डॉ. शेफालिका वर्मा रेखाचित्र
ओ कत हेतीह
अखबारक सुरखीपर दृष्टि पड़ल, संगे एकटा छोट छीन समाचार कोनो कोन मे महत्वहीन सन खसल छल, टिहरी डैम काज करऽ लागल। ओकर फाटक सभ आस्ते-आस्ते खोलल गेल। पुरान टिहरीक समस्त अस्तित्व लांगना नदी मे समाहित भ’ गेल.....
लोकक लेल समाचार छल किन्तु हमर समस्त तनकेँ काँटसँ छेदि गेल। समस्त मोन केँ ओहि पुरान टिहरी जकाँ भीलांगाना निमज्जित क’ देलक। आँखिक आगु नाचि गेल चेहरा-अल्हड़ मस्त बाला! ओ कत’ हेतीह?
पुरान टिहरीक टेढ़ मेढ़ बाट पर पहाड़ी झरना जकाँ उछलैत फानैत हमर संग-संग चलि रहल छलीह गोर नार रतलाम चेहरा, ठुमकल नाक, छोट-छोट आँख अनगिन स्वप्नसँ भरल, पातर-पातर लाल ठोरसँ फूल सन भहरैत हँसीक संग कोमल काया ओहि टेहरी गामक समस्त संस्कृतिकेँ अपनामे समेटने छल। चलैत-चलैत बाटमे कोनो गाछ-वीरीछ आबि जाय तँ कात भ’ जाइत छल हमरा रस्ता देखबैत, छोट-मोट शिलाखंड आबि जाय तँ ओकरापर चढ़ि जाइत छलीह आ पएरसँ ठेलि हमरा लेल रस्ता साफ कऽ दैत छलीह। कत्तौ पैघ पाथर आबि जाय तँ ओकरो ठेलबाक प्रयास करैत छलीह, नहि सकबाक कारण हमरा दिसि विवश दष्टिसँ तकैत अपन असमर्थतापर लजा जाइत छलीह। हम हँसि दैत छलौं- रेखा, अहाँ हमरा लेल किएक एतेक परेसान, भ’ रहल छी- हम आस्ते-आस्ते चलबे करब- ने।
एहि पहाड़ी रास्तापर चलबाक अभ्यास तँ हमरा- छल नहि ऊँच-नीच, सकरी चाकर- मुदा, रेखा अपने ध्यानमे छलीह-
अहाँ देखैत छी दीदी जतेक अकास छूबैत पहाड़ सभ अछि डैम बनवाक बाद सभटा डूबि जायत-पते नै लगतैक जे एहिठाम कोनो
शहरो छल आकि पहाड़ो छल- भय आतंकसँ ओ काँपि रहल छलीह- हँ पहाड़क, कोर मे बसल टेहरि जल-सामधि ल’ लेत।
तावत बाटक दुनू कात एकटा बड़का बटवृक्ष देखाएल छल- हे देखू दीदी- ई लगैत अछि जेना दू ट गाछ होय मुदा ई बट वृक्षक जटासँ उत्पन्न दोसर गाछ थीक- आकाश मे एक दोसरा केँ आलिंगित करैत-एकटा तोरण द्वार बनौने। दीदी, जाहि ठाम एकटा गाछ सेहो सृजन करैत अछि एकटा बीयासँ दोसर गाछ बनि जाइत अछि ताहि ठाम आदमी किएक ध्वंस करैत अछि?
ओकर निर्दोष प्रश्नपर हम अन्तरसँ काँपि गेछ छलौं- एकर उत्तर हमरा लग नै छल- खास कऽ ओहि अबोध बालाक भावुक प्रश्न लेल।
टेहरी गामक सड़केपर दोकान सभ पसरल छल, पटनाक स्टेशन मार्केट जकाँ, दिल्लीक कमला नगर जकाँ-ऊनी कपड़ा, कैसेट, कार्ड, गहना जेवर, तीमन तरकारी- ठेलापर छोले भूठूरे, गरम-गरम चाह सभक पंत्ति। हम सभ पाँच छह गोटेसँ छलौं। हमर सभक झुण्ड देखि ओहिठामक निवासी सभक चेहरा फक्क भ’ गेलैक-आब ई अनचिन्हार सभ आबि कोन कहर ढ़ाहत- आर कोन दुःख बाकी छैक।
तावत एकटा सुदर्शन व्यक्तित्व, भव्य चेतना उज्जर पैजामा कुरतासँ आवेष्टित व्यक्ति हमर सभक स्वागतमे आबि गेलथि। हमर सभक परिचय जानि सतीश बाबू हमरा सभकेँ अपना ओतऽ लऽ गेलथि- हम सभ तँ डैम देखबा लेल आयल छी- डैम।
एकटा फाटल हँसी संग सतीश बाबू बजलाह- पचास बरीस पहिने हम सभ एहिठाम आयल छलौं तखन कठपुल्लासँ ओहिकात बड़का बजार
छल। एहिठाम सँ श्रीनगर, उत्तर काशी, रूद्रप्रयाग सभटा लगे अछि।
हमर आँखिमे कठपुल्लाकेँ स्पर्श करैत नदीक जल चमकि गेल- एहि नदीमे एखन कतेक जल होयत?
भागीरथीक पानि छब्बीस मीटर नीचाँ छल, आब दुइ सय मीटर उपर आबि गेल-ए- जतेक दोकान सभ सड़कपर अछि सभक दोकानमे सरकार ताला लगाय देलकैक- नयी टेहरीमे विस्थापन लेल। मुदा केओ अपन डीह-डाबर छोडि़ जेबा लेल तैयार नै अछि।
तावत एकटा सुन्दर सन पहाड़ी बाला गरम-गरम चाह बिस्कुट आ कतेक प्रकारक नमकीन ल’ क’ आबि गेलीह- लजाइत घबराइत हमरा सभक आगूमे चाहक कप राख’ लगलीह।
-ई हमर बेटी रेखा थिकीह- हमर सभक उत्सुक नयनक समाधान सतीश बाबू केलथि।
ओ लजा कऽ ओढ़नी अपन माथपर राख’ लगलीह- सरिपों पहाड़ी सुन्दरताकेँ कोनो एस्नो पाउडरक आवश्यकता नै होइ छैक।
- अहाँ पढ़ैत छी की रेखा- हमर प्रश्न पर ओ मुड़ी .....रौ ने हइ नै- ई की पढ़त? जाहि दिनसँ डैम बननाइ आरंभ भेल आ सभक विस्थापन नयी टेहरीमे भ’ रहल छैक ताहि दिनसँ एकर हँसी खुशी खत्म भ’ गेलैक। भरि दिन गाममे एम्हरसँ ओम्हर बौआइत रहैत अछि। मुस्काइत रेखा ओहि ठामसँ भागि गेलीह। सतीश बाबूक पत्नी, बेटा, पुतौह सभ हमरा सभकेँ घेरने, हमर सभक स्वागतमे लागल छल।
-जनैत छी,ई गाम कहू कि शहर बड़ समृद्ध छल। सभ व्यापारमे हम सभ मुख्य रहलहुँ। हइ हइ, केओ-केओ डाक्टर, वकील सेहो बनलाह। ई शहर 1804 मे बसल छल। कहबी छैक जे राजा सुदर्शन शाहक घोडा भैरव मंदिर लग आबि ठाढ़ भ’ गेल। तखन राजा एहि शहरक निर्माण केलथि। बहुत गोटे ईहो बजैत छथि जे यदि दुइ हजार पाँच धरि डैम नै बनत तँ कहियो नै बनत। ओम्हरसँ कोनो गौंआ बाजि उठल- कहियो नै बनत ई डैम। ठाम ठाम लीकेज भ’ रहल छैक- आ बात करैत छी।
सतीश बाबूक घरमे सभटा गौंआ आबि गेल छल अपन दुखड़ा सुनेबा लेल जेना हम सभ भगवान छी- जेना हमरा सभक हाथमे बड़ पावर होय- रेखा घरक कोनमे परवा पकड़ने ठाढ़ हमरा दिसि टकटकी लगौने छलीह- पता नै ओकर मोनमे कोन भाव-अनुभाव चलि रहल छलैक।
-अहाँकेँ हम गाम घुमा दै छी। एहिठामक मंदिर सभक कलाकृति देखब तँ विस्मित भ’ जायब।
-किन्तु, सभ व्यर्थ- एकटा निसांस लैत सतीश बाबू बजलाह।
रेखा हमर कानमे फुसफुसाइत बजलीह- हमहुँ चली अहाँ संग।
- हइ हँ किएक नइ? हमरो नीक लागत। हम उत्साहित भ’ गेलौं। ओहि कोमल किशोरीमे जेना हमरा अपने छवि देखा पड़ैत छल- वर्डस्वर्थक जंगली फूल असगरे विहुसरैत’ वायलेट, जकाँ अधा नुकायल- अधा देखारि। धृत गंगा, भीलांगना, भागीरथी तीनू नदीक संगम स्थलपर सत्येश्वर महादेवक मंदिर विशाल प्रांगणक संग जगमगा रहल छल।
-हम सभ एहि मंदिरकेँ पशुपति नाथक मंदिर बुझैत छी- सतीश बाबू बजलाह- मंदिरक प्रांगणक एक कोनमे बौध विरोधी संगठन धरनापर बैसल छल। ओहिठाम एकटा बड़का बैनर टाँगल छल..... हम तो इस झील की गहराई के पार जायेंगे लेकिन हमारे वो अपने कहाँ जायेंगे।
हमें तो अपने ही ले डूबे इस बात का गम किसे है ऐसा कौन सा शख्स जो हमसे नजर मिलाए लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने मे कोई थकता नहीं बस्तियाँ उजाड़ने में ....टिहरी उजड़े लोगों का शहर है...’’
