भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, April 14, 2012

'विदेह' १०३ म अंक ०१ अप्रैल २०१२ (वर्ष ५ मास ५२ अंक १०३) PART_ 2


गजेन्द्र ठाकुर- शब्दशास्त्रम् / दिल्ली



शब्दशास्त्रम् –

(ई कथा “जखन तखन” पत्रिका आ “कथा पारस” कथा संकलनमे छपल अछि, मुदा दुनू ठाम संकीर्ण जातिवादी मानसिकताबला सम्पादक लोकनि एकर किछु महत्वपूर्ण भाग काटि देने छथि। एतऽ सम्पूर्ण कथा अविकल रूपमे देल जा रहल अछि।)

सिंह राशिमे सूर्य, मोटा-मोटी सोलह अगस्त सँ सोलह सितम्बर धरि। किछु सुखेबाक होअए तँ सभसँ कड़ा रौद। सिंह राशिमे मितूक पिताक तालपत्र सभ पसरल रहैत छल, वार्षिक परिरक्षण योजना, जे एहि तालपत्र सभमे जान फुकैत छल। आनन्दा मितूक पिताजीक एहि तालपत्र सभक परिरक्षण मनोयोगसँ करैत रहथि। कड़गर रौदमे तालपत्र पसारैत आनन्दा, मितूकेँ ओहिना मोन छन्हि। मितू संग जिनगी बीति गेलन्हि आनन्दाक। मुदा एहि बरखक सिंहराशि अएलासँ पूर्वहि आनन्दा चलि गेलीह...  आ आब जखन ओ नै छथि तखन जीवनक परिरक्षण कोना होएत। मितूक आ ओहि तालपत्र सभक जीवनक..

भ्रम। शब्दक भ्रम। शब्दक अर्थ हम सभ गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।



लुकेसरी अँगना चानन घन गछिया

तहि तर कोइली घऽमचान हे

कटबै चनन गाछ, बेढ़बै अँगनमा

छुटि जेतऽ कोइली घऽमचान हे

कानऽ लगली खीजऽ लागल, बोन के कोइलिया

टूटि गेलऽ कोइली घऽमचान हे

जानू कानू जानू की, जोबोन के कोइलिया

अहि जेतऽ कोइली घऽमचान हे

जहि बोन जेबऽ कोइली

रहि जेत तऽ निशनमा

जनू झरू नयना से लोर हे

सोने से मेढ़ायेब कोइली तोरो दुनू पँखिया

रूपे से मेरायेब दुनू ठोर हे

जाहे बोन जेबऽ कोइली रुनझुनु बालम

रहि जेतऽ रकतमाला के निशान हे



कोनो युवतीक अबाज चर्मकार टोलसँ अबैत बुझना गेल..आनन्दाक अबाज।

मुदा आनन्दा तँ चलि गेली, कनिये काल पहिने ओकर लहाश देखि आएल छथि बचलू। मितूकेँ समाचार कहि डोमासी घुरि गेल छथि। आ आनन्दा, ओ तँ बूढ़ भऽ मरलीहेँ। तखन ई अबाज, युवती आनन्दाक। भ्रम। शब्दक भ्रम। कहैत रहथि मितूक पिता श्रीकर मीमांसक मारते रास गप शब्दशास्त्रम् पर। शब्दक अर्थ हम सभ गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।



I

शब्दशास्त्रम्



गर्दम गोल भेल छल।

अनघोल मचि गेल छलै। बलान धारमे कोनो लहाश बहल चलि जा रहल छल। धोबियाघाट लग कात लागल छल।

कतेक दूरसँ आएल छल से नै जानि। कोनो बएसगर महिलाक लहाश छल। धोबिन लहाशकेँ चीन्हि गेल रहथि। गौआँकेँ कहि दै छथि ओकर नाम आ पता। गौआँ के, ओहि गामक डोमासीक बचलूकेँ। मृतकक घरमे खबरि भऽ गेल छलै। एसकरे एकटा बुढ़ा रहैए ओहि घरमे...मितू।

मितूक टोलबैया गौँआ सभ लहाशकेँ डीहपर आनि लेने छल आ फेर मितू ओकर दाह-संस्कार कऽ देने रहथि।

गाममे अही गपक चर्चा रहै। बचलू बुढ़ाकेँ बुझल छन्हि किछु आर गप। चिन्है छथि ओ ओहि लहाशक मनुक्खकेँ। नवका लोककेँ बहुत रास गप नै बुझल छै।

आनन्दाक लहाश..

-आनन्दा बड्ड नीक रहै। बुझनुक। ओकर बचिया सभ सभटा सुखितगर घरमे छै..बेटा सेहो विद्वान। मितू, आनन्दाक वर सेहो उद्भट..श्रीकर मीमांसकक पुत्र..। मुदा कहियो मितू आकि आनन्दा कोनो खगतामे ककरो आगाँ हाथ नै पसारने छथि।

बचलू सेहो आब बूढ़ भऽ गेल छथि, झुनकुट बूढ़। हिनकासँ पैघ मात्र मितू छथिन्ह। लोक सभ दुनू गोटेकेँ बुढ़ा कहि बजबै छन्हि।

आ एहि बचलू बुढ़ाकेँ बुझल छन्हि ढेर रास गप।

.....

मितू आ श्रीकरक वार्तालाप। किछु बुझिऐ आ किछु नै।

-मितू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे अविद्या जीवपर आश्रित अछि आ विषय बनि गेल अछि। आत्मसाक्षात्कार लेल कोन विधि स्वीकार करब? असत्य कथूक कारण कोना भऽ सकत? कोनो बौस्तुक सत्ता ओकरा सत्य कोना बना देत, त्रिकालमे ओकर उपस्थिति कोना सिद्ध कऽ सकत? जे बौस्तु नै तँ सत्य अछि आ नहिये असत्य आ नै अछि एहि दुनूक युग्मरूप; सैह अछि अनिर्वाच्य। बिना कोनो वस्तु आ ओकर ज्ञान रखनिहारक शून्यक अवधारणा कोना बूझऽमे आओत?

-मितू। कुमारिल कहै छथि आत्मा चैतन्य जड़ अछि, जागलमे बोध आ सूतलमे बोधरहित।

-मितू। भामतीमे वाचस्पति कहै छथि जे आत्मसाक्षात्कारसँ रहित शास्त्रमे कुशल व्यक्ति सर-समाजसँ पशुवत व्यवहार करैत छथि, लाठी लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि भागि जाइ छथि, घास लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि लग जाइत छथि। माने डरसँ घबड़ाइ छथि।

“आत्मसाक्षात्कारसँ रहित शास्त्रमे कुशल व्यक्ति सर-समाजसँ पशुवत व्यवहार करैत छथि, लाठी लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि भागि जाइ छथि, घास लैत अबैत व्यक्तिकेँ देखि लग जाइत छथि। माने डरसँ घबड़ाइ छथि।” ई गप मुदा सरिया कऽ बूझबामे आएल रहए हमरा।



....

आमक मास रहै।

बानर आ बनगदहा खेत सभकेँ धांगने अछि आ पारा बारीकेँ।

 “सभटा नाश कऽ देलकै बचलू। रातिमे तँ नञि सुझै छै। भोरे-भोर कलम जा कऽ देखै छी। बनगदहा सभटा फसिल खा लेलक आब ई बानर आमक पाछाँ लागल अछि।”

हमरा बुझल अछि जे आमक मासमे बानर आ बनगदहा ओहि बरख एक्के संग आएल छलै।

आमेक मास रहै। से मितू ओगरबाहीमे लागत आब। आमक टिकुला पैघ भऽ रहल छै। मचान बान्हबाक रहै मितूकेँ। हमहूँ संगमे रहियै। बाँस काटि कऽ अबैत रही।

डबरा कात दऽ कऽ अबि रहल छलहुँ। भोरहरबा छल। अकास मध्य लाल रेख कनेक पिरौँछ भेल बुझना गेल छल।

-लीख दऽ कऽ चलू बचलू।

खेतक बीचमे लीख देने आगाँ बढ़ऽ लागलहुँ।

तखने हम शोणित देखलहुँ। हमर देह शोनित देखि सर्द भऽ गेल।

मुदा निशाँस छोड़लहुँ। बाँसक तीक्ष्ण पात एकटा बालिकाक हाथ आ मुँहकेँ नोछड़ैत गेल रहै। मितूक बाँसक नोछाड़ ओकरा लागल रहै।

मितू हाथसँ बाँस फेकि कऽ ओहि बालिका लग चलि गेल छल।

नोराएल आँखिक ओहि बालिकाक शोणित पोछि मितू ओकर नोछारपर माटि रगड़ि देने रहै।

-की कऽ रहल छी।

-शोनित बन्न भऽ जाएत।

बालिका लीखपर आगाँ दौगि गेल छलीह।

-की नाम छी अहाँक।

-आनन्दा।

-कोन गामक छी।

-अही गामक।

-अही गामक?

हम दुनू गोटे संगे बाजल रही।

हँ, आनन्दा नाम रहै ओकर। आ मितूक पहिल भेँट वैह रहै।

...

मचानो बन्हा गेल रहए। मुदा आनन्दा फेर नै भेटल रहए।

मितू पुछैत रहए।

-कोन टोलक छी ओ। नहिये मिसरटोलीक अछि, नहिये पछिमाटोलीक आ नहिये ठकुरटोलीक।

-डोमासीक रहितए तँ हम चिन्हिते रहितिऐ।

-तखन कोना अछि ओ अपन गामक। आ अपन गामक अछि तँ आइ धरि भेँट किए नै भेल रहए ओकरासँ।

मुदा बिच्चेमे संयोग भेल छल। मितूक टोलमे फुदे भाइक बेटाक उपनयन रहै। बँसकट्टी दिन पिपहीबलाकेँ बजबैले हम गामक बाहर चर्मकार टोल गेल रही।

-हिरू भाइ, हिरुआ भाइ।

-आबै छथि।

कोनो बालिकाक अबाज आएल रहए। अबाज चिन्हल सन।

-अहाँ के छी।

-हम हिरूक बेटी। की काज अछि?

-पिपही लऽ कऽ एखन धरि अहाँक बाबू नै पहुँचल छथि। बजबैले आएल छियन्हि।

-तही ओरियानमे लागल छथि।

-अहाँक नाम की छी?

तखने टाट परक लत्तीकेँ हँटबैत वैह बालिका सोझाँ आबि गेलि।

-हम आनन्दा। हम अहाँकेँ चीन्हि गेल रही। अहाँक की नाम छी?

हम तँ सर्द भेल जाइत रही। मुदा उत्तर देबाके छल।

-बचलू।

-आ अहाँक संगीक।

-मितू, पंडित श्रीकरक बेटा।

मितूक पिताक नाम सेहो हम आनन्दाकेँ बता देलिऐ। पुछने तँ नै छलि ओ, मुदा नै जानि किएक..कहि देलिऐ।

तखने हिरुआ पिपही लेने आबि गेल रहथि। हुनका संगे हम टोलपर आबि गेलहुँ।

रस्तामे हिरुआकेँ पुछलियन्हि- आनन्दा अहाँक बेटी छथि। मुदा कहियो देखलियन्हि नै।

-मामागाममे बेशी दिन रहै छलै। मुदा आब चेतनगर भऽ गेल छै। से गाम लऽ अनने छिऐ।

-फेर मामागाम कहिया जएतीह।

-नञि, आब ओ चेतनगर भऽ गेल अछि। आब संगे रहत।

पंडितजीक बेटा मितू, हमर संगी मितू, ई गप सुनि की होएतैक ओकरा मोनपर। कैक दिनसँ ओकर पुछारी कऽ रहल छल। हम सोचने रही जे भने मामागाम चलि जाए आनन्दा आ कनेक दिनमे मितूक पुछारीसँ हम बाँचि जाएब।

मुदा आब तँ आनन्दा गामेमे रहत आ पंडित श्रीकरक बेटा मितू..

धुर..हमहीं उनटा-पुनटा सोचि लेने छी। ओहिना दू-चारि बेर मितू आनन्दाक विषयमे पुछारी केने अछि। तकर माने ई थोड़बेक भेलै जे..

मुदा जे सैह भेलै तखन ?..

पंडितक बेटा आ चर्मकारक बेटी..

पंडित श्रीकर मानताह?..गौआँ घरुआ मानत?

धुर। फेर हम उनटा-पुनटा सोचि रहल छी। पिपही बाजए लागल रहए आ लीखपर देने हम आ मितू, भरि टोलक स्त्रीगण-पुरुषक संगे बँसबिट्टी पहुँचि गेल रही। रस्तामे ओहि स्थलकेँ अकानने रही। मितू आ आनन्दाक पहिल मिलनक स्थलकेँ- कोनो अबाज लागल अबैत..मात्र संगीत..स्वर नै।

बरुआ बाँस सभपर थप्पा दऽ देने रहै आ सभ बाँस कटनाइ शुरू कऽ देने रहथि। मड़बठट्ठी आइये छै। घामे-पसीने भेने कनेक मोन तोषित भेल। कन्हापर बाँस लेने हम आ मितू ओही रस्ते बिदा भेल रही..ओही लीख देने।



मुदा मितू हमरा सदिखन टोकारा देमए लागल। कारण कोनो काज हम एतेक देरीसँ नञि केने रहिऐ। ओ हमर राम रहए आ हम ओकर हनुमान।

मचानपर एहिना एक दिन हम मितूकेँ कहि देलिऐ-

-मितू, बिसरि जो ओकरा। कथी लेल बदनामी करबिहीं ओकर। हिरुआक बेटी छिऐ आनन्दा। ओना तोहर नाम हमरासँ ओ पुछलक तँ हम तोहर नाम आ तोहर पिताजीक नाम सेहो कहि देलिऐ।

-हमर पिताजीक नाम ओ पुछने रहौ?

-नै पुछने रहए। मुदा..

-तखन किए कहलहीं?

-आइ ने काल्हि तँ पता लागबे करतै..

-जहिया लगितै तहिया लगितै..आब ओ हमरासँ कटत..हमर मेहनति तूँ बढ़ा देलेँ..

-कोन मेहनति। तूँ पंडित श्रीकरक बेटा आ ओ हिरुआ चर्मकारक बेटी। कथीले बदनामी करबिहीं ओकर।

-बियाह करबै रौ। बदनामी किए करबै।

-ककरा ठकै छिहीं ?

-ककरो नै रौ।

एहिना अनचोक्केमे निर्णय लैत छल मितू। श्रीकर मीमांसकक बेटा मितू नैय्यायिक। ओकरा घरमे तालपत्र सभ पसरल रहैत देखने छलिऐ। से भरोस नै भऽ रहल छल।

-गाममे कहियो देखलिऐ नै ओकरा।

-तूँ गाममे रहलेँ कहिया। गुरुजीक पाठशालासँ पौरुकेँ तँ आएल छेँ।

-मुदा तूँहीं कोन देखने रहीं।

-मामा गाम रहै छल ओ।

-फेर मामा गाम घुरि कऽ तँ नै चलि जाएत।

-नै, से पुछि लेलिऐ। आब गामेमे रहत।

पौरुकाँ गामेमे मितूक माएक देहान्त भऽ गेल छलन्हि।

श्रीकर मीमांसक सेहो खटबताह सन भऽ गेल छथि- ई गप हुनकर टोलबैय्या सभ करैत छल। तालपत्र सभक परिरक्षण कोना हएत एहि सिंह राशिमे? यैह चिन्ता रहन्हि श्रीकरक, आ तेँ ओ खटबताह सन करए लागल रहथि.. ईहो गप हुनकर टोलबैय्या सभ करैत छल।

...

हिर्र..हिर्र…हिर्र....

डोमासीसँ सूगरक पाछू हम आ मितू हिर्र-हिर्र करैत चर्मकार टोल पहुँचि जाइ छी। आनन्दा मुदा सोझाँमे भेटि गेलीह। सुग्गर संगे हम आगाँ बढ़ि जाइ छी। घुमै छी तँ आनन्दा आ मितूक गप सुनैले कान पाथै छी।

हिर्र..हिर्र

एहि बेर आनन्दा हिर्र कहैत अछि आ हम मुस्की दैत सूगरक आगाँ बढ़ि जाइ छी।

ई घटना कैक बेर भेल आ ई गप सगरे पसरि गेल। हिरू कताक बेर हमरा लग आएल रहथि।

हीरू उद्वेलित रहए लागल रहथि। हीरूक पत्नी बेटीक भाग्यक लेल गोहारि करए लगलीह।

कए कोस माँ मन्दिलबा

कए कोस लुकेसरी मन्दिलबा

कए कोस पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

कए कोस पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

दुइ कोस मन्दिलबा

चारि कोस लुकेसरी मन्दिलबा

पाँचे कोस पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

पाँचे कोस पड़ल दोहाइ



कोन फूल माँ मन्दिलबा

कोन फूल बन्दी मन्दिलबा

कोन फूल पर पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

कोन फूल पर पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

ऐली फूल माँ मन्दिलबा

बेली फूल लुकेसरी मन्दिलबा

गेन्दे फूल पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

गेन्दे फूल पड़ल दोहाइ

कनी तकबै हे माइ

.........

हिरू डोमासी आबए लागल रहथि।

-की हेतै, कोना हेतै।

-झुट्ठे..

