१.योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’- लघुकथा- देववाणी २.नवेंदु कुमार झा- बिजलीक क्षेत्र मे आत्म निर्भरताक लेल सरकार कऽ रहल प्रयास
१
योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’
लघुकथा- देववाणी
हम ई नवका पंडितजी’क कने परीक्षा लऽ रहल छी। पंडित जी जे पुरना छलाह से तँ कहिया ने स्वर्गवासी भेलाह।ओ परोपट्टा मे नामी लोक छलाह पंडित संस्कार नाथ मिश्र। पंडितजी व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य, आयुर्वेदाचार्य आर नहि जानि कोन कोन विषयक आचार्य छलाह। हमरा गाम अर्थात् माहीपुर मे महामाया संस्कृत विद्यालय हुनके प्रयासे ँ स्थापित भेल छल जाहि मे सुनैत छियैक महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह स्वयं उद्घाटन करबा लेल आएल छलखिन्ह आ विद्यालय प्रांगण मे एकटा आम आ एकटा पीपर के गाछ रोपने छलखिन्ह। आमक गाछ तँ सन् सत्तावन के बाढ़ि मे सुखा गेलैक मुदा पीपर तँ एखनहुँ छैके जे अहूँ सब देखिते छियैक।
नवका पंडित जी भेलाह हुनकर प्रपौत्र।पंडित संस्कार नाथ मिश्र जी के ँ चारिम बियाह मे एकटा बालक भेलखिन्ह। ताहि सँ पहिने तीन बियाह मे चारि चारि टा कन्या रत्न प्राप्त भेलन्हि जेना लक्ष्मी सरस्वती सीता गौरी सब अपन अपन सखी बहिनपा’क संग अवतरित भेल होथि।पंडित जी जिद्दी लोक।चारिम बियाह सँ पूर्व जखन किछु आत्मीय सब हुनका बुझबए गेलखिन्ह जे “ देखू आब वयसो भऽ गेल। एहि बारह टा बेटी के पालन पोषण आ कन्यादान आदि मे अपनेक जे दशा भऽ रहल अछि से तँ अपनहि जनैत छिऐक। ते ँ हमरा सबहक कहब जे फेर बियाह करबाक ई विचार छोड़ि दियौक। मानि लिअऽ जे बेटा भाग्य मे नहि अछि।” तँ पंडित जी खिसिया कए बाजल छलखिन्ह “ देखू ई भक्त आ भगवान के लड़ाइ छियैक।यदि भगवान के ँ जिद्द लागल छन्हि जे बेटा नहिए दऽ कए परीक्षा लियैक तँ भक्त के सेहो प्रतिज्ञा छन्हि जे बेटा लइए कए रहताह। हमरा ई लड़ाइ लड़ए दिअऽ आ अहाँ सब कात सँ तमासा देखैत रहू।” अस्तु, जेना कि पौराणिक काल सँ होइत रहलैक अछि, सुच्चा भक्त’क सोझाँ भगवाने हारि मानैत रहलखिन्ह अछि, सएह भेलैक एहू बेर आ चारिम बियाह’क बाद करीब पचपन वर्षक उमेर मे पंडितजीक तपस्या सफल भेलन्हि आ आइमाइ सब गौलन्हि सोहर “ललना रे घर घर बाजे बधाई कि कृष्णजी जन्म लेल रे…” ।
नवजात’क नाम पंडित संस्कार नाथ मिश्र अपनहि चुनलन्हि।परोपट्टाक लोक तँ हुनका सँ नामकरण करबैत छल, ओ कतए जइतथि। से नाम राखल गेल भूजानाथ। आब जे सूनए सएह हँसए। सब बूझए लागल जे सत्ते मे पंडितजी सठिया गेलाह’ए। कियो कियो ईहो अर्थ लगाबए जे पंडितजी के ँ भूजा बड़ पसिन्न छन्हि। किछु ईहो बाजए जे एहि सँ नीक तँ ‘अनाथ’ नाम होइतैक, किछु अर्थ तँ रहितैक। जखन चारू कात खिधांस होअए लगलन्हि तँ नवकी पंडिताइने एक दिन टोकलखिन्ह जे बारह टा बेटीक बाद तँ एकटा बेटा भेल तकर की नाम राखि देलियैक जे सौ ँसे गाम हँसैत अछि। पंडितजी कने दुअनियाँ मुसकी दैत नवकी के ँ बुझेलखिन्ह “ लोक की बुझतैक ? ओकरा सब के ँ ज्ञाने कतेक छैक ? देखू ई नाम अपूर्व छैक। एकरा एनाकए बुझियौक : भू ट्ट जा ट्ट नाथ। भू माने पृथ्वी, जा माने ताहि सँ उत्पन्न अर्थात् भूजा भेलीह सीता आ भूजानाथ भेलाह साक्षात् भगवान राम। अहीं सोचियौक यदि सोझे राम नाम राखि दितियैक बच्चा’क तँ संस्कार नाथ मिश्र’क ज्ञान’क कोन काज ? फेर ओहेन नाम तँ हरेक टोल परोस मे भेटत आ थोड़बे दिन मे राम भऽ जइतथि रमुआ।रमुआ ककरो हरबाह, रमुआ कोनो बोनिहर, रमुआ ककरो चाकर आ रमुआ कोनो पंडित’क बच्चा। फेर अन्तर की भेलैक ?”
आब जे ई व्याख्या सूनए सएह कहए वाहवाह, पंडित संस्कार नाथ मिश्र सन व्याकरणाचार्य के ँ छोड़ि के एतेक सुन्दर नाम सोचि सकैत छल ? नामकरण मे हुनकर ख्याति आर वेशी बढ़ि गेलन्हि।
मुदा सब किछु होइतो एहि परिवार मे आगू दू पुस्त तक व्याकरण आ साहित्य के ँ के कहए संस्कृत पढ़बो बन्द भऽ गेल। भेलैक एना जे संस्कार नाथ मिश्र भगवान सँ एकटा बाजी तँ जीत गेलाह परन्तु पूरा खेल तँ हुनका बूझल छलन्हि नहि।
भूजानाथ के ँ तीन टा बड़का माए आ बारह टा बहीन।सब मिला कए एहि सोलह स्त्रीगण’क ओ अति दुलारू बच्चा। लीखब पढ़ब सँ ओ तहिना पड़ाथि जेना नबका बियाह भेला पर पंडितजी पुरना कनियाँ सबसँ पड़ाथि। एहि शोक सँ बूझू आ कि उमेरक गुण दोष, पंडितजी अस्वस्थ रहए लगलाह। पाँचम वर्ष मे भूजानाथ’क उपनएन भेलन्हि आ तकर किछुए दिनक बाद पंडितजी भगवान सँ भेंट करए स्वर्ग चल गेलाह। भूजानाथ भठ्ठा नहिए धेलन्हि।
