३.८.१.बिनीता
झा- अही
देशक बेटी हम २.कामिनी
कामायनी -खिलैत पलास वन३. ज्योति झा चौधरी- शब्दमे उत्सव
जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
की भेटल आ की हेरा गेल (आत्म गीत)- (आगाँ)
झंकार उठल, टंकार उठल
ओंकार उठल, जैकार उठल
जनकक आंगनसं दिल्ली धरि
‘जै
मैथिली’ हुंकार उठल
प्राप्त भेल अधिकार अपन
जे मंगनीमे छल छिना गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
नहि द्रोण थिका आदर्श हमर
नहि श्लोक रटल हम गीता केर
हमरा अन्तस्थलमे सदिखन
अछि नाम कैकटा सीताकेर
जे स्वयं समाकऽ धरतीमे
दुनिया भरिकें छथि जगा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
जतबा धरि जीवनमे शुभ अछि
से अछि प्रसाद सतसंगतिकेर
आहार-विहारक नियमितता
शुभ चिन्तनकेर आ सदमतिकेर
गुरूजन आ प्रियजन आशीषक
अनमोल रत्न छथि लुटा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
नहि दौड़ी हम काशी-प्रयाग
नहि केलहुं हम कबुला-पाती
कयलनि जीवनभरि व्रत-उपव्रत
दादी आ माए सबहक साती
हुनकहि आशीषक गंगामे
भरि पोख मोन अछि नहा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल ।
क्षमा करू हे पिता हमर
बरखी-तरखी नहि करब ह’म
नहि केश कटायब बेर-बेर
नहि भोज-भातमे पड़ब ह’म
हम मानब ओकरहि क्रिया-कर्म
जे तृप्त जीबितहिं करा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
क्षमा करू हे मित्र हमर
नहि आंखि मूनिकऽ चलब ह’म
जे सहज, सरल आ सुन्दर हो
ओही रस्तापर बढब ह’म
अपनहि इतिहासक पन्ना किछु
आंगुर हमरा पर उठा गेल,
हम सोचि रहल छी जीवनमे
की भेटल आ की हेरा गेल।
(क्रमशः)
१.पंकज चौधरी (नवलश्री)- भक्ति गजल/ भक्ति गीत : दिय ने दरस जगदंब दिय/ गजल 1-3/हाइकू-शेनर्यू/ हजल/ कविता : माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!/ २.मनोज कुमार मण्डलक प्रश्न ३. मो. गुल हसन- उदास लागै..
१
पंकज चौधरी (नवलश्री)- भक्ति गजल/ भक्ति गीत : दिय ने दरस जगदंब दिय/ गजल 1-3/हाइकू-शेनर्यू/ हजल/ कविता : माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!/
भक्ति गजल
माए हम आराधक बनल छी
सुनु याचना याचक बनल छी
बस साधन भेटए आशीष के
करी साधना साधक बनल छी
सुर-तान के अवगति ने किछु
वरदानसँ वादक बनल छी
नौग्रहसँ लड़ैत नवरातिमे
सप्त्शतिक पाठक बनल छी
ममता भरल आँचरि भेटल
"नवल"
हम बालक बनल छी
*आखर-१२ (तिथि-२१.०८.२०१२)
भक्ति गीत :
दिय ने दरस जगदंब दिय
कखनसँ छी हम शरण में बैसल कखन देबय दर्शन
मैया
अहिंक भजन में रमल रहै छी राति-दिवस सदिखन मैया
दिय ने दरस जगदंब दिय
सुनु विनती अविलंब दिय
दिय ने दरस जगदंब दिय } २
की गलती भेल कियै रुसल छी
हमरा पर तमशायल छी
सगरो जगसँ थाकल-हारल
अहिंक शरणमे आयल छी
करू क्षमा हम छी अज्ञानी
ज्ञानक वर माँ अंब दिय...
दिय ने दरस ...
हे जगजननी हे जगमाया
क्षण-क्षणमे बस अहिंके छाया
नेहक दृष्टि दिय भवानी
कुंदन बनतै माटिक काया
अन्तर्यामी हे सज्ञानी
जुनि करू आब विलंब दिय...
दिय ने दरस ...
जगविदित छी जगविख्याता
ऐलहुं दौड़ल सुनितहिं गाथा
अहिंक शरणमे जीवन अर्पित
अहिंक चरणमे झूकल माथा
शरणागत छी हम भवानी
टूवर के अवलंब दिय...