हम गछलियन्हि जे हम हिरु संगे श्रीकर पंडित लग जाएब।

आ हम हिरूकेँ श्रीकर मीमांसक लग लऽ गेल रहियन्हि। श्रीकरक पत्नीक मृत्यु गत बरखक सिंह राशिक बाद भऽ गेल छलन्हि। आ तकर बाद हिरू मीमांसक खटबताह भऽ गेल छथि- लोक कहैत छलन्हि। लोक के? वैह टोलबैय्या सभ। गामक लोक, परोपट्टाक विद्वान लोक सभ तँ बड्ड इज्जत दै छलन्हि हुनका। आँखिक देखल गप कहै छी..

“आउ बचलू। हिरू, आउ बैसू..। ”- गुम्म भऽ जाइत छथि श्रीकर। पत्नीक मृत्युक बाद एहिना, रहैत रहथि, रहैत रहथि आकि गुम्म भऽ जाइत रहथि।

“कक्का, आँगन सुन्न रहैत अछि। कतेक दिन एना रहत। मितूक बियाह किए नै करा दै छियन्हि”?

“मितू तँ बियाह ठीक कऽ लेने छथि”।

“कत्तऽ?” -हम घबड़ाइत पुछै छियन्हि। हिरू हमरा दिस निश्चिन्त भावसँ देखै छथि।

“आनन्दासँ, समधि हीरू तँ अहाँक संग आएल छथिये।”

हाय रे श्रीकर पंडित।

आ बाह रे मितू। पहिनहिये बापकेँ पटिया लेने छल। मुदा बान्हपर जाइत कोनो टोलबैय्याक कान एहि गपकेँ अकानि लेने छल।

हम सभ बैसले रही आकि ओ किछु आर गोटेकेँ लऽ कऽ दलानपर जुमि गेल छल। श्रीकर मीमांसकसँ हुनकर सभक शास्त्रार्थ शुरू भेल। शब्दक काट शब्दसँ।

“श्रीकर, अहाँ कोन कोटिक अधम काज कऽ रहल छी”।

“कोन अधम काज”।

“छोट-पैघक कोनो विचार नै रहल अहाँकेँ मीमांसक?”

“विद्वान् जन। ई छोट-पैघ की छिऐ? मात्र शब्द। एहि शब्दकेँ सुनलाक पश्चात् ओकर शब्दार्थ अहाँक माथमे एक वा दोसर तरहेँ ढुकि गेल अछि। पद बना कऽ ओहिमे अपन स्वार्थ मिज्झर कऽ...”।

“माने छोट-पैघ अछि शब्दार्थ मात्र। आ तकर विश्लेषण जे पद बना कऽ केलहुँ से भऽ गेल स्वार्थपरक”।

“विश्वास नै होए तँ ओहि पदमे सँ स्वार्थक समर्पण कऽ कए देखू। सभ भ्रम भागि जाएत”।

“माने अहाँ मितू आ आनन्दाक बियाह करेबाले अडिग छी”।

“विद्वान् जन। रस्सीकेँ साँप हम अही द्वारे बुझै छी जे दुनूक पृथक अस्तित्व छै। आँखि घोकचा कऽ दूटा चन्द्रमा देखै छी तँ तखनो अकाशक दूटा वास्तविक भागमे चन्द्रमाकेँ प्रत्यारोपित करै छी। भ्रमक कारण विषय नै संसर्ग छै, ओना उद्देश्य आ विधेय दुनू सत्य छै। आ एतए सभ विषयक ज्ञान सेहो आत्माक ज्ञान नै दऽ सकैए। आत्माक विचारसँ अहंवृत्ति- अपन विषयक तथ्यक बोध एहिसँ होइत अछि। आत्मा ज्ञानक कर्ता आ कर्म दुनू अछि। पदार्थक अर्थ संसर्गसँ भेटैत अछि। शब्द सुनलाक बाद ओकर अर्थ अनुमानसँ लग होइत अछि”।

“अहाँ शब्दक भ्रम उत्पन्न कऽ रहल छी। हम सभ एहिमे मितू आ आनन्दाक बियाहक अहाँक इच्छा देखै छी”।

“संकल्प भेल इच्छा आ तकर पूर्ति नै हो से भेल द्वेष”।

“तँ ई हम सभ द्वेषवश कहि रहल छी। अहाँक नजरिमे जातिक कोनो महत्व नै?”

“देखू, आनन्दा सर्वगुणसम्पन्न छथि आ हुनकर आ हमर एक जाति अछि आ से अछि अनुवृत्त आ सर्वलोक प्रत्यक्ष। ओ हमर धरोहरक रक्षण कऽ सकतीह, से हमर विश्वास अछि। आ ई हमर निर्णय अछि”।

“आ ई हमर निर्णय अछि।”- ई शब्द हमर आ हिरूक कानमे एक्के बेर नै पैसल रहए। हम तँ श्रीकर आ मितूकेँ चिन्हैत रहियन्हि, एहिना अनचोक्के निर्णय सुनबाक अभ्यासी भऽ गेल रही। मुदा हिरु कनेक कालक बाद एहि शब्द सभक प्रतिध्वनि सुनलन्हि जेना। हुनकर अचम्भित नजरि हमरा दिस घुमि गेल छलन्हि।

फेर श्रीकर मीमांसक ओहि शास्त्रार्थी सभमेसँ एक ज्योतिषी दिस आंगुर देखबै छथि-

“ज्योतिषीजी, अहाँ एकटा नीक दिन ताकू। अही शुद्धमे ई पावन विवाह सम्पन्न भऽ जाए। सिंह राशि आबैबला छै, ओहिसँ पूर्व। किनको कोनो आपत्ति?”

सभ माथ झुका ठाढ़ भऽ जाइ छथि। श्रीकर मीमांसकक विरोधमे के ठाढ़ होएत?

“हम सभ तँ अहाँकेँ बुझबए लेल आएल छलहुँ। मुदा जखन अहाँ निर्णय लैये लेने छी तखन...।”

मीमांसकजीक हाथ उठै छन्हि आ सभ फेर शान्त भऽ जाइ छथि।

हम आ हीरू सेहो ओतएसँ बिदा भऽ जाइ छी।

हीरू निसाँस लेने रहथि, से हम अनुभव केने रही।

...

ई नै जे कोनो आर बाधा नै आएल।

मुदा ओ खटबताह विद्वान तँ छले। से आनन्दा हुनकर पुतोहु बनि गेलीह। आ हुनक छुअल पानि हमर टोल आकि मितूक टोल मात्र नै सौँसे परोपट्टाक विद्वानक बीचमे चलए लागल।

.....

आनन्दाक नैहरमे विवाह सम्पन्न भेल छल। ओतुक्का गीतनाद हम सुनने रही, उल्लासपूर्ण, एखनो मोन अछि-

पर्वत ऊपर भमरा जे सूतल,

मालिन बेटी सूतल फुलवारि हे

उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे

पर्वत ऊपर भमरा जे सूतल,

मालिन बेटी सूतल फुलवारि हे

उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे



कोन फूल  ओढ़ब लुकेसरि के

कोन फूल पहिरन

कोन फूल बान्धिके सिंगार हे



उठू मालिन राखू गिरिमल हार हे

बेली फूल ओढ़ब बन्दी

चमेली फूल पहिरन

अरहुल फूल लुकेसरि के सिंगार हे

उठू मालिन गाँथू गिरिमल हार हे

उठू मालिन गाँथू गिरिमल हार हे

....

श्रीकर मीमांसक आनन्दाकेँ तालपत्र सभक परिरक्षणक भार दऽ निश्चिन्त भऽ गेल रहथि। पत्नीक मृत्युक बाद बेचारे आशंकित रहथि।

दैवीय हस्तक्षेप, आनन्दा जेना ओहि तालपत्र सभक परिरक्षण लेल आएल रहथि हुनकर घर। अनचोक्के..

मितू कहि देलक हमरा जे कोना ओ श्रीकर पंडितकेँ पटिया लेने रहए। ब्राह्मणक बेटी सराइ कटोरा आ माटिक महादेव बनबैत रहत आ तालपत्र सभमे घून लागि जाएत..

नै घून लागए देथिन तालपत्र सभमे, आनन्दा आएत एहि घर। श्रीकर मीमांसक निर्णय कऽ लेने रहथि।

मितू तँ जेना जीवन भरि अपन लेल एहि निर्णयक प्रति कृतज्ञ छलाह।

श्रीकरक आयु जेना बढ़ि गेल छलन्हि। श्रीकर आ आनन्दाक मध्य गप होइते रहै छल ओहि घरमे।

आनन्दा बजिते रहै छलीह आ गबिते रहै छलीह।



बारहे बरिस जब बीतल तेरहम चढ़ि गेल हे

बारहे बरिस जब बीतल तेरह चहरि गेल हे

ललना सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ

बघिनियाँ घरसे निकालब हे

ललना सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ

बघिनियाँ घरसे निकालब हे



अंगना जे बाहर तोहि छलखिन रिनियाँ गे

ललना गे आनि दियौ आक धथूर फर पीसि हम पीयब रे

ललना रे आनी दियौ आक धथूर फर पीसि हम पीयब रे

बहर से आओल बालुम पलंग चढ़ि बैसल रे

बहर से आओल बालुम पलंग चढ़ि बैसल रे

ललना रे कहि दियौ दिल केर बात की तब माहुर पीयब रे

ललना रे कहि दियौ दिल केर बात की तब माहुर पीयब रे



बारह हे बरिस जब बीतल तेरह चहरि गेल रे

ललना रे सासु मोरा कहथिन बघिनियाँ

बघिनिया घरसे निकालब रे

सासु मोरा मारथिन अनूप धय ननदो ठुनुक धय रे

सासु मोरा मारथि अनूप धय ननदो ठुनुक धय रे

ललना रे गोटनो खुशी घर जाओल सभ धन हमरे हेतै हे

ललना रे गोटनऽ खुशी घर जाओल सभ धन हमरे हेतै हे



चुप रहू, चुप रहू धनी की तोहीँ महधनी छिअ हे

चुप रहू, चुप रहू धनी की तोहीँ महधनी छिअ हे

धनी हे करबै हे तुलसी के जाग, की धन सभ लुटा देबऽ हे

ललना हे करबै मे पोखरि के जाग, की सभ धन लुटाएब हे



श्रीकर मीमांसक हँसी करथिन- आनन्दा, अहाँकेँ तँ सासु अछि नै, तखन ओ बेचारी अहाँकेँ बघिनियाँ कोना कहतीह?

-तेँ ने गबै छी, सभ चीज तँ भरल-पूरल मुदा..।

आँखि नोरा गेल छलन्हि आनन्दाक। हमरा अखनो मोन अछि।

-हम अहाँकेँ दुःख देलहुँ ई गप कहि कऽ।

-कोन दुःख? सासु नै छथि तँ ससुर तँ छथि।

श्रीकरकेँ प्रसन्न देखि मितूकेँ आत्मतोष होइन्ह।

.......

आ श्रीकर मीमांसकक मृत्युक बादो आनन्दा तालपत्र सभमे जान फुकैत रहैत छलीह।

फेर मितूकेँ दूटा बेटी भेलन्हि वल्लभा आ मेधा।

आनन्दाक खुशी हम देखने छी। नैहर गेल रहथि ओ। ओतहि दुनू जौँआ बेटी भेल छलन्हि-



लाल परी हे गुलाब परी

लाल परी हे गुलाब परी

हे गगनपर नाचत इन्द्र परी

हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी



आ फेर भेलन्हि बेटा। पैघ भेलापर बेटा मेघकेँ पढ़बा लेल बनारस पठेने रहथि मितू।

आ दिन बितैत गेल, बेटी सभ पैघ भेलन्हि आ दुनू बेटी, मेधा आ वल्लभाक बियाह दान कऽ निश्चिन्त भऽ गेल छलाह मितू।

बेटाक परवरिश आ बियाह दान सेहो केलन्हि। मेघ बनारसमे पाठन करए लगलाह। मेघ, मेधा आ वल्लभा तीनू गोटे सालमे एक मास आबथि धरि अवश्य।

लोक बिसरि गेल मारते रास गप सभ।



II

भामती प्रस्थानम्

आनन्दा मितूक पिताजीक एहि तालपत्र सभक परिरक्षण मनोयोगसँ  कऽ रहल छथि। कड़गर रौद, मितूकेँ ओहिना मोन छन्हि।

मितू संग जिनगी बीति गेलन्हि आनन्दाक। आ आब जखन ओ नै छथि तखन मितूक जीवनक परिरक्षण कोना होएत।.. मितू प्रवचनक बीचमे कतहु भँसिया जाइ छथि।

प्रवचन चलि रहल अछि। मितू गरुड़ पुराण नै सुनताह। मितू मंडनक ब्रह्मसिद्धि सुनताह, वाचस्पतिक भामती सुनताह, जे सुनबो करताह तँ। जँ बेटी सभक जिद्द छन्हिये तँ आत्मा विषयपर कुमारिलक दर्शन सुनताह। आ सैह प्रवचन चलि रहल अछि।

भ्रम। शब्दक भ्रम। कहैत रहथि श्रीकर मारते रास गप शब्दशास्त्रम् पर। भामती प्रस्थानम् पर। शब्दक अर्थ हम गढ़ि लैत छी। आ फेर भ्रम शुरू भऽ जाइत अछि।

-गुरुजी। हम पत्नीक मृत्युक बाद घोर निराशामे छी। की छिऐ ई जीवन। कतए होएत आनन्दा।

- मितू। धीरज राखू। ब्रह्मसिद्धिक हमर ई पाठ अहाँक सभ भ्रमक निवारण करत। ब्रह्मसिद्धिमे चारि काण्ड छै। ब्रह्म, तर्क, नियोग आ सिद्धि काण्ड। ब्रह्मकाण्डमे ब्रह्मक रूपपर, तर्ककाण्डमे प्रमाणपर, नियोगकाण्डमे जीवक मुक्तिपर आ सिद्धिकाण्डमे उपनिषदक वाक्यक प्रमाणपर विवेचन अछि।

- मितू। मुक्ति ज्ञानसँ पृथक् कोनो बौस्तु नै अछि। मुक्ति स्वयं ज्ञान भेल। मानवक क्षुद्र बुद्धिक कतहु उपेक्षा मंडन नै केने छथि। कर्मक महत्व ओ बुझैत छथि। मुदा ताहिटा सँ मुक्ति नै भेटत। स्फोटकेँ ध्वनि-शब्दक रूपमे अर्थ दैत मंडन देखलन्हि। से शंकरसँ ओ एहि अर्थेँ भिन्न छथि जे एहि स्फोटक तादात्म्य ओ बनबैत छथि मुदा शंकर ब्रह्मसँ कम कोनो तादात्म्य नै मानै छथि। से मंडन शंकरसँ बेशी शुद्ध अद्वैतवादी भेलाह।

-मितू। मंडन क्षमता आ अक्षमताक एक संग भेनाइकेँ विरोधी तत्व नै मानैत छथि। ई कखनो अर्थक्रियाकृत भेद होइत अछि, मुदा ओ भेद मूल तत्व कोना भऽ गेल। से ई ब्रह्म सभ भेदमे रहलोपर सभ काज कऽ सकैए।

-देखू। वाचस्पतिक भामती प्रस्थानक विचार मंडन मिश्रक विचारसँ मेल खाइत अछि। मंडन मिश्रक ब्रह्मसिद्धिपर वाचस्पति तत्वसमीक्षा लिखने छथि। ओना तत्वसमीक्षा आब उपलब्ध नै छै।

-तखन तत्व समीक्षाक चर्चा कोना आएल।

-वाचस्पतिक भामतीमे एकर चर्चा छै।

-मुदा मंडनक विचार जानबासँ पूर्व हमरा मोनमे आबि रहल अछि जे जखन ओ शंकराचार्यसँ हारि गेलाह तखन हुनकर हारल सिद्धान्तक पारायणसँ हमरा मोनकेँ कोना शान्ति भेटत।

-देखियौ, मंडन हारि गेल छलाह तकर प्रमाण मंडनक लेखनीमे नै अछि। मंडन स्फोटवादक समर्थक रहथि, मुदा शंकराचार्य स्फोटवादक खण्डन करैत छथि। मंडन कुमारिल भट्टक विपरीत ख्यातिक समर्थक रहथि, मुदा शंकराचार्यक जाहि शिष्य सुरेश्वराचार्यकेँ लोक मंडन मिश्र बुझै छथि ओ एकर खण्डन करै छथि।

-से तँ ठीके। मंडन हारि गेल रहितथि तँ हुनकर दर्शन शंकराचार्यक अनुकरण करितन्हि।

-आब कहू जे जाहि सुरेश्वराचार्यकेँ शंकराचार्य श्रृंगेरी मठक मठाधीश बनेलन्हि से अविद्याक दू तरहक हेबाक विरोधी छथि मुदा मंडन अपन ग्रन्थ ब्रह्मसिद्धिमे अग्रहण आ अन्यथाग्रहण नामसँ अविद्याक दूटा रूप कहने छथि। मंडन जीवकेँ अविद्याक आश्रय आ ब्रह्मकेँ अविद्याक विषय कहै छथि मुदा सुरेश्वराचार्य से नै मानै छथि। शंकराचार्यक विचारक मंडन विरोधी छथि मुदा सुरेश्वराचार्य हुनकर मतक समर्थनमे छथि।

.......