आँखि भरि आयल, रेखा आस्तेसँ हमर आँगुर पकड़ि लेलीह। ओहि स्पर्शमे जेना दुनिया जहानक व्यथा नुकायल छल। हम सिहरि गेलौं। तावत केओ आगू आबि सम्मोहन तोड़ि देलक- हम सभ उजड़ल लोक छी। लोक एकटा कटोरो कीनैत अछि तँ ओकरासँ स्नेह भ’ जाइत छैक। ई तँ हमर जन्मभूमि, हमर गाम थीक। एकर माटिमे जनम लय हम सभ गाछ बिरीछ जकाँ बढ़ल छी। बद्री केदारक मंदिरसँ हमर सभक संस्कार बनल अछि। माता सदृश पूजने हवे एहि शहरकेँ। एहिठामक पाथरमे जिनगीक गीत गओने छी हम सभ.....
ओकर आँखि डूमि रहल छल- चारु कात गगन चुम्बी पर्वत शृंखला नीचामे तीनू नदीक गलबैहिया-बीचमे बसल टेहरी उजड़ल लोकक शहर एकटा संस्कृत कोना विनष्ट होइत अछि।
सतीश बाबूक छोट भाइ प्रियव्रत बजलाह- हम सभ तँ ईहो सुनने छी जे स्वामी रामातीर्थ अपन अन्तिम दिन एहि क्षेत्रमे बितौने छथि। एहि पर्वत शृखला दस हजार फीटक ऊँचाइक आसपास कतेको बस्ती बसल छैक- असगर टेहरी गामक जनसंख्या दस हजार सँ बेसी छैक- से गाम जलमग्न भ’ जायत।
एकटा बुजुर्ग भावुक भ’ कह’ लगलाह- टेहरी गाम तँ बल्कि .............. बहिए जायत’ संगे कतेक तहसील एकर चपेटमे आबि जायत- हरदम भूकम्पक आशंका लागल रहैत अछि ताहिठाम ई डैम?- हुनक झुर्राइत आंगुर सुखायल आँखिकेँ नोरायल बुझि मल’ लागल।
रेखाक आँगुर हमर हाथकेँ आर बेसी आर बेसी कसने जा रहल छल, हिमालयक धरतीपर सघन अरण्यक मध्य बनल एहि गामक कोन कोनकेँ हम अपन हृदयक कैमरामे उतारि रहल छलौं। हमरो सभक आँखि नोरा गेल छल।
भविष्यक विकरालता सोचि- बद्री केदार सत्येश्वरक ऐतिहासिक विशाल मंदिर, टूटल फूटल रहितो प्राचीन कलाकृतिक उत्कष्ट उदाहरण छल। जेना कोनो बीतल युगक कथा मौन मूक उजागर भऽ रहल होय।
चलु ने हम आबि कऽ भैरव मंदिर देखा दी- रेखा फेर फुसफुसा कऽ एकदम आस्ते सँ बाजलि- हइ हइ चलु- सभ अपना अपनामे छल आ रेखा अपन स्पर्शसँ हमरा अपना दिसि आकृष्ट करैत रहलीह- ई हृदयक कोन रिश्ता थीक? हम ओकर संग चलैत रहलौं- पीपरक झमटगर गाछक नीचाँ छोट छीन भैरव मंदिर बनल छल- छोट सन। आदर सँ झुकि लोक प्रणाम करैत।
-ई भैरव मंदिर हमर सभसँ प्रिय स्थान अछि। हम जखन उदास होइत छी तँ एहिठाम आबि बैसि जाइत छी- रेखा बजलीह- ग्राम सँ बाहर शांत एकांत स्थानपर ई भैरव मंदिर छल जाहि ठाम सुदर्शन शाहक घोड़ा ठाढ़ भ’ गेल छल आ एहि ग्रामक निर्माण भेल। एहि पुरातन मंदिरमे श्रद्धासँ हमर माथ झुकि गेल किन्तु रेखा हमर हाथ पकड़ने रहलीह जेना दूनूक हाथ एके संग प्रार्थना क’ रहल होय। की कियो एतेक मुखर होइत अछि- स्पर्शों एतेक जीवैत कथा कहानी बनि जाइत अछि? ई अनुभूति रेखाक स्पर्श हमरा देलक। एतेक देरमे पहिल बेर रेखा मुखर भेलीह किन्तु अन्तिम बात जे बजलीह हमर समस्त तन मोन केँ कँपाय देलक, जेना भूक्षरण ओहि इलाकाक नै वरण हमर समस्त तन मोनमे भ’ रहल होय।
-अहाँ जनैत छी- जखन डैम चालू होय लागत, गामसँ सभ भागि जायत हम एहि भैरव मंदिरमे आबि नुका जायब। हम संकल्प नेने छी एहि गामक संगे संग हम चलि जायब।
तखन ओकर बातपर हम ओतेक ध्यान नै देलौं- नेनमति छैक।
-एना नै बाजू रेखा। एकटा बाट जाहि ठाम समाप्त होइत छैक ताहि ठाम दोसर बाट स्वयं खुलि जाइत छैक। ध्वंसेपर निर्माण होइत छैक। एकटा नव सूर्योदयक नव विहान होइत छैक।
किन्तु ओकर चेहरा पूर्ववत भावहीन, पाथर सन रहल। जेना रेखा नै वरण ओ समस्त टेहरी ग्राम होय अपन माटि पानिक साकार अस्तित्व आ जखन अखबारमे पढ़लौ- समस्त टेहरी ग्राम भागीरथीमे समा गेल, जेना हमर मानसमे अचक्के भयंकर भूचाल आबि गेल-ओ कत’ हेतीह’ ओ कतऽ हेतीह।
३.६.नवीन कुमार आशा- तोहर गोर गोर गाल
३.७.किशन कारीगर भिन भिनौज
शिवकुमार झा “टिल्लू” कविता
रमा
साँझ पहर दिप-वाती दिन एलौं
रमा नाओं रखने छलि बाबी
मातृ कोरक हम पहिलुक नेना
कोन-कोन जीवन गति गाबी
खढ़क मचान निलय बनि चमकल
कनक-रजतसँ छनछन माता
पिताक बटुआमे बैसलनि लक्ष्मी
कण-कण खह-खह कएल विधाता
लव-कुश बनि जननीक कोखिसँ
दू-दू सारस आङनमे खिलाएल
तरूण लताकेँ स्निग्ध देखि
सर समाज घूरथि औनाएल
धेलकनि पाण्डु जर बाबूकेँ
नोकरी छोड़ि खाटपर खसलनि
खेत पथार व्याधि संग बूड़ल
तैयो तेसर लोकमे पैसलनि
जै ओलती छल तृप्त पपिहरा
सुग्गा चुनमुनीक चहचह शोर
क्षणहिंमे देवराज टपकेलनि
शरद-िनशामे आगि इन्होर
हाथसँ करची कलम छूटि गेल
छोड़ि पड़ेलनि भामिनी- भद्रा
चरण नुपूर धरा खसि टूटल
आङन बाड़ी भरल दरिद्रा
काँच बएसमे सेंथुमे सिनूर
गदगद भेलीह मातु सुनयना
कहुना लाज गेल दोसर घर
सुखद नोर खसबै छथि मयना
कंतक आङन सेहो कलुष भेल
जखने निकसल वज्र चरण रज
रैन पचीसी संग सिनेहक
लहठी फोड़ि निपत्ता पंकज
तुसारिक निस्तार कोना कऽ करितौं
उज्जर नूआ खाली हाथ
सेंथुसँ सेनुर अपने पोछलौं
आन्हर सासु संग पीटै छथि माॅथ
आजुक डाइन- कहियो छलौं लक्ष्मी
छाँहसँ भागथि अहिवातिन सभ
नोरक घृतसँ चिनुआर निपै छी
ककरो संग नै बाँटब कलरब
काक-दृष्टि धेने छथि बाहर
चानन ठोप केने किछु लोक
आर्य भुवनक रौ बनमानुष सभ
गर्दनि दाबि पठबए परलोक
नारीटा लेल नियम केहेन ई?
