी
लोढ़ैत काटल धानक झट्टा
ओहि बीछल शीसक पाइसँ कीनल
लालझड़ी
जेकरे नाओं लाल छड़ी आ
सत धरिआ खेल....।”
प्रवासमे रहैत स्मरण होइत गाम घर। ऐ पाँतिमे वियोगक ओइ व्याथाक वर्णन भेटैत अछि। एकटा नवीन लयक संग-
“पता नहि घुरि कऽ जाएब
आकि एतहि मरि-खपि
बिलाएब.....।”
ऐ व्यंग्यमे स्पष्ट दृष्टिगोचर भऽ रहल अछि।
“लाठी मारबामे कोनो देरी नहि
बाछी भेलापर शोको थोड़ नहि
परन्तु छी पूजनीया अहाँ....।”
बाढ़सँ उत्पन्न भेल समस्या आ ओकरा छोट-छीन पाँतिमे समेटनाइ गागरमे सागर भरबाक प्रयास ऐ पाँतिमे परिलक्षित भऽ रहल अछि-
“ठाम-ठाम कटल छल हठहर
ऊपरसँ बुन्नी पड़ि रहल
सभटा धान चाउर भीतक कोठी
टटि खसल पानिक भेल ग्रास...।”
नव-नव बिम्बसँ कविता सभ पूरित अछि-
“सहस्त्रबाढ़नि जकाँ दानवाकार
घटनाक्रमक जंजाल
फूलि गेल साँस
हड़बड़ा कऽ उठलहुँ हम....।”
हड़बड़ा कऽ नै बल्कि अहाँ सचेत भऽ कऽ उठलहुँ। नव-नव चित्र ध्वनि लऽ कऽ नवीन दृष्टिक संगे। पता नै कतऽ धरि जाएब। कतऽ गन्तव्य अछि अहाँक।
“विश्वक मंथनमे
होएत किछु बहार आब....
पथक पथ ताकब.....
प्रयाण दीर्घ भेल आब....।”
प्रबन्ध-निबन्ध समालोचना :-
प्रारंम्भमे फल्ड वर्कपर आधारित खिस्सा सीत-बसंत अछि। ई लोक कथा मार्मिक अछि संगहि शिक्षा आ उपदेशसँ भरल। सतमाएक चरित्र केहेन होइत अछि आ केहेन होएबाक चाही से स्पष्ट भेल अछि। समाज द्वारा बिसरल जा रहल ऐ कथाकेँ अहाँ पुन: जीअत करबाक कएने छी जैमे माए-बाप बेटा आ सतमाएक मर्मस्पर्शी वर्णन भेल अछि। वर्तमानमे सीत-बसंत नाच बिहारक गाम-गाममे लोक मानसकेँ आनन्दित कऽ रहल अछि।
दोसर अछि- मायानन्द मिश्रक प्रथमं शैल पुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहित आ स्त्रीधन। जे वेदकालीन इितहासपर आधारित अछि। जेकर समीक्षा इतिहास आ साहित्य दुनू आधार लऽ अहाँ नीक जकाँ प्रस्तुत कएने छी।
एकर बाद अछि केदान नाथ चौधरी जीक दूटा उपन्यास- चमेली रानी आ माहुर ई पाठक द्वारा आढ़ृत उपन्यास अछि। एकर समीक्षा अहाँ नीक तरहेँ कएने छी। अहा कहने छी जे- नव समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि।
नो एंट्री : मा प्रविश नचिकेता जीक नाटक अछि। जेकरा अहाँ किछु नव तरहेँ समीक्षा करबाक प्रयत्न कएने छी।
कविशेखर ज्योतिरीश्वर शब्दावली- विद्यापति शब्दली, कवि चतुर्भुज शब्दावली आ बद्रीनाथ झा शब्दावली द्वारा मैथिली शब्द भंडारकेँ विशद वर्णन कएल गेल अछि।
मैथिली हैकू आ क्षणिका पढ़बाक अवसर भेटल। श्रीमती ज्योति झा चौधरीक इंग्लिश हैकू अहाँक मैथिली अनुवाद सहित।
मिथिलाक बाढ़ि- जे एतुक्का रहनिहारक लेल प्रलय बनि आबैत अछि। ऐ समस्या आ सरकारी प्रयासक वर्णन नीक जकाँ भेल अछि।
विस्मृत कवि पं. रामजी चौधरीक रचनाकेँ पठकक सोझा रखबाक प्रयास। वास्तवमे ई अहाँक अविस्मरणीय कार्य अछि।