बानर आ बनगदहा खेत सभकेँ धांगने अछि आ पारा बारीकेँ। आब हमरा दुआरे गामक लोक महीस पोसनाइ तँ नै छोड़ि देत। बानर आ बनगदहा बड्ड नोकसान कऽ रहल अछि।

“चारिटा बानर कलममे अछि। धऽ कऽ आम सभकेँ दकड़ि देलक। हम गेल रही। साँझ भऽ गेलै तँ आब सभटा बानर गाछक छिप्पी धऽ लेने अछि। साँझ धरि दुनू बापुत कलम ओगरने रही, झठहा मारि भगेलहुँ, मुदा तखन अहाँक कलम दिस चलि गेल”।–- हम मितूकेँ हम कहै छियन्हि।

“सभटा नाश कऽ देलकै बचलू। रातिमे तँ नञि सुझै छै। भोरे-भोर कलम जा कऽ देखै छी। बनगदहा सभटा फसिल खा लेलक आब ई बानर आमक पाछाँ लागल अछि। करऽ दियौ जखन...”।

“बनगदहा सभ तँ साफ कऽ उपटि गेल छलै। नै जानि फेर कत्तऽ सँ आबि गेल छै। गजपटहा गाममे जाग भेल छलै, ओम्हरेसँ राता-राती धार टपा दै गेल छै”।

“से नै छै। ई बनगदहा सभ धारमे भसिया कऽ नेपाल दिसनसँ आएल छै। आबऽ दियौ जखन...”।

“हम बानर सभ दिया कहने रही”।

“से हेतै”।

“हेतै भाइज, तखन जाइ छी”। हमरा बुझल अछि जे आमक मासमे बानर आ बनगदहा ओहि बरख एक्के संग निपत्ता भऽ गेल रहै जाहि बरख आनन्दा आ मितूक भेँट भेल रहै। आ आनन्दाक गेलाक बाद बानर आ बनगदहा नै जानि कत्तऽ सँ फेर आबि गेल छै, आनन्दाक मृत्युक पन्द्रहो दिन नै बीतल छै...

.......

बचलू गेलाह आ मितूक कपारपर चिन्ताक मोट कएकटा रेख ऊपर नीचाँ होमए लगलन्हि, हिलकोरक तरंग सन, एक दोसरापर आच्छादित होइत, पुरान तरंग नव बनैत आ बढ़ैत जाइत। अंगनामे सोर करै छथि। “बुच्ची, बुचिया। जयकर आ विश्वनाथ आइ गाछी गेल रहए। आबि गेल अछि ने दुनू गोड़े। सुनलिऐ नै जे बानर सभक उपद्रव भऽ गेल छै। काल्हिसँ नै जाइ जाएत गाछी, से कहि दियौ। आइ बानर सभ कलम आएल छल, से कहबो नै केलहुँ। कहिये कऽ की होएत जखन...”।

“कहि तँ रहल छलहुँ बाबूजी मुदा अहाँ तँ अपने धुनमे रहै छी, बाजैत मुँह दुखा गेल तँ चुप रहि गेलहुँ”।

हँ, धुनिमे तँ छथिये मितू। ई आम सेहो आनन्दाक मृत्युक बाद पकनाइ शुरू भऽ गेल अछि। आ एतेक दिनुका बाद फेर ई बानर आ बनगदहा कोन गप मोन पारबा लेल फेरसँ जुमि आएल अछि।

...

जयकरक माए वल्लभा आ विश्वनाथक माए मेधा। दुनू बहीन कतेक दिनपर आएल छथि नैहर। कतेक दिनपर भेँट भेल छन्हि एक दोसरासँ। आनन्दाक दुनू बेटी आ दुनू जमाए आएल छथि। वल्लभाक पति विशो आ मेधाक पति कान्ह। मेघ अपन पत्नी आ बच्चा सभक संगे आएल छथि।

मितू पत्नीकेँ आनन्दा कहि बजा रहल छथि। फेर मोन पड़ै छन्हि जे ओ आब कत्तऽ भेटतीह। फेर कत्तऽ छी वल्लभा, कत्तऽ छी मेधा, जयकर आ विश्वनाथ कतए छथि..सोर करए लागै छथि।

वल्लभा आ मेधा अबै छथि आ मितू गीत गबए लगै छथि। आनन्दाक गीत। आनन्दा जे गबै छलीह वल्लभा आ मेधा लेल-

लाल परी हे गुलाब परी

लाल परी हे गुलाब परी

हे गगनपर नाचत इन्द्र परी

हे गुलाबपर नाचत इन्द्र परी



रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी

हे रकतमाला दुआरपर निरधन खड़ी

माँ हे निरधनकेँ धन यै देने परी

माँ हे निरधनकेँ धन जे देने परी



लाल परी हे गुलाब परी

माँ हे रकतमाला दुआरपर अन्धरा खड़ी

माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी

माँ हे अन्धराकेँ नयन दियौ जलदी



बाप आ दुनू बेटी भोकार पाड़ए लगै छथि।

...

-मितू। आनन्दाक मृत्यु अहाँ लेल विपदा बनि आएल अछि। अहाँ ब्राह्मण जातिक आ आनन्दा चर्मकारिणी। मुदा दुनू गोटेक प्रेम अतुलनीय। हुनकर मृत्यु लेल दुःखी नै होउ। ब्रह्म बिना दुखक छथि। ब्रह्मक भावरूप आनन्द छियन्हि। से आनन्दा लेल अहाँक दुःखी होएब अनुचित। ब्रह्म द्रष्टा छथि। दृश्य तँ परिवर्तित होइत रहैए, ओहिसँ द्रष्टाकेँ कोन सरोकार। ई जगत-प्रपंच मात्र भ्रम नै अछि, एकर व्यावहारिक सत्ता तँ छै। मुदा ई व्यावहारिक सत्ता सत्य नै अछि।

-मितू। चेतन आ अचेतनक बीच अन्तर छै मुदा से सत्य नै छै। जीवक कएकटा प्रकार छै, आ अविद्याक सेहो कएकटा प्रकार छै। अविद्या एकटा दोष भेल मुदा तकर आश्रय ब्रह्म कोना होएत, पूर्ण जीव कोना होएत। ओकर आश्रय होएत एकटा अपूर्ण जीव। अविद्या तखन सत्य नै अछि मुदा खूब असत्य सेहो नै अछि।

-मितू। एहि अविद्याकेँ दूर करू आ तकरे मोक्ष कहल जाइत अछि। वैह मोक्ष जे आनन्दा प्राप्त केने छथि।

आ मितूक मुखपर जेना शान्ति पसरि जाइ छन्हि।

........

मितू जेना भेँट करबा लेल जा रहल छथि।

मोन पड़ि जाइ छन्हि आनन्दा संग प्रेमालाप।

-आनन्दा। अहाँसँ गप करैत-करैत हमरा कनीटा डर मोनमे आबि गेल अछि। पिताक सभसँ प्रधान कमजोरी छन्हि हुनकर तालपत्र सभक परिरक्षण। से ई सभ मोन राखू। पिता जे पुछताह जे ताल पत्रक परिरक्षण कोना होएत तँ कहबन्हि- पुस्तककेँ जलसँ तेलसँ आ स्थूल बन्धनसँ बचा कऽ। छाहरिमे सुखा कऽ। ५००-६०० पातक पोथी सभ। हम कोनो दिन देखा देब। एक पात एक हाथ नाम आ चारि आंगुर चाकर होइ छै। ऊपर आ नीचाँ काठक गत्ता लागल रहै छै। वाम भागमे छिद्र कऽ सुतरीसँ बान्हल रहै छै।

-पिता मानताह।

-नै मानताह किएक। ब्राह्मणक बेटीसँ बियाह कराबैक औकाति छन्हि? हम एक गोटेकेँ दू टाका बएना देने रहियै खेतिहर जमीन किनबा लेल। मुदा पिता जा कऽ बएना घुरा आनलन्हि। एक-एक दू-दू टाका जमा कऽ रहल छथि। ७०० टाका लड़कीबलाकेँ देताह तखन  बेटाक विवाह हेतन्हि आ पाँजि बनतन्हि। आ से ब्राह्मणी अओतन्हि तँ तालपत्रक रक्षा करतन्हि?

मितूक माएक मृत्युक बाद श्रीकर खटबताह भऽ गेल छलाह। टोलबैय्या सभ कहै छथि।

आ फेर बेमारी अएलै, प्लेग। गामक दूटा टोल उपटिये गेल, मिसरटोली आ पछिमाटोली। परोपट्टाक बहुत रास गाममे कतेक लोक मुइल से नै जानि।

मितू पिताकेँ आनन्दासँ भेँट करा देलखिन्ह। श्रीकर तालपत्र परिरक्षणक ज्ञानसँ परिपूर्ण आनन्दामे नै जानि की देखि लेलन्हि।

मितू जीति गेल। नैय्यायिक मितू मीमांसक श्रीकरसँ जीति गेल आ मीमांसक श्रीकर अपन टोलबैय्या सभकेँ पराजित कऽ देलन्हि।

आ आनन्दा आ मितूक विवाह सम्पन्न भेल।

मोन पड़ि जाइ छन्हि आनन्दा संग प्रेमालाप। मितू जेना भेँट करबा लेल जा रहल छथि। आनन्दाक मृत्यु भऽ गेल अछि। बलानमे पएर पिछड़ि गेलन्हि आनन्दाक। ओहिना पिछड़ैक चिन्हासी देखबामे आबि रहल अछि।

मितू ओहि चिन्हासीकेँ देखै छथि आ हुनकर मोन हुलसि जाइ छन्हि, पिछड़ि जाइ छथि भावनाक हिलकोरमे..

आनन्दा आ मितूक एक दोसरासँ भेँट-घाँट बढ़ए लागल छल, खेत, कल्लम-गाछी, चौरी आ धारक कातक एहि स्थलपर। आ दुनू गोटे पिछड़ैत छलाह, खेतमे, कल्लम-गाछीमे, चौरीमे आ धारक कातमे सेहो।

धारमे फाँगैत नै छलाह मितू। यएह ढलुआ पिच्छड़ स्थल जे आइ-काल्हिक छौड़ा सभ बनेने अछि, से मितूक बनाओल अछि। एहिपर पोन रोपैत छलाह आ सुर्रसँ मितू धारमे पानि कटैत आगाँ बढ़ि जाइत छलाह।

“हे, कने नै पिछड़ि कऽ तँ देखा।”

“से कोन बड़का गप भेलै।”

“देखा तखन ने बुझबै।”

आनन्दा अस्थिरसँ आगाँ बढ़बाक प्रयास करथि मुदा..हे.हे..हे..

नै रोकि सकलथि ओ अपनाकेँ, नहिये खेतमे, नहिये कल्लम-गाछीमे, नहिये चौरीमे आ नहिये एहि धारक कातमे..

आ की करए आएल होएतीह आनन्दा एतए..जे पिछड़ि गेलीह आ डूमि गेलीह..

कोनो स्मृतिकेँ मोन पड़बा लेल आएल होएतीह..

-



 हँ आनन्दा आएल अछि बचलू। देखियौ ई गीत सुनू-



घर पछुवरबामे अरहुल फूल गछिया हे

फरे-फूले लुबुधल गाछ हे

उतरे राजसए सुगा एक आओल

बैसल सूगा अरहुल फूल गाछ हे

फरबो ने खाइ छऽ सुगबा, फुलहो ने खाइ छऽ हे

डाढ़ि-पाति केलक कचून हे

फुलबो ने खाइ छऽ सुगबा, फरहु ने खाइ छऽ हे

डाढ़ि-पाति केलक कचून हे

घर पछुवरबामे बसै सर नढ़िआ हे

बैसल सूगा दिअ ने बझाइ हे



एकसर जोड़ल सोनरिया

दुइसर जोड़ल हे

तेसर सर सूगा उड़ि जाइ हे

सुगबो ने छिऐ भगतिया

तितिरो ने छिऐ

येहो छिऐ गोरैय्या के बाहान हे



-भाइ अहाँ ई गीत नै सुनि पाबि रहल छी की?

-भाइ सुनि रहल छी। देखियो रहल छी। आनन्दा भौजी छथि।

जहिया ओ मुइल छलीह तहियो सुनने रही- वएह रहथि- गाबै रहथि-

लुकेसरी अँगना चानन घन गछिया

तहि तर कोइली घऽमचान हे



-शब्द भ्रम नै छल ओ।

माँछ-मौस आ सत्यनारायण पूजाक बाद अगिले दिनक गप अछि। ने चानन गाछ कटेने रहथि आ ने अँगना बेढ़ने रहथि आनन्दा।

दोसर दिन ओहि चानन गाछक नीचाँ चर्मकारटोलमे गौआँ सभ दुनू गोटेक लहाश देखलन्हि। आ ईहो शब्द गगनमे पसरि गेल, सौँसे गौँआ सुनलक- आनन्दाक अबाजमे-

जाहे बोन जेबऽ कोइली रुनझुनु बालम

रहि जेतऽ रकतमाला के निशान हे

शब्द भ्रम नै छल ओ।



 (ई कथा “शब्दशास्त्रम्” श्री उमेश मंडल गाम-बेरमा लेल।)



 २

दिल्ली



पोस्टमार्टम कएल शरीर सातटा मोटका शिल्लपर, जड़त कनीकालमे। गोइठामे आगि जे अनलन्हिहेँ सुमनजी राखि देलन्हि नीचाँ।

कनकनाइत पानिमे डूम दऽ गोइठाक आगिसँ आगि लऽ शरीरकेँ गति- सद्गति देबा लेल। आ कऽ देलन्हि अग्निकेँ समर्पित । तृण, काठ आ घृत।

घुरि गेला सभ। लोह, पाथर, आगि आ जल नांघि, छूबि; डेढ़ मासक बच्चाकेँ कोरामे लेने छलि माए, तकड़ा छोड़ि।

सभ घर घुरैत छथि।



दिल्ली।

३१ दिसम्बरक राति। आब एक तारीख भऽ गेलै। रतिका शिफ्टमे हम छी।

कोरियासँ आएल एकटा स्त्री हमरासँ पुछैए, ई नव एयरपोर्ट अछि की? हम कहै छिऐ- हँ। आ पुछै छिऐ- किए?

ओ स्त्री कहैए- नै, हमरा लागल, किएक तँ छह मास पहिने आएल रही।

-हँ पहिने टर्मिनल दू पर अहाँ आएल हएब, ई नव टर्मिनल छिऐ, टर्मिनल- तीन। नीक लागल अहाँकेँ?-– हम पुछै छियन्हि।

-बड्ड नीक लागल। एयरपोर्ट नै, होटल सन लागि रहल अछि। इण्डिया आब मजगूत भऽ रहल अछि।-– महिला बजै छथि।

रतिका शिफ्टमे हम छी। तखने गामसँ एकटा फोन हमर मोबाइलपर अबैए। हमर महिला सहकर्मी हँसी करै छथि- गामसँ फोन आएल हेतन्हि, आब फेर ई मैथिलीमे गप करता, हम सभ भाषा बुझै नै छिऐ, मीठ भाषा छै, तेँ हमर सभक खिधांशो करैत हएब तँ हमरा सभकेँ पता नै चलत।

३१ दिसम्बरक राति छिऐ। आब एक तारीख भऽ गेलै। मुदा दुर्घटना बारह बजे रातिक पहिने भेल छलै। लहाशक जेबीमे मोबाइल रहै। तीन चारिटा अंतिम बेर डायल कएल गेल फोन नम्बरपर पुलिस ओही मोबाइलसँ फोन केलकै आ सूचना देलकै जे जकर फोनसँ पुलिस फोन कऽ रहल अछि, से आब ऐ दुनियाँमे नै रहल।

मध्य रात्रि। एक्स-रे मशीन आ स्निफर डॉगकेँ छोड़ि ऑफिससँ छुट्टी लऽ हम बिदा होइ छी।

ई एयरपोर्ट बाहरसँ कोनो सजल-धजल नवकनियाँ सन लागि रहल अछि। रातिमे बाहरसँ हमहूँ नै देखने रहिऐ ऐ नवकनियाँकेँ। ठीके कहै छल ओ महिला। होटले लागि रहल अछि, प्रकाशमे चमचमाइत।

गाड़ी आगाँ बढ़ि रहल अछि। दिल्लीक रोड एतेक चाकर कोना भऽ गेलै। दिनमे तँ तीन मिनट प्रति किलोमीटरक गति रहै छै ऐ सड़कपर। मुदा रातिमे खाली रहने चकरगर लागि रहल अछि।

मुदा फेर जमुनापार अबैए, रोड पातर होइत जाइए। भजनपुरा, खजूरी खास। दिनमे तँ गाड़ी एतऽ आबियो नै सकितए। बिजली सेहो कटि गेल छै। सड़कक दुनू कात गन्दा पसरल।

