१. संपादकीय संदेश
२. गद्य
३. पद्य
४. मिथिला कला-संगीत-१.ज्योति सुनीत चौधरी २.श्वेता झा (सिंगापुर) ३.गुंजन कर्ण ४.राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) ५. उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)
५. गद्य-पद्य भारती: कर्णभारम्-महाकवि भास (मैथिली अनुवाद बिपिन कुमार झा)
६.बालानां कृते-१.अनिल मल्लिक २.डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”
७. भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]
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१. संपादकीय
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.comhttp://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html
२. गद्य
मैथिली गजल: उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप आ सम्भावना)
मैथिली गजलकेँ लोकप्रिय होइत देखि बेगरता बुझाएल एकरा पूर्ण रूपेँ फरिछेबाक।तेँ विदेह www.videha.co.in ISSN 2229-547X द्वारा “मैथिली गजल: उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप आ सम्भावना)” विषयपर परिचर्चाक आयोजनक भार हमरा देल गेल। ऐ विषयपर लेखक लोकनिक विचार संक्षिप्तमे नीचाँ देल जा रहल अछि।- मुन्नाजी
१
सियाराम झा “सरस”
मुन्नाजी, मैथिली गजलपर परिचर्चाक आयोजन नीक लागल।
बन्धुवर, मैथिली गजल सम्बन्धी हमर मान्यता एना अछि:-
१)उत्पत्ति: पण्डित जीवन झा नाटक “सुन्दर संयोग” (१९०५-०६) मे सर्वप्रथम मैथिली गजलक आगमन पबैत छी।तइसँ पूर्वक कोनो सूचना नै देखा पड़ैछ। तँए उत्पत्ति हम एतैसँ मानैत छी।
२) विकास: विगत १०६ बर्खक इतिहासमे गुणात्मक नै जँ संख्यात्मके चर्चा करी तँ अमरजी, माया बाबू (गीतल कहि कऽ), केदार नाथ लाभ, सोमदेव, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्व. मार्कण्डेय प्रवासी, स्व. इन्दुजी, राजेन्द्र बिमल, गंगेश गुंजन, बुद्धिनाथ मिश्र, सियाराम सरस, स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ. देवशंकर नवीन, डॉ. तारानन्द वियोगी, रमेश, भ्रमर, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, जगदीश चन्द्र ठाकुर “अनिल”, अरविन्द ठाकुर, अशोक दत्त, रोशन जनकपुरी, अजित आजाद, कु. मनीष अरविन्द, डॉ. कृष्णमोहन झा “मोहन”(राँची), आशीष अनचिन्हार समेत दर्जनो रचनाकार एकरा पुष्ट-बलिष्ट केलन्हि अछि। कथन आ भंगिमामे सेहो विविधता आएल अछि। दर्जनसँ बेशी संकलन नोटिस लेबा योग्य उपलब्ध अछि। विकास अखनहुँ भऽ रहल अछि।
३) स्वरूप आ संरचनामे यथास्थान अछि। बहरक विकास गजलकारक अपन क्षमतापर निर्भर होइछ, किछु अध्ययन-मननपर सेहो। मैथिलीमे शेर तँ कहैत छी, मुदा मिसरा वा मतला-मकता आदिक प्रयोग नै कएल जाइछ। लोक बात-बातमे शेर नै कहैछ।
४) सम्भावना- नव-नव लोक सभ जुड़ि रहल छथि, संकलनो आबि रहल अछि, परिचर्चो शुरू भेल अछि, से चलैत रहए। आशीष अनचिन्हार जे योजना आरम्भ केलनि अछि, सेहो महत्वपूर्ण बिन्दु थिक। “खरा-खरी कहबाक नाम छी गजल..गाम-घरमे दिवा रातिमे; हवा जकाँ बहबाक नाम छी गजल।“-सरस।
२
मैथिली गजल : एक नजरिमे
गजल एकटा एहन सशक्त विधाक नाम थिक, जकरा माध्यमसँ अनेक सामाजिक प्रक्रियाक जटिलताकें थोड़ शब्दमे सहजतासँ अभिव्यक्ति प्रदान कएल जाइत अछि। सहजता एवं भाव-चमत्कार एकर मुख्य लक्षण थिक। अपन सहजता एवं भाव-चमत्कारक कारण एकरामे एकटा अद्भुत आकर्षण छैक। एही आकर्षणक कारणें फारसीसँ उर्दू एकरा हपसिक' अपन कोरामे लेलक। हिन्दी सेहो ओकर नजरि अपना दिस घिचबाक प्रयास कएलक। सफलता सेहो भेटलैक। मुदा उर्दूक कोरामे जेहन छलैक, तेहने प्राप्त भेलैक। कहबाक तात्पर्य जे उर्दू मे गजल एक खासे मानसिकताबला लोकक बीच अपन आकर्षणक भाभट पसारने छल आ हिन्दीमे सेहो ओहने स्थिति रहलैक -- बहुत दिन धरि। ओना सम्प्रति ओतहु (हिन्दीमे सेहो) इतिहास-दृष्टि आ सामाजिक द्वन्द्वबोधक ज्ञानसँ परिपूर्ण गजलकारलोकनि सार्वभौमिक अनुभूतिकें अभिव्यक्ति देबाक माध्यम नीक जकाँ बनओने छथि।
गजलक एहि सहजता एवं भाव-चमत्कारक आकर्षणक कारणें आइ प्राय: सभ भारतीय भाषामे एकरा दुलरुआ बनाक' राखल गेल छैक। ई दुलरुआ सुकुमार छैक, मुदा कमजोर नहि। कखनो किछु क' सकैए। केहनो विस्फोट।
मैथिलीमे सेहो गजल आएल -- ओहिना -- सुकुमार, मुदा कमजोर नहि। कखनो किछु क' सकैबला। कोनो विस्फोट। तें सुरेन्द्र नाथ कहैत छथि -- 'गजल हमर हथियार थिक'। तारानन्द वियोगी एकरा 'अपन युद्धक साक्ष्य' मानैत आगि जनमा रहल छथि ---
दर्द जँ हदसँ टपल जाए तँ आगि जनमै अछि
बर्फ अंगार बनल जाए तँ आगि जनमै अछि
प्रेमचन्द्र पंकज गजलक प्रसंग कहैत छथि ---
ढोढ़िया नञि असली नाग छी गजल
मस्तीमे गरजैत बाघ छी गजल
प्रेमिकाक आँचर नहि, प्रीतमक बोल नहि
चेतनामे बरकल मिजाज छी गजल
गजलकें पारिभाषिक रूपसँ बुझबाक लेल एकर रुाोत-भाषा अरबी-फारसीक परम्पराक सूत्रकें पकड़ब आवश्यक भ' जाइत अछि। ओतए एकर परिभाषा देल गेल छैक -- 'सुखन अज जनान (अथवा अज माशूक) गुफ्तन' तथा 'बाजनान गुफ्तन करदैन'। एकर अर्थ थिक स्त्रीगणक विषयमे वार्तालाप किंवा प्रेमी-प्रेमिकाक संवाद। आइ ई परिभाषा विस्तार पाबि सभ प्रकारक संवाद-प्रेषण-स्थापन करबामे सक्षम अछि -- जँ एहि परिभाषाकें संकुचित रूपसँ नहि देखल जाए। प्रेम सार्वभौमिक अछि, सार्वस्थानिक अछि, सार्वकालिक अछि। जँ प्रेमक अर्थ विस्तृत अछि, प्रेम स्वयं एतेक विस्तारमे पसरल अछि तँ ने प्रेमी-प्रेमिका संकुचित भए सकैत अछि आ ने प्रेमी-प्रमिकाक वार्तालाप विषय विशेष पर सीमित रहि सकैत अछि। तें आइओ सभ भाषाक गजलमे उक्त परिभाषाकें घटित देखल जा सकैत अछि।
