तेल बिनु जेना निशठ टेमी धएने
बिनु पिया जीवन बितत कोना अएने
बरख बरखसँ हम तुसारी पूजने छी
बुझब की सुख साँझ पाबनि बिनु कएने
छै धिया सुख की बुझब कोना धिया बिनु
भ्रूण हत्यारा बुझत की बिनु पएने
मोल जीवनमे हमर बाबूक की अछि
मोन बुझलक छन्नमे हुनका गएने
रंग बदलति देखलौं सभकेँ हँसीमे
देखि 'मनु' दुनियाँक रहलौं मुँह बएने
(बहरे रमल, २१२२-२१२२-२१२२)
कन्नारोहट भऽरहल छल,
हूलिमालि मचल छल गाम मे,
अपस्याँत लोक, कानैत जनानी सब,
सब आबि रहल छल ऐ आंगन मे।
हमहुँ बिछाउन सँ उठि पड़ैलौँ,
जा पहुँचलौँ हूलिमालि मचल पड़ोसियाक आंगन।
भारी लोक जुटल छल, मौगी-मूनसा आ धीया-पूता।
खुसुर-फुसुर गप्प एक-दोसर मरद आ जनानी मे।
हमरा किछु नै बुझना जाइत छल!
हम पुछलौँ, फन्ना काका कि भेलए यौ ?
कहलक, फन्नाक ननकिरबी आगि सँ झड़कल मरल अछि।
हम पुछलौँ, कोना यौ काका?
कहलक, ननकिरबीक लहास ओकर सासुर सँ नैहर ऐलएयऽ।
हम पुछलौँ, आगि मे कोना झड़कि मरल?
कहलक, यएह तँ अखन नै बुझलौँ होउ बौआ।
हम जुटलौँ खोज-खबरि मे, ई कोना भेल?
बात पता चलल, सब दहेजक अछि ई खेल।
भरल आंगनक भीड़ केँ चीड़ैत जखन पहूँचलौँ हम,
लहास देखि ठाढ़ होमए कऽ हिम्मत नै रहल।
खनए मे भीड़ सँ बहरइलौँ नोर टपकाबैत हम।
आंगनक हाल की छल ऐ क्षण, सोचि सकैत छी अहाँ?
हमहुँ सोचि मे पड़ि गेलौँ, जे ई की भेल?
कि! एखनो ऐ तरहक भऽ सकैए।
लोक पढ़ैत-लिखैत छथि आ अपना केँ बुधियारो बूझैत छथि।
मुदा? तैयो ऐ तरहक दृश्य देखऽ पड़ैत अछि!
देह सिहरि उठल हम्मर, हमरो भगवान बहिन देने छथि।
मरद तँ मरद, जनानियो ऐ तरहक कुकर्म करैत छथि।
अपने जनानी भऽ कऽ, एकटा दोसर जनानी केँ जड़ाबैत मारैत छथि।
ई गामे टा नै, शहर मे सेहो खूब होइत अछि।
अपना केँ सभ्य कहैबला लोक, एना खसि जाइत छथि।
टोल-पड़ोस आ समूचा गाम कानि रहल छल।
ई की भेल, ई की कऽ देलक मुचंट दहेजक राक्षस !
जे कहियो ऐ गामक माटि आ आंगन मे,
जनम् लेलक, हँसि-बोलि-खेलि नमहर भेल छलि।
नवातुरे मे आइ "शिकुया",
बीच आंगन मे झड़कल, जड़ल बौक बनि पड़ल अछि।
शिकुया "मैथिल"
हाएत दिवाली जड़तै दीप
आँगने आँगन बड़तै दीप
डेगे डेऽग पर जड़तै दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
चुक्का डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
आँखिसँ खसैत नोर रुकत की नै
नोरक सरस आबो सुखत की नै
फाटल ठोर फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
अहाँ बैसला पर कि पाएब एतौ
रहब काजके बिन कि खाएब एतौ
कियै हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै
तड़पि के मरब ई जहर छै
नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै
नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै
प्रेमिका प्रेमिका नै रटू
ई पसारैत बड़ कहर छै
ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै
*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दीर्ध चारि बेर ।
अहाँ हमरा बिसरि रहलौँ
वियोगे हम तँ मरि रहलौँ
घुसिकँ कोनाकँ
देहेमेँअहाँ हमरा पसरि रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन' (मने 1222) दू बेर
१.बिनीता झा- भूखल/ प्रकृति २.मुन्नी कामत-किछु कविता३.शेफालिका वर्मा- रे मन
१.
