ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ८९ म अंक ०१ सितम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४५ अंक ८९)
ऐ अंकमे अछि:-
३.६.१रामदेव प्रसाद मण्डल झारूदार २जवाहर लाल कश्यप३रामविलास साहु
३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमर २ आनंद कुमार झा ३नवीन कुमार "आशा" ४.प्रभात राय भट्ट
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१. संपादकीय
डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर (१८९१-१९५६)- गजेन्द्र ठाकुर
१
महाराष्ट्रक एकटा नग्र रत्नागिरी। ओइ नग्र लग एकटा गाम अम्बावडे।
ओइ गामसँ रामजी सपकाळक एकटा परिवार छल, भारतीय सेनामे एकटा स्कूलमे ओ हेडमास्टर रहथि। गौरांगी नीलाक्षी आ भीमा हुनकर पत्नी छलखिन्ह। हुनकर चौदहम सन्तान १४ अप्रैल १८९१ ई. केँ भीमाक कोखिसँ भेल आ तकर नाम भीम राखल गेल, तखन रामजी महूमे पदस्थापित रहथि।
१८९४ ई. मे रामजी सेवानिवृत्त भऽ । भीम जखन ६ बर्खक रहथि तखने हुनकर मायक देहान्त भऽ गेलन्हि आ तकर बाद हुनकर पालन हुनकर अपंग दीदी केलखिन्ह। पिता फेरसँ विवाह केलखिन्हि आ नोकरी लेल गोरेगाँव चलि गेलाह।
२
रामजी सपकाल अस्पृश्य महार जातिक रहथि। ओ कबीरक दोहा सुना कऽ भीमकेँ भोरे-भोर पढ़ैले उठा दै छलाह।
सेवानिवृत्तिक बाद जखन ओ काप-दपोली १८९४ ई.मे एलाह तखन डपोली नगरपालिका शिक्षा विभाग अपन स्कूलमे अस्पृश्यक नामांकन नै लेबाक निर्णय कऽ लेलक। अखन धरि अस्पृश्यक बच्चाक नामांकन ओइ स्कूल सभमे होइ छलै। तखन रामजी मुम्बइ आ फेर सतारा चलि गेलाह। भीमक प्रारम्भिक शिक्षा सतारामे भेलन्हि।
कोनो नौआ भीमक केश नै काटै छल से भीमक बहिन हुनकर केश काटै छलीह।
स्कूलमे हुनकासँ सटि कऽ कियो नै बैसै छल।
कटही गाड़ीबला हुनका तै शर्तपर बैसबै छल जे गाड़ी भीम चलेताह आ ओ आरामसँ बैसत।
पानि पीबाक संकट, जलाशय हुनका लेल नै?
हम विद्या प्राप्त करब, तखन ई सभ भेटत। संकल्प लेलन्हि भीम।
ओतै विद्यालयमे पेंडसे आ आम्बेडकर ई दूटा शिक्षक रहथि।
एक दिन भीम अपनाकेँ भिजा लेलन्हि जे स्कूलमे नै पढ़ऽ पड़ए। मुदा पेंडसे हुनका अपन घर पठेलन्हि आ हुनका धरिया पहिर कऽ स्कूलमे पढ़ाइ करऽ पड़लन्हि।
आम्बेडकरक परम प्रिय शिष्य बनि गेलाह भीम। आम्बेडकर ब्राह्मण रहथि। एक दिनुका गप अछि। भीम खेनाइ नै आनने रहथि, असगरे भुखले पेटे एकटा गाछक छाह तर ओ बैसल रहथि।
पुछलन्हि आम्बेडकर, भीम एना असगरे किए बैसल छी। भीम कहलन्हि जे आइ हम खेनाइ नै आनने छी। कहलन्हि आम्बेडकर, तँ की भेल, चलू आइ दुनू गुरु चेला रोटी तरकारी संगे खाइ छी। भीमक प्रति एहेन नीक आचरण आइ धरि कियो नै केने छल। भीम प्रसन्न भऽ गेलाह।
कहलन्हि आम्बेडकर- भीम, हम अहाँकेँ अपन कुलनाम दै छी, आब अहाँ आम्बेडकर कहाएब।
३
रामजी मुम्बइ आबि गेलाह। एलफिंस्टन स्कूलमे ओ भर्ती भेलाह। १९०७मे स्कूलक शिक्षा ओ पूर्ण केलन्हि। केलुस्कर हुनका “बुद्धचरितम्” उपहारमे देलन्हि।
भीमकेँ स्कूलमे संस्कृत पढ़बाक बड्ड इच्छा रहन्हि मुदा तकर अनुमति नै छल।
जखन भीम १७ बर्खक रहथि तखन ९ बर्खक रमासँ हुनकर बियाह भेलन्हि।
केलुस्कर महोदयक प्रयाससँ बड़ोदा नरेशक छात्रवृत्ति भीमकेँ प्राप्त भेलन्हि आ ओ १९१२ ई.मे बी.ए. पास भऽ गेलाह।
बड़ोदा सरकार हुनका लेफ्टिनेन्ट पदपर तैनात केलक।
मुदा तकर बाद पिताक मोन खराप भऽ गेलनि, भीम पितासँ भेँट करबाले एलाह, पिता प्रसन्न रहथि। पिता अपन प्रसन्नताक संगे प्रयाण केलन्हि, मृत्युक लीला, भीम जोर-जोरसँ कानथि।
४
बड़ोदा नरेशक छात्रवृत्तिसँ भीम १९१३ ई. मे अध्ययन लेल न्यूयार्क बिदा भेलाह। कोलम्बिया विश्वविद्यालय हुनकर प्रबन्ध स्वीकृत केलक आ हुनका “डॉक्टर ऑफ फिलोसोफी” उपाधि देलक।
घुरलाह भीम।
हुनकर सत्कार कएल जाए, भव्य सत्कार। सभ हित-सम्बन्धी विचारलन्हि।
मुदा ओ नै स्वीकार केलन्हि अपन सत्कार। हमर सत्कारपर होमएबला खर्चासँ छात्रवृत्ति दियौ, वंचितकेँ पढ़ाउ।
बड़ोदा नरेश हुनका बड़ोदा बजेलन्हि। हुनकर अवास-भोजनक व्यवस्था लेल कहलन्हि।
