ISSN 2229-547X VIDEHA
'विदेह' १२० म अंक १५
दिसम्बर २०१२ (वर्ष ५ मास ६० अंक १२०)
ऐ अंकमे अछि:-
३.८.बिन्देश्वर ठाकुर- गीत-गजल-कविता
विदेह मैथिली पोथी
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विदेह रेडियो:मैथिली कथा-कविता
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे पसरल
मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक
महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश कालक मूर्त्ति, एहिमे
मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र,
अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़ हेतु देखू 'मिथिलाक खोज'
मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित सूचना,
सम्पर्क, अन्वेषण संगहि विदेहक सर्च-इंजन आ
न्यूज सर्विस आ मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ सम्बन्धित वेबसाइट
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"मैथिल
आर मिथिला" (मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय जालवृत्त) पर जाउ।
1.संपादकीय
१
विदेह भाषा सम्मान 2012-13
अनुवाद पुरस्कार 2013, युवा पुरस्कार 2012 आ 2013 फेलो (समग्र योगदान) क लेल विदेह सम्मानक
घोषणा
2013 फेलो (समग्र योगदान)क विदेह
सम्मान- श्री राजनन्दन लालदास केँ। युवा पुरस्कार 2012- श्रीमति
ज्योति सुनीत चौधरीकेँ “अर्चिस” कविता-हाइकू
संग्रह लेल। अनुवाद पुरस्कार 2013- श्री नरेश कुमार विकलकेँ मराठी
उपन्यास “ययाति”क मैथिली अनुवाद लेल।
मूल पुरस्कार 2012 आ बाल साहित्य पुरस्कार 2
012 लेल विदेह सम्मानक घोषणा पहिनहिये
भ’ गेल अछि।
विदेह भाषा सम्मान २०१२-१३ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कारक
रूपमे प्रसिद्ध)
1.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार 2012
2012 श्री राजनन्दन लाल दास (समग्र योगदान लेल)
2.विदेह भाषा सम्मान २०१२-१३ (वैकल्पिक साहित्य अकादेमी पुरस्कारक
रूपमे प्रसिद्ध)
२०१२ बाल साहित्य पुरस्कार - श्री जगदीश प्रसाद मण्डल केँ “तरेगन” बाल प्रेरक विहनि कथा संग्रह
२०१२ मूल पुरस्कार - श्री राजदेव मण्डलकेँ "अम्बरा"
(कविता संग्रह) लेल।
2012 युवा पुरस्कार- श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस” (कविता संग्रह)
2013 अनुवाद पुरस्कार- श्री नरेश कुमार विकल "ययाति"
(मराठी उपन्यास श्री विष्णु सखाराम खाण्डेकर)
२
फणीश्वर नाथ रेणु
एकटा लोकगीतक विद्यापति
भूमिका
महाकवि विद्यापतिपर “खोज”करैत काल हमरा लागल जे एक अध्यायक
शीर्षक राख’ पड़त- “खेतिहर-बोनिहार आ
बहलमानक कवि विद्यापति”। कारण पूर्णियाँ-सहरसाक इलाकामे आइयो
विद्यापतिक पदावली गाबि-गाबि क’ भाव देखाक’ नाचैबलाक मण्डली सभ अछि। ऐ मण्डली सभक नायक महिसवार, चरबाह आ गाड़ीक बहलमाने होइ छथि प्रायः। मैथिल पण्डित लोकनिसँ पुछलौं
, ई कोना भेल? बजला, अहाँ कोन फेरामे पड़ल छी? अही सभ मूर्खक कारण आइ विद्यापतिक दुर्दशा भ’ रहल
अछि। ऐ मामूली लोक सभक मोनमे जखन एलै विद्यापतिक नामपर “चारिटा
पदावली” जोड़ि देलक। ..अहाँ दिग्भ्रमित भ’ रहल छी।.. मिथिलाक पण्डितक वर्जना-वाणीपर कान-बात नै दैत हम सहर्ष सहरसा
(बा सहर्षा?) यात्राक तैयारी शुरू क’ देलौं।
..कनचीरा गाम एकटा एहन गाम अछि जइपर दू-दू जिलाक जिला अधिकारीक शासन चलैत अछि।
अदहा गाम सहरसामे, अदहा गाम पूर्णियाँमे।
... कनचीराक विद्यापति-मण्डलीक नाम दुनू जिलाक लोक लै छथि। ... जइ
दिन कनचीरा गाम पहुँचलौं, गाममे एकटा अघट घटना घटित भ’
गेल रहै। दस सालसँ इलाकाक प्रतिनिधित्व करैबला नेताजी चुनावमे चितंग
भ’ गेल रहथि। तइ द्वारे ओइ राति नाच-गानक दोसरे मतलब निकालल
जा सकै छल, ऐ डरे “विद्यापति-मण्डली”क नायक जनकदास नाच करबाक अनुमति नै देलनि।
दोसर राति ओ बड्ड खुशामद करेलाक बाद अनुमति देलनि। नायक जनकदास बड्ड
तर्क-वितर्क केलाक बाद घुमा-फिरा क’ दोहरा-तेहरा क’ कहलनि, “विद्यापति- नाच” क
जन्म हुनके परिवारमे पहिले-पहिल भेल। विस्तारसँ ओ कहियो किछु नै कहलनि। आ हुनका
जखन ई विश्वास भ’ गेलनि जे “विद्यापति
नाच मण्डली”क नामपर खर्च करबा लेल हजार- दू हजार टाका सरकारक
खजानासँ ल’ क’ हम नै बहराएल छी,
तखन ओ मृदंगपर थाप देलनि। राति भरि नाच देखैत रहलौं। गाए चरबैबला
छौड़ा, साड़ी पहीर विरहिनी राधा बनि गेलि आ कानि-कानि गाबए
लागलि- “कतेक दिवस हरि खेपब हो, तुम
एसकरि नारी!” दोसर दिन, जनकदाससँ ऐ
नाचक उत्पत्तिक इतिहास पुछलौं तँ ओ बाजल- नै जानि कहियासँ ऐ नाचक मूलगैनी हमरा
परिवारमे चलैत आबि रहल अछि। जनकदासक ऐ उदासीक कारण छल- हमर टेपरेकार्डर।..
चुप्पे-चुप्पे सभ गीत फीतामे अहाँ भरि लेलौं, चलाकीसँ।
मंगनीमे अपन काज सुतारि लेलौं अहाँ? आ, अंतिममे पचास टाका नगदी देलाक बादो ओ हमर ऐ प्रश्नक कोनो उत्तर नै देलनि
कि खेतिहर-बोनिहार, चरवाह आ बहलमान सभ कहिया आ केना
विद्यापतिक पदावलीकेँ गाबि-गाबि नाचब प्रारम्भ केलनि। जनकदासक पलानीमे पुआरपर पड़ल
रही दिन भरि, ओकरा दया नै लगलै। ओकर मसोमात जवान बेटी हमरा
दिससँ पैरवी केलक, तखनो ओ नै पसिझल, अपन
खानदानीक “हँसी” करबैबला गप के “गजट” मे “छापी” कराब’ चाहत? बुरहा जनकदास बड़द
खोलि चरबै लेल चलि गेला। हम ओकर पलानीमे पड़ल रहलौं आ तकर बादे एकटा खिस्सा सुनलौं
बा सपना देखलौं बा “भ्रम”मे पड़ि गेलौं-
ई नै कहि सकै छी।
३
की मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मणक भाषा छी?
सेन्टर फॉर स्टडी ऑफ इण्डियन ट्रेडिशन्स- मैथिली साहित्यसँ ऐ
संस्थाक की सरोकार छै? विद्यापति सेवा संस्थान आ चेतना समिति
राजनैतिक संस्था अछि- पागबला संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापतिक
सालाना विद्यापति पर्व करबाक अतिरिक्त एकर सभक की काज छै? ऑल
इण्डिया मैथिली साहित्य समितिक पड़ोसीयोकेँ पता नै छै जे ई संस्था छैहो बा नै,
जयकान्त मिश्रक मृत्युक बाद ऐ संस्थाक मान्यता बरकरार किए छै,
की जयकान्त मिश्रक मैथिली लेल कएल अहसानक पारिश्रमिक हुनकर बेटी-जमाए लऽ रहल छथि। अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद की अछि आ एम.बी.बी.एस. डॉक्टर, जिनका साहित्यसँ कोनो सरोकार नै छन्हि,
किए वोटक अधिकार लेल ऐ मुइल संस्थाक पता अपन नामसँ दै लेल तैयार भेल
छथि। मिथिला सांस्कृतिक परिषद तँ विद्यापतिकेँ पागबला फोटो पहिरा कऽ विद्यापतिक नै
मैथिलीक यज्ञोपवीत संस्कार करबाक दोषी अछिये। तँ की ई मैथिल ब्राह्मणक खाँटी
संस्था सभ मैथिलीकेँ मैथिल ब्राह्मणक भाषा बनबै लेल (साहित्य
अकादेमी दिल्लीमे) मात्र वोट आ कब्जाक राजनीतिक अन्तर्गत
साहित्य अकादेमीक मैथिली कन्वीनर चुनबाक लेल संस्थाक रूपमे काज कऽ रहल अछि,
आ तेँ अस्तित्वमे अछि?
की मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मणक भाषा अछि?
साहित्य अकादेमी, दिल्लीक पुरस्कारक बँटवारा (!!!) देखी तँ
उत्तर की अछि?
(कुल बँटवारा ४३ बेर- २०११ धरि)
मैथिल ब्राह्मण -३६ बेर!!
कायस्थ-५ बेर
राजपूत-२ बेर
गएर सवर्ण- 0000 बेर!!!!
१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन) मैथिल ब्राह्मण
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र,
उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा
विरह, महाकाव्य) मैथिल ब्राह्मण
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी,
पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका
बनिजारा, उपन्यास) कर्ण कायस्थ
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण) मैथिल ब्राह्मण
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन,
महाकाव्य) कर्ण कायस्थ
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना) मैथिल
ब्राह्मण
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली,
पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य) मैथिल
ब्राह्मण
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य) मैथिल
ब्राह्मण
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली
पत्रकारिताक इतिहास) मैथिल ब्राह्मण
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य) गएर ब्राह्मण-
राजपूत
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा) मैथिल ब्राह्मण
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध) मैथिल ब्राह्मण
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा) मैथिल ब्राह्मण
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य) मैथिल ब्राह्मण
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा) मैथिल ब्राह्मण
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी) मैथिल ब्राह्मण
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध) मैथिल ब्राह्मण
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा) मैथिल ब्राह्मण
१९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा) मैथिल ब्राह्मण
१९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह) मैथिल
ब्राह्मण
१९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
१९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा) मैथिल ब्राह्मण
२०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)कर्ण कायस्थ
२००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा
पाण्डव, महाकाव्य) मैथिल ब्राह्मण
२००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य) कायस्थ
२००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा) मैथिल ब्राह्मण
२००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य) गएर ब्राह्मण-
राजपूत
२००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य) मैथिल ब्राह्मण
२००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा) मैथिल ब्राह्मण
२००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा)कर्ण कायस्थ
२००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा) मैथिल ब्राह्मण
२००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह) मैथिल
ब्राह्मण
२०१०-श्रीमति उषाकिरण खान (भामती, उपन्यास) मैथिल ब्राह्मण
२०११- श्री उदयचन्द्र झा "विनोद" (अपक्ष, कविता संग्रह) मैथिल ब्राह्मण
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
आशीष अनचिन्हार- माहिया
हम प्रयासरत
छलहुँ जे लघु-दीर्घ निर्णय भाग-२ एही अंकमे आबए मुदा कनेक नमहर चर्चा हेबाक कारणें
बेसी समय लागि रहल छै..... तँए ऐ खेप एकटा नव विधापर गप्प करी। ऐ विधाक नाम थिक
" माहिया " । ई विधा मूलतः पंजाबी साहित्य केर थिक आ पंजाबीसँ उर्दूमे
आएल आ तकरा बाद सभ भाषामे पसरल। ई विधा मात्र तीन पाँति केर होइत छै जाहिमे पहिल
पाँतिमे 12
मात्रा दोसरमे 10 मात्रा आ फेर तेसरमे 12
मात्रा होइत छै आ सङ्गे-सङ्ग पहिल पाँति आ तेसर पाँतिमे काफिया (
तुकान्त ) होइत छै... तँ देखी एकर संरचनाकेँ------
पंजाबीमे
माहियाक पहिल पाँतिक संरचना अधिकांशतः 2211222 अछि मने
दीर्घ-दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ।
तेनाहिते
दोसर पाँतिक संरचना अछि 211222
दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
आ
फेर तेसर पाँतिक संरचना पहिल पाँतिक बराबर अछि मने 2211222 मने
दीर्घ-दीर्घ-लघु-लघु-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ।
ओना
ई अधिकांश संरचना अछि। ऐकेँ अलावे किछु हेड़-फेड़क संग आन-आन संरचना सेहो भेटैत
अछि। मुदा ई निश्चित छै जे हरेक पाँतिमे दीर्घक बेसी संख्या रहने
लयमे ई खूब आबि जाइत छै
माहिया
छन्दमे अर्थक चारि तरहें विस्तार होइत छै...
