२. गद्य
यात्रा प्रसंग
ह्वेन सांगसं चीनमे भेंटघांट
हमसभ हाइस्कूलक पाठ्यक्रममे ह्वेनसांगकेँ सम्बन्धमे पढैत छलहुँ । चिनी यात्रीसभ भारतधरि पहुँचि बौद्धधर्मक ग्रन्थसभकेँ संकलन कऽ चीन लऽ गेल छल । विकट वाट–अथक यात्री । महिनोक सफर ।
हमसभ चीनक सांस्कृतिक राजधानी सियानमे आबि गेल छी । विजिंगसं दूघंटाक उडानक बाद काल्हिए एत्त आएल रही । आसीन ७ गतेसं नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक नौ सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल सात दिनक चीन भ्रमणमे अछि । सात गते काठमाडौसं चायना ईस्टर्न एयरलायन्ससं हमसभ कुनमिंग आयल रहीआ ओत्तसं ओही दिन विजिंग पहुंचल रही राति ११ बजे करिब । विजिंगमे तीन दिन रहि क काल्हि चीनक सांस्कृतिक राजधानी सियान आयल रही । आ आई सियानक बासी रहल ह्वेन सांगक विशिष्ट कृतित्वक अध्ययनमे लागल छी ।
सरिपहुं आइ एकटा विशिष्ट व्यत्तित्वक कृतित्वसँ साक्षात्कारक समय छल । हमर चुलबुले गाइड मोनिका (पश्चिमी नाम) हमरासभकेँ डा.सीन टेम्पलमे लऽ जा रहल छली । एतय ओकरे शब्दमे सियान जौैंग अर्थात हमसभ जकरा ह्वेन सांग कहैत छिएै,क बासस्थान, कृतिसभसँ परिचय कराबय लेल ओ बेसब्र छलीह, मन्दिर बनौल गेल जत्त ओ बौद्ध कृतिसभक चिनी अनुवाद कएलन्हि । हुनक अनुवाद कएल किछु कृति ओतहि राखल अछि । भारतसँ घुरलाक बाद तत्काले सम्राटद्वारा कएल गेल स्वागत आ अन्य क्रियाकलापसभ देवालपर लिखल भव्य चित्रसभ बताबि रहल छल । प्रकोष्ट भितर ह्वेन सांगकेँ भव्य प्रतिमा सेहो स्थापित अछि । तहिना बाहर कम्पाउण्डमे सेहो हुनक विशाल प्रतिमा राखल गेल अछि । ओ सियानके बासी छलाह । तएँ सियानवासी हुनका बहुत बेसी सम्मान करैत अछि आ हुनका स्मृतिकेँ सम्बद्र्धन करएमे दत्तचित्त भऽ लागल अछि ।
११९ ई सन पूर्व सियानमे बेस्टर्न हान डाइनेस्टी समय दिस सिल्क कारोबार ओतय होइत छल । पाछु इएह सिल्क व्यापार सियान होइत समुद्रतट धरि पसरल । ई व्यापारिक बाट पाछु सिल्करोडक नामसँ प्रसिद्ध भऽ गेल । जखन चीनमे सन २५ दिस इस्टर्न हान पिरियडक समयमे भारतीय बुद्धिज्म चीनमे प्रवेश पौलक , सम्भवतः ओकर बाट सेहो इएह सिल्करोडे छल ।
तांग राजवंशक प्रारम्भिक समय ६२९ सन दिस ह्वेन सांग ओएह सिल्करोड होइत भारतधरिक यात्रा कएने छलाह —बुद्ध साहित्य,दर्शन प्राप्त करबा लेल ।ओ सन ६४५ मे सियान घुरलाह आ बडका ध्ष्मि नययकभ एबनयमब या म्ब ऋष्भल त्झउभि कँ निर्माण भेल ।
ह्वेनसांग सन ६०० मे जन्मल छलथि , ६१३मे बौद्ध भिक्षु बनलान्ह, ६२९ सँ ६४५ धरि भारत भ्रमण कएलन्हि, ६४५ सँ ६६४ धरि बौद्ध साहित्यक अनुवाद कएलन्हि , सन ६६४ मे हुनक देहाबसान भ गेलन्हि ।
हमरासभकेँ विस्तारपूर्वक ओहि पैगोडाकेँ जानकारी प्राप्त भेल । मनमे उठल अनेको जिज्ञाशाकेँ सेहो शान्त करबाक अवसर पौलहुँ ।
चीनमे देखय लायक बहुत चीज अछि । आठ हजार ई.पूर्वधरिक अवशेषसभ संग्रहालयमे देखलहुँ तऽ ३००० सँ ५००० हजारधरि ई पूर्वक साबूत आ विकसित सामग्रीसभ देखलाक बाद सभ्यता आ संस्कृतिक विकासमे चिनियां भूमि अन्य क्षेत्रसँ आगां आ बेसी सम्पन्न किए अछि से आभास होइत अछि । आव विश्वास होइत अछि जे लिपिक विकास किया चीनेमे भेल छल ।
चीन भ्रमणक एहि प्रसंगमे अनेकौं ऐतिहासिक तथ्यसभसं साक्षात्कार करबाक अवसर भेटल । तखन लागल चीन मात्र सातम् आश्चर्यक लेल मात्र नहि, अपना भितर अनेकौ आश्चर्यसं भरल सामग्रीसभ संरक्षित क रखने अछि, जकरा देखा क एखन आर्थिक उपार्जन मात्रे नहि अपन परम्परा आ सांस्कृतिक सम्पदाकें विश्वकें अगाडी समधानि क प्रस्तुत करबाक पैघ काजसेहो क रहल अछि ।
चीनक विकासक गति ठीके प्रशंशायोग्य मानल जएबाक चाही ।
कहल जाइत अछि, इख नहि भेल मनुष्य आ विष नहि भेल साँप कोन काजकेँ । तहिना साहित्यमे सेहो होइत अछि ।
कवि, लेखक अथवा साहित्यकार कहए चाहने बात पाठक अथवा श्रोता नहि वुझिसकल तऽ ओकर कोन अर्थ ?