गाड़ी गलीक कोनमे लगा कऽ आगाँ बढ़ै छी। गली पार कऽ हिलैत सिरही बाटे अमरजीक घर पैसै छी। कन्नारोहट उठल छै। दिल्ली.. इण्डिया, मजगूत इण्डियाक राजधानीक ईहो एकटा इलाका अछि। कोरियन महिला एतऽ नै आबि सकत। एतुक्के लोक चमचमाइत घर, ऑफिस, आ व्यापारक पाछाँ अछि। अगिला खाढ़ी भऽ सकैए फएदामे रहतै.. तै आसमे।

पता चलैए जे लहाश गुरु तेग बहादुर अस्पतालमे राखल छै।

ओतऽ सँ बिदा होइ छी। बोल भरोस देबा योग्य परिस्थिति नै छै।

गुरु तेग बहादुर अस्पतालक मुर्दाघरमे मोहित बाबूक बेटाक लहास ओकर रक्तसम्बन्धीकेँ देल जेतै। पुलिस कहने रहए- पिता जीवित छथिन्ह तखन दोसराकेँ देबाक बाते नै छै, नै जिबैत रहितथिन्ह तखन देल जा सकै छल- उच्च न्यायालयक आदेश छै। पछिला बेर दऽ देल गेल रहै आ जखन असली रक्त-सम्बन्धी आबि कऽ केस कऽ देलकै तँ तीनटा पुलिसबला निलम्बित भऽ गेलै। आ कने काल लेल मानि लिअ जे पुलिस दैयो देत, मुदा डॉक्टर पोस्टमार्टमे नै करत।



अमोदक घरमे हरबिर्रो उठि गेलै। दिल्लीसँ एक बजे रातिमे फोन आएल छै, मोहित बाबूक बेटा अमर मरि गेलै। दिल्लीमे सड़क दुर्घटनामे मरि गेलै।

अमोदक फोनपर फोन आएल छै। अमोद मोहित बाबूकेँ कोना की कहतै। तत्ता-सिहर कटा कऽ एक्केटा बेटा मोहित बाबूकेँ, चारिटा बेटीपरसँ। परुकेँ बियाह भेल छलै।

अमोद मोहित ककाक दरबज्जा लग पहुँचैए। हाक दैए। काकी अबै छथि। मोहित बाबू गाममे छथिये नै। बहनोइक मृत्यु-संस्कारमे भाग लैले गेल छथि। अमोदकेँ ई गप काकी कहै छथिन्ह।

-से की भेलै एतेक रातिमे?- काकी चिन्तित भऽ पुछै छथिन्ह।

-नै भोरमे अबै छी।–काज छल।

अमोद मोहित बाबूक घरसँ पुछारी कऽ बहरा जाइए। अमोद आगाँ बढ़ि जाइए।

सरवनक दरबज्जापर जाइए। हँ एकरे कहि दै छिऐ, काकीकेँ भोरमे कहि देतन्हि।

सरवन चौकीपर सूतल अछि। अमोद ओकरा उठाबैए आ सभ गप कहैए। सरवन भोरमे काकीकेँ कहि देतै आ काकाकेँ सेहो भोरेमे फोन कऽ देतै।

भोरमे भरि गाम हाक्रोस ….। काकी तँ बताह भेल जाइ छथि। मोहित बाबूकेँ फोन गेलन्हि जे जहिना छी तहिना आबि जाउ, काकीक मोन बड्ड खराप छन्हि।

मोहित बाबू गामपर एलाह तँ दोसरे गप।

दिल्लीमे टोलक बड्ड लोक छै, मुदा पुलिस लहास ककरो नै देतै। रक्त-सम्बन्धीकेँ लहास भेटतै।

मोहित बाबू दिल्ली नै जेताह, संताप देखैले नै जेताह।

मुदा पुलिस लहास दोसराकेँ नै देतै।

मोहित बाबूकेँ पंडितजी भरोस दै छथिन्ह। ओतऽ के कोना दाह संस्कार करतै, से पण्डीजी संगे जेताह।

साँझमे पटनासँ दिल्लीक ट्रेनमे रिजर्वेशन भऽ जेतै। विधायक जीसँ अमोद गप कऽ लेने छथि, टिकट कटा, रिजर्वेशन करा कऽ अमोदक भातिज टिकटक संग पटना जंक्शनपर भेटत। दिल्लीमे पीअर बच्चाक बेटा कार लऽ कऽ स्टेशनपर आएत, करोलबागमे कैकटा दोकान छै पीअर बच्चाक बेटाक। सोझे ओतऽसँ मोहित बाबूकेँ मुर्दाघर लऽ अनतन्हि ओ…

पण्डीजी आ मोहित बाबू पटनाक बस पकड़ै छथि। साँझमे दिल्लीक ट्रेन छै। काल्हि भोरमे मोहित बाबू दिल्ली पहुँचि जेताह आ बेटा जे काल्हि धरि जिबिते रहै आ आइ जे लहास बनल दिल्लीक मुर्दाघरमे राखल छै- तकर मृत शरीरकेँ लेताह।



ट्रेन आशाक नगरी दिल्ली पहुँचैबला छै, चिमनीक धुँआ आ फैक्ट्रीसभ खतम भेलै आ बड़का-बड़का स्टेडियम, प्रगति मैदान आ की-की आबि गेलै। मोहित बाबूकेँ ई सभ बौस्तु पहिने नीक लागै छलन्हि। दिल्ली हाटमे गमैआ बौस्तु सभक स्टॉलपर बड़का गाड़ीबला सभ उतरि कऽ समान कीनै छल। मोहित बाबूकेँ हँसी लागै छलन्हि। गाममे ई सभ बौस्तु अनेरे पड़ल रहै छै, कियो किननिहार नै। ऐ परदेशी सभकेँ गामक लोक सभ एत्तऽ अनेरे ठकै छै।

मुदा आइ ई दिल्ली हुनका लेल मुर्दाघरक पता बनि गेल छन्हि। गुरु तेग बहादुर अस्पतालक मुर्दाघरमे हुनकर बेटाक लहास ओकर रक्तसम्बन्धीकेँ देल जेतैक।

पिता रक्तसम्बन्धी बनि पहुँचैबला छथि।

मोहित बाबू मुर्दाघर पहुँचि जाइ छथि, पहिने बुझलो नै छलन्हि जे दिल्लीमे सेहो मुर्दाघर होइ छै, बिजली-बत्तीबला शहर दिल्लीमे.....



दिल्ली। के बसेलकै, कोना बसेलकै। अंग्रेज जहिया कलकत्तासँ दिल्ली राजधानी बनेबाक विचार केलक तखन तँ एकोटा गामक लोक एतऽ नै हेतै।

आ आब …

मोहित बाबू पहुँचि जाइ छथि। हबोढेकार भऽ कानऽ लगै छथि। हम भरि-पाँज कऽ पकड़ि कऽ बैसि जाइ छियन्हि।

-गामक छोड़ू कोन टोलक, कोन घर लोक एत्तऽ नै छै। सड़क दुर्घटना सेहो भेल छै। मुदा बचि-बचि जाइ छलै। अमरो बचि जैतै तँ कत्ते नीक होइतै। अपंगो भऽ कऽ रहितै तँ देखबो तँ करितिऐ। हे कनियाँकेँ आगि नै देबऽ देबै, डेढ़मासक बच्चा छै। बच्चा लीलो भऽ जाएत। नै, हमहीं देबै आगि.. आन देबो करतै तँ अन्तिम दिन तँ उतरी कनियाँक गरामे आबिये जेतै। तेँ हमहीं देबै आगि।

-एह.. एक्कैसे बरखक तँ छै, छौंकी सन शरीर छै कनियाँक। चारिटा भाइ छै, सभ एकरासँ पैघ। ओकर जीवन कोना बिततै। ऐ बूढ़ शरीरसँ बच्चाकेँ हम कोना पोसबै। कतबो धनीक रहै छै, नोकरी लेल पठबैते छै.. पीअरो बच्चा तँ सेहो पठेने छथि अपन बच्चाकेँ। ओकरसँ बेसी के छै धनीक गाममे? हमरा तँ दस कट्ठा जमीनो नै पुरत... रौ दैब... कहै छलिऐ जे हम नै जाएब दिल्ली...... संताप देखैले की जाएब? मुदा कहलकै जे लाशे नै देत। आ आब आबि गेल छी तँ हमहीं देबै आगि।

-नै से नै हएत, बाप कतौ आगि देलकैहेँ...अहाँकेँ अश्मसानघाटो नै जेबाक अछि। सभ पुरना गप बिसरि जाउ... ओकर पितियौतकेँ देबए दियौ आगि... ऐ परिस्थितिमे पुरान गप बिसरि जाउ।

-नै, से भातिजक प्रति हमरा कोनो तेहन आन भावना नै अछि। ठीक छै... सुमनजी दौ आगि।



एक्कैसम शताब्दीक पहिल दशकक अन्तिम रातिक घटना, आ ओकर बादक भोर। मुदा नै छै कोनो अन्तर। पहिराबा आ पुरुखपातकेँ छोड़ि दियौ। महिला तँ वएह…।

ऐ कनकनाइत बसातसँ बेशी मारुख। हाड़मे ढुकल जाइत अछि। कमला कात नै यमुनाक कात। हजार माइल दूर गामसँ आबि। मिज्झर होइत अछि खररखवाली काकीक श्वेत वस्त्र। साइठ साल पूर्वक वएह खिस्सा, वएह समाज, मात्र पहिराबा बदलि गेल, मात्र धार बदलि गेल।

गोपीचानन, गंगौट, माला, उज्जर नव वस्त्र मुँहमे तुलसीदल, सुवर्ण खण्ड, गंगाजल, कुश पसारल भूमि, तुलसी गाछ लग उत्तर मुँहे पोस्टमार्टम कएल शरीर आनल जाइए। फेर ओतऽसँ यमुना कात…

कनकनी छै बसातमे, हाड़मे ढुकि जाएत ई कनकनी, पोस्टमार्टम कएल शरीर जे राखल अछि, सातटा मोटका शिल्लपर, कमला कात नै यमुनाक कात, जड़त कनीकालमे।

सुमनजी सेहो नव उज्जर वस्त्र पहीरि, जनौ, उत्तरी पहीरि, नव माटिक बर्तनक जलसँ, तेकुशासँ पूब मुँहे मंत्र पढ़ै छथि आ ओहि जलसँ मृतककेँ शिक्त करै छथि वामा हाथमे ऊक लऽ गोइठाक आगिसँ धधकबैत छथि तीन बेर मृतकक प्रदीक्षणा कऽ मुँहमे आगि अर्पित होइत अछि। लकड़ी कोना राखल जाए तइपर दू गोटेमे बहसा-बहसी भऽ रहल अछि। लगैए झगड़ा भऽ जेतै। पहिल गोटा कहि रहल छथि- एना लकड़ी नै तोपल जाइ छै, कतबो घी कर्पूर देबै आगि नै धरत। मुदा किछु काल आर। सातटा शिल्लपर राखल ओ शरीर, अग्नि लीलि रहल सुड्डाह कऽ रहल। एकटा परिवार फेरसँ बनत आ तीस बर्खक बाद देखब ओकर परिणाम। ताधरि हाड़मे ढुकल रहत ई सर्द कनकनी, ऐ बसातक कनकनीसँ बड्ड बेशी सर्द। सभ दिल्लीयेमे रहता, दिल्लीसँ लड़बा लेल, इण्डियाकेँ महाशक्ति बनेबा लेल, अपन प्रगतिक आशामे, अगिला खाढ़ी लेल एतेक तँ बलिदान देबैए पड़त, ई सोचैत।

कपास, काठ, घृत, धूमन, कर्पूर, चानन कपोतवेश मृतक। पाँच-पाँचटा लकड़ी सभ दैत छथि।

कपोतक दग्ध शरीरावशेष सन मांसपिण्ड भऽ गेलापर, सतकठिया लऽ सातबेर प्रदक्षिणा कऽ, कुरहरिसँ ओहि ऊकक सात छौ सँ खण्ड कऽ, सातो बन्धनकेँ काटि सातो सतकठिया आगिमे फेकि बाल-वृद्धकेँ आगाँ कऽ एड़ी-दौड़ी बचबैत नहाइले जाइ छथि, तिलाञ्जलि मोड़ा-तिल-जलसँ,

बिनु देह पोछने, मृतकक आंगनमे द्वारपर क्रमसँ लोह, पाथर, आगि आ पानि स्पर्श कऽ सभ घर घुरि जाइ छथि।





ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.आशीष अनचिन्हार- "सगर राति दीप जरय"केर अन्त आ साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठीक उदय २.प्रियंका झा- सगर राति दीप जरय पर साहित्य अकादेमीक कब्जा/ सरकारी पाइपर भेल बभनभोज/ साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त- रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल- ७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली ३.सुमित आनन्द- सोसाइटी टुडेक लोकार्पण





आशीष अनचिन्हार

"सगर राति दीप जरय"केर अन्त आ साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठीक उदय



"सगर राति दीप जरय"केर अन्त आ साहित्य अकादेमी कथा गोष्ठीक उदय (रिपोर्ट आशीष अनचिन्हार) २१ जुलाइ २००७केँ सहरसा "सगर राति दीप जरय"मे जीवकांत जी मैथिलीकेँ राजरोगसँ ग्रसित हेबाक संकेत देने छलाह। आ तकरा बाद लेखक सभकेँ मैथिलीकेँ ऐ राजरोगसँ बचेबाक आग्रह रमानंद झा रमण केने छलाह। मुदा हमरा जनैत- ई मात्र सुग्गा-रटन्त भेल। कारण ई राजरोग आस्ते-आस्ते जीवकांत जी आ रमण जीक आँखिक सामने मैथिलीकेँ गछाड़ि लेलकै। मैथिलीक ई रोगक बेमरिआह स्वरूप आर बेसी फरिच्छ भऽ कऽ दिल्लीक धरतीपर "मैलोरंग" द्वारा संचालित आ साहित्य अकादेमीक पाइक बलें कुदैत "सगर राति दीप जरय" मैथिली भाषाकेँ मारि देलक।




२४ मार्च २०१२केँ साँझ धरिलोक भ्रममे छल जे दिल्लीमे "सगर राति दीप जरए" केर आयोजन भऽ रहल छै। संयोजक देवशंकर नवीन माला उठेने रहथि, मुदा आगाँ प्रकाश आ फेर मैलोरंग नै जानि कतऽ सँ आबि गेलै, आ अतत्तः तखन भेलै जे बादमे पता चललै जे ओ सगर राति नै छल ओ तँ "मैलोरंग" द्वारा संचालित आ साहित्य अकादेमीक पाइसँ आयोजित मात्र कथा गोष्ठी छल। मैलोरंग एकरा ७६म "सगर राति दीप जरय"क रूपमे आयोजित करबाक नियार केने छल मुदा "सगर राति दीप जरय" मे आइ धरि सरकारी साहित्यिक संस्थासँ फण्ड लेबाक कोनो प्रावधान नै रहै, से ई ७६म "सगर राति दीप जरय"क क्रम टूटि गेलै आ तँए ई ७६ कथा गोष्ठीक रूपमे मान्यता नै प्राप्त कऽ सकल। पाइ साहित्य अकादेमीक लागल छलै एकर प्रमाण फोटो सभमे सहयोगक रूपे " साहित्य अकादेमी"क नाम देखाइ स्पष्ट रूपे पड़त। आ अकादेमीक पर्यवेक्षकक रूपमे देवेन्द्र कुमार देवेश आएल छलाह। साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिलीक ऐ एकमात्र स्वायत्त गोष्ठीकेँ तोड़बाक प्रयासक साहित्य जगतमे भर्त्सना कएल जा रहल अछि। ओना हम स्पष्ट कही जे राजरोगकेँ हटेबाक बात करए बला रमानंद झा रमण सेहो ऐ कूकृत्यकेँ आँखिसँ देखलन्हि आ मौन सम्मति देलनि। आब चूँकि ई "सगर राति दीप जरए" नै छल तँए आगूक एकर विवेचन हम मात्र कथा गोष्ठीक रूपमे करब। चूँकि लोकमे भ्रम पैदा कएल गेल छलै जे ई "सगर राति दीप जरए" अछि तँए विदेह दिससँ पोथीक स्टाल लगाएल जा रहल छल कथा स्थलपर, मुदा ओही समय "मैलोरंग"केर कर्ता-धर्ता प्रकाश झा द्वारा ऐपर रोक लगा देल गेलै। प्रकाश जी कहलखिन्ह जे जँ फ्रीमे बँटबै तखने स्टाल संभव हएत। मुदा हुनक विचारकेँ स्टाल व्यवस्थापक आशीष चौधरी द्वारा नकारि देल गेल। आ एकर विरोधमे विदेहक संपादक गजेन्द्र ठाकुर कथास्थलसँ निकलि गेलाह। ऐकथा गोष्ठीक शुरूआतमे ओना हम अपने फेसबूकपर घोषणा केने रही जे गजल आ हाइकूक पोस्टर प्रदर्शनी करब सगर रातिमे, मुदा जखन ओ सगर रात छलैहे नै तखन हम सभ कतए करब आ ताहिपर विदेह पोथी स्टालक विरोधक बाद! हमरा लोकनि एकर विरोध करैत ऐ पोस्टर प्रदर्शनीकेँ स्थगित कऽ देलौं। ऐ कथा गोष्ठीक आरंभ बारह गोट पोथीक विमोचनसँ भेल। जइमे कुल पाँच हिन्दी-उर्दूक पोथी छल आ सातटा मैथिलीक।