गजलक अपन भिन्न व्याकरण छैक आ ई व्याकरण देखबामे जतबा सरल छैक, वस्तुत: ओहिसँ कइएक गुना जटिल छैक। ओना ऊपरसँ लगैत अछि जे ई मतला, शेर आ मक्ताक चौकठिमे ठोकल एकटा काव्य-विधा थिक। मुदा एकर बहरक निर्बाह करबामे मगज दुहा जाइत छैक। ध्यान देबाक बात थिक जे गजल लिखल नहि जाइत छैक, कहल जाइत छैक। स्पष्ट अछि, जे एकर बहर (छन्द)क संरचनामे वज्न (मात्रा)क गणना शब्दक उच्चारणक अनुसार कएल जाइत अछि, जाहिमे अनेक गजलकार (तथाकथित) हरदा बाजि जाइत छथि। गजल किछु शेरक माला थिक। पारम्परिक रूपसँ गजलक प्रत्येक शेरक विषय भिन्न-भिन्न होइत छैक, परन्तु एक गजलक प्रत्येक शेरमे रदीफ आ काफिया एके रहैत छैक। गजलक पहिल शेर मतला कहबैत अछि, जकर दुनू पाँतू (मिसरा) सानुप्रासिक होइत अछि, अर्थात् रदीफ आ काफियासँ सामन रूपें युक्त रहैत अछि। एकर अन्तिम शेर मक्ता कहबैत अछि तखन, जखन ओहिमे रचनाकारक नाम अथवा उपनामक प्रयोग होइत अछि, अन्यथा सामान्य शेर भ' क' रहि जाइत अछि। बीचबला शेरक उपरका पाँती, जकरा मिरुााउला कहल जाइछ, केर रदीफसँ मेल रहब आवश्यक नहि। किन्तु निचला पाँती, जे मिरुाासानी कहबैत अछि, कें रदीफसँ मेल अर्थात् सानुप्रासिक होएब अनिवार्य छैक। शेरक लेल आवश्यक छैक जे ओ कोनो छन्द विशेषमे रहए, जे निश्चित कएल गेल छैक। ई छन्द विशेष बहर कहबैत अछि।
अस्तु, मैथिली गजलक इतिहास पर एक नजरि फेकबाक प्रयास कएल जाए तँ मैथिलीक पहिल गजल बीसम शताब्दीक प्रारम्भमे लिखल गेल आ मैथिलीक पहिल गजलकार भेलाह प. जीवन झा। जीवन झाक गजलमे एकर मुख्य गुण -- सहजता एवं भाव-चमत्कार स्पष्ट देखबामे अबैत अछि, जे एहि बातकें द्योतित करैत अछि जे ओ गजलकें कतेक लगीचसँ बुझबाक चेष्टा कएने छलाह, बुझने छलाह। हुनक एक गजलक मतला देखल जाए --
पड़ैए बूझि किछु ने ध्यानमे हम भेल पागल छी
चलै छी ठाढ़ छी बैसल छी सूतल छी कि जागल छी
जीवन झा द्वारा रोपल गजलक एहि पिपहीकें समय-समय पर भुवनेश्वर सिंह 'भुवन', यात्री, आरसी प्रसाद सिंह, डॉ. व्रजशोर वर्मा 'मणिपद्म' आदि खाद-पानि दैत रहलाह आ ई वर्तमान रहल। बादमे केदारनाथ लाभ, सुधांशु 'शेखर' चौधरी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, विभूति आनन्द, कलानन्द भट्ट, सियाराम झा 'सरस', मार्कण्डेय प्रवासी, बुद्धिनाथ मिश्र, राजेन्द्र प्रसाद विमल, तारानन्द वियोगी, नरेन्द्र, देवशंकर नवीन आदिक सेवासँ ई एकटा झमटगर गाछक रूप धारण कए लेने अछि। मैथिलीक गजलकारक जँ सूची बनाओल जाए तँ आस्वस्त करत।किन्तु मैथिलीमे गजल-संग्रहक सर्वथा अछि -- जकरा अंगुरी पर गानल जा सकैत अछि। मैथिली गजलक पहिल संग्रह थिक विभूति आनन्दक 'उठा रहल घोघ तिमिर'। एकर प्रकाशन जून, 81 मे भेल। फेर कलानन्द भट्टक 'कान्ह पर लहास हमर' , सियाराम झा 'सरस'क 'शोणिताएल पैरक निशान', तारानन्द वियोगीक 'अपन युद्धक साक्ष्य', रमेशक 'नागफेनी' आएल। सियाराम झा 'सरस' क सम्पादनमे बारह गोटेक कुल चौरासीटा गजलक संकलन 'लोकवेद आ लालकिला' प्रकाशित भेल। 'थोड़े आगि थोड़े पानि' ससरजीक एहन गजल संग्रह थिक जे एहि विधाकें आओर मजगूती प्रदान करैत अछि। सुरेन्द्र नाथक 'गजल हमर हथियार थिक' निश्चित रूपसँ स्वागत योग्य अछि।
गजल-संग्रहक एहन अभाव थोड़ेक निरास अवश्य करैत अछि, मुदा सम्प्रति मैथिलीमे धुड़झाड़ गजलक रचना भए रहल अछि – अनेक बाधाक अछैतो। मैथिली गजल बहुत दिन धरि गजल बनाम गीतलक ओझराहटिमे पड़ल रहल। किन्तु कोनो भ्रममे नहि पड़ल। सब तर्कक जवाब दैत रहल। आगाँ बढ़ैत रहल। आइ मैथिली गजलक स्थिति ई अछि जे अनेक नव-पुरान रचनाकार अपन अभिव्य्तिक माध्यम एकरा बनओने छथि, अपन स्वर गजलकें द' रहल छथि। डॉ. गंगेश गुंजन, डॉ. अरविन्द अक्कू, अरविन्द ठाकुर, डॉ. नरेश कुमार विकल, अजित आजाद, फूलचन्द्र झा 'प्रवीण' आदि अपन अभिव्यक्तिक माध्यम गजलकें बनाए एकरा एकटा सशक्त विधाक सरूपमे प्रतिष्ठित क' रहल छथि। प्रसन्नताक विषय ईहो अछि जे आशीष अनचिन्हार 'अनचिन्हार आखर' नामसँ गजलक लेल एकटा फराकसँ वेवसाइट तैयार कएने छथि जकरा माध्यमसँ अनेक नव-पुरान गजलकारलोकनिक गजल -रचना लगातार सोझाँ आबि रहल अछि।
कतिपय व्यक्ति एकटा राग अलापि रहल छथि जे मैथिलीमे गजलक सुदीर्घ परम्परा रहितहु एकरा मान्यता नहि भेटि रहल छैक। एहन बात प्राय: एहि कारणे उठैत अछि जे मैथिली गजलकें कोनो मान्य समीक्षक-समालोचक एखन धरि अछूत मानिक' एम्हर ताकब सेहो अपन मर्यादाक प्रतिकूल बुझैत छथि। एहि सम्बन्धमे हमर व्यक्तिगत विचार ई अछि, जे एकरा ओहने समालोचक-समीक्षक अछूत बुझैत छथि जनिकामे गजलक सूक्ष्मताकें बुझबाक अवगतिक सर्वथा अभाव छनि। गजलक संरचना, मिजाज आदिकें बुझबाक लेल हुनकालोकनिकें स्वयं प्रयास कर' पड़तनि, कोनो गजलकार बैसिक' भट्ठा नहि धरओतनि। हँ, एतबा निश्चय, जे गजल धुड़झाड़ लिखल जा रहल अछि आ पसरि रहल अछि आ अपन सामथ्र्यक बल पर समीक्षक-समालोचकलोकनिकें अपना दिस आकर्षित कइए क' छोड़त। हमरासभकें मन पाड़बाक चाही जे एकटा एहनो समय छलैक जहिआ नव-कविताक प्रति समीक्षक-समालोचकलोकनिक रबैया एहने छलनि। मुदा आइ ? आइ की स्थिति छैक ? सएह होएतैक गजलोक संग। निश्चय होएतैक।
वस्तुत: मैथिली गजल आइ ओहि ठाम ठाढ़ अछि जतएसँ ओकरा एकसूत्रताधारी विचार, दर्शन, समाज-संहिताक अतिरिक्त राजनैतिक, सास्कृतिक, सामाजिक आ राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्र ीय संवेदनाकें अभिव्यक्त करबाक रुाोत सहजहिं भेटि जाइत छैक। सम्भावनासँ परिपूर्ण एहि विधाक क्रमिक विकासक लेल आवश्यक अछि प्रतिबद्धतापूर्वक गजलक निरन्तर रचना होएब। से भए रहल अछि -- एहि रूपमे भए रहल अछि जे एकर भविष्य लेल आश्वस्त करैत अछि, निश्चित रूपसँ।
४
राजेन्द्र बिमल
मुन्नाजी:मैथिली साहित्य मध्य वर्तमान समयमे गजलक की दशा अछि, एकर भविष्यक की दिशा देखाइछ?
