ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह'१२६ म अंक १५ मार्च २०१३ (वर्ष ६ मास ६३ अंक १२६)
ऐ अंकमे अछि:-
३.८.१.बृृषेश
चन्द्र लाल- कहिआधरि
ढुनैत रहब !
२.कामिनी
कामायनी- ई
केक्कर शोणित ?/खिड़की/भरोस ३.मुन्नी
कामत जीक दू गोट कविता
विदेह
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VIDEHA ARCHIVE विदेह आर्काइव
ज्योतिरीश्वर पूर्व महाकवि विद्यापति। भारत आ नेपालक माटिमे
पसरल मिथिलाक धरती प्राचीन कालहिसँ महान पुरुष ओ महिला लोकनिक कर्मभमि रहल अछि। मिथिलाक महान पुरुष ओ महिला लोकनिक चित्र 'मिथिला रत्न' मे देखू।
गौरी-शंकरक पालवंश
कालक मूर्त्ति,
एहिमे मिथिलाक्षरमे (१२०० वर्ष पूर्वक) अभिलेख अंकित अछि। मिथिलाक भारत आ नेपालक माटिमे पसरल एहि तरहक अन्यान्य प्राचीन आ नव स्थापत्य, चित्र,
अभिलेख आ मूर्त्तिकलाक़
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मिथिला, मैथिल आ मैथिलीसँ
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संपादकीय
१
मैथिलीमे गजल भैये नै सकैए, कहले नै जा सकैए,
से गप आब कियो नै बजै छथि। कारण गजल, बहर
युक्य आ आजाद, दुनू मैथिलीक पाठककेँ हिलोरि देने छै। मुदा
भक्ति गजल, बाल गजल आदिक सन्दर्भमे किछु गोटेक मत छन्हि जे
गजल गजल छिऐ, से ओकर विभाजन नै कएल जाए। मुदा भक्ति गजल आकि
बाल गजल गजलक विभाजन नै, गजलक स्पेसिअलाइजेशन छी। हाइकूक
निअमक पालन करितो जँ प्रकृतिपर नै लिखलौं तँ ओ भेल शेनर्यू। कबीरक उलटबासीक
प्रभाव अछि आकि ई गजलक स्वभाव अछि जे एतऽ प्रेमक महत्व छै, भक्ति प्रेमक संगे अबै छै, आ कने उलटबासीक संग जेना
प्रेम अबै छै तहिना भक्ति। मुदा ई भक्ति झझा दैत अछि।
अमित मिश्र लिखै छथि:-
विषकें पी नीलकण्ठी छी बनल यौ
होश दैवक उड़ल से जीयेलौं अहाँ
तखने जगदीश चन्द्र ठाकुर "अनिल लिखै छथि:-
तों
विपत्तिमे दौगल अएलें
हम तोरे
हनुमान बुझै छी
२
वीणा ठाकुर जीक साहित्य अकादेमी दिल्लीक
मैथिली परामर्शदात्री समिति- (धूर्त-समागम वर्सन २०१३-१७) ऐमेसँ असाइनमेण्ट बला साहित्यकार, रिपीटेड आ साहित्य दुनियाँ सँ कोनो सरोकार नै रखनिहार सभ
शामिल छथि, जेना कामदेव झा, कुलानंद झा,
नरेश मोहन झा, रवीन्द्रनाथ झा आदिक नाम ब्राह्मणवादी
पत्रिका टा पढ़निहार सेहो नै सुनने हेता।) -पूर्ण लिस्ट अछि:- कामदेव झा, ललिता झा, अशोक कुमार झा, शंकरदेव
झा, कुलानंद झा, नरेश मोहन झा, खुशीलाल झा, रवीन्द्रनाथ झा आ गलतीसँ
झा-झाएक्सप्रेसमे डा॰ शिव प्रसाद यादव सेहो चढ़ि गेला।
गजेन्द्र ठाकुर
ggajendra@videha.com
आशीष अनचिन्हार
भक्ति गजल
जखन विदेह द्वारा बाल गजल विशेषांक निकलल
रहए तखन केओ नै सोचने रहए जे एतेक जल्दिए गजलक नव प्रारूप " भक्ति गजल " विकिसित भए जाएत। मुदा से भेल आ ताहि लेल सभसँ बेसी धन्यवादक पात्र छथि ओ
लोक सभ जे की गजलक निंदा करैत छथि। कारण जँ ओ सभ नै रहितथि तँ आइ गजले नै रहितै..