वरन् एक तँ कहाएब सती
अपन कांताकेँ छोड़ि घरमे
कहिया धरि तकबेँ अबला रति?
दुर्गानन्द मण्डल कविता
हम देखलौं
हम पूर्णिमाक रातिमे
चुपेचाप धरतीपर चानकेँ उतड़ैत देखलौं
घासपर गिड़ैत ओसक बुन्नमे अपन मुँह देख
चानकेँ खिल-खिला कऽ हँसैत देखलौं
हम पूर्णिमाक रातिमे
चुपेचाप चानकेँ धरतीपर उतड़ैत देखलौं।
नवयौवन, कोमल, सुन्नर ओ सुरति
ओइ चानक पूरा मुखड़ा हम देखलौं
धरतीपर प्रकृतिक सुन्नर, मनोरम, दृश्य देख
गाछ-बिरिछ संग चानकेँ झुमैत देखलौं
हम पूर्णिमाक रातिमे
चुपेचाप चानकेँ धरतीपर उतड़ैत देखलौं।
चान कहलक एतऽ हमरा सभ किछु नीक लागल
परंच कुत्सित मानव दानवीय व्यवहार
नीक नै लागल
हमरे जकाँ शीतलतासँ अपन मनक भावना बाजू
मानवक रंग, मानवक रूप छोड़ि दानवक भाषा नै बाजू
चुपेचाप मानवक लेल, चानकेँ चिट्ठी लिखैत देखलौं
हम पूर्णिमाक रातिमे
चुपेचाप चानकेँ धरतीपर उतड़ैत देखलौं।।
राजेश मोहन झा “गुंजन” कविता
वसंत गीत
किसलय सुमन मुस्कान सखी गे,
कोकिल कलरब गान सखी गे
देख जुआनी महुओमे आएल
मुखरित हर्षित मुस्कान सखी गे।
राज ऋृतु बनि बसि कुंजमे
लोढ़थि फूल रति-मृगनयनी
उदित-मुदित घोघ तर नयन
हेरथि सिय-भगवान सखी गे।
रंगक रेखसँ निशा भेल चकमक
वेला पौली कुसुम सुवासित
आशाक लता हृदेमे लतरल
राधा केर मानव प्राण सखी गे।
शिशिर शेष समीर भेल मादक
आदित्य किरण तीक्ष्ण वाण बनल छथि
त्रिपुरारि रतिक क्रंदन सुनि कऽ
करै छथि प्राण-प्रदान सखी गे।
कुहकैत कोइली वसंत हकारथि
आम-पल्लवपर मंजरि भावथि
सुरमित सुगंध मोन हेराबथि,
पुष्प-वासपर भ्रमर गान सखी गे।
ज्योति सुनीत चौधरी एकान्तक पुनरावृत्ति
लीखब नहिं मानू मात्र एक जिज्ञासा
ई तऽ बनि गेल अछि एक पिपासा
विषय के भरल असीम भण्डार
जौं नहिं कऽ सकैत छी किछु आर
कम सऽ कम अपन शब्द सऽ
विकसित विचारके व्यक्त कऽ
मिटाबी कुरीति के भ्रान्ति
आनैत रही वैचारिक क्रान्ति
दिमागसऽ बेसी मोनक जागृति
चिन्तनशील एकान्तक पुनरावृत्ति
आशीष अनचिन्हार दू टा गद्य कविता
1 ( वाद )
भूख की छैक, यथार्थ की कल्पना ? अथवा एकरा एना कहिऔ जे भूख के कोन वाद मे बन्हबै----
यथार्थवाद-----
तदर्थवाद-----
अभिव्यंजना वाद
नव चेतना वाद
वा की-----------?????????
2 ( काल प्रश्न )
जकरा गाँड़ि ने धोबए आबए से ओझा कहाबए।
अच्छा कहू त जकरा धोबए अबैत छैक तकरा की कहबै ?
मंत्री, सभापति, अध्यक्ष आ की------------?????????
नवीन कुमार आशा
तोहर गोर गोर गाल ……
...........................................................
तोहर गोर गोर गाल
गोरि करे कमाल
तोहर तिरचि नज़र
गोरि करो असर
तोहर......................।
मुस्कान तोहर अनमोल
ओकर नहि मोल
जखन निकलो तोहर बोल
लगे हील गेल दिल
आखि जखन देखि तोहर
राती भ्रर रहि जै जागि
तोहर गोर गोर गाल
गोरि........................।
गाल पर देखि जखन तिल
रुकि जाइ दिल
देखि तोहर सुनर काया
मन के नहि आवे माया
सोचे पापी ई मोन
रहितो जखन उदास
पबितो तोरा पास
तोहर गोर गोर गाल
गोरि करो कमाल.......।
देखि तोहर मुह
जिनाय भय जय दुरुह
फ़ेर कहे ई चनचल मोन
कहि दी ओ गप
जे बनि गलो अपच
आब कहि तोरा गप
चाहि तोहर साथ
चाहि तोरा बेहिसाब
जखन गोरि पायल तोहर साथ
लागल भय गलो सफ़ल
तोहर गोर गोर गाल
गोरि करो कमाल...........।
(ए. झा क लेल...........)
किशन कारीगर भिन भिनौज
आई अपने भैयारी मे कए रहल छी कटवा-कटौज
भ रहल छी अपने भैयारी मे भिन भिनौज
बाबू जी अनैत छलाह किछू नीक निकौत
त दुनू भाई करैत छलहूॅ खूम घोंघाउज।।
एक्के थारी में बैसी के खाइत छलहूॅ
मुदा एहेन बॅटवारा नहि देखल
ओ नहि हमरा देखैत अछि हम नहि ओकरा
कनेक नासमझीपन आब भिन भिनौज सेहो करेलक।।
बाबू जी केर मोन दुखित भेलैन केकरो आब आस नहि
ओ कहैत छै हम नहि देखबैए भैयाक पार छै
हम कहैत छियैक हम किया देखबैए छोटका के पार छै
मरै बेर मे आब बुरहबा के एक लोटा पानि देनिहार कियो ने।।
छोटकी पुतहू झॉउ झॉउ क रहल अछि
त सैझलियो कोनो दसा बॉकी नहि रखने अछि
ई कटवा कटौज आई अपने मे भए रहल अछि
एहेन भिन भिनौज देखि बुरहबा शोक संतापे मरि रहल अछि।।
झर झर बहि रहल अछि बुरहबाक ऑखि सॅ नोर
एसकरे कुहैर रहल छथि मुदा केकरा करताह सोर
सब किछू एक रंगे बॉटि देलाक बादो
पुतहू मुॅह चमकबैत अछि त बेटा खिसियाअैत अछि भोरे भोर।।
हमरा सुखचेन सॅ मरअ दियअ ने
सभ सॅ बुरहबा नेहोरा कए रहल छथि
मुदा जल्दी मरि जाउ घरक गारजीयन ई बुरहबा
सभ मिली हुनका गंगा लाभ करा रहल छथि।।
गंगा लाभ करैते मातर थरा थरा के मरि गेलाह
ओही दुनू कपूतक बाप ओ अभागल बुरहबा
ई सुनि आई किशन बहा रहल अछि नोर
कठियारी जेबाक लेल केकरा करत सोर।।
हाई रे आधुनिक बेटा पुतहू ई की
जीबैत जिनगी माए बापक सत्कार नहि करैत छी
मुदा हुनका मरलाक बाद ई की
पॉच गाम ल पूरी जिलेबीक भोज किएक करैत छी।।
केकरा सॅ कहू ओई बुरहबाक दुःख तकलीफ
अपटी खेत मे चलि गेल प्राण हुनकर
एहेन नहि देखल ई कटवा कटौज
कारीगर करैत अछि नेहारा नहि करू एहेन भिन भिनौज।।
प्रभात राय भट्ट दूटा गीत १
गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया,आबिगेलई होली !!
अहि केर प्रेमक रंग स: रंगाएब हम अपन चोली !!
यी प्रेमक पाती में लिखरहल छि अपन अभिलाशाक बोली !!
अईबेर प्रभात भाईजी गाम अओता की नए पूछीरहल अछि फगुवा टोली !!
बौआ काका के दालान में बनिरहल अछि फगुवाक प्लान !!
चईल रहल छई चर्चा अहिके चाहे खेत होई या खलिहान !!
कनिया काकी कहै छथिन बौआ क देखला बहुते दिन भगेल !!
वित साल गाम आएल मुदा विना भेट केने चईल्गेल !!
अहाक संगी साथी सब एक मास पाहिले गाम आबिगेल्ल !!
अहाक ओझा २५ किल्लो क खसी आ भांगक पोटरी अहिलेल दगेल !!
गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया जुड़ाउ हमर हिया !!
पूवा पूरी सेहो खिलाएब ,घोईर घोईर पियाएब हम अहाक भंग !!