एकटा लेखक कहए चाहने अथवा देबए चाहने सन्देश श्रोता वा पाठक अनुसार फरक फरक हएत मुदा विनु सन्देशक ओ साहित्य विनु काजक होइत अछि । ओहन साहित्य चिरस्थायी सेहो नहि होइत अछि । मनोरञ्जनक लेल मात्र सिमित रहैत अछि । नहि तऽ ओहिकेँ लेल कवि, लेखक अथवा साहित्यकारकँे भरमग्दुर प्रयत्न करए पड़ैत अछि ।
अपन रचनाकँे चिरस्मरणीय बनाबए तथा ओहिकँे सान्दर्भिकताक लेल साहित्यकारकँे बहुत प्रयत्न करए पड़ैत अछि ।
तएँ आबए बला पुस्तासभक समयमे सेहो ओ रचनाक सान्दर्भिकता रहौक ।
हालहि मैथिली साहित्यक नवउदयीमान कथाकार एवं पत्रकारसुजीतकुमार झाक कथा संग्रह जिद्दीक सम्बन्धमे किछु लिखबाक प्रयत्न कएने छी ।
इएह भादव २३ गते महोत्तरी जिल्लाक जलेश्वर स्थित नेपाल पत्रकार महासंघ महोत्तरी शाखाक सभाहलमे आयोजित समीक्षा तथा परिचयात्मक कार्यक्रममे उठल सवालसभकेँ सेहो मनन कएलहुँ आ ई कथा संग्रह पढि कऽ अपन मोन भितर उठल बातसभकँे एतह रखवाक प्रयास कएलहुँ अछि ।
साहित्यकँे विविध विधासभमे सँ कथा विधा सेहो एक अछि ।
गद्य विधाकेँ एक सशक्त आ छोट समयमे पढि कऽ सम्पन्न करय बला आ प्रशस्त सन्देश देवाक सामथ्र्य कथामे होइत अछि ।
कविशेखर ज्योतिरीश्वर ठाकुर सँ शुरु भेल मैथिली साहित्यकँे गद्य अखन धरि अनवरत रुपमे आगु बढि रहल अछि आ गद्यकँे एक सशक्त विधा कथा रहल अछि ।
कथामे कोनो एक पक्षक बातकेँ उठाओल गेल अछि जे ई विधा पुरान मानल जाइत अछि । । पहिने–पहिने उपदेशात्मक कथासभ, नैतिक कथासभ, परिक कथासभ , भगवान आ दैत्यक कथासभ सुनाओल जाइत छल । धीरे धीरे सामाजिक घरातलक यर्थाथताकेँ समेटि कऽ यर्थातवादी कथासभ लिखाए लागल ।
मैथिली कथा साहित्यकेँ बात कएल जाए तऽ बहुत लम्बा परम्परा नहि रहलाक बादो एहिकँे गुणात्मक रुपमे नीक स्थिती रहल अछि ।
संस्कृतक कथासभकँे अनुवाद सँ शुरु भेल मैथिली कथा साहित्यकँे शुरुवात पत्रपत्रिका सँ भेल तथ्य रहल अछि ।
मैथिली पत्रपत्रिकाक प्रकाशन संगहि मैथिली कथा साहित्यकँे शुरुवात भेल मैथिली साहित्यिक इतिहास पुस्तकमे उल्लेख अछि ।
बासुदेव ठाकुरक सप्तध्याधा सँ शुरुवात भेल मैथिली कथा साहित्यकँे इतिहास अखन धरि रातो नदिमे बहि रहल पानि जेकाँ अछि ।
कोनो नदिमे जहिना बाढि अबैत अछि आ चलि जाइत अछि । ओहिना साहित्यमे सेहो प्रकाशनक बाढि आएल आ सुखाएल ।
संख्यात्मक रुपमे ओतके कथा संग्रहक प्रकाशनसभ नहि रहलाक बादो गुणात्मक रुपमे कोनो भाषा सँ मैथिली कथाक स्तरीयता कम नहि अछि । कथाक विभिन्न वादसभमे मैथिली साहित्यकारसभ कलम चलौने देखल गेल अछि ।
बासुदेव ठाकुरक सप्तध्याधा सँ शुरु भेल मैथिली कथा साहित्य लेखनीक इतिहासमेृ पं. सुन्दर झा शास्त्रीक अखनु बखारी नै फुजलै, डा.धीरेन्द्रक हिचुकैत बहैत सेती, डा.राजेन्द्र बिमलक इ कथा हमरे थिक, राम भरोस कापड़ी भ्रमरक कथा संग्रह तोरा संगे जयबौ रे कुजवा, डा.रेवती रमण लालक माधव नहि अएला मधुपुर सँ, डा.सुरेन्द्र लाभक कथायात्रा, अयोध्यानाथ चौधरीक एकटा हेरायल सम्बोधन, राजेश्वर नेपालीक सोमली, वृशेष चन्द्र लालक माल्हो आ सुजीतकुमार झाक चिडैं पश्चात आएल जिद्दी कथा संग्रह मुख्य अछि ।
एहिकेँ बाहेक बहुत कथा संग्रह आ कथासभ मैथिली साहित्यमे प्रकाशन भेल अछि जे उत्कृष्ट सेहो अछि ।
डा. धीरेन्द्रक अभिभावकीय परम्परामे बढल मैथिली कथा साहित्यमे विषयवस्तुक व्यापकता, राजनीतिक वदलावक प्रभाव, नेपालीय माटिपानिक गंध, पारिवारीक, सामाजिक, साँस्कृतिक आ राजनैतिक जीवन आ ओतए सँ पड़ल उतार चढाव देखल जाइत अछि ।
कथाशिल्पक दृष्टि सँ नव–नव प्रयोग सेहो देखल गेल अछि ।
तहिना उतारचढावक बीच वितल समयमे नेपालीय माटिमे मैथिली कथा संग्रह जिद्दीक प्रकाशन भेल अछि ।
कथाकार सुजित कुमार झाक पहिल कथा संग्रह चिडै आ तकरबाद आएल रिपोर्टर डायरी आ तेसर कृतिक रुपमे आएल कथा संग्रह जिद्दी वास्तवमे मैथिली साहित्य भण्डारमे बृद्धि भेल अछि ।
हुनकर दुनू पुस्तक सँ परिमार्जित आ सशक्तरुपमे जिद्दी कथा संग्रह आएल कहबामे कोनो भांगठ नहि अछि ।
कथा संग्रह जिद्दीमे नेपालीय मैथिली नारीसभक विषयवस्तुसभ उठाओल गेल अछि ।
एहि संग्रहक मुख्य पात्रसभ नारी अछि तऽ कथा सेहो नारीक आसपास घुमैत रहल कथा संग्रह जिद्दी नारीवादी कथासंग्रहकेँ रुपमे आगा आएल अछि ।
कथाकार सुजित कुमार झाकेँ नारीवादी कथाकारक रुपमे देखल गेल अछि ।
कथा संग्रह जिद्दीमे कथाकार नारीक सामाजिक, साँस्कृतिक, राजनीतिक स्तर पड़ल प्रभाव, एहि सँ सामाजिक जनजीवनमे पड़ल असर, अगामी दिनमे एहि सँ पड़ल जाएबला सामाजिक विखण्डनक खतराकेँ सुक्ष्मरुपमे देखल गेल अछि ।