बाल आ भक्ति गजलक तँ बाते छोड़ू।
की थिक भक्ति गजल--
जहाँ धरि भक्ति गजलक विषय चयन केर बात थिक
तँ नामेसँ बुझा जाइत अछि ऐ गजलमे भक्ति केर वर्णन रहैत छै। तथापि एकटा परिभाषा
हमरा दिससँ ----" एकटा एहन गजल जाहि महँक हरेक शेर भक्ति मनोविज्ञानसँ बनल हो
आ गजलक हरेक नियमकेँ पूर्ववत् पालन करैत हो ओ भक्ति गजल
कहेबाक अधिकारी अछि"। जँ एकरा दोसर शब्दमे कही तँ ई कहि सकैत छी जे भक्ति गजल
लेल नियम सभ वएह रहतै जे गजल लेल होइत छै बस खाली विषय बदलि जेतै। मे भक्ति गजल
बाल गजले जकाँ छै।
की भक्ति गजल लेल नियम बदलि जेतैः
जेना की उपरमे कहल गेल अछि जे भक्ति गजल लेल
सभ नियम गजले बला रहतै बस खाली एकटा नियमसँ समझौता करए पड़त। माने जे
बहर-काफिया-रदीफ आ आर-आर नियम सभ तँ गजले जकाँ रहतै मुदा गजलमे जेना हरेक शेर
अलग-अलग भावकेँ रहैत अछि तेना भक्ति गजलमे कठिन बुझाइए। तँए हमरा हिसाबेँ ऐठाम ई
नियम टूटत मुदा तैओ कोनो दिक्कत नै कारण मुस्लसल गजल तँ होइते छै। अर्थात भक्ति
गजल एक तरहेँ " मुस्लसल गजल " भेल।
किछु लोक आपत्ति कए सकै छथि जे गजल तँ दार्शनिक
रहिते छै तखन ई भक्ति गजल किएक ? उचित प्रश्न मुदा हम कहब जे दर्शन आ भक्ति
दूनूमे बहुत अंतर छै जकर चर्चा विद्वान सभ करिते रहै छथि तँए ई भक्ति गजल दर्शन
बलासँ अलग भेल।
तारीखक हिसाबें भक्ति गजलक उत्पति केँ मानल
जाएत जनवरी 2012केँ मानल जाएत जाहिमे जगदानंद झा मनु जीक भक्ति गजल आएल।
मुदा ओहूसँ पहिने मिहिर झा द्वारा एकटा आएल जे ताहि समयकेँ हिसाबसँ ठीक छल मुदा
बढ़ैत ज्ञानक सङ्ग ओहिमे काफिया आदिक दोष बुझना गेल। मुदा भक्ति
गजल स्वरूप
मैथिलीमे पहिनेहें फड़िच्छ भए चुकल छल। मैथिलीक प्रारंभिके दौरमे भक्ति गजल शुरुआत भए चुल छल कविवर
सीताराम झा आ मधुप जीक गजलसँ सेहो शुद्ध अरबी बहरमे। मने 1928 धरि भक्ति गजल पूर्ण रूपेण स्थापित भए गेल छल मैथिलीमे।
तँ एतेक देखलाक पछाति आउ देखी कविवर सीता
राम झा आ ओहि समयक किछु भक्ति गजल---तँ आउ देखी 1928मे प्रकाशित
कविवर सीताराम झा जीक " सूक्ति सुधा ( प्रथम बिंदु )मे संग्रहीत एकटा गजलकेँ जे
की वस्तुतः " भक्ति गजल " अछि---
जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी
हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि बैसल
छी
न कैलों धर्म सेवा वा न देवाराधने कौखन
कुटेबा में छलौं लागल तकर फल पाबि बैसल छी
