भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Saturday, July 14, 2012

'विदेह' ११० म अंक १५ जुलाइ २०१२ (वर्ष ५ मास ५५ अंक ११०)- PART I


                     ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' ११० म अंक १५ जुलाइ २०१२ (वर्ष ५ मास ५५ अंक ११०) India Flag Nepal Flag

 


ऐ अंकमे अछि:-

१. संपादकीय संदेश


२. गद्य



  







३. पद्य







३..जगदानन्द झा 'मनु' 




४. मिथिला कला-संगीत १.राजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) . उमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)

 


 

बालानां कृते-अमित मिश्र- बाल गजल

 

भाषापाक रचना-लेखन -[मानक मैथिली], [विदेहक मैथिली-अंग्रेजी आ अंग्रेजी मैथिली कोष (इंटरनेटपर पहिल बेर सर्च-डिक्शनरी) एम.एस. एस.क्यू.एल. सर्वर आधारित -Based on ms-sql server Maithili-English and English-Maithili Dictionary.]




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भारतीय डाक विभाग द्वारा जारी कवि, नाटककार आ धर्मशास्त्री विद्यापतिक स्टाम्प। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।


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गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र, अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'



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ऐ बेर मूल पुरस्कार(२०१२) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन मूल मैथिली पोथी उपयुक्त अछि ?
Thank you for voting!
श्री राजदेव मण्डलक अम्बरा” (कविता-संग्रह) 12.43%  

श्री बेचन ठाकुरक बेटीक अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक) 10.06%  

श्रीमती आशा मिश्रक उचाट” (उपन्यास) 6.51%  

श्रीमती पन्ना झाक अनुभूति” (कथा संग्रह) 4.73%  

श्री उदय नारायण सिंह नचिकेतानो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक) 5.62%  

श्री सुभाष चन्द्र यादवक बनैत बिगड़ैत” (कथा-संग्रह) 5.03%  

श्रीमती वीणा कर्ण- भावनाक अस्थिपंजर (कविता संग्रह) 5.62%  

श्रीमती शेफालिका वर्माक किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा) 8.58%  

श्रीमती विभा रानीक भाग रौ आ बलचन्दा” (दूटा नाटक) 7.1%  

श्री महाप्रकाश-संग समय के (कविता संग्रह) 5.62%  

श्री तारानन्द वियोगी- प्रलय रहस्य (कविता-संग्रह) 5.33%  

श्री महेन्द्र मलंगियाक छुतहा घैल” (नाटक) 8.28%  

श्रीमती नीता झाक देश-काल” (कथा-संग्रह) 5.92%  

श्री सियाराम झा "सरस"क थोड़े आगि थोड़े पानि (गजल संग्रह) 7.4%  

Other: 1.78%  
 


 

ऐ बेर युवा पुरस्कार(२०१२)[साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे कोन कोन लेखक उपयुक्त छथि ?

श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक अर्चिस” (कविता संग्रह) 28.38%  

श्री विनीत उत्पलक हम पुछैत छी” (कविता संग्रह) 7.43%  

श्रीमती कामिनीक समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह) 6.76%  

श्री प्रवीण काश्यपक विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह) 4.73%  

श्री आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"(गजल संग्रह) 18.92%  

श्री अरुणाभ सौरभक एतबे टा नहि” (कविता संग्रह) 6.76%  

श्री दिलीप कुमार झा "लूटन"क जगले रहबै (कविता संग्रह) 8.11%  

श्री आदि यायावरक भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह) 5.41%  

श्री उमेश मण्डलक निश्तुकी” (कविता संग्रह) 12.16%  

Other: 1.35%  


 
   
 

   
 
 

ऐ बेर अनुवाद पुरस्कार (२०१३) [साहित्य अकादेमी, दिल्ली]क लेल अहाँक नजरिमे के उपयुक्त छथि?

Thank you for voting!
श्री नरेश कुमार विकल "ययाति" (मराठी उपन्यास श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर) 32.63%  

श्री महेन्द्र नारायण राम "कार्मेलीन" (कोंकणी उपन्यास श्री दामोदर मावजो) 13.68%  

श्री देवेन्द्र झा "अनुभव"(बांग्ला उपन्यास श्री दिव्येन्दु पालित) 12.63%  

श्रीमती मेनका मल्लिक "देश आ अन्य कविता सभ" (नेपालीक अनुवाद मूल- रेमिका थापा) 14.74%  

श्री कृष्ण कुमार कश्यप आ श्रीमती शशिबाला- मैथिली गीतगोविन्द ( जयदेव संस्कृत) 13.68%  

श्री रामनारायण सिंह "मलाहिन" (श्री तकषी शिवशंकर पिल्लैक मलयाली उपन्यास) 11.58%  

Other: 1.05%  


 
   
 



फेलो पुरस्कार-समग्र योगदान २०१२-१३ : समानान्तर साहित्य अकादेमी, दिल्ली

Thank you for voting!
श्री राजनन्दन लाल दास 53.85%  

श्री डॉ. अमरेन्द्र 25.64%  

श्री चन्द्रभानु सिंह 19.23%  

Other: 1.28%  

 
   
 

 