अजुका मने दिल्ली बाल सगर रातिसँ पहिने हम २००८मे रहुआ संग्राममे भाग लेने रही। ओ हमर पहिल सगर राति छल। पूरा उत्साहसँ भरल रही। मुदा जेना जेना राति बितैत गेल हमर उत्साह बिलाइत गेल आ अंतमे ३ बजे रातिमे जखन हमरा कथा पढ़बाक मौका भेटल तखन हम जागल रही ओहि सत्रके अध्यक्ष शिवशंकर श्रिनिवास जागल रहथि आ दू-चारिटा अनचिन्हार लोक जागल रहथि ( अनचिन्हार लोक ताहि सामयकेँ हिसाबसँ उमेश मंडल, जगदीश प्रसाद मंडल, फूल चंद्र मिश्र रमण इत्यादि) आ बाद-बाँकी तथाकथित समीक्षक-आलोचक एवं हरेक सगर रातिमे अपन भाँज पुरबए बला लोक सभ सूतल रहथि मने तारा बाबूसँ लए क' रमानंद झा रमण धरि। ओही दिन हमरा अनुभव भेल जे जँ कुम्भकर्ण सबहक बीच वेद-पाठ करब तँ अपने पापक भागी बनब। अस्तु हम ओहि कथा गोष्ठीक वहिष्कार केलहुँ आ आ कथा नै पढ़लहुँ। मुदा जखन गोष्ठीक कर्ता-धर्ता ( संयोजनक नै) कुंभकर्णे छथि तखन हमर एहि वहिष्कारक चर्चा केना हो। ओना ओहि कथा गोष्ठीक वहिष्कारक कारण छल जे " जँ समीक्षके कथा नै सुनताह तँ हम पढ़ब केकरा लेल। आब अहाँ सभ कहि सकैत छी जे अहाँ आम श्रोताकेँ अपन कथा सुना सकैत छलहुँ। इ गप्प सत्य मुदा बेरमा छोड़ि हमरा कतौ आम श्रोता नै भेटल। हम अपने तँ बेरमामे नै रही मुदा ओकर विडियो जे कि यूट्यूबपर छै ताहिमे इ स्पष्ट रूपें देखल जा सकैए।आब आबी दिल्लीक एहि कथा-गोष्ठीपर। इ कथा-गोष्ठी अपना-आपमे कतेको कीर्तिमानकेँ स्थापित केलक आ धवस्त केलक। जँ भारतीय दर्शनमे वर्णित आत्मा आ पुनर्जन्म सत्य छै तँ आदरणीय प्रभाष चौधरी जीक आत्मा कुहर-हुकरि रहल हेतन्हि। ओ एहि दिनक कल्पना केनहो नै हेताह। एहि कथा-गोष्ठीक किछु कीर्तिमान देखल जाए।----


1) रहुआ संग्रामसँ जे मैथिली साहित्यमे गैर ब्राम्हण मुदा टेलेन्टेड प्रतिभा एनाइ शुरू भेल छल से एहिठाम टुटि गेल।

    कथा गोष्ठीक निअम छलै जे कथाकार-साहित्यकार वा श्रोता अपन खर्चापर एताह-जेताह मुदा बात जखन दिल्लीकेर होइ तँ संयोजक अपन इष्ट सभहँक लेल नीक जकाँ पाइ खरचा केलाह। एकर परिणाम कतेक भयंकर हेतै से सहजहि सोचल जा सकैए।

    दिल्लीसँ पहिने हरेक कथा गोष्ठीक निअम छलै जे " जे कथाकार पहुँचता से कथा पढ़ताह"। मुदा एहि बेर संयोजक घोषणा केलाह जे जिनका हम निमंत्रण पढ़ेबन्हि सएह एताह वा जिनका एबाक छन्हि से अपन स्वीकार पत्र पठाबथि। भविष्यपर एहि निअम सेहो प्रभाव पड़तै से लागि रहल अछि।

अस्तु एहि एतेक कीर्तिमान स्थापित केलाक बाद जे इ गोष्ठी भेल आब ताहिकेँ देखी---

ई कथा गोष्ठी आठ सत्रमे बाँटल छल। अध्यक्ष छलाह गंगेश गुंजन आ संचालक छलाह अजित कुमार अजाद।


साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक पहिल सत्रमे विभूति आनन्द (छाहरि), मेनका मल्लिक(मलहम) आ प्रवीण भारद्वाजक (पुरुखारख) कथाक पाठ भेल। कथापर समीक्षा अशोक मेहता आ रमानन्द झा रमण केलन्हि। अशोक मेहता कहलन्हि जे विभूति आनन्दक कथामे किछु शब्दक प्रयोग खटकल। मेनका मल्लिकक भाषाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे एतेक दिनसँ बेगूसरायमे रहलाक बादो हुनकर भाषा अखनो दरभंगा, मधुबनीयेक अछि। प्रवीण भारद्वाजक कथाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे कथाकार नव छथि से तै हिसाबे हुनकर कथा नीक छन्हि। रमानन्द झा रमण विभूति आनन्दक कथामे हिन्दी शब्दक बाहुल्यपर चिन्ता व्यक्त केलन्हि। मेनका मल्लिकक कथाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे महिला लेखन आगाँ बढ़ल अछि। प्रवीण भारद्वाजक कथाक भाषाकेँ ओ नैबन्धिक कहलन्हि आ आशा केलन्हि जे आगाँ जा कऽ हुनकर भाषा ठीक भऽ जेतन्हि। तकर बाद श्रोताक बेर आएल, सौम्या झा विभूति आनन्दक कथाकेँ अपूर्ण, ओइ इलाकासँ कटल लगलन्ह् मुदा ओ कहलन्हि जे हुनका ई कथा नीक लगलन्हि मुदा ऐमे कमी छै, देवशंकर नवीन विभूति आनन्दक पक्षमे बीच बचावमे (!!!) एलाह मुदा सौम्या झा अपन बातपर अडिग रहलीह। आशीष अनचिन्हार विभूति आनन्दसँ हुनकर कथाक एकटा टेक्निकल शब्द "अभद्र मिस कॉल"क अर्थ पुछलन्हि तँ देवशंकर नवीन राजकमलक कोनो कथाक असन्दर्भित तथ्यपर २० मिनट धरि विभूति आनन्दक पक्षमे बीच बचाव करैत रहला (!!!), अनन्तः विभूति आनन्द श्रोताक प्रश्नक उत्तर नै देलन्हि। दोसर सत्रमे विभा रानीक कथा सपनकेँ नै भरमाउ, विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण, आ दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारक पाठ भेल। विभा रानीक कथा पर समीक्षा करैत मलंगिया एकरा बोल्ड कथा कहलन्हि, सारंग कुमार कथोपकथनकेँ छोट करबा लेल कहलन्हि, कमल कान्त झा एकरा अस्वभाविक कथा कहलन्हि आ कहलन्हि जे माए बेटाक अवहेलना नै कऽ सकैए, मुदा श्रीधरम कहलन्हि जे जँ बेटाक चरित्र बदलतै तँ मायोक चरित्र बदलतै। कमल मोहन चुन्नू कहलन्हि जे ई कथा घरबाहर मे प्रकाशित अछि। आयोजक कहलन्हि जे विभा रानीक कथा सपनकेँ नै भरमाउ केँ ऐ गोष्ठीसँ बाहर कएल जा रहल अछि। विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण पर मलंगिया जीक विचार छल जे ई उमेरक हिसाबे प्रेमकथा अछि। सारंग कुमार एकरा महानगरीय कथा कहलन्हि मुदा एकर गढ़निकेँ मजगूत करबाक आवश्यकता अछि, कहलन्हि। श्रीधरम ऐ कथामे लेखकीय ईमानदारी देखलन्हि मुदा एकर पुनर्लेखनक आवश्यकतापर जोर देलन्हि। हीरेन्द्रकेँ ई कथा गुलशन नन्दाक कथा मोन पाड़लकन्हि मुदा प्रदीप बिहारी हीरेन्द्रक गपसँ सहमत नै रहथि। ओ एकरा आइ काल्हिक खाढ़ीक कथा कहलन्हि।दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारपर मलंगिया जी किछु नै बजला, ओ कहलन्हि जे ओ ई कथा नै सुनलन्हि। सारंग कुमार एकरा रेखाचित्र कहलन्हि। कमलकान्त झाकेँ ई संस्कारी कथा लगलन्हि। श्रीधरमकेँ आरम्भ नीक आ अन्त खराप लगलन्हि। शुभेन्दु शेखरकेँ जेनेरेशन गैप सन लगलन्हि आ कमल मोहन चुन्नूकेँ ई यात्रा वृत्तान्त लगलन्हि। दोसर सत्रमे श्रोताक सहभागिया शून्य जकाँ रहल।




ोसर सत्रक बाद भोजन भेल। भोजनमे भात-दालि तरकारी, भुजिया-पापड़, दही आ चिन्नी बेसी बला रसगुल्ला छल। आ भोजनक बाद शून्यकाल। शून्यकाल केर माने जे भोजन करू आ कथा स्थलकेँ शून्य करू। मुदा अधिकाशं छलाहे आ किछु जेनाकी विभूति आनंद शून्यमे विलीन भऽ गेल छला।

(शून्यमे विलीन विभूति आनन्द, महेन्द्र मलंगिया आ रमानन्द झा रमण)

शून्य कालक दौरान हीरेन्द्र कुमार झा द्वारा मैथिलीमे बाल साहित्यकेर विकासक बात राखल गेल। ओ जोर देलन्हि जे बाल साहित्य मुफ्तमे बाँटल जेबाक चाही। किछु गोटेँ ऐ बातपर जोर देलन्हि जे भविष्यमे जे सगर राति हएत ओइमे सँ कोनो एकटा आयोजन पूरा-पूरी बालकथा पर हेबाक चाही। मुदा आशचर्यक विखय ई रहल जे देवशंकर नवीन" इंटरनेट पर विदेहक माध्यमे आबैत बाल साहित्यकेँ बिसरि गेलह जखन की ओ इंटरनेटक गतिविधिसँ परिचित छथि। ओही क्रममे आशीष अनचिन्हार द्वारा हीरेन्द्र जीकेँ मुफ्त डाउनलोड प्रक्रिया बताएल गेल। मुदा नतीजा वएह- जनैत-बुझैत इंटरनेटपर सुलभ बाल साहित्यकेँ एकटा सुनियोजित तरीकासँ कात कएल गेल। बात जखन हरेक विधामे बाल साहित्य लिखबा पर आएल तखन पहिल बेर आशीष अनचिन्हार द्वारा मैथिलीमे "बाल गजल" केर परिकल्पना देल गेल। मुदा एकटा बात रोचक जे बाल साहित्यकेर चर्चा पुरस्कारक बात पर अटकि गेलै। किनको ई दुख छलन्हि जे आब हमर सबहक उम्र बीति गेल तखन ई शुरू भेल। तँ किनको ई दुख छलन्हि जे अमुक अपन कनियाँ केर नामसँ व्योंतमे लागल छथि। ऐ बहसक दौरान अविनाश जी ऐ बातपर जोर देलन्हि जे "बाल कथा"क तर्ज पर "व्यस्क कथा" सेहो हेबाक चाही। ओना जे पटना सगर रातिमे सहभागी हेताह से अविनाश जीसँ नीक जकाँ परिचित हेताह से उम्मेद अछि।

धनाकर जीक रंगीन जलपर रिपोर्ट कएक ठाम आएल अछि(विदेह फेसबुक आ घर बाहरमे सेहो)।




शून्यकालक बाद तेसर स्तर शुरू भेल- ई विशुद्भ रूपे विहनि कथापर आधारित छल। ऐमे मुन्ना जी चश्मा, सेवक आ कट्टरपंथी नामक तीन टा विहनि कथा पढलन्हि। अरविन्द ठाकुर दूगोट विहनि कथा-दाम आ अगम-अगोचर पढलन्हि। प्रदीप बिहारी बूड़ि नामक विहनि कथा पढ़लन्हि। ऐ सत्रक मुख्य बात ई रहल जे मुन्ना जी लघुकथा नै बल्कि विहनि कथा कहबा पर जोर देलन्हि मुदा हुनकर उन्टा अशोक मेहता कहलन्हि जे लघुकथा नाम ठीक छै। ऐ सत्रमे मुन्ना जी सगर रातिकेर कोनो एकटा आयोजन विहनि कथापर करबा पर जोर देलन्हि। श्रोतामेसँ आशीष अनचिन्हार मुन्ना जीक विहनिकथा "चश्मा"केँ आधुनिक जीवनमे पनपैत नकली संवेदनाकेँ देखार करैत कथा कहलन्हि। ऐसँ पहिने देवशंकर नवीन जी समाजमे पसरैत असंवेदनाकेँ रेखांकित केने छलाह अपन वक्त्व्यमे। अनचिन्हार संवेदनाक एहू पक्षपर नवीन जीकेँ धेआन देओलखिन्ह। ऐ विहनि कथा सभपर अनेक टिप्पणी सभ आएल। मुदा वएह जे नीक लागल, बड्ड नीक आदि फर्मेटमे।


चारिम सत्रमे हीरेन्द्र कुमार झाक दीर्घकथा " एकटा छल गाम" आ पंकज सत्यम केर कथा " एकटा विक्षिप्तक चिट्ठी" आएल। एकटा छल गाम पर चुन्नू जी कहलखिन्ह जे कथा बेसी नमरल अछि मुदा कथ्य नीक अछि। श्री धरम जी चुन्नू जीक आलोचनासँ सहमत छलाह। संगे संग चुन्नू जी कहलखिन्ह जे ऐमे गामक चिंता नीक जकाँ आएल अछि। आ श्रीधरम कहलखिन्ह जे दलित उभार जँ ऐकथामे अबितै तँ आर नीक रहितै। श्रोता वर्गसँ आशीष अनचिन्हार द्वारा कमल मोहन चुन्नू जीकेँ कहल गेलन्हि जे या तँ ओ जगदीश प्रसाद मंडलक कथा नै पढने छथि वा बिसरि गेल छथि। जँ चुन्नू जी जगदीश मंडल जीक कथामे अबैत गामक चिंताक बाटे हीरेन्द्र जीक गामक चिन्ता देखथि तँ ओ आरो नीक जकाँ आलोचना कऽ सकै छलाह। हमर ऐ बात पर आयोजकक एकटा परम ब्राम्हणवादी सदस्य कहलाह जे अहाँ जगदीश मंडल जीक कथाक उदाहरण दिअ हम देबए लेल तैयार छलहुँ मुदा संचालक ओइ ब्राम्हणवादी सदस्यकेँ बतकुट्टौलि करबासँ रोकि देलन्हि। ऐ सत्रक आन आलोचक सभ प्रदीप बिहारी, अविनाश, रमण कुमार सिंह आदि छलाह।




पाँचम सत्रमे दीनबंधु जीक कथा "अपराधी", विनयमोहन जगदीश जी "संकल्पक बल" आ आशीष अनचिन्हारक "काटल कथा" पढ़ल गेल।आशीष अनचिन्हारक कथा पर चुन्नू जी कहलाह जे शिल्प क तौर पर ई असफल कथा अछि संगे संग कोन बात कतए छै से स्पष्ट नै छै। पाठक कन्फ्यूज्ड भऽ जाइत छथि। ऐबातकेँ आर बिस्तार दैत कमलेश किशोर झा कहलखिन्ह जे ऐ कथामे सेन्ट्रल प्वांइट केर अभाव छै। मुकेश झा कहलखिन्ह जे अनचिन्हार जीकेँ कोनो डाक्टर नै कहने छथिन्ह जे अहाँ कथा लीखू। तेनाहिते आशीष झा( पति कुमुद सिंह) कहलखिन्ह जे हमरा आधा बुझाएल आधा नै बुझाएल ई कथा छल की रिपोर्ट से नै पता। विनयमोहन जगदीश जी पर चुन्नु जी कहलखिन्ह जे कथामे नमार बेसी छै। ई लोकनि दीनबंधु जीक कथाक सेहो आलोचना केलन्हि मुदा चलंत स्टाइलमे।




छठम सत्रमे काश्यप कमल जीक दीर्घकथा- भोट, कमलेश किशोर झाक -गुदरिया पढल गेल। लिस्टमे तँ कौशल झाक न्याय नामक कथा सेहो छल मुदा पढ़बा काल धरि ओ स्थल पर नै छलाह। भोट कथा पर मुन्ना जीक कहब छलन्हि जे हँसीसँ सूतल लोककेँ जगा देलक ई कथा। कमलेश जीक कथा सेहो नीक छल मुदा वएह चलंत आलोचना।




सातम सत्रमे अशोक कुमार मेहता-"बाइट", कमलकांत झा -"विद्दति" आ महेन्द्र मलंगिया जीक कथा- लंच (वाचन प्रकाश झा) आएल। हीरेन्द्र झा मेहता जीक कथाकेँ कमजोर गढ़निक मानलन्हि। कमलकांत जीक कथाकेँ सुन्दर वर्णनात्मक खास कऽ बस बला प्रसंग केँ नीक कहलखिन्ह। मलंगिया जीक कथाकेँ नीक तँ कहलखिन्ह मुदा इहो कहलखिन्ह जे अंत एकर कमजोर छै। चुन्नू जी बाइट कथाक गढ़निकेँ कमजोर मानलन्हि आ कमलकांत आ मलंगिया जीक कथाकेँ अपराधिक पृष्ठभूमि बला मानलन्हि।




