जगदीश प्रसाद मण्डल
नाटक
जगदीश प्रसाद मण्डल
नाटक
झमेलिया बियाह
पहिल दृश्य
(भागेसर, सुशीला)
(रोग सज्जापर सुशीला। दवाइ आ पानि नेने भागेसरक प्रवेश।)
भागेसर- केहेन मन लगैए?
सुशीला- की कहब। जखन ओछाइनेपर पड़ल छी, तखन भगवानेक हाथ छन्हि। राजा-दैवक कोन ठेकान?
भागेसर- से की?
सुशीला- उठि कऽ ठाढ़ो भऽ सकै छी, सुतलो रहि सकै छी।
भागेसर- एना किअए बजै छी। कखनो मुँहसँ अवाच कथा नै निकाली। दुरभखो विषाइ छै।
सुशीला- (ठहाका दऽ) बताह छी, अगर दुरभाखा पड़तै तँ सुभाखा किअए ने पड़ै छै? सभ मन पतिअबैक छी।
भागेसर- अच्छा पहिने गोटी खा लिअ।
सुशीला- एते दिनसँ दवाइ करै छी कहाँ एकोरत्ती मन नीक होइए?
भागेसर- बदलि कऽ डाॅक्टर सहाएब गोटी देलनि। हुनका बुझबेमे फेर भऽ गेल छलनि। सभ बात बुझा कऽ कहलनि।
(गोटी खा पानि पीब पुन: सिरहौनीपर माथ रखि।)
सुशीला- की सभ बुझा कऽ कहलनि?
भागेसर- कहलनि जे एक्के लक्षण-कर्मक कते रंगक बेमारी होइए। बुझैमे दुविधा भऽ गेल। तँए आइसँ दोसर बेमारीक दवाइ दइ छी।
सुशीला- (दर्दक आगमन होइत पँजरा पकड़ि।) ओह, नै बाँचब। पेट बड़ दुखाइए।
भागेसर- हाथ घुसकाउ ससारि दइ छी।
(सुशीला हाथ घुसकबैत। भागेसर पेट ससारए लगैत कनी कालक पछाति।)
सुशीला- हँ, हँ। कनी कऽ मन असान भेल।
भागेसर- मनसँ सोग-पीड़ा हटाउ। रोगकेँ दवाइ छोड़ाओत। भरिसक दवाइ आ रोगक भिड़ानी भेलै तँए दर्द उपकल।
सुशीला- भऽ सकैए। किअए तँ देखै छिऐ जे भुखल पेटमे छुछे पानि पीलासँ पेट ढकर-ढकर करए लगैए। भरिसक सएह होइए।
भागेसर- भगवानक दया हेतनि तँ सभ ठीक भऽ जाएत।
सुशीला- किअए भगवानो लोके जकाँ विचारि कऽ काज करै छथिन।
भागेसर- अखैन तक एतबो नै बुझै छिऐ।
सुशीला- हमरा मनमे सदिखन चिन्ते किअए बैसल रहैए। खुशीकेँ कतए नुका कऽ राखि देने छथि। आ कि.....?
भागेसर- कि आ कि?
सुशीला- नै सएह कहलौं। कियो ठहाका मारि हँसैए आ हमरा सबहक हँसिये हराएल अछि।
भागेसर- हराएल ककरो ने अछि। माइटिक तरमे तोपा गेल अछि।
सुशीला- ओ निकलत केना?
भागेसर- खुनि कऽ।
सुशीला- कथीसँ खुनबै?
भागेसर- से जे बुझितौं तँ एहिना थाल-पािनमे जिनगी बीतैत।
सुशीला- जखन अहाँ एतबो नै बुझै छिऐ तँ पुरूख कोन सपेतक भेलौं। अच्छा ऐले मनमे दुख नै करू। नीक-अधलाक बात-विचार दुनू परानी नै करब तँ आनक आशासँ काज चलत।
भागेसर- (मूड़ी डोलबैत जना महसूस करैत, मुँह चिकुरिअबैत।) कहलौं तँ ओहन बात जे आइ धरि हराएल छलै मुदा ई बुझब केना?
(भागेसरक मुँहसँ बतीसो दाँत सोझ आएल, जइसँ पत्नी हँसी बुझि।)
सुशीला- अहाँक खुशी देख अपनो मन खुशिया गेल।
भागेसर- मन कहाँ खुशिआएल अछि।
सुशीला- तखन?
भागेसर- बतीसयासँ सठिया गेल अछि। वएह कलपि-कलपि, कुहरि-कुहरि कुकुआ रहल अिछ।
सुशीला- छोड़ू ऐ लट्टम-पट्टाकेँ। जेकरा पलखैत छै ओ करैत रहह। अपन दुख-सुखक गप करू।
भागेसर- कना दुख-सुखक गप अखैन करब। मन जड़ाएल अछि हुअए ने हुअए.......?
सुशीला- की?
भागेसर- जड़ाएले मनक ताउसँ बौराइ छै। पहिने देहक रोग भगाउ तखैन निचेनसँ विचार करब।
सुशीला- बेस कहलौं। भिनसरेसँ झमेलियाकेँ नै देखलिऐ हेन?
भागेसर- बाल-बोध छै कतौ खेलाइत हेतै। भुख लगतै अपने ने दौड़ल आओत।
सुशीला- ऐ देहक कोनो ठेकान नै अछि। तहूमे बेमारी ओछाइन धरौने अछि। जीता जिनगी पुतोहू देखा दिअए?
भागेसर- मन तँ अपनो तीन सालसँ होइए जे बेटा-बेटी करजासँ उरीन रहब तखन जे मरियो जाएब तँ करजासँ उरीन मनकेँ मुक्ति हएत।
सुशीला- सएह मनमे उपकल जे बेटीक बियाह कइये नेने छी। जँ परानो छुटि जाएत तँ बिनु बरो-बरियातीक लहछू करा अंगबला अंग लगा लेत। मुदा.....?
भागेसर- मुदा की?
सुशीला- यएह जे झमेलियोक बियाह कइये लिअ।
भागेसर- अखन तँ लगनो-पाती नहिये अछि। समए अबै छै तँ बुझल जेतै।
(झमेलियाक प्रवेश।)
झमेलिया- माए, माए मन नीक भेलौं किने?
सुशीला- बौआ, लाखो रोग मनसँ मेटा जाइए, जखने तोरा देखै िछयह। भिनसरेसँ नै देखलिअ कतए गेल छेलहहेँ?
झमेलिया- इसकूलक फीलपर एकटा गुनी आएल छलै। बहुत रास कीदैन-कहाँ सभ झारामे रखने छलै। डमरूओ बजबै छलै आ गाबि-गाबि कहबो करै छलै।
सुशीला- कि गबै छलै?
झमेलिया- लाख दुखक एक दवाइ। पाँचे रूपैया दामो छलै।
सुशीला- एकटा नेने किअए ने एहल?
झमेलिया- हमरा पाइ छलए?
सुशीला- केमहर गेलै?
झमेलिया- मारन बाध दिसक रस्ता पकड़ि चलि गेल।
सुशीला- बौआक बियाह करा दियौ?
(वियाहक नाआंे सुनि झमेलियाक मुँहसँ खुशी निकलैत।)
भागेसर- वियाहैओ जोकर तँ भइये गेल अछि। कहुना-कहुना तँ बारहम बर्ख पार कऽ गेल हएत?
सुशीला- पैछला भुमकमकेँ कते दिन भेल हएत। ओही बेर ने जनमल?
भागेसर- सेहो कि नीक जकाँ साल जोड़ल अछि। मुदा अपना झमेलियासँ छोट-छोट सभकेँ बियाह भेलै तँ झमेलियो भेइये गेल किने?
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दोसर दृश्य
(सुरूज डूबैक समए। बाढ़नि लऽ झमेलिया आंगन बाहरए लगैत। सुशीला आबि बाढ़नि छिनैत।)
सुशीला- जाबे जीबै छी ताबे तोरा केना आंगन-घर बहारए दिऔ।
झमेलिया- किअए, ककरो अनकर छिऐ? अपन घर-आंगन बहारब कोनो पाप छी।
सुशीला- धरम आ पाप नै बुझै छी। मुदा एते तँ जरूर बुझै छी जे भगवानेक बाँटल काज छियनि ने। पुरूख आ स्त्रीगणक काज फुट-फुट अछि।
झमेलिया- राजा-दैवक काज ऐसँ फुट अछि। सभ दिन कहाँ बहारए अबै छलौं। अखन तू दुखित छेँ, जखन नीक भऽ जेमे तखन ने तोहर काज हेतौ।
सुशीला- सएह बुझै छिही, ई नै बुझै छिही जे काजे पुरूख-सत्रीगणक अन्तर कऽ ठाढ़ रखने अछि। भलहिं बेटा छिऐ एहेन-एहेन बेरमे तू नै देखमे तँ दोसर केकर आशा। मुदा.......?
झमेलिया- मुदा की?
सुशीला- यएह जे माए-बाप बेटा-बेटीक पहिल गुरू होइ छै। हिनके सिखैलासँ बेटा-बेटी अपन जिनगीक रास्ता धड़ैए।
(माइयक आगू झमेलिया ओहिना देखैत अछि जहिना रोगसँ ग्रसित माए अपन दूधमुँह बच्चा देख हुकड़ैत अछि। तहिना हाथक बाढ़नि निच्चा मुँहे केने सुशीला झमेलियाक चेहरापर रखि जना पढ़ि रहल हुअए कि ऐ कुल-खनदान आ परिवारक संग माइयो बापक तँ यएह माइटिक काँच दिआरी छी जे अबैत दोसर दिआरीकेँ लेसि टिमटिमाइत रहत। तइकाल भागेसर आ यशोधरक प्रवेश।)
भागेसर- (झमेलियासँ) बौआ साँझ पड़ल जाइ छै, दुआर-दरवज्जाक काज देखहक।
झमेलिया- दरबज्जा बहारि आंगन बहारए एलौं कि माए बाढ़नि छीन लेलक।
(बिना किछु बजनहि भागेसर नीक-अधला विचार करए लगल।)
(कनीकाल बाद।)
भागेसर- (पत्नीसँ) मन केहेन अछि?
सुशीला- अहूँ बुझिते छी आ अपनो बुझिते छी जे साल भरि दवाइ खाइले डॉक्टर सहाएब कहलनि से निमहत। जइठीन मथटनकीक एकटा गोटी नै भेटै छै तइठीन साल भरि पथ-पानिक संग दवाइ खाएब......?
(बहीनक बात सुनि यशोधरकेँ देह घमा गेल। चाइनिक पसीना पोछैत।)
यशोधर- बहीन, भगवानो आ कानूनो ऐ परिवार जबाबदेह बनौने छथि। जाबे जीबै छी ताबे एहेन बात किअए बजै छह?
सुशीला- भैया, अहाँ किअए.....? खाइर छोड़ू काजक की भेल?
यशोधर- बहीन, मने-मन हँसियो लगैए आ मनो कचोटैए। मुदा.......?
सुशीला- मुदा की?
यशोधर- (मुस्की दैत) पनरह दिनमे पएरक तरबा खिआ गेल मुदा काजक गोरा नै बैसल। एकटा लड़कीक भाँज नवानीमे लागल। गेलौं। दरबज्जापर पहुँच घरवारी अवाज दैते आंगनसँ निकललाह।
(बिचहिमे भागेसर मुस्की देलनि।)
सुशीला- कथो-कुटुमैतीकेँ हँसियेमे उड़ा दइ छऐ?
यशोधर- हँसीबला काजे भेल। तँए हँसी लगलनि।
सुशीला- की हँसीबला काज भेल?
यशोधर- दरबज्जापर बैस गप चलेलौं कि जहिना हवाक सिहकीमे पाकल आम झड़भड़ा जाइत तहिना स्त्रीगण सभ आबए लगलीह।
सुशीला- स्त्रीगणे अबए लगली आ पुरूख नै?
यशोधर- स्त्रीगण बेसी पुरूख कम। एकटा स्त्रीगण बिचहिमे टभकि गेलीह।
सुशीला- की टपकली?
यशोधर- (मुस्की दैत) हँसियो लगैए आ छगुन्तो लगैए। बजली जे बर पेदार अछि कि जे आनठाम कन्यागत जाइत छथि आ अहाँ......? सुनिते मनमे नेसि देलक। उठि कऽ विदा भऽ गेलौं।
सुशीला- स्त्रीगणेक बात सुनि अगुता गेलौं। परिवारमे बेटा-बेटीक बियाह पैघ काज छऐ पैघ काजक रास्तामे छोट-छोट हुच्ची-फुच्चीपर नजरि नै देबाक चाहिऐ।
यशोधर- एतबे टा नै ने, गामो नीक नै बुझि पड़ल। आमक गाछीसँ बेसी तरबोनी खजुर बोनी। एहेन गामक स्त्रीगण तँ भरि दिन नहाइये आ झुटकासँ पएरे-मजैमे बीता देत। तखन घर-आश्रमक काज केना हएत। सोझे उठि कऽ रास्ता धेलौं।
सुशीला- आगू कतए गेलौं?
यशोधर- ननौर। गाम तँ नीक बुझाएल। मुदा राजस्थाने जकाँ पानिक दशा। खाइर कोनो कि बेटीक बियाह करब। बेटाक करब। बैसिते गप-सप्प चलल। घरवारी कुल-गोत्र पुछलनि। कहलियनि। सोझे सुहरदे मुँहे कहलनि, कुटुमैती नै हएत।
सुशीला- किअए, से नै पुछलियनि?
यशोधर- कि पुछितियनि। उठि कऽ विदा भेलौं।
सुशीला- भैया, दिन-दुनियाँ एहने अछि। कते दिन छी आ कि नै छी। मन लगले रहि जाएत।
यशोधर- कोनो कि बेटीक अकाल पड़ि गेल जे भागिनक बियाह नै हएत।
सुशीला- डाॅक्टर सहाएब ऐठाम कते गोटे पेटक बच्चा जँचबए आएल रहए।
यशोधर- ओ सभ वियाहक दुआरे खुरछाँही कटैए। मुदा.....?
सुशीला- मुदा की?
यशोधर- माइयो-बापक सराध छोड़ि देत। वियाहसँ कि हल्लुक काज सराधक छै।
सुशीला- ठनका ठनकै छै तँ कियो अपना मत्थापर दइ छै। ई तँ बुझै छी जे, जे 'गाए मारि कऽ जूत्ता दान' कहलो जाइ छै। मुदा बुझनहि कि हएत। आगूओ बढ़लौं?
यशोधर- छोड़ि केना देब। तेसर ठाम गेलौं तँ पुछलनि जे लड़का गोर अछि कि कारी?