अहि केर हाथक रंग स: रंगाएब हम अपन अंग अंग !!
रंग गुलाल अवीर उडाएब हम दुनु संग संग !!
प्रेमक रंग स: तन मन रंगाएब एक दोसर के संग संग !!
२
आदर्श विवाह
हम छी मिथिलाक ललना,
दहेज़ ला क बनब नए बेल्गोब्ना,
दहेज़ लेनाए छई अपराध,
कियो करू नए एहन काज,
हम करब विवाह आदर्श,
अहू लिय इ सुन्दर परामर्श,
भेटत सुन्दर शुशील कनिया,
आहा स प्रेम खूब करती सजनिया,
आँगन में रुनझुन रुनझुन,
बाजत हुनक पैजनिया ,
घर केर बनौती सुन्दर संसार,
भेटत बाबु माए केर सेवा सत्कार,
छोट सब में लुटवती वो दुलार,
अहक भेटत निश्छल प्रेमक प्यार,
जौ दहेज़ लयक विवाह करबा भैया,
कनिया भेटत कारिख पोतल करिया,
हुकुम चलैतह शान देखैतह,
बात बात में करतह गोर्धरिया,
अपने सुततह पलंग तोरा सुतैत पैरथारिया,
बात बात में नखरा देखैतह,
भानस भात तोरे सा करैतह,
अपने खेतह मिट माछ खुवा मिठाई,
जौं किछ बाजब देतः तोरा ठेंगा देखाई,
रुईस फुइल नहिरा चईल जेताह,
साल भैर में घुईर घर एतः
सूद में एकटा सूत गोद में देतः
पुछला स कहती इ थिक अहाक निशानी,
आब कहू यौ दहेजुवा दूल्हा,
आहा छी कतेक अज्ञानी ???
तेय हम दैतछी यी सुन्दर परामर्श,
सुन्दर शुशील भद्र कनिया भेटत,
विवाह करू आदर्श,विवाह करू आदर्श!!!
विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१.श्वेता झा चौधरी २.श्वेता झा (सिंगापुर)
१
श्वेता झा चौधरी गाम सरिसव-पाही, ललित कला आ गृहविज्ञानमे स्नातक। मिथिला चित्रकलामे सर्टिफिकेट कोर्स।
कला प्रदर्शिनी: एक्स.एल.आर.आइ., जमशेदपुरक सांस्कृतिक कार्यक्रम, ग्राम-श्री मेला जमशेदपुर, कला मन्दिर जमशेदपुर ( एक्जीवीशन आ वर्कशॉप)।
कला सम्बन्धी कार्य: एन.आइ.टी. जमशेदपुरमे कला प्रतियोगितामे निर्णायकक रूपमे सहभागिता, २००२-०७ धरि बसेरा, जमशेदपुरमे कला-शिक्षक (मिथिला चित्रकला), वूमेन कॉलेज पुस्तकालय आ हॉटेल बूलेवार्ड लेल वाल-पेंटिंग।
प्रतिष्ठित स्पॉन्सर: कॉरपोरेट कम्युनिकेशन्स, टिस्को; टी.एस.आर.डी.एस, टिस्को; ए.आइ.ए.डी.ए., स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, जमशेदपुर; विभिन्न व्यक्ति, हॉटेल, संगठन आ व्यक्तिगत कला संग्राहक।
हॉबी: मिथिला चित्रकला, ललित कला, संगीत आ भानस-भात।
२.
श्वेता झा (सिंगापुर)
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
३
वासुदेव सुनानी:ओड़ियाक प्रमुख दलित कवि, तत्कालीन कालाहाण्डी (आब नुआपाडा) जिलाक मुनिगुडा गाममे जन्म। कविताक चारिटा पोथी प्रकाशित। "महानदी बेसिनक दलितक सांस्कृतिक इतिहास" आ जोतिबा फुलेक जन्मचरित लिखबामे आइ काल्हि लागल छथि। ओड़ियासँ अंग्रेजी अनुवाद शैलेन राउत्रॉय आ अंग्रेजीसँ मैथिली गजेन्द्र ठाकुर द्वारा
फूसि
जखन कखनो हमरा भेंट होइ छथि शबनम भौजी
हमरा प्रसन्न मुखक आशीष भेटैए
ईदक चानसन दीप्त
आ ओइ प्रसन्नताक बाद एकटा रहस्योद्घाटन-
“तूँ आब बड्ड पैघ भऽ गेल छेँ।”
फूसि!
पाँच फीट पाँच इन्चक मात्र अि वासुदेव, पएरसँ पहुँचा धरि
अखनो हुनकर चौखटिक उपरका भाग नै छूबि सकै अछि!
कहियासँ ई भऽ गेल पैघ?
पुछू ककरोसँ...
सभ कहत कि वासुदेव अछि
एकटा मामूली अभागल बाट-बटोही
इन्तजारीमे एकटा बिसरल बस अड्डापर।
अनुग्रहपर कएलापर कने काल लेल बिलमै अछि एकटा बस ओतए
मुदा जखन ओ चढ़ैबला रहैए,
ओकरा छोड़ि कऽ चल जाइए बस।
शबनम भौजी एकटा फूसि बाजैवाली यक्षिणी छथि,
आ ओ फुइस एहन बजै छथि जकर नै रहैए कोनो ओरे आकि छोरे।
जे कियो एतए अपनाकेँ बुझि रहल छी खैरात बँटनिहार,
कृपा कऽ रोकू एकटा बस।
वासुदेव एकर प्रतीक्षा कऽ रहल बड़ी कालसँ,
मड़राइत आत्मविश्वासक पगहाक अन्तिम छोरपर।
बालानां कृते
बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
१०. दूर्वाक्षत मंत्र(शुक्ल यजुर्वेद अध्याय २२, मंत्र २२)
आ ब्रह्मन्नित्यस्य प्रजापतिर्ॠषिः। लिंभोक्त्ता देवताः। स्वराडुत्कृतिश्छन्दः। षड्जः स्वरः॥
आ ब्रह्म॑न् ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः शुरे॑ऽइषव्यो॒ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्रीं धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योवा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवास्य यज॑मानस्य वी॒रो जा॒यतां निका॒मे-नि॑कामे नः प॒र्जन्यों वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ऽओष॑धयः पच्यन्तां योगेक्ष॒मो नः॑ कल्पताम्॥२२॥
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।
ॐ दीर्घायुर्भव। ॐ सौभाग्यवती भव।
हे भगवान्। अपन देशमे सुयोग्य आ’ सर्वज्ञ विद्यार्थी उत्पन्न होथि, आ’ शुत्रुकेँ नाश कएनिहार सैनिक उत्पन्न होथि। अपन देशक गाय खूब दूध दय बाली, बरद भार वहन करएमे सक्षम होथि आ’ घोड़ा त्वरित रूपेँ दौगय बला होए। स्त्रीगण नगरक नेतृत्व करबामे सक्षम होथि आ’ युवक सभामे ओजपूर्ण भाषण देबयबला आ’ नेतृत्व देबामे सक्षम होथि। अपन देशमे जखन आवश्यक होय वर्षा होए आ’ औषधिक-बूटी सर्वदा परिपक्व होइत रहए। एवं क्रमे सभ तरहेँ हमरा सभक कल्याण होए। शत्रुक बुद्धिक नाश होए आ’ मित्रक उदय होए॥
मनुष्यकें कोन वस्तुक इच्छा करबाक चाही तकर वर्णन एहि मंत्रमे कएल गेल अछि।
एहिमे वाचकलुप्तोपमालड़्कार अछि।
अन्वय-
ब्रह्म॑न् - विद्या आदि गुणसँ परिपूर्ण ब्रह्म
रा॒ष्ट्रे - देशमे
ब्र॑ह्मवर्च॒सी-ब्रह्म विद्याक तेजसँ युक्त्त
आ जा॑यतां॒- उत्पन्न होए
रा॑ज॒न्यः-राजा
शुरे॑ऽ–बिना डर बला
इषव्यो॒- बाण चलेबामे निपुण
ऽतिव्या॒धी-शत्रुकेँ तारण दय बला
म॑हार॒थो-पैघ रथ बला वीर
दोग्ध्रीं-कामना(दूध पूर्ण करए बाली)
धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः धे॒नु-गौ वा वाणी र्वोढा॑न॒ड्वा- पैघ बरद ना॒शुः-आशुः-त्वरित
सप्तिः॒-घोड़ा
पुर॑न्धि॒र्योवा॑- पुर॑न्धि॒- व्यवहारकेँ धारण करए बाली र्योवा॑-स्त्री
जि॒ष्णू-शत्रुकेँ जीतए बला
र॑थे॒ष्ठाः-रथ पर स्थिर
स॒भेयो॒-उत्तम सभामे
युवास्य-युवा जेहन
यज॑मानस्य-राजाक राज्यमे
वी॒रो-शत्रुकेँ पराजित करएबला
निका॒मे-नि॑कामे-निश्चययुक्त्त कार्यमे
नः-हमर सभक
प॒र्जन्यों-मेघ
वर्षतु॒-वर्षा होए
फल॑वत्यो-उत्तम फल बला
ओष॑धयः-औषधिः
पच्यन्तां- पाकए
योगेक्ष॒मो-अलभ्य लभ्य करेबाक हेतु कएल गेल योगक रक्षा
नः॑-हमरा सभक हेतु
कल्पताम्-समर्थ होए
ग्रिफिथक अनुवाद- हे ब्रह्मण, हमर राज्यमे ब्राह्मण नीक धार्मिक विद्या बला, राजन्य-वीर,तीरंदाज, दूध दए बाली गाय, दौगय बला जन्तु, उद्यमी नारी होथि। पार्जन्य आवश्यकता पड़ला पर वर्षा देथि, फल देय बला गाछ पाकए, हम सभ संपत्ति अर्जित/संरक्षित करी।
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.VIDEHA FOR NON RESIDENTS
8.1 to 8.3 MAITHILI LITERATURE IN ENGLISH
Original Poem in Maithili by Kalikant Jha "Buch" Translated into English by Jyoti Jha Chaudhary
Kalikant Jha "Buch" 1934-2009, Birth place- village Karian, District- Samastipur (Karian is birth place of famous Indian Nyaiyyayik philosopher Udayanacharya), Father Late Pt. Rajkishor Jha was first headmaster of village middle school. Mother Late Kala Devi was housewife. After completing Intermediate education started job block office of Govt. of Bihar.published in Mithila Mihir, Mati-pani, Bhakha, and Maithili Akademi magazine.Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.comand her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
Dedicated To Wife
I will do anything for sake of your pleasure
I will live without life and suppress my soul forever
I will migrate to your house
Buying furrow from the Kamarsari (a place)
Getting a part of your father’s land
I will grow money with crops
You will see how I will fill your house with treasure
I will do anything for sake of your pleasure
I will live without life and suppress my soul forever
A cow will be bough with bank loan
And that will be fed enough food
I will milk the cow in the morning
And will make tea for you
You will sip that lying on the bed and I will fill the saucer
I will do anything for sake of your pleasure
I will live without life and suppress my soul forever
I will go to Darbhanga very soon
And will bring many colourful dresses for you
If you will not be cured even after that
Then it will lead me to the east
I will run to the Alipur jail without ticket
I will do anything for sake of your pleasure
I will live without life and suppress my soul forever.
