१.चेतना समिति, पटना समाचार/ २.खूजत अलग मिथिला प्रदेशक द्वार? छोट प्रदेशक समर्थन कएलनि मुख्यमंत्री (रिपोर्ट नवेंदु कुमार झा)२.उमेश मण्डल-१.‘मैथिली भाषाक दशा ओ दिशा’पर परिचर्चा २. महाकवि पण्डित लालदास जयन्ती समारोह ३. संजीव कुमार ‘शमा’- महाकवि पं. लालदास जयन्तीत समारोह १. नवेंदु कुमार झा) 01. अस्तित्वक लड़ाई लड़ैत सम्पन्न भेल स्मृति पर्व
चेतना समिति द्वारा आयोजित अंठाबनम् विद्यापति स्मृति पर्व समारोह सम्पन्न भऽ गेल| त्रिदिवसीय एहि समारोहक अवसरपर तीन दिन धरि राजधानी पटनाक मिथिलावासी मिथिलाक कला, संस्कृति खान-पानक रसास्वादन क' संगहि गीत-संगीतक आनन्द उठौलनि। मुदा नब्बेक दशकसॅ पहिने राजधानीक मिथिलवासीक लेल पाबनि बनल ई समारोह आब चेतनाक मात्र औपचारिकता भेल जा रहल अछि। आयोजनक घटैत स्तरसॅ जतए मैथिली भाषीक एहि समारोहक प्रति रूचि घटि रहल अछि ओतहि चेतना समिति सेहो एहि आयोजनकें बंद करबाक रणनीतिपर चलैत एहि तरहक कार्यक्रम सभ रखैत अछि जे दिन पर दिन उपस्थिति कम भऽ रहल अछि। ई चेतनाक सौभाग्य अछि जे पछिला तीन चारि वर्ष सॅ तीनू दिनक कार्यक्रम समाप्ति कऽ घोषणा सॅ पहिनहि कार्यक्रम स्थल खाली भऽ जाइत अछि आ ई संभव अछि जे आबए बाला समय मे चेतना समितिक ऊर्जावान सक्रिय अधिकारी आ कार्यकर्ता सभ तीनू दिन स्वयं धूनि रमा बाबा विद्यापतिकें गोहार लगौताह।
बिहारक राजधानी पटना मे अठाबन वर्ष पहिने मैथिल आ गैर मैथिलके मिथिलाक कला संस्कृति आ माटि सॅ जोड़बाक लेल बाबा नागार्जून सहित आन कतेको मैथिल धरती पुत्र चेतना समितिक गठनक विद्यापति स्मृति पर्व परम्पराक प्रारंभ कएने छलाह जे बाद मे पटनाक मैथिल आ गैर मैथिलक मध्य ततेक लोकप्रिय भेल जे लोक नव वर्षक कलैन्डर अएलाक बाद आन पाबनि जकां विद्यापति पर्व समरोहक तिथि जरूर तकैत छलाह। मैथिली भाषीक मध्य ई समारोह ततेक लोकप्रिय भेल जे पटनाक हार्डिक पार्कक मैदान छोट पड़ि जाइत छल मुदा आब तऽ विद्यापति भवन हॉल आ मगध क्लबक मैदान पैघ भऽ रहल अछि। राजनीतिक क्षेत्र मे एहि समारोहक ई स्थिति छल जे सभ दलक नेता एहि मे अपन उपस्थिति दर्ज करैबा लेल बेचैन रहैत छलाह। शहरि भरिक मैथिलक एहि जुटान मे कतेको कन्यादान आ वरदान सांस्कृतिक कार्यक्रमक आनन्दक मध्य गपसप मे अंतिम रूप लैत छल।
पछिला दू दशक मे चेतनाक ई आयोजन ओकर असफलताक कहानी गढ़ि रहल अछि हालांकि समितिक पदाधिकारीक एहि संदर्भ मे जबर्दस्त तर्क छनि आ ओहि सॅ सहमत होएब हमरा सभक मजबूरी | समितिकक मानब अछि जे टीवी इंटरनेट आदि मनोरंजन बढ़ैत साधनक कारण एहि समारोह मे उपस्थिति कम भऽ रहल अछि आ एहि तर्क सॅ भला के मना कऽ सकैत अछि। शायद समितिक जनतब नहि अछि जे आइयो दरभंगा, कोलकाता, जमशेदपुर, बोकारो आदि आब कतेको ठाम विद्यापति पर्व समारोह आयोजित भऽ रहल अछि आ एकर प्रेरणाक स्रोत चेतना समिति अछि, ओतए एखनो अपन कला संस्कृति गीत-संगीत सॅ मैथिलीभाषी के अरूचि नहि भेल अछि।
दरअसल एहि आयोजनक प्रति घटि रहल रूचिक कारण चेतना समितिक मठाधीश छथि जे बाबा विद्यापतिक नामपर बनल मठपर प्रतिदिन सांझ देखा अपन कलैन्डरक अनुसार कार्यक्रम आयोजित कऽ काज समाप्त बुझैत छथि। समिति पछिला दू दशक सॅ प्राइवेट लिमिटेड कम्पनीक जकां काज कऽ रहल अछि। सहकारिताक नीक जनतब राखए बलाक नियंत्रणमे ज्यों कोनो संस्था के प्राइवेट लिमिटेड बना देल जाए तऽ ओकर ई हाल होएब स्वाभाविक अछि। समितिक वर्तमान कार्य प्रणाली आ विद्यापति स्मृति पर्वक वर्तमान स्थिति देखि बाबा नागार्जूनक आत्मा के सेहो ग्लानि होइत। आब तऽ स्थिति ई अछि जे तीनू दिनक कार्यक्रमक उद्घाटक, मुख्य अतिथि, कलाकार आ दर्शक फिक्सड भऽ गेल छथि। कार्यक्रम देखबा सॅ बेसी उत्सुकता आब भेट करबाक रहैत अछि। किछु लोक एखन होइत छथि जे एहि समारोहक दरमियान भेट होइत छथि आ भेटक बाद गपसप कऽ लोक आपस अपना घर दिस बिदा भऽ जाइत छथि। पहिने एहि समारोहक उद्घाटन बिहारक राज्यपाल सॅ करैबाक परम्परा छल आ एहि समारोहक एतबा महत्व छल जे राज्यपाल आ मुख्य मंत्री एहि समारोहक लेल अपन समय सुरक्षित रखैत छलाह मुदा बिहारक राजनीति बदललाक संगहि परिस्थिति सेहो बदलल आ तखन विद्यापति स्मृति समारोहक स्वरूप बदलब स्वाभाविक अछि। हालांकि समिति अपन परम्पराकें फेर सॅ प्रारंभ कएलक आ कतेको वर्षक बाद एहि वर्ष समारोहक उद्घाटन बिहारक राज्यपाल देवानन्द कुंवर कएलनि।
समितिक सभसॅ महत्वपूर्ण एहि कार्यक्रमक घटैत लोकप्रियताक लेल समितिक कार्य प्रणाली जिम्मेवार अछि। लोकतांत्रिक व्यवस्थासॅ समिति चलैबाक नामपर जे वर्तमान कार्यकारिणी बनल अछि ओ बिहारक पन्द्रह वर्षक कुशासनक याद दिया रहल अछि। हमरा सभक लेल सौभाग्यक बाद अछि जे पहिल बेर एकटा योग्य महिला अध्यक्ष प्रमीला झाक नेतृत्व मे ई आयोजन भेल। प्रमीला झा योग्य मैथिलानी छथि मुदा समितिक अध्यक्षक पद पर बैसा पर्दाक पाछासॅ समितिक सत्ताक संचालन कोनो तरहे लोकतांत्रिक आ सहकारिताक मूल भावनाक अनुरूप नहि अछि। संगहि समितिक संवैधानिक बाध्यताक कारण महिलाक अध्यक्ष बनाएब आ ओहिमे मिथिल आ मैथिलीक प्रति समर्पित मैथिलानिकें कात करब समितिक नियम पर प्रश्न चिन्ह ठाढ़ करैत खैर, सभ वर्ष जकां अहू बेर पटनाक मैथिल समाज तीन दिन धरि मिथिलाक माटि संग जुड़ि अपन कला संस्कृति, गीत-संगीतक प्रति समर्पण देखौलक मुदा अस्तित्वक संकट झेलि रहल एहि समारोहमे नव दर्शक आमद होएत आ पुरान गरिमाकें स्थापित कऽ सकत एकर कल्पना तऽ वर्तमान नेतृत्व सॅ नहिए कएल जा सकैत अछि।
02. ग्लोबल भेल चेतना
चेतना समिति आब ग्लोबल भऽ गेल अछि। त्रिदिवसीय विद्यापति स्मृति पर्वक उद्घाटनक अवसरपर राज्यपाल देवानन्द कुंवर चेतना समितिक बेवसाइटक उद्घाटन कएलनि। देश-विदेशक कोनो कोन सॅ मिथिलावासी www.chetnasamiti.org लॉग इन कऽ समितिक गतिविधि जानि सकैत छथि। समिति एहि माध्यम सॅ प्रवासी मैथिल समाजक विवाह समस्याक समाधानक लेल विवाह योग्य वर कन्याक जनतब सेहो उपलब्ध कराओत राज्यपाल एहि अवसर पर समितिक स्मारिका आ कतेको पुस्तकक विमोचन सेहो कएलनि।
03. मंचित भेल नाटक
विद्यापति स्मृति पर्व समारोहक समापन नाटक मंचनक संग भेल, एहि अवसर पर प्रति वर्ष नाटकक मंचन होइत अछि। एहि वर्ष महिला लेखिका विभा रानी लिखित आ कमल मोहन चुन्नू निर्देशित नाटक ‘‘मदति करू माता’’ क मंचन भेल। प्रचलित मैथिली नाटकक विषय वस्तु सॅ हटि नव विषय वस्तुक संग प्रस्तुत ई नाटक लेखक आ निर्देशकक योग्यता आ क्षमताक अनुरूप नहि छल मुदा कलाकार सभ अपन अभिनयक माध्यम सॅ उपस्थित दर्शकक मनोरंजन करए मे सफल रहल।
04. राजकीय समारोहक रूप मे मनल विद्यापति पर्व
महाकवि विद्यापतिक जयंती राजकीय समारोहक रूप मे सेहो मनाओल गेल, श्रीकृष्ण स्मारक भवन परिसर मे आयोजित कार्यक्रम मे उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, बिहार विधान परिषद्क सभापति पंडित ताराकांत झा, खाद्य आपूर्ति मंत्री श्याम रजक, विधायक पूनम देवी सहित कतेको गणमान्य लोक महाकविक चित्र पर माल्यार्पण- श्रद्धांजलि अर्पित कएलनि, बेगूसरायक बरौनीक सिमरिया मे आयोजित अर्द्धकुम्भ मे सेहो उत्साहक संग विद्यापति पर्व समारोह मनाओल गेल।
05.सम्मानित भेलाह विद्वान आ संस्कृतिकर्मी
चेतना समिति द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय विद्यापति स्मृति पर्व समारोहक उद्घाटनक अवसर पर कतेको सम्मान आ पुरस्कार सेहो देल गेल। एहि अवसर पर समितिक स्मारिका आ आन पुस्तकक विमोचन सेहो भेल। राज्यपाल देवानंद कुंवर कतेको विद्वानकें सम्मानित कएलनि। राज्यपाल आ पूर्व मुख्यमंत्री डा0 जगन्नाथ मिश्र संयुक्त रूप सॅ स्मारिका आ पुस्तकक विमोचन कएलनि। नाटक मे नीक अभिनय आ सर्वश्रेष्ठ महिला कलाकारक पुरस्कार बुद्धिनाथ मिश्र मिश्र देलनि आ कला संस्कृति आ युवा मंत्री बाल मेला मे विजय भेल नेना सभकें पुरस्कार देलनि।
06. चेतना समितिक सम्मान - 2011
संस्कृति साहित्य सम्मान- डा. रामजी ठाकुर
मैथिली साहित्य सम्मान- मोहन भारद्वाज
संगीत नृत्य नाटक सम्मान- कुणाल
मिथिला चित्रकला सम्मान- दुलारी देवी
विशिष्ट अवदान सम्मान- महेन्द्र हजारी
चेतना सेवी सम्मान- धर्मनाथ झा
कीर्ति नारायण मिश्र साहित्य सम्मान- अजीत आजाद
यात्री चेतना सम्मान- राम भरोस कापड़ि भ्रमर (जनकपुर)