विद्यापतिक बिदेशिया- पिआ देसाँतर- ऐमे किछु नव तथ्य सभ सोझा आएल अछि।
बनैत-बिगड़ैत सुभाष चन्द्र यादवक कथा संग्रहक समीक्षामे अहाँ द्वारा सार्थक प्रयास भेल अछि। ई कथन जे “ओ कथाक माध्यमसँ जीवनकेँ रूप दैत अछि। शिल्प आ कथ्य दुनूसँ कथाकेँ अलंकृत कए कथाकेँ सार्थक बनबैत छथि।”
ऐ कथा संग्रहक अहाँ विशद रूपेँ समीक्षा कएने छी।
अन्तर्जालपर मैथिली- ऐमे नवीन एवं ज्ञानवर्द्धक तथ्य सभ पाठकक लेल परोसने छी। आजुक समएमे एकर ज्ञान आ अनुभव बड्ड आवश्यक भऽ गेल अछि।
लोरिकक गाथामे समाज ओ संस्कृति- ऐ गाथामे ओइकालक समाज ओ संस्कृति एवं राजनीतिक पक्षकेँ अहाँ उजागर कएने छी।
मिथिलाक खोज- अहाँ करैत रहलहुँ गाम-गाम। संगहि पाठककेँ स्थान सभसँ परिचित करबैत सराहनीय कार्य कएलहुँ।
त्वन्चाहन्च आ असन्जाति मन (महाकाव्य)- महाकाव्यमे जीवनक अत्यन्त व्यापक चित्रण उदात मानवीय अनुभूतिक रूपमे प्रगत कएल जाइत अछि।
अहाँ प्रारम्भमे लिखने छी-
“ई भारत ग्रंथ
जयक जाहिमे गान
तखन कहिया सँ भेलाह एतुक्का लोक
कर्महीन, संकीर्ण.....।”
अहाँ अन्त ऐ पाँतिसँ कएने छी-
“असन्जाति मनक ई सम्बल
देलहुँ अहाँ हे बुद्ध
हे बुद्ध- हे बुद्ध।”
ओना आब महाकाव्य कम लिखल जा रहल अछि। किन्तु साहित्यक सभ विधा जीअत रहबाक चाही। ऐ परम्पराकेँ अहाँक द्वारा आगू बढ़ेबाक प्रयास भेल अछि। धर्म-उपदेशपर आधारित पौराणिक कथाकेँ अहाँ कथावस्तुक रूपेँ किछु नूतन तरहेँ सजेबाक प्रयास कएने छी। अभिव्यक्ति लेल तत्सम शब्दावलीक प्रयोग भेल अछि। ओना पात्रानुकूल ओहन शब्द आनब आवश्यके छल। शीर्षक कहबामे काठिन्य सन अनुभव भेल। ताद्यपि रचना आदर करबाक योग्य अछि।
बाल कविता- ऐमे उपदेशक संगहि मनकेँ रंजित करबाक क्षमता होएबाक चाही। जे उत्सुकता बनौने रहए।
नव-नव मोहक दृश्य देखबैत अहाँ बच्चा सभकेँ नव संसारसँ परिचित करबाक प्रयास कएने छी। जेना-
“मेहनति अहाँ करू
फल हमरा दिअ.....।”
दोसर पाँति-
“मुइलपर भाबहु की भैंसुर केलहुँ अततह समए बदलल नहि बदलल ई गाम हमर।।”
निश्चय एतेक रास बाल कविता रचि अहाँ बाल सािहत्यक भण्डार भरबाक सराहनीय प्रयास कएने छी।
अन्तमे, यएह जे साहित्यक सभ विधाकेँ एक्केठाम संग्रहित करबाक एकटा नव प्रयोग भेल अछि।
व्याकरण आ भाषाक शुद्धता अछि।
श्रुति प्रकाशन धन्यवादक पात्र छथि जे नीक जकाँ एतेक पैघ पोथीक प्रकाशन कएलनि। दीर्घकाय पोथीक मूल्य कम अछि। जैसँ पाठककेँ क्रय करबामे सुविधा हेतैक।
पोथिक लेल यएह कहब जे- अहाँ भिन्न-भिन्न प्रकारक पुष्पसँ सुसज्जित एहेन पुष्पबाटिका बनेलहुँ जैमे प्रवेश कऽ पाठक जेहने आकांक्षा करत तेहने रूप, गंध प्राप्त करत आ हमरे जकाँ आनन्दित भऽ कहत- “धन्यवाद।”
३
डाॅ. योगानन्द झा- मैथिली बाललोककथा : स्थिति आ अपेक्षा