भूजानाथ बढ़ैत गेलाह आ ओतबे बेशी अबंड होइत गेलाह। हुनका पहुनाइ करऽ मे आ तिलकोर तोरै मे वेश आनन्द अबन्हि। जमीन जाल तँ पिताजी बारह टा कन्यादान मे प्रायः शेषे कऽ देने छलखिन्ह ते ँ घर गृहस्थीक चिन्ते कोन। बारह टा बहिन’क सासुर आ चारि टा मात्रिक मे बूलि बूलि ओ पहुनाइ करथि। भरदुतिया मे ओ बेशी परेशान भऽ जाथि। एक दिन मे बारह गाम कोना जेताह ? कोन बहिन सँ नोत लेथिन्ह आ किनकर उपराग सुनताह ? मुदा एकरो संयोगे कही जे पंडितजी अपन बारहो बेटीक बियाह जाहि गाम सब मे केलन्हि से सबटा गाम रेलबे लाइन के दूनू कात सकरी सँ निरमली के बीच आ कि सकरी सँ जयनगर के बीच एक कोस सँ कमे दूर पर।फेर बहीने सब अपना मे विचार क कए हुनका रस्ता बता देलखिन्ह जे एक बरख मे ओ चारि ठाम जाथि। भरदुतिया सँ एक दिन पहिने एक गोटे ओतए पहुँचि जाथि आ ओतए अगिला दिन एकदम सकाल नोत लऽ कए दोसर गाम पहुँचि जाथि। ओतए नोत लऽ कए फेर बरहबजिया गाड़ी पकड़ि बाकी दू बहिन के गाम जा कए नोत लेथि। एवम् प्रकारे ँ दिन अछैते ओ सब ठाम पार पुरि लेताह। एहि प्रकारे ँ हर चारिम बरख मे सब बहिन के ँ भाइ के ँ नोतबाक सऽख पूर होइत रहतन्हि। एहि मे भूजानाथ के ँ एकटा नफा ई भेलन्हि जे भार दोर के झंझट खतम भऽ गेलन्हि। चारि चारि ठामक भार तँ एक संगे लऽ जइतथि नहि। मुदा पैघ घाटा ई भेलन्हि जे भरि दिन एक गाम सँ दोसर गाम दौड़ैत रहला सँ कत्तौ इच्छा भरि तिलकोर नहि खा पबैत छलाह।
अस्तु, उचित समय पर भूजानाथ के बियाहो भेलन्हि। अबंड छलाह आ कि संस्कृत नहि पढ़लन्हि तै सँ की ? मिथिला मे ने कोनो वर कुमार रहलैक’ए आ ने कोनो कन्या कुमारि रहलैक’ए। लूल्हि नाङर कनियाँ आ आन्हर बहीर आ कि ढहलेल बकलेल वर, सबहक बियाह भेबे केलैए, घटक टा होशियार रहल चाही। तखन भूजानाथ तँ पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क पुत्र छलखिन्ह। घटक दरिद्र नारायण चौधरी एहि काज मे सहायक भेलखिन्ह। कोसिकनहा कात’क एकटा मसोमात’क लूल्हि किन्तु सुन्दरी कन्या स्वर्गीय पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क पुतोहु बनिकए माहीपुर एलीह। ओ फेर घूरि कए नैहर तँ नहि गेलीह, माइए मास दू मास पर खोज खबरि लेबा लेल आबि जाइत छलखिन्ह।
समय पाबि भूजानाथ के ँ पहिले प्रयास मे पुत्र भेलन्हि। हुनका पिता जकाँ तपस्या नहि करए पड़लन्हि। मुदा एहि समय एकटा दोसरे विचित्र घटना भेलैक।सौरी सँ बहराइते एकटा अगलटेंट छौंड़ी बाजि उठल जे उएह मुसरी भेलैक। ई मात्र ओहि बच्चा’क लिंग निर्धारण सूचक शब्द छलैक। मुदा से ओहि बच्चा के नामकरणे भऽ गेलैक आ. ओ मुसरीए भऽ कए रहि गेल। नाम किछु विचित्र तँ जरूर छलैक मुदा मिथिलाक गौरवमय इतिहास मे कतेको मुसरी भऽ गेल छथि से तँ अहूँ सब जनिते छिऐक। आ नामो सब एक सँ एक विचित्र जेना कि खुद्दी, फुद्दी, तिनकौड़ी, पलटू सलटू आदि। ते ँ एहि बात पर कोनो बेशी ध्यान नहि देल गेलैक। ओना स्वर्ग मे पंडित संस्कार नाथ मिश्र अपन पौत्रक एहि नामकरण पर की सोचने होएताह से हमरा सब कहियो बूझि नहि सकब।
मुसरीक माए लूल्हि जरूर छलखिन्ह मुदा छलखिन्ह होशियार। हुनका अपना बच्चा के ँ पढ़ेबा पर बेशी ध्यान छलन्हि। मुसरी स्कूल जाए लगलाह। संस्कृत विद्यालय नहि, गाम’क सरकारी प्राथमिक विद्यालय। रजिष्टर मे नाम लिखाएल मुसरी नाथ मिश्र। आ तकर बाद हुनकर नाम लिखाएल गेल माहीपुर सँ करीब डेढ़ कोस दूर सरपतिया चऽर के पुबरिया सीमा पर स्थित गाम कनकटोली के माता यशोदा हाई स्कूल जे हमरा सबहक नवका एम एल ए यादव जी किछुए बर्ष पहिने स्थापित कएने छलाह। मुसरी गामहिं सँ स्कूल जाइत अबैत छलाह।
मुसरी पढ़बा मे कोनो वेशी कुशागबुद्ध्रि नहि छलाह। लागल लागल कहुना दशवीं पास केलन्हि। आगू पढ़बाक ने इच्छा रहन्हि आ ने साधन। रोजीक ताक मे गामैक किछु लोक’क संग ओ पहिने कलकत्ता एलाह आ ओतए सँ एकटा ठीकेदारक संग कोरबा चल गेलाह जतए बड़का बड़का थरमल पावर स्टेशन बनि रहल छलैक। एतए ओ ठीकेदार’क मुन्सी के असिस्टेंट भऽ गेलाह आ नाम भऽ गेलन्हि श्री एम एन मिसरा जी। नाम छोट करैक ई अंगरेजिया तरीका सेहो कमाल के छैक।
हमर एम एन मिसरा के ठीकेदार मकान आदि बनबैत छलाह। मिसराजी’क काज भेलन्हि मजदूर सब के पाछू रहब। मजदूर सब ठीक सँ काज करए, सूति बैसि नहि रहए आ किछु सामान चोरा नहि लिअए तकरे देखभाल करब भेल काज हुनक। मुन्सी अपने तँ टेन्ट मे आराम करथि आ एम एन मिसरा के ँ रौद बसात पानि बिहारि मे मजदूर’क संगे रहए पड़न्हि।
गाम मे खबरि गेलैक जे भूजानाथ’क बेटा के ँ नीक नौकरी भेटि गेलन्हि। घटक दरिद्र नारायण चौधरी बूढ़ो भेला पर सक्रिय छलाहे। ओ आबि भूजानाथ के ँ मनौलन्हि आ किछु साधारण टाका’क लोभ दऽ कए हुनक बेटाक बियाह ठीक करा देलखिन्ह।
समय पर मुसरी अर्थात् एम एन मिसरा’क बियाह भेलन्हि आ फेर पितामह’क तपस्या’क फले ँ पुत्ररत्न के प्राप्ति सेहो। नाम राखल गेल दिलीप कुमार। नब परम्परा’क अनुसार पारिवारिक नाम ‘मिश्र’ हटा देल गेल।
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आब आउ असली खिस्सा पर जे पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क प्रपौत्र एहि आधुनिक कम्प्यूटर युग मे पंडित कोना भऽ गेलाह।