सुशीला- किअए एहेन बात पुछलनि?
यशोधर- लोकक माथमे भुस्सा भरि गेल छै। एतबो बुझैले तैयार नै जे मनुक्खक मनुखता गुणमे छिपल छै नै कि रंगमे।
सुशीला- (निराश मने) कि झमेलिया ओहिना रहि जाएत। सृष्टि ठमकि जाएत?
यशोधर- अखन लगन जोड़ नै केलकै हेन, तँए। जहिना संयोग आबि जेतै तहिया सभ ओहिना मुँह तकैत रहत आ बियाह भऽ जेतै।
यशोधर- बहीन, ऐ लेल मनमे दुख करैक काज नै । जखन काजमे भीड़ गेलौं तँ कइये कऽ अंत करब। ओना एकटा लगलगाउ बुझि पड़ल।
सुशीला- की लगलगाउ?
यशोधर- ओ कहलनि जे अहूठामक परिवार, परिवारक काज देख लियौ आ ओहूठामक देख कऽ, काज सम्हारि लेब।
भागेसर- ई काज हेबे करत। अपनो ब्रह्म कहैए जे एक रंगाह परिवार (एक व्यवसायसँ जुड़ल)मे कुटुमैती भेने परिवारमे हड़हड़-खटखट कम हएत?
सुशीला- (मूड़ी डोलबैत) हँ, से तँ हएत। मुदा विधताक चूक भेलनि जे मनुक्खोकेँ सींघ नाङ किअए ने देलखिन।
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तेसर दृश्य
(राजदेवक घर। पोता श्यामकेँ पढ़बैत।)
राजदेव- बौआ, स्कूलमे कते शिक्षक छथि?
श्याम- थर्टिन गोरे।
राजदेव- ऐ बेर कोनमे जाएब?
श्याम- थ्रीमे।
(हाथमे अखवार नेने कृष्णानन्दक प्रवेश।)
कृष्णानन्द- कक्का, एकटा दुखद समाचार अपनो समाजक अछि?
राजदेव- (जिज्ञासासँ) से कि, से कि?
कृष्णानन्द- (अखवार उनटबैत। आंगुरसँ देखबैत।) देखियौ। चिन्है छिऐ एकरा?
राजदेव- (दुनू आँखि तरहत्थीसँ पोछि गौरसँ देखए लगैत।) ई तँ चिन्हरबे जकाँ बुझि पड़ैए। कनी गौरसँ देखए दाए हाथमे तानल बन्दूक जकाँ बुझि पड़ैए।
कृष्णानन्द- हँ, हँ कक्का, पुरानो आँखि अछि तैयो चिन्हि गेलिऐ।
राजदेव- कनी आरो नीक जकाँ देखए जाए। गामक तँ एक्के गोरे सीमा चौकीपर रहैए। ब्रह्मदेव।
कृष्णानन्द- (दुनू आँखिक नोर पोछैत।) हँ, हँ कक्का। हुनके छातीमे गोली लगलनि। मुँह देखै छिऐ खुजल। देश भक्तिक नारा लगा रहलाहेँ।
राजदेव- (तिलमिलाइत।) बौआ, तोरे संगे ने पढ़ै छेलह।
कृष्णानन्द- संगिये छेलाह। अपना क्लासमे सभ दिन फस्ट करै छलाह। हाइये स्कूलसँ मनमे रोपि नेने छेलाह जे देश भक्त बनब। से निमाहियो लेलनि।
राजदेव- बौआ, देश भक्तक अर्थ संकीर्ण दायरामे नै विस्तृत दयरामे छै। ओना अपन-अपन पसन आ अपन-अपन विचार सभकेँ छै।
कृष्णानन्द- कनी फरिछा कऽ कहियौ?
राजदेव- देखहक, खेतमे पसीना चुबबैत खेतिहर, सड़कपर पत्थर फोड़ैत बोनिहार, धारमे नाओ खेबैत खेबनिहार सभ देश सेवा करैत अछि, तँए देशभक्त भेलाह।
कृष्णानन्द- (नमहर साँस छोड़ैत।) अखन धरि से नै बुझै छलिऐ।
राजदेव- नहियो बुझैक कारण अछि। ओना देश सीमाक रक्षा बाहरी दुश्मनक (आन देशक) रक्षाक लेल होइत अछि। मुदा जँ मनुष्यमे एक-दोसराक संग प्रेम जगत तँ ओहुना रक्छा भऽ सकैए। मुदा से नै अछि।
कृष्णानन्द- (मूड़ी डोलबैत।) हँ से तँ नहिये अछि।
राजदेव- मुदा देशक भीतरो कम दुश्मण नै अछि। एहेन-एहेन रूप बना मासूम जनताक संग कम गद्दारी केनिहारोक कमी नै अछि।
कृष्णानन्द- से केना?
राजदेव- देखते छहक जे जइ देशमे खाइ बेतरे लोक मरैए, घर दवाइ, पढ़ै-लिखैक तँ बात छोड़ह। तइ देशमे ढोल पीटनिहार देश सेवक सभ अपन सम्पत्ति चोरा-चोरा आन देशमे रखने अछि ओकरा कि बुझै छहक?
कृष्णानन्द- हँ, से तँ ठीके कहै छी।
राजदेव- केहेन नाटक ठाढ़ केने अछि से देखै छहक। आजुक समैमे सभसँ पैघ आ सभसँ भयंकर प्रश्न देशक सोझा ई अछि जे सभकेँ जीबै आ आगू बढ़ैक समान अवसर भेटै।
कृष्णानन्द- हँ, से तँ जरूरिये अछि।
राजदेव- एक्के दिस एहेन बात नै ने अछि?
कृष्णानन्द- तब?
राजदेव- समाजोमे अछि। कनी गौर कऽ कऽ देखहक। पैछले बर्ख ने ब्रहमदेवक बियाह भेल छलै?
कृष्णानन्द- एक्कोटा सन्तान तँ नै भेलैक अछि।
कृष्णानन्द- नै। हमरा बुझने तँ भरिसक दुनू परानीक भेँटो-घाँट तेना भऽ कऽ नै भेल हेतै। किअए तँ गाम अबिते खबड़ि भेलै जे सीमापर उपद्रव बढ़ि गेल, तँए सबहक छुट्टी केन्सिल भऽ गेल। बेचारा बियाहक भोरे बोरिया-विस्तर समेटि दौड़ल।
राजदेव- अखन तँ नव-धब घटना छै तँए जहाँ-तहाँ वाह-वाही हेतै। मुदा प्रश्न वाह-वाहीक नै प्रश्न जिनगीक अछि। बेटाक सोग माए-बापक आ पतिक दुख स्त्रीकेँ नै हेतै?
कृष्णानन्द- हेबे करतै।
राजदेव- एना किअए कहै छह जे हेबे करतै। जहिना एक दिस मनुष्य कल्याणक धरम हेतै तहिना दोसर दिस माए-बाप अछैत बेटा मृत्युक दोष, समाज सेहो देतनि।
कृष्णानन्द- (गुम होइत मूड़ी डोलबए लगैत।)
राजदेव- चुप भेने नै हेतह। समस्याकेँ बुझए पड़तह। जे समाजमे केना समस्या ठाढ़ कएल जाइए। तोंही कहह जे ओइ दूध-मुँहाँ बच्चियाक कोन दोख भेलै।
कृष्णानन्द- से तँ कोनो नै भेलै।
राजदेव- समाज ओकरा कोन नजरिये देखत?
कृष्णानन्द- (मूड़ी डोलबैत।) हूँ-अ-अ।
राजदेव- हुँहकारी भरने नै हेतह। भारी बखेरा समाज ठाढ़ केने अछि। ओइ, बच्चियाक भविष्य देखनिहार कियो नै अछि, मुदा......?
कृष्णानन्द- मुदा की?
राजदेव- यएह जे, एक दिस कलंकक मोटरीसँ लादि देत तँ दोसर दिस जीनाइ कठिन कऽ देत।
कृष्णानन्द- हँ, से तँ करबे करत।
राजदेव- तोही कहह, एहेन समाजमे लोकक इज्जत-आवरू केना बचत?
कृष्णानन्द- (मूड़ी डोलबैत। नमहर साँस छोड़ि।) समस्या तँ भारी अछि।
राजदेव- नै, कोनो भारी नै अछि। सामाजिक ढर्ड़ाकेँ बदलए पड़त। विघटनकारी सोच आ काजकेँ रोकि कल्याणकारी सोच आ काज करए पड़त। तखने हँसैत-खेलैत जिनगी आ मातृभूमिकेँ देखत।
कृष्णानन्द- (मुस्की दैत।) संभव अछि।
राजदेव- ई काज केकर छिऐ?
कृष्णानन्द- हँ, से तँ अपने सबहक छी।
राजदेव- हँ। ऐ दिशामे एक-एक आदमीकेँ डेग बढ़बैक जरूरत अछि।
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चारिम दृश्य
(भागेसर दरबज्जा सजबैत। बहाड़ि-सोहाड़ि चारिटा कुरसी लगबैत। कुरसी सजा भागेसर चारूकात निहारि-निहारि गौर करैत। तहीकाल बालगोविन्द आ राधेश्यामक प्रवेश।)
भागेसर- (कुरसीपर सँ उठि।) आउ, आउ।
(कुरसीपर तीनू गोरे बैसैत।)
बालगोविन्द- (राधेश्यामसँ।) बौआ, बेटी हमर छी, वहीन तँ तोरे छिअ। अखन समए अछि तँए......?
भागेसर- अपने दुनू बापूत गप-सप्प करू।
(उठि कऽ भीतर जाइत।)
राधेश्याम- अहाँक परोछ भेने ने......। जाबे अहाँ छिऐ, ताबे हम.....।
भागेसर- नै, नै। परिवारमे सभकेँ अपन-अपन मनोरथ होइ छै। चाहे छोट भाए वा बेटाक बियाह होउ आकि बेटी-बहीनक होउ।
राधेश्याम- हँ, से तँ होइते अछि। मुदा अहाँ अछैत जते भार अहाँपर अछि ओते थोड़े अछि। तखन तँ बहीन छी, परिवारक काज छी, कोनो तरहक गड़बड़ भेने बदनामी तँ परिवारेक होइत अछि।
बालगोविन्द- जाधरि अंजल नै केलौंहेँ ताधरि दरबज्जा खुजल अछि। मुदा से भेलापर बान्ह पड़ि जाइत अछि। तँए......?
राधेश्याम- हम तँ परदेश खटै छी। शहरक बेबहार दोसर रंगक अछि। गामक की बेबहार अछि से नीक जकाँ थोड़े बुझै छी। मुदा तैयो......?
बालगोविन्द- मुदा तैयो कि?
राधेश्याम- ओना तँ बहुत मिलानीक प्रश्न अछि मुदा किछु एहेन अछि जेकर हएब आवश्यक अछि?
बालगोविन्द- आब कि तोहूँ बाल बोध छह, जे नै बुझबहक। मनमे जे छह से बाजह। मन जँचत कुटुमैती करब नै जँचत नै करब। यएह तँ गुण अछि जे अल्पसंख्यक नै छी।
राधेश्याम- कि अल्पसंख्यक?
बालगोविन्द- जइ जातिक संख्या कम छै ओकरा संगे बहुत रंगक बिहंगरा ठाढ़ होइत अछि। मुदा जइ काजे एलौंहेँ तेकरा आगू बढ़ाबह। कि कहलहक?
राधेश्याम- कहलौं यएह जे कमसँ कम तीनक मिलानी अवस होइ। पहिल गामक दोसर परिवारक आ तेसर लड़का-लड़कीक।
बालगोविन्द- जँ तीनूक नै होइ?
राधेश्याम- तँ दुइयोक।
बालगोविन्द- अपन परिवारक बेबहार छह तेहने अहू परिवारक अछि। गामो एकरंगाहे बुझि पड़ैए। लड़का-लड़की सोझेमे छह।
राधेश्याम- तखन किअए काज रोकब?
(जगमे पानि आ गिलास नेने आबि, टेबुलपर गिलास रखि पानि आगू बढ़बैत। गिलास हाथमे रखि।)
बालगोविन्द- नीक होइत जे पहिने काजक गप अगुआ लेतौं।
भागेसर- अखन धरि अहूँ पुरने विध-बेबहारमे लटकल छी। कुटुमैती हुअए वा नै मुदा दरबज्जापर आबि जँ पानि नै पीब, ई केहन हएत?
बालगोविन्द- (पानि पीबैत। तहीकाल झमेलिया चाह नेने अबैत।) पानि पिआ दुनू गोटेकेँ चाहक कप दैत अपनो कुससीपर बैस चाह पीबए लगैत।
बालगोविन्द- समए तेहन दुरकाल भऽ गेल जे आब कथा-कुटुमैतीमे कतौ लज्जति नै रहैए। बसीसँ बेसी चारि-आना कुटुमैती कुटुमैती जकाँ होइए। बारह आनामे झगड़े-झंझट होइए।
भागेसर- हँ, से तँ देखते छी। मुदा हवा-बिहाड़िमे अपन जान नै बँचाएब तँ उड़ि कऽ कतएसँ कतए चलि जाएब, तेकर ठेकान रहत।
बालगोविन्द- पैछला लगनक एकटा घटना कहै छी। हमरे गामक छी। कुल-खनदान तँ दबे छलनि मुदा पढ़ि-लिख परिवार एते उन्नति केने अछि जे इलाकामे कियो कहबै छथि।
भागेसर- वाह।
बालगोविन्द- लड़को-लड़की उपरा-उपरी। कमसँ कम पचास लाखक िबयाहो भेल छलै। मुदा खाइ-पीबै बेरमे तते मािर-दंगा भेल जे दुनूकेँ मन रहतनि।
भागेसर- मारि किअए भेल?
बालगोविन्द- पुछलियनि ते कहलनि जे बियाह-दानमे कोनो रसे नै रहि गेल अछि। लड़काबला सदिखन लड़कीबलाकेँ निच्चा देखबए चाहैत तँ सरियाती बरियातीकेँ। अही बीचमे रंग-विरंगक बखेरा ठाढ़ कऽ मारि-पीट होइए।
भागेसर- एहेन बरियातीमे जाएबो कठिन।
बालगोविन्द- सज्जन लोक सभ छोड़ि देलनि। मुदा तैयो कि बरियाती कम जाइए। तते ने गाड़ी-सवारी भऽ गेल जे हुहुऔने फिरैए।
भागेसर- खाइर, छोड़ू दुनियाँ-जहानक बात। अपन गप करू।
बालगोविन्द- हमरेसँ पुछै छी। कन्यागत तँ सदति चाहै छथि जे एकटा ऋृण उताड़ैमे दोसर ऋृण ने चढ़ि जाए। अपने लड़काबला छिऐ। कोना दुनू परिवारक कल्याण हएत, से तँ......?
