भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, November 13, 2011

'विदेह' ९३ म अंक ०१ नवम्बर २०११ (वर्ष ४ मास ४७ अंक ९३)- PART V


१.अच्‍छेलाल शास्‍त्री-रणभूमि‍ आ कवि‍ता नामक शीर्षक कवि‍तापर दू शब्द २.नवेंदु कुमार झा -१.चीनी निगम क मिठास सँ दूर निवेशक, नीलामीक बढ़ल समय सीमा २. केसीसीक लेल लागल शिविर ३.उत्तर बिहार तीन टा रेल लाइनक दोहरीकरणक प्रयास मे आएल तेजी
अच्‍छेलाल शास्‍त्री
रणभूमि‍ आ कवि‍ता नामक शीर्षक कवि‍तापर दू शब्‍द

 अच्‍छेलाल शास्‍त्री- १९५६
गाम- सोनवर्षा, पोस्‍ट- करहरी
भाया- नरहि‍या, जि‍ला- मधुबनी
      (बि‍हार)

रणभूमि”‍ कवि‍ता पढ़ि‍ कवि‍क भावसँ हृदए वि‍भोर भऽ उठल। काव्‍यक गहराइमे गोंता लगेलासँ देखबामे बहुत कि‍छु आएल। श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डलक काव्‍य भू-मंडलकेँ प्रभावि‍त करैत अछि‍। संसारक रणभूमि‍मे मनुष्‍यक जि‍नगीकेँ राखि‍ भौति‍क, अध्‍यात्‍मि‍क अर्थ ज्ञानसँ कर्म वा धर्मपर ध्‍यानाकर्षण करबैत अछि‍। वि‍वेकसँ संसार समरमे सामर्थवान योद्धा बनबाक प्रेरण देल अछि‍। मातृभूमि‍क समस्‍याकेँ समूल नि‍दानक लेल कर्मवाण चला भंग संग गमक उपमा दऽ असत्‍यपर सत्‍यक वि‍जयक महाभारतक उदाहरण दि‍एलन्‍हि‍ अछि‍। मनुष्‍यक लेल शकल वसुधाकेँ सुख भोग क्राति‍ लेल, सतत् सचेष्‍ट भऽ जग रणमे, कर्मवीर बनबाक प्रेरणा देलन्‍हि‍ अछि‍।
तन-मन वतन केर पवि‍त्रतापर जोड़ दैत वि‍ष अमृत पहि‍चानि‍ वि‍वेकसँ समए धरातलपर उतरल समस्‍याकपर सचेष्‍ट करौलनि‍ अछि‍।
कवि‍ता” शीर्षक कवि‍तापर- श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल जी सम्‍पूर्ण कवि‍वृन्‍दकेँ अपन मनोभावनासँ चि‍ताकर्षण करौलन्‍हि‍ अछि‍। काव्‍यक सृजनात्‍मक वि‍धाक दि‍शा ि‍नर्देश कएलनि‍ अछि‍। मन स्‍थि‍ति‍ भावनाक प्रवाहमे ि‍त्रवेणी संगममे पाठक संग रचनाकारकेँ गोंता लगौलन्‍हि‍ अछि‍। छंद अलंकार वाणी आनन्‍द युक्‍त कवि‍तापर जोर देलन्‍हि‍ अछि‍। 

नवेंदु कुमार झा

चीनी निगम क मिठास सँ दूर निवेशक, नी
लामीक बढ़ल समय सीमा

बिहार राज्य चीनी निगम क बंद पड़ल चीनी मिल क नीलामीक चारिम चरण में 9 मिलक नीलामी करबाक निर्णय सरकार लेने छल। एहि लेल नीलामी क समय सीमाक भीतर निवेशक कम रूचि देखौलाक बाद सरकार नीलामी क तिथि बढ़ा देलक अछि। नीलामी चारिम चरणक आवेदन पत्रक बिक्री क तिथि 24 अक्टूबर छल। जकरा बढ़ा क आब 30 नवम्बर सं बढ़ा क 22 दिसम्बर कऽ देल गेल अछि। गन्ना आयुक्त विमलानन्द झा जनतब देलनि अछि जे पहिने घोषित 24 अक्टूबर कऽ अंतिम तिथि धरि 18टा निवेशक एहि मिलक नीलामी मे रूचि देखौनि छलाह। आब जखन कि समय सीमा बढ़ा देल गेल अछि निवेशक संख्या बढ़बाक उम्मीद अछि आ उम्मीद अछि जे नव समय सीमा कऽ अर्न्तगत अंतिम समय धरि गोटेक 50टा निवेशक एहि नीलामी में सम्मिलित भऽ सकैत छथि।
सरकार प्रदेश मे बंद पड़ल चीनी निगमक 9टा मिल लोहर, गोरौल, सीवान, न्यू सीवान, वारसलिगंज, हथुआ, गुरारू, समस्तीपुर आबनमनखी स्थित चीनी मिलक नीलामी चारिम चरण मे कऽ रहल अछि। एहि सँ चीनी मिगम के 278 करोड़ टाका भेटबाक उम्मीद अछि एहि मिल सभक वास्ते निवेशक के आकर्षित करबाक लेल सरकार कतेको छूट सेहो दऽ रहल अछि। एहि मिल सभके पहिने 60 वर्षक लेल पट्टा पर देल जाएत आ बाद मे निवेशक मांग पर एकरा 30 वर्षक लेल बढ़ालओल जा सकत। एहि जमीनक उपयोग निवेशक अपना मर्जी सँ उद्योग लगबइ लेल कऽ सकताह। चीनी निगमक बंद पड़ल 15 चीनी मिल मे सँ 6 मिलक नीलाम पहिनहि तीन चरण मे भऽ चूकल अछि।
प्रदेश मे 1997 40टा चीनी मिल छल जाहि सँ ओहि समय से प्रति वर्ष 3 लाख टन चीनी कऽ उत्पादन होइत छल मुदा वर्तमान मात्र 12टा चीनी मिल कार्यरत अछि आ 6 लाख चीनीक उत्पादन भऽ रहल अछि। एहि तरहे कुसियारक उपज पहिने 40 लाख टन प्रति हेक्टेयर छल जे एखन 57 लाख टन प्रति हेक्टेयर भऽ गेल अछि। अगिला दू वर्ष मे कर्नाटक आ महाराष्ट्र जकां 100 लाख टन प्रति हेक्टेयर कुसियार उपजक लक्ष्य राखल गेल अछि।
एहि मध्य प्रदेश मे अगिला मौसम सँ पाच टा चीनी मिल सँ हरिनगर, रोगा, लौरिया, नरकटियागंज आ सुगौली चीनी मिल सँ प्रतिदिन 270 लीटर इथनाल कऽ उत्पादन प्रारंभ भऽ जाएत। एहि मिल सँ स्प्रिट कऽ उत्पादन सेहो प्रारंभ होएत।

केसीसीक लेल लागल शिविर
 

बिहार सरकार प्रदेशक सभ किसान के वर्त्तमान वित्तीय वर्षक अंत धरि किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) उपलब्ध करैबाक लेल प्रयास मे तेजी अनलक अछि। एहि वास्ते जिला स्तर पर जिलाधिकारीक अध्यक्षता मे अनुश्रवण समिति गठित करबाक निर्देश देल गेल अछि। एहि समितिक बैसक सभ मास मे होएत जाहि मे केसीसी बटबाक कार्यान्वन आ अनुश्रवण सुनिश्चित कएल जाएत। अगिला मास 7 सँ 18 नवम्बरक मध्य प्रखंड सभ मे आयोजित कएल जाए वाला कृषि उत्सव मे केसीसीक लेल शिविर लगाओल जाएत। उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी अधिकारी सभके निर्देश देलनि अछि जे 9 दिसम्बर 2011 आ 9 जनवरी 2012 के सभ प्रखंड मुख्यालय मे मेगा किसान क्रेडिट कार्ड शिविर आयोजित आयोजित करथि। कृषि विभागक विषय वस्तु विशेषज्ञ आ कृषि सलाहकार किसान सभ सँ केसीसीक लेल आवेदन पत्र लऽ बैंक के उपलब्ध करौताह। बैंक के सेहो किसान सभ सँ सीधा आवेदन लेबाक निर्देश देल गेल अछि। बैंक के भेटल आवेदन कऽ निपटारा जल्दी कऽ दस दिनक भीतर किसान क्रेडिट कार्ड देबऽ लेल कहल जाएत।