सुलभ सेवा सम्मान- मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति (गुवाहाटी)
डा. माहेश्वरी सिंह महेश ग्रंथ पुरस्कार- प्रवीण कश्यप
डा. महेश्वरी सिंह महेश निबंध पुरस्कार- सुश्री श्वेता भारती (भागलपुर)
यशोदा देवी मिथिलाक्षर लेखन पुरस्कार- सुश्री मुक्ति रंजन झा
सिद्धेश्वरी देवी मैथिली संस्कार गीत पुरस्कार- रेखा झा
श्रीमती शैलवाला मिश्र स्मृति पुरस्कार- आशुतोष अभिज्ञ (सर्वश्रेष्ठ कलाकार नाटक)
कामेश्वरी देवी पुरस्कार- रितू कर्ण (सर्वश्रेष्ठ महिला कलाकार नाटक)
07. प्रारंभ भेल नव परम्परा
त्रिदिवसीय विद्यापति स्मृति पार्क समारोहक तीनू दिनक कार्यक्रमक प्रारंभ गोसाउनिक गीत जय-जय भैरविसॅ होइत रहल छल। मुदा एहि वर्ष समिति एकटा नव परम्परा प्रारंभ कएलक। समारोहक उद्घाटन सत्र एहि वर्ष राष्ट्रीय गीत जन गण मन सॅ प्रारंभ कऽ एकटा नव परम्परा प्रारंभ कएलक। जखन कि समारोहक समापन समदाउन सॅ होइत छल जे एहू वर्ष नहि भेल।
08. आयोजित भेल पुस्तक आ चित्रकला प्रदर्शनी
विद्यापति स्मृति पर्वक अवसर पर समारोह स्थल पर पुस्तक मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी लगाओल गेल, एहि प्रदर्शनी मे लागल कतेको पुस्तक स्टॉल पर मैथिली भाषी मैथिली भाषाक दुर्लभ साहित्य, पत्र-पत्रिका आ मैथिली गीतक सीडी आ मिथिला चित्रकलाक अवलोकन आ खरीद कएलनि। मिथिलांचलक विशिष्ट पहचानक पानक बिक्री सेहो खूब भेल। मैथिल ललना सभक व्यंजनक मेलाक रसास्वादन लोक सभ जमि कऽ कयलनि।
09. राज्य गीत सॅ मिथिला निपत्ता, सरकार पर दबाब बनौलक समिति
बिहारक शताब्दी वर्षक अवसर पर राज्य गीतक युग चयन बिहार सरकार कएलक अछि। एहि गीत मे मिथिलाक सामाजिक सांस्कृतिक झलकक एकहुटा शब्द नहि अछि। चेतना समितिक सचिव विवेकानन्द ठाकुर एहि पर चिन्ता प्रकट करैत मिथिलावासी दिस सॅ प्रदेश कला संस्कृति आ युवा मंत्री सुखदा पाण्डेयक ध्यान एहि दिस खिचलनि। श्री ठाकुर मंत्री सॅ आग्रह कएलनि जे सरकार मिथिलावासीक जनभावनाक सम्मान करैत एहि राज्य गीत पर फेर सॅ विचार करए।
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II
खूजत अलग मिथिला प्रदेशक द्वार? छोट प्रदेशक समर्थन कएलनि मुख्यमंत्री
बिहारक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार छोट प्रदेशक समर्थन कएलनि, सेवा यात्रापर जाइसॅ पहिने पटनामे श्रीकुमार कहलनि जे- सिद्धांत रूपसॅ छोट प्रदेशक समर्थन करैत छी मुदा ई मामिला केन्द्र आ राज्यक मध्यक अछि। नीतीश कुमारक एहि बयानक बाद अलग मिथिला राज्यक आशा बढ़ल अछि। ज्यों विकास आ प्रशासनिक दृष्टिए उत्तर प्रदेशक चारि भागमे बटबाराक प्रति श्री कुमार अपन सहमति दऽ रहल छथि तँ अलग मिथिला राज्यक लेल सेहो हुनका आगाँ अएबाक चाही।
मिथिला राज्यक मांग कोनो नव नहि अछि। आजादीक बादे अलग प्रदेशक मांग होइत रहल अछि मुदा मिथिलाक संस्कृति, संस्कार आ माटिमे ओ तेजी नहि देखाओल जे झारखंड, उत्तराखंड आ छत्तीसगढ़मे देखाओल। मिथिलाक लोक शांतिप्रिय छथि आ सादगीक संग अपन बात सरकारक सोझा रखैत रहलाह अछि जकर परिणाम अछि जे स्वतंत्राक 64 वर्षक बादो रौदि आ बाढ़िक शिकार बनल अछि आ अपन माटिकेँ छोड़ि पेटक आगिकेँ शांत करबाक लेल प्रवासी बनि अनकर भविष्य सुधारि रहल छथि। ई दुर्भाग्य अछि जे गोटेक चारि दशक धरि मिथिलाक पुत्रक हाथ मे सत्ताक डोरि रहल मुदा मिथिलाक नोर पोछबाक कोनो प्रयास नहि भेल। पछिला दू दशक रणनीति दृश्य देखी तँ स्पष्ट अछि जे कुशासनक डेढ़ दशकमे विकासक मतलब सारण छल आ एखन पछिला छह वर्षमे विकासक मतलब नालन्दा भऽ गेल अछि, मुदा मिथिला पुत्र सभ मिथिलाकेँ विकासक केन्द्र नहि बना ओकरा अपन राजनीतिक शतरंज बना देलनि जकर परिणाम आइ सोझाँ अछि आ बिहारक राजनीतिमे चारू खाना चित्त भऽ बौक बनल अपन कुर्सी बचबऽ लेल दुहाइ सरकार कऽ रहल छथि।
मुख्यमंत्रीक ई विचार एहन समय मे आएल अछि जखन देशमे छोट प्रदेशकेँ लऽ कऽ राजनीति गर्माएल अछि। ई उचित समय अछि जखन मिथिला राज्यक समर्थक सड़कपर उतरथि। किएक तँ बिहारक संग रहने मिथिलाक विकास होएब संभव नहि अछि। एकर उदाहरण संयुक्त बिहार अछि। संयुक्त बिहारमे विकासक धार दक्षिण बिहार (आब झारखंडमे बहैत छल तहिना एखन विकासक मतलब सेहो दक्षिण बिहार (यानि नालन्दा) भऽ गेल अछि। एतबा नहि बिहारक स्थापनाक शताब्दी वर्षमे चुनल गेल राज्य गीतमे सेहो मिथिला लापता अछि। जखन गीतक लेखक खांटी बिहारी होथि तँ भला हुनका मिथिला किएक सुझतनि। तें आब तँ सरकार सेहो मिथिलाकेँ बिहारक अंग नहि मानैत अछि। सरकारकेँ बाबू कुंवर सिंहक गुणगान स्वीकार अछि। मुदा मिथिलाक विभूति महाकवि विद्यापति, दीना-भद्री, लोरिक सलहेस, मंडन, आयाचीक जनतब नहि अछि। ज्यों एकर जनतब बिहार सरकारक विद्वान निर्णायक मंडलीकेँ रहैत तँ ओ भला मिथिलाक एहि महान विभूति सबहक उपेक्षा कऽ लिखल गेल गीतकेँ राज्य गीतक रूपमे कन्नहु स्वीकृति नहि दैत।
आब समय आबि गेल अछि। उत्तर प्रदेशक मुख्यमंत्री चुनावक समय छोट प्रदेशक तुरूपक पत्ता भने अपन राजनीतिक उद्देश्यक पूर्तिक लेल फेकलनि अछि मुदा बिहारक मुख्यमंत्री नीतीश कुमारक छोट प्रदेशक समर्थन अलग मिथिला राज्यक निर्माणक दिशामे मीलक पाथर साबित भऽ सकैत अछि। मुदा एहि लेल प्रयास करऽ पड़त किएक तँ नेनाकेँ कनने बिना माय सेहो दूध नहि पिअबैत अछि तँ भला बिहार सरकार आ केन्द्र सरकार सादगी, सदाचार आ शांतिसॅ बैसल रहलापर अलग प्रदेश बनाओत ई असंभव अछि।
२
उमेश मण्डल १.‘मैथिली भाषाक दशा ओ दिशा’पर परिचर्चा २. महाकवि पण्डित लालदास जयन्ती समारोह
१
‘मैथिली भाषाक दशा ओ दिशा’पर परिचर्चा
मिथिलांचल विकास परिषद, लहेरियासराय आ मिथिला संघर्ष समिति दरभंगाक संयुक्त तत्वावधानमे दिनांक 8 नभम्बर 2011 तदनुसार मंगल दिन बेरूपहर दू बजेसँ परिचर्चाक आयोजन कएल गेल छल। परिचर्चाक विषए रहए- ‘मैथिली भाषाक दशा ओ दिशा’
सीतायन, दरभंगामे आयोजित परिचर्चामे वक्ता लोकनि महत्वपूर्ण विचार रखलनि।
मुख्य वक्ता डॉ. भीमनाथ झा कहलनि, कवि कोकिल विद्यापति अपन मातृभाषाक विषएमे काव्यभिव्यक्तिक क्रममे कहने छथि- बालचंद विज्जावई भाषा दुई नऽ लग्गई, दुज्ज्न हासा..। इत्यादि कहैत विद्यापतिक भाषानुरागक विस्तृत व्याख्या केलनि।
परिचर्चाक अध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद मण्डल कहलनि- “मिथिला आ मैथिली भाषाकेँ हमसभ कुचलल आ कमजोर किअए बुझै छी। यूरोपक दर्जनो प्रमुख देश आ ओकर भाषा एहेन अछि जे दुनियाँक बीच अपन पहिचान बनौने अछि, जहन की ओकर जनसंख्या आ क्षेत्रफल हमरा सभसँ माने मिथिलांचलसँ बहुत कम अछि?
अपना ऐठाम तँ क्षेत्रे आ जनसंख्येक पाछू तेहन वैचारिक ओझरी लागल अछि जे सभ रस्ते-पेरे बौआइ छी। जमीनी भाषा मैथिली छी, जते दूरमे मैथिली बाजल जाइए ओ मिथिला भेल। जहिना आनो-आनो क्षेत्रमे मातृभाषाक अतिरिक्तो भाषा बजलो जाइए आ पढ़ौलो-लिखौल जाइए, तहिना अहूठाम अछि। तहूमे हिन्दी तँ राष्ट्रभाषे छी।
जहाँ धरि साहित्यिक मानक भाषाक प्रश्न अछि ओ तँ कतौ ने अछि। दुनियाँक बीचमे अंग्रेजी साहित्य सभसँ समृद्ध बुझल जाइत अछि, जखन कि दू देशक कोन बात जे एको देशक भाषा साहित्यमे एकरूपता नहि अछि।
मिथिलाराज हेतु जे दशा-दिशा अछि तै संबंधमे एकटा कथा कहै छी- द्वापर युगक संध्याबेला। अर्जुनक मनमे त्रेता युगक समुद्रमे पुल बनबैक विचार उठलनि। लंका जेबाकाल समुद्रमे एक-एक पाथर जोड़ि पुल किअए बनौल गेल? ओ तँ एक तीरोमे बनि सकैत छल? पम्पापुरमे हनुमान तपस्या कऽ रहल छथि हुनके मुँहेँ सुनब बेसी नीक हएत। पम्पापुर पहुँच अर्जुन प्रश्न केलखिन। मुस्कुराइत हनुमानजी उत्तर देलखिन जे पुल बनि सकैए, मुदा जते मजगूत एक-एक पाथर जोड़लासँ बनत ओते तीरसँ नै बनि सकैए।
जइठाम बाहरसँ आन-आन भाषाक तेजीसँ आयात भऽ रहल अछि, गाम-गाममे अंग्रेजी माध्यमक स्कूल चलि रहल अछि, अपन शिक्षा पद्धतिकेँ िनर्मूल उखाड़ैक योजना बनि रहल अछि, तइठाम मिथिलाराज आ मिथिला दर्शनक सपना कते सार्थक अछि?” इत्यादि, अपन विचार व्यक्त केलनि।
मि. वि. प.क अध्यक्ष डॉ. विद्यानाथ झा, श्री बुद्धिनाथ झा, श्री फूलेन्द्र झा, श्री किशोरी कांत मिश्र, डॉ. श्रवण कुमार चौधरी, श्री प्रभाष सहनी, श्री शिलानाथ मिश्र आदि वक्ता, मैथिली भाषाक उत्तरोत्तर विकास यात्रापर प्रकाश देलनि।
परिचर्चाक संचालन मिथिला संघर्ष समितिक अध्यक्ष- श्री कमलेश झा केलनि।
२.
