भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Thursday, September 15, 2011

'विदेह' ८९ म अंक ०१ सितम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४५ अंक ८९) PART III


सत्यनारायण झा
ठुठ पीपर:
ठाढ़ अछि ,पत्र विहीन ,
एकोटा ठाइढ़ नहि ,पात नहि ,
फूल टुस्साक त कोनो कथे नहि,
याद करैत अछि अपन पछिला जिनगी ,
मुदा कहाँ याद अवैत छैक ?
सोचबाक शक्ति त लोप भ’ गेल छैक ,
पुछबो केकरा करतैक ,?
असगरे चौर मे ,बिना बाटक जगह पर ,
कहुना क’ ठाढ़ अछि |
कान एखनो खराब नहि छैक ,
सुनैत अछि लोकक हँसी,
सुनैत छैक लोकक ठटटा,
जे ओकरा देखैत छैक ,कंटेरिये मुस्काइत छैक
एहन सन जे बुझह आब ,
केहन बूरि बनलाह ,
तोरे शीतल छाँह मे सभ आनंद केलक ,
मुदा आब कियो तोरा दिस तकैत छह?
तोरे जइर मे बैसैत छल’ ,
थाकल, प्यासल, रौदायल,सभ तोरे छाह मे आराम करैत छलौंह ,
पहिने तोहू कतेक बलिष्ट छलाह ,सुन्दर ,कांतिमय काया |
जरि बलिष्ट ,कतेक ठाइढ़ ,ठाइढ़ मे सुन्दर ,कमनीय सुललित पात |
दुरे सं लगइक जे कतेक नीक पीपरक गाछ अछि |
सन सनाइत,हनहनाइत ,कतेक बिहारि के देखने ,
तखनो असगरे ठाढ़ ,मुदा समुद्रक लहरि जकाँ,
कनकन,-सनसन करैत ,
लगैक समय सं आगू बढ़बाक पराक्रम
फूल पात सभ लहलह करइत,
लोकक भीड़ ,कियो पायर पर खसइत ,
कियो हाथ जोड़ने ठाढ़ ,सभ नतमस्तक |
मुदा आब तू कतयछह ?
विरान स्थान मे ,
ठुठ गाछ लग जाकय की हेतैक |जरि सुखा गेल छैक |
ठाइढ त’सभटा काइट लेलकै |
बिचला भाग कोकना गेल छैक ,केखन खसतै तेकर ठेकान नहि
अनका शीतल वायु देबय बाला,अपने रौद मे ठाढ़,
ठुठ ,कोकनल |


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
रामदेव प्रसाद मण्डल झारूदार २जवाहर लाल कश्यप
रामवि‍लास साहु

रामदेव प्रसाद मण्डल झारूदार, रामदेव प्रसाद मण्‍डल ‘झारूदार’ , (मैथिलीक भिखारी ठाकुरक नामसँ प्रसिद्ध मैथिलीक पहिल जनकवि रामदेव प्रसाद मण्‍डल ‘झारूदार’क किछु गीत आ झारु प्रस्तुत अछि।-सम्पादक)
प्रार्थना

हे जगतकेँ पालक श्रृजक, हे दुनि‍याँ केर संघारी।
अहाँसँ हमर अतबे प्रार्थणा, हम बनि‍ सत् व्रतधारी।।
बहुत कऽ देलि‍ऐ पहि‍ले अहाँ, कनि‍ये हमरो दि‍यऽ ज्ञान।
काम करए एहन हमर तन, जगमे होइ सबहक कल्‍याण।।
करू ि‍नर्देशि‍त हमरा तनकेँ, काम करए जनहि‍तकारी।
रहए अटल सत् पथपर हरदम, करए नै वि‍चलि‍त दुख भारी।।
सुखमे हम नै होइ मतबाला, हुअए नै हमरा दुखक गम।
दि‍ल भरल रहए सेवा भावसँ, जत्ते करी तत्ते लगए कम।।
मि‍ट जाए अज्ञान अंधेरा, दीप जलए दि‍लमे सुज्ञान।
ब्‍यापए ने हमरा कुरि‍ती, पैदा केलक जकड़ा अज्ञान।।
होइ छै जगमे की मानवता, नैति‍कताक दि‍अ ज्ञान।
दया प्रेमक बना कऽ सागर, नि‍त्‍य करब जग संग स्‍नान।।
करू कृपा जगपर अव्‍यक्‍ता, मेटा दि‍औ दुनि‍याँक रोग।
जाइत धरमसँ मुक्‍त होइ मानव, लोकक भीतर बसल होइ लोक।
मि‍तए मूलसँ सभक गरि‍बी, रहए नै भुखल कि‍यो इंशान।।
होइ उत्थान दबल कुचललकेँ, कुछ प्रकाशु एहन ज्ञान।
हे ि‍नर्देशक सारे जगतकेँ, कुछ ि‍नर्देसु एहन काम।
धरतीपर जे अमर करा दै, उचा कऽ दै जगमे नाम।।

