भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Saturday, September 15, 2012

'विदेह' ११३ म अंक ०१ सितम्बर २०१२ (वर्ष ५ मास ५७ अंक ११३) - PART IV


१.कामिनी कामायनी- उत्तराक नोर २.सत्यनारायण झा-दुटा बात पुत्रक जन्म दिन पर ३.कैलास दास, खोजय पड़त मातृत्व बालगीत
कामिनी कामायनी
उत्तराक नोर

केहेन उदासी के मोटगरि चद्दरि मे लपेटल लटपटायल . ई जगह .. .लागि रहल अछि ।जेना सदाबहार गाछक सबटा पात झरि गेल होय ।सायं सायं बहैत बसात मे कत्तेको रूदनक स्वर मिलि कएकटा भयंकर चित्कार करि रहल अछि ।ओ गाछ . ओ बिरीछ. . ओ चिडै. . ओ चुनमुनी .. .. अपन उत्साह बिसरि कहुना करि अपन दिन कटैत हो जेना ।दूर .. पहाड .. . शाश्वत भ्रमक परदाफाश करबा क प्रयास मे प्रकृति के रहस्यवादी दृष्टिकोण सॅ फराक हटि ककिछु आओर राग अलापि रहल छल ।कत्तेक अपरिचित भगेलै. ई सब जे कहियो ओकर जीवन क ह्दय प्रदेश बनि चुकल छल । कसकि तउठल रहै मोन ।
बड दिन कबाद . . आंगुर पगिनलक . .पॉच सावनक बाद .. . ओ आयल छल मसूरी फेर सॅ .. ।जगह तवएह छलै. . ओहिना आकास. . के छुबैत. . पहाड़ . .पहाड .. पझूमैत हरियर कचोर ऊॅच ऊॅच गाछ. . . ओहिना साफ . धोल चमकैत वातावरण. . .ओहिना मकान क छत पकार . . .मुदा ओकरा ओकर जादुई आकर्षण बड निघटल लगलै ।ओ गप नै छलै. . जे ओकरा बौरा देने छलैक़ . . कि खिलखिल करैत .. जीन्दगी सॅ लब लब भरल।. . . ओ वसंत. . सन्न सन्नबहैत बयार सडकक कात
बेंच पबैसैत मातर ओकर धियान दूर पर्वत प ससरति कारी सन कोने बिन्दु जकॉ वस्तु पपडलै. . वायनोकूलर सॅ झट देखलक़ . बकरी .. पहाडी बकरी .. ओकरा हॅसी लागि गेलए. . ठठा कहॅसि पडल छल. . बकरीयो के की सूझलै. . ओत्ते ऊपर चरय लेल गेल ।ओही दिन पूर्णिमा के चॉद ओही बकरी के झुंड सॅ कनिए उपर विश्राम करैत ओही परम सुन्दरता के निहारि रहल छली ।ओकर नजरि आब चॉद पअटकि गेलय ।मुॅह सॅ स्वर फुटि पडलै. चलो दिलदार चलो. . .चॉद के पार चलो. . . । . . हम है तैयार चलो. . ।आ विकल के स्वर मे स्वर मिलाएब ओकरा फेर सॅ जोर सॅ ठहाका लगाबए पमजबूर करि देने छल .. जे कनि क्षण के लेल ओही ठाम गूॅजए लागल छल।छुट्टी के दिन ओ दुनु अहिना सांझ पडय सॅ पहिने बौआबैत ढहनाबैत . .ओए पहाडी के चप्पा चप्पा छानि मारै. .गहराई मे उतरै. . चढाई प दौड दौड कचढबाक कोससि मे हाफैत हॉफैत ओही ठाम ओंघडा जाए. .. मौसम तअपने आप मे निराला. . .भंगतडाह. . .कखनो रूइस रहलौ. . कखनो. . कानए लगलहूॅ. . कखनो मंद मंद मुस्की. कखनो छिडियाएल. .. आब के संभारत. . .मुदा पहाड ओकर सब रूप पन्योछावर. . . कनियो रोषराख नै. . ..सनातन प्रेमी जे छलै. . ।साफ सुथरा निप्पल पोतल आकाश मे नहिं जानि कतय सॅ औचक मे कारी स्याह मेघ आबि झमाझम बरसि जाए .. .माल रोड पघुडसवारी करैत दुनु एकदम भींग जाए. . .तहन थर थर कॉपैत देह मे गरमी आनबा लेल. . लग पास के कॉफी हाउस मे जाकए चैन पाबए ।कैमल बैक हिल्स. . पघुमैत. . कंपनी बाग के झुल्ला पझुलैत. . .दिन सोन चिरैया सन फुर्र सॅ उडि जाए .।
लोकक नजरि के बेपरवाही सॅ फेकैत. . विकल .. ओकरा एक छण के लेल एसगर नै छोडय चाहै. . ।. उत्तरा के ओकरा सॅ भेंट सीनियर्स के फेयर वेल पार्टी के मंच पभेल रहै. . जखन दूनू गोटे एक टा कोरस गेने छल. . .कि जादू छलै. . ओकर आवाज मे. . राजस्थानी सूफी गायक बला . . देखैतो राजपुरूष. . .राजस्थान के बासिन्दो छलै.. . अहि सॅ बेशी ओकरा किछु जानबा के उत्कंठा कहियो भेबो नै कैल रहै ।
गीत संगीत सॅ दुनु के लगाव एक टा नव रिश्ता कायम करि देने छल. . जे सर गम के सातो स्वर मे ओ दुनु सेहो समाहित ।कैम्टी फॉल मे नहैत. . .धनोल्टी के गेस्ट हाउस के बरामदा पराखल बडका कुरसी पबैस. . ओ दूनू त संगीतक नदी मे पौडैत गप सॅ बेसी गीते गाबैत रहैत छल ।
सुरकंडा देवी के यात्र्रा लेल वएह जिद केन्ो रहै. . नै तविकल के धरम करम सॅ कोनो मतलब नै. . .मुदा ओतेक ऊॅचाई पमेघक अपन घर मे. . . देखलक एकरा की झूंड के झूंड खिहारैत. . पकडि लेलक जेना ओकरे सबहक सुआगत लेल ठाढ़ . भयंकर नाद से विष वमन करैत बरसैत रहल. . ।ऊत्तरा के तहिम्मत पमनोमन पाथरि लदा गेल रहै ।ओ तगाडिए मे बैसल रहल. . मुदा. . विकल पानि के चिरैत. . ऊपरक चढाई प चढैत रहल मात्र ओकरे लेल ।ओतेक पानि मे पिच्छडि के बिन परवाह केने .. अपना के चार्वाक शिष्य घोषित करए वाला. . ।