एम एन मिसरा जखन कोरबा मे रौद बसात पानि बिहारि मे मजदूर सबहक ओगरबाही करैत रहथि तखन हुनका डेराक बगल मे हरलाखी लगहक कोनो गाम के एकटा पाँड़ेजी रहैत छलखिन्ह जे ओतए पंडिताई करैत छलाह। पाँड़ेजी कम्मे पढ़ल लिखल किन्तु व्यावहारिक लोक।अपन पंडिताई मे संस्कृत कम हिन्दीए सँ बेशी काज चलबैत छलाह। हनुमान चालीसा पढ़ि कए ओ महादेवक पूजा सेहो कऽ दैत छलखिन्ह आ कतेक ठाम कन्यादान सेहो। मुदा तैयो खूब व्यस्त रहैत छलाह आ नीक टाका कमा लैत छलाह। एम एन मिसरा जी दसवीं पास आ ठीकेदार’क मुन्सी के असिस्टेंट मात्र पाँच हजार कमाइत छलाह आ पाँड़ेजी सुखारो ऋतु मे पचीस तीस हजार उठा लैत छलाह। भादव, कातिक, माघ, बैसाख आदि मास मे तँ पचासो हजार पार कऽ लैत छलाह।टाका तँ जे से, मान सम्मान सेहो खूब बेशी। यजमान सब अपन अपन वित्तक अनुसार रिक्सा वा गाड़ी पठा हुनका बजबैत छलखिन्ह। ते ँ रौद बसातक झंझट हुनका कहियो नहि परेन्हि।
पाँड़ेजीक कमाई आ मान सम्मान सँ एम एन मिसरा जी बहुत प्रभावित भेलाह। एक दिन पाँड़ेजी हुनका लऽग अपन विचार व्यक्त केलखिन्ह “ देखियौ मिसरा जी, आइ कालि सबहक बेटा बेटी कम्प्यूटर इंजिनीयर भऽ रहलैक’ए। सब बंगलोरे मे नौकरी करए चाहैत अछि आ कि अमेरिके जाए चाहैत अछि। मुदा पंडित’क संख्या कतेक कम भऽ गेलैक अछि। एतेक टा कोरबा मे हम सब मात्र दश गोटे छी आ हरदम एक यजमान सँ दोसर के ओहि ठाम दौड़ैत रहैत छी। पंडित सब कम्प्यूटर इंजिनीयर सँ कोन कम कमाइत छथि यदि अपने ठीक सँ जोरियौक। सुनै छी अहाँक पितामह नामी पंडित छलाह से अहूँक परिवार सँ ई परम्परा उठि गेल। हमरा तँ लगैत अछि अगिला पुश्त मे पंडित जातिए विलुप्त भऽ जाएत।”
एम एन मिसरा जी’क पुत्र दिलीप कुमार गामहि मे सरकारी प्राथमिक विद्यालय मे पढ़ैत छलखिन्ह आ अगिला साल हुनकर विचार छलन्हि माता यशोदा हाइ स्कूल मे भर्ती करेबाक।एही समय पाँड़ेजी सँ प्रभावित भए ओ एकटा क्रांतिकारी निर्णय लेलन्हि जे बेटा के ँ महामाया संस्कृत विद्यालय मे पढ़ौताह आ अपन पितामहक सुयश के ँ पुनः स्थापित करताह।
दिलीप कुमार महामाया संस्कृत विद्यालय मे भर्ती भऽ गेलाह आ लगलाह लघु सिद्धान्त कौमुदी आ अमर कोष रटए। मुदा हुनक प्रपितामह’क युग सँ एहि युग तक बहुत परिवर्तन भऽ गेल छलैक जाहि मे संस्कृत विद्यालय आ मदरसा आदि मे सरकार नवका पाठ्यक्रम लागू करा देने छलैक। नवका पाठ्यक्रम’क अनुसार विद्यार्थी के ँ आनो बिषय जेना गणित, इतिहास आ विज्ञान आदि सेहो पढ़ए पड़ैत छलन्हि। उचिते, संस्कृत’क प्राथमिकता कने कम भऽ गेल छलैक।
मध्यमा पास केलाक बाद दिलीप कुमार आबि गेलाह कोरबा आ पाँड़ेजीक संरक्षण मे लगलाह पंडिताइ के व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करबा मे। अथवा कहू अपरेन्टिस भऽ कए प्रशिक्षण लेबए लगलाह।
पाँड़ेजी दिलीप कुमार के पढ़बा लिखबाक ज्ञानक परीक्षा किछुए क्षणक गपसप मे लऽ लेलखिन्ह। तकर बाद ओ एक प्रकारक क्रैश कोर्स के पाठ्यक्रम बनौलन्हि जाहि मे सत्यनारायण पूजा आ दुर्गा शप्तशती पाठ मूल संस्कृत मे छलैक। आ सब देवी देवता’क प्रार्थना सेहो संस्कृते मे। बाकी हनुमान चालीसा आ रामचरित मानस के विभिन्न उद्धरण छलैक। एकर अतिरिक्त किछु छिटफुट वेदपाठ सेहो। ई सब दिलीप के ँ कण्ठस्थ करबाक छलन्हि।
एहि किताबी ज्ञान के अतिरिक्त व्यावहारिक ज्ञान’क लेल पाँड़ेजी दिलीप के ँ अपना संगे किछु किछु ठाम आयोजन सब मे लऽ जाए लगलखिन्ह। ओतए दिलीप हुनकर असिस्टेंट जकाँ काज करथि, जेना यजमान सँ विभिन्न वस्तुक ओरिआओन कराएब, पूजाक सामग्री सजाएब, आदि। पाँड़ेजीक अनुभव छलन्हि जे जतेक विस्तृत रूपे ँ सामग्री सजाओल जाए, यजमान वर्ग पर ओतबे वेशी प्रभाव पड़ैत छैक। विन्यास’क लूड़ि सीखब मंत्र सीखब सँ वेशी महत्वपूर्ण। एकर अतिरिक्त दिलीप पूजा’क समय पाँड़ेजीक प्रत्येक भाव भंगिमाक सूक्ष्म अध्ययन करथि। सत्यनारायण पूजा मे कथा’क समय भाषा टीका द्वारा हिन्दी मे लोक के ँ ओकर महत्त्व बुझाएब पाँड़ेजीक विशेषता छलन्हि। समय जरूर वेशी लगैत छलैक मुदा एहि सँ पाँड़ेजीक पांडित्यक धाख बढ़ैत छलन्हि। ओ दिलीप के ँ गर्व सँ सुनबथिन्ह “गाम पर पूजा होइत छैक तँ कथा’क समय यजमान आ आनो लोक सब बैसल बैसल ओंघाए लगैत छथि, मात्र पुरहित जी अपने कथा बँचैत रहैत छथि। हमरा कथा बँचैत काल अहाँ देखियौक, लोक आनन्द सँ झूलैत रहैत अछि। बीच बीच मे हमरा संगे सत्यनारायण भगवान के जयजयकार सेहो करैत रहैत अछि। कारण स्पष्ट छैक। संस्कृत मे कथा भेला सँ ककरो किछु बूझऽ मे तँ अबैत नहि छैक। पुरहितजी’क सस्वर पाठ ओहने होइत छन्हि जेना बच्चा के ँ सुतबै कालक लोरी गीत। कथा एहेन भाषा मे कहियौक जे लोक बूझए। बस, अपनहि सब अहाँक संगे एकाकार भऽ जाएत।”
दिलीप एक दिन मन्द विरोधक स्वर मे कहलखिन्ह जे संस्कृत तँ देववाणी छिऐक। तै पर पाँड़ेजी हुनका बड़ नीक जकाँ बुझेलखिन्ह “ देखियौक, संस्कृत देववाणी तखन छलैक जखन सब लोक संस्कृते बजैत छल। देवता’क कोनो वाणी नहि छन्हि। हमरे अहाँक वाणी सँ देवता बजैत छथि।वाल्मीकि रामायण छैक संस्कृत मे आ तुलसीदास रामयण लिखलन्हि हमरा अहाँक भाषा मे। लोक ककरा वेशी पढ़ैत छैक ? एखन अहाँ भगवान’क आरती गबैत छी कि लक्ष्मीजी’क आरती कि आन कोनो देवता’क आरती। सबटा तँ हिन्दी मे छैक आ कतेक आनन्द अबैत छैक लोक के ँ आरती गबैत। एकरे संस्कृत मे बना दियौक, कम्मे लोक बचत अहाँ के ँ संग दै बला। ”