 


उत्तर बिहार तीन टा रेल लाइनक दोहरीकरणक प्रयास मे आएल तेजी
 

पूर्व मध्य रेलवे उत्तर बिहारक तीन टा मुख्य रेल लाइनक दोहरीकरणक प्रयास मे तेजी अनलक अछि। पूर्व मध्य रेलवेक सोनपुर मंडल महत्वपूर्ण मुजफ्फरपुर सँ हाजीपुरक मध्य रामदयाल-हाजीपुर रेल लाइनक दोहरीकरणक लेल तेसर बेर रेलवे बोर्ड के प्रस्ताव पठौलक अछि। 50 किलोमीटर कऽ एहि रेल लाइन पर 172 करोड़ टाका खर्च होएबाक संभावना अछि। एकर अलाबा सोनपुर मंडल द्वारा हाजीपुर-बढ़बाड़ा, आ कोसी रेलपुल (कटरिया-कुरसेला) रेल लाइनक दोहरीकरणक प्रस्ताव के अगिला रेल बजट मे स्वीकृतिक लेल पठौलक अछि। ज्यो एहि तीनु प्रस्ताव के स्वीकृति भेटि जायत तऽ सोनपुर मंडल सँ गुजरऽ बाला सभ रेल लाइनक दोहरीकरण भऽ जायत। एहि तीनु लाइनक दोहरीकरणक लेल मंडल कार्यालय तीन वर्ष सँ प्रयासरत अछि। वित्तीय वर्ष-2010-11, आ 2011-12 मे एहि लाइनक दोहरीकरणक प्रस्ताव पठाओल गेल छल जकरा रेलवे बोर्ड खारिज कऽ देने छल। रेल मंत्रालयक कमान बिहारक हाथ सँ छुटलाक बाद बिहारक प्रति रेलवेक उदासीनता सँ मंडल आ क्षेत्रीय कार्यालयक प्रयासक कोनो सकारात्मक प्ररिणाम नहि नकलल।एक बेर फरे वित्तीय वर्ष-2012-13क बजट मे एहि तीनू लाइन के स्वीकृत करैबाक लेल सोनपुर मंडल प्रयास सएलक अछि। गोटेक 541 करोड़ टाकाक संभावित खर्च बाला एहि तीनू रेल लाइनक दोहरी करण मेला सँ उत्तर बिहार सहित सम्पूर्ण मिथिलांचल मे आबाजाहि आसान भऽ सकत। एखन ई तीनू रेल लाइन पर सिंगल टै
ªक अछि जाहि सँ एहि तीनू लाइन पर टैªकक कमीक कारण गाड़ी सभ कतेको घंटा धरि फसल रहैत अछि। एहि योजना कें पूरा मेला सँ एहि रेल लाइन पर माल गाड़ीक परिचालन मे सेहो सुविधा होएत। पूर्व मध्य रेलवेक अन्तर्गत एखन सोनपुर-हाजीपुर आ कुरसेला-काढ़गोलाक रेल लाइनक दोहरीकरणक काज चलि रहल अछि। दोहरीकरणक लेल प्रस्तावित हाजीपुर बछवाड़ा रेल लाइनक 60 किलोमीटरक दोहरीकरण पर गोटेक 28 करोड़ टाका आ कोसी रेल पुल (कटरिया-कुरसेला) दोहरीकरण पर गोटेक 81 करोड़ टाका खर्च होएबाक अनुमान अछि।
 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
नवीन ठाकुर, गाम- लोहा (मधुबनी ) बिहार, जन्म - १५-०५-१९८४, सिक्षा - बी .कॉम (मुंबई विद्यापीठ), रूचि - कविता , साहित्यक अध्यापन एवं अपन मैथिल सांस्कृतिक कार्यकममे रूचि। कार्यरत - Comfort Intech Limited (malad) (R.M. )

मिथिला उवाच

पुरवा बहि रहल अछि चंडाल जकां सायं-सायं क रहल अछि जेना दौगि रहल अछि .....आतुर भ - व्याकुल भ, हरा गेलैए किछु ..ताकि रहल अछि जेना !

सुखा गेल मु
ह , नाक , कान सटा , पैर तरक धरा मे दरार पड़ि गेल अछि....सौंसे खेत मे ,

छाती फाटिऽ कानि रहल अछि जेना बुझा रहल छै सीता एखने गेलीहेँ धरतीमे फांक द !

मूड़ी ऊपर उठेलहुँ लागल जेना चुनरी ओढा देलक कियो मुहपर .........!

हे भगवान् बज्जर खसौ ई करिया बदरा के
ँ। सभ दिन क अपन सकल देखा क ...मुह दुस क भागि जाइए! कनेकबो दर्द नै छै कोंढ़मे बेदर्दाके ......!

आह ..हा ...नाक पर एगो शीतल बूंद खसल ओढ़नी स
चुबि .......मोनक भ्रम अछि की .....

तखने दुनु पपनीपर खसल जेना कहि रहल अछि, उठू, आब नै सताएब हम अहाँकेँ किया एतेक अन्धेरेज 

भेल अछि .....संतो
भेल भीतरस कने ! 

ठनका ,ठनकल जोरस
तखने ........!

कत
गेल गै छौड़ी ........अमोट सुखाइ छौ अंगनामे उठा ले ने, पाइनलै...... भिजलौटा !

यै भौजी, असगनीपर स कपड़ा उतारू सटा ..........भिजल ........( अमोट उठबैत एगो भौजीयोके काज अरहेने गेल दुलरिया )

एक अछार बरिस क
रुकि गेल त निकलि गेलौं खेत दिस कने .......... आह हा ........ह्रदयक गहरा तक उतरि गेल ओ सोन्ह्गर माटिक सुगंध पहिल अछारक बाद दबने छल जे बहुत दिनस भीतरमे !

मृग मरीचिका जेना भट
कलौंहेँ कने काल ....., ओर ने कोनो छोर ओ सुगंधक ,...

जि-धजि बैसल अछि जेना मिलनक आसमे प्रेमीक बाट तकैत...

चारु दिस सुन्न प
ल अछि खेत, नबका फसलक इंतजारमे!

सरजू काका महिना भ
रि हरक शान चढ़ा रहल छथि फारक, बद सभके खु-पिया क टनगर बनेने निहारैत छलथि आकाश ..

सभ दिन चारू दिशामे घूमि बरखाक आमे,

लि
बरसिल !
 
रातिरि कतेक बरसल नै बुझिल , मुदा निन एहन पड़लौं जेना काल्हिये बोर्डक परीक्षा तम भेल ......!

रि गर्मीके निन आँखिमे घुरमैत छल ! 

भोरे उ
ठि दलानपर बैसि चाह पिबैत रही.....चन्दन बाबू कान्हपर कोदारि नेने दौगल जात छलाह बाध दिस ......

टोकलियनि इशारामे किछु कहिऽ भागि गेला ..... आन दिन चाहक नामपर बिन बजेन्हो टपकिड़ैत छलथि .......आ की भऽ गेलनि! 

