भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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प्राचीन अंगक निर्माणकेँ लऽ कऽ कतेक रास कथा प्रचलित अछि।
वाल्मीकि रामायणक मुताबिक, जतए शोभाशाली कामदेव अप्पन अंग छोड़ने छल,
ओ अंग देशक नामसँ विख्यात भेल।
अयोध्यासँ सिद्धाश्रम जाए कऽ बाटमे राम-लक्ष्मणक संग
विश्वामित्र एक राति गंगा आ सरयूक कातमे बितौने छल। ओतए शुद्ध अंत:करणबला महर्षि
सबहक पवित्र आश्रमक परिचय दैत विश्वामित्र बाजल छल जे कहियो एतए भगवान शिव
चित्तकेँ एकाग्र कऽ तपस्या करैत छल। ओइ काल कामदेव मूर्तिमान छल। ओ अप्पन देह धारण
कऽ विचरण करैत छल। एक दिन भगवान शिव समाधिसँ उठि कऽ मरुद्गणक संग कत्तौ जा रहल छल।
ओइ काल ओ दुर्बुद्धि हुनकापर आक्रमण कऽ देलक। भगवान शिव हुंकार कऽ हुनका रोकलक आ
अवहेलनापूर्वक ओकरा दिस ताकलक।
फेर तँ कामदेवक सभटा अंग हुनकर देहसँ जीर्ण-शीर्ण हुअए
लागल। कठिन तापसँ दग्ध भेल कामदेव ओतएसँ भागि गेल। जइ ठाम पर कन्दर्पक देह पूरा
तरहे नष्ट भेल, वएह प्रदेश अंग देशक नामसँ विख्यात भेल। 1
अंग देशक नामकरण ओतुक्का एकटा राजा अंगक नामपर भेल छल। आनव
राज्य, जकर धूरी अंग छल, पाँच टा राज्यमे
विभक्त छल, जकर नामकरण राजा बलिक पाँचटा पुत्रक नामपर भेल
छल। आनवक अधिकारमे संपूर्ण पूर्वी बिहार, बंगाल आ उड़ीसा छल,
जइमे अंग, बंग, पुण्ड्र,
सुहा आ कलिंङ्क राज्य छल। अइ मे अंग एकटा बड़ शक्तिशाली जनपद छल।
वाल्मीकि रामायणक मुताबिक सुग्रीव सीताकेँ ताकै लेल अप्पन
वानर सैनिककेँ पूरबक देशमे भेजने छल, जइमे अंग सेहो एकटा छल।2
तइ कालमे अंगक विस्तार असीम छल। किएकि बलि पुत्र अंगक बाकी चारि
भायक राज्यक सत्ताक केंद्र अंग राज्य छल।
ई तथ्य सेहो विचारणीय अछि जे महाभारतक (शांतिपर्व, 296) मुताबिक, आदिकालमे चारि टा गोत्र छल, भृगु, अंगिरा, वशिष्ट आ कश्यप।
ऋग्वेदक दोसर, तेसर, चारिम, छअम आ आठम मंडलमे जइ ऋषि सभकेँ मंत्र प्राप्त होइत अछि ओ अछि, गृत्समद, गौतम, भारद्वाज आ
कण्व। आचार्य अश्वलायन अष्टम मंडलक वंशकेँ गोत्र द्योतक मानैत अछि, संग-संग अइ मंडलक ऋषिक प्रगाथा सेहो कहल जाइत अछि। हुनका अनुसार, अइ मंडलक पहिलुक सूक्तक ऋषि प्रगाथ छल जे स्वयं कण्व वंशी छल। अइ मंडलक
एगारह वालखिल्य मिल कऽ कुल १०३ सूक्त कण्वक अछि। गौतम आ भारद्वाज अंगिरा वंशक मानल
जाइत अछि आ कण्व सेहो अंगिरसेक अछि। अइ तरहेँ अइ पाँच मंडलमे अंगिरसक प्रधानता
स्वयं सिद्ध अछि।
अइ मंडलक ऋषि कुल अंगिरस, अंग द्वीपक ऋषि
छल। स्वयं इंद्रक ऐरावत हाथी पदमर्दन कऽ देने छल, अइसँ
तमसाएल दुर्वासा इंद्रकेँ शाप दऽ कऽ हुनका सत्ताच्युत कऽ देलखिन। इंद्र राजा बलिसँ
सहायता मांगलक। राजा बलि इंद्रक संकेतपर देवलोकेपर अधिकार कऽ लेलक। बलि अंगद्वीपक
