१.जगदानन्द झा 'मनु' २.राजेश कुमार झा
(कन्हैया) ३.शशिधर कुमर- पूणा प्रवास
१
जगदानन्द झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट-
हरिपुर डीह्टोंल, मधुबनी
१.गजल
रंग
देखू भरल अछि सभतरि तँ खूनसँ
देश गेलै गैल बैमानीक घूनसँ
साग तरकारी कते भेलै महग यौ
आब छी पोसैत नेना भात नूनसँ
नामकेँ लत्ता गरीबक देहपर अछि
लदल कबिलाहा कते छै गरम ऊनसँ
छैक भिसकी रम बहै भरपूर सबतरि
एखनो हम गुजर केलौं पान चूनसँ
मारि गर्मी लेल 'मनु' बेबस
कते छी
ओ तँ अछि पेरीसमे पोसाति जूनसँ
(बहरे रमल, मात्राक्रम-२१२२)
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२.गजल
घर घरमे
चक्कू पिजाबैत देखलौं
नेनाकेँ
तमाकुल चूनाबैत देखलौं
बेगरता
निकालि कs आजुक घड़ीमे
नीक
नीककेँ ठेंगा देखाबैत देखलौं
मोनक
दोष मोनेमे नूका कs सबटा
कपटसँ
करेज लगाबैत देखलौं
दियादक
फसादमे अपने मोलमे
घरमे धिया पुता नुकाबैत देखलौं
पाईकेँ
जमाना छै पाईकेँ हिसाबमे
पानिमे
मनुखता डुबाबैत देखलौं
नहि
रहिगेल मोल प्रेम आ स्नेहकेँ
प्रेमकेँ
डबरामे बहाबैत देखलौं
"मनु" मन कोमल सहि नहि सकलौं
किए
माएकेँ नोर खसाबैत देखलौं
(सरल
वार्णिक बहर, वर्ण-१४)
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३.गजल
गीत आ
गजलमे अहाँ ओझराति किएक छी
हुए
मैथिलीक विकास अंसोहाति किएक छी
परती
पराँत जतए कोनो उपजा नहि
है
तीन फसल
ओतएसँ फरमाति किएक छी
जतए सह
सह बिच्छू आ साँप भरल होई
ओतए
बिना नोतने अहाँ देखाति किएक छी
अप्पन
चटीएसँ नै फुरसैत
भेटे अहाँकेँ
सिलौटपर
माथ फोरि कs औनाति किएक छी
आँखि
पथने बरखसँ अहीँक रस्ता तकै छी
प्राणसँ
बेसी 'मनु' मनकेँ सोहाति किएक छी
(सरल
वार्णिक बहर, वर्ण- १७)
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४.गजल
हम चान
लेबैलए बढ़लौं अहाँ रोकब तैयो तारा लेबै
मैथिलकेँ
बढ़ल डेग नहि रुकत आब जयकारा लेबै
मिथिलाराज
मँगै छी हम भीखमे नहि अधिकार बूझि
चम्पारणसँ
दुमका नहि देब किशनगंज तँ आरा लेबै
छोरलौं
दिल्ली मुंबई अमृतसर सूरतकेँ बिसरै छी
अपन
धरतीपर आबि नहि केकरो सहारा लेबै
गौरब हम
जगाएब फेरसँ प्राचीन मिथिलाक शानकेँ
विश्व
मंचपर एकबेर फेर
पूर्ण मिथिलाक नारा लेबै
उठू 'मनु'
जयकार करू अपन भीतर सिंघनाद करू
फेरसँ
निश्चय कए सह सह अवतार बिषहारा लेबै
(सरल
वार्णिक बहर, वर्ण-२२)
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१.हजल
लाल
धोती केश राँगि समधि चुगला बनला ना
बेटा
बेचि आनि बरयाती ई पगला बनला ना
सभ
बिसरि आँखि मुनि ध्यानसँ ताकथि रुपैया
भीतर
कारी बाहर उज्जर बोगला बनला ना
खेत
खड़ीहान बेच बेच पीबथि बभना तारी
आब
लंगोटा खोलि खालि ई तँ हगला बनला ना
तमाकुल
चूनबैत पसारने दिनभरि
तास
घर
आँगनक चिंता नहि ई खगला बनला ना
जेल
छोरि बाहर आबि हाथ जोरि माँगथि भोट
जितैत
देरी 'मनु'केँ बिसरि दोगला बनला ना
(सरल
वार्णिक बहर, वर्ण-१८)
२
राजेश कुमार झा (कन्हैया), पिताक नाम :- श्री विजय कुमार झा, गाम :- घोघरडीहा (पुबाई टोल), पोस्ट ऑफिस + थाना :
-घोघरडीहा , जिला :- मधुबनी, (बिहार ) -847402
माँ
भगवन जते सृष्टि रचने छथिन,
सभ सृष्टिमे सभसँ नीक छथि माँ.
