२
ओमप्रकाश झा
बाल गजल
करबा नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ
हम छी छोट सपना पैघ हमर छै गे
कीनब कार जकरा पर चढबै हमहूँ
टूटल छै मडैया आस मुदा ई छै
सोना अपन छत कहियो मढबै हमहूँ
चारू कात पसरल दुखक अन्हरिया छै
कटतै ई अन्हरिया आ बढबै हमहूँ
पढि-लिख खूब सब तरि नाम अपन करबै
जिनगी "ओम" सुन्नर ई गढबै हमहूँ
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
(मफऊलातु-मफाऊलातु-मफाईलुन)- एक बेर प्रत्येक पाँति मे
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१.शिव कुमार यादव- बाल गजल २.शिव कुमार झा- कविता/ गजल३.किशन कारीगर- हास्य कविता
१
शिव कुमार यादव
1
बाल ग़ज़ल
पूर्णिमा मेला ऐलए गे माँ
मेला देखऽ हमहुँ जेबए गे माँ
इस्कुल मे सेहो छुट्टी देलकए गे माँ
दोस-मीत मेलाक ओरिओन कैलकए गे माँ
बड़की दैया के संग लऽ लेबए गे माँ
दाए-बाबा के सेहो कहि देबए गे माँ
गामक कतेक लोक मेला चलतए गे माँ
काका-काकी आ बौआ सेहो तैयार भेलए गे माँ
मेला गाम सँ दुर लगए गे माँ
पैरे-पैर नए, तोरा कोरा मे बैठबए गे माँ
मेला मे बड़ भीड़ लगलए गे माँ
आँगुर तोहर धरने रहबए गे माँ
खुब जतन सँ मेला देखबए गे माँ
"शिकुया" घिरनी-मिठाइ-झिल्ली कीनबए गे माँ
२
शिव कुमार झा- कविता/ गजल
कविता-
सुखार
काल रहसल त्रास बहकल
मधुमासे संत्रास महकल
अषाढ़ कुपित इन्द्र रूसल
जल बुन्न बिनु बिआ विहुसल
आड़ि चहकल खेत दड़कल
प्रशान्तक प्रकोपे मनसून सरकल
शोषित कलकल जुआनी गरकल
रोहिणी-आरदरा सुखले रमकल
“ग्लोबल-वार्मिग” फनकल
क्षुब्ध प्रकृति सनकल
विज्ञानक चमत्कारमे उच्छ्वास छनकल
गाछ काटि फोर लेन बनेलौं
पहिने किअए नै नवगछुली लगेलौं
अपने गतिक स्टेयरिंग पकड़लौं
मजूर किसानकेँ घर बैसेलौं
कृषि प्रधान देशमे नोरक स्नात
आँखिक शोणितसँ केना भीजत पात?
ऐ बेर सुखाड़ साउनो बीतल
दीनक आत्मा तीतल
भदैया बूड़ल रब्बीक कोन आश
सुक्खल मुरदैया मरूझल कास
अगिला साल आओत बाढ़ि
देलौं खेतिहरकेँ ताड़ि?
वाह रौ विज्ञान वाह रौ धनमान
बिनु हथिहारें लेलें गरीब-गुरवाक जान
जकर भऽ सकए संलयन आ विघटन
आयुर्वेदमे तइ रसायनक चर्चा
विज्ञानक बाढ़िमे सगरो पाॅलीथीन
कागत छोड़ि वाॅटि रहलौं प्लास्टिकक पर्चा
आजुक रसायनसँ माटिक कोखि उजड़ल
ठुट्ठ डाॅट किछु नै मजड़ल
प्लास्टिक छोड़ि लिअ जूटक बोरा
पाॅलीथीन नै ठोंगा-झोरा
छोड़ रौ धनचक्कर
एडभान्स बनबाक चक्कर
पकड़ेँ अपन बाप पुरुखाक देल हथियार
धरे मौलिक संस्कार
केमिकलसँ नहा तँ लेबें
मुदा! की चिबेबें....?
