जगदीश प्रसाद मण्डलक
गीत-१
झोंक जुआनी झोंकए लगै छै
उष्मा पाबि उमसए लगै छै।
झोंक जुआनी.......।
जाधरि सिर सृजै शिशिर छै
हार-मासु सिहरैत रहै छै।
सुनिते कोकिल कुहुकि वसंती
भनभनाइत मन तनतनाए लगै छै।
झोंक जुआनी.........।
रंग-विरंगक वन-उपवनमे
रंग-रंगक फूल खिलए लगै छै
पाबि रस मधुमाछी सिरजए
कोनो बिख चुभकैत रहै छै।
झोंक जुआनी.......।
गीत-२
बैसले-बैसल नाचि रहल छै
गुड़-चाउर मन फाँकि रहल छै।
सिसकैत-सिहरैत कतौ देखि
संग मिलि कऽ कानि रहल छै
बैसले-बैसल.......।
उफनैत-उधियाइत धार देखि
संग मिलि कऽ दाबि रहल छै।
घट-घट घाट बना-बना
धार-विचार बहा रहल छै।
बैसले-बैसल.........।
गीत-३
गुमकीमे बौआए रहल छी
औल-बौल टौआए रहल छी।
गुमकीमे..........।
कखनो अन्हर-बिहारि देखै छी
झाँट-पानि बिच पड़ए लगै छी।
गुमकीमे............।
घाम-पसिना बहि रहल छै
आश-िनराश चलि रहल छै।
धक्कम-धुक्कम चलि रहल छै
औलाइत-बौलाइत मन कहै छै।
गुमकीमे..........।
गीत-४
भूत बनि भुतिआएल छी
मित यौ बनि भूत भुतिआएल छी।
संगे-संग जगलौं
संगे-संग उठलौं
संगे-संग चालि चलि
संगे हेराएल छी।
संगिया मरि गेल
हम भुतिआएल छी।
केकरा कहबै भूत भविष्य
वर्त्तमान छिड़िआएल छै।
रग्गर बिच फक्कर बनि
लाजे-पड़ाएल छै
लाजे पड़ाएल छै।
भूत बनि भुतिआएल छै
बनि भूत भुतिअाएल छै।
कविता
१
दिन-रातिक खेल
अपने हाथक खेल मीत यौ
अपने हाथ खेल।
संगे-संग दुनू चलैए।
इजोत-अन्हार बनैत रहैए।
हँसि-हँसि कानि-कानि
पटका-पटकी करैत रहैए।
एके गाछक डारि छी दुनू
सुफल-कुफल फड़ैत रहैए।
रस रंग सुआद गढ़ि-गढ़ि
तीत-मीठ बनबैत रहैए।
अपने हाथक खेल मीत यौ
संगे-संग खेलैत रहैए।
लपकि-लपकि कतौ-कतौ
इजोत-अन्हार दबैत रहैए
पीठी चढ़ि पीठिया-पीठिया
एेरावत सजबैत रहैए।
तँए कि अन्हार हारि मानि
हरदा कहियो कबूल करैए।
जहिना झपटि बिलाई बाझकेँ
जिनगीक खेल देखबैत रहैए।
अपने हाथक खेल मीत यौ
संग मिलि संगे चलैए।
मंत्र एक रहितो दुनूक
विधा दू कहबैत चलैए।
विधि-विधान रचि-बसि दुनू
गद्य-पद्य गढ़ैत रहैए।
चढ़ि गाछ तनतना-तनतना
गीत-कवित्त सुनबैत रहैए।
ताना दऽ दऽ विहुँसि-विहुँसि
मारि तानि हँसि-हँसि कहैए।
एके गाछक खेल मीत यौ
संगे मिलि दुनू खेलैए।
बजा पीहानी नाचि-नाचि
रंगमंच दुनियाँ सजबैए।
कंठ कोकिल कवित्त कवि
कविकाठी बजबैत रहैए।
कतौ ने किछु छै दुनियाँमे
मन मानव गढ़ैत चलू।
मानव मनुख खरादि-खरादि
राति-दिन बनबैत चलू।
अपने हाथक खेल मीत यौ
हाथ-हथियार बदलैत चलू।
२
किछु ने बूझै छी
के केकर हित के केकर मुद्दै