हे
यौ, ई चन्दन बाबूकेँ की भऽ गेलनिहेँ, भोरे -भोरे .....- सरजू काका ओम्हरसँ अबैत रहथि, पुछलियनि।

हौ बौआ हुनकर खेतक
पाइनटा बहल जात छनि, गेलाहेँ र बान्ह,

  ..........ओहो सुआत.!

संझाक बेर बिदा भेलहुँ पोख
रि दिस .....लागल, बेंगक अज्ञातवास तम भ गेल .......टर्र.. टर्र ... करैत खत्ताक ओ पारस पार तक .........

सुर ताल देबऽबलाक कमी नै, स एकै साथे प्रतियोगितामे ठाभेल जेना !

सबहक धानक
बीया खसि पल .........लुटकुबाबूबीया बड़ जोरगर छनि ....हेतै कोना ने, बेचारा ..राति दिन एक कऽ छाउर आ गोबरस खेतकेँ पाटि देने छलखिन! हुनकर खेतो त सभस पहिने गाममे रोपा जात छनि ...!

यो कादो क एलैथहेँ .......झौआहमे ..!

गमछामे कि
छुराइत देखलियनि.....पुछलियनि काका की अछि तौनी मे ......?

हौ, खेत मे बड़ माछ छल गमछा स माँरलहुँहेँ ! काल्हि निचका ला खेत मे चास देबै, भेज दिहक छोटका केँ, बड़ माछ छै ..ओहू खेत मे !

ठीक छै ......कहलि
यनि ......! 

मंगनीक माछ खा
मे बड़ मोगै छै मुहमे पाइन आबि गेल सुनि कऽ! 

जल्दी अबि
हेँ, मशाला पिसबा खने रहबौ ..............( छोटका के जात-जात कहलिऐ। )

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com  पर पठाउ।

३. पद्य










३.६.१. प्रभात राय भट्ट २.उमेश मण्डल
३.७.१.डॉ॰ शशिधर कुमरपंकज कुमार झा ३.नवीन कुमार "आशा"



३.१.१. झा हेमन्त बापी २.जगदानंद झा 'मनु'३. राहुल राही ४.शांतिलक्ष्मी चौधरी ५.   जवाहर लाल कश्यप
झा हेमन्त बापी
जेकर नै कएल जाएत बखान
विद्यापति सन जतए कवि महान
मण्डन मिसरक जनमक थान
जे अछि विदेह जनक केर धाम

मिसरी सन वणी जाहि ठाम के
बनला पहुन राम ओहि ठाम के
जननि जतए माँ सिया भेली
जाहि ठाम गंगा चलि कऽ ऐली
जतए छ्ल- छ्ल, बहि रहल अछि
कमला , कोसी, जीबछ, बलान

हर आङन तुलसीक चौड़ा
घर घर होअए चण्डी पाठ जतए
माँ सरस्वतीक बास जाहि ठाम
एहन सुन्नर कहु ठाठ कतए

दही चूड़ाक भोग जतए
 
भिनसरे लैथि भगवान
सगरे जगत मे कतए भेटैए
रसगुल्ला, माँछ, पान, मखान

कतौ सोहर कतौ बट गबनी
कतौ चैता, फगुआ, बरहमासा
समदाओनक राग कतौ सॅ
कतौ सांझ,पराति, छमासा

छठि,दिवाली,दुर्गा पुजा
फगुआ आ सौराठक मेला
कतै पायब साम-चकेवा
आ झीझिया के खेला

स्वर्ग सनक ई नगरी बापि
नै पायब दोसर ठाम
गर्व सॅ कहु जै मिथिला ,जै मैथिली,
 
जै जै मिथिला धाम

जगदानंद झा 'मनु',
पिता- श्री राज कुमार झा, जन्म स्थान  पैत्रिक गाम : हरिपुर डिहटोल ,जिला  मधुबनी, शिक्षा :प्राथमिक -ग्राम  हरिपुर डिहटोल मे, माध्यमिक आ उच्च माध्यमिक -सी बी एस ई, दिल्ली, स्नातक -देशबंधु कालेज ,दिल्ली बिश्वविद्यालय

हम मौन किएक छी

हम मौन किएक छी
हम चुप किएक छी

निष्ठुर हमर समाज बनल अछि
निराकार सरकार
निर्लज सोनित आताताइ
निर्भीक गुंडा राज

हम मौन किएक छी
हम चुप किएक छी

परवाशी बनि हम रहब कतेक दिन
दूर - पड़ायब कतेक दिन
हमर समाज हमहि सुधारब
हमर सरकार हमहि बनायब
आताताइ गुंडा केँ आब हमहि सतायब 

हम मौन किएक छी 
हम चुप किएक छी |


मिथिला राज
हम धीर-वीर बलवान मैथिल
मिथिला राज चाहैत छी,
ई हमर भीख नहि बुझु
अधिकार अपन माँगै छी,
जाहि दिन धीर हम अधीर भेलौंह
वीर हम वीरता देखा देब
नहि, फेर विश्वास करू हमर
की एक चाणक्य हम आर बना देब।

गुमान 

 
बहुत गुमान अछि हम मैथिल छी
मिथिला हमर शान अछि
उदितमान ई अछि धरती पर
कोनो स्वर्ग समान अछि !

कण-कण खल-खल कोसी कमला 
बुझु एकर पहचान    अछि 
जनक-जानकी  विद्यापति
मिथिलाक सिर  केर पाग अछि !

भक्ति रसक कथा की कहू
स्वयं संकर चाकरी केने छथि
एकर विद्वता जुनि कियो पुछू
मंडनमिश्र आ अजानी
भारतीक नाम बिख्यात अछि !

राहुल राही, पिताक नाम - श्री हरिश्चंद्र झा
गाम- माऊंबेहट, मनीगाछी, दरभंगा, स्थायी निवास - दरभंगा , बिहार ., वर्तमान निवास - सेलम , तमिलनाडु

हमर प्रियतम !


प्रियतम ! अहाँ कतेक नीक छी /
कतेक विश्वासी आ अपन कहल पर सटीक छी .
कि हम आंखि बंद कय  कऽ  कय  सकैत छी /
अहाँ पर विश्वास .

कि जहिना पछिला जन्म मे /
ओकर पछिला जन्म मे /
आ जन्म-जन्मान्तर स हर जन्म मे .
अहाँ हमरा स भेंट करैत एलौं /
अपन वचनक अनुसार .
आ हमरा मिलाबैत
 लौं /
ओहि परम आनंद स
/
जतय कोनो दर्दक अनुभूति नहि रहि जा
त छै /
कोनो अपूर्ण इच्छाक टीस नहि
 रहि जात छै /
एकटा तृप्ति हो
छै जीवनके जी लेबाक /
आ संतुष्टि हो
छै अहाँके पाबि सब किछु बिसरि जेबाक .

जेना अहाँ कहियो हुसलौं नहि अपन वचन स
/
जेना अहाँ कहियो भटकलौं नहि अपन कर्त्तव्य स
.

ओहिना /
जखन कोनो अप्पन के बिछड़बाक
 दुःख गहीर उतरि क करेजा मे भूर करय लगै /
जखन ककरो उपकारक कर्ज मन-ओ-मस्तिष्क के
अपना बोझक निच्चा दाबि मरदय लगै /
जखन ककरो वचन दय अंतिम समय पर नहि भेंट कय पेबाक टीस अपराध-बोधक आगि मे जराबय लगै /
आ जखन ककरो लेल किछु करबाक प्रेममय तीव्र इच्छा दम तोडि मिसिया-मिसिया
 कय मरबा लय बाध्य करय लगै /

तखन अहाँ आयब आ हमरा सम्हारि लेब /
देखू
 हमरा तिल-तिल कय मरय नहि देब .