महाभारतमे युधिष्ठिर कहलखिन,
ऐ धरतीयो सँ पैघ छथि माँ
माँक बारेमे की लिखू,
ऐ सोचसँ परे छथि माँ.
नौ महिना ओ कोख मे राखै छथि,
प्रसवक पीड़ा सहै छथि माँ
बच्चाकेँ छाती लगा कऽ सुतबै छथि,
अपने राति-राति भरि जागल रहै छथि माँ.
बच्चाकेँ निक- निकूत खुआबै छथि,
अपने कए साँझ भूखल रहै छथि माँ.
बच्चाकेँ आँचरमे छुपबै छथि,
अपने हर दुख झेलै छथि माँ.
बच्चाकेँ जौँ कुनू कष्ट होइ छै,
ओकर दर्द महसूस करै छथि माँ.
बच्चा चाहे हुनका कइटा रहैए,
सूर्य प्रकाश जकाँ एकरंग प्यार करै छथि माँ.
बच्चा चाहे बूढ़े भऽ जाए,
तैयो हुनका बच्चे समझै छथि माँ,
बच्चा चाहे केतबो गलती करए,
बिना माफी माफ करै छथि माँ.
बच्चा चाहे जेहेन सोचैए,
बच्चा निकक लेल जीवन बितबै छथि माँ.
बच्चा जे मइ टूअर हैछथि,
हुनकासँ पूछियौ केहेन होइ छथि माँ,
बच्चाक सोचसँ चैन तखने होइ छथि,
जहन ई दुनियासँ जाइ छथि माँ
बच्चा सँ हुनका एते मोह छनि,
मरला बादो लगैए दुआर पर बाट ताकै छथि माँ,
माँकेँ नै बिसरियौ नै दुःख पहुँचाबियौ,
थालमे खिलल सरोज छथि माँ
३
शशिधर कुमर
पूणा प्रवास – (३)१
बरष दू हजार एक ।२
मिथिला सञो पूनाक,
प्रवास शुरू भेल ।।
दरिभंगा नञि, पटना सँ,
पकड़ल जे रेल ।
पूना – कल्याण नञि,
कुर्ला धरि गेल ।
कुर्ला सञो भी॰टी॰ वा,
दादर, कल्याण जा,
बऽस - ट्रेन भेटल, से
पूना धरि गेल ।।
बरष दू हजार एक,३
सुन्नर समाद भेटल ।
दरिभंगा सञो पूना,
सप्ताहिक ट्रेन चलल ।
टिकट कटओलहुँ झट,
पूजा आ छठि छल ।
चढ़लहुँ जे पूना मे,
दरिभंगे डेग उठल ।।
तकर बाद कहियो ने,
ओहि ट्रेनक संग भेल ।
आर॰ए॰सी॰ – वेटिंग की,
नो – रूमक ढंग भेल ।
कुर्ला – कल्याण भाया,
फेरो प्रवास रहल ।
ट्रेनक आवृत्ति बढ़ओ,
मोन मे से आश छल ।।४
बरष दू हजार तीन,५
फेरो एक बजट – रेल ।
पटना सञो पूना लए,
एक नऽव ट्रेन देल ।
चमचमाइत डिब्बा सभ,
बड़ नीक लगैत छल ।
नवकनिञा सनि सजलि,
मोन केँ हरैत छल ।।
आइ दू हजार बारह,
देखल कतोक खेल ।
पटना सप्ताहिक सँ,
दैनिक भए गेल ।
एक्सप्रेस रहए तहिया,
सुपर - फास्ट भेल ।
“तीन” सञो प्रवास केर,
साधन इएह भेल ।।
नीक बात पटना,
बनल अति – तेज६
।
मुदा किए दरिभंगा,
रहल बकलेल ?
भरि दिनक जतरा कऽ,
पटना पहुँचलहुँ हम ।
पटना सञो पूना केर,
बाट आब धएलहुँ हम ।।
पटनाक ट्रेन केँ,
ई की भए गेल छल ?