दिय ने दरस जगदंब दिय
सुनु विनती अविलंब दिय
दिय ने दरस जगदंब दिय } ३
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-०९.१०.२००१)
गजल-1
पकडू रेल चलू दिल्ली
भरबै जेल चलू दिल्ली
नेता लूटि रहल सभके
बुझि बकलेल चलू दिल्ली
बैसल बाट कते जोहब
सभ लुटि गेल चलू दिल्ली
सभ छै भूखल कुर्सी के
रोकब खेल चलू दिल्ली
पापक कुण्ड भरल सगरो
सभटा हेल चलू दिल्ली
लागल भीड़ पमरिया के
सभके ठेल चलू दिल्ली
अपनेमे जुनि झगडू यौ
राखू मेल चलू दिल्ली
धरना देब करब अनशन
मिथिला लेल चलू दिल्ली
क्रांतिक धार "नवल" बहलै
लड़बा लेल चलू दिल्ली
*मात्राक्रम
: २२२१+१२२२
(तिथि-१०.११.२०१२)
गजल-2
आब मिथिलाराज चाही
मैथिली के ताज चाही
बाढ़ि आ रौदीसँ मारल
मैथिलो के काज चाही
बड़ रहल बेसुर इ नगरी
सुर सजायब साज चाही
गर्जना गुंजित गगन धरि
दम भरल आवाज चाही
संयमित सहलौं उपेक्षा
"नवल"
नव अंदाज चाही
*बहरे
रमल/मात्राक्रम-२१२२
(तिथि-०७.१२.२०१२)
गजल-3
सगतरि बखान मिथिला के
महिमा महान मिथिला के
युग-युगसँ छै जनक नगरी
गौरव पुरान मिथिला के
गंगासँ अछि हिमालय धरि
पसरल सिमान मिथिला के
रखने सहेज आँचरि मे
कमला बलान मिथिला के
चन्दा प्रदीप नागार्जुन
चमकैत चान मिथिला के
मंडन कणाद विद्यापति
संतति महान मिथिला के
गाथा गबै करै वंदन
वेदो-पुराण मिथिला के
परसै सनेश सदभावक
कीर्तन अजान मिथिला के
शत-शत नमन "नवल" करियौ
माए समान मिथिला के
वर्ण क्रम:
२२१२+१२२२
(तिथि:
१२.१२.२०१२)
हाइकू
तप्पत माटि
तड़पि रहल छै
बरखा लेल ।
बुन्नी झहरै
सगरो पसरल
माटिक गंध ।
गरदा-बुन्नी
दुनु संग सानल
माटिक लड्डू ।
देखू देखिते
पोखरि बनि गेल
खेत-पथार ।
डोका- कांकौड़
लऽ लऽ छपकुनिया
बीछय सभ ।
धानक बीया
उजरल बिड़ार
खेत रोपेतै ।
खूब उपजा
भरि जैत बखारी
रीन-उरीन ।
(तिथि-०६.०७.२०१२)
शेर्न्यू
कृत्रिमतामे
अभागल मनुख
अभोगे गेल
घून-गड़ाड़
लागि रहल अछि
मानवतामे
घोर अदिन्ता
घेरने सगतरि
जायब कतऽ
कंठमे कन्ठी
शोणित के प्यासल
मौसक भूख
भूखे आन्हर
मनुख-मनुख के
चिबा रहल
(तिथि-१०.०७.२०१२)
हजल
कनिया सुन्नर देशी चाही
ठाठ मुदा परदेसी चाही
बंगला - गाड़ी नोकर संगे
दरमाहो किछु बेशी चाही
कूलरसँ नै देह शीतेतै
शौचालय तक एसी चाही
सिगारे टा नै हो अंग्रेजिया
मदिरा सेहो विदेशी चाही
गाए-महीश पोसै में लाज
कुक्कुर-घोड़ा मवेशी चाही
देशक मर्यादा नै बिगड़ै
छूट मुदा परदेसी चाही
पश्चिम पैर पसारै रोकू
"नवल"सोच स्वदेशी चाही
*आखर-१० (तिथि-२५.०८.२०१२)
कविता :
माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!
बिख घोंटि-घोंटि छथि पीबि रहल
मैथिली छथि हिचकैत जीबि रहल
आकुल भऽ आइ विवशतावश
देखू माए नै विषपान करथि
माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!
नै कम छी एकहु गोट किओ
सभ पैघे छी नै छोट किओ
बेरा -
बेरी सभ राज करू
मस्तक पर कीर्तिक ताज धरू
अपनहिमे रहू जुनि ओझरायल
ई मिथ्या मतदान करैत !
माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!
माए कानथि सुत निश्चिंत पड़ल
सुधि-बुधि बिसरल अचिंत पड़ल
चलू पोछब माएक नोर कियो
चलू लायब सुख केर भोर कियो
नहि देखि दुर्दशा जननी केर
चलू छाती अपन उतान करैत !
माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!
कते कष्ट सहि माय जनम देलक
बाजू की ममता कम देलक ?
निर्ल्लज बनू नै, कने लाज करू
जुनि स्वयं पर एतबा नाज करू
जुनि करू एना अभिमान अहाँ
अपनहि-अप्पन गुणगान करैत !
माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!
छी मैथिल एहि पर शान करू
अहाँ मैथिलीक सम्मान करू
सभ मिलि मैथिलीक प्रचार करू
मिथिलाक कीर्ति विस्तार करू
सुखद नूतन इतिहास बनत
चलु डेग मिला सहगान करैत !
माए मैथिली छथि आह्वान करैत !!
(तिथि-२४.०१.२००१)
२
मनोज कुमार मण्डलक
प्रश्न
हिमालयक शुद्ध बसात सन
पसरल मिथिलाक भू-भाग
सभ वर्गक मुँहसँ निकलैत
सु-मधुर भावसँ भरल
अमृत सदृश भाषा-मैथिली।
मैथिलिक इतिहास कहैछ
बड्ड पुरान छी हम
अप्पन लिपी, अप्पन शैली
पसरल शब्दक भंडार हमर
नित सृजन होइत हमर शब्द
मोटाइत रहैत अछि
एक्कर शब्दकोषक पन्ना
केना बिला गेल एक्कर पाठक
बजत किछु लिखत किछु
किएक घूसि गेलै लाज?
अप्पनसँ आँखि मिचौनी
दोसरसँ मिलबैत हाथ
के छथि जिम्मेदार एक्कर
मिथिलाक बुद्धि-जीवी पर
उठि रहल अछि प्रश्न
दुखी छथि मैथिली
दुखी छथि मैथिलिक सेवक
जिनक जीवन बित गेलनि
मैथिलीक साधनामे
के कहत? कहिया मिलतनि
हुनकर सेवा-फल
के ई कहत?
३
मो. गुल हसन
उदास लागै.....