मुदा कोनो भोजनालय वा धर्मशाला हुनका रखबा लेल तैयार नै भेल। एकटा पारसी भोजनालय किछु दिन हुनका रखलक मुदा फेर ओतैसँ हुनका निकालि देल गेल।
एकटा गाछतर ओ कानए लगलाह। शिक्षा प्राप्त करब तँ हमर दोष दूर हएत, से सोचने रही। मुदा आब तँ हम शिक्षा प्राप्त केने छी, आब किए ई यातना देल जा रहल अछि हमरा। प्रण करै छी हम जे ऐ व्यवस्थाकेँ तोड़ि देब, ओकर जड़िपर प्रहार करब।
५
भीम घुरि एलाह मुम्बइ। ओ शिडेनहम महाविद्यालयमे प्राध्यापक बनि गेलाह।
कोल्हापुरक छत्रपति साहू महराज उपेक्षित लोकक उद्धार लेल कटिबद्ध छलाह। भीम ओतए गेलाह, घोषणा केलन्हि माणग्राममे साहू महराज, हे उपेक्षित जन आबि गेल छथि अहाँ सभक उद्धारक- डॉ आम्बेडकर।
मुदा एकटा आर आघात, पुत्र गंगाधरक मृत्युसँ पत्नी रमा खिन्न रहए लगलीह। यशवन्तक पालन ओ करैत रहलीह, पति बड्ड कम समए घरमे दै छलखिन्ह मुदा ओ सभटा सहैत रहलीह।
६
फेर अध्यापनपद छोड़ि ओ “इकोनोमिक एण्ड पोलिटिकल सायंस” नाम्ना लंडन स्थित संस्थामे “द प्रॉब्लेम ऑफ रुपी” पर प्रबन्ध देलन्हि। मुदा हुनका क्रान्तिकारी मानल गेल, से ओ संस्थाक मोनमाफिक संशोधित प्रबन्ध प्रस्तुत केलन्हि आ “डॉक्टर ऑफ सायंस” भऽ घुरलाह। विधिक अध्ययन केलाक बाद ओ न्यायालय सेहो जाइ छलाह।
२० जुलाइ १९२४ ई. केँ ओ “बहिष्कृत हितकारिणी सभा” नामसँ एकटा संस्था बनेलन्हि। कारण हुनकर विश्वास चलनि जे अपन समस्याक समाधान अपने करए पड़त, आन से नै कऽ सकत।
२० मार्च १९२७ ई. महाडमे जनान्दोलनक नेतृत्व कऽ “चवदार तळ” जलाशयसँ सभ पानि पीलन्हि।
तकर बाद “बहिष्कृत भारत” मासिक द्वारा विचार प्रसारित केलन्हि।
२ मार्च १९३० नाशिक राममन्दिरमे प्रवेशक प्रयासक जनान्दोलनक न्रेतृत्व, मुदा पुरहित द्वार बन्द कऽ लेलक, तखन सभ राम आ लक्ष्मण कुण्डमे स्नान कऽ घुरि गेलाह।
मुदा १९३३ ई मे मुम्बइ प्रान्तमे सभ उपेक्षितक मन्दिर प्रवेशक विधान पास भेल।
७
१९२७ ई. मे अपन शिक्षक आम्बेडकरसँ हुनकर भेँट भेलन्हि। हुनकर चिट्ठी भीम स्नेहसँ रखने छलाह। गुरु-शिष्य भाव विह्वल भऽ गेलाह।
साइमन कमीशनक समितिमे भीमक चयन भेल, वयस्क मतदानक अनुशंसा भीमक कएल छन्हि।
लंडनमे “राउण्ड टेबल कान्फ्रेन्स”मे तीन बेर भाग लऽ कऽ दलितक समस्या उठेलन्हि ओ।
मुदा फेर आघात। पत्नी रमाक मृत्य।
१५ अप्रैल १९४८ ई. केँ शारदा-कबीर नाम्ना ब्राह्मण चिकित्सिकासँ विवाह केलन्हि।
समए कम अछि। संघर्ष निष्फल भऽ रहल अछि। हिन्दू, अस्पृश्य हिन्दू! नै। हम असफल नै हएब। धर्मान्तर। केलुस्करक देल बुद्धचरितम् सम्बल बनत।
१४ अक्टूबर १९५६ ई., दशमी, नागपुर ९ बजी भोरसँ ११ बजे धरि, गोरखपुरक महास्थाविर चन्द्रमणि धर्मान्तर करेताह, बौद्ध धर्ममे।
ओ, हुनकर दोसर ब्राह्मण पत्नी सविता आ लाखक लाख लोक बौद्ध बनि गेलाह।
बुद्धक पद धूलि माथपर लगा तीनबेर वन्दन केलन्हि।
८
स्वतंत्र भारतक विधि मंत्री बनलाह बाबासाहेब आम्बेडकर। संस्कृतक पैघ प्रेमी। संस्कृतमे सम्भाषण करै छलाह (आज, हिन्दी पत्रिका सितम्बर १५, १९४९ अंक; द लीडर, इलाहाबाद, १३ सितम्बर, १९४९)। ऑल इण्डिया सेड्यूल कास्ट फेडेरेशनमे संस्कृत राजभाषा हुअए, ई प्रस्ताव बाबासाहेब राखलन्हि मुदा युवा बी.पी. मौर्य आदिक विरोध भेल आ प्रस्ताव आपस भऽ गेल।
लाखक लाख पोथी हुनकर निजी पुस्तकालयमे छलन्हि, सभटा पोथी ओ मुम्बइक सिद्धार्थ महाविद्यालयकेँ दऽ देलन्हि।
पैघ भेलाक उपरान्तो ओ अपन सामाजसँ अपन लोकसँ दूर नै गेलाह।
६ दिसम्बर १९५६ ई.केँ ओ निर्वाण प्राप्त केलन्हि।
[बीतल आध राति,
बुद्ध बजाए सभ शिष्यकेँ,
देल प्रातिमोक्षक उपदेश,
कोनो शंका होए तँ पूछू आइ ।
अनिरुद्ध कहल नहि अछि शंका आर्य सत्यमे ककरो।
बुद्ध तखन ध्यान कऽ एकसँ चारिम तहमे पहुँचि,
प्राप्त कएल शान्ति।
भेल ई महापरिनिर्वाण !
मल्ल सभ आबि उठेलक बुद्धकेँ स्वर्णक शव-शिविकामे,
नागद्वारसँ बाहर भए कएलन्हि पार हिरण्यवती धार,
मुदा शवकेँ चन्दनसँ सजाए,
जखन लगाओल आगि, नहि उठल चिन्गारि ।
शिष्य काश्यप छल बिच मार्ग,
ओकरा अबिते लागल चितामे आगि !