महाकवि पण्डित लालदास जयन्ती समारोह
मधुबनी जिलाक खरौआ गाममे +2 उच्च विद्यालय परिसरमे 02 नभम्वार 2011केँ महाकवि पण्डित लालदास जे रमेश्वर रचित मिथिला रामायणक परिनेता छलाह। हुनक 155म जयन्ती समारोह सुसम्पन्न भेल।
ऐ अवसरपर जयन्ती समारोह, काव्यपाठ, महाकवि परिचर्चा आ संस्कृतिक कार्यक्रम वर्णित क्रमश: चारि सत्रमे सामापन कएल गेल। दिनमे 3 बजेसँ अधरतिया धरि ग्रामीण लोकनि आ खरौआसँ बाहरोक लोक भाग लेलनि। आयोजन कमिटिक उद्घोषक समीर कुमार ‘समा’केँ समारोह सत्रक संचालन करबाक हेतु, आ एच.वी. लालकेँ अध्यक्षता हेतु, हरि नारायण झाकेँ मुख्यि अतिथि रूपमे आ जनक किशोर लाल दास, लक्ष्मण झा, रंगनाथ चौधरी, कुमार रामेश्वरम्, रमानन्द झा ‘रमण’, जगदीश प्रसाद मण्डल, रधुवीर मोची आदिक नाओं विशिष्ठ अतिथि रूपमे मंचपर विराजमान हेबाक घोषणा आयोजक कमिटि केलनि। सभ कियो मंचासीन भेलाह। उप विकास आयुक्त ओम प्रकाश राय दीप प्रज्जवलित कऽ समारोह सभाक उद्घाटन केलनि। “महाकवि पण्डित लालदास अपन कर्मसँ पण्डित छलाह। ब्राह्मण जातिमे नै रहलाक बादो हुनका राजदरवारमे पण्डितक उपाधि भेटबाक ऐ बातक सूचक थिक।” ई बात समारोह सभाक अधयक्ष कहलनि। ओम प्रकाश राय खरौआ गामक संग मधुबनीये मात्र नै अपितु सम्पूर्ण मिथिलामे एक-सँ-एक विद्वान हेबाक सुयोग्या कहलनि। ओ इहो कहलनि जे मिथिलावासी लेल ई गौरवक बात थिक, जैठाम मनुष्य नै अपितु मनुष्यक कर्म महान होइए। अपन टिप्पणीकेँ पुष्टि करैत कहलनि- “महाकवि पण्डित लालदासकेँ पण्डितक उपाधि केना भेटलनि। जेकर उल्लेख अखने अध्यक्ष महोदय सुनौलनि अछि।” अही परिपेक्ष्यमे आगाँ कहलनि- 'सभ मनुष्य जन्मसँ शुद्र होइए आ कर्मसँ ब्राह्मण। ऐमे जातिक कोनो महत्व नै। ब्रह्म की थिक अहु संदर्भमे ओ अपन सुन्दर विचार रखलनि। अंतमे अपन एक गोट ‘शेर’ सुनेलखिन। दर्शक-दीर्घापर नीक प्रभाव देखल गेल। थपड़ीक गड़गराहटि ऐ बातक सूचक बुझाएल। उप विकास आयुक्त ओम प्रकाश राय जीक वाचन हिन्दी भाषामे छल, अपरोक्त संदर्भित बात हिन्दीसँ मैथिलीमे कएल भावानुवाद छी। राय जीक नम्हर आ सुन्दर टिप्पणीसँ श्रोता जगतमे शान्तिक सुन्दर दर्शन सेहो भेल। बाद एकर, एक आध गोट विशिष्ठ अतिथिक टिप्पणीक पछाति दोसर सत्रक माने काव्यगोष्ठी केर घोषणा करैत कहल गेल जे उचयचन्द्र झा ‘विनोद’ गोष्ठीक अध्यक्षता करताह आ फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’ संचालन। संग-संग परिसरमे उपस्थित कवि लोकनिकेँ मंचपर शीघ्र आबए लेल आग्रह कएल गेलनि। ऐ शीघ्र आग्रहक आग्रह ओम प्रकाश राय जीक सेहो रहनि। अशोक कुमार मेहता, नन्द विलास राय, उमेश पासवान, विद्याधर मिश्र, बुचरू पासवान, मो. गुल हसन, रामविलास साहु, हरिश्चन्द्र हरित, जगदीश प्रसाद मण्डल, चन्द्रेश, जनक किशोर लालदास, राम सेवक ठाकुर, रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’, शशिकान्त झा, मनोज कुमार मण्डल, शिवकुमार मिश्र, लक्ष्मी दास, कपिलेश्वर राउत, अखिलेश कुमार मण्डल, उमेश मण्डल, कल्पकवि उमेश नारायण कर्ण आदिक संग गोष्ठीक अध्यक्ष आ संचालक मंचपर उपस्थित भऽ गेलाह।
काव्यगोष्ठीक श्रीगणेश अशोक कुमार मेहताक कविता- ‘कने अपनो कहु आ कने हमरो सुनू’सँ भेल पश्चात् विद्याधर मिश्र- ‘गेले घर छी’, बुचरू पासवान- ‘मिथिला राज मंगै छी यौ’, हरिश्चन्द हरित- गाम हेरा गेल, जगदीश प्रसाद मण्डल- ‘साँझ’, तेकर बाद रामदेव प्रसाद मण्डल, मो. गुल हसन, शशिकान्त झा, शिवकुमार मिश्र, रामसेवक ठाकुर, जनक किशोर लालदास, चन्द्रेश, रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’ आ एक-आध-टा आओर कवि जीक कविता पाठ भेल। आयोजक दिससँ अगिला सत्रक कार्यक्रम माने परिचर्चा लेल आब ऐ गोष्ठीकेँ समापनक घोषणा जल्दिये करथि। से आग्रह संचालक आ अध्यक्षसँ कएल गेल। अध्यक्ष उदयचन्द्र झा ‘विनोद’ इशारामे संचालककेँ सहमति देलखिन, संचालक फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’ अशोक कुमार मेहताक हाथमे मैक दैत कहलखिन जे ओ हुनकर नाओंक घोषणा कऽ देथिन। अशोक कुमार मेहता मैक हाथमे लैत कहलखिन- “आब अहाँ सबहक बीच ऐ गोष्ठीक संचालक डॉ. फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’ अपन एकगोट लयात्मक गीत सुनौताह।” बहुत सुन्दर ढंगे लाय आ रागसँ पूर्ण गीतक गायन आराम-आरामसँ बहुत नीक सूरमे केलनि। गीत सम्पन्न भेलाक बाद संचालक रूपमे आबि लगले-सूरे घोषणा केलखिन- “आब अध्यक्ष महोदय डॉ. उदयचन्द्र झा ‘विनोद’ जिनका अपने सभ नीकसँ जनैत हएब....।” इत्यादि कहैत आ विस्तृत परिचए दैत, हुनका आग्रह कएल गेलनि। उपस्थित भऽ अध्यक्ष महोदय अपन कविताक पाठ सुन्दर ढगे केलनि, सहजता आ असथिरतासँ पूर्ण पाठ, बहुत नीक शैलीमे केलनि। ई कविता गोष्ठीक अंतिम कविता छल। कविताक समापन होइतहि अध्यक्ष रूपमे आबि लगले-सूरमे बजलाह- “आब काव्यगोष्ठीक समापनक घोषणा कएल जाइत अछि।” मंचपर उपस्थित- उमेश पासवान, रामविलास साहु, नन्द विलास राय, बेचन ठाकुर, कपिलेश्वर राउत, मनोज कुमार मंडल, लक्ष्मीदास, अखिलेश कुमार मंडल आदि कवि सुगबुगाए लगलाह। मैकपर आयोजकक उद्घोषक घोषणा केरैत कहलनि- “मंचपर उपस्थित कविमे जिनकर कविताक पाठ भ' सकल ओ कृपया मंचासीन रहथि, हुनका सभकेँ सम्मानित कएल जाएत। वॉकी कविकेँ मंच खाली करबाक आग्रह करै छियनि।” सएह भेल। कमिटि दिससँ कवि लोकनिकेँ (जिनकर-जिनकर कविता पाठ भऽ सकलनि..) एक-हक गोट चादरिसँ सम्मानित कएल गेलनि। तेकर बाद तेसर सत्रक प्रारम्भ भेल जइमे महाकवि लालदास परिचर्चा भेल। कमलेश झा, फूलचन्द्र मिश्र ‘रमण’ रमानन्द झा ‘रमण’ कुमार रमेश्वरम्, आदि विद्वान भाग लेलनि।
ऐ अवसरपर महाकवि लालदास कृत ‘महेश्वर विनोद’ पोथीक लोकार्पण समारोह सभामे मंचासीन सभ गोटे द्वारा कएल गेल आ ‘विदेह’ द्वारा आयोजित 15म मैथिली पोथीक भव्य प्रदर्शनी सेहो छल। अंत सांस्कृतिक कार्यक्रमक पछाति भेल।
३.
संजीव कुमार ‘शमा’, एम.ए. (संगीत, हिन्दी आ पत्रकारिता), एल.एल.बी., पी.एच.डी. लेल शोधरत (संगीतमे)। सम्प्रति-अधिवक्ता सिविल कोर्ट ,झंझारपुर। गाम- रतुपार, पोस्ट- ताजपुर, भाया- झंझारपुर, जिला- मधुबनी, (बिहार)
महाकवि पं. लालदास जयन्ती समारोह
महाकवि पं. लालदास जयन्ती समारोह आयोजन समिति, खड़ौआ द्वारा पं. लालदासक 155म जयन्ती समारोह स्थानीय लालदास उच्चतर माध्यमिक विद्यालय प्राङणमे समारोहपूर्वक 02/11/2011केँ मनाओल गेल। समारोहक विशिष्ठ अतिथि जिला उपविकास आयुक्त श्री ओमप्रकाश राय, मुख्य अतिथि अवकाश प्राप्त शिक्षक श्री हरिनारायण झा, आयोजन समिति सह कार्यक्रमक अध्यक्ष क्षारखण्ड विद्युत बोर्डक पूर्व चेअरमैन डॉ. हरिवंश लाल संयुक्त रूपसँ महाकविक प्रतिमापर पुष्प अर्पण आ दीप प्रज्वलन कऽ समारोहक उद्घाटन केलनि। कार्यक्रमक शुभारंभ वंदनाक स्वागत गीतसँ भेल तत्पश्चात भी.डी.एस.एच संगीत महाविद्यालय झंझापुरक छात्र देवेन्द्र महतो पं. लालदास रचित मङल गीत- ‘जय जय गिरिजा तनय गणेश’ गौलनि। जकर धुन श्रीमती अंजना शमा देने रहथि। विशिष्ट अतिथि श्री राय अपन उद्घाटन भाषणमे उद्गार व्यक्त करैत बजलाह जे मिथिलाक माटि स्वनामधन्य अछि। ऐठाम अदौसँ विद्वानक परंपरा रहल अछि। अपन अध्यक्षीय भाषणमे डॉ. एच.वी. लाल कहलनि जे महाकवि जन्मसँ नै अपितु कर्मसँ पांडित्यकेँ चरितार्थ केलनि। ओ कहलनि जे हम सभ हुनक व्यक्तित्व आ कृतित्वसँ कृतार्थ छी। समारोहक मुख्य अतिथि श्री झा जयंती समारोह मनेबा लेल आयोजन समितिकेँ साधुवाद दैत कहलनि जे पंडितजीक जयन्ती मनौलासँ नव पीढ़ीकेँ हुनकर जीवन आदर्शसँ नवा दिशा भेटतनि। ऐ अवसरपर पंडित लालदास कृत मैथिली पद्ममय पोथी ‘महेश्वर विनोद’क विमोचन विशिष्ट अतिथि, मुख्य अतिथि आ मंचासीन सम्मानित अतिथि लोकनि द्वारा भेल। सभ अतिथि लोकनिकेँ फूलक मालासँ सम्मानित कएल गेलनि। ऐ अवसरपर ‘विदेह साहित्य आन्दोलन’क वैनर तले मैथिली पोथी प्रदर्शनी सेहो छल।
विशिष्ट अतिथिक विशेष आग्रहपर कवि संगोष्ठीक आयोजन प्रथमे सत्रमे कएल गेल। जकर अध्यक्षता डॉ. उदय चन्द्र झा ‘विनोद’ आ संचालन डाॅ. फूलचन्द्र झा ‘प्रवीण’क छल। संगोष्ठीमे जतए डॉ. अशोक कुमार मेहता, कल्प कवि डॉ. उमेश नारायण कर्ण, डॉ. बुूचरू पासवान, मो. गुल हसन, श्री रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’ श्री चन्द्रेश, श्री शशिकान्त झा, श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, डॉ. जनककिशोर लालदास, श्री. शिवकुमार मिश्र, श्री रामसेवक ठाकुर अपन-अपन काव्यपाठसँ श्रोताकेँ मुग्ध कलनि, ओहीठाम श्री शंभू कुमार दिन, श्री उमेश मण्डल, श्री नन्द विलास राय, श्री लक्ष्मी दास, श्री बेचन ठाकुर, श्री संजीव कुमार शमा, श्री उमेश पासवान, श्री रामविलास साहु , श्री अकलेश कुमार मण्डल, श्री मनोज कुमार मण्डल, श्री कविलेश्वर राउत आदि कवि अपन काव्यपाठसँ वंचित भेलाह। कवि संगोष्ठीक अध्यक्ष ऐ वास्ते कोनो खेद नै व्यक्त कऽ सकलाह। आयोजन समिति खड़ौआ’क तरफसँ ओइ सभ कविकेँ जिनकर-जिनकर कविताक पाठ भऽ सकल, शालसँ सम्मानित कएल गेल।
महाकविक ‘व्यक्तित्व आ कृतित्व‘ विषयपर परिचर्चामे मैथिलीक समालोचक डॉ. फूलचंद्र मिश्र ‘रमण’ महाकविक रचना ‘रमेश्वर रचित मिथिला रामायण’क पुष्कर काण्डपर गंभीरतापूर्वक प्रकाश दैत कहलनि जे महाकविकेँ दर्शनक साक्षात्कार छल। मिथिलामे चंदा झाक रामायण पूर्वहि प्रकाशित भेल छल तँए ई पूर्वहिसँ लोकप्रिय भेल। डॉ. रमानंद झा ‘रमण’, डी. ई. पी. निदेशक श्री रंगनाथ चौधरी दिवाकर, श्री कमलेश झा, श्री कुमार रामेश्वर, श्री भरत नारायण कर्ण आ मैथिला अकादमीक पूर्व निदेशक डॉ. रघुवीर मोची सन मैथिलीक उदभट विद्वान लोकनि अपन शोधपूर्ण सारगर्भित व्याख्यान देलनि।
साझूँ परक कार्यक्रममे कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय सकरीक छात्रा लोकनि द्वारा जट जटीन, झिझिया आ डोमकच नृत्यक भावपूर्ण प्रस्तुति भेल। संदीप कुमार पंकज, चंदन, श्यामा, प्रीति, अंशु अपन गायनसँ श्रोतावर्गकेँ झूमएपर मजबूर कऽ देलनि। ओतहि हास्य सम्राट श्री रामसेवक ठाकुर अपन गप-सप्पसँ श्रोतावृंदकेँ लोट-पोट केलनि। संपूर्ण कार्यक्रममे बैंजोपर राजकुमार महथा, नालपर महेन्द्र ठाकुर मन्नू, पैडपर चीकू, तबलापर शीतल अपन कुशल संगति प्रदान केलनि।।
जयंती समारोहक उद्घोषक एस.के.कर्ण शमा कार्यक्रमक सफल संचालन साहित्यिक अंदाजमे कऽ श्रोतावर्गपर अपन खास प्रभाव छोड़लनि। आयोजन समारोहकेँ सफल बनेबामे सुनील कुमार दास, डाॅ. अरविन्द लाल, श्री योगानंद लाल दास, श्री अजय कुमार दास, श्री राजेन्द्र कुमार दासक संग संपूर्ण ग्रामवसीक भूमिका सराहणीय छल। सचिव भागिरथ लालदासक धन्यवाद ज्ञापनक संग समारोह शेष भेल।
गजेन्द्र ठाकुर
उल्कामुख (मैथिली नाटक)
तेसर कल्लोल
(आचार्य व्याघ्र एकटा शतरंजक घनक चारू कात घूमि रहल छथि। आचार्य सिंह दोसर शतरंजक घनक चारू कात घूमि रहल छथि।)
आचार्य व्याघ्र: तत्वचिन्तामणिमे हमरा सभक चर्चा गंगेश केलन्हि मुदा आब लोक हमर सभक असल नाम सेहो बिसरि गेल। हमर सभक पोथी सेहो सुड्डाह भऽ गेल।
आचार्य सिंह: मुदा अपना सभक तँ कोनो सरोकार अछिये नै, तखन?