दिलीप बूझि गेलाह असली गप्प। एवम् प्रकारे ँ ओ ट्रेन्ड होबए लगलाह। छोटछीन आयोजन सब मे यजमानक हैसियत देखि पाँड़ेजी दिलीप के ँ एकसरे पठबए लगलखिन्ह। हुनका अतीव खुसी छलन्हि जे लुप्तप्राय पंडित प्रजाति मे एकटा सदस्य जोड़ा रहल अछि।
एक दिन पाँड़ेजी एम एन मिसरा जी सँ दिलीप कुमारक भविष्य के लेल विचार विमर्श केलन्हि। हुनकर विचार छलन्हि जे दिलीप कोरबा छोड़ि कोनो नव जगह चल जाथि। एतए ओ पंडिताइ सिखलन्हि अछि। बारीक पटुआ तीत होइते छैक। अपना इलाका मे कोनो विद्वान के ँ यश नहि भेटैत छन्हि। ते ँ विद्वान के ँ विदेश मे अपन विद्वत्ताक प्रचार करबाक चाही। तहिना पंडित के ँ अपरिचित जगह मे यजमनिका’क प्रसार करबाक चाही। शूरवीर के ँ अनचिन्हार लोक’क बीच जा कए राज करैक चाही। बाहरक लोक के गुण अवगुण’क थाह जल्दी नहि लगैत छैक। ते ँ ई सब दीर्घायु होइत छैक जेना अपना देश मे अंग्रेजक राज।
करीब दू साल तक व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त केलाक बाद पंडित दिलीप कुमार पहुँचि गेलाह सिलबासा जे एकटा नवका औद्योगिक केन्द्र भऽ रहल छलैक। ओतए किछु दिन स्थानीय हनुमान मन्दिर पर एकसरे दिन राति हनुमान चालीसा., किछु रामायण’क उद्धरण आ विभिन्न देवी देवता’क प्रार्थना संस्कृत मे सस्वर पाठ करैत रहलाक बाद शनैः शनैः यजमान सब भेटए लगलन्हि। एतए ओ नवका पंडितजी नाम सँ विख्यात भऽ गेलाह।
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हम सब सिलबासा आएल छी जतए हमर जमाए एकटा फैक्ट्री मे इंजीनियर छथि। ओ एकटा नवका फ्लैट लेलन्हि अछि तकरे गृहप्रवेश’क पूजा छिऐक। एही आयोजन मे नवका पंडितजी बजाओल गेल छथि। हमर बेटी कहलन्हि जे नवका पंडित छथि हमरे ग्रामीण दिलीप कुमार, स्वर्गीय पंडित संस्कार नाथ मिश्र’क प्रपौत्र। ओना मुम्बई मे हमर दीर्घ प्रवास मे गामक ई एकटा परिवत्र्तन हमरा बूझल नहि भेल छल।
हम पूरा आयोजन मे हुनका सँ नजरि बचा कए हुनकर व्यवहार’क अध्ययन कऽ रहल छी। हुनका ईहो नहि बूझल छन्हि जे हम हुनकर ग्रामीण छिएन्हि। ओ अपन काज एकटा नीक प्रोफेसनल जकाँ सम्पादित करैत छथि जाहि मे संस्कृत कम हिन्दीए बेशी रहैत छैक। एकटा आमंत्रित बूढ़ व्यक्ति हुनका टोकैत छथिन्ह “ पंडितजी, हिन्दी मे जे अर्थ बुझेलियैक से तँ नीक लागल मुदा संस्कृत मे पूजा पाठ’क विशेषता किछु भिन्ने छैक। हमरा बुझने तँ संस्कृते वेशी रहितैक तँ नीक।” पंडितजी बड़े संयत भावे ँ हुनका कटलखिन्ह “एतए प्रायः साठि सत्तरि लोक छी। बताउ कते गोटे संस्कृत बूझैत छी ?” सब चुप। पंडितजी आगू बजलाह “ देखू देववाणी सँ लोकवाणी वेशी प्रमुख होइत छैक। इएह बात तँ कवि विद्यापति कहि गेलाह। जे बुझियैक सएह वाणी। नहि तँ हम संस्कृत मे पूजा करी आ कि तमिल मे, दूनू एक्के।” नवका पंडितजी अपन पांडित्यक प्रभाव बना लेलन्हि।
हमरा ई देखि खुसी होइत अछि जे अपन प्रपितामह’क पंडिताइ के किछु अंश जरूर दिलीप कुमार जी बचा रहल छथि। ओना हमरा ई नहि बूझल अछि जे देववाणी’क ई परिवर्तित रूप स्वर्ग मे विराजमान पंडित संस्कार नाथ मिश्र के ँ केहन लागल हेतन्हि।
२
नवेंदु कुमार झा
बिजलीक क्षेत्र मे आत्म निर्भरताक लेल सरकार कऽ रहल प्रयास
बिजलीक संकट झेलि रहल बिहार के अगिला पांच वर्ष मे आत्म निर्भर बनैबाक लक्ष्य राखल गेल अछि। एहि वास्ते सरकार पुरान बिजली घरक मरम्मति संगहि नव बिजली घर बनैबाक दिस डेग उठौलक अछि। ऊर्जा मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव जनतब देलनि जे प्रदेश मे एखन बिजलीक पैघ कमी अछि। सरकार एहि दिस डेग उठा रहल अछि। पुरान बिजली घरक मरम्मति आ नव बिजली घर सेहो बनाओल जा रहल अछि। एकर अलावा बिजलीक खरीदक लेल निजी कम्पनी सभ सॅ पैघ अवधिक समझौता कयल गेल अछि। उम्मीद अछि जे अगिला तीन वर्ष मे प्रदेश के मांगक अनुरूप बिजली भेटय लागत। सरकारक प्रयास अछि जे अगिला पांच वर्ष मे मांग सॅ बेसी बिजली उत्पादन कयल जाय। ओना प्रदेश मे गोटेक 3500 मेगावाट बिजलीक आवश्यकता अछि। केन्द्रीय पुल सॅ बिहार के गोटेक 1300 मेगावाट बिजली भेटि रहल अछि। श्री यादव जनौलनि जे वर्तमान स्थिति सॅ निपटबाक लेल खुलल बजार सॅ बिजलीक खरीद कयल जा रहल अछि। सरकार प्रदेश मे तीनटा नव बिजली घर बनाओल जा रहल अछि। औरंगाबाद नवीनगर मे एनटीपीसीक संग 2000 मेगावाटक बिजली घर बनाओल जा रहल अछि जे 2015 धरि चालू भऽ जायत। एहि ठाम सॅ 75 प्रतिशत बिजली बिहार के भेटत। बरौनी आ कांटी स्थित बिजली घटक क्षमता बढ़ाओल जा रहल अछि। कांटी मे 195 मेगावाटक आ बरौनी मे 200 मेगावाटक दू-दूटा इकाई स्थापित कयल जा रहल अछि।