मल्ल लोकनि बीछि अस्थि धऽ स्वर्णकलशमे,
आनल नगर मध्य,
बादमे कए भवन पूजाक निर्माण,
कएल अस्थिकलश ओतए विराजमान।
फेर सात देशक दूत,
आबि मँगलक बुद्धक अस्थि,
मुदा मल्लगण कएल अस्वीकार,
तँ बजड़ल युद्ध-युद्ध ।
सभ आबि घेरल कुशीनगर,
मुदा द्रोण ब्राह्मण बुझाओल दुनू पक्ष।
बाँटि अस्थिकेँ आठ भाग,
द्रोण लेलक ओ घट आ गण पिसल छाउर बुद्धक ।
सभ घुरलाह अपन देश आब।
अस्थि कलश छाउर पर बनाए स्तूप,
करए गेलाह पूजा अर्चना जाए,
दसटा स्तूप बनि भेल ठाढ़,
जतए अखण्ड ज्योति आ घण्टाक होए निनाद।
फेर राजगृहसँ आएल पाँच सए भिक्षु,
आनन्दकेँ देल गेल ई काज,
बुद्धक सभ शिक्षाकेँ कहि सुनाऊ,
होएत ई सभ समग्र आब।
हम ई छलहुँ सुनने एहि तरहेँ,
कएल सम्पूर्ण वर्णन नीके।
कालान्तरमे अशोक स्तूपसँ लए धातु कए कए कऽ सए विभाग,
बनाओल कएक सए स्तूप,
श्रद्धाक प्रतीक।
जहिया धरि अछि जन्म, अछि दुख,
पुनर्जन्मसँ मुक्ति अछि मात्र सुख,
तकर मार्ग देखाओल जे महामुनि,
शाक्यमुनि सन दोसर के अछि शुद्ध।
असञ्जाति मनक ई सम्बल,
देलहुँ अहाँ हे बुद्ध
हे बुद्ध
हे बुद्ध ।]( असञ्जाति मन - गजेन्द्र ठाकुर)
२
प्रो. रामशरण शर्माक मृत्यु:-
प्रो. रामशरण शर्मा ०१ सितम्बर १९२० बरौनी (बिहार) मे जन्म , मृत्यु २१ अगस्त २०११ पटनामे।
१५ देशी-विदेशी भाषामे ११५ सँ बेशी किताब प्रकाशित; पहिल किताब "विश्व इतिहास की भूमिका (दू खंडमे) १९४९ मे प्रकाशित; अंतिम पुस्तक "इकोनामिक हिस्ट्री आफ अर्ली इंडिया"; भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषदक संस्थापक अध्यक्ष; जवाहरलाल नेहरू फेलोशिप, यूजीसी नेशनल फेलोशिप आ वीके राजवाड़े लाइफटाइम अवार्ड।
३
साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार २०११ मैथिली लेल ले.क. मायानाथ झा केँ हुनकर लोककथा संग्रह "जकर नारी चतुर होइ" लेल देल गेल अछि। डॉ.भगवानजी चौधरी, प्रो. चन्द्रधर झा आ डॉ. इन्द्रकान्त झा जूरी रहथि, जूरीमे सं दू गोटे मैथिली साहित्य लेल अज्ञात नाम रहथि, से विवाद उठल जे जूरी लोकनि साहित्य अकादेमी मैथिली परामर्शदाता समितिक अध्यक्ष श्री विद्यानाथ झा "विदितक " रबर स्टाम्प रहथि । २०११ क विदेह साहित्य अकादेमी समानान्तर बाल साहित्य पुरस्कार सेहो ले.क. मायानाथ झाकेँ "जकर नारी चतुर होइ" लेल देल गेल छल।
ई घोषणा साहित्य अकादेमीक मैथिली विभाग लेल ओतेक असहज निर्णय नै छल। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक ब्राह्मणवादी चेहराक असल परीक्षा हएत जखन ओकर मूल पुरस्कारक घोषणा हएत। २०११ क विदेह साहित्य अकादेमी समानान्तर मूल साहित्य पुरस्कार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जी केँ मैथिलीक आइ धरिक सर्वश्रेष्ठ कथा संग्रह “गामक जिनगी” लेल देल गेल छन्हि।
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता (नेपाल देशक भाषा-साहित्य, दर्शन, संस्कृति आ सामाजिक विज्ञानक क्षेत्रमे सर्वोच्च सम्मान)
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता
श्री राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' (2010)
श्री राम दयाल राकेश (1999)
श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव (1994)
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान मानद सदस्यता
स्व. सुन्दर झा शास्त्री
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान आजीवन सदस्यता
श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव
फूलकुमारी महतो मेमोरियल ट्रष्ट काठमाण्डू, नेपालक सम्मान
फूलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान २०६७ - मिथिला नाट्यकला परिषदकेँ
फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ - सप्तरी राजविराजनिवासी श्रीमती मीना ठाकुरकेँ
फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ -बुधनगर मोरङनिवासी दयानन्द दिग्पाल यदुवंशीकेँ
साहित्य अकादेमी फेलो- भारत देशक सर्वोच्च साहित्य सम्मान (मैथिली)
१९९४-नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी आ मैथिली कवि।
२०१०- चन्द्रनाथ मिश्र अमर (१९२५- ) - मैथिली साहित्य लेल।
साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल):-
२०००- डॉ. जयकान्त मिश्र (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
२००७- पं. डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
पं. श्री उमारमण मिश्र
साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली
१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा)
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
२०१०-श्रीमति उषाकिरण खान (भामती, उपन्यास)
साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
१९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
१९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
१९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
१९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
१९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
१९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
१९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
१९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
२०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
२००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
२००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
२००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
२००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
२००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
२००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
२००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
२००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
२००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी- सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
२०१०- डॉ. नित्यानन्द लाल दास ( "इग्नाइटेड माइण्ड्स" - मैथिलीमे "प्रज्वलित प्रज्ञा"- डॉ.ए.पी.जे. कलाम, अंग्रेजी)
साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
२०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल" लेल
२०११- ले.क. मायानाथ झा "जकर नारी चतुर होइ" लेल
प्रबोध सम्मान
प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
प्रबोध सम्मान 2011- श्री सोमदेव (1934- )