१)
या तँ पहिल आ दोसर पाँति मीलि कए एकटा अर्थकेँ ध्वनित करै आ तेसर पाँति अलग रहै,
२)
या तँ दोसर पाँति आ तेसर पाँति मीलि कए कएटा अर्थकेँ द्वनित करै आ पहिल पाँति अलग
रहै,
३)
या तीनू पाँति मीलि कए एकटा अर्थकेँ ध्वनित करै
४)
या दोसर पाँति एहन होइ जे पहिलो पाँति सङ्ग मीलि अलग अर्थ दै वा तेसर पाँति सङ्ग
मीलि अलग अर्थ दै।
माहिया
छन्दक स्थायी अधार श्रृगांर रस थिक मुदा आधुनिक समयमे ई हरेक विषयमे लिखल जाइत
अछि। उदाहरण स्वरूप देखू हमर दूटा माहिया---
१)
तीरसँ ने तरुआरिसँ
हम
डरै छी आब
हुनक
नजरिकेँ मारिसँ
२)
डोलैए मोन हमर
उठल
आँखिसँ भाइ
करेज
मथैए हमर
मैथिलीमे
ई माहिया छन्द अज्ञात अछि.. आउ एकरो आगू बढ़ाएल जाए..... खास कए जे कवि श्रृगांर
रसमे भीजल रहै छथि।
जगदीश प्रसाद मण्डल
लघुकथा-
इमानदार
घूसखोर
चुनमुन
बाबूकेँ सभ जनैत, चाहे ओ आम आदमी होथि वा कचहरीक वकील, मुंशी, किरानी, चाहे इनटेलिजेन्स विभागक अफसर होथि वा
प्रशासनिक, जे ओहन घूसखोर जिला भरिमे कियो नै छथि मुदा ईहो सभ जनैत छथि जे जिनगीमे
कहियो अपन इमान नै डिगौलनि।
जिला सत्र न्यायालयक प्रथम श्रेणीक जज चुनमुन बाबू छथि।
अोना हुनकर असल नाओं सुरेन्द्र प्रसाद
छियनि मुदा दादीक पहिल पोता रहने उपहार देल नाओं चुनमुन छियनि जे पछाति बाबू
जोड़ा गेलनि। उर्फ कए कऽ अपनो चुनमुन बाबू लिखते छथि जे नेमप्लेटमे सेहो छन्हि।
ओना बहुतो, प्रेमचंद आ दिनकरजी सन भेलाह जिनकर असली नाओंसँ बेसी लोक उपनामेकेँ
जनैत छन्हि।
बच्चेसँ चुनमुन बाबू इमानदारीक िनर्वहन करैत आएल छथि जेकर
फलाफल सेहो जीवितेमे भेट रहल छन्हि। पढ़ै-लिखैमे एते इमानदार रहलाह जे कहियो
मौलिक रचना छोड़ि नोट-फोटक सहारा नै लेलनि। जइसँ सभ दिन नीक रिजल्ट होइत
रहलनि। ओना सुभ्यस्त परिवार रहने कहियो अर्थक अभाव सेहो नहिये भेलनि। मुदा
अपनो पढ़ैमे एते इमानदारी रखैत छलाह जे शिक्षकसँ परिवार धरि नजरिमे रहलाह।
एम.ए; एल.एल.बी.
कए प्रथम श्रेणी जिला सत्र न्यायाधीश बनलाह।
चारि भाँइक बीच सए बीघासँ ऊपरे जमीन
छन्हि जइमे तीन भाँइ नोकरी करै छथि आ एक भाँइ देवेन्द्र प्रसाद गिरहस्थी करै
छथि। गिरहस्थीक अर्थ खाली खेतिये करब नै, बल्कि परिवारकेँ संचालित करब सेहो होइत, जे छलनि। नोकरिहरो भाँइ सभकेँ नै बूझि पड़नि जे खानदानी परिवारमे कनियो
कतौ घून-घान आकि दिवार-गराड़ लागल अछि। परिवारक ऐ काजमे चुनमुन बाबूक विचार
काज केलकनि। ओहए कहलखिन जे जखन हम सभ तीनू भाँइ नोकरी करै छी तखन खेत आ परिवार
देवेन्द्रक भेलनि, जइ दिन हमसभ रिटायर भेलापर आएब तइ दिन
अगिला विचार करब। मनमे ईहो रहनि जे जखने हम सभ खेत बाँटि लेब तखने ढेर तरहक बिहंगरा
उठत। एक तँ ओहिना जमीन जाल छी तइपर भैयारीक तँ आरो महाजाल। जे सम्पति आइ धरि
मान-प्रतिष्ठा बनल रहल अछि वहए गाड़ा-घेघ बनि सभटाकेँ धोइ-पोछि एकबट्ट कऽ
देत। जखन जिनगीमे माने-प्रतिष्ठा नै तखन जिनगियो तँ एक्सपायर डेटक दबाइसँ
बेसी किछु नै।
एक तँ अोहुना समए िनर्धारित
अछि जे कते उमेरमे बेटाक बिआह आ कते उमेरमे बेटीक बिअाह करक चाही, तहूमे देहक लक्षण आगूमे ढाढ़ भऽ जाइ छै। से सुरेन्द्रक पिता गौड़ीनाथ
सेहो केलनि। जखन सुरेन्द्र प्रसाद बी.ए.मे पढ़ैत छलाह तखने बिआह कऽ देलखिन।
कहैले तँ ईहो अछि जे जखन पढ़ि-िलखि अपना पएरपर ठाढ़ भऽ जाइ तखन बिआह करैक चाही,
मुदा जइठाम पएरपर ठाढ़ होइक बेवस्थे नै रहत तइठाम कि सभ अविवाहित
बनि बबाजिये भऽ जाए। कओलेजक अवस्थामे सुरेन्द्र प्रसाद रहथि मुदा मिसियो भरि
मनमे नै उठलनि जे अखन बिआह अनुचित हएत। साहित्यसँ दिलचस्पी रहबे करनि
तहूमे मध्ययुगीन साहित्यसँ बेसी रहलनि तँए मनमे चप-चपिये रहनि। पितोक मनमे
कहियो दहेजक लोभ नै उठलनि जे नीक शिक्षा पाबि नीक नोकरी भेटलापर नीक दहेजो
भेटै छै। सामान्य गिरहस्त परिवार जकाँ अपन दायित्व बूझि समैपर काज समेटि
लेलनि किअए मनमे उठितनि जे बेटाकेँ पढ़ैमे बाधा उपस्थित हेतनि। तँए मन
खुशीसँ खुशिआइते रहनि।
एम.ए.क पहिल सत्रमे जखन सुरेन्द्र
पढ़ैत छल तखन जौंआ बेटी भेल। नैहरेमे पत्नी रहथिन। ओना साले भरिपर दुरागमन भऽ
गेल रहनि। जौंआ बेटी देखि माएक मनमे तँ कनी सोगो पैसलनि मुदा नानीक मनमे तते
खुशी रहनि जे सोल्हो आना नातिने पाछू बेहाल रहए लगली। खुशीक कारण रहनि जे तेहेन
जुग-जमाना भऽ गेल अछि जे अनेरे लोक बेटाक आशा करैए, तइसँ नीक बेटिये। जँ बेटीकेँ नाति
नहिये देखत तैयो जँ दुनू बेटीक जिनगी-जान रहलै तँ कहियो माएकेँ थोड़े
दावाइ-दारू आकि कपड़ा-लत्ताक दुख हुअए देत। अपनो पहिरन जँ दैत रहतै तैयो सभ दिन
हराएले रहत। तहूमे तेहेन कपड़ा सभ बनि रहल अछि जे तीन साल तक नबे रहैए, आ चलत कते दिन तेकर कोनो ठीक छै। सुइटर बिनैक लूरि सिखा देबै, भरि बाँहिसँ लऽ कऽ अाधावाहिंक तते दैत रहतै जे दस-दसटा साटि कऽ पहिरत।
कि करतै माघक जाड़। ओना सुरेन्द्रक माइक मनमे सेहो खुशिये रहनि जे भगवान अपना
कोखिमे बेटी नै देलनि तँ कि हेतै पोतीक कन्यादानक बाट तँ खुजिये गेल। जे नारी
एकोटा कन्यादान नै केलक ओ चाहे जे हुअए मुदा माइक एक सूत्रमे कम जरूर रहत।
जिला सत्र न्यायालयक न्यायाधीश
बनि जुआइन करए सुरेन्द्र प्रसाद आइ जेताह। असीरवाद दैत माइयो आ पितो कहलखिन-
“बौआ, नमहर काजक भार उठबए जेबह तँए नमहर बनि काज करिहह।”
माता
पिताक असीरवाद सुनि सुरेन्द्र किछु नै बाजल मुदा मनमे एकटा प्रश्न घुरिआए
लगलनि,
जे माए बूझि गेलखिन। तोसैत कहलखिन-
“बौआ, सभ दिन एकार बनि पढ़लह-लिखलह मुदा अपन परिवार
अपने आगू नीक होइ छै तँए पत्नियो आ चारू कनटिरबियोकेँ संगे नेने जाह।”
सोझामे गौड़ीनाथकेँ देखैत तँए सुरेन्द्र
किछु बाजए नै चाहैत मुदा मन गुनगुनाइत जे माए बूझि गेलखिन। बजलीह-
“बौआ, अपन बच्चाकेँ अपने देख-रेखमे पढ़ाएब बेसी नीक
होइ छै, सेहो हेतह, आइ-काल्हि देखै छिऐ
दूधे लगसँ बच्चा हटि जाइ छै। दोसर हमरा सबहक आशा कते दिन करै छह, सेहो सीखल नै रहतह तँ अगिलाकेँ कि सिखेबहक। मनमे होइत हेतह जे पिता कि
कहताह मुदा नोकरीक अर्थ तँ ई नै ने होइ छै जे गामे छोड़ि देब, परिवारे छोड़ि देब। मौका-मुनासिब अबैत-जाइत रहिहह। बेटा धन छिअह,
तोरा माल-जाल जकाँ थोड़े डोरी बान्हि राखल जाएत। ई होइत हेतह जे
परिवार टूटि जाएत, से भ्रम हेतह। भदवारि मासमे हिमालयक
पानिक मिलान समुद्रसँ भऽ जाइत अछि जे अनदिना माने आन मौसममे धार कमजोर वा
सुखने छूटि जाइत अछि मुदा फेर भदवारिमे कि देखै
छहक। परिवार एक धार छी जेकर प्रवाह स्वच्छ पवित्र बनि अनवरत सामाजिक दिशामे
बहैत रहए यएह ने भेल। छाती सक्कत कए कऽ घरसँ जाह।”
अखन धरि सुरेन्द्र
प्रसाद छाती सक्कत करबक अर्थ खाली कहावते धरि बुझैत छल मुदा माइक असीरवादक शब्द
मनमे हौंड़ मारलकनि। छाती सक्कत करब बाता-बातीमे सक्कत करब आकि काजमे सक्कत करब,
विचार सक्कत करब आकि पवित्र विचार सक्कत करब, पवित्र विचार संग पवित्र जिनगी सक्कत बना चलब आकि सक्कत मनुष्य बनब।
समुद्रक पानि जकाँ जते डुबकुनियाँ मारैत तते अथाह दिस डुमल जाइत। अनायास मनमे
उठलनि, आएल शुभक लगनमा शुभे हे शुभे...। माइक शुभ बात सुनि
शुभेक्क्षु नजरिसँ दलदलाइत सुरेन्द्र बाजल-
“माए, तोहर असीरवाद शिरोधार्य अछि। मुदा समस्यो तँ
जिनगीक बाधक बनि दानव जकाँ अबैत रहै छै।”
आेना सुरेन्द्र
खुशीमे दहलि गेल छल जइसँ ऐ विचारपर नजरि नै गेलनि जे बड़का जंगलक कातमे पहिने
झाड़े-झूड़ रहै छै जइमे छोट-छोट जानवर बास करैत अछि। तहिना ने मनुक्खोक बोन छै
जइमे पहिने छोटका जीव-जन्तु रहैत छै।
चुपचाप भेल पिताक मनमे नचैत जे
जूरशीतलक अछींजल जकाँ, घरसँ निकलि दोसराक सेवामे जा रहल अछि कि ओकरा बसाओत आकि उजाड़त। मुदा
बिनु गहन लगने अनुमानिते ने हएब।
जहिना कओलेजक पहिल दिन, सासुरक पहिल भेँट,
दोस्तीक पहिल मिलन भेने स्वत: हृदए डगमगाए लगैत, जे सुरेन्द्रो प्रसादकेँ कार्यालय पहुँचते हुअए लगलनि। नव-नव संगी सभ
आबि-आबि भेँट करए लगलनि। संगियो बेसी ओहन नै, जे समतूल
हुअए। मुदा सुरेन्द्र अवाक। सोझे नमस्कारक उत्तर नमस्कारमे दैत रहलाह। मात्र
हाजरी बनाएब छलनि तँए काजक भारो बेसी नहिये। संगी सभ कमिते असकरे रहि गेलाह।
मनमे परिवार आ दरमाहा संगे सोझा-सोझी उठलनि। दरमाहा तँ सीमित परिवारक स्तरक
हिसाबसँ बनैत छै, तहूमे जे देश जेहेन रहल ओकर ओइ तरहक बनै
छै। पाँच गोटेक परिवारमे छह गोटे अखने छी। तहूमे चारिटा बेटिये अछि। समाजो
तेहेन अछि जे दहेजक सवारी कसबे करत। घर भाड़ा, बिजली-पानि, इन्कम टेक्स इत्यादि कटिये जाएत तखन हाथमे कते आओत? महगी अपना चालिये चलबे करै छै। तहूमे तेहेन लफड़ल डेग पकड़ि लेने अछि
जे मध्यवर्गीय जीवन धारक मोनि जकाँ चकभौंर लऽ रहल अछि। मन विषसँ बिसाइन हुअए
लगलनि। ओना काज नै रहने कार्यालय समैसँ पहिने छोड़ब पहिल दिन उचित नै हएत।
कुरसीक मुरेड़ापर मुड़ी अॅटकौने अकास दिस देखैक कोशिश करैत रहथि मुदा कार्यालयक
छतमे रोकाएल रहनि।
चारि बजे कार्यालयसँ निकलि सुरेन्द्र
प्रसाद सोझे डेरा दिस विदा भेलाह। रंग-बिरंगक टीका-टिप्पणी रस्तामे होइत। किछु
नीको किछु अधलो। परदेशमे पति कमेताह, से खुशी पत्नी सुनैनाकेँ रहबे करनि। चारू
बेटीक बीच सुनैना यक्षिणी जकाँ पतिक आगमनक प्रतिक्षा बेर-बेर नजरि उठा-उठा
करैत। ओसारपर पतिकेँ पहुँचते सुनैना मुस्की भरल नजरिक तीर छोड़लनि। पगलाएल मन
सुरेन्द्र प्रसादक। जिनगीक समस्यासँ पगलाएल। ओना कियो खुशियोसँ पगलाइत अछि
तँ कियो दुखोसँ। मुदा सुरेन्द्र पगलाएल रहथि अपन आगूक जिनगीक समस्यासँ।
अपनाकेँ संयमित करैत बेटीक हाथ पकड़ने कोठरी पहुँचला। पत्नी चाह अनलनि। दुनू
गोटे चाह पीबैत गप-सप शुरू केलनि। अपन आमदनी देखबैत सुरेन्द्र बजलाह-
“अपन परिवार भेल जेकर आमदनी सत्तरि हजार महिना भेल, तइमे घर भाड़ा, इन्कम टैक्सक संग कतेको जमा करैक
सूत्र लागल अछि। घर केना चलत से तँ अपने दुनू गोरे ने विचारब।”
जेना सुरेन्द्र
प्रसाद अपन मोटा पत्नीपर पटकए चाहलनि तहिना पत्नी भोली-बौलक गेन जकाँ उनटबैत
बजलीह-
“देखू हमर कुल-खनदान एहेन नै रहल जे केकरो अधिकार छीनत। जे काज अहाँक छी ओ
अहाँक भेल आ जे हमर छी ओ हमर भेल। छह मास पछाति पेटक बच्चाक दुख माइये बुझैत अछि
बाप थोड़े बूझत। आकि कहियो किछु कहबो केलौं।”
दू-हत्थी बौल फेकैत सुरेन्द्र
बजलाह-
“कहलौं तँ बेस बात मुदा पढ़लौं-लिखलौं दुनू गोटे फुट-फुट इसकूलमे, सभ दिन रहलौं फुट-फुट मुदा धीया-पुता तँ सझिया भेल किने, तखन देह छिपौने काज चलत?”