हमरा विश्वास अछि /
अहाँ आयब आ हमरा सम्हारि लेब /
अहाँ
 हमरा मिसिया-मिसिया कय मरय नहि देब .

कि
कि /
हमर त
जिजीविषाक श्वास-नलिये टूटि गेल छल /
तखन स
अहींक देल भरोसासांस पर तजीबि रहल छी .


कतेक अहाँक प्रशंसा करू /
कोना अहाँके
धन्यवाद कहू /
किछु बुझबामे नहि आबि रहल अछि .

मुदा अहाँ समय स
आबि जायब /
देखू , आबै मे देरी नहि लगायब .

हे हमर प्रियतम !
हे हमर मृत्यु !


श्रीमति शांतिलक्ष्मी चौधरी, ग्राम गोविन्दपुर, जिला सुपौल निवासी आ राजेन्द्र मिश्र महाविद्यालय, सहरसा मे कार्यरत पुस्तकालयाध्यक्ष श्री श्यामानन्द झाक जेष्ठ सुपुत्री, आओर ग्राम महिषी (पुनर्वास आरापट्टी), जिला सहरसा निवासी आ दिल्ली स्कूल ऑफ इकानोमिक्स सँ जुड़ल अन्वेषक आ समाजशास्त्री श्री अक्षय कुमार चौधरीक अर्धांगिनी छथि। प्राणीशास्त्र सँ स्नातकोत्तर रहितो शिक्षाशास्त्रक स्नातक शिक्षार्थी आ एकटा समाजशास्त्री सँ सानिध्यक चलिते आम जीवनक सामाजिक बिषय-बौस्तु आ खास कऽ महिलाजन्य सामाजिक समस्या आ प्रघटनामे हिनक विशेष अभिरूचि स्वभाविक।

गज़ल


पले पल अपन अंतर्मनक आगि मे सुनगैत अंशुमाला भs गेलहु
 
खने हर्ख स्मृतिक, खने दुखक आगि मे पजरैत, अंशुमाला भs गेलहु
 

जीवनक बदलैत मौसमक डुबैत-उगैत चान सुरुजक रूप धs
 
खने स्याह अन्हार, खने इन्द्रधनुखक विहुँसैत अंशुमाला भs गेलहु

अल्हड़ कुमारिक सिहरैत सर्दी मे जाधरि गुदगुदी रहैक मुस्कैत
 
लोक कहै हम ओसाइत इजोरियाक ठहकैत अंशुमाला भs गेलहु
 

मधुगंध आ नव आस लs कs जखन आयल बियाह राति केर बसंत
 
मोन मे रहै भ्रम हम उखा-अरूषक बिहुँसैत अंशुमाला भs गेलहु
 

प्राणक प्यास आ टुटल आस लs कs जखन आयल गुरदा-रोगक ग्रीष्म
 
पीय विस्वासघातक प्रचंड दुपहरी मे जड़ैत अंशुमाला भs गेलहु
 

शुभेच्छुक आशीख आ मायक वात्सल्य वरखा आपस अनलैथ पावस
 
हम घुरि नव उम्मेदक दियाबाति मे टिमकैत अंशुमाला भs गेलहु
 

"शांतिलक्ष्मी" कहैथ स्त्रीशक्तिक पावनि तिहार लs घुरि आयल अछि जाड़
 
मानु हे सखि, अहाँ तँ धुमन आरतीमे गमकैत अंशुमाला भs गेलहु
 

.........................वर्ण २७....................

(अपन अनचिन्हार सखि
 अंशुमाला झा केँ समर्पितl
एहि गजल मे अंशुमाला शब्दक प्रयोग कतहुँ व्यक्तिवाचक नहि अछिl
 
शाव्दिक अर्थक अनुसार शब्दक प्रयोग प्रकाशक लड़ीक रूप मे भेल अछिl)
 
२.

पुत कपुत एना हेबै तँ कोना चलतै
माय विदेह केँ कनेवै तँ कोना चलतै

माय मरै भुक्खे, पड़ै अहाँकेँ की अंतर
मोन केँ ऐना जँ बौरेबै तँ कोना चलतै

परदेस भल्हौं होइ अहाँ मुँहपुरुख
निजदेस सँ जँ परेलै तँ कोना चलतै

मानलौं माय भेली पिछिता अहाँ अधुना
माय केँ तेँ दुतकरवै तँ कोना चलतै

पड़ोसी भेली धनुखैनि माय दलिदर
तेँकि माय केँ जँ छोड़वै तँ कोना चलतै

अपनाकेँ खोरनाठी अनका सिक्कीपंखा
ई दुई रीत जँ चलेबै तँ कोना चलतै

माय-बापे सँ होइ छै सुजन परिचय
माय-देसक नै ठेकानै तँ कोना चलतै

बुझलौ जे रोटी लेल छै ई सभ चटुता
कर्ज दुधेक नै चुकेवै तँ कोना चलतै

अपना मोने मे छै नीति अनीतिक रीत
पुत सुमातेक बोहेतै तँ कोना चलतै

"सभ्य"केर कुभाखा मोन केँ लागै सुन्दर
भाखा मैयेक जँ हरेलै तँ कोना चलतै

भाखा आन खेलकै कतै सरकारी टाका
मैथिलि खैरातो बिलोलै तँ कोना चलतै

"शांतिलक्ष्मी" कहती अहाँसँ बस एतबे
स्वगौरव अहीं दबेबै तँ कोना चलतै


.................वर्ण १५...............


 
कविता
वियाह

 
मैथिल धराक मुइल सभागाछी,
जनमलाह नवरूपक अवतार लs 
इन्टरनेटक ’मेट्रीमोनियल साइट’ आ
प्रिंट-मिडियाक रविवारीय पन्नाक
वैवाहिक विज्ञापन/कथा-उथान मेl
तयौ सभ पर भारी छै आइयो घरकथाl
गान्धर्व वियाह छै एखनो झाँपले-तोपल,
शरशय्या सौराठक अपन करूण व्यथाl

 
मिथिलाक सुयोग कहावै वाला वरगण केँ 
चाही मनपसंद अधुना-अर्वाचीन कनियाँ,
तकै जाइत छथि वैवाहिक-विज्ञापन सँ
सुन्नरि, अंग्रेजी स्कुल-कालेज शिक्षित, 
मुदा अपन ’कल्चर-ट्रेडिशन’ मे ’वेल-ट्रेन्ड’l
आधुनिक वर मे पसरैत ई छै नव ’ट्रेन्ड’l
पुरुखगण पकरै छथि बदलैत समयक नब्ज़,
कनियाँ देशी वयना मे फ़ेटल अंग्रेजी शब्दl

 
सुन्नरिक अटपट परिभाषा छैक जटीलl
वरक अप्पन आ घरक लोकक पसिन्न-
होइ छैक अकसर मुरी मुरी मतरभिन्नl
कटगर मुँह-कान, होइ पतरका नाक-ठोर,
ललकी गोराइ होइ आकि दक-दक गोरl
आमक फ़ारा आ डोका सन-सन आँखि,
नमगर-छहरगर, मुँहक खिलता पानिl 
घिचल-घिचल आंगुर, हाथ-पारि सुकुमार,
शैलज्ज, शालिन, सददि हँसमुख व्यवहारl
सुचेष्टा, चलव-बुलब, पहिरव-ओढ़व आर- 
गप्पे-सप्प सँ बुझाइत नीक आचार-विचारl
बढिया होइक  जवानियो केर लहरैत उफान,
छौड़ीक देह मे होइ देखनुगर वयसक चढ़ानl 
यौवन धन होइक उत्तम/सवोत्तम, सोहनगर,
लड़की भेटय परम सुपवित्र, देहक रौनकगरl