आठम सत्र अध्यक्षीय भाषण आ हुनक शीर्षक हीन मौखिक कथासँ समाप्त भेल। एतेक भेलाकेँ बाद अगिला सगर राति ( के जानए जे फेर कथा गोष्ठी)क संयोजक केर खोज शुरू भेल। पहिल प्रस्ताव अरविन्द ठाकुर सुपौल लेल देलखिन्ह आ दोसर विभारानी चेन्नै लेल। आ तेसर प्रस्ताव दिल्लीसँ भवेश नंदन जीक छलन्हि। सभसँ राय पूछल गलै। बहुत गोटेँ चेन्नैक पक्षमे एलाह। अंततः ७६म "सगर राति दीप जरय"क विभारानीकेँ रूपमे एकटा महिला संयोजक सगर रातिके भेटल|





प्रियंका झा

सगर राति दीप जरय पर साहित्य अकादेमीक कब्जा/ सरकारी पाइपर भेल बभनभोज/ साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त- रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल- ७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली



(स्रोत: समदिया)

-साहित्य अकादेमीक कथा रवीन्द्र दिल्लीमे समाप्त

-रवीन्द्रक कथापर कोनो चर्चा नै भेल

-रवीन्द्रनाथ टैगोरक१५०म जयन्तीपर साहित्य अकादेमीसँ फण्ड लेबा लेल मात्र नाम "कथा रवीन्द्र" राखल गेल

-समाप्ति कालमे संयोजककेँ गलतीक भान भेलन्हि, तखन रवीन्द्रनाथ टैगोरक एकटा कविताक  दू पाँतीक  हिन्दी अनुवाद देवशंकर नवीन पढ़लन्हि

-मात्र १८ टा कथाक पाठ भेल

-७६म सगरराति दीप जरय चेन्नैमे विभारानी लऽ गेली, ओना ई ७७म आयोजन होइतए मुदा किएक तँ साहित्य अकादेमीक फण्डसँ संचालित कथा रवीन्द्र प्रभास कुमार चौधरीक शुरु कएल "सगर राति दीप जरय" क भावनाक अपमान कऽ साहित्य अकादेमीक खिलौना बनि गेल तेँ एकरा "सगर राति दीप जरय"क मान्यता नै देल जा सकल।

-एकटा मैथिली न्यूज पोर्टलक महिला संचालकक पति दारू पीबि कऽ आएल रहथि आ भोजनकालोमे हुनकर मुँह भभकैत छलन्हि। ७५म सगर राति दीप जरयमे दारू पीबापर धनाकर ठाकुर जीक विरोधक बाद कथा रवीन्द्र  मे सेहो ऐ तरहक घटना भेलापर साहित्य जगतमे आक्रोश अछि।

-भोजनक उपरान्त कथास्थल खाली भऽ गेल आ अधिकांश वरिष्ठ कथाकार सूतल देखल गेलाह, प्रभास कुमार चौधरीक कथा लेल भरि रातिक जगरना एकटा मखौल बनि कऽ रहि गेल।

-आयोजक स्वयं ऐ गोष्ठीकेँ बभनभोजक संज्ञा देने रहथि आ अन्ततः सएह सिद्ध भेल।

-ई गोष्ठी सगर राति दीप जरयक अन्त आ साहित्य अकादेमीक गोष्ठीक प्रारम्भ रूपमे देखल जा रहल अछि। "सगर राति दीप जरय" आब साहित्य अकादेमी संपोषित भऽ गेल आ ओकर इशारापर हिन्दीक लोकक कब्जा भऽ गेल, जइमे हिन्दीक पोथीक लोकार्पणसँ लऽ कऽ रवीन्द्रक कविताक हिन्दी अनुवादक दू पाँतीक पाठ धरि सम्मिलित रहल।

-टी.ए., डी.ए. आदिक परम्पराक घृणित आरम्भ साहित्य अकादेमीक फण्डसँ भेल, आ ऐसँ सगर राति दीप जरयक अन्तक प्रारम्भ मानल जा रहल अछि। मुदा साहित्य अकादेमी द्वारा संपोषित कवि-सम्मेलन आ सेमीनारमे टी.ए., डी.ए. सभ कवि निबन्धकारकेँ देल जाइ छन्हि मुदा एतऽ किछुए गोटेकेँ ई सौभाग्य प्राप्त भेल।

-टी.ए., डी.ए. लेल विभारानीपर सेहो जोर देल गेल  मुदा ओ कहलन्हि जे हुनकर आयोजन व्यक्तिगत रहतन्हि तेँ टी.ए., डी.ए. देब हुनका लेल सम्भव नै, जँ कथाकार लोकनि चेन्नै बिना टी.ए. डी.ए. लेने नै जेता तँ ओ ऐ कार्यक्रमकेँ करबा लेल इच्छुक नै छथि। अजित आजाद कहलन्हि जे हुनका टी.ए., डी.ए.भेटतन्हि तखन ओ जेता। कमल मोहन चुन्नू अजित आजादक समर्थन केलन्हि। मुदा टी.ए., डी.ए. आदिक परम्पराक घृणित आरम्भक विरोध आशीष अनचिन्हार केलन्हि तखन जा कऽ मामिला सुलझल।

-विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनीक सभ मैथिली कथा गोष्ठी, सेमीनारमे होइ छल मुदा साहित्य अकादेमीक फण्डिंगक शुरुआतक बाद "कथा रवीन्द्र"मे विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनीक अनुमति नै देबाक पाछाँ फण्ड देनिहार साहित्य अकादेमीक सुविधाजनक दबाब भऽ सकैए, से साहित्यकार लोकनिक बीचमे चर्चा अछि।




[-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी दिल्लीमे शुरू भेल/ १२ टा पोथीक लोकार्पण भेल जइमे ४ टा हिन्दीक पोथी छल !!

-कथा रवीन्द्र क रूपमे साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिली कथा गोष्ठीक आरम्भ, संयोजक अछि मैलोरंग, देवशंकर नवीन आ प्रकाश

- मैलोरंग एकरा ७६म "सगर राति दीप जरय"क रूपमे आयोजित करबाक नियार केने छल मुदा "सगर राति दीप जरय" मे आइ धरि सरकारी साहित्यिक संस्थासँ फण्ड लेबाक कोनो प्रावधान नै रहै, से ई ७६म "सगर राति दीप जरय"क रूपमे मान्यता नै प्राप्त कऽ सकल।

-साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिलीक ऐ स्वायत्त गोष्ठीकेँ तोड़बाक प्रयासक साहित्य जगतमे भर्त्सना कएल जा रहल अछि।

-आशीष चौधरी विदेह मैथिली पोथी प्रदर्शनी लेल पोथी जखन पसारऽ लगलाह तँ साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक (कन्फूजन छल जे ई  ७६म "सगर राति दीप जरय"क आयोजन स्थल छी जे एतऽ एलाक बाद पता लागल जे ई साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक रूपमे हैक कऽ लेल गेल अछि।)  एकटा संयोजक प्रकाश झा तकर अनुमति नै देलखिन्ह, जखन कि एकर सूचना दोसर संयोजक देवशंकर नवीनकेँ दऽ देल गेल छल। प्रकाश झा आशीष चौधरीकेँ कहलखिन्ह जे जँ मंगनीमे पोथी बाँटी तँ तकर अनुमति देल जा सकैए, मुदा तकर कोनो सम्भावनासँ आशीष चौधरी मना केलन्हि । तकर बाद आशीष चौधरी विदेहक सम्पादक गजेन्द्र ठाकुरक संग अपन पोथी लऽ कऽ ओतऽ सँ बहरा गेलाह। ऐ कारणसँ किछु मैथिली पोथीक लोकार्पण नै भेल (जे ओना ७६म "सगर राति दीप जरय"मे लोकार्पण लेल आएल छल साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी लेल नै।) ।  ई पहिल बेर अछि जखन कोनो मैथिली गोष्ठीमे मैथिली पोथी बेचबाक अनुमति नै देल गेल, हँ कन्नारोहट होइत रहैए जे मैथिलीमे पोथी नै बिकाइए। साहित्य जगतमे ऐ तरहक जातिवादी गोष्ठी द्वारा कएल जा रहल सरकारी फण्डक मैथिलीक नामपर दुरुपयोगपर चिन्ता व्यक्त कएल जा रहल अछि।

-गजेन्द्र ठाकुर फेसबुकपर लिखलन्हि- जगदीश प्रसाद मण्डल, बेचन ठाकुर, कपिलेश्वर राउत, राजदेव मण्डल, उमेश पासवान, अच्छेलालशास्त्री, दुर्गानन्द मण्डल आदि श्रेष्ठ कथाकार लोकनिकेँ एकटा पोस्टकार्डो नै देबाक आयोजन मण्डलक निर्णय अद्भुत अछि, ओना तै सँ ऐ लेखक सभक स्टेचरपर कोनो फर्क नै पड़तन्हि। भऽ सकैए ७५म गोष्ठीक आयोजक अशोक आ कमलमोहन चुन्नू वर्तमान आयोजककेँ हुनकर सभक पता सायास वा अनायास नै देने हेथिन्ह आ वर्तमान आयोजक केँ से सुविधाजनक लागल हेतन्हि। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक आयोजनमे सभ धोआधोतीधारी आ चन्दन टीका पाग धारी भोज खा आएल छथि, मुदा बजेबा कालमे अपन आयोजनकेँ बभनभोज बनेबापर बिर्त छथि।..ओना ई आयोजन साहित्य अकादेमीक फण्डसँ आयोजित भऽ रहल अछि आ एकरा साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी मात्र मानल जाए। मैथिली साहित्यक इतिहासमे ७६ म सगर राति दीप जरयक रूपमे ऐ जातिवादी गोष्ठीकेँ मान्यता नै देल जा सकत। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक जातिवादी चेहरा एक बेर फेर सोझाँ आएल अछि जखन ओ मैथिलीक एकमात्र स्वायत्त गोष्ठीकेँ तोड़ि देलक। पवन कुमार साह लिखलन्हि-काल्हि‍ धरि‍ सगर राति‍क आयोजक कोनो संस्थास नै होइ छल। मुदा आब ई वंधन टूटि‍ गेल।

-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीक पहिल सत्रमे विभूति आनन्द (छाहरि), मेनका मल्लिक (मलहम) आ प्रवीण भारद्वाजक (पुरुखारख) कथाक पाठ भेल।

-साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठी अध्यक्षता गंगेश गुंजन कऽ रहल छथि।

-कथापर समीक्षा अशोक मेहता आ रमानन्द झा रमण केलन्हि। अशोक मेहता कहलन्हि जे विभूति आनन्दक कथामे किछु शब्दक प्रयोग खटकल। मेनका मल्लिकक भाषाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे एतेक दिनसँ बेगूसरायमे रहलाक बादो हुनकर भाषा अखनो दरभंगा, मधुबनीयेक अछि। प्रवीण भारद्वाजक कथाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे कथाकार नव छथि से तै हिसाबे हुनकर कथा नीक छन्हि।

-रमानन्द झा रमण विभूति आनन्दक कथामे हिन्दी शब्दक बाहुल्यपर चिन्ता व्यक्त केलन्हि। मेनका मल्लिकक कथाक सन्दर्भमे ओ कहलन्हि जे महिला लेखन आगाँ बढ़ल अछि। प्रवीण भारद्वाजक कथाक भाषाकेँ ओ नैबन्धिक कहलन्हि आ आशा केलन्हि जे आगाँ जा कऽ हुनकर भाषा ठीक भऽ जेतन्हि।

-तकर बाद श्रोताक बेर आएल, सौम्या झा विभूति आनन्दक कथाकेँ अपूर्ण कहलन्हि, मुदा हुनका ई कथा नीक लगलन्हि।  आशीष अनचिन्हार विभूति आनन्दसँ हुनकर कथाक एकटा टेक्निकल शब्द "अभद्र मिस कॉल"क  अर्थ पुछलन्हि तँ देवशंकर नवीन राजकमलक कोनो कथाक असन्दर्भित तथ्यपर २० मिनट धरि विभूति आनन्द जीक बचाव करैत रहला, अनन्तः विभूति आनन्द श्रोताक प्रश्नक उत्तर नै देलन्हि।

-दोसर सत्रमे विभा रानीक कथा सपनकेँ नै भरमाउ, विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण, आ दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारक पाठ भेल।  विभा रानीक कथा पर समीक्षा करैत मलंगिया एकरा बोल्ड कथा कहलन्हि, सारंगकुमार कथोपकथनकेँ छोट करबा लेल कहलन्हि, कमल कान्त झा एकरा अस्वभाविक कथा कहलन्हि आ कहलन्हि जे माए बेटाक अवहेलना नै कऽ सकैए, मुदा श्रीधरम कहलन्हि जे जँ बेटाक चरित्र बदलतै तँ मायोक चरित्र बदलतै। कमल मोहन चुन्नू कहलन्हि जे ई कथा घरबाहर मे प्रकाशित अछि। आयोजक कहलन्हि जे  विभा रानीक कथा सपनकेँ नै भरमाउ केँ ऐ गोष्ठीसँ बाहर कएल जा रहल अछि।

विनीत उत्पलक कथा निमंत्रण पर मलंगिया जीक विचार छल जे ई उमेरक हिसाबे प्रेमकथा अछि। सारंग कुमार एकरा महानगरीय कथा कहलन्हि मुदा एकर गढ़निकेँ मजगूत करबाक आवश्यकता अछि, कहलन्हि। श्रीधरम ऐ कथामे लेखकीय इमानदारी देखलन्हि मुदा एकर पुनर्लेखनक आवश्यकतापर जोर देलन्हि। हीरेन्द्रकेँ ई कथा गुलशन नन्दाक कथा मोन पाड़लकन्हि मुदा प्रदीप बिहारी हीरेन्द्रक गपसँ सहमत नै रहथि। ओ एकरा आइ काल्हिक खाढ़ीक कथा कहलन्हि।दुखमोचन झाक छुटैत संस्कारपर मलंगिया जी किछु नै बजला, ओ कहलन्हि जे ओ ई कथा नै सुनलन्हि। सारंग कुमार एकरा रेखाचित्र कहलन्हि। कमलकान्त झाकेँ ई संस्कारी कथा लगलन्हि। श्रीधरमकेँ आरम्भ नीक आ अन्त खराप लगलन्हि। शुभेन्दु शेखरकेँ जेनेरेशन गैप  सन लगलन्हि आ कमल मोहन चुन्नूकेँ ई यात्रा वृत्तान्त लगलन्हि। दोसर सत्रमे श्रोताक सहभागिता शून्य रहल।..आशीष अनचिन्हार]







सुमित आनन्द

सोसाइटी टुडेक लोकार्पण



अर्द्धवार्षिक द्विलिपि संयुक्त ‘सोसाइटी टुडे’क लोकार्पण ल. ना. मिथिला विश्वविद्यालय जुबली हॉलमे यू. सी. प्रायोजित समाज शास्त्रक राष्ट्रीय संगोष्ठीमे दि. 25.03.2012 केँ भेल। लोकार्पणकर्ता छलाह उक्त विश्वविद्यालयक माननीय कुलपति डॉ. समरेन्द्र प्रताप सिंह जखनकि अध्यक्षता कयलनि प्रतिकुलपति डॉ. ध्रुव कुमार। शोध्-पत्रिका हाथमे नेने अन्य विशिष्ट विद्वान जे गदगद मुद्राामे मंच पर उपस्थित छलाह से उक्त विश्वविद्यालयक कुलसचिव डॉ. विजय प्रसाद सिंह, एफ. ए. डॉ. सी. आर. डीगवाल, समाजशास्त्राी डॉ. के. एल. शर्मा, डॉ. हेतुकर झा, सी. एस. एस. ठाकुर, विधान पार्षद डॉ. विनोद कुमार चौधरी, वि.वि. समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. विद्यानन्द झा डॉ. विश्वनाथ झा, सुमित आनन्द आदि।

सभाकेँ सम्बोध्ति करैत एहि शोध् पत्रिकाक एडीटर एवं प्रख्यात समाजशास्त्री डॉ. विश्वनाथ झा, प्राचार्य एवं अध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, सी. एम. कॉलेज, दरभंगा, मंचपर उपस्थित एहि शोध् पत्रिकाक मैनेजिंग एडिटर श्री सुमित आनन्द केँ धन्यवाद दैत बजलाह जे एकर प्रकाशनक पूर्ण श्रेय एही प्रतिभावान कर्मठ युवक केँ छनि जनिक सत्प्रयाससँ ई अंक रजिस्ट्रेशन नम्बरक संग प्रकाशित भए सकल। कार्यक्रमक शुभारम्भ ‘जय-जय भैरवि’ सँ भेल जखनकि, कार्यक्रमक संचालन पुतुल सिंह कयलनि।






ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.जगदीश प्रसाद मण्डgलक कथा-फागु २.अतुलेश्वर- मातृभाषा दिवस क बहन्ने



१.