कथा संग्रह यर्थातक धरातलमे ठाढ़ अछि ।
यद्यपि ई कथा संग्रह बेसी आदर्शोन्मुख यर्थातवाद दिस गेल अछि ।
एक दर्जन कथा समाविष्ट रहल कथासंग्रह जिद्दीमे हरेक कथा एक अलग छाप छोड़ए सफल भेल अछि ।
कथाक अन्त नहि पढए धरि कथावस्तुक शिर्षक अपुर्ण लगैत अछि । मुदा कथा पढलाक बाद एक निमेषमे मिथिलाञ्चलक धरातलीय यर्थात मानस पटलपर आबि जाइत अछि ।
पारस्परिक स्नेह, विश्वास, बलिदान, सेवा, करुणा, अनुशासनक धरातलमे रहि कऽ अपन मोन, सम्मान बचौने मिथिलाञ्चलमे ओ बातसभ समयानुक्रममे घटल घटनाक प्रेरणा सँ कथा जन्मल अछि ।
आ कथाकार कथासभक मार्फत ओ बातसभकेँ पुनःस्थापना होएबाक बात पर जोड़ देने छथि ।
सरसरती रुपमे माला बनाएल शैलीमे आगा बढैत जाएब आ अन्तमे पाठककेँ सोचमग्न बनाबैत कथाक इतिश्री करब कथाक महत्वपूर्ण बाट अछि ।
कथा संग्रहमे रहल १२ टा कथासभ मे सँ सभ उत्कृष्ट रहल अछि ।
पहिल कथा पूmल फुलाइए कऽ रहलमे महिलाक अथक प्रयास आ दृढ इच्छाक नमुना प्रस्तुत कएल गेल अछि तऽ महिलाकेँ एक्को् बेर नहि पुछि अभिभावक लडकीक विवाह करब, विवाहक समयमे लड़का पक्षद्वारा झुठ बाजब, दहेज आ रंगक कारण विवाहमे समस्या आएब सहितक समस्याकेँ सेहो देखाओल गेल अछि । जे समस्या मिथिलाञ्चलक घरघरमे रहल अछि ।
जेना उच्च विचार आ अथक प्रयास पश्चात इलेनोर रुजबेल्ट सँ अपन अपांग पतिकेँ राष्ट्रपति सन गरिमामय पदमे पहुँचाओल गेल छल ।
पूmल फुलाइएकऽ रहलमे जगदीशकेँ पिंकी अपन दृढ इच्छा शक्ति आ प्रयत्न सँ सहायक स्टेशन मास्टर बनाए कऽ छोडलन्हि ।
तहिना दोसर कथा नव व्यपारमे आधुनिक होइत गेल महिलाक जीवनशैली आ एहि सँ पड़ल जाएबला पारिवारिक कलहकेँ एकटा विम्वक आधारमे उजागर कएल गेल अछि ।
खाली घर सँ साउस, पुतहुँ आ पति बीचक अन्तरद्धन्द्ध, साउस पुतहुँक कलह, दाइकेँ पोतापोती प्रतिकँे मोहक संग संग दोसर भावनाकेँ कदर नहि कएला पर परिणामकेँ उजागर कएल गेल अछि ।
दू विचार, दू समयक प्रतिनिधित्व सेहो कएने अछि ।
तहिना लाल डायरी कथा हिन्दु आ मैथिली समाजमे रहल अन्धविश्वासकेँ देखाओल गेल अछि । जिद्दी कथा सँ अभिभावक जेना बेटा बेटीकेँ अनुशासनमे रखैत अछि । तहिना बेटा बेटी बनबाक यर्थातताकेँ स्वीकार कएने अछि ।
तहिना समयमे नहि चेतल गेल तऽ जिद्दीक परिणाम की होइत अछि से प्रष्ट अछि ।
बिना छलकपट, निर्देष आ व्यवहारिक भऽ मेहनत कएलापर सफलता अवश्य भेटैत अछि सन्देश जादु कथा छोडने अछि ।
ओतबे मात्र नहि आदर्श, अर्थहीन यात्रा, व्यर्थ उडान आ निष्ठा की देखावा कथामे नारी चरित्रक मनोविष्लेषण कएल गेल अछि ।
समाज की कहत ? दिखावाकँे लेल समाजमे भऽरहल कृकृत्य आ हदकँे वयान ओ कथासभमे कएल गेल अछि ।
तहिना केहन सजायमे धर्मपुत्रीक रुपमे घरमे आएल चमेलीकेँ हुनक घरपरिवार आ सतबा माएकेँ अपन बेटा भेलाक बाद कएल गेल व्यवहार आ ओकरबाद चमेली भोगने पीडाकेँ देखाओल गेल अछि ।
अन्तिम कथा मेनकामे राजिव सरकँे व्यवहार आ स्नेह सँ मेनकाक मोन भितर उब्जल उतार चढावकेँ देखाओल गेल अछि ।
समग्रमे कहल जाए तऽ कथा संग्रह जिद्दी बेसी आदर्शबादक नमुना प्रस्तुत कएने अछि तऽ महिलाकेँ मुख्यपात्रक रुपमे ठाढ़ अछि ।
समाजक विकृति, विसंगती, नीक बेजाए सभक हकदार प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष रुपमे महिला भेल वयान कएने अछि ।
तहिना मिथिलाक नारीसभकेँ आगा आ स्वछन्द भऽ आगा बढबाक प्रेरणा सेहो ई कथासंग्रह देने अछि ।
महिलासभक पक्षमे वकालत सेहो करैत अछि । मुदा की अपनासभक समाजमे आबि रहल पश्चिमी संस्कृति आ ओकर विकृति, विसंगतीक जिम्मेवार महिला अछि ।
की महिला आब जननीक बदला संहारकर्ता बनि रहल अछि ।
की मिथिलाक नारी आब सीता जेकाँ प्रतिव्रता आ सीता जेकाँ बनए सँ चुकल छथि ?
यावत गम्भीर प्रश्नसभ सेहो ई कथासंग्रह उठौने अछि ।
पुरुषवादी सोच आ मानसिकताक कारण ई प्रश्नसभ जायज हएत ? मुदा महिलाक कारण समाज बदलल, समाज नीक आ सुशिक्षित बनैत गेल यर्थात कथाकार देखए नहि सकल अछि ।
साहित्यकार समाजक यर्थातताकेँ लाबि कऽ अपन रचना मार्फत सभक समक्ष पहुँचेबाक काज कएने छथि ।
कहल जा रहल अछि कोनो समाजक अध्ययन करवाक चाही तऽ ओ समाजक साहित्य पढलापर पहुँच जाएत ।
एहि सँ साहित्यकारकेँ गम्भीर आ चेतनशील भऽ रचना करय लेल प्रेरित करैत अछि ।
कथाकार पुरुषकेँ दोष नहि देखौने छथि ।
की मैथिली समाजमे सभ दोष महिलेके होइत अछि पुरुष मात्र रबर स्टाम्प अछि ।
ई सभ बात नहि आएब कथासंग्रहक कमजोर पक्ष सेहो देखल गेल अछि ।
कतिपय कथा दुखान्त सँ सुखान्त दिस आगा बढल अछि ।
