सन्दीप कुमार साफी
विहनि कथा
अन्ध विश्वास
काकी गोर लगै छियनि, बैसथु।
-के, उड़ीसावाली
कनियाँ।
-हँ काकी, निके
रहै छथि।
-की ठीक रहब कनियाँ, तैयो ठीक छी। बुढ़-पुरान भेलौं, हमरा सभकेँ तँ
ई पुरबा हवा जान लेबऽ लगैए। सौँसे डाँर ठेहुन बातरससँ कनकनाइए। कोनो दवाइ नै काज
करैए।
-आबथि, बैसथु।
एक तँ कतेक दिन पर भेँट भेलथियऽ।
-नै कनियाँ। आँगनमे बड्ड काज छै। आइँ
यै कनियाँ, भुखनो बच्चा आएल अछि?
-हँ काकी, मरनीक
बाबुओ एलखिन।
-कनियाँ बच्चा सभ सेहो एल्न्हि।
-नै काकी। अखैन बच्चा सभक गरमीक
परीक्षा चलै छै, तहि दुआरे ओकरा सभकेँ नै अनलिऐ। आब गर्मी
छुट्टीमे सभ आम लिच्ची खाइ लए अबै छन्हि।
-आँइ यै कनियाँ, मरनी तँ आब बियाहैवाली भऽ गेल हएत।
-हँ काकी, ओकरे
कतौ लड़का ताकै गेल छथिन। काकी माँथ केहेन लागै छनि। आबथु कनी तेल दऽ दै छियनि।
-नै कनियाँ। आइ जाए दिअ, आउर दोसरो दिन आएब।
-माँथ फहराइ छनि तेल बिनु।
-से तँ ठीके कहै छी कनियाँ। हमर रुसना
डिल्लीसँ हमरा लए एगो नवरतन तेल ठंढ़ा बला, पाँचटा साबुन
नहाइ बला, दू किलो सर्फ पठा देलक, जे माय लगा आ जे किछु घटतौ तँ फोन करिहिएँ।
ने अखैन कनियाँ रवि रायकेँ समय छै, भूसा गर्दा सभ माथमे भरि जाइत छै।
-बड्ड गपशप केलौं कनियाँ, आब कनी जाए दिअ कनियाँ।
-ठीक छै काकी जाथु। हमहूँ भानस करऽ
जाइ छी काकी। काकी हिनका भनसा भऽ गेलनि।
-नै कनियाँ। हमहूँ जाइ छी। कनीक
पछुआरमे सँ भोरे अरिकौंछ तोड़लिऐ, तकरे चक्का बना कऽ
झोरेबै, कनीक आमिल दऽ कऽ। तेहन हमर पुतोहु भेल कनियाँ जे
अखैन तक दालि तरकारी नून, से नून-जाउर बना दैए, कहियो अनूने। कहियो अन तीमन नीक नै बनबैए। कनियाँ अहाँकेँ नीक लगैए
अरिकौंछ।
-हँ काकी, हमरा
सबकेँ ई कतऽ पाबी।
-ठीक छै तऽ हम अपना छोटा नातिन दिया
पठा देब बाटीमे। जाइ छी कनियाँ।
…
-बड़की दीदी, बड्ड
गप्प सरक्का चलै छलै रुसना माएसँ। की बात छै, अहूँकेँ गुण
जादू सिखबाक अछि की?
-नै छोटकी। तोरा सभकेँ यएह पपियाहा मन
सभ दिन मन खराप राखै छौ।
-नै यै दीदी। एको महिना नै भेलै,
सुगौनावालीकेँ देहपर पाँचटा देवी पठौने छलै। कतेक ओझा गुणी एलै,
तखन जा कऽ कनीक अन्न-पानि खाए लगलैए। सभ कहै छै हकल डाइन छै।
छोटका बेटाकेँ मारि कऽ सिखलकैए।
-छोड़ ई सभ बात। तूँ सभ गामघरमे रहि कऽ
अहिना सबकेँ डाइन आउर जोगिन कहै छिहिन। ई सभ अन्धविश्वास छिऐ। समाजमे ईएह सभ बातसँ
झगड़ा होइत रहैए आउर एक दोसरकेँ डाइन कहैए।
किशन कारीगर
आब हम जबान भ गेलहुँ
(हास्य कथा)
समाचार पढ़ि के स्टूडियो सँ निकलले रही कि
मोबाइलक घंटी बाजल हम धरफरा के फोन उठेलहुँ की ओम्हर सँ अवाज आयल हौ कारीगर आब हम
जवान भ गेलहुँ। ई सुनि त हमरा किछु ने फुरा रहल छल मुदा तइयो हम सहास कए के बजलहुँ
अहाँ के बाजि रहल छी। ओम्हर सँ फेर अवाज आयल हौ कारीगर एना किएक बताह जेंका बजैत
छह अवाजो ने चिन्हैत छहक। कहअ त इहे गप ज कोनो बचिया तोरो फोन कए के कहने रहितह त
तोरो मोन धनकुटिया मशिन जेंका धक-धक करितह। मुदा हम कहैत छियह त तों बहन्ना
बतियाअैत छह।
हम बजलहुँ से गप त ठीके मुदा अहाँ के
बाजि रहल छी से कहू ने तखने चिन्हब ने कि ओम्हर सँ फेर अवाज आएल हौ बच्चा हम बाबा
भोलेनाथ बाजि रहल छी तोरे स भेंट करैए लेल आएल छलहुँ। ई सुनि हम बाबा के प्रणाम कए
पुछलियैन यौ बाबा अहाँ कतेए छी। ओ खिसियाअैत बजलाह हौ बच्चा हम यूनिवार्ता लक ठाढ़
भेल छी तोहर आकाशवाणीबला सभ कहलक जे बसहा बरद लए के भीतर नहि जाए देब। तहि दुआरे हम यूनिवार्ता चलि अएलहुँ अहि ठाम
कोनो रोक टोक नहि बसहो बरद मगन स घास खा रहल अछि आ हमहूँ रौद मे बैसल छी। तूं जल्दी
आबह देखैत छहक सस्पेन महक चाह उधिया-उधिया कहि रहल अछि जे आब हम जवान भ गेलहु।
दुनू गोटे चाहो पीअब आ गपो नाद करब।हम बजलहुँ ठीक छै बाबा अहाँ ओतए रहू हम 5 मिनट
मे आबि रहल छी।
बाबा सँ भेंट करबाक लेल हम आकाशवाणी के गेट
न0-2 स बाहर निकैलि रोड
टपि के पीटीआई बिल्डिंग लक आएले रहि कि फेर फोनक घंटी बाजल। कान मे हेडफोन लगले
रहैए बिना नम्बर देखनहियै हम फोन उठेलहुँ कि ओम्हर सँ अवाज आयल यौ किशन बौआ अहाँ
कहिया गाम आबि रहल छी आब हम जवान भ गेलहुँ। हम धरफराइत बजलहुँ ग ग गोर लगैत छि
काकी। ओम्हर सँ फेर कोनो महिलाक अवाज आयल अई यौ बौआ अहाँ सभ दिन बकलेले रहबैह भौजी
के लोक कहूं काकी कहलकैए ओ खिखिया के हँसैत बजलीह अप्पन सप्पत कहैत छी यौ बौआ आब
हम जवान भ गेलहुँ। अहाँ त साफे हमरा बिसैर गेलहुँ कहियो मोनो ने पड़ैत छी। ई सुनि त
एक बेर फेर हमरा किछु ने फुरा रहल छल मुदा तइओ हम बजलहुँ अहाँ कतए स बाजि रहल छि
यै काकी। महिलाक अवाज आयल यौ बौआ हम भराम वाली भाउजी बाजि रहल छी। एक्को रति मोन
पड़ल ।हम अपसियाँत भेल हकमैत बजलहुँ ह ह भाउजी मोन पड़ल अच्छा त अहाँ छि भराम वाली।
भाउजीक गप सुनि त हँसि स हमरा रहल नहि गेल हा हा क हँसैत हम बजलहुँ अई यै भाउजी अहाँक
चिल्का बच्चा नमहर भ गेल आ तइयो अहाँ कहैत छी जे आब हम जवान भ गेलहुँ ठीके मे की
मजाक कए रहल छी।
भाउजी खिखिया क हँसैत बजलीह अप्पन सप्पत
कहैत छि यौ बौआ अहाँ एक बेर गाम आबि देखू हमरा देखि त बुढ़बो सबहक धोति निचा माथे
ससैर जायत छैक। आ तहू स बेसी हाल त मैटिक वला विद्यार्थी सभहक हाल त और बेहाल छैक।
टीशन पढै जायत काल हमरे घूरि घूरि क देखैत रहैत छैक आ सबटा सुध बुध बिसैर के धरफड़ा
के साइकिलो पर स खसि पड़ैत छैक। सबटा गप कि कहू यौ बौआ गाम-गमाइत जेनिहार अनठिया