सुनैना
अपनाकेँ कमजोर पबैत बजलीह-
“अहाँक जे विचार अछि से बाजू जे अनुकूल हएत मानि लेब जे नै हएत अोकरा
तत्काल रखि लेब।”
एक
गंभीर चिंतक जकाँ सुरेन्द्र बजलाह-
“जते हमरा दरमाहा भेटत ओ अहाँ हाथमे दऽ देब। अपना विचारे परिवार चलाएब।”
नोकरीकेँ जिनगीक धार बूझि परिवारक
सवारी नावपर चढ़ा भविष्य दिस बढ़लाह। मनमे उठलनि जे एक बेर पत्नीकेँ पूछि लियनि
जे केना घर चलाएब मुदा मनकेँ मने रोकि कहलकनि जखन कुल-खनदानक रक्षक छथि तखन किछु
बाजब उचित नै हएत। अपना लेल सोचब नीक हएत। चलैत धारमे नावकेँ हवा-बिहाड़ि, पानि-पाथरसँ सामना
करए पड़ै छै। जखने वेतनक भीतर परिवार चलत, तखने एक वान्हल
परिवार जकाँ आगू बढ़ब। जहिना समाज अपन रोग अपने अराधि लेलक जइसँ सभ रोगा गेल तखन अपन रोग के देखत। मुदा एहनो तँ रोग होइते अछि जाधरि
दोसर नै बुझैत ताधरि दोसरकेँ नै कहल जाइत। कमा कऽ परिवारमे आनब पत्नी देखबे
करतीह, आमदपर आमद देखि चसकबे करतीह, जते
चसकती तते लोक देखबे करत। कोनो कि केकरो आँखि सीयल छै जे नै देखत। मुदा
बेटा-बेटीक बिआह-दान -पढ़ा-लिखा सक्षम बना जिनगीमे उतारैक अवस्था धरि- जँ नै
कऽ लेब तखन कोन मुँहे समाजमे जीब। नीक हएत जे जहिना होशियार रोगी दवाइये दोकानपर
दवाइ खा लइए आ घरपर अनबे नै करैए, तेहने जँ उपाए होइ तँ नीक
हएत। नजरि काज दिस बढ़लनि। कोन एहेन कोर्ट-न्यायालय अछि जइमे काजक बोझ नै
पड़ल अछि। आनसँ भिन्न अपन पहचान बनबैक प्रश्न अछि। मनक उत्साह जगलनि। कार्यालय
संग डेरामे काज करब। काज बढ़ौने जँ किछु हथिआइयो लेब तँ ओते अनुचित नै हएत। जँ
से नै करब तँ परिवार साधारण नै असाधारण रूपमे ठाढ़ भेल अछि। खेनाइ-पीनाइसँ लऽ कऽ
पढ़ौनाइ-लिखौनाइ धरि तँ बेटे-जकाँ हएत। पढ़ाइ समाप्त होइते वा होइपर रहिते बिआहक
भूत कपारपर चढ़ि जाएत। ई काज केकर हेतै? तखन? जाधरि प्रतिकूलकेँ अनुकूल बना नै चलल जाएत ताधरि सड़क परक गाड़ी जकाँ
दुर्घटनाकेँ के रोकत। जहिना ओकाइतसँ भारी ढेंगकेँ बाँसक जोगार लगा उनटा-पुनटा
घुसकाओल जाइत अछि तहिना उनटबै-पुनटबैक जोगार करए पड़त। मुदा अनुचित रूपमे? नहि! कदापि नै!! तखन? हँ तखन अछि जे अपन काज की अछि? यएह ने जे लोकक
झगड़ाक मुकदमाक िनर्णए करब। जेकर नोकरी करै छिऐ ओकर काज अनकासँ बेसी करब। यएह जिनगीक
पहिचान हएत किने। अनेरे किअए एते मुकदमा कोर्टमे पड़ल अछि। महिनामे बीसटा
मुकदमाक फैसला करब। जहिना सभकेँ सभ ओझरबैक पाछू लगल रहैत अछि तहिना ने
कोटो-कचहरी भऽ गेल अछि। ओना काज करैक दिशा सभकेँ र्निधारित अछि तखन किअए ने
अपन बाट पकड़ि तेज गतिये चलब। संकल्पित होइत मन ठमकलनि। केकर फैसला करैक अछि
ओकरे ने जे अपन बात अपने नै बूझि अनेरे ओझराइत आबि गेल अछि। एकक ओझरीसँ दोसर
ओझराएल अछि। जहिना रग्गड़ करैत आबि गेल अछि तहिना हमहूँ दू-चारि रन्दा चला
आरो चिक्कन कऽ देब। बीसटा केसक फैसला मासक काजक संग डेढ़ लाखक ऊपरी आमदनी सेहो
करब अछि। दुनू पार्टीसँ पाइ लेबै। जेकरा पक्षमे हेतै ओ अपने भेल आ जेकरा विपक्षमे
हेतै ओकर घुमा देबै। केकरो संग अनुचित नै करब। मुदा लोको तँ शेतानक चरखिये अछि, जे विचारलौं से चलए देत कि नै। किअए ने चलए देत?
चरखीकेँ चरखा बना घुमाएब तखन अनेरे ने सभ सुधरि जाएत। मुदा चरखीकेँ चरखा बनत केना? हँ किअए ने बनत? जखने काजमे तेजी आनब तखने ने काज
मुँहथरि लग पहुँचत। हँ मास-दू मास फोंक जाएत मुदा तेसर मास अबैत-अबैत तँ गर पकड़िये
लेत। जखने केसक बहस करा फैसला करैक स्थितिमे आओत, तखने ने
ससारैक गर भेटत। तीन-तीन दिनपर तारीख देबै अनेरे ने मासे िदनमे ठहिया कऽ लिखाइ-फीस
जमा करत।
चुनमुन बाबूक दस बर्ख नोकरी पुरि
गेलनि। अनढड़न फुलवाड़ीक फूल जकाँ चारू बेटी खिलए लगलनि। तइपर अनढड़न भगवान
तीनटा बेटी आ दूटा बेटा आरो देलकनि। मुदा पति-पत्नीक बीच सिनेहमे कमीक पेंपी
पोनगए लगलनि। सुनैनाक मन कनैत जे भगवान तते धीया-पुता दऽ देलनि जे के कतए बौआएत
तेकर ठीक नै। तेहन जुग-जमाना भऽ गेल जे निहत्था बाप-माए बेटीक पार-घाट केना
लगाओत। अपने (पति) कहियो एक पाइ अनुचित नै कमाइ छथि कि समाज हमरा छोड़ि देत।
बिनु दहेजक बिआह बेटी सबहक हएत? कतए सँ आओत। ओना पत्निक मलिन चेहरा देख चुनमुन बाबू
परखैक परियास करैत छलाह मुदा लाख समस्याक बीच सुनैना पति लग पत्निये जकाँ रहैत
छलीह। काजक भार पतिपर छेलन्हिहेँ। बेसी समेओ ने भेटैत छलनि जे बेसी बातो करितथि।
दोसर साँझ, चाह नेने सुनैना पतिक हाथमे दैत आगूमे ठाढ़ भऽ गेलीह। जहिना देवालयमे
भक्त किछु याचना करए ठाढ़ होइत तहिना सुनैना भऽ गेलीह। सुरेन्द्रक मनमे मिसियो
भरि जिनगीमे प्रतिकुलता नै। एक घोंट चाह पीब सुरेन्द्र बजलाह-
“मन मन्हुआएल देखै छी?”
