किशन कारीगर
मैथिली सीखू
(एकटा हास्य कथा)
कोइलख वाली काकी खिसियाअैत बजलीह भरि दिन बैसल फुसियांहिक गप नाद मे लागल रहैत छी एहि स नीक जे किछू काज-राज करब से किएक नहि करैत छी। इ सुनि गजानन बाबू गरजैत बजलाह हम की करू हम त मैथिली पढ़ने छी काज राज त करैते छी त आब की करू। काकी खोंजाइत बजलीह किएक अई इ टीशन पढ़ाएब से नहि जे किछू आमदनी होइत त गाम मे कनेक खेत पथार सेहो कीन लेब। देखैत छियैक रमानन बाबू टीशन पढ़ा संपैत ढ़ेरिया लेलैन आ अहा गप नाद मे ओझराएल रहैत छी। गजानन बजलाह हे यै कोइलख वाली अहा सपना तपना देखैत छीएक टीशन तहू मे मैथिली के। इ सुनि काकी मुह चमकबैत बजलीह हे महादेव कनि अहि हिनका मति दियऔन। एतबाक मे गजनान बाबू फुफकार छोरैत बजलाह अईं यै अहा महादेव के किएक कहैत छियैन देखैत छियै महादेवक कृपा सॅ हम मैथिली स फस्ट डीविजन मे बी ए पास केने छी त आब की।
काकी बजलीह यौ बाबू सोझहे डिग्री टा लेला स की होइत की ओकर किछू सार्थक काज सेहो हेबाक चाहि। देखैत छियैक आब लोग मैथिलियो पढ़ि कल्कटर लेखक भाषाविद् बनि रहल अछि मुदा अहॉ के मैथिली पढ़ाएब मे कोन मासचरज लगैए से नहि जानि। गजानन बाबू गमछा स देह कुरियबैत बजलाह यै कोइलख वाली ज अहा कहैत छी त हम कनेक रमानन बाबू स विचार पूछने अबैत छी ओ एतेक दिन स टीशन पढ़ा रहल छथि हुनका स परमार्श लेनै नीक रहत। काकी बजलीह जाउ अहॉ यै जल्दी जेब्बो टा करू अहॉ बड्ड ठेलीयाह आ कोंरहियाठ भ गेलहू। गजानन हॅफैत हा हा हा क बजलाह हइए हम एखने जा रहल छी कहू त नीक काज मे एतेक देरी किएक।
रमानन बाबू विद्यार्थी सभ के पढ़बैत रहैथ की तखने गजानन धरफराएल ओतए पहुचलाह आ बजलाह कि औ सर किछू हमरो जोगार धरा दियअ। हुनका देखैत मातर रमानन बाबू बजलाह ओ हो मिस्टर गजानन कम कम मोस्ट वेलकम। गजानन पानक पीक फेकि बजलाह अपन लंगोटिया यार भ मैथिली मे बजबह त अंग्रेजी झारै मे लागल छह। इ सुनि रमानन बाबू बजलाह ओ मिस्टर गजानन प्लीज स्लोली स्टूडेंट इज हियअर सो प्लीज वेट। गजानन बजलाह रौ दोस इ वेट फेट छोड़ आ हमरो गप पर घियान दहि। इ गप सुनि रमानन बाबू विद्यार्थी सभ के ज्िल्दए छुट्टी दए देलखिहिन ओ सभ चल गेल। तकरा बाद रमानन बाबू रमानन बाबू बजलाह अई रौ गजानन तहू हरदम धरफराएल अबैत छैं कह की गप किएक एतेक अपसिंयात छैं। गजानन बजलाह रौ भाइ की कहियौह तोहर भाउज कहिया स हुरपेट रहल अछि जे टीशन किएक नहि पढ़बैत छी मुदा हमरा त किछू ने फुरा रहल अछि की करू। ओ बजलाह भाउज ठीके त कहि रहल छौ रौ दोस।
गजानन बजलाह तोहि कह ने भाइ एखुनका एडभांस युग मे अगबे मैथिली के पढ़त एखन त जतए देखहि अंग्रेजी सीखू के बोर्ड लागल रहैत छैक तहू मे पहिने सीख लियअ फिस 15 दिन बाद दियौअ सेहो स्कीम रहैत छै । एना मे छौड़ा मारेर सेहो खाली अंग्रेजी स्पोकन मे नााम लिखा रहल अछि अपना भाषा स कोन काज छैक ओकरा। रमानन बाबू बजलाह से त ठीके मुदा भाइ तू चिता जूनि कर मैथिली संगे अंग्रेजी फ्री क दिहैक त तोरो बिक्री बट्टा भ जेतौह। गजानन हफैत बजलाह भाइ फरिछा के कह हम अपसियात भेल छी आ तू गप मारि रहल छैं। तखन रमानन बजलाह नहि रौ भाइ ठीके कहि रहल छियौ देखहि आइ काल्हि त देखते छिहि एकटा समान संगे एकटा फ्री देबही तबे किछु बिक्री हेतौह। तू मैथिली पढ़बहिए आ हम तोरे कोचिग मे आबि के फ्री मे अंग्रेजी पढ़ा देबै त तोरो काज हलूक भए जेतौ। ई सुनि गजानन खुशि स मोने मोन नाचए लगलाह आ हॅफैत हा हा के हसैत बजलाह हइए हम एखने चललियौ रौ भाइ जाइत छियैक हम आइए अपना घर के आगू मे मैथिली स्पोक मे बरका टा बोर्ड टांगि देबै आ ओहि बोर्ड मे लिख देबै मैथिली संगे अंग्रेजी फ्री मे सीखू। गजानन ओतए स आपीस आबि घरक आगू मे बरिका टा बोर्ड लगौलैन।
सलीम आ डैनी दुनू गोटे कपरा किनबाक लेल फटफटिया पर बैसी बजार जाइत रहै की सलीम बाजल भाइ हमरा त मैथिली सीखने का मन करैत अछि। एतबाक सुनि डैनी खूम जोर स हसैत बाजल ए भाइ अहा के दिमाग सठिया गया है की भगैठ गया है। कहू त सभ अंग्रेजी सीखता है आ बम्बई जैसन शहर मे अहा मैथिली सीखेगा। सलीम बाजल भाई अहा एतेक देरी स कोनो गप किएक बुझता है। हम सभ परदेश मे रहकर कमाइत छी लेकिन अप्पन भाषा ठीक से नहि बोलता है। कहू हम अहा यदि नहि बजेगा त आन लोक सभ केना बुझहेगा। फेर अप्पन भाषा संस्कृति के बिकास केना होगा। देखिए त मराठी सभ ओ अपना भाषा पहिने बजता है तब दोसर ठाम के भाषा। ई सुनि डैनी बाजल भाई अहा ठीके कहता है आब त हमरो मन होता ह ैजे मैथिली सीखेगा आ अपना धिया पूता के सेहो कहेगा जे मैथिली सीखू। फेर ओ सीविल सेवा के तैयारी सेहो कर सकता है। सलीम बाजल त देरी किएक करता है भाइ चलू ने अभिए मैथिली वला मामू के ताकि लेता है। दुनू गोटे फटफटिया फटफटबैत बिदा भेल। सलीम फटफटीय चलबै मे मगन रहैए आ डैनी तकैए मे डैनी अचके खूम जोर स हसैए लागल ओ हो भाइ मैथिली वला मामू के त देख लिया। सलीम बाजल कतए कतए जल्दी देखाउ। डैनी फेर हॅसैत बाजल भाइ अहा के आखि चोनहरा गया है कि हइए अपने आखि से देखू ने मैथिली स्पोकन के बोर्ड। सलीम तुरंत फटफयिा बंद कए उतरल बोर्ड देखि के बाजल ठीके मे भाइ अई ठाम त मैथिली संगे अंग्रेजी सेहो फ्री है त चलिए ने मामू के खोज पूछारी करिए लेता है।
गजानन बाबू कतेक दिन स विद्यार्थी सबहक बाट देखि रहल छलाह बैसल बैसल आंेघहि स झुकि रहल छलाह कि तखने सलीम आ डैनी हरबराएल पहुचल। सलीम बाजल ओ मामू ओ मामू कि एतबाक मे गजानन अकचकाइत चहाक दिस उठलाह। सलीम बाजल हमरा मैथिली सीखने का मन है इ कहू मैथिली सीखाने वला मामू अहि है की। गजानन हरबड़ाइत बजलाह हम कोनो मामू वामू नहि छी हम त मैथिलीक मास्टर छी। डैनी बाजल अच्छा ठीक छै अहॉ कतेक पाई लेगा से कहू। गजानन बजलाह अहा दुनू गोटे पढ़नाइ शुरू करू तकरा बाद फीस अपना मन स दए देबै। इ सुनि सलीम बाजल भाई मामू त बड्ड नीक आदमी है जे बम्बई मे मैथिली सीखा पढ़ा देगा। अच्छा हम दुनू गोटे काल्हि स टीशन पढने आएगा। एतबाक मे गजानन बजलाह रूकू ने चाह पी लियअ त जाएब। डैनी बाजल नहि मामू हम सभ काल्हि स पढने आएगा त अहॉ के लिए चाह बिस्कुट सेहो नेने आएगा। बेस अखैन हम सभ चलता है प्रणाम।
ओ दुनू गोटे चलि गेल कि एतबाक मे कोइलख वाली काकी बजार स तीमन तरकारी किनने आपीस एलीह की गजानन चौअनिया मुसकान बजलाह आइ त कि कहू कमाल भए गेलैए। काकी बजलीह मारे मुह धके अईं यै कोन खजाना हाथ लागि गेल जे खुशि स एक्के टागे नाचि रहल छी। हे यै कि कहू आइ दू टा विद्यार्थी मैथिली पढ़बाक गप कए के गेल काल्हि स ओ सभ टीशन पढ़ै लेल आउत। काकी आश्चर्य स अकचकैत बजलीह गे माए गे अहॉक कोचिग मे विद्यार्थी कहिया स यै। इ सुनि गजानन गरजैत बजलाह विद्यार्थी हमरा कोचिंग मे नहि त की अहाक रसोइ मे चाह बनेबाक लेल औतैह। काकी बजलीह हे यै हमही बिचाार देलहू आ अहा हमरे पर खउंझा रहल छी। एतबाक मे गजनान खूम जोर स हा हा के हसैत बजलाह यै कोइलख वाली आब अहा देखैत जाउ मैथिली स्पोकन के कमाल आब कनि अहू टीशन पढ़ि लेब। काकी बजलीह ह यै किएक नहि हम त कहैत छी मैथिली पढ़ू लोके के सिखाउ आ अपनो मैथिली सीखू।
जगदीश प्रसाद मण्डल
झमेलिया बियाह (नाटक)
चारिम दृश्य
(भागेसर दरबज्जा सजबैत। बहाड़ि-सोहाड़ि चारिटा कुरसी लगौलक। कुरसी सजा भागेसर चारूकात निहारि-निहारि गौर करैत। तहीकाल बालगोविन्द आ राधेश्यामक प्रवेश।)
भागेसर- आउ, आउ।
(कुरसीपर तीनू गोरे बैसैत।)
बालगोविन्द- (राधेश्यामसँ।) बौआ, बेटी हमर छी, वहीन तँ तोरे छिअ। अखन समए अछि तँए......?