जवाहर लाल कश्यप (१९८१- ), पिता श्री- हेमनारायण मिश्र , गाम फुलकाही- दरभंगा।
अन्नाकेँ समर्पित
ओ चलल पुरनके चालि  
 विसरि गेल कि भेल छल हाल
छण मे धुसर भ गेल सब    
  जे पी देलथि एक हुंकार
अहाँ सम्भरि जाउ        
 इतिहास स्वयं दुहरा रहल
अन्ना एक और जे पी बनि 
 सासन के नींव हिला रहल
 एक आन्हर ध्रितराष्ट्र सदिखन
  पुत्र-मोह मे फसल रहल
चारुकात मचल महाभारत     
 मृत्यु ताण्डव करैत रहल
दोसर हम्मर मोहनजी 
 जे मन के नहि मोहि सकल
गद्दी-मोह मे फसि   
सुधि-बुधि अप्पन खो चुकल
भ्रष्टाचारक राज्य भेल  
ओ चैन स सुतल रहल

रामवि‍लास साहु
कवि‍ता-

अरमान

दू पाटनक बीच
सभ पीसाइ समान
सभ अरमान-आंसू
संगे बहि‍ गेल
तेजाबी बरखा संग
नुनगर पानि‍मे
वि‍शाल समुद्रमे वि‍लि‍न
जि‍नगीक गाड़ी डूबि‍ गेल
सभ अरमान-आंसू
संगे बहि‍ गेल
जन्‍मक उद्देश्‍य
नै रहल कोनो ठेकान
रूकब कतए नै कोनो मकान
सोचै छलौ-
दुनि‍याँमे करब पैघ-पैघ काज
मानव-दानवक बीच
पि‍साइत-पि‍साइत भऽ गेलौं
बेकाम राख समान
दुख-सुख दू पाटनक बीच
जि‍नगी ‍नि‍त्‍य पि‍साइत
भूलि‍ गेलौं अपन उद्देश्‍य
नै कए सकलाैं
कोनो नाम नि‍शान
जि‍नगीक गाड़ी रूकि‍ गेल
दू पाटनक बीच
सभ अरमान आंसू
संगे बहि‍ गेल।

                     

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१.डॉ॰ शशिधर कुमर आनंद कुमार झा ३नवीन कुमार "आशा"
  ४.प्रभात राय भट्ट
  १.
डॉ॰ शशिधर कुमर,                                    एम॰डी॰(आयु॰) – कायचिकित्सा, कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी – प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) - ४११०४४

       
                                

बरसातक एक राति
असित  अन्हार  डेराओनि  राति ।
                             झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।

अछि अस्त सूर्य आ धुमिल चान ।
घूमय नभ मे  चहुदिशि  जलधर ।
करय गरजि गरजि कऽ मेघ नाद ।
रहि रहि चमकए  चपला चञ्चल ।
बहए सुरभित शीतल रम्य बसात ।
                            झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।

प्रेमीक विछोह,  प्रेमिकाक  क्षोभ ।
मयूरक खुशी  अह्वलादित  नर्तन ।
गर्मी  सँ  त्रस्त – पाओल  राहत ।
करय  जीव पावसक अभिनन्दन ।
पाओल राहत सभ कृषक समाज ।
                            झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।