आचार्य व्याघ्र: हँ, आ मुइलाक बाद भूत राकशसँ नीक व्याघ्र आ सिंह कहेनाइ भेल ने।
आचार्य सिंह: मुदा अपना सभक तँ कोनो सरोकार छलैहे नै, दर्शनक सिद्धान्तमे गंगेश द्वारा कएल चर्चा…
आचार्य व्याघ्र: तहीसँ हमरा सभ अछोप भऽ गेलौं किने।
आचार्य सिंह: मुदा ओ तँ आनो लोकक चर्च तत्वचिन्तामणिमे केने छथि। ओ सभ किए अछोप नै भेलाह…
आचार्य व्याघ्र: कारण हुनका सभक नाम गंगेश लिखने रहथि। मुदा अपना सभक लेल ओ आचार्य सिंह आ आचार्य व्याघ्र मात्र लिखने छथि। से गंगेशक कविता बनि गेल उल्कामुख आ हम सभ बनि गेलौं व्याघ्र आ सिंह। गंगेशक बेटा वर्द्धमान गंगेशक विषयमे लिखलन्हि “सुकवि कैरव काननेन्दुः”। मुदा कियो खोजो केलकै चौपाड़िपर जे जँ गंगेश कवि रहथि तँ हुनकर कविता की भेल। आचार्य व्याघ्र आ आचार्य सिंहकेँ जँ गंगेश आदर देलन्हि तँ से पोथी सभ सेहो सुड्डाह भऽ गेल।
आचार्य सिंह: कोन रहस्य छै ऐ मे।
आचार्य व्याघ्र: असुरक्षा आचार्य सिंह। गंगेश केलक रक्षा हमर सभक तर्कक श्रीहर्षक आक्रमणसँ, आ बनेलक नव्य-न्याय। नबका शास्त्र, नबका न्यायशास्त्र। ओहो अजीबे भेल, पिताक मृत्युक पाँच साल बाद भेलै ओकर जन्म आ चर्मकारिणीसँ केलक विवाह। आ ओइ विवाहसँ जे पुत्र भेलै वर्धमान से फेर मिलेलक न्याय आ नव्य-न्यायकेँ। मुदा वर्द्धमान अपन पिताक कविताकेँ नै बिसरल। असुरक्षा आचार्य सिंह, चौपाड़ि मध्य बाहरक विद्यार्थीकेँ तत्वचिन्तामणिक प्रतिलिपि पक्षधर नै करऽ दै छलखिन्ह, ने सार-संक्षेप लिखऽ दै छलखिन्ह। चौपाड़िमे वर्द्धमानक बाद सभ कियो आचार्य व्याघ्र, आचार्य सिंह आ उल्कामुख सभकेँ काल्पनिक बना देलक।
आचार्य सिंह: मुदा ऐसँ सर्जन कोना हएत आचार्य व्याघ्र। बिन सर्जनक चौपाड़िपर विद्यार्थी आत्म अभिव्यक्ति कोना करताह। योग्यता कोना बढ़त। पुरान इतिहास व्याघ्र, सिंह आ उल्कामुख बनि नै रहि जाएत? प्रतिबन्ध, प्रतिबन्ध..फेर ज्ञानक विस्तार कोना हएत।समाजक एक वर्ग दोसरसँ कटि जाएत… प्रतिबन्ध, प्रतिबन्ध..ऐ सँ स्नेह बढ़त वा निरपेक्षता बढ़त? जे अहाँकेँ करबाक हुअए करू, जे हमरा करबाक हएत हम करब..की समाजक यएह गति हएत?
आचार्य व्याघ्र: आचार्य सिंह। की ऐ विस्मरणकेँ रोकबाक प्रयास नै हेबाक चाही?
आचार्य सिंह: हेबाक चाही आचार्य व्याघ्र। कोनो चीजक विस्मरण तावत धरि सम्भव नै जाधरि ओकरा हम सभ बुझनाइ नै छोड़ि दिऐ।
आचार्य व्याघ्र: बुझि कऽ मोन राखनाइ, ठीक कहलौं आचार्य सिंह। तँ चौपाड़िपर ई व्यवस्था भऽ रहल हएत जे बिनु बुझने पाठ विद्यार्थीकेँ यादि कराएल जाए जइसँ सभ बिसरि जाथि गंगेश आ वल्लभाकेँ।
आचार्य सिंह: मुदा हम सभ संकेतक प्रयोग कऽ सकै छी। संकेतसँ स्मरण विस्मरण नै बनत। अपूर्ण रहत चौपाड़िक पाठ, आ अपूर्ण पाठक विस्मरण नै भऽ सकैए, विस्मरण होइए मात्र पूर्ण पाठ।
आचार्य व्याघ्र: मुदा कोन संकेत आचार्य सिंह..
आचार्य सिंह: उल्कामुख…
(आकाशवाणी होइए…. उल्कामुख..उल्कामुख…उल्कामुख…उल्कामुख…)
आचार्य सरभ: ई गंगेश आ वल्लभाक विवाह शतरंजक खाना सभ दैत्याकार बनि जाएत, सात सए सालमे जाति खतम..किछु करू…रोकू..विस्मरण…विस्मरण….
वर्द्धमान: ।
उदयन:: जगन्नाथ मन्दिरमे उदयनक उद्घोष, जे जैँ हम तेँ तूँ पूजित होइ छह। बन्द केवार खुजि गेल।
दीना: भदरी: जड़िमे दुनू गोटे अड़ा देलिऐ शरीर आ दरकि गेल देवार। आ बन्न केवार खुजि गेल।
दीना: मुइल गाइक हड्डीमे फोटरा गिदर बनि नुका कऽ सलहेस दीना-भदरी आ बाघक कुश्ती देखथि। बाघक रान पकड़ि दू कात चीर कऽ फेकी हम दुनू भाँइ आ मुइल गाइक हड्डीसँ बहार भऽ फोटरा गीदर बनल सलहेस ओकरा जोड़ि देथि आ फेर ।
भदरी: मिथिलाक राजा मग्गहक हंशराज-वंशराजसँ नरुआरक पोखरि खुनबओलन्हि मुदा ओ जाइठ नै उठा सकल। हम दुनू भाँइ दछिनबरिया भीड़सँ जाइठ फेकलौं तँ ओ सोझे जाठिक लेल बनाएल खाधि- बॉली मे जा कऽ खसल। ई जाइठ अखनो दक्षिण दिस टेढ़ अछि।
उदयन:: मन्त्रार्थमे महर्षि पतञ्जलिक वैज्ञानिक मन्तव्य “यच्छब्द आह तदस्माकं प्रमाणम्” माने जे शब्द आकि मंत्रक पद कहैत अछि सएह हमरा लेल प्रमाण अछि- एकर अर्थ बादमे वेदे प्रमाण अछि- सेहो हमरा नामसँ भविष्य पुराणमे नै जानि किए गलत रूपेँ दऽ देल गेल। अनकर देखल बौस्तुक स्मरण अनका कोना हेतै?
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): धामी कहलक हमरा सभकेँ काज करैले अपना खेतमे। मारि कऽ जुमा कऽ फेकलौं हम सभ ओकरा धामिन लग। धामिन गेल खिसिया आ बजेलक अपन दोस फोटरा गीदरकेँ। फोटरा गीदर मारलक हमरा सभकेँ।
दीना: मुदा दौरीवाली हिरिया तमोलिन केलक तपस्या पतिक रूपमे प्राप्ति लेल..
भदरी: आ दौरीवाली जिरिया लोहारिन केलक तपस्या पतिक रूपमे प्राप्ति लेल..
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): मरलाक बादो। गंगामे पैसि बनेलौं पत्नी दुनूकेँ। मरलाक बादो।
उदयन:: गंगेश केलक रक्षा हमर तर्कक श्रीहर्षक आक्रमणसँ, नव्य-न्याय। नबका शास्त्र, नबका न्यायशास्त्र। ओहो अजीबे भेल, पिताक मृत्युक पाँच साल बाद भेलै ओकर जन्म आ चर्मकारिणीसँ केलक विवाह। आ ओइ विवाहसँ जे पुत्र भेलै वर्धमान से फेर मिलेलक न्याय आ नव्य-न्यायकेँ।
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): सत्यकामक सेहो तँ सएह हाल रहै। पिता के छलै ओकरा बुझले नै छलै, जबालाक पुत्रसत्यकाम, मुदा गौतम सन गुरु भेटलै, वेदक अध्ययन केलन्हि। मरलाक बादो उदयन, नव आ पुरानक मेल आ विरोध होइए। वंशीधर बाभन आ बालारामक मेल भेल, लोक देवी गहील आ पौराणिक दुर्गा देवीक मेल भेल।
उदयन:: मरलाक बादो दीना-भदरी।
दीना-भदरी (सम्वेत रूपेँ): हँ उदयन। फोटरा गीदर बनल दोस…संग भेलाह सलहेस। मरलाक बादो…
…(जारी)
राजदेव मण्डल
हमर टोल
उपन्यास
गतांशसँ आगू....
धर्मडीहीवाली कतेक दिनसँ कोशिशमे लगल अछि किन्तु मौका हाथ नै लगै छै। ओकर विचार छै जे असगरमे सभटा बात खेलावन भगतकेँ साफ-साफ सुनाबी। परन्तु झार-फूँक करबैबलाकेँ कोनो अभाव छै। आ गप्प हाँकैबला तँ ओकरे लग बैसत। कखनो सुनहट नै। एेसँ पहिने महतो बाबाक स्थानमे डाली लगौने रहए। घोड़ा साफ-साफ कहि देलकै- “हम की करबौ। कोखि मारल छौ।” फेर दवाइ करबैक विचार भेल। नीक डाक्टर गाममे रहै नै छै। शहरक बड़का भारी डाक्टर लग जाएत तँ ओतेक रूपैया कतएसँ लाबत? संगे के जाएत? रहत कतए अनभुआर जगहपर?
तैयो धर्मडीहीवाली निराश नै भेल छै। किछु दिनसँ खेलावन भगतपर ओकर विश्वास जेना बढ़ए लगलै। लचारीमे कतेक बेर विचारी करए पड़ै छै। हौ बाबू विश्वासे गुणे फल।
आखिर दस-दस कोसक लोक लोग आबै छै। फलित नै होइ छै तँ ओहिना? मरल-सुखाएल कोखि हरियर भऽ जाइत छै। जश-अपजश विधि हाथ।
सोझेमे तँ छै-नररी बुढ़ियाक पुतोहू। ओझा-गुणी, डाक्टर-वैद्य, धाइम सभ नकारि देने रहए। खेलावन भगत दूटा सन्तान होइक वाक दऽ देलकै।
समूचा धनुकटोलीकेँ ठकमुड़ी लगि गेलै। जहिया वचन पूरा भेलै। कहए भगता आ पूराबए देवता।
ओना तँ ऐंठ खाइ छै आ झूठ बजै छै। सभ कुकरम देखते छी। नचारकेँ विचार की। दस गोटेक बात तँ मानहि पड़ै छै। चलतीमे तँ माटियो बिका जाइत छै।
धर्मडीहीवालीकेँ तँ सोचि-विचारि कऽ काज करए पड़तै। जागेसर तँ ओइ दिन कहि देलकै- पंच सभ साल भरिक समए देने अछि। अहाँक मन-जेकरासँ इलाज कराबी। ओझा-गुणी, डागडर-वैद्य। हमरा दिससँ कोनो मनाही नै। सिरिफ टाका-पैसा पुरौनाइ हमर काज छी। पाछाँ हमर कोनो दोख नै।
खेलावन भगत बेंतमे तेल लगा कऽ सुररि रहल छै। भगतकेँ सभ किछु अलगे टाइपक। बेंत लगै छै- साँप सन। अन्हारमे देख लेत तँ साँपे बुझेतै।
आइ धर्मडीहीवालीकेँ मौका भेटलै। सुनहटमे सभ गप्प फरिछा कऽ कहि रहल छै। किन्तु भगतक मन जेना कतौ आर टहल-बुलि रहल छै। देह कतौ आ मन कतौ। आँखि जेना निशाँमे डूबल छै।
धर्मडीहीवाली सोचैत अछि- एना किअए केने अछि- भगतजी। कहीं ओइ दिनका गप्प मन तँ ने पड़ि गेलै। झाड़ैत काल चमेटा जे लगल रहए। कहीं हमरापर तमसाएल तँ ने अछि। आब जे होए। बखत पड़लासँ........।
धर्मडीहीवाली कने सुरकेँ तेज केलक। अपना दिस धियान खिंचबाक लेल तँ उपाए लगबए पड़तै।
“भगत जी, हमरो दुख हरण कऽ लिअ। आब तँ हम कतौक नै रहबै। जँ बाल-बच्चा नै हेतै तँ सोतिन तरमे बास करए पड़तै। अहाँ तँ बुझिते छी- नदी तरक चास-आ सौतिन तरक बास।”
“सौतिन ने कहै छै। बैरिन तरक बास।” टप्प दऽ बाजल भगत।
“हम तँ मूरूख छी भगतजी। अहाँ तँ भगवान छिऐ। परोपट्टामे अहाँक जय-जयकार भऽ रहल अछि। कतेकोकेँ दुख हरण कऽ लेलिऐ। हमरो दुखसँ उबारू। खाली आँचारकेँ भरि दिअ। जँ हमरा संतान नै हेतै तँ हम बेसहारा भऽ जाएब। पएर पकड़ै छी भगत जी। कोनो उपाए करू।”
निसाँस खिंचैत भगत बजल- “गुरू महराज कहने रहथिन- सुआरथ लागि करे सभ पीरीत।”
धर्मडीहीवालीकेँ आँखिसँ भरभरा कऽ नोर खसि पड़ल। भगत जीक दिल पिघलि गेलै। ओकरा हाथकेँ अपना पएरपर सँ हटबैत कहलक- “घबरा नै। सभ कुछो हेतै। जे बाट देखाबै छिऔ। ओइपर चलए पड़तौ।”
“बचा लिअ भगतजी। जीअत तँ जीअत, मुइलोमे सौतिन नै बकसै छै। मुइलोपर बिसाइत छै।”
“तूँ तँ एक-तरफा सोचै छेँ। पुरूषोकेँ दूटा स्त्री भेलासँ ओहिना कठ होइ छै। तरघुसका तकलीफ होइ छै। तोरा तँ मालूमो नै हेतौ घोंचाय मड़रक भाइक खिस्सा।”
“हमरा कतएसँ मालूम हेतै।”
“आब तँ बेचारा दुनियाँसँ चलि गेलाह। चारि-पाँच साल पहिलुका गप्प छिऐ। सौतिनियाँ डाहक शिकार भऽ गेलै। दुनू स्त्री मिलि कऽ दशा बिगाड़ि देने रहए। देखैत छी आइयो दुनूटा साँढ़ जकाँ ढेकैर कऽ लड़ैत छै।”
“की भेल रहै भगतजी?”