1.संपादकीय

भारतीय छन्द, अलंकार आ रस सिद्धान्त:
छन्दकेँ किछु गोटे अज्ञानतावश रस आ अलंकारसँ अलग कऽ कए देखै छथि। जँ कोनो वीभत्स दृश्यक वर्णन कवि करत तँ की ओकरा वीभत्स रस अनबा लेल परिश्रम करए पड़तै आ की ऐ लेल ओकरा गएर छन्दोबद्ध रचना रचऽ पड़तै! की शब्दालंकार आ अर्थालंकार लेल कविकेँ गएर छन्दोबद्ध रचना करऽ पड़तै? की बिनु विस्तृत भाषायी शब्दावलीक शब्दालंकार वा अर्थालंकार उत्पन्न भऽ सकैए? की गजल, दोहा, रोला, कुण्डलिया बिनु व्याकरणक सम्भव छै? आ की छन्द आ बहरमे रहने रस आ अलंकारसँ कोनो रचना विहीन भऽ जाइ छै आ गएर छन्दोबद्ध रचना अलंकार आ रससँ स्वतः युक्त भऽ जाइ छै? की अभ्यासक महत्व नै छै आ अभ्यास आ मेहनति केनिहारमे प्रतिभा नै होइ छै? एकटा वाद्ययंत्र वादकसँ कियो पुछलन्हि जे ओ किए भोर साँझ अभ्यास करै छथि तँ हुनकर उत्तर रहन्हि- ऐ दुआरे हम भोरमे अभ्यास करै छी जे साँझमे गति ने कम भऽ जाए आ साँझमे ऐ दुआरे अभ्यास करै छी जे भोरमे ने गति कम भऽ जाए। मुदा संगमे ईहो सत्य अछि जे मात्र रस, अलंकार आ छन्दक आ अभ्यासे टा सँ कोनो रचना उत्कृष्ट नै भऽ जाएत, आ से रचनाकारक सामर्थ्यपर निर्भर करत, मुदा रचनाक उत्कृष्ट हेबाक प्रतिशतता बढ़ि जाएत कारण रस, अलंकार आ छन्दक अभ्यास सामर्थ्यवान आ प्रतिभाशाली बेसी नीक जेकाँ करैए, आ ओ जँ बे-बहर आजाद गजल वा अकविता लिखत तँ तकर उत्कृष्ट हेबाक सम्भावना सेहो बढ़ि जाएत। ओना मैथिलीक भिखारी ठाकुर रामप्रवेश मण्डल झारुदार सन प्रतिभाशालीकेँ रस, अलंकार आ छन्दक नैसर्गिक वरदान छन्हि से फराक गप। हुनकर समाज आ प्रकृतिसँ जुड़ल भावना अतुलनीय अछि आ तेँ ओ आड़िपर चलितो भावनामे बहि जाइ छथि। मुदा किछु सभ सुविधा सम्पन्न लोक बहर आ छन्दक अभ्यास ऐ लेल नै करै छथि कारण हुनका भावना बेशी अबै छन्हि, दोकानक सभसँ सस्त वौस्त हुनका लेला भावना बनि जाइए। आ जँ कविमे एतेक भावना छन्हि तँ मैथिली साहित्य जातीय प्रतिक्रियावादसँ भरल किए अछि?
जँ रस, अलंकार आ छन्दसँ किनको दिक्कत छन्हि तँ अमित मिश्र आ चन्दन झा सन युवाक बाल गजल पढ़थु, आ बिसरि जाथु जे ओ बहरयुक्त छै। आ तखन ओकर तुलना सियाराम झा सरस आ जीवकान्तक बाल कवितासँ करथु। अमित मिश्र आ चन्दन झा क बाल गजल बड्ड आगाँ अछि, ई दुनू गोटे ई उत्कृष्ट रचना सभ छन्द आ बहरमे केने छथि आ ओ सभ रचना स्वतः उपयुक्त रस आ अलंकारमे हिनका सभक सामर्थ्यवान प्रतिभाक बदौलति भेल अछि, आ जँ ई संयोग अछि तँ भयंकर संयोग अछि। आ हम मैथिली बाल साहित्यक पद्य अही दिशामे आगाँ बढ़ैत देखऽ चाहब।
शब्दोचारण आ कला निर्माणक बाद बोध्य बौस्तुक उत्पत्ति होइ छै। शब्द आ ध्वनि, रूप, रस, राग, छन्द, आ अलंकारसँ ओकर औचित्य सिद्ध होइत छै।
एकटा उदाहरणसँ रस अलंकारक विवेचन एतए कएल जा रहल अछि।
अलंकार सिद्धान्तक हिसाबसँ तोहर ठोर कविताक पाठ: भामह अलंकारकेँ समासोक्ति कहै छथि जे आनन्दक कारण बनैए। दण्डी आ उद्भट सेहो अलंकारक सिद्धान्तकेँ आगाँ बढ़बै छथि। अलंकारक मूल रूपसँ दू प्रकार अछि, शब्द आ अर्थ आधारित आ आगाँ सादृश्य-विरोध, तर्कन्याय, लोकन्याय, काव्यन्याय आ गूढ़ार्थ प्रतीति आधारपर। मम्मट ६१ प्रकारक अलंकारकेँ ७ भागमे बाँटै छथि, उपमा माने उदाहरण, रूपक माने कहबी, अप्रस्तुत माने अप्रत्यक्ष प्रशंसा, दीपक माने विभाजित अलंकरण, व्यतिरेक माने असमानता प्रदर्शन, विरोध आ समुच्चय माने संगबे। बातक चून लगाएब अप्रस्तुत, कऽथक सन लाल बुन्न कपोल, पानक ठोर आ सुन्नरिक ठोर, भोरक लाली सुन्नरिक ठोर सन, कुसियारक पाकल पोर सन सुन्नरिक ठोर ई सभ उपमा कवि द्वारा प्रयुक्त भेल अछि। मुदा कतऽ छह प्रेमक पुंगी हूक? मे सादृश्य-विरोध अछि। अहाँ बिनु व्याकुल वाटक माँझ मे रूपक प्रयुक्त भेल अछि। काव्यक भारतीय विचार: मोक्षक लेल कलाक अवधारणा, जेना नटराजक मुद्रा देखू। सृजन आ नाश दुनूक लय देखा पड़त। स्थायी भावक गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनब- आ ऐ सन कतेक रसक सीता राम अनुभव केलन्हि (देखू वाल्मीकि रामायण)। कृष्ण भारतीय कर्मवादक शिक्षक छथि तँ संगमे रसिक सेहो। कलाक स्वाद लेल रस सिद्धांतक आवश्यकता भेल आ भरत नाट्यशास्त्र लिखलन्हि। अभिनवगुप्त आनन्दवर्धनक ध्यन्यालोकपर भाष्य लिखलन्हि। भामह ६अम शताब्दी, दण्डी सातम शताब्दी आ रुद्रट ९अम शताब्दी एकरा आगाँ बढ़ेलन्हि। रस सिद्धान्तक हिसाबसँ तोहर ठोर कविताक पाठ: रस सिद्धान्त:भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल? नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण (विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी।भट्ट लोलट:- स्थायीभाव कारण-परिणाम द्वारा गाढ़ भऽ रस बनैत अछि। अभिनेता-अभिनेत्री अनुसन्धान द्वारा आ कल्पना द्वारा रसक अनुभव करैत छथि। लोलट कविकेँ आ संगमे श्रोता-दर्शककेँ महत्व नै दै छथि। शौनक:- शौनक रसानुभूति लेल दर्शकक प्रदर्शनमे पैसि कऽ रस लेब आवश्यक बुझै छथि, घोड़ाक चित्रकेँ घोड़ा सन बूझि रस लेबा सन। भट्टनायक कहै छथि जे रसक प्रभाव दर्शकपर होइत अछि। कविक भाषाकेँ ओ भिन्न मानैत छथि। रससँ श्रोता-दर्शकक आत्मा, परमात्मासँ मेल करैए। रसक आनन्द अछि स्वरूपानन्द। आ ऐसँ होइत अछि आत्म-साक्षात्कार। रस सिद्धान्त श्रोता-दर्शक-पाठक पर आधारित अछि। ई श्रोता-दर्शक-पाठकपर जोर दैत अछि। बार्थेज संरचनावाद-उत्तर-संरचनावादक सन्दर्भमे लेखकक उद्देश्यसँ पाठकक मुक्तिक लेल लेखकक मृत्युकेँ आवश्यक मानै छथि- लेखकक मृत्यु माने लेखक रचनासँ अलग अछि आ पाठक अपना लेल अर्थ तकैत अछि। लगौलह बातक पाथर चून ।सजौलह कऽथ कपोलक खून । विभाव अछि आ ऐ कारणसँ देखि कऽ लहरल हमर करेज अनुभाव माने परिणाम बहार होइत अछि। स्फोट सिद्धांत: भर्तृहरीक वाक्यपदीय कहैत अछि जे शब्द आकि वाक्यक अर्थ स्फोट द्वारा संवाहित अछि। वर्ण स्फोटसँ वर्ण, पद स्फोटसँ शब्द आ वाक्य स्फोटसँ वाक्यक निर्माण होइत अछि। कोनो ज्ञान बिनु शब्दक सम्बन्धक सम्भव नै अछि। ई भारतीय दर्शनक ज्ञान सिद्धान्तक एकटा भाग बनि गेल। अर्थक संप्रेषण अक्षर, शब्द आ वाक्यक उत्पत्ति बिन सम्भव अछि। स्फोट अछि शब्दब्रह्म आ से अछि सृजनक मूल कारण। अक्षर, शब्द आ वाक्य संग-संग नै रहैए। बाजल शब्दक फराक अक्षर अपनामे शब्दक अर्थ नै अछि, शब्द पूर्ण होएबा धरि एकर उत्पत्ति आ विनाश होइत रहै छै। स्फोटमे अर्थक संप्रेषण होइत अछि मुदा तखनो स्फोटमे प्राप्ति समए वा संचारक कालमे अक्षर, शब्द वा वाक्यक अस्तित्व नै भेल रहै छै। शब्दक पूर्णता धरि एक अक्षर आर नीक जकाँ क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए आ वाक्य पूर्ण हेबा धरि शब्द क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए।सांख्य, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आ वेदान्त ई सभ दर्शन स्फोटकेँ नै मानैत अछि। ऐ सभ दर्शनक मानब अछि जे अक्षर आ ओकर ध्वनि अर्थकेँ नीक जेकाँ पूर्ण करैत अछि। फ्रांसक जैक्स डेरीडाक विखण्डन आ पसरबाक सिद्धान्त स्फोट सिद्धान्तक लग अछि। स्फोट सिद्धांतक आधारपर तोहर ठोर कविताक पाठ: आब उदयनक करियनक धरतीपर रहबाक अछैतो न्याय सिद्धान्तक स्फोट सिद्धान्तकेँ नै मानब कविक कविताकेँ नै अरघै छन्हि। मने मे रहल मनक सब बात  कहि ओ अलभ्य चित चोर सँ सुन्नरिक ठोरक तुलना कऽ दै छथि।
उदयनक गामक कवि बूच कहै छथि भऽ रहल वर्ण - वर्ण निःशेष, शब्द सँ प्रगटल नहि उद्य़ेश्य; एतए शब्दसँ नै मुदा स्फोटसँ अर्थक संप्रेषण कवि द्वारा तोहर ठोर आ ऐ संग्रहक आन कविता सभमे जाइ तरहेँ भेल अछि, से संसारक सभसँ लयात्मक आ मधुर भाषा मैथिली मे (यहूदी मेनुहिनक शब्दमे) विद्यापतिक बादक सभसँ लयात्मक कविक रूपमे बूचजी केँ प्रस्तुत करैत अछि आ मैथिली कविताकेँ ऐ रूपमे फेरसँ परिभाषित करैत अछि।
तोहर ठोर कविताक सामान्य पाठ: पानक ठोर आ सुन्नरिक ठोर। सुन्नरि द्वारा बातक चून लगाएब आ कऽथक सन लाल बुन्न कपोल सजाएब। मुदा प्रेमक पुंगी कतए? भोरक लाली सुन्नरिक ठोर सन, बिनु सुन्नरि व्याकुल  साँझ जेकाँ। बधिक जे बनत सुन्नरिक वर तँ हम बनब विखण्डित राहु। स्वर्गोमे सुधा कम्मे अछि, तहिना सुन्नरिक ठोर सेहो कतऽ पाबी। सकरी मिल महान बनत जे हम विश्वकर्मासँ विज्ञान सीखब। आ ओइ मिलसँ बहार होएत माधुर्य। कुसियारक पाकल पोर सन सुन्नरिक ठोर अछि। पुनर्जन्ममे सेहो धान आ चिष्टान्न बनि सुन्नरि हम अहाँक लग आएब। मुदबा एतबा बादो शब्दसँ उद्देश्य कहाँ प्रगट भेल।
साहित्यमे लोक-तत्व: गाथा/ नृत्य/ नाटक