 
अंग्रेजी स्कुल-कालेजक शिक्षिता चाहीl
नोकरिया वरक बेशीतर नोकरिये मन,
तहु मे जेहने अपन नोकरी तेहने पसन्नl
वा पढ़ैत इंजीनियर, डाक्टर, एम.बी.ए.,
आकि एम.ए.सी. इन माइक्रोबाइलोजीl
मास्टर डिग्री इन सोसलसाइंस/सोसलवर्क,
वा स्पेसल ट्रेनिंग इन ह्युमेन-साइकोलोजीl
नहि तँ कम सँ कमतर इयह सेहन्ता-
बी.एड. होइ, आनि कि स्कुली शिक्षिकाl
ग्रेजुएट तकैत जाइत छथि केहनो ग्रेजुएट
मास्टर धारी केँ चाही साइंस/आर्ट मास्टरl
गाम-घरक मुरखो-मोचन्ड आब माँग करै 
हमर कनियाँ हुअय पढ़ल-लिखल साक्षरl

 
अपन ’कल्चर-ट्रेडिशन’ मे ’वेल-ट्रेन्ड’l
एहि मादे बिना दुविधे बुझु जे ऐहन-
सीता, सावित्री, गौरी सनक हुअय पतिव्रता,
भारती, मैत्रेयी, गार्गी सनक सुबुद्धिमताl
सास-ससुरक सेवा सँ कखनो नै औगताय, 
कुल-मान हेतु केहनो बिपत्तिये नै घबरायl
पर-पाहुन संग करैथ उचित व्यवहार,
माय बाप सिखेनै हेथीन मिथिलामक आचारl
बुझैथ पुजा-पाठ, उपास-हरिवास, पावनि-तिहार,
आर आनो-आन छै मैथिलाक मेहका सँस्कारl
गोसौनीघर, पंचमुख/कृतमुख/पार्थिव महादेव,
शुभ/अशुभक अरिपैन, आ जनैथ सामा-चकेवl
सौहर, समदौन, रास, गवैथ फ़ागु, चेतार, 
गोसाउनिक गीत, बुझैथ मैयाक सोलहो श्रृंगारl
हवाबड़ी, अदौरी, कुम्हरौरी बनैब मिथिलामेक अंग,
बिलिन नै हुअए जनउ बाँटब, माजब, रंगैय तंतl
मैथिल ’कल्चर-ट्रेडिशन’क ओना बड़-बड़ गुण,
कनिया हुअय एहि सभ कला मे अधछिधो निपुनl

 
वरक विज्ञापन मे ओना नै भेटत दहेजक चरचा,
पाय खरच नै हैत- ताहि लेल नै रहु दुमरजाl
बेटी जँ जनमेने छी तँ ई स्पष्ट बनै छै आधार,
दहेज पुरुखक पिताक थिकै जनमसिद्ध अधिकारl
बुधियार बेटीक बाप केर तेँ अगिते अभियर्थना, 
"डिसेन्ट मैरेज"क पहिने दs दैय छथि सुचनाl
लड़कीक रूप, गुण, सुसंस्कृति, नोकरी, शिक्षा-  
तय करै इयह दहेजक लेन-देनक गुण आ मात्राl
तैयो कलक्टर/एस.पी दहेज लै छैथि पुरा करोड़, 
डाक्टर/इंजीनियर सेहो अक्सर मँगै अधा करोड़l
बी.डी.ओ./पी.ओ./मेनेजर छथि डाक्टरे पदक साख,
किरानी, पुलिस, मास्टर माँगेय पाँच सँ आठ लाखl 
आदर्शो वियाह मे बेशीठाम भेटत अजगुत रीत,
कथा तय भेलाक बाद भेटत समानक फ़ेहरिस्तl
"नो डाउरी" लिख बेटाक बाप पसारय छथि जाल,
किछ तँ ठीक छथि, मुदा बेशी लोक रंगल सियारl
परिणय संस्कार केर बाद शुरु हैत अटपट माँग,
मनक दबल अपेक्षा खुजत तखन लागत उटपटाँगl
ई नै देलहु, ओ नै देलहु, सभ सेहन्ताक भेल सराध-
लिअ सुनैत रहु ताजीवन आब जरल-जरल उपरागl
निरीह गाय सन भल बेटी मे ताकत तेहन नै अपाय,
हक्कन कानैत रहैक सिवा नै बचै तखन कोनो उपायl
बेटीक हँसब गेल, तन गेल, फेर मानसिक स्वास्थ्य,
मुरूत सन बेटी देखते-देखते भs गेली जिन्दा लहासl
तलाक, पुनर्विवाह नै छियै मिथिला मे एकर उपचार,
एक बेर ओझरेलौ तँ बुझु जिनगी भs जाइत पहाड़l
केहनो मजगूत हृदयक बेटी तखन लगावै छथि आगि, 
बेटीक एहने चिता मे जड़ै अछि बेटी जनमावैक लागिl
पहिल कन्या धरि भरोस धरे, दु बेटीक बाद हहरै कोढ़,
एक्केटा लक्ष्मीक बाद डरैल बापक दस दिस दौड़ै मोनl
देखै दिल्ली, कोलकाता, पटना, दरभंगा, दुनियाँ जहान,
गुम्मे-गुम करै लिंग परीक्षण आ गर्भपातक ओरीयानl
दहेजक राकस पेटे मे दै नवपीढ़ीक कनिया केँ मरौरी, 
भावी सीता-सावित्री, भारती-मैत्रेयी केँ अंडे मे घिकौरिl
दिनोंदिन लड़की केँ कम होइ पर लोक करै बाप-बाप,
तैयौ मिथिला मे पसरले जाइ छैक दहेजक अभिशापl
मोगीक जीवन थैरक गोवर-करसी, खेतक ठोकरा-कूर
जैड़ जेती कोनो आड़ि-मेड़, तापि लेल जेती कोनो घूरl
आकि सड़ैत गलैत बढ़वैत रहती अपन धराक उपजा,
सीते लग सँ सहैत एलि, सहि लेति अजुको विपदाl
अथवा काली तारा दुर्गा भs कs लेती प्रचंड अवतार
तैरि जेति मिथिलाक नारी आ तारि देति जग-संसारl

 
मैथिलक बढ़ैत समवेत डेग, सपना छै दहेज मुक्त मिथिलाl
पापी-सुर कहिया हैत हंत, शिकार पर छथि नवतुर-युवाll 

 

५.

   जवाहर लाल कश्यप (१९८१- ), पिता श्री- हेमनारायण मिश्र , गाम फुलकाही- दरभंगा।    
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
उज्जर चक-चक कुर्ता पहिरने,
अंदर कतेक दाग छुपेने/
अपने ओ मुसकाय रहल छठि,
अप्पन गुन ओ गबि रहल छठि/
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
ओ कहलथि चुप रह बेटा
हम छी अहि देशक नेता /
संगमे चारिटा गुन्डा लेने
पुलिस के दु बंदा लेने
अप्पन रोब जमाय रहल अछि
सबके ओ हरकाय रहल अछि
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
ओ कहलथि नहि छी कियौ और
हम छी अहि देशक ठीकेदार / 
सत्यक राह बहुत दुख देबा,  
जान दियौ वा खाउ मेवा/  
सोचने रहि सिस्टम के बदलब,
सिस्टम संग अपने बदललहुँ/
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
ओ कह्लथि नहि पुछु सर
हम छी देशक अफिसर /
महगाई बढि गेल बहुत छै,
मुस्किल स आब पेट भरैत छै/
उपरे उपरे सब सेटिंग छै,
घुसकि भेतत सब फिटिंग छै/
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
मुस्किल स चलैत अछि दाना पानी
हम छी अहि देशक किरानी/
     तोन्द हुनक छैन्ह् सेहो निकलल,
मोछ हुनक छैन्ह सेहो फडकल /
हाथ मे लेने छथि ओ डंडा,
करथि हलाल अनेको बंदा /
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
ओ कहलथि चुप रह फुलिश
हम छी अहि देशक पुलिस / 
गाडी मे लागल अछि बत्ती,
सबहक गुम अछि सिट्टी पिट्टी/
लागि जाइत अछि ओतय मेला,
जतय स गुजरैत अछि काफिला/
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
ओ कहलथि चुप रह ससुरी,
हम छी अहि देशक मन्तरी/
राजपथ पर भेटल भीखमंगा,
दरिद्रक संतान भुखा नंगा/
मालगोदम मे अन्न सरैत् अछि,
तैयो लोक भुके मरैत अछि/
हम पुछलियैन्ह के छी बाबु ?
ओ कहलथि तेहन सब स परल वास्ता
हम छी अहि देशक जनता/

