भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, March 31, 2012

'विदेह' १०२ म अंक १५ मार्च २०१२ (वर्ष ५ मास ५१ अंक १०२)PART II


३. पद्य








३.७.डॉ॰ शशिधर कुमर
 ३.८.श्यामल सुमन-कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ
 शान्तिलक्ष्मी चौधरी
गज़ल १


रगरी भौजी देखहि तँ कोना हाथ मोचारै छै गे दाय
 

बलजुमरी पटकि केँ कोना रंग लगाबै छै गे दाय
 



मलपुआ सनक गाल रंगि बनि गेलै हैँ दलिपूरी
 

खोंटि-खोटिं बड़ी केहन-कहाँ रूप बनाबै छै गे दाय
 



खाय लेनय छै भाँग फेटल औंटल खुआक मोदक
 

भंगजिलेबिये सन घुमल डाँर नचाबै छै गे दाय
 



सैलज भौजी आय भs गेलै केहन निरपट निर्लज
 

कोना दबाड़ि छौंड़ि केँ पुरुख चालि देखाबै छै गे दाय
 



रसिया भौजी सँ हारि दिअर-जन धs लेलकै दुआर
 

बहिनोक सोझहाँ कनियो लाज नै देखाबै छै गे दाय
 



बिन भौजी फगुआक अँगना लागै जेना भुतबँगला
 

रँगरस तँ चहटगर भौजीये बनाबै छै गे दाय
 




"शांतिलक्ष्मी" केँ तँ भौजी लागै बयस शिक्षाक मास्टरनी
 

नवतुरिया केँ देह रसक पाठ पढ़ाबै छै गे दाय
 



........वर्ण २०......




गज़ल २



देह मे सटलै जखन देह सिहरि गेल देह
 

केरौ छोड़ि केँ खेसारी से नेह सिहरि गेल देह



विज्ञापनक युग मे स्त्री देहक होइ बड्ड मोल

मरैत देखि वात्सल्य सिनेह सिहरि गेल देह
 



जीवनक धार मे जाइत रही ओहिना भासल
 

सुनि हुंकरैत कोशीक ढ़ेह सिहरि गेल देह
 



बन्हटुट्टी बाढ़ि मे दहि गेल धानक बौग-रोप
 

बिच्चे खरिहान देखि ई मेह सिहरि गेल देह
 



गामघर छोड़ि-छाड़ि लोक परदेस दिस भागै
 

परती नै पाबि हरक रेह सिहरि गेल देह
 



गामक डीह डावर बेचि शहर चलि एलहुँ
 

भेटै तँ चैन बाहरे नै गेह सिहरि गेल देह
 



मराठी मानुख कहै पुरबिया, असामी बिहारी

तहु मे बाँट भदेस-विदेह सिहरि गेल देह



दस दशक बाद मिथिला कि एहने नै रहतै
 

"शांतिलक्ष्मी" केँ छै कुनु नै थेह सिहरि गेल देह



....वर्ण १८.......




गज़ल ३



झोंटे पकड़ि जँ लिढ़येलकौ तँए हे हुरिया सती
 

हँ गे ठोंठे दाबि धकियेलकौ तँए हे हुरिया सती
 



सदि एबहि हमरा बहु सेँ बकथोथैनि करय
 

तँ डेने पकड़ि मोड़ियेलकौ तँए हे हुरिया सती
 



सासु पुतौहुक झगड़ा होइते छै सभक घर मे
 

गरियेलिही यैह बुझेलकौ, तँए हे हुरिया सती
 



हे गे माय छियै की कंकही पड़ल रहय छै पाछु
 

यैह किटकिट सभ खेलकौ तँए हे हुरिया सती
 



मजा लुटय ले धियापुता केँ जनमाय ढ़ेंगरेलैं
 

सैँय की सुहृदय पोसलकौ, तँए हे हुरिया सती
 



सैँये के माथ हाथ राखि खो नै सप्पत गे डनियाही
 

कुचालियै भैयो लतियेलकौ तँए हे हुरिया सती
 



एहन कुपुत्र देखि काकी कहतौ "शांतिलक्ष्मी" सत्ते
 

दैव किनको बाँझे राखलकौ तँए हे हुरिया सती




........वर्ण १९......