राजा छल।4 ओ अप्पन पाँच शक्तिशाली पुत्रमे अंगक जनपद बाँटि
हुनका सभकेँ ओइ ठामक राजा बना देलक। एकर बादो अंग असुर-सुर संस्कृतिक मुख्य केंद्र
छल। ऋग्वेदसँ स्पष्ट ज्ञात होइत अछि जे अंगिरस आ हुनकरे वंशज यज्ञ कर्मक जनक छल। ओ
अइ रहस्यक पहिलुक ज्ञाता छल जे यज्ञाग्नि काष्ठमे निहित छल। अइ तरहेँ अंगिरिस सभ
अग्निक प्रयोगसँ सभसँ पहिलुक यज्ञोत्सवक नींव देने छल।
प्राचीन भारतमे जे सोलह महाजनपदक चर्चा अछि, ओइमे अंग प्रमुख छल। शेष महाजनपद छल, मगध, काशी, कौशल, बज्जि, मल्ल, वत्स, चेदि, पांचाल, कुरु, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवन्ति,
गान्धार आ कम्बोज।
अंग आ मगधमे निरंतर संघर्ष चलैत रहैत छल। बुद्ध कालमे मगधक
राजा बिम्बसार अंगकेँ जीत कऽ मगधमे मिला लेने छल।
अंग वा अइ पूर्वी प्रदेशक लोग आ राजतंत्र ब्रााह्मण ग्रंथमे
व्रात्य नामसँ जानल जाइत अछि। व्रात्यक शाब्दिक अर्थ अछि व्रतकऽ धारण करैबला मुदा
एतए एकर प्रयोग बड़ गर्हित अर्थमे भेल अछि। एकर तात्पर्य अछि अनार्य, वैदिक कर्मकांड विरोधी आ वर्णसंकर। सावित्री आ उपनयनसँ भ्रष्ट द्विजातिकेँ
मनुस्मृतिमे ब्राात्य कहल गेल अछि।
वेदमे सेहो अइ ठामकेँ बड़ हेय दृष्टिसँ देखल गेल अछि।
ऋग्वेदक प्रमगन्द शब्द अंग भंग आ मागध लेल प्रयुक्त भेल अछि। मागधकेँ वेदमे कीकट
कहल गेल अछि। एहन लागैत छै जे संपूर्ण पूर्वी प्रदेश कोनो सांस्कृतिक अभिशापक
आगिमे झुलसि रहल अछि आ वैदिक राजनीतिक शिकार बनि गेल अछि। अइ ठामक लोकक लेल
चुनल-चुनल खराब शब्दक प्रयोग करैमे नै तँ वेद मंत्रकार पाछाँ रहल आ नहिये महामुनि
व्यासे।
ऋग्वेदमे एकटा ऋषि इंद्रसँ प्रार्थना करैत अछि, मगधक गाय कोन काजक अछि जकर दूध यज्ञमे अहाँक काज नै आबैत अछि। (यानि कीकटक
गायक दूध सेहो अपवित्र अछि आ ओकरासँ यज्ञ कर्म करैक लेल वर्जना अछि) सोमरसक संग
मिल कए ओ दूध यज्ञपात्रकेँ गर्म नै करैत छै। तइसँ हे इंद्र! ओइ नैचाशाख प्रमगन्दक
(निचला शाखाक अंग बंग आ मागध) ओ धन हमरा दिअ।6
अथर्ववेद तँ एक डेग अओर आगू अछि। अथर्ववेदक एकटा ऋषि कहैत
अछि, जेना मनुख आ उपभोगक अन्य सामान एक ठामसँ दोसर ठाम भेजल जाइत
अछि, ओइ तरहेँ ज्वरकेँ गन्धार भूजवान, अंग, मगध प्रदेशमे भेजि देल जाइत अछि।7
आखिर वेद ब्रााह्मण ग्रंथकेँ अइ प्रदेशपर एतेक कोप किए अछि? आउ, विचार करी। ब्रााह्मण द्वारा विनिर्मित जइ यज्ञ-योगादि क्रियाक उदय सप्त सिंधुक घाटीमे भेल, बड़ जोर
मारलाक बादो ई विधि-क्रिया भारतक अइ पूब क्षेत्रमे अप्पन जड़
नै जमा सकल आ ने ब्रााह्मणवाद आ ब्राह्मण विचारधारा अइ भागमे अप्पन सत्ता काएम कऽ सकल।
किएकि व्रात्य आर्य भेलाक बादो वैदिक कर्मकाण्ड, पशु
हिंसाबला यज्ञ आ बड़ खर्चबला विधि कर्मक विरोधी छल।