भागेसर- अपने दुनू बापूत गप-सप्प करू।
(उठि कऽ भीतर जाइत।)
राधेश्याम- अहाँक परोछ भेने ने......। जाबे अहाँ छिऐ, ताबे हम.....।
भागेसर- नै, नै। परिवारमे सभकेँ अपन-अपन मनोरथ होइ छै। चाहे छोट भाए वा बेटाक वियाह होउ आकि बेटी-बहीनक होउ।
राधेश्याम- हँ, से तँ होइते अछि। मुदा अहाँ अछैत जते भार अहाँपर अछि ओते थोड़े अछि। तखन तँ बहीन छी, परिवारक काज छी, कोनो तरहक गड़बड़ भेने बदनामी तँ परिवारेक हएत।
बालगोविन्द- जाधरि अंजल नै केलौंहेँ ताधरि दरबज्जा खुजल अछि। मुदा से भेलापर बान्ह पड़ि जाइत अछि। तँए......?
राधेश्याम- हम तँ परदेश खटै छी। शहरक बेबहार दोसर रंगक अछि। गामक की बेबहार अछि से नीक जकाँ थोड़े बुझै छी। मुदा तैयो......?
बालगोविन्द- मुदा तैयो कि?
राधेश्याम- ओना तँ बहुत मिलानीक प्रश्न अछि मुदा किछु एहेन अछि जेकर हएब आवश्यक अछि?
बालगोविन्द- आब कि तोहूँ बाल बोध छह, जे नै बुझबहक। मनमे जे छह से बाजह। मन जँचत कुटुमैती करब नै जँचत नै करब। यएह तँ गुण अछि जे अल्पसंख्यक नै छी।
राधेश्याम- कि अल्पसंख्यक?
बालगोविन्द- जइ जातिक संख्या कम छै ओकरा संगे बहुत रंगक बिहंगरा ठाढ़ होइत अछि। मुदा जइ काजे एलौंहेँ तेकरा आगू बढ़ाबह। कि कहलहक?
राधेश्याम- कहलौं यएह जे कमसँ कम तीनक मिलानी अवस होइ। पहिल गामक दोसर परिवारक आ तेसर लड़का-लड़कीक।
बालगोविन्द- जँ तीनूक नै होइ?
राधेश्याम- तँ दुइयोक।
बालगोविन्द- जेहने अपन परिवारक बेबहार छह तेहने अहू परिवारक अछि। गामो एकरंगाहे बुझि पड़ैए। लड़का-लड़की सोझेमे छह।
राधेश्याम- तखन किअए काज रोकब?
(जगमे पानि आ गिलास नेने भागेसर आबि, टेबुलपर गिलास रखि पानि आगू बढ़बैत। गिलास हाथमे लऽ।)
बालगोविन्द- नीक होइत जे पहिने काजक गप अगुआ लेतौं।
भागेसर- अखन धरि अहूँ पुरने विध-बेबहारमे लटकल छी। कुटुमैती हुअए वा नै मुदा दरबज्जापर आबि जँ पानि नै पीब, ई केहन हएत?
(पानि पीबैत। तहीकाल झमेलिया चाह नेने अबैत। पानि पिआ दुनू गोटेकेँ चाहक कप दैत भागेसर अपनो कुससीपर बैस चाह पीबए लगैत।)
बालगोविन्द- समए तेहन दुरकाल भऽ गेल जे आब कथा-कुटुमैतीमे कतौ लज्जति नै रहैए। बेसीसँ बेसी चारि-आना कुटुमैती कुटुमैती जकाँ होइए। बारह आनामे झगड़े-झंझट होइए।
भागेसर- हँ, से तँ देखते छी। मुदा हवा-बिहाड़िमे अपन जान नै बँचाएब तँ उड़ि कऽ कतएसँ कतए चलि जाएब, तेकर ठेकान रहत।
बालगोविन्द- पैछला लगनक एकटा बात कहै छी। हमरे गामक छी। कुल-खनदान तँ दबे छलनि मुदा पढ़ि-लिख परिवार एते उन्नति केने अछि जे इलाकामे कियो कहबै छथि।
भागेसर- वाह।
बालगोविन्द- लड़को-लड़की उपरा-उपरी। कमसँ कम पचास लाखक िबयाहो भेल छलै। मुदा खाइ-पीबै बेरमे तते मािर-दंगा भेल जे दुनूकेँ मन रहतनि।
भागेसर- मारि किअए भेल?
बालगोविन्द- पुछलियनि ते कहलनि जे वियाह-दानमे कोनो रसे नै रहि गेल अछि। लड़काबला सदिखन लड़कीबलाकेँ निच्चा देखबए चाहैत तँ सरियाती बरियातीकेँ। अही बीचमे रंग-विरंगक बखेरा ठाढ़ कऽ मारि-पीट होइए।
भागेसर- एहेन बरियातीमे जाएबो नीक नहि।
बालगोविन्द- सज्जन लोक सभ छोड़ि देलनि। मुदा तैयो कि बरियाती कम जाइए। तते ने गाड़ी-सवारी भऽ गेल जे हुहुऔने फिरैए।
भागेसर- खाइर, छोड़ू दुनियाँ-जहानक बात। अपन गप करू।
बालगोविन्द- हमरेसँ पुछै छी। कन्यागत तँ सदति चाहै छथि जे एकटा ऋृण उताड़ैमे दोसर ऋृण ने चढ़ि जाए। अपने लड़काबला छिऐ। कोना दुनू परिवारक कल्याण हएत, से तँ......?
भागेसर- दुनियाँ केम्हरो गुड़ैक जाउ। मुदा अपनोले तँ किछु करब। आइ जँ बेटा बेच लेब तँ मुइलापर आगि के देत। बेचलाहा बेटासँ पैठ हएत।
बालगोविन्द- कहलिऐ तँ बड़बढ़िया। मुदा समाजक जे कुकुड़चालि छै से मानता दुनू परिवार मिल-जुलि काज ससारि लेब। मुदा नढ़िया जकाँ जे भूकत तेकर कि करबै?
भागेसर- हँ से तँ ठीके, पैछलो नीक चलनि आ अखुनको नीक चलनि अपना कऽ अधला चलनि छोड़ देब। किअए कियो भूकत। जँ भूकबो करत तँ अपन मुँह दुखाओत।
(बरक रूपमे झमेलिया)
बालगोविन्द- बेटा-बेटीक वियाहमे समाजक पाँचो गोटे तँ रहैक चाहिऐ ने?
भागेसर- भने मन पाड़ि देलौं। घरे-अंगना आ दुआरे-दरबज्जापर तते काज बढ़ि गेल जे समाज दिस नजरिये ने गेल।
बालगोविन्द- आबे कि भेल, बजा लिऔन। समाजकेँ तँ लड़का देखले छन्हि, हमहूँ दुनू बापूत देखिये लेलौं।
भागेसर- केहन लड़का अछि?
बालगोविन्द- एते काल बटोही छलौं तँए बटोहिक संबंध छल। मुदा आब संबंध जोड़ैक विध शुरू भऽ गेल तँए संबंधी भेल जा रहल छी।
भागेसर- कि कहू बालगोविन्दबाबू, जिनगिये तते रिया-खिया कऽ बेलक जकाँ बनि गेल छी।
बालगोविन्द- (ठहाका मारि) समधि एक भग्गू कहलिऐ। छोटोसँ पैघ बनैए आ पैघोसँ छोट बनैए। छोट-टोट कीड़ी-मकौरी समैक संग ससरैत-ससरैत नमहर बनि जाइए। तहिना कलकतिया आकि फैजली आम सरही होइत-होइत तेहन भऽ जाइए जे बिसवासे ने हएत जे ई फैजली बंशक बड़वड़िया बीजू छी।
भागेसर- बालगोविन्दबाबू, गप-सप्प चलिते रहत समाजोकेँ बजा लइ छियनि।(समाज दिस नजरि दोड़बैत भागेसर आंगुरपर हिसाब जोड़ैत..) ओह फल्लां दोगला अछि। (पुन: आंगुरपर जोड़ि) ओह फल्लां तँ दुष्ट छी दुष्ट। फल्लां पक्का दलाल छी। साला बेटी वियाहक बात बना रोजगार खोलने अछि। परिवारक बीच जाति होइए आकि समाजक बीच। जेकर विचर नीक बाटे चलै ओ किअए ने समाज बनावे।
बालगोविन्द- समधि, किअए अटकि गेलौं?