दिन-राति देखैत रहै छी।
गरदनि पकड़ि जे कानए कलपए
पकड़ि गरदनि तोड़ैत देखै छी।
किछु ने बुझै छी।
हित बनि मिलि संग चलैए
मुद्दै बनि-बनि लड़ैत रहैए।
सोझमतिया चालि पकड़ि-पकड़ि
झाँखुर-बोन ओझराइत रहैए।
डारि-पात देखैत रहै छी
किछुन ने बुझै छी।
छत्ता-मधु दुनू बसि-बसि
विष मधु गढ़ैत रहैए।
हित मुद्दै बनि-बनि दुनू
राति-दिन झगड़ैत रहैए।
देखि झगुंंता पड़ल रहैए छी
किछु ने बुझै छी।
संग मिलि पाथर तोड़ए जे
पाथर ऊपर फेकैत रहैए।
पाथर मन गढ़ि-मढ़ि
पाथर बूझि देखैत रहैए।
पथराएल पथ देखैत रहै छी
किछु ने बुझै छी।
आगि चढ़ि अन्न जहिना
पथरा पाथर बनैत रहैए।
जीवन दाता कुहुकि-कुहुकि
पेट पाथर बनैत रहैए।
विषमित भेल बिसबिसाइत रहै छी
किछु ने बुझै छी।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१. राजीव रंजन मिश्र- बाल गजल २. मिहिर झा- बाल गजल ३.
गजेन्द्र ठाकुर- बाल गजल
१
राजीव रंजन मिश्र
1
भोरहिं भोर उठल बौआ अंगना में खेलय छै
भूलि बिसरी कए सभटा चारू कोने दौरय छै
ओकरा ने कोनो मतलब ककरो सँ कखनहु
दौरि धुपि थाकै जखने भूख लगै त कनय छै
बौआ खुर खुर दौरय आँगन आर दरवज्जा
बाबा के देलहा डाँरक् टुनटुनिया बाजय छै
देखइ बाबा दाइ कक्का आ दीदी सभ विभोर भ
बौआ सभके तोतर बोली में बात सुनाबय छै
माँ चौका सए घोघ तानि ऐली बाटी में दूध लेने
देखि परैल कोन्टा पर माँ बौआ के नीहोरय छै
बाबु आनि उठा कोरा में चूमि चाटी क नीक जकाँ
बैसेला ओकरा माय ठन ओ तैय्यो अकरय छै
माय हूलसि कए चुचकारि नेन्ना के कोरा लए
घोटे घोंट दूध पियाबै बौआ पिबै बोकरय छै
राजीव अनुपम छवि बिलोकि माय सन्तानक
विभोर भ मायक पैर पर माथ झुकाबय छै
(सरल वार्णिक बहर)
वर्ण-१८
2
हम भारत के वीर जवान बनब
हम मिथिलाक पुत महान बनब
घर हमर जे उजरल लचरल
बसबय के एकर समान बनब
माय गे पढ़बौ हम खुब मोन लगा
नै पढ़ल लिखल बईमान बनब
घर समाज के देखति सुनति हम
पुरजोर इजोरियाक चान बनब
पछुआयल छै देश कोस मिथिला के
अगुआ भए सुधारक तान बनब
काज करब हम सबके संग लए
आ मैथिल जन मुहंक गान बनब
हम सप्पत खाइत छी आइ माय गे
मातृभूमि मिथिला केर मान बनब
(सरल वार्णिक वर्ण-१४)
3
माँ गै आइ बता किया चंदा में कारी छै
हमरा कह किया सवाल ई भारी छै
देखल सदिखन तोरा काज करैत
मुदा बैसल बाबु कियाक बेगारी छै
हम्मर अंगा सभ फाटल पुरान आ
तोरो त बस गानल दुय्ये टा सारी छै
सब खाय अपन घर नीक निकुद
हमरा लेल किया जे नून सोहारी छै
भातक संग अगबे सन्ना सब दिन
दाईलो राहरिक बदले खेसारी छै
कनिके टा घर दुआरि अपन छैक