बाजै ओ बड कम . .मुदा ओकर ऑखिक छलकैत भाव मे उत्तरा के सब प्रश्न कउत्तर भेंट जाय ।ओकरा प्रेम के आध्यात्मिकता पर नजरि पडय लगलै. . .अहि इंस्टीच्यूट मे आबए सॅ पहिने ओकरा होशे हवास कत्त छलै. . इम्हर ओम्हर ताकए झॉकए के. . .पढाई. . पढाई आपढाई. . .सदिखन प्रथम प्रथम पाबैत .. .ओकर मनोबल. . अप्रत्याशित रूपेन ताकतवर भचुकल छल. . . आ जखन अहि ठाम आयल. . .अहूॅ मे प्रथम. . .।ओकरा लागै असफलता की होबैत छै. . .केहेन होय छै आकांक्षा के अपूर्ण रहि जेनाय ।घर सॅ बाहरि धरि ओकरा पईश्वरक असीम अनुकंपा. . ओ तधरती सॅ जेना पचास फीट ऊपर .।आविकल सॅ मिलब ओकरा लेल अप्रत्याशित अनुभव छल .. .प्रेमक प्रथम अनुभूति. ... . . .माता पिता के विरोध केनाय स्वभाविक छलै . क़त्तेको सुयोग्य वर छॉटिक करखने रहैथ. .जै पर ओ आंगुर रखै. .।मुदा ओकर प्रचंड जिद्द. . .आब ओहि मे अहंकार से हो संग धनेने रहै. . .जाति पॉति .. आब के मानै. . छै. . ई जिन्दगी फेर नै भेटत. . . ।के गारंटी लै छै जे स्वजातिय मे विवाह केला सॅ स्वर्ग जेबा के रास्ता खुलि जाए छै. .।आब एत्तेक योग्य . . .निर्णय लेबा मे माहिर संतान के सोझा कोन माता पिता टिकतैथ. . .हथियार खसा देलखिन ।
विकल कहल. . .हमर अहि संसार मे अप्पन कहए बला अछिए के. . पता . .नहि क़त्तय जनम लेलौ. . .केहेन मॉ के प्रेम ..होय छै. . केहेन पिता के दुलार होय छै .. .अनाथालय मे पलल बढल . . ।अहॉ लेल तअप्पन जान देबा के मौका आयत पाछॉ हटय बला प्राणी हमरा नहिं बूझब ।अहॉ सॅ हमरा संसार भेंट गेल. . जेना प्रेमक प्रथम पाठक ज्ञान कसंग संसारक ज्ञान भेल. ।ओ कुमारक गरिदनि पएक हाथ रखने .. गाडी के खिडकी सॅ बाहर . . प्रकृति के अवलोकन मे लागल छल. . क़ि . .किरर. ऽऽऽऽऽ््््. संगे गाडी रूकि गेलै. . । की भेलै. . .ओ अकचकाएल. . ट्रैफिक जाम. .
. रहस्यमय मुस्कुराहट संग विकल बाजल । पहाडो पट्रैफिक़ . ।ओकरा मुॅह सॅ निकलल आदुनू खूब जोर सॅ एक स्वर मे हॅसि पडल छल ।सोझा मात्र तीन टा गाडी लागल .. .पुलिस कंट्रोल करैत .. ।
जाडक छोटका दिन जकॉ अति शीघ्र ट्रेनिंगक ओ अल्पावधि बीत गेल छल. . .बिना झंझट. . खर्च वर्च के कोर्ट मे जाकए. . अपन जन्मजन्मांतर के संबंध पर मोहर लगबा लेलक .. ।एतेक लग रहिओ कएक दोसर के किछु जानबा बूझवा के मौको नञ्ािं भेटलै . . .तखन लागै संगीते जीन्दगी छै. . मुदा बाद मे लगै . . ओ तमात्र .. दूनू के कॉमन हॉबी. . आर की.. ।
अचानक ओकर हाथ मे ज्ोना माइक्रोस्कोप आबि गेलै. . .ओकर. . बैसब. . ओकर उठब .. पहिने कोना बजै छलै. . आब. . .नै कोनो तमीज नैं तहजीब .. . छोट छोट गप पचिडचिडायल सन. . .एक दिन जूत्ता पर पॉलिस नै लागल रहै ततामसे आन्हार भपियुन पजूत्ता फेंक देलकै. . हजारि रंगक अजगुत गारिक संग ।
पोस्टिंग तदूनू के एके शहर मे छलै .. मुदा दू मिनिस्ट्री मे ।आ अही बीच जेना प्रेमक रंगीन चादरि के एके धोआन मे रंग जबरदस्त भखरए लगलै .. ।छोट छोट गप. . सोचलक . .आर सब मैनर्स तसीखिए जैतै. . .मुदा एकरा भीतर तामस किएक एत्तेक भरल छै. . ओ कोना कम हेतै. . .कोन दुख छै. . .कोन अपराध भाव सॅ ग्रस्त छै. . बजतै. . तखन नै .. किछु समाधान . .कोनो काउंसिलिंग हेतै ।
अहि पोस्टिंग मे ओकर प्रथम शिशु के जन्म भेल रहै. . .मैटरनिटी लीव प छल. . .कुदरत के अजगुत ईनाम पाबि कओकर आत्मा परि तृप्त भगेल छल. . आब किछु नै चाही प्रभु. . .अपन कृपा अहिना बरसेने रहब ।ओकर मॉ पापा आबि ककिछु दिन ओकर सुख मे शामिल भेल छलखिन्ह. .।
विकल के सुभाव ओकरा किछु विशेष बदलल लागै. . ।ऑफिस सॅ आबैत मातर बच्चा के कनी मन्ाि कोरा कॉख मे ल क’. . चाह ताह पीबि कसीधे अपन स्टडी मे चलि जाए. . ।कोनो खास गप सप्प नै. गीत संगीतक दरिया जेना सुखा गेल छल .. . .राति मे डिनर करैत दोसर कमरा मे जा कए सूति रहै. . बच्चा भरि राति कॉय कूय करैत सूतै जे नै दैक़ . इहो सही. . ओ त दिन मे सूति कनीद पूरा करि लैत छै. . मुदा विकल के दिन मे कत्त चैन . . ।