भागेसर- दुनियाँ केम्हरो गुड़ैक जाउ। मुदा अपनोले तँ किछु करब। आइ जँ बेटा बेच लेब तँ मुइलापर आगि के देत। बेचलाहा बेटासँ पैठ हएत।
बालगोविन्द- कहलिऐ तँ बड़बढ़िया। मुदा समाजक जे कुकुड़चालि छै से मानता दुनू परिवार मिल-जुलि काज ससारि लेब। मुदा नढ़िया जकाँ जे भूकत तेकर कि करबै?
भागेसर- हँ से तँ ठीके पैछलो नीक चलनि आ अखुनको नीक चलनि अपना कऽ अधला छोड़ देब। किअए कियो भूकत। जँ भूकबो करत तँ अपन मुँह दुखाओत।
क्रमश:
बिपिन झा, IIT Bombay
एकटा प्रश्न मीडिया सँ
भारत विविधता सँ परिपूर्ण देश अछि। सर्वत्र विविधता गप्प-सप, वेश-भूषा, खान-पान, रहन-सहन सभ किछु अलग-अलग किन्तु एकटा जे समान देखैत छी ओ अछि राष्ट्र केर प्रति सम्मान।
ई अलग बात अछि जे लोक सभ अपन तुच्छ स्वार्थ हेतु अपन धर्म (कर्तव्य) के विसरि के धनादि केर दास भय जाइत छथि।
हम वर्तमानकालीन राष्ट्र केर शुभचिन्तक आ हुनक नेतृत्वकर्ता केर गप्प कय रहल छी। ई सभ मीडिया केर लेल आकर्षण केर केन्द्र रहलथि। नीक बात। हुनक योगदान मे मीडिया केर सहयोग नितान्त आवश्यक छैक मुदा एतय मीडिया सँ असन्तोष तखनि होमय लगैत अछि जखनि गंगा एहेन पावन नदी केर रक्षण हेतु लगातार चारि पाँच मास सँ आमरण अनशन पर बैसल निगमानन्द एहेन देशभक्त कें मरबाक उत्तरे मीडिया चर्चा केर विषय बनबैत अछि।
बाबा निगमानन्द गंगा वचाव हेतु चारि-पाँच मास स अनशन पर छलाह मई मे ओ कोमा मे आबि गेलाह। ओही हास्पीटल मे बाबा रामदेब के प्रत्येक बुलेटीन के परिचर्चा केर विषय बनाओल गेल मुदा.... निगमानन्द के पोस्टमार्टम के बादे समाचार भेटल्!!
एतय हम नेता सभ स कोनो शिकायत नहि करैत छी कियाक त ओ अभ्यस्त छथि मुदा मीडिया आ जनसामान्य जेकर पहुँच मे ओ (निगमानन्द) छलाह ओ (मीडिया) कदाचित कर्तव्य मे स्खलन नहि करितथि तऽ एहेन दुखद समाचार नहिं सुनय पडितय।
अस्तु हमर निवेदन जे जे कोइ मीडिया स जुडल होइ अथवा जनसामान्ये कियाक नहि होई एहेन घटना के पुनरावृत्ति स रोकी....।
जगदीश प्रसाद मण्डल
जगदीश प्रसाद मण्डल
कथा
बिहरन
(पूर्वांश)
जहिना चैत-बैशाखक लहकैत धरती गरमाएल वायुमंडलक बीच अनायास हवा कऽ खसने बिहाड़िक प्रतिक्षा कएल जाइत, अनायास सुर्ज मेघक छोट-छीन चद्दरि ओढ़ए लगैत, रेलगाड़ी सदृश्य अवाज दौड़ए लगैत, रहि-रहि कऽ गुलाबी वस्त्र सज्जित ठनका ठुनकए लगैत तँए अनुमानित मन मानैले बेबस भऽ जाइत जे बिहाड़ि पानि पाथर ठनका संग आबि रहल अछि, तहिना रघुनन्दन आ सुलक्षणीक परिवारमे ज्योति कुमारीक जन्मसँ भेलनि।
भलहिं आइ-काल्हि बेटीक जन्म भेने माए-बाप अपन सुभाग्यकेँ दुरभाग मानि मनकेँ कतबो किअए ने कोसथि जे परिवारमे बेटीक बाढ़ि हिमालयसँ समुद्र दिस निच्चा मुँहे ससरब छी मुदा से दुनू बेकती सुलक्षणीकेँ नै भेलनि। जहिना गद्दा पाबि कुरसी गदगर होइत तहिना दुनू प्राणी रघुनन्दनक मन गद-गद। से खाली परिवारे धरि नै सर-समाज, कुटुम-परिवार धरि छलनि। ओना आन संगी जकाँ रघुनन्दन नै छलाह जे तीनिये मासक पेटक बच्चाकेँ दुश्मन बनि मोछ पीजबैत आ ने अपन रसगर जुआनी छोलनी धीपा-धीपा दगैत। दुनू परानी बेहद खुशी। किअए नै खुशी रहथि, मन जे मधुमाछी सदृश्य मधुक संग मधुर मुस्कान दैत छलनि। पुरूष अपन वंश बढ़बै पाछु बेहाल आ नारीकेँ हाथ-पएर बान्हि बौगली भरि रौदमे ओंघरा देब कते उचित छी। दुनू प्राणीक वंश बढ़ैत देख दुनू बेहाल। मन तिरपित भऽ तड़ैप-तड़ैप नचैत।
आेना तीन भाइक पछाति ज्योतिक जन्म भेल, मुदा तइसँ पहिने आगमनो नै भेल छलनि जे दोखियो बनितथि। भगवानोक किरदानी कि नीक छन्हि, नीको कोना रहतनि काजक तते भार कपारपर रखने छथि जे जखन टनकी धड़ै छन्हि तखन खिसिया कऽ किछुसँ किछु कऽ दैत छथि। मुदा से लोक थोड़े मानतनि, मानबो किअए करतनि जखन अपने अपने हाथ-पएर लाड़ि-चाड़ि जीबैए तखन अनेरे अनका दिस मुँहतक्कीक कोन जरूरत छै। किअए ने कहतनि जे अहाँ िनर्माता छी तखन तराजू एक रंग राखू, किअए ककरो जेरक-जेर बेटा दइ छिऐ आ ककरो जेरक-जेर बेटी। जँ देबे करै छिऐ ते बुद्धि किअए भंगठा दइ छिऐ जे बेटासँ धन अबैत अछि आ बेटीसँ जाइत अछि। जइसँ नीको घरमे चोंगराक जरूरत पड़ि जाइ छै।
उच्च अफसरक परिवार तँए परिवारिक स्तर सेहो उच्च। भलहिं किअए ने माए-बाप छाँटि परिवार होइन। खगल परिवार जकाँ सदति गरजू नै। परिवारक खर्च समटल तइसँ खुल्ला बजारक कोनो असरि नै। सरकारी दरपर सभ सुविधा उपलब्ध, जइसँ खाइ-पीबैसँ लऽ कऽ मनोरंजनक ओसार चकमकाइत। भलहिं जेकर अफसर तेकर बात बुझैमे फेर होइन। जइसँ महगी-सस्ती बुझैमे सेहो फेर भऽ गेल होइन। मुदा परोछक बात छी चारू बच्चाक प्रति समान सिनेह रहलनि। परिवारमे सभसँ छोट बच्चा रहने सबहक मनोरंजनक वस्तु। मुदा गुरूआइ तँ ओहिना नै होइ छै, तँए सभ अपन-अपन महिक्का मनक टेमीसँ सदति देखैत, जप करैत। आखिर ऐ धरतीपर ज्ञान दानी नै होथि। भलहिं ओ अधखिजुए वा अधपकुए कियो ने होथि। जहिना कोनो मालीक बच्चा पिताक संग जामंतो (अनेको) रंगक फूलक फुलवारीमे जिनगीक अनेको अवस्था देख चौकैत तहिना भरल-पूरल परिवारमे ज्योतियोकेँ भेलनि। देखलनि जे गुलाबक कलीमे जहिना अबैत-अबैत रंगो, सौन्दर्यो आ महको अबैत अछि तहिना ने जिनगी छी। जँ मनुष्यकेँ डोरीसँ बान्हल जाय तँ डोरी तोड़ैक उपाए तँ हुनको छन्हि।
समुचित वातावरण ज्योति संगी-साथीक बीच नीकक श्रेणीमे आबि गेलि। जहिना संगीक सिनेह तहिना शिक्षकोक सिनेह भेटए लगलनि। जहिना टिकट कटाओल यात्री गाड़ीमे सफर करैत तहिना समतल जिनगी पाबि ज्योति आगू बढ़ए लागलि। जिनगीमे बधो अबै छै तइसँ पूर्ण अनभिज्ञ ज्योति। जना कर्म-धर्म बनि जिनगीक बाट बनौने होय।
क्रमश:
जगदीश प्रसाद मण्डल
दीर्घकथा
शंभूदास
जिनगीक ओइ सीमापर शंभूदास पहुँच गेल छथि जतए पैछला जिनगीक बहुतो विचार आ काज स्वत: छुटि गेलनि। किछु नव जे मनमे उपकि रहल छन्हि ओ करैले जइ शक्ति आ सामर्थक जते जरूरत छन्हि ओ तकनहुँ नै भेट रहल छन्हि। जना आगिक चिनगोरा रसे-रसे पझा-पझा या तँ मैल जकाँ उपर छाड़ने जा रहल छन्हि या झड़ि-झड़ि खसि रहल छन्हि। डंटीसँ टूटल पोखरिक कमल सदृश्य हवाक सिहकी वा पानिक कम्पन्नसँ दहलि रहल छन्हि। जे कहियो कामधेनु, फूल-फड़सँ लदल वृक्ष सदृश्य छलनि वएह आइ ठाँठ वा पत्रहीन ठूठ बुझि पड़ि रहल छन्हि। जे कहियो राजभोगक बीच दिन बितबैत छलाह आइ अन्न-वस्त्र विहीन भीखक घाटपर बैस अपन जिनगीक हिसाब-वारी जोड़ि रहल छथि। मन कहैत छन्हि जे सभ दिन तँ गुनगुनाइत रहलौं- जे बच्चा कनैत ऐ धरतीपर अबैत अछि आ हँसैत जाइक चाहिऐ, मुदा से कहाँ......? जे आत्मा बिनु विवेकक जिनगी टपि विवेकवान लग पहुँचल ओ आगू नै बढ़ि पाछु दिस किअए ढड़कि रहल अछि। सोन-सन उज्जर धप-धप दाढ़ी-मोछक संग माथसँ पएरक अंगुरिक धरिक केश, आमील सन सुखाएल गालक संग अगिला भाग, सामर्थ हीन हाथ-पएरक मुदा आँखिक ज्योति भोरक ध्रुवतारा जकाँ ललौन मन उफनि उठलनि जे देवस्थान जकाँ तिरपेखनि ऐ दुनियाँक करब।
जहिना बाध-वोनक ओहन परती जइपर कहियो हर-कोदारि नै चलल सुखि-सुखि गािछ-विरिछ खसि उसर भऽ जाइत, ओइ परतीपर या तँ चिड़ै-चुनमुनीक माध्यमसँ वा हवा-पानिक माध्यमसँ अनेरूआ फूल-फड़क गाछ जनमि रौद-वसात, पानि-पाथर, अन्हर-विहाड़ि सहि अपन जुआनी पाबि छाती खोलि बाट-बटोहीकेँ अपन मीठ सुआदसँ तृप्ति करैत तहिना जमुना नदीक तटपर शंभूदासक जन्म बटाइ-किसान परिवारमे भेलनि। रवि दिन रहने समाजक दाय-माय शुभ दिन मानि शंभू नाओं रखलकनि। परदेशिया जकाँ तँ नै जे जन्मसँ पहिनहि माए-बाप नामकरण कऽ लैत। छठम दिनसँ पूर्वक सभ कष्ट विसरि शंभूदासक माए सुखनी अपन सुखैक निआसा छोड़ि अपन देवस्थानक देवता पूजनमे हराएल। अपन मर्यादा गसि कऽ पकड़ि शंभूक सेवामे जुटि गेलीह। परिवारक बोझक तर पिता, तँए बिलगा कऽ किछु नै सोचथि।
पाँच वर्ख पूर्व धरि संतोखीदास अपने बोनिहार सभ जकाँ दुनू परानी संतोखी आ सुखनी, खेतिहर बोनिहार छलाह। खेतियो तँ मौसमेक हाथक खेलौना। बेठेकान। मुदा तैयो तँ सभ बुझैत जे जाड़, गरमी आ बरसात, सालक तीन अवस्था छी। भलहिं गोटे साल शीतलहरी पाबि जाड़ अपन विकाराल रूप देखबैत तँ रौदी पाबि गरमी। बरखा पाबि बसात बाढ़िक संग नंगटे नचैत तँ झाँट पाबि ताण्डव करैत।
बजारवादक हवा सिहकल। ओना तँ विहाड़िक रूप हवा उठल मुदा पहाड़, बोनक टाट अँटकौलक। गतिकेँ कम केलक मुदा तैयो बहिते रहल। जाड़-रौदीक मारल किसानो अा बोनिहारो गाम (खेती-पथारी) छोड़ि बजार दिस विदा भेल। जहिना घर बनबैमे पातरसँ मोट खूँटक जरूरत होइत तहिना करखाना चलबैक लेल मजदूर बोनिहारसँ लऽ कऽ संचालक धरिक आवश्यकता भेल। उजड़ल-उपटल गामक रूखिमे बदलाव अबए लगल। खेतमे काज केनिहार बोनिहारकेँ करखन्नाक नव मजदूरी भेटए लगल। जइसँ जिनगीमे हरियरी अबए लगलै। मुदा हवाक गति धीरे-धीरे तेज हुअए लगल। सस्त मजदूर पाबि रंग-विरंगक कारोवार शहरमे जन्म लिअए लगल। जइसँ श्रमिकक मांग बढ़ल। टूटैत गामक जिनगीसँ तंग भऽ वेवस श्रमिक जेर बना-बना बजारक बाट पकड़लक। श्रमक विकरीक कारोवार जोर पकड़लक। खुल्लम-खुल्ला विकरी बट्टा हुअए लगल।