गजल ४



गोर गाल पातर ठोर छै

कमल ओस आखि नोर छै



दीन दुख भीजै गाल पर

काँपैत ठोर तिलकोर छै



लाल गाल गरम तरुआ

रंजै मोन मुदा इन्होर छै



बाप तारी माय व्यभचारी

भाय दुनू सिनहा चोर छै



थाल मे छै कमल फुलल

भँमराक हाँज मे होर छै



कवि हौथि वा कोदरवाहा

रस मे सभ सराबोर छै



मँहकै पानि पींगील पढ़ै

धर्मात्मो माछे के चटोर छै



गरीब बेटी सभक भौजी

"शांतिलक्ष्मी" तेँ नोरै झोर छै


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ओमप्रकाश झा

गजल
धारक कात रहितो पियासल रहि गेल जिनगी हमर।
मोनक बात मोनहि रहल, दुख सहि गेल जिनगी हमर।

मुस्की हमर घर आस लेने आओत नै आब यौ,
पूरै छै कहाँ आस सबहक, कहि गेल जिनगी हमर।

सीखेलक इ दुनिया किला बचबै केर ढंगो मुदा,
बचबै मे किला अनकरे टा ढहि गेल जिनगी हमर।

पाथर बाट पर छी पडल, हमरा पूछलक नै कियो,
कोनो बन्न नाला जकाँ चुप बहि गेल जिनगी हमर।

जिनगी "ओम" बीतेलकै बीचहि धार औनाइते,
भेंटल नै कछेरो कतौ, बस दहि गेल जिनगी हमर।
(बहरे मुक्तजिब)

 
गजल
करेज घँसै सँ साजक राग निखरै छै।
बिना धुनने तुरक नै ताग निखरै छै।

अहाँ मस्त अपने मे आन धिपल दुख सँ,
जँ लोकक दर्द बाँटब, लाग निखरै छै।

इ दुनिया मेहनतिक गुलाम छै सदिखन,
बहै घाम जखन, सुतल भाग निखरै छै।

हक बढै केर छै सबहक, इ नै छीनू,
बढत सब गाछ, तखने बाग निखरै छै।

कटऽ दियौ "ओम"क मुडी आब दुनिया ले,
जँ गाम बचै झुकै सँ, तँ पाग निखरै छै।
(बहरे-हजज)

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अमित मिश्र २उमेश पासवान

अमित मिश्र
कविता   --बुढ़ी काकी

  अन्हार कोठरी मे रहै छथि बुढ़ी काकी .
एकदम शांत जेना पत्थर के मुरत .
धिरे-धिरे चरखा पर आंगुर चलाबैत बुढ़ी काकी .
हवेली जे बगल मे खड़ा छै .
ओकर महरानी छलथिन बुढ़ी काकी 
सजै छल फुलक सेज .
लागै छलै मजदुरक भीड़ ,
सहारा दैत छली सबके बुढ़ी काकी ,
पर हाय; राम के ई सब  नहि मंजुर छलै ,
नइ तs ठाकुर साहेब मरितैथ  किएक ,
लक्ष्मी विधवा हेतैथ किएक ,
आब एलै जुआनक राज ,
नवका जमाना  कए पुतौह  कए नीक  नहि लागलै बुढ़ी काकी ,
आखीर मातृत्व हारल आ कलयुग जीतल 
घर सँ निकालि देल गेलए बुढ़ी काकी .
जीवन भैर सहारा दै वाली खुद बेसहारा भs गेलै .
हुनक   हालत के जिम्मेदार के छै .
'म अहाँ वा खुद बुढ़ी काकी . . . . . . . . 