लोक सभ त मोटरसाइकिल पर सँ ओंघरा पोंघरा के खसि पडैत छैक आ मुँहो कान चिक्कन भए
जायत छैक।हम बजलहुँ अई यौ भाउजी भैया नहि किछु कहैत छथि हुनका ने किछु होइत
छैन्हि। भाउजी बजलीह धू जी महराज की कहू आनहरो लोक अहाँ भैया स बेसी देखैत हेतै।
पामर वला चश्मा मे एक्को रति कि अहाँ भैया के देखाइए। सबटा गप कि कहू अहाँ भैया के
हकैम-हकैम के कहैत कहैत हम थाकि गेलहुँ जे आब हम जवान भ गेलहुँ। मुदा तइयो अहाँ
भैया के वैहए गउलहे गीत इस्कूल पर सँ गाम आ गाम पर सँ इस्कूल सेहो आखि मुनने जाउ आ
आउ। रस्ता पेरा कि सभ भेलै सेहो ने बुझबाक काज। ई गप सुनि त हँसि स हमरा रहल नहि
गेल हा हा क हँसैत हम बजलहुँ आहि रे बा एहेन जुलुम त देखल नहि।
हमर गप सुनि भाउजि खूब जोर स खिखिया क हँसैत
बजलीह जुलुम की महाजुलुम कहियोअ। ओना अहूँ कि अपना भैया स एक्को रति कम छी। अहाँ त
हरदम समाचार बनबै-सुनबै मे बेहाल रहैत छी हमर हाल के पुछैए। आई काल्हि त आनहरो लोक
ईशारा स गप बुझि जायत छैक मुदा अहुँक हाल त निछटे आनहर वला अछि ने गबैए जोकर ने
सुनैए जोकर। अहाँ स नीक त कोनो अनठिया के कहने रैहतियै जे आब हम जवान भ गेलहुँ त
निछोहे पराएल ओ गाम चलि आएल रहितैह मुदा अहाँ त गाम अएबाक नामे नहि लैत छी। हम
बजलहुँ भाउजी अहाँ जुनि खिसियाउ अहि बेर नहि त अगिला बेर हम जरूर आएब आ दुनू दिअर
भाउज उला ला उ ला ला मदमस्त होरी खेलाएब। एखन हम फोन राखि रहल छी केकरो फोन आबि
रहल छैक। भाउजी बजलीह मारे मुँह ध के अहूँ के मोबाइल हरदम टनटनाइते रहैए भरि मोन गप करब सेहो आफद। जहिना
जवान लोक फेनाइते रहैए तहिना अहाक फोन टनटनाइते रहैए बड्ड बढ़िया त राखू।
भाउजीक फोन डिसकनेक्ट करैते मातर फेर
कोनो अनठिया नम्बर सँ फेर फोनक घंटी बाजल अवाज सुनि हमर मोन धकधकाएल जे आब फेर के
अछि। हम हेल्लो बजलहुँ कि ओम्हर स अवाज आएल एकटा गप बुझहलियै अहाँ । हम बजलहुँ
बिना कहनहिए अपनेमने अन्तरयामी केना बुझि जेबैए ओना कोन एहेन जुलुम भए गेलैए से
जल्दीए कहू। कोनो महिलाक अवाज आयल यौ पाहुन हम कोना क कहू हमरा त लाज होइए। हम
बजलहुँ अहाँ के लाजो होइए आ उल्टे हमरा पाहुनो कहैत छी। ओम्हर स फेर अवाज आयल चुपु
ने अनठिया अनठा-अनठा के बजैत छी जेना अहाँ के बुझहले ने हुएअ ।हम बजलहुँ सत्ते
कहैत छी हमरा त एक्को मिसीया ने बुझहल अछि जल्दी कहू। एतबाक मे फेर अवाज आयल अहा
कहैत छी त हयैए लियअ सुनू आब हम जवान भ गेलहुँ। एतबाक बाजि ओ हा हा के खूब जोर स
हँसैए लगलीह। हुनकर गप सुनि त हँसि स हमरा रहल नहि गेल मुदा तइयो हम बजलहुँ जबान भ
गेलहुँ त अपना माए बाप के कहियौअ अहि मे हम कि करू। ओ बजलीह अई यौ बुढ़बा पाहुन
अहूँ बरि खान्हे बुझहैत छियैक। कहू त इहो गप केकरो कहैए पड़तैह लोक अपने मने नहि
बुझतैह जे घोरि घोरि के कहैए पड़तैह जे आब हम जबान भ गेलहुँ। एतबका बाजि ओ खूब जोर
स हाँ हाँ के हसैए लगलीह। ओइ महिलाक हँसि सुनि त बुझहु हमर मोन धनकुटिया मशिन
जेंका धक-धक करैए लागल। हकमैत हकमैत अपसियात भेल हम बजलहुँ अईं यै मैडम अहाँ जबान
नहि भेलहुँ कि बुढ़ारि मे हमरा जहल टा कराएब। ओ बजलीह अईं यौ पाहुन अहाँ के डर किएक
होइए एतेक काल त कोनो अनठिया गाम चलि आएल रहैतैए आ अहाँ के त होरी मे गाम अबैत
बड्ड माश्चर्ज लगैए अहाँ होरी खेलाए लेल गाम आएब कि नहि। हम बजलहुँ अहाँक पाहुन से
कहिया स त ओ बजलीह अईं यौ पाहुन हम जवान भेलहु आ हमरा अहा साफे बिसैर गेलहु। हम नीलू बाजि रहल छी
एक्को रति मोन पड़ल कि नहि।
हम बजलहुँ अच्छा त अहाँ छी बड्ड
जल्दी जबान भ गेलहुँ। ओ महिला बजलीह त अहाँ मने कि अगिला कोजगरा तक अहाँक बाट
तकितहुँ कि अपन जबान भ गेलहुँ। आब बुढ़ लोकक जमाना गेलैए आई काल्हि त जबान लोकक
जमाना एलैए बुढ़ारी मे अहाँ भसिया गेलहुँ की। हमरे छोटकी सारि नीलू छलीह। हुनकर
एहेन सुनर बचन सुनि त हम अपना देह मे अपने मने बिट्ठू काटैए लगलहु खुशि सँ मोन मयूर जेंका
नाचए लागल। भेल जे सासुरे मे तिलकोरक तरूआ खा रहल छी मुदा फोन दिसि देखि इ भ्रम
टूटल जे हम त संसंद मार्ग दिल्ली मे छी आ फोन पर गप कए रहल छी। हम बजलहुँ यै नीलू ठीक छैक ई बुझहु
जे अगिला होरी मे हम एब्बे टा करब एतबाक कहि हम फोन राखि देलियै।
फोन पर गप करैते करैते हम चाह दोकान
लक चलि आएल रहि सेहो नहि बुझहलियै। हमरा देखैत मातर बाबा बजलाह अईं हौ कारीगर तोहर गप
सधलहे नहि देखैत छहक तोरा फेरी मे चाहो ठंढ़ा गेल तहि दुआरे चाहो वला हमरे पर मुँह
फुलेने अछि। बाबाक गप सुनि हुनका हम प्रणाम कए पुछलियैन से किएक यौ बाबा। त ओ
बजलाह चाहवला के कहब छैक जे अहि दारही वला बाब दुआरे कएक टा न्यू कपल्स माने जबान
छौड़ा-छौंड़ी बिना चाह पीने आपिस चलि गेलैह। आब तोंही कहअ त कारीगर छौंड़ा-छौंड़ी त
अपना फेरी मे गेल चाह नहि बिकेलै त एहि मे हमर कोन दोष। चाहवला अपने मिथिला के
रहैए ओकरा हम कहलियै हौ भाए दू कप चाह बनाबह बाबा सेहो पिथहिन। हम बाबा के
कहलियैन बड्ड दिन बाद अपने दिल्ली अएलहुँ त गाम घरक हाल समाचार कहू। बाबा बजलाह हौ
बच्चा जुनि पुछह गाम घरक हाल बुझहक छौंड़ा छौंड़ी अगिया बेताल। हम बजलहुँ से किएक यौ
बाबा त ओ बजलाह हौ बच्चा गामो घर रहबा जोग नहि रहि गेल। आई काल्हिक छौंड़ा
छौंड़ी एकदम निरलज भए गेल एक्को रति लाज धाक नहि रहि गेलैए आब त मंदिरो मे रहब परले
काल भए गेल।
हम बजलहुँ से किएक यौ बाबा त ओ बजलाह हौ