बिनीता झा
भूखल
झरना अछि भूखैल
नदी से भेटक लेल
नदी भूखैल
समुद्रक लेल
भूक ओकर तइयो नै
मेटेलय उरि बैसल आकाश
बनि गेल ओ मेघ
बरसि परल फेर आइ धरती पर
करय लेल झरना स भेंट
ई भूख छी प्रकृतिक देन
अहि भूख स ने बचि सकल क्यौ
कि झरना कि मनुख
चारू दिस लागल अछि सब क्यौ
भूखल मोन के शांत करय मे ।
प्रकृति
आखरक नs भरोसे प्रकृति
बिन आखरे सबटा बजैत प्रकृति
पात मे रूप सजौने प्रकृति
सूर्य आर चान सन चमकैत प्रकृति
कल-कल बहैत झरना सन चहकैत प्रकृति
रास करैत चिड़ै चुनमुनीक संग अछि प्रकृति
प्रेमीक प्रेममे निःशब्द आँखि लड़बैत प्रकृति
बिन कहने सबटा कहैत प्रकृति
आखरक कहाँ भेल मोहताज प्रकृति ?
निसांस रे मन
दिग दिगंत भेल सुरभित
हमर आरती रहल अकम्पित
आश उमंग नाचि थाकल
सौरभमय सुमन मौलायल
मुरझायल विश्वास रे मन
अग जग शोभा निरखै आली
मधु मधु मह मह हँसैत लाली
जग पागल कि हमहीं पागल
सोची थाकलों काल कराली
आइ मानसक ऐ हलचलमे
उर हतास रे मन...........
हम देशक रक्षक छी
हमरा सँ किछु सीखू
देश रक्षा कोना करबै
हमरा सँ ई पुछू।।
देश द्रोहीसँ सावधान रहू
देशक रक्षाक लेल कुर्वान रहू
लोभ लालच सँ सावधान रहू
अपन विधान पर अड़ल रहू
भ्रष्टाचारसँ दूर रहू
देशक झण्डाक शान राखू।
मातृ भूमिक ऊँच्चा नाम करु
देश रक्षाक लागि कुर्वान रहू।
अपन देशसँ प्रेम करु
विदेशीसँ न्यारा रहू
हरदम एक आवाज उठाउ
देश रक्षाक लागि कुर्वान रहू
नेता जीक ई भाषण सुनालक बाद जनता लोकनि
जनता सभ लालच मे आएल
मतदान दऽकऽ सेहो जितौलक
खुशी खुशी खुशी आ हँसिते हँसिते
मारि झगड़ा सेहो मचौलक।
नेता जीतक पद पर आएल
अपन रुप रावण सन धएलक
मने मने विचार करए
के हमरा सँ दुशमनी कएलक।
अब जनताक विनती
हे हमर भाग्य विधाता
हमर अहाँ शान छी।
देशक अहाँ जान छी।
हमर अधिकार मिलत तखन
अपन आशीर्वाद भेटत जखन
नेता जी कहैत छथि
ओ उपदेश हमर ढंोग छलै
भ्रष्टाचारी करबाक समय अएलै
नै हम करबै भ्रष्टाचारी
कोना बढबए हम अगारी
२
चैन चोराकs चलि गेलै........
ओकर गाल छै गुलाबी
ताहि पर तिल एकटा कारी
कए कs हमरा घाइल चलि गेलै
देखही रौ मिता एकटा छौडी
चैन चोराकs चलि गेलै........