जरि गेलै सुखि गेलै
बौक भऽ गेलै धान
उदास लागै भैया
किसानक खढ़ियान
उदास लागै......।
मेहनत बेकार भेलै
बोनि-बुत्ता सेहो गेलै
हाथो तरक गेल भैया
लातो तरक सेहो गेलै
केना कऽ करतै
किसान भाय लेबान
उदास लागै भैया
किसानक......।
किसानक मनोरथ मोनेमे रहलै
बिआह-दुरागमनक दिन पतरेमे रहलै
नै जानि किअए सुखि गेलै अासमान
उदास लागै भैया
किसानक......।
किसानक पीड़ाकेँ कियो नै बुझै छै
धिया-पुता-बाल-बच्चा केना लिखतै-पढ़तै
केना समस्याक हेतै निदान
उदास लागै भैया
किसानक......।
बिहार
सरकारसँ अर्जी गुल हसन करैए
गीत
माध्यमसँ सूचित करैए
सरकारे
समस्याकेँ करतै निदान
उदास
लागै भैया
किसानक......।
अमित मिश्र, करियन ,समस्तीपुर
गीत 1-3
1
निरमोहिया अहाँ भेलियै पिया
गामसँ किए चलि गेलियै पिया
आँखिमे नोर दऽ गेलियै पिया
इयादि अपन छोड़ि गेलियै पिया
भोर भेलै आ बाजल मुरूगबा
कली खिल कऽ बनि गेलै फूल
चहुँ दिश इजोतक भेलै राज्य
चलल परीन्दा बान्हि हुजूम
एहनमे इयादि आबि अहाँ
सब किछु भऽ गेल धुआँ धुआँ
आँखिमे नोर दऽ . . . . .
एलै वसंत आ एतै फागुन
आम महुआ गेलै मजरि
कू कू कुहकऽ लागल कोयलिया
मधुसँ मधुकर गेलै तरि
जाड़ बितल तरसैत ओछैना
इहो मास बितत अहाँ बिना
आँखिमे नोर दऽ . . . . . . .
2
पुरुष-बाड़ीमे आबू लताम तऽर बैसू
खाउ लताम आ फेर बतियाबू
बनतै अपन प्रेम पिहानी
हम बनब राजा अहाँ बनू हमर रानी
महिला- बाड़ीमे आएब लताम तऽर बैसब
खेबै लताम आ फेर बतियाएब
बनतै अपन प्रेम पिहानी
अहाँ बनू राजा हम बनब अहाँकेँ रानी
महिला-बाड़ीमे एथिन कक्का यौ सजना
लगतै मारि तखन पक्का यौ सजना
पुरुष- घर घरबैयासँ किए डेराइ छी
प्रेममे जड़ि सजनी किए
सेराइ छी
हेतै ने कोनो परेशानी
हम बनब राजा अहाँ बनू हमर रानी
पुरुष- पोखरि मोहार चलू ओतै बतिएबै
माछेकेँ अपन सुख दुख सुनेबै
महिला- बाधसँ बाबू जी आबैत हेथिन
देखिते कोदारीसँ घेँट काटि देथिन
सोचू सोचू यौ दोसर
कहानी
अहाँ बनू राजा हम बनब अहाँकेँ रानी
महिला- दुनियाँ छै देखैत दुरबिन लगेने
प्रेमकेँ नाश कऽरऽ दल बल सजेने
पुरुष- एकेटा दिल जे सुरक्षित
अछि बचल
हम अहाँक अहाँ हमरमे आबि जाउ
चलतै नै तखन मनमानी
हम बनब राजा अहाँ बनू हमर रानी
अहाँ बनू राजा हम बनब अहाँके रानी
3
प्रेम पाँति परसलौँ पलकपर पढ़ै छी
अहाँ बाजू ने बाजू हम एतबे बुझै छी
हम अहाँकेँ अहाँ हमर छी
अछि हमरे पवन जाहिमे वास अहाँकेँ
ओ गीत हमरे जाहिमे भास अहाँकेँ
हम सब ठाम भेटब जे बाट धऽ आबू
देब प्रेमक परिक्षा अहाँ सोचि राखू
अहाँ बाजू ने बाजू हम एतबे बुझै छी
हम अहाँकेँ अहाँ हमर छी
कोनो नव गप नै जँ पत्र नै लिखब
मुदा नैनक आखर मेटा नै सकब
अहाँ कतबो नुकाउ आएब हम सपनामे
जहिना आबै छी अहाँ हमर सपनामे
अहाँ बाजू ने बाजू हम एतबे बुझै छी
हम अहाँकेँ अहाँ हमर छी
१.आशीष अनचिन्हार- नुकाएल
बलात्कारी रूप २.किशन
कारीगर- डिनर
डिप्लोमेसी
१
आशीष अनचिन्हार
नुकाएल बलात्कारी रूप
हरेक मर्दक भित्तर नुकाएल रहैत छै एकटा बलात्कारी रूप
जकरा चाही समय आ सहयोग,
आ हरेक घटनाकेँ पछाति
बदलि जाइ छै दृष्टिकोण महिलाक
चाहे ओ हमर माए-बहीनि होथि की महिला सहकर्मी वा की बाटपर चलैत कोनो
अन्य स्त्री
ओकरा सभ लेल घटनाक पछाति कोनो सम्बन्ध इयाद नै रहै
आ रहै जाइ छै मोन जे हम स्त्री छी आ ओ पुरुष
माए-बहीनि सेहो कनछिया कए
देखए लगैत अछि
आ महिला सहकर्मी सेहो....