बच्चा सबटा गप तोरा कि कहियअ आब त छौंड़ा मारेर सभ पूजा करैत काल उला ला उला ला गबैत अछि एतबाक सुनैते
मातर छौंड़ियो सभ कुदि-कुदि के कहतह छुबू ने छुबू हमरा आब हम जवान भ गेलहुँ। कह त
के जबान के बुढ़ पुरान से त पूरा गौंआ बुझैत छैक एहि मे हल्ला करबाक कोन काज जे आब
हम जबान भ गेलहुँ। देखैत छहक इ गप सुनि त बुढ़बो सबहक धोति निच्चा माथे ससैर जाएत
छैक। ई भागेसर पंडा हमरा सुखचेन स नहि रहैए देत। एतबाक मे चाह वला 2 गिलास चाह देलक दुनू गोटे चाह पिबअ लगलहुँ एक घोंट चाह पिनैहे रहि कि
हम पुछलियैन भागेसर कि केलक यौ बाबा। ओ बजलाह हौ कारीगर की कहियअ भागेसर पंडा त आब
निरलज भ गेल। एतेक दिन ओम नमः शिवाय के जाप करैत छल आब उला ला उला ला गबै मे मगन
रहैए हम जे किछु कहैत छियैक हौ भागेसर एना किएक अगिया बेताल भेल छह। त ओ हमरा कहैत
अछि यौ बाबा किछु कहू ने हमरा आब हम जबान भ गेलहुँ।
३.७.जगदानन्द झा 'मनु'
३.८.१. अमित मिश्र- गजल २.मुन्नाजी-रुबाइ
१.सन्दीप कुमार साफी २.शिवकुमार झा ‘टिल्लू‘३. श्यामल सुमन ४.जगदीश प्रसाद मण्डल
१
सन्दीप कुमार साफी
अप्पन गाँव
अप्पन गाँव अछि साफ
लग-लगमे कलम गाछ
स्वच्छ हवाक सुगन्ध सुंगहाएत
बाट बटोहीक मन बहलाएत
हँटि-हँटि कऽ पोखरि इनार
स्नान करै छी ओइ किनार
महारपर सुन्दर पाखैर गाछ
कौआ मएना करए किलोल
भोरे देखै छी कौल्ह चलैए
रस-गुड़क सुगन्ध आबैए
हरियर-हरियर गहुमऽ खेत
कालसँ बहैए कमला रेत
गाँवसँ बनल शहर बजार
खूब बनए पापड़ अचार
गामक छी ई रीति-रिवाज
सभक करए आदर सत्कार
२
शिवकुमार झा ‘टिल्लू‘
कविता-
एकटा छली आरती
एकटा छली आरती
भदेसक भारती
आगाँ ‘राय’ की लागल
ओ सभ बूझि गेलथि
किछु आर
विद्रूप वा होशियार
छलनि खड़ाम देबाक
आश
भदेसक कांता
महा भदेसमे छथि-
हुनका पड़ाइन लागि
गेल छन्हि
आन किएक जाएत
केना पड़ाएत
किन्नौं नै होमए
देलक
मुक्तक काव्याक आश
पूर
केओ नै गेल भागलपुर
आरती रूसि गेली
क्षणिक नै
अन्तर्आत्मासँ
हुसि गेली
मुँहजोड़ भाषामे
जे राखत आत्मासँ
विदेह-तनुजासँ सिनेह
आत्मासँ गेह
सबहक हएत वएह दशा
भाेगए पड़तनि
उत्तराधिकारीकेँ क्लेश
सभ दिनक लेल बिला
देतनि
जहानसँ भगा देतनि
मात्र हमहीं टा नाचब
हमहीं देखब
के सूतल के जागल
के नै बूझय
जे करत प्रयास
ओ भऽ जाएत अभागल
ऐ माटिसँ उपटल
वैदेहीकेँ
आन भूमिक लोक
माटिमे मिला देलनि
मुदा अपन आरतीकेँ
अपने साङह खसा
देलकनि.....।
३
श्यामल सुमन
१
मैथिल मिथिला नाज हमर
भेद भाव बिनु सबकय जोड़ू, बाँचत तखन समाज हमर
सबकियो मिलिकय बाजू सगरे, चाही मिथिला
राज हमर
राज बहुत पहिने सँ मिथिला, छिना गेल अछि
साजिश मे
जाबत ओ सम्मान भेटत नहि, बाँचत कोना लाज
हमर
विविध विषय के ज्ञानी मैथिल, दुनिया मे
भेटत सगरे
मुँह बन्द राखब कहिया तक, के
सुनतय आवाज हमर
आजादी के बादो सब दिन, भेल उपेक्षा
सरकारी
बहल विकासक गंगा प्रायः, बाँचल खाली काज
हमर
सज्जनता श्रृंगार सुमन छी, दिल्ली बुझलक
कमजोरी
जागू मिथिलावासी आबो, मैथिल मिथिला नाज
हमर
२
हँसी मुँह पर साटय छी
धीया-पुता दुख नहि बूझय, हँसी मुँह पर
साटय छी
खरचा एक पुराबय खातिर, दोसर खरचा काटय
छी
आजुक युग मे कम्प्यूटर बिनु, नवतुरिया
सब की पढ़तय
मुदा माँग पर, टाका नहि तेँ, बच्चा सब केँ डाँटय छी
बनल बसूला सम्बन्धी-जन, बाजय मीठगर बोली
यौ
दुख मे रहितहुँ पर विवेक सँ, सभहक
हिस्सा बाँटय छी
अपन हृदय मे भाव जेहेन छल, बुझलहुँ छै
तेहने दुनिया
चीन्हा गेल अछि अप्पन-अदना, हुनके सबकेँ
छाँटय छी
सुमन संगिनी जीवन भेटल, रूप मनोहर काया
संग
दुख भीजल तऽ चोकर आमक, रूप देखिकय फाटय
छी
३
ई खटहा अंगूर छी
किछु कुबेर के चक्रव्यूह मे, कानूनन मजबूर छी
रही कृषक आ खेत छिनाओल, तहिये सँ मजदूर
छी
छलय घर मे जमघट हरदम, हित नाता सम्बन्धी
के
कतऽ अबय छथि आब एखन ओ, प्रायः सब सँ दूर
छी
काज करय छी राति दिना हम, तैयो मोन उदास
हमर
साहस दैत बुझाओल कनिया, अहाँ हमर
सिन्दूर छी
एहेन व्यवस्था हो परिवर्तित, लोकक सँग
आवाज दियौ
एखनहुँ आगि बचल अछि भीतर, झाँपल तोपल
घूर छी
बलिदानी संकल्प सुमन के, कहुना दुनिया
बाँचि सकय
नहि बाजब नढ़िया केर भाषा, ई खटहा अंगूर
छी
४
संस्कार सन्तान मे
स्वजन मृत्यु पर कानैत बाजैत, गेल छलहुँ
शमशान मे
आनल जायब एहिना हमहुँ, आयल अचानक ध्यान
मे
बाजी सब कियो राम नाम संग, सभहक गाति
एहने होइछै
बाहर आबिते फूसि फटक्कर, केलहुँ शुरू
दलान मे
बात सदरिखन की लऽ एलहुँ, की लऽ जायब
दुनिया सँ
मुदा सहोदर सँ झगड़ा नित, होई छै नहि
अन्जान मे
भाग्य लिखल जे हेबे करतय, काज करय के
काज की
चिकरि चिकरि केँ बाजू एतबे, दास मलूक
सम्मान मे
सुमन मनुक्खक जीवन भेटल, घटना छी अनमोल
यौ
सफल तखन पल पल जीवन के, संस्कार सन्तान
मे
५
कियो हमर संगी बनू
चलू ताकय छी मिलि भगवान, कियो हमर संगी बनू।
कतऽ भेटला छी फुसिये हरान, कियो हमर
संगी बनू।।
कियो कहय कण-कण मे, कियो कहय मन मे।
कियो कहय गंगा मे, कियो पवन मे।
नहि भेटल कुनु पहचान, कियो हमर संगी
बनू।।
सुमरय छी दुख मे, बिसरय छी सुख मे।
पूजा के भाव कतय, नामे टा मुख मे।
छथि भक्तो बहुत अनजान, कियो हमर संगी
बनू।।
करू लोक सेवा, तखन भेटत मेवा।
लोक-हित काज करू, लोके छी देवा।
सुमन कत्तेक बनब नादान, कियो हमर संगी
बनू।।
६
रहबय कोहबर कत्तेक दिन
रहबय कोहबर कत्तेक दिन
बनिकय अजगर कत्तेक दिन
शादी तऽ एक संस्कार छी
जीबय असगर कत्तेक दिन
बिना काज के मान घटत नित