Maithili Novel Sahasrashirsha by Gajendra Thakur translated into English by the author himself. Gajendra Thakur (b. 1971) is the editor of Maithili ejournal “Videha” that can be viewed at http://www.videha.co.in/ . His poem, story, novel, research articles, epic – all in Maithili language are lying scattered and is in print in single volume by the title “KurukShetram.” He can be reached at his email: ggajendra@videha.com
The Thousand-headed
One thousand heads, thousand mouths, thousand types of gossip, all true and un..
The Sudras have come out of the feet and so has the earth.
FIRST KALLOL
I
Garh Narikel, a village. It is predominantly inhabited by cattle-grazer Brahmins.
Ponds and trees are all around this village. In this village one…two…three and one more, four ponds exist.
Exactly it is not so. There are three more ponds in this village. One is in the northern direction of the north pond, popularly known as the gigantic pond. People say that some monster dig thios pond in just one night. But while digging it the whole night was spent and the monster coul not install the centrak sacred wooden pole in the middle of the pond. As the monster was in a hurry so he left shoe of one leg there beside the mond and left the place. For many years that huge shoe remained there but again one year during flood that too got lost. So the only evidence that was there vanished. This pond is far away from the village, so no relation of this village could be established with the Chhatha festival. Yes, but this pond finds mention during the ceremony of sacred thread. Various types of fishes reside in this pond. There is never dearth of fishes here. No need has ever been felt for putting seeds (small fishes) of fishes into this pond. There happens an annual fish catching festival and barring the southern quarter of village, the whole village gets its daily share of fishes for at least one month.
To the southern direction of the south pond, there is a village called Buchiya (in the name of a person) pond. It is also far from the village, but there is sacred wooden pole installed in the centre of this village. When this central sacred wooden pole was being installed a big ceremony was thrown by the great great grandfather of the Zamindar, the Piyar Bachcha (meaning yellow boy). He had organized a grand great feast. This pond is far far away from the village and in all directions of this pond there are fields only. People rarely come here for taking a bath. Here too there happens an annual fish-catching ceremony, but that is only for this southern quarter of the village. There are many things attached with this pond. During Durga Pooja goddess Durga proceeds to her husband’s place, actually on the last day of the festivities. On that day the idol of goddess Durga is immersed into this pond. Not the men, but yes, the women weep bitterly at the time of immersion of Durga. The idol of Durgaji is not made in this village, no question of its being constructed in the southern quarter of the village. But it is immersed in this pond. This idol of Durga is made and worshipped in the neighbouring Garh Tola (small village). The Garh Narikel people are mischievous ones. Till the sixth day of Durga festival, the idol of Durgaji remains covered. Only the artist can see her because if he does not then how the idol be constructed. Any other people, however, would become blind if they see the Durga before being unveiled. Yes, but after the ceremony of Belnoti- when eye of Durga is placed out of an invited wood-apple fruit, the idol of Durga is unveiled and then only the people can see it. And from that day the actual festival begins. If idol of Durga is made in this village many people would become blind before the sixth day of the festival. The neighbouring village is not less mischievous one, its only the degree. In the name of festival all of them become disciplined. In the name of their village the suffix is added, tola (quarter of a village) suffix. But that does not make it a quarter of a village; it is actually a full-fledged village. Garh Tola village is also inhabited by the cattle grazing Brahmins. In mischievousness there is always a competition between these two villages. If you pass through the Garh Tola village, the lads sitting in front verandas of their houses beside the road would often pass comments on you. But the naughty boys of Garh Narikel will consciously go through that village. But the disciplined ones pass through the road beside this Buchiya pond. Although the route is circuitous; but it is safe, do not mind.
There is one more pond in this village.
Towards the eastern side of the village, to control these two rivers Kamla and Balan, two dams were built. One is in north-south direction, adjacent to the village and towards the eastern direction. If you move forward towards that dam you will find the Kamla River; and then her brother the Balan River. And further towards the eastern direction you will find another dam in the north-south direction. And between these two enclosures lies the Balli pond- in the name of a zamindar. Near this pond was a large football field. Due to siltation and also due to some wrong doing by the zamindar, this pond and that field got merged in the name of chakbandi (bringing together lands of one person at one place through mutual- often forced- exchange). The government had emphasized for the chakbandi for some unknown reason, perhaps because it increases food production. The land owned by Surju brother, filled with cattle dung and therefore very fertile, got merged with Yelloy Boy (Piyar Bachcha)’s land due to this chakbandi. In between the dams there is grazing field called Bauwa Chauri, used by the herdsman to graze their cattle. The cattle grazers come here, play here, and swim in Kamla River. Sometime they let their body flow in Kamla River and sometime they swim against the stream of the river. Between the dams there is one quarter of the village, the quarters of of milkmen. Earlier it was part of the village but now their voter list has been shifted to Jhanjharpur bazaar. Long long ago, at the village school there was a voting booth. These people were not allowed to vote at that booth, now it is the other way round.
Some of the graduates of Bauwa Chauri- as they are called jocularly- work in Delhi and Mumbai and some of them work in Saudia (Saudi Arab and Middle East). Some of them are security guards and some of them have started a firm which deals in security guard services.
In village there are many mango orchards; the big orchard, the Kharhori- (near to the habitations) where new trees had been planted, the Bhorha (near the abandoned course of a river) orchard; and the orchards over the mounds of the ponds. Earlier in the Kharhori there was agriculture land only. But once a person planted trees in his own land it brought shadow to other people’s land. So the other people’s production of paddy diminished. For sometime he talked about the mischievousness of his neighbor but he had to plant mango trees too in his land later on.
There is also an orchard of rose apple, all the sky high trees there. The Pepper trees are all around, at village deity’s place and at the school compound; you will found the root of pepper tree here and the branches of the roots all around the place.
Beside the village roads are trees of wild betel nuts, many types of shrubs used to clean teeth, the bamboo plantation, different types of flowers and thorns; and the sensitive plant, everywhere in almost all the orchards. Over the broad mango branches, the guards put their bed and sleep. But there is only one banyan tree, beside the black metal road near the quarters of Muslims.
The lands are of various types. The land between the river dams, the sandy land are now being called as the other-side-land by the people. A creeper tricosanthes dioica, the watermelon, musk melon, sweet root; the cultivation of all these are done here. If you want to buy the cheapest land then come here. But after the flood recedes, you will find the shape and size of the boundaries of your land changed. If in one year, after the flood, the shape and size of the boundary diminishes, there is no need of inciting any quarrel, as the goddess Kamla river might increase the area the very next year. The cultivation of paddy is also in existence. But that is often by chance, in some year even after sowing thrice it would be swiped away by the flood every time, but in some years the goddess Kamla river would fill so much fertile mud that whatever per katha production you are expecting, it would produce even more than that.