कतेको स्थानमे दुःखान्त सँ शुरु भऽ दुःखान्तमे जा समाप्त होइत अछि । कथाकार सुजित कुमार झाक रचनासभ आओर उत्कृष्ट रचनासभ आबैक तकर अपेक्षा अछि ।
एक प्रकारक शैली सँ कथासंग्रहकेँ कनी ओझराहटिमे रखलाक बादो यर्थातताकेँ दृष्टिकोण सँ अब्बल अछि ।
भाषाशैली, मैथिली कहवी, प्रकृति तथा व्यक्ति वर्ण सेहो बढिया आ मिठासपूर्ण रहल अछि । पुस्तकक नामाकरण युगानुकुल कथासभ आएल अछि से सुखद बात अछि ।
मैथिली कथा साहित्यमे रौदी पड़ल समयमे एकहि वर्षमे दू दू टा कथा संग्रह आएब वास्तवमे कठिन काम अछि । मुदा ओ चुनौतीकेँ सेहो स्वीकार करैत सुजितक संग्रह प्रशंसनीय अछि ।
तहिना आफन्त नेपाल सेहो कथा संग्रहकेँ प्रकाशन कऽ बजार धरि लौने प्रति धन्यवादक पात्र रहल अछि ।
मैथिली साहित्य क्षेत्रकेँ एकटा आशाक केन्द्र आ भरोसाक साहित्यकारकेँ आगा बढाएब प्रात्ेसाहन कएने काजक लेल आफन्त नेपालकेँ साधुवाद देबहे पड़त ।
रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
खुशबू झा
‘बउवा,बउवा .........। कत गेल बउवा ?’ माए बजली ‘कतौ खेलाइत हैत ।’ अतेक कहैत माए अपन काजमे लागि गेली । इम्हर बाबुजीके अपन छोटकी बेटी सँग बतिएब आ बेटीके लाड करब पसिन छलन्हि । ताएँ जाऽ धरि बेटीके नहि देखब हुनकर नयनके चयन नहि भेटतन्हि । ताबतेमे जेठकी बेटी बजली, ‘पापा बउवा गार्डेनमे असगरे गाछ बृक्ष सँग बतियाति छली ।’
‘अएँ कि भेल ? असगरे एना किए ? कियो किछु कहि देलक ?’ एकै स्वाँसमे पुछल गेल पापाक प्रश्नक जबाब देब बउवाक बसके बात नहि छल । बस शुरु भऽ गेल लाड ।
तखने बेटा आएल बैसि गेल पापाक पजरामे आ ओ पोल खोलैत बाजल, ‘पापा अहाँ बउवाके अतेक लाड किया करैत छी ? बुझल अइ बउवाके पढैमे नहि मौन लगैत अछि । तएँ हम डँटने छलहुँ ।’ बस बेटाक बात सुनिते बाबु खिसिया गेला आ बजलथि, ‘तु बौवाके डटबएँ तँ निक नहि हएतौ । तोरा कि बुझाइत छौ बउवा नहि पढतै ? देखिहे एक दिन हम्मर सपना इहे पुरा करत ।’
इ सुनिते बउवा तऽ खुसि सँ फुलि गेल मुदा सभ किछु सुनि रहल माएँ बेटाक पक्ष लऽ बजली, ‘हमर बेटा ठिके तऽ कहैय, .........’ताबतेमे सभक बातके रोकैत बडकी बेटी बैसाली बजली,‘ बुझल अछि पापा अपन गाममे सेहो आब बोर्डिङ स्कुल खुजल अछि । ताएँ बउवा रुपालीके अहिमे एडमिशन करा दिऔ ।’ बैशाली छली बड टैलेन्ट , सभ क्षेत्रमे हुनकर हात पकरय बला किओ नहि । पढाई खेलकुद आ घर घरुवारी सभमे आगा । अपना सँ बडका व्यक्ति सँग बात चति करब हुनका पसिन छलन्हि । तँए जानकारी सेहो बड बेसी, आ नम्र सेहो ओतबए । तखन तऽ घरमे माँए पापाक बाद दुनु भाए बहिन दिदिक बात कहियो नहि नकारथि आ जे कहब उएह करब । तँए अपन दिदीक गप्प सुनैत भाए सेहो समर्थन कएलन्हि । ओ तऽ स्कुलक पुरा डिटेल कहि देलक । ओना सोनुक कम्पिटशन सेहो अपना सँ सिनीयर व्यक्ति सँग रहनि । अर्थात बैशाली सँ चारि बर्षक छोट भाए सोनु सेहो अपन दिदी सनक सभ क्षेत्रमे आगू । इएह कारण छल जाहि सँ बाबू जखन नोकरी पर सँ अबैथ तऽ दुनु भाए बहिनक पढाईके सम्बनधमे बुझय एक बेर अबश्य पहुँचैथ हाई स्कुल । ओतय पहुँचैत गर्भ सँ माथ उँच भऽ जाइन कारण सभ शिक्षक दिस सँ बेटी बैशाली आ बेटाक बडाई सुनयके भेटनि हुनका । दुनु अपना–अपना कक्षाक लिडर । आब एहन होनहार बच्चाक बात नहि मानब एहन कोन पिता हएता ? तँए ओ सेहो कहलथि ‘ठिक छई हम आइए बोर्डिङ स्कुलक प्रिन्सीपल सँग भेट करब ।’
अतेक बात भेल मुदा एकान्त प्रिय, परीक दुनियामे भुतलाए बाली रुपाली किछु नहि बजली । हुनका तऽ जेना किछु लेल सोचहे नहि पडैन । अतेक ध्यान राखय बला माए बाबु जी आ भाए बहिन जे भेटल रहैक । बस रुपालीके सोचबाक छल तऽ एक्कहिटा बात की परीक दुनियाँ हुएय जतय अपने पाँचु गोटे सधि खन सँगे रही । बेसी बाजब, सँगी बनाएब अहि सभ सँ दुर रहल रुपालीक दिनचर्या सभ सँ अलग । खाएब आ गार्डेनमे खेलाएब बस इतबए रुपालीक दिनचर्या । अबोध रुपालीके बुझल नहि छल की ओहो कहियो जीवनक यात्रा पर असगरे निकलत । दोसर दिन पापा गेलथि स्कुलक प्रिन्सीपल सँग भेट करबा लेल । बातचीत भेल, ओहिके दोसर दिन सँ तय भऽ गेल बउवाके स्कुलक यात्रा । घरमे सभकेउ खुशी रहैक रुपालीक एहन यात्राक लेल । सँगहि अबोध रुपाली सेहो बिन बुझले खुशीके हिसा बनि रहल छल । भोरे–भोरे सभ किओ रुपालीक चिंतामे जुटि गेलथि । इम्हर बउवा अपने चकीत छल किए सभकेउ ओकरा एना कऽ तैयार कऽ रहल अछि । खाना बनल बउवाके खुवाओल गेल, एकटा अलग पोशाक पहिराओल गेल । रुपालीके दहि चिनी खुवा माए बिदा कएली आ पापा हाथ पकरि स्कुल दिस गेला । ओतय पहुँच रुपाली बच्चाक जमात, शिक्षकसभक भिड देखि कानय लागल मुदा