धर्मडीहीवालीक आँखिमे उत्सुकता भरि गेल छै। खेलावन भगत पलथी मारि कऽ बैस गेल। दहिना जाँघपर राखल बेंत थरथरा रहल छै। मुँहसँ खिस्साक बखान चलि रहल छै।
“घोंचाय मड़रक भाइक नाओं रहै- चिचाय। एकटा स्त्रीमे संतान नै भेलै। फेर दोसर केलक। ओहोमे संतान नै भेलै। दुनू औरतियामे राति-दिन हड़-हड़, खट-खट होइते रहए। चिचाय झगड़ा छोड़बैमे अपस्याँत। दुनू तरफसँ गाड़ि मारि सुनए पड़ैत। चिचाय लवकीकेँ बेसी मानैत। ओकरो संगे राति बिताबैत। पुरनकी कछ-मछ कऽ राति काटैत। सौतिनिया डाहसँ जरैत पुरनकी सोचलक।”
किछु काल रूकि भगत आगू बजय लगल- “हँ, अमवस्याक राति रहए। खट-खट अन्हार। टिपिर-टिपिर बून चुबैत। हाथ-हाथ नै देख पड़ैत। लबकी जइ घरमे सुतैत रहए ओइ ओसरपर चिचाय दहिना पएर रखलक आकि बामा पएर पुरनकी पकड़ि लेलक। अन्हारक कारने चिचाय देख नै सकल। ओ डरे ‘आऊँ, आऊॅ’ करए लगल। लबकी दौग कऽ निकलल आ दहिना पएर पकड़ि लेलक। दुनू अपना-अपना दिस खिंचए लगल। अपना-अपना घर दिस लऽ जेबाक प्रयास। खैंच रहल छल। चिचायकेँ बुझि पड़लै जे दू फाँकमे चीरा कऽ बँटि लेत। ओ बाप-बाप करैत चिचिया उठल। अड़ोसिया-पड़ोसिया जमा भेल। तखन ममिलाकेँ शान्त केलक। दूटा स्त्री केलाक फल एहनो होइत छै।”
“भगतजी, तैयो मरदक जाति ऊपरे रहै छै। हमर नैया कोन विधि पार लगतै।”
“तूँ चिन्ता नै कर। अबए दही उ शुभ घड़ी। उ पवितर राति।”
खेलावन भगत बेंत उठा कऽ उपदेश दिअ लगल- “सात दिन पहिलेसँ अरबा-अरवाइन भोजन। दुनू बखत स्नान। मन देह शुद्ध। चौबटियापर पूजा-चक्कर। बाहर बजे रातिमे एकान्त जगहपर आबए पड़तौ। राह-बाटमे कोनो टोका-चाली नै। कियो देखै नै। निशिभाग रातिमे चौबटियापर स्नान-पूजा कबुला सभ करए पड़तौ। समैपर सभटा बात बुझा देबौ। भेंट करैत रहिहें। शरणमे आबि गेल छेँ तँ कल्याण भऽ जेतौ।”
“धन्य हो भगतजी।”
धर्मडीहीवाली उठि कऽ आंगन दिस चलि देलक। ओकर पएर स्थिर नै भऽ रहल छै। जेना निशाँसँ मातल हो तहिना ओकरा मनमे बुझाय छै। पता नै ई निशाँ सफलताक छिऐ वा असफलताक।
ओकर पएरक गति तेज भऽ गेलै। तैयो गहबरक गन्ध ओकरा चारूभरसँ घेरने छै......।
क्रमश: ...................
ओमप्रकाश झा सफल अधिकारी
वातानूकुलित चैम्बरक शीतल हवा मे रिवॉल्विंग चेयर पर आराम से अर्द्धलेटल अवस्था मे बैसल छलाह श्री बिमलेश चन्द्र। जी हाँ श्री बिमलेश चन्द्र, जे हमर विभागक एकटा सफल आयकर अधिकारी मानल जायत छैथ। हुनकर प्रभावी व्यक्तित्वक आगाँ पूरा विभाग नतमस्तक रहैत अछि। जतय ककरो कोनो काज अटकल कि श्री बिमलेश तुरत यादि कैल जायत छैथ। की अधिकारी आओर की कर्मचारी, सभ गोटे हुनकर काज कराबै केर क्षमता आओर हुनकर व्यक्तित्वक लोहा मानैत छैथ। आई वैह बिमलेश जी किछ शोचपूर्ण मुद्रा मे अपन कुर्सी मे घोंसियायल छलाह। हम भीतर ढुकबाक आज्ञा माँगलियैन्ह त' बिना डोलल संकेत सँ बजेलाह आओर हम ओहि सुन्नर वातानूकुलित कक्ष मे प्रवेश कय गेलहुँ। एतय इ बता दी जे जहिया सँ हमर विभाग मे कम्प्यूटर जीक पदार्पण भेलन्हि, तहिया सँ सभ अधिकारीक कक्ष वातानूकुलित भ' गेल अछि। ओना इ अलग गप थीक जे इ वातानूकुलन कम्प्यूटर जी लेल भेल छैन्ह। हम बिमलेश जी सँ चिन्ताक कारण पूछलियैन्हि। ओ बजलाह- "जहिया सँ मयंक सर गेलाह आओर खगेन्द्र सर एलाह, तहिया सँ हम चिन्तित छी।" मयंक शेखर हमर सभक आयकर आयुक्त छलाह जिनकर बदली भ' गेलन्हि आओर हुनका स्थान पर खगेन्द्र नाथ जी नबका आयुक्तक पदभार ग्रहण केलखिन्ह। हम कहलियैन्ह- "यौ एहि गप सँ चिन्ताक कोन सम्बन्ध? कियो आयुक्त रहथि, अपना सभ केँ त' काज करै केँ अछि, से करैत रहब।" बिमलेश- "अहाँ एहि दुआरे फिसड्डी छी आओर सदिखन अहिना फिसड्डी रहब।" हम चुप रहि केँ पराजय स्वीकार केलहुँ आ एहि सँ आओर उत्साहित होयत ओ बजलाह- "अहाँ बुडिराज छी। इ जनतब राखनाई बड्ड जरूरी अछि जे नबका सर कोन मिजाजक लोक छैथ।" हम- "से कियाक?" ओ अपन ज्ञान सँ हमरा आलोकित करैत कहलाह- "मिजाजक पता रहत तहन ने ओहि अनुरूपे काज कैल जेतई।" फेर ओ सोझ भ' केँ बैस गेलाह आओर एकटा नम्बर दूरभाष पर डायल करैत बजलाह जे मयंक सर केँ फोन करै छियैन्हि। ओकरा बाद एकटा चुप्पी आओर फेर बिमलेश जी मुस्की दैत विनीत भाव मे दूरभाषक चोगा पर बाजलैथ- "प्रणाम सर। हम बिमलेश।"
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"जी सब नीके छै अपनेक आशीर्वाद सँ।"
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"जी अहाँ संगे काज करय केर आनन्द किछ आओर छल। अहाँक विषयक पकड आओर अहाँक ज्ञान------- ओह सभ मोन पडैत अछि।"
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"झूठ नै कहै छी। अच्छा सर अहाँक सामान सभ पहुँचल की नै? सॉरी सर, एक दिन बिलम्ब भ' गेल, ट्रान्सपोर्ट मे ट्रक खाली नै छल।"
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"जी इ अपनेक महानता अछि। नहि त' हम कोन जोगरक लोक छी। कोनो आओर काज हुए त' कहब जरूर सर।"
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"जी प्रणाम सर।" ई कहैत ओ दूरभाषक सम्बन्ध विच्छेद करैत हमरा पर विजयी मुस्की फेंकलैथ आओर अपन आँखि हमर आँखि मे ढुकबैत कहलैथ जे कहू आर की हाल चाल। हम- "नीके छी यौ। बजबय लेल आयल छलहुँ। चलू नबका आयुक्तक चैम्बर मे मीटिंग अछि।" ओ तुरत हमरा संगे चलि देलैथ आओर हम सब आयुक्त महोदयक चैम्बर पहुँचलहुँ जतय सभ अधिकारी बैसल छलाह। मीटिंग शुरू भेल। एकटा चुप्पी ओहि कक्ष मे पसरि गेल। हमरो विभाग मे आन सरकारी विभाग जकाँ भरि साल मीटिंग चलैत रहैत अछि। एहि विषय पर एकटा ग्रन्थ लिखल जा सकैत अछि जे मीटिंगक कतबा फायदा अछि। खैर मीटिंग मे आयुक्त महोदय अधिकारी सभ केँ खूब पानि पियेलखिन्ह आओर खराब प्रदर्शनक लेल पुरकस डाँट सेहो भेंटल। कहुना मीटिंग खतम भेल आओर हम सभ ओहिना पडेलहुँ जेना बिलाडिक डर सँ मूस परायत अछि। मुदा बिमलेश जी फेर सँ अनुमति ल' केँ भीतर ढुकलाह आओर आयुक्त सँ कहलखिन्ह- "प्रणाम सर, हम बिमलेश।" आयुक्त भावरहित बजलाह- "बैसू।" हमर विभाग मे कोनो नबका अफसर आबैत छैथ त' विभिन्न अधिकारी आओर कर्मचारी केर खासियत सँ हुनका परिचित करेबा मे किछ लोक आगाँ रहैत छैथ। बिमलेश जीक (कु)ख्याति सँ आयुक्त महोदय नीक जकाँ परिचित क' देल गेल छलाह। भाव विहीन चेहरा सँ आयुक्त महोदय बिमलेश जी केँ कहलखिन्ह- "अहाँक रेकॉर्ड त' बड्ड खराब अछि। किछ काज नै भेल अछि।" बिमलेश जी पैंतरा बदलैत बजलाह- "सच पूछू सर त' एहि लेल अपनेक मार्गदर्शन लेल हम आयल छी। एहि चार्ज मे कहियो ठीक सँ काज नहि भेल। आब अहाँ केँ अयला केँ बाद सभ ठीक भ' जेतै।" आयुक्त महोदय कनी नरम भेलाह आओर अपन योजना पर चर्चा करय लगलाह। बिमलेश जी मन्त्र मुग्ध भ' केँ मुस्की दैत हाँ हूँ करैत सुनैत रहलाह। गप खतम भेला केँ बाद बिमलेश जी कहलखिन्ह- "सर अहाँक डेरा पर सामान उतारबाक लेल ५ टा लोक पठा देने छी आओर रातिक खेनाई डिलाईट होटल मे आर्डर क' देने छी।" आयुक्त महोदय किछ नहि बजलाह। ओकर बाद पता चलल जे बिमलेश जी केँ नियमित बोलाहट होबय लागलैन्हि आयुक्त महोदय लग। दू मासक बाद आयकर अधिकारीक बदलीक आर्डर आयुक्त महोदय केँ आफिस सँ निकलल। श्री बिमलेश जी केँ अपन कार्यालय मे छोडैत एकटा आओर कार्यालय केर अतिरिक्त प्रभार देल गेलन्हि। संगहि आयकर अधिकारी (मुख्यालय) केँ अतिरिक्त प्रभार सेहो देल गेलन्हि। हमर पदस्थापन एकटा दूरक जिला मे क' देल गेल छल। साँझ मे बिधुआयल मुँह लेने घर पहुँचलहुँ। कनियाँ मुँह फुलेने बैसल छलीह, कियाक त' हुनका पहिने बदलीक समाचार भेंट गेल छलैन्हि। हमरा दिस तिरस्कार केँ संग देखैत बजलीह- "अहाँ त' ओहिना बुडिबक रहि गेलहुँ। बिमलेश जी केँ देखियौन्ह, कतेक सफल अधिकारी छैथ। सभक पसिन्न छैथ।" हम मौन रहि केँ हुनकर गप सुनैत अपन पराजय स्वीकार केलहुँ।
नवीन ठाकुर, गाम- लोहा (मधुबनी ) बिहार, जन्म - १५-०५-१९८४, सिक्षा - बी .कॉम (मुंबई विद्यापीठ), रूचि - कविता , साहित्यक अध्यापन एवं अपन मैथिल सांस्कृतिक कार्यकममे रूचि। कार्यरत - Comfort Intech Limited (malad) (R.M. ) १
मिथिला उवाच
फलना बाबु मरि गेला बहुत नीक लोक छलाह ..........के कहलक ..........एखने एगो धिया-पुता बजैत जाइ छल जे फलना दिन भोज हेतै ....बाहर निकलहुँ तँ ...हरिबोल - हरिबोल सुनाइ पड़ल .!
तूँ ....जेबहक की नै कठियारी .....
हाँ हाँ किएक नै जेबै !
.....जाएब तँ संग कऽ लेब कने -
...
फलना बाबु छी यु कठियारी के हकार दैत छी .........चिलना बाबु नै रहला .........!
ओहो.. ओहो ...काल्हिये तँ गप्प भेल छल हुनका संग हमरा पोखरिपर भेटल छलाह .........आहा..हां .. कहियौ...... जन्म मरणक कोनो भरोसा नै होइत छै यौ बाबु ..........ठीके कहैत छिऐे काका .......!
लेकिन गेलाह सभटा सुख भोगि कऽ बेटा-पुतौह बड़ निक छनि , खूब सेवा वारी करैत छलनि .........!
.हाँ हाँ किएक नै करथिन, कमिये कोन छलनि ....एगो बेटा डाक्टर छनि ...एगो, वन विभागक अधिकारी छनि ........बेटियो सभ सुखी सम्पन्न छनि ,
सभ काजसँ निश्चिंत भऽ कऽ मरलाहेँ!
हँ से तँ सभ अर्थेसँ महादेवक कृपा सन भरल पुरल छथि,....... लेकिन काज राज ढंगसँ करता तखन ने ..........भगवान् कोनो कमी नै देने छनि .........जवार तँ खुएबाक चाही ........हँ तँ से किएक नै.......!
चल चल देरी भऽ रहल अछि ..........फेर एबाको अछि ..........पूजा पाठ करबाक अछि ......!
राम नाम सत्य है ............!
हरी बोल ....हरी बोल .......!
कथीक अतेक हल्ला भऽ रहल छै यौ छोटका बाबू ........- भौजी फलना बाबुक स्वर्वास भऽ गेलनि !
ठीक छै अहाँ चलि जाउ कठियारी ....... भैयाक पठा दियौ कने अंगना भोरसं भुखले प्यासल बैसल छथि ....दालानपर !