लोकगाथा/ नृत्य/ संगीत आदिक ऐतिहासिक वर्णन
मोहनजोदड़ो सभ्यतासँ प्राप्त कांस्य प्रतिमा नृत्यक मुद्राक संकेत दैत अछि, वर्तमान कथक नृत्यक ठाठ मुद्रा सदृश, दहिन हाथ ४५ डिग्रीक कोण बनेने आ वाम हाथ वाम छाबापर, संगहि वाम पएर किछु मोड़ने। ऋगवेदक शांखायन ब्राह्मणमे गीत, वाद्य आ नृत्य तीनूक संगे-संग प्रयोगक वर्णन अछि, ऐतरेय ब्राह्मणमे ऐ तीनूक गणना दैवी शिल्पमे अछि। ऋगवेद १०.७६.६ मे उषाक स्वर्णिम आभा कविकेँ सुसज्जित ऋषिक स्मरण करबैत छन्हि। ऋगवेदमे लोक नृत्यक (प्रान्चो अगाम नृतये) सेहो उल्लेख अछि। महाव्रत नाम्ना सोमयागमे दासी सभक (३-६ दासीक) सामूहिक नृत्यक वर्णन अछि। शांखायन १.११.५ मे वर्णन अछि जे विवाहमे ४-८ सुहागिनकेँ सुरा पियाओल जाइत छ्ल आ चतुर्वार नृत्य लेल प्रेरित कएल जाइत छल। वैदिक साहित्यमे विवाह विधिमे पत्नीक गायनक उल्लेख अछि। सीमन्तोन्नयन विधिमे पति वीणावादकसँ सोमदेवक वादयुक्त गान करबाक अनुरोध करैत छथि। अथर्ववेदमे वसा नाम्ना देवताक नृत्य ऋक्, साम आ गाथासँ सम्बन्धित होएबाक गप आएल अछि, सोमपानयुक्त ऐ नृत्यमे गन्धर्व सेहो होइत छलाह, से वर्णित अछि। अथर्ववेद १२.१.४१ मे गीत, वादन आ नृत्यक सामूहिक ध्वनिक वर्णन अछि। वैदिक कालमे साम संगीतक अलाबे गाथा आ नाराशंसी नाम्ना लौकिक गाथा-संगीतक सेहो प्रचलन छल।

लोकगाथाक तत्व: भाषाक स्वरूप मौखिक रहबाक कारणसँ गतिशील अछि। काल निर्धारण सेहो अनुमानपर आधारित होइत अछि।

-गाथा मेला, हाट बजार, विशिष्ट लोकक घर, सार्वजनिक स्थलपर होइत अछि - से जै जातिक लोकदेवता रहैत छथि तकर अतिरिक्त दोसरो जातिक श्रोता रहैत छथि।
 सर्जक आ श्रोताक प्रत्यक्ष संबंध रहैत अछि, श्रवण तत्वक कारण कथाक अनायास अलंकरण भेटैत अछि, मुदा सभटा साहित्यिक लक्षण जेना सर्ग, छन्दबद्ध, नाट्य-संधि आ वस्तु निर्देशक अभाव रहैत अछि। वस्तु संगठन सुगठित नहि रहैत अछि। गारिक प्रयोग आ मद्यपानक यत्र-तत्र वर्णन रहैत अछि।
ग्रामीण व्यवस्थामे चोरक स्थान आ ओकर वर्णन, स्थानीय देवी-देवताक चरचा आ जातीय अस्मिताक प्रयोग होइत अछि। कथा-गायक आशु कवि होइत छथि- एकटा ढ़ाँचापर अपन हिसाबसँ ओ हेर-फेर कऽ गबैत छथि प्रारम्भमे ईश्वर, वन्दना आ बीच-बीचमे ईश्वरसँ क्षमायाचना, ई सभ गायन क्षमता स्थिर करबाक उद्देश्यसँ कएल जाइत अछि।
घण्टासँ ऊपर गायनक बीचमे हुक्का-चिलम, मद्यपान, परिवेशक वर्णन होइत अछि गायनमे। लोरिक मनुआर श्रोताक सोझाँ  कएल जाइत अछि मुदा सल्हेसक कथा आराध्य देवक समक्ष।
दैवी शक्ति द्वारा युद्धमे नायकक सहायता होइत अछि।
नायक सेहो गारिक प्रयोग करैत अछि।
महाकाव्यक पात्रक नाम आ आन तत्वक ग्रहण जेना महाभारतक जुआ आदि प्रयोगमे आनल जाइत अछि।