यात्री-चेतना पुरस्कार
२००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
२००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
२००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
२००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
२००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
२००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
२००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
२००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
२००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
२००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
२०१० ई.- डॉ. तारानन्द वियोगी, महिषी, सहरसा
कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान
२००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झा (कविता संग्रह “एना त नहि जे”)
२००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता” (नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश)
२०१० ई.- श्री महाप्रकाश (कविता संग्रह “संग समय के”)
भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता
युवा पुरस्कार (२००९-१०) गौरीनाथ (अनलकांत) केँ मैथिली लेल।
भारतीय भाषा संस्थान (सी.आइ.आइ.एल.) , मैसूर रामलोचन ठाकुर:- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००३-०४ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) जा सकै छी, किन्तु किए जाउ- शक्ति चट्टोपाध्यायक बांग्ला कविता-संग्रहक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त। रमानन्द झा 'रमण':- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००४-०५ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) छओ बिगहा आठ कट्ठा- फकीर मोहन सेनापतिक ओड़िया उपन्यासक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार
१.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११
२०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
२०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)
२.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२
२०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
२०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा संग्रह)
२०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
२०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मा नदीक माझी, बांग्ला- माणिक वन्दोपाध्याय, उपन्यास बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
जितेन्द्र झा, जनकपुर विमलक गजल आ सुजितक कथा
साहित्यकार डा. राजेन्द्र विमलक मैथिली गजल संग्रह सूर्यास्तस“ पहिने भादव १० गते शनिदिन राजधानी काठमाण्डूमे आयोजित एक कार्यक्रममे विमोचित भेल । राष्ट्रकवि माधव घिमिरे गजल संग्रह विमोचन कएने रहथि । विमलके सिद्धहस्त साहित्यकार कहैत ओ हुनक लेखनीक प्रशंसा कएने रहथि । विमलक एहि नव कृतिमे एक सयटा गजल संग्रह कएल गेल अछि ।
संगीत तथा नाट्य प्रज्ञाप्रतिष्ठानक प्राज्ञ रमेशरञ्जन झा, प्राज्ञ बुद्धि राना, रोचक घिमिरे, प्रहलाद पोखरेल, प्रा. परमेश्वर कापडी, धीरेन्द्र प्रेमषि सहितके साहित्यकार विमलक कृति सम्बन्धमे मन्तव्य व्यक्त कएने रहथि । गजल संग्रहक प्रकाशक पृथु प्रकाशन जनकपुधाम अछि । विमल २०६६ सालक जगदम्बाश्री पुरस्कारसं सम्मानित भेल छथि ।
दोसर दिस सञ्चारकर्मी सुजित कुमार झाक कथा संग्रह चिडै भादव १३ गते जनकपुरमे आयोजित एक कार्यक्रममे विमोचित भेल । ७८
पृष्ठको कथा संग्रहमे ११ टा कथा समेटल गेल अछि । साहित्यकार रोशन जनकपुरी, अबधेश पोखरेल, श्यामसुन्दर शशि, अशोक दत्त, सहितके व्यक्ति कथा संग्रहके प्रशंसा कएने रहथि । रामानन्द युवा क्लब मैथिली भाषामे एहिसं पहिने सेहो विभिन्न पोथी प्रकाशन क चुकल अछि ।
१. जगदीश प्रसाद मण्डलक चारि गोट विहनि कथ २. बेचन ठाकुरक दू टा विहनि कथा
१
जगदीश प्रसाद मण्डलक चारि गोट
विहनि कथा-
शिवजीक डाक-बाक्
चौदहो भुवन भ्रमणमे काग-भुशुंडी बौराएल रहथि कि तइ बीच शिवजीक संग गुरूओजी पहुँचलथि। सज्जा सजल शव जकाँ काग-भुशुंडी, ने गुरूएजी आ ने शिवजीए दिस तकलनि। मणिक जोहमे अपने समुद्रमे डूबकी लगबैत। दलदल पानि सदृश्य गुरूजी, तॅँए कोनो आनि-पीड़ा नै भेलनि। मुदा पाछु पिछड़ैत काग-भुशंुडीकेँ देख शिवजीक क्रोध सीमा तोड़ि बहरा गेलनि। जहिना हुकड़ैत ढेनुआर गाए चुकड़ैत बच्चाकेँ देख मलकार (पोसिनिहार) जँ नै दुहै तँ कि गाए कोकणि नै जाएत। के दोखी? शिवजीक बाक-डाक नै। काग-भुशुंडीक लेल धैन-सन। चाँकि नै देख काग-भुशुंडीकेँ शिवजी कहलखिन- “जा रे अभगला, अजेगरोक कान कटलह।”
सोग
आने दिन जकाँ तड़गरे प्रोफेसर लीलाधरक नीक टुटलनि। जना आन दिन नीन टुटिते ओछाइन छोड़ि टहलए विदा भऽ जाइ छलाह से आइ नै भेलनि। ओछाइन छोड़ैसँ पहिने मनमे उठि गेलनि एक्कैसम मार्च। पचास बर्ख पूरि एकावनममे प्रवेश कऽ रहल छी। प्रश्न उठलनि जिनगीक पचास बर्ख। जँ सइये बर्खक अधार बनबै छी तैयो अधा टपि गेलौं। मुदा से केना हएत? जिनगी तँ विभाजित अछि। तँए एकक बाद दोसरमे प्रवेश आ पैछलाक नीक-अधलाक समीक्षा। मुदा हिसाबे उकड़ूमे पड़ि गेल अछि। सए बर्ख जीबे करब तेकर कोनो गारंटी अछि..। तखन अधा केना मानब। लगले नजरि नोकरी दिस बढ़लनि। जइ दिन नोकरी शुरू केने रही तइ दिन बतीस बर्खक जोड़ने रही। गुन भेल जे तीन बर्ख बढ़ि गेल। पेइतीस बर्खक नोकरी भऽ गेल जइमे पच्चीस बर्ख पूरि गेल अछि। दसे बर्खक बचल अछि। अहू पच्चीस बर्खमे आठ बर्ख ओझे-गुनी खेलक सत्तरह बर्खक नोकरीकेँ नोकरी बुझलौं, जखन कओलेज सरकारी भेल। एकाएक बीस गुना जिनगीमे उछाल आएल। साठि हजारक नोकरी कोनो मामूली छी, जइठाम अखनो कते पेटेपर खटैए। मुदा जहिना तीआरि जालक ओझरी जे छोड़बै दुआरे लोक पूँजिओ गमा फेकिये दैत अछि। मुदा से तँ लीलाधरकेँ नै भऽ पाइब रहलनिए। जत्ते छोड़बए चाहथि तते अमती काँट जकाँ धोतीमे ओझराइते जाइत छलनि।
तखने पत्नी ओछाइन छोड़ि, कपड़ासँ पौछैत मुँह, एेनामे देख, कटोरिया धोंधि नेने फुदकैत विजयक खुशीसँ मुस्की दैत लीलाधरक ओछाइन लग पहुँच मुँह दिस तकलनि।
टक-टक आँखि तकैत लीलाधर पत्नीकेँ नै देखलनि। मनुष्य कि चिड़ै आकि कौछ छी जे अंडा दऽ पड़ा जाए। पड़ाएल कि पड़ाओल गेल एे प्रश्नमे लीलाधर ओझराएल।
टकटकी देख पत्नी डरि गेलीह। मुदा तैयो अपन अर्ज निमाहैत बजली- “कथीक सोग...?”
प्रो. लीलाधर- “किछु ने?”