नवकनिञा असमय मे,
बुढ़िया बनि गेल छल ।
सेकेण्ड नञि, थर्ड हैण्ड,
रिपेयर सेट बॉगी छल ।
पुछबा पर बूझल,
कलकत्ताक लॉबी छल ।।
बीझ लागल लोहाक,
चिप्पी सभ साटल छल ।
किछु तँ अपर – बर्थ,
ढेकी सनि लागल छल ।
खएबा लए डेस्क होइछ,
सेहो बिलायल छल ।
बाहर सञो डिब्बा धरि,
राँगल - पोतयल छल ।।
रतुका समय बेस,
निन्न बड्ड लागल छल ।
अपरबर्थ - बत्ती तेँ,
माथहि पर टाँगल छल ।
स्वीचक गुलामी सँ,
ओहो स्वतन्त्र छल ।७
राति भरि आँखि पर,
दिनकर प्रचण्ड छल ।।
मोन पड़ल एहने सनि,
पहिनहु किछु भेल छल ।
गंगासागर गाड़ीक,
डिब्बा बदलाएल छल ।
इण्टरसिटीक सेहो,
एहने किछु बात छल ।
कहिया धरि मिथिला –
बिहारक ई हाल रहत ??
अर्थोपलब्धि संकेत :-
१ = “पूना प्रवास (१)
आ (२)” नामक
हमर कविता सभ विदेहक पुर्व अंक ( वर्ष – ४, मास – ४७, अंक – ९४, दिनांक
- १५ नवम्बर
२०११, स्तम्भ
३॰७ मे ) मे
छपि चुकल अछि ।
२ = २००१ ई॰, जकर मई – जून मे (BAMS हेतु
नाँव लिखएबाक लेल) हम पहिल बेर पूना गेल रही । तहि समय मे बिहार सँ पूनाक लेल
रेलगाड़ीक कोनो सीधा सम्पर्क नञि छल । “पटना कुर्ला
एक्सप्रेस” आ “पटना कुर्ला सुपर फास्ट
एक्सप्रेस” छल जाहि मे सँ पहिल कल्याण जं॰ पर रुकैत छल आ
दोसर नञि । कुर्ला टर्मिनस सँ पूनाक लेल कोनो रेलगाड़ी नञि छल । पूनाक लेल
रेलगाड़ी भी॰टी॰/वी॰टी॰ (वर्तमान सी॰एस॰टी॰), दादर, थाना वा कल्याण सँ भेटैत छल।
३ = २००१ ई॰क शीतकालीन विशेष उद्घोषणा मे “दरभंगा
पूणा एक्सप्रेस” ओही सालक अक्टूबर – नवम्बर
सँ देल गेल ।
४ = कोनहु रेलगाड़ीक लेल “नो-रूम”
(No Room / Regret) भेटबाक मतलब छै कि ओहि मे प्रतिक्षा श्रेणी (Waiting
Class) धरिक टिकट उपलब्ध नञि थिक । माने कि ओहि ट्रेनक माँग वा
यात्रीक संख्या बहुत बेशी थिक अर्थात् ओहि रेलगाड़ीक आवृत्ति (Frequency) बढ़ाओल जयबाक चाही । पे दुर्भाग्य सँ आइयो स्थिति सएह अछि पर एहि
रेलगाड़ी आवृत्ति नहु बढ़ाओल जा रहल अछि । सम्सत मिथिलांचलक लोक दिन भरिक समय
व्यर्थ गमाए, पटना आबि ट्रेन पकड़बाक लेल विवश कएल गेल छथि ।
५ = २००३ ई॰ , जहिया “पटना पूणा एक्सप्रेस” ट्रेन
देल गेल । पहिने ई गाड़ी “एक्सप्रेस” जे
कि बाद मे “सुपर फास्ट एक्सप्रेस” कएल
गेल । पहिने ई “सप्ताहिक” छल जे कि बाद
मे क्रमशः “दू-दिना”, “तीन-दिना”,
“चारि-दिना” आ अन्ततः “दैनिक” कऽ देल गेल ।
६ = “अति-तेज” माने “सुपर-फास्ट” । एहि ठाम
सन्दर्भतः सांकेतिक रूपेँ “दैनिक” होयबाक
परिचायक सेहो ।
७ = माथ पर लागल “ट्युब-लाइट”
जरिते रहैत छल । “स्वीच” केँ दबला सँ मिझाइत नञि छल ।
१.जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’- की भेटल आ की हेरा गेल (आत्म गीत)-
(आगाँ)२.सत्यनारायण झा- ओहिना मोन अछि
ओ दिन
१
जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