भागेसर- बालगोविन्दबाबू, लोक तँ समाजेमे रहि समाजक संग चलत मुदा वियाह सन पारिवारिक यज्ञमे जँ समाजक लोक धोखा दइ तखन?
बालगोविन्द- समधि कहलौं तँ बेस बात, मुदा जहिना ई समाज अछि तहिना ने ओहो अछि। ठीके कहलौं जे वियाह सन काज जइसँ समाज एक अलंग ठाढ़ होइत तइमे उचक्का सभक उचकपन्नी आरो सुतरैए। बड़-कनियाँक देखा-सुनीसँ लऽ कऽ सिनुरदान धरि किछु ने किछु बिगाड़ैक कोशिश करबे करैए।
भागेसर- एकटा बात मन पड़ि गेल। भाए-बहीनिक बीचक कहै छी। (भागेसरक बात सुनि राधेश्याम चौंक गेल..)
राधेश्याम- कि कहलखिन भाए-बहीनि।
भागेसर- बाउ, अहाँक तँ बहीन छी। भाए-बहीनिक बीच बरावरीक जिनगी हेबाक चाही से तेहन-तेहन वंशक बतौर सभ जन्म लेने जाइऐ जे......?
राधेश्याम- की जे?
भागेसर- अपन पड़ोसीक कहै छी। सौ-बीघाक परिवारमे पाँच भाए-बहीनिक भैयारी। बीस बीघा माथपर भेल। बहीन सभसँ छोट। सौ बीघा स्तरक लड़कीकेँ दू बीघाबला परिवारमे भाए सभ वियाहि देलक।
राधेश्याम- पिता नै बुझलखिन?
भागेसर- सएह ने कहै छी। पिता जँ पुत्रपर विसवास नै करथि तँ किनकापर करथि। तते चढ़ा-उतड़ी चारू बेटा देलकनि जे पिता अपन भारे सुमझा देलखिन। बेटा सभ केहन बेइमान जे बहीनिक कोढ़-करेज काटि अपन कनतोड़ी सजबए लगल।
राधेश्याम- पछातियो पिता नै बुझलखिन?
भागेसर- बुझिये कऽ कि करथिन। मुइने एला बैद तँ किदनकेँ के जेता।
राधेश्याम- बड़ अन्याय भेल!
भागेसर- अन्याय कि भेल अन्याय जकाँ। ओही सोगे माए जे ओछाइन धेलखिन से धेनेहि रहि गेलखिन। पितो बौरा कऽ वृन्दावन चलि गेलखिन।
राधेश्याम- बाबू, जहिना माए-बापक बेटी- छियनि तहिना बहीन हमरो छी। ओना खाइ-पीबै आ लत्ता-कपड़ाक दुख अखन धरि नहिये भेलै, मुदा आगूक तँ नै कहि सकै छियनि। दिन-राति माइयक संग काज उदम रहैए। माइयक समकशत नै भेल मुदा दू-चारि सालमे भइये जाएत। सभ सीख-लिख माइयेक छै।
भागेसर- अहाँ कतऽ रहै छिऐ?
राधेश्याम- ओना बाहरे रहै छी। मुदा आन बहरबैया जकाँ नै जे गाम-घर, सर-समाज छोड़ि देलौं। जे कमाइ छी परिवारमे दइ छिऐ।
बालगोविन्द- समैध अबेर भऽ जाएत। कम-सँ-कम पाँचटा बच्चोकेँ शोर पाड़ियौ। अदौसँ अपना ऐठामक चलनि अछि। (गुरूकूलक अध्ययन समाजक काजक अनुकूल होएत)
(दरबज्जेपर सँ भागेसर बच्चा सभकेँ शोर पाड़लखिन..)
(पाँच सातटा बच्चा अबैत अछि..)
एकटा बच्चा- झमेलिया भैयाक वियाह हेतै कक्का?
भागेसर- हँ।
बच्चा- बरियाती हमहू जेबे करब।
भागेसर- तोरो लऽ जाए पड़तौ।
बच्चा- लऽ जाएब।
पटाक्षेप
@
पाँचम दृश्य
(बालगोविन्दक घर। पत्नी दायरानीक संग बालगोविन्द बैसल..)
बालगोविन्द- ओना जे बात भेल तइसँ कुटुमैती हेबे करत। मुदा समए-साल तेहन भऽ गेल जे वियाहो मड़बासँ लड़का रूसि-फुलि कऽ चलि जाइए।
दायरानी- हँ, से तँ होइए। मुदा जहिना कुत्ता-बिलाइकेँ धिया-पुता खेनाइ देखा फुसला कऽ लऽ अनैए तहिना मनुखो फुसलबैक ने.....?
बालगोविन्द- नै बुझलौं। कनी फड़िछा दियौ।
दायरानी- कोन काज सिरपर अछि आ कोन काज लधए चाहै छी। जखने सिरपड़क काज छोड़ि छोड़ि दोसर काजमे लागब तखने घुरछी लगए लागत। जखने घुड़छी लागत तखने काज ओझरा-पोझरा जाएत।
बालगोविन्द- तखन?
दायरानी- जतेटा आ जेहन काज रहए ओइ हिसाबसँ काज सम्हारि ली। अखन वियाहक काज अछि तँए घटक भायकेँ बजा सभ गप कहि दियनु।
बालगोविन्द- अपनो विचार छल भने अहूँ कहलौं।
दायरानी- युग-जमाना अकानि कऽ चलैक चाही। जँ से नै करब तँ पाओल जाएब।
बालगोविन्द- कहलौं तँ बेस बात मुदा एहनो तँ होइ छै जे गाममे जखन चोर चोरी करए अबैए तखन ठेकयौने रहैए कताै आ अपनेसँ हल्ला दोसर दिस करैए। लोक ओमहर गेल आ खाली पाबि चोर ठेकियेलहा घरमे चोरी कऽ लइए।
दायरानी- हँ, से तँ होइए। मुदा बेसी पिंगिल पदने तँ काजो पछुआइये जाइए। तँए ओते अगर-मगर नै करू। एतबो नै आँखि अछि जे देखबै।
बालगोविन्द- कि देखबै?
दायरानी- बिना घटक्के केकर वियाह होइ छै। समाजमे जखन सभ करैए तखन अपनो नै करब तँ ओहो एकटा खोटिकरमे हएत किने।
बालगोविन्द- कि खोटिकरमा?
दायरानी- अनेरे लोक की-कहाँ बाजत। तहूमे जेकर जीविका िछऐ ओ अपन मुँह किअए चुप राखत। छोड़ू ऐ-सभ गपकेँ। जाउ अखने घटक भायकेँ हाथ जोड़ि कहबनि जे बेटी तँ समाजक होइ छै, कोनो तरहेँ समाजक काज पार लगाउ।
बालगोविन्द- (बुदबुदाइत) कतऽ नै दलाली अछि। एक्के शब्दकेँ जगह-जगह बदलि-बदलि सभ अपन-अपन हाथ सुतारैए। तखन तँ गरा ढोल पड़ल अछि, बजबै पड़त।
दायरानी- बजैत दुख होइए। अगर जँ लोक अपनो दिन-दुनियाँक बात बुझि जाए तैयौ बहुत हेतइ। खाइर, देरी नै करू, बेरू पहर ओ सभ औता, अखुनका कहल नीक रहत। तँए अखने कहि अबियौन।
(घटक भाइक दलानपर बैस जोर-जोरसँ पत्नीकेँ कहै छथि। आंगनसँ पत्नी सुनति छथि..।)
घटक भाय- समए कतऽ-सँ-कतऽ भागि गेल आ डारिक बिढ़नी छत्ता जकाँ समाज ओतै-कऽ-औते लटकल अछि। आब ओ जुग-जमाना अछि जे बही-खाता लऽ बैसल रहू आ आमदनी कतऽ तँ सवा रूपैया। बाप रे, समैमे आगि लागि गेल।
पत्नी- (अंगनेसँ) ओहिना डिरिआएब। रखने ने रहू बेटाकेँ चूड़ा-दही खाइले। जेकर बेटा कमासुत छै ओकरा देखै छिऐ जे कतऽ-सँ-कतऽ आगू चलि गेल। सपनोँ सपनाएल रही जे बड़दक संगे भरि दिन बहैबलाक बेटा ट्रेक्टरक ड्राइवरी करतै। दू-सेरक जगह दू हजारक परिवार बना लेतै।
(बालगोविन्दकेँ देख घटक भाय दमसि कऽ खखास करैत। घटक भाइक खखास सुनि पत्नी बुझि गेलखिन। अपन बातकेँ ओतै रोकि देलनि।)
बालगोविन्द- गोड़ लगै छी भाय।
घटक भाय- जीबू-जीबू। भगवान खेत-खरिहान, घर-दुआर भरने रहथि। एहनो समैकेँ अहाँ नहिये गुदानलियनि। अहाँ सन-सन लोक जे समाजमे भऽ जाथि तँ कतऽ-सँ-कतऽ समाज पहुँच जाएत।
बालगोविन्द- भाय, सिरपर काज आबि गेल। तँए बेसी नै अटकब।
घटक भाय- केहन काज?