रुपालीक कानब पापा ओहि दिन बेवास्ता कऽ ओहिठाम सँ आगू बढि गेलथि । बस ! इएह पहिल दिनक यात्रा रुपालीक जीवनक अनन्त यात्रा बनि गेल । कहिया बउवा रुपाली समझदार आ बुझनिक घरक सदस्य बनि गेल एहि बातक किनको अनुभवो नहि भेल । सभ किछु बदलि गेल । रुपालीक उमेर, पारीवारीक सदस्य, सभ किछु । दिदी बैशालकि आब अपन अलग छोट सुन्दर परिवार भऽ गेल, भइया सोनु अपन लक्ष्य प्राप्तीक बाटमे व्यस्त, पापा नोकरीक अन्तिम समयक लुफ्त उठा रहल आ माँए एखनो रुपालीक चिन्तामे व्यस्त । मुदा जँ किछु परिवर्तन नहि भेल ओ छल रुपालीक स्वभाव । परीक दुनियाँ एखनो रुपालीक लेल महत्वपुर्ण अछि । सभक सँग रहब रुपालीक सपना एखनो मरल नहि अछि । मुदा ई अधुरा सपना कहियो पुरा नहि भेल कियक तऽ रुपाली सनक सफा हृदयक व्यक्तिके एहि ठाम भेटल तऽ मात्र निराशा । अपन पढाईक क्रममे जखन रुपाली नौ, दश कक्षा पार कएलक तखन ओकरा किछु सँगी भेटल जे रुपालीक अपन बिबाहीत दिदीक बिछोडक बादके कमी पुरा कऽ रहल छल । मुदा दिदीक कमी पुरा करब कठिन छल किएक तऽ ओ रुपालीक लेल मात्र दिदी नहि सहेली छलथि । अचानक दिदीक बिबाह रुपालीक मनके नहि निक जँेका प्रभावीत कएलक । किछु दिन तऽ किनको सँग बातो नहि करैक ओ । जेना कोनो सिख भेटल हुएय रुपालीके । दिदीके गेलाक बाद रुपाली बुझि गेल ककरो पर आश्रित नहि होयबाक चाहि । दिन बितैत गेल मुदा असगर रहि रहल रुपालीके पापा, भईया आ दिदीक दुरी एकटा प्रश्न ठाढ कऽ दैक । जेना ई दुरी रुपालीक लेल स्लो प्वाइजन हुएय ? जे समय–समयमे अपन बिसके असर देखा दैक ।
स्कुल जिबनमे पारीवारीक व्यक्ति सँग बनय लागल दुरी कलेजक यात्राक बादो एकटा प्रशनक जवाफक खोजिमे लागल रहल रुपाली । सभ किछु बुझलक मुदा सम्बन्धके लऽ कऽ मनमे प्रश्न घुमैत रहैक । रुपालीके तिन–चारि महिना पापाक लेल इंतजार करय पडला सँ अबोध मनमे नोकरीक प्रतिक दृष्टि नकारात्मक बनि गेल । ‘एहन काज किए करी जे परिवार सँ दुर कऽ दिए ?’ रुपालीक ई प्रश्नक उत्तर देब सम्भव नहि छल । तँए अहिके केउ पागलपन कहि बातके टारि दैक । सम्बन्धके लऽ कऽ बहुत पोजेसिव रहल रुपाली । जतय ओ किछु सोँचैथ होइक ओहि सँ बहुत अलग । ई दुनियाँ अपनेमे व्यस्त । इएह व्यस्त दुनियाक हिस्सा बनल रुपाली सम्बन्ध तऽ बनौलक जाहिमे किओ रहैक ओकर सँगी तऽ किओ पे्रमी । मुदा एहि सम्बन्धमे सेहो भेटल तऽ एकटा प्रश्न । एकान्त प्रिय रुपालीक आगू फेर सँ एकटा प्रश्न सामने आएल । ‘कि अपन स्वार्थ पुर्तिक लेल मात्र सम्बन्ध बनाएल जाइत छैक ?’ रुपालीक मनक एहन प्रश्न दुनियाँक आगू प्रस्तुत भेल । रुपाली अपन सँगी ओ अपने बनौने रहैक । मुदा सभ मतलबी, अपन आबश्यक्ताक समयमे रुपालीके याद सभ किओ करैक मुदा जखन रुपालीके उपर किछु समस्या हुएय तऽ सभकिओ साइड लागि जाइक । बस समय–समयमे कखनो सँगीक स्वार्थीपना तऽ कखनो पे्रममे धोखा एहि सभ सँ रुपालीक मनमे गहिर घाउ बना देलक । मुदा तखनो रुपालीक यात्रा समाप्त नहि भेल ओ आगा बढल । आब आरम्भ भेल रुपालीक अफिसीयल यात्रा । ओ अपन पढाई समाप्त कऽ काज शुरु कएलक । बहुत खुशी छल ओ अपन माँए बाबुक लेल किछु करबाक मौका भेटला पर । एकटा नयाँ रुपालीक जेना जन्म भेल हुए । एकटा नयाँ जोश जाँगर देखबाक भेट रहल छल रुपालीमे । मुदा एखनो ओकर मनक अबोधपना समाप्त नहि भेल छल । बस फरक छल तऽ एकैटा आब ओ एहि संसार आ परीक दुनिया बिचक फरक बुझि गेल छल । मुदा एखनो ओ अपन अस्तीत्व खोजि रहल छल परीक दुनियामे । उमेर सँ परीपक्व मुदा हृदय पुरा पुर बच्चा जेहन अबोध । मुदा ई रुपालीक मजबुरी कहि वा आबश्यक्ता एहि सजिव दुनियाँके घृणा करय बाली रुपाली अपना लेल एकटा जगह स्थापीत कएलक । शायद ई पे्ररणा ओकरा अपन पारीवारीक सदस्य सँ भेटल हुएय । तँए छल कपट, धोखा आ दानवीय विचार सँ भडल एहि समाजमे ओ आगु बढैत गेल आ बस बढैत गेल.......। मुदा एकटा अलग संसारक परीकल्पना ओकरा एखनो पाछु नहि छोडलक । एखनो पे्रम, स्नेह, मित्रता आ भातृत्व सँ भडल अलग संसारक कल्पना रुपालीक हृदयक एकटा हिस्सा बनल अछि मुदा ई ओकर हृदय धरि सिमीत रहि गेल......। किओ आगू नहि अएल रुपालीक एहि काल्पनीक संसारक हिस्सा बनबाक लेल । आ बस अधुरा आ एकल बच्चा आई परीपक्व रुपाली भेलाक बादो अधुरा अछि ।
विद्यापति: किछु प्रचलित कुप्रचारक निराकरण (भाग-३)
फणीश्वरनाथ रेणु बिदापत नाचपर रिपोर्ताज लिखलनि जे १ अगस्त १९४५ ई. केँ साप्ताहिक “विश्वमित्र”मे प्रकाशित भेल। ऐ रिपोर्ताजक महत्व अछि, कारण ई ऐ विषयपर ज्योतिरीश्वर द्वारा लिखित विवरणक ७०० बर्ख बाद लिखल गेल आ ऐ ७०० बर्खमे जे विद्यापतिकेँ समानान्तर परम्परा जिआ कऽ रखलक।