निष्कर्ष: सभ साहित्यिक विधा  दू प्रकारक होइत अछि। लोकधर्मी आ नाट्यधर्मी, लोकधर्मी भेल ग्राम्य आ नाट्यधर्मी भेल शास्त्रीय उक्ति। ग्राम्य माने भेल कृत्रिमताक अवहेलना मुदा अज्ञानतावश किछु गोटे एकरा गाममे होइबला नाटक बुझै छथि। लोकधर्मीमे स्वभावक अभिनयमे प्रधानता रहैत अछि, लोकक क्रियाक प्रधानता रहैत अछि, सरल आंगिक प्रदर्शन होइत अछि, आ ऐ मे पात्रक से ओ स्त्री हुअए वा पुरुष, तकर संख्या बड्ड बेसी रहैत अछि। नाट्यधर्मीमे वाणी मोने-मोन, संकेतसँ, आकाशवाणी इत्यादि; नृत्यक समावेश, वाक्यमे विलक्षणता, रागबला संगीत, आ साधारण पात्रक अलाबे दिव्य पात्र सेहो रहै छथि। कोनो निर्जीव/ वा जन्तु सेहो संवाद करऽ लगैए, एक पात्रक डबल-ट्रिपल रोल, सुख दुखक आवेग संगीतक माध्यमसँ बढ़ाओल जाइत अछि।
वैदिक आख्यान, जातक कथा, ऐशप फेबल्स, पंचतंत्र आ हितोपदेश आ संग-संग चलैत रहल लोकगाथा सभ। सभ ठाम अभिजात्य वर्गक कथाक संग लोकगाथा रहिते अछि।

विदेह भाषा सम्मान २०१२-१३ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कार रूपेँ प्रसिद्ध)
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बाल साहित्य लेल विदेह सम्मान २०१२- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जी केँ हुनकर बाल-प्रेरक विहनि कथा संग्रह "तरेगन" लेल ई पुरस्कार देल जा रहल अछि। ई पुरस्कार विदेह नाट्य उत्सव २०१३ क समारोहमे देल जाएत।तरेगनकेँ सभसँ बेशी वोट भेटलै। तीनटा पोथी १.जगदीश प्रसाद मण्डलक तरेगन, २. जीवकान्तकखिखिरक बीअरिआ ३.मुरलीधर झा कपिलपिलहा गाछकेँ विदेह www.videha.co.in  पर भऽ रहल ऑनलाइन वोटिंगमे राखल गेल छल। विशेषज्ञक मतानुसारपिलपिलहा गाछमे बहुत रास कथा अछि जकरा बाल कथा नै कहल जा सकैए, तइ दुआरे ऐ पोथीकेँ लिस्टसँ हटा देल गेल कारण ई पुरस्कार बाल साहित्य लेल अछि, ओनाहितो ऐ पोथीकेँ सभसँ कम वोट भेटल रहै। ऐ पोथी सभक अतिरिक्त आन पोथी सभपर विचार नै कएल गेल कारण ओ सभ पोथीक आकारक नै वरन् बुकलेटक आकारक छल।

साहित्य अकादेमीक टैगोर लिटरेचर अवार्ड २०११ मैथिली लेल श्री जगदीश प्रसाद मण्डल केँ हुनकर लघुकथा संग्रह "गामक जिनगी" लेल देल गेल। कार्यक्रम कोच्चिमे १२ जून २०१२केँ भेल।
मैथिली लेल विवादक अन्तक कोनो सम्भावना नै देखबामे आबि रहल अछि। ऐ पुरस्कारक ग्राउण्ड लिस्ट बनेबा लेल एकटा तथाकथित साहित्यकारकेँ चुनल गेल जे प्राप्त सूचनाक अनुसार जातिक आ संकीर्णताक आधारपर पोथीक नाम देलन्हि जाइमे नहिये नचिकेताक पोथी रहए, नहिये सुभाष चन्द्र यादवक आ नहिये जगदीश प्रसाद मण्डलक; संगहि ई ग्राउण्डलिस्ट बनौनिहार तथाकथित साहित्यकार विदेहक सहायक सम्पादक मुन्नाजीकेँ कहलन्हि जे जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ ऐ जिनगीमे टैगोर साहित्य पुरस्कार नै देल जेतन्हि!। रेफरी जखन ७ टा पोथीक नाम पठेलन्हि तखन ओइमे चन्द्रनाथ मिश्र "अमर"क अतीत मंथन सेहो रहए जखन कि ओ पोथी निर्धारित अवधि २००७-२००९ मे छपले नै अछि, तँ की बिनु देखने पोथी अनुशंसित कएल गेल? ऐ तरहक ग्राउण्ड लिस्ट बनेनिहार आ बिनु पढ़ने पोथी अनुशंसित केनिहार रेफरीकेँ साहित्य अकादेमी चिन्हित करए, आ नाम सार्वजनिक कऽ स्थायी रूपसँ प्रतिबन्धित करए, से आग्रह; तखने मैथिलीक प्रतिष्ठा बाँचल रहि सकत। एतए ईहो तथ्य अछि जे साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक संयोजक श्री विद्यानाथ झा विदित अखन धरि ने पुरस्कार भेटबाक सूचने आ ने पुरस्कार लेल बधाइये श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजी केँ देलन्हि अछि जखनकि मण्डल जी पुरस्कार लऽ कऽ घुरि कऽ आबियो गेल छथि; संगहि टैगोर साहित्य पुरस्कार मैथिली लेल पहिल बेर श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीकेँ देल जएबा सम्बन्धमे दरभंगा आकाशवाणी कोनो प्रकारक सूचना प्रसारित नै केलक आ दरभंगा, मधुबनी आदिक हिन्दी समाचार-पत्र सेहो ऐ सम्बन्धमे कोनो समाचार प्रकाशित नै केलक जखनकि देशक सभ राष्ट्रीय अंग्रेजी पत्र ( http://esamaad.blogspot.in/2012/06/tagore-literature-awards-national-media.html ) एकर सूचना बिनु कोनो अपवादक प्रकाशित केलक। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक, आकाशवाणी दरभंगाक आ दरभंगा-मधुबनीक हिन्दी समाचार पत्रक पत्रकार लोकनिक संकीर्ण जातिवादी चेहरा नीक जेकाँ सोझाँ आबि गेल। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक असली चेहरा तखन सोझाँ आओत जखन ऐ बर्खक मूल साहित्य अकादेमी पुरस्कारक घोषणा हएत।
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक "गामक जिनगी" मैथिली साहित्यक इतिहासक सर्वश्रेष्ठ लघु कथा संग्रह अछि। जगदीश प्रसाद मण्डल जीकेँ बधाइ।
सूचना (स्रोत समदिया): टैगोर साहित्य पुरस्कार दक्षिण कोरियाक एम्बैसी (स्पॉन्सर सैमसंग इण्डिया लिमिटेड) क आग्रहपर साहित्य अकादेमी द्वारा शुरू कएल गेल अछि। टैगोर साहित्य पुरस्कार गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुरक १५०म जयन्तीक उपलक्ष्यमे शुरू भेल छल। सभ साल ८ टा भाषा आ तीन सालमे साहित्य अकादेमी द्वारा मान्यता प्राप्त सभटा २४ भाषाकेँ ऐमे पुरस्कृत कएल जाइत अछि। मैथिली लेल ई पुरस्कार पहिल बेर देल जा रहल अछि।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुरक १५०म जयन्तीक उपलक्ष्यमे साहित्य अकादेमी आ सैमसंग इडिया (सैमसंग होप प्रोजेक्ट) द्वारा २००९ ई. मे स्थापित कएल गेल छल टैगोर साहित्य पुरस्कार। २४ भाषाक श्रेष्ठ पोथीकेँ तीन सालमे पुरस्कार (सभ साल आठ-आठ भाषाक सर्वश्रेष्ठ पोथीकेँ एक सालमे पुरस्कार) देल जाएत। पुरस्कारमे प्रत्येककेँ ९१ हजार टाका आ प्रशस्ति-पत्र देल जाइत अछि। चारिम साल पहिल सालक आठ भाषाक समूहक फेरसँ बेर आएत। टैगोर जयन्तीक लगाति अवसरपर ई पुरस्कार देल जाइत अछि।