बालगोविन्द- बेटीक वियाह करब। वए लड़की देखए वरपक्ष आबि रहल छथि। तहीले....!
घटक भाय- अहाँकेँ नै बुझल अछि जे अही समाज लेल खुन सुखा रहल छी। कि पागल छी। जेकरा लूरि ने भास छै से शहर-बजार जा-जा महंथ बनल अछि आ हम समाज धेने छी।
बालगोविन्द- हँ, से तँ देखते छी। तँए ने......।
घटक भाय- अच्छा बड़बढ़िया। ओना हम अपनो कानपर राखब मुदा बुझिते छी जे दस-दुआरी छी। जँ कहीं दोसर दिस लटपटेलौं तँ विसरियो जा सकै छी। तँए अबैसँ पहिने ककरो पठा देबै।
बालगोविन्द- बड़बढ़िया। जाइ छी।
घटक भाय- ऐह, एहिना कना चलि जाएब। एते दिन ने लोक तमाकुले बीड़ीपपर दरबज्जाक इज्जत बनौने छलै मुदा आब ओइसँ काज थोड़बे चलत। िबना चाह-पीने कोना चलि जाएब?
बालगोविन्द- अहाँकेँ कि अइले उपराग देब। बहुत काज अछि। तँए माफी मंगै छी अखन छुट्टिये दिअ।
(बालगोविन्द विदा भऽ जाइत..)
घटक भाय- (स्वयं) भगवान बड़ीटा छथिन। जँ से नै रहितथि तँ पहाड़क खोहमे रहैबला कोनो जीवैए। अजगरकेँ अहाार कतऽ सँ अबै छै। घास-पातमे फूल-फड़ केना लगै छै....।
(बालगोविन्दक दरब्ज्जा। चौकीपर ओछाइन बिछाएल।
बालगोविन्द- सभ किछु तँ सुढ़िया गेल। कने नजरि उठा कऽ देखहक जे किछु छुटल ने तँ...।
राधेश्याम- (चारू कात नजरि खिड़बैत..) नजरिपर तँ किछु ने अबैए। (कने बिलमि) हँ, हँ, एकटा छुटल अछि। पएर धोइक बेबस्था नै भेल।
बालगोविन्द- बेस मन पाड़ि देलह। तँए ने नमहर काज (परिवारक अगिला काज) मे बेसी लोकसँ विचार करक चाही। दसेमे ने भगवान वसै छथि। जखने दसटा आँखि दस दिस घुमै छै तखने ने दसो दिशा देख पड़ै छै।
(भागेसर आ यशोधरक आगमन..)
बालगोविन्द- हिना समय देलौं तहिना पहुँचिओ गेलौं। पहिने पएर-हाथ धो लिअ तखन निचेनसँ बैसब।
भागेसर- तीन-कोस पएरे अबैमे मनो किछु ठेहिया जाइ छै।
(दुनू गोटे पएर-हाथि धोइतेकाल घटक भाइक प्रवेश..)
घटक भाय- पाहुन सभ कहाँ रहै छथि?
बालगोविन्द- भाय, नवका कुटुम छथि। ओना अखन रीता (बेटी) वियाह करै जोकर नहिये भेल छै, मुदा ऐ देहक कोनो ठेकान अछि। बेटा-बेटीक वियाह तँ माए-बापक कर्ज छी। अपना जीवैत कतौ अंग लगा देने भगवानो घरमे दोखी नै ने हएब।
घटक भाय- कुटुम, अपना एेठामक जे वुद्धि-विचार अछि ओ दुनियाँमे कतऽ अछि। एक-एक काज ओहन अछि जेहन पत्थर-कोइलाक ताउमे धिपा लोहाक कोनो समान बनैत अछि।
भागेसर- हँ, से तँ अछिये।
घटक भाय- अपने ऐठाम खरही आ ठेंगासँ लड़का-लड़की (वर-कन्या)केँ नापि वियाह होइत अछि।
यशोधर- आब ओ बेबहार उठि गेल।
घटक भाय- हँ, हँ, सएह करै छी। बेबहार तँ उठि गेल मुदा ओइ पाछु जे विचार छल से नै ने मरि गेल। विचारवानक बराबरीक अन्न तँ वएह ने छियनि।
राधेश्याम- काका, कने फरिछा दियौ। एक तँ नव कवरिया छी तहूमे परदेशी भेलौं।
घटक भाय- बौआ, तोहूँ बेटे-भतीजे भेलह। बहुत पढ़ल-लिखल नहिये छी। लगमे बैसा-बैसा जे बाबा सिखौलनि से कहै छिअ। तहूँमे बहुत विसरिये गेलौं।
राधेश्याम- जे बुझल अछि सएह कहियौ।
घटक भाय- समाजमे दुइओ आना एहन परिवार नै अछि जिनका परिवारमे बच्चाक टिप्पणि बनै छन्हि। बाकी तँ बाकिये छथि। अदौसँ लड़का अपेक्षा लड़की उम्र कम मानल गेल। जकरा तारीख-मड़कूमामे नै नापमे मानल गेल।
राधेश्याम- जँ दुनूमे सँ कोनो बढ़नगर आ कोनो भुटारि हुअए, तखन?
घटक भाय- बेस कहलह। तँए ने अव्यवहारिक भऽ गेल। सदिखन समाजकेँ आँखि उठा अहितपर नजरि राखक चाहिये।
भागेसर- हँ, से तँ चाहबे करी। मुदा विचारलो बात तँ नहिये होइ छै।
घटक भाय- बेस बजलौं। ऐमे दुनू दोख अछि। विचारनिहारोकेँ विचारैमे गड़बड़ होइ छन्हि आ राजादैवक (प्रकृति नियम) दोख सेहो होइत अछि। अखने दिखियौ गोर-कारी रंगक दुआरे कते संबंध नै बनि पबैत अछि। एतबो बुझैले लोक तैयार नै जे मनुष्य रंगसँ नै गुणसँ बनैत अछि।
यशोधर- हँ, से तँ होइते अछि। हमरो गाममे हाथमे सिनुर लेल बरकेँ बरक बाप गट्टा पकड़ि घिचने-घिचने गामे चलि गेल।
घटक भाय- की कहू कुटुम नारायण देखैत-देखैत आँखि पथरा रहल अछि। मुदा अछैते औरूदे उरीसक दवाइ पीब उरीसे जकाँ मरिये जाएब से नीक हएत। तहिना देखब जे कुल-गोत्रक चलैत कुटुमैती भङठि जाइए।
यशोधर- हँ, से तँ होइए।
घटक भाय- देखियौ, अपना बहुसंख्यक समाजमे अखनो धरि मुँहजवानियेक कारोबार चलि आबि रहल अछि। जइ नीक-अधला बेरबैक विचार गड़बड़ा गेल। जते मुँह तते बात। जइठाम जे मुँहगर तइठाम तेकरे बात चलत। चाहे ओ नीक होय कि अधला।
यशोधर- कनी नीक जकाँ बुझा कऽ कहियौ?
घटक भाय- (बालगोविन्द दिस देख..) बालगोविन्द, आइ तँ कुटुम-नारायण सभ रहता किने?
बालगोविन्द- एक तँ अबेर कऽ एलाहेन। तहूमे अखन धरि तँ आने-आने गप-सप्प चलल। काज पछुआएले रहि गेल अछि।
घटक भाय- आइ तँ कनियेँ देखा-सुनी हएत किने?
बालगोविन्द- हँ। मुदा वियाहसँ तँ बिध भारी होइए किने!