जगदीश प्रसाद मण्डसलक कथा-



फागु



कौआ डकैसँ पहि‍ने कतौ-कतौ गाछपर परुकि‍क बोल फूटल कि‍ रघुनी बाबाक नीन टुटलनि‍। जहि‍ना अर्द्ध-चेत अवस्था मे कि‍छु बजा जाइत तहि‍ना मुँहसँ नि‍कललनि‍-

“आइ फगुआ छी। राति‍ भरि‍क हँसैत चान सुर्जक लालि‍मा धरि‍ अरि‍आति‍ आबि‍ चुकल अछि‍। कते सुन्नर राति‍-दि‍नक संग मि‍लि‍ रहल अछि‍। जे जीबए से खेलए फागु”

बजैत-बजैत चेतना चेत गेलनि‍। चेतते मन दोहरौलकनि‍-

“जे जीबए से खेलए फागु।”

मुदा जीवि‍त-मृत्युनक बीच एहेन लट्टा-पट्टी अछि‍ जे के मरल के जीबैए, बि‍लगाएब कठि‍न अछि‍। कि‍यो जीवि‍त-मृत्युक बुझबे ने करैत तँ कि‍यो बुझि‍तो मानबे नै करैत। कि‍यो जँ बुझबो करैत तँ काते हटौने रहैत। शि‍वजीक सीमा खि‍ंचब कठि‍न अछि‍। पौह फटि‍ते जहि‍ना सुर्जक आगमन हुअए लगैत तहि‍ना रघुनी बाबाक अलि‍साएल मन जि‍नगी दि‍सि नजरि‍ उठौलकनि‍।



जहि‍ना कोनो ि‍वद्यार्थीक पहि‍ल कलम कोनो प्रश्नमे अॅटकि‍ जाइत तहि‍ना रघुनी बाबाक मन अॅटकि‍ गेलनि‍। ओछाइनपर पड़ले-पड़ल कर (करोट) घुमलाह। मनमे उठलनि‍, अनाड़ि‍यो-धुनाड़ि‍यो कोदारि‍सँ परती खेत तामि‍ लइए। कहाँ ओकरा हर जकाँ लूरि‍ सि‍खए पड़ै छै। मुदा बि‍ना लूरि‍ये तँ कोदारि‍यो नै पारल जा सकैए। अँटकल मनमे उठलनि‍, कि‍छु लूरि‍ देखि‍यो कऽ भऽ जाइत, कि‍छु हाथ पकड़ि‍ सि‍खाओल जाइत आ कि‍छु रगड़ि‍-रगड़ि‍ कऽ सि‍खए पड़ैत छै। ठमकलाह। पुन: मोनमे उठलनि‍, जहि‍ना पानि‍ माटि‍क ऊपर छि‍छलि‍ धारा बनि‍ आगू बढ़ैत, तहि‍ना तँ सुर्जोक कि‍रि‍ण छि‍छलैत पूबसँ पछि‍म चलैत अछि‍। अॅटकै कहाँ अछि‍। हँ अॅटकैए। खाधि‍मे पानि‍ अॅटकैए, तामल खेतक गोलामे सुर्जक कि‍रि‍ण अॅटकैए। मोनमे संचार भेलनि‍। दि‍नक सगुन उचाड़ए लगलाह। फगुआक दि‍न छी। फागुनक वि‍दाइ सेहो छी। आइये राति‍मे चैतक आगमन सेहो हएत। मोन मधुएलनि‍। पावनि‍क दि‍न छी। वसन्तीम पावनि‍। पुआ-मलपुआ खाएब, रंग-अबीर खेलब, होलीक संग वि‍रहा वसन्तस, ढोल-डम्फा क संग गेबो करब आ नचबो करब। मोन पसीज गेलनि‍।

“एक दि‍नक भोजे की आ एक दि‍नक राजे की।”

ठमकल मोन पाछू बढ़लनि‍। वसन्तिक मध्य , होली पावनि‍। माघक इजोरि‍या पंचमी होलीसँ एक मास बीस दि‍न पूर्व वसन्तकक जन्मी भेल। मुदा चैत-बैशाखकेँ वसन्त  मानने तँ पूर्व पक्षे हेरा जाइत अछि‍। जँ मध्यै मानब तैयो पचास-साठि‍क दूरी बनि‍ जाइत अछि‍। ओझराएल मोन मुड़छि‍ कऽ तुड़ुछि‍ गेलनि‍। भने दस बर्खसँ होली मनाएबे छोड़ि‍ देने छी। लऽ दऽ कऽ भाजने टा शेष बचैए। सेहो दि‍नेक फल छी। मुदा फलो तँ कअए तरहक होइए- मि‍ठो होइए, खट्टो होइए आ षट-मधुर सेहो होइए। तीनू संगो रहैए आ अलगो-अलगो रहैए। जामंतो प्रकारक भोजनमे तीनूक अपन-अपन महत छै। भोजमे जएह अचार अपन वि‍शेष मतह बनौने अछि‍, वएह असगरमे दाँतकेँ कोति‍या कात कऽ दैत अछि‍। जे काज करैसँ हनछि‍न करए लगैए। मोनकेँ घुमि‍ते उपकलनि‍, वसन्तसक आगमनक दि‍न। आइये सरस्वोती पूजा सेहो छी आ हरबाह गृहस्तैक हर परतीपर ठाढ़ करत। ठाढ़े नै करत अढ़ाइ मोड़ घुमबो करत। अढ़ाइये मोड़क बोइनि‍यो तहि‍ना। सभ परानी खेबो करत आ जते धानसँ हरक नाश डुमतै तते लैयो जाएत। पसारी भाथीक आगि‍मे धान-मरूआ लाबा फोड़ि‍ सालक समए गुनत। मुदा सेहो होइ कहाँ छै? हेबो केना करतै, गाए-महि‍सि‍क मास एक्कैस-बाइस दि‍नक होइ छै आ मनुक्खाक भऽ जाइ छै तीस दि‍नक। जहन कि‍ दुनू संगे रहैए। संगे लक्ष्मीभ बनैए, संगे ऐरावत। रघुनी बाबाक मोनमे उठलनि‍- अनेरे कोन फेड़मे पड़ै छी। पावनि‍क दि‍न छी हँसी-खुशीसँ उठब खाएब-पीब मौज-मस्ती  करब। जे गति‍ सबहक से गति‍ हमरो। तइले अनेरे एते मगज-मारी करैक कोन जरूरति‍। राम-श्याहम करैत रघुनी बाबा ओछाइनसँ उठैक वि‍चार केलनि‍। तखने गाम दि‍सि‍सँ पीह-पाहक अवाज कानमे पड़लनि‍। भोरहरबा नढ़ि‍याक अवाज जकाँ अकानए लगलाह जे कि‍ कहै छै।

रघुनी बाबाक मोनमे उठलनि‍, ओह, अनेरे पावनि‍ छोड़लौं। जाबे जि‍बै छी ताबेए ने। मरि‍ जाएब तँ के देखत आ ककरो देखब। मोनमे फेरि‍ उपकलनि‍, कि‍अए नै पावनि‍ छोड़ी? जइ होली पावनि‍क नाओंपर इज्ज त-आबरूक, धन-सम्पैति‍क लूट हुअए ओ पावनि‍ कि‍अए करब। मुदा भुताहि‍ गाछ बूझि‍ कि‍यो आमक गाछ तर जाएब छोड़ि‍ देत तँ आम केना खाएत? जामुनपर सहजहि‍ जम बैसलै अछि‍। बेल फड़नहि‍ कौआकेँ की? खैर जानह जओ जानह जाँत। गामक बात गौआँ जानह। मुदा परि‍वार तँ अपन छी। परि‍वारक नीक-बेजाएक तँ जबाब दि‍अए पड़त। मुँहो चोरा कऽ रहब नीक नै। कते दि‍न जीबे करब। आइसँ फेरि‍ फगुआ खेलब। मुदा खेलब कतए? परि‍वारक संग खेलब...।

रघुनी बाबाक मोन नीक जकाँ असथि‍रो नै भेल छलनि‍ आकि‍ दादी आबि‍ टोकलकनि‍-

“सौंसे गामक लोक हर-बि‍र्ड़ो करैए आ अहाँले भोरो ने भेल। आबो उठब कि‍ सूतले रहब?”

जहि‍ना नोनगर बि‍स्कु-ट खेलापर चाह पीबैक मोन होइत तहि‍ना रघुनी बाबाब मोन भेलनि‍। घोकचल भौंहुक बीचक करि‍या तीर तनैत बजलाह-

“जखन अहाँ आबि‍ये गेलौं तखन कि‍अए ने गाछक जड़ि‍येमे पानि‍ ढारी जे डारि‍-पात सगतरि‍ पहुँचतै। अहीं संग फगुआ खेलब।”

बाबाक बात दादीक हृदैकेँ बेधि‍ देलकनि‍। छटपटाइत उत्तर देलखि‍न-

“अखन जे तीस-पेंइतीस गोरेक फुलवाड़ी लगल अछि‍ ओ केकर छि‍ऐ? जहि‍ना कृष्ण़ वृन्दा‍वनमे फागु खेलाइत छलाह तइसँ कि‍ कम हमर अछि‍।”

मुस्कीि दैत रघुनी बाबा कहलखि‍न-

“अखनो धरि‍ मोनमे बेइमानी अछि‍ये जे अपन कहलि‍ऐ आ हमर छोड़ि‍ देलि‍ऐ?”

अड़हुलक कली सदृश तीर साधि‍ दादी दगलनि‍-

“अहाँकेँ आन बुझै छी जे फुटा कऽ कहि‍तौं।”

“अच्छाे छोड़ू ऐ सभकेँ। परि‍वारमे सभकेँ कहि‍ दि‍यौ जे दुपहर तक सभ कि‍यो नहा-खा तैयार भऽ जाए। बेरू पहर दुनू गोरे केना जुआनी बि‍तेलौं से सौंसे परि‍वारकेँ सुना देबै।”

बाबाक बात सुनि‍ते दादीक आँखि‍ मधुआ गेलनि‍। बजलीह-

“आबक लोककेँ नि‍महतै। मन अछि‍ कि‍ नै जे दुरागमनक तेसरे दि‍न पटुआ काटए पू-भर गेल रही।। ऐठाम रौदी भऽ गेल रहै आ डेढ़ बख्रक पछाति‍ आएल रही।”

दादीक बात सुनि‍ते रघुनी बाबा उठि‍ कऽ बैसैत बजलाह-

“अझुका लोकक मने बदलि‍ गेल अछि‍। जेकर देखा-देखीसँ बालो-बच्चाझ प्रभावि‍त भऽ रहल अछि‍।”

बजैत-बजैत जहि‍ना दादी-दुनि‍याँ बि‍सरि‍ गेली तहि‍ना सुनैत-सुनैत कथा-वक्ताज-श्रोता जकाँ रघुनी बाबा जि‍नगीक बोनमे बोना गेला। एक मन औनाए लगलनि‍ तँ दोसर मन गाबए लगलनि‍-

“सदा आनन्दक रहे अही दुआरे मोहन खेलै होरी हो।”

दादी दरबज्जादसँ आंगन दि‍सि‍ गुनगुनाइत बढ़लीह-

“कि‍यो लुटाबए अपन महि‍मा।”



जुआनीक रंगमे रंगि‍ रघुनी बाबा गाम दि‍सि‍ वि‍दा भेला। दरबज्जा।क बाट टपि‍ गामक बाटपर पहुँचते मोनमे उठलनि‍- देखा चाही, कत्ते नवतुरि‍या सभ देहपर रंग फेकैए आ कत्ते जुआन-जहान अकाससँ अबीर उड़बैए। मुदा लगले मोनमे उठि‍ गेलनि‍, लोको लाज तँ छी। धि‍या-पुता केना रंग देत? कि‍अए ने देत, खेलाएत तँ अपनामे, मुदा छि‍च्चाा उड़ि‍ जे पड़त आेकरा कि‍ कहबै।

एका-एकी दादी परि‍वारक सभकेँ अपने मुँहेँ कहलनि‍। बाबाक समाद दादी भरि‍ मोन बॅटलनि‍। नीक-बेजाए दुनूक समीक्षा हुअए लगल। अन्त -अन्तब यएह सभ बुझलक जे कहि‍यो ने से पावनि‍ दि‍न। बूढ़-पुरानक हुकुम छि‍यनि‍, तँए यादि‍ स्वेरुप सुनि‍ लेब नीके हएत। के कहलक अगि‍ला होली देखता आकि‍ नै। जँ देखबो करताह तँ के कहलक जे पाँखि‍ तोड़ि‍ कऽ देखताह आकि‍ ओछाइन धेने देखताह तेकर कोन ठेकान। मुदा ईहो बात मोने-मोन उठैत जे वएह देखताह हमहीं नै देखि‍ऐ। कमसँ कम तँ ई हएत कि‍ने जे सौंसे परि‍वार एकठाम बैसि‍ पवनि‍क दि‍न बि‍ताएब। दादीकेँ पोती कहि‍यो देलकनि‍ जे आइ भानसो तोरे करऽ पड़तौं।



समैसँ कि‍छु पहि‍नहि‍ परि‍वारक सभ कि‍यो दरबज्जापपर पहुँचल। बाबा-दादीक बात तँए महादेव-पार्वतीक फागु सबहक मोनमे घुमैत सबहक मुँह बन्न। सभ बाबा-दादीक बात सुनैले कान पाथि‍ नजरि‍ अॅटकौने। रघुनी बाबाक मोनमे उठलनि‍ जे ति‍ल-तण्डुबल जँ फेंटा जाए तँ बि‍लगाएल जा सकैए मुदा जौं पानि‍-माटि‍ फेंटा जाएत तखन केना बि‍लगाओल जाएत। तीन खाड़ी बीच परि‍वार अछि‍। सबहक अपन-अपन स्तओर अछि, अपन-अपन जि‍नगी अछि‍। जि‍नगि‍येमे खुशि‍यो अबैत जाइत रहैत अछि‍। मुदा जहि‍ना लोक अपना नीक लेल सभ कि‍छु करैए तहि‍ना ने परि‍वारो लेल करैए। भलहिं परि‍वार पैघसँ छोटे कि‍अए ने भऽ गेल हुअए। फगुआ दि‍नक उमकीमे मोन उमकि‍ गेलनि‍। जहि‍ना बर्खा पानि‍मे धि‍या-पुता उमकैए तहि‍ना बबो-दादीक मोन उमकए लगलनि‍। दादीकेँ बाबा टीप देलखि‍न-

“जइ साल दुरागमन भेल रहए आ परदेश गेल रही, से मोन अछि‍ आ कि‍ बि‍सरि‍ गेलौं?”

बाबाक प्रश्नक उत्तर दादी केना नै देथि‍न। बाबाक ने रोच (धाख) मुदा परि‍वारक तँ गारजने। नि‍चलासँ ऊपर छि‍हे। सि‍नेमा कलाकार जकाँ दादी पोजमे बजलीह-

“लोक सुख बि‍सरि‍ जाइ छै, दुख मोने रहै छै। कि‍अए ने मोन रहत।”

दादीक पोज देखि‍ छोटकी पर-पुतोहु अपन हालक दुरागमन बूझि‍ बाबाक प्रश्नपर जोर देलक। पुतोहुक टॉट बोली सुनि‍ दादीक मोनमे उठलनि‍ जे मुँहजोर पुतोहु अछि‍ एकटा उत्तर देबै तँ दोसर दोहरा देत। मुँह नोचि‍ कऽ खा जाएत। तइसँ नीक जे अपने मुँहे कहए दि‍यनि‍।

दादीकेँ हारि‍ मानैत बूझि‍ रघुनी बाबा लपकि‍ प्रश्न पकड़ि‍ बाजए लगलाह-

“कनि‍याँ, नव-कबरि‍ये रही। मोछ-दाढ़ीक पम्हप अबि‍ते रहए। तीन सालसँ परदेश खटैत रही। जेठ मास दुरागमन भेले रहए। दुरागमनक तेसरे दि‍न मेड़ि‍या सभ पू-भर जेबाक समए बनौलक। अपनो घरमे चूड़ा-भुसबा रहबे करए बटखरचा लऽ लेलौं। भाड़ा-भुड़ी ले गोरलगाइबला रूपैया रहबे करए। तेसरा दि‍न चलि‍ गेलौं।”

जि‍ज्ञासा करैत पुतोहु पुछलकनि‍-

“पएरे गेलखि‍न आ कि‍ गाड़ी-सवारीसँ।”

जना गुड़ घावसँ पीज नि‍कलै काल सुआस पड़ै छै तहि‍ना बाबाक मोनमे सेहो भेलनि‍। वि‍ह्वल होइत बजलाह-

“कनि‍याँ, नि‍रमली तक रेलगाड़ीसँ गेलौं। तेकर बाद पूब दि‍सक रस्तान धेने कोसी घाटपर पहुँचलौं।”

“धार केना टपलखि‍न?”

“कनि‍याँ, जेठुआ समए रहै। धारक पेट खाली भऽ गेल रहै मुदा तैयो अगम पानि‍ तँ रहबे करै। ओना फुलाइक समए भऽ गेल रहै मुदा फुलाएल नै रहै। बेसी नाव भदबरि‍यामे डुमै। एकबेर एहि‍ना भेल जे अपने गौआँक मेड़ि‍या घुमैकाल डूमि‍ गेलै।”

उत्सुक होइत पुतोहु पुछलकनि‍-

“कते गोरे रहथि‍?”