टैगोर साहित्य पुरस्कार २००९ बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड, काश्मीरी, पंजाबी, तेलुगु आ बोडो भाषामे २००५ सँ २००७ मध्य प्रकाशित पोथीपर देल गेल।
-बांग्ला (आलोक सरकार, अपापभूमि, कविता)
-गुजराती ( भगवान दास पटेल, मारी लोकयात्रा)
-हिन्दी (राजी सेठ, गमे हयात ने मारा, कथा संग्रह)
-कन्नड (चन्द्रशेखर कांबर, शिकारा सूर्य, उपन्यास)
-काश्मीरी (नसीम सफाइ, ना थसे ना आकास, कविता)
-पंजाबी (जसवन्त सिंह कँवल, पुण्य दा चानन, आत्मकथा)
-तेलुगु (कोवेला सुप्रसन्नाचार्य, अंतरंगम, निबन्ध)
-बोडो (ब्रजेन्द्र कुमार ब्रह्मा, रैथाइ हाला, निबन्ध)

टैगोर साहित्य पुरस्कार २०१० असमी, डोगरी, मराठी, ओड़िया, राजस्थानी, संथाली, तमिल आ उर्दू भाषामे २००६ सँ २००८ मध्य प्रकाशित पोथीपर देल गेल।

-असमी (देवव्रत दास, निर्वाचित गल्प)
-डोगरी (संतोष खजूरिया, बडलोनदियन बहारां)
-मराठी (आर. जी. जाधव, निवादक समीक्षा)
-ओड़िया (ब्रजनाथ रथ, सामान्य असामान्य)
-राजस्थानी (विजय दान देथा, बातां री फुलवारी)
-संथाली (सोमाइ किस्कू, नमालिया)
-तमिल (एस. रामकृष्णन, यामम)
-उर्दू (चन्दर भान खयाल, सुबह-ए-मश्रिक-की अजान)


टैगोर साहित्य पुरस्कार २०११ मैथिली, अंग्रेजी, कोंकणी, मलयालम, मणीपुरी, नेपाली आ सिंधी लेल २००७ सँ २००९ मध्य प्रकाशित पोथीपर देल गेल। संस्कृत लेल पुरस्कार नै देल जा सकल।
-मैथिली (जगदीश प्रसाद मण्डल, "गामक जिनगी")
-अंग्रेजी (अमिताव घोष, "सी ऑफ पॉपीज")
-कोंकणी (शीला कोलाम्बकर, "गीरा")
-मलयालम (अकितम अचुतम नम्बूदरी, "अंतिमहक्कलम")
-मणीपुरी (एन. कुंजामोहन सिंह, "एना केंगे केनबा नट्टे")
-नेपाली (इन्द्रमणि दरनाल, "कृष्णा-कृष्णा")
-संस्कृत-
-सिंधी (अर्जुन हसीद, "ना इएन ना")
जगदीश प्रसाद मंडल, जन्म ५ जुलाइ १९४७। गाम-बेरमा, तमुरिया, जिला-मधुबनी। एम.ए.। कथाकार (दीर्घकथा संग्रह- शंभुदास; लघुकथा संग्रह १.गामक जिनगी, २. अर्द्धांगि‍नी..सरोजनी.. सुभद्रा.. भाइक सिनेह इत्‍यादि; आ तरेगन -बाल-प्रेरक विहनि कथा संग्रह); नाटककार (१.मिथिलाक बेटी, २.कम्प्रोमाइज, ३.झमेलिया वियाह आ ४.एकांकी-संचयन); उपन्यासकार(मौलाइल गाछक फूल, जीवन संघर्ष, जीवन मरण, उत्थान-पतन, जिनगीक जीत- उपन्यास) आ कवि (१.इन्द्रधनुषी अकास, २.गीतांजलि आ ३.राति-दिन। मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि। गामक जिनगी, लघुकथा संग्रह लेल विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११ मूल पुरस्कार, आ टैगोर साहित्य सम्मान २०११; आ बाल-प्रेरक विहनि कथा संग्रह "तरेगन" लेल बाल साहित्यक विदेह सम्मान २०१२ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कार रूपेँ प्रसिद्ध) प्राप्त।


( विदेह ई पत्रिकाकेँ ५ जुलाइ २००४ सँ अखन धरि ११८ देशक १,५९० ठामसँ ८०,७४५ गोटे द्वारा ४०,४१८ विभिन्न आइ.एस.पी. सँ ३,६१,००० बेर देखल गेल अछि; धन्यवाद पाठकगण। - गूगल एनेलेटिक्स डेटा। )
 

 

गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.com
 
http://www.maithililekhaksangh.com/2010/07/blog-post_3709.html

२.गद्य

२. गद्य



  




राम भरोस कापडि भ्रमर
मैथिली लोक संस्कृति संगोष्ठी अन्तरगत लोकनायक सलहेसःचर्चापरिचर्चा
कार्यक्रम सम्पन्न