प्रदेश के बिजली संकट सॅ मुक्ति देयैबाक लेल सरकार पुरान बिजली घर सभक मरम्मति सेहो करा रहल अछि। एहि दिस तेजी सॅ काज भलि रहल अछि। उम्मीद अछि जे अगिला वर्षक अंत धरि कांटी आ बरौनी बिजली घरक मरम्मतिक काज पूरा भऽ जायत। एहि सॅ प्रदेश के गोटेक 400 मेगावाट बिजली भेटत ओतहि सरकार आब खुलल बजार सॅ सेहो बिजलीक खरीद कयल जा रहल अछि। मंत्री जनतब देलनि जे सरकार एनटीपीसी आ अदाणी पावर सॅ बिजली खरीद रहल अछि हालांकि एहि वास्ते सरकार के प्रति यूनिट 4.10 टाका बेसीक दाम लागि रहल अछि। पैघ अवधिक बिजली खरीदक समझौता सेहो कयल गेल अछि। एकर अंतर्गत तिलैया स्थित रिलांयंस पावरक मेगा थर्मल पावर प्रोजेक्ट सॅ बिजली खरीदक निर्णय लेल गेल अछि आ लातेहार स्थित एस्सा पावरक निर्माणाधीन बिजली घर सॅ 1000 मेगावाट बिजलीक खरीद कयल जायत। प्रदेशक कारोबारी बिजलीक क्षेत्र मे सरकार द्वारा कयल जा रहल प्रयास सॅ खुश छथि। हालाकि किछु कारोबारी बिहार राज्य विद्युत बोर्डक पारेषण क्षमता पर प्रश्न चिन्ह ठाढ़ कऽ रहल छथि।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.अमित मिश्र- बाल गजल: कोमल करेजक आखर २.मिहिर झा- बाल गजल
१
अमित मिश्र
बाल गजल: कोमल करेजक आखर
आइ समाज के भेद-भाव ,ऊँच -नीच . जाति-पाति गसिया क' पकड़ने अछि । सब काज मे छल-कपट भ' रहल अछि मुदा इ जातिसँ अलग एकटा और जाति अछि । जहिना गाछमे अरहुल-गेँदा -गुलाब आकर्षित करैत अछि ओहिना इ जाति समाजक सब वर्ग के चुटकी मे अपन बना लैत अछि । इ ओ जाति अछि जै सँ जँ लोकक वश चलत त' कहियो बाहर नै हएत । इ जाति अछि "बाल जाति" । एहि दुनियासँ फराक बाल-मोनक एकटा अलगे दुनियाँ अछि । एत' ए .सी बला कार त' नै मुदा घुरकुन्ना अछि , एत' पुआ -पकवानसँ बेसी स्वादिष्ट तिलकोर पातक पूरी . जनेरक कुट्टी के तरकारी आ बालुक चिन्नी अछि । एहि दुनियाँ मे खेलक अंदाज अजुबा अछि , खेल बेसी अछि आ सबसँ बेसी अछि आपसी प्रेम ।
कोनो खेल होइ मिल-जुलि क' खेलै छथि । कखनो बाबा जकाँ खैनी चुनाबै छथि त' कखनो मास्टर जीक नकल करै छथि । कखनो हँसैत ,रूसैत छथि त' कखनो रूसल मे हँसै छथि ।
हिनकर हँसनाइ , कननाइ ,रूसनाइ , खेलनाइ सब नीक लागै छै आ इएह कारण छै जे लोक एहि दुनियाँ मे बेर-बेर आब' चाहै छथि । आखिर किएक नै औता , कहल गेलै यै ,"बच्चा भगवानक रूप होइ छथि ।"
जहिना भगवानक महिमा अपार छै तहिना बाल मोन के कोनो सीमासँ नै बान्हल जा सकै यै ।
बाल मोन के शब्द मे बन्हनाइ जतबे आसान छै ओतबे कठीन सेहो छै ।बच्चाक करेज बड कोमल होइ छै तेँए एहन बात लिखबाक चाही जैसँ हुनक मोन प्रसन्न होइ , जे ओ सब दिन अपन दैनिक जीवन मे करै छथि । दोसर बात हम कह' चाहब जे बाल-विधा के सदिखन आशावादी हेबाक चाही ।
किएक त' जँ नेनपन सँ आशा लागल रहतै त' जीवनक सब वाधा के हँसैत-खेलैत पार कएल जा सकै यै । बाल विधाक शब्द सदिखन सरल हेबाक चाही । एहन पाँति जे सरल होइ आ जल्दीए भाव समझ मे आबि जाई . बाल मोन के क्षण मे प्रसन्न क' दै अछि । संगे जँ राइम्स मे लिखल गेल होइ त' नेनाक जीभ पर एहन चढ़त जे वयस्क भेलोपर नै उतरत ।
ऐ के लेल गजल उपयुक्त विधा अछि किएक त' गजल मूल रूपसँ राइम्से के खेला अछि । काफिया , रदीफ सब तुकान्ते के पालन करैत अछि । हरेक दोसर पाँति एहि नियम के पालन करैत अछि ।
कविता मे पाँतिक संख्याँ निश्चित नै अछि मुदा गजल मे कमसँ कम दस टा पाँति हेबाक चाही आ एते पाँति के इयाद करब कठीन नै अछि । एकटा बात और मोन राखू जे बाल-गजल मे गजलक व्याकरण मे कोनो परिवर्तन नै होइ छै । बाल-गजल मे मतल , मकता , काफिया , रदीफ आ बहर ओनाहिते रहतै जेना वयस्क गजल मे रहैत अछि ।
बाल मोनक सटीक आखर लिखबाक लेल , आँखि मुनि अपन नेनपन इयाद करू , इयाद करू जँ अहाँ की सब करै छलियै नेनपन मे , आ जे दृश्य देखाइ पड़ैए ओकर गजलक रूप मे शब्दबद्ध क' लिअ , नै त' अपन आस-पड़ोसक नेनाक आचरण देखू हुनक दैनिक क्रिया देखू , ओ की करै छथि देखू आ ओकरा शब्दसँ बान्हि लिअ । बाल मोनक कोनो सीमा नै अछि तेँए जे मोन अछि से लिखू मुदा शब्द सरल राखू । अपन रचना मे ग्यान-विग्यानक तड़का लगाबैत रहू आ कोमल करेजक आखर रचैत रहू ।
२
मिहिर झा
बाल गजल
कसीदा केर एक हिस्सा होएत छैक "नसीब" | "नसीब" मे कवि के केन्द्रविंदु ओकर अदम्य चाह, ओकर अपन प्रेमिका सों अगाध प्रेम, अपन प्रेमिका सों विरह आ ओहि विरह सों उत्पन्न असह्य विरह पीडा | एहि "नसीब" से जन्म भेल गजल के | गजल शुरुआत मे आ बहुत दिन धरी एहि विषयवस्तु (सृंगार, प्रेम,विरह आदि) पर आधारित छल | भौतिक रूप से छोट रहबाक कारण आ मनुखक सब सों आकर्षणक विषय वस्तु रहबाक कारण गजल सब से लोकप्रिय भ गेल आ धीरे धीरे कसीदा मृतप्राय भ गेल |
गजल जखन विकसित भेल, सृंगार, प्रेम आ विरह के अलावा अपना मे नव नव आयाम जोडैत चल गेल | सामाजिक, भक्ति, राजनीतिक, व्यंग्य एकर अंग बनैत चल गेल | एतबहि ने, ई फ़ारसी, अरबी, उर्दू होइत अँग्रेज़ी आ आन पश्चिमी भाषाक संग हिन्दी, मराठी, गुजराती आ मैथिली मे अपन आत्मा के अक्षुण्ण रखने अपन रूप परिवर्तित करैत चल गेल |गजल के प्रभाव एतेक तीक्ष्ण रहल जे भाषा कोनो होउक, लोकक करेज मे ई सीधा स्थान बना लेलक |