हुनका गामक पछिम ,एकटा छैक पोखरि,
नाम छैक धोबिया पोखरि |
कियो कहै छै, ओकरा धोबिया नामक लोक खुनेलकै ,
आ कियो कहै छैक ओकरा धोबिया जिन्न खुनेलकै |
कियो थाह नहि पाबि सकलै आइतक |
भीड़ बर ऊंच छै ,
उपर सं देखय मे बर डेरौन लगै छै |
चारु महार जंगल छै |
ओहि महार पर हुरार रहै छै ,
ओहि पोखरि मे कियो नहाइत नहि छैक ,
दिनो मे डर लगै छै,
राति मे त’ ओहि मे चुड़ैल नहाइत छैक
एक दिन हमहू चुड़ैल क’ देखने रहियैक ,
मारैत रहैक चुभकी ओहि मे नग्न भ’ क’ ,
हमहू डरे भागल रही,
ओ पोखरि खुनिया छैक |
दिन मे गामक लम्पट लुच्चा ओहि मे वसर करैत छैक,
राति मे वैह सभ चोरि ,डकैती करै छै ,राहजनी करै छै,
लोक क’ लुटै छै |
देसक शासन धोबिया पोखरि छै ,
लम्पट ,लुच्चा एहि मे नहाइत छै ,
भ्रष्टाचार चुड़ैल छै ,ओ नंगटे चुभकी मारै छै |
भ्रष्टाचारक जरि पातल तक छै ,
ई शासन अत्याचारी छै ,
एकरे डरे लोक भगैत छै ,
एहि मे कतेको हुरार छै ,
ई लोकक इज्जत लुटैत छै |
हमरा गामक पछिम मे आमक गाछी छैक |
सकरचुनिया,सिनुरिया ,सीपिया ,जर्दा,
रंग विरंगक आम छलै|
गाछ सभ छलै बर झमटगर ,
देखय मे लगै छलै बर सुन्दर |
मुदा एकबेर कमला मैयाक मरकी अयलै ,
गाछ सभ सुखा गेलैक |
बचलै मात्र पाँचटा गाछ,
मुदा पाँचो उपर सं ठुठ,
जेना कियो मुरी काइट नेने होयक |
ओकर नाम परि गेलैक पचगछिया ,
पचगछिया भुताहि भ’ गेलै ,
भूत जोगिन नाच कर’ लगलै,
सद्यः लोक देखै ,
लोक ओ वाट छोडि देलकै ,
राति क’ पहलमानो क’ ओमहर पसीना दै |
हमर देस फूलक फुलबारी छल ,
एहि फुलबारी में नाना तरहक फूल छलै ,
राजेंद्र ,जवाहर ,सरदार फूल फुलायल छलै,
तिलक ,गोखले ,मालवीय गाछ लतरल चतरल छलै ,
मुदा कोन रोग धेलकै,सभ मरि गेलै ,
जे बचलै से कटहा फूल छैक ,
ओ चुभ सं गरि जाइत छैक |
गोलाबक फूल तकने नहि भेटैत छैक ,
कमल फुलायत कोना ,सरोवर सुखायल छै,
आब त’ गाछो कोकनले भेटैत छै |
देस चलतै कोना,लोक जीतै कोना
मोसकिलक अम्बार छैक ,बतहाक राज छै
हे भगवान आबह तू ,जियाबह हमरा देस क’ ,
चारुकात कन्नारोहट भ’ रहल छै ,
चित्कार होइ छै ,वलात्कार होइ छै ,
सभ हक्कान कनैत छैक ,
मरै नहि छै मुदा मुर्दा भ’ गेल छै |
हे खेवनहार कत’ नुकायल छह ,
अपन चक्र सुदर्शन उठाबह ,त्रिसूल सं माथ काटह पापी क’ ,
तोहर संतान ठोहि पारि कानि रहल छह ,चिचिया रहल छह ,
कहि रहल छह “ हे भगवान “ |
अपने क्याम्पक एकान्त कुनामे
आकाशमे चमकैत तारासन
अबैए सपनाक ज्वारभाटा सभ
हमर जवानी आ भावना सभकेँ।।१।।
बिगत साल जकाँ एहिबेर सेहो
चाहनाक डालापर हिम पहिर चलि गेल
समा चकेबाक गीत सुनऽ लेल
ई कान बहिर भेल?