घटक भाय- हँ। से तँ होइते छै। अखन जाइ छी। काल्हि सवेरे आएब। तखन जना-जे हेतइ से हेतै।
भागेसर- काज जँ ससरि जाइत तँ चलि जैतौं।
घटक भाय- एहनो जाएब होइ छै। जखन कुटुमैती जोड़ि रहल छी तखन एना धड़फड़ेने हएत।
पटाक्षेप
क्रमश:
बिपिन झा, IIT Bombay
कलौ चण्डी महेश्वरौ
मिथिलांचल सतत सर्वदेवोपासक रहल अछि एतय कोनो देवता के कम महत्त्व नहिं देल जाइत छन्हि चाहे ओ अग्नि होइथ अथवा लक्ष्मी। एहि लीक सँऽ किछु हटि के हम दुर्गा आ महादेब के किछु विशेष स्थान भेटल छन्हि। कदाचित् कलयुग ई दुनू देवता जनसामान्य के पीडा जल्दी दूर करैत छथिन्ह। खैर जे हो ई तऽ बच्चहिं सँ सुनैत रहल छी “पढो भई चण्डी जैह से हण्डी” मैथिली साहित्यो एकर बहुत नीक टिप्पणी केने अछि-“जे सभ दुर्गापाठ अशुद्धो रटि कें गेल कलकत्ता, गाम अबैत देरी ओ लगबय लागल कित्ता॥” एहि संग गाम में माटिक महादेब केर पूजा तऽ कदाचिते कोनो एहेन घर होयत जत नहिं होइत हो।
हम एतय मधुबनी जिला केर लखनौर गाम में बस्ती सँऽ लगभग डेढ कि०मी० दूर निर्जन में लगभग चौदह सीढी नींचा में करमहे झांझारपुर मूलक वत्सगोत्रीय मैथिलश्रोत्रिय सभक आराध्यदेव अंकुशी महादेब केर चर्चा कय रहल छी। ई स्थान आब तऽ सडक मार्ग सऽ जुडि गेल अछि मुदा अखनहु ओतय सायंकाल देबाक समय पंडा केर अतिरिक्त कोई नहि भेटैत अछि।
एहि महादेब के योगीश्वर बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईं लखनौर में राधाकृष्ण मन्दिर प्रांगण में स्थापित करय चाहैत छलाह अस्तु ओहि निर्जन सँ शिवलिंग के उखारबाक प्रयास करय लगलाह। भरि हाथ कोरथि मुदा महादेब पीडी भरि मात्र। फेर कोरथि फेर ओहने हाल। ओ अन्त में लगभग १०-१५ हाथ कोरने हेता कि महादेब कहलखिन्ह जुनि कोर हम त निर्जन में रहनहार छी हम एतहि संऽ गामक रक्षा करबह।
ओहि दिन सँऽ लखनौर गाम पूर्व स राधाकृष्ण पश्चिम स बाबा डिहबार दक्षिण स अंकुशी महादेब केर द्वारा सतत सुरक्षित अछि। बहुत बेर आपात स्थिति आयल (बाढि आदि) मुदा गामक बस्ती सुरक्षित रहल। ई गप्प अलग अछि जे नव पीढी के “विशेष पुण्य” केर प्रभावक कारण देवतो के गामक संरक्षणकार्य कदाचित भारे बुझना जाइत हेतन्हि।
करमहे झांझारपुर मूलक वत्सगोत्रीय मैथिलश्रोत्रिय केर समस्त परिवारक पुरुष बच्चा के मूडन आइयो अही महादेब कें सामने होइत अछि चाहे ओ विदेश में कियाक नहिं हो।
आस्था एवं तर्क दूनू केर देखि ई कहल जा सकैत अछि जे एहि प्रोफेशनल युग में सेहो त्रैलोक्य जननी भगवती दुर्गा आ अढरंढरन आशुतोष भोलेनाथ अपन प्रासंगिकता बनाके रखबाक मशक्कत करैत सफलता प्राप्त कयलथि।
पुष्पदन्त अनुचित नहिं कहने छथि- जे असितगिरि समान काजर लय, समुद्ररूपी पात्र लय, देवतरुशाखा केर कलम लय, समस्त पृथ्वी रूपी पत्र पर यदि साक्षात सरस्वती सदिखनि अहाँ केर गुणगान करथि तैयो अहाँ के पार नहिं पाओल जा सकैत अछि।
(आस्था आ तर्क केर अन्तर्द्वंद्व में देवताक प्रति श्रद्धाऽभाव नहिं बुझल जाय)
॥शुभमस्तु॥
राजदेव मण्डल उपन्यास
हमर टोल
आगाँ-
पंचायत! हँ, हँ बुझलौं गामक पंचैती। जातिक सरदार, मैनजन-देमान। करत छान-बान्हि। मुँहपुरूष आ सरपंचक शान। पंच भगवान। धुर, भगवान नहि बेमान। मुँह देखल पंचैती। जेकर लाठी तेकर जोर। निरबलक आँखिमे भरल नोर। कमजोरे लेल सभटा कड़ी।
आब गामे-गाम बनि रहल छै-कचहरी। तैयो पंचैती होइते छै। हँ जातिक पंचैती। परजातिक पंचैती। जाति तँ जातिसँ साइंग होइत छै। दस लोकक निरणय तँ मानहि पड़तै। नै तँ समाजक नँगटाहा सभ नाँगटे नाचत। समाज, कानून, बन्धन, डण्ड जरिमाना। इनसाफक उपाए। सभकेँ निसाफ मिलबाक चाही। नै तँ कहियो गाड़ीपर नाह आ कहियो नाहपर गाड़ी। सएह यौ मड़र।
कालू मड़रक दुआरिपर पंचैती भऽ रहल छै। जातिक मैनजन। हँ हँ बीचेमे बैसल छै। आँखि केना नचै छै- मुँहदुसी जकाँ।
धरमडीहीयोसँ पंच सभ आएल छै। की बुझाइत छै, जगेसराकेँ, छोड़ि देतै ओहिना। ओहिदिन मारैत-मारैत थकचुन्ना कऽ देने रहै, अपना घरवारीकेँ। घरसँ भगा देलकै। आ पाछूसँ समादो पठा देलकै।
जे तोहर बेटी बदचलन छौ। चोरनी छै। बाँझ छै। राखह अपना बेटीकेँ कपारपर।
आ रे तोरी कऽ, एहेन डकलीलामी।
धर्मडीहीवालीक बाप तीन-चारि महिना धरि टकटकी लगौने इन्तजार केलकै। कोनो कौओ-पंछी सुइध-बुइध लेबाक लेल नै पहुँचलै। अंतमे ओकर बाप जातिक मैनजनकेँ खबैर देलकै।
पूरा टोलक लोक जमा भेल छै। धनुखधारी मड़र, उचितवक्ता, ढोढ़ाइ गुरूजी भुटाइ वैद, फतींगा, बिडियो साहेब, चंतनजी जेकरा सभ चोतबा कहै छै। आर बहुत गोटे कनेक पाछू दाबि कऽ बैसल छै। पाछूसँ बीख उगलि मुँह चोरा लेबामे असान होइ छै।
टाटक पाछाँ स्त्रीगण कान पाथने अछि। ओ सभ आँखि नचबैत फुसुर-फुसुर कऽ रहल अछि।
कालू मड़रक नजरि ओतऽ तक पहुँच गेल।
“आब मौगी सभ पंचैती करत। एस.पी., डी.एस.पी. मंतरी-संतरी सभ बैनते छै। आब कोनो कम पावर छै, ओकरो पास।”
दुनू हाथ जोड़ैत आगू बजल- “तब ने ओहि राित जोकरबा दुनू हाथ जोड़ि कऽ नाचमे कहैत रहै- तुम्ही हो माता, तुम्ही पिता हो।” छोड़ा सभ खिखिया कऽ हँसैत अछि। “बुढ़वा बहुत दिन धरि लात तरमे राखि राज केलहक आब सभटा पाछू दऽ कऽ बोकरेतह। धनुखधारी मड़र रपटैत अछि- “चुप, गामक इज्जत झाँपि कऽ रखबाक चाही। दोसरो गामसँ पंच सभ आएल छै। की कहतौ।”
ई काल कतएसँ आबि गेलै। की हौ, कथीक धोलफच्चका भऽ रहल छै। हे रौ जा रहल छै तँ जाए दही दोसर जातिक मैनजन किएक रहतै।
हँ हँ, जाउ अहाँ हमरा जातिक मामला छै। जय भगवान। ढोढ़ाइ गुरूजी घूस लेने छै।
हँ-हँ, जगेसरासँ पाँच बोरा भुस्सा। विल्कुल फ्री। कतेक दिन फोकटमे चाह पीतै आ खेतै, से तँ अलगे। बजतै नै तँ घूस केना पचतै।
ढोढ़ाय गुरूजी बीचमे जोरसँ गरजैत अछि- “जोरू-जमीन जोरकेँ, नै तैक किसी औरकेँ। अपना औरतियाकेँ पाँजमे रखबाक लेल जगेसरा चारि-पाँच लाठी खींचे देलकै तँ कोन जुलूम भऽ गेलै। के सभ ताजनकेँ अधिकारी होइ छै से तँ सभ जनिते छिऐ।”
धरमडीहीसँ आएल कन्हैया मैनजनक कनहा आँखि जखैन चमकै छै तँ सबहक सिटी-पिटी गुम भऽ जाइ छै। ओ अपन छिड़िआएल मोंछकेँ सिटिया रहल अछि। ढोढ़ाय गुरूजीपर जखैन ओकर ललिआएल नजरि पड़ैत छै तँ तत्काल गुरूजी चुप्पी साधि लैत अछि। पाँच बोरी भुस्सा हवामे उड़ि जाइत छै। आ पेटमे बसात औनाए लगैत छै।
उचितवक्तासँ नै रहल गेलै तँ टोन कसि देलकै। “धुर ई ढोढ़बा की बजत। एकरा बहूकेँ तँ दोसर जातिक धरमीलाल पंजाब लऽ कऽ भागि गेल आ अइठाम लबर-लबर करै छै।”
“ई उचितवक्ता फेर टें-टें करए लगल चुप रहबें की नै।”
“हे, आइ जे पंचैतीमे खचरपन्नी करबें तँ मुँह थकचुन्ना कऽ देबो।”
“रौ तोरी कऽ। हमर बाप कहने रहै जे पंचैतीमे उचित बात ढेकैर कऽ बजिहेँ। आ तू मुँह थकुच देबही तँ बजबै केना। ऐ सँ नी। हम अइठामसँ चलि जाए।”
बेंगाय बाबा आइ गाँजा नै पीने छै। नै तँ लौडिसपीकर जकाँ बजितै। ऊ तँ धरमडीहीवालीकेँ तरफसँ छै। जागेसर दिससँ ढेकैरतै तब ने फ्रीमे गाँजा भेटतै।
धुर नै बुझबहक। ओकर नजरि गड़ल छै। जगेसराक डीहबला जमीनपर। साेचै छै कहुना झगड़ा बढ़तै तँ कम दरपर ई ढाव सुतरि जाएत।
हँ आबि गेलौं खिस्सा कहैबला खिस्सकर। ई तँ खिस्सेपर पंचैती कऽ देतौ।
ऊ जमाना गेलै। आब तँ जेकरा पासमे साम-दम भय-भेद छै आकरे बुत्ते पंचैती हेतै। पंचैती कारणे कते पंच बिलटि जाइत छै।
जे दसगोटेमे नै बजल अछि। ठाढ़ भऽ कऽ बजैत काल ओकरा थरथरी छुबि दैत छै।
“हँ तँ, आब घोंकले गप्पकेँ कतेक घोंकैत रही। सभ बात जानले अछि। करू तसफिया।”
सुनियौ झटकलाल मड़रकेँ गप्प। अपन बेटी ककरा संगे भागि गेलै। तकर पत्तो नै लगलै। अच्छा छोड़ू गप्प सुन।
“यादि अछि ने मड़र। पुबरिया टोलपर चुनचुन पहिलुका स्त्री पहुँच गेलै- थाना। तुरतेमे पुलिस पहुँच गेलै- दरबज्जापर। वर आ वरक बापकेँ ततेक पीठपर डण्टा बरसौलकै जे छर-छर नुआ-बस्त्रे... की कहब आब तँ वैह पहिलुकी स्त्री महरानी बनि कऽ घरमे बैसल छै।”
आब तँ औरतकेँ जमाना आबि गेलै। तैयो आकरो किछु दाबि-चापि कऽ तँ राखहि पड़तै। नै तँ ऊ सनकि कऽ किछाे बनि सकै छै।
एकर मतलब गाए-भैंस जकाँ आेकरा डेंगा देबै।
नै हिसाब-किताबसँ। साँपो मरि जाए आ लाठियो नै टूटै।
अइठाम तँ मारैत-मारैत लाठी टूटि गेलै। अपना घरवालीकेँ नै राखै चाहै छै।
जागेसरसँ पूछल जाए। किछु विशेष गप्प छै। आखिर, किएक नै राखए चाहै छै, अपना स्त्रीकेँ। कारण तँ दरपन जकाँ साफे छै। चारि सालसँ बेसी भऽ गेलै आ एकोटा बच्चा नै जनमा सकलै। यएह गप्प छै ने हौ जागेसर?