राजेन्द्र बिमल: गजल अत्यन्त लोकप्रिय विधा थिक । मैथिलीमे से हो खूब लीखल जा रहल अछि आ पढलो जा रहल अछि । बहुत गजलकार एकर व्याकरणसँ कम परिचित छथि । मुदा भविष्य उज्जवल छैक । मैथिली गजलमे अपन निजात्मकताक विकास शुभ संकेत थिक ।
मुन्नाजी:मैथिलीक प्रकाशित गजलक संगोर (कतेको गजल संग्रह) आ मायानन्द मिश्रक गजलकेँ गीतल कहि प्रकाश्यक मादेँ गजेन्द्र ठाकुर एकरा अस्तित्वहीन कहि अपन सम्पादकीय आलेख माध्यमे अवधारणा स्पष्ट केलनि।अहाँक ऐपर अपन स्वतंत्र विचार की अछि?
राजेन्द्र बिमल: संगोर सभ नहि देखल अछि । आदरणीय मायाबाबूक गीतल (गीत-गजल) एक गोट प्रयोग थिक । हम कोनो सृजनकेँ निरर्थक नहि बूझैत छी आ लेखन स्वतंत्रतामे विश्वास रखैत छी ।
५
मंजर सुलेमान
जखन एहि मिथिलामे अमीर खुशरो (१२२५-१३२५) सन विद्वान एलाह तऽ ओहो एहि भाषाक मधुरता सँ मुग्ध भऽ फारसी, मैथिली आ उर्दूक समिश्रण सँ कहलनि-
हिन्दु बच्चा है कि अजब हुस्न रै छै।
बर बक्ते सुखन गुफ्तम मुख फूल झरै छै॥
गुफ्तम ज लबे लालें तऽ यक बोसा बगीरम।
गुफ्ता के अरे राम तुर्क का ई करै छै।
(मंजर सुलेमान - त्याग-बलिदानक पवित्र पर्व मुहर्रम (मिथिला दर्शन नवम्बर-दिसम्बर २०१०)
६
शेफालिका वर्मा
आदरणीय मुन्नाजी,
अपनेक विषय 'गजल' पर बड नीक लागल.. मुदा, मैथिलीक प्रोफेसर हम नै छी, तैं एकर जानकारी देनाय हमरा लेल सुरुज के दीपक देखेनाइ अछि...
हँ हम एतवे जनैत छी जे पहिने छिटपुट गजल लिखल जाइत छल , हमहूँ पढैत रही, कखनो हमरो नीक लागल छल... मुदा आशीष अनचिन्हारक कारण विदेहक पन्ना पर गजलक जेना बाढ़ि आबि गेल अछि...
गजल हमर सब सँ प्रिये विधा हमरा लेल अछि , प्यार ,रोमांस सँ भरल भावातीत भ' हृदयक उन्मेष मे जिवैत उर्दू गजल , शेरो शायरी सब...
हम तँ गजलमाने प्यार मुहब्बते टा बूझैत छलौं जे शुद्ध प्रेम भाव पर आधारित छल...एखनो हमर पुरना डायरीमे गजल सबक अंश लिखल अछि, कोमलकान्त पदावलीसँ परिपूर्ण... .., मुदा मैथिलीमे एकर नाना अर्थे प्रयोग होइत देखलौं..., कखनो नीक लगैत छल तँ कखनो कचोटी...मुदा, जमाना कतऽ सँ कतऽ चलि गेल.. सब ठाम विकास भऽ रहल छैक तँ मैथिली गजल केर सेहो नव परिभाषा उल्लेखनीय रहत..साँच पुछू तँ प्रायः सब टा गजल हम अवश्य पढैत छी, एहि लेल आशीष जी केँ अशेष बधाइ....मैथिली साहित्यमे गजलविधा नूतन मुस्की लऽ सबहक ह्रदयकेँ अलोक लोक सँ भरि देत, संगहि विदेह परिवारकेँ जे नाना रुपे माँ मैथिलीक श्री वृद्धि कऽ रहल छथि....