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.इरा मल्लिक ओमप्रकाश झा ३.उमेश पासवान
इरा मल्लिक, पिता स्व. शिवनन्दन मल्लिक, गाम- महिसारि, दरभंगा। पति श्री कमलेश कुमार, भरहुल्ली, दरभंगा।

किछु हाइकू/ टनका
जीवनक ई
रंग ग्राम्य जीवन
मे पेबै अहाँ
घोर गरीबीयो मे
सब व्यस्त आ सब मस्त ।
गरजितोम्भि
सागर जल अइ
धरती नभ
सभ काँपि उठल
देखि सिन्धुक कोप

निर्भीक टापू
विशाल समुद्रमे
मानू कहैत
नर सुदृढ़ बनू
कर्तव्य पथपर
आतुर भेल
अइ घटा घनसँ
मिलन लेल
परबत प्रहरी
निहारि रहल-ए
यै बिल्लो रानी
कहू तँ अहाँ लेल
माँछ आनि दी
बिलाड़ि राज
देबारपर बैसू
या बैसू कतौ
मूस नञि आओत
कतबो करू घात
बाग बगीचा
सुन्दर जलधारा
नीक नजारा
कलकलक
सुमधुर गानमे
उठि खसैत
निर्झरक तानमे
सुन्दर जलरूप

ओमप्रकाश झा

आगि पजरलै जखन, धुआँ उठबे करत यौ।
इ प्रेम मे डूबल मोन खिस्सा रचबे करत यौ।

किया करेज पर खंजर नैनक अहाँ चलेलौं,
ककरो खून भेलै इ दुनिया बूझबे करत यौ।

होइ छै प्रेमक डोरी तन्नुक, एकरा जूनि तोडू,
जोडबै तोडल डोरी गिरह बनबे करत यौ।

राम-नाम मुख रखने प्रेमक बाट नै धेलियै,
प्रेमक बाट जे चलबै मुक्ति भेंटबे करत यौ।

बीत-बीत दुनियाक प्रेमक रंग मे रंगि दियौ,
"ओम"क इ सपना अहाँ संग पूरबे करत यौ।
.
उमेश पासवान
कवि‍ता
उमेश पासवान
कवि‍ता-

कपुत

समए संग-संग
सभ कि‍छु बदैल गेल
लगैए कलयूगक
चपेटमे सभ कि‍छु परि‍ गेल
माता-पि‍ता भगवानसँ
बढ़ि‍ कऽ होइए तकरो लोग बि‍सरि‍ गेल
की कहूँ रहि‍-रहि‍ देह सि‍हरैए
थर-थर कपैए हाथ
कोना कऽ केकरो लग बाजब
पुत भऽ गेल कपुत
कऽ देने अछि‍ कात
भेटल अछि‍ पुरान ओछनि‍
आ टूटल खाट
पुसक जारमे
कि‍यो हमरो लग आबए
कखैनसँ तकै छी बाट।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
 १. जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’ २.मिहिर झा



जगदीश चन्द्र ठाकुर ’अनिल’
गजल 1.

अगहन के धान छी अहां
पूर्णिमाक चान छी अहां।


दौड़ि-दौड़ि थाकि गेल छी
दूर आसमान छी अहां।


बेर-बेर छी पढ़ैत हम
वेद आ पुराण छी अहां।


कांट अछि भरल बाट पर
दूभि आओर धान छी अहां।


जीबितहिं स्वर्ग देखि लेल
पान आ मखान छी अहां।


जिनगीमे प्रश्न अछि कते
सभहक निदान छी अहां।



गजल 2.

कर्जाक मोटा माथ पर उठेलहुं कतेक बेर
बैंकक गाड़ी देखि क’ पड़ेलहुं कतेक बेर।


जमायक बात सूनि आइ करेज फटैए
सासु-ससुर कें हमहूं कनेलहुं कतेक बेर।


बांचि गेलहुं चोर आ उचक्का सं दिल्लीमे
मुदा अपनहि घरमे ठकेलहुं कतेक बेर।


नियारि कतहु जायब से पार नहि लागल
तत्कालहि के टिकट कटेलहुं कतेक बेर।


सुंदर सं सुंदर शब्दक तलाशमे रहलहुं
लीखि-लीखि अपनहि मेटेलहुं कतेक बेर।


आइ चुरूक भरि पानिमे डूबैत छी किए’
बाढ़िमे कतेक लोक कें बचेलहुं कतेक बेर।

मिहिर झा
गजल
मोनक आखर मुहे परसितहु
आई यदि अहां रुकिये जयतहु

अहां चल जायब नहि बुझलाहु
की जैते जे हम झुकिये जयतहु

किछु गॅप झांपल विश्वास तोड़ल
की होएते यदि बुझिए जयतहु

गेलहु विदेश देलहु नहि ध्यान
की होएते यदि रुकिये जयतहु

पता जे रहितय प्रेम नगर के
कहुना कय के घुसिये जयतहु

सामा गीत (संकलन)
कोने भाय्या अनथिन आलेर झालेर, कोने भाय्या अनथिन पटोर
कोने भाय्या अनथिन संखा चूडी, कोने भाय्या अनथिन सिंदूर
कोने बहिनो पिनहथीं आलेर झालेर कोने बहिनो पिनहथीं पटोर
कोने बहीना पिनहथीं संखा चूडी कोने बियाहिनो पिनहथीं सिंदूर
बड़का भैया अनथिन आलेर झालेर मझला भाय्या अनथिन पटोर
सैनझला भाय्या अनथिन संखा चूडी छोट्का भाय्या अनथिन सिंदूर
बड्की बहिनो पिनहथीं आलेर झालेर मनझली बहिनो पिनहथीं पटोर
सैनझली बहिनो पिनहथीं संखा चूडी छोट्की बहिनो पिनहथीं सिंदूर
-------------------------------------------------------------
गाम के अधिकारी तोहे मझला भाय्या हो
भाईय्या हाथ दस पोखरि खुनाई दहो
चंपा फूल लगाई दहो हे
फूलवा लोरहेई त बहिनी घमी गेली हे
आहे घाम गेलनी सिर के सिंदूर नैना केर काजर घमली हे
छ्टवा लाना दौड़ाल ऐल्खिन बड़का भाईय्या हे
बैसो बहिनो ईहो जुड़ी छाहरि की हमारो के आशीष दियो
कथी बाझायब बनतित्तिर हे
आहे कथी बाझायब राजा हंस चकेवा
जाले बझायेब बहिनो तित्तिर हे
आहे रौब सा बझायेब राजा हंस चकेवा
खेल करू हे बहिनो खेल करू हे
भाइय्या झटायल फूल बहिनो हार गुथु हे
आहे सहो हार पिनहथीं भौजो
बहिनो खेल करू हे
------------------------------------------
बृंदावन म आगि लागे
कोई ना मिझावे हे
हमर भाईय्या फलना भैया
दौड़ दौड़ मिझावे हे
---
छौड, छौड, छौड
हमरा भाय्या कोठी छौड.
छौड, छौड, छौड
चुगला घर मे छौड
चुगला करे चुगली
बिलयईया करे मीयौ
चुगला के जीभ हम
नोंच नूच खाओं
----------------------------
समा हे चकेवा हे
ऩहिरा नई बिसरैह हे
ससुरा म पूजा पाईह हे
कोडल खेत मे रहिह हे
जोतल खेत मे रहिह हे
रंगेई रंग पटिया ऊछाबि ह हे
ढेपा फोडि फोडि खाईह हे
ओस पिबि पिबि रहीह हे
हमर भाई क आसीस दिह हे
आगिला साल फेर आइह हे


ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.शिवशंकर सिंह ठाकुर २.अमित मोहन झा ३. राजदेव मण्‍डल
 १.
शिवशंकर सिंह ठाकुर
कोह्बरक हाल कहलो ने जाय
कोह्बरक हाल कहलो ने जाय ,
पटिया परक सुतब ,घाममे भीजल देह ,
नवबिवाहिते टा बुझै छथि ,
चतुर्थी दिनक बात तँ किछु अलगे होइए,
पटिया परक रगरघस ,चमरियो छिला जाइए,
मौहकक खुशी सभ मांटि मे मिलि जाइए

दू चारी दिनक खुशी आ,बाकी सभ तँ बुझले अइ,
आजुक नवकनियाँ "दिल्लीक लड्डुए" बनि जाइत छथि ,
मुदा ईहो सत्य अछि जे किछु गनल-चुनल कनियाँ ,
जिनगी मे मिठांस भरि दैत छथि ,जिनगी स्वर्ग बनि जाइए ,

किछु गोटे कहता जे विवाह जुनि करू ,
मुदा हम तँ कहब जे विवाह अवश्य करू,
विवाह अनुशासन अछि,
आदमी केँ काबू मे करबाक साधन अछि ,
विवाह यदि नै हएत,हरैद लगबे करत ,
मोनक मनोरथ पूरा हेबे करत ,

तैं जिनकर विवाह अखन तक नहि भेल ,
कोह्बरक आस जुनि छोडू,मोनक उम्मीद केँ नहि तोडू ,
एहि लगन मे अहाँक विवाह जरूर हएत,
कोहबरक आनंद अहांके जरूर भेटत !!!!!!!!!!!!!!

२.
अमित मोहन झा
ग्राम- भंडारिसम(वाणेश्वरी स्थान), मनीगाछी, दरभंगा, बिहार, भारत।

आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै

आब सिस्टर सब सिस कहाथि,
भैया दैया नाम झमाथि,
बाबूजी तँ डैड भेला,
बेटी संग ओ क्लबो गेला,
नवयुगक ई रीत निराला,
संस्कार कोसी भसिएला,
छौंरी सबहक टाइट जींस देखि,
छौड़ाटा बहकि गेलै,
आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै

बुढ़ा-बुढ़ी मॉल जात छथि,
आइसक्रीम एक संगे खाइ छथि,
एक दोसराक डाँ हाथ दय,
नैन-मट्ट्क्का सेहो करैथि,
रॉक एन रॉलक मस्त धुनपर, बुढ़बा
बूढ़ा डांस कर लगलै,
बुढ़ाक टनगर डांस देखि,
बुढ़बापर बुढ़िया छड़पि गेलै,
आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै
पहिने घोडा चना खाइ छल,
चनों आब सपना भ गेलै,
रुखल-सुखल घास-फूसपर,
हड्डी सटा निकलि गेलै,
टीसन जाइ काल बीच राहमे,
घोडा बहुते हकमि गेलै,
घोडा लय टमटमक संगे,
जोतला खेत मे गुरकि गेलै,
आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै

आब गुरुजी सर कहाथि,
सरक सर कते बेर फुटलै,
गुरु तँ गुरे रहि गेला,
चेला स चिन्नी भेलै,
टास्क बनेने नै छल मुसरी,
सरकेँ ओकरा डेंगबय पड़लै,
मुसरी तँ मुसरिए छलखिन,
छनहि क्रुद्ध भय प्रण एक लेलखिन,
सरक साइकिलक चक्कामे,
लाठी ओकरा घुसबड़लै,
आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै

छौड़ियो स सिगरेट पिबैए,
छौड़ा संग पार्क घुमैए,
बाइकक पाछूमे बैसल,
ब्रेकक लाथे मजा मारैए,
एक्कर सक चालि ने देखु,
बीसो टा बॉयफ्रेंड रखैए,
आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै

आइ काल्हिक छौड़ाकेँ देखियौ,
टीक कटा जुल्फी रखैए,
पढ़ाइ-लिखामे साढ़े बा,
मोछ मुड़ेने देखियौन ताइस,
गप सुनबै तँ जाब दंग,
लेकिन सरस्वती छन्हि मंद,
बैंग्लोरक नामी मंत्री मॉल दिस,
अमित केँ सेहो मोन गेलैए,
आब जमाना बदलि गेलैए,
आब जमाना बदलि गेलै

आब जमाना बदलि गेलै यौ,
आब जमाना बदलि गेलै
३.

राजदेव मण्‍डल
कवि‍ता-

जय हे कि‍सान

परतीकेँ पोड़ि‍
ढेपाकेँ फोड़ि‍
कण-कणकेँ कोड़ि‍
जलसँ घोरि‍
कएलौं कादो
माह भादो
रोपलौं धान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान
कतेक बेर चास-समार
पड़लौं बेमार
बि‍नु उपचार
अपन-आन
सभ बैमान
अहाँक लेल सभ समान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान
माघक बदरी कनकनी बसात
जीवा-जन्‍तुक ठि‍ठुरैत गात
जीअन-मरण खेतक साथ
अँही बुते उपजत धान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान
बैशाखक रौदमे जरैत
रहै छी दि‍नभरि‍ गुमसड़ैत
धरतीकेँ सि‍ंचि‍त करबाक लेल
अपने पि‍यासे रहै छी मरैत
रौदी-दाही वा फाटए आसमान
फलक कोनो चि‍न्‍ता नै
कर्ममे लगौने जी-जान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान
अपना अभि‍लाषाकेँ डाहि‍ जारि‍
करम करैत छी नि‍त सम्‍हारि‍
सफलता पकड़ने रहैत अछि‍ पाइर
धेने एकहि‍ तान, गाबै छी कजरीगान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान
अहाँ छी देशक अभि‍मान
तैयो सहैत छी नि‍त अपमान
बचबैत छी जन-जन प्राण
अपन दैत बलि‍दान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान
हरकेँ नाशपर सभकेँ आश
चहुँदि‍श छि‍टकल हरि‍यर प्रकाश
ऊसर धरतीपर अहाँ
ि‍लखैत छी नव-नव इति‍हास
अँही कऽ सकैत छी अन्नदान
जय हे कि‍सान-जय हे कि‍सान।


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१.स्तुति नारायण २.विकास झा रंजन ३.जगदीश प्रसाद मण्डल

स्तुति नारायण
मन पड़ैत अछि...