.................................................................. !
इजोरियो रातिमे टोर्च लऽ कऽ ई के आबि रहल अछि बुरलेल आदमी हौ
तखने मुँहपर टोर्च मारलकैन .........काका ......एकाद्सा - दुआद्साक नोत हँकार दैत छी
......पुरख्क दफ्फा ..!
आहा ...फलना बाबु ...औ औ बैसू .....!
नै काका बड़ काज अछि एखन ...!
हाँ अहाँकेँ तँ एखन काजक अंगना अछि बौआ , ........बहिन सभ एलीहेँ की नै?
हाँ सभ आबि गेल ......काका छोटकी पुछै छल अहाँक बारेमे .........जे काका जिबिते छथिन ने ..........!
हह हहह हा.. हा.. हाँ हाँ ओकरा तँ होइते हेतै , बच्चामे बड़ मारने रहिऐे ने ......!
बड़की बहिनकेँ तँ ननकिरबो छऽ ने एकटा ......
हाँ ५ सालक छै ननकिरबा ..........!
भगवान् देह समांग दोउ बढ़िया .......बड़ निक ! ठीक छै चली छी काका .!
भोजक दिन -
कए गो तरकारी छै हौ भाइ .........?
सात गो तरकारी छै काका ......!
कोन-कोन ?
.........आलू- कोबी, भाटा-अदौरी , कदीमा , सजमैन, साग , बड़ ,आ बड़ी ,
आह बहुत निक .......सबेर सकाल बिझो भऽ जेतै तँ ठीक रहितै ..बेसी रातिमे नै ठीक होइ छै
...धिया पुता सब उन्घा लागै छै ..........हाँ -
जाने....... कनेक देख कऽ आब तँ कतऽ तक काज आगाँ बढ़लैए .......!
तखने.दूर सं..........!
फलना बाबु छी यौ ....बिझो करबैत छी .!
हाँ हाँ .........ठीक छै ........!
हइ बिझो भेलै ....बिझो भेलै....!
हइ छौरी सभ हल्ला नै कर ....!
बाबा ......भर्तुआ सुइत रहल ...!
हइ जो ने उठा दही ने सांझे सँ हल्ला केने छलअ भोज खाएब भोज खाएब .....जो जल्दी लोटा लऽ कऽ आऽगऽ ..!
दू गो लोटा लऽ लिहँ.......
हाँ...!
यौ एगो आउर पात दिअ ई फाटल अछि ......
हइ छौरी ....पात खेबा की भात .....!
जाए दियौ बच्चा छै हइ ले बौआा ...दोसर पात !
हइै भात उठब ने ......! मऽ तोरी गप की करैत छऽ उम्हर एखन धरि पतों नै परसला ....!
दाइल लेब दाइल ..! डालना.... डालना....!
पाइन ओ एगोटा तँ उठा ला कम सं कम ....की सब तरकारिये परसबऽ!..हरे करिया ..एम्हर आ ..चल पाइन उठा ले तूँ .!
हइ हम पैन नै उठाएब .......!
हइ बह्निचो पैन पिएला सँ धर्म हेतौ .......उठा ने !
.....................
.............
हइै क़ात भऽ कऽ हाथ धोए जाइ जाउ - हइ ई के धिया-पुता अछि ........हइ बिच्चइमे रास्ता पर पाइन हरबै छऽ
...लोक पिछैर कऽ खस्तै एकने चंडाल कही के ...!
बहुत नीक .........छल काका भोज ,
जय जय भऽ गेलै ..!
हौ एतबो नै करितै तँ नाक -कान कटब के छलै की ...एतेक सम्पैत कतऽ कऽ रखतै ....समाजमे रहऽ के छै की नै ....!
हाँ सेहो छिऐ........देखियौ आब काल्हि की होइएा ....सुनऽ मे आएलऽ जे जवार भऽ रहल अछि पांच गाम नोतात.!
आह करबाके चाही .. अहि सं नाम होइत छै ....अपने नाम हेतै ने कोनो हमर थोड़े ने, हाँ .......गामक नाम सेहो हेतै कने !
भोजक २-४ दिन पश्चात ...........!
हौ फलना बाबुकेँ राति तबियत ख़राब भऽ गेलै की ....!
हल्ला सुनलिऐ काका आइ भोरमे ........ओहो लटकले छथि ..........पाकल आम छथि
....... आब जे दिन जीबैत छथि से दिन !
हाँ .........हमरो जेबाक छलए बंबई लेकिन ई हल्ला सुनलिऐ
तँ रुकि गेलहुं !
दू चारि दिन आर रूकि जाइ छी .......कही ओहो ने ...आब कतबो छथि तँ दियादे छथि ने .....चलि जाएब तँ बदनामिये हएत .....!
तहि दुआरे रुकिए जाइ ...............!
३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमर २ नवीन कुमार "आशा"
३.१.१.गुलसारिका २.इरा मल्लिक ३.शांतिलक्ष्मी चौधरी ४शेफालिका वर्मा
१
गुलसारिका, भोपाल
अहाँक जीवनक
अहाँक जीवनक
हमही सपता आ विपता
अहिना डोरा घुमैत रहत
हम गीरह बनैत रहब
अहाँ गृहस्थीक धानक खोईंछा
छोडबैत रहब
चलू आजुक इजोरियामे
धो आबी अपन अपन
मुँह आ कान
चिन्हबाक करी प्रयत्न जे
एखनधरि हम आ अहाँ
कतेक भेलहुँ अपन आ
कतेक छी आन
कनी देखी अहाँक तरह्त्थीक रेखा
आ माथा परहुक रेघा
सब ठाम त सँगहि छी
कतहु टेढ त कतहु सीधा
जँ नहि लागए बेजाए
त कहि दी बुझाए
सप्तपदीक अनुबन्ध सँ बहुत पैघ होइत छै
प्रकृति आ पुरुष केर बन्ध
अहाँ अहिना
बांहि पुजबैत रही
मोंछ पिजबैत रही
सीता जेकाँ हम
ठिठियाइते रहब आ
लक्ष्य दीस धकियबिते रहब
ओना त टांगल छीहे
अहाँक कान्ह पर
पहिरल गंजी वा पुरना गमछा जेकां
घुसिया जैब कोनो कोन
त भरोस अछि
मोने मोन उपालम्भ दैतो
नील आ टीनोपाल द
फेर पहिरिये लेब
तें हे नाथ जुनि करी मोन छोट
संघर्षक पजारल चूल्हि पर
खौल दिय अदहन
अहाँ बढ़ू आगू
कंगुरिया धेने हम
पाछुए रहब ठाढ़
२
इरा मल्लिक, पिता स्व. शिवनन्दन मल्लिक, गाम- महिसारि, दरभंगा। पति श्री कमलेश कुमार, भरहुल्ली, दरभंगा।
जीवन
-------
जीवन अछि,
आह, कराहक सिलसिला ,
पीड़ा आ दर्द के
रंगीन,
मनमोहक कथा!
सब किछ,
भ्रम,
स्वप्न,
मिथ्या,
प्रवँचना!
दुनियाँक सब रिश्ता अछि,
ममताक मृगतृष्णा!
जीवन के ,
सिर्फ अपना लेल जिनाय.
अपन लेल सोचनाय,
हमर जीवन,
बस हमरे लए?
नहिँ नहिँ,
एना सोचब तै.
होयत स्वार्थ हमर,
नितांत स्वार्थ !
जीवन के किछ अर्थ भेनाइ,
ते जरुरी छैक,
जीवन के एक लछ्य भेनाइ,
ते बेहद जरुरी छैक।
ओ लछ्य,
भए सकैत अछि,
भिन्न भिन्न ।
ककरा हम कहबै,
सत्य.
ककरा हम,
असत्य ठहरा सकैत छी।
किन्तु एक सत्य ,
मानव जीवन मेँ,
आनि सकैत अछि,
अथाह शान्ति.
असीम आनन्द!
ओहि सत्य के बुझबाक ,
हम प्रयास करैत छी निरंतर!
हमरा लए हमर जीवन मेँ,
सबसे पैघ वैभव,
ओ स्वर्गिक सुख अछि,
जे दैत अछि
अपूर्व सँतोष,
मानव सेवा मेँ छिपल अछि,
हमर अँतर्मन के ओ ,
अलौकिक सत्य!
मानव सेवा आ परोपकार सँग,
जी उठैत अछि ,
हमर आत्मा,
तृप्त भs जायत अछि मोन,
ओहि आत्मिक सुख के आगू,
दुनियाँ के सब सुख .
बुझायत अछि छोट , छोट,
बहुत छोट!!!
मानव सेवा आ परोपकार,
यैह अनँत निधि अछि ,
यैह निताँत सत्य अछि,
यैह एक लछ्य अछि,
हमर जीवन के!!
३
श्रीमति शांतिलक्ष्मी चौधरी, ग्राम गोविन्दपुर, जिला सुपौल निवासी आ राजेन्द्र मिश्र महाविद्यालय, सहरसा मे कार्यरत पुस्तकालयाध्यक्ष श्री श्यामानन्द झाक जेष्ठ सुपुत्री, आओर ग्राम महिषी (पुनर्वास आरापट्टी), जिला सहरसा निवासी आ दिल्ली स्कूल ऑफ इकानोमिक्स सँ जुड़ल अन्वेषक आ समाजशास्त्री श्री अक्षय कुमार चौधरीक अर्धांगिनी छथि। प्राणीशास्त्र सँ स्नातकोत्तर रहितो शिक्षाशास्त्रक स्नातक शिक्षार्थी आ एकटा समाजशास्त्री सँ सानिध्यक चलिते आम जीवनक सामाजिक बिषय-बौस्तु आ खास कऽ महिलाजन्य सामाजिक समस्या आ प्रघटनामे हिनक विशेष अभिरूचि स्वभाविक।
गजल
१
पले पल प्रेमक प्यास लागय आब फ़ेर कहिया मिझायब यौ
रूइसकेँ तँ जाइत छी परायल पिया फेर कहिया आयब यौ
पचासे हजारक लेल ऐना तामसायल छी कथी लय पीतम
काज अस्सल फेरसँ हम अपन माय बाबुजी केँ बुझायब यौ
परुके साल एल.सी.डी. आओर फ़ीज बाबुजी रहैथ कीन देने
कहै छलाह अपन जमायक एहिना सभ सsख पुरायब यौ
मोटरोसाइकिलक सsख अहाँक ओहो जल्दीये कय देता पुरा
बस आब दसे हजार रुपैया बचल आरो छैक बचायब यौ
बाबुजीक आय छैक बड़ कम खर्चा अथाह अपरम पार यौ
तैपर मासेमास भायकेँ पढ़ेवाक खर्चा होस्टल पढ़ायब यौ
साल दुई साल तक छैक सेहो दस लाख दान-दहेजक खर्चा
वयस बितल जाइत छोटकी बहिन केँ पहिने बिहायब यौ
बर हाथ लगैल बेटीक ऐतै करैथ बाबुजीयेक बड़प्पन
बुझनुक लोक स्वयं अहाँ छीहै हम गमारीन की बुझायब यौ
कहै छी हम बेचि लिय हमर सभटा गुड़िया गहना जेब़र
सोन शृंगार नय रहत तेँकि पिया हम उढ़ैर नै जायब यौ
हम अहाँकेँ छौड़ि कतय जायब पिया, छौड़ि कतय जायब यौ
चाहे मैरि-जैरि आब वा सदेह सिते जकाँ मैटिये समायब यौ
"शांतिलक्ष्मी" कहैत छथी यौ अहाँ तिरहुतक सर्वपुज पाहुन
और कतैक दिन धरि विदेहक बेटी जाति केँ सतायब यौ
....................वर्ण २४..................
२
विकासक आगु विचार देखियौ कोना खसल जाइत छै
लिअ’ लोगबाग आब प्रगतिक पथ चढ़ल जाइत छै
बुढ़-पुरान सँ सिनेह-भावक भs रहलै अभाव आब
स्थुल माय-बापक निमेराक तँ रीते उठल जाइत छै
बुढ़वा-बुढ़िया केँ भिन कs बेटा गप भँजे छथि सुभ्यस्त
आब कोवरे सँ गिरथैनि बहराति देखल जाइत छै
कोर पोसल स्वपुत जखन भs रहल छै कर्तव्य च्युत
भावक धर्मपुत पाबि बुढ़ाकेँ नोर ढ़रल जाइत छै
खड़ खड़ जोड़ि जे ठाढ़ केयलनि आश्रम घर गृहस्ती
वैह बुढ़ घरसँ निकैलि बृद्धाश्रम ढ़ुकल जाइत छै
बुढाक स्वर्ग सिधारैक पसरल छै भोरे सँ घुनसुन
मुदा कनना-आरोहैटक आइ लाजो उठल जाइत छै
"शांतिलक्ष्मी" हँसै सोचि सोचि चौथापनक अहाँक दुर्गति
इहो वयस बुढ़ापाकेँ तँ ओहिना गुड़कल जाइत छै
.....................वर्ण २१................
४.शेफालिका वर्मा पानिक कम्पित लहरि पर ,
नै रचू अहाँ इतिहास हमर
पवन-उर्मिक वेगपर नै रचू अहाँ हास हमर
कतेक व्यथा -वाण लागल
काल धनुष पर झूलि कऽ
सांसक लघु लहरि सिहकौलक
संसृतिक फूल कें
रेत केर देवार पर ,आइ सजल उजास हमर
चित्र-अंकित रेख मे नहि जीवनक स्पन्दन
क्षीण सुधि-दीप ज्योतित कोना
स्नेह-वर्तिका आइ अचेतन
प्राणक लघु-निलय मे आइ
मोन उदास हमर
क्षण क्षण परिवर्तित अग-जग
लहरि लहरि मे मौन निमन्त्रण
नीरव निःस्वर पल पल
अहांक उपहारक दर्शन
तुहिन विन्दु सन किसलय
अंचल मे
झरैत कुसुम तारक सन भाव-हृदय
घन श्यामल मे !
भेलौं निःशेष प्रीतिक प्रतीक्षा मे
अनलिखल पाती दऽ रहल छी
समीक्षा मे
एहि अक्षम लेखनी सँ नै लिखू अहाँ
तरास हमर
काल-पत्र पर छविमान सतत
उच्छ्वास हमर
पानिक कम्पित लहरि पर नै लिखू अहाँ
इतिहास हमर...............