कविता -- गुलाम छी कनियाँ  कए

आइ  हम बता रहल छी हालात इ दुनिया कए,
कोना कs सुनाबी खिस्सा अपन कनियाँ कए  ,

दिन भैर खटैत-खटैत सुखी गेल खुन शरीर
 कए ,
कनियाँ मोटा गेला मात्र एक बरिस मेँ ,
फूली कs भेल फुक्का अंग-अंग ओकर शरीर
 कए ,
आइ हम बता रहल छी हालात ई दुनिया कए ,

घर के सुप्रिम जज ई बात कोना नइ मानी .
अपना लेल मधुर मलाई दोसर लेल छुच्छ पानि .
दौड़ैत रहै छी पैदल कोन काज स्कुटर के ,
आई हम बता रहल छी हालात ई दुनिया के
 ,

 नै पान खा सकए छी नै लौँग नै इलायची
कानून जौँ तोड़ब गर्दन पर चलत कैँची ,
बेलना के माइर खाइ छी होई साफ हम झाड़ू से ,
आइ हम बता रहल छी हालात ई दुनिया
 कए .

मैडम के जुल्म छै या तकदिर के सितम छै ,
कोना कs हम बताबी कतेक उदास हम छी ,
तुफान मे फसल छी आश नइ किनारा
 कए ,
आइ हम बता रहल छी हालात ई दुनिया कए ,

एकटा हमहीँ
 नै छी गुलाम कनियाँ के ,
हमरा सन कतेक भाई आओर छै दुनिया मे ,
कहियो लेबs अमित" सहारा बोतल ई जहर
 .
आइ हम बता रहल छी हालात इ दुनिया के . . ,
 
उमेश पासवान
आशा

मैथि‍ल छी हम
मैथि‍ली हमर भाषा यौ
जाइत-पानि‍क दोग रचि‍
कि‍अए देखै छी
अपने सभ तमासा यौ
अही सन सोनि‍त
बहैए हमरो देहमे
हमरो अछि‍ कि‍छु अभि‍लाषा यौ
जन्‍म लेने छी
अपने सभ जकाँ अही धरतीपर
हमरो मनमे अछि‍ आशा यौ
रोज सुति‍-उठि‍
करै छी हम
पावन भूमि‍
मि‍थि‍लाक उन्नति‍क आशा यौ
मैथि‍ल छी हम
मैथि‍ली हमर भाषा यौ।




डेग-डेगपर खतरा

लोग लोगकेँ
जानसँ मारै छै
दानव सन
करै छै बेवहार
कि‍यो भऽ गेल
बेइमान कि‍यो चोर
कि‍यो दहेज लोभी
कि‍यो डाकू खुंखार
वि‍श्वास केकरापर
के करतै?
अपनो अप्‍पनकेँ
लऽ लैत छै जान
मनुख-मनुखकेँ
नै चि‍न्‍ह रहलैए
मनुक्‍खक चरि‍त्र
जानवर सन भऽ रहलैए
डेगपर खतरा अछि‍
ओना बुझाइए
देखू आजुक मनुख
बदलाव देखि‍ गीद्धो सरमाइए।

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१.जगदीश प्रसाद मण्‍डल२.नवीन ठाकुर

जगदीश प्रसाद मण्‍डल

गीत

पकड़ि‍ पग पएरे-पएरे
पग-पग पथ पकड़ैत चलू।
पकड़ि‍ प्रेम पहुँची पकड़ि‍
संग जि‍नगि‍क चलैत चलू।
पकड़ि‍.....।
मोटरी-चोटरीक आशा कत्ते
हल्‍लुक जान बनबैत चलू
पथ अबि‍ते-अबैत
गुरु स्‍मरण करैत चलू।
पकड़ि‍.....।
जागल-सूतल धार बहै छै
जि‍न्‍दामुरदा नाओं धड़ै छै
पथ-बना बीच धरती
जि‍नगीक गीत गबैत चलू।
पकड़ि‍.....।
))((