मन पड़ैत अछि पोखरि- झांखरि,
अपना गामक बान्ह
अपना गामक खेत-पथार
टेढ़-मेढ़ ओ बाट
मन पड़ैत अछि महमह गमकैत,
मोजरल आमक गाछ
भोर अन्हारे महु बिछ आनब,
लोढ़ब फुल-बेलपात
मन पड़ैत अछि लुधकल जामुन,
लीची, बैर, अनार
आमक कुच्चा, सागक मोचरा,
इमली आर अचार
रनै-बनै कत फिरै छँ,
मां क झिड़की डांट
चल सभ बच्चा कलम चलै छी
पिताक सहज दुलार
टोला परके धिया पुता आर
कलमक ऊँच मचान
गsप-सsप आ हंसी-हंसी मे
सीखब जीवन पाठ...।

(मिथिलांगन द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन मे पाठ कएल गेल कविता)

विकास झा रंजन
गजल
काल्हि आँखिक हम तरेगन छलौं,
आइ तरेगन बना किए दूर केलौं !

सब आखर सिनेहक हम गुनैत छलौं
आइ आखर किए आहाँ बिसरा गेलौं !

हम एसगर अहीं संग दोसर भेलौं
आइ तेसर बना किए आन केलौं !

ठोर अहाँक ने कहियो हम चुम्मा केलौं
आइ नोरक किए ठोर चुम्मा देलौं !

तीर तरकस जकाँ संग सदिखन छलौं,
आइ तीरे लगा किए पीर देलौं !!
 


जगदीश प्रसाद मण्‍डल
1 दि‍व्‍य शक्‍ति‍

दि‍व्‍य शक्‍ति‍ पबि‍ते मनुज मन
दि‍व्‍य ज्‍योति‍ बि‍खड़ैए।
सगतरि‍ एक्के रश्‍मि‍ बि‍लहि‍
दि‍व्‍य-भूमि‍, वसुधा कहबैए।
गंगा सदृश्‍य धार जतए
नीक-अधलाक वि‍चार करैत
सभकेँ पार करैवाली गंगे
अनवरत गति‍ये वहैत रहैत।
दि‍व्‍य भूमि‍ पहुँचते वसुधा
धरा-धम कहबए लगैत
नै रहैत भेद ततए मनुजमे
सूर-धामक कपाट खुजैत।
जतए वि‍राजए वसुदेव
वसुधा वएह कहबैए।
नन्‍द-नन्‍दक मंत्र सुमरि‍
आनन्‍द बन भरमैए।
पाँचम कला बनि‍ जे बीआ
मनुज मन वि‍रजैए।
डेगे-डेग डगरि‍-डगरि‍
सोलहम कला पबैए।
(())
2 साँझ
जि‍नगीमे साँझ कहाँ छै,
छी दि‍न-राति‍क मि‍लन बेल।
एक सृजन दोसर उसरन
बदलब छी मात्र खेल।
अपन गति‍ये सभ चलै छै
चाहे सुर्ज हो वा ग्रह-नक्षत्र।
तहि‍ना ने देवो-दानव चलै छै
बनि‍ रक्षक चाहे भक्षक।
चाहे गंगा हो वा जमुना
धार पेट धारण करै छै।
तह‍ी मध्‍य ने सरस्‍वती
साँझ-प्रभाती गबै छै।
आलय-हि‍मालय ओ कैलाश
वि‍श्राम भूमि‍ बनल छै।
बाट-घाट ओ तीर्थ-वर्त
अनवरत बनि‍ पड़ल छै।
सभ दि‍नसँ आबि‍ रहल
बाल-सि‍यान बदलैत रहल।
उमेरे आकि‍ बाल बोधे
अनि‍र्णित प्रश्न बनल रहल।
जहि‍ना सोर पाड़ि‍ साँझ कहए
सुतैक इशारा दि‍अए
तहि‍ना ने आँखिसँ
जागैक सुर-पता सेहो भेटए।
घड़ी कहाँ कहि‍यो बुझलक
साँझ-भोरक कि‍रदानी
एके चालि‍ये चलि‍-चालि‍
मुस्‍कुराइत गबए जि‍नगानी।
बि‍नु जि‍नगानीक जि‍नगी
मनुख ठठ्ठर कहबै छै।
जहि‍ना कौआ खएल मकै
खेत ठठेर कहबै छै।
(())
3 रहसा चौर

भीतर मि‍थि‍लाक ओ भूभाग
चौड़गर एकटा चौरी छै।
दूर-दूर धरि‍ पसरल-पसरल
वि‍सबासू खेतीक भूमि‍ नै छै।
नअ मास पानि‍ये गुड़गुड़ा
हि‍या-हारि‍ कनबो करैए।
माटि‍योक कर्मक फल तेहने
अपने बेथे चि‍चि‍आ रहल-ए।
तीन मास सुखा सुख पाबि‍
करमी, केशौर कोढ़ि‍ला सजबैए।
जि‍नगी-मृत्‍युक भय मेटा,
संग मि‍ल सभ भाँज पुरबैए।
चारि‍ गामक बीच बसल
नमगर-चौड़गर सीमा घेरैत
चारू कातक पानि‍ गुड़कि‍
अद्रेसँ झील बनबैत।
गामक माटि‍क जँ दशा एहन
मि‍थि‍ला राज केहन बनतै।
बाहरे-बाहरक सुसकारीसँ
गहूमनक बीख केना झड़तै।
वि‍चार इमानक ककरा कहबै
खोलि‍ देखू मातृकोष।
अपने-आप प्रश्न पूछि‍
वि‍चार करू सम्‍हारि‍ होश।
(())

4 जीबैले लड़ए पड़त

लड़ि‍ जीबू आकि‍ मरि जीबू
जि‍नगीक दू धार बहै छै।
अपन सभ भाग्‍य ि‍नर्माता
मनोनुकूल जि‍नगी बनै छै।
लक्ष्‍य बि‍नु जि‍नगी ओहने
जेहन बॉझ-बहि‍ल होइए।
सुगरक मल सदृश्‍य ओकर
नीप-पोत वि‍हीन होइए।
सभ चाहए आनन्‍दक जीवन
डारि‍-पात फूल फुलाए।
बि‍नु सुख-चैने केना फुलेतै
अछैते पराने जि‍नगी कुम्‍हलाए।
सुख-चैन फड़ै दुख मेटेने
दुख मेटाएत संघर्षमे।
तीन दुख पसरल छै सगतरि‍
बौआएत ढहनाएत जीवनमे।
दैहि‍क-दैवि‍क भौति‍क ताप
बि‍लगा-बि‍लगा देखए पड़त।
बि‍नु देखने ि‍दशाहीन भऽ
औना-पौना सड़ि‍ मरब।
तीनूक अपन-अपन दुनि‍याँ
लीला तीनूक रंग-वि‍रंग।
तीनू बाँटि‍ नेने छै धरती
कुदैत-फनैत रंग-रंग।
(())
5 महगी

दस सगे नि‍तराइत वि‍चार
दस सगा देख डरि‍ रहल छै।
एके गाम, परि‍वार भैयारी
भाए-बहि‍नसँ डरि‍ रहल छै।
कि‍यो बाजए धी बसाएब पुन
तँ कि‍यो चेतबैत धी-भागि‍न
खेलो सभ अजगुत छि‍ड़ि‍आएल
खेलाड़ी देखबए तोड़ि‍ तानि‍।
देखए पड़त, वि‍चारए पड़त
एना होइए तँ केना भेल?
आजुक जे खाहिं‍स छै
ओ हएत तँ केना हएत?
अरबो टन अन्न माटि‍ पड़ल
करोड़ेमे जाँत पीसै छी।
उन्नति‍-उन्नैत घोल करै छी
हृदए खोलि‍ बाजै छी।
कि‍छु दबाएल माटि‍क तरमे
तँ कि‍छु काटए जहल गोदाम।
मौगि‍याहा पहरूदार बनि‍-बनि‍
कठपुतरी नाच देखबैत ठाम-ठाम।
जइ उन्नैस सए एक ईस्‍वी
मन धान तीन मन खेसारी।
रूपैया बरोवरि‍ रहए
नजरि‍ उठा देखू भैयारी।
(())

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