मैथिली बाललोककथा मैथिली लोकसाहित्यक एक गोट विशिष्ट प्रभेद थिक। लोक साहित्यक अन्यान्ये विधा जकाँ इहो विधा अदौसँ लोककंठमे विराजमान रहला अछि। तथा पुस्त दर पुस्त कण्ठान्तरित होइत रहला अछि। एहेन लोककथा जेे अपन सहजता, सुबोधता ओ मनोरंजकताक संगहि नेनालोकनिक मनोमस्तिष्ककेँ प्रेरित-प्रभावित करबामे सक्षम होइछ, बाललोककथाक अन्तर्गत परिगणित कएल जा सकैछ। एहेन लोककथा सभ सामान्यत: नाति दीर्घ आकारक होइत अछि आ अपन रोचकताक कारणेँ सुननिहार नेनालोकनिमे उत्सुकता बनौने रहैत अछि। अपन बाल आ किशोरावस्थामे नेनालोकनि अपन दादी-नानी ओ परिवारक वएस्कलोकनिसँ एहेन कथाक श्रवण करैत रहलाह अछि जइसँ हुनकालोकनिक मनोरंजन तँ होइते रहल अछि, संगहि हुनकालोकनिमे बीरता, बुद्धिमत्ता, सांस्कृतिक चैतन्य आदिक प्रादुर्भावक संगहि सामािजक जगतक विधि-निषेधक ज्ञानक विकास होइत रहलनि अछि।
पूणत: श्रुत साहित्य होएबाक कारणे मैथिली लोकसाहित्यक इहो विधा युगीन संक्रमणक प्रभावें क्रमश: विलुप्तप्राय भेल जा रहल अछि। आब ने धिया-पुतालोकनिकेँ मनोरंजनक लेल दादी-नानीक कोड़मे बैस कथा सुनबाक विवशता रहलनि अछि आ ने आधुनिक दादी-नानीये लोकनि ऐ विधाक प्रति आत्मीयता ओ प्रतिबद्धताकेँ जोगा कऽ राखि सकलीह अछि। तथापि किदु अग्रसोची विद्वानलोकनि अछि जइसँ एकरा सबहक नमूनाक निदर्शन भेट सकैत अछि।
प्रसिद्ध साहित्येतिहासकार डाॅ. जयकान्त मिश्र “एन इन्ट्रोडक्सन टू द फॉक लिटरेचर आॅफ मिथिला” मे मिथिलाक लोककथाकेँ आठ श्रेणीमे विभाजित कएने छथि- (1) व्रत कथा (2) परी किंवा प्रेम कथा (3) भूत-प्रेत ओ डाइन-जोगिनिक कथा (4) उपदेशात्मक ओ तथ्यात्मक कथा (5) बुद्धि-विनोद कथा (6) बालकथा (7) उपासकलोकनिक कथा अेा (8) स्थान सम्बन्धी कथा।
एेमे व्रत कथा महिलालोकनिक व्रतसँ सम्बन्धित कथा थिक जे मिथिल स्त्रीगणक सांस्कृतिक जीवनक प्रमुख अंग थिक यथा- जितिया व्रत कथा, कातिक व्रत कथा, छठिक कथा, हरिसों व्रत कथा, सपता-विपताक कथा, वट-साहित्री व्रत कथा, मधुश्रावणी व्रत कथा आदि। मुदा ई व्रत कथा सभ व्रत-विशेषक प्रति आस्था जगएबाक उद्देश्यपरक थिक एवं नेनालोकनिक हेतु उपादेय नै रहबाक कारणे एकरा सभकेँ बाललोककथा मध्य परिभाषित नै कएल जा सकैछ। परीकथा अो प्रेमकथामे अद्भुत चमत्कार, अलौकिकता, प्रबल पराक्रम, रहस्य-रोमांच आदिक वर्णन रहैत अछि तथा नायक-नायिकाक पारस्परिक राग ओ अन्तत: अनेक विध्न-बाधाकेँ पार करैत मिलनक वर्णन रहैत अछि। ऐ कोटिक कथा सभमे औत्सुक्यक िनर्वाह रहैत अछि आ ई सभ श्रोताकेँ बन्हने रहैत अछि। अद्भुत घटनासँ सम्बद्ध एहेन कथा सभ वयस्कलोकनिक संगहि बालवृन्दकेँ सेहो अह्लादक लगैत छन्हि। तँए ऐ कोटिक कथा सभ बाललोककथा मध्य परिगणित कएल जा सकैछ। भूत-प्रेत ओ डाइन-जाेगिनिक कथा सेहो अद्भुत चमत्कारसँ भल रहैत अछि जैमे भूत-प्रेतक विविध रूप-परिवर्त्तन