बदरीहन

बदरीहन समए बीच जहि‍ना
अमवसि‍या राति‍ अबैत रहै छै।
कलि‍-कलि‍मल वसन ओढ़ि‍
कालिंदी कूल सजैत रहै छै।
पक्ष इजोत अबैसँ पहि‍ने
अन्‍हार पक्ष छेकने रहै छै।
अन्‍हरा-अन्‍हरा अन्‍हार बीच
बाट इजोत हराएल रहै छै।
चौबीसो घंटा दौड़-धूप
राति‍-दि‍न, दि‍न-राति‍ खेलैत रहै छै
चढ़ि‍-उतरि‍ समए संग-संग
अपन गति‍ये खेल खेलै छै।
बराबरीक भाग लगा-लगा
सालक बीच हि‍साब जोड़ै छै।
बाट-घाट आगूओ-पाछू
पहुँचि‍ लक्ष्‍य नि‍सांस छोड़ै छै।
समए-साल देखि‍यो सुनि‍
मास नै पूरा पबै छै।
हारि‍-जीत मध्‍य जि‍नगी तहि‍ना
मानि‍ माइन पबैत रहै छै।
जहि‍ना दि‍नेक राति‍ बनि‍-बनि‍
राति‍-दि‍न कहबए लगै छै।
दि‍ने-राति‍, राति‍ये दि‍न
मि‍लि‍-जुलि‍ सि‍रजए लगै छै।
अंत पहाड़ श्रृंग ठेकि‍ अकास
सि‍ंगार रूप सजबए लगै छै।
ऊपर धरती सजल-धजल
गड़ूगर पएर ससरए लगै छै।
ससरि‍-ससरि‍, हटि‍-हटि‍
रसे-रसे कात हटै छै।
सि‍र बि‍नु धड़, धड़ बि‍नु शीश
चि‍न्‍ह-पहचि‍न्‍ह बि‍सराइ छै।

मौसम पाबि‍ मौसम जहि‍ना
ऋृतु परि‍वर्तन करैत रहै छै।
जि‍नगी मनुष्‍योक तहि‍ना
बीच बेवस्‍था बदलए लगै छै।
कहि‍यो रौदमे डाहए
तँ कहि‍यो पानि‍-पाथर बरि‍साबए।
ओस-पाल बनि‍-बनि‍ कहि‍यो
हृदए बीच छाती दलकाबए।
मध्‍य धार बीच जहि‍ना
मुँह-धार कहबै छै।
तहि‍ना बेवस्‍था बीच समाज
मुँह-धार बनबै छै।
जेहेन मुँह-धार समाजक
तेहने धार पकड़ि‍-चलत।
दुख-बेथाक बोन-झाड़केँ
खलखला-खलखला कटैत चलत।
))((

बालि‍ वध

बोधि‍ गाछ ताड़क जे सातो
गेरूलाकार लगल छै।
सातो बेधि‍ जे वाण नि‍कलि‍
आदि‍-बालि‍ वध करै छै।
पीठ नाग सजल सातो
ताड़ गाछ कहबैत एलैए।
सातो घोड़ा सजि‍-बनि‍ रथ
सारथी बनि‍ देखबैत एलैए।
नाग-नाक ऊपर पएर जखने
कसि‍-कसि‍ भार दबै छै।
छटपटा सोझ होइत-होइत
वृत्त-आवृत्त बनए लगै छै।
होइत सीध नजरि‍ हिया
लक्ष्‍य बनि‍ देखए लगै छै।
कोणा-कोणी कोण-वाण
समधानि‍ छाती बेधए लगै छै।
बगलि‍ वृक्ष राम जहि‍ना
हि‍या-हिया‍ आगू देखलनि‍
सटा छाती तानि‍ धनु-वाण
छाती बालि‍क कसि‍ कऽ बिंधलनि‍।

त्रेते नै जुग-जुगान्‍तरसँ
बेश बालि‍ पनपैत एलैए।
शर्त्त राक्षस देव पकड़ि‍-पकड़ि‍
संकल्‍प सात गढ़ैत एलैए।
शासक-शासि‍त पक्ष दू बीच
झगड़ा-मि‍लान दुनू चलै छै।
नीक-अधलाक वि‍चार करैत
संगी-दोस बनैत चलै छै।

नवीन ठाकुर
द्वंद्व निर्वाह

बात हमरा सँ आंहाके, कहलो नै जायत !
बिन कहलो आँहा सँ रहलो नै जायत !

लैर लिय मोन में जतेक लरबाक हुवा ,
फेर आयब जखन वेग सहलो नै जायत !

आंहक घरक दोग सँ परिचित छि हम ,
कुछी नुकब चाहब , नुकालो नै जायत !

बेर रहैते कहू बात जे कहबाक हुवा ,
बेर बितला पर बात सुनलो नै जायत !

रैहितौं दुश्मन त कोनो गप नै छल ,
मुदा प्रेमी सँ आन्ह्के लरलो नै जायत !