७
मिहिर झा
गजल मूलतः अरबी भाषा केर काव्य विधा छैक | गजल शब्दक अरबी मे माने छैक स्त्रीसँ वा स्त्रीक बारेमे बात केनाइ | गजल जेखन अरबी सँ फारसी मे आयल तँ एकर शिल्प विधाक तँ पालन भेल लेकिन एकर विषय वस्तु भौतिक वा दैेहिक रखैत एकर मर्म मे अध्यात्मिक प्रेमक अनुभूति आनि देलक| एहि मर्मकेँ रखैत फारसी सूफी कवि सभ गजलक प्रसारमे महत्वपूर्ण योगदान केलन्हि| सूफी साधनामे विरहक बेशी महत्व छैक, ताहि कारणे, फारसी गजलमे विरह प्रेम केर बेशी उल्लेख अछि |
गजल जखन फारसी सँ उर्दू मे प्रवेश केलक तँ एकर शिल्प विधा तँ ओहिना रहलैक लेकिन कथ्य एकदम भारतीय भऽ गेल| मध्य काल मे उर्दू फारसीसँ बहुत प्रभावित छलैक आ एकर व्याकरण ओ शब्द जटिल फारसी होइत छलैक| भारत केँ स्वतंत्र भेलाक बाद उर्दू धीरे धीरे फारसीक प्रभावसँ निकलल आ गजलमे बोल चालक शब्द प्रयोगमे आबय लागल| संगहि एकर मर्म अपन परंपरागत मर्म "स्त्रीसँ वा स्त्री संबंधित" केँ कात छोडैत नव नव आयाम अपनामे सम्मिलित केलक | ध्यान देबाक गप ई अछि जे गजल केर शिल्प विधामे कोनो बदलाओ नहि आयल , केवल एकर मर्ममे परिवर्तन आयल | जे गजल अरबीमे मात्र प्रेम तक सीमित छल से आब अपना मे सभ टा विषय वस्तु समेट लेलक|
हिन्दीक बाद गजल मराठी, अँग्रेजी होइत आब मैथिली मे प्रवेश केलक आ धीरे धीरे मैथिली साहित्य मे अपन स्थान बना लेलक | मैथिली मे सेहो गजलक शिल्प विधा मे परिवर्तन नहि भेलैक, हँ एकर मर्म आ शब्दकोष पूर्ण मैथिल भऽ गेल | भाव भक्ति, प्रेम, वीर, विरहक होइक वा सामाजिक, राजनीतिक वा व्यक्तिक कटाक्ष पर, सभ विधा मे मैथिली मे गजल देखबा मे आबि रहल अछि | संगहि मिथिलाक संस्कार ओ परिवेशक छाप लैत मैथिली गजल आब पूर्णतः मैथिल भऽ चुकल अछि| गजलक मैथिली शिल्प विधाक लेखन विस्तारमे "अन्चिन्हार आखर" मे आलेखित अछि| बहुत रास मैथिली गजलकारक मैथिली गजलकारी मे प्रवेश एहि बातक द्योतक अछि जे ई मैथिलीक पोर पोर मे समा चुकल अछि आ कोनो एक विशेष स्तरक लोकक बदला मे ई जन काव्य बनि चुकल अछि |
"मैथिली गजलक उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप एवं संभावना सहित)" विषय पर अपन भावना हम गजलक रूप मे देबाक प्रयास कऽ रहल छी ---
बैसलहुँ आइ करै ले मैथिली गजलक बखान हम
डूबि गेलहुँ उदगार मे केलहुँ नहि किछु ध्यान हम
गजल होइत छैक प्रेम, महिमा एकर महान छैक
दू पाँति मे समेटा देलहँु ई प्रेम गाथा क बखान हम
बहर रफीद और काफिया शेरक होइ छैक प्राण यौ
मतला मकता जोड़ि एहि मे बढेलंौ शेरक शान हम
फारसी उर्दू अंग्रेजी सँ होइत ई आयल मिथिला धाम
तघज्जुल अपन बनाबी, लऽ माछ, मखान ओ पान हम
शास्त्रीय कहू वा आधुनिक वा पकड़ूु अ-गजलक कान
समय संग बदलबै आब एहि गजलक प्राण हम
प्रेम विरह सूफी आ भक्तिमे कऽ चुकल ई नाम अमिट
जन जीवन सँ जोड़बै, लऽ आधुनिकताक नाम हम
मुरद्दफ होइक वा गैर मुरद्दफ पबै छैे एके शान
"शौकीन" क ई कथा अमोल राखब सदिखन ध्यान हम
८
ओमप्रकाश झा
मैथिली गजल पर परिचर्चा
मैथिली गजलक उद्भव आ विकास विषय पर कोनो विचार प्रकट करबाक बहुत योग्य तँ हम अपनाकेँ नै मानै छी, मुदा ई विषय देखि किछु कहै सँ अपना केँ रोकि नै पाबि रहल छी। मैथिली गजलक इतिहास ओना तँ बड्ड पुरान नै अछि। मुदा गीत आ कविता लेखनक कार्य बहुत दिन सँ मैथिली मे चलि रहल अछि। गीत आ कविता मे मैथिलीक बड्ड धनिक इतिहास छै। भारतवर्षक आर्य भाषा सभमे यदि देखल जाय, तँ ई अपने बुझा जाइत छै जे उत्पत्तिक बादे सँ मैथिली मे नीक गीत आ कविता लिखेनाइ शुरू भऽ गेल छल। गजल लिखबाक कोनो परम्परा मैथिली मे नै छल। २० म शताब्दी मे गजल लिखबाक शुरूआत भेल आ २०म शताब्दीक उतरार्द्ध मे एहि मे तेजी आयल। हम अपने किछु दिन पूर्व धरि गजलसँ अनजान छलौं। आशीष अनचिन्हार जी आ गजेन्द्र जीक सम्पर्क मे आबि मैथिली गजलक विषय मे किछु ज्ञान प्राप्त भेल। अनचिन्हार आखर ब्लाग पूर्ण रूप सँ गजलक लेल समर्पित अछि आ गजलक शास्त्रीयताकेँ नीक जकाँ एहि ब्लाग पर बुझाओल गेल अछि। यएह ब्लाग पढि कऽ हम थोड़ बहुत सरल वार्णिक बहरक गजल लिखबाक प्रयास करैत रहै छी। एखन मैथिली मे गजल बहुत तँ नै लिखल गेल अछि, मुदा गजलक अकालो नै बुझाइत अछि। एकटा नीक गप जे हमरा नोटिस मे आयल जे आब मैथिली पत्र पत्रिका मे सेहो मैथिली गजल नियमित रूपेँ छपि रहल अछि। उत्कृष्टता पर हम किछु बाजबा योग्य नै छी। मुदा एतबा कहब जे जेना जेना नव नव गजलकार सभ एता आ गजल पढबाक रूचि बढल जेतै, तेना तेना नव प्रयोगक संग नीक नीक रचना केर बाढि आबि जेतै। हमरा बूझने मैथिली गजल एखन जवान भऽ रहल अछि आ समयक संग एकर जवानी मैथिली गजल केँ बहुत ऊँच स्थान पर लऽ जएत।
९
धीरेन्द्र प्रेमर्षि
मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना (पूर्वमे विदेहक अंक २१ मे प्रकाशित)