If you have good budget then buy the land near the habitations or near the white teak trees. Here people are buying land more for residence than for cultivation.
The land near the Dakahi pond is called Barhamottar. In old days some might have received this free land from the king. In old days, it is heard, these lands had good production, but now a day these remain always filled with water. The paddy seeds are thrown (different from the usual method of sowing the saplings) and paddy is cultivated (it, however, results in less production) in this manner in these lands.
The big plots, near the roads, near the Bhorha (beside the abandoned river course) and near the Purnaha (in the midfields) are used for cultivation. Besides some people have started cultivation on the curved land of the village enclosure near the dams. In geography books terrace cultivation is said to be practiced only on hills, here you will find terrace cultivation in plains on manmade hills. The weeping sound of people, whose milk giving buffalo just died, can be heard often. The magical obsession can also be seen. Often some mischievous lads throw flowers and unbroken rice, supposedly worshipped by a magic man or women, during night at somebody’s gate. It often leads to string of abuses by the offended household, who thinks that some bad-omen is going to grip their family. But the people have come understood now that it remains the work of some naughty boys.
Agriculture-fishing-animal husbandry based cattle grazer Brahmin dominated village is surrounded by literate (although a thief quarter also exist in this literate village), not that much literate; and a subdued and calm village (subdued and calm village=where people acquiesce to pressure). However neighbourhood thiefs do not have courage to do theft in this village. If you have a social relation in this village then all the old disputes in respect of land would stand settled. Ordinary people get transformed into strong ones, with a social relation established through a marriage relationship. After the relationship the weak ones turns into ones, who are having say in society. From this village, the arms wielding trouble shooters visit far off places for settling disputes. These trouble shooters settle the disputes of relatives and forcibly capture election booths. The rate of land in this village is Rupees twenty five thousand per Katha (1/20th of a bigha) but the same type of land in neighbouring village is available at a cheaper rate, say at Rupees ten thousand per Katha. The high lands in this village are cheaper because one cannot irrigate it with rain water. But after these dams were built, the cost of land of those monkey shaped people has also increased. Earlier the mediators of marriage, even after seeing that a boy is getting his share of only ten Katha in comparison to monkey shaped people’s village boy getting one bigha, preffered boy of this village for marriage. Because in the village of those monkeys shaped people, subsistence is not possible even if the boy has ten bighas of land as his share. But the key to luck has now been unfolded to them; when the flood comes their highlands get irrigated. Monkey shaped…you did not understand? The orchards of that village are inhabited by the monkeys and the people also look yellowish same like the monkeys! Monkeyish (yellow- like monkeys)! And nobody liked the job of a teacher, so all these monkey shaped village people became teachers. And now look at the salary of the teachers. All monkey shaped people, when they come out, wearing Dhoti (loin cloth) then people of this village get crazy out of envy.
However the Durga worship did not begin in this village. The submissive-village people also started it; but in this village? If we try how it is not possible? We did organise Ramlila (acts of Lord Ram performed by a theatre troope), is it a fact or not? But look, the roads started smelling with people’s urine. We are lucky that Durga Pooja is not celebrated in this village. One will have to bring one’s daughters during the celebration time; and the cohesion that this villagers have among themselves would break that the party-politics related with the Pooja brings.
The village is, however, predominantly of cattle grazing Brahmins.
Among the Brahmins of the village are Indrakant Mishra, Raman Kishor Jha and Arun Jha. On the day of Sukhrati festival (on the next day of Deepawali festival, festival of Hindus of Mithila) if you ever see the sport played by the buffalos of these cattle grazer Brahmins, you would lose interest in the game of polo. The pig purchased from the Dom caste of Samiya village is placed before the buffalos, drunk with cannabis drink. The cattle grazers who are sitting over the buffalo in Central portion of the animal, is an amazing scene to watch. In this village there are other castes too.
Between the dams, on the high mound is the quarter of milkmen. Even during flood this quarter of the village is never touched by flood water. The transportation during those days is through boat. The rowers of boat inside Kamla are not the people from fishing caste but those are from the milkman caste. They receive grain from the villagers for their services. Yes, but from people of other village, they charge in cash for their services.
There is one Muslim quarter in the village, they are in vegetable business, bhut they do not grow vegetables but only sell it. In that quarter lives Mohammad Shamsul, his son lives in Saudia. This quarter is near the black metal road on the outskirts of the village. The people of this quarter of the village have registered their name in the voter list of the adjacent village. Near that quarters are four families of Dom caste. The reason for enrolling themselves in the voterlist of adjacent village by these people is the same as it was for the people of milkman’s quarter. But the villages are not made out of the voter list. So these two quarters are still a part of this village. The necessity of Dom caste in festivals is well known. The Dom Caste makes all types of articles from the bamboo, like the one for storage of grains and articles; and also the bamboo fans. The quarter of Muslims is also required, particularly for the meat, be it for the marriage party or for the guests. The head of the poor animal is taken by the Durga Pooja Committee after the holy-sacrifice ceremony to goddess Durga is over. In off-season the Muslims cut half the throat of the castrated he-goat. But after cutting the meat, they take the head and also the skins in lieu of their wages. When these cattle grazer Brahmins sing the devotional songs in front of the Hanumanji temple and perform twenty four hour non-stop worship at the temple, those drums which are used during the ceremony are made out of those skins.
And again there is Dhanukh-Toli. Bhagwandutt Mandal and Adhiklal Mandal are from the quarters of the Dhanukh caste. Earlier those people carried the gifts to other villages carrying a special bamboo stick having two strings on the two sides and carried on their shoulder. But now this work is undertaken by the people from Dusadh caste. Agriculture is the avocation of people from Dhanukh quarters and Dusadh quarters. Yes, earlier these people worked as workers, but now they work on co-sharing basis. In times of strife there is not a single month when you will not find ladies from these quarters of village wielding blackened earthen utensils displaying these to the cattle grazer Brahmins. These people may be said to practice animal husbandry, so far as rearing of she-goat and uncastrated he-goat is concerned, the latter used for sacrifice to the godess Durga. Some of them have begun keeping one ox and turn by turn these people do ploughing and other agriculture work by coupling their oxen together.
Even though it consists of only three houses, the small quarters of washermen has become a separate quarter of the village. The clothes of even Marwaris (business people originally from Rajasthan, settled here) of Jhanjharpur town are cleaned here. The cattle grazer Brahmins go for marriage party wearing these flashy full pants, these are not their own, actually these are costly clothes of those Marwaris and lended by the washermen. The washermen gives these clothes on rent for two days, the clothes of the Marwaris.
Korail, Budhan and Domi Safi, all of them are washerman. Domi Safi is now Domi Das, he practices sect of Saint Kabir now. The quarter of barbers also consist of just three families. Jayaram Thakur, Lakshmi Thakur and Maley Thakur, all barbers, all are talkative. With them always remains the list of annual donation that each family has to give to these families of barbers in lieu of the services that these barbers provide throughout the year. They are always on run, to claim their labour, whenever a person comes to village from town. Whoever comes during Durga Pooja from their far-off working place, they have to pay their due before their return to their workplace. Earlier in a fortnight these barbers went from one corridor to another for hair cutting. But now whoever wants a shave of his head or face will have to go to the barber’s house. Yes, but if it is marriage of a son then they go to corridor of the bridegroom to shave the people who are going to attend the marriage party, but he sits at one place only. Whoever is there should remain in line. It should not be like that one is coming now and another is coming after a while. Now one from each of the family of barbers has started a saloon at Jhanjharpur. Saloon is a plastic cover placed over the bamboo pillars beside the railway track. The use of nail-pairer is almost extinct. The nail should be cut by the individuals themselves. During the period of condolence, after the death of a person belonging to the same clan, the nail of the lady would be cut by the wife of the barber, only that. And during shaving beard with sharpened razor, if blood comes out, it would be not due to wrong movement of razor but as it would be because there was some blister there on face. No dear, this razor using the topaz safety blade is for my Jhanjharpur saloon.
There is another quarters of the village, of leather tanners. Mukhdev Ram and Kapildev Ram are prominent among them. Earlier they were residing outside the boundary of the village, beyond the bamboo plantations. But now the bamboos had been cut extensively, so it has thinned. The habitation of people has extended upto these quarters of the leather tanners. The construction of new buildings and the placement of bricks here and there is a normal scene. Announcing with the drum to ward-off evil spirit or to announce something; and to play drum and pipes are the works undertaken by them. If cattle die, till it is lifted by them, people are in the grip of condolence of death; people can neither eat nor bath.