अछि रिश्ता अपन मधुरता के संग ,



ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.चंदन कुमार झा२.नवीन कुमार ‘‘आशा’’


चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान, मधुबनी, बिहार


1.प्रतिज्ञा
लय प्रतिज्ञा आउ चलू बदलय व्यवस्था देश के,
परसय ले प्रेम-प्रसाद ओ' मेटबय ले ईर्ष्या-द्वेश के|

रक्त-रण्जित हाथ के सिखबय ले सृष्टि-सर्जना,
अधिकार-वंचित लोक में जगबय लय नूतन चेतना,
ताकय चलू ओ' वाट जे पूरा करय उद्देश्य के |
परसय ले प्रेम-प्रसाद ओ' मेटबय ले ईर्ष्या-द्वेश के||


2

||हेतैक नवका भोर||

एतै जागृति हेतैक नवका भोर,
घर-घर मे पहुचत शिक्षा,
शिक्षित हेतै सभ लोक,
संपूणॅ धरा पर खुशिये पसरत,
ककरो आँखि मे नहि रहतै नोर,
नहि रहतै आतंक, आतंकी,
' आतंकवादक जोर,
नहि रहतै राजनिति आ'
जातिवादक गठजोड़,
नवल दिवस, नुतन प्रभात,
पुनि हेतैक नवल ईजोर।.
नवीन कुमार ‘‘आशा’’
मिथिलाक की करू बखान

मिथिलाक की करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान
एहि धरती पर जॅ भेल जन्म
तय बुझि अपना कें धन्य
मिथिलाक अछि अलग पहचान
हर ठाम छोड़ै अपन निशान
जतय जतय पर पड़ल कदम
ओहि ठाम फहरलि परचम
मिथिलाक पेंटिग कय नहि जाने
मधुवनी के ई पहचान
दरभंगाक अछि अलगे शान
जानल मानल पान मखान
मिथिलाक की करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान ।
जखन हम गुजरी सरिसब पाही
सुने मय आवे शंकर मिश्र वाणी
जकर सेहो अछि अलग पहचान
मिथिलाक कि करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान।
जखन आवी मिथिला नगरी
दही चूड़ा खाए पसरी
दही चूड़ाक अलग पहचान
अहि मय बसे मैथिलक जान
मिथिलाक कि करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान।
जखन देखि माछक ठेला
तखन बुझब सॉझक मेला
जखन देखि जिबैत भाकुर
नहि रहत मुह पर दू आखर
मिथिलाक कि करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान।
एतय के धिया पुता माजल
ओ रहति हरदम सजल
हुनको अछि अलग पहचान
हुनका मय बसे माता-पिताक प्राण
कतबो ओ होयथि हुरदंग
नहि करथि दोसर के तंग
मिथिलाक की करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान।
मिथिलाक बूढ़ होयथि वा बच्चा
हुनक मोन होयन्हि सच्चा
एक दोसरक करथि सम्मान
किया नहि होयथि अनजान
मिथिलाक कि करू बखान
कि गाऊ एकर गुणगान
मिथिला महान मिथिला महान।

आकाशवाणी दरभंगा सॅ पूर्व प्रसारित- फरवरी 2011



 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
निशान्त झा
हमर  भारत महान अछि 
देश भरिमे बस यएहे
  एक गान अछि 
हमर
  भारत महान अछि . 

गणतंत्र बनल
  भारत जखन 
तखन
   जनता मुस्कऐल छल 
आब तंत्र बचल
  केवल भारत
तखन
  जनताकेँ सुधि ऐल छल 
गणकेँ बिसरि गेल
  नेता
बस कुर्सी टा
 हुनक  जान अछि 
हमर
  भारत महान अछि . 

भूखल
  जनता आ  भूखल  देश
दू टूक कलेव
  पर होइत द्वेष
मुदा धारण कऽ रखने
  सात्विक वेश
भऽ गेल
  फोकला भारत देश
मुदा
  झोरा पसारि कऽ नेता  
बूझि रहल
  अपन मान अछि 
हमर
  भारत महान अछि . 