आ जे एकरा जिआ कऽ रखलक ओकरासँ अनचोक्के विद्यापति छीनि लेल गेलन्हि। बिदेश्वर ठाकुर विद्यापति गीत
मिथिलाक शतपथ ब्राह्मणक परम्परा आ मिथिलाक समानान्तर परम्परा:
वैदिक संस्कृतक प्राचीनतम ग्रन्थ ऋगवेदसँ पहिनेसँ भाषा अस्तित्वमे रहल हएत। कतेक मौखिक साहित्य जेना गाथा, नाराशंसी, दैवत कथा आ आख्यान सभ ओहिमे रचल गेल हएत। एहने गाथा सभक गायकक लेल “गाथिन”, “गातुविद्” आ “गाथपति” ऋगवेदमे प्रयुक्त भेल।
वैदिक कालेसँ गाथा आ नाराशंसी समानान्तर रूपमे रहल।
प्राकृतसँ वैदिक संस्कृत बहार भेल आकि वैदिक संस्कृतसँ प्राकृत? वेदमे नाराशंसी नाम्ना जन आख्यान यएह सिद्ध करैत अछि जे दुनू समानान्तर रूपेँ बहुत दिन धरि चलल। ई समानान्तर परम्परा दुनूकेँ प्रभावित केलक। आब ऋगवेद देखू- ओतए दुर्लभ लेल- दूलभ, (ऋगवेद ४.९.८) प्रयोग की सिद्ध करैत अछि? अथर्ववेदमे पश्चात् लेल पश्चा (अथर्ववेद १०.४.१०) की सिद्ध करैत अछि? गोपथ ब्राह्मणमे प्रतिसन्धाय लेल प्रतिसंहाय की सिद्द करैत अछि? (गोपथ ब्राह्मण २.४)।
जे आर्य छथि से भारतक पच्छिम भागसँ मिथिलामे एलाह, आ हुनका सभक एबासँ पूर्व वेदक किछु अंश विद्यमान छल, तेँ ने बहुत रास शब्द जे मैथिलीमे अछि, बहुत रास उच्चारण जे मैथिलीमे अछि ओ वैदिक संस्कृतमे अछि, मुदा लौकिक संस्कृतमे नै अछि। अविद्या, कर्मसिद्धान्त, जन्म आ पुनर्जन्मक आवाजाही आ मोक्ष ई सभ अनार्यसँ आर्यकेँ भेटलै। तेँ ने उपनिषदमे मोक्ष प्राप्तिक मार्ग छै, स्वर्ग प्राप्तिक नै। मोक्ष भेटत कोना? यज्ञ केलासँ? नै, ई भेटत ज्ञानसँ आ मनन-चिन्तन आ समाधिसँ। राजा जनकक संरक्षणमे याज्ञवल्क्य बृहदारण्यक उपनिषदक तिरहुतक अनार्य क्षेत्रमे रचना केलन्हि।
वाचस्पति मिश्र सांख्यकारिकाक सन्तावनम सूत्रक व्याख्या करैत कहै छथि जे की ई कहि सकै छी जे अचेतन दूध केर पोषणसँ परु पोसाइए आ अचेतन प्रकृतिक संचालनसँ जीवकेँ मुक्तिक ज्ञान भेटैए? ईश्वर तँ स्वयंमे पूर्ण छथि तँ ओ कोन उद्देश्ये विश्वक सृष्टि करताह आ जीव लेल जँ ओ सृष्टि करताह तँ सृष्टिक बादे तँ जीव बन्हाइए आ सृष्टिसँ पूर्व तँ बन्हेबाक प्रश्ने नै अछि, तखन जीवक प्रति कथीक दया? से प्रकृति द्वारा सृष्टि होइए आ जीव अपन प्रयाससँ अपवर्गक प्राप्ति करै छथि। आ विवेकसँ होइए प्रलय। से ईश्वरवाद नै निरीश्वरवाद अछि वाचस्पतिक व्याख्या। प्रकृति संचालनमे जँ ईश्वर भाग लै छथि तँ ओ चेतन प्रक्रिया हएत जे कोनो उद्देश्येसँ हएत आ तकर कोनो खगता ईश्वरकेँ छन्हिये नै। न्यायसूत्रक रचना केनिहार मिथिलाक गौतम सोलह पदार्थक ज्ञानसँ जीवक निःश्रेयस प्राप्त करबाक चर्च करै छथि, मुदा ऐ सभमे ईश्वरक कतौ चर्च नै अछि जे हुनको द्वारा मुक्ति सम्भव अछि। वैशेषिक सूत्र कहैए जे वेद विद्वान लोकनि द्वारा रचल गेल अछि नै कि ईश्वर द्वारा। कुमारिल भट्ट कहै छथि जे सृष्टिक पूर्व ईश्वरक विषयमे कोनो विश्वसनीय चर्चा असम्भव अछि।
शतपथ ब्राह्मणक तथाकथित मुख्य धारा, आ तकर समानान्तर मुख्यधारा:
ब्राह्मण आ गएर ब्राह्मणवाद मिथिलामे शुरुएसँ रहल अछि। ज्योतिरीश्वर लिखै छथि- बौध पक्ष अइसन- आपात भीषण। अगतिशील शतपथ ब्राह्मणक परम्परा नामक साम्यताक कारण संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिकेँ पूज्य बनबैपर बिर्त अछि। ऋक् आ नाराशंसी, महाकवि विद्यापति आ पागबला विद्यापति, मोक्ष आ स्वर्ग-नर्क ई दुनू परस्पर विरोधी विचारधारा मिथिलामे रहल।
शतपथ ब्राह्मणक विदेघमाथव आ पुराणक निमि दुनू गोटेक पुरोहित गौतम छथि से दुनू एके छथि आ एतएसँ विदेह राज्यक प्रारम्भ। माथवक पुरहित गौतम मित्रविन्द यज्ञक/ बलिक प्रारम्भ कएलन्हि आ पुनः एकर पुनःस्थापना भेल महाजनक-२ क समयमे याज्ञवल्क्य द्वारा। मैत्रेयी, याज्ञवल्क्य, सीता, जनककेँ रटैत-रटैत ई परम्परा विद्यापतिक यज्ञोपवीत संस्कार आ पाग प्रतिष्ठापन जइ तीव्र गतिये केलक से ओकर शतपथ ब्राह्मणक तथाकथित मुख्य धाराक अनुकूल छल।
१७६० ई.क माधव सिंहक शाखा पञ्जीक आदेशक बाद मिथिलामे ब्राह्मण आ कायस्थ मध्य नव-कुलीनवादक प्रसार भेल आ भलमानुस (बत्तेसगमिया) उपजातिक कर्ण कायस्थमे आ स्रोत्रिय उपजातिक मैथिल ब्राह्मणमे उत्पत्ति भेल, ओइसँ शारीरिक आ मानसिक बीमारी ऐ दुनू उपजाति मध्य भयंकर रूपसँ बढ़ल, संगे बहुविवाह, बाल-विवाहक आ विधवाक संख्यामे अत्यधिक वृद्धि भेल। आ ईहो जइ शान्तिपूर्ण रूपसँ आ तीव्रगतिसँ भेल से शतपथ ब्राह्मणक तथाकथित मुख्य धाराक अनुकूल छल।
विद्यापतिपर दिनेश्वर लाल आनन्द आ रामवृक्ष बेनीपुरीक विचार!!