ढलान पाबि जहिना
पानि ढलकि जाइत तहिना ढलकैत सुनैना बजलीह-
“एक तँ भगवान बेइमान भेला जे केकरो रोटियोपर ने नून केकरो बोरे-बोरे नून
दइ छथिन। नअ-नअटा बाल-बच्चाक परिमार्जन करब नान्हिटा खेल छी।”
सुनैनाक
विचार मुँहसँ निकलबो नै कएल छलनि तइ बीचेमे सुरेन्द्र बजलाह-
“खेल-खेल खेलौं।” कहि चुप भऽ गेलाह। आँखि उठा
पत्नीक आँखिपर अँटकबए चाहैत छलाह मुदा रोगाएल-सोगाएल-पीड़ाएल सुनैनाक आँखिमे
सुखाइत जिनगीक बालुक टीला छोड़ि आर किछु ने देख पड़ैत छलनि।
ऐ रचनापर अपन
मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
प्रमोद रंगिले
प्रचण्ड प्रयोग कएलथि नया हथियार- मधेसी मोर्चा बेवकुफ बनए लेल भऽ गेल तैयार
जनकपुरधाम:
एकीकृत नेकपा माओवादीक अध्यक्ष प्रचण्ड प्रधानमन्त्रीक लेल मधेसी
मोर्चा नीक रहत, बतौलन्हि अछि।
राष्ट्रपति डा. रामवरण यादव प्रधानमन्त्रीक लेल सहमति करए देने दोसरका अल्टीमेटम सेहो
अहिना समाप्त भेलाक बाद तथा कांग्रेस दिस सँ प्रधानमन्त्रीक लेल अपन उम्मेदवार श’सील कोइरालाकेँ खड़ा करौलाक बाद प्रचण्डक एहन
अभिव्यक्ति आएल अछि।
ओना तँ
माओवादी सँ हरेक
काम पुछिकऽ करएबला मधेसी मोर्चा
दिससँ
प्रधानमन्त्रीक प्रस्ताव माओवादी अहिसँ पहिनहु आएल छल मुदा प्रधानमन्त्रीक लेल प्रस्तावित भेल गच्छदारक भूमिका मधेसी
मोर्चामे नीक नै रहलासँ हुनकर नाम बादमे बिसराओल गेल छलै। माओवादीकेँ नाया हथियारक
रुपमे प्रयोग होबएबला
मोर्चा दिससँ नाया
प्रस्ताव तमलोपाक अध्यक्ष महन्थ ठाकुरक नाम आएल अछि। ओना तँ चुनावेमे हार
पौने ठाकुर एखन धरि नै मधेसक लेल किछु कएने छथि नै तँ किछु बजने छथि। एहन अवस्थामे
प्रधानमन्त्रीक लड्डू पौनाइ
कोनो छोट बात नइ
अछि। यदि गप्प कएल जाए राष्ट्रपतिकेँ अल्टिमटमकेँ तँ ओहन अल्टीमेटम
कतेक बितल, अइके गणना नइ कएल जा सकैए। बेर-बेर
संविधान बनाबएकेँ समए बढ़ैत-बढ़ैत
संविधान सभे विघटन भऽ गेल मुदा एखनो धरि नइ दल सभमे कोनो किसीमके कनीको लाज लागल
नै बुझि पड़ैत अछि। एम्हर
प्रधानमन्त्रीक लेल राष्ट्रपति समक्ष निवेदन देने किसोरी महतो मौकामे चौका मारए लेल एकदम तैयार बैसल छथि। राष्ट्रपतिक
दोसरो देल गेल सहमतिक समए बितलाक बाद अदालत निवेदक महतोकेँ प्रधानमन्त्री
किए नइ बनाओल गेल, ओही केँ लेल स्पष्टीकरण मंगलक अछि। एक
दिससँ देखल
जाए तँ राष्ट्रपति रामवरण यादव
सेहो कम मजबूर नइ छथि। संविधान सभाक
देहावसान भेलाक बाद संसदीय पद्धति द्वारा बनाओल गेल
राष्ट्रपतिकेँ सेहो
कोनो अधिकार नै रहत, से धमकी प्रमुख दलक प्रमुख
नेता सभसँ अएलाक बाद चुलबुल पाण्डे जी चुलबुल करनाइए बन्द कए देने छथि। आब जेना लगैए, देशक एहन
अवस्थामे निकास निकालयके लेल किनको दबंग बनहिटा पड़त। नइ तँ नेपाल विश्वक भ्रष्ट मुलुकमे ३७ अम स्थान मात्रे नइ, नम्बर एक बनैत देर नइ लागत। बिना संविधानक चलि रहल देशकेँ अफगानिस्तान बनैत देर नइ लागत।
मधेसक मुक्तिक लेल
सशस्त्र भूमिगत
रुपमे युद्ध कऽ रहल
मोर्चा सभकेँ नेपाल
सरकार किछे महिना पहिले वार्तामे आबए, आवहन कएने छलथि। मुदा जखन ई मोर्चा सभ
वार्तामे अएलथि तखन सरकारकेँ कोनो मतलब नइ देखल जा रहल
अछि। मधेसीक नेता सभ ई सभ देखिओ कऽ चुप्पी किए सधने छै? कहीं फेरसँ देश द्वन्द्वमे नइ फँसि जाइक। यदि एहन भेल तँ अहिके जिम्मेवार यएह दल सभ रहत। दोसर
दिस प्रचण्ड सँ अलग
भेल माओवादी दल वैध पक्षधर नेकपा– माओवादी देशकेँ जल्दीए निकास नइ निकालत तँ हम सभ फेर
सशस्त्र युद्ध करए जंगल
ढुकब, जेहन चेतावनी बेर-बेर दऽ चुकल अछि। एहन
अवस्थामे नेता सभकेँ इमानदार बननाइ जरुरी रहल अछि। पड़ोसी देश भारतक
राज्य बिहारक
उदाहरण देखाबएबला
नेपाली नेता सभ एखन बिहारक तरक्कीक उदाहरण सेहो देखौक आ सिखाबौक। किएक तँ नेता सभक
नौटंकी करए स्थल
नेपालकेँ बनाओत तँ जनता किन्नहु नै स्वीकार करत। ध्यान
दिअ।
१.रामविलास साहु -एकटा विहनि कथा- घुसहा घर २.कैलास दास
लघुकथा-लाँज
१
रामविलास साहु केर एकटा विहनि कथा-
घुसहा
घर-
मुखियाजी
पंचायतक गामे-गाम आम सभाक बैसार लेल डोल्हो दियौलनि। गामक लोक सभ एकजुट भऽ आम
सभामे पहुँचलाह। सभाकेँ संवोधित करैत मुखियाजी बजलाह-
“ऐ बैसारमे सभ कियो मिल िनर्णए लिअए जे पंचायतक गरीब आ मसोमात, जिनकर घर टुटल-फाटल होइ वा रहबा योग नै होइ छै। ओइ व्यक्तिक सूची
बनाएल जाउ। हुनका सभकेँ सरकार तरफसँ घर बनबैले इन्दिरा-आवास योजनासँ रूपैया
भेटतनि।”
वार्ड
सदस्यक सहयोगसँ मुखियाजी लग इन्दिरा आवासबला सूची पहुँचल। बिहानेसँ मुखिया
जीक दलाल सभ सूचीमे नामांकित व्यक्तिसँ भेँट कऽ एक-एकटा फार्म दऽ कहि देलक जे
फार्म भरि कऽ मुखियाजी लग जमा करै जाउ आ बैंकमे खाता सेहो खोलबा लइ जाउ। संगे
संग पाँच हजार रूपैआ सेहो दिअए पड़त। तखन इन्दिरा आवास भेटै जाएत।
बहुत
गोटे तँ अपन गाए-महिंस-बकरी-छकरी-गहना-जेबर जेकरा जे गर लगलै बेचि कऽ रूपैआ दऽ
रूपैआ उठेलक। किछु आदमी एहनो छल जेकरा सकर्ता नै भेलै ओ वंचित रहि गेल। बदलामे
पाइबला लोक अपना नामे उठा लेलक।
किछु दिनक बाद रघिया
मसौमात इन्दिरा-आवास ले फार्म भरि मुखिया जी लग पहुँचलीह। मुखियाजी फार्म
पढ़ि बजलाह-
“पहिले इन्दिरा आवासमे पचीस हजार भेटै छलै आब चालिस हजार भेटै छै मुदा
आगू भेटैबला साइठ हजार भेटतै। जइमे पच्चीसमे पाँच हजार आ अखन चालिसमे दस हजार
खर्चा लगै छै मुदा आगू साइठमे पनरह हजार लगतै।”
रधिया
सुनिते कानि-कलपि कऽ अपन मजबूरी सुनौलकनि। मुखियाजी मुड़ी डोलबैत बजलाह-
“यइ काकी, हमरे केनेे नै ने होइ छै, डेगे-डेग हाकिम-हुकुम बैसल छै। ओहो तँ कटिया सोन्हा कऽ रखने रहै छै
तेकरा की हेतै। आ हमरो कोनो दरमाहा भेटै छै हमहूँ तँ ओहीमे निमहै छिऐ। तँ ई हेतौ
जे हम अपनबला नै लेबो।” सुनि रधिया सभ बात सुनि परिस्थिति
बूझि आपस आबि गेलीह।
बुधनी बुढ़िया गाममे
सभसँ उमेरगर। जुआनियेमे घरबला बाढ़िमे डुमि मरि गेलखिन। दूटा बेटाक संग बुधनी
कहियो हिम्मत नै हारलि। संघर्ष करैत आत्म-िनर्भरतापर धियो-पुतोकेँ सक्कत
बनौने छथि। हलाँकि आर्थिक रूपे कमजोरे छथि।
एक दिन मुखिया जीक नजरि बुधनी बुढ़ियापर पड़लनि आ देखिते
पुछलखिन-
“गामक बहुतो लोक सभ लाभ लेलक मुदा तूँ कोनो फारमो नै भरलीही? तोरा तँ दूटा लाभ भेटतौं। एकटा वृद्धा-पेंसन ओ दोसर इन्दिरा आवासक।”
बधनी
बजलीह- “ऐमे
कोनो खर्चो-वर्चो लगैए?”
मुखियाजी-
“हँ, वृद्धा-पेंसनमे पाँच सए आ इन्दिरा-आवासमे पनरह हजार।”
बुधनी-
“हम ई लाभ
नै लेब।”
मुखियाजी-
“किअए नै
लेब?”
बुधनी-
“घूस दऽ
कऽ घर बनाएब तँ ओइ घूसहा घरमे रहैबला केहेन हेतै?”
मुखियाजी आ बुधनी बुढ़ियाक गप अपना घरक कोनचर लगसँ रधिया
मसोमात सुनैत छलीह अपना मनकेँ बुझबैत बजलीह-
“इन्दिरा आवास किअए घूसहा घर कहियो ने।”
२
कैलास दास
जनकपुर
लघुकथा
लाँज
सावित्री लाँज देखिकऽ छक्क पड़ि गेल। ओ जे सोचने छल ओहि सँ उल्टा
नजरि अबए लागल। सावित्री लँजक ओछाओन पर बैसल छल की पवन ओकर देह पर हाथ राखि सहलाबए
लगल। पवनक हाथ सावित्रीक देह पर पड़ैैत सावित्री पवनक मोनक भाव बुझि गेल आ ओ बाजल ‘पवन हम सोचने छली कि लाँज मतलब विदेश मे कामकाज करएवाला सभक फोटो रहैत
होतैक आ कोना कोना विदेश मे जा कऽ लोक रहैत अछि । काम करैत अछि ओ सभ देखबैत छैक ।
मुदा अहाँ तऽ......’
पवन सावित्रीकेँ आओर नजदीक बैसिकऽ अपन हाथ आगाँ बढ़बैत अछि कि
अनायासे देह पर हाथ पड़ला सँ सावित्री चिहुकि उठल आ पवन सँ फेर सँ कहैत अछि,
‘अहाँ की कऽ रहल छी ।’ सावित्री देह पर सँ
पवनक हाथ हटबैत कहैत अछि ‘चलू लाँज देखि लेलहुँ । ’
सावित्रीके वियाह रंजनसँ भेल छल । दुनू गोटेमे बड प्रेम छल । ओकर
प्रेमक चर्चा भरि गाम छल । दुनू गोटेक सुमधुर प्रेममे दू वर्ष कोना बीत गेल पतो
नहि चलल ।
दू वर्षक क्रममे एकटा लडका भेल । बड स्नेह सँ ओकर नाम राजा रखलक ।
मुदा हुनकर स्वस्थ्य कहियो नीक नहि रहए । ओ चाहैत छल राजा पढिके बडका लोक बनैक ।
मुदा एहिके लेल बहुत पैसाके आवश्यकता अछि ।
रंजन गरीब तऽ अवश्य छल मुदा सावित्रीक प्रेम आ सहयोग पाबि कऽ कहियो
अपने आपकेँ अभाव महसुस नहि कऽ रहल छल। एक कट्ठा घरारी आ पाँच कट्टा खेत अछि
रंजनकेँ। माय—बाबु आ तीन व्यक्ति अपने लगा कऽ पाँच गोटेक
परिवार अछि।
दिन बितैत गेल आ परिवारिक भार सेहो बढैत गेल। एगो कमाइबला आ पाँच
गोटे खाएबला। पैसाक अभाव स्वभाविक अछि। राजाक पढाइ सेहो।
जेकरा सँ कर्जा लेने रहैक ओ सभ किछु दिनक बाद सेहो तङ्ग करए लागल।
एक दिन तङ्ग भऽ कऽ सावित्री बाजल, ‘इहा रहला सँ कर्जा नहि
सधत। बौआक पढाइक कर्जा आ पछिला किछु कर्जा सेहो अछि। बुझाइए घर पर रहला सँ कर्जा
सभ नहि सधत। एक बेर अहुँ विदेश जा कऽ देखतहुँ।’ सावित्री
उदास भऽ बाजल ‘कर्जा सेहो सधि जाएत आ राजुक पढाइ लिखाइ कऽ
लेल....।’
‘माय—बाबु आ अहाँकेँ छोडि कऽ हमरा कनिको विदेश
जएबाक मोन नहि होइए। सुनैत छिऐ विदेशमे सेहो अब बड ठगी होइत अछि । फेर राजा सेहो
छोट अछि । ताहुमे उ सभ दिन बिमारे रहैत अछि। तेएँ....।’
‘जाइ देबक मन ककरो थोरही होइत अछि। मुदा हारने करब की? अपन सभ सम्पति बेचिओ देब तऽ कर्जा नहि सधत आ एता रहला सँ दिन-प्रतिदिन
कर्जा बढिते जाएत। दू—तीन सालके तऽ बात अछि । फेर सुखे—सुख रहत। देखियो ने भण्डारीकेँ सेहो अपने जेकाँ हाल रहैक। मुदा विदेश
जाइते ओकर सभ दुःख दूर भऽ गेलैए। पक्काक कोठा सेहो बना लेलक आ अपन बच्चा सभकेँ बोर्डिङ्ग
स्कूल मे पढबैत अछि’ सावित्री बाजल।
‘लेकिन अहाँ बिना एक दू वर्ष की, एको दिन
मुस्किल अछि.।’
‘सुखे कोइ थोरही नहि जाइत अछि । भगवाने हमरा सभक एहन कऽ देलक तँ की
करबै....।’ सावित्री रंजनकेँ समझाबके प्रयास कऽ रहल छल ।
‘सएह तँ अहुँकेँ बात साँचे अछि । मुदा जाएबाक लेल तऽ कम्तिमे एक लाख
रुपैया चाही ।’
‘ओकर चिन्ता नहि करु अहाँ । विदेश जाएवालाके नाम पर जतेक रुपैया
चाही ओतेक गाम मे भेट जाइत अछि ।’
किछु दिनक बाद रंजन पासपोर्ट बना विदेश चलि गेल । रंजनकेँ विदेशमे
काम बढिए भेट गेल। महिनाक बीस पच्चीस हजार खाए पी कऽ बचा लैत अछि। दू वर्ष बितलो
नहि छल कि ओ सभ कर्जा सधा लेलक। कर्जा सधिते रंजनकेँ बडका होबएके सपना बढैत गेल।
राजा केँ सेहो जनकपुरक एकटा बोर्डिङ्ग स्कूलमे नाम लिखबा देबक लेल कहि देलक। राजा
आब जनकपुरक हॉस्टलमे रहि कऽ पढय लागल। रंजन आब घर बनएबाक लेल सोचए लागल। जहिना अपन
पत्नी सावित्रीसँ प्रेम छल आब रंजनके कतारमे रुपैया सँ प्रेम भऽ गेल। दू वर्ष बीतल
की ओ फेरसँ दू वर्षक लेल पासपोर्टमे समए बढा लेलक।
सावित्री आब असगरे भऽ गेल। राजा छलैक तऽ ओकरो संग समय कटि जाइत छल।
बुढ साउस—सासुर बेसी समय खेतक कामकाज मे लागल रहैत अछि । ओना
तऽ सावित्री समय काटय लेल घरमे टिवी, भिसीडी सेहो लगा लेलक।
एक दिन सावित्री माछ लाबए धनौजी बजार गेल। ओतहि बजारमे सावित्रीक
नैहरकेँ सहेली गीतासँ भेट भऽ गेल। दुनू गोटे घरक बातचित बतिआए लागल। बातचित करैत—करैत कोना साँझ भऽ गेल पतो नहि चलल। किछुए देर बाद पश्चिम दिससँ अन्हर
तुफान जेकाँ बादल गरजए लागल। देखिते—देखिते टिपटिप कऽ पानी
पडए लागल। एकाएक सावित्रीकेँ घरक याद आएल आ ओ बाजल ‘गे देखही
पानिओ पड़ए लगलै? कतेक दिनक बाद भेटलेहे सेहो बतियाइ के समयो
नहि छै। जो दोसर दिन बतिआएब। ’ कहि कऽ दुनू गोटे दू दिस चलि
गेल।
सावित्री जोर सँ झटकारैत घर दिस जाए लागल। जखने ओ बजार सँ निकलि कऽ
चोउरीक गाछ लग पहुँचल की अन्हर—तुफान संगहि पानी जोर—जोरसँ पडैय शुरु कऽ देलक । एक तऽ अन्हार रहैक दोसर मे पानिके संगहि अन्हर
बिहारि। एहन मे सावित्रीकेँ आगाँ बढएके हिम्मत नहि भऽ रहल छल आ ओ एगो गाछ लग जा कऽ
ठाढ भऽ गेल।
सावित्री असगरे गाछ लग डराएल जेकाँ ठाढ छल। अन्हर बिहारि गाछकेँ
उखारि फेक देत जेना लागि रहल। गाछ छोडिके जाएके विचार होइक तऽ बुझाए हावा उड़ाके लऽ
जाएत। गाछक जड़िमे सावित्री चुपचाप बैसि गेल ।
किछुए देरक बाद जखन अन्हर तुफान रुकल तऽ सावित्री ठाढ़ भऽ जाएके सोचि
रहल छल कि बाजार दिससँ एगो साइकिलबला आबि सावित्रीकेँ मुँहपर टर्च बारलक। टर्चक
छर्ररा देखिकऽ सावित्री डर सँ थरथर कपए लागल । सावित्री केँ जेना लागि रहल छल आइ
हम बाँचि कऽ घर नहि जा सकब। ओ अपन चेहरा केँ छुपाबए के कोशिशमे लागि गेल।
‘अहाँ के छी। अकेले इहा की कऽ रहल छी ।’ साइकिलबला
बाजल।
सावित्री मर्दक आवाज सुनिकऽ आओर भयभीत भऽ गेल आ थरथराइत बाजल ‘हम एतही.., लखौरी ....जाएब ।
बजार आएल छलहुँ । पानी घेर लेलक तँ....’