फूसिये दीदगर कत्तेक दिन
बैसल देहक काज कोन छै
एहने मोटगर कत्तेक दिन
आबहुँ जागू सुमन आलसी
खेबय नोनगर कत्तेक दिन
४
जगदीश प्रसाद मण्डल
गीत-
हाल-बेहाल देखि राग-रागनिक
कुशल फूल सजबैत रहै छै।
रंग चढ़ि करिया कारी
भ्रमर रस पान करैत रहै छै।
भ्रमर........।
हाल-बेहाल देखि राग-रागनिक
कुशल फूल सजबैत रहै छै।
डगडगाएल हाल पाबि उस्सरक
फूल उस्सर सिरजैत रहै छै।
घूरि ताकि नै भरमए भौरा
दिवा रसराज कहबैत रहै छै।
दिवा रस........।
हाल-बेहाल देखि राग-रागनिक
कुशल फूल सजबैत रहै छै।
आसनसँ सिंघासन बनि-बनि
चटाइ नाओं धड़बैत रहै छै
पूजा आसन बनि सदए
लोक सुर सजबैत रहै छै।
लोक सुर........।
हाल-बेहाल देखि राग-रागनिक
कुशल फूल सजबैत रहै छै।
उठि अंजलि चढ़ि मंजलि
मंगल गीत गबैत रहै छै।
मंगल गीत........।
हाल-बेहाल देखि राग-रागनिक
कुशल फूल सजबैत रहै छै।
•
गीत-
शीला शील देखि-देखि
हंस कानि कहैत एलैए।
एक शील श्रंृग चढ़ि-चढ़ि
दोसर श्रंृगार बनैत एलैए।
दोसर........।
शीला शील देखि-देखि
हंस कानि कहैत एलैए।
चढ़ि श्रंृग गढ़ि धनुखी
अकास िसर बेधैत एलैए।
हंसराज राजहंस रमकि
सिर श्रंृगार सजैत एलैए।
सिर........।
शीला शील देखि-देखि
हंस कानि कहैत एलैए।
शील सुशील सुर बदलि
तिरछित-मिरछित देखैत एलैए।
चिड़चिड़ाइत चिड़ै बूझि सुनि
सुशील-कुश्ाील बनैत एलैए।
सुशील........।
शीला शील देखि-देखि
हंस कानि कहैत एलैए।
पगलखना
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
पगला पागल पकड़ि
पगलखाना बनबैत रहै छै।
लटखेना दोकान जहिना
मिरचाइ-मिसरी संग रहै छै।
संसारक झखुराएल वन तहिना
पगलपाना गाछ पनपैत रहै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
कियो पगलाएल खेत कीनैले
तँ कियो पगलाएल चुमै खेतले।
कियो पगलाएल डाक-डाकनि
तँ कियो पगलाइत अगवास ले।
रहितो सबहक एक मंशा
बाट-घाट बौराइत चलै छै।
सभकेँ सभ पागल कहि
नाच पगलपनी नचैत रहै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
कियो पगलाएल सुख-शान्ति ले
कियो मधुशाला बौराएल रहै छै।
तेज सवारी पकड़ि चढ़ि
बैलेंस जिनगी मिलबैत चलै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
लपकि-झपकि मासूम मौसममे
झाखुर वन बनबैत चलै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै छै।
एक-भग्गू लूरि-बुधि संग
एकबट्टू बाट बना चलै छै।
सुखाएल हाड़ स्वान जहिना
अपने रस पीबैत जीबै छै।
जहिये जनमल मानव धरती
संग स्वान अबैत रहल छै।
कटने-चटने सेर बरोबरि
संग मिल संग नचैत रहै छै।
पागल ऐ संसारमे
पगलपनी खेल चलैत रहै।
~
१.डॉ॰ शशिधर कुमर “विदेह”२.रामविलास साहु
१
१
विरह गीत
किए भेलियै,
पिया ! अहाँ
एहेन कठोर ।
स्नेह सलिल केर बदला मे, देल किए नोर ।।
आयब शिघ्रहि, पिया जाइत कहलहुँ अहाँ ।
मुदा जानि ने, कतऽ जाय
बैसलहुँ अहाँ ।
चान एकसरि
अछि बैसल
अहाँ बिनु
चकोर ।
स्नेह सलिल केर बदला मे, देल किए नोर ।।
दिन बीतल अनेक, मास बीतल कतेक ।
बीतल सरस बसन्त, आयल साओन केर मेघ ।
मेघ रहितहुँ
ने पिया आइ
नचइछ मन
मोर ।
स्नेह सलिल केर बदला मे, देल किए नोर ।।
किए अएलाह ने पिया, मोन कङ्गना पुछय ।
बन्न पिञ्जरा सनि, जेना ई अङ्गना लगय ।
भेल केहेन
ई राति जकर
अबइछ
ने भोर ।
स्नेह सलिल केर बदला मे, देल किए नोर ।।
भेल आन्हर ई नैन, बाट अहँ केर तकैत ।
उड़ि गेल मोर चैन, याद अहाँ केँ करैत ।
भेल पाथर
जेना, पिया !
बिहुँसय
ने ठोर ।
स्नेह सलिल केर बदला मे, देल किए नोर ।।
की गेलियै बिसरि, अहाँ कोहबर केर राति ।
की यादहु ने अबइछ, ओ पावनि बरिसाति ।
कोना बनलहुँ
पिया अहाँ
एहेन निशोख ।
स्नेह सलिल केर बदला मे, देल किए नोर ।।
२
मिलनोत्सुका गीत
सखी !
कुचरल अछि वायस,
किए अहल भोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर चितचोर ।।
आइ अओथिन्ह जँ पिया, हम रूसि रहबै ।
घोघ तानि, मूँह फेरि, हऽम बैसि रहबै ।
मुदा,
रोकबै कोना सखी !
मोनक हिलोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर
चितचोर ।।
कहुखन एहि चार पर, कहुखन ओहि चार पर ।
कखनहु दुआरि पर, कखनहु ईनार पर ।
किए
कुचरै अछि कौआ,
एना जोर – जोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर
चितचोर ।।
पिया कतबहु मनओथिन्ह, ने हऽम बजबै ।
हास कतबहु हँसओथिन्ह, ने हऽम हँसबै ।
हाल
हम्मर कहत सखी !
नयनक ई नोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर
चितचोर ।।
घोघ उठबैत सखी, लऽग अओताह पिया ।
स्नेह हाथेँ पकड़ि, लगा लेताह हिया ।
नोर
नयनक पोछैत,
चूमि लेताह ओ ठोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर
चितचोर ।।
हम लाजहि ओतहि, गड़ि जयबै सखी ।
हम लाजहि तँ मरि – मरि जयबै सखी ।
कोना पुछबै,
किए भेलाह,
एहेन कठोर ।
आई लगइत अछि अओथिन्ह हमर
चितचोर ।।
३
मिलन गीत
सखी !
की हम कहू,
फुजय लाजेँ ने ठोर
।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
सखी धक् – धक् करैत छल हमर जिया ।
ता बजलाह, सुनू हे ऐ प्राण – प्रिया !
आउ !
पहिरायब हऽम
आई,
अहाँ केँ पटोर ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै
भोर ।।
हाथ धयलन्हि पिया, गेलहुँ हम तँ लजाय ।
पुनः लेलन्हि मोरा, अपन छाती सटाय ।
चूमि
लेलन्हि,
ओ चट दऽ,
हमर
दुहु ठोर ।
हम बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै
भोर ।।
मेरु पर सँ देलन्हि
पिया अम्बर हटाय ।
पुनः लेलन्हि सखी, निज अंक बैसाय ।
सखी !