ओना हमर माए-बहीनि केर परिवेश
आ हमर महिला सहकर्मी केर परिवेश भिन्न छै मुदा एहन घटनाक
पछाति
ओकर सभहँक मनोवृति एकै भए जाइत छै
हरेक स्त्री केर नजरिमे बनि जाइत छी अपराधी सन
आ नै रहि जाइए घमण्ड अपन मोछपर
लगैए जे जँ लागि जेतै आगि मोछमे तँ कतेक नीक रहितै
आ पहिल बेर हमरा अपन मोछपर घृणा होइए
आ हम कहियो ने कहि सकै छी जे बलात्कारी हम नै छी दोसर पुरूष
छै
कारण ई अपन जिम्मेदरीसँ भागब हएत
हँ हम आइ इ स्वीकार करै छी जे हरेक मर्दक भित्तर नुकाएल
रहैत छै एकटा बलात्कारी रूप
हम अपनाकेँ साधू-महात्मा बनेबाक लेल हरेक स्त्रीकेँ माए-बहीनि नै कहबै
मुदा हे स्त्री अहाँ जै स्वरूपमे हमरा लेल छी
चाहे माए-बहीनि रूपमे वा प्रेमिका, पत्नी, बाटपर चलैत आन
कोनो वा
हरेक रातिमे जागि क' अपना माथापर वेश्याक चिप्पी सटने
आइ हम लज्जित
छी अपन मर्द होमएपर
हम समवेत रूपसँ माफी मँगैत छी अहाँ सभसँ
२
किशन
कारीगर
डिनर डिप्लोमेसी
(हास्य कविता)
डिनर टेबल पर
परोसल अछि
मटर पनीर आ शाही
पनीर
छौंकल अछि घी देसी
आउ-आउ ई छी डिनर
डिप्लोमेसी।
हम सतारूढ़ दल वला
छी
आई सहयोगी दल वला
लेल
डिनर माने भोज
आयोजित भेल
हमरा समर्थन भेटल
खूम बेसी।
आब बाहर सँ समर्थन
देनिहार
बाकि रहि गेल छथि
त
आई हुनके नामे
राजनीतिक डिनर
ई छी डिनर
डिप्लोमेसी।
अहाँ सभ जे खाएब
हम अहाँक फरमाईस
पुराएब
मुदा एकटा गप कहि
दि हम
बाहरि समर्थन के
कहाबद्धि कराएब।
भरि पेट खाई जाई
जाउ
अहाँ जे खाएब से
हम खुआएब
मुदा ई कहू त
चुपेचाप रहब
आ की मध्यावधि
चुनाव करबाएब।
धू जी महराज अहूँ
त
एकदम ताले करैत छी
खाइत-पीबैत काल ई
गप नहि
पहिने दारू मँगाउ
अहाँ बिदेशी।
डिनर टेबुल के
नीचा मे देखू
बोतल राखल अछि
देसी-बिदेशी
भरि छाक पीब लियअ
ई छी डिनर
डिप्लोमेसी।
अच्छा ई कहू त
सरकार
एतेक खर्चा अपना
जेबी
आ कि सरकारी खजाना
सँ
हमरा ध लेलक
बेहोशी।
होश मे आउ गठबंधन
बचाउ
हम सत्ता मे छी की
कहू
अपनो खर्चा सरकारी
भेल बड्ड बेसी
ई छी डिनर
डिप्लोमेसी।।
कवि:- किशन कारीगर
आकाशवाणी दिल्ली।
फोनः- 9990065181
१.मुन्नी
कामत केर दुइ गोट कविता- बेटी-लहास/ बाल-श्रम २.प्रीति
प्रिया झा- कविता-कऽ देलखिन
उपकार महाशय
१
मुन्नी
कामत केर दुइ गोट कविता- बेटी-लहास/ बाल-श्रम
बेटी-लहास
एक-एक दिन बितल
पुरल एक मास,
अन्हार घरमे
सूतल छेलौं हम
नअ मास।
देखैक बहुत
जिज्ञासा छल हमरा
ऐ घरक मालिककेँ
जे नअ मास तक
बिनु कहले मेटबैत
अएल हमर
सभ भूख पियास।
आइ भेटत रौशनी हमरा
देखब हम संसारक चेहरा,
लेब हम आइ नव जीवनक साँस
पुरा हएत हमर आइ सभ आस।
आँखि बंद अछि
किछो देख नै सकै छी हम
मुदा महसुस भऽ रहल-ए
एगो ब्रज हाथ, जे
दबौचि रहल अछि
हमर कंठकेँ
एगो अवाज जे बार-बार
हमरा कान तक पहुँिच रहल अछि
बेटी छिऐ माइर दहिन!
बस रूकि गेल हमर साँस
बनि गेलूँ हम लहास।
बाल-श्रम
कुड़ा-कड़कट बीछ कऽ
बाबू नै हम
कोनो पाप करै छी,
अहाँकेँ गन्दगी
पहिले साफ करि
फेर अपन पेटक जोगार करै छी।
बाल-श्रम अछि जुलुम
बड़का-बड़का पोस्टरमे पड़लौं
पर अफसर आ नेतेक घरमे
नित काज करैत एलैं
जब पेटक आगि धधकैत अछि
तब ने कोनो
कागज-कलम सोहाइत अछि।
चोरी-चपाटीसँ तँ नीक
मेहनति करि दूगो रोटी खाइ छी।
२
प्रीति
प्रिया झा
कविता-कऽ देलखिन उपकार महाशय
कऽ देलखिन उपकार महाशय
बेटा बनि जनम की लेलखिन
लगैछ जेना अश्वमेघ यज्ञक
विश्वविजेता- श्रीराम वा पुष्यमित्र
पाग-मौर मुरेठा ओ पगरी
पहिरबाक उमेर भेलनि नै की
महाराजक भाव राजकुमारक ताउ
विकबाक लेल तैयार
सत्य हरिश्चन्द्र वचन खातिर
सेहो बिकल छलाह
मुदा! तैयो माथ निचाँ छलनि
एहेन वरदक कोन इज्जति
कोन मान....?