Among the carpenters the most respected in the village Garh Narikel is the family of Joginder Thakur. But when the titular head of the carpenters come from the far off village, then the intelligence of Joginder Thakur goes dim, and he utters only yes on both righteous and unrighteous utterances. Joginder has three sons, Bihari, Arjun and Shivanarayan. All are engaged in woodwork but Bihari do iron-work too; and Arjun has become cycle-mechanic, side by side. He does all the work from minor repair of rickshaws as well as bicycles and repairs the punctured tube. He has discovered the making of a cricket ball made out of the root of bamboo; he has discovered wooden circular plate to run through a crooked spike of iron-wire; and many more games. So when people say, look, if you read and write you would get job; this exception should change their views. Look at Shivnarayan, how innovative he is, he makes many things even out of the useless inappropriate wood. But the hand-skill of Bihari is nowhere to be found, different types of cut- vertical, horizontal, crooked and oblique cuts, he is master of all.
Shivnarayan discovers, however Bihari replicates those discoveries in a better way. In villages there is no copyright available to a discoverer. On hard wood the saw and other implements of Shivnarayan gets blunt, but Bihari gets out of it, not knowing how! He makes something out of a weak wood and sells those in market. For sawing a plank if big saw is not available he even saws plank using the smallest available saw. He delineates the strong wood from the weak wood meticulously and dexterously.
Jagdish Mile is looked after for the holy cloth when offering of this to the goddess is required, his wife is very skilled.
Bhola Pandit is potter, he moulds and makes earthen vessels; and he makes earthen birds and earthen animals for the children too. In the making of earthen utensils he is unparelled.
Satyanarayan Yadav, the Raut Sir, and now the nomenclature has changed from milkman to Yadav Sir. From the trade of milk to agriculture and to fill the village road with earthwork, all these are in his hands.
Basu Chaupal is from Khatbe Caste, he carries gifts to other villages, and gifts include fish. He sales fish in the fish market.
Chalittar Sahu and Laddulal Sahu, both are sweet manufacturers, they arrange for a temporary shop during the Durga Pooja festival. During jovial festivities or during the feast related with death or death anniversies he gets contract of preparation of vegetable dish.
Shivnarayan Mahto is from Suri caste, a business class.
Laxmi Das is from Tatma caste, a thread weaving caste.
Lal Kumar Roy is from Kurmi Caste.
Bhola Paswan and Mukesh Paswan are from Dusadh Caste, earlier the milk business was held by them, but not now.
Satyanarayan Kamti is from Keot caste, they were stationed at the farmhouses of the Darbhanga Raj. Ramdeo Bhandari is from the Bhandari caste, this caste is a type of Keot caste, and they managed the Kitchen of Darbhanga Raj.
Kapileshwar Raut and Ramavtar Raut are from Barai caste, they do ancestral betal-leaf business.
From the Dom caste is Bodha Malik, from the Koir caste is Dukhan Mahto, from the Bhumihar caste is Radhamohan Roy; and from the goldsmith caste is Ashok Thakur.
Among the oil business community are Ramchandra Sao, Bauku Sao and Kari Sao.
From the fisherman community is Jibachh Mukhiya. In the Dakahi pond, once in a year, is held the fish catching fair. The fisherman put the big net into the pond; a whole quarter of fisherman comes to the pond for one whole month. Earlier the fair extended for more than one month but now due to scarcity of fish, it goes hardly over twenty days. Then the head of the fisherman announces- “Now the big fishes are no more in this pond. If we fish through the big net, none could be entrapped. But if we fish through the delicate small nets, all the small fishes would get caught. And then you will have to saw fish seed into this pond”.
During those fifteen to twenty days, there remains festival like atmosphere in the village. This becomes excuse for the cleanliness of the pond. From early morning from 4 AM till the noon fishes are caught. And till the afternoon all the villagers- excepting the southern quarters of the village- are given their share. All the people, the representatives from different quarters, take their share and return to their respective quarters. All the families obtain their shares out of the share of their quarters. How many shares are there out of the quarter’s share, sometimes it gives cause for strife. Till she was alive, may be one did not talk to one’s widow aunt, but after her death people remember their aunt. May be that while she was alive, her desire to offer some share to her daughter might have been stalled by the nephew and may he might have obtained thumb impression of her dead aunt that becomes immaterial now. On this count strife ensues, and the wrestler whom people out of love calls wrestler uncle, receives that kind of share, nobody else. It does not matter whether this widow, of wrestler uncle’s courtyard, died a long twenty years ago.
There is one more speciality of Dakahi pond. Inside this pond tortoise and fishes grow in number, on its own. Beside the pond many types of roots and lichens are found. The sweet roots are eaten by the cattle grazer boys.
Buchkan Saday is from Mushhar caste.
Near the Dakahi pond there are many small water-bodies, the swampy ground may be seen around it. From there the Mushhar caste people dig the roots and eat them. In the year 1967 when most of the ponds dried even then this big Dakahi pond did not completely dried up, although the area of the pond diminished dramatically. The Prime Minister had come here during those days, and he was shown how the Mushahar caste was surviving during those days, eating these roots.
These are the persons having say, living in the village Garh Narikel.
(contd.)
VIDEHA MAITHILI SAMSKRIT TUTOR
बिपिन कुमार झा
लैटेक्स : परिचयः उपादेयता च
(गताङ्कतः अग्रे)
बिपिन कुमार झा
वरिष्ठ अनुसंधाता
भारतीयप्रौद्योगिकीसंस्थानम्
मुम्बई
लेटेक्सगणितीयटंकनशिक्षणपरिशीलनम्-2