लाजेँ सिहरि उठल,
हमर पोर – पोर ।
हम
बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर ।।
आँखि
मुनने छलहुँ, जेना छुई – मुई
।
पिया अचकहि मे सखी, फोलि देलन्हि नीबी ।
आ कि,
एतबहि
मे सखी,
मिझा
गेलै ईजोत ।
हम
बुझलियै ने आई, कोना भऽ गेलै भोर
।।
२
रामविलास साहु
कविता-
बाबा बले फौदारी
की केलौं की पेलौं
जेहेन करब तेहेन पएब
बाबाक थैली भरोषे
नै चलत कोनो काज
अपना भरोषे होइ छै काज
जौं बाबा भरोषे
फौजदारी लड़ब
तखन पराजय हएत
जे काज जहिना हेतइ
ओहिना ने करए पड़त
अनका भरोषे नै होइ छै काज
अपन काज जौं अपने करब
तखन प्रगति दिन-राति हएत
स्वावलंबी जाधरि नै बनब
ताधरि परजीवी बनल रहब
की करब सोचि करब
समए संग काज करब
तखन जिनगीक महत रहत
वर्त्तमानमे करब तँ भविष्य बनत
भूत तँ बीत गेल वर्त्तमानपर
भविष्य उज्जवल रहत
संसार काजसँ चलैए
जाधरि अपन काज
अपनासँ नै करब
ताधरि आत्म िनर्भर नै बनब
आत्मनिर्भर भेनाइ
सबहक कर्त्तव्य बनैए
नै तँ एक-दोसराक संग
जिनगीक पिसाइत रहैए
अपन जिनगीक भारसँ
लोक स्वयं दबल रहैए
दोसराक भार केना सहैत रहैए
दबि-दबि जिनगी मरैत रहैए
की कहब कहल नै जाइए
से हाल प्रमात्मा जनै छथि
अपन विकास जौं सभ करत
केकरोपर नै िनर्भर रहत
सभ सुखी, दुखी नै कोइ रहतै।
१.जगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल २.जवाहरलाल कश्यप३.उमेश पासवान
१
जगदीश चन्द्र ठाकुर अनिल
गजल
गाछी लुबधल आम साढू
चलू चलै छी गाम साढू |
हम नहि जायब वरियातीमे
मोने अछि ओ जाम साढू |
लोक बहुत छोट-सन लागल
जकर बड़ीटा नाम साढू |
एकेटा अछि घ’र रावणक
भरि गाँ अछि बदनाम साढू |
हमरा खातिर गाम स्वर्ग थिक
आ घर चारू-धाम साढू |
२
जवाहरलाल कश्यप
हम नहि लिखैत छी कविता
सब स पहिले टुटैत छी हम
खत्म होइत अछि हम्मर इगो
नष्ट होइत अछि हम्मर व्यक्तित्व
तखन बनैत अछि कविता महान
हम नहि लिखैत छी कविता
कविता करैत अछि हम्मर निर्माण
३
उमेश पासवानक दूटा कविता
जगदीश बाबू
हम छी सेवक
मैथिल
जगदीश बाबूक
चेला
नै हमरा लड़ू खियौलनि
नै देलथि मिश्रीक ढेला
तैयाे
हम छी मैथिल
जगदीश बाबूक
चेला
गुरुजी छथिन हमर
बड्ड महान्
साहित्यक छथि पइघ
विद्वान
मधेश मिथिलामे
हिनक अलग पहिचान
जएह बजै छथि
वहए करै छथि
वएह लिखबो करै छथि
तमोरिया लग बेरमा अछि
हिनक गाम
दर्शन करबाक
मोन होइए हमरा बहुत
मुदा छी हम अकेला
तैयो
हम छी मैथिल
जगदीश बाबूक
चेला
गामक जिनगी
मौलाइल गाछक फूल
मिथिलाक बेटी
जीवन-सघर्ष, जीवन-मरण
उत्थान-पतन
पढ़ि कऽ हमर उत्साहसँ
बढ़ल मोन
उठेलौं हमहूँ कलम
लिखै छी कविता
तँए
हम छी सेवक
मैथिल........।
उजरल घर
उजरल घर
तवाहीक मंजर
देखि कऽ हम
वेदनामे डुमल रहै छी
खुला आसमानक निच्चा
जानवरसँ बत्तर
रौद-बसातमे
कष्ट सहि कऽ रहै छी
गरजैत मेघ
घनघोर बादल
पानि-बर्खाक संग बाढ़िमे
दहाइत लहाश
उजरल घर
लोकक चितकार
देखै-सुनै छी
गरीबक जिनगी
निहत्था योद्धा
रेतपर बनल घर जकाँ
अखन बुझै छी
कष्टक मारल
विपत्तिक आगाँ हारल छी
जिऐ छी नै
मरै छी बीचमे
परि कऽ हुकुर-हुकुर करै छी
उजरल घर
तबाहीक मंजर।
१.अयोध्यानाथ चौधरी २.ओमप्रकाश झा
१
अयोध्यानाथ चौधरी
कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही
अपन धरती, अपन आसमान चाही
कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही
आब जागि गेल छी, नहि सूतल छी हम
अन्याय बहुत सहलहुँ ,नहि बुभूm हमरा कम
अहाँक बन्दुक आ गोली के नहि परबाहि
हमरा पीठ पर सहाय छथि राम आ लखन
जिनका संगे मे तीर आ कमान सदिखन
तंै ...कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही
बहुत शोषण कएलहुँ,विचार करु आब
भाइचारा क नाम पर,अहाँ कयलहुँ हलाल
हम स्वंय छी सक्षम,नहि आन चाही
शासक नहि अहाँसन बेइमान चाही
सभ मैथिलक मुँहपर मुस्कान चाही
कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही
हमरे अन्न–धन्न सँ पालित छी अहाँ
हमरे आम–माँछ खा आहलादित छी अहाँ
कृतज्ञता सँ वढिकऽकोनो धर्म नहि होइछ
कृतघ्नता सँ वढिकऽकोनो क्लेश नहि दैछ
हम की कहब,अपने विचार चाही
कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही
बरु सोनाक लंका होवऽअहींके नसीब
हमरा फुस्से मे अपन पहिचान चाही
अहाँक भाग मे रावण छथिहे ओतऽ
हमरा त’ एतऽ अपन राम चाही
कहू अहाँ सँ कथी मे छी हम कम
कोनो किम्मत पर मिथिला ललाम चाही
कृषि योग्य उर्बर भूमि पसरल हमर
हरीतिमाक अनुपम पसार छै एतऽ
सुरभित समीर बहैत अछि सदैब
कल–कल,छल–छल गीत गुनगुनाइत सदिखन
हमरा वागमती,कोशी आ बलान चाही
कोनो किम्मत पर मिथिलाधाम चाही
छठि पावनि मे सजल जल –किछेर केहन दिव्य
दीपावली मे दीपक कतार केहन भव्य
हमरा सूर्य –रश्मि रंजित भोर चाही
राति के नौतैत गोधुलि चाही
कोजागरा क पान आ मखान सन दिव्य
कोनो किम्मत पर मिथिलाधाम चाही
राजधानी त’ बनले छै अदौ सँ एतए
एहि मे मीन–मेष करबाक वात छै कतए
विदेहक नगरी सँ उत्तम स्थान कोन हैत
राम –जानकी क प्रणय कथा ककरा नहि मोन
केओ की वनाओत, इ त वनले छैक
कानो किम्मत पर जनकपुरधाम चाही
ज्ञान –पुञ्जक प्रसार एहीठाम सँ भेल
शंकर–मण्डन आ याज्ञबल्यक धाम थिक ई
गुरु गूड आ चेला चिनी वूझि गुमान करतै छी
ज्ञान क श्रोत विसरि अनजान बनल छी
नैतिकताक कनिञो त’ ध्यान चाही
कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही
सीता, मैत्रेयी आ गार्गीक धाम छी ई
उर्मिला–सन पतिव्रताक ठाम छी ई
हमरे सँ अहाँक पहिचान बनल अइ
एहि वात के सत्त् अहाँके ध्यान चाही
नहि त कहु कतेक आओर वलिदान चाही
कोनो किम्मत पर मिथिला महान चाही.........
२
ओमप्रकाश झा
गजल
कहू की, कियो बूझि नै सकल हमरा
हँसी सभक लागल बहुत ठरल हमरा
कियो पूछलक नै हमर हाल एतय
कपारे तँ भेंटल छलै जरल हमरा
करेजा सँ शोणित बहाबैत रहलौं
विरह-नोर कखनो कहाँ खसल हमरा
तमाशा बनल छी, अपन फूँकि हम घर
जरै मे मजा आबिते रहल हमरा
रहल "ओम" सदिखन सिनेहक पुजारी
इ दुनिया तँ 'काफिर' मुदा कहल हमरा
बहरे-मुतकारिब
फऊलुन (ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ) - प्रत्येक पाँति मे चारि बेर
रवि भूषण पाठक
बामे गाम दहिने गाम
1
बागमती आ करेहक बीच ठाढ़
ई कोन चीजक पहाड़
हयौ कविकुलगुरू
ई अहांक धर्मदण्ड नइ
जे धरती के क्षणेक्षण नापैत हो
ई थिक हम्मर गाम
ताकैत चारूदिस
इतिहासक अखण्ड आवागमनक साक्षी बनि
तौलैत ब्रह्माण्डक पानि
कखनो झुकि जाइत बागमती दिस
कखनो करेह दिस
ले ...ले...तू ले
जेकरा काज हो जलक
ई पानि केवल हाईड्रोजन आ ऑक्सीजनक यौगिके
नइ
मोनक पानि
आत्माक पानि सेहो
केवल मुंहक पानि नइ कालिदास
आत्माक पानि मरै नइ
बस एतबे लेल ठाढ़ ई करियन गाम
ई गाम जानै छैक
पानिक मोल
तीन-चारि सौ फीट नीचा
कअल ईनार
गाम जेकर कुरसी बनल
बाभन,कुरमी,धानुक
गुआर दुसाधक हड्डी सँ
सूरखी चूना बनि
माटि मे मिलैत गेलै
आ पहाड़ बरहैत गेलै
एत्ते ऊंच....