छुट्टी मे पडल पडल. .आब ओ बड बोर होबए लागल छल. . बच्चा के कामकाज देखभाल करए बाली बंगाली आया के वात्सल्य प्रेम देखि ओकर मन एकदम प्रसन्न .. ओकरे नीन सूतै ओकरे नीन जागै. . नहायब सफाई. . नैपकिन बदलब. . डिटॉल सॅ ओकर कपडा सब के पखारब . .एकदम समय पदूध बना कबोतल सॅ पियाएब. .सांझ मे प्रैम पसूता क अहाते मे कनी मन्ाि घूमा दै. . एक बेर ओकरा कहबा कदेर छलै. . ओ फट ससीख कअनुकरण करए लागै. . ।उमहर सॅ धियान हटि कविकल प केन्द्रित भगेलै. . .एतेक उदासीनता किएक एकर व्योहार मे. . .कनियो कोनो अपना पन नै. . पी 0आर 0के स्टाफ जेना बस ठोर पटपटा कहाल चाल पूछि लै. . ।नै ऑखि मे ओ चमक .. नै. . ठोर पमुस्कुराहट. .. . । ओकरा मोन पडलै. . .पहिनो तओ नहिए बाजै. . छल बेसी. . जखन दूनू के भेंट होय. . तगीतकार .. संगीतकार क चर्चा सॅ सुरू होय आगीत पआबि कसमाप्त. . .।किंस्यात किछु परेशानी सॅ गुजरि रहल होयत ।घर मे पडल पडल ओकर दिमाग शैतानक अड्डा बनि गेल छल. सोचलक . बड आराम भेल आब ड्युटि ज्वाइन करि लेबा कचाही .. दू मास तभैए गेलै. . ।
एक दिन ओकरा जखन रहल नै गेलै. . ओ चुप्पे ओकर स्टडी मे जा कए पाछॉ सॅ ओर गरा मे हाथ धरि कअपन कान ओकर गाल मे सटबैत बाजल कि भरहल छै एतेक मुस्तैदीसॅ।हास्य मे कहल ई शब्द ओकरा एकदम चौंका देलकै. . चट सॅ अपन डायरी बन्न करि ओ अपना के ओकर बाहुपाश सॅ मुक्त करैत ठाढ भगेल छल .. अरे चलू तैयार भजाए हमसब एक टा नाटक देखय चलैत छी ।हाथ पकडने बाहर बरामदा मे चलि आयल छल ।
ओय दिन जे भेल हो मुदा एक टा संशय के बीजारोपण तअवश्य भगेलै . .। ओकर मन औउनाइत रहलै. . ओ लिख की रहल अछि जे ओकरा सॅ दुराव छिपाव करए पडि रहल छै .।परोछ मे ओही कोठरी मे जाए तआलमरी मे ताला लटकैत. . .के जानै कुन्जी कत्तय छै. . ।आब जखन ठानिए नेने रहै ..रहस्यक उदघाटन करए लेल तखन कोन गप . .।ओय कोठरी मे बगीचा दिस सॅ सेहो एक टा खिडकी छलै. . जै पसदिखन परदा फैलल रहै छल।दिने मे ओ ओही परदा के कनी घिसका देने रहै ।रात के बारह बाजल . .चारों कात अन्हार .. सन्नाटा. . ।सब कियो खा पीबि कसूतल .. कुमार अंगेठीमोचाड करैत कुरसी सॅ उठल. .. ड़ायरी के अनबीरा मे बन्न करि कुरसी पचढि कुन्जी के रोशनदान मे राखि देलक ।बस . .ओ दिन छलै .. . ।
चक्र सुदर्शन सॅ ओकर गरा कटि गेल रहै . . .मस्तक . .कुरसी पबैसल .. शरीर. . धरती पखसल. .शोणित सॅ .. लथपथ. . .पॉच पॉच हाथ तडपैत. . .मुदा कत्तेक तडैपतैक़ . कनिए काल मे शान्त भगेलै. . टेबुल पराखल मस्तक आब पूर्ण गंभीर भआगूॅ के रणनीति सोचैत रहल. . .।मामला गहीड छलै . .सोचबा मे समय लगलै ।
घर के शान्ति सामान्य रहल्ौ. . .भोजन बनै. . खेनाय खायल जाए. .बच्चा के झूला पझूलायल जाय. ..दासी मुसीक मुसीक कमेमसाहब के रंग बिरंगी किस्सा कहै. . मेम साहब ठहक्का मारै. . . मुदा ज्वाला मुखी धधकैत रहलै. . लावा नै बहरैलै. .तै स की . ।
अपन टा्रन्सफर नार्थ ईस्ट मे करा कबिना खड खडकेने . .निःशब्द महात्मा बुद्व जकॉ निशा रात्रि के फ्लाईट सॅ ओकर ओही घर सॅ .. पलायन भचुकल छल ।
जीवन सॅ जीवन पथक लंबाई बेसी होइत एलैहैं ।नीचा हेरब . .खाधि. . गुफा. . वन .. पहाड़ . सागर. . .उपर मात्र एक टा नीरभ्र आकाश. .. .रंग बिरंगी उडैत पाखी . असीम शान्ति के खजाना .. .ऊपर सॅ धियान नीचा एलै. . ताकब सूरू कयल.. ..कोन पन्ना . .कोन पोथी. . कोन पंथ. . मंदिर .मस्जिद. .चर्च . .गुरूद्वारा . .गोनपा. . .ध्यान . .योग़ . ।मस्तिष्क फेर सॅ गरिदनि सॅ जुडि गेलै. . आब ह्दय मे जे परिवर्तन भेल होय. . दिमाग एकदम शान्त. . ।जीवन कओही नाटकीय मोड प यवनिका पततिकहि कहिया कत्त नै पूर्ण विराम लगा देल गेल छल।कोनो हयु एन्ड क्रायनै मचलै ।
मसूरी मे फेर अयबा के कोनो सरकारिए प्रयोजन छलै ।आय ओकरा संग ओकर कोर्स मेट वान्या छल।समय अपन शाश्वत फेरी लगबैत ओहि ठाम कनि विसेष काल के लेल विलमल छल. .थाकल थेहियाएल. . ओंघाइत. . ओकर विश्राम कमूड देखि जडि चेतन सब अपन श्वॉस रोकने. . कियो कोनो उकठ्ठी नै करै. . कनियो सोर नै हुए . .।सडकक कात बनल बेन्च पबैसल ओ ओहिना सोझा के पहाड पदूर्््ऽऽऽऽऽऽ्चरैत