गामक श्रमिकक पड़ाइनसँ गामो हलचलाएल। खेतबलाकेँ करखन्ना पहुँचने खेतीमे ठहराव आएल। श्रमिकक अभावमे खेती ठमकल। समाजक विचारधारामे बदलाव आएल। एक विचारधारा -जे अखनो धरि सम्पतिकेँ प्रतिष्ठा बुझैत- जे पहिलुकके खेतीकेँ थोड़-थाड़ अन्न-पानि खुआ-पिआ जीवित रखलनि तँ दोसर विचारधारा (शहरी कारोवार देख) खेत-पथार माने ग्रामीण सम्पत्तिकेँ पूँजी बुझि आमद-खर्चक िहसाब जोड़ि विचारमे बदलाव अनलनि। संग-संग बटाइ खेतीक बीच नव-समस्या सेहो उठल। जइठाम एखन धरि गामक जमीनदार खेतक उपजे बेर-टामे खेतक दर्शन करैत, ओ गामसँ बाहर भेने सालक-साल खेतक दर्शनसँ विमुख भेला। संग-संग गाममे श्रम-शक्तिक अभाव भेल। बटेदारक वर्गक वृद्धि भेल। खेतक बटाइ प्रथामे बदलाव आएल। जइसँ आमक कन (फड़क हसावसँ) उपजाक मनखप आ पोसिया माल-जालमे बदलाव आएल। कोनो धरानी संतोखीदास एकटा बड़द बनौलक। दू परानीक हाथ-पएर आ एकटा बड़द पाबि संतोखीदस बटेदार किसानक रूपमे ठाढ़ भेल। पेट भरने परिवारमे खुशीक बाढ़ि तँ नै मुदा पटवी पानिक खुशी जरूर आबि गेल। बीघा भरिक खेतिहर संतोखीदास बनि गेल। नव आर्थिक विकास भेने परिवरक बच्चो सभमे मौलाहट कमल। जइसँ बच्चाक मृत्युक संख्यामे कमी आएल। ओना एखनो धरि श्रमकि परिवारमे बेट-बेटीमे अन्तर नै बुझल जाइत किएक तँ भगवानक अगम लीलाक बीच हस्तक्षेप् नै करए चहैत मुदा बजारक बिखाएल वयार तँ बहिये रहल अछि।
शंभूक तीन बर्ख पुरिते, जहिना शीतलहरीमे पौ फटिते सुरूजक रोशनीक आशा जगैत, बदरीहन समए बादलकेँ छिड़िआइते घरसँ बहराइक आशा जगैत तहिना संतोखियो दास आ सुखनियोकेँ भेल। जिनगी भरिक लेल मनखप खेत भेटने किअए नै दुनू परानीक मनमे आशा आओत। तहूमे बाढ़-रौदीक सालक कोनो देनदरिये नै, रहल सुभ्यस्त समैक देनदारी। ओहो देनदारी कि अन्तैसँ कमा कऽ आनए पड़त। धरती माता कामधेनु। जते करब तते पाएब। जखन मन हएत, तखन खाएब। दिन-राति ओंघराइत रहब।
एखन धरि सुखनी शंभूक पाछु आंगनसँ नै निकलि पबैत छलीह मुदा आब तँ शंभू तीन सालक भऽ गेल। अगहन मासमे खेतक आड़िपर धानक खाेंचड़िक घर बना देब ओइमे खेलेबो करत आंेघी लगतै तँ सुतबो करत। गरमी मासमे गाछक छाहरिमे रहत। लऽ दऽ कऽ बरसात रहल। तँ बरखो कि लोककेँ बिना चेतौने अबैए। अबैसँ पहिने राजा-रजवाड़ जकाँ समाद पठा दैत अछि। तहूमे बरखा केहन रूपमे आओत सेहो तँ कहिये दैत अछि। जेठुआ बरखामे जे दुइयो बेर देह धुआ जेतै तँ सालो भरि धुआएले रहतै। बच्चा कि कोनो सियान सैतान होइए जे भरि दिन डौं-डौं करत। ओकरा तँ अन्न-पानि भेट जाए, भरि दिन बौआइत रहत। जहिना नव दाँत जनमने मसुहरि किछु करैले सबसबाइत अछि तहिना बच्चो मन।
जेठक दसहारा। बृहस्पति दिन। गिरहस्तीक पतराएल काज। अटूट फड़ल आम-जामुनक गाछ। गामक-गाम लोकक मन गदगद। किअए ने रहत। दू मास जे अमृत फल भेटत। बाधक चौबगली गाम अष्टयाम कीर्तनक मंत्रसँ अकास गनगनाइत। किम्हरो “सीताराम, सीताराम सीताराम जय सीताराम” तँ किम्हरो “काली, गुर्गे राधे श्याम, गौरी शंकर सीताराम।” किम्हरो “हरे राम, हरे राम...।” तँ किम्हरो “हरे कृष्ण हरे कृष्ण।”
दसहारा रहने ब्रह्मस्थानमे घोड़ा चढ़ौल सजाओल जाएत। ऐबेर तँ जहिना ब्रह्मबाबा खुशी छथिन तहिना लोकोक मन। आन साल जकाँ कि ऐबेर हल्लुक दामा रंग सुखा घोड़ा लोक चढ़ौत पहिने साय-बेना- दऽ दऽ सरैसो घोड़ासँ निम्मन-निम्मन चढ़ौत। दूध-पीठ खाइत-खाइत ब्रह्मोबाबाक मन अकछा गेल छन्हि तँए ऐबेर सेरही, पनसेरही, दससेरही, अधमनीक संग मनही मंूगाबा सेहो परदेसिया सभ चढ़ौत।
दिनक एगारह बजैत। माटि-पानि तबने हबो तबि गेल। खेतक जे खढ़ अछि ओ रोहणि मिरगिसरामे नै सूखत तँ सालो भरि ओकर ओधि थोड़े सुखत। तँए संतोखीदास मरूआ खेत जोतए आ सुखनी खढ़ बिछए गेल। मुदा छोट बच्चा शंभूकेँ असकरे आँगनमे केना छोड़ि दितथि। बच्चोले बाटीमे भात आ भरि डोल पानि नेने खेत गेली। अपनो सभकेँ पियास लगत तँ पीबैक खियालसँ। खेतसँ कट्ठा दुऐक हटि आड़िपर एकटा बज्जर केराइक अनेरूआ गाछ। जकरा निच्चामे सघन छाहरि तँ नै मुदा छाहरि। जतए शंभूकेँ खेलाइले छोड़ि अपने दुनू परानी संतोखीदास खेतमे काज करैत। काज लगिचाएल देख, खाली हड़मड़ी चौकी देब बाकी, हर खोलि चौकी ठेक संतोखीदास पत्नीकेँ कहलखिन- “रौदमे मन तबैध गेल हएत, कनीखान छाहरिमे जीरा लइले चलू।”
सुखनी- “सएह कहए चाहै छलौं मुदा काज लगिचाएल देख नै कहै छलौं। जे काज ससरि जाइ छै ओते तँ जाने हल्लुक होइ छै किने।”
“हँ से तँ होइ छै। मुदा काजो कि......?”
“से की?”
गैंचियाह नजरि पत्नीपर दैत संतोखीदास मुस्की दैत कहए लगलखिन- “जहिना भाँग-गांजा अपन सेवककेँ बौरा दैत, बेशिया इश्कबाजकेँ, तहिना ने काजो अपन कर्ताकेँ बाबला बना जान लइपर तुलल रहैत।”
“नै बुझलौं?”
“देखै नै छिऐ, दोकान सभमे लिख कऽ टांगल रहैए जे, काज करैत चलू फलक आशा नै करू।' जखन मनुख छी रोड-सड़ककेँ नािप मीलक पाथर गारल रहैए तखन कतऽ कोन रास्ता चलक चाही से तँ सोचए पड़तै किने। आकि रस्ते भुतिया जाय। जे बाट नै देखल रहै छै ओही बाटमे ने लोक भुतिआइए। खाइर, छोड़ू ऐ सभकेँ चलू कनी ठंढ़ाइयो लेब दू घोंट पानियो आ तमाकुलो खा लेब।”
दुनू परानी बज्जर केराइ गाछसँ फड़िक्के देखलनि जे शंभू पूवारि पारक अष्टयामक मंत्र- “हरे कृष्णा, हरे कृष्णा, कृष्णा-कृष्णा हरे-हरे” एक ताले छठिक ढोल जकाँ थोपड़ी बजबैत गबैत रहए। बेटापर नजरि पड़िते सुखनी अध खिलू फूल जकाँ विहुँसैत पतिकेँ कहलनि- “देखियौ ऐ छौंड़ाकेँ। आन धिया-पूता रहैत तँ माए-माए करैत। केहेन मगन भेल अछि।”
पति- “रौदमे तबैध तँ ने गेल अछि?”
“तबधल बच्चा थोपड़ी बजा गाओत आकि अँहोछिया काटत।”
“हँ से तँ ठीके।”
जहिना तत्व चिन्तक आत्माक तार जोड़ि ब्रह्म तत्वक अन्वेषण करैत तहिना शंभू कृष्ण मंत्रसँ अपन मनक तार जोड़ि अष्टयामक धुनमे बेसुधि भेल मीरा जकाँ गाबि रहल अछि।
जहिना एक्के फुलबाड़ी वा गाछीमे भिन्न-भिन्न रंगक फूल वा फल ताधरि अपन परिचयसँ हराएल रहैत जाधरि बच्चा सदृश्य पालल-पोसल जाइत, मुदा जखन अपन गुण वा रूप देखबै जोकर भऽ जाइत तखन एकठाम रहितो बेड़ाए लगैत तहिना सात बर्ख अबैत-अबैत शंभूओ बेड़ाए लगल। परिवारमे अनेको रंगक वस्तु-जात रहितो ओतबे सिनेह रखैत जते काजक वस्तु बुझैत। जइ वस्तुक प्रयोजन आन-आन रूपकेँ आन-आन काजमे होइत तइसँ भिन्न ओइ वस्तुक उपयोग अपन काज देख करए लगल।
अपना खेत-पथार नै रहितो संतोखीदासक परिवार गामक किसान परिवारक खाड़ीमे आबि चुकल छल। जहिना किसान परिवारमे वाइस-बेरहट कऽ कऽ खाइत अछि तहिना संतोखियो दासक परिवारमे चलए लगलनि। ओना ई गति लगातार नै चलि पबैत, किएक तँ किसान परिवार, डेंगी नाह जकाँ सदति उपर-निच्चा होइत रहैत। जइ साल खरचट्टा वा दहार समए भेल तइ साल सभ धुआ-पोछा गेल। मुदा जइ साल सुभितगर समए भेल तइ साल पुन: नव-पुरानक चालि पकड़ि लैत। नवे-पुरानक चालि ने रसगरो आ सुअदगरो होइए, अगिला-पछिला बाट देख चलबे ने दिशा दैत। जेना एक्के आमक चटनी टटका नीक होइत तँ अचार बसिया। जते-पुरान तते रसगर। मुदा चटनी तँ लगले अरूआ जाइत। तहिना नवका कुरथीक दालि आ पुरान राहड़िक दालि।
एखन धरि शंभू, परिवारकेँ खाली खाइ-पीबै, माता-पीताक संग रहैक टा बुझैत। किएक तँ बाल-बोध बुझि, ने माता-पिता किछु करैले अढ़बैत आ ने शंभू परिवारक काजकेँ अपन काज बुझैत। सदति धैनसन। सोलहन्नी बेरागी जकाँ। मुदा तँए कि शंभू भरि दिन ओछाइनेपर ओंघराएल रहैत सेहो बात नै। जँ किछु नै करैत तँ दिन-राति केना कटैत छैक।
अखनो धरि गामक िकसान धरतीसँ अकास धरिक स्मरण साँझ-भोर जरूर करैत अछि। भोरमे धरतीक स्मरण तँ साँझमे अकास विचरण जरूर करैत अछि। आने परिवार जकाँ संतोखियो दासक परिवार। परिवारमे शंभूक कोनो मोजरे नै। मात्र खाइ-पीबै आ सुतै बेर माता-पिता सिर चढ़बैत। बाकी समए साँढ़-पारा जकाँ अनेर बौआइत ढहनाइत। तँए कि सींग-नाङरिबला पशु जकाँ कि शंभूकेँ थइर-पगहाक जरूरत होइत। 'अनेर गाएकेँ धरम रखवार' होइत।
भोरमे जखन संतोखीदास खेत-तमैक विचार करए लगथि तँ नचैत हृदेक घूघड़ूक कम्पन्न ठोठक स्वर होइत खपड़िक मकइ-जनेरक लावा जकाँ कूदि-कूदि निच्चा खसैत तहिना संतोखियो दासक मुँहसँ रंग-विरंगक मौसमक संग मौसमी सिनेह छिड़ियाए लगैत। जकरा बीछ-बीछ शंभू खेलेबो करैत आ तहिया-तहिया सीनाक डायरीमे लिख-लिख रखबो करैत। हृदयंगम करैत। मुदा बच्चाक कचिया डायरी रहने किछु लिखेबो करैत आ किछु नहियो लिखाइत। मुदा प्रति भोर आ साँझक स्वर 'सीताराम-सीताराम, राधेश्याम-राधेश्याम' डायरीक उपरेक पन्नामे लिखा गेल। जकरा भरि दिन शंभू गो-मुखी रूद्राक्षक माला बना जपैत रहैत। कामधेनु गाए जकाँ सदति दूधक ढारसँ नव-नव राग-रागिनी स्वत: अबए लगल। कंठक स्वर-लहरी हाथकेँ थिरकबै लगल। जइसँ कखनो दुनू हाथ मिल ताल मिलबैत तँ कखनो पल्था मारि बैस ठेहुनपर ताल मिलबए लगल।
घर-अंगना एक रहने पिताक संग माइयोक पाछु-पाछु आंगन बाहरैत समए, चुल्हि-चिनमार नीपैक समए, जाँत-ढेकी चलबैक समए शंभू नचए-गबए लगल। बेटाक बौराइत मन देख माइयो आत्म-विभोर भऽ झुमि-झुमि शंभूक आँखिमे आँखि गारि फड़ैत-फुलाइत फुलबाड़ीमे हरा जाइत।