एत्ते ऊंच....
कि नेपाल ,तिब्बत ,चीन मिलिओ के
नइ डूबा पाबैछ करियन गाम
2
धनि जिरात धनि जिरात
के नापै तोहर ऊर्वरता
के जांचै तोहर जोस
बस एक बेर सम्हरि के उपजि जो
खुआ देबै पूरा दुनिया के
एक सांझ सोहारी
तीमन तरकारी
आ बता देबै
झिकुटी क’ मोल
आ बस एके बेर
सम्हरि के फरि जाइ
खुटेरी बाबूक गाछी
कलकतिया मालदह फौजली
आ बीज्जू क’ असंख्य वर्णरस
आ ई गंध फैलैत चलि जाइ
दूर खूब दूर
पूब दिस ...पूब दिस
सहरसा ,पूर्णिया ,कटिहार
आ ओहियो सँ आगू
जत’ सँ बाबा आनै छथिन
लाल-लाल झूमका
.........
ओ गीत
ओ सपना ...आ ओ जिनगी
जुड़ाइत रहै ...जुड़ाइत रहै
3
उदयनाचार्य तऽ नहिये छथिन
मुदा आचार्य लोकनि सँ जक-थक गाम
इसकूल मे परहैत परहाबैत आचार्य
हअर नेने कनहा पर
आडि़ तोड़ैत बालि नोचैत आचार्य
जजाति काटैत गारियो दैत
बँटैया वला अधहा सँ चौथाई बनबैत आचार्य
श्राद्ध मे वियाहक ,वियाह मे श्राद्धक
उल्टा-पुल्टा मंत्र परहैत
भोर पुतौह सांझ भाबौह के
चुट्टी काटैत सोहराबैत आचार्य
कष्ट काटैत जोगबैत बनबैत
बेटा कें परहाबैत पटना दिल्ली
नोकरी करत वियाह करब
तिजौरी के साफ करैत आचार्य
हम हमही बस हमरे टा अछि
देखबैत सुनबैत आजुक आचार्य
केओ एक-दू श्लोक
किताबक नाम एक-दू
प्रसंग सही गलत
दोहराबैत तेहराबैत आचार्य ।
4
चन्दा चूटकी क’ बाउल सीमेंट
चूना सूरखी लेपैत
एकटा गोर दक्क संगमरमरिया मूर्ति आनि
जग जीत लेलकै हम्मर गौंआ
मूरती क’ मुंह,आंखि बंद करैत
बैसल मुद्रा मे
मूरती के शुभ क्षण मे स्थापित करैत
एकदम सक्कत सीमेंट सँ
’ हे आचार्य उठब बैसब नइ’
आ दू कुइंटल लोहा क ग्रिल बान्हि
’हे आचार्य निकलब नइ’
आ मूरती क’ हाथ मे एकटा किताब राखि
’ हे आचार्य दोसर पोथी नइ मांगब ‘
आ मूर्तिस्थापना क बरखी मनबैत
’ हे आचार्य आन दिन यादि नइ करब’
एक लाख ईंटा सँ बाउंडरी बान्हि
’हे आचार्य एमहर ओमहर बौएनए बंद करू’
5
हे महाकवि यात्री
एक दिन हमरो गाम आबू
बैसू एक पहिर
रूकू कनेक काल
बतियाउ राति भरि
वैह बेनीपुर ,बहेड़ी टपैत
बरियाही घाट पार करैत
दू कोसक चौरस हरियरी मे डूबल
मिथिलाक ऐ भूखंड के थाहैत
पहुंचू हमर गाम
जत’ सूतल हजार बरिख सँ एकटा महावृद्ध ।
आबिते बात सुनिते अहांके
बूढ़बाक हजार बरिस पुरान हड्डी मे
फूटि उठतै नवपल्लव
मिथिलाक भूगोल मे फैलल
ओकर छाउर
सांद्रित भ’ धनधान्य सँ भरि जेतै
गामक आम मौह गाब’ लागतै मधुर संगीत
मज्जर टिकुला ऐंठतै कोयली क’ कान
ओहुना विद्यापतिनगर ,चौमथा ,झमोटिया
क’ यात्री
एक कोस पश्चिमे सँ बदलैत बाट
बचैत करियनक झिकुटी सँ
बनाबैत सुगम सुविधासंपन्न यात्रा
मुदा देखिते अहांके बूढ़बा
यादि कर’ लागतै ओ
महायात्रा
आ समाज ,इतिहासक ओ क्षण
धर्मदर्शन मे लपटल ओ कालखंड
यद्यपि अहांक विचार अलग
आ बूढ़बो एकदम अलग
तैयो ई भेंट
सधारण नइ हेतै
सधारण नइ......
6
भगवान जगन्नाथक ऐश्वर्य के ललकारैत ई गाम
डूबि रहल अपन छोटपन मे
संस्कृत बूझबा सूझबा
बाजबा बतियेबाक अहंकार
आ अहंकार क’ कतेको वृत्त
ठोप चंदने तक रूकल
ठमकल
किछु वृत्त एक-दोसर मे घुसियाइत
नोकरी ,कुल ,जमीन ,पैसा आ बुद्धिक वृत्त
आ सब घर मे एकटा
मास्टर हेबाक
दस सँ पांच तक पढ़ेबा
आ नइ पढ़ेबाक ओतबे
पुरस्कार
महीने महीने दरमाहा
उठेबा
आ एकटा लिमिटेड
दुनिया मे रहबाक खतरनाक संस्कार
तहिना पूजापाठ ,गपशप ,दैनंदिनी
नव-नव अहंकार गाम के
घेरि रहल
के कत्त’ कमाए छैक
सरकारी आ बिन सरकारी
एक नम्मर आ दू नम्मर
बाउग कम काटए क’ बेशी हूनर
बैंक मे अस्पताल मे
ठीकेदारी सँ
चोरि छिनरपन
सँ......
गामक अहंकार त’ वैह छैक
बस ओकर हुलिये बदललै
आ वौआ जत’
रहै छें
जे करै छें
बस कमाइत रह
आ अहंकारे संग
बढ़बैत रह
खोपड़ी सँ खपड़ा
एकचरिया
पक्का दूमहला
तीनमहला ,चरिमहला.......
चंदन कुमार झा
सररा, मदनेश्वर स्थान
मधुबनी, बिहार
गजल-१
नैनक बाण चलाके हम्मर अपटी
खेत मे प्राण लेलौँ
झूठहि छल जे प्रेम-पिहानी
से सभटा हम जानि गेलौँ
सप्पत खयने रही अहाँ जे
आयब हम्मर सपना मे
सपना देखब सपने रहल निन्नो
अहाँ दफानि लेलौँ
रहै मोन जे प्रेम-रस सँ
भीजा गढ़ब नूतन जिनगी
हम एहि मे सौरभ मिझरेलौँ
अहाँ नोर सँ सानि देलौँ
मोन छल जे मूक्त गगन मे
उड़ब अहाँ आ' हम संगे
उड़ि गेलौँ कतऽ अहाँ ने
जानि हमरा एहिठाँ छानि गेलौँ
हमरा बिनु जँ जीबि सकी तऽ
जीबू अहाँ सुखक जिनगी
बाट तकिते अहीँ के
"चंदन" काटब जिनगी ठानि लेलौँ
--------वर्ण-२१-----------
गजल-२
उजरल गाछी जँका लगैछै गाम
हमर
चुप्पी सधने किएक कनैछै
गाम हमर
नवकी कनिञा जँका छलैजे गाम
हमर
विधवा नारी बनल कनैछै गाम
हमर
भरले-पुरले हँसै छलैजे गाम
हमर
टूअर टापर जँका फिरैछै गाम
हमर
प्रीतक पाँती गबय छलैजे
गाम हमर
उकटा-पैंची किएक करैछै गाम
हमर
निर्मल-निश्छल बास छलैजे
गाम हमर
"चंदन"
किए डेरौन लगैछै गाम हमर
-----वर्ण-१६-------
गजल-३
करेजकेँ पाथर बना लिअ
पिरीतकेँ आखर मिटा दिअ
सपन जनम भरिकेर देखल
कहूतऽ की नोरहि भसा दिअ
जड़ैत छै जे आगि विरहक
कहैत छी तकरा मिझा दिअ
जनमक संगी बनकि बदला
कहैत छी नाता कटा लिअ
रकटल "चंदन" मोन
बेकल
कियोतऽ प्रीतम के बुझा दिअ
12-1222-122
गजल-४
मिथिला राजक खातिर मैथिल
लड़बे करतै
खूनसँ भिजलै धरती मिथिला बनबे
करतै
निज मातृभूमि उत्थानक हेतु
लड़िते रहतै
मायक लाजक खातिर संतति
मरबे करतै
मिथिला-मैथिल-मैथिलीक
स्वाभिमानक रक्षार्थ
निज प्राणहु के उत्सर्ग
मैथिल करबे करतै
कमला-गंगा-कोशी-गंडकक
सप्पत खा' मैथिल
अलगहि राजक सपना पूरा करबे
करतै
जेतै ने ब्यर्थ बलिदान आब
कोनो बलिदानी के
"चंदन"
ठोस प्रतिकार मैथिल करबे करतै
-------वर्ण-१८-------
मिथिला-मैथिल-मैथिली
अस्मिताक रक्षाक हेतु लड़निहार,समस्त बलिदानी के समर्पित.