बकरी के देखय लागल।ओही दिन जेकॉ आय सेहो बकरी चरैत छल. . कारी कारी बिन्दु मात्र ।ऑखि मे चमैक उठलै. . . गडेरिया कजीनगी. . पहाड हो वा रेगिस्तान . असुविधा .. कष्ट सॅ भरल. . दीन हीन लाचार बीमार भीतक छोट छोट घर .. .उजडल उडल छप्पर . . माटीक चूल्ही पचढल माटीक बासन .मे . . .खदकैत. . भात. . . .माटिए के परात मे .. सानैत. . बाजरा के आटा . .चुनरी सॅ गंदा हाथ पोछैत. . खीझैत. . धूऑ सन मूॅह वाली स्त्री. . नीमक गाछ तर पडल खटिया .. चीलम पीबैत. . खोंखी करैत जर्जर वृद्व. . .ताड के पटिया पचीक्कट केथडी .. .फुल्लल हाथ पयर . .पीडा सॅ कहरैत कृशकाय वृद्वा. . . कनिए हटि कपॉच. सात ..नौ .. बरखक नंग धडंग धीयापुत्ता . करिक्का बकरी के बच्चा संग खेलाइत ..गाछ सॅ बान्हल माटिक बासन मे पानि पीबैत बूढ घोडा चारहु कात पसरल लिद्दी. .।घबडा कओ ओही दिस सॅ मुॅह फेर नेने छल. ।मुदा कनिए काल मे नै जाने ओकरा की फुरलै ।वान्या के ई प्रसंग सुना ओ ओकर मन्तव्य जानबाककोरसीस कयल. . ई बता जे ओ गडेरिया पैलवार केकर प्रतिक्षा करैत रहै छल .. ओहेन नितांत गरीबियो मे ओकरा केकर आस छल हेतैक ।देवदार के सुडौल वृक्ष निहारैत. . वान्या कनि काल मुस्कैत रहल फेर ओकरा दिस ताकैत बाजल. आर केकर . .ओही रोटी ठोकए वाली के जे मैल हाथ अपन चुनरी मे पोछैत छल .. आ .. जेकर तीनों बच्चा बकरी के बच्चा संग दौड लगबैत छल. .ओकरे .घरबला के .. आखिर ओही पैलवार मे ओकरा अलावा और के हेतै कमाए बला . . ।
की।
नै एकदम ठीक ।कोनो पढल लिखल अपन पैर पठाढ जागरूक स्त्री एहेन पैलवार के किएक शत्रु बनतै ।
मतलब।वान्या कनि अचरज सॅ . कनि गहन दृष्टि सॅ ओकरा दिस ताकलक।
तौं नै बूझबही।अनंत मे ताकैत .. अत्यंत विरक्त भाव स कहिओ वान्या संग ओहीठाम सॅ उठि वापस अपन गेस्ट हाउस मे चुपचाप चलि आयल छल .।।