फ्रैक कमाण्ड अग्रे वयं यत् करवाणि तदस्ति उपयोगं फ्रैक्सन इति निर्माणे भविष्यति। एतस्य संचयं कुर्मः। फ्रेक ए बी अनेन उत्पाद्यते । बी द्वारा ए । अत्र ए तथा बी लघु रूपे प्रतीयेते, उदाहरणरूपे बी द्वारा ए अस्तित्वं प्राप्नोति ए तथा बी इति अनयोः आकारं पश्यतु कमाण्ड् फेक स्पेश मध्ये समाप्तिं प्राप्नोति। अत्र तर्कद्वयं मिलति। ए इत्यस्य प्रथमतर्क न्युमेरेटर रूपे स्वीक्रियते द्वितीयतर्क बी डिनोमिनेटर रूपे स्वी क्रियते। एतत् अत्र फेक ए बी इत्यनयोरनुसरणं करोति। अवकाशाभावेऽअपि अत्र तदेव उत्तरं मिलति। अत्र समानं उत्तरं मिलति। ए तथा बी इत्यनयोर्मध्ये अवकाशस्य अपेक्षा न अस्ति।
यदा सी डी द्वारा ए बी निर्मातुं ईहेतदा किं भवति। लेटेक्स इति अस्मिन् ब्रेक्स मध्ये तर्काणि संयुक्तानि भवन्ति उदाहरणतया वयं सी डी द्वा डालर् फ्रेक ए बी दद्मः। बी द्वा ए सी डी अत्र अस्ति ब्रेक्स इति अस्मिन् स्थित सूची ए तर्क रूपे स्वी क्रियते। परिणामतः कोपि ब्रेकस स्थित जटिल अभिव्यक्तौ गन्तुं शक्नोति। उदाहरणतया, फ्रैक ए बी तदनु अत्र 1+ फ्रैक सी डी इ एफ़ द्वारा। एतस्य पिधानं करोतु। एतत अत्र पश्यतु। वयं वयं इतोपि जटिलतरा अभिव्यक्तिनिर्माणं कृतवन्तः स्मः। ई एफ़ द्वारा १+ सी डी द्वारा ए बी विभाजितम। एतत् कमाण्द कथयति यत् ए बी इत्यस्य प्रथम तर्क न्युमेरेटर मध्ये आगच्छेत इति। द्वीतीय तर्क रूपे अस्ति यत् डिनोमेनेटर प्रति गच्छति। तदस्ति इइ एफ़ द्वारा १ + सी डी। एतत परिदृश्यं उपयोगं कुर्वन् एतत् सम्भवति यत् जटिल तरा अभिव्यक्ति अपि टाइप सेट कर्तुं शक्यते।
अधुना वयं सबस्क्रिपट तथा सुपरस्क्रिप्ट पश्यामः। एतस्य लोपं कुर्मः एक़ अण्डरस्कोर एक्स इत्यस्य ए निर्माणं करोति। ए इत्यस्याकारं स्वयमेव समायोजितं भवति। ए अण्डरस्कोर ए बी कृते किं भवति अस्तु एतत् कुमः ए, अ बी, ए डालर साइन मध्ये स्वीकरोमि। यदि एक्स सब् ए बी इत्यनयोः अपेक्षां कुर्मः निराशां प्राप्नुमः वयं केवलं एक्स् सब ए बी प्राप्नुमः एतस्य कारणं अस्ति- सबस्क्रिप्ट कमाण्द एकस्य तर्कस्य अपेख्शां करोति। ए तर्क रूपे अत्र स्वीक्रुतम अस्त् अस्तु यदि वयं प्रोडक्ट ए बी इत्यनयोः वांछा कुर्मः यत् सब्स्किप्ट रूपे भवेत् तर्हि ब्रैक्स मध्ये एतस्य अन्वितिं भवेत्। उदाहरणतया वयं एतत् समस्तं ब्रैक्स मध्ये स्थापयामः। अचिरं एतत् अभवत्।
कैरट द्वारा सबस्क्रिप्ट निर्मितम् अथवा एरो संकेत द्वारा निमितम्। उदाहरणरूपे यदि भवान् x power 3 कृते x निर्मातुम् इच्छति तर्हि लेखनं स्यात् x up arrow 3 सामान्य सम्पादने एतत् एवं प्रकारेण प्रतीयते x up arrow 3 वयं डालर इत्यनेन सह अन्वितिं कुर्मः । एतस्य संचयं करोतु X to the power 3 प्राप्त्यर्थम्। एकबारं पुनः ब्रेक्स उपयोगं कुर्मः। वयं जटिलतरां अभिव्यक्तिं या सब्स्क्रिप्ट्स एवं सुपरस्क्रिप्ट्स सन्दर्भिता अस्ति उत्पादयितुं क्षमाः भवामः। उदाहरण रूपे x द्वारा पावर 3 अनेन पावर ए अनेन पवर 2.5 उत्पादनं भविष्यति। x द्वारा पवर 3 बारत्रयम् कर्तुं शक्नुमः। शोभनम्, अधुना यदि वयं बारत्रयं न कर्तुं उद्यता स्मः तर्हि लोपं कुर्मः। सम्यक्,अधुना वयं पश्यामहे यत् x द्वारा पावर ए द्वारा पावर 2.5 तथा वयं अत्र सब्स्क्रिप्ट्स अपि योजनं कर्तुम् शक्नुमः। सब्स्क्रिप्ट कौमा बीटा सी ई अस्ति। अनेन सब्स्क्रिप्ट इत्यस्य पिधानं क्रियते। अग्रिमस्तर रूपे अस्ति डालर संकेत। एतत् अत्र अस्ति। x द्वारा पावर ए द्वारा पावर 2.5 स्ब्स्क्रिप्ट बीटा कौमा को सब्स्क्रिप्ट दी ई अस्ति। अधुना वयं कतिपय सामान्य संकेतावलोकनं कुर्मः। एतस्य संचयं कुर्मः। क्लीन स्लेट इत्यनेन सह प्रारंभं करोतु। ए तुल्यं बी अस्ति कौमा ए तुल्यं बी नास्ति कौमा एतत् पश्यतु। बी तुल्यं नास्ति। अग्रिमां पंक्तिं प्रति गच्छतु। ए बी तः महत्तरं अस्ति कौमा ए बी महत्तरं अथवा समानं अस्ति कौमा ए महत्तरं पुनश्च महत्तरं अस्ति बी तः पश्यतु किं भवति । ए बी तः महत्तरं अस्ति महत्तरं तथा समानं अस्ति बी तः कौमा अधिकं महत्तरं अस्ति बी तः। समानरूपे न्यूनं । न्यूनं बी तः न्यूनं अथवा समानं बी तः। ए न्यूनं पुनरपि न्यूनं बी तः एअतत् पश्यतु। न्यूनं अथवा समानं कौमा अधिक न्यूनं बी तः।
ए राइट एरो बी कौमा ए लेफ्ट एरो बी कौमा राइट एरो बी । राइट एरो कौमा लेफ़्ट एरो कौमा लेफ़्ट राइट एरो। किंचित अधिकं योजयामः। ए टाइम्स बी । पश्यतु किं भवति। अत्र ए टाइम्स बी अस्ति। ए + सी-डाट + बी। ए कौमा एल-डाट्स कौमा बी। सम्यक्, सी-डाट्स एतस्य अर्थ अस्ति डाट्स केन्द्रे आपतति कौमा एल-डाट्स परिणमति डाट्स इत्यस्य अधः आगमने। समानरूपे वी-डाट्स तथा डी-डाट्स एतस्य निर्माणं सम्भवति। कोपि –i-n-f-i-n-i-t-y कौमा infinity उपयोगं कृत्वा अनन्त निर्माणं कर्तुं शक्नोति। सकेतं पश्यतु।
कतिपय sum कमाण्ड इत्यस्य निर्माणं सम्भवति।पश्यतु sum command. । समेशन सिम्बाल । वयं सब्स्क्रिप्ट तथा सुपरस्किप्ट योजितं क्षमाः स्मः। अहं I इक्वल्स 1 कौमा अप एरो 100 कौमा यत् सुपरस्क्रिप्ट अस्ति। एतत् अत्र अस्ति। एतत् पश्यतु। एतत् पाई संकेतम्। वयं अन्तर्निहितं निर्मातुं शक्नुमः सहैव सबस्क्रिप्ट कौमा बीटा टू द पावर टू । इण्टिगरल कौमा अनइण्टिगरल सबस्क्रिप्ट ए कौमा सुपरस्क्रिप्ट बीटा स्क्वेयर। सम्यक्, अधुना मट्रिक्स क्रूते चलामः। तावत् प्रथमं सर्वं अपसारयामः। संचयं स्यात् तथा क्लीन स्लेट इत्यनेन प्रारंभः स्यात्। एतस्य कृते अपेक्षते कमाण्ड ”use package a-m-s-math”| एतत् पैकेज अतिरिक्तं अनुदेशं ददाति तत्रस्थ कतिपयानाम् उपयोगं कुर्मः अधुना। एम्पर्सेण्ड यत् अन्तिमं संकेतं विद्यते कालम पृथक्करणे एतस्य प्रयोगं भवति। वयं कथं मट्रिक्स इत्यस्य निर्माणं कुर्मः। वयं प्रारंभं कुर्मं मट्रिक्स ए, बी तथा अन्तिम मट्रिक्स। डालर संकेतं ददातु। एबी इति पश्यतु।
मन्ये वयम् अत्र द्वितीयां पंक्तिं योजयितुम् इच्छामि। एतत रिवर्स श्लैस तथा रिवर्स श्लैस द्वय द्वारा निर्मातुं शक्यते। रिवर्स श्लैस द्वारा पंक्तिप्थक्करणं भवति। अस्तु वयं कथयामः सी डी ई। द्वितीयायां पंक्तौ लेखनत्रयं भवति। सम्यक्, भवता प्राप्तम् एतानि सी डी ई। अत्र पुनर्लेखनं कर्तुं शक्यते। प्रथमा पंक्तिः, द्वितीया पंक्तिः, तृतीया पंक्तिः। प्रभावः समानः। मन्ये पी मट्रिक्स अत्र स्वीकरोमि। यत् प्राप्नुमः तदस्ति एतत्। बी मट्रिक्स स्वीकरोमि। अधिकं जटिलतरं मट्रिक्स निर्मातुं शक्यते। वयं अग्रे चलामः। पूर्वमेव मया अनुदेशं परिभाषितम्। कापी करोतु पेस्ट करोतु। एतत् पुरातन संचये दृष्टिगतं न भविष्यति यतो हि एतत् अन्तिम लेखात् अधः अस्ति। यत् किमपि अधः भवति उपेक्षितं भवति। अस्तु अहं एकं जटिलतरं निर्मितवान्। चतस्रः पंक्तयं सन्ति। प्रथमा कथयति ए अप टू जेड। द्वितीया कथयति ए स्क्वेयर बी स्क्वेयर अप टू जेड स्क्वेयर। तृतीया कथयति केवलं वी डाट्स। एषा अन्तिमा पंक्तिः।
सामान्यरूपे लेटेक्स कमाण्ड केस सेंसेटिव भवति। उदाहरणरूपे यदि अहं एतस्य परिवर्तनं कैपिटल बी रूपे करोमि तु पश्यतु किं भवति अत्र। एतत् भिन्न परिणामं जनयति। सामान्यतया लेटेक्स मध्ये लोअर केसरूपे एव कमाण्ड भवति केवलं यत्र अपर केस इक्वूवाइलेण्ट न भवति। यः विण्डोजमध्ये लेटेक्स इत्यस्य उपयोगं करोति स अवश्य अवधानं दद्यात् इति।
अधुना शिक्षणं समाप्नोति। लेटेक्स इत्यस्य प्रारंभिक शिक्षार्थी एतत् अवधानं ददातु यत् लेटेक्स इत्यस्य प्रत्येक परिवर्तनस्य अनन्तरं संचयं भवेत् तथा अवधानं स्यात् यत् परिवतनं स्वीकारयोग्यम् अस्ति।
धन्यवादाः श्रवणार्थम् अवधानार्थं च ।
एषः अस्ति[ बिपिन कुमार झा][1], Cell for Indian Science and Technology in Sanskrit, IIT मुम्बईतः
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