उमड़ल पोखड़ि, नदी, ताल,सड़सि ।
हर्षित ओ जन्तु जे जल सञ्चारी ।
करए  दादुर, जोंक, साँप, सहसह ।
पसरल  सौंसे  धरती  पर चाली ।
बहए माटि – पानि दुहु एक साथ ।
                            झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।

पावस   राति - ई   कारी  घोर ।
पुरिबा – पछबा  से    बड़  जोड़ ।
भेल  भोर,  पर   रौद   मलीन ।
सूर्य  जेना  निज  शक्ति  विहीन ।
कहुँ – कहुँ  हंसक  उनमुक्त पसार ।
                           झमकि झमकि बरिसय  बरसात ।।
नभ श्याम, धरा श्याम, सभ श्यामल श्यामल

आयल साओन मास सोहाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
लागय आजु  धरा मनभाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।

छल छल बहइ’छ श्यामा सरिता ।
भेल मलिन मुख देखि ई सविता ।
बहु विधि सजल धजल वृंदावन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
आयल साओन मास सोहाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।

मन्द पवन सखी वसन हिलावय ।
मन मानस  मोर मदन जगावय ।
बाजय छमकि छमकि पायलिया,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
लागय आजु  धरा मनभाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।

सभ सखि मीलि चलू रास रचायब ।
कदमक डाड़ि मे  हिरला  लगायब ।
बजओता माधव मधुर मुरलिया,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।
आयल साओन मास सोहाओन,
                         कि चलु सखी , चऽलू ने सखी ।।



आयल साओन मास सोहाओन
नभ श्याम,  धरा श्याम,  सभ श्यामल श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।

सुनि   मुरलीक  तान ।
एलीह राधा ओहि ठाम ।
प्रीति  सरिता  मे  डूबि, भेलीह  राधहु श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।

श्याम श्यामक शरीर ।
श्याम यमुनाक  नीर ।
पहीरि साँझक कलेवर , भेलीह  वसुधहु श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।

छवि सुन्नर सहज ।
मूँह रक्तिम जलज ।
रक्त कंज बीच खिलल  युगल  श्यामल  कमल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।

श्याम अलकक कुञ्ज ।
जेना भ्रमरक हो पुञ्ज ।
भासि राहु कोर,  चान  सेहो  श्यामल श्यामल ।
आइ  लगइ’छ  प्रकृति  श्याम  रंग  मे  रँगल ।

घीरि आयल  पयोद ।
देखू नचइ’छ कामोद ।
छूबि श्याम, श्याम, श्याम भेल अनिलहु श्यामल ।
नभ श्याम,  धरा श्याम,  सभ श्यामल श्यामल ।


 

आनंद कुमार झा
हमरा भेटल एक टा चिट्ठी,
किछु नुनगर किछु छल खटमिट्ठी,
छल लिखल दू-दू हाथ तूँ कऽ ले,
अपन ताकत आजमाइस तूँ कऽ ले।

पहिले हम मोनमे मुसकेलौं,
चौबीस घंटा बाद हम गेलौं,
सोचलौं संगी सभ की जाएत,
हमरा देखते ओकर भूत पड़ायत,

कदम पड़ैत ओ चोर नुकाएल,
देलौं लात बिलसँ बहरायल,
जाइत देरी ओ छोड़लक फोंफ,
झट धेलौं हम ओकर झोंट।

बाप बाप कऽ केलक चित्कार,
सुनू सुनू मिथिला दरबार,
पएर पड़ै छी सभ गोटे कऽ,
सभ सुनू ई करुण पुकार।

चेला ओकर खूब मुसकायल,
मारिक डरे गुरु पड़ायल,
गुरुजी लागल गरियाबऽ
कनही पिल्ली जेना चिचियाबए,

भागिते ओकर ढेका खुजल,
लागै जेना कुनो बिलाड़ि भीजल,
मुँह धऽ ओकरा खूब थोपड़ेलौं,
मिथिलाक हम मान बढ़ेलौं।

मिथिलाक ई नाम डुबेलक,
झूठे-मुठे घाम चुएलक,
कहलक हम छी बड्ड प्रतापी,
लेकिन अछि ई खल संतापी।