 
सत्यनारायण झा
                                   दुटा बात पुत्रक जन्म दिन पर----                                                          आइ हमर जेष्ठ पुत्र चि० श्री सुमनजीक  जन्म दिन छनि |हमर आशीष आ शुभ कामना |जिनगी मे पूर्ण सफलता पाबथि आ अपन मेहनतिक किछु अंश गरीब गुरबाक मदति मे लगाबथि |बेटा कतबो पैघ भ जाइक,माय बाप कबच्चे बुझायत छैक |बाल बच्चाक जन्म दिनक सुअवसर पर घर मे जन्म दिनक गप्पक क्रम मे माय बाप कबरबस संतानक बचपन मोन परि जाइत छैक ,से आइ हमरो सुमनजीक बचपन याद भगेल अछि |कोना हुनक जन्म भेलनि ,कोना पैघ भेलाह ,कोना बच्चा मे ठेहुनिया देथि ,कोना चलनाइ सिखलनि,कोना पढलनि आ कोना एखन वर्तमान मे छथि |एकएक पल मोन परैत अछि |किछु पल एहन होयत छैक जे माय बापक मोन उदास कदैत छैक आ किछु एहन होयत छैक जे देह मे अनेरे गुदगुदी लगैत छैक आ अनेरे हँसी लागि जाइत छैक |हमरा तीन संतान दु पुत्र आ एक बेटी |तीनूक लालन पालन ,शिक्षा दीक्षा ,पढ़ाई लिखाई बहुत अनुशासित ढंग सं कयल आ ओ लोकनि पूर्ण अनुशासित छथि |जाहि ठाम अनुशासन नहि बुझू ओतय कमालिक भगबाने |
बालबच्चा कअनुशासन मे राखी मुदा एकटा मित्र जकाँ बचचा संग खेलाऊ |हमहू सैह करैत छलौ |बहुत आनन्द होयत छल |आब ओ सभ तअतीतक एकटा खिस्सा भगेलैक |एखन दु मास सं हमर पौत्र चि० आकर्ष हमरा संग पटना मे छल |ओना ओ लोकनि दुबई मे रहैत छथि |भरि दिन आकर्ष संग खेलाइत छलौ |राति कओ कहैत छल जे दादाजी खिस्सा कहूँ आ हम सुमन जीक बचपन,विभुजीक बचपन आ रजनीक बचपनक खिस्सा सूना दैत छलियैक आ ओ प्रसन्न भजाइत छल |अपनो हम बहुत खुशी रहैत छलौ |खिस्सा सुनबैत काल हम सतत अतीत मे चल जाइत छलौ |खीस्से सुनबैत सुनबैत एकटा विचार मोन मे आयल जे जन्म दिन पर कियैक ने एकटा कविता लिखी  जाहि मे बचपन सं एखन तकक झलक होयक |एहि कविता कअपने सभ अवश्य पढू |एहि मे   कोनों साहित्य नहि छैक ,एहि मे    मोनक बात बाते जकाँ लिखल छैक जे सरल आ सहज छैक |आग्रह अपन पुत्र सं जे एहि पाँती कअवश्य पढथि |                      