दिनेश्वर लाल आनन्दकेँ भ्रम रहन्हि, ओइ कालमे पञ्जी गुप्त चीज रहै, जे संस्कृत आ अवहट्ठ बला विद्यापतिक विषएवार बिस्फीकेँ पञ्जीमे जयवार (निम्न कोटिक) कऽ देल गेल रहै। शाखा पञ्जी १७६० ई.सँ पहिने रहबे नै करै आ तकर प्रमाण अछि जे अयाची मिश्रक मूलक निचुलका पीढ़ी स्रोत्रिय उपजातिमे अछि आ ब्राह्मण उपजातिमे सेहो। ई ओहिना अछि जे सिन्धु घाटी सभ्यतामे बड़द रहै मुदा गाय नै (सीलपर), मुदा बिनु गाय बड़दक उत्पत्ति कोना हएत। दिनेश्वर लाल आनन्दकेँ पञ्जीक सभ तथ्य उपलब्ध नै रहन्हि, प्रायः पदावली बला विद्यापति आ संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिक एक्के हेबाक दुष्प्रचारमे हुनका लागल हेतन्हि जे अवहट्ठमे लिखबाक कारण जँ विषएवार बिस्फीकेँ पञ्जीमे जयवार करबाक सम्बन्धसँ जोड़ल जाए तँ विद्यापति ठक्कुरः किए क्रान्तिकारी भेलाह से व्याख्या कएल जा सकत। मुदा दिनेश्वर लाल आनन्द सेहो मानै छथि जे पदावलीक हुनकर (विद्यापतिक) हाथक तँ छोड़ू, हुनकर कालोमे संगृहीत पदक कोनो विवरण नै अछि। मुदा से कोना सम्भव जखन संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापति अपन संस्कृत आ अवहट्ठ ग्रन्थ सभ टहंकारसँ आरम्भ आ समापन करै छथि, के राजा-रानी हुनका प्रेरित केलखिन्ह, ककर आश्रित छलाह, सभ वर्णन दैत। पूर्ण लेखकीय अन्दाज, सरस्वती आ लक्ष्मी दुनुक बल; तखन पदावलीमे से किए नै? दिनेश्वर लाल आनन्द गुम्म छथि। संस्कृत आ अवहट्ठ बला विद्यापति अपन आश्रयदाताक विषयमे लिखने छथि मुदा कोनो संस्कृत आ अवहट्ठ ग्रन्थमे अपना विषयमे किछुओ नै लिखने छथि। ओ अवह्ट्ठ लिखबोमे दवाबक अनुभव करै छथि, जे तखुनका मुख्य परम्पराक साहित्यिक भाषा छल। मुदा ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापतिक प्रभाव एतेक छलन्हि जे हुनका संस्कृत नाटक गोरक्षविजयमे मैथिली गीत लिखऽ पड़लन्हि (जेना विदाञोतक पहिल रिपोर्ताज लिखनिहार ज्योतिरीश्वरकेँ संस्कृत नाटक धूर्तसमागममे मैथिली गीत लिखऽ पड़लन्हि)।
गोविन्द झा ज्योतिरीश्वरक विदाञोतमे विद्यापतिक परम्परा देखि लै छथि, चर्च करै छथि मुदा ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिकेँ आगाँ किए नै बढ़ा पबैत छथि जखन बिदेश्वर ठाकुर गाबि-गाबि कऽ प्राण त्यागि रहल छथि? विद्यापति नाटकमे विद्यापतिकेँ प्यास जतऽ लगलन्हि ओ नाटक लेखकक गाम कोना भऽ जाइए? सभ अपना-अपना हिसाबसँ “हम्मर विद्यापति”पर नाटक लिखि रहल छथि।
रामबृक्ष बेनीपुरी लग सेहो पञ्जीक तथ्य नै छन्हि। एकटा उपजातिक बनोतरी आ किंवदन्तीक आधारपर ओ केशव मिश्रक विद्यापतिपर हँसब लिखै छथि; द्वैत परिशिष्टक ई केशव मिश्र वाचस्पति-२ (१४००-१४९०) क पौत्र छथि। एकटा आर केशव मिश्र (११५० लगभग) छथि जे तर्कभाष लिखै छथि आ जकर समीक्षा तत्वचिन्तामणिकारक गंगेशक पुत्र वर्धमान “तर्कप्रकाश”मे करै छथि। आनन्द कुमारस्वामे जतेक शोध १९१५ ई. मे केने रहथि ओइसँ एक्को डेग आगाँ नहिये बेनीपुरी जा सकलथि नहिये आनन्दस्वामीक सए बर्ख बाद कियो दोसर मुख्यधाराक शोधकर्ता जा सकल छथि। वएग उगनाक कथा बेनीपुरी कहै छथि, मुदा महादेव संस्कृत आ अवहट्ठक कट्टर विद्यापतिक “शैवसर्वस्वसार”पर कैलाशमे नचता आकि ज्योतिरीश्वरपूर्व विद्यापतिक नचारीपर, ओइपर गुम छथि। आनन्द कुमारस्वामी जकाँ बेनीपुरीकेँ बुझल छन्हि जे संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापतिक हाथक लिखल भागवत उपलब्ध अछि आ इहो जे विद्यापतिकेँ गंगालाभ कोना भेलन्हि, गंगा हुनका अपनामे लीलि लेलखिन्ह। आनन्द कुमारस्वामी जकाँ बेनीपुरीकेँ संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापतिक लिखल पुरुषपरीक्षाक विषयमे सुनल छन्हि मुदा पढ़ल नै छन्हि, आ से नै तँ हुनका बुझल रहितन्हि जे संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापति गंगालाभक कथा बोधि कायस्थक विषयमे लिखने छथि। ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक विषयमे ई कथा उगनाक कथा सन प्रचलित छल जे बादमे संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापतिसँ कर्मकाण्डीय रूपमे जोड़ल गेल आ पुरुषपरीक्षाक कथा बोधि कायस्थ एकर प्रमाण अछि। कीर्तिपताकाकेँ बेनीपुरी मैथिली गीतक संग्रह कहै छथिइ!! पूछि-पाछि कऽ शोध कएल जाइ छै? जे आधार कुमारस्वामी सए बर्ख पहिने रखलन्हि, ओइपर सुखाएल मुख्यधारा किए नै आगाँ बढ़ल कारण ई शतपथ ब्राह्मणवादी मुख्यधारा ओकरा एकर अनुमति नै दै छै। मुदा बिना कोनो प्रमाणक शिवसिंहक मित्र पुरादित्यकेँ भूमिहार ब्राह्मण सिद्ध कऽ दै छथि, ओहिना जेना गोविन्ददास (झा) केँ रमानाथ झा स्रोत्रिय बतेलन्हि (सुकुमार सेन तकरा हास्यास्पद मानै छथि), आ रामदेव झा ब्राह्मण सिद्ध करै छथि आ कालिदासकेँ वर्माजी (लालदास स्मारिकामे) कायस्थ सिद्ध करै छथि।
संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापति पूर्ण कर्मकाण्डक संग पुस्तकक प्रारम्भ आ अन्त करै छथि, राजा-रानी-आश्रयदाताकेँ मोन पाड़ै छथि मुदा अपन चर्च नै करै छथि। मुदा पदावली लोककण्ठमे किए रहि गेल, पुस्तकक तामझाम ओ तकरा किए नै देलन्हि, कारण ओ हुनकासँ कए सए पूर्वक रचना छल, जखन पागक उत्पत्ति मिथिलामे नै भेल छल। पदावलीमे रूपनारायण, शिवसिंह, लखिमा, देव सिंह, हर सिंह, पद्म सिंह, विश्वास देवे, अर्जुन-अमर, राघव सिंह, रुद्र सिंह, धीर सिंह, भैरव सिंह, चन्द्र सिंह आदि बादमे घोसिआएल गेल, जे गीतक लयकेँ प्रभावित करैत स्पष्ट रूपसँ दृष्टिगोचर होइत अछि। संस्कृत-अवहट्ठबला विद्यापति भू-परिक्रमा (देव सिंह), कीर्तिलता (कीर्ति सिंह आ वीर सिंह), कीर्तिपताका, गोरक्षविजय (शिव सिंह), लिखनावली (पुरादित्य), दान वाक्यावली (रानी धीरमति) आदि स्पष्ट रूपसँ राज्याश्रित रचना छल। गोरक्षविजय नाटक भैरव पूजाक अवसरपर लिखल गेल आ ऐ मे धूर्त समागम सन मैथिली गीत छल जे ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापतिक भयंकर प्रभाव स्वरूप छल। नामक असमानता नै रहैत तँ ज्योतिरीश्वकेँ ज्योतिरीश्वर पूर्व विद्यापति बना देल जाइत।
तत्वचिन्तामणिकारक गंगेश १२००० ग्रन्थक बराबर एकटा ग्रन्थ लिखलन्हि। प्रोफेसर दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य “हिस्ट्री ऑफ नव्य-न्याय इन मिथिला” मे लिखै छथि- “The family which was inferior in social status is now extinct in Mithila…Gangesha’s family is completely ignored and we are not expected to know even his father’s name.” आ ई सभ सूचना, ओ लिखै छथि, हुनका प्रो. आर.झा (रमानाथ झा) देलखिन्ह!