माता-पिताक उसकैत हाथ देख शंभूओक हाथ खाइबला बाटीपर उसकए लगल। खजुरी जकाँ ओकरा बजाएब शुरू केलक। कोना नै करत? कामेसँ राम आ रामेसँ काम ने चलैत अछि। मुदा भारी द्रव्यक बाटी रहने हाड़-मासुक हाथक ओंगरी कतेखान ठठत। जे बात शंभू तँ नै बुझि सकल मुदा संतोखीदास बुझि गेलखिन। सोचलनि जे जँ खजुरी बना दिअए तँ चौबीसो घंटा शंभू आनन्दमे मगन रहत। बेटाक प्रति पिताक दायित्वे कि? यएह ने जे हँसी-खुखीसँ दिन-राति चलैत रहए। मन मानि गेलनि जे बेटाकेँ खजुरी बना देबै। एकलव्य जकाँ साजमे खजुरियो ने अछि। ने ओकरा दोसर संगीक जरूरत होइत आ ने कखनो अपनाकेँ असगर बुझैत। जहिना हवामे उड़ैत रोग लोककेँ पकड़ि लैत, लगन अबिते बर-कन्याकेँ पकड़ए लगैत, तीर्थ-व्रतक डोरी लगैत तहिना शंभूओकेँ गीत-नादक माने संगीतक रांग पकड़ि लेलक। जइसँ पिताकेँ हर जोतैत, कोदारि पाड़ैत, धान-रोपैत कालक गुनगुनीक संग आंगन बाहरैत, धान कुटैत, जत्ता चलबैत कालक गुनगुनी पकड़ि लेलक। जकरा संग शंभू भरि दिन मगन भऽ गारा-जोड़ी केने बुलए-भंगए लगल। मुदा तँए कि शंभू एतबेमे ओझराएल रहल? नै! ने ओकरा गामक आन घर अनभुआर आ ने लोक अनठिया बुझि पड़ै। तहूमे एकठाम रहने, जखन माए-बापक संग बाध-बोन दिस जाए तँ वएह घर वएह लोक देखए। समाज तँ ओहन सरोबर छी जइमे घोंघा-सितुआसँ लऽ कऽ कमल धरि फुलाइत अछि। देवस्थानमे साँझ-भोर घड़ी-घंट, शंख बजैत खरिहाँनमे धान फटकैत सूपक अवाज अकासमे उड़ैत। काठपर ओंघराइत टेंगारी-कुड़हरि गर्द करैत तँ चुल्हिपर चढ़ल बरतनक अदहन झ-झ-काली करैत रहैत।
छह बर्खक बेटा शंभू लेल संतोखीदास खजुरीक ओरियान करैक विचार केलनि। ओना हाट-बजारमे खजुरी तँ नै बिकाइत अछि मुदा हरिहरक्षेत्र, सिहेश्वर, जनकपुर आ देवघरमे तँ बिकाइते अछि। मुदा ओतएसँ आओत कोना? एखन तँ अोम्हर मुँहे जाइक नियार नै अछि। ओना गामोमे बरही लकड़ीक कठरा बनबैए। मघैया सरिसोबा सनगोहि मारि खेबो करैए आ ओकर छाल बेचबो करैए। अगर जँ कठरा बनबा, सनगोहिक छाल कीन लेब तँ तेबखाक बेसनसँ अपनो छाड़ि लेब। हम सभ कि कोनो शहर-बजारक लोक छी जे बेटा-बेटीकेँ पेस्तौल बम-बारूद-छुड़छुडी-फटाका- खेलाइले देबै। जँ खेत-खरिहाँन दिसक मन देखितिऐ तँ खिएलहा हँसुआ-खुरपी खेलाइले दैतिऐ जँ से नै देखै छिऐ तँ एकरा खजुरियेक ओरियान कऽ देबै। सएह केलनि।
जहिना हाथमे औजार ऐने श्रमिक बड़का-बड़का इंजीन बना चलबैत तहिना हाथमे खजुरी ऐने शंभूओ परिवारक संग समाजक कीर्तन, भजन, यज्ञ इत्यादिमे शामिल हुअए लगल।
छह बर्ख बीतैत-बीतैत शंभूक हाथ खजुरीपर बैस गेल। जइसँ असकरे आंगनक ओसारपर बैस जाधरि हाथक आंगुर नै दुखाए लगै ताधरि एकताले सीता-राम सीता-राम, राधेश्याम, राधेश्याम खजुरिक अवाजक संग अपन कंठक अवाज मिला उन्मत्त भऽ गबैत-रहैत।
भगवानोक लीला अजीव छन्हि। एक्के मनुख वा पशु-पक्षीक गोटे बच्चाकेँ उम्रसँ बेसिऐ बना दैत छथिन आ कोनोकेँ कम बना दैत छथिन। कियो पाँचे बर्खमे पनरह बर्खक बुद्धि-ज्ञान अरजि लैत अछि तँ कियो पनरहो बर्खमे पाँचो बर्खसँ निच्चे रहैत अछि। जना शंभुओकेँ भेल। छबे बर्खमे पनरह बर्खक बच्चाक कान काटए लगल। तहूँमे तेहन समाजक स्कूल अछि जे जते मिहनत करए चाहब ओते फलो भेटबे करत।
सदिकाल कतौ ने कतौ कोनो ने कोनो उत्सव समाजमे होइते रहैत अछि। देवस्थानसँ परिवार धरि, कतौ अष्टयाम-कीर्तन, तँ कतौ बच्चाक मूड़न, कतौ सत्नारायण भगवानक पूजा तँ कतौ िवयाह-दुरागमन। शुभ काज तँए शुभ वातावरण बनबैक लेल शुभ-शुभ क्रिया-कलाप। शुभ क्रिया-कलापक लेल कतौ ढोलक-झालि हारमोनियमक संग रामधुन चलैत तँ कतौ ढोल-पीपहीक संग गीत-नाद। ततबे नै संग-संग परिवारक उत्सवमे समबेत स्वर माए-वहीनिक गीत-नाद सेहो चलबे करैत अछि। जहिना पाँच बर्खक बच्चा स्कूलमे नाअों लिखा दोसर-तेर बच्चा संग पढ़ैत तहिना शंभूओ समाजमे कतौ ढोलक-झालि वा ढोल-पीपहीक अवाज सुनिते ठोकले ओइ जगहपर पहुँच, बेद पाठी जकाँ आँखि-कान समेट ताधरि देखैत-सुनैत रहैत जाधरि विज्ञाम करैले नै बन्न होइत। शंभूक क्रिया-कलापसँ दुनू परानी संतोखीदास सेहो निचेन भऽ अपन काज करैत रहैत। काजमे मस्त रहैत। किएक तँ दुनू परानी बुझि गेलाह जे जतए ढोल-पीपही बजैत हएत शंभू ओतए जरूर हएत। तँए जखन खेत-पथारसँ काज कए घुमैत तँ ठोकले ओइ स्थानपर पहुँच शंभूकेँ ताकि अनैत।
समाजो तँ ओहन बाट बना चलैत जइसँ हँसैत-खिलैत जिनगी बिनु थकनहि सदैत चलैत रहैत। कोना नै चलत? धार ककर आशा-बाटक प्रतिक्षा करैत। जहिना अपना गतिये दिन-राति चलैत रहैत तहिना ने समाजो अपना गतिये सदैत चलैत रहैत।
आओर आगाँ
डॉ. शेफालिका वर्मा संस्मरण
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मैथिली ( उड़ीसा-१९८५)
जिनगी एकटा सफर थीक जे हमरा चलनाय अछ, सफर यानि यात्रा -- सफरिंग यानि पीड़ा . उर्दुक सफर आ अंग्रेजीक में विचित्र अर्थ सम्बन्ध अछ. जिनगीक सफर तय करवा में हमरा सब के शारीरिक स्तर पर कतेक 'सफर' करय पडैत अछ आ ओहि क्रिया में मानसिक प्रक्रियाक कतेक 'सफरिंग' भोग पडैत अछ, ई अंग्रेजी शब्द सफरिंग सफरक पीड़ा के व्यक्त करैत अछ . विचित्र अछ सफर करैत इ मानसिकता---हमर जीवनों में सफरिंग स जुडल सफर....
सहरसा क जुआन दुपहरिया -खिड़की स अवैत आकाशक एक टा खंड के निहारी रहल छलों ,मुदा निलाकाशक रंग मैल्छाहन छल. निश्छल हृदयक सत्यता पर ओढना जकां .हृदयक सत्यता पर लोक कें सहजहि विश्वास नै होयत छैक --असत्य में जीवाक प्रक्रिया से त्रस्त मानव...डाकिया आबि चिठी सब द गेल..डूबल मोन किनार पर आबि गेल .एकटा आमंत्रण छल अर्थ सहित - संबलपुर, उड़ीसा में पूर्व भारत कवि सम्मेलन आ सेमीनारक आयोजन ४--५ जून के छल. , तीन तीन टा आय.ए. एस. आफिसर क निमंत्रण छल समास प्रकाशनक दिस सँ..
की करी की नै करी क तारतम्य में छलों १जुने '८५ के वंदना क मेडिकल टेस्ट परीक्षा दिल्ली में छल ४-५ जून के उड़ीसा में , हम सहरसा में..सहरसा स पटना ,पटना स दिल्ली आ दिल्ली स उड़ीसा..पूरा त्रिपेक्ष्ण छल.मुदा सब समस्याक हल वर्मा जी लग रहैत छल . हम दिल्ली जायब ! १ तारीख के वन्दना के परीक्षा दिआय, वन्दना के राजीव लग दिल्ली में छोड़ी हम सब २ जून के कलिंग एक्सप्रेस स दिल्ली स उड़ीसा लेल विदा भ गेलों. ,राजस्थान,हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि कतेको राज्य के पार करैत ,स्पर्श करैत झरसुगुडा पहुन्च्लों ..२४ घंटा अनवरत ट्रेन पर बैस्वाक हिस्स्क नै रहलाक कारण अप्स्यांत भ गेल छलों. झर्सुगुडा स संबलपुर लेल दोसर ट्रेन पकडलों..मनुख की पंछी सँ कम अछ ! बरगढ़ क सब स पैघ होटल ' 'ओरियंटल ' में सब आमंत्रित कवि लोकनिक व्यवस्था छल.. २३ न. क सूट हमरा सब लेल रिजर्व छल. आगू पाछू वेटर ,२--२ -टा एम्बेसडर कार ,स्वागत समितिक सदस्य सभ पाइन क लहरि जकां उधियावैत ....
कखनो काल सोचैत छी.संस्मरण हो व आत्मकथा आकी जीवनक बितैत पल हम कोनो चीजक वर्णन इतिवृत्तात्मक किएक नै क पवैत छी ? हम एक एक शहर के, स्थान के एक एक क्षण के भोगैत छी ,ओही मे सांस लेत छी ,सबटा के अपन अंतर मे उतारि लैत छी, तखने किछ लिख सकैत छी..कतेक कल्पना क लैत छी...की नीक थीक..?..............
४ जून के १२ बजे दिन में उद्घाटन समारोह आरम्भ भेल. गर्मी आ ताप स बरगढ़ जरि रहल छल. उद्घाटन समारोह ,केनेल रेस्ट हाउस में छल. ओहि ठाम पुरान परिचित कवि लोकनि स भेंट भ गेल. १९८१ में साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित 'पोएट्स वोर्कशोप', कलकता में उड़िया कवि राजेंद्र पंधा ,आय.ए. एस., प्रोफ. हरिप्रसाद परीच्छ पटनायक , अश्विनी कुमार मिश्र, मणिपुरी कवि इबोमेहा सिंह, आर. के. मधुवीर आदि कतेको कवि लोकनी स फेरो भेंट भ गेल.,परिचित मुस्कांक आदान प्रदान भेल.
जरैत दुपहरिया ,सुरुजक ताप तप्त यौवनक प्रखर किरन सब के अप्स्यांत केने छल. शामियाना क नीचा छः भाषाई प्रांतक कवि सम्मेलंक उद्घाटन क आयोजन छल. सभक मोन आ तन गर्मी स बरकि बरकी गलि रहल छल. अचक्के सामने में टांगल बडका बैनर पर दृष्टि पडल , छहों भाषाक नाम बडका बडका आखर में लिखल छल जाहि में पहिलुक नाम छल मैथिली, तकर बाद आसामी, मणिपुरी, बंगाली,हिंदी आ उडिया , मैथिली देखतही ताप जेना चानन भ गेल, उड़ीसा में अपन मैथिली शब्द ऐना लगैत छल जेना कोनो प्रेमी के अपन प्रियतमा स अनायासे साक्षात्कार भ गेल हो..बिहार स यानी मैथिली स हम असगर छलों याने आब मैथिलीक आन ,बान आ सान जेना हमरे हाथ होई , हम मैथिली के अपन अंक में सटाई फुसफुसाई देलों. ' अहाँ घबराबू नै, उड़ीसा क एहि कार्यक्रम में अहांक स्थान सर्वोच्च रहत , हम स्वर्ण मुकुट पहिराई अहांके एहिठाम से विदा करब.
आ सरिपों, साँझ में जखन दोसर सिटिंग आरम्भ भेल हम सलाह देलों जे सब केओ अपन अपन भाषा में बजता जाहि से एक दोसरा के भाषा के चीन्ही सकी, नहि बुझितो बुझ्वाक आनंद ल सकी. ,उडियाक कवि सब हमरा बड आदर दैत छलाह..सहर्ष हमर बात स्वीकार क लेल गेल. सान्झुक सेमीनार, बरगढ़क रोशनाई खसल सियाह साँझ , जरैत दुपहरिया स कम नै . हवा नै बह्वाक प्रण क मानिनी नायिका जकां कत्तो रुसल छलीह..लोक कोना ज जिवैत अछ एहि पाथर क नगरी में
सेमिनार् क अध्यक्षता उडिया क प्रख्यात कवि आ प्रिंसिपल क रहल छलाह, संचालन रेडियो स्टेशन क प्रोग्राम executive अभय शंकर पंधा क रहल छलाह , विषय छल 'समकालीन कविता '.बिहार स हमर नामक घोषणा भेल ,थपडी पहिन्ही बाजि उठल 'पोएट्स वोर्क्शोप क आत्मीयता आर सुदृढ़ भेल.हम सब स पहिने उड़ीयाक कवि आ बरगढ़ क बीडीओ अश्विनी जी के धन्यवाद देलों जे आयोजक छलाह. मैथिली भाषा सुनतही सब श्रोता लोकनिक चेहरा पर अद्भुद पुलक आबी गेल ,हम साक्षात् देखि रहल छलों .हम बाज्लों...होटेस्ट स्टेट आ होटेस्ट डे ,ताहि मे १२ बजे दुपहरिया मे प्रखर रौद आ जरैत सुरुजक निचा हम सब गप कविताक कय रहल छी , कतेक विरोधाभास अछ . कविता इजोरियाक भाषा थीक ,कोमलता ,मृदुताक सफल संचरण रहितो हम सब एही जरैत रौद मे कविताक गप करैत छी..इयैह थीक आजुक कविता - कुंठा , संत्रास ,हाहाकार क मध्य कवि जीवित अछ ते इजोरिया कते..??