रूप-रङ्ग एवं चालि-प्रकृति देखलापर गीत आ गजल दुनू सहोदरे बुझाइत छैक। मुदा मैथिलीमे गीत अति प्राचीन काव्यशैलीक रूपमे चलैत आएल अछि, जखन कि गजल अपेक्षाकृत अत्यन्त नवीन रूपमे। एखन दुनूकेँ एकठाम देखलापर एना लगैत छैक जेना गीत-गजल कोनो कुम्भक मेलामे एक-दोसरासँ बिछुड़ि गेल छल। मेलामे भोतिआइत-भासैत गजल अरब दिस पहुँचि गेल। गजल ओम्हरे पलल-बढ़ल आ जखन बेस जुआन भऽ गेल तँ अपन बिछुड़ल सहोदरकेँ तकैत गीतक गाम मिथिला धरि सेहो पहुँचि गेल। जखन दुनूक भेट भेलैक तँ किछु समय दुनूमे अपरिचयक अवस्था बनल रहलैक। मिथिलाक माटिमे पोसाएल गीत एकरा अपन जगह कब्जा करऽ आएल प्रतिद्वन्दीक रूपमे सेहो देखलक। मुदा जखन दुनू एक-दोसराकेँ लगसँ हिया कऽ देखलक तखन बुझबामे अएलैक-आहि रे बा, हमरा सभमे एना बैर किएक, हम दुनू तँ सहोदरे छी! तकरा बाद मिथिलाक धरतीपर डेगसँ डेग मिला दुनू पूर्ण भ्रातृत्व भावेँ निरन्तर आगाँ बढ़ैत रहल अछि।
गीत आ गजलक स्वरूप देखलापर दुनूक स्वभावमे अपन पोसुआ जगहक स्थानीयताक असरि पूरापूर देखबामे अबैत अछि। गीत एना लगैत छैक जेना रङ्गबिरङ्गी फूलकेँ सैँति कऽ सजाओल सेजौट हो। मिथिलाक गीतमे काँटोसन बात जँ कहल जाइछ तँ फूलेसन मोलायम भावमे। एकरा हम एहू तरहेँ कहि सकैत छी जे गीत फूलक लतमारापर चलबैत लोककेँ भावक ऊँचाइ धरि पहुँचबैत अछि। एहिमे मिथिलाक लोकव्यवहार एवं मानवीय भाव प्रमुख भूमिका निर्वाह करैत आएल अछि। जाहि भाषाक गारियोमे रिदम आ मधुरता होइत छैक, ओहि भूमिपर पोसाएल गीतक स्वरूप कटाह-धराह भइए नहि सकैत अछि। कही जे गीतमे तँ लालीगुराँसक फूल जकाँ ओ ताकत विद्यमान छैक जे माछ खाइत काल जँ गऽरमे काँट अटकि गेल तँ तकरो गलाकऽ समाप्त कऽ दैत छैक।
गजलक बगय-बानि देखबामे भलहि गीते जकाँ सुरेबगर लगैक, एहिमे गीतसन नरमाहटि नहि होइत छैक। उसराह मरुभूमिमे पोसाएल भेलाक कारणे गजलक स्वभाव किछु उस्सठ होइत छैक। ई कट्टर इस्लामी सभक सङ्गतिमे बेसी रहल अछि, तेँ एकर स्वभावमे “जब कुछ न चलेगी तो ये तलवार चलेगा” सन तेज तेवर बेसी देखबामे अबैत छैक। यद्यपि गजलकेँ प्रेमक अभिव्यक्तिक सशक्त माध्यम मानल जाइत छैक। गजल कहि तँ हिँदेरी लोकक मन-मस्तिष्कमे प्रेममय माहौल नाचि उठैत छैक, एहि बातसँ हम कतहु असहमत नहि छी। मुदा गजलमे प्रेमक बात सेहो बेस धरगर अन्दाजमे कहल जाइत छैक। कहबाक तात्पर्य जे गजल तरुआरि जकाँ सीधे बेध दैत छैक लक्ष्यकेँ। लाइ-लपटमे बेसी नहि रहैत छैक गजल। मिथिलाक सन्दर्भमे गीत आ गजलक एक्कहि तरहेँ जँ अन्तर देखबऽ चाही तँ ई कहल जा सकैत अछि जे गजल फूलक प्रक्षेपण पर्यन्त तरुआरि जकाँ करैत अछि, जखन कि गीत तरुआरि सेहो फूल जकाँ भँजैत अछि।
मैथिलीमे संख्यात्मक रूपेँ गजल आनहि विधा जकाँ भलहि कम लिखल जाइत रहल हो, मुदा गुणवत्ताक दृष्टिएँ ई हिन्दी वा नेपाली गजलसँ कतहु कनेको झूस नहि देखबामे अबैत अछि। एकर कारण इहो भऽ सकैत छैक जे हिन्दी, नेपाली आ मैथिली तीनू भाषामे गजलक प्रवेश एक्कहि मुहूर्त्तमे भेल छैक। गजलक श्रीगणेश करौनिहार हिन्दीक भारतेन्दु, नेपालीक मोतीराम भट्ट आ मैथिलीक पं. जीवन झा एक्कहि कालखण्डक स्रष्टा सभ छथि।
मैथिलीयोमे गजल आब एतबा लिखल जा चुकल अछि जे एकर संरचनाक मादे किछु कहनाइ दिनहिमे डिबिया बारब जकाँ लगैत अछि। एहनोमे यदाकदा गजलक नामपर किछु एहनो पाँति सभ पत्र-पत्रिकामे अभरि जाइत अछि, जकरा देखलापर मोन किछु झुझुआन भइए जाइत छैक। कतेको गोटेक रचना देखलापर एहनो बुझाइत अछि, जेना ओ लोकनि दू-दू पाँतिबला तुकबन्दीक एकटा समूहकेँ गजल बूझैत छथि। हमरा जनैत ओ लोकनि गजलकेँ दूरेसँ देखिकऽ ओहिमे अपन पाण्डित्य छाँटब शुरू कऽ दैत छथि। जँ मैथिली साहित्यक गुणधर्मकेँ आत्मसात कऽ चलैत कोनो व्यक्ति एक बेर दू-चारिटा गजल ढङ्गसँ देखि लिअए, तँ हमरा जनैत ओकरामे गजलक संरचना प्रति कोनो तरहक द्विविधा नहि रहि जएतैक।
तेँ सामान्यतः गजलक सम्बन्धमे नव जिज्ञासुक लेल जँ किछु कहल जाए तँ बिना कोनो पारिभाषिक शब्दक प्रयोग कएने हम एहि तरहेँ अपन विचार राखऽ चाहैत छी- गजलक पहिल दू पाँतिक अन्त्यानुप्रास मिलल रहैत छैक। अन्तिम एक, दू वा अधिक शब्द सभ पाँतिमे सझिया रहलहुपर साझी शब्दसँ पहिनुक शब्दमे अनुप्रास वा कही तुकबन्दी मिलल रहबाक चाही। अन्य दू-दू पाँतिमे पहिल पाँति अनुप्रासक दृष्टिएँ स्वच्छन्द रहैत अछि। मुदा दोसर पाँति वा कही जे पछिला पाँति स्थायीबला अनुप्रासकेँ पछुअबैत चलैत छैक।
ई तँ भेल गजलक मँुह-कानक संरचना सम्बन्धी बात। मुदा खाली मुहे-कानपर ध्यान देल जाए आ ओकर कथ्य जँ गोड़िआइत वा बौआइत रहि जाए तँ देखबामे गजल लगितो यथार्थमे ओ गीजल भऽ जाइत अछि। तेँ प्रस्तुतिकरणमे किछु रहस्य, किछु रोमाञ्चक सङ्ग समधानल चोट जकाँ गजलक शब्द सभ ताल-मात्राक प्रवाहमय साँचमे खचाखच बैसैत चलि जएबाक चाही। गजलक पाँतिकेँ अर्थवत्ताक हिसाबेँ जँ देखल जाए तँ कहि सकैत छी जे हऽरक सिराउर जकाँ ई चलैत चलि जाइत छैक। हऽरक पहिल सिराउर जाहि तरहेँ धरतीक छाती चीरिकऽ ओहिमे कोनो चीज जनमाओल जा सकबाक आधार प्रदान करैत छैक, तहिना गजलक पहिल पाँति कल्पना वा विषय वस्तुक उठान करैत अछि, दोसर पाँति हऽरक दोसर सिराउरक कार्यशैलीक अनुकरण करैत पहिलमे खसाओल बीजकेँ आवश्यक मात्रमे तोपन दऽ कऽ पुनः आगू बढ़बाक मार्ग प्रशस्त करैत अछि। गजलक प्रत्येक दू-पाँति अपनहुमे स्वतन्त्र रहैत अछि आ एक-दोसराक सङ्ग तादात्म्य स्थापित करैत समग्रमे सेहो एकटा विशिष्ट अर्थ दैत अछि। एकरा दोसर तरहेँ एहुना कहल जा सकैत अछि जे गजलक पहिल पाँति कनसारसँ निकालल लालोलाल लोह रहैत अछि, दोसर पाँति ओकरा निर्दिष्ट आकार दिस बढ़एबाक लेल पड़ऽबला घनक समधानल चोट भेल करैत अछि।