की भेटल आ की हेरा गेल (आत्म गीत)- (आगाँ)
चहुंदिस धधरा धधकैत छलै
सभहक छाती धडकैत छलै
सभ चिडै खेतमे छल कनइत
सभहक खोंता उजडैत छलै
भ’ जाउ तृप्त हे अग्निदेव
कनितो-कनितो छल बजा गेल
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
बच्चीकेर अएबासं पहिनहि
जडि गेल घ’र जे फूसक छल
छल हमर चाकरी केर चिन्ता
तैपर कर्जा भरि टोलक छल
परिवर्तन केर सुख छलनि बुझू
भेटबासं पहिनहि छिना गेल
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
छल अति संघर्षक दिन घरमे
ओ खटै छली, चुप रहै छली
कहबा केर जे किछु रहै छलनि
नोरेसं सभटा कहै छली
खगताक बाढिमे छलनि अपन
गहनो-गुडिया सभ दहा गेल
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
घूमि गाम-गाम आ शहर-शहर
किछु मांगि-चांगि क’ जे अनलहुं
फाटल अंगा, फाटल जेबी
की कत’खसल से नहि बुझलहुं
आगां तकलहुं, पाछां तकलहुं
छल जांत पयरमे बन्हा गेल
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
अपनहि हाथें हम पत्र लीखि
अपनहिकें कएलहुं सम्बोधन
अपनहि अर्जुन,अपनहि केशव
अपनहि बनि गेलहुं दुर्योधन
अपनहि अन्तरमे महाभारत
अपनहि लोभें छल ठना गेल
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
संघर्ष सत्य, थिक क्रान्ति सत्य
सत्ये होइ छथि शिव आ सुन्दर
जे भेटि गेल से अछि सुन्दर
जे नहि भेटल से अति सुन्दर
सुन्दरतम तं थिक ओ घृत जे
अछि हवन-अग्निमे ढरा गेल
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
२
सत्यनारायण झा- ओहिना मोन अछि
ओ दिन
ओहिना मोन अछि ओ दिन ,
जखन आहाँ नान्हिटा
रही ,अंगना मे खेलाइत रही ,
डेगा डेगी दैत रही ,खसैत रही ,परैत रही ,
कुदैत रही फनैत रही
आ माँटि मे ओंघराति रही ,
निश्च्छल पवित्र
मादक मुस्कान देने ,
सदिखन चंचल ,किछु ने किछु खेल करैत
अपन अधबोलिया भाषा
मे सभक’हँसबैत
कतेक सुखद आनन्द
लगैत छल ओ नेनपन
करेज मे सटा लैत छलौ अपन
पुत्र सुमन |
जखन आहाँ डेगा डेगी सं
दौड़य लगलौ ,
हर बिरडो उठौने ,पटका पटकी करैत ,
अपन नेनपन सं सभ क’ खिचैत
आँगन मे नचैत ,दलान पर खसैत
माईक आँचर तर नुकाइत ,पिताक कोरा मे
हँसैत
खींच लैत छलौ अपना आगोश मे
संतोष भ’ जाइत छल’ अहाँक भरोस मे
तृप्त भ’ जाइत छल आत्मा
आनन्दित होयत हेताह
परमात्मा
सोचय लगैत छलौ अहाँक नेनपन
सुखक अनुभूति होयत छल
सदिखन
तेजस्वी ,चंचल ,मनोयोगी आ प्रतिभा विलक्षण
अदम्य साहस ,अदम्य उत्साह आ
कठिन परिश्रम
गुरु भ’ पढ़बय लगलौ आ शिष्य
भ’ पढ़य लगलौ
परिबाक चान जकाँ धीरे धीरे
बढ़य लगलौ
लोक चकित छल ,हम चकित छलौ
ओजस्विता ,स्पस्टवाणी आ धवल
प्रखरता
दुपहरियाक सूर्य जकाँ
प्रचंड ताप ,
लह लह ,दह दह करैत असीम
मनस्ताप
योगी जकाँ सतत तपस्या मे लीन
लागे जेना अहाँक श्रृष्ट
सभ सं भिन्न
देखि करेज पहाड़ जकाँ भ’ जाइत छल