“तेरह-चौदह गोरे अपना गामक रहथि‍ आर गोटे आन-आन गामक। चालि‍स-पेंइतालि‍स गोरे नावपर चढ़ल रहथि‍।”

“कते दि‍न पू-भर कमाइ ले गेलखि‍न?”

मोन पाड़ैत रघुनी बाबा बजलाह-

“तेकर ठेकान अछि‍। मुदा तैयो बीस-पच्ची”स बर्ख तँ गेलै हएब।”

“कअए दि‍ने पहुँचै छेलखि‍न?”

“आइ बोर तीनि‍ये दि‍नमे रंगैली पहुँचि‍ गेलौं। बजारसँ थोड़बे हटि‍ कऽ पकड़ा गेल। चि‍न्हदरबे गि‍रहत रहए।”

“जौं ओइठीम काज नै पकड़ैतनि‍ तखन कि‍ करि‍तथि‍न?”

पुतोहुक प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक जुआनी मोनमे उठलनि‍। जोशमे बजलाह-

“की करि‍ति‍ऐ! कोनो कि‍ ओतबे देखल-सुनल रहए। मोरंगमे नै काज भेटि‍तए तँ आगू बढ़ि‍ जैति‍ऐ। सि‍लीगुड़ी असाम, ढाका तक ठेका दैति‍ऐ। मुदा काज केने बि‍ना नै अबि‍ति‍ऐ।”

“कोन काज करै छेलखि‍न?”

काजक नाओं सुनि‍ बाबाक मोन बौरा गेलनि‍। बजलाह-

“कनि‍याँ, काजक कोनो ठेकान अछि‍। गि‍रहस्तौाआ सभ काजक लूरि‍ अछि‍। ओना धन रोपनी-कटनी आ पटुआ कटैले जाइ छलौं।”

“कते दि‍न रहै छेलखि‍न?”

“सालमे दू-बेर जाइ छलौं। घुमा-फि‍रा कऽ छओ मास लगि‍ जाइ छलए। धन कटनीमे तँ एक-लगना काज रहै छलए। मुदा पटुआ समैमे काज छि‍ड़ि‍या जाइ छलए।”

मुँहपर एकटा आंगुर लैत पुतोहु पुछलकनि‍-

“एक-लगना काज केकरा कहै छथि‍न?”

पुतोहुक प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक गुरुमन जागि‍ उठलनि‍। नजरि‍पर नजरि‍ दैत कहए लगलखि‍न-

“एक-लगना काज ओ भेल जे क्रमबद्घ चलैए। एकक बाद एक काज अबैए। जेना भानस करै काल चुल्हि‍ पजारि‍ बरतन चढ़बै छी। अदहन दइ छि‍ऐ। पानि‍ गरम होइए तखन सि‍दहा लगबै छी। यएह क्रम एक-गलना भेल। मुदा जखन रोटि‍यो पकाएब रहत, तरकारि‍यो बनाएब रहत आ भातो रान्हटब रहत तखन ओ काज छि‍ड़ि‍या जाएत। छि‍ड़ि‍आएल काजमे अधि‍क भनसि‍यो आ चुल्हि‍योक जरूरति‍ पड़ि‍ जाइ छै। नै जँ भनसि‍या असगरुआ रहल तँ छि‍गड़ी तानमे पड़ि‍ गेल।”

“एक-लगना काज केना करै छेलखि‍न?”

“पटुऐक कही छी। पहि‍ने ओकरा कटलौं। काटि‍ कऽ जमा कऽ देलि‍ऐ। ती-चारि‍ दि‍नमे पत्ता झड़ि‍ जाइ छलै। तखन ओकरा अॅटि‍याहा बोझ बनबै छलौं। पानि‍ ठेकि‍ना उघि‍ कऽ लऽ जाइ छलौं। पानि‍मे बाँसक खुट्टी पाटि‍‍ कऽ, तीन-चारि‍ छल्ली लगा दइ छेलौं एक-दोसराकेँ दबबो केलक आ ऊपरसँ माटि‍क चेका चढ़ा दइ छलौं। पानि‍क तरमे सभ डुमि‍ जाइ छलै। गोरलाक बीस-पच्चीऽस दि‍नमे सीझ जाइ छलै। तखन ओकरा मुंगरीसँ झाड़ि‍-झाड़ि‍ साफ करै छलौं।”

“पटुआमे भरि‍गर काज की होइ छै?”

प्रश्न सुनि‍ रघुनी बाबाक आँखि ढबढबा गेलनि‍। आँखि‍ ढबढबाइते पानि‍ पड़ल खजुरी जकाँ मधुर भऽ गेलनि‍। कहलनि‍-

“कनि‍याँ, अखन अहाँ बाल-बोध छी। दुनि‍याँक तीत-मीठ नै बुझलि‍ऐए मुदा कहै छी। काजे जि‍नगी छी। तँए काजसँ सटबाक कोशि‍क हरदम करी। हरदम करैक मतलब ई नै जे भरि‍ दि‍न देहे धुनी। जहि‍ना राजमि‍स्त्रीा मकानक नक्शा‍ बना मकान बनबैए तहि‍ना काजोक छै। छोटे-काज नमहर लग लऽ जाइ छै आ आगू मुँहे टुसि‍कि‍येबो करै छै।”

“प्रश्न छूटि‍ गेलनि‍ बाबा?”

“कनि‍याँ, की कहब? तरकारी तँ ओलो छी जे गाछमे एकेटा होइए, जा कऽ खट दे उखाड़ि‍ लेब। उखाड़ैमे जते समए लागल ओइसँ कम समैमे सजमनि‍ तोड़ल जा सकैए। मुदा सैकड़ो फड़नि‍हार सजमनि‍ बि‍ना देखने-सुनने टेबि‍ केना सकै छी। टेबब असान काज तँ नै। मोनमे दूटाक तुलना करब छी। तहूमे कि‍छु एहेन होइत जे कमे उमेरमे फुफुआ कऽ नमहर भऽ जाइत आ कि‍छु लुलुआ कऽ बौना भऽ जाइत। जँ छोट जानि‍, छोड़ैत जाएब तँ ओ तरेतर जुआ जाएत, मेहनति‍ डूि‍म जाएत। तँए हल्लुआको काज भारी होइए।”

“बाबा, फेर भसि‍या गेलखि‍न?”

“नै कनि‍याँ, भसि‍आइ कहाँ छी। होइए जे हृदए फाड़ि‍ अहाँ सभक बीच छि‍ड़ि‍या दी आ अहाँ सभ ति‍ति‍र जकाँ सभ पीबि‍ ली। मर्द बनि‍ जखन काज करए नि‍कललौं, तखन भरि‍गर की आ हल्लु क की। मुदा एकटा बात धि‍यानमे जरूर राखक चाही जे कोन काजमे कते जोखि‍म उठबए पड़त। जइ काजमे जते जोखि‍म होय ओइमे ओते सतर्क रही। तर्के रास्ता। बनबैए। पटुआ काजमे सभसँ भरि‍गर अछि‍ पटुआ झाड़ि‍ सोन बनौनाइ। जहि‍ना एक-दोसर जि‍नगी पबैत तहि‍ना डाँड़ भरि‍ सड़ल पानि‍मे जइमे जोंक-ठेंगीक संग वि‍षैला साँप सेहो रहैत। चानि‍पर टहटहौआ रौद, नि‍च्चाज डाँड़ भरि‍ पानि‍। सर्द-गर्मक बीच शरीर। तइपर एक-लगना ठाढ़ भऽ कखनो एकटंगा ठहुन बना पटुआ जड़ि‍ जोड़ल जाइत, तँ कखनो वामा हाथमे उठा दहि‍ना हाथे मुंगरीसँ झाड़ल जाइत। माछी-मच्छखड़क तँ ठेकाने कोन।”

सि‍नेहासि‍क्तँ होइत पुतोहु पुछलकनि‍-

“कते दि‍नक पछाति‍ घुड़लखि‍न?”

“डेढ़ बर्खपर घुमलौं। आेइ साल रौदी भऽ गेल रहै। रूपैया पठा दि‍ऐ आ अपने कमाय।”

“अनदि‍ना, बि‍ना सि‍जनक समैमे कोन काज करै छेलखि‍न?”

“कनि‍याँ, वएह समान सभ जेना- पटुआ, तोरी, धान इत्याादि‍ देहातमे उपजै आ तैयार भऽ कऽ बजार अबै-छलै। बजारोमे काज बढ़ि‍ जाइ छलै। उठा काज करै छलौं।”



अतुलेश्वर

मातृभाषा दिवस क बहन्ने

हेमनिमे मातृभाषा दिवस छल, विभिन्न भाषा भाषी लोकनि अपन मातृभाषाक प्रति अनुराग ओकर विकास , अपेक्षा आ उपेक्षा पर चिंतन कयने होयताह। हमहुँ संयोग सं जनकपुर ( नेपाल) गेल रही । जानकी मंदिरक परिसरमे मैथिली भाषी लोकनि मातृभाषा दिवस मना रहल छलाह , सभामे नाटककार महेन्द्र मलंगिया, का. शितल झा, प्रा. परमेश्वर कापड़ि , प्रा. श्याम सुन्दर शशि आदि मैथिलीक विद्वान आ चिंतक लोकनि उपस्थिति छलाह। कार्यक्रमक रूप एकदम जनतंत्रीय छल कारण कार्यक्रम कोनो सभागार मे नहि भ’ जानकी मंदिरक प्रांगण मे भ’ रहल छल , जेकर कारण जनमानसक संख्या अधिक सँ अधिक छल , मोनमे जनमानसक उत्साहकेँ देखि उत्साह भेल । कारण देखल जाइत अछि जे बहुतों खर्च होएबाक पश्चातों जनमानसक सहभागिता कम देखल जाइत अछि, मुदा एतए एहन स्थिति नहि छल। कारण मातृभाषा दिवस क महत्व भाषा धरि सीमित नहि अछि ओकर महत्वक एकटा व्यापकताक अछि।

विभिन्न वक्ताक भाषण सुनलाक पश्चात किछु सोचबाक लेल बाध्य कयलक आखिर कियो ई कियाक नहि कहि सकलाह जे एकटा भाषिक आन्दोलनक होयबाक चाहि मात्र एतबहिं कहि रहल छलाह जे हमरा सभकें अधिकार भेटबाक चाहि आखिर हुनका ई कियाक नहि बूझय मे आबि रहल छल जे अखनि धरि मैथिलीक लेल कोनो भाषिक आन्दोलन नहि भेल अछि आ जे भेल अछि ओ जनमानस सँ कटि क । कारण अखनि धरि हम सभ मानकीकरण आ मैथिली ब्राह्मण आ कायस्थ शुद्ध बजैत छथि एहिक लड़ाइ मे लागल छी, जेकर कारण भ रहल अछि मैथिली आइ अपन क्षेत्र धरि नहि बचा पाबि रहल अछि , जाहि जिलाक मैथिलीकें मानक मैथिली कहैत छियैक ओतुक्का जनता मे ई भ्रम छैक जे हम सभ जे मैथिली बजैत छी ई अशुद्ध अछि। एहि विषय पर कियो नहि सोचि रहल छथि जे आखिर ई धारणाक जन्म कोना भेल यदि भेल हम सभ ओकरा निरूपण करबाक लेल कि कहि रहल छी। मैथिलीक प्रति अपने सोचि सकैत छी जे हेमनिमे जाबत धरि साहित्य अकादमी पुरस्कारक घोषणा विलम्ब सँ भेल एहि स्थितिक लेल मैथिलीक चिंतक बुझनिहार लोकनि किछु नहि बाजि सकलाह सभ कियो एहि दुआरे चुप्प रहलाह जे कहि ई पूआ हमरे भेटि जाय। एहि ठाम ई तथ्य उठयबाक हमर मात्र ई नियति छल जे हमर सभक मानसिकता केहन
अछि। भाषाक लेल सभ कियो कहताह जे हम ई क रहल छी मुदा हुनका भाषाक सेवा लेल जे पारिश्रामिकों भेटैत छनि ओहि संस्थाक ई  स्थिति अछि जे ओतय गेलाक बाद अपनेक बुझायत जे हम कि सोचि आयल छलहुँ हम कि देखि रहल छी । आखिर कियाक? अपने देखि सकैत छी मैथिली साहित्यकार आ चिंतक लोकनि एतेक निम्न स्तरक चरित्रक छथि जे एक दिश कहताह जे फलां महाशय मैथिली आ मैथिलीक साहित्यकारमे भेदभावक स्थापना क रहल  छथि आ हम एहि धारणाकें मेटेबाक प्रयास क रहल छी  आ जखनि अहाँ हुनक धारणा देखब तँ ओ उन्नैस छलाह आ ई बीस भ गेल छथि , हम नाम लेबए एहि दुआरे नहि चाहैत छी जे बेकार कें ओ लोकनि प्रसिद्ध पाबि जेताह मुदा बुझबाक हेतनि बुझि जयताह । तैँए एहि बीच एकटा मित्र साहित्यकार कहलनि जे मैथिली आ मिथिला मे सभ नागनाथ आ साँपनाथें छथि तैँए किनको बारे बेसी निक वा बेजायक प्रमाण नहि द सकैत छी ।

बहुत उहापोहक स्थितिक बीच , साहित्य अकादेमी अपन चोर पोटरी खोललक। आदरणीय उदय चन्द्र झा विनोद कें हुनक कविता संग्रह अक्षप आ डा. खुशीलाल झाकें हुनका अनुवाद पुरस्कार सँ सम्मानित कयल गेल दुनू महानुभाव कें शुभकामना । ओना विनोद जीकें मैथिल चिन्हैत छन्हि कारण ओ मैथिली आ मिथिलाक मुद्दा सं जुड़ल  छथि मुदा प्रश्न ठाढ़ भ गेल विनोद जीक  पुरस्कार सम्मान सँ नहि इ विलम्बसँ । आखिर ई कोन दबाब छल जे पुरस्कार मे देरी भेल । वा पुनः उएह खिस्सा दोहराओल गेल जे एहि बेर विनोद जीकें द दियौन्ह बहुत आश कयने छथि कि कोनो दोसर फार्मूला ।आनन्द कुमार झाजी जिनका युवा साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटल , ओ उचितों जे पहिल बेर मैथिली मे कोनो युवा लेल पुरस्कार भेटल आ ओ हुनका भेटलन्हि एहि लेल हुनका शुभकामना। ओना हमरा जनैत हुनका सँ निक –निक लिखनिहार मैथिलीमे युवा साहित्यकार छथि नाम लेब उचित नहि मुदा प्रश्न उठल जे कोन कारण अछि एहि बेर सभ पुरस्कार एकटा वर्ग मे सीमित रहि गेल कारण रचना स्तरीय अछि तँ कियाक मैथिली एकगोट प्रसिद्ध आलोचक सँ पूछल जे युवा पुरस्कार जिनका भेटलन्हि अछि ओहि पर कि कहब अछि ओ कहलनि जे ठीके छैक कम सँ कम पाइ तँ भेंटि गेलन्हि। आ हमरा लागल जे ठीके साहित्य सेहो आब बाजारक चिज बनय जा रहल अछि ओकर अर्थ , ओकर महत्ता ओकर सामर्थ्य क्षिण भऽ रहल अछि।

एहि बीच होरी समाप्ता भेल आब मिथिलाक गाम सभमे फागु नहि गायल जाइत अछि , गाम संवेदनहीन भ गेल अछि । सांस्कृतिक चिंतन पर असमक एकटा विद्वानक लेख मोन पड़ैत अछि हुनक नाम ओतेक मोन नहि अछि किन्तु ओ सांस्कृतिक परम्परा पर जे गप्प कहने छलाह से मोन अछि। हुनक चिंतन असमक परम्पराक विषय मे छल जे एक दिन असम मे एहन स्थिति आओत जे बिहु संग्रहालय आ मंचक वस्तु भ जायत । ओतुक्का कि स्थिति छैक से कहि नहि सकब कारण ओतय किछु सांस्कृतिक चेतना बाँकी छैक से हम देखल , मुदा मिथिलामे ओ ठीके रंगमंचक प्रेक्षा गृहक वस्तु भ गेल अछि संग्रहालय मे राखल जाए मुदा मिथिला मे अखनि धरि विस्तृत संग्रहालय नहि अछि। ई प्रश्न एहि दुआरे हम कहि रहल छी जे एकटा ईमेल हकार पाँति क आयल छल ओहि मे अपन सांस्कृतिक चेतनाकें बचयबाक लेल कहल गेल अछि आ जेकर कारण ओ लोकनि फागु महोत्सव मना रहल छथि , मुदा तँ जे करै छी से ठीके मुदा कि एकर दूरगामी प्रभाव होयत वा क्षणिक कारण रंगकर्मी ई तं नहि सोचि क जयताह जे निक तैयारी आ प्रस्तुति सँ पैघ पुरस्कार भेटि जाय ? अन्त मे वासंती नवरात्र आ रामनवमीकेँ सम्पूर्ण मिथिलावासीकेँ मंगलमय शुभकामना।







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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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