जिनगीक सोग। मरैइयो बेर तक पत्नी सिरे चढ़ि खेती, काल्हि धरि केलौं? यएह ने जे तते हित-अपेछित बना लेलौं जे सालक दस प्रतिशत कमाइ भोज-भातमे चलि जाइए। तइपर अपनो सभ दिन अनके खेबै, से केहेन हएत। मुदा सभ दिन जँ भोजे खेबै तँ विद्यापति हिसाव (अधा जनम हम नीन गमाओल)केँ कि करब। ने किछुओ पाइ जमा कऽ राखि सकलौं आ जेहो केलौं ओ दस बर्ख बादे भेटत। कि तीनू बच्चाक आगूक शिक्षा दऽ पाएब।
पनचैती
परसूसँ सौंसे गाम यएह चरचा जे ई पनचैती केना हएत। एक दिस सोनेलाल बाबा आ दाेसर दिस विधायक जीक प्रतिनिधि। तहूमे खासे मसियौत सेहो छियनि।
विधायकजी भिन्ने गजुआइत जे एक जाइतिक वोट प्रभावित हएत। मुदा अपनो आदमी तँ किछु नै कहत सेहो बात तँ नै। नीक हएत अस्पताल धऽ ली। भेँट करए सभ एबे करत, ओतइ सँ फरिया देब।
सोनेलाल बाबाक दियाद-वाद, जाति-समाज इन्दिरा अावासक भाँजमे। तँए या तँ गबदी मािर देत या तँ सोझा एबे ने करत। पुतोहूक दुआरे बेटोसँ मिलान नहिये जकाँ। मुदा बिना फड़िओने तँ टूटल गाड़ीक पहिया जकाँ गेबे करत। ‘काँकोड़-रोटी।’
चेहरासँ सोनेलाल बाबा अस्सी बर्खक बुझि पड़ै छथि मुदा छथि छियासठिये बर्खक। जरल मनमे आगि उठलनि। तीन साल पहिने इन्दिरा आवास वएह प्रतिनिधि विधायक जीक सोझमे गछलखिन। सोनेलाल बाबा तही दिनसँ बौआइ छथि। मुदा अखन धरि नै भेटलनि। बेचाराक मनक धधड़ा ओइ दिन भभकि उठल जइ दिन सोनेलाल बाबा पुछलखिन- “नेताजी, दौगैत-दौगैत टाँग टुटि गेल। आबो कहू?”
प्रतिनिधि- “आइक युगमे बिना खुऔने-पीऔने काज चलै छै?”
सोनेलाल बाबा- “ई बात ओइ दिन किअए ने कहलौं जइ दिन हमरो हाथमे भोट छल।”
“अखन एते छुट्टी नइए, दोसर दिन बात करब।”
पगलाएल सोनेलाल बाबा कि केलनि से अपनो नै बुझलखिन।
कचोट
आजादीक चौसठिम वर्षगाँठ मनबए खुशीक समुद्रमे आबाल-वृद्ध डूबल। चौदह अगस्तक निसभेर राति। अचानक पत्नीक छातीमे टनक उठलनि। दू बजैत। बारहे बजे रातिसँ जहाँ-तहाँ रबासि-फटाका फुटैत। अधिक धिया-पुता भेने बेसीकाल घरवाली खन-खनाएले रहै छथि। अपनो अभ्यस्त भऽ गेल छी। जइसँ ने डाॅक्टर ओइठाम जाइमे अबूह लगैए आ ने लसुन-तेला बना मािलस करैमे। घरक अनिवार्य खर्चमे दवाइयो-दारू आबि गेल अछि। तँए कखनो मनमे चिन्ता-फिकिर नहिये जकाँ रहैए।
एक तँ सौन-भादबक अन्हार, तइपर मेघडम्बर जकाँ मेघौन। एत्ती रातिमे की करब? ने गाममे डाक्टर छथि जे लालटेनो हाथे बजा अनबनि, थाल-खिचारक रस्ता, चारि किलोमीटरपर डाॅक्टरक घर। जहिना कोनो फनिगा मकड़जालमे फँसि छटपटाइत तहिना मन छटपटाए लगल। मन पड़ल दुनू प्राणीक जिनगी। समाजमे अपना सन कते जोड़ा अछि जे दोहरा कऽ सिनूर भरने हएत। जीता-जिनगी विश्वासघाती नै बनब। जे बनि पड़त तइमे पाछू नै हटब। उत्साह जगल।
घरक जते टँगर रही सेवामे जुटि गेलौं। कियो तेलक मालिस तँ कियो सुखले ऐँठुआ ससार करए लगलनि। अपने रिक्सा भजियबए विदा भेलौं। मझिली बेटी माएक आंगुर फोड़ि-फोड़ि रोग जाँचए लगलि। जहिना थर्मामीटर लगा डाॅक्टर बोखारक जाँच करैत तहिना ने मलकारो मालक पाउज गनि रोगक जाँच करैए।
तीन बजे भोरमे रिक्सा नेने पहुँचलौं। माएकेँ उठा बेटा-बेटी रिक्सापर चढ़ौलक। जेठका बेटाकेँ संग केने डॉक्टर ओइठाम विदा होइत तेसर बेटाकेँ कहलिऐ- “बौआ दिनेश, माल-जालक तकतान करब।”
गामेक मिड्ल स्कूलक पाँचमा क्लाशमे पढ़ैत दिनेश। फस्ट करैए। शिक्षककेँ जहिना गुरूक आदर करैए तहिना अपनो दुनू बेकतीक लेल श्रवणे-कुमार छी।
साढ़े एगारह बजे घुमि कऽ एलौं। एक तँ रौद तइपर कठगुमारी। पियासे मन तबधल। दरबज्जापर रिक्सा देखिते देनेश लोटामे पानि नेने पहुँचल। लोटाक पानि देख हृदए उमड़ि गेल। अनायास मुँहसँ निकलल- “बौआ, इस्कूल...।”
अखन धरि दिनेश बिसरि गेल छल पनरह अगस्त, स्वतंत्रता दिवस। बिसरि गेल छल झंडाक संग मिल चलब, बिसरि गेल छल नव वर्षक उपहार।
दिनेश बाजल- “नै। केना जेतौं।”
मनमे असहनीय कचोट भेल। मुदा बात बहलबैत बजलौं- “बौआ, एहेन फेड़ा जिनगीमे कहियो ने भेल छल। मुदा सभ शुभ-शुभ सम्पन्न भेल।”
२
बेचन ठाकुर
विहनि कथा-
चल आइये
आश्चर्यचकित भऽ राम बाजल- “रहीम भाय, एक्को महीना मुंबइ एना नै भेल आकि फेर गाम जाइ छेँ। की कारण छै?”
रहीम हँसि कऽ बजला- “राम भाय, नाझलुहु। गाममे एलेक्शन हइ न। जोगी मुखिया गामपर खूद आबि कहि गेल ह, बाहरबलाकेँ भोँट खसाबै लऽ गाम एबाक लेल अबै-जाइक भाड़ा आ दारू फ्री।”
कनीकाल गुम्म भऽ आ किछु सोचि कऽ राम बाजल- “भाय, हमरा मुंबइ एना एक सप्ताह भेल। ई बात हमरा नै बुझल छल। जौं ई बात छै तँ चलह आइये।”
डाक डकोबलि
मुस्की दैत मुखियाजी- “की हौ फेकन भैया। काल्हि नोमिनेशनमे चलैक छै।”
ऐपर खीसिया कऽ फेकन बाजल- “कोन सपेत-के यौ?”