पुनह आगू बढैत हम मैथिली क सब कवि लोगनीक नाम, कविता सब क चर्च केलों ,फेरो---जहिना कोनो यग्य वा अनुष्ठान बिना महिलाक सम्पन्न नै होयत अछ वोहिना कोनो साहित्य ताधरी पूर्ण नै जाधरी महिला साहित्यकारक योगदान नै होय , आ तकर बाद हम महिला लेखिका गनक चर्च विस्तृत रुपे केलों..---------' मैथिली विजयी छलीह थपडी आ वाहवाही क नव स्पन्दन नेने....अभय पंधा हमर भाषण के हिंदी, उड़िया आ अंग्रेजी मे सम्झावैत कहलनि ..मिसेज वर्मा , हम मानैत छ जे मैथिली मे महिला साहित्यकारक बाहुल्य अछ, उडिया मे सेहो महिला लेखिकाक अभाव नै , महिला के बाहर जेवा मे परेशानी भ जायत छैक . अहाँ मि. वर्माक संग आयल छी, ,कतेक लोक के ई संजोग भेटैत छैक ? .......
किन्तु सेमीनारक समाप्ति क उपरान्त हमर मोने एकटा प्रश्न उभरल ..सब कवि अपन भाषण मे सभक चर्च केलनी किन्तु, अपन भाषाक कोनो महिला रचनाकारक चर्च नै केलनि..ई भ सकैत छैक मैथिली भाषा मे केओ पुरुख रचनाकार रहितैक तं ओ सेहो महिला क लेखनक चर्च नै करितैथ....आखिर इ वैमात्रिक व्यवहार महिला संग किएक ? महिलाक चर्च सं की हुनक अहम पर चोट पहुँचैत छैक , आकी अपना के छोट बुझ लागैत छैथ..?जाहि ठाम सम्मान देवाक गप ओहिठाम इन्फिरीयोरिटी कम्प्लेक्स किएक ?..एकर उत्तर दुनियाक कोनो पुरुख लग नै अछ..
गर्मी बड़ जोर, मंच पर उडिया कवि रवि सिंह क स्वर आर आगि उगलि रहल छल---..उड़िया क कवि लोगनिके आय धरी कोनो रचना पर पारिश्रमिक नै भेटल अछ......इ ते मैथिलिक संग सेहो छल..प्रोफ.दीपक मिश्रा ,उडिया कवि हमरा कहलैथ .जे रवि जे के लोग आगि कहैत छैथ..' उडिया कवि लोग् क मात्र दुई वर्ग छल , एकटा पदाधिकारी लोकनी दोसर प्रोफेसर सब. रातुक १० बाजी गेल, मंच पर मणिपुरी कवि इबोमेहा सिंह क वक्तव्य चली रहल छल....दीपक मिश्रा के मंच पर एवा लेल निमंत्रित कयल गेल,ओ क्ह्लनी.'हम कविता क सकैत छी ,ओही पर बाजी नै सकैत छी ....दीपक मिश्राक संग हम सब पार्क मे हवा खोज गेलों जे कत्तो मन्हुआय्ल सुतल हेतीह.... बाड़ी में घुमैत हम दीपक स कहलों ..जनैत छी हमर मिथिला में जखन बड गरम लगैत अछ, हवा नहि चलैत अछ ते हम सब एकटा फकड़ा पढैत छी ---सुषा के धोकड़ी मुसा के कान, धोकड़ी धोकड़ी हवा आन ओते से बक गेला कते......आ तकर बाद क स लक ह धरि एकटा कविता पढ़ पडैत छैक, जेना बक गेला कते..कमलपुर आगत स्वागत के केल्कानी ,किशोर बाबु, ,बैसलैथ कदम्ब क गाछ पर , पानि पिव्लैथ कोसी नदी में, माछ खेलैथ कबई, ....एहिना सब आखर से सही गाछ, सही,माछ, सही नदीक नाम कहैत 'ह' पर खत्म होइय्त अछ आ बसात बह लगैत छैक.....दीपक हँसैत बजलाह ..तखन भ जाय शुरू.... हमहूँ सब हँसे लगलों ..बहुत समय आ धैर्यक आवश्यकता छैक दीपक जी..कोनो चीज सहजही नहि भेटैत छैक...
रातुक भोजन में पुलाव, मीट, ३--४ प्रकारक तीमन, नीचा में दरी पर पात में खेलों. एकटा बारीक बाजल --दालि पात पर स बहि रहल छैक..हम चोंकि गेलों, पहिल बेर बरगढ़ में मैथिली सुन्लों..बाल्टी हाथ में नेने एकटा युवा ..हम मैथिली जनैत छी , सीतामढ़ी घर अछ. एहिठाम बिजली विभाग में छी. आय अहांक मैथिली में भाषण सुनि अपन भाषा मोन पड़ी आयल..
दोसर दिन १० बजे दिन में कवि सम्मेलन आरम्भ भेल. अभय पंधा संचालन क रहल छलाह, हुनक व्यक्तित्व में मैथिली, उड़िया, मणिपुरी, बंगाली, असामी,हिंदी,अंग्रेजी सबटा भाषा भरल छल ,भव्य आ प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व ..देवी दास मिश्र क कविता भ रहल छल जिनका ले सब कहैत छलाह जे ओ आशु कवि छैथ ,ओ कविता लिखैत नै छैथ, कविता बजैत छैथ ..
सिगरेट क धुइयाँ सँ घेरल हम बैसल छलों. राजेंद्र पंधा ,हरिप्रसाद ,आ सौभाग्य मिश्र तीनो क ठोर में सिगरेट .....राजेंद्र पंधा क कविता क भाव --' the entire world is devided into two camps , one to love ,the another which preaches hatred....I am for love ..' ....मनुख पर ओकर नामक असर अवस्य होइत छैक ..डॉ. प्रसन्न मिश्र गुलाबी शर्ट में सदिखन अपन प्रसन्न आनन स सब के उल्लसित करैत छलाह. ओ उड़ीसा सरकारक पत्रिका 'शिशुलेखा' क सम्पादक क संगे प्रोफेसर सेहो छलाह .प्रख्यात उड़िया कवि डॉ.सौभाग्य मिश्रक व्यक्तित्व स भाग्यक रेख छलकी र्झ्ल छल---'सुने पाखी उड़े जाय ,डेना फड फड करी ....'...नरसिंह प्रसाद त्रिपाठी कविता 'निजस्थिति' क बाद मैथिलीक कविता 'मधुगंधी वासात' नेने हम मंच पर एलों..फेर विद्यापतिक भाषा गूंजी गेल पाथरक देश मे...हरिप्रसाद जीक कविता -'सून सून आगि बेढ़ कुसुम लागि छे मते बारम्बार ईश्वर हसंते......' --------उडिया - कविता सब नम्हर नम्हर होइत अछ, मुदा, प्रसन्न कुमार प्रत्स्नी एम्.एल.ए. बड छोट कविता पढ्लनी 'चिलिका' ....मणिपुरी कवि इबोमेहा सिंह..' देबोय देबोय ( डान्स डांस ) ' सुनोलनी ते दोसर कविता जस्ट टू डे, जस्ट टू डे .....डेड जगन्नाथ डेड जगन्नाथ..... 'मोन के आक्रांत क देलक..
गर्म गर्म हवा चलि रहल छल. बीच बीच में कोंफी आ पानि सेहो..विचित्र आ सम्मोहक लागल..कवि सम्मलेन १ बजे दिन स ४ बजे तक चलल, मुदा सब जेना कवि सब के सुनवा ले आकुल व्याकुल..मोन पड़ी आयल अपन चेतना समितिक विद्यापति पर्व समारोह '७३-७४ इसवी सभक..मिलर स्कूल केर कैम्पस में १०,०००, श्रोता राति भरि खाली कविता सुनवा लेल मन्त्र मुग्ध बैसल रहैत छल ..
सम्मेलन ख़त्म हेवाक उपरान्त सब भोजनक ओरियाओन में लागि गेलाह. सब अफसर लोकनि अपने स कुर्सी घिच घिच के सामने आन ल्ग्लैठ. अफसरशाही क कोनो घमंड नै. भात ,दालि, दू टा तीमन आ रोहू माछक बडका बडका कुटीया..दही चीनी ..लगैत छल अपने मिथिला में छी..
हरिप्रसाद जी वर्मा जी के पुछलनी--डू यु स्मोक ? जबाब हम देलों --नो स्मोकिंग , नो ड्रिंकिंग ....वर्मा जीक हाथ पकड़ी वो बजलाह ' बेचारा ' .देन यु हँव मेड हिज लाइफ मीजरेबुल....हमरो पत्नी हमरा पिव नै दैत छलीह ,तखन हम ओकरा स पुछ्लों. अहाँ कवि स ब्याह केलों कि प्रोफेसर स..? ओ बजलीह -निश्चित रुपे कवि से ....तखन हमरा पिव दिय..हम पिअब नै ते कविता नै क सकब..फेर ओ हमरा कविता करैत काल शराब पिवाक अनुमति द देलनि..' कविता करवाक विचित्र परिभाषा पर हंसी लागि गेल. ५ बजे प्रोफ. अशोक चन्दन होटल आबि बजलाह--शेफालिका जी, १० मिनट लेल रेस्ट हाउस चलू. उडिया क नव कवि आ छात्रगण अहांक इंटरव्यू लेताह ... भरि दिनक थाकल छलों किन्तु वर्माजीक एके डांट में ..कोनो कार्यक्रम में नै नहि कहियोक..एहि लेल आयल छी ने..' आ अपना पलंग स दोस्ती क लेलनी हम चंदन जी संग रेस्ट हाउस एलों..बडका मजमा लागल छल --बीच में टेप रेकॉर्डर राखल छल..' कविताक सृजन कोना होयत छैक..?' सोझ प्रश्न लगले दिल दिमाग पर लागल--कि अहाँ जहिना कविता बनवैत छी ओहिना प्रकाशित करैत छी, @...हम हुनक समस्या आ बहसक कारण बुझि गेलों..-----देखू, जहिना प्रसव पीड़ाक काल लेबर पेन होइत छैक, ठीक ओहिना कोनो भाव शिशु हृदय में हिलकोर करैत अछ अछ . जाधरी ओकरा कागज पर नै उतरैत छी ताधरी प्रसव पीड़ा स छटपटावैत रहैत छी.. बच्चाक जन्मक बाद माता के कतेक शान्ति भेटैत छैक वैह शान्ति कवि के कविताक जन्मक बाद भेटैत छैक. ई दोसर गप थीक जे जन्म क बाद बच्चा के केश,माथ,नाक सब के ठोकी ठाक नीक बनवैत अछ ओहिना कविता के पढि पढि नीक आर नीक ले कवि सोचैत अछ. ..' सब विस्मित विमुग्ध छलाह ..'एक टा गप आर अपन कोन रचना अहाँ के बेसी नीक लगैत अछ..' हम हांसी देलों..' आब हमरा ई नै पुछू जे अहांक अपन बाल बच्चा में के सब स नीक लगैत अछ, रचनाकार के अपन कोनो सन्तान अधलाह नै लगैत छैक , लोग जे बुझे.....'
अभय जी बजलाह..अहांक भाषण आ इंटरव्यू ८ जून के राति में रेडिओ स प्रसारित होयत , जरुर सुनब.. .....ट्रेन पकड़बा लेल होटल स निकलैत छलों कि रोहिणीकान्त मुकर्जी ,सोवेनिर क सम्पादक पत्रिका ल पहुँचलाह--एहि में अहाँक मैथिली कविताक अंग्रेजी रूपान्तर छपल छैक, अगुला बेर उडिया रूपान्तर प्रकाशित होयत.-------- आ फेर एकटा बिछुड्वाक दर्द नेने, सब स मिलैत सनत कुमार आ अशोक महापात्र क संग स्टेशन ले विदा भ गेलों ..मैडम ,अहाँ हमरा सब के पत्रक जबाब देब ने...? एतेक आत्मीय स्वर में तीति भीजि गेल छलों. ....हं हं जरुर देब..शर्त एकेटा अहाँ सब हमरा मैडम नै दीदी कहू.........हं दीदी, हम सब कहियो अहाँ के नै बिसरब.
आ हमर मोन ट्रेनक गति संग भगैत रहल. मणिपद्म जी एक बेर मंच पर कहने छलाह--शेफाली, अहांक मोन ते सेमरक फूल जकां उडैत रहैत अछ ....हमर मोन सांचे उडि रहल छल, उडिया लोकक सम्पर्क भाषा उडिया छल, बंगाली सभक बँगला ....आ हम सब की करैत छी..हिंदी हमर राष्ट्र भाषा थीक , मैथिली मातृभाषा , --अपन माय के आदर देब तखन त राष्ट्र के आदर द सकैत छी , जननी के पूजब तखन त जन्मभूमि के....
गजेन्द्र ठाकुर स॒हस्र॑ शीर्षा॒
गजेन्द्र ठाकुरक जन्म भागलपुरमे सन् १९७१ मे भेलन्हि आ आइ काल्हि ओ दिल्लीमे रहै छथि।
मणिरत्नम लेल, जिनकर हिन्दुस्तानी हमरा अपन पिताक स्मरण करबैत रहैत अछि।
तेसर कल्लोल
गढ़ नारिकेलक मिलू। डोमटोलीक। बड़का गबैय्या।
सरकारी कार्यक्रम शुरू होइ छै कनेक देरीयेसँ।
गौरीशंकर स्थानमे जखन आस पड़ोसक गामक लोक सभ जुमए लगलाह तखन सरकार सेहो माटिक सड़क बनबा देलक आ जोन मजूर आसपासक गाम सभसँ एतए बोनिपर खटए लागल। आ बोनि एकदम्मे भेटै। मुदा कतेक लोककेँ कतेक बोनि भेटत से ककरो नै पता रहै। ठेकेदार सभ धाँइ-धाँइ एक्के औँठासँ कतेको लोकक बोनिपर दस्खत कऽ दै। नव-नव कार्यक्रम सभ आएल छै सरकारक। जे भेटै छौ बड्ड भेटै छौ। मोहना- दलित गबैय्या। मजदूरी न्य्योन दरसँ, सरकारी स्कीममे मजदूरीक दरमे अन्तर किए? कागज नै भेटत, किए नै भेटत?