बचबू भगवान
एहेन दैत्यसँ
आर्यावर्त्तक नारीकेँ
चाम मोट, बोल चाखगर
तराजू कमजोर पासंग भरिगर
लाखक लाख टकाक संगे-संग
सोनाक गरदाम चारि चक्का चाही
किछु दिन पछाति एरोप्लेन मांगतथि
कनियाँ चाहियनि विश्वसुन्दरी
डूमि रहल समाज काटरक लीलामे
दुर्भाग्य जे नारीक शत्रु नारी
बापसँ बेसी माय पसारथि गोरथारी
जखन बेटीक माय
तखन कनैत अछि
जखन बेटाक माय
तँ मंगरैल बेटाकेँ
“वासमती” सन कनियाँ
चाहियनि
एक्केटा कन्यामे
सोल्होकला छत्तीसो गुण
समाजक अद्योगति उग्र भऽ गेल...।
१.राजदेव
मण्डलक तीन गोट कविता-शिशुक स्वर/ बोलती बन्न/ दिलक आवाज २.जगदीश
प्रसाद मण्डलक सातटा गीत
१
राजदेव मण्डलक तीनटा कविता- शिशुक स्वर/ बोलती बन्न/ दिलक आवाज
शिशुक स्वर
बन्न परसौति घर
चिचिआइत शिशुक स्वर
निकलैत सुगन्ध
मन्द–मन्द
शान्तिमे स्पन्द
मधुर आवाज
सजौने साज
कनैत बारम्बार
खोलत अनन्त संभावनाक दुआर
बनत नित-नूतन सिरजनहार
ऐ हेतु होए एहेन आधार
बढ़ै बुधि, विवेक, विचार
तत्काल चाही सुरक्षाक ढाल
देखू पाछू नचै छै काल
लेने छै वएह पुरना जाल
क्रन्दन स्वर पुछै सवाल
“की हरण
कऽ सकब अहाँ हमर दुख
देख रहल छी घातीक रूख
ताकि सकब अहाँ चिन्हल मुख
हएत कोनो मनुखे सन मनुख?”
बोलती बन्न
अभिभावककेँ सीख कानकेँ सुनाइत
हवामे चारू-भर गुनगुनाइत
“सम्हारि
कऽ चलिहेँ अपन चाल
नै तँ बाटेमे धऽ लेतौ काल।”
देश-दुनियाँ आगू बढ़ल
हम रहब ओझरा कऽ पड़ल
तैयो पैसल रहैत छल डर
काँपैत रहैत छलौं थर-थर
सुरक्षाक एतेक अछि समान
तँए ने देलिऐ गपपर धियान
आइ जाएत बे-वजह जान
राह भेल अछि सुन्न-मसान
आगू ठाढ़ भेल जमदूत समान
कर्कश स्वर सुनि ठाढ़ भेल कान
“मुँहसँ
जे निकलतौ अावाज
कियो ने देतौ अखन काज।”
हमर की गलती किअए भेल नाराज
“आइ गिरत
हमरेपर गाज
नजरि उठा देखलौं जी उड़ल सन्न
हमर भऽ गेल बोलती बन्न।”
दिलक आवाज
अन्तरमे रहैत अछि अमृत
बाहर बीख भरल अनघोल
प्रेमक नै कोनो मोल
भीतर शान्तिक खजाना अनमोल
दिलक बोलकेँ जारि-मारि
बजै छी हम दोसर बोल
शब्द दैत अछि दिलकेँ धोखा
खोजैत अछि बारम्बार मौका
कखनो शब्द दिलपर होइत अछि नाराज
कखनो दिलक बात कहैत शब्दकेँ होइत लाज
शब्द होइत जे दिलक आवाज
सभठाम होइत सत्यक राज
अन्तरमे बहुत सजबए पड़त साज
तखैन बनत शब्द दिलक आवाज।
२
जगदीश
प्रसाद मण्डलक सातटा गीत-
सालक विदाइ
भाव-अभाव बिनु केना फुटतै
फुटलोपर लेतै के यौ।
अभाव-भाव सुभाव सुधरि
दर्पण-दर्शन देखौतै यौ।
दर्पण-दर्शन......।
दर्पण साहित्य समाज कहि
दृष्ट–दर्शन छिपौलकै यौ।
एना-केना बाट बना
बटोही बाट भोतिऔलकै यौ।
बेटोही......।
एक्कैस-बीस समए ससरि
नचिनी नाच नचै छै यौ।
बिनु अखियासे जन-मरम
जिनगी भसान भसै छै यौ।
जिनगी......।
मोनि मन......
मोनि मन उमड़ि-घुमड़ि
बिढ़नी गीत गबैत रहै छै।
सिंह-बाघ धरती धमकि
पानि गोहि मोहैत रहै छै।
बढ़नी गीत......।
घटनी-बढ़नी कहि-सुनि
बढ़नी घटनी करैत रहै छै।
बढ़नी झाँट झाड़ि-झटिया
मारि बढ़नी मारैत रहै छै।
भाय यौ, बिढ़नी गीत......।
सेवा कहि-कहि सभ ठक
ठेका रस पीबैत रहै छै।
मुदा कि, पबिते जिनगीक रस सेवा
स्पद-प्रेम मिलि मीलि गबै छै।
स्पद-प्रेम......।
बिढ़नी गीत......।
सेड़ाइते......
मीत यौ, सेराइते सड़ै छै।
हेराइते हरै छै, डेराइते डरै छै।
मीत यौ, सेराइते सड़ै छै।
भात-बात बासि बसिया
बसिया-लसिया रूप धड़ै छै।
बसिया-टटका कहि-सुनि
दारू निशा चढ़बैत रहै छै।
दारू निशा......।
मीत यौ, सेराइते सड़े छै।
हेराइते हरै छै, डेराइते डरै छै।
वाह रे मन, इच्छित जीवन
चाहक हाल बुझैत रहै छै।
पानि कहि सेराएल चाह
हटा कात फेकैत रहै छै।
हटा कात......।
मीत यौ, सेराइते सड़ै छै।
हेराइते हरै छै, डेराइते डरै छै।
दिन-रातिक......
दिन-रातिक आँखि मिचौनी
अन्हरा-िदठड़ा खेल खेलै छै।
दिन-सुदिन कहि सुनि
निसभरि राति रमैत रहै छै।
अन्हरा-दिठरा......।
दिन दुख घिसिया-तिरिया
नित-नीन नश-नश भरै छै।
अधा जिनगी उला-पका
अधे आँखिक बीच उड़ै छै।
अधे आँखिक......।
दिठड़ा डेग बढ़ि-बढ़ा
लपकि बाँहि अन्हरा पकड़ै छै।
पकड़ि बाँहि नूनू-दूनू
राति काटि प्रभाती गबै छै।
राित काटि......।
अन्हरा दिठड़ा......।
अबिते आंगन......