१.सत्यनारायण झा २ओमप्रकाश झा १
सत्यनारायण झा धारक कछेर मे बैसल टुकुर टुकुर तकइत छी,
तकइ छी एहि धार क’,तकइ छी ओहि पार क’
यैह ओ धार छैक ,?सभक करेज पर छुरी चलबैत छल
जवानों क’ दिल धरकबैत छल |
एकर जखन जवानी रहैक ,
कतेक उफनैत छलै ,कतेक फनकैत छलै
जेना एकरा आगा कियो नहि छै
एकरा डरे कियो सुतैत नहि छल
ई कखन की करत ,एकर कोनो ठेकान नहि ?
गामक गाम सुन्न क’ देलक ,
पोखरि,इनार ,गाछी विरछी सभ नाश केलक ,
ई गामक जेठरैयत छल ,गामक पटवारी छल
एकर आगमने सुनि लोक कपैत छल |
बाप रे फेर डकुबा एतैक ,
एहिबेर नहि जानि की करतैक ?
समूचा गाम क’ सुड्डाह केलक ,
घर, आँगन, दलान तोरलक |
धीयापूता कलोल करैत छल ,
भूखे पेटकान धेने ,बेजान रहैत छल |
मुदा ,एहि डकुबा क’ कनेको दया नहि ,विवेक नहि ,
निष्ठुर हिरदय ,कर्कश स्वर ‘
अगिया बेताल छल ,ई धारे नहि, महाकाल छल |
कतेक क’ मांग पोछलक ,कतेक क’ लहठी तोरलक|
कतेक क’ कोखि उजारलक ,
ई राक्षसे नहि ,पैघ भक्षक छल |
एकर प्रवाह तेज होयते ,लोक सिहरि जाइ छल ,
केखनो सीधा दौडइत छल ,पाछू घुमैत छल ,
चक्कर कटैत छल ,
विकराले नहि ,भयानक लगैत छल |
समय चक्र उनटलइ ,एकरो अंत एलइ
एकरा बुझल नहि छलैक ,एकरो काल घेरतइक ‘
इहो एक दिन निष्प्राण हेतैक |
एकरा करेज पर लोक घर बान्हि देलकै ,
ई निर्जीव भेल परल ,नगटे ओंघरायल छैक ,
जतेक पाप केलक ,सभक फल पेलक |
एकर हाल भिखमंगनी जकाँ छैक ,
एकरा देह पर गुदरी लादल छैक ,
हुक हुकी छैक ,मगर टुकुर टुकुर तकइ छैक हमरे जकाँ ,
,जेना हम तकइ छी एखन एकरे जकाँ |
२
ओमप्रकाश झा
गजल
धरल रहि जैत होशियारी, मोटरी बान्हने की हैत।
जखन टूटल अछि केवाडी, यौ ताला भरने की हैत।
नीमक पात तर चानन कानै ई कोन रीत रचेलै,
जे ई सवार बनल सवारी, नाक रगडने की हैत।
केहेन गाछी अहाँ लगेलौं जे भूताहि भेल जाइ ए यौ,
बढबै लागै जखन बेमारी, दवाई कीनने की हैत।
झरकल मुँह केँ झाँपने नीक होइत छै सदिखन,
राखले रहि जैत ई तैयारी, मुँह केँ रँगने की हैत।
शीशा महग भेल हीरा सँ "ओम" केँ अचरज लागल,
राखले घर भरल बखारी, सगरो कानने की हैत।
------------------ वर्ण २० -------------------
गजल
किया एना ई भ' गेल छै देखू उनटा व्यवहार।
हर वहै से खढ खाय छै, बकरी खाय अचार।
ककरो तन नै झाँपल, कियो आडम्बर छै केने,
कियो तरसल बूँद लेल, लागल कतौ सचार।
रामनामा ओढि केँ आबै भीतर रखने खंजर,
छै जकर मोन दरिद्र, हमरा देलक हकार।
महगी केर बाण चलै छै चाम देहक नोचैत,
जन-जन ओ बाण सहै भूशायी पडल लाचार।
जीबै केर अधिकार छिनायल "ओम" देखू कोना,
'सुनामी' बनि तडपैत मोन मे भरल विचार।
--------------- वर्ण १८ -----------------
गजल
बालुक भीत बनल जिनगी चमकै छै कोना।
सुखायल ई फूल सम्बन्धक गमकै छै कोना।
नकली मुस्कीक भीड मे हरायल कतौ हँसी,
चिन्ता भरल मुँह पर मुस्की दमकै छै कोना।
पैघ भेल जाइ छै मनुक्ख, झूस विचार भेलै,
कर्म-धार मे हल्लुक विचार जमकै छै कोना।
भ' रहलै तमाशा नाचक बिना सुर-ताल के,
सरगम कतौ नै मुदा पैर झमकै छै कोना।
काठक बनल लोक रहै छै ऊँच मकान मे,
जे सुनै छै कियो नै किछ, "ओम" बमकै छै कोना।
------------------- वर्ण १७ ------------------
गजल
हमर हृदयक कुंज-गली मे विचरैत मोनक मीत अहीं छी।
गाबि-गाबि जे मोन सुनाबै सदिखन ओ राग अहीं गीत अहीं छी।
जिनगी हमर पहिने कहियो एते सोअदगर किया नै छल,
सबटा सोआद अहीं मे छै बसल, मीठ, नोनगर, तीत अहीं छी।
आँखिक बाट मोन मे ढुकि केँ प्रेमक घर आलीशान बनेलियै,
ओहि घरक कण-कण मे छै नाम अहींक, ओकर भीत अहीं छी।
जुग-जुग सँ प्रेमक धार मे अहीं हमर पतवार बनल छी,
हमर प्रेमक दुनियाक सुन्नर रंग सबटा आ रीत अहीं छी।
"ओम"क मोन केर कोन-कोन मे बसल रहै छै अहींक सुरभि,
आब ई जमाना सँ की लेनाई प्रिये, हमर हार आ जीत अहीं छी।
------------------------- वर्ण २४ --------------------------
गजल
मिझबै लेल पेटक आगि देखू पजरि रहल छै आदमी।
जीबाक आस धेने सदिखन कोना मरि रहल छै आदमी।
डेग-डेग मँहगी केर निर्दय जाँत मे पीसल राति दिन,
पीयर मुँह बिहुँसि केँ उठौने कुहरि रहल छै आदमी।
जनसंख्याक नांङरि कियाक बढले जाइ ए बिन थाकल,
फसिलक उपजा कम भेल, सौंसे फरि रहल छै आदमी।
स्वार्थक एहन बिहाडि चलल छै आइ मनुक्खक गाम मे,
सम्बन्धक झरकल गाछ सँ आब झरि रहल छै आदमी।
कहियो हँसीक ईजोर पसरतै "ओम"क अन्हार टोल मे,
यैह सोचैत सलाई विश्वासक रगडि रहल छै आदमी।
-------------------- वर्ण २२ ---------------------
गजल
कर जोडै छी सरकार आब रह' दियौ।
कते करब भ्रष्टाचार आब रह' दियौ।
'टू जी', चारा, खान घोटाला, किछो नै छूटल,
भरि गेल अछि 'तिहाड' आब रह' दियौ।
मुखिया बनै सँ पहिने चलै छलौं पैरे,
कोना चढ' लगलौं कार आब रह' दियौ।
कण्ठ मोकि जनताक कते राज करब,
जनता नै छै यौ लाचार आब रह' दियौ।
कोना फूसि बाजि अहाँ "ओम" केँ ठकि लै छी,
केलियै लाजक संहार आब रह' दियौ।
----------- वर्ण १५ ----------------
गजल
घोघ तर सँ चान उगल, अँगना मे इजोर पसरि गेलै।
मोन हमर छल बान्हल, किया आइ अपने पिछडि गेलै।
मृगनयनी, मोनमोहनी, चंचल नयन सँ प्राण हतल,
मुख पर नयन-कमल, जै सुरभि सँ मोन पजरि गेलै।
सुनि अहाँक वचन, भ' प्रेम मगन, मोन-मयूर नाचल,
प्रेम-बोली तोहर सुनल, इ हृदय नाचि केँ ससरि गेलै।
हिय-आँगन, पायल झन-झन, संगीत मधुर छै बाजल,
रोकि कोना जे मोन नाचल, नै कहब किया नै सम्हरि गेलै।
अहाँक अजगुत रूप देखि केँ, भाव "ओम" रोकि नै सकल,
जे किछ छल मोन राखल, कोना देखू सबटा झहरि गेलै।
---------------------- वर्ण २२ ---------------------
गजल
किया एना ई भ' गेल छै देखू उनटा व्यवहार।
हर वहै से खढ खाय छै, बकरी खाय अचार।
ककरो तन नै झाँपल, कियो आडम्बर छै केने,
कियो तरसल बूँद लेल, लागल कतौ सचार।
रामनामा ओढि केँ आबै भीतर रखने खंजर,
छै जकर मोन दरिद्र, हमरा देलक हकार।
महगी केर बाण चलै छै चाम देहक नोचैत,
जन-जन ओ बाण सहै भूशायी पडल लाचार।
जीबै केर अधिकार छिनायल "ओम" देखू कोना,
'सुनामी' बनि तडपैत मोन मे भरल विचार।
--------------- वर्ण १८ -----------------
१. जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’ २.मिहिर झा ३.झा हेमन्त बापी ४.जगदानंद झा 'मनु'
१
जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’ गजल
1
कांट-कूस अछि भरल बाट पर जहां-तहां
नढिया,कूकुर मरल बाट पर जहां-तहां ।
ए राजा,कनिमोझी आ कलमाडीक युग इ
केने छथि सभ दखल बाट पर जहां-तहां ।
हेय दृष्टि सं देखि रहल अछि नर-नारी कें
सांढ आ महिशा पडल बाट पर जहां-तहां ।
ऐंठन एखनहुं धरि ओहिना के ओहिना अछि
जौड कते अछि जडल बाट पर जहां-तहां ।
खोपडी ठाढ छलै अनगिनती,बिला गेलै
ठाढ भेल अछि महल बाट पर जहां-तहां ।
बूझि पडैये जीत गेल छथि पुत्र पिता सं
रंग बहुत अछि उडल बाट पर जहां-तहां ।
आइ हजारो अन्ना केर आवश्य्यकता अछि
सत्य बहुत अछि गडल बाट पर जहां-तहां ।
2
अपने छी एत्त’आ मोन कतहु टांगल अछि
जानि नहि देख’ ले’ की की सभ बांचल अछि ।
सभठां बिलाइ छै आ सभ ठाम रस्ता
घूरब कतेक बेर सभ बाट काटल अछि ।
कर्जा पर कर्जा आ रसगुल्लाक भोज
ओझा बताह आ कि भरि गाम पागल अछि ।
मुंबईमे बेटा आ दिल्लीमे कनियां
बूढ मोन दूटा हजार ठाम बांटल अछि ।
जीवकान्त,गौहर,वियोगी,विहंगम
देखू असंख्य फूल मालामे गांथल अछि ।
गाम-गाम देखू ई दृश्य महाभारतक
शतरंजक खेलमे सभ हाथ बाझल अछि ।
जहिया समयलीह सीता एहि धरतीमे
तहिया सं धरती हजार बेर फाटल अछि ।
२
मिहिर झा चक्रव्यूह :
निर्विकार निराकार उन्मुक्त पदार्थ
रंग रूप जाति सों विमुक्त यथार्थ
मनुष्य हमरा कहै प्रेत
हम घुमै छी खेते खेत |
भेल एक टा ज़ोरगर प्रहार
जन्म लेलहु करैत चीत्कार
देव ! जखन उठाएल मूह
देलहु हमरा ई चक्रव्यूह
पढ़ल लिखल भूजा फाँकी
पहिल व्यूह टूटल पेट झाँकि
हन्सैत छल सुनि हमर कथा
के बूझत मोनक व्यथा ?