अपनाकेँ बुझए लाल बुझक्कर,
एकरासँ ज्ञानी अछि खच्चर,(जानवर)
कौआ सन हरदम चिचियाय,
गीदर सन सौंसे हुलकाय।

बागर जकाँ मुह लगै छै,
चुहरमल सन काज करै छै,
गिरगिट सन ओ रंग बदललक,
मैथिलक ओ पाग खसेलक।

कहलक हम छी मैथिल महान,
लेकिन अछि छांटल शैतान,
आनंदक सभ सुनु ई वाणी,
नादिमे धऽ बनेलिऐ सानी।

आनंदसँ भागी के कते पड़ायत,
त्रिभुवनोंमे बाट ने पायत,
जेना जयंत गेल पुनि राम शरण,
ओहो आयत पुनि हमर शरण।


(ई रचना कुनो व्यक्ति विशेषक लेल नै अछि, ई मात्र हृदयसँ निकलल एक टा उद्गार मात्र अछि। एकरा पढ़ी एवं पढ़ि कऽ खूब आनंद उठाबी।)
नवीन कुमार "आशा"
बाबा धामक रस्तामे किछु कविता लिखाइत अछि
बाबाक दरबारमे लगेलौं अपन अरजी,
कहल बाबाकेँ सुनू यौ बाबा आस लगने आयल छी..
स्वीकार करु पुत्रक अरजी हरु ओकर सभ व्याधि..
बाबासँ हएत भेँट ..गप करब भरि पेट ..
बस किछु दूर छी बाबासँ, मुदा नै अछि चित स्थिर..
कहै अछि करुणापूर्वक नवीन पूरा करियौ बाबा ओकर आस..
बोले बम
बाबा केहेन तोहर लीला अदभुत् तोहर खेल..
एक बेर हमरो दर्शन दए
आस लगौने आएल छी...
बोल बम…
जँ अपनाकेँ देखब हेय आँखि सँ ..
नै पायब किनको सम्मान
जँ अपन मान अपने नै राखब
कहियो नै पाबि सकब सम्मान....
अपन पहचान अपने बनाउ
फेर माए बापक मान बढाउ
कष्ट अछि मुदा हँसै छी
नै लागनि माए बाबूकेँ बौआ अछि हमर दुखी...
आशाक ई अछि अनुभव दुख जँ होयत ओइमे भेटत सुखक अंश,
की हमर ई गप अछि गलत...
हँसै छी दुख भगाबै लेल..
भगवान आशा अछि अहाँ सहारा देब....
कखनो-कखनो एहेन लगै अछि..
अंदर अंदर मोन कनै अछि
देखल जे हम सपना कि ओ बनि पाओत आशाक अपना.....
राति हो वा दिन बस एकटा बातक राखह ध्यान
 जावे छह तोरा मे पराण तावे राखह माता पिताक ध्यान..
की लिखू नै मोन करै अछि
तखनो जँ अपने जिद करै छी
तँ अपनेकेँ प्रणाम करै छी।
अविस्मरणीय

कोना कँ करि हुनक बखान
जिनक जीचन में अमूल्य योगदान
हुनक रहे सदिखन ध्यान
जीचन मे हुनक अलग स्थान
दूर रहियो के पास छथि
एहसास छथि आ हृदय पास छथि
जखन छलौ हम टुगर
नै देलक जखन कियो संग
तखन देलथि ओ आसरा
कोना ओकरा बिसरी जाए
जँ ओ ने देतथि संग
कि पबितो इ सम्मान ?
एहसास छथि आ हृदय पास छथि
जखन लोक करे अपमान
ओहि ठाम हुनका सँ पाबि मान
कोना हुनक कर्ज तोड़ब
जिनक हम छीक सदिखन ऋणी
एहसास छथि आ हृदय पास छथि
जखन हम करे छलौ विलाप
कानै लेल दएलथि कनहा
जखन नहि छल ककरो सँ आस

ओ बनलथि हमर प्रकाष
जा धरि रहत इ प्राण
नहि बिसरब हुनका आ
सदिखन रहत हुनक ध्यान
कोना करू हुनक बखान
जिनक अछि हृदय मे सम्मान
एहसास छथि आ ........................
(मिन्न पी. एस. सिंह. ठाकुर आ भाई श्री मनीष बौआ भाई केँ समर्पित)

४.