गीतक सृजनमे सिद्धहस्त मैथिल सभ थोड़े बगय-बानि बुझितहिँ आसानीसँ गजलक सृजन करऽ लगैत छथि। सम्भवतः तेँ आरसी प्रसाद सिंह, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ महेन्द्र, मार्कण्डेय प्रवासी, डॉ. गङ्गेश गुञ्जन, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र आदि मूलतः गीत क्षेत्रक व्यक्तित्व रहितहु गजलमे सेहो कलम चलौलनि। ओहन सिद्धहस्त व्यक्ति सभक लेल हमर ई गजल लिखबाक तौर-तरीकाक मादे किछु कहब हास्यास्पद भऽ सकैत अछि, मुदा नवसिखुआ सभकेँ भरिसक ई किछु सहज बुझाइक।
मैथिलीमे कलम चलौनिहार सभ मध्य प्रायः सभ एक-आध हाथ गजलोमे अजमबैत पाओल गेलाह अछि। जनकवि वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” सेहो “भगवान हमर ई मिथिला” शीर्षक कविता पूर्णतः गजलक संरचनामे लिखने छथि। मुदा सियाराम झा “सरस”, स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ.राजेन्द्र विमल सन किछु साहित्यकार खाँटी गजलकारक रूपमे चिन्हल जाइत छथि। ओना सोमदेव, डॉ.केदारनाथ लाभ, डॉ.तारानन्द वियोगी, डॉ.रामचैतन्य धीरज, बाबा वैद्यनाथ, डॉ. विभूति आनन्द, डा.धीरेन्द्र धीर, फजलुर्रहमान हाशमी, रमेश, बैकुण्ठ विदेह, डा.रामदेव झा, रोशन जनकपुरी, पं. नित्यानन्द मिश्र, देवशङ्कर नवीन, श्यामसुन्दर शशि, जनार्दन ललन, जियाउर्ररहमान जाफरी, अजित कुमार आजाद, अशोक दत्त आदि समेत कतेको स्रष्टाक गजल मैथिली गजल-संसारकेँ विस्तृति दैत आएल अछि।
गजलमे महिला हस्ताक्षर बहुत कम देखल जाइत अछि। मैथिली विकास मञ्च द्वारा बहराइत पल्लवक पूर्णाङ्क १५, २०५१ चैतक अङ्क गजल अङ्कक रूपमे बहराएल अछि। सम्भवतः ३४ गोट अलग-अलग गजलकारक एकठाम भेल समायोजनक ई पहिल वानगी हएत। एहि अङ्कमे डा. शेफालिका वर्मा एक मात्र महिला हस्ताक्षरक रूपमे गजलक सङ्ग प्रस्तुत भेलीह अछि। एही अङ्कक आधारपर नेपालीमे मैथिली गजल सम्बन्धी दू गोट समालोचनात्मक आलेख सेहो लिखाएल अछि। पहिल मनु ब्राजाकी द्वारा कान्तिपुर २०५२ जेठ २७ गतेक अङ्कमे आ दोसर डा. रामदयाल राकेश द्वारा गोरखापत्र २०५२ फागुन २६ गतेक अङ्कमे। छिटफुट आनहु गजल सङ्कलन बहराएल होएत, मुदा तकर जानकारी एहि लेखककेँ नहि छैक। हँ, सियाराम झा “सरस”क सम्पादनमे बहराएल “लोकवेद आ लालकिला” मैथिली गजलक गन्तव्य आ स्वरूप दऽ बहुत किछु फरिछा कऽ कहैत पाओल गेल अछि। एहिमे सरस सहित तारानन्द वियोगी आ देवशङ्कर नवीन द्वारा प्रस्तुत गजल सम्बन्धी आलेख सेहो मैथिली गजलक तत्कालीन अवस्था धरिक साङ्गोपाङ्ग चित्र प्रस्तुत करबामे सफल भेल अछि।
समग्रमे मैथिली गजलक विषयमे ई कहि सकैत छी जे मैथिली गीतक खेतसँ प्राप्त हलगर माटिमे गुणवत्ताक दृष्टिएँ मैथिली गजल निरन्तर बढ़ि रहल अछि, बढ़िए रहल अछि।
लगैत अछि- सबटा बिसरल रहैत छी, जे की पढल अछि
कोसीक धार बदलि गेल मित! जीवन धार नहि बदलल
नवेंदु कुमार झा
15 जनवरी केँ कोसी महासेतूक उद्घाटनक संभावना - एक होयत मिथिलांचल, मजगूत होयत संबंध
मिथिलांचल एकीकरणक एहि क्षणकेँ यादगार बनैबाक लेल मिथिलावासी उत्साह सॅ लागल छथि। मिथिलांचलक आन क्षेत्र सॅ कोसी क्षेत्र मे वियाह-दानक कम भेल गति मे तेजी अनबाक लेल प्रतीक स्वरूप उद्घाटनक दिन उद्घाटन स्थल पर एगारहटा वर-कन्याक सामुहिक विआह योजना सेहो बनल अछि। पटनाक प्रमुख मैथिल समाज सेवी धीरू जी उद्घाटनक अवसर पर एगारहटा जोड़ाक विवाह करैबाक घोषणा कयलनि अछि। एहि लेल मधुबनी आ दरभंगा जिला आ कोसी क्षेत्रक इच्छुक वरागत आ कन्यागत केँ आमंत्रित कयलनि अछि। एहि दिस हुनका सफलता सेहो भेटल अछि। किछु वरागत आ कन्यागत एहि पर अपन सहमति सेहो देलनि अछि जे कोसी क्षेत्र आ दरभंगा-मधुबनी जिलाक छथि। प्रतीकक रूप मे कयल जा रहल एहि आयोजन सॅ एक बेर फेर मिथिलांचलक मे संबंधक क्षेत्र बढ़त आ कोसीक घाट सॅ बटल दिल फेर सॅ एक होयत।
20-21 दिसम्बर केँ होयत शिक्षक पात्रता परीक्षा, बढ़ि रहल प्रवेश पत्र
प्रदेश मे शिक्षक पात्रता परीक्षा 20 आ 21 दिसम्बर केँ जिला आ अनुमंडल मुख्यालयक 1380 परीक्षा केन्द्र मे आयोजित कयल जायत। एहि परीक्षा मे गोटेक 28 लाख परीक्षार्थी सम्मिलित होयताह। एहि परीक्षाक लेल प्रवेश पत्र बँटबाक काज चलि रहल अछि। आवेदन पत्र गलती भरलाक कारण दू लाखसॅ बेसी आवेदन पत्र विभिन्न कारण रद्द कऽ देल गेल छल जाहिसॅ आवेदक सभक आक्रोश सोझाँ आबि रहल छल। आवेदक सभक एहि आक्रोश पर तत्काल डेग उठबैत सरकार आवेदन रद्द भेल उम्मीदवार सभकेँ राहत दैत सभ आवेदक केँ परीक्षा मे सम्मिलित करैबाक निर्णय लेलक अछि। शिक्षा मंत्री पी.के. शाही घोषणा कयलनि अछि जे जाहि आवेदकक आवेदन रद्द कऽ देल गेल अछि हुनका सेहो परीक्षा मे बैसबाक अवसर देल जायत। सरकारक एहि निर्णय सॅ आवेदन रद्द भेल उम्मीदवारक शिक्षक बनबाक बाट खूजि गेल अछि।
बिहार विधानसभाक भेल पांच बैसक मे कुल 936 प्रश्नक सूचना भेटल छल जाहि मे 682 प्रश्न एकीकृत कयल गेल एहि मे 484 तारांकित, 176 अतारांकित आ 24 अपसूचित प्रश्न छल। स्वीकृत प्रश्न सॅ 70 प्रश्नक उत्तर देल गेल आ 90 प्रश्न केँ सभा पटल पर राखल गेल।