ने कहियो देखल आ नै सुनल, बजा कऽ काज कियो देने छल आइ तक, आ पाइ नकद भेटै अछि। बेसी मेन-मीख निकालमे तँ जे भेटै छौ सेहो बन्न भऽ जेतौ।
एकटा संगठन खुजल छै झा आ यादव बाबू सभक, से धरना देलकै। असफल रहलै।
पाइ नकद भेटै अछि, बेसी मेन-मीख निकालमे तँ जे भेटै छौ सेहो बन्न भऽ जेतौ।
उठलाह मिलू गबैय्या- ओइ दस्तावेजमे किछु जादू छै- हमरा सभकेँ ओ लेबाक चाही, तखने ठीक मजदूरी हमरा सभकेँ भेटत।
जादू!!
हे किछु गप छै। जादू!! मिलू गबैय्यक गप छिऐ बाबू।
हमर अधिकार- हमरा की भेट रहल अछि वा भेटबाक चाही, की हक अछि।
मिलू गबैय्याक गप छिऐ बाबू, आब जादूसँ आगाँ बढ़ल छै।
जीबाक साधन आ ओकर सुरक्षा लेल जन सुनबाहीक प्रारम्भ केलन्हि परमानन्द पासवान, झंझारपुरक बी.डी.ओ. साहेब।
सुनबाहीमे तँ सभ मानिये जाइ छलै, ठेकेदार, दलाल सभ। मुदा बादमे फेर वएह होइ छलै। आइ कम मजूर चाही, आइ बच्चा, जनी-जाति नै चाही। आइ पुरुखोमे कम्मे लोक चाही। ई ठिठरा कमजोर अछि, ई नै चाही। ओ फुलेसरा मजगूत अछि मुदा कोढ़िया अछि, ओहो नै चाही। एतेक काज बाँकीए छै आ मजूर चाहबे नै करी।
फेर जन सुनबाही बजेलन्हि परमानन्द पासवान।
सभ नेता, ठीकेदार, दलाल सभ जुटल। बड़ा मारुख सभ। एह परमानन्द पासवान जी, की कहि देलिऐ। अहाँक गप के उठाएत?
आहि रे बा!! मुदा फेर वएह; जनी-जाति, कमजोर, बच्चा, कोढ़िया। छोड़; ई मोहना गबैय्याक फेरामे पड़ि कऽ भुक्खे मरि जाएब गऽ।
चारिम कल्लोल
गढ़ नारिकेलसँ किशनगढ़ आएल दूटा चिट्ठी।
मुकेश पासवानक समधि बिन्देश्वर पासवानक ददा गढ़ नारिकेलक पुरान बसिन्दा रहथि। मुदा फेर ओतएसँ रोसड़ाक लेल पलायन कऽ गेल रहथि। हुनकर पत्नी बेटाक दिल्ली बसलासँ बड़ दुखी छथिन्ह। आ तकर दोष अपन समधिकेँ सेहो दै छथिन्ह। बिन्देश्वरजी अपन पत्नीक पुत्रक नाम लिखल चिट्ठी मुकेशजीकेँ लिखै छथि। डाक सेवापर हुनका भरोस नै छन्हि। गढ़ नारिकेलक ढेर रास लोक दिल्लीमे रहै छथि से हथौटी ई चिट्ठी बेटा लग पहुँचि जेतन्हि, तइ द्वारे। दोसर चिट्ठी सत्यनारायण यादवक पत्नी अपन बेटा बिपिनक नामे लिखने छथिन्ह। बरइ कपिलेश्वर राउतक बेटा पालन दुनू चिट्ठी गढ़ नारिकेलसँ किशनगढ़ अनलन्हि अछि।
१
पहिल चिट्ठी
शुभाशीष।
हम एतए कुशल छी। अहाँ सबहक कुशलक हेतु सतत् भगवानसँ प्रार्थी रहैत छी। आगाँ समाचार ई जे अहाँ सभ हमर खोज खबरि लेनाइ बिल्कुले बिसरि गेल छी। फोन तँ छोड़ू, चिट्ठीयो सँ गप्प केना महिनो बीति जाइत अछि। कमसँ कम सप्ताहमे नै तँ महिनोमे एको बेर तँ माएक लेल गप्प करबाक समए निकालू। एतेक मोटका-मोटका किताब अहाँ लिखैत छी, किन्तु माएसँ गप्प करबाक फुर्सत नै अछि। अहाँक किताबक खिस्सा आ कविता सभ दीदी सुनेलक अछि। बहुत मार्मिक लगैत अछि। परन्तु अपन माँक प्रति कोनो जिज्ञासा नै होइत अछि, जे कतए रहैत अछि आ कोना अछि। भाएसँ अहाँ अपने समए-समएपर गप्प करू जे हम कतऽ कतेक दिन रहब। गाममे आब हमरा नै रहल होएत कारण एतए कोनो व्यवस्था नै अछि आ कियो जवान पुरुख-पात नै रहैत छथिन्ह। अहाँ सभ भाए-बहिनमे छोट छी किन्तु घरमे अहींकेँ घरक व्यवस्था आ इन्तजामक भार शुरुहेसँ अछि। किन्तु एम्हर अहाँ ध्यान नै दैत छिऐक। फोनपर अहाँसँ गप्प करबाक बड्ड मोन होइत रहैत अछि। बच्चा सभसँ सेहो गप करबाक मोन होइत रहैत अछि। बच्चा सभकेँ दू-तीन दिनपर बासँ गप करबा लेल कहबै। जमाएकेँ देखैत रहै छियन्हि जे सभ दू-तीन दिनपर अपन माँसँ गप करैत रहैत छथिन्ह, से हमरो सौख लगैत रहैत अछि जे हमर बेटा सभ केहेन अछि जे कहियो माँसँ गप्प करबाक मोन नै होइत छैक। सभ कहैत अछि जे अहाँकेँ कोन चीजक कमी अछि, से हमरो चीजक कमी तँ नै अछि मुदा धिया- पुताक हम प्रेमक भूखल छी।
पुतोहु अहाँकेँ एखन घरक सभटा काज करए पड़ैत होएत। बड्ड मेहनति होइय होएत, मुदा तैयो हमरोपर ध्यान राखब। हम बड्ड घबराएल रहै छी तेँ जे फुराएल से हम चिट्ठीमे लिखा देलहुँ। अहाँ सभक प्रेमक भूखल- अहींक माँ।
२
दोसर चिट्ठी
बेटा,
-महींस दूध दऽ रहल अछि, मुदा टोलबैय्या सभ जड़ि रहल अछि।
बिपिन चिट्ठी पढ़िते रहै छथि आकि कपिलेश्वर राउतक बेटा पालन बीचेमे बाजि उठै छथि- “अएँ यौ , अहाँक दूध होइये तँ टोलबैय्या सभ किएक जड़त? आ से ओ कोना बुझै छथि से पुछियन्हु”।
मुदा बेटा —बिपिन- केँ देखू ओ आगाँ बजै छथि- “अएँ यौ, सएह ने हमहूँ पुछै छी। हमरा दूध होइये तँ लोक सभ किए जड़ैए”?
माएपर बेटाकेँ कतेक विश्वास छै?
बिपिन फेर बजै छथि- “से जे ओ सभ मोने-मोने जड़ैए, से हम सभटा बुझै छिऐ”।
चिट्ठीमे आर बहुत रास गप छै।
-हमर नैहराक हालति बड्ड खराप। बड़का भाएक बच्चा सभ तँ तैयो ठीके छै, छोटकेक हालत बड्ड दब। मिदनापुरमे क्रेन चलबै छलै। मोन खराप भेलै तँ छह मास गामेमे रहि गेलै। फेर घुरि कऽ गेलै तँ क्रेनपर हाथ थरथराए लगै। हियाउ नै होइ छै। बच्चा सभ टुग्गर जेकाँ करै छै। जे कोनो जोगार हुअए तँ देखबै। नै भाए लेल नै। ओकर तँ आब बएस भेलै, गामेमे रहथि सएह नीक होएत। ओकर दूमे सँ एक्को टा बेटाक जे जोगार लागि जाइ तँ। बड़का भाउज पहिने माएकेँ देखए नै चाहै आ आब छोटकाक सिरपर लागल छै। साझ-सझियामे चौठारी फसिल दैत रहै से तँ बुझलिऐ मुदा आमक मासमे तँ छोटकोक बच्चा सभ कलम ओगरै छै। मुदा आमो चौठारी दै छै, छोटकी भाउज तामसे सेहो नै लेलकै। हम नै किछु बजलिऐ, हमरा तँ सभ कहिते अछि जे छोटकाक पक्ष लै छिऐ, तेँ।
-सभ दिल्लीसँ गाम अबैए तँ अहाँक घरक शानक चर्चा करैए, से नीक तँ लगैए, मुदा डरो लगैए जे नजरि ने लागि जाए।
-आर सभ ठीके अछि।
अहाँक माँ
मुदा मिलू गबैय्या जे कहलक जे कागज सभमे छै जादू से!
......
......
......
......
(आगाँ....)
......
......
......
अन्तिम (पचासम) कल्लोल
पटवा जगदीश माइलक बेटा महेश गामेमे रहै छन्हि। भरि दिन कपड़ा बुनबाक लेल खद्धामे पैसैत आ तानी आ भरनी मिला कऽ कपड़ा बूनि पेटलरदीपर लपेटैत जगदीश माइल अपनामे भेर रहै छथि। औंटि कऽ निकालल बाङक बङौरा जगदीश माइलक घरक चारूकात एत्तऽ–ओत्तऽ पसरल रहैत अछि। भदैया कोकटीक बूनल वस्त्रक लेल जगदीश माइल नामी छथि। एक बेर भदैया कोकटीक जगदीश माइल द्वारा बूनल वस्त्र कीनू आ भरि जनम पहिरू। जगदीश आ महेश फिटलूम, किसान चरखा आ अमर चरखा सेहो चलबैत छथि। मुदा जगदीशक सूत घुरिआइत नै अछि, एकदम गफ्स। मुदा महेशक सूतक जोड़मे घुरछी खूबे भेटत। अढ़ाइ हाथ चाकर धोती-साड़ी धनिक आ गरीबक हिसाबे छोट-पैघ भेटैत अछि। से पाइबला लेल दसहत्थी धोती मुदा गरिबहा लेल सतहत्थी धोती। तहिना साड़ी सेहो धनिक गरीबक हिसाबे बनबै छथि जगदीश माइल। बहुआसीन लेल बिसहत्थी तँ गरिबनी लेल नओ हत्थी। हँ, मुदा नओहत्थीसँ छोट साड़ी आ सतहत्थीसँ छोट धोती कहियो नै बनेलन्हि जगदीश माइल। मुदा ई खादी-भण्डारबला सभ आब पहिने जेकाँ हृदएसँ सेवा नै कऽ रहल अछि। मारते रास दलाल सभ राखि लेने अछि आ जगदीश माइलक बेटाकेँ कोनो ठाम नोकरी करबा लेल पोल्हा रहल अछि।
नबी बकस आ ओकर माए। पहिने ईहो सभ धुनियाँ आ जोलहागिरी करै जाइ छल मुदा आब नै। आब नबी बकस राजमिस्त्री बनि गेल अछि। गबैया धरि दुनू गोटा....
मुदा तेँ की, मिलू मेघ मुरलीबला सन के गाओत ? प्रसिद्ध मोहना- चर्मकार टोलक पिपहीबला गबैय्याक बेटा। लोक पिपहीबलाक बदलामे मुरलीबला कहै छै। हाइ रे हइ। बापो एहने गाबै छलै। तोँ कोना बुझलहीं ? बुढ़ा सभ कहै छथिन्ह। हाइ रे हइ।
ई गाम गढ़ नारिकेल, हाइ रे हइ। घर सभ बुझू सुगरक खोभारीये सन। मुदा कोनो खोभारी नै छै जतए कोनो ने कोनो कलामी नै रहैत होथि।
ई मिलू मेघ मुरलीबला।
बड़का चकरका बान्हपर जे माटि पड़ि रहल छलै तँ ठिकेदार सभ मजदूरी न्यून दरसँ कम सरकारी बोनि दऽ रहल छलै। एह, कहलकै जे। दस्खत आ औंठा। घुटराक औंठा रोशनाइमे भिजले रहै छलै। दे औंठा, दे औंठा, धांइ- धांइ घण्टा मे तीन सए मजूरक बोनिपर एक्के औंठाक चेन्हासी।
सरकारी स्कीममे मजदूरीक दरमे अन्तर किए? मिलू मेघ मुरलीबला उठा देलकै तान।
बड्ड देखलिऐ सरकारी इजलास गौरीशंकर थानपर।
मोंछबला सभ ने कनफुसकी करऽ जानै जाइए। ई मिलू मेघ मुरलीबला से ने तान उठेलन्हि जे की कियो बुझबो केलकै फरिछा कऽ।
सभकेँ भेलै जे गबैय्याक तान छिऐ। मुदा ओइ तानमे जे बाबू तागति रहै से परमानन्द पासवान बी.डी.ओ. साहेबकेँ लऽ अनलकै गढ़ नारिकेल।
कागज नै भेटत, आहि रे बा। बी.डी.ओ. साहेब तँ तैय्यारे छथि मुदा एस.डी.ओ. तँ जुलुम केलक।
मोंछबला सभ कोन कोन झण्डा लऽ कऽ आबि गेल, भूख हड़ताल आ धरना। “मजदूर, किसान, गरीब, भूमिहीन आदि-आदि संघर्ष संगठन”- बाबू बड़बरिया रॉयक धरना असफल।
उठलाह मोहन गबैय्या।
दादाके दुअरपर बाजैए बजना
उतारब सजना
हाइ रे हाइ मोहन मेघ वंशीबला।
मैया के आसन डोललै हे
नबी बकसक माए कत्तऽ सँ नै हरलै ने फुरलै, आबि गेलै।
अम्मा रोबे रोबे ला बहिनियाँ रोबे
दुलहिन रोबै
हय हाय
खटिया के पौवा
सैयद जाइ छै आजु दिन लड़ैले हो हाइ हाइ
गाछ के रिरितिया रोबै
डारीके कोइलिया
कुहकै मयुरनी हो हाइ हाइ
एकर दिस लड़ै दुनु भैयेँ हो हाय हाय.....
गामक स्त्रीगण सभ आबि गेली... बिना तारतमक गीत सभ शुरू, फुसियाहींक घोल फचक्का शुरू भेल। मुदा फुसियाहींक कहाँ रहल ओ..
घर पछुअरबामे बसए मा
मलमल सारिया बिसाइ हे
सेहो सरिय खरीदऽ गेल बौआ दुल्हा
पेहेनिये चललि ससुरारि हे
दादा अलारी
दादी दुलारु
सारी रात हे
भरि दिन गमेलियौ दादी
रातो चलल ससुरारि हे
....
पलंग उछाय हे
.......................................................................