अबिते आंगन अलकि-झलकि
दोग-सान्हि देखए लगै छै।
दोगे-दोग दौड़ देखि
अलकक चान दौड़ए लगै छै।
अलकक......।
सोनि-सानि शून सन्हिया
उगडुम डुमउग करए लगै छै।
उगि-डूमि डुककुनिया मारि-काटि
चितंग हेल हेलए लगै छै।
चितंग......।
जहिना लहास धरि भसि
चीत-पट परिचय करए लगै छै।
अलकि-फलकि अलि-अल कहि
अलकक चान देखए लगै छै।
अलकक......।
समाज सजल......
समाज सजल छै छिपाड़-उकट्ठी
छीप-उकठपना बेवसाय बनल छै।
रंग-बिरंग समाज गढ़ि-मढ़ि
रंग-रंग छीप कटैत रहै छै।
भाय यौ, रंग-रंग......।
आस-वियास बनिते जहिना
चोर-माखन कृष्ण कहै छै।
गोप-गोपी बीच उमकि
कहि उमकि उकठपन कहै छै।
भाय यौ, कहि उमकि......।
भावो लोक तहिना भवए
मारि सेन्ह काटि कहै छै।
शास्त्री, शब्दशास्त्री कहि
कर्ता-धर्ता ब्रह्म कहै छै।
मीत यौ, कर्ता......।
सभ मिलि......
सभ मिलि हमरा बाड़ि देलकै।
अपना समाजसँ टारि देलकै।
सभ मिलि हमरा बाड़ि देलकै।
बनि-बनि बदलि-बदलि
वारिस वर्ष बादल कहौलकै।
माटि-छोड़ि बालु पकड़ि
अपने मुँह अपने भरलकै।
मीत यौ, अपने मुँह......।
अपना समाजसँ टारि देलकै।
बाड़ि चोरवत्ती देख अन्ह
अन्है जलधर बसौलकै।
बास बासुकि कहि-कहि
सिर शिव मलि मललकै।
मीत यौ, शिव मलि......।
अपना समाजसँ टारि देलकै।
चास-बास-अगवास बनि वन
सिरा आगू पीड़ा सजौलिऐ।
सिर आगू पीड़ सजौलिऐ।
पंच-एकक फन्द फड़ि फल
मेव पंच प्रसाद बँटलिऐ
मीत यौ, मेव......।
१.राम विलास
साफी- पढ़ल-लिखल
तनि गौर करियो बबूआ २.सन्तोष कुमार मिश्र- गुलामी डे ३.जितेन्द्र ‘जितु’- गरीबीक जाड़/ कथी लए...? ४.राजेश
कुमार झा- जों
अहाँ नै छी
१
राम विलास
साफी
पढ़ल-लिखल
तनि गौर करियो बबूआ
पढ़ल-लिखल तनि गौर करियो बबूआ
कैसन-कैसन ढोंगी रचए उपाए
कत्थरकेँ टुकरिया जखन पहाड़ पर रहलै
तब टुकरिया पत्थले कहाय।
वहए रे टुकरिया जखन पंडित घर अइलै
ठाकुरजी हो हुनकर नाम कहाय।
जब ई ठाकुरजी पंडित घरे रहियेँ
महिनो-महिनों रहिये खुंटीमे टंगाय।
जखने ओ न्योता जजमान घरे एलाह
खुटियोसँ ठाकुरजी झोड़ामे धड़ाय।
पढ़ल-लिखल तनि गौर करियो बबूआ।
जखने पंडित जजमान घरे पहुँचलाह
तुरन्त देलकनि ओडर हो सुनाय
गइयाकेँ दुघवामे कुलकुलिया हो जाय
पढ़ल-लिखल तनि गौर करियो बबूआ।
एम.ए, बी.ए बिटबासँ गोबर पुजेथुन।
ऊपरसँ लेथुन एकावन टका मंगाय।
ठाकुरजीकेँ झपे खातिर सवा गज कपड़ा लेथुन
सियाइ लेथुन पंडिताइनक आंगी।
पढ़ल-लिखल तनि गौर करियो बबूआ।
जखने ओ सत् नारायणक कथा सुनौता
बनियाँ नामक कथा ओ सुनोतुहुन
बनियाँ जखन पूजा कऽ प्रसाद नै खेलकै
लादल जहाज जँ हुनकर डुमि जाय।
पढ़ल-लिखल तनि गौर करियो बबूआ।
लकड़हारा जखने पूजा कऽ प्रसाद नै खैलकै
खेलैत बेटा वहीं जाय।
जखन ओ पंडित अछुत घर पूजा ओ कराबे
तखने पंडित अछुत घरक प्रसाद नै खेलकै
पंडितक बेटा िकअए नै परि जाइ।
पढ़ल-लिखल तनि गौर करियो बबूआ।
२
सन्तोष
कुमार मिश्र, काठमाण्डू, नेपाल
गुलामी डे
अवाद छलहुँ
बरवाद भेलहुँ
स्वाद लेलहुँ तरकारीके
नोकरी तँ निके छल
मुदा नहि छल सरकारीके ।
अवाद छलहुँ
बरवाद भलहुँ
स्वाद लेलहुँ तरकारीके
नोकरी तँ निके छल
तैयो, इडियट
अन्तरवार्ता लऽकऽ
देलनि छाप गुलामीके
नोकरी तँ निके छल
मुदा नहि छल सरकारीके ।
अवाद छलहुँ
बरबाद भेलहुँ
स्वाद लेलहुँ तरकारीके
खर्च बढ़ल
चर्च बढ़ल
खालियो जेब केर सर्च बढ़ल
मुदा, नइ बढ़ल
बाट आमदनीके
नोकरी तँ निके छल
मुदा नहि छल सरकारीके ।
अवाद छलहुँ
बरवाद भेलहुँ
लाज कम
समाज कम
बाल बच्चा दर्जनमे छल
देख–भाल
करैत–करैत
बितल दिन गुलामीमे
नोकरी तँ निके छल
मुदा नहि छल सरकारीके ।
कजन सभ दर्जनमे छल
गर्जन करैत दिन आ राति
अपन सेहो थप–थाप
भऽकऽ
गनती चलि गेल सोरहीमे
चैन परिणत भऽ गेल बेचैनी मे
नोकरी तँ निके छल
मुदा नहि छल सरकारीके ।
जनम दिन किनको,
मरन दिन किनको
पावनि–तिहारक
लाइन चलैत
अपनो एक बेर बरबादी डे
नोकरी छोड़ि धुमधामसँ
मना रहल छी बरबादी डे
आशीर्वाद देनिहार सबहे लोक कहलनि
आइ–काल्हि
आ नित दिन,
सबहे महिना, सबहे
शाल आ सबहे जुगमे
मनैबैत रहू गुलामी डे
नोकरी तँ निके छल
मुदा नहि छल सरकारीके ।
३
जितेन्द्र ‘जितु’- गरीबीक जाड़/ कथी लए...?