मैथिली गजल मे किछु मास पूर्व ग़जालकार लोकनि एक टा नव प्रयोग शुरू केलन्हि - "बाल गजल" | हमरा ज्ञातव्य मे एखन धरी कोनो भाषा मे बाल विषय वस्तु पर गजल नहि लिखल गेल अछि | शायद ई प्रयोग मात्र मैथिली गजल मे पहिल बेर शुरू भेल आ विदेह पर बहुत रास बाल गजल लिखल आ सराहल गेल | ई बाल गजल सब सरल वार्णिक बहर आ अरबी बहर दुनु मे समान मात्रा मे लिखल गेल | किछु बाल गजल बच्चा लोकनि के एतेक प्रिय लगलन्हि जे ओ सब अपन धुन मे ओहि गजल के घर पर गुनगुनाबय लगलाह |
गजल के कोनो भाषा मे प्रवेश कय अपन स्थान बनेनाइ आब बहुत महत्वपूर्ण घटना नहि रहि गेल | लेकिन गजल विधा मे नया आयाम देनाइ एखनहु महत्वपूर्ण घटना छैक आ मैथिली और विशेष कय विदेह लेल ई सम्मान के वस्तु छैक जे ई गजल मे ई नव आयाम अनलक | सब बाल गजलकार के हार्दिक अभिनंदन आ धन्यवाद विदेह के जे बाल गजल विशेषांक निकाललथि |
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
श्री राज
यात्राीक कवितामे गाम
स्थानीयतासँ सार्वभौमिकता तकक निरंतर कविता-यात्रा केनिहार, लेखन आ देखनमे अति साधरण लगनिहार अति विशिष्ट, असाधारण आ अप्रतिरूत कविक नाम-ए यात्री। श्रेष्ठतम रचनाकारे नै श्रेष्ठ नवमानवतावादी युगक उन्नायक, उद्गाता आ शलाका पुरूष। यात्रीक कविता गम्हारिक शील भेल करैए जे देखबामे तँ सभसँ अनुपयोगी लकड़ी पिट्ठाक समतूल लगैए मगर उपयोगितामे एके ठाम विविध काठक गुण आ वैशिष्ट्य उपलब्ध करा दैए। कोनो अतिरिक्त मानस संवेदनक बिना। हुनकर कविता सभक लेल भेल करैए। जत्ते आ जतबे जकर ग्राह्यता आकि अभिरूचि। जै तीमनमे अपने स्वाद गुण छै, ओइमे बेसी मर-मसल्लाक कोन खाँहिंस। जे वास्तविक रूपमे बिना अतिरंजनक ‘सत्यम्’ छै ओ अनारोपित ‘सुन्दरम’ हेबे करतै। ज्ञान आ अनुभवक काशीमे लोक अस्सी बरिस सोझे बिताइयो लेत तैयो कि दूनूमे सँ किछु बिना प्रयासक थोड़बे भेट सकतै। तैं बहुतो भौतिक प्राप्तिक भट्टीमे भँाडे़टा झोंकैत रहि जाइ-ए। बर्तज बाबा यात्रीयेक ‘चानन बुझि देहमे किदन लेपैत रहि जाइए’ आकि कथीदन पर फूल-घी चढ़ा-औंसि पुण्य लाभक दुराशा आ भ्रमक परसादी लेने घुमि-फिरि अबैए। यात्राी बाबा अपन कथ्यकेँ कोनो सँाचमे गढ़ि कऽ पाठकक आगू नै राखि सोझ-सोझ बिना कोनो रंग-टीप क उपस्थित कऽ दै छथि, तैं पाठक हुनकर कविताक कथ्यसँ सोझे जुटि जाइ छथि। आलंकारिकता आकि कल्पनाशीलतामे बोरिया पाठक बाम-बूच नै जा सकैए। यात्री अपन कवितासँ सम्पूर्ण रूपसँ मिथिलांचलक किसान आ गमैया मजदूर आ मुख्यतः ओही नजैर सँ पूरा भारतीय समाज केँ ओकर प्रबलता आ दुर्बलता संग देखैत उजागर करै छथि। तैं हुनक कवितामे वर्णित सामग्री सोझे समाजसँ ओतऽ गेल रहैए आ हमरे बात कहैए। अपन परिवेश आ अपन संवेदना द्वारा यथार्थकेँ टोहियेबाक एगो चेष्टा यात्राीक कवितामे सभतैर भेटैए। जिनगीक यथार्थ सँ सरोकार रखनिहार एगो खँाटी रचनाकार मात्रा ऐन्द्रिक सुन्नरते केँ नै चित्रित करैए अपितु ओ जिनगीक कुरूपताकेँ सेहो अँाकैए। ओजह ई छै जे जिनगीमे सभ किछु सुढब-सुन्नरे नै छै। ओइ जघ सुन्नरताक पीठ-पाछू कुढब, चँाछल आ धोखाधरियोक अस्तित्व छै। यदि एक दिस गामक अपार आ असीमित सुन्नरता छै तँ दोसर दिस गाममे बसनिहार लोक टोला-परोसक उधेसल- पुधेसल, उजरल-अपटल जिनगीक दर्दनाक कुरूपता सेहो। एतेक थाकल-हारल आ थकुचल जिनगी कि सुखक सभ बात गामक रहरहँा लोकक लेल रूप कथे बुझाइत रहै छै। फेर मुट्ठी-दू मुट्ठी भात आकि किछु टुक्का-साबुत सोहारी आ दालि कि तीमनक झोर जुमि गेलापर ओ दिल्लीक दरबार आकि रंगमहलक सुध किए लेत? यएह तँ अछि ऐ जिनगीक असीमित विरोधभास। यात्री अपन कविताकेँ ग्रामीण परिवेश आ अपन संवेदना द्वारा यथार्थ केँ देखैक प्रयास निरंतर करै छथि। सभसँ खास बात तँ यात्राीक कविता मे ई ऐ जे ओ कविकर्म केँ प्रतिष्ठामूलक नै, अपन विशिष्ट संवेदनशीलताक दायित्व पूर्वक व्यवहार करब मानैत रहल छथि। यात्री जेहन काव्य युगक निर्माण केलनि, ओकर तरूमे नै जा बेसी रचनाकार ओकर आकृतिकेँ स्वीकार आकि खारिज करैत रहलाह। ऐ फाँटक रचनाकार लग गामक अति जरूरी मुदा उपेक्षित थीतिक खबैर तँ रहै छनि बलू गोबर केँ गणेश आकि पाथर केँ भगवान बनेबाक मुद्रा आ चेष्टामे। यात्रीक कवितामे पाथर बनि गेल लोकक सुधि आ संधान भेटैए। गाम घुरू (भुसपुतरा) आकि ठठरीक ‘फोटो’ जेकँा हुनकर कविता मे नै अबैए। जेतऽ यथार्थ युग-सत्य बनि जेबाक ओजह सँ विज्ञापनी मंडीमे थोक रूपसँ उतरैए जरूर, बलू ओइमे नै तँ गामक आम जनक थीते उजागर भऽ पबैए, आने खास लोकक चरित्रो उघारल-उधेसल जा सकैए। जहिना वर्तमान समयमे वैश्विकता सुनबामे तँ वसुध्ैव कुटुम्बकम् अथवा मार्क्सक दुनिया भरिक मजदूरक एकताक आह्वान सन उदात्त बूझि पडै़ए बलू क्रिया आ असैर मे एकर विपरीत एक छत्रा साम्राज्यवादिक सूत्र सौन्दर्यवादी सुकुमार कविक गाम सँ फराक यात्रीक गाम तखने ऐ जे मूल रूप सँ किसान आ खेत-मजदूरक पक्षधरता हिनकर कविताक गामक प्रतिबद्धता ऐ, कोनो ‘फैशन’ नै। आ अही ओजह सँ अपन जिनगीक सभसँ कम, जटिल आ आरंभिके काल खंड अपन जनमथान तरौनी मे बितबितो हुनक कवि ओकर गुरूत्त्वाकर्षण सँ मुक्त नै भऽ पबैए। देश-विदेश सभतरि सर्वाधिक रहनिहार ई यात्री कवि कोनो शहरी उद्यान; पार्कमे ब्योंतल आ करतब, ड्रिल कराओल मौसमी फूल आकि पत्ताबहार, क्रोटन क चाक-चिकपर आकृष्ट नै होइ छथि बलू ओत्तौ गामक चर-चाँचरमे अगराइत भेंट-कुमुदिन, माछ-मखान, लीची आ आम सभ कथूक नैसर्गिक सुन्दरता केँ नै बिसरि पबै छथि- कत्ते दीब लगैए हमरा अपन ओ तरौनी गाम। मोन पड़ैए लीची आ आम। मोन पडै़ए कुमुदिनी आ ताल मखान। गाम सँ दूर रहबाक कचोट स्पष्ट रूप सँ व्यक्त करैत अपन विवशताकेँ फरिछाकऽ रखै छथि यात्री अपन कवितामे। खाहें तन सँ कतौ रहथु बलू मोन मैथिल जातीय भारतीयता सँ हेंठ नै भऽ पबैए। होइ कोनहुँ ठाम। किछु भै जाइ। रही बहुतो दूर वा लगीच। बंधुगण बरू दुरदुराबथु किंतु। जननि राखब भाव अँह जननीक। एकरा आर फरिछाबैत एक ठाम ओ कहै छथि- किंतु की हम बिसैर पाएब। तरौनी सन गाम? गड़हरा सन आम? दीदिक इनारक पानि। अपन पोखरिक ओ ठुट्ठ पातर जाठिं।... धनरूर बाध कोसक कोस। हुनकर अनुराग सिन्दूर तिलकित भाल पर केन्द्रिते रहैए। आकृष्ट करैए कवि केँ नेनाक थोंथ हँसी, जेकरामे महज सुन्नरते नै, संजीवनी शक्तिक संचारक छेमता ओ पबै छथि। अहल भोरे जाड़ मासमे गाममे ओरियाओल छूराकेँ तपैत, जिनगीक सुख-दुःख मादे निष्कपट बतियैत, घूराक सोन्हगर गमैया गंधक पता ओहन आत्मीय भाव सँ कोनो यात्राीये सन माटि-पानिक कवि केँ भऽ सकै छै। आंचलिक बोलीक मिज्झरक, मिक्सचर अर्थात् संकीर्णता सँ हेंठ अनगढ़ बोली कोनो कवि यात्राीयेक कान जुरा सकै छै। जूता-मोजाक टीप-टाप पर नै ठेला आ बेमाय फाटल गोर पर कोनो कवि यात्राीयेक नजैर जा सकै छै। दू-गो बिम्ब जे खँाटी गमैया ऐ, आम लोकक आशा-आकंाक्षाक प्रतीक ऐ- दूधिया शीश आकि बालि ओ श्रमक फलाफल सोनिम पाकल शीश अधिक ठाम श्रमक गायक ऐ कविक कविता मे अबैत रहै-ए।
वर्तमान व्यवस्थापक प्रतीक ध्ूरू (भुस्सा भरल झामलाल बिजुका) क माध्यम सँ तँ कवि पूरा व्यवस्थापक चरित्र ओ थीत केँ बेपर्द करै छथि। चेतना हीन जनतंत्रक मालिक जनता साकांक्ष नै भऽ गफलैत मे पड़ल रहैए आ ओकर ओगरबारू प्रतिनिधि अपनेमे टर्र भाँजटा पूरैत रहै-ए। उपरका जँ सरङमे बिचरैत रहैए तँ निचलका दिन-दिन पताले धँसल जा रहल-ए। दूनू फँाट अपचक शिकार। बेसी कदन्न सँ तँ कम अधिक पौष्टिकता सँ। प्रतिनिधिक मगज आ करेज मे भुस्सा भरल बुझा पडै़-ए जै पर खद्धर, स्वदेशीक आङरक्षक खाल चढ़ल ऐ। अकालक ओजह सँ स्वतंत्र गामक अस्सी प्रतिशत लोकक त्रासदीक केहन सजीव चित्र यात्राीक कवितामे संभव भेल ऐ-’ बिना पजारक मन्हुवाएल चूल्हि, कामहि जँात-चकरी, अन्नदाताक संग समान जिनगी बसर तै त- बरतैत आश्रिता कनही पिलिया, लाभर-जीभर अहरा प्राप्त केनिहार गिरगिट, मूसआ कौवा सभक उदासी, हतासी आ फेर आंशिक जरूरैत पूर्ति सँ टुकटुकाएल ओकर सभक चेष्टा आ चुहुल केँ भला कोन ‘फेन्सी’ कवि एते कममे एते विराटताक संग प्रस्तुत करबाक सामरथ राखि सकैए।
भाखा केँ हम अभिव्यक्तिक माध्यम टा मानैत रहल छी तैं यात्राी आ नागा जनमे अंतर करबामे असोकर्जक अनुभव करैत छी। मूल वस्तु तँ छिऐ कथ्य। गोल कऽ दियौ तँ लालमोहन, नाम तँ गुलाबजामुन। हलवाइ तँ एकेगो- यात्री कहियौ कि नागार्जुन। गरीब-गुरबा, किसान आ मजूरक आत्मीय समाङ। कतौ पं वैद्यनाथ मिश्र नै कलगणारक रूप मे। मनुख तँ वास्तविक रूपमे अगबे मनुखेटा रहै छै। दोखी तँ भेल करै छै कोनो व्यवस्था माने संचालन तंत्र। जँातक काज छिऐ पिसनाइ। अखियासबाक तँ एतबे छै कि ओइमे ढारल की जा रहल छै- कोदो-मरूवा आकि चाउर-गहूम। सद्यः व्यवस्थाकेँ खेलौड़िया मुद्रामे लुल्हुवा देखेबामे बाबा यात्राी-नार्गाजुन हिन्दीक माध्यमसँ भाव व्यक्त्त केनिहार किसान कवि त्रिलोचन आ केदारनाथ अग्रवालो सँ सहज आ पटु देखनामे अबै छथि।
जनसंकुल टीसनो पर कवि गामेक अँाखिक प्रयोग करैत देखल जाइ छथि। ओइ लोक वरक अपार भीड़ोमे लोक-मन अर्थात निम्नवर्गीय ग्रामीणे परिवेशक दुरगमनियँा कनियँा-बरे पर कविक अँाखि जाइए। पारंपरिक रङल-टीपल बाकस पर ओङठलि घोघ-मरद काढ़ने नवकनियँा आ ओकर रछिया लेल बहाल लोकनियाँ चानीक टकहीक हर पहिरने, माङुर माछ सन काठी आ सिमरताइवाली आँखिसँ गामेक अनगढ़ सुन्नरताक पारखी कोनो कविक अँाखिटा देखि सकैए। तेज सबारीक बिरड़ो आ घटाटोपक अछैतो भदबारिक भीजल घोंघा सन (सूक्ष्म गमै उपमा) मंद ससरैत ट्रामे पर कविक अँाखि जाइ छनि। गामक हरेक मोर्चा पर यात्राीक कवि साकंक्ष ठाढ़ भेटैए। माटिक सभ स्पंदन हुनकर कवितामे निनादित होइए। तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सभ प्रकारक विद्रूपताक खबैर यात्री लैत चलैत छथि, संगे गामक सम्पूर्ण जिनगीकेँ रूपायित सेहो करै छथि। गामक लोकक सभ आशा-आकांक्षा, दुःख दरेग, हँसी-खुशी, सौन्दर्य-कुरूपता, जय-पराजय, उत्थान-पतन, कमजोरी-मजगूती, समटा समभाव सँ हुनकर कविता-यात्रा मे सरीक रहैए। कविकर्म हुनकर धर्म छनि, जिनगीक मर्म छनि। कतौ लौल, सौख आकि प्रदर्शनकामिता नै।