-ओइ दस्तावेजमे किछु जादू छै।
ई की बाजि गेल फेर मिलू गबैय्या। ओइ कागचमे जादू होइ नै होइ, ऐ गपमे बड्ड जादू छै।
बाजि गेल कहाँ, बाजिये रहल अछि।
-हमरा सभकेँ ओ दस्तावेज लेबाक चाही, तखने ठीक मजूरी हमरा सभकेँ भेटत।
कोनो फुसियाहींक जादू-टोनाक गीत फेर शुरू करत ई। काली, बन्दी, गोरैया, बरहम आ बिसहाराक गीत शुरू करत।
बिजुबोन शिकार हे
एक पूत गेल हे भैरव
दुइ कोस गैल
बाबू केकर बिजूबोन शिकार हो
एक कोस गैल भै
दुइ कोस गेलहो बाबू तेसर कोस बिजू बोन शिकार हो
एक बोन झोरलओ हो भैर
तेसर बोन झोरल हो
बाबू तेसर बोन उठल शिकार हो
एक बोन झरलहो हे भैरऽ
दुइ बोन झोरललऽ ह तेसर बोन उठल शिकार हो
कारिया कुकुर हो बिसहर
गेलऽ
बाबू खोरियेलऽ तेसर बोन
एक बोन खोजलहो बिसहर
दुइ बोन खोजलह
तेसर बोन उठल शिकार हो
हरिण हो मरल हो भैरव
तितिरो ने मारलऽ हो
बाबू बिछि बिछि मारलऽ मयूर हो
कहाँ गेल बोन के मयूरनी दाइ
कहर ले सेन्दूर गए
तितिरो ने मारलऽ हो भैर
बिछि बिछि मारलऽ मयूर हो
एकबे उमेले भैर सेनूर जे हरि लेल
बाबू भेल हो
हे, ई गोरिलक गीत गबैत-गबैत मजूरीक गप कखन शुरू कऽ देताह से कहब मोश्किल। आ फेर गप उठबे करत, गप अधिकारक। परमानन्द पासवान बी.डी.ओ. साहैब, हाइ रे हाइ।
बभनीकेँ पुत्र तोहें बाल गोरैय्या,
पोथी नेने पढ़न जाइ हे
पोथिया नेरौलनि गोरिल जार बिरिछ तर
हलुआइ घर पैसल धपाइ हे
किछु मधुर खेलनि गोरिल किछो छिरियौला
किछु देल लंका पठाइ हे
बभनीक पुत्र तोहेँ बाल गोरैय्या
ग्वालिन घर पैसल धपाइ हे
किछु दूध पीलनि गोरिल किछु ढ़रकओला
किछु देल लंका पठाइ हे
बभनीक पुत्र तोहेँ बाल गोरैय्या
बड़इ घर पैसल धपाइ हे
किछु पान खेलनि गोरिल किछु छिड़िऔला
किछु देल लंका पठाइ हे
बभनीक पुत्र तोहेँ बाल गोरैय्या
डोमिन घर पैसल धपाइ हे
नीक नीक पाहुर गोरिल अपने चढ़ाओलऽ
काना पातर देल हड़काइ हे
बभनीक पुत्र तोहेँ बाल गोरैय्या
ब्राह्मण घर पैसल धपाइ हे
नीक-नीक जनौ गोरिल अपने पहिरलनि
औरो देलनि ओझराइ हे
हकन कनै छै गोरिल ब्राह्मणीक बेटिया
ब्राह्मण बाबू बड़ दुख देल हे
भनहि विद्यापति सुनू बाबू गोरिल
गहवर पैसिये जस लेल हे
-हमर अधिकार। हमरा की भेट रहल अछि वा भेटबाक चाही, की हक अछि।
परमानन्द बाबू गपकेँ बुझलन्हि। औ बाबू- “ई अरदराक मेघ नै मानत रहत बरसि कऽ” आरसी प्रसाद सिंह आ मिलू मेघ मुरलीबला। ई किछु खेला हेबे करत।
ओम्हर मुसहर टोलीसँ दीना भदरी बाबा आ सलहेस महराज पूजब शुरू भेल। फेर परमवीर, काली, भगवती, कमला, गांगोक गीत शुरू भऽ गेल। हे परमवीर, काली, भगवती, कमला, गांगोकेँ घरमे पूजल जाइ छै, एतऽ कतौ ई गाओल जाइ। दीना भदरी बाबा आ सलहेस महराजक गीत गाबऽ ने जे बाहरमे गाओल जाइ छै।
गांगो गहिल आ जन सुनबाही आ मजूरी!
गांगोदेवी के अंगनामे अरहुल के गछिया
फर-फूल लोधल ठाढ़ि यै
..राजा
सुगा एक आएल बैसल सूगा यै अरहुल फूल गाछ हे
बैठल सूगा अरहुल फूल गाछ हे
डाढ़िपात केलक क-कचून हे
नीक नीक फूलबर सुगबा
चुनि चुनि खाय डाढ़ि पात देलक कचून हे
कहाँ गेल कियर भेल
गाम के बहेलिया
मारू सूगा के धनुष चलाइ हे
घर से एकसर मरल बहेलिया
दोसर मारल
तेसर शर सूगा उड़ि जाइ हे
घर से बहार भेलि गोसाउन
नै मारिय सुगबा के
रहत एना सुगबा
छोट भाइ हे
जौँआ आम दियौ बहेलिया
सूगा के केर कान सुगबा सुगा छिऐ छोट भाइ हे
जीबाक साधन आ ओकर सुरक्षा लेल जन सुनबाहीक एस.डी.ओ. शुरू केलन्हि, मोने-मोन तमसाइत। एस.डी.ओ. कहाँदन आइ.ए.एस. छथि, मुदा परमानन्द पासवान, हाइ रे हइ। एस.डी.ओ. हुनका कहबो केलखिन्ह जे अहाँ स्थानीय छी तेँ जखन जे होइए कऽ दै छी, जखन जकरा होइए भड़का दै छी।
जन सुनबाहीक प्रारम्भ भेल।
मजूरी सभकेँ नीक-नहाँति भेटऽ लगलै। आ ई तखन भेलै जखन सूचनाक अधिकार एतुक्का लोककेँ नै भेटल रहै। २००५ ई. मे सूचनाक अधिकार भेटलै मुदा मिलू गबैय्या जे जन सुनबाही शुरू करबेने रहथि, ओहो तँ सरकारी हाकिमे सभ द्वारा शुरू करबेने रहथि। ई जे सभ ठामक हाकिममे भाव रहितै तँ की दिक्कत रहै। कतेक ठाम कतेक मिलू गबैय्या भेल हेतै आ परमानन्द पासवान सेहो, हाइ रे हइ। आ तखन ई २००५ ई. मे सूचनाक अधिकारमे बदलल अछि।
३.५.नवीन कुमार आशा
३.६.मनोज कुमार झा-शासक लोकनिसँ (बाढ़िक सन्दर्भमे)
सत्येन्द्र कुमार झा पाँच गोट लघु कविता
1
पािनक खर्च तँ छैहे लोककेँ
बिनु पानि बहुतो काज नै छै संभव,
मुदा तैयो किछु पानि राखि लिअ बचा कऽ
अपनाकेँ बेपानि होएबासँ बचेबाक लेल।
2
अकासमे मेघ/ कारी-कारी मेघ
झहरतै मोती सन बुन्न कखनो अवश्ये
पृथ्वीक धधकैत करेज
भऽ जेतै शीतल
मुदा भूखल आगि कोना हेतै ठंढ़?
सोचि रहल छै, रमुआ रिक्शाबला
बरखामे कोना भेटतै सवारी।
3
एकटा स्थायी सरकारक कामना
ओ भिखमंगा सेहो करै छै
चुनावक दिन जेकरा जीबए पड़ै छै
मात्र पानिक संग।
4
क सँ कबुतर
देखने छिही? नै
ख सँ खरगोश
देखने छिही? नै
प सँ पेस्तौल
देखने छिही? हँ....
काल्हिये देखिऐ-
गामक्काक उपर तानि देने छलै गामभैया पेस्तौल
जमीनक कोनो टुकड़ीक लेल।
सुतैत काल माए खिस्सा कहने छल
जे ओइ पेस्तौलसँ मारि देने छलै
गाम भैया सभटा खरगोश
आ तहिये उड़ि गेल छलै
गामसँ सभटा कबूतर।
5
अहाँ नै पढ़बै
तैयो लिखले जेतै कविता
अहाँ नै सुनबै
तैयो पढ़ले जेतै कविता
अहाँ नै रूकबै
तैयो चलिते रहतै कविता
एखन धरि अहींक लेल
लिखल, पढ़ल आ चलल जा रहल अछि कविता
भविष्यक कविता लेल
जुनि बनाउ स्वयंकेँ
अप्रासंगिक।
रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’ चारि गोट गीत
1
परबस जिबै छै अखनो,
मिथिला देशक नारी यौ
तँए फाटल छै साड़ी यौ ना।
नारी कोना कऽ हेतै सख्त,
कोइ नै दै छै कनियो वक्त।
दुर हेतै कोना कऽ
अबला के लाचारी यौ। तँए......।
गाम छै अखनो पुरूष प्रधान,
नारी बनल छै चुसक आम।
चुप रहि कऽ सहै छै,
पुरूषक अत्याचारी यौ। तँए.....।
नारी नेतो जौं बनै छै,
कुर्सी पुरूष ओकर धुनै छै।
कानुन कसै नै छै राजा,
राजक छी बेमारी यौ। तँए.....।
नारी सीता राधा अंश,
पुरूष बनल छै रावण कंश।
फेर कोना कऽ चलतै,
ई घर दुनियाँदारी यौ। तँए......।
2
देखियौ यौ सभ बाबू भैया,
ई सभ की देखाइ छै।
ज्ञान बिना ई अल्हर मानव,
सुखलेमे नहाइ छै।
दल बनेलकै सभ ठकपंथी,
एकटाकेँ देने छै महन्थी।
अन्न पानि की खेतै बाबा,
दहिएमे नहाइ छै। ज्ञान....।
मंदिरमे खुब चढ़बु चढ़ाबा,
धन पुतकेँ खुब हेतै बढ़ाबा।
ठकपंथीकेँ फेरमे मानव,
पढ़ने ई पढ़ाइ छै। ज्ञान.....।
मॉगनेसँ जब देवता दैइतै,
िनर्धन निपुत कोइ किए रहितै।
अंधविश्वासकमे अखनो मानव,
जंगलमे बौआइ छै। ज्ञान....।
3
मेल एकता बड्ड सुख दै छै,
गाबै वेद-पुराण यौ।
सभ भाँइमे जौं एकता रहितै,
बम-बम रहितै मकान यौ।।
छोड़ि दियौ जाति पातिक झगड़ा,
तियागि दियौ सम्प्रदाइक रगड़ा।
कंधासँ कंधाकेँ जोड़ि कऽ,
रोपु विकाशी धान यौ। सभ....।
कुवुद्धिमे जौं ओझरेबै, कोना दु:खक गुत्थी सोझरेबै।
भुख-गरिबी रोग अशिक्षा,
कोना कऽ हेतै निदान यौ। सभ....।
राष्ट्रहित लऽ सबकियो सोचु,
एकता जलसँ एकरा सिंचु
देश जौं संकटमे फसेबै,
बचतै नै ककरो शान यौ। सभ....।
4
हम मिथलानी मिथिला के नारी,
रहबै नै कमजोड़ यौ।
नव डगर अपनेसँ गढ़बै,
धरबै शिक्षा के डोर यौ।
हक हमर जे आब कियो छिनतै,
अपना लऽ दु:ख अपने किनतै।
आब नै नारी रहब अनारी,
बनबै सख्त कठोर यौ। ना....।
आब नै सहबै हम दुर्दशा,
करबै नै आब ककरो आशा
तोरि फेकबै जंजिर गुलामी,
चाहे लगतै जे जोड़ यौ। ना....।
सभ नारीमे एकता बनेबै,
नारी ससख्ती सभकेँ जनेबै
जे कियो आब हमरा सतेतै,
झुटका दऽ मलबै ठोर यौ। ना....।
किशन कारीगर सेहन्ता
हमरो छल एकटा सेहन्ता औ बाबू
कहियो त उठी कहब अहाँ
आब उठू यौ बौआ भेलैए भोर
अहाँक दोस महीम कए रहल छथि सोड़।।
हिचुकै हिंचुकै एसगर हम कनैत छलहु
देखितहुँ अहाँ से छुटि नहि भेल
हालो चाल त पुछितहुँ हमर
मुदा कहियो अहाँ के सेहन्तो नहि भेल।।
हमर सेहन्ता एकटा सपने रहि गेल
कहियो अहाँक हृदय मे हमर स्नेह नहि भेल
कहियो ने दुलार कए उठेलहु हमरा औ बाबू
विधतो केलैन किस्मतक केहेन खेल।।
सोझहे पाईए टा दए देला सँ
बापक फर्ज़ नहि पूरा भए जायत छैक
हमरो बाप केखनो दुलार करितैथ हमरा
अहिं कहू केकरा ने सेहन्ता होइत छैक।।
एहेन विरान जिनगी सँ नीक
हमरा जनमैते किएक नहि मारि देलहु
अपने मगन मे रहलहुँ सब दिन
कुहसैत एसगर हमरा किएक छोड़ि देलहुँ।।
माएक आँचर बापक साया दूनू गोटे
कोनो छोट नेनाक होइत अछि छाया
मुदा केहेन निष्ठुर भेलहु अहाँ
आई धधकि रहल अछि हमर काया।।
हमर किलकारीक गूँज सुनि
कहियो दौगल अबितहुँ अहाँ
कोरा मे लए हमरा दुलार करितहुँ
मुदा कहियो ऐहेन सेहन्ता भेल कहाँ।।
नेनापन के हमर सबटा सेहन्ता
एकटा सपने रहि गेल
मुदा आबो बिचार कए देखू
कहियो अहाँक मुहो मलीन नहि भेल।।
किएक से अहि कहू
हम कोन अपराध केने रही
हमर सबटा सख मनोरथ के बिसैर
अहाँ अपने मगन मे रही।।
हमरा सँ नीक कोनो अनाथ सँ पूछु
केहेन बेबस होइत छैक ओकर जिनगी
अहाँक जिबैतो हम छी अनाथ
एहने बेबस भए गेल हमर जिनगी।।
केहेन वीरान जिनगी भए गेल
आब नहि अछि कोनो सेहन्ता
सबहक बाप सभ केँ दुलार पुचकार करैथ
आब एतबाक अछि कारीगर के सेहन्ता।।
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