बहिनक समा फोड़ब
सेहो अधूरा रहि गेल।।२।।
याद अबैए एखनो चूड़ा, दही, अचार
बहिन संग बिताएल समा-चकेबाक साँझ
मुदा बिछड़लकऽ पीड़ासँ
मन दुखि रहल अछि
तन पाइक रहल अछि ।।३।।
हमरे सन बहुत लोकनि
बंचित छी चास प्रवासमे
ओ सम्पूर्ण अभागलमे
से हमर शुभकामना । ।।४।।
जनकपुरक अञ्चल अस्पताल
बनल अछि एक पैघ सबाल
समयमे जौँ नै ध्यान देबै तँ
रुप इहो लऽ लेत बिकराल ।।१।।
अव्यवस्थापन देखल
ऐ संस्थाक दोसर खराबी
नै भविष्यक प्रवाह अछि ककरो
करए सब अपन मनमानी ।।२।।
स्वार्थक विष पीने सभ सेवक
नै लागए मन उपकारमे
रोगी ऐठाम खूनसँ लतपत
मुदा ओ ब्यस्त क्लिनिक संसारमे ।।३।।
देशक सर्वोच्च जनशक्ति छी तँ
ऐ बातपर ध्यान धरी
रोगीक लेल भगवान बनब तँ
अपन कर्तब्यक बोध करी ।।४।।
आबो दु:ख, पीड़ा जनताकेँ बुझब
इहे मनमे आस अछि
समय समयमे अस्पतालो टेबब
अटूट जनविश्वास अछि ।।५।।
जनकपुरक रेल्वे
जनकपुरक रेल्वे स्टेसन
बनल अछि एक बज्र बिशेषण
जीर्ण अवस्थाक मर्म तँ जरुरी
सेहो टालल दोसर सेसन।
नेपालक एक मात्र रेल यातायात
सेहो बनल विश्वासघात
जनकपुरसँ निकलल गाड़ी
पटरी छोड़लक बिचे बाट।
बौआ पुछलनि माए कहू
ई ट्रेन कहिया धरि चलत
माए बजलनि सुनु बौआ
कुर्सीक खेल जखन धरि चलत।
घिचाघिच-मिचामिच छोड़िते
स्वर्ग भऽ जाएत अपन देश
समान विकास सभ ठाम हएत
नै रहत कोनो उलझन विशेष।
रेल्बे आ ई रेलक चाट
बड पैघ समस्या छैक
निवेदन हमर सम्बन्धित सँ
जल्दी ऐपर ध्यान देबैक।
चाही उनका स्ट्यान्डर्ड खाना
तित नै कि मिठ-मिठ खाना
खर्च करऽ मे कनियो कम नै
भोरे उठि अबै छी जखने
आर्थिक श्रोतक आधारपर
पिछुवारेसँ चुपे निकलल
सोपिङ करऽ बजारपर ।
नयाँ डिजाइनक सड़ी चाही
अभिनेत्री सन गहना यौ
बात हिनकर छनि छुछे करु
कि करियै हम बहिना यै।
नव युक्तिसँ नव प्रेमी संग
प्रेमक नाटक थिक हिनकर काम
फँसलनि जे यिनका फेरामे
भागलाह ऐठाम बदनाम ।
पहिनेक नारी एही मिथिलाके
सहनशील कतेक सुशील छलीह
मैथिलानीक गुण बिसरि गेलीह।
की हएत हमरा मिथिलाकेँ
नारी जौँ पथ छोड़ि देतीह
जीवनकेँ दू रथ होइ छै
बिन नारी कोना चलतीह।
मध्य राइत सपनामे हम नेपाल गेल छलौं
छठिमे परिवार सङे बड खुशी भेल छलौं ।
फठकाकेँ झोरा मुदा घरही बिसरि गेल छलौं।
माए, बाबु, बहिन, भाइ कन्या छलीह साथमे
छोट छोट बातपर तैयो रुइठ गेल छलौं ।
प्रसाद खाइत काल निन्द खुलल जखने
अपने बिस्तरपर कतारमे सुतल छलौं ।
बिपदामे हएत साचे मजा करती साथी
धत् हम तँ बेकारमे सपनामे गेल छलौं ।
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5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
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अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
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