व्याह भेल परिवार भेल
उत्तरदायित्व साकार भेल
बन्लहु हम कोलहुक बरद
कोनो कष्ट आब की गरत
तोड़ल दोसर व्यूहक् तार
हे भगवान लगाऊ पार |
धीया पुता पढि लिख गेल
व्याह दान सों फ़ुर्सत भेल
राम राम हम पढि रहल छी
अंतिम व्यूह सों लड़ रहल छी
फेर सों आब हम भेलहु चेत
भनहि छलहू हम बनल प्रेत |
१
झा हेमन्त बापी झा हेमन्त बापि
१
धिया
सुइन सौसे घर मचल कोहराम
सन्न भ रैह गेलौ सब ठामे ठाम
सुनाइ परल घर जनमली धिया
हमरे घर ऐला अभगली कीया
नै बटल मिठाई नै केलौ दान
माथ पकैर कहलौ हे भगवान
कोन जनम के पाप की कैलौ
तकर फ़ल हमरा आहाँ दैलौ
दैतहुँ पूत जे संगइह रहैयत
हमर बुढ़ाढ़ी के ठेंगा बनैत्
इ कि देलौहु जिनगी के झर्
पराय जयत जे अनकर घर
तिलक दहेज लेल टाका जोगाउ
या एकरा इस्कुल पठाउ
कतबो इ पढ़तै लिखतै
चौका चल्हा त करहे पड़तै
जै स रहै छ्ह्लौ परयल
सेहै हमर माथा बथाइल्
सदिखन इज्जत के रे सोची
बेर बेर माथा हम नोची
सुनु आब बापि के रे विचार
तजु मोन स घिनयल वीकार्
पूत एक कुल के दिपक होइये
बेटी दु कुल के इजोत करैये
खोलु मगज आ करु विचार कनि
जौ जुग नै रहैत जनि
त हम आहाँ कोन क रैह्तौ
स्रिश्टी केर कि कल्प्ना कैर्तहु
जै हिन्द जै मिथिला ज्ऐ मैथिल जै मैथिलि
२
की कहु
सैद खन समय परा रहल ऐछ
नै बन्हबाक कोनो जोगार
आब नै काटल कइट रहल ऐछ
जिनगी बनल पहाड़
ज धैर छ्ल समङ्ग देह मे
नै केकरो गोहरेलौ
खसल सरीर जे आएल बुढ़ाढ़ी
निज घर स बहरैलौ
दुःख स माथ पकैर कनै छी
केउ नै नोर पोछैया
जेकरा हाम बजनाइ सीखेलौ
ओ देख दशा हांसैया
बड़का बौआ कहैथ जोर स
किछु नै आहाँ बुझै छी
मंझिला,छोटका दुत्कैर रहल ऐछ
नै जानै कोन जिबै छी
पोता पुतोहु नै आब टेरैया
केउ घुइरो क नै ताकाइ
कुहैर कुहैर क जीब रहल छी
प्राण नै निकसै केहु बाटे
नै सुझबाक ,नै सुनबाक दुःख नै
दुःख एतबे मोन होइए
जिनक लेल जिलौ जिऐलौ
सेहे अप्पन फ़ास बुझैए
चाईर पान्च धिया पुता के म्या बाप्
सहज सुलभ पलै ऐ
मुदा सब मील जुइल क
म्या बाप के नै रखै ऐ
कहै बापि जैनि करु एना
अहुँक समय आबै ऐ
ईहो जुग मे जे जेना करै ऐ
तेहने फल पबै ऐ
झा हेमन्त बापी
३
अभिलाशा
सौसे घर चहैक रहल छै , सब के मूख पर नव उल्लास।
मुदा ओ दुखनी बुढ़िया कोन मे, बैसल मूहँ लटकोने भेल उदास्।
आय ओकर पोता के मुंडण, ओकरा केउ नै पुइछ रहल छै।
घर के सब जन खा पी उठल, ओ अप्पन बेरक बाट जोहि रहल छै।
देख कै गरम कचौड़ी तीमन, भ गेलै दुखनि के मोन अधीर।
सोचलक डेग बढ़ा ल लै छी, अपने सॅ कनि पुरी खीर।
जखने हाथ सॅ उठबै लागल, दू टा पुरी सेरायल।
तखने चिकरैत पगहा वाली, दौड़ल आयल हनहनायल।
देखियो सेखी चटोरी बुढ़िया के, कैनको लाज नै आबै छै।
पाहुन सब लेल बनल पुड़ी सॅ, खाइ ले कोना चोराबै छै।
कतए गेलौ यो देख रहल छी, अप्पन माय के करतुत।
कनिञा के हाँ मे हाँ मिलेला, सोन सनक ओ पूत।
गट्टा पकैर क पगहा वाली, दुखनि के खिचैत ल गेल।
पछुऐत बनल कोठली मे ल जा, दुखनि के बन्द क देल।
पछता क बुढ़िया काइन रहल ऐ, इ भूल किए कएलो।
पहुन सब लेल बनल भोज मे, अप्पन हाथ लगएलो।
पगहा वालि जे केलक , तेकर नै मोन मे अघात।
सोईच नोर के धार बहैया , किया बौआ नै देलक साथ।
बूढ़ छी, बुद्धी हरा गेल छल, तईयो एना नै कऽरैत्।
सभक लॅग किया बेजती कएलक, असगरे मे बुझअबैत।
किछे देर मे मोन ठंढेतै , आयत बजआबऽ हमरा।
कहत चलै माँ मुंड़न देखऽ, नै जएबै आ करबै झगड़ा।
मान मनौअल खुब्बे करत, तखने संगे जएबै।
देखबै मुंडन गेबै गीत, आ मोन भैर आशिश देबै।
सोइच , पुरनका कोना मे धरल , खोललक जा कऽ पेटी।
बान्हल पोटली ओहि मे सॅ काढ़लक , खोललक ओकर गेंठी।
बाजल देब अपन पोता के ,लऽ सोना के सिकरी हाथ ।
देख सब के सेहन्ता हेतै , बैसऽरतै पैछ्ला बात।
सोचैत-सोचैत दिन बितल ,नै बौआ नै आयल समाद।
कछ्मछ दुखनि करए लागल, सांझक दीया बाती बाद्।
सोचलक काज के घर छै, परल नै होएतै मोन्।
अपने ज आशिश दऽ आबै छी , चलल हाथ धऽ सोन।
लटपटायत केहुना डेग बढ़ोलक , आङान दिस ओ जखने।
पगहा वालि फेर नै मारै , सोइच घुरल ओ तखने।
कनि काल तऽ कलमच बैसल , फेर लागल चहुँ दिस ताकऽ।
कतौ केउ नै सुइझ परलै तऽ , पऽइर रहल केथरि पर जा कऽ।
बाट जोहैत-जोहैत केहुना , आधा राइत त बितल।
हारल थाकल नैन बन्द भेल ,जे रऽहे नोर सॅ तीतल।
दु दिन के बद जखन सबके , कोनो चीजक दुर्गन्ध लागल्।
पछुऐत दिस सॅ आइब रहल ऐ , ओम्हरे सब केओ भागल्।
पहुँच जखन सब केओ खोललक, कोठली के केवाड़।
परल चीर निन्द्रा मे दुखनि, देह लुधकल चुट्टी केर धार्।
अखनो बाट ओ जोहि रहल ऐ, लऽ सोना सिकड़ी हाथ।
केउ बुझलक केउ नै बुझलक बापी, दुखनि मोन के बात।
४
दानव
जगदम्बा सॅ उपजल धरती
बनल निठुर आ भऽ गेल परती
फाईट रहल मिथिला के करेज
जनमल एहि ठाम असुर दहेज
घरे घर पैस गेल इ दानव
हैवान बनल मिथिला केर मानव
घरे सॅ धूआँ उड़ा रहल छी
बेटी सन पुतोहु के जरा रहल छी
नित बहिन बेटी के बलि मंगैया
कते के खा गेल मुदा एकर पेट नै भरैया
हाम सब एकरा खुआ रहल छी
घरे मे राछस पाईल रहल छी
अनका स कहै छी एकरा त्यागू
अपना बेर मे सभ सॅ आगू
पहिर लेलौ निर्लज्जक भेश
बेटा के बुझै छी नगदी कैश
काईन रहल मिथिला केर धीया
ई धरती पर जनमलौ कीया
बैन गेलौ घऽरक अभिशाप
परल सोइच मे भाई,माँ, बाप
एकरा जे सभ बढ़ा रहल छैथ
मिथिला के ओ सभ जरा रहल छैथ
कैऽह दै छी ई नै आब परायत
एक दिन अहुँक घर जरायत
दिने दिन ई बढ़ले जाइ ऐ
सुरसा जेना मुहँ फारने जाइ ऐ
आकार एकर भै गेल अनन्त
मिथिला सन्स्कारऽक कऽ देलक अन्त
किरिया ऐ एकरा सॅ सब जूझू
अनकर वैदेही के अप्पन बूझू
सभ गोटे करु एकरा सॅ परहेज
भगवती सप्पत नै लेब आ नै देब दहेज
"बापी" आबो सब चेत जाउ
आउ सब मिल इ दानव के बैलाउ
फेर घरे घर अएती माँ सीया
धन्य बुझब जे घर अएती धीया
२
जगदानंद झा 'मनु', पिता- श्री राज कुमार झा, जन्म स्थान आ पैत्रिक गाम : हरिपुर डिहटोल ,जिला मधुबनी, शिक्षा :प्राथमिक -ग्राम हरिपुर डिहटोल मे, माध्यमिक आ उच्च माध्यमिक -सी बी एस ई, दिल्ली, स्नातक -देशबंधु कालेज ,दिल्ली बिश्वविद्यालय
कविता
(1) कथा अमर अपन मिथिला कए
कथा अमर अपन मिथिला कए
एकरा जुनि बिसरू |
समस्त बिहार मैथिलीमय हुए
आब ओ दिन सुमरु ||
बहुत पिसेलौंह सत्ताक जांत में
आब जुनि पिसल जाउ |
बहुत पछुएलौन्ह पाँछा चैलकए
आबो आगु डेग बढाउ ||
निरादर किएक मायक भाषा कए
एकरा जुनि बिसराउ |
आबो जागू होश सम्हारु
मैथिलि कए बचाउ ||
उठू सुतल सिंह जगाबु
अपन स्वाभिमान कए |
आसमान सs ऊँच उठाबु
अपन मिथिलाक पहचान कए ||
*** जगदानंद झा 'मनु'
-------------------------------------------------------
(2) मिथिला स पलायन
खेत -खडीहान उजार भेल सबटा
मिथिला हमर आई बेगार भेल सबटा|
नहि गामक हाट ओ
नहि कुजर्निक हक़ ओ
नहि ककाक ठाठ ओ
मिथिलाक रित हेराय गेल सबटा|
नहि बजैत पैजनियाँ
नहि बाबी कए खेलौनियाँ
बाबा कए लाठी हेरायगेल सबटा
मिथिला हमर आई उजार भेल सबटा |
पेटक आइग में
आधुनिकता कए खाई में
बेरोजगारी कए है में
मिथिला हमर आई पलायन भेल सबटा
मिथला हमर आई उजार भेल सबटा |
*** जगदानंद झा 'मनु'
--------------------------------------------------
(3) धन हमर मिथिला
जुनि हमरा चाहि, धनक गठडिया |
दए दिय हमरा,हमर माटी कए पुडिया ||
लए लियअ हमरा सँ,हमर कमायल धन |
धन हमर मिथिला, माटी एकर धन ||
मायक आँचर सँ,हमर मिथिलाक धरती |
पायब एहन कहु, दोसर कतए धरती ||
दूर भए कए बुझलौंह, मोल एकर हम |
कि थिक हमर, आ कि एकर हम ||
जाहि आँगन में, जनमलौंह खेलेलौंह |
दाबा पकैर जतए, चलब हम सिखलौंह ||
आई ओही आँगन सँ,एतेक दूर भएलौंह |
कचोतैए मोन कए,दर्शनों नहि कएलौंह ||
४
ऐ सुंदर-सुंदर कनियाँ , अहाँ के बाजे बर निक पैजनियाँ |
ई झुमकी,लाली,बिंदियाँ,चम्-चम् चमके अहाँ के ओधनियाँ||
कनियों त संभारू अपन, ओ मुस्की चौबन्नी बाली |
नै त ल लेट हमर जान , ऐ कनियाँ -झिट्की बाली ||
ई कल्पतरु सन बिखरल , मनोहारी कंचन-वेश |
बिषधर सँ बेसी मादक , ई सुंदर अहाँक केश ||
रहितों जे हम कवी , रैचतौ बरनिक कविता |
बस मोने -म़ोन देखै छी, हम अहाँक छबिता ||
.शिवशंकर सिंह ठाकुर २.अमित मोहन झा १.
शिवशंकर सिंह ठाकुर रुबाइ
ठोर स ठोर सटे ज़ाम टकराई अछि,
नैन स नैन मिले,प्रेम कहाई अछि ,
दूर स हुनका जे देखलौंह एक बेरि,
ने हुनका सुधि रहल ने हमरा सुधि रहल ,
गजल
किये रूईस क चईल गेली ओ हमरा स ,
कोन अपराध जाने भेल हमरा स ,
कत चईल गेली जिनका हम चाहई छलौंह ,
नेह लगा क रूईस गेली हमरा स ,
जिम्हर सँ जाई छि देखै छि हुनके हम ,
मोनक आशा ओ छीन गेली हमरा सँ ,
छाती पर पाथर हम राखि क चलई छि ,
हमरे जान छीन क ल गेली हमरा स,
भूख ने प्यास ,ने नींद लगईया,
हमरे चैन ओ छीन गेली हमरा स ,
हुनकर प्रेम नस -नस में रमल अई ,
की करू आब,हारि गेलौंह अपने स ,
फुसिये हम मोन के रहि-रहि पारतारय छि,
प्रेम बिना हम निरसल छि अपने स ,
राईत - दिन तरपई छि मिलय लेल हुनका स ,
ओ छथि जे हमरे नीन चोरा ल गेली हमरा स ,
कतबो कहै छथि शिव शंकर जे मानि जाऊ ,
हमरे 'प्रेम' चोरा लेली ओ हमरा स ,
२.
अमित मोहन झा ग्राम- भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान), मनीगाछी, दरभंगा, बिहार, भारत।
हमर प्रेयसी
काश हम कविता बनि पबितहु,
अहांक उर के छू पबितहु,
बनि भ्रमित भ्रमर अहांक यौवन के,
लव पंखुरी पर छा पबितहु ।
अहांक आँखिंक काजल होईतहु,
अहांक पलक पे बसि पबितहु,
ओइ नीला मान सरोवर के,
ओ श्वेत हंस हम बन पबितहु ।
अहां प्रेम काव्य के मूरत छी,
रति कामदेव के सूरत छी,
वाणी मे वीणा वास करे,
हर एक कला स पूरित छी।
देख अहांक छम से चलनाई,
वन के हिरनी शर्मावैत अछि,
यौवन घट एना छलक रहल,
जेना घटा उमर कय आवैत अछि।
श्यामल मुख पर झिलमिल बिंदिया,
लय चोरा गेल नैनन निंदिया,
लय कपोल पर वो खनक हंसी,
अहां बनि गेलौ हमर मनबसिया।
हमर श्वेत धवल मन मंदिर मे,
अहां सुर-सुरम्य अहां वीणा छी,
एही श्यामल सुंदर यौवन के,
हे मानिनी हम ते याचक छी।
अधखुला केश के देख देख,
सावन की घटा शर्मा जायत ,
अहांक नैनक काम वाण,
हमर हृदय तरसा जायत।
अहांक कदम के चूमि चूमि,
निर्जीव धरा अति हर्षित अछि,
अहांक मोहिनी छवि देख,
ऋतु वसंत शर्मिंदित अछि।
कारी लट अहाँ बिखरा जाउ,
घनघोर घटा सन अहाँ छा जाउ,
क्षुधित अंक मे प्रेम से लय,,
प्रेमक सावन अहाँ बरसा जाउ।
अधरक ओ सुधा पिलाबु ने,
नैनन से नैन मिलाबु ने,
अपन अहाँ सर्वस्व सोंपि,
हमर अस्तित्व मिटाबु ने।
प्रेम भाग्य के बनि रेखा,
हमर हाथ मे अहाँ छा जाउ,
बन प्रेम पथिक हमर राधा,
“अमित” हृदय मे अहाँ समा जाउ।
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