कैलास दास, पत्रकार, जनकपुर

खोजय पड़त मातृत्व बालगीत

हमरा अखनो स्मरण अछि बाल्यकालमे हमरा सभक खेलय वाला एकटा समूह छल । ओहिमे लडका
लडकी के अछि कोनो मतलव नहि । एकटा हाफ पैन्ट आ गँजी लगा कऽ कोनो आम गाछ होए वा घरक दलान चाहे कोनो सार्वजनिक स्थल किए नहि होएँ । झुण्ड बना कऽ कबड्डी, आम गाछी, गोटी गोटी सँगहि खपडाके फुटलहवा लऽकऽ जमिनमे चिर पारि रेङ्ग, रेङ्ग खेलतहुँ त कखनो विद्यालय के घर या अपने दलाने मे जा कऽ पाच गोटे मिलकऽ झिझिर कोनो झिझिर कोना कोन, कोन कोना जाउँ । साउस मारलक ठुमका पुतौहुँ कोना जाउँस्मरण अबय त मनेमन अखनो मुस्की सेहो होबय लगय ।
ओहि समय केँ बहुत किछु याद त नहि अछि मुदा एकटा हाँस्य व्यँङ्ग हम सभ एहनो करैत छली ।
अण्टा रे भण्टा
हम दू भाई
पटना जाई
झुमका लाई
सासु के पहिनाई
तऽ पुतहुँ झुमकाई ।

लेकिन आई हम सभ फेर सँ ओहि बाल अवस्था सभक बीच जाएबाक मौका मिलैत अछि तऽ आश्चर्य लगैत अछि । ओना तऽ पहिले जाका बच्चा सभक झुण्डो नहि अछि । आ एछियो तऽ ओकरा सभक बीचमे एहन गीत सुनवाक अवसर मिलैत अछि

परदेशी, परदेशी, जाना नही
मुझे छोडके
, मुझे छोड्के ।
चलि आना तू...तू.. पान की दूकान पे
साढे तीन साढे तीन बजे ...।

गाम ओहे छैक मुदा दलान नहि अछि । बच्चा बुच्ची ओहने अछि मुदा वातारण नहि । गाछवृक्ष छैक लेकिन ओ समूह आब नहि । मातृत्व बाल गीत (फकरा) के स्थान मे हिन्दी
, अँग्रेजी,भोजपुरी वातावरण सभ ठाममे छा गेल छैक । कखनो काल हमरा सभक बीच झगडो होइत छल मुदा मुडही, लाई, चाउरक रोटी, भूजा खाएक लेल मुदा अखन देखैत छी सिंगरेट, दारु, गुटका पान परागके लेल आई हमर भाज त काल्हि तू नहि खुवाएबे त देखैबो कहि क झगडा करैत अछि ।
वास्तव मे कखनो काल बडा आश्चर्य होइत अछि कि देखते
देखते ऐहन परिवर्तन कोना भऽ गेलय । एकटा हम सभ रही जे गुरु जी के देखते नुका जाई । मायबाबु आ अपना से बडका से हरदम डर लगाय । आई परिवर्तन सँगहि बच्चामे शिष्टाचार, आदर स्वभाव किछुओ नहि अछि । कोन बुढ, कोन जवान सभलगय एक समान ।
तखन एकर दोषी के त
? अवसय एहन वातावरण बनाबयमे हमरे सभक दोष अछि । जाधरि हम कमजोर नहि भेली त हिन्दी, अँग्रेजी आ भोजपुरी वातावरण हमरा उपर कोना चढि गेल । एकर खोजी करबाक अखनो आवश्यकता अछि । जाधरि मैथिली मातृत्व बाल साहित्य के अगाडि नहि लाएब तऽ दोसरक कला संस्कृति भेषभूष आ वातावरण एहने हमरा सभक उपर लदाइत रहत । ऐकर परिणाम भेटत भूखमरि, लुटपाट, धोखाधरी एतबे नहि अपन बालबच्चा अपने माय बाबु के भुला कऽ कखन की करत नहि कहि सकैत छी । तँ एकरा सभक दूर करबाक लेल मैथिली मातृत्व बाल साहित्यके अगाडि बढाबही पडत । ओना तऽ गैर सरकारी संस्था आसमान नेपाल बालबालिकाक लिखल बाल शक्ति पत्रिकातीन महिना पर प्रकाशित कय रहल अछि ।
एहि सँ ओकर समाधान नहि अछि । ओहि मे एकदूगो बाल कविता सँ मात्र मैथिली मातृत्व के नहि बचा सकैत छी । ऐकरा लेल एखनो बुढ पुरानक बात विचार आ ओहिक समय वातावरण के ब्यख्या करही टा पडत ।

रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
डॉ.अरुण कुमार सिंह, भारतीय भाषा का भाषावैज्ञानिक सांख्यिकी संकाय,भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर
मातृभाषाक माध्यमसँ उच्चशिक्षा

किछु समयसँ देशमे उच्चशिक्षाक माध्यम एवं विषयवस्तुकेँ लए कए विमर्श चलि रहल अछि। एक दिस बाबा रामदेव अनशनक समय अपन मांग मे भारतीय भाषाक माध्यमसँ उच्च शिक्षाक मांग रखलन्हि, तँ दोसर दिस मुंबई उच्च न्यायालयक एक गोट फैसलामे कहल गेल अछि जे लोक सेवा आयोगक अंतिम परीक्षा अर्थात् साक्षात्कारमे परीक्षार्थी अपन मातृभाषामे जबाब दए सकैछ। एक तरहेँ ई कार्यपालिका पर दुईतरफा दबाब अछि । एक दिसतँ लोकतांत्रिक दबाब जनसमूहक रूपमे रामलीला मैदानमे जमा भएकेँ, तँ दोसर दिस न्यायपालिका भारतीय भाषाक पक्षमे निर्णय दए केँ। विश्वमातृभाषा दिवसक अवसर पर दिल्लीमे बुद्धिजीवी एवं लेखकक प्रतिनिधिमण्डल सरकारकेँ एक गोट विज्ञापन देने छलाह, जाहिमे कहल गेल छल जे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी नियमावलीमे पी.एच.डी.क लेल अनिवार्य दुई शोध-पत्रमे सँ एक मातृभाषामे हो। एहि तरहेँ देखल जा रहल अछि जे अंग्रेजीकेँ कात करैत भारतीय भाषाकेँ प्रश्रय देबाक बात शुरु भए चुकल अछि । मातृभाषा ओहन भाषा होइछ, जकर माध्यमसँ कोनो नेता अपन घर, परिवार आओर समाजकेँ बुझि पबैछ। पहिल भाषा होएबाक कारणेँ मातृभाषे कोनो व्यक्तिक चिंतन-प्रक्रियामे कार्य करैछ। एहि लेल प्रतिभाक सभसँ पैघ अभिव्यक्ति पहिल भाषे मे होइछ। जँ कोनो व्यक्ति बहुभाषी अछि तँ ओ पहिल भाषाक पृष्ठभूमि पर कोनो दोसर भाषा सीखैछ आओर एक तरहेँ चिंतन-प्रक्रियाक बीचे मे मातृभाषा आओर दोसर भाषाक बीच अनुवाद करैत रहैछ। एहि स्थितिमे ओ दोसर भाषामे  कतबा निपुण अछि ई एहि पर निर्भर करैछ जे ई मानसिक अनुवाद ओ कतबा कम समयमे कए पबैछ। संविधान स्वीकृत 22 भाषामे जतबा उच्च शिक्षण कार्य भए रहल अछि, ओहिसँ बहुत बेसी एक मात्र अंग्रेजी भाषाक माध्यमसँ भए रहल अछि। आब  प्रश्न उठैछ जे जाहि शिक्षण-पद्धतिकेँ मैकालेक विरासत एवं आओर अंग्रेजी साम्राज्यक विस्तार कहल जाइछ, ओकर कोनो ठोस विकल्प आइ धरि किएक नहि उभरि पाओल? एकर प्रमुख कारणमे भारतीय भाषाक आपसी संघर्षकेँ नजरअंदाज नहि कएल जाए सकैछ। दोसर ई जे एहि भारतीय भाषाक ज्ञान-परंपरामे कतए धरि पहुँच अछि? की आइ प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, चिकित्सा, विधि, प्रबंधन आदि विधाक उच्चतम रूपकेँ भारतक कोनो क्षेत्रीय भाषामे सहजतासँ अभिव्यक्त कएल जाए सकैछ? हमरा बुझने कठिन अछि। एहन बात नहि अछि जे भारतीयभाषाक क्षमता संदिग्ध अछि, जखनकि लोकभाषाक शब्द-सामर्थ्य बहुत रास भाषाक तुलनामे समृद्ध अछि। मुदा विषयवस्तुक उपलब्धता एकटा पैघ समस्या अछि। एहि बातकेँ सहर्ष स्वीकार कएल जएबाक चाही। ओनाहूँ कोन भाषामे कीसब सामग्री रहबाक चाही ई भाषा नहि, अपितु समाजक जिम्मेदारी होइछ। जँ भाषा दरिद्र अछि, तखनो आर समृद्ध अछि तखनो।
            विकासक अपन परिवेश आओर अपन शब्दावली होइछ, जकरा दोसर भाषामे सम्पूर्ण रूपसँ घुलि-मिलि जएबामे सालक-साल लागि जाइछ। उदाहरणस्वरूप हेलो शब्दकेँ लेल जाए सकैछ। कहल जाइछ जे अमेरिकी आविष्कारक थॉमसन पहिल बेर टेलीफोनसँ ई जानबाक लेल जे ओकर आबाज पहुँचि रहल अछि कि नहि ताहि लेल हेलो शब्द बजने छल। तहियासँ आइ धरि टेलीफोनक कतेक स्वरूप सोझ आएल, मुदा पहिल बेर बाजल शब्द हेलो मे कोनो परिवर्त्तन नहि आएल। जँ इएह आविष्कार भारतमे भेल रहैततँ ई पहिल शब्द कोनो-ने-कोनो भारतीय भाषाक शब्द रहल होएत।