कुल 113 ध्यानाकर्षण प्रश्न मे से 91क उत्तरक लेल संबंधित विभाग केँ पठा देल गेल। दोसर दिस बिहार विधान परिषद्क 169म बेसक मे 471 प्रश्नक सूचना भेटल जाहि मे 429 प्रश्न स्वीकृत कयल गेल। स्वीकृत प्रश्न मे 115 प्रश्नक उत्तर देल गेल आ शेष बचल प्रश्नक उतर अगिला सत्र मे सदनक पटल पर राखल जायत। दूनू सदनक विभिन्न समितिक कतेको प्रतिवेदन सदन पटल पर राखल गेल। सत्रक दरमियान मधुबनी जिलाक लौकहा विधानसभा उपचुनाव मे विजयी भेल जदयूक सतीश कुमार साह सदनक सदस्यता ग्रहण कयलनि तऽ लोक जनशक्ति पार्टी डा. प्रमोद कुमार आ नौशाद आलम के जदयू सदस्यक रूप मे मान्यता देल गेल। दूनू सदस्य लोजपा सॅ इस्तीफा दऽ जदयू मे सम्मिलित भेल छलाह।
सत्रक दरमियान विधान परिषद् मे कला संस्कृति आ युवा विभागक मंत्री डा. सुखदा पाण्डेय जनतब देलनि जे मधुबनी मे मिथिलाचित्र कला संस्थान सह संग्रहालयक स्थापनाक लेल सैद्धांतिक रूप सॅ सहमति बनि गेल अछि। एहि संस्थान मे प्रशिक्षण, प्रदर्शनी आ संग्रहालयक व्यवस्था रहत। एहि ठाम प्रशिक्षण प्राप्त करय वालाकेँ डिग्री सेहो देल जायत। एहि सॅ पहिने परिषद मे शिक्षा मंत्री पी.के. शाही द्वारा संजय झाक प्रश्नक उत्तर देबाक क्रम मे परिषदक सभापति ताराकांत झा हस्तक्षेप करैत साहित्य आ संस्कृति केँ बचैबाक दिशा मे काज करबाक निर्देश देलनि। श्री झा कहलनि जे मिथिला संस्कृत शोध संस्थान दरभंगा मे साढ़े बारह हजार पाण्डुलिपि सड़ि रहल अछि जकरा बचैबाक आवश्यकता अछि। ओ कहलनि जे सरकार दुर्लभ पाण्डुलिपि सभक संरक्षण मे रूचि देखब। परिषद सदस्य संजय झा अपन ध्यानाकर्षणक माध्यम सॅ सरकारक ध्यान आकृष्ट करबैत कहलनि जे मिथिलाक्षर लिपि अति प्राचीन अछि। हालहि मे पटना मे उपेन्द्र महारथी शिल्प संस्थानक सफाईक दरमियान मिथिलांक्षर मे हस्तलिखित रामायण, महाभारत आ मिथिला दर्शन नामक पाण्डुलिपि भेटल अछि। मिथिलांक्षर मे होएबाक कारण किछु विशेष पता नहि चलि रहल अछि। मुदा देवनागरी लिपि मे किछु सूचना होयबा सॅ पता चलैत अछि जे ई पाण्डुलिपि अछि जे पहचानक मोहताज अछि। अपन उत्तर मे शिक्षा मंत्री कहलनि जे मिथिला संस्कृत शोध संस्थान एहि दिशा मे काज कऽ रहल अछि। आठ दशक पहिने पंडित जीवनाथ रायक मिथिलाक्षर लिपि मे लिखित पोथीक प्रकाशन कराओल जा रहल अछि।
75म कथा गोष्ठीमे 39 टा कथापाठ
10 दिसम्बर 2011केँ ‘सगर राति दीप जरय’क 75म कथा गोष्ठीक आयोजन बिहार को-ऑपरेटिव फेडरेशन हॉल, बुद्धमार्ग पटनामे कएल गेल। साँझ 5:30 बजेसँ भिनसर 8 बजे धरि गोष्ठी जमल रहल। संयोजक द्वय अशोक आ कमल मोहन ‘चुन्नू’ जीक ऐ आयोजनमे 39 गोट कथा/ लघुकथाक पाठ भेल आ तइपर दूटप्पी समीक्षा सेहो कएल गेल। ऐ अवसरपर विभिन्न विधाक दर्जन भरि पोथी लोकार्पणक संग 16 म विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी आ विदेहक सहायक संपादक मुन्नाजी द्वारा मैथिलीक पहिल विहनि कथा पोस्टर प्रदर्शनी सेहो रहए।
श्रीमती प्रीति ठाकुरक पोथी “मिथिलाक लोक देवता” आ विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी मूल पुरस्कारसँ पुरस्कृत पोथी “गामक जिनगी” (जगदीश प्रसाद मण्डलक कथा संग्रह) , ऐ दुनू पोथीक एकहक सए प्रतिक वितरण श्रुति प्रकाशन केलक।
मैथिली कथा लेखनक क्षेत्रमे शान्त क्रान्तिक ऐ 75म गोष्ठीक दीप प्रज्वलित कऽ विधिवत् उद्घाटन केलनि श्री राजमोहन झा। स्वागत केलनि श्री अशोक। अध्यक्षता केलनि श्री उग्रनारायण मिश्र ‘कनक’, संचालन डॉ. तारानन्द वियोगी। मुख्य अतिथि श्री श्यामानन्द चौधरीक उपस्थितिमे कार्यक्रमकेँ आगाँ बढ़ाओल गेल पोथी लोकार्पण सत्रसँ जइमे 12 गोट पोथीक लोकार्पण क्रमश: ऐ तरहेँ भेल-
1. निबंध सुधा (निबंध संग्रह, सुधा कुमारी) लोकार्पण श्री मोहन भारद्वाज।
2. जखन तखन पत्रिका (प्रेम विशेषांक, संपादक विभूति आनंद, अशोक मेहता) लोकार्पण डॉ. वासुकीनाथ झा।
3. कोसी कातक गंगा (संस्मरण, साकेतानन्द) श्रीमती उषा किरण खाँ।
4. ऐ अकावोनमे (कविता संग्रह, राज) लोकार्पण- डॉ. रामानन्द झा ‘रमण’
5. जुबैदा (कथा संग्रह, उग्रनारायण मिश्र ‘कनक’) लोकार्पण केलनि श्री राजमोहन झा।
6. समय साक्षी थिक (लघुकथा संग्रह, अनमोल झा)- डॉ. देवशंकर नवीन आ श्री उग्रनारायण मिश्र ‘कनक’।
7. गंग नहौन (कविता संग्रह, निशाकर) डॉ. तारानंद वियोगी।
8. बेटीक अपमान आ छीनरदेवी (नाटक, बेचन ठाकुर)- श्री राजमोहन झा।
9. अनचिन्हार आखर (गजल संग्रह, आशीष अनचिन्हार)- लोकार्पण- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, श्री श्याम दरिहरे, श्री अनमोल झा।
10. जेना जनलियनि (संस्मरण, महेन्द्र नारायण राम ‘नीलकमल’)- लोकार्पण श्री मन्त्रेश्वर झा।
11. सीतावतरण (खण्डकाव्य, संपा. योगानंद झा) लोकार्पण श्री मोहन भारद्वाज।
12. गाममे (नेपाली भाषाक कविता संग्रह ‘गाओंमे हरू’ मूल कवियत्री रेमीका थापा केर मैथिली अनुवाद, प्रदीप बिहारी) लोकार्पण श्री अशोक।
लोकार्पण सत्रक पछाति कथा सत्रक शुभारम्भ भेल जइमे नवोदित कथाकारक संग स्थापित कथाकार लोकनि अपन-अपन नूतन कथा/लघुकथाक पाठ केलनि जेकर सुची क्रमश: ऐ तरहेँ अछि-
प्रदीप बिहारी- कोदारि