ब्रााह्मण अपनो अइ धरतीपर बसै लेल नै चाहैत छल। एतुक्का
निवासी स्वतंत्र विचारक, ज्ञानी आ तपस्वी छल। ओ अपन आचरण, व्यवसाय आ संस्कृतिपर ब्रााह्मणक छाया धरि सहन करै लेल तैयार नै छल। जे
कोनो ब्रााह्मण तपस्वी तपस्याक लेल अइ क्षेत्रमे छल, सेहो
कमलक तरहेँ जलसँ ऊपर छल। हुनका एतुक्का व्रात्यसँ कोनो संपर्क नै छल। स्वयं
ऋष्यश्रृंङ्ग लऽ कऽ रामायणकार वाल्मीकि कहैत अछि- सदिखन
पिताक संग रहैसँ विप्रवर ऋष्यश्रृंङ कोनो दोसराकेँ नै जानैत छल।"8 अइसँ स्पष्ट अछि जे ब्राह्मण ऋषि जन-सामान्यक
संपर्कसँ अपनाकेँ अलग राखैत अछि।
ब्रााह्मण ग्रंथक मुताबिक, राजा बलि अंगक
शासक छल। हुनका कोनो संतान नै छल। हुनकर स्त्री सुदेक्षणा दीर्घतमा नामक ऋषिसँ
पाँचटा पुत्रकेँ जन्म देलक। ई ऋषि आन्हर छल। 10 महाभारतक
मुताबिक, ई ऋषि सभ लोकक सोझाँमे स्त्री संभोग करैत छल। 11
हुनकर पिता छल उत्तथ, जिनकर स्त्रीकेँ
वरुण भगा कऽ लऽ गेल आ हुनका संग संभोग करलक। बादमे वरुणकेँ दंडित कऽ उत्तथ अप्पन
स्त्रीकेँ वापस आनि सुखपूर्वक रहए लागल।12
गर्हित पौराणिक मिथकीय कथा जाल आ ओकर टीकाकार, भाष्यकार, रचनाकारसँ बचैत ई कहएमे कोनो संकोच नै अछि
जे पूरा अंगक वासी आ राजतंत्र आर्य आ अनार्य संस्कृतिक संगमपर फल-फूलि रहल छल।
विभिन्न जाति, विचार आ संस्कृतिसँ समन्वित ई इलाका प्राचीन
षोडश महाजनपदमे प्रमुख छल।13
वैदिक ग्रंथमे जलाशय, जल आ धारक प्रशस्ति अछि।
ऋग्वेदमे तँ कतेको ऋचामे ई अछि। जलक पवित्रता प्राकवैदिक अछि यानी आर्यकेँ आबएसँ
पहिनेसँ अछि। एकर जीवात्मा आ उर्वरतासँ गहींर संबंध अछि। तइसँ महर्षि कश्यपक
तेजस्वी पुत्र विभाण्डक ऋषि अप्पन तपश्चर्याक लेल अइ कोशिकाच्छादित भूभागकेँ सभसँ
उपयुक्त बुझलक।
तीर्थ तपस्याक लेल नै होइत अछि। तीर्थक प्रथा तँ अनार्य
स्रोतसँ ग्रहीत भेल अछि। हिन्दूक सभटा तीर्थ आर्यक मूल स्थानसँ बाहरक अछि। आर्यक
आगमनसँ पहिने एतुक्का धर्ममे तीर्थ छल। आर्यक सम्मिलन स्थल यज्ञ छल आ अनार्यक
तीर्थ। ई तीर्थ शब्द सेहो वेदवाह्य अछि किएकि वेद विरोधी मतकेँ तैर्थिक मत कहल
जाइत अछि। तइसँ तपस्याक लेल तीर्थ नै, अरण्य आ पवित्र धारक कात
सभसँ उपयुक्त अछि। तइसँ व्रात्यक भूमि भेलाक बादो महर्षि विभाण्डक उत्तरबरिया अंगक
सघन अरण्य क्षेत्रमे कौशिकीक धारक कातमे अप्पन आश्रम बनेने छल। कोशी एकटा पौराणिक
धार अछि। एकर कातमे साक्षात भगवान शंकर बसै छै। इंद्र, विष्णु
आ ब्रह्मा केँ भगवान शिवसँ भेंट करहि कऽ पूर्व, निर्दिष्ट आ
निर्धारित ठाम ई कोशीक मनोरम तीर अछि।14 अप्पन बहिन कौशिकीक
संबंधमे स्वयं विश्वामित्र कहैत अछि,
धारक कात सुदूर धरि फैलल पैघ पाथरक अद्भुत श्रृंखला सेहो
विद्यमान छल, जे कोशीक तीव्र धारकेँ नियंत्रित करैत छल। लगभग साढ़े सात