आँगन में नहि एक्क्हू टा गै-पारी छै
बुझी हमहूँ सबटा नहिं नेन्ना छी गे
जे ई सभटा टाका केर मारामारी छै
हमहूँ पढ़बै आ बड्ड पाई कमेबै
लिखल तोरो भागे महल अटारी छै
धीरज राखि तू जीबैत रह माय गे
बेटा तोहर बुझै सब बुधियारी छै
(सरल वर्णिक वर्ण-१४)
4
पढि लिखि कए बौआ बाहर रहतै
सत बाबा के कहल आखर रहतै
दिन पलटतय हमरो सबहक
भरल घर नोकर चाकर रहतै
लक्षण करम एकर लागैत अछि
बौआ सबतरि भए धाकर रहतै
मोनक हमरो सुनथिन भगवान
करेज अपन भए चाकर रहतै
माय बहिन खानदानक पुरतय
बौआ सबहक लेल सागर रहतै
बढ़तय दिन दुना राति चारिगुन्ना
भरल नित बौआक गागर रहतै
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण- १४ )
२
मिहिर झा
बाल गजल
1
झमझम बरखै बुन्नी रौ
टमटम चलबै मुन्नी रौ
आगू पाछू मलहा डोलय
खत्ता मे बड गडचुन्नी रौ
आम तोडय झाम गूडय
डोमा देलक चुनचुन्नी रौ
राजा के बेटा मारय ढेपा
कुकुर भुकै मधुबन्नी रौ
2
उजरा भात गढका दूध बड़का थारी चाही
नै खेलेबौ कनिया पुतरा नबका गाड़ी चाही
भैया पहिरै नबका अंगा दशमी आ फगुआ
बेटा हमहु छियौ तोहर आब नै छारी चाही
भैया गेन खेलाई छौ टुकटुक हम छी ताकै
दूध भात भ कात नै हेबौ हमरो पारी चाही
काकाजी कान मचोरथि तोडी जखन टुकला
अपन लीची अपने झाँटी हमरा बाड़ी चाही
श्यामा लाई खूब खुवाबे टाटक भुरकी बाटे
ओहि टाटके काटि खसाबी हमरा आरी चाही
३
खा ले रे बौआ दूधे भात
ठुनकि नै हो ठाढ कात
पढि बनबे तू बी डी ओ
मोन राख हमर बात
पैघे के सब दै छै ध्यान
तोंही पेबें पहिल पात
छौ जे दुत्कारैत एखन
कान पाथि सुनतौ बात
मोन लगा जॉं पढबे तू
टाका के हेतौ बरसात
४
छुनकी हीरा गीतिया सोनू
पाछू लागि सब रेल बनू
ईंजन बनि हम आगू छी
गार्ड बनता अपन मोनू
दूध सोहारी कोयला पानी
सकरी टीसन ठाढ गोनू
फ्री टिकट सब आबि चढु
सीट सबटा अपने जानू
३
गजेन्द्र ठाकुर
बाल गजल
कनियाँ पुतरा छोड़ू आनू बार्बी
जँ रंग गुलाबी छै तँ जानू बार्बी
बोने-बोने फिरैए जे दैता सभ
वनसप्तो लऽ घूरलि मानू बार्बी
सात रंग लऽ भोर भेले गाममे
परी रहैए गाम अकानू बार्बी
कननी दूर हेतै बच्चा सभमे
भरल आँखि बिसरी ठानू बार्बी
पानि अकास धरती जा-जा घूमी
पंख लगा टिकुली अकानू बार्बी
धम्म गुड़िया संग खेलू कूदू
राति सपनाउ निन्न आनू बार्बी
सुता दियौ ऐ गुड़ियाकेँ आ सुतू
चढ़ि ऐरावत दिन गानू बार्बी
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
No comments:
Post a Comment
"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।