हँ-हँ बात तँ यएह छै, असलमे। दोसर वियाह करबाक लेल पंचायतसँ औडर भेट जाए। दोसर अपाए तँ छै नै। आखिर खनदान आ सम्पतिक रखबार तँ चाही।
गुँर कतौ आ भूर कतौ। ऐ बातक कारणे झगड़ा होइत छलै। आब बुझलौं तरका गप्प। ऐमे धर्मडीहीवालीक कोन कसूर?
सभ कसूर ओकरे। जखन खेत खराब छै तँ.....।
फेर चुप। एक आदमी तँ दस-दसटा वियाह करै छै। यएह, डाँरमे ने डोरा बहू करत जोड़ा।
सार सभकेँ खाइले तँ जुमै नै छै। आ राजा जकाँ हजार गो रानी रखत।
तू गारि देबही। मार सारकेँ।
हँ बाजि नै सकै छेँ। आन गामसँ आबि कऽ रँगदारी। पंच छी की डकैत। हड़कंप मचि गेलै। सभ गोटे उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेलै। किछु लोग सभकेँ शान्त कऽ रहल अछि।
भाय एनामे काज नै चलतौ। पाँचटा पंच एकान्तमे विचार कर। ने तँ महाभारत भऽ जेतौ।
देखियौ पंच भगवान, ऐ छौड़ाक किरदानी। सभटा हमर लताम तोड़ि लेलक।
लिअ पंचक बेटा चोर। आब करू फैसला।
अच्छा चुप रहू। एकर निरलय दोसर दिन हएत।
यएह करै छै केना। जेना छोटका जातिक पंचैती भऽ रहल हुअए।
अइसँ नीक तँ ओकरे सभ।
इह, हमरा सभसँ बहुत नीचो जाति तँ अछि!
तइसँ की। आखिर छी तँ शूद्रे।
चुपू हमर छूबल सभ खाइत अछि।
हँ हँ छूछे ढेसी।
एकान्तमे विचारि कऽ पंच सभ आबि गेल। सुनल जाए। की कहै छै।
“सुनू, जागेसरसँ गलती भेलै। ओकरा औरतियाकेँ एतेक नै पिटबाक चाही। बाल-बच्चा नै होइ छै तँ ओझा-गुणीसँ देखाबौ। डागदर वैदसँ इलाज कराबौ। तैयो नै हेतैक तँ दोसर वियाह कऽ सकैत अछि। किंतु धरमडीहीवालीकेँ राखहि पड़तै। निरणय सभकेँ मंजूर अछि?”
हँ-हँ, दसक निरणय, भगवानक निरणय। मंजूर अछि। सभ मानि लिऔ।
ढोढ़ाय गुरूजी सोचै छै भुस्सा मिलत की नै।
खेलावन भगत मोंछ पिजा रहल अछि। गाममे भगत तँ हमहींटा छी।
धर्मडीहीवालीक बाप कनहा मैनजनकेँ कहने छै। “जँ अहाँ ऐ सम्बन्धकेँ नै टूटए देबै तँ जोड़ा भरि धोती देब।”
ओकर बामा आँखि फड़कि रहल छै।
उचितवक्ता दौड़ल आएल आ बजल- “हे यौ धर्मडीहकेँ कन्हैया मैनजन! अहाँकेँ चौबटियापर पुलिस खोजि रहल अछि। कोनो मोकदमामे नाम अछि की?”
“आऍं।”
मैनजन धोती सम्हारैत पड़ेलाह। एकाएकी सभ उठऽ लगल। डरक पंजा जेना बढ़ऽ लगल। सबहक अन्तरक दोख जेना ठाढ़ भऽ गेल हुअए। स्वर जेना हवामे अलोपित भऽ गेल हो किंतु पएरक गतिमे तीव्रता आबि गेल छलै। धोनाह भऽ गेल असमान दिस तकबाक ककरा फुरसति छै।
क्रमश:................
सुमित आनन्द कार्यशालाक आयोजन
भारतीय भाषा संस्थान मैसूर तथा विश्वविद्यालय मैथिली विभाग, ल॰ ना॰ मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगाक संयुक्त तत्वावधानमे विश्वविद्यालय मैथिली विभागमे नेशनल ट्रांसलेशन मिशनक अन्तर्गत द्वि- दिवसीय ट्रांसलेशन ओरियेंटेशन प्रोग्रामक कार्यशालाक आयोजन 28-06-2011 तथा 29-06-2011 केँ भेल। कार्यक्रमक शुभारम्भ प्रतिभागीमेसँ श्री सुमित आनन्द एवं डॉ. लालति कुमारी द्वारा प्रस्तुत ‘जय जय भैरविसँ’ कयल गेल। एहि अवसरपर प्रो. वीणा ठाकुरक समीक्षात्मक ग्रंथ ‘वाणिनी’क लोकार्पण करैत डॉ. सुरेश्वर झा हिनका उत्कृष्ट समालोचकक रूपमे चित्रित कयलनि।
कर्यक्रमक रूपरेखा प्रस्तुत करैत मैसूरसँ आयल नेशनल ट्रांसलेशन मिशनक मैथिली भाषाक मुख्य शैक्षिक सलाहकार डॉ. अजीत मिश्र कहलनि जे राष्ट्रीय स्तरपर 63 पोथीक अनुवादक निर्णय भेल अछि जाहिमे नओ गोट अंग्रेजीसँ मैथिलीमे अनुवाद कयल जायत। एहि अवसरपर चारि गोट विशेषज्ञ 28-06-11 केँ तथा चारि गोटए 29-06-11 केँ अपन-अपन विचार प्रतिभागी लोकनिक समक्ष रखलनि। एहि क्रममे डॉ. भीमनाथ झा कहलनि जे पाठ्यक्रमक पोथीक अनुवादक हेतु टीमवर्क होयब आवश्यक अछि। मैथिली, अंग्रेजीक विशेषज्ञक संग-संग विषयक विशेषज्ञ सेहो रहथि से आवश्यक। डॉ. प्रभात नारायण झा कहलनि जे अनुवाद नव खिड़की खोलैत अछि किन्तु एकरा सहज रखबाक थिक जाहिसँ मूल गप्प पाठक धरि पहुँचि सकए। एहि अवसरपर अन्य विशेषज्ञ लोकनि सेहो अपन अपन विचार रखलनि जाहिमे प्रमुख छलाह- डॉ. विजय मिश्र, ई. अशोक ठाकुर, डॉ. अरुण कुमार झा एवं अन्य। एहि क्रममे बीस गोट प्रतिभागी लोकनि उपस्थित छलाह जाहिमे प्रमुख छलाह-डॉ. नवोनाथ झा, डॉ उषा चौधरी, डॉ. अशोक कुमार मेहता, श्री अमलेंदु शेखर पाठक, श्री अमित आनन्द, श्रीमती शालिनी झा, डॉ. दुर्गानन्द ठाकुर, श्री मिथिलेश कुमार झा इत्यादि। डॉ. वीणा ठाकुरक अघ्यक्षतामे सम्पन्न समारोहमे मुख्य सहयोगी छलाह डॉ. रमण झा। कार्यक्रमक संबंधमे मैसूरसँ आयल श्री पवन कुमार चौधरी सेहो एहि ट्रांसलेशन मिशनक उद्देश्यपर प्रकाश देलनि।
३.६.-बिनोद मिश्र
उमेश मण्डल कविता-
शुभारम्भ
साँझक समए छल
फुही सेहो पड़ै छल
हालहिमे सिनेमाक हाँल
जे थप्प भेल छल
अबैत रहथि ओम्हरसँ ओ
लखन पान दोकानदारकेँ देखिते
पुछि देलखिन हाल-चाल करिते
“की यौ लखन, दोकान तँ आब
चलैत हएत खन-खन?”
लखन करए लागल भन-भन
“आबे गड़बड़ अछि
पहिनहि ठीक छल।”
ओ वेचारे सोचए लगलाह-
जहियेसँ हाँल चालू भेल हएत
दोकानदार सबहक विक्री चौगुना भेल हएत
तखन ई किअए बजैए
पहिनुके विक्रीकेँ नीक कहैए
ओ, सोचए लगलाह हठात
भीतरमे आखिर अछि किछु बात
लखनसँ पुछि बैसलाह तड़ाक
“केना पहिनहि ठीक छल
अहाँक समाचार नीक छल?”