साइकिलबला सावित्रीक नजदीक पहुँचकऽ—‘चलु हम
अहाँकऽ घर धरि छोड़ि दैत छी। अहाँक गामसँ आगाँ हमरे गाम अछि औरही।’
‘नहि ई जाथुन, हम चलि जाएब।’ सावित्री हिम्मत कऽ कऽ बाजल।
‘डराउ नहि, हम अहींके पड़ोसी छी। किछु नहि हएत।’
साइकिलबला आग्रह स्वरमे बाजल।
दुनू गोटेक गाम जाएबला एकेटा रास्ता भेलाक कारण सावित्री संगहि
जएबाक लेल तैयार भऽ गेल। साइकिलबला आगाँ आगाँ टर्च बारि रहल छल आ सावित्री साइकल
केँ पकड़ने पाछु पाछु जाए लागल। बाटमे अबैत काल दुनू गोटेकेँ परिचय सेहो भेल । दुनू
गोटे धराशयी बातसभ बतियात—बतियात गाम पहुँच गेल ।
‘एतेक बतिया लेलहँु आ नामो नहि जनलहुँ, की नाम
अछि’ साइकिलबला पुछलक-
‘सावित्री’
‘अहाँक’ सावित्री हँसैत बाजल
‘पवन’
‘जखन पड़ोसी छी तऽ चलु ने घरो दुआर तँ देखि लेब ।’ सावित्री डराइते बाजल ।
‘आइ नहि फेर दोसर दिन । ओना हमर गामक चउरी आ अहाँक गामक चउरी एके
छैक। काल्हि खेत पर अएबाक सेहो छैक। हमहुँ विदेशे छलहुँ। दू महिना भेल एतए आएला,’
पवन बाजल । ‘एखन जाइ दिअ, बड अन्हार लगैत छैक,’ पवन मुस्कैत चलि गेल।
सावित्री किछु क्षण पवनकेँ ओहिना देखैत रहि गेल। जखन पवन ओकरा सँ
परोछ भऽ गेल तखन ओकर ध्यान टुटल आ घरक कामकाजमे लागि गेल। खाना बनबैत कालमे
सावित्रीकेँ अपने आप हँस्सी सेहो अबैत रहए । जखन ओ सुतल छल तऽ सोचाए लागल ‘पवन नीक व्यक्ति अछि। अगर ओ नीक नहि रहितैक तऽ बाटमे हमरा किछुओ कऽ सकैत
छल। बातो बड नीक—नीक करैत अछि। लोक सभ कहैत अछि मर्द
महिलाकेँ देखिकऽ हैवान भऽ जाइत अछि, मुदा सएह तँ पवन मे नहि देखलहुँ।’
सावित्री फेर सँ अपन कपाड़ झटैत ‘हुँ... ओकरा
सँ हमरा कि लिअ दिअ के। जतह के छलैक ओतह चलि गेलैक।’ कपारकेँ
ठोकैत ‘हमर दिमागे जे अछि नहि बिना कामकेँ सोचए लगैत अछि ।’
किछु देर बाद फेरसँ रंजन दिस ध्यान लगबैत सुति रहल ।
सावित्री भोर होइते खेत पर पहुँच गेल छल । ओ चारु दिस चकुआए लागल ।
कतौ केकरो नहि देखि रहल छल । जेना लागि रहल छल ओ केकरो खोजि रहल हुअए आ ओ व्यक्ति
नहि भेटला पर उदास भऽ गेल हुअए ।
किछु देरक बाद सावित्री उदास भऽ घर दिस जऽ रहल छल कि पवन केँ अपन
जनकेँ हल्ला करैत अवाज सुनिकऽ सावित्री रुकि गेल। जखन पवन नजदीक आएल तऽ सावित्री
बाजल ‘अहुँकेँ खेत एम्हरे छैक नहि ।’
‘हँ....इहे खेत अछि’ इशारा करैत पवन बाजल ।
सावित्री किछु देर रुकल आ फेरसँ घर चलि गेल ।
सावित्रीकेँ गेलाक बाद पवनक हृदय जोर-जोरसँ धडकए लागल। ओ सोचए लागल
किछु देर आओर रुकतैक तँ की भऽ जएतै। कतेक मीठ बजैत अछि सावित्री। बुझाइए बात करिते
रहती। ठाढ भऽ सोचए लागल कोनो बहन्ने सावित्रीसँ भेटबाक लेल उपाय सोचए पडत ।
एकदिन फेरसँ पवन बाजर दिस जा रहल छल कि ओ घर दिस रुकिकऽ इम्हर ओम्हर
ताकए लागल कि देखलक सावित्री कल सँ पानी भरि रहल अछि । पवनकेँ देखिकऽ सावित्री घर
दिस जाए लागल कि पवन बाजल, ‘बौआक समाचार सभ केहन अछि। बढिया
सँ तऽ पढैत अछि की नहि?’
‘छुटीमे घर लऽ अएबै । अखन जनकपुरे अछि ।’ सावित्री
बजैत घरमे घुसि गेल ।
एक दिन सावित्री अपन खेत लग घुमि रहल छल की धराक दऽ पवन पहुँचल आ
सावित्री सँ बाजल —‘अहूँ कतेक व्यस्त रहैत छी सावित्री’
कामधाम रहितैक तब ने व्यस्त। दिनभरि तँ ओहिना घरेमे रहैत छी। सोचली
कनिक खेतेमे घुमि फिर ली ।’ सावित्री बाजल ।
किछु देर धरि सावित्री आ पवन बीच बातचित भेल । एहि क्रममे दुनू एक
दोसरसँ खोलिकऽ बाजए लागल । किछुए दिनक भेटघाट सँ पवन मनहि मन सावित्री प्रति भावुक
बनि गेल ।
एक दिन सावित्री पुछलक —‘पवन विदेश मे केहन घर
दुआर सभ होइत छैक। बडका....बडका... घर दुआर सभ होइत होतैक ने।’
‘अपना इहा केँ जे लँज सभ होइत छैक नहि ओहने —ओहने
मकान सभ विदेश मे रहैत छैक ।’ पवन बाजल ।
‘आइए लँज केकरा कहैत छैक.....लँज केहन होइत छैक । अपनो सभके यहाँ
लँज छैक ।’ सावित्री उत्सुकता पूर्वक बाजल ।
‘जनकपुरेमे तऽ लँज छैक ..। नहि देखने छियए ..। कहियो जनकपुर जाएब तऽ
देखा देब ।’ पवन कनिका स्थिरसँ बाजल ।
सावित्रीके लँज देखबाक इच्छा जागि गेल । ओनी पवन केँ सेहो सावित्री
प्रति उत्तेजना बढैत गेल । भेटक क्रम बढैत गेल ।
एक दिन सावित्री केँ श्रीमान् रंजन विदेश सँ रुपैया पठोलक । जखन ई
बात सावित्री पवन केँ कहलक तऽ ओ मनेमन गदगद भऽ गेल आ कहलक —‘चलु
जनकपुरमे रुपैया छोडा देब आ लाँज सेहो देखा देब ।’
सात्रिवी आ पवन जनकपुर आएल । सभसँ पहिने ओ प्रभु मनि ट्रान्सफरसँ
रुपैया छोडौलक आ दुनू गोटे होटल मे जाऽकऽ खाना सेहो खएलक । एकरबाद पवन बाजल —‘देखियौ एहि कोठाके भितर लँज छैक । एकरा देखएके लेल किछु रुपैया लगैत छैक ।
चलु आइ अहाँकेँ लँजो देखाइए दैत छी ।’ पवन सावित्री के
पकडएके प्रयास कएलक । ओ अपन बातक जालमे फसाबए चाहलक। कनिक देरक लेल सावित्रीकेँ
रुकि जायके मोन कएलक मुदा ओकर आगुमे रंजन आ राजाक आकृति आबि गेल ओ पवनकेँ लँजमे
ठेलैत सडक पर चलि आएल । ओकरा बुझाएमे चलि आएल छल एहि ठाम रुकि गेलहुँ तऽ अनर्थ भऽ
जाएत सोचैत ओ सिधे गाम चलि गेल ।
संजीव कुमार शमा
महाकवि
पं. लालदासक १५६म जयंती समारोह
दिनांक
२० नभम्वर २०१२केँ महाकवि पं. लालदासक १५६म जयंती स्थानीय लालदास जमा दू उच्च
विद्यालयक प्रांगणमे महाकवि पं. लालदास जयंती समारोह समिति खड़ौआ द्वारा
समारोहपूर्वक मनाओल गेल। समारोहक मुख्य अतिथि जिला उपविकास आयुक्त श्री ओम
प्रकाश राय आ समारोह समितिक अध्यक्ष झारखण्ड वद्युत बोर्डक पूर्व चेयरमैन डाॅ.