मिथिलाञ्चल नेपालक होइक वा भारतीय क्षेत्रक जं एक गोट लोकगाथाक महानायक ककरोे जीवन चरित्र बेसी लोकमुखी, जनजनबीच चर्चित, लोकप्रिय छैक त ओ थिके लोकनायक सलहेसक । सिराहा जिल्ला अन्तर्गत महिसौथामे जन्मल सलहेसक जीवन काफी आरोहअवरोहसं भरल छैक । विभिन्न लोकगाथा गायकसभ कथानकक विभिन्न भेदके जनसमक्ष लाओल करैत अछि । तन्त्र मन्त्र आ सिद्धिक कथासभ एहिमो भरपूर देखल जाइछ । सुगा सलहेसक गुप्तचर होइछ जे मन्त्रीक रूपमे सेहो प्रतिष्ठित छैक । हाथीक नाउँ भौरानन्द राखल गेल छैक त स्वयं सलहेसके मानिक दहसं भँमरा बनाकए मालिनीसभ चोरा क ल जाइछ । सम्भवतः एहन प्रसङ्गसभ गाथा गायकसभक मुहसं थपैत आएल भ सकैछ । मुदा एकटा बातमे सब एकमत होइछ जे सलहेसक जन्म महिसौथा, राजा कुलेश्वरक दरबारमे पहरेदारी, चोरीक आरोप, जेलचलान आ अन्तमे मालिनीद्वारा मुक्ति ... ।
ओ देवताक रूपमे दुसाध जातिमे पूजित छथि । दलित उत्थानक निमित्त सयौं वर्षपूर्व सामन्तसँ (चुहड सामन्त !) लडि क अपने छुट्टे राज्यक स्थापना आ न्यायक लेल लोकप्रियताक चरममे पहुंचैत देवताक आस्पद प्राप्त क पूजित हएब स्वयं जयबद्र्धन सलहेसक जीवन गाथाक अत्यन्त रोचक पक्ष थिक । सलहेसगाथामे एक दिश प्रेम छैक त दोसर दिश तत्कालीन मिथिलाक्षेत्रमे उत्तरी आक्रमणकारीसभसं एकर रक्षाक चुनौती सेहो छैक । सामन्तसभसं समाजके जोगएबाक गहन जिम्मेबारी थिक त परनिर्भरतासं मुक्त भ अपन सैन्यशक्तिक विकास क अपन सत्ताक स्थापनाक गहन लक्ष्य सेहो । अदभूत पराक्रमी छलाह सलहेस । सब चुनौतीसभके सामना करैत अन्ततः अपन अभियानमे सफल भर महिसौथाके राजधानी बनौलनि ।
नेपाली भूमिक यी वीर लोकनायक, मुदा आइधरि शिष्ट साहित्यक संरक्षकसभद्वारा उपेक्षित रहैत आएल अछ् ि। किए एना भेल त , तकर एक्केटा कारण देखि पडैछ ,दुसाधसभक कुलदेवता प्रति किए अनावश्यक उत्सुकता ! अन्य जाति वा वर्गमे अस्तित्वे नहि रहल कविलोकनि, साहित्यकारसभक जथाभावी रचनासभ उत्खनन क क नयाँनयाँ इतिहास रचनिहारसभ सिराहा जिल्लाक चौहद्दीमे अजन सौर्यपूर्ण जीवन बितौनिहार महानायक सलहेस जानाजानी उपेक्षित कएल गेलाह आ परिणमतः आइ हुनका बारेमे लोककण्ठमे बाचल अबैत गाथासभ आ तकरा मञ्चमे प्रदर्शित करबला नाचसभ विलुप्त भ रहलैक अछि ।
इएह कठिन अवस्थाके ध्यानमे राखि सलहेसक जीवनवृत्तमे केन्द्रित भए एकटा बृहत् गोष्ठी करबाक विचार आइसं तेरह्र महिना पहिने आएल आ नेपाल प्रज्ञाप्रतिष्ठानक संस्कृति विभाग अन्तर्गत एकरा सामेल कएल गेल ।
हम एकर कार्ययोजना बनबैत काल भारतीय मर्मज्ञ विद्वान्सभके एउटा पैनल बनौलहँुँ, जे सभ सलहेसक सन्दर्भमे निरन्तर लिखैत आबि रहल छथि । नेपालक किछु विद्वानसभकें सेहो आग्रह कएल । अन्ततः नेपाल आ भारतसं चारि चारि गोट कार्यपत्र तय भेल आ पत्राचार
÷सम्पर्क कएल गेल । एकर कार्यक्रम स्थल लहान (सिराहा) राखल गेल, जत्तसं सलहेसक क्रिडाभूमिसभ लगेमे अवस्थित छैक । समय २०६९ साल बैशाख २० आ २१ गते राखल गेल । सब तैयारीपूर्ण भ गेलाक बाद बैशाख १८ गते जनकपुरमे दुखद घटना भेल, बम बिस्फोटमे तत्काल चारगोटेक आ बादमे एक गोटेक मिला पाँच गोटेक मृत्यु भ गेल । सबदिश शोकक लहरि, आक्रोश देखल गेल । बन्द, हडताल सुरू भेल । परिणामतः कार्यक्रम अन्तिम क्षणमे स्थगित कर पडलैक ।
फेर दोसर तिथि २०६९ साल असार ४, ५ गते राखल गेल । देहकें डाहैत गर्मीमे भारतीय एक दर्जन विद्वत् वर्ग आ नेपालक तर्पmसं सेहो एक दर्जन विद्वत् वर्गसभक समुपस्थितिमे उक्त गोष्ठी लहानमे दश बुँदे लहान घोषणापत्र जारी करैत सम्पन्न भेल अछि । एहिगोष्ठीमे अपन आर्थिक सहयोग द्वारा वी.पी. कोइराला भारतनेपाल प्रतिष्ठान पैघ काज कएलक जकर प्रशंशा समस्त उपस्थित सहभागी लोकनि कएलनि ।
अखाढ ४ गते सूचना तथा सञ्चार मन्त्री राजकिशोर यादव उद्घाटन कएलनि । हुनक हाथसं नेपाल प्रज्ञाप्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशित आँगनपत्रिकाक चारिम अंक सलहेस विशेषक आ रामभरोस कापडि भ्रमरक नवीनतम कृति समयसन्दर्भक विमोचन कएलनि । तहिना सलहेस लोकनाचकें मञ्चीय रूपमे जिवन्त राखमे सिराहाक शैनी पासवास आ सलहेस गायनकें अपन कण्ठमे बचा क रखनिहार मधुरी दासकें दोसल्ला आ प्रशंसापत्र पदान क सम्मान कएल गेल छल । कार्यक्रममे सभापतित्व करैत संयोजक भ्रमरविषयप्रवेशक क्रममे लोकनायक सलहेसक चित्र अंकित टिकट प्रकाशन करबाक आ चोहरबा चौकमे चूहड मलक प्रतिमा स्थापनाक माग कएलनि, जकरा मन्त्री यादव सहर्ष स्वीकार करैत नेपाल सरकारसं होबबला सम्पूर्ण सहयोग उपलब्ध करएबाक विश्वास सेहो दिऔलनि ।
कार्यक्रममे कार्यपत्र आ टिप्पणीसब अतिरिक्त संयोजक भ्रमरद्वारा विद्वत्सभक बीच चारिबुँदे अवधारणापत्र प्रस्तुत कएल गेल छल, जाहिमे व्यापक छलफल आ निष्कर्षक लेल चारिगोट समूह बनाओल गेल । जे ५ गते स्थलगत स्थलसभक भ्रमण क समापन बैठकमे विभिन्न सुझावसभकसंग प्रस्तुत कएने छल । स्थलगत भ्रमणमे सलहेस पूmलबारीक विचित्र रचना प्रक्रियासं अवगत भेलाह त सलहेस गाथामे निके महत्वक साथ आएल कमल दहमे कमल लोप भ क सेहो पर्यटकीय आकर्षण यथावत रहेल बात सब विद्वान्सभ महसुस कएने छलाह ।
गोष्ठी कम कार्यशाला गोष्ठीमे अन्तमे दश बुँदे लहान घोषणापत्र जारी कएल गेल छल । घोषणापत्रमे जिल्ला अथवा अन्य भागमे रहल सलहेस मन्दिर (गहबर) सलहेस फुलबारी, मानिक दह, पकडिया गढ, कमल दह, उत्तरवाहिनी, कमला आ नन्द महिरी सन स्थलसभक संरक्षण, सम्बद्र्धन करब जरुरी अछि । सलहेस गाथामे वर्णित स्थलसभ नेपालेमे अवस्थित भेल हएबाक कारणे एकर संरक्षणसम्बद्र्धनक दायित्व सरकारक अछि । एहना स्थलसभक विकासक पहल हएबाक चाही ! स्थलसभक उत्खनन हएबाक चाही । सलहेस पूmलबारीके विश्वसम्पदा सूचीमे सूचीकृत कएल जाए्, एकरा सिमसार क्षेत्रक रूपमे मान्यता देल जाए सन सन् मांग कएअ गेल अछि ।
अन्य मागमे सलहेस प्रतिष्ठानक गठन हाए, सलहेस अंकित डाक टिकटक प्रकाशन होए्, सलहेस गाथासँग जोडल ठामसभकें सम्पर्क मार्ग बनाओल जाए्, सलहेस पूmलबारी निकट राजमार्गमे सलहेसक मूर्ति आ भव्यद्वारक निर्माण होए्, सलहेसकें राष्ट्रिय विभूति घोषित कएल जाए आ संग्रहालयक स्थापना हाए ।
सलहेस सम्बन्धी एना कय वैज्ञानिक ढंगसं गोष्ठीक आयोजन प्रथम सुरुवात भेल हएबाक बात बथबैत उपस्थित नेपालभारतक विद्वतजनसभ अनुसन्धानक अभाव रहलाक कारणें एकरा निरन्तरता देल जएबाक चाहीे ।
दूदिना गोष्ठीमे भारतसं डा. रमानन्द झा रमण’, डा. वुचरु पासवान, डा. कमलकान्त झा, डा. भुवनेश्वर गुरमैता, चन्द्रेश, डा. मोहित ठाकुर, पंचानन मिश्र आदि छलाह त नेपालक दिशसं डा. रामदयाल राकेश, पुरातत्वविद् तारानन्द मिश्र, प्राज्ञ रमेशरञ्जन झा, पूर्व सांसद नथुनी सिंह दनुवार, डा. पशुपतिनाथ झा, प्रा. परमेश्वर कापडि, डा. रेवतीरमण लाल,गोपाल झा आदि विद्वानसभक सहभागिता छल ।