            जँ आत्मालोचनक दृष्टिसँ देखल जाए तँ भारतीय भाषाक वैज्ञानिकता पर कोनो संदेह नहि अछि। मुदा ओहिमे अभिव्यक्त विज्ञानकेँ संदिग्धताक घेरासँ बाहर नहि लाबल जाए सकैछ। किएकतँ विज्ञान एहि भाषामे जन्म नहि लैछ, अपितु अनुदित होइछ। आय जँ एक दिस विश्व बजार पर स्थापित होएबाक प्रतिस्पर्धा चलि रहल अछि तँ दोसर दिस अपन क्षेत्रीयताक पहचान समाप्त नहि भए जाए तकर दबाब सेहो देखल जाए रहल अछि। एहन परिस्थितिमे भारतमे उच्च शिक्षामे स्थानीय भाषाक प्रयोगक चहुँदिस मांग एक स्वागतयोग्य डेग भए सकैछ। परंच ओकर स्थायी स्तित्व तखन रहत जखन मूल एहि भाषामे पल्लवित-पुष्पित हो। भाषा अभिव्यक्तिक साधन होइछ; आत्माक अभिव्यक्तिक आओर सत्ता अभिव्यक्तिक सेहो। वर्त्तमान मांगक फलस्वरूप जाहि लोकभाषासँ भूख आओर प्रतिरोध अभिव्यक्त होइछ एवं एकरा माध्यमेँ सत्तामे घूसपैठक चर्चा सेहो भए सकैछ। की ई प्रयास सत्तासीन वर्गकेँ मंजूर भए सकैछ? तेँ ई देखब बेस उत्सुकताक विषय होएत जे कोर्टक फैसलासँ लाभान्वित होइत छात्र मातृभाषामे साक्षात्कार दए केँ चयनित होएबामे कतबा सफल होइछ।
            भारत एक बहुभाषिक देश अछि, जतए 1652 मातृभाषा अछि। संविधान जाहि 22 भाषाकेँ मान्यताक देलनि अछि ओहो कोनो अंतिम भाषा नहि अछि। संवैधानिक मान्यताक लेल बहुत रास भाषा-भाषीक एक पैघ समूह बरोबरि सक्रिय अछि, आओर कोनो एहन तर्क नहि अछि जकर आधार पर एकर सक्रियताकेँ नजरअंदाज कएल जाए सकैछ। जखन कोनो भाषा रोजगारसँ जुड़ैछतँ एहि तरहक प्रयासकेँ आर बल भेटैछ। ओनातँ मैसूर स्थित भारतीय भाषा संस्थानक अन्तर्गत भारतीय भाषाक भाषा वैज्ञानिक सांख्यिकी संकायमे नेचूरल लेंग्वेज प्रोसेसिंगक माध्मयमे मैथिलीकेँ मशीनसँ जोड़बाक काज प्ररांभ भए गेल अछि संगहि राष्ट्रीय अनुवाद मिशन ज्ञानपरक पोथीक भारतक 22 भाषामे अनुवादक योजनापर काज कए रहल अछि। एहि सबसँ माध्यम भाषे मे बदलाव आओत, जखनकि आवश्यकता एहि बातक अछि जे एहि भाषासभमे ज्ञानपरक सामग्री उपलब्ध हुए जाहिसँ समाजक आग्रह स्वतः एहि भाषासभक प्रति बनए आओर उच्च शिक्षामे भारतीय भाषाक  संग-संग मैथिली सेहो अपन वृहत्तर दायित्वक सामंजस्यपूर्वक निर्वहन कए सकए। ई सब तखन संभव भए सकत जखन मैथिल (मिथिलामे निवास करए वला सभ जाति, वर्ग, धर्म एवं सम्प्रदायक लोक) अपन मौलिक चिंतन एवं शोधक माध्यमसँ एकर नेतृत्त्व करताह।

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ। 

No comments:

Post a Comment

"विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका http://www.videha.co.in/:-
सम्पादक/ लेखककेँ अपन रचनात्मक सुझाव आ टीका-टिप्पणीसँ अवगत कराऊ, जेना:-
1. रचना/ प्रस्तुतिमे की तथ्यगत कमी अछि:- (स्पष्ट करैत लिखू)|
2. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो सम्पादकीय परिमार्जन आवश्यक अछि: (सङ्केत दिअ)|
3. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो भाषागत, तकनीकी वा टंकन सम्बन्धी अस्पष्टता अछि: (निर्दिष्ट करू कतए-कतए आ कोन पाँतीमे वा कोन ठाम)|
4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।

अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।

"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि।
अपन टीका-टिप्पणी एतए पोस्ट करू वा अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर पठाऊ।