“यौ भाय हम अपन विक्रीसँ जतै नै खुशी छी
विक्रमक विक्री बढ़ि गेने दुखी छी।”
लखन किछु एहिना सोचलक
किंतु मोनक बात नै उगललक।
जितमोहन झा (जितू)
गीत
हेयो भैया, हे गइ बहिना, हेयो भैया,
हम सभ मिथिलाक संतान,
करू अहाँ अपन मातृभूमिपर गुमान,
हेयो भैया...............
सगर दुनियाँमे नै हमरा सभ एहेन संस्कार,
अछि कृपा भवानीक हमरा सभपर अपार,
करू नै अपन मातृभूमिक आब अपमान,
हेयो भैया, हे गइ बहिना, हेयो भैया,
हम सभ मिथिलाक संतान,
करू अहाँ अपन मातृभूमिपर गुमान,
जते जन्म लेलनि गोसाँइ लक्ष्मीनाथ महान,
कवि विद्यापतिक सगर सुनु बखान,
ऐ पावन भूमिक मंडन मिश्र संतान,
हेयो भैया...............
कहैत अछि "जितू" खोलू अहाँ अपन कान,
आबू सभ मिल कऽ छेरी एक नव अभियान,
अछि वादा...... अछि वादा.....
अछि वादा, माँ मिथिलाकेँ देब सम्मान,
हेयो भैया, हे गइ बहिना, हेयो भैया,
हम सभ मिथिलाक संतान,
करू अहाँ अपन मातृभूमिपर गुमान,
हेयो भैया...............
जगदीश प्रसाद मण्डल कविता-
माइटक फूल
हँसि-फूलि चढ़ए देव ऊपर
कली फलकि वक्ष ऊपर
भूख-पियास मिल आफन तोड़ए
जड़ि जनमए धरतीपर
लिला अजीव अछि दुनियाँ के
धरती-अकास छिड़याबए क्षीर
भीर-कुभीर देख-देख
ससरए सदति संग समीर
एक फूल शोभा सुख पाबए
दोसर बाल-बोध सिर ढाबए
सृष्टि सृरजि तेसर हँसि गाबए
राग-िवरागक ताल मिलाबए
उड़ए सुगंध समा धरतीसँ
चालि चलाबए चाक कुम्हार
मृत कुआँ तर-ऊपर वसुधा
सानि-बाटि लगबए अम्बार
पड़िते-फुहार चढ़िते अखाढ़
महमहबए दिन-राति सुगंध
कोन-कोन चारू कोन पसरए
निसाँ नचति बनि मदान्ध
जे कहियो रोदियाह रौदमे
ठोंठ सुखाबए भूखै-पियास
धरि-धरती धीर हृदए
पीब, पाबि जिनगीक आस
उठि-बैस ओंघराइत छिछलए
कानि-कलपि दए दंड-प्रणाम
अश्रुधार बीच डुबकी लगा
जमुनिया धार बीच प्रणाम
सदिखन प्रेमी बाट जोहि-जोहि
छन-छन छनछनाइत मन
दाबानल-बड़बानल लहरिमे
जठरानल बीच तड़पए मन।
राम विलास साहु
दूटा कविता-
1)
भारत माता
हमर भारत भूमि हमर माता छी
विशाल क्षेत्रमे अहाँ पसरल छी
ऋृषि-मुनिकेँ अपने हृदैमे बसौने छी
देवता आ मनुक्खक तीर्थ-स्थल बनलि छी
छोट-पैघ सभ जीवकेँ
अपने हृदैमे समौने छी
अन्न, जल, फल आदिसँ
हमरा सबहक जीवन पालै छी
अनेको खनिज सम्पतिकेँ
अहाँ हृदैमे छिपौने छी
अपन संतानकेँ धनवान बनौने छी
अनेको नदी-झील झरनासँ
सभ फसलकेँ सिंचै छी
प्रसाद रूपमे हमरा सभकेँ
अन्न-जल-फूल-फल दइ छी
वन-उपवन-वाग-बगिचाक शोभा
नित रँग-विरँग फूलसँ सजबै छी
अनेको तीर्थ-स्थलसँ पवित्र बनलि छी
सूर-वीर पुत्र-पुत्रीसँ
अहाँक गोद सभ दिन भरल अछि
साहित्य,दर्शन,विज्ञान,ज्योतिष क्षेत्रमे
अपन इतिहासक प्रकाश दुनियाँकेँ दइ छी
हम सभ अहाँ अहाँक पुत्र-पुत्री
अहाँ हमर माता छी
सभ धर्म, सभ जातिक आदर अहाँ करै छी
अपन माटि-पानिसँ सबहक पालन करै छी
अपनोकेँ नै दुश्मनोकेँ शरण अहाँ दइ छी
अहाँक रक्छा हमसभ सदासँ करै छी
हम सभ देशवासी अपन माताकेँ
नित चरणपर सुमन अर्पित करै छी
हमर भारत भूमि हमर माता छी।
2)
परदेशी
किएक परदेशी बनल छी अहाँ
किएक कलंकित बनल छी अहाँ
अपन मिथिलाक महिमा अछि अपार
अइठाम मिलैत अछि सबहक रोजगार
आब नै रहत कोइ बेरोजगार
मिथिला राज्यमे अछि काम अपार
माटि-पानिसँ उपजे अन्नक भंडार
कियो नै भूखल सुतल रहत
सबहक बनत राटी-दालि
बाल-बच्चा मिल विकसित राज्य बनाएब
राज्यक खुशहाली आ हरियाली बढ़ाएब
अपनो खाएब आ दोसरोकेँ खुआएब
अपने राज्यक माटि-पानि
सदासँ अछि अमृत समान
राखब दुनियाँक मान-सम्मान।।
पाँचटा टनका
1)
पछताइ छी
पथपर चलैत
मौतक संग
नरको नहि बास
कोना करब आस।
2)
टूटल खाट
सुतल छी चैनसँ
पहरा नहि
करबट फेड़ैत
पेटकुनिया दैत।
3)
पानिक बुन्न
मोती सन चमकै
धरतीपर
माइटसँ िमलैत
नदी रूप बनैत।
4)
चिड़ै चहकै
चुनमुन फुदकै
पंख खोइल
नव पथ बनाबै
आजादीसँ भ्रमऐ।
5)
गंगा भरल
अमृत सन जल
जिनगी दैत
अपने सेवककेँ
गोदमे बसाबैत।
दूटा हाइकू
1)
नीमक गाछ
करैत हवा साफ
दवा कऽ साथ।
2)
गंगा किनार
तीर्थक जेना धाम
पवित्र स्नान।
रवि भूषण पाठक मरणोपरांत 4
कविता कऽ माने की ?