प्रभात राय भट्ट
चलैतछी डगैर पैर

चलैतछी डगैर पैर शुद्ध मन वचन कर्म सं
गबैतछी गीत हम अपन ईमान धर्म सं
वैदेहीक जन्मभूमि  राजर्षि जनक के गाम 
मिथिलाक हम  वासी वास हमर जनकपुरधाम
जग में सुन्दर अछि इ नाम जय जय जय मिथिलाधाम

मिथिलाक जन जन मैथिल मथिली हमर भाषा
पुनह पुनह जन्म ली मिथिलेमें इ हमर अभिलाषा
उत्तर हिमगिरी हिमालय दक्षिण पावन पतित गंगा
कोशी गंडक  जनकपुर  चाहे   बसु दरभंगा  
इ समस्त भूमि अछि मिथिला जय जय जय मिथिलाधाम

दया धर्म हृदय में राखी मिथिलाक जन जन मैथिल
सौहार्द्य वातावरण सृजन करी मिथिलाक जन जन मैथिल
जातपातक भेदभाव सं दूर रही मिथिलाक मैथिल
हिन्दू करैय मुस्लिमके सलाम मुस्लिम  हिन्दुकें प्रणाम
डोम घर दहिचुरा खेलैथ पाहून राम जय जय जय मिथिलाधाम

हम नै ज्याब आब मेला अकेला

यौ  पिया हम नै ज्याब आब मेला अकेला

मेलामें देखलौं पिया बड बड अजगुत खेला
आदमी पैर आदमी रहे ठेलमठेल
बिचमें छौडा सभ करैत  धुरमखेल
यौ पिया हम नै ज्याब आब मेला अकेला २

दरुपिबा सभ केलक बड़ा हुलदंगा
केलक हमरा छेड़खानी लुचालाफंगा
कियो मारैय टिहकारी कियो मारैय पिहकारी
मटकी माईर माईर बोलाबे हमरा छौडाछेबारी
यौ पिया हम नै ज्याब आब मेला अकेला २

प्रेमी मग्न भेल गाबैत रहे पिया मल्हार
चोरबा लक भागल ओकर गिरमल्हार
कान ककरो चिरल नाक रहे फारल
चाई चंडाल गहना लक सभटा भागल
यौ पिया हम नै ज्याब आब मेला अकेला २

गंजा भांग पिने बुढ्बो अपने मोन मतंग
बड बड लीला भेल कनिया बहुरियाक संग
छौडा सभ केलक पिया हमरो बड तंग
आँखी सं देख्लौ पिया ई सभटा खेला
यौ पिया हम नै ज्याब आब मेला अकेला

हैंस दिय कनियाँ

हैंस दिय हैंस दिय कने  हैंस दिय कनियाँ

देखू लौनेछी कनियाँ अहांलेल पैरक पैजनिया
महफा में बैठ चलू कनिया आई हमरा अंगना 
अहांके अईन्देव सजनी हम जयपुर के कंगना

कान दुनु सोन हम अहांके देव रे झुलनियाँ
नाकमें देव रे सजनी सानिया कट नथुनिया
छम छम बाजैय गोरी अहांक पैरक पैजनिया
लाखोमें एक अहां छि हमर सुनरी दुल्हनिया

खन खन खन्कैय अहांक  हाथक चुरी  कंगना
चलू चलू  चलू  कनियाँ  यए आई हमरा अंगना
मोती जडल लहँगा पैर लाले लाल चुनरिया
लागैछी अहां धनि पूर्णिमाके चाँद सन दुतिया

हैंस दिय हैंस दिय कने  हैंस दिय कनियाँ
देखू लौनेछी कनियाँ अहांलेल पैरक पैजनिया
अहाँ लेल मोन हमर कटैय दिन राईत अहुरिया
माईनजाऊ बात गोरी कहैय प्रभात जनकपुरिया


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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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