गरीबीक जाड़
–
आरिपर ठाढ़ बुचकुन बाबू
देख रहल छथि ननुवाकेँ
नुनुवा हुनक हरवाह
काज कऽ रहल अछि
अपन कनिया आ बालबच्चाक संग
पुसक कुहेसा आ बिसबिस्सीक बिच
फाटल चेथराक बलपर खटैत ओकर परिवार
अनायास अपना दिन ताकै छथि ओ
मोट–मोट ऊनी कपड़ा, कोट गुलबन्द आ टोपी
तइपर ओसबालक ऊनी चादर
मुदा तैयो हवाक प्रत्येक वेगसँ
शरीरमे उत्पन्न भऽ रहल कम्पन
हुनका सोचबाक लेल बाध्य करैत अछि
जे कोना चेथराक बलपर खटि रहल अछि
नुनुवा आ ओकर नेना सभ
स्तब्ध नजरिसँ ओ देखै छथि पुनः नुनुवा दिस
आ नुनुवा सेहो नजर उठा देखैत अछि हुनका
दिस
नुनुवाक हँसमुख मुखार बृन्द
आ सन्तुष्ट नजरि
जेना कहि रहल हौ
मालिक ई तँ गरिबीक जाड़ थिकै
अहिना आबैत छै, अहिना कटैत छै
अहिना आबैत छै, अहिना कटैत छै
२
कथी लए...?
औ किएक ई बन्दूक...?
ई लाठी कथी लए...?
किएक मशाल...?
ई आन्दोलन कथी लए...?
अहाँकेँ मधेश आ थरुहट अहँाक?
अहाँक चुरेभावर आ खम्बु
लिम्बु अहाँक?
आखिर किए ई मारि?
आ ई आन्दोलन कथी लए...?
अस्तित्वक लेल संघीयता
मुदा ओतहु विभाजन
अधिकारक नामपर किएक ई द्वन्द्व...?
ई द्वन्द्वपूर्ण आन्दोलन कथी लए...?
औ ई तँ कुर्सीक खेल थिकै,
सत्ताक लेल थिकै
राजनेताक दाव थिकै
राजनीतिक घाव थिकै
ओ तँ लड़ेबे करताह
ओ तँ भिड़ेबे करताह
हुनकर तँ बाते छोड़ू
ओ तँ ओझरेबे करताह
मुदा अहूँ स्वविवेकी छी
अपन विवेक कथी लए...?
कथी लए बन्दुक...?
किए मशाल...?
हे हौ विखण्डन कथी लए...?
हम मैथिल छी, नै पहिने नेपाली
हम थारु छी, नै पहिने नेपाली
हम पहाड़ी, नै पहिने नेपाली
हम मधेशी, नै पहिने नेपाली
हमहूँ नेपाली, अहूँ नेपाली
तखन विभेद कथी लए...?
कथी लए बन्दुक...?
किएक मशाल...?
हे हौ विखण्डन कथी लए...?
ध्वस्त भेल अफगानकेँ देखू
उजडि गेल इराक ओतए
मिटा रहल ओइ पाककेँ देखू
भातृद्वन्द्वक बिज तर
अपन राष्ट्र थिक, अपन धरोहर
तखन ई झगड़ा कथी लए...?
कथी लए बन्दुक...?
किए मशाल...?
हे हौ विखण्डन कथी लए...?
भागलै राजा गणतन्त्र
एलै हौ
जाग जाग परतन्त्र गेलै हौ
छऽ कि तोरा...?
बाटबऽ तोँ की...?
कि अरजलहा...?
फाटबऽ तोँ की...?
जेहने ओ अछि, तेहने हमहूँ
तखन ई रगड़ा कथी लए...?
कथी लए बन्दुक...?
किए मशाल...?
हे हौ विखण्डन कथी लए...?
ओकर बपौती नेपाल नै छिऐ
वएह टा कोनो नेपाली नै छिऐ
हमर नेपाल छी हमहूँ नेपाली
तखन विभाजन कथी लए...?
कथी लए बन्दुक...?
किएक मशाल...?
हे हौ विखण्डन कथी लए...?
मिलि सम्वृद्ध नेपाल
बनाबी
अपन नवीन इतिहास रचाबी
उठू जागू बन्हा जाउ एक सूत्रमे
एकताक संस्कार जगाबी
नब नेपालमे सभ नेपाली
जेहने मधेशी, ओहिने पहाड़ी
ककरो बिच नै रहत विखण्डन
विभेद, विभाजन कथी लए...?
कथी लए बन्दुक...?
किए मशाल...?
हे हौ विखण्डन कथी लए...?