यएह ओजह ऐ जे प्रगतिशीलताक प्रर्दशन मे ओ अपन मैथिल समाजक ;स्थानीयताक सभसँ ज्वलंत आ अपरिहार्य समस्या वैवाहिक दुर्गुण सभसँ सेहो मुँह नै मोडै़ छथि। ‘यत्-यत् पिण्डे, तत् ब्रह्माण्डे, स्थानीयता सँ सार्वभौमिकता हुनक आदर्श बुझा पडै़ए। सरजमीन सँ कटि अकासक गप्प कखनौं नै। तैं मिथिलांचलमे व्याप्त बेमेल बियाह, बहु बियाह आदि दुर्गुण सार्वभौमिकताक हुनक विशद दृष्टिक अछैतो ओत नै भेल ऐ। तत्कालीन मैथिल समाजक खाहें बेमेल बियाहक स्पष्ट चित्रण हो आकि चरित्रक उद्घाटनक संग तहियाक पेशेवर घटकक सजीव आकलन जेना यात्रीक कवि कऽ सकल ऐ, निस्संदेह मिथिला केन्द्रित आन कोनो कवि सँ संभव नै भऽ सकल। संस्कृतिक एहन सम्यक आ निठुर व्याख्याक संयम अंतऽ कतौ भेटब दुर्लभ।
गामक-घर, माटि-पानि सँ केहन संव्यक्त्त छला ओ एकर परिचय तँ सुगमताक संग जेतऽ–तेतऽ भेटते ऐ, तैयो बानगी सरूप किछु पतियानी उदघृत करबाक इच्छा केँ नै रोकि सकबाक विवशताक संग एतऽ राखऽ चाहै छी जे बाल-विधवाक दुःख दैन्यकेँ सूक्ष्मताक संग उजागर करैए ‘‘भुस्साक आगि जेकँा नहूँ-नहूँ। जरै छी मने-मने हमहूँ। फटै छी कुसियारक पोर जेकँा। चैतक पछबा मे ठोर जेकँा। काते रहै छी जनु घैल छुतहर.....।’’
यात्राी अपना केँ कतौ विशिष्ट नै, अपन कवित्त्व केँ सामान्ये मानैत रहल छथि। जहनि कि सभ मतक माननिहार सारस्वत चेतनाक सर्वोपरि सिद्धि मानैत रहल छथि, तेनाहितियो मे यात्री अवसरक अनुकूलते केँ आने सफलता जेकँा सर्वोपरि मानै छथिथ। परम मेधवी कते बालक जेतऽ। मूर्ख रहि गायटा चरबैत छथि। .......कालिदास कते। विद्यापति कते। छथि हेरायल महिंसबारक हेंड़मे। यात्राीक शिल्पी गामक ‘कमर्शियल’ सौन्दर्य केँ प्रस्तुत करब मात्र अपन अभिष्ट किन्नौं ने रखने ऐ। ओ यथार्थक एहन समतल भूमि तैयार करैत चलै छथि कि ओ अनायास ‘सुन्दरम्’ भऽ कवितामे प्रकट भऽ जाइए, वनफूलक महमही जेकँा। जौं एक दिस हुनका फसिलक मंजरीक दुर्लभ महमही अभिभूत करै छनि तँ दोसर दिस जेठक तिक्ख आतप केँ सहैत कृषि कर्म मे साधनारत बीया बाउग केनिहार हाथ ओ मुँहक दूरीक सुरता सेहो सतबैत रहल छनि। ग्रामीण क्षेत्र दऽ’ बुलैतहैत तीरभुक्त्तिक माला हुनका नै सिहाबै छनि। थलहा कृषि –कर्मसँ लऽ जल-कृषक मलाहक जिनगी तकक शैली ओ संास्कृतिक चेतनाक सूक्ष्म ज्ञान बाबाक ओतऽ जतबा ऐ, आनठाम एहन आ एते दुर्लभ ऐ। एकर संगे नदी सभक प्रलयंकारी ताण्डव आ ओइसँ उपजल ओबा-टुनकी, मरकी-फौती सँ सेहो छगाइत छथि बाबा यात्री।
एकर विभीषिका सँ कोन फाँट पर कोन असैर पडै़ छै नीमन जगती बूझल छनि कवि यात्राीकेँ। एकेगो थीत केना ककरो गोटी लाल करैए, ककरो उफँाटि तँ ककरो पबन्नी लगबैए आ ककरो खेले उसरि दैए।
सहज सपर्द भाखामे विराट शब्द अभिव्यंजना जे यात्राीक ओतऽ भेटैए ओ कोनो खँाटी ग्रामीणे संस्कारक कवि ओतऽ संभव छै। नव निर्मित मुलकी व्यवस्थाक प्रति मोह- भंगक मादे स्पष्ट आ संधानल कसगर चोट करितो फूलगेना सँ प्रहारक मुद्रा ऐ महान कविक अपन विशेषता रहल-ऐ। यात्री अपन लोकदृष्टिकेँ गमैया संस्कारक ओजहसँ घोघटामे बादरिक चान सन भँापि, अपवाद थीतिकेँ छोड़ि, प्रस्तुत करैत रहल छथि जे निश्चित रूपसँ ग्राम्य संस्कारेक असरि ऐ। स्वदेशी त्रुुटिपूर्ण आ जंगलशाही वर्त्तमान व्यवस्थापक प्रति मोहभंग केँ यात्री सोझ-सहज हाड़ तक छूबऽ बला शुरमे व्यक्त्त करबाक सामरथ रखै छथि तै पर थोड़ेक दीठि देल जाय - चानन बुझि हम किदन लेपल देह मे। वाहरे ! महान कविक शब्द अभिव्यंजना। आम लोक केँ उमेद रहै चाननक शीतलताक, बलू भेटलै वएह निर्घिन अवशिष्ट-नव व्यवस्थाक चरित्र केँ केहन मर्यादित गमइ संस्कारक संग उधेसबामे सफल होइ छथि- पूँछ उठाकर नाच रहे हैं ‘पार्लिया-मेन्ट्री मोर’। बिखिन-बिखिन बिम्बक प्रयोगक अनिवार्यताक अछैतो भारतीय ग्राम्य संस्कारक केहन निर्वहन। अखारा पर दम प्रदर्शन सँ बेसी दम पचेबाक प्रक्रिया बेसी कुशलताक मानल जाइ छै। ई बात भिन्न जे ऐ ग्राम्य सहज चेतना केँ गरियेबाक उदेस सँ गमार आकि भदेसी विशेषण सँ अभिहीत किए ने कएल जाउक। यात्री नव मानवताकेँ आकृतिक आधार पर छोट-पैघ आङुरक छपाटि हाथकेँ सुरुब बनेबाक दलील देनिहार मिथ्याकार सभक फाँटक नै भऽ सकै छथि, ओजह जे हाथ ‘स्वस्ति-स्वाहा’ सभ कथूमे सक्षम आ मूल भेल करैए जहनि कि सुरूब अनुकृति मात्र। ओ कोनो प्रणालीक संचालनक सामरथ नै राखि चमचा चालन मात्र कऽ सकैए। साम्यक अर्थ युगकवि यात्री सभंजन जेकि भारतीय दर्शनोक मूलाधार ऐ, सएहटा लगबैत रहल छथि। कोनो वायवीय अर्थक आधारपर सत्यकेँ खारिज करबाक कुप्रयास ओहन महामना कवि भला किए करत?
एतावता जनवादी चेतना आ ग्रामीण सौंदर्य-बोध महान कवि यात्राीक जिनगीक सहज उच्छवास आ ऊर्जा, करेजक ध्ुकध्ुकी आ धमनीक प्रवाहित रक्त्त रहल ऐ।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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