गजल-५
कहिये सँ कतिआयल कनै छथि
जानकी
कहिये सँ रिरिआयल फिरै छथि
जानकी
मिथिला सँ बिधुआयल लगै छथि
जानकी
मैथिल सँ खिसिआयल लगै छथि
जानकी
घर-घर सँ बौआयल फिरै छथि
जानकी
घर-घर तऽ छिछिआयल फिरै छथि
जानकी
रामहि सँ डेरायल लगै छथि
जानकी
जिनगी सँ अकछायल लगै छथि
जानकी
अपराध की कयलनि पुछै छथि
जानकी
चुप्पहि जनक
"चंदन" कनै छथि जानकी
2212 + 2212 + 2212 -बहरे-रजज.
गजल-६
किछु बात एहन जे कना गेल
हमरा
जिनगीक नव माने सिखा गेल
हमरा
सपनाक दुनिया छलहुँ झूलैत
झूला
तखनहि उठल बिर्ड़ो जगा गेल
हमरा
पालन अपन पेटक करैए
कुकूरो
आनोक हित जीबू बुझा गेल
हमरा
अप्पन हरख हरखित रहैछै सभ
क्यो
अनके दुखहि कानब बता गेल
हमरा
"चंदन"मनुज
जीवन बितै नहि अकारथ
जिनगीक सभ मकसदि गना गेल
हमरा
2212-2212-2122
गजल-७
नैनक नीर भीजल चीर जमुना
तीर मे
करेजा क्षीर सींचल वीर
जमुना तीर मे
बैसल नीड़ कूक
अधीर जमुना तीर मे
लागल भीड़ मूक बहीर जमुना
तीर मे
आसक सीर सुखै नै नीर जमुना
तीर मे
चासक सीर गरै छै सीर जमुना
तीर मे
देशक वीर भेल फकीर जमुना
तीर मे
नेताक भीड़ गिरैछै खीर
जमुना तीर मे
सनले खून द्रौपदी चीर
जमुना तीर मे
लागल घून काया प्रवीर
जमुना तीर मे
------वर्ण-१६-------
गजल-८
मन वीणा तार झंकार भरल
मैथिल जन के हुंकार प्रबल
बहुत आँखि केर नोर बहल
बहुत जगक दुत्कार सहल
आब उचित उपचार करब
शत्रुक प्रहार जे खून बहल
निज अधिकारक
हेतु लड़ब
सौभाग्य जँ प्राण तियागै
परल
मिथिला-राजक तऽ माँग अटल
"चंदन"
मैथिल लड़िते डटल
------वर्ण-१२--------
हजल
कनिया हम्मर बड़ गुणवन्ती
बुझा गेल हमरा
किएक कुमारहि लोक मरैए जना
गेल हमरा
शांती जहिए घर मे पैसली
तहिए सँ छी अशांत
क्रांति घरमे मचल तेहन जे
मिटा गेल हमरा
सासु लगै छन्हि सौतिन ससुर
लगैन्ह चरबाह
गारि अलौकिक हुनका मुँहक
लजा गेल हमरा
संग गोतनी के लड़थि भैंसुर
के नहि परबाह
आबतऽ देखू दुनू भाइयो बिच
बझा गेल हमरा
रौ दैवा नहि जनलौ किछुओ
फँसलौ ब्याहक फाँस
"चंदन"
रूपक माया फँसरी लटका गेल हमरा
रुबाइ-1
बरू बिनु दबाइ चलि गेलै ओकर जान
श्राद्ध तऽ मुदा करजा लऽ भेलै गौदान
खाय अधहे पेट कटलक जिनगी सकल
मरल तऽ सौजनी मारैत छै सुरकान ।
रूबाइ-2
नोरसँ सिक्त आँचर आब निचोड़ि दिऔ
जँ आँगुर कियो देखबै कर तोड़ि दिऔ
त्यागू भय सीता मैया के सपथ धरू
मिथिला राजक शत्रू मूण्ड मचोड़ि दिऔ ।
रूबाइ-3
टूटल बान्ह बहलै गामक गाम फेर
गेल दहा जिनगी कतेको ठाम फेर
कागतक नाव, सरकारो तत्पर छलै
मुदा, बाढि भासल कतेको जान फेर
।
रुबाइ-4
दू टुक कहलौ दू फाँक भेल संबंध
चुप्पहि जँ रहलौ फोँका गेल संबंध
पस भरल टीसैत पसीझैत घाव सन
सत्यक शूल गाड़ि बहा देल संबंध ।
रुबाइ-5
संध्या-वंदन,काठ सिरिखण्ड घसै
छी
भोर-साँझ आरती घरिघण्ट पिटै छी
भाँग पीबि मस्तक तिरपुण्ड लेपै छी
रुचि-रुचि रोहु मूड़ा मुरिघण्ट चभै छी ।
कता-1
मन वीणा सँ उठि रहल छैक करूण राग
माटि मिथिलाक किएक कऽ रहलै विलाप
सनल किएक शोणित सँ मैथिल भू-भाग
सुनऽ मे नहि किए अबैछ कोकिल-अलाप ?