 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।

अतुलेश्‍वर
लघुकथा- बसात
इ झंझारपुर बजार मे बहुत दिनक बाद माधव झा भेटल छलाह। भेंट होइतहिँ ओ सुरु भए गेलाह अपन आन्तरिक गप्प बँटबामे। जेना-तेना छुटकारा भेटल आ हम अपनामे लगलहुँ। मुदा हुनक कहल बहुतो रास बात एखनहुँ घुरिया रहल अछि। बेरि-बेरि मोन पड़ि जाइछ माधव झाक व्यथा। माधव झाक बेटा विवेक मध्यम कोटिक छात्र छल, मुदा रहए मेहनतिआ आ तैँ ओकर आकांक्षा रहैक जे इंजीनियर बनी। माधव झा सेहो मध्यम आयक लोक, मुदा सन्तानक आकांक्षाकेँ पूरा करबाक लेल अपनाभरि प्रयास करैत रहनिहार। समाजमध्य बसात तेहन बहि रहल छैक जे जत-तत अर्थक काज। तैओ ओ अपना लेखें एहि प्रयास मे हरदम लागल रहैत छलाह जे जेना-तेना बेटाक आकांक्षा पूरा होइक। मोन पड़ैत अछि जखनि इंजीनियरिंग पढ़ाईक जाँच-परीक्षा परिणाम आयल रहैक आ हमहीँ हुनक पुत्रक रिजल्ट देखने रहिअनि, ओ परिणाम सूनि निराश भए गेल रहथि, कारण विवेकक पोजीशन बड्ड निम्न स्तरक छलैक। परिणामक हिसाबें ओकर एडमिशन कोनो नीक इंजीनियरिंग कॉलेजमे आ मनोनुकूल प्रभाग भेटबाक सम्भावना बहुत कम रहैक। हम कहने रहयनि जे- औ जी आइ-काल्हि सभ गोटा अपन सन्तानकेँ इंजीनियरे बनएबामे व्यस्त छथि,  हमरा जनैत किछु दिनमे ओकर हाल ठीक नहि रहतैक। तैँ अपन पुत्रकेँ प्रतियोगिता परीक्षाक हेतु तैआर करु आ सम्प्रति कॉमर्स रखबाक हेतु कहिऔक। हमर गप्प सुनि माधवजी तँ सहमत भेलाह मुदा पुत्रक आकांक्षा ओ नहि तोड़य चाहैत छलाह। एहि बीच पुत्र सेहो दिल्लीसँ परीक्षा द घुमि आयल रहनि, कारण जे आब तँ एडमिशनक बेर भ गेल छलैक। ई कथा ओ माधव झा केँ सेहो कहलक, संगहि इहो जे काल्हि हम मुजफ्फरपुर जायब, जतए ओकरा कॉनसिलींग मे बजौने छैक। प्रातः ओ मुजफ्फरपुर गेल आ एम्हर चिन्तित माधवजीकेँ हम कहने रहियनि जे जखनि छात्र स्वयं एतेक उत्सुक अछि तँ ओहि उत्सुकताकेँ रोकब उचित नहि।
किछु दिनक अभ्यन्तर पुनः झंझारपुर बजार मे भेटलाह। हमर जिज्ञासा पर ओ चिन्तित चित्तेँ चाहक दोकान दिस घीचैत कहलन्हि- गप्प कने माहूर भ गेल अछि आ ई गप्प ठाढ़े-ठाढ़ नहि कहि सकैत छी। दूगोट चाहक आग्रह करैत हम पूछलियनि जे कि बात छैक, अपने की कहैत छलहुँ? ओ अत्यन्त गम्भीर भ कहए लगलाह- की कहू! किछु नहि फुरा रहल अछि, एक दिस सन्तानक मोह आ दोसर दिस हमर आर्थिक स्थिति। पता नहि जे कोना दुनूक बीच सामंजस्य होएत। गप्पकेँ फरिछबैत कहलनि जे -काल्हि मुजफ्फरपुरसँ अएला पर खुशीपूर्वक कहलक जे कागज-पत्तरक कार्य भए गेल, हमर नामांकन उड़ीसाक एकटा इंजनियरिंग कॉलेज मे होएबाक अछि। हमसभ क्षण भरिक लेल सुन्दर सपना देखनहिँ छलहुँ कि ओकर अग्रिम पंक्ति झकझोड़िकेँ राखि देलक। ओकर कहब छलैक जे एहि लेल कम सँ कम पाँच लाख टाका चाही। पाँच लाख टाकाक गप्प सुनितहिँ लागल जेना हमर शरीरसँ सबटा खून सोखि लेल गेल हो, मोनमे तत्कालहि आएल जे ने राधाकेँ नओ मन घी होएतनि आ ने राधा नचतीह। आँखिक आगाँ अन्हार भए गेल छल, आगाँ कोनो इजोत देखबामे नहि आबि रहल छल। किंकर्त्तव्यविमुढ़क स्थिति छल। मुदा बेटाक ई शब्द सुनि जे आब बैंकसभ पढ़बाक हेतु कर्ज दैत छैक, किछु आशा जागल। हम व्यग्र भए पूछि बैसलिऐक जे एहि हेतु हमरासभकेँ की करए पड़त? ओ सहज रूपेँ कहलक जे एहि हेतु जमीनक कागज बैंक मे जमानति रूपमे जमा करए पड़त। ई गप्प सुनि बाबूजी बजलाह कोना होएत, कारण जखन हमरा तीनू भायमे बँटवारा नहि भेल अछि तखन जमीनक कागज बैंक मे कोना जमा कएल जाए सकैछ। हमर मुँहसँ अनायास निकलि गेल जे ई तँ असम्भव अछि। आ विवेक ई गप्प सुनतहिं भनभनाइत ओतए सँ उठि चल गेल आ अपन माएसँ कहि बैसल- लगैत अछि हमर कैरियर हिनके सभ जेकाँ एही खोनही मे सड़ि जाएत आ ई कहैत घरमे जाकेँ सूति रहल। हमर स्थिति विकट छल, ने ओहि पार ने एहि पार, बीच समुद्रमे डुबैत एकटा निरीह प्राणी, जकर जीवनक कोनो आस नहि। एतबा कहैत ओ किछु कालक हेतु रुकलाह, हम हुनका विभिन्न तरहेँ आशान्वित करैत अपन-अपन बाट धएल।