एकाग्रता देखि मोन तृप्त भ; जाइत छल
होमय लागल समाज मे शोर ,
बढ़य लगलौ आहाँ चतुर्दिक
विकासक ओर
प्रतिभाशाली छात्रक सभ गुण
छल
मेहनतिक फल आबय लागल पल पल
कओलेज मे पढ़ैत छलौ ,आगा बढैत गेलौ
विद्या अर्जन मे क्षुधा
बढैत गेल ,अजगर जकाँ पसरैत गेल
उच्च आकांक्षा ,प्रयास तीब्रतर ,प्रतिभाक संग विशाल लक्ष्य दर
मुदा कठिन तपस्या सफलता
दुर ,तोरय
लागल अहूँक सूर
सफलता असफलताक खेल ,अहूंक संग किछु दिन
भेल |
कुंठित मोन रहैत छल ,भीतर सं हृदय कनैत
छल
निश्छल पवित्र संयत भेल ,भीतर सं अशांत मुदा
अहाँक साहस लेल
जीवनक डोर घीचैत ,आशाक संचार लैत
चकित भ’ जाइत छलौ अदम्य साहस
देखैत
भाग्य पलटल समय करबट लेलक
सफलता पर सफलता धरौहि लागल
पुनः शोर भेल चारुकात ,उपद्रवी सभ मचाबय
लागल उत्पात
कतेक कटल कतेक मरल कतेक
भेल बताह
हमर बात कतेक क’ लगैत छलैक कटाह
मुदा गंगाजल जकाँ कल कल छल
छल
निर्मल स्वच्छ ,धवल शुद्ध प्रवाह
ने कियो रोकि सकल ने कियो
बान्हि सकल
गंगाक धार सतत बहैत गेल
कतेक ठाम अटकल कतेक ठाम
भटकल
पुनः अपना वेग सं वहैत रहल
कतेक लोक स्नान केलक ,कतेक लोकक प्यास
शांत केलक
उपद्रवियो सभ शांत भ’ गेल ,हमरो बहुत आराम भ’ गेल
अस्तित्व बिसरि गेलौ हम
अपन ,संसार
मे बस एकटा सुमन
अपन आभा समेट लेलौ ,अहाँक अस्तित्व मे अपना क’ समा लेलौ
ओही मे आनन्द छलौ ,ओही मे खुशी छलौ
जीवनक लक्ष्य आब पुरा भेल ,तृष्णा राखब हम कथी
लेल
हमरा जिनगीक जे छल अरमान ,सबटा पुरा क’
देलनि भगबान |
ओहो बहुत खुशी रहत छली ,अपना दूधक बलिहारी
दैत छली
दूधक इज्जत रखने छलनि पूत ,सभ क’ कोखि में होयक एहने सपूत |
केखनो क’ ओ दैत छली उलहन ,बेटाक शक्ति सं ओ छली विह्वल
देखि हमरा लगैत छल हँसी ,बेटाक प्यार क’
देखत हमरा सं बेशी |
आहाँ बढैत गेलौ दिन बदलैत
गेल ,गंगाक
धार बरी दुर चलि गेल
धारक प्रवाह कम होमय लागल
कतेक लोक खुशी सं भेल पागल
गंगा पहुँच गेल एक ठाम ,ओ सोचय लागल एक शाम
आगू दीवार पाछू दूरी ,देखाइत नहि अछि
सफलताक धुरी
अदम्य उत्साह आ उमंग ,सबटा संगे मुदा समय
बड कम
मुदा एकबेर पुनः पहाड़ तोरलौ ,जीबनक समग्र लक्ष्य
पेलौ
गंगा कहबी या पद्मा ,हुगली कहबी या
भागिरथी
सफलताक बाट ताकय परत ,आब आहाँ नहि छी पथी
|
कठिन नहि छैक किताबक
परीक्षा पास करब
कठिन छैक जीबनक परीक्षा
पास करब
जीबनक हर मोर पर ,हर खुशी हर लम्हा
मे
संग रहब हम सभ ,संग रहब हम सभ
माय बाप क’ की चाही ,पुत्रक खुशी पुत्रक चाह
हर समय भेटत ,हर समय पायब,हमर आशीष हमर उत्साह |
हमर अंतिम इच्छा ,हमर पैघ आकांक्षा
अहाँक पितृ –मात् प्रेम ,अहाँक बंधुत्व –प्रिया प्रेम
समाजक प्रति बनू प्रकर्ष ,देत अहाँक आनन्द
आकर्ष |
सुललित पुत्रक
शुभकांक्षी पिता,
सत्य नारायण ,२८ .०८ २०१२
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