तथा डाइन-जोगिनिक अपूर्व कृत्य सबहक वर्णन रहैत अछि। अहू कोटिक कथाकेँ शिशुलोकनि अत्यन्त तन्मयता पूर्वक सुनैत छथि मुदा अपन भ्यावहताक कारणे ऐ कोटिक कथा नेनाकेँ डेरबुक बना दैत छै। तथापि ऐ कोटिक कथाकेँ सेहो बाललोककथा मध्य परिगणित कएल जा सकैछ। उपदेशात्मक ओ तथ्यात्मक कथा सभमे दैन्दिन जीवनक साक्षात अनुभूत सत्यक वर्णन रहैछ जकर श्रवणसँ नेनालोकनिक ज्ञानक विस्तार होइत छन्हि। एहेन कथा सभकेँ नीति-कथा सेहो कहल जा सकैछ। ऐ कोटिक अनेक बाललोककथा मिथिलाक लोकजीवनमे प्रचलित रहल अछि। बुद्धि-िवनोदक कथा सभ बहुधा हास्य-विनोद ओ चातुर्यसँ सम्बद्ध रहैछ यथा-गोनू झाक कथा, अकबर-बीरबलक कथा आदि। एकरा सभकेँ बाललोककथा मध्य परिगणित कएल जा सकैछ। पशु-पक्षी, चिड़ै-चुनमुन्नी आदिकेँ पात्र बनाए नेना-भुटकाक मनोंरजन ओ ज्ञानवर्द्धनक उद्देश्यपरक बाललोकथा सभ वस्तुत: केवल शिशुएलोकनिक हेतु होइत अछि। एहन कथा सबहक विस्तार अपेक्षाकृत छोट रहैत छै। उपासकलोकनि ओ स्थान विशेषसँ सम्बद्ध दन्तकथा सभकेँ बाललोककथा मध्य परिगणित नै कएल जा सकैछ।
डॉ. जयकान्त मिश्रक उक्त पोथीक मिथिलाक प्रत्येक कोटिक लोककथाक उदाहरण स्वरूप ओकरा सबहक संक्षिप्त कथासार कहल गेल अछि। ऐ क्रममे तिलमा जनि कुमारी, आबऽ आबऽ कचनारा, पनसज्जा कुमारि, हाहापुरक कोठा, सोने रूपे काँित, डाला सन पान कोहा सन सुपारी, बेलवती कुमरि, मिरचाइबत्ती कुमरि, हँसराजक घोड़ा, उड़नखटोला, गिरिमोहर बालाक कथा, मयूर बालक बालकक कथा : भैया हओ भैया! एभे माछ खाइहऽ ओही माछ जुनि खइह, हंसावती कुमरि, भाँकी कुकुर, फुलवन्ती कुमरि, विखलाहा मेटल नै जाय, घण्टीबला कथा, लालबला कथा, किछु करनी किछु कर्मफल, चन्दन गछियाक कथा, चारि इयारक कथा आदि प्रेम कथा िकंवा परी कथा तथा शिशु कथाक रूपमे मुसरियाक कथा, फुद्दीरानीक कथा, बित्तू मियाँक कथा, फोकचक कथा, ढिल्ली रानीक कथा, क्रौन्चक कथा, गिरगिटियाक कथा, की खाओं की लय परदेश जाओँ, बगियाबला कथा, दरिद्रछिम्मरिक कथा, हरमजदबाक कथा, पेटू खबासक कथा, ठेठपाल झाक कथा आदिक संक्षिप्त वस्तुपरक परिचए प्रस्तुत भेल अछि।
ऐ प्रकारक वस्तुसँ मैथिली बाललोककथाक स्वरूपक अभिज्ञान तँ होइछ मुदा से मैथिली बाललोककथाक विवेचनक दृष्टिये भलहिं महत्वपूर्ण अछि, ओकर संकलन-प्रकाशनक दृष्टिये केबल मार्गप्रदर्शकेटा कहल जा सकैछ। ऐ प्रकारक स्थिति बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना द्वारा प्रकाशित लोककथा कोशक मैथिली भागमे प्रदत्त एकतीस गोट बाललोककथाक कथासारक सेहो अछि।
मैथिली बाललोककथाक संकलन-प्रकाशनक दृष्टिये जे महत्वपूर्ण कार्य सभ होइत रहल अछि तकरा सबहक संक्षिप्त परिचए एतऽ प्रस्तुत कएल जाइछ।
एगो रहथि राजा-
क्रमश:
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।