हजार बरखक भौगोलिक परिवर्तनक परिणामस्वरूप ओ पाथरक (चट्टान) श्रृंखला जमीनक भीतर
गहींरमे चलि गेल आ ओकर ऊपर माटिक मोटका परत जमैत गेल।16
कोशी आ ओकर छाड़न धारक कातपर अप्पन सघनताक लेल प्रसिद्ध
कज्जल वन स्थित पुण्याश्रम पूरे आर्यावर्तमे प्रसिद्ध छल। ई क्षेत्र असुरक
प्रभावसँ सेहो मुक्त छल। तइसँ एतए कऽ ऋषि आश्रम निरापद छल। एतए निर्विध्न वेद पाठ
चलैत छल आ आश्रमवासीक समए समिधा संचय, अग्निहोत्र आ कृषि काजमे
व्यतीत होइत छल। ई आश्रम ऋषि आ कृषि परंपराक अद्भुत संगम स्थल छल। भूमि
बड़ उर्वरा छल। महर्षि विश्वामित्र अप्पन कालक महान कृषि वैज्ञानिक सेहो छल। हुनकर
तपस्या आ प्रयोग स्थल कोशीक मनोहर तट सेहो छल। पूरा इलाका वन्य पशुक अभ्यारण्य छल।
विश्वामित्र केर अप्पन कठोर तपस्यासँ ऊर्जावान बनाएल इलाका मुनि विभाण्डक लेल
सर्वथा उपयुक्त छल। अप्पन वंश परंपराक अनुरूप ओ सेहो विपुल प्रतिभाक पुंज छल।
महर्षि व्यास हुनकर वंश परिचय एना देने अछि:-
ब्रह्माक मानस पुत्र मरीचक पौत्र विभाण्डक छल। उच्च
वंशोद्भव ई ऋषि वेद विहित संस्कारसँ संपन्न छल। कोशीक कातक ई कज्जल वन हुनकर साधना
तपस्याक लेल पूर्ण उपयुक्त आ निरापद छल।
अति प्राचीन कालमे (महाभारत, पुराण, वराहमिहिर आ भास्काराचार्यक मतानुसार) भारत नौ खंडमे विभक्त छल। ई खण्ड छल,
इंद्र, कसेरुमत, ताम्रवर्ण,
गभस्तिमत, कुमारिक, नाग,
सौम्य, वरुण आ गान्धर्व। पौराणित साक्ष्य आ
एकर पहचानक जे संकेत भेटल अछि, ओकर मुताबिक पूर्वी भारतक ई
क्षेत्र इंद्रखण्ड छल। अइ क्षेत्रपर इंद्रक विशेष कृपा छल। तइसँ ई सदिखन हरिअर
फल-फूल आ धान्यसँ संपन्न क्षेत्र छल। धार सदानीरा छल।
ऋग्वेदमे अंगक उल्लेख नै अछि। तइसँ एहन लागैत अछि जे उत्तर
वैदिक कालमे अंग जनपदक उदय भेल अछि। ऋग्वेदमे कीकट शब्दक प्रयोग भेल अछि जेकरा मगध
आ अंग क्षेत्रक लोक लेल प्रयोगमे आनल गेल हएत। मुदा कतेक रास आचार्य एकरा सप्त
सिन्धुक पर्वतीय भाग लेल सेहो प्रयुक्त करैत अछि।18 जे भी भेल हुअए,
रामायण युगक आर्य सभ्यता केर अइ क्षेत्रमे उदय भऽ चुकल छल। मुदा
राक्षसी सभ्यता अओर आर्येतर वानरी सभ्यता एतए अप्पन जमीन नै बना सकल छल। अइ
क्षेत्रमे स्थापित ऋषि आश्रम अध्ययन, अनुसंधान आ यज्ञादि
क्रियाक संपादन लेल उपयुक्त छल।
Input:
(कोष्ठकमे देवनागरी, मिथिलाक्षर किंवा फोनेटिक-रोमनमे टाइप करू। Input in
Devanagari, Mithilakshara or Phonetic-Roman.) Output:
(परिणाम देवनागरी, मिथिलाक्षर आ फोनेटिक-रोमन/ रोमनमे। Result in Devanagari,
Mithilakshara and Phonetic-Roman/ Roman.)
English
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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