हरिवंश लाल संयुक्त रूपे विद्यालय प्रांगणमे स्थापित महाकविक प्रतिमा आ
मंचपर स्थित महाकविक तैल चित्रपर माल्यार्पण आ संगहि दीप प्रजज्वलन कऽ
समारोहक विधिवत उद्घाटन केलन्हि। गामवासी कन्हैया कृष्ण कायस्थ स्वागत भाषण
दैत सभ आगत अतिथिगणक स्वागत आ सबहक प्रति अपन आभार व्यक्त केलन्हि। वरिष्ठ
समाजसेवी वयोवृद्ध स्वतंत्रा सेनानी भरत नारायण कर्ण विशिष्ट अतिथिय भाषण
दैत बजलाह जे महाकवि महाराज रामेश्वर सिंहक दरबारमे दरबारी पंडितक रूपे विद्यमान
छलाह। महाराज हुनक विद्वतासँ आहुत भऽ हुनका पंडितक उपाधिसँ विभूषित कएने छलखिन्ह।
अध्यक्षीय वक्तव्यमे डॉ. एच.बी.लाल मात्र दू पाँति कहलन्हि जे महाकविक
जयंती समारोहक जगह स्मृति समारोह हम सभ मनाबी से नीक। आ दोसर महत्वपूर्ण इशारा
केलन्हि जे वास्तवमे हम सभ मिथिलांचलक साहित्यिक मंचक गरिमाकेँ पागक
चलनिसँ कमजोर करै छी। पाग सम्पूर्ण मिथिलाक नै छी। जखने जागी तखने प्रात कहि
अध्यक्षीय भाषणमे बिनु पूर्ण विराम लगौनहि हाथ इशारासँ हिन्दीक विद्वान, प्रखर वक्ता कुमार
रामेश्वर लाल दासकेँ करबाक आग्रह कएल जेकरा कुमार साहेब सहर्षतापूर्वक स्वीकार
केलन्हि। जखन कि स्वस्थि वाचन पं. शिव कुमार मिश्र द्वारा प्रस्तुत कएल
गेल। मुख्य अतिथि डीडीसी श्री ओ.पी.राय अपन वक्तव्य दैत कहलन्हि जे महाकवि
लालदास द्वारा मैथिली भाषामे रचित रचना रमेश्वर चरित मिथिला रामायणक प्रासंगिकता
अखनो बनल अछि। ओ आवश्यकता जतौलन्हि जे मैथिली साहित्यक धरोहरक रूपमे महाकविक
रचनाकेँ यथाशीघ्र प्रकाशित करा पाठकगणक बीच पहुँचक चाही। अपन उद्गार व्यक्त
करैत ओ ईहो कहलन्हि जे कलाक उपयोग आत्मचिंतनक लेल हेबाक चाही, छलबाक लेल नै। ओ वसुधैव कुटुम्बकमक उक्तिकेँ चरितार्थ करबा लेल सुधि
श्रोतागणसँ आग्रह केलन्हि।
महाकविक व्यक्तिव एवं कृतित्व विषयपर आयोजित परिचर्चामे
साहित्य अकादेमीक अनुवाद पुरस्कारसँ सम्मानित प्रो. खुशीलाल झा जतौलनि जे
महाकवि द्वारा रचित रमेश्वर चरित मिथिला रामायणपर वाल्मीकि रामायणक प्रभाव
अछि।
संगोष्ठीमे साहित्य अकादेमी द्वारा टैगोर साहित्य पुरस्कारसँ
सम्मानित मैथिलीक समन्वयवादी साहित्यकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल अपन
उद्गार व्यक्त करैत कहलन्हि जे पं. लालदास बहुमुखी प्रतिभाक धनी छलाह। जिनकर
लेखनी मैथिली भाषा साहित्यकेँ अमरत्व प्रदान केलक अछि, जे आइयो डेढ़ सए बर्ख
बितलाक बादो एना बुझा रहल अछि जे ओ अपन लेखनीक माध्यमे अखनो माँ-मैथिलीक सेवा
कऽ रहला अछि। मण्डलजी ईहो इच्छा जतौलन्हि जे “महाकविक
साहित्यमे आध्यात्मिक चिंतन” विषयक संगोष्ठी आवश्यक
अछि। संग-संग धर्म, सप्रदाय एवं आध्यात्म ऐ तीनूकेँ अपना
ऐठाम सानि-बाटि कऽ देखबापर चिंता व्यक्त केलनि। आजुक समैमे नवतुरिया आ बूढ़
साहित्य प्रेमी लोकनि अपन मातृभाषामे रचना कऽ अपना साहित्यकेँ संपन्नता
प्रदान कऽ रहल छथि। जे मैथिली साहित्य आन्दोलनमे मीलक पत्थर साबित भऽ रहल
अछि।
परिचर्चाक क्रममे मैथिली पत्रिका “झारखण्डक सनेस”क सम्पादक डाॅ. अशोक अविचल महाकविक व्यक्तित्वपर प्रकाश दैत कहलन्हि
जे पं. लालदास दर्शनक साक्षात् प्रतिमूर्त्ति छलाह। हिन्दी, संस्कृत, ऊर्दू आ फारसीक उद्भट विद्वान रहितो
महाकवि मातृभाषा मैथिलीमे उच्चकोटिक ग्रंथक रचना कऽ जननीक हद तक अपन करजा
उतारबामे सफल भेलाह। डॉ. अविचल विद्यानुरागी लोकनिसँ आग्रह केलन्हि जे गाम
खड़ौआमे महाकविक नामे एकटा प्रकोष्ठ बनाओल जाए जइमे यथासंभव हुनक पाण्डुलिपिक
संग्रह होइ आ संगे हुनक प्रकाशित अप्रकाशित रचनाक संग्रह कएल जाए। जइसँ अबैबला
पीढ़ी आ गवेषक लोकनिकेँ ऐसँ हुनका विषयमे विस्तृत जानकारी भेट सकतन्हि। शिक्षाविद
अवकाश प्राप्त शिक्षक हरिनारयण झा विद्वातपूर्ण शैलीमे अपन विचार प्रस्तुत
करैत कहलन्हि जे महाकवि द्वारा रचित रामायणमे माँ सीताक वर्णन पुष्कर काण्डमे
विलक्षणतापूर्वक कएल गेल अछि। माँ सीता शक्तिक अधिष्ठात्री छथि, एकरा ओ अपना पद्यमे वर्णित कए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामोकेँ मानबा लेल
मजबूर कएल। श्री झा एे अवसरपर सभ गोटेसँ आग्रह केलन्हि जे जइ धरणीपर माँ सीता
अवतरित भेलीह ओइ धरापर महाकविक अवतरण भेल हम सभ कियो बिना कोनो भेदभावक माँ
मैथिलीक धरणी धराकेँ पुष्पित-पल्लवित करी। यएह हमरा सबहक महाकविक प्रति
श्रद्धांजलि होएत। विद्यालय समितिक अध्यक्ष अनूप कश्यप माननीय डीडीसी
साहेबकेँ विद्यालयक उत्थान व विकासक दिस धियान आकृष्ट करबैत बजलाह जे विद्यालयक
सर्वांगीण विकास भेला उत्तर ऐ क्षेत्रक धिया-पुतामे शिक्षाक संपूर्ण विकास भऽ
सकत जे सही अर्थमे महाकविक प्रति श्रद्धांजलि हएत।
समारोहक दोसर सत्रमे काव्य गोष्ठीक आयोजन भेल जकर अध्यक्षता
शब्द-साधक श्री जगदीश प्रसाद मण्डल आ संचालन चर्चित उद्घोषक श्री संजीव कुमार
शमा द्वारा कएल गेल। काव्य-गोष्ठीक आरम्भ विद्यापति सम्मानसँ सम्मानित कवि
शंभु सौरभक काव्यसँ भेल। तहिना दोसर काव्यक पाठ मैथिली प्रखर समालोचक श्री
दुर्गानंद मण्डल केलन्हि। तकरा पछाति कविगणमे श्री बेचन ठाकुर, श्री राम विलास साहु,
श्री लक्ष्मी दास, श्री उमेश नारायण कर्ण,
श्री नन्द विलास राय, श्री रामसेवक ठाकुर,
श्री शशिकान्त झा, श्री हेमनारायण साहु,
श्री कपिलेश्वर राउत, श्री शिवकुमार मिश्र
अपन-अपन काव्य पाठसँ श्रोतावृंदकेँ काव्य रसमे सराबोर करैत रहलाह। जखन कि डॉ.
अविचल अपन कविता ‘संस्कृतिक साड़ापर’ सुना सामाजिक अपसंस्कृतिसँ सजग हेबाक दिस इशारा केलन्हि। दोसर दिस
युवा कवि लोकनिमे श्री उमेश पासवान, श्री नारायण झा,
श्री अखिलेश कुमार मण्डल, संतोष कुमार महतो,
विकास कुमार झा, ओमजी अपन-अपन नूतन काव्यसँ
दस्तक देलन्हि। युवा संघर्षशील कवि उमेश मण्डल अपन गजल सुना श्रोतागणसँ
वाहवाही लुटलन्हि। काव्य गोष्ठीक समापन अध्यक्ष श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक
काव्यसँ भेल। काव्यक शीर्षक छल ‘चल रे जीवन चलिते चल’
काव्यक माध्यमसँ श्री मण्डल श्रोतावृंदकेँ काव्यमे दर्शनक दरसन
करा काव्यक गंभीरतासँ परिचय करौलन्हि। संपूर्ण काव्य गोष्ठीमे काव्य-समीक्षकक
नाते मैथिली साहित्यक स्तंभकार डाॅ. अशोक अविचल अपन प्रखर वुद्धिमताक
प्रतापें कवि लोकनिक काव्यक समीक्षा कऽ कवि आ श्रोतागणकेँ काव्यक मर्मसँ परिचए
करोओल आ शुभकामनाक संग जोश बढ़बैत रहला। कवि गोष्ठीमे काव्य-समीक्षा एकटा नव
प्रयोग भेल। जकर श्रेय श्री संजीव कुमार शमाकेँ जाइ छन्हि। संपूर्ण कार्यक्रमकेँ
उद्घोषक संजीव शमा द्वारा सजाओल गेल छल। अपन विद्वतापूर्ण शैली आ वाक्-चातुर्यसँ
उपस्थित श्रोतावृंदकेँ आह-एवं-वाहक लेल मजबूर कएल। माधुर्य ग्राह्य भाषा शैलीक
कारणें सुधि श्रोताक मानस पटलपर छाएल रहला।
मंचस्थ अतिथि, कवि, समीक्षक, वक्ता इत्यादि जेतेक साहित्यानुरागी छलाह सभकेँ समारोह समिति पूष्पमाल
एवं चादरि अर्पित कए सम्मानित कऽ अपनाकेँ गौरव महशूस केलक।
मिथिला मैथिली मंचक स्थापित कलाकार रामसेवक ठाकुर पंकज झा
आ चंदन द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमक प्रस्तुति सराहनीय छल। समारोहकेँ सफल
बनेबामे आयोजन समितिक सदस्य सुनील कुमार दास, डॉ. अरविन्द लाल, िनर्मल कुमार दास, विनय कुमार दास, योगानंद लाल दास, प्रभात कुमार दास, राजेन्द्र कुमार दास, आ अजय कुमार दासक भूमिका
महत्तपूर्ण छल। अंतमे जयंती समारोह समितिक सचिव श्री भागीरथ लाल दास धन्यवाद
ज्ञापन करैत जंतव्य देलन्हि जे आगू साल विद्यालयक स्वर्ण जयंतीक अवसरपर
कार्यक्रम दू-दिना हएत, जकर हकार उपस्थित सभ सुधि
श्रोतागणकेँ मंचसँ देल गेल। ऐ अवसर पर पछिले बर्ख जकाँ अहू साल विदेह मैथिली
पोथी प्रदर्शनीक भव्य प्रदर्शन सेहो छल।
सन्दीप कुमार साफी, जन्म ७ जून १९८४ पिता
श्री सीताराम साफी, माता- श्रीमती सीता देवी, गाम- मेंहथ, भाया- झंझारपुर, जिला-
मधुबनी। शिक्षा- बी.ए. (प्रतिष्ठा), मैथिली।
(मैथिलीमे
दलित आत्मकथाक सर्वथा अभाव रहल अछि। सन्दीप कुमार साफीक आत्मकथा मैथिली आ मिथिलाक
साहित्य, समाज
आ संस्कृतिकेँ हिलोरैत ओइ अभावक पूर्ति करैत अछि।– सम्पादक, विदेह)
आत्मकथा
जीवन
एगो संघर्ष होइत अछि, संघर्षमय होइत अछि। ऐ संघर्षमे कियो-कियो आगू निकलि जाइत अछि तँ कियो
अप्पन जीवनमे बहुत पाछू छूटि जाइत अछि।
ओही
संघर्षमय दुनियाँमे एगो हम छी, जिनकर नाम अछि संदीप साफी माने किरण। स्कूलमे सन्दीप नामसँ
चिन्हल जाइबला अओर गाममे सभ किरण नामसँ पहचानैए। ग्राम+पोस्ट मेंहथ, भाया- झंहझारपुर, जिला- मधुबनीक रहनिहार हमर जन्म
निर्धन गरीब परिवारमे भेल। हम जातिक धोबी छी, हरिजन (दलित)
छी। गाममे सभ क’ कपड़ा धो क’ माँ-बाबू
हमरा सभक पालन-पोषण केने अछि। हम चारि भाइ-बहीन छी, जइमे हम
सभसँ बड़का छी, तइसँ छोट हमर भाइ-बहीन सभ अछि। हमर जन्म