पढ़ि लिखि कऽ आइ
  भविष्य
बेकार देखाइ दैत अछि
 
ऐ बेकारक खरीद
बिक्रीसँ
ईमान बिकाउ होइत अछि
 

किछु सिक्काक वास्ते
हिनक गद्दारी केनाइ काज अछि
हमर भारत महान अछि .

कुर्सीक चक्करमे नेता
भूल - भुलैया घूमि रहल
कोन दल क बल नीक अछि
ध्यान लगा कऽ सूँघि रहल
दल - बदलू नेता सँ
आब जनता परेशान अछि
हमर भारत महान अछि .

दल बदलि कऽ तैयो नेता
जखन चुनाव हारि गेल
तँ ओइ दलक नेता सभ द्वारा
हुनका राज्यपाल बनाएल गेल
जनताक अछि ककरा फिक्र
बस कुर्सी हुनक जहान अछि
हमर भारत महान अछि .

आइ नै जानि राजनीतिमे
केहेन खिचड़ी पाकि रहल
भारतक जनता चुपचाप
निष्ठुर क़ानूनकेँ सहि रहल
एतऽ नेता - नेताक झोरामे
एक एक हवाला कांड अछि
हमर भारत महान अछि .
 

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
डॉ॰ शशिधर कुमर, एम॰डी॰(आयु॰) कायचिकित्सा, कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एण्ड रिसर्च सेण्टर, निगडी प्राधिकरण, पूणा (महाराष्ट्र) ४११०४४
      
     
कोन  खुशिएँ  नाचि रहलह


 

मोन
 कहइछ शशिने तोँ  होरी मनाबह ।
कोन  खुशिएँ  नाचि रहलह - से बताबह ??

स्वर्ग मिथिला बनल छह, नर्कहु सँ बत्तर ।
अजेय दुर्गक,  आइ हर  प्राचीर  विक्षत ।
माए मैथिली तोहर जननी, केर हृदय मे,
व्याप्त  दुख केर  होलिका - पहिने जराबह ।। मोन कहइछ ..........

जनकजा  सीताक  जे छल मातृभाषा ।
महाकवि विद्यापतिक जे कीर्त्ति गाथा ।
मेघनादक  फाँस  मे  से  छह अचेतन,
आनि संजीवनि तोँ शशि तकरा जियाबह ।। मोन कहइछ ..........

गाबि  थाकल  जकर  महिमा,
शास्त्र  वेद  पुराण  अगनित ।
आइ तकरा  नञि भेटल अछि,
हा !  अपन पहिचान समुचित ।
आइ लागल छह ग्रहण  मिथिलाक रवि केँ,
एहेन  दुर्गति पर  ने तोँ  डम्फा बजाबह ।। मोन कहइछ ..........




होरी नञि, होरीक प्रात रहए


आइ गेल छलहुँ, हुनिका ओहि ठाँ,
होरी  नञि,  होरीक  प्रात  रहए ।
काजक  तऽ  सिर्फ  बहाना  छल,
छवि - दर्शन केर अभिलाष रहए ।।

सोझाँ अएलीहि, किछु बात बनल ।
बढ़ि  गेल जेना,  मोनक हलचल ।
अति आनन्दित  मुखमण्डल  छल,
आनन्दहि   बिह्वल   गात  रहए ।
आइ गेल छलहुँ, हुनिका ओहि ठाँ,
होरी  नञि,  होरीक  प्रात  रहए ।।


नयन  मिलल, पर थिर ने रहल ।
लाजेँ ने अधर किछु बाजि सकल ।
की  भेल ? - हमहु  स्तब्ध  रही,
मिलनक  अजगुत  एहसास रहए ।
आइ गेल छलहुँ, हुनिका ओहि ठाँ,
होरी  नञि,  होरीक  प्रात  रहए ।।


नहि रंग - अबीर - गुलाल चलल ।
नहि नयनहि केर  ब्यापार चलल ।
पर अधर  हुनिक  रक्तिम रक्तिम,
  गाल   गुलाबी लाल  रहए ।
आइ गेल छलहुँ, हुनिका ओहि ठाँ,
होरी  नञि,  होरीक  प्रात  रहए ।।