आश्चर्यमे पड़ि मुखियाजी बाजला- “बिसरि गेलहक। काल्हि साँझमे जे पोलीथिन लेल दूटा नमरी देने रहियह।”
ऐपर मुस्का कऽ फेकन जबाक देलक- “से तँ मने अछि मुदा लुटनबाबूकेँ कोना बिसरि जेबै जे आइ भोरे भोर नोमीनेशनमे जाइ लेल आ खाइ-पीये लेल पाँच सए टाका अपने दऽ गेला। हुनकामे मार्शलक व्यवस्था सेहो छै।”
दुर्गानन्द मण्डल स्वतंत्रता दिवसक अवसरपर किछु स्वतंत्र भरास-
आइ भारतीय स्वतंत्राक 65म वर्षगाॅठ मना रहल छथि। अनेरे प्रसन्न! सरकारी किंवा गैर सरकारी कार्यालय आजुक दिन स्वतंत्रता दिवसक रूपमे मना रहल अछि। विद्यालय सभमे सरकारी चिट्ठी पठा देल गेल जे फी विद्यालयक एक गोट मासाएब अमुख महादलित टोलमे झंडा फहराबथि, अन्यथा दण्डक भागीक हेता। कहक लेल सभ किछु अनसोहाते बुझना जाइत अछि। कि खादीक नम्हर कुर्ता, ठेहुनसँ निच्चा धरि, माथपर गाॅधी टोपी, डॉरमे खदीक धोती पहिर राष्ट्रधव्जक समक्ष सभटा झुट्ठठे भाषण देल जा रहल अछि। सुनैत-सुनैत देहमे आगि लागि जाइत अछि। मोन कोना ने कोनादन करए लगैत अछि। झुट्ठा लोक सबहक झुट्ठ भाषण सुनैत-सुनैत पचास बर्खक भऽ गेलौं मुदा झुट्ठे बाजि अपने सन आनो जनकेँ परतारब कते अधलाह बात भेल! जँ हार-मौसक देह अछि तँ कनियो लाज हेबाक चाही, कि बाजि रहल छी, कि कऽ रहल छी? कि सभ दिन झुट्ठे बाजि भारतक स्वतंत्रताकेँ अक्षुन्न राखि सकै छी? ई हमरा लोकनिक बीच एकटा यक्ष प्रश्नक सदृश्य राखल अछि।
चारू कात देश भक्ति गीत बाजि रहल अछि। गीत सुनैत-सुनैत खुन खौलए लगैत अछि, ऐ सफेद पोस झुट्ठा सभकेँ देख कऽ जे समस्त भारतीय भाय-बहिन, माइ लोकनिकेँ सालो-सालसँ ठकैत आएल अछि। राष्ट्रधव्जक सामने बाजब किछु आ करब किछु, हिनका सभक जन्म सिद्ध अधिकार भऽ गेल अछि। धिक्कार अछि एहेन भारतीय आेइ सन्तान सभकेँ जे भारत माताक संग झुठक बेपार करैत अछि।
सवाल ई उठैत अछि, देशमे जखन चारूकात भ्रष्टाचार, बेबिचार, हत्या, बालात्कार, अपहरणक बेपार भऽ रहल अछि, तखन भारतीय कोन रूपेँ स्वतंत्र छथि? देशक शीर्षस्थ नेता लोकनिक करतुत प्रात होइते अखबारमे पढ़बामे अबैत अछि। भारतीय संविधानक ऊँचसँ ऊँच पदपर आसीन मत्रीगण क्यो बेदाग नै छथि। सबहक चद्दैरमे दाग लागल छन्हि। एकटा जहलसँ बहराइ छथि, तँ दोसर जेबाक लेल ततबाए आतुर! कथी खातीर? देशक रक्षा खातीर? कखनो नै। अपितु ई आरो स्पष्ट भऽ जाइत अछि, जे अहाँ कतेक पघि भीतरघाती छी। आइ खगता अछि ऐ बातक जे अपना-अपना भीतर झाँकि कऽ देखू जे अहाँ गॉधी, नेहरू, लोहिया, जे.पी.क भारतक कि दुदर्शा केलिऐ? कि अही कुकर्मक िनर्वहनक लेल अहाँक भारतीय राजनीतिक क्षितिजपर बैसाओल गेल?
आइ जँ कियो सही आबाज उठबै छथि तँ ओकर ओधि उखारि अहाँ अपनाकेँ सुरक्षित राखए चाही छी। मुदा आब ओ दिन दुर नै जे अहाँ कखनो नाङट भऽ सकै छी आ अरबो-अरब भारतीय अहाँकेँ नाङटे-उघारे टी.भी.क पर्दापर देखत। तँए समए पूर्व चेतू हे मानव चेतू। अन्यथा ने िसर्फ भारतीय वल्कि अरबो-अरब जनसंख्या अहाँकेँ धुर छी! धुर छी! करत। कतेक दुखक बात अछि जे अहाँ सन सपूत भारत माताकेँ खोइछ खाली कऽ सभटा धन नुकाए कऽ आनठाम रखने छी। मुदा से ककराले? अपनेकेँ बूझक चाही जे ओ धन किसान-मदूरक खुन-पसेनाक कमाइ छी। ओ धन अहाँकेँ पचि नै सकैए। ओहि धनसँ ने तँ अहाँ अपन श्राध कऽ सकब आ ने बेटा-बेटीक वियाह। तखन ओ धन भोगत के?