माधवजीकेँ किछु अति आवश्यक कार्यवश गाम जाए पड़लनि, जतए भेंट भए गेलखिन एकटा मित्र। मित्रक ममियौतकेँ सेहो इंजीनियरिंग पढ़बाक लेल चुनाओ भेल छलनि आ ओहो हुनके सन समस्यामे पड़ि समाधान ताकल आ नामांकन कराओल। हुनकहि द्वारा ताकल समाधानक बाटेँ माधवजी सेहो पार उतरलाह आ बेटाक नामांकन कतेओ ढ़क-पेँचक बाद  भोपाल मे भ गेलैक। पछाति अपन पेट काटि बेटाकेँ पढ़बैत रहलाह। कतेको दिनक बाद एकबेर फेर हुनकासँ झंझारपुरहिमे भेंट भेल ओ खूब प्रसन्नचित्त बुझएलाह। हमर भोज-भातक आग्रह पर अत्यन्त आह्लादित होइत तत्काल तैआर भए गेलाह, मुदा चाह-पान खाइत अपन-अपन घर दिस बिदा भए गेलहुँ। हुनकासँ हेँठ होइतहिँ नाचि उठल अपन छात्र-जीवन। सोचए लगलहुँ जे यदि हमरो सभक समय एतेक सहज रहितैक तँ आइ एम.ए. क केँ सूप महक भट्टा बनल नहि रहितहुँ। मुदा ओएह गप्प, आब सोचिए केँ की! परञ्च, भूततँ पाछाँ छोड़निहार नहि, तेँ पुन: स्मरण भए आएल अपन रोटी जोगाड़, आइ एहि ठाम तँ काल्हि ओहि ठाम, कोनहुना जीवनक गाड़ी घीचि रहल छलहुँ। इएह दौगादौगी मे पहुँचि गेल रही कर्नाटक। गामक सभ खुशी- अहा बेचारा बड्ड दिन सँ बौआ रहल छल, एहि बेर ओकर जोगड़क काज भेटलैक। मुदा जे भेटल, केहन भेटल ओ तँ हमहिंटा जनैत छलहुँ, मुदा किछु संतोषजनक तँ अवश्य छल। एतेक दूर अयलाक पश्चात गाम सँ सम्पर्क कमि गेल आ अपनाकेँ नव परिवेशमे घुला लेलहुँ। आइ कतेको सालसँ कर्नाटकमे रचल-बसल छी, मुदा गाम तँ गाम होइत छैक।
किछु दिनक अवकाश पर गाम पहुँचल छलहुँ। गाम जाए झंझारपुर बजार नहि जायब ई सम्भव नहि। संयोग एहन जे झंझारपुर जाइतहिँ भेटि गेलाह माधवजी।  कुशल क्षेम पूछैत कत छी, बहुत दिनक बाद भेटलहुँ, आदि प्रश्नक झड़ी लगा देलनि। हम कहलियन्हि जे एतेक प्रश्नक उत्तर ठाढ़े-ठाढ़ नहि द सकैत छी। ताहि पर ठहक्का मारैत बाजि उठलाह- अहाँ तँ हमर मूहक गप्प छीनि लेलहुँ आ ई कहैत हम दुनू गोटें चाहक दोकानमे पैसि गेलहुँ। चाहक चुसकीक सङ अपन कथा हुनका सुनबैत गाम सँ एतेक दूर, ताहि पर सँ निश्चितता नहि, ई गप्पसप्प कहैत छियैन्ह। मुदा ओ आशाक पोटरी खोलैत कहलनि- भगवती सभ आशा पूर्ण करतीह। गप्प बढ़बैत हम विवेकक इंजीनियरिंग पढ़ाईक जिज्ञासु भेलहुँ, सङहि छुट्टीमे गाम अएबाक विषयमे पूछि बैसलिएनि। हमर गप्प सुनि ओ एकबेर हमर मूह दिस ताकि आकाश दिस ताकए लगलाह। जेठक मास, तैँ भगवान भास्कर अपन रौद्र रूपमे धरतीबासीकेँ अपन प्रतापेँ जरा रहल छलाह तैओ ओ हुनके दिस ताकि उठलाह। एकटा पैघ निसाँस लैत कहलनि- हँ गाम आयल अछि लगभग आठ दस दिन भेल हेतैक। एकटा पैघ श्वास छोड़ैत कहि उठैत छथि-  मोनमे बहुत दिन सँ  एकटा गप्प घुरिया रहल छल आ मोन होइत छल जे ककरो कहियौक, मुदा केओ ओहन विश्वस्त भेटिए नहि रहल छल, आइ संयोग सँ अहाँ भेंट भ गेलहुँ, होइत अछि जे ई गप्प अहाँकेँ कहि मोनकेँ हल्लुक करी। हमर प्रतिक्रियाक प्रतीक्षा बिनु कएनहि ओ सुरु भए गेलाह– “जीवनक एहि यात्राक धारमे कतेक ठोकर लागत से नहि कहि। मोने मोन प्रसन्न छलहुँ जे हम अपन लक्ष्य पाबि गेलहुँ, जीवनमे नव किरिनक आशा देखए लगलहुँ, मुदा एकाएक सम्पूर्ण भविष्य मेघाच्छादित भए गेल।’’ ई कहैत दहो-बहो नोरमे डूबि गेलाह। बादमे बहुतो बुझौला पर ज्ञात भेल जे एक दिन सभ गोटा सङहि भोजन कए रहल छलाह। माधवजीक बाबूजी विवेकसँ पूछलखिन्ह जे ओतए कोना कि हौ। एहि पर ओ एकटा संक्षिप्‍त उत्तर देलक सभटा ठीके ठाक। आ बाबूजी वाह! वाह! कहए लगलाह। गप्प बढ़ैत गेल आ एही क्रममे विवेक एकटा एहन गप्प कहलकनि जे सभक मोन तीत अकत्त कए देलकनि। ओ कहलकनि जे ओतए सभ किछु तँ ठीक ठाक छैक मुदा हमरा ई कहैत लाज होइत अछि जे हमर पापा कोनो कार्य नहि करैत छथि आ नहि तँ कोनो पैघ व्यापारी छथि। ओकर कहब छलैक जे एतेक धरि हम पहुँचलहुँ अछि ओ तँ अपन विश्वाससँ, नहि तँ हमरहुँ पापा जेकाँ पाँच लाख टाकाक लेल पढ़बा आ नौकरी करबा सँ पहिने अपन सन्तानकेँ कर्जदार बनबए पड़ितए। आगाँ ओ दादाजीसँ कहि बैसल- अहाँ तँ बहुत पैघ पंडित छी तखनि ई कखनो अहसास नहि भेल जे अहाँ सँ कम पढ़ल-लिखल पंडित जागे झा अपन दुनू बेटाकेँ कत सँ कत पहुँचा देलन्हि, हमरा तँ अहाँक एहि बुद्धि पर हँसी लगैत अछि जे अहाँक बेटासभ हाथ-पैरक अछैतो लुल्ह-नांगर बनि बैसल रहि गेलाह, जाहिसँ सम्पूर्ण परिवार काहि काटि रहल अछि। माधवजी ओ हुनक बाबूजीकेँ किछु फुरिऐ नहि रहल छलनि, मुदा विवेक लेल धनि सन,  बुदबुदाइत रहल- कोन घरमे जन्म भ गेल, से नहि जानि।
माधवजीकेँ शान्त करबामे ठीके बहुतो समय लागल, यद्यपि छगुन्तामे अपनहुँ पड़ल छलहुँ। पान हुनक हाथमे दैत मात्र एतबहि कहि सकलिएनि- माधवजी, ई नवका बसात छियैक,  आ एहि बसातमे अपने जे संवेदना तकबैक ओ असम्भव। बुझियौ जे हमरा लोकनि एकटा चिड़ै छी जे अपन बच्चासभक लेल अपन सभ आकांक्षाकें आगि मे झोकि ओकर सभक आकांक्षा पूरा करैत रहू एहि आशामे जे एकटा नव बिहान अओतैक। ठीक ताही बेरमे हमर गाम जाय बाली गाड़ी खुजबाक लेल पुक्की मारि रहल छल आ हम हुनका सँ विदा लैत चलि पड़ैत छी आ रास्ता भरि अपस्याँत माधवजी हमर आगू मे नचैत रहैत छथि आ हम सोचए लगैत छी ई नवका बसात......!

        
 
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