दूटा गजल
(1)
कालरात्रिमे महमह दिनमान कोना आएत
मोनमे पाप झबरल भगवान कोना आएत
नहि जड़ै प्राण वायु मरल सरल देह संग
अधम नीचाँ खसत धर्म गगनमे बिलाएत
माँझ आंगन काँटक बोन नहि रोपू प्रियतम
काग कोइली सन कोमल संतान कोना पाएत
विरह मासमे ने सोहर सोहनगर लगै छै
कंठमे पित्त चभटल मधुगीत कोना गाएत
अपने करू रास लीला नेना दूध बिनु कानए
कर्मभीरू पुरुखकेँ जयकार कहेन हाएत
(2)
कहू की बात हम मानिनि कलुष भऽ गेल अछि अर्पण
कोना सहबै अखल कंटक दबै छै टीसतर तर्पण
सोहाबै नै खुशी सरगम समाजक हास परिलक्षित
धुनै छी देल कालक गति गदराबै नै विकल जीवन
पतित नियति आकुल भेलै जड़ल अर्णव तरंगे छै
सूतल ईश सभ पंथक एलै समभावमे विचलन
बाहरसँ जे जत्ते गुमसुम हिआसँ ओ ओते बिखधर
चानन बहलै उषाकाले वाह रौ जहानक संकर्षण
भेटल जेकरा जतऽ अवसरि हाथ धोलक हलालीसँ
नीतिक मंचपर चढ़िते करै माटि नेह प्रति गर्जन
३
किशन कारीगर
अहींटा एकटा नीक लोक छी .
हास्य कविता
"कारीगर" कतेक दिन बाद परीक्षा पास केलक
ओ त बड्ड बुडिबक अछि
अहाँ त बड्ड पहिने बड़का हाकिम बनि गेलौहं
ताहि द्वारे अहींटा एकटा नीक लोक छी .
अहाँक सफलताक राज त
कहियो ने कियो कही सकैत अछि
अहाँ अपने लेल हरान रहैत छी
आ अहींटा एकटा नीक लोक छी .
सर समाज सँ कोनो मतलब नहि रखलौहं
परदेश मे दूमंजिला मकान बना लेलौहं
गाम घर सँ स्नेह रखनिहर कें
अपनेमने अहाँ बुडिबक बुझहैत छी .
अप्पन सभ्यता संस्कृति अकछाह लगइए
ओकरा अहाँ बिसरै चाहैत छी
परदेश मे रंग-बिरंगक संस्कृति मे
अहाँ के नीक लगइए खूब मगन रहैत छी.
धियो-पूता के मातृभाषा नहि सिखबैत छि
ओकरा अंग्रेजी टा बजै लेल कहैत छी
मत्रिभाषक आंदोलन चलौनिहर बुडिबक
आ अहींटा एकटा नीक लोक छी.
गाम घर पछुआएल अछि रहिए दिऔ
नहि कोनो माने मतलब राखू
अहाँ ए.सी. मे बैसल आराम करैत छि
अहींटा एकटा नीक लोक छी.
सर-समाज सँ स्नेह रखलौहं तहि द्वारे
हम बकलेल बुडिबक घोषित भेल छी
अहाँ रुपैया कम ढ़ेरी लगेलौहं
तहि द्वारे अहींटा एकटा नीक लोक छी.
खली रुपैया टा चिन्हैत छी
अहाँ बिधपुरौआ बेबहर करैत छी.
पाइए अहाँ लेल सभ किछु
आ अहीं टा एकटा नीक लोक छी.
कियो पहिने कियो बाद मे
मेहनत करनिहार त सफल हेबे करत
ओकरा अहाँ प्रोत्साहित कियक नहि करैत छी?
यौ सफलतम मनूख अहींटा एकटा नीक लोक छी.
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