लोक एहिना कहैछ, लोक एहिना कहत


लोक एहिना कहैछ, लोक एहिना कहत ।
मुदा हम छी अहीं केर, अहीं केर रहब ।।


नाम अहीं केर जपै छी, हम आठो पहर ।
ध्यान अहीं केर रहैछ, नञि केओ दोसर ।
अहाँ मानू  ई सत्य, हम अहीं केर रहब ।
लोक एहिना कहैछ, लोक एहिना कहत ।।


साओनभादो केर राति वा हो चैती बसन्त ।
जेठ हो कि अषाढ़ , वा हो ठिठुरल हेमन्त ।
हाबा बहितहि रहैछ, हाबा बहितहि रहत ।
लोक एहिना कहैछ, लोक एहिना कहत ।।


नञि कहियो मिझाइछ, प्रेम थिक ओ अनल ।
जरि अमृत भऽ जाइछ, वासना  केर  गरल ।
अहाँ अन्तऽहि सही, मन अहीं केर रहत ।
लोक एहिना कहैछ,  लोक एहिना कहत ।।




हमरा जुनि करिहेँ याद सखी


हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।
जीवनक  जँ  राह  अनन्त  कही,
हम क्षण भरि केर बस संगी छी ।।


आइ एहि आङ्गन, आइ ओहि आङ्गन ।
हम  एहि  कानन  सँ  ओहि  कानन ।
नञि अता पता हम्मर किछुओ,
हम  मुक्त गगन  केर पंछी छी ।
हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।।


जिनगी  मे  बहुतहु  भेंट  होयत ।
बहुतो  संगी  सभ  छुटि  जायत ।
एक जायत  तऽ  दोसर  आओत,
अछि  जीवन  तऽ  बहुरंगी  ई ।
हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।।


एक क्षण जञो हो मधुमय बसन्त ।
दोसर  सम्भव  पतझड़ - हेमन्त ।
थिक  समय-समय केर  फेर सखी,
हम मित्र,  बनल  प्रतिद्वन्दी छी ।
हमरा  जुनि  करिहेँ  याद  सखी,
हम तऽ किछु  कालक संगी छी ।।

 
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श्यामल सुमन
कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ
कोना प्रियतम केँ रंगो लगाबी, कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।
छोड़ि फगुआ केँ चौरचन मनाबी, कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

भरल हाथ मे रंग-गुलाल,
सोझाँ मे अछि सुन्दर गाल,
मोन करैया कऽ दी लाल।
कोना जानितो इजोरिया भगाबी, कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

झालि, मजीरा बाजय ढ़ोल,
गारि लगय अछि मीठगर बोल,
बिना पानि के मचल किलोल।
कोना प्रियतम के संगे नहाबी कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।

जागू सजनी भऽ गेल भोर,
गली गली मे मचलय शोर,
खेलब फाग बहुत घनघोर।
कोना जा कऽ सुमन केँ जगाबी कि मुखड़ा पर चान देखलहुँ।।
फागुन मौसम के श्रृंगार
होली छी रंगक त्योहार
फागुन मौसम के श्रृंगार
सगरे फगुआक गीत संग ढोल बजैया
घर मे पिया बिनु कनिया किलोल करैया

पावनि बीतल भरि साल के, तखनहिं फगुआ आबय
कहियो बोल फुटल नहि जिनकर, सेहो गीत सुनाबय
साँचे, फगुनक दिन अनमोल लगैया
घर मे पिया बिनु कनिया किलोल करैया

पूआ आओर पकवान बनाकऽ, सबकेँ खूब खुवेलहुँ
एखनहुँ आँखि लगल देहरी पर, मुदा अहाँ नहिं एलहुँ
खाय छी किछुओ तऽ मुँह मे ओल लगैया
घर मे पिया बिनु कनिया किलोल करैया

बिनु जोड़ी के फागुन फीका, हरेक साल चलि आबू
लोक-वेद आ हमरो संग मे, फगुआ खूब खेलाबू
पिया, सुमन अहाँ केँ बकलोल कहैया
घर मे पिया बिनु कनिया किलोल करैया





 
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विदेह नूतन अंक मिथिला कला संगीत

राजनाथ मिश्र
चित्रमय मिथिला स्लाइड शो
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उमेश मण्डल

मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो
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