ओइ सांझ मे छोटका बाबू
अचानक कविता पर बाज‘ लागलखिन्ह
“हओ वौआ
कविता कोनो सुस्पष्ट
सुनिर्धारित मकान क नाम नइ
जेकरा मे दस बाइ बारह क कतेको घर होइत होए
आ ने कविता कोनो एहन घर
जेकरा बनएबा क लेल ईंटा क लंबाई,चौड़ाई,रंग आ ब्रांड निश्चित होए
बात आराम आ आनन्द क छैक
तें जेंहने ईंटा
तेहने फूसि आ माटि पाथर
बात खुलल टटका हवा के छैक
तें घर केहनो होए
होए खुलल
आ हवादार
जेहन कि कविता होइत छैक ।
ओकरा रस कही वा घ्वनि
बात त एहने होए कि
अंदर तक झनझना जाए ।
हं हमहूं मानैत छी
रंग आ पच्चाकारी के
हमरो खीचैत अछि
चुम्मक जँका अलंकार
हमहूँ भसिया जाइत छी
कखनो शब्दक जाल मे
मुदा वौआ
एहन घर कोन काज के
जे बाहर खूब झालदार
आ अंदर झोलझाल
गेन्हायल
गरमी मे गरम
आ ठंडी मे बसात बहय
एहन घर ल‘ के की करब ”
ई कहि छोटका बाबू शांत भऽ गेलखिन्ह ।
पहिल छाया क दिन
आगंतुक पंडितगण बैसि गेला
सामने बेलवूक्ष
नबका हरियर खिज्जा
बेलपात सब ओहने छल
ओकरा केओ नइ तोड़ैत छल
तहिना मंदिर परक दूबि सब
बिना खोंटल
बरहल अपन ओकादि भर
अरहुल सब फुला फुला
गिरि गेल छल
नीचा सूखल फूलक ढ़ेरी छलए
मंदिर सेहो उदास छलए
आ देवी सेहो लोराएल
मुदा भैया सब कहऽ लागलखिन्ह
देवी क ई नोर बड प्राचीन
ई मूर्तिकार क अंतिम कृति छल
आ बनाबिते बनाबिते गिरि गेल छलए
आ अंतिम मरिया
देवी क आँखिक कोर पर लागलइ
ई नोर तहिए सँ अछि ।
ई कहिते कहिते एक भाए
झारू लऽ के बहार‘ लागलखिन्ह
दोसर भाए पानि लऽ के धोब‘ लागलखिन्ह
तेसर फूल तोड़बा क लेल विदा भेला
चारिम कोनाक झोल झार‘ लागला
पाँचम भैया भगवती क समक्ष नतमस्तक भेला ।
मंदिर पहिले जँका चकाचक भऽ गेलइ
आइ अभ्यागत आबइ वला छथि
काल्हि सेहो केओ आर
कोना रोकल जाइ विवाह
ओना त एक साल तक शोक समारोह चलैत छैक
मुदा वौआ क चेन्नई मे खेबा पीबाक बड दिकदारी ।
बाबूजी खूब प्रसन्न छथि
“लोक सब कहैत छल
जे अहाँ क बेटा सब बड़ दूर
अहाँ क की हाल हेतइ
आ हमरा मून मे आबऽ लागल
लहास के गेनहाइ क गंध
नाक दबैत लोक
आ परेशान परिजन
मुदा हमर दूनू बेटा हीरा अछि
पहिले बड़की काकी
फेर बड़का बाबू
मझिला कक्का
काकी आ छोटका बाबू
सबक अंतिम संस्कार मे दूनू पहुँचल
हम निराश नइ छी
हमरो लहास क नीके गति होयत”
भाई जी क व्यवस्था टंच छनि
भाइ जी काकी आ
छोटका बाबू क श्राद्वक व्यवस्था के आदर्श मानैत छथिन्ह
छगमिया भोज
दसदिनिया गरूड पुरान
आ गाम परोपट्टा क बरबरना भोज
एक दिन नइ तीन दिन
आ अंतिम संस्कारे सँ वैदिक रीति सँ
दान प्रदान
ताहि दुआरे बाबूजी क सब पैसा
जे रिटायर भेला पर मिललेन्ह
जमा छैक नीक रेट पर
ताकि बाबूजी क मरला पर पैसाकौड़ी ताकऽ नइ पड़ए
सब किछु पहिले सँ व्यवस्थित रहए
ओना बाबूजी स्वस्थ छथिन्ह
आ ऐ बेर एक बीघा खेत मे
हाइब्रिड बासमती क खेती केने छथिन्ह
आ बरसा खूब भेला सँ प्रसन्न छथि
ओमहर भाइजी खूब प्रसन्न छथिन्ह
काल के बान्हल नइ जा सकैत छैक
काल के पूजबा क अलावा
कोनो रस्ता नइ
कोनेा मंतर
कोनो जादू टोना नइ
बाबूजी क पैसा डेली बढ़ि रहल अछि ।
बिनोद मिश्र , डॉ. बिनोद मिश्र सम्प्रति आइ. आइ. टी. रूड़की, उत्तराखंडमे अंग्रेजी पढ़बैत छथि आ हिनक रचना सभ अंग्रेजी आ हिंदीमे प्रकाशित भेल छन्हि। ऐ वर्ष हिनक कविता संग्रह Silent Steps and Other Poems प्रकाशित भेल छन्हि। एकर अतिरिक्त ई अंग्रेजीमे आलोचनाक क्षेत्रमे आठ टा पोथी संपादित केने छथि। हिनक पोथी Communication Skills for Engineers and Scientists बहुतो इंजीनियरिंग संस्थानमे पाठ्य पुस्तक केर रूपमे पढ़ाओल जाइत अछि।
गामक सनेस
ऐ बेर गाम सँ एलौं तँ बच्चा सभ नै पुछलक
पापा , की अनलौं अछि सनेस ?
बुझल छन्हि आब सभ भऽ गेल छथि भिन्न
चूल्हा भऽ गेल छल तीन फाक
कहलियैन
खेत सब खासले छल
नै भेलन्हि मंगनू केँ फेर होस
कोसिक कहर सँ उबड़बाक हिम्मत
आब कहाँ पुछैत छन्हि भौजी
कोनो दिक्कत तँ नै अछि बाऊ ?
कनिया ठीके देल्थिन्ह सद्बुद्धि
ओहो पांच सेर कथी लेल करब नाश
रहत तँ धिया पुता केँ होयत दू सन्झाक आश
आब कोनो आओत मासे मासे ड्राफ्ट
नै जानि ककर लागि गेल नजरि
हमर धियो पुताक कपार अछि फुटले
कतेक धुनब हम सभ
कहने रही राखी लिअ हमर अशर्फी बन्हक
आ फोली लिअ एक टा किराना
हमहूँ कहुखन - कहुखन कऽ देब संग
आब कतेक दिन हम रहब घोघक तर मे नुकायल ?
बच्चा मात्र पुछलक की मुन्नू भेला पास
हम कहलियन्हि आब छन्हि कोन आस
हम रही उदास
मोंनं परल छल; मुन्नूक लटकल मुँह
आ मैझ्लीक घोघ तरक सिस्कब
जहिना छल बेग सिरागू लग
तहिना उठा लेने रही
फेर कहैलियन्हि बौआ नै अनलौं किछु सनेश
ककरो नै भेलन्हि विश्वास
हम तँ छोड़िये देने रही आस
भऽ गेल शुरू हमर बेग उकटबाक प्रयास
कनिया कहलैन्ह ई कथिक छी पोटरी ?
आ भरभरा गेल अदौरी, तिलौरी, मुरौरी,
खुद्दिक, मरुआक चिक्कस आ अनन्तक डोर
झरझरा लागल सम्हारल सनेस
कखनहुँ माय केर मौलाय्ल मुँह
कखनहुँ मंगनूक उतरल देह
मैझ्लीक चुप्पी आ मुन्नु -चुन्नुक धधकैत भविष्य
विनीत उत्पल
हम नै सुधरब
नै हम सुधरब
नै हमरा सुधारू
हम छी बिगड़ल
अप्पन मन पारू
नेता अछि भ्रष्ट
अफसर सँ छी त्रस्त
चोर-छिनारक राज
हम किए करब काज
नै हम सुधरब
नै हमरा सुधारू
हम छी बिगड़ल
अप्पन मन पारू
फुइस बजैत छी,धूर्त बनल छी
नै आबैत अछि शर्म
कामचोर छी, मौगियाहा छी
यएह छी हमर धर्म
नै हम सुधरब
नै हमरा सुधारू
हम छी बिगड़ल
अप्पन मन पारू
हमहू छी बड़ नीक
बजैत छी बड़ तीत
खाइ जइमे छी
हाथ ओहीमे धोइत छी
नै हम सुधरब
नै हमरा सुधारू
हम छी बिगड़ल
अप्पन मन पारू
घर सँ लऽ कऽ आफिस धरि
फूइसक ठेका लेने छी
जतए जे भेटायल आइ धरि
धुरमुस जरूर देने छी
नै हम सुधरब
नै हमरा सुधारू
हम छी बिगड़ल
अप्पन मन पारू
रामराजक परिभाषा
भऽ रहल छै साकार
कांग्रेस हुअए वा भाजपा
भ्रष्ट छै सभ सरकार
नै हम सुधरब
नै हमरा सुधारू
हम छी बिगड़ल
अप्पन मन पारू.
विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत
१.ज्योति सुनीत चौधरी २.श्वेता झा (सिंगापुर) ३.गुंजन कर्ण १
ज्योति सुनीत चौधरी
जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मिडिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि। कविता संग्रह ’अर्चिस्’ प्रकाशित।
३.श्वेता झा (सिंगापुर)
४.गुंजन कर्ण राँटी मधुबनी, सम्प्रति यू.के.मे रहै छथि। www.madhubaniarts.co.uk पर हुनकर कलाकृति देखि सकै छी।
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विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा द्वारा मैथिली अनुवाद
३
भिखारी ठाकुर (१८८७-१९७१)- लोकलाकार, छपरा जिला (बिहार)मे जन्म। प्रारम्भक रचना सभ मौखिक मुदा बादमे कैथी लिपिमे सेहो हिनकर हस्तलिखित भोजपुरी रचना प्राप्त भेल। भोजपुरीसँ मैथिली अनुवाद
मूल भोजपुरी- भिखारी ठाकुर (१८८७-१९७१), मैथिली अनुवाद- गजेन्द्र ठाकुर (१९७१- )
वृद्धाश्रमक पक्षमे
बिरहा १
कुतुबपुर अछि गाम, भिखारी ठाकुर अछि नाम।
बाबू सभ गोटेकेँ करै छी प्रणाम॥
सभ गोटेकेँ करै छी प्रणाम हे राजा।
उपरेसँ चिक्कन अछि चामक ओहरन॥
तीन दिनक सेखीमे, उड़बै छी मज्जा।
बूढ़ा-बूढ़ीकेँ दुख भेल छनि, लगैए नै लाज॥
बाबू-भइया एकमत भऽ कऽ सभ मिलिये कऽ समाज।
एक अरजीपर मोन आनू, मोनकेँ करू ताजा॥
महाबीरक नाम सुमरि लिअ, जइसँ बाजत बाजा।
वृद्धाश्रम बनबाउ नै तँ हएत अकाज॥
सभ बाबूक पएर पड़ै छी, भिखारी ठाकुर नाम छी॥
वृद्धाश्रमक पक्षमे
बिरहा २
हिन्दू-मुसलमान, सभ हमर कहलपर दियौ कान।
नै तँ होइए बूढ़क अपमान॥
होइए बूढ़क अपमान हमर भाइ।
नेनपनेसँ जकरा तूँ कहैत एलेँहेँ माय॥
तकराले किए भऽ गेल छेँ तूँ कसाइ।
बड़का हाकिम लग जखन जेमेँ तँ पुछल जेतौ हिसाब-किताब॥
जल्दीसँ बता हमरा की केलेँ तूँ कमाइ।
नह जखन झारतौ तखन ओइ काल की करमे उपाय।
आँखिसँ नोर खसतौ किछु ने हेतौ बाजल।
कहैए भिखारी अखने दे तूँ वृद्धाश्रम बनबाय।।
नै तँ होइए बूढ़क अपमान॥
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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
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