ऐठाम आप्त चिंतनक खगता अछि। सोचू, कने विचारू, कोन तरहक कुकर्म आ केकरा लेल करै छी। जागू, जागू हे भारतक सपूत अखनो जागू। भारतक अखण्डता आ एकता लेल जागू। भारत सबहक माता थिकीह। माताकेँ सद्विचारसँ सजाउ। आउ, अपन तियाग, निष्ठा, लोभ, मोह, अहंकारकेँ तियागि भारतकेँ माता बुझि अपन खून-पसीना स्वच्छ वुद्धि विवेकसँ माताकेँ बचाउ। बचाउ अपन मानवताकेँ, नैतिकताकेँ आदि सनातन धर्मकेँ आ राजनीतिकेँ। देशमे जरूर प्रजातंत्रक शासन अछि। किन्तु सबहक आत्मामे रावणक शासन। तँए, आइ पन्द्रह अगस्तक अवसरपर आबि ओइ रावणकेँ खतम कऽ देबाक सप्पत खाउ। सप्पत खाउ जे अपन भारतकेँ रामराज्य बना अपने राम कहाउ।
धन्यवाद...,
नवेंदु कुमार झा- रिपोर्ताज कोसीक प्रलयक तीन वर्ष
कोसीक प्रलयक तीन वर्ष अठारह अगस्त के पूरा भऽ गेल। तीन वर्ष पहिने जखन कोसीक प्रचण्ड बेग में मिथिलांचलक एकटा भाग कोसी में विलीन भऽ गेल छल तऽ सरकारी आ गैर सरकारी संस्था सभ एहि तरहे मेहरबान छल जे लोक सभ आशा बनल जे बर्बाद भेल क्षेत्र फेर से आबाद होएत। आ किछु हद धरि रास्ता पर सेहो आएल अछि। लोक जीवन फेर सँ पटरी पर आबि रहल अछि मुदा सरकारी व्यवस्थाक काहिलि मे कोनो परिवर्तन नहि देखल जा रहल अछि।
कोसीक त्रासदीक बाढ़ बिकहार सरकार पैद्य-पैद्य घोषणा कएलक। ओहि मेे किछु जमीन पर उतरल तऽ किछु पटना सँ प्रभावित क्षेत्र धरि पहूचाए सँ पहिने आकाश मे उड़ि गेल। कोसी मे समा गेल एकर चिन्ता नहितऽ पीड़ित कएलनि आ नहि सरकार। एहि क्रम मे ‘कोसी जांच आयोग‘ सेहो अस्तित्व मे आएला कोसी के घाट मे भसियाएल क्षेत्रक जका इहो आयोग जेना भसिया गेल अछि। न्यायमूर्ति राजेश कलियाक अध्यक्षता बाला एक सदस्यीय आयोग गोटेक छत्तीस भासक अपन कार्यकाल मेे एकहूटा अंतरिम रिपोर्ट नहि देलक तऽ भला अंतिम रिपोर्टक चर्चा करब बेवकूफी होएत।
उत्तर बिहारक बाढ़ि बिहारक बाबू आ अभियंता सभ लेल सोनाक अण्डा देबऽ बाला मुर्गी अछि। प्रति वर्ष बाढ़ि सँ, बचाव, बाढ़ि राहत आ बाढ़िक बाद पुनर्वास आ मरम्मतिक नाम पर सरकारक खजाना बाढ़िक पानि जका बहि जाइत अछि। एहि तरहे कोसी जांच आयोग बाबू आ कर्मचारीक लेल आराम गाह बनि गेल अछि भेटल। जनतबक अनुसार आयोगक सर्वसर्वा न्याायमूर्ति बालिया छत्तीस मासक एहि कार्यकाल मे छतीसो बेर कार्यालय नहि अएलाह अछि मुदा आधुनिक सुविधा सँ युक्त कार्यालय मे अपन हाजिरी लगबऽ बाबू आ कर्मचारी जरूर अबैत छथि। किएक तऽ ई कार्यालय मनोरंजन केन्द्र बनि गेल अछि। कार्यालय कम्प्यूटर से कोसी क्षेत्रक भविष्य संबंध मे भने एको पन्ना बहि निकलल हो मुदा एहि काम तैनात कर्मचारी के ई कम्प्यूटर तास आ आन खेलक सुविधा बिना रूकावट उपलब्ध करा रहल अछि। जखन भला सरकार आयोगक गठित एकरा सभ सुविधा उपलब्ध करा अपन काज समाप्त बुझि लेलक अछि तऽ भला कर्मचारी सभक कोन दोष? ज्यो जनता सरकारक राहत, बचाव आ जांच आयोगक गठन सँ संतुष्ट अछि तऽ भला सरकार रिपोर्टक प्रति किएक सक्रिय होयत। कोसीक जनता कोसीक बाढ़ि मे अपन जमा-पूंजी बहबऽ लेल मजबूर अछि आ सरकार कोसीक त्रासदीक जांचक लेल सरकारी खजाना के बहा अपन दायित्व समाप्त बुझि रहल अछि।
भंगिमाक चुनाव सम्पन्न, कुणाल अध्यक्ष्य आ जयदेव सचिव निर्वाचित
मैथिली नाट्य संस्था ‘भंगिमाक‘ आम सभाक बैसार पटनामे वरिष्ठ रंगकर्मी कुणालक अध्यक्षतामे सम्पन्न भेल। एहि बैसारमे संस्थानक नव कार्यकारिणीक चुनाव कराओल गेल। निर्वाची पदाधिकारी वरिष्ठ मैथिल समाजसेवी प्रेमकांत झा सर्वसम्मति सँ वरिष्ठ रंगकर्मी कुणालकेँ अध्यक्ष, मोद नारायण झाकेँ उपाध्यक्ष, जयदेव मिश्रकेँ सचिव, उमाकांत झाकेँ कोषाध्यक्ष, मुकुल कुमारकेँ संयुक्त सचिव आ नवेन्दु कुमार झाकेँ संगठन सह प्रचार सचिव निर्वाचित घोषित कएलनि। एहिसँ पहिने बैसारमे अपन विचार रखैत रंगकर्मी आ सामाजिक कार्यकर्ता सभ प्रदेशमे मैथिली रंगकर्मक गतिविधिमे तेजी आनब आ संस्थाकेँ मजगूत करबापर जोर देलनि। बैसारमे कुमार गगन, ब्रहनानन्द झा, लक्ष्मी रमण मिश्र, कमल मोहन चुन्न, रितू कर्ण, प्रियंका सहित कतेको मैथिली रंगकर्मी उपस्थित छलाह।
प्रदेश मे लागु भेल सेवाक अधिकार कानून
स्वतंत्रता दिवसक अवसर पर बिहार सरकार एतिहासिक डेग उठबैत भ्रष्टाचारक सफायाक लेल प्रदेश मे सेवाक अधिकार कानून लागू कऽ देलक। पंद्रह अगस्त सँ लागु भेल भेटि कानून सँ आब जनता के तय समय सीमाक भीतर सरकारी सेवा भेटि सकत। बिहान विधान मंडल पछिला दो मई के एहि कानून के पास कएने छल। सेवाक अधिकार कानून लागु करए बाला बिहार देशक पहिला प्रदेश अछि तीन चरण मे लागु कएल जायबाला एहि कानूनक पहिल चरण मे दस विभागक पचासटा सेवा के एकरा दायरा मे राखल गे अछि आबए बाला समय मे आन सेवा के सेहो एहि कानूनक दायरा मे अनबाक योजना अछि। तय समय सीमा मे काज नहि भेला पर सरकारी कर्मी पर दो सौ पचास टाका प्रति दिनक आर्थिक दण्डक प्रावधान सेहो कएल गेल अछि।