07.06.1984 ई. मे भेल। ओइ जमानामे सस्ता सभ किछु, तैयो हमरा
सबहक भरन-पोषण झूर-झूरइतो चलए। अ-आ सँ कबीर कान तक हम सभ दुखीरामसँ पढ्लौं। किछु
दिन बाद बाबूजी सरकारी स्कूलमे नाम लिखा देलक। सरकारी स्कूलमे पढ़ाइ चलै तँ
ठीके-ठाक मुदा हम सभ ओतेक किछु बुझि नै पबिऐ। ओहेन गारजनो होसगर नै जे देखबितए जे
की लिखलएँ, की सिखलएँ। मुदा धीरे-धीरे आगू बढ़लौं।
छोटमे
माए एकटा बकरी किनलक जे ओकरोसँ किछु रुपैया आमदनी हएत तँ कहुना गुजर-बसर हएत।
थोड़ेक दिन बकरी सेहो चरेलौं अओर बकरी बेचि हमर माँ ओहीसँ एकटा बाछी लेलक जे ओइसँ
दूधक आमदनी हएत आ ओइ पाइसँ अपन परिवार सुखीसँ गुजर करब।
ई
सभ काज करैत बाबूजी संगे लोकक ऐठाम कपड़ा पहुँचेनाइक सेहो काज करैत छलौं।
पिछला
पाँच दस सालमे जमाना बहुत आगू बढ़ि गेल। पहिले एते बोइन नै भेटैत छलै जेतेक अखुनका
समएमे भेटैत अछि। पहिने एक मोटा कपड़ा धोइ छल हमर माँ-बाबू तँ गिरहस्त सभ पाँच सेर
धान नै तँ दू किलो आँटा दैत छलै। कियो कपड़ा दुआइ तरे पाइयक आमदनी नै रहलासँ
मजूरीमे दू-तीन किलो अल्लूए द’ देलक। पहिने पाइ महग छलै आ अन्न-पाइन सस्ता छलै।
गाममे
सबहक माय-बाबू इस्कूल भेजै मुदा हम जाइ लोकक कपड़ा पहुँचाब’, तइयो सौँझका टेममे
अंगनामे बोरा बिछा क’ पढ़ैले बैसए हमर पिसियौत भाय राजू भैया,
तखन हमहूँ पढ़ैले आबी तँ दू-कानसँ बीस कान तक सिखलौं। ओकरा बाद अप्पन
गामक इस्कूलमे नाम लिखा देलक, हेडमास्टर छल पहिने कोइलखक
यादवजी, हुनका कहि बाबू, जे एकरा कनी
देखबै। किछु दिन अहिना समए कटल, चौथा-पचमामे बढ़ला बाद किताब
पढ़ला किछु आबि गेल तँ गारजीयन कहलक जे चलि जा बौआ पीसा संगे, ओतै नेपालमे रहिह’। गामपर खर्चाक दिक्कत तँ हेबे
करइए, से नै तँ ओतै काज-राज करिह’ अओर
ओतै रहिह’। पढ़ाइ-लिखाइ आब छोड़’।
पढ़ि-लिखि क’ की हेतै। 1994 ई.क समएमे हम चलि गेलौं नेपाल।
ओतै दीदी संगे रही, सभ दिन कपड़ा धोइ अओर संगे पहुँचाबैले
जाइ। अओर आबी तँ लकड़ी चुल्हापर भानस करी। भोरे तीन बजे उठी कपड़ा धोइले। ओइ समए हमर
उमेर बुझू जे 11-12 क’ छलए। किछु दिन ओहू ठाम गुजारलौं। तकरा
बाद हम फेर गाम एलौं। हमर बाबू कहलनि जे आब नै जा, किछु दिन
पढ़’। कमसँ कम मैट्रिको तक पढ़ि लेब’ तँ
कतौ ने कतौ सरकारी नोकरी भइये जेत’। हमरा जेतबे जुड़त ओतबेमे
हम गुजर करब मुदा तूँ पढ़’। तकरा बाद हम कोठिया इस्कूलमे नाम
लिखेलौं। ओइ ठाम छठासँ किलास चलै छलै। फेर थोड़ेक दिन गामेमे रहि क’ माल-जाल चरा क’ हाइस्कूल तक गेलौं। मुदा समए एहेन
आएल जे फेर हम पढ़ाइ छोड़ि पंजाब चलि गेलौं। ओइ समएमे हम छलौं नौमामे। गेलौं ओइ
बास्ते जे हमरासँ छोट बहीन छल, घरक गारजन कहलक जे बौआ गाममे
रहलासँ आब किछु नै हेतौ, से नै तँ चलि जा लोक सभ संगे बड़का
कक्का लग चण्डीगढ़। कतौ नोकरी धरा देत’, कइहक हमर नाम जे बाबू
कहलक य’। हमर कक्का बित्तन साफी जे बी.ए.क डिग्री प्राप्त
केने छलए, वएह सोचि हमर बाबू हुनका लगमे पठौलनि जे ओकरा कनीक
बुइध चै, कतौ नीक नीक नोकरी पकड़ा देतै। मुदा हमरा लगमे कोनो
सर्टिफिकेट नै रहए, से हमरा कतौ छोटो-मोटो काजपर नै राखए।
कोनो औफिसोमे नै राखए जे ई तँ पढ़ल लिखल नै अछि, सभ दफतरमे से
कहए। आखिरीमे काका एगो प्रेस आइरनक दोकान क’ कहलक, एतै आइरन कर। नया आइरनक दोकान, कोइ ग्राहक आबै,
कियो नै आबै। एक-दू महिनाक बाद काका हमरापर शक करए लागल जे ई पाइ
कमाइ अइ मुदा हमरा नै दइए। हमरा मनमे बहुत दुख हुअए जे हम कत’ आबि गेलौँ, खेनाइ खाइ ल’ जाइ
तँ कहए जे दोकानक भाड़ा आब तोरे भर’ पड़त’ चाहे दोकान चल’ या नै चल’। ई
सभ सुनि मन व्याकुल भेल जे आब ऐठाम हमरा रहलासँ कोनो फाएदा नै हएत। आब एत’सँ जाइए पड़त। ओही ठाम गामक कतेक लोक रहै छल, तेकरा
कहि-सुनि हम कोठीमे काज करए लगलौं। एक महिना भेल तँ गाम जाइ क’ भाड़ा भ’ गेल। एलौं काका लगमे जे हम गाम जा रहल छी।
तँ काका कहलक, रुकि जा, हम टिकट बना दै
छिअ। एक दू दिन रुकि जा। गामक लोक जाइत छै, तेकरा संगे हम
गाम पठा देब’।
तइ
बिच हमरा संग एहो घटना भ’
गेल जे हमरा पएरमे आइग लागि गेल। हमरा पूरा पएरमे पएरसँ एड़ीसँ जांघ
तक झड़कि गेल। आब हम बड़का समस्यामे फँसि गेलौं। उ घाव हमरा तीन महिना तक घिघरी
कटेलक। असगरे साइकिलसँ एक पएरे पाइडिल मारि क’ ऊँच-नीच
रस्तापर सँ जाइ छलौं दवाइ कराबैले चण्डीगढ़ शहरसँ दूर छै गाम धनास, ओइठाम। कम पाइमे डाक्टर दवाइ दै छलै। सप्तामे तीन बेर जाइ छलौं दवाइ
कराबैले। जेहो रुपैया कोठीसँ कमा क’ अनने छलौं सभ पाइ
कक्काकेँ द’ देलौं। एकर समाचार जखन हमर माँ आ बाबूकेँ पहुँचल
तँ बहुत कानल जे कोहुना बौआ केकरोसँ पाइ ल’ क’ तूँ गाम आबि जो। ओही ठाम छै बुधन अओर कोरैला,
तेकरासँ पाइ ल’ क’ गाम चल्इ आ। हम
गामेपर ओकरा पाइ द’ देबै। ओही समएमे हमर बोर्ड परीक्षाक
फॉर्म भराइ छलए, यएह कातिक अगहन महिनामे हमरा केकरो द्वारा
चिट्ठी समाद आएल जे जल्दी गाम आब’ जे किछु दिन पइढ़ो लेब’
अओर घाव से छुटि जेत’। हमर फॉर्म हमर संगी
मनोज पासवान सभ भरि देल। किछु बुझल ने सुझल, ने गणितक ज्ञान
ने संस्कृतक ज्ञान। तैयो परीक्षा मधुबनीमे वाटसन स्कूलमे भेल सन 2000 ई. मे जखन दू
महिना बाद रिजल्ट निकलल तखन मनमे जएह धुकधुकी छल सएह भेल। हम परीक्षा पास नै क’
पेलौं। आब तँ अओर मोन दुखी भ’ गेल जे आब की
कएल जाए।
तकरा
बाद कोइ ने कोइ कहलक जे संस्कृत बोर्ड सँ परीक्षा दहक। एक बेर बाबू तँ हमर मानलक
मुदा माँ कहलक जे आब सभ पढ़ाइ-लिखाइ चलि जा ममियौत भाए संगे बंगलोर। हम फेर बंगलोर
चलि एलौं। ऐठाम काज भेटल खानाक केटरिंगमे, कुक सबहक कपड़ा धोइ क’ काज
भेटल। किछु दिन बाद गामपर सँ हमर विवाहक बातचीतक समाचार आएल जे तूँ गाम आब’। फरबरी-मार्चमे हम गाम गेलौं। बाबूजीकेँ कहलियनि जे विवाहमे जे दहेज देत’
ओइ दहेजसँ अओर एक सालमे किछु रुपैया अओर लगा क’ बहिनक कन्यादान सेहो क’ लेब। किछु भाड़ा-बर्तन अओर
ओइमे लगा देबै। ई सभ मजबूरी देख हमर विवाह 2002 मे भेल, पण्डौल
गाममे, जइ गामक पड़ोसमे कनी हटि क’ अछि
भवानीपुर गाम, जइ ठाम महादेव उगना रूप धारण क’ विद्यापतिकेँ दर्शन देने छलनि जे अखन मिथिलामे सुप्रसिद्ध अछि, कवि विद्यापति अओर उगना महादेव। हमर विवाहक पश्चात एक बेर फेर हम संस्कृत
बोर्डसँ परीक्षा देलौं, अओर ओइमे हम द्वितीय श्रेणीसँ
उत्तीर्ण भेलौं। हम ई परीक्षा केथाही-रामपट्टी स्कूलसँ देने छलौं 2005 मे। तेकरा
बाद पुनः हम अपने गाम लगमे कॉलेज छल शिवनन्दन-नन्दकिशोर महाविद्यालय, भैरवस्थान ओइमे एडमिशन करा क’ आइ.ए. मे हम फेर आबि
गेलौं बेंगलोर। तकरा बाद ओइ केटरिंगमे आदमी बढ़ि गेलासँ हमरा ओइठाम काज नै भेटल तँ
हम फेर एतौ एकटा कोठीमे काज पकड़लौं अओर गाम आबि क’ इण्टरमीडिएट
परीक्षामे फेर शामिल भ’ गेलौं आ अहूमे सेकेण्ड डिवीजनसँ पास
भेलौं, कोठीएमे समए बचए तँ पढ़बो करी, किताब
गामसँ ल’ क’ जाइ छलौं।
संग-संग
बहिनक कन्यादान सेहो भ’ गेल भगवतीक दयासँ। ओही विवाहमे किछु खर्चा आ कर्जा भ’ गेल बेसी। कोठीमे दू हजार रुपैया दिअए महिना, ओइमे
घरक खर्चा अओर ओम्हर अपन पढ़ाइक परीक्षा फीस, पलसमे परिवारक
सेहो खर्चा।
फेर
बी.ए. मे नाम लिखेलौं अओर फेर चलि गेलौं बंगलौर। हमर विषय छल आर्ट जे कोनो ट्यूशन
बिना पढ़ि सकै छलौं। हमरा इण्टरमीडिएटमे हिन्दी विषयमे ज्यादा अंक आएल छल मुदा अपने
नै रही गाममे तँ हमर संगी छल राकेश कुमार ठाकुर, लगैमे हजाम, वएह
छल हमर फॉर्म भरनिहार, परीक्षा शुल्क जमा केनिहार, हुनका मैथिलीमे ज्यादा अंक एलै, ओइ वास्ते हमरो उ
यएह ऑनर्स विषय रखबा देलक।
गाम
एलौं तँ मन किछु पछताइतो छल जे आबक जमानामे आर्ट क’ पढ़ाइ कियो पढ़ै छै, मुदा मैथिलीक जखन नाम सुनलिऐ तखन मन गदगद भ’ गेल। हँ, मुदा किताब भेटल बहुत मेहनति क’ कए।
हर
साल पाँच सएमे किताब खरीद’
पड़ए, ओहूमे जेरोक्स पन्ना। तेकरा पढ़ि क’
हम बी.ए. फर्स्ट क्लाससँ 2011 ई. मे पास केलौं ललित नारायण मिथिला
यूनिवर्सिटा, कामेश्वर नगर दरभंगासँ।
ता’त हमरा बालो बच्चा
भेल। पढ़ाइ संग-संग एकरो सबहक देख-रेख केनाइ माय-बापक दायित्व होइ छै। तखन हम फेर
गामसँ बेंगलोर आबि गेलौं।
कतेक
बेर पैराशुट रेजीमेंटमे बेंगलोरमे भर्तीमे बहालीमे गेलौं मुदा असफल रहलौं। ऐबेर
गाममे एस.टी.ई.टी.बला परीक्षामे सेहो शामिल भेलौं मुदा उहो असफल रहल।
आबि
गेलौं बेंगलोर जे आब ओतेक कोनो नीक एजुकेशनो नै अछि जे कतौ नोकरी हएत, तैयो कोनो काजमे लागल
छी। भगवतीक दया, आगू हुनका हाथमे छनि। हमरा दूटा बेटा अछि
अओर एकटा बेटी, बड्क्ष अछि राजकुमार साफी, छोट बेटा सागर कुमार साफी। तइसँ छोट अछि राज नन्दनी कुमारी। अखन ई सभ
आंगनवाड़ी स्कूलमे पढ़ि रहल अछि। ओतेक पाइ अछि नै जे प्राइवेट स्कूलमे धीया-पुताकेँ
पढ़ाएब, दिनोदिन महगाइ बढ़ले जाइत अछि। हम सभ बी.पी.एल. कोटिमे