आब आउ पञ्जीमे वर्णित तथ्यपर- ओइमे स्पष्ट रूपसँ लिखल अछि जे तत्वचिन्तामणिकारक गंगेशक जन्म पिताक मृत्युक पाँच वर्ष बाद भेलन्हि आ ओ चर्मकारिणीसँ विवाह केलन्हि, तँ ई गप रमानाथ झा दिनेशचन्द्र भट्टाचार्यसँ किए नुकेलन्हि? एकटा उपजाति द्वारा हिनकर मूर्खसँ विद्वान बनबाक गपपसारल गेलन्हि आ हिनका खतम करबाक साजिश भेल।
गंगेशक पुत्र वर्द्धमान गंगेशकेँ सुकविकैरवकाननेन्दुः कहै छथि। मुदा गंगेश सन प्रसिद्ध विद्वानक कविता कोन साजिशक अन्तर्गत आइ उपलब्ध नै अछि से ऊपर देल उदाहरणसँ स्पष्ट अछि। बंगालक वासुदेव पक्षधर मिश्रक सहपाठी रहथि, मिथिला पढ़ैले एला, शलाका परीक्षा उत्तीर्ण केलन्हि आ सर्वभौम उपाधि भेटलन्ह्। वासुदेव गंगेशक तत्वचिन्तामणि आ उदयनक न्यायकुसुमांजलिक कारिकाकेँ कंठस्थ कऽ लेलन्हि। पक्षधर आ आन मिथिलाक शिक्षक तत्वचिन्तामणि लिखबाक (प्रतिलिपि करबाक) अनुमति नै दै छला! वासुदेवक शिष्य रघुनाथ शिरोमणि अपन गुरु पक्षधर मिश्रकेँ शास्त्रार्थमे हरा प्रमाणित करबाक अधिकार लेलन्हि। नव्यन्याय स्कूलक नवद्वीपमे वासुदेव-रघुनाथ द्वारा स्थापना भेल। पक्षधर मिश्र संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिक समकालीन छला। आ रघुनाथक संग बंगालसँ मिथिला विद्यार्थीक आगमन बन्द भऽ गेल।
शिवसिंह द्वारा संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिकेँ जे बिस्फी ताम्रपत्र देल गेल तकरा ग्रियर्सन फर्जी कहलन्हि कारण ओ विद्यापतिक पदावलीसँ परिचित रहथि आ बूझि गेल रहथि जे ओइ विद्यापतिकेँ ई ताम्रपत्र भेटब असम्भव छल। मुदा ई ताम्रपत्र तँ संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिकेँ भेटल छलन्हि आ दुनूक बीचक अन्तर ग्रियर्सन नै सोचि सकला। मुदा से म.म. हरप्रसाद शास्त्री सोचलन्हि आ ऐ ताम्रपत्रकेँ असली बतेलन्हि।
श्रीधरदासक सदुक्तिकर्णामृतमे कैवर्त पपीहाक गंगापर स्तुति गीत अछि। राधाकृष्णक गीत अछि। लक्ष्मणसेनक राज कवि धोयी (जोलहा) रहथि। लखिमा ठकुराइन पदावली नै लिखलन्हि संस्कृतमे पद्य लिखलन्हि (ग्रियर्सन)। श्रीधरदासक अभिलेख अंधरा ठाढ़ीमे अछि आ ओ नान्यदेव आ गंगदेवक मंत्री रहथि। हुनकर वंशज अमिअकर संस्कृत आ अवहट्ठबला विद्यापतिक समकालीन रहथि। गंगदेवकेँ उपेन्द्र ठाकुर कलचुरी मानै छथि। विजय कुमार ठाकुर कलचुरि कर्णक स्तुतिमे सदुक्तिकर्णामृत (श्रीधरदास)क विद्यापतिक गीतकेँ मानै छथि। राधाकृष्ण चौधरीक मत ऐ सँ भिन्न छन्हि। कोनो परिस्थितिमे ई विद्यापति ज्योतिरीश्वर पूर्व रहथि। “रामचरित”- विग्रहपाल-३ कर्णकेँ हरेलन्हि, ऐ सम्बन्धमे बेगूसरायसँ उत्तर १६ किमी. नौलागढ़सँ दूटा पाल अभिलेख राधाकृष्ण चौधरीकेँ भेटलन्हि। ओहो कर्ण ११म शताब्दीक छथि। धूर्त समागम सेहो दक्षिण भारतमे प्रसिद्ध अछि।
३. पद्य
३.८.१.अनिल मल्लिक २.अंशु माला पाण्डेय ३.शान्तिलक्ष्मी चौधरी ४.आशुतोष मिश्र
सुरशाक मुँह बेएने महगाइ मारलक
बरख-बरख पर पाबि बधाइ मारलक
छलहुँ भने बड़ नीक बिन बन्हले कतेक
गोर-नार कनियाँ संगक सगाइ मारलक
झूठक रंगमे डूबि जीबितहुँ कतेक दिन
रंग ह्टैत देरी झूठक बड़ाइ मारलक
सुधि बिसरि कए सभटा निसामे बहेलहुँ
दिन राति पीया कए गाम गमाइ मारलक
भौतिक सुखमे डूबल 'मनु' सगरो दुनियाँ
जतए ततए फरजीकेँ उघाइ मारलक
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
दर्दकेँ नै तँ बुझलहुँ अहाँ
दाँतकेँ बीचमे जीभ सन
मोनमे अपन मुनलहुँ अहाँ
प्रेमकेँ नै किए चिन्हलहुँ
देख मुह हमर घुमलहुँ अहाँ
स्नेह आ प्रेम सभटा बिसरि
मोनकेँ तोरि झुमलहुँ अहाँ
हाथ संगे खुशीकेँ पकरि
हृदय मनुकेँ तँ खुनलहुँ अहाँ
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