एहि कानूनक दोसर चरण मे एहि सेवाके आन लाइन कऽ देल जाएता कोनो व्यक्ति अपन घर बैसल आवश्यक सेवाक लेल आन लाइन आवेदन कऽ सकताह आ तेसर चरण मे जनता द्वारा देल गेल आवेदनक निपटारा कऽ हुनका घर पर सेवा उपलब्ध करादेल जाएत। ई व्यवस्था अगिला वर्ष छब्बीस जनवरी सँ प्रारंभ होएत। एकर अंतर्गत तत्काल सेवा सेहो प्रारंभ कएल जाएत आ पूरा व्यवस्थाक क आन लाईन मॉनिटरिंगक व्यवस्था सेहो कएल गेल अछि। एहि कानूनक सफल कार्यान्वयनक लेल सभ जिला मे एक-एकटा आईटी प्रबंधक, आआइटी सहायक तथा प्रखण्ड सभ मे एक-एकटा अटेनडेन्टक तैनाती कएल गेल अछि।
बिपिन झा
[एहि लेख केर लेखक बिपिन कुमार झा (Senior Research Fellow), IIT मुम्बई मे संगणकीय भाषाविज्ञान (संस्कृत) क्षेत्र मे शोध (Ph. D.) कऽ रहल छथि। ]
श्रोत्रिय समाजमे रक्तबीजक जन्म
[एहि लेख केर लेखक बिपिन कुमार झा (Senior Research Fellow), IIT मुम्बई मे संगणकीय भाषाविज्ञान (संस्कृत) क्षेत्र मे शोध (Ph. D.) कऽ रहल छथि। ई लेख हिनक वैयक्तिक विचार छन्हि जाहि पर टिप्पणी सादर आमेन्त्रित अछि- kumarvipin.jha@gmail.com ]
श्रोत्रिय समाज कर्तव्यपरायणता, शुचिता आदि केर कारण विशेषरूप स मिथिला में सर्वथा आदरणीय एवं सिरमौर रहल अछि। किछु घर सँऽ प्रारंभ ई समाज यद्यपि आइयो उँगरी पर गिनल परिबार केर समूह अछि किन्तु ई समाज आनुपातिक दृष्टि स जतेक भारतीय ज्ञानपरम्परा के उत्कर्ष में योगदान देलक ओ अनुपमे अछि। संगहि ई समाज व्यावहारिक रूप सँ अपन शुचिता कायमे रखलक।
काल सभ स पैघ होइत अछि। समाज केर निर्माण आ नाश दूनू ओहि समाजक सदस्ये द्वारा होइत छैक। जे समाज अखनहु आधुनिक आ वैश्विक धरातल सँऽ आ स्वयं के वैश्विक गतिविधि सँ समाजक उत्थान कय राष्ट्र केर उत्थान केर दिशा में अग्रसर रहल अछि ओतहि किछु अनचिनहार कारणवश ओ समाज अपन अस्तित्व मेटेबाक हेतु कटिबद्ध जकां बुझना जाइत अछि।
हमेर एहि लेखन केर औचित्य ई अछि जे समाज के कोना बचायल जाय एहि पर लोकक ध्यानाकर्षित करब। ई एहेन समाज अछि जतय अखनहु बहुत रास कुरीति अन्य समाज सँ उधारी नहि लेल गेल अछि। मुदा समेसामेयिक परिप्रेक्ष्य में आनुपातिक दृष्टि सँऽ पारिवारिक विखण्डन आ अशान्ति एहि समाज में रक्तबीज तुल्य प्रसरित अछि!!
कियाक??? कदाचित ई प्रश्न बुजुर्ग आ युवावर्ग दुनू कें कटूक्ति लगतन्हि मुदा समाजक उत्कर्ष हेतु दुनू के ध्यान देनाई आत्यावश्यक छन्हि। विवाह केर प्राचीन स्वरूप सामान्य रूप स 'पूर्वनियोजित ' छल कालान्तर में ई दूटा भय गेल 'पूर्वनियोजित' आ 'स्वैच्छिक’। समेस्या वाइरस जका दुनू में प्रवेश कय गेल अछि। कारण अछि मेहत्त्वाकांक्षा, संवादहीनता, संवेदनहीनता आ नैतिकता केर पतन आदि।
१. स्वेच्छाचारिता-
ई कोनो युवा/युवती द्वारा कियाक कयल जाइत अछि ई प्रश्न कठिन मुदा उत्तर सरल अछि- मेहत्त्वाकांक्षा, सामाजिकचेतना केर अभाव, संवेदनहीनता, आत्मेसुखक वरीयता, नैतिकता केर ह्रास।
स्वेच्छाचारिता उचित अथवा अनुचित?
जाहि समाज रूपी वृक्ष के हमेर पूर्वज संस्कार रूपी जल स अभिसिंचित कयलथि ओकरा अक्षुण्ण रखबाक हेतु ई अवश्य घातक अछि। मुदा जे व्यक्ति एहि तथाकथित संकुचित विचार सं ऊपर उठि चुकल छथि हुनका हेतु उचित। कियाक त ओहि सर्वोच्च स्तर पर नहि त कोनो विवाह रूपी संस्था के आवश्यकता छैक न देश काल पात्र के बन्धन।
समेस्या कतय अछि?
समेस्या अछि वैचारिक संकरता में। कोनो एक पक्ष स्वीकार करबाक चाही। सुर्सुर-मुरमुर दुनू त उचित नहि। यदि हमे एतेक तथाकथित सभ्य आ शिक्षित भय गेलहुं कि समाजक संस्कार संकीर्ण लगैत अछि त पूर्णतः पाश्चात्य विचार केर अनुगमेन करब उचित।
एतय हमे बुजुर्ग के पूछय चाहैत छियन्हि जे सामान्यतया स्त्री के सन्दर्भ में अपन सामाजिक विवशता के दुहाई आ पुरुष के विषय में उदारवादी प्रवृत्ति कियाक?? एकदीस सोलहमे सदी दोसर दीस बाइसमे सदी कियाक?
२. पूर्वनियोजित विवाह-
सामान्यतया एहेन देखल जा रहल अछि जे पूर्वनियोजित विवाह पर सेहो प्रश्नचिह्न लागि जाइत अछि जेकर परिणति होइत अछि विच्छेद, विच्छेदक स्थिति अथवा आजन्मे केर लेल पश्चात्ताप आ समाज सँ शिकायत।
कारण-
बुजुर्ग द्वारा अपन सन्तान के व्यावहारिकतया नैतिकता ओकर पसन्द नापसन्द के प्रति अनवधानता।, वाल्यावस्था स बच्चा के समाज स दूर राखब।, नैतिकता केर व्यावहारिक प्रयोग नहिं होयब।, मेहत्त्वाकांक्षा आ वस्तुस्थिति में असामंजस्य होयब।, अनावश्यक प्रदर्शन अर्थात् बाह्याडम्बर।, अपन सामाजिक स्थिति के भावी दम्पति पर प्रक्षेपण।, समाज स दूर रहब फलतः समाजक मेहत्व के नहि बुझब अस्तु शारीरिक/आर्थिक/मेहत्वाकांक्षीय कारक के मेहत्व देब।, अपन पक्ष में रखबा में संकोच।, अपन अन्तर्मेनक अपेक्षा तथाकथित सभ्य समाजक गप्प सुनब।, दम्पतिक आपसी सम्बन्ध में अन्य/परिवारक हस्तक्षेप करब।, संवेदनशून्यता केर परिचय।
ई लेख यद्यपि कोनो परिवर्तन नहिं आनत मुदा सूतल समाज के एकटा अलार्मे अवश्य देत ।जे ई अलार्मे सुनि उठब त ठीक नहि उठब त कोनो बात नहिं आठ बजे त उठबे करब। तावत धरि बहुत देरी भय चुकल रहत।
(आलेखमेे देल विचार लेखकक निजी विचार छन्हि।- सम्पादक)
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