आकाशवाणीक दरभंगा केन्द्र सँ दिनांक १०-०३-२००४ के तरुण-कुसुम कार्यक्रम मे
प्रसारित एकटा कविताः-
(1) बेटी बन्हलीह परिणय डोर ।।
मुँह पर मूस्की आँखि मे नोर
कन्यागत के लागल बकोर
खेलैत छलीह जे बाबाक कोर
से बन्हलीह आइ परिणय डोर।
छलीह चान से भेलीह चकोर
घर ससुरक हेतैन्हि ईजोर
माय करेजा केलनि कठोर
बाबू आँखि सँ झर-झर नोर,बेटी बन्हलीह परिणय डोर ।।
2.मायक सपथ छी दऽ रहल
मैथिली के खून सँ देखू जनक नगरी रंगल
जानकी अँगना मे देखू रावणो घुमिए रहल।
देखू सियाके रक्त सँ जनक-खेतक रज सनल
घायल मिथिला मैथिली बाट बिचे छथि पड़ल।
माय अप्पन पुत्र सँ आह्वान छथि कइए रहल
उठू जागू वीर मैथिल किए छी अहाँ चुप पड़ल ।
देखू मिथिला राजक सपना शोणितक धारे बहल
आउ मिलि एकरा बचाउ छी मायक सपथ दऽरहल ।
3.घुमि अयलहु कुशेश्वर-स्थान
पग-पग खत्ता पोखरि धार
चर-चाँचर मे नाव सवार
छानि रहल अछि माछ-मखान
घुमि अयलहु कुशेश्वर-स्थान ।
चैतहु मास झल-झल पानि
उबडुब पोखरि भरले मोनि
छोपैछ कृषक गरमा धान
घुमि अयलहु कुशेश्वर-स्थान ।
धप-धप बाउल पुनिमक चान
पुरबाक सिहकी सुधा समान
बुढ़बो मटकय जेना जुआन
घुमि अयलहु कुशेश्वर-स्थान ।
खत्ते मे जनु सड़क नुकायल
टूटल पुलिया बान्हो भासल
खेत बनल अछि सिन्धु समान
घुमि अयलहु कुशेश्वर-स्थान ।
हर-हर-हर सगरो अनघोल
सुनल नचारी बजिते ढो़ल
बमभोला छथि बड़ा महान
घुमि अयलहु कुशेश्वर-स्थान
हाइकु
गद्दह बेर
गिरगिट बाजय
पहिले साँझ।
घुरक धुआँ
धुआयल अकास
मालक थैरि।
बारल साँझ
गोसाउनिक गीत
गमकै धूप।
गोइठा आँच
लहलह लहके
राति अन्हार ।
मरुआ रोटी
गमकैत फोरन
माछक झोर ।
अँगना पिढ़ी
बैसल खेनहार
नेना भुटका ।
निःशब्द राति
प्रियतम संगमे
हँसी-ठिठोली ।
प्रेमहि लीन
गमकैत कामिनी
भोरबा राति ।
जगदानन्द झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीह्टोंल, मधुबनी
गजल- १
छुपि-छुपि क' सदिखन कनै छी हम
घुटि-घुटि क' दिन राति मरै छी हम
लगन एहन है छै छल नै बुझल
विरह के आगि में आब जरै छी हम
छन भरि के दूरी सहलो नै जाइए
छन-छन घुटि-घुटि क' कनै छी हम
सब त बताह कहैत अछि हमरा
हुनक ध्यान में रमल रहै छी हम
जाहि बाट पर चलि प्रियतम गेला
मनु ओ बाट के निहारि तकै छी हम
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१४)
------------------------------------
गजल-२
ज' नाराज छी मानि जाऊ
पिया प्रेम बिधि जानि जाऊ
महिस भेल पारी तरे अछि
घरक खीरसा सानि जाऊ
मरल माछ पौरल दही अछि
हिया हमर
सभ गानि जाऊ
करीया बडद मुइल परसू
किछो नै कनी कानि जाऊ
छिटल रोपनी हेत कोना
घरो घुरि अहाँ जानि जाऊ
(बहरे-मुतकारिब, 122 -122-122)
--------------------------------------------------
गजल-३
हम जन्म कें टुगर छी प्रेमक लेल तरसैत रहलौं
भेटल किरण एक आसक तकरो त' मिझबैत रहलौं
दुख एहि कें केखनो नै की प्रेम किछ नै पएलौं
अफसोस की एहि दुनिआ में हमहुँ जीबैत रहलौं
चमकैत सभ बस्तु कें हम अनजान में सोन बुझलौं
सोना जखन हम पएलौं नै बुझि क' हरबैत रहलौं
किछु नै रहल आब अपने कें बिसरि में लागि गेलौं
लोटा भरल भाँग में सब किछु अपन गमबैत रहलौं
आँखिक बिसरि गेल आसा,अनुराग सबटा बिसरलौं
गेलौं हराएब दुख तन-मन अपन बिसरैत रहलौं
( बहरे मुजस्सम वा मुजास
2212-2122, दु-दु बेर सभ पांति में )
-------------------------------------------
गजल-४
खून सँ भिजलै धरती मिथला बनबे करतै
आब जोड लगाबे कियो झंडा फहरेबे करतै
सुनु बलिदानी सुनु शैनानी आब दिन दूर नै
विश्वक नक्सा में मिथिलाक नाम देखेबे करतै
कतबो चलतै बम निकलै चाहे हमर दम
क्रांति बढल आगु आब जुनि इ रुकबे करतै
बहुत छिनलक सभ नै सहबौ आब ककरो
गर्म सोनित त आब हिलकोर मारबे करतै
एक खुनक बूंद सँ सय-सय रंजू जन्म लेतै
आताताई सँ बदला ओ चूनि-चूनि लेबे करतै
(सरल वर्णिक बहर, वर्ण-१८)
जगदानन्द झा 'मनु'
-----------------------------------------------------
गजल-५
हमर जीवन भरि करेजा तुटिते रहल
सब कियो हमरा सँ आई फुटिते रहल
जेकरा हम अपन तन मन सब सोपलौं
मोन कें ओ हमर सदिखन लुटिते रहल
हमर भागक कनिक लिखलाहा देखियौ
किछ जए लिखलौं छने में मिटिते रहल
पीठ पाँछा आब रेतै गरदैन अछि
प्रेम एक दोसर सँ सबतरि छुटिते रहल
आब बैसल मनु झमारल हारल कनै
जोडलौं कतबो मुदा मन तुटिते रहल
बहरे जदीद -2122-2122-2212
----------
१. अमित मिश्र- गजल २.मुन्नाजी-रुबाइ
१
अमित मिश्र
गजल
भूख जाड़ल लोक कोना हँसि सकैए
नोर कानल लोक कोना हँसि सकैए
देखने जे होइ अर्थी अपन लोकक
दर्द जागल लोक कोना हँसि सकैए
लोभ जागल मोह मोहल लोक हँसतै
साँस काटल लोक कोना हँसि सकैए
जहर बनबै जे कहाँ ओ नोर बहबै
जहर चाटल लोक कोना हँसि सकैए
दर्द दै जे छी कने अपने ल' देखू
चोट लागल लोक कोना हँसि सकैए
राखि हमरो नोर अपना आँखि सोचू
"अमित"
मारल लोक कोना हँसि सकैए
फाइलातुन
2122 तीन बेर सब पाँति मे
बहरे-रमल
===============
गजल
खिड़की सँ सीधे देखै छलौँ हम चान
घन तिमिर मोनक छाँटै छलौँ हम चान
हेतै अपन फेरो भेँट ओतै जा क'
तेँ जागि आशा लगबै छलौँ हम चान
दिन भरि समाजक पहरा कतेको नयन
छवि संग तोहर भटकै छलौँ हम चान
लागै तरेगण लोचन पलक झपकैत
बनि मेघ घोघट लागै छलौँ हम चान
शुभ राति फेरो भेटब अमिय नेहक ल'
सब दिन "अमित" नव आबै छलौँ हम
चान
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मफऊलातु
{दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व}
बहरे-सलीम
२
मुन्नाजी
रुबाइ
1
जड़ब अहाँ जरू दिया बाती जकाँ
गाएब तँ गाउ जेना पराती जकाँ
ताकि कनखिये मोन ने रिझाउ
अहाँ करू जुनि उकपाती जकाँ
2
दिअए सिनेह अपन नेना जानि कए
हमहूँ टुग्गर निमहब अपना मानि कए
जँ छोड़बै अनेरुआ सन हमरा
तँ फफकि मरब एकसर कानि कए
3
टूटल छल नेह आब तँ जोड़ भए गेलै
छलै दुश्मन मुदा चितचोर भए गेलै
जखने लिखलकै पाँतीमे मोनक बात
दूनूक नेहक तँ भंडाफोड़ भए गेलै
4
हिला देलक गगनकेँ मारि तीर
बचा लेलक जे अर्धनग्न चीर
द्रौपदीकेँ बढ़ा वस्त्र केलक रक्षा
संसार भरि बेटल छल वएह वीर
5
उमरे वर्षक संग बढ़ि जुआइ छै
नजरि सोंझा-सोंझी भए क' लजाइ छै
प्रेमक भाव जे नै पढ़ि पाबै अछि
तखन बुझू जे ओ हृदैसँ कसाइ अछि
6
मोन भए उठल दुखित होहकारीसँ
उठि दर्शक भागल मारामरीसँ
प्रायोजक तँ पथने रहल कान अपन
कर्ता देखार भेला जतियारीसँ
7
जखन सभ केओ देखू नेहाल भेलै
तखन बुझू जे गोटी तँ लाल भेलै
दर्शक जखने झूमि उठल मनसँ
तखने तँ संयोजक मालोमाल भेलै
8
ऐ शत्रुकेँ तँ तोड़ै लेल दम चाही
मात्र चित्रगुप्त नै ऐ लेल यम चाही
अहाँसँ किछु नै बिगड़तै एकर
एकरा शोधै लेल तँ खाली हम चाही
9
जतेक चाही जी लिअ सपनामे
राखू यथार्थ संजोगि अपनामे
उधियाउ नै एकपेड़िया बाटपर
नै तँ जाएत नापल जिनगी नपनामे
10
ताकि कनडेड़िए कतए नुकेलहुँ
कहू फेर किए नजरि फेरि लेलहुँ
बिहुँसैत बैसल छी सोंझा अहाँ
आब कहू अहीँ कोना फेर एलहुँ
11
दै छिऐ आशीर्वाद लगा क' फानी
छी जोगारमे ऐखनो जे कते तानी
वाह की जमाना देखाइए हमरा
सत्य छै इएह मानी की नै मानी
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"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
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1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
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मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
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