शामिल छी। धीरे-धीरे एतबो शिक्षा भेलाक बादो कोनो नोकरी नै भेटैए। लोक कहै छलए जे
एतेक पढ़निहार बड़का अफसर होइत अछि मुदा हम सभ किछु नै क’ पाबि
रहल छी।
हमरा
संगीतसँ बेसी मिलान रहैत अछि। गीत गेनाइ हमरा बहुत नीक लगैत अछि। मैथिली होइ बा
नेपाली बा हिन्दी, हम ओहू गीतकेँ गाबि सकै छी। कीर्तन-भजन केलौं अपने गामघरपर संगी-साथी संग।
जीवन एगो घड़ीक सुइया होइत अछि, दिन भरि, राति भरि चलिते रहैए, कखनी बन्द भ’ जाएत किनको नै थाह अछि।
हम
अप्पन ऐ मैथिलीक माटि-पानिसँ जुड़ल हरएक बातक सम्मान करब। अप्पन भाषाकेँ ऊँच शिखरपर
पहुँचेबाक प्रयास करब।
हम
मैथिल छी, मिथिलेमे रहब अओर पोरो साग तोड़ि क’ गुजर करब। सादा
छी सादा रहब। जय मिथिला, जय मिथिला धाम, प्रणाम।
उमेश मण्डल
दोसर
चरणक पहिल सगर राति दीप जरय दरभंगामे सम्पन्न- डिजिटल फॉर्ममे ३७ टा पोथीक लोकार्पण
पूर्वपीठिका:
-"सगर राति दीप जरय"क दोसर फेज (चरण)क
पहिल सगर राति दीप जरय ०१ दिसम्बर २०१२ शनि दिन सन्ध्याकेँ केँ दरभंगामे
-आयोजक छथि श्री अरविन्द ठाकुर
--"सगर राति दीप जरय"क पहिल चरणमे बहुत
रास घुसपैठिया घुसि गेल रहथि आ ई अपन मूल उद्देश्यसँ दूर भऽ गेल छल।
-लोक भरि राति सुतैत रहथि, जातिवादिताक
स्वर सोझाँ आबि गेल छल, लॉबी बना कऽ होइत समीक्षा आ
ब्राह्मणवादी-आमंत्रण धरि गप पहुँचि गेल छल। साहित्य अकादेमीक हस्तक्षेपसँ मामला
आर गरबड़ा गेल। ७५म सगर राति दीप जरयमे पटनामे किछु गोटे द्वारा शराब पीलापर धनाकर
ठाकुर विरोध सेहो प्रकट केलन्हि। तकर बाद ओहीमेसँ किछु गोटे ऐ गोष्ठीकेँ दिल्ली लऽ
गेला, मुदा विभिन्न कारणसँ आ साहित्य अकादेमीक दवाबपर मैथिली
पोथी प्रदर्शनी नै लगाओल जा सकल, कारण आयोजक तकर अनुमति नै
देलन्हि, ऐ साहित्य अकादेमीक कथा गोष्ठीकेँ ७६म -"सगर राति दीप
जरय"क मान्यता नै देल जा सकल (ओना किछु ब्राह्मणवादी कथाकार आ घुसपैठिया लोकनि
एकरा ७६म सगर राति दीप जरय कहि रहल छथि!!) । ७६म -"सगर राति दीप जरय"क आयोजन विभा रानी द्वारा चेन्नैमे भेल जतए मात्र
एकटा कथाकार पहुँचला। कियो माला नै उठेलनि आ सगर राति दीप जरयक पहिल चरणक दुखद
अन्त भऽ गेल।
--"सगर राति दीप जरय"केँ फेरसँ जियेबाक
प्रयत्नक स्वागत कएल जा रहल अछि। "सगर राति दीप जरय"क दोसर फेज (चरण)क पहिल सगर राति दीप जरय ०१
दिसम्बर २०१२ केँ "किरण जयन्ती"क
अवसरपर आयोजित भऽ रहल अछि। आशा अछि जे ई नव "सगर राति दीप जरय"क दोसर फेज (चरण)क पहिल सगर राति दीप जरय पुनः अपन
ओइ पथपर आगाँ बढ़त, जे प्रभास कु. चौधरी ऐ लेल सोचने छला।
सगर राति दीप जरय-
किरण जयन्ती केर अवसरपर दिनांक १ दिसम्बरक साँझ ६ बजेसँ
भिनसर ६ बजे धरि दरभंगाक कटहलवाड़ी स्थित एम.एम.टी.एम महाविद्यालयक प्रेक्षागारमे
सगर राति दीप जरय-कथा गोष्ठीक आयोजन अरविन्द ठाकुर जीक संयोजकत्वमे भेल। ऐ
गोष्ठीक उद्घाटन डी.आइ.जी. राकेश कुमार मिश्र दीप प्रज्वलित कऽ केलनि। डॉ.
भीम नाथ झाक अध्यक्षता एवं अजीत आजाद जीक संचालनमे ऐ भरि रातिक कार्यक्रमकेँ
तीन सत्रमे बाँटि आगू बढ़ाओल गेल। पहिल सत्र छलै उद्घाटनक दोसर लोकार्पण आ तेसर कथा वाचन सह समीक्षाक। मध्यांतर सेहो भेल जइमे नीक भोजनक
आ लगभग दससँ बीस मिनट धरिक आरामाक बेवस्था छल। अहाँकि ई बेवस्था गोष्ठीमे
आनायास भेलै, भेलै ई जे भोजनक प्रवन्ध साकट लेल अलग। जइसँ
दू तोजीमे भोजन कराओल गेलै। जइमे समए लागल। आ एकटा आर महत्वपूर्ण बात ई जे मंच
संचालक अजीत आजादजी स्वयं दुनू सत्रक भोजनमे टहलि-टहलि भोजन करबेलखिन। अर्थात्
पहिल तोजीमे भोजन केनिहार कथाकारकेँ लगभग बीस मिनट सुतैक अवसर भेट गेलैक।
सत्रक
आरम्भ श्री जगदीश प्रसाद मण्डल लिखित एगारह गोट पोथीक लोकार्पण जे पी.डी.एफ
फाइलमे सी.डी.क रूपमे भेल जेकर विवरण एना अछि-
गीतांजलि
(गीत संग्रह), इन्द्रधनुषी अकास (कविता संग्रह), तीन जेठ एगारहम
माघ (गीत संग्रह), राति-दिन (कविता संग्रह), अर्द्धांगिनी.. सरोजनी.. सुभद्रा.. भाइक सिनेह इत्यादि (लघुकथा
संग्रह), शंभुदास (दीर्घकथा संग्रह), बजन्ता-बुझन्ता
(विहनि कथा संग्रह), कम्प्रोमाइज (नाटक), झमेलिया बिआह (नाटक), पंचवटी (एकांकी संचयन) आ
सतभैंया पोखरि (लघुकथा संग्रह)। तकर बाद श्री गजेन्द्र ठाकुर लिखिल ९ गोट पोथी
लोकार्पण (सी.डी.) मे भेल। तकर सबहक विवरण एना अछि- प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना
भाग-१, सहस्रबाढ़नि (उपन्यास), सहस्राब्दीक
चौपड़िपर (पद्य संग्रह), गल्प-गुच्छ (विहनि आ लघु कथा
संग्रह), संकर्षण (नाटक), त्वञ्चाहञ्च
आ असञ्जाति मन (दूटा गीत प्रबन्ध), बाल मण्डली/ किशोर जगत
(बाल नाटक, कथा, कविता आदि), उल्कामुख (नाटक) आ सहस्रबाढ़नि उपन्यासक अंग्रेजी अनुवाद The
Comet नामक पोथी जेकर अनुवादक थिकीह श्रीमती ज्योित सुनीत चौधरी।
एही कड़ीमे ऐ दुनू रचनाकारक अलादा विदेह-सदेह भाग-५सँ१० धरिक
संकलन जे विदेह मैथिली लघुकथा, विदेह मैथिली नाट्य उत्सव,
विदेह मैथिली पद्य, विदेह मैथिली प्रवन्ध-निवन्ध,
विदेह शिशु उत्सव आ विदेह मैथिली विहनि कथाक छल। ततबे नै
एगारहटा आर रचनाकारक पोथी सी.डी. रूपमे सबहक बीच आएल जइमे १. वर्णित रस- (कविता
संग्रह) उमेश पासवान (औरहा, मधुबनी), २.
नव अंशु- (गजल, रूवाइ आ कता संग्रह) अमीत मिश्र (करियन,
समस्तीपुर), ३. रथक चक्का उलटि चलै बाट-
(कविता संग्रह) राम िवलास साहु (लक्ष्मिनिया, मधुबनी),
४. कियो बूझि ने सकल हमरा- (गजल, रूवाइ आ
कता संग्रह) ओम प्रकाश झा (भागलपुर), ५. बाप भेल पित्ती आ
अधिकार- (नाटक) बेचन ठाकुर (चनौरागंज, मधुबनी), ६. हम पुछैत छी- (साक्षात्कार) मनोज कुमार कर्ण, मुन्नाजी
(रूपौली, मधुबनी), ७. हमरा बिनु जगत
सुन्ना छै- (गीत-झारू संग्रह) रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’
(ररूआर, सुपौल), ८.
क्षणप्रभा- (कविता संग्रह) शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
(करियन, समस्तीपुर), ९.
हमर टोल- (उपन्यास) राजदेव मण्डल (मुसहरनियाँ, मधुबनी),
१०. मोनक बात- (गजल, रूवाइ आ कता संग्रह) चंदन
झाक आ ११म नीतू कुमारीक मैथिली चित्र कथा, ऐ तरहेँ ऐ गोष्ठीमे,
कुल्लम 37टा पोथी लोकार्पित भेल।
कथा पाठ आ तइपर
समीक्षकक टीप्पणी ऐ गोष्ठीक वैशिष्टय अछि। पहिल पालीमे श्रीमती वीणा ठाकुर,
आशा मिश्र, ज्योत्सना चन्द्रम, श्याम भाष्करक लघुकथा आ उमेश मण्डलक विहनि कथाक पाठ भेल। समीक्षीय
टीप्पणी भेल। अहिना आगूक पालीमे कथाकार अपन नूतन कथाक पाठ केलनि-
बेचन
ठाकुर- वेस्ट मैडम
लक्ष्मी
दास- टाइपिस्ट
चन्देश्वर
खाँ- नाओल्द
अनमोल
झा- फाइल, सेयर
मुरलीधर
झा- मनुक्ख
अभिषेक-
महापुरुष
रामाकान्त
राय ‘रमा’-
वकवास
रामविलास
साहु- घूसहाघर
नारायणजी-
छत्ता
शैलेन्द्र
आनन्द- फोरलेन
पवन
कुमार साह- अपन रीति
सुभाषचन्द्र
सनेही- बूढ़ी
नन्द
विलास राय- बाबाघाम
उमेश
पासवान- अजाति
अशोक
कुमार झा- माछक मोटरी
परमानन्द
प्रभावकर- परिवर्त्तन
फूल
चन्द्र मिश्र प्रवीण- परिवर्त्तन
दुखमोचन
झा- समरथको नहि दोष गोसाई
दुर्गानंद
मण्डल- कुकर्मा
जगदीश
प्रसाद मण्डल- अनदिना,
बुधनी दादी
शिव
कुमार मिश्र- नापता
शशिकान्त
झा- दूरी
अच्छेलाल
शास्त्री- गामक लोक शीर्षकक कथा पढ़लनि। हलाँकि शास्त्री जीक कथाक वाचन मात्र
एक पृष्ठ सुनला पछाति रोकि देल गेल ई कहि जे ई कथा नै
आलेख थिक। अच्छेलाल शास्त्रीक ई पहिल मंच रहनि जइपर ओ कथा पढ़ि रहल छलाह,
ओना कविता आइ तीस बर्ख पहिनेसँ लिखैत छथि। ई मंचक अध्यक्ष संग
संचालक एवं ऐ दुआरे केलनि जे पृष्ठ भरिक वाचनमे कथोप-कथन किएक नै आएल। शास्त्री
जीक कहब छलनि जे कथोप-कथन कोनो कथाक एक तत्व थिक से हमरो बूझल अछि आ तकर
समावेश अवश्य केने छी मुदा से आगू अछि माने अगिला पृष्ठमे। तथापि कथाक वाचन
रोकि देल गेलनि। आ अच्छेलाल यादव शास्त्री अपन कथाक अपूर्ण पाठसँ निरास रहि
गेलाह।
अमीत
मिश्र, मुकुन्द
मयंक, अमलेन्दु शेखर पाठक, रौशन झा इत्यादि व्यक्तिक कथाक पाठ सेहो भेल आ तइपर टीप्पणी गुनजाइश
हिसाबे। टीप्पणीकार सभ छलाह- फूलचन्द्र मिश्र रमण, रमानंद
झा रमण, भीमनाथ झा, अशोक मेहता,
दुर्गानन्द मण्डल, कमल मोहन चुन्नु, नारायणजी, कुमार शैलेन्द्र, जगदीश
प्रसाद मण्डल, कमलाकान्त झा (जयनगर), योगानंद झा इत्यादि।
आगिला
‘सगर राति
दीप जरए’ कमलेश झाक संयोजकत्वमे घनश्यामपुरमे हेबाक घोषणा
सेहो भेल। दीप आ उपस्थिति पुस्तिका स्थानीय संयोजक अरविन्द्र ठाकुर कमलेश
झाकेँ हस्तगत करा गोष्ठीक समापनक घोषण केलनि।
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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
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"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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