४
राजेश
कुमार झा- जों
अहाँ नै छी
जों अहाँ नै छी, दिलमे धरकन नै यऽ
मरल समान लागै
छी, शरीरमे
जाने नै यऽ
निठला बैसल रहै छी, किछु करइक जोशे नै यऽ
जों अहाँ नै छी, फूलो मे महक नै यऽ
दिन बजर समान लगैए, रातियोमे नींद नै यऽ
मौसम ठहरि सन गेल, बहार मे ख़ुशी नै यऽ
जों अहाँ नै छी, आँखिमे ओ चमक नै यऽ
मुस्कुराइक कोशिश करै छी, ठोर पर हँसी नै यऽ
अहाँ सँ दूर रहैक, जीबैक चाहत नै यऽ
जों अहाँ नै छी, घर मे ओ दमक नै यऽ
कान तरसि गेलह, ओ पायलक आवाज नै यऽ
हर पल विरान लगैए, कतौ विरहक उदासी तँ
नै यऽ
जों अहाँ नै छी, ई जिन्दगी-
जिन्दगी नै यऽ
१.बिनीता
झा- अही
देशक बेटी हम २.कामिनी कामायनी -खिलैत पलास वन३. ज्योति झा चौधरी- शब्दमे उत्सव
१
बिनीता
झा
अही देशक बेटी हम
अही देशक बेटी हम
ने होमए देबै ककरो अपमान
किए क्षमा करिऐ ओकरा
जे नै कए सकैत अछि नारीक सम्मान?
किए भरोस करिऐ ओकरा पर
जे नै भऽ सकल मनुखक संतान?
नै होइतथि नारी
तँ जन्म कोना लैतौं,
नै होइतथि नारी
तँ बहिन के होइतथि
नै होइतथि नारी
तँ कनियाँ कतएसँ तकितौं
नै होइतथि नारी
तँ बेटी ककरा कहितिऐ
नै होइतथि नारी
तँ सृष्टि कि चलैत?
जागू, सोचू, विचारू
सभ नर, नारी
की होमए देबै
अहाँ नारीक अपमान?
अही देशक बेटी हम
नै चुप बैसि कानब,
करब ओकर प्रतिकार
जे करत हमरा संग अतिचार
ऐ लड़ाइमे हम एकसरे ने
संगे छथि हमर सखी, सखा
जे करै छथि
नारीक सम्मान l
२
कामिनी
कामायनी
खिलैत पलास वन
खिलैत पलास वन ।
धरती सँ उनचास हाथ ऊपर/
उठल जे /प्रदीप्त मशाल/
भक, भुक, करैत/ मिझा गेल हुअए/
तँ ऐ मे
बसातक कोन दोष ?
ओकर तँ अप्पन प्रवृत्ति/
ओ,
समर्थ/ ओ शक्तिमान।
मुदा, मिझैल मशाल/
ठाढ़ तँ ओहिना/
अप्पन, दुर्गतिक खिस्सा कहैत/
खसा रहल अछि/ दुनु आँखि सँ झर-झर नोर/
ई केहेन इजोर/
नै राति/ नै भोर/
चारू दिस / बिछल/ बर्फक सफेद चादरि/
छोट छोट/मोमक बाती/
आ कत्तेक
पैघ उदासी/
ई कोन व्रत/ ई कोन उपास/
मुदा तैयो/ मोनमे जमल जा रहल छै आस/
कि जे देवता/ पितर केँ /अप्पन निष्ठा आ प्रेम
सँ/
गोहराबैत /आस्था केँ जीवित राखल /
मानवीय संबंध केँ /मन प्राण मे सइतने /
जुग जुग सँ ओकर कुशल भाखैत/
आइ फेर ओ
जागि उठल अछि/
मनबै ले ब्रम्हा केँ/
चाही ओ रक्षा कवच/
लिखल ताड़ पत्र पर/
जे दनुज, दैत्य ,राकस केँ दंड
हुअए निश्चित/
नारीक चीर हरण/ करै नै दुष्ट जन/
रूप दिअ दुर्गा
केँ / शक्ति दिअ काली
केँ /
काँपि उठैक सोचि कऽ धृष्टता असुर जन /
कतबो अनहर हुअए/ विश्वास आब संग छै/
पात पात झड़ल /डाढ़ि पर/ खिलतै पलास वन/
एतबे मे/
आबए बाला
ऋतु / कहि गेलै
कान मे/
पाछाँ करू नै आब अपन वाण/
तैयार दधीचि ओ छथि/
देबए फेर सँ/ अपन अस्थि दानमे।
३
ज्योति झा चौधरी
शब्दमे उत्सव
प्रयासक अमृत रससँ सींचित
रहय सदैव विदेहक फुलवाड़ी
आखर मे अभिव्यक्त कय
उत्सव केँ शब्द
मे उतारी
तिला संक्रान्तिक
घूर तापैत
खोली नव सुबोधक पेटारी
वसन्तक धवल आवरण पर
प्रार्थनाक सुमन
सस्नेह सँवारी
साहित्यक विविध शैली भरने
इन्द्रधनुषी फगुआक पिचकारी
शीतल शब्दक औषधि लऽ
गरमीक सूरज पन्ना मे निहारी
बरसातमे विचारक बूँदा बूँदी
सँ अपन लेखनी
सिक्त करी
जाड़क त्राहि सँ त्राण
पाबै लेल
नवल उत्साहक ऊष्मा पसारी
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4. रचना/ प्रस्तुतिमे की कोनो आर त्रुटि भेटल ।
5. रचना/ प्रस्तुतिपर अहाँक कोनो आर सुझाव ।
6. रचना/ प्रस्तुतिक उज्जवल पक्ष/ विशेषता|
7. रचना प्रस्तुतिक शास्त्रीय समीक्षा।
अपन टीका-टिप्पणीमे रचना आ रचनाकार/ प्रस्तुतकर्ताक नाम अवश्य लिखी, से आग्रह, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ त्वरित संदेश प्रेषण कएल जा सकय। अहाँ अपन सुझाव ई-पत्र द्वारा editorial.staff.videha@gmail.com पर सेहो पठा सकैत छी।
"विदेह" मानुषिमिह संस्कृताम् :- मैथिली साहित्य आन्दोलनकेँ आगाँ बढ़ाऊ।- सम्पादक। http://www.videha.co.in/
पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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