तारानंद वियोगी- वैदिक हिंसा
मन्त्रेश्वर झा दूटा लघुकथा- जगरनाथ, उजारि
पन्ना झा- प्रवोधन
मधुकर भारद्वाज- रीमोट
शशिकान्त झा- चोरबा वंश
लछमीदास- भरमे-सरम
बेचन ठाकुर दूटा लघुकथा- भुखाएल आ अबाम
उमेश मण्डल दूटा लघुकथा- चाेर-सिपाही आ काल्हि दिन
अनमोल झा- समाङ आ अन्हार
रघुनाथ मुखिया- प्रलोभन आ निचेन समयमे
दुगानन्द मण्डल- पोस्टमार्टम आ प्रदूषन
अजय कुमार मिश्र- उठह हौ वनियाँ हाट-बजार
मेनका बिहारी- घरारी
अरूाणा चौधरी- अभिन्न
निक्की प्रियदर्शनी- पलायन
धीरेन्द्र कुमार- मररिया चेतल
कमलकान्त झा- मँहतक्की
जगदीश प्रसाद मण्डल- परिवारक प्रतिष्ठा
हीरेन्द्र- हाष्यपर व्यंग फ्री
अर्द्धनारीश्वर- घोड़ा घास
दिलीप झा-
रामविलास साहु- स्वर्गक सुख
शिवकुमार मिश्र- प्लेटफार्म
नन्दविलास राय- जाति
पंकज सत्यम्- महानता
दिलीप कुमार- पुरस्कार
उमेश नारायण कर्ण- अन्धविश्वास
सुरेश पासवान- बगुलाक सरदार
जगदीश कुमार भारती- धुरफन्दीलाल
रामनारायणजी- सिनुरिया
ऋृषि बशिष्ठ- देश प्रेम
पंकज कुमार- प्रियांसु
मुन्नाजी- विकल्प
धनाकर ठाकुर- ओ
श्याम दरिहरे- जौहर
विभूति आनन्द- वन-वे ट्रेफिक
देवशंकर नवीन- मोटर साइकिल
भवनाथ झा- मंडनक मनोभाव (650-670 ऐतिहासिक घटना)।
अधिक कथाकारक जमघट भेने पठीत कथा सभपर समीक्षामे थोड़ेक कंजुशी कएल गेल। जे स्वभाविक छल। मुदा तैयो किछु कथापर किछु विशेष टिप्पणी अाएल जेना तारानंद वियोगीक पठित कथा- वैदिक हिंसा’पर जगदीश प्रसाद मण्डल कहलनि- यथार्थवादी कथा पूर्णतामे कंजूसी। सम्प्रदाय, धर्म आ अध्यात्म, तीनू तीन। कथा एक अंगक, मात्र समस्याक। समस्याक कारण आ निदान सेहो होय।
तहिना कोदारि कथापर दुगानंद मण्डल कहलनि- शीर्षकक सार्थकताक अभाव। अही तरहेँ भवनाथ झाक पठित- मण्डनक मनोभाव’ कथापर धनाकार ठाकुर कहलनि- ऐ कथाक मादे वेदक निंदा कऽ मण्डन मिश्रकेँ गैर ब्राह्मण विरोधी बताओल गेलहेँ। जे गलत अछि। जेकर कोनो प्रमाण नै। तइ लेल हम एकरा वहिष्कार करैत छी। कहैत डॉ. धनाकर ठाकुर गोष्ठीसँ बाहर निकलि गेलाह! चलि गेलाह!!
अंतमे, अगिला गोष्ठीक आयोजन हेतु प्रस्ताव लेल घोषणा कएल गेल। पूर्व प्रस्तावमे हजारिये बागसँ दूटा छल जे क्रमश: अर्द्धनारीश्वर आ प्रदीप बिहारीक छलनि। एकटा नव प्रस्ताव डॉ. देवशंकार नवीन जीक आएल। ऐ तीनू प्रस्तावमे अर्द्धनारीश्वरक प्रस्ताव रहनि बोकारोमे हुअए। जे 74म कथा गोष्ठी हजारिये बागसँ प्रस्तावक छलाह। मुदा प्रदीप बिहारी प्रस्तावक तँ अहुठाम बनलाह जे अगिला गोष्ठी बेगुसरायमे हुअए मुदा जहिना हजारीबागक गोष्ठीमे पटना भेने चूप भऽ समर्थके बनि गेल छलाह तहिना अहुठाम 76म गोष्ठी बेगुसरायमे हुअए तकर प्रस्तावक बनलाह मुदा देवशंकर नवीनक प्रस्ताव दिल्ली लेल एने चूप भऽ समर्थक बनि गेलाह।
अर्द्धनारीश्वरक बातपर कोनो विचार नै कएल गेल। अर्द्धनारीश्वर एक बेर बजेत सुनल गेलाह- ‘अर्जी ककरो मर्जी ककरो’।
िनर्णए भेल जे अगिला गोष्ठी दिल्लीमे डॉ. देवशंकर नवीनजी संयोजकत्वमे कएल जाएत। उपस्थिति पुस्तिका आ दीप डॉ. देवशंकर नवीन जीकेँ सौंपैत गोष्ठी शेष भेल।
{ऐ सन्दर्भमे श्री परमेश्वर कापड़िजीक भूतकालमे देल सुझाव:
मैथिली कथाक परिवेश आ प्रवृति विमर्श
आजुक अपरिहार्य आवश्यकता अछि— नेपालक मैथिली कथाक प्रभाव आ प्रभुत्वपर, एकर विस्तृत परिधि आ पहुँचके सन्दर्भमे, एकर परिवेश आ प्रकृतिपर जमिक’, जुटिक’ विमर्श करब ।
मैथिली कथाक ऐतिहासिकता आ रचनाधर्मिताक समग्र आयाम बहुत विस्तृत आ परम ऐतिहासिक रहनहुँ, एकर
— पाठकीय समस्या तथा समीक्षात्मक मूल्याँकनक संकट,
— बदलैत परिप्रेक्ष्यमे, मोह भंगक स्थितिवोध,
— आधुनिक, उत्तर–आधुनिकताक चुनौती आ मूल्य संक्रमणक स्थिति,
— युग परिवत्र्तन आ परिवत्र्तित परिप्रेक्ष्यमे मूल्य संघर्षक दिशा,
— प्रमाणिक परिवेश आ लोकसरोकारी आवाजक आवेग,
— समयसंग साक्षात्कार आ सृजनात्मक रचना प्रक्रियापर, खुलिक’ बात करब ।
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एहि कथा–गोष्ठीक उद्देश्यक आवेग महत्वाकाँक्षी रहल अछि आ बहुत किछु उपलव्धीमूलक पाबए चाहैत अछि । एहनमे बड़ नीक रहत जे मैथिली कथाक
— सामाजिक सन्दर्भ — - Social Context _
— सांस्कृतिक सन्दर्भ — -Cultural '' _
— राजनैतिक सन्दर्भ — { -Political '' _
— वैचारिक सन्दर्भ - Ideologicla '' _
— समसामयिक सन्दर्भ - Contemporaneous context _
— प्राायोगिक सन्दर्भ - Experimental context _ पर
ठाठस’ ठठिक’, जमिक’ जाँघ जोड़िक’ एकठौहरी एकमुहरी भ’ एकर समग्र मुद्दा आ विषय–परिदृशयके एहन सानि–मथिक’ निष्कर्षपर पहुँची जे एकर रचनाधर्मिता आ लेखन–प्रक्रियाके समेकित ऊर्जा आ उत्साह दैक आ एकटा ठोस दिशानिर्देश ई पाबए ।
समकालीन मैथिली कथालेखनक अवलोकन आ पठित कथाके प्रतिक्रियात्मक टिप्पणीस’ कथाकारके रचनात्मक ऊर्जा आ विश्वास प्रदान करबाक हेतुए अपन धारणा सहित, अपन विचारात्मक निर्देशकीय भूमिकास’ उत्साहजनक स्थिति–परिस्तिथि निमार्ण करैत, गोष्ठीके ऐतिहासिकता प्रदान कएल जाय !
प्रा.परमेश्वर कापड़ि
२०६८/८/०४ गोष्ठी संयोजक
श्रीरामानन्द युवा क्लव, जनकपुरधाम }
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