दया स्वातीक घनमाला जकाँ अपनेक भूतल में
लगौने आस हम चातक जकां मुँह बाबि बैसल छी
कहू की अम्ब अपने सँ फुरैये बात ने किछुओ
अपन अपराध सँ चुपकी लगा जी दाबि बैसल छी
करै यदि दोष बालक तँ न हो मन रोख माता कैं
अहीं विश्वास कैँ केवल हृदय में लाबि बैसल
छी
एकर बहर अछि-1222-1222-1222-122
मने बहरे हजज
नोट--१) कविक मूल वर्तनीकेँ राखल गेल गेल
अछि। विभक्ति सभ अलग-अलग अछि जे की गलत अछि।
२) कवि द्वारा चंद्र बिंदु युक्त सेहो
दीर्घ मानल गेल अछि जे की गलत अछि। प्रसंग वश ईहो कहब बेजाए नै जे कविवर अपन गजल
समेत सभ कवितामे चंद्रबिंदुकेँ दीर्घ मानि लेने छथि। शायद तँए पं गोविन्द झा जी
सेहो चंद्र बिंदुकेँ दीर्घ मानै छलाह आ जकर खंडन भए चुकल अछि।
ऐकेँ अलावे मधुप जीक भक्ति गजल अछि। विजय
नाथ झा जीक भक्ति गजल अछि। कहबाक मतलब जे अनचिन्हार आखरक आगमनसँ पहिनेहे भक्ति गजल
छल मुदा ओकर नामाकरण ( पहिल रूपमे जगदानंद झा मनु ) अनचिन्हार आखरक
पछाति भेल।
वर्तमान समयमे हमरा छोड़ि लगभग सभ गजलकार
भक्ति गजल लीखि रहल छथि जेना , जगदानंद झा मनु, चंदन झा, अमित मिश्र, पंकज
चौधरी नवल श्री, बिंदेश्वर नेपाली, सुमित
मिश्र, श्रीमती शांति लक्ष्मी चौधरी, श्रीमती
इरा मल्लिक, ओम प्रकाश, बाल मुकुन्द
पाठक, जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल, मिहिर
झा, प्रदीप पुष्प, अनिल मल्लिक,
राजीव रंजन मिश्र इत्यादि-इत्यादि।
ऐ विषयमे आर अनुसंधानक जरूरति अछि ऐ छोट
आलेख आ हमर छोट बुद्धिमे भक्ति गजल एहन विस्तृत वस्तु ओतेक नै आएल जतेक एबाक चाही।
ओना हम फेर विदेहकेँ ऐ विशेषांक लेल धन्यवाद नै देबै कारण हमहूँ विदेह छी आ लोक
अपना आपकेँ धन्यवाद कोना देत।
१.ज्योति चौधरी-एक युग: टच वुड -भाग-२ २.अवनीश मण्डल- विहनि कथा- गप्पक खाैंइचा ३.मुन्नी
कामत -एकांकी- पात-पातसँ बनल
परिवार
१
ज्योति चौधरी
एक युग: टच वुड - भाग २
हम कहैत छी लगभग, कारण हमर जखन
ब्याह भेल हमर पतिक उम्र 30 साल रहनि आ हमरा सभ लग समय नै छल जे
हम सभ ८-१० साल प्रतीक्षा करितौं बच्चाक लेल, से
स्वभाविक छल जे हमर सबहक विवाहक बड्ड विशेष स्वप्न छल अपन बच्चा। अपन नैहरमे हम बहुत बच्चा जकॉं रहैत रही तैं
हमर पतिदेवकेँ विश्वासे नै छलनि जे हम कोनो मुश्किल समयमे हुनकर संग देबनि। हम हुनका लग नाटक करियनि जे हम
छोट छी तइ कारणे ओ हमरापर
विश्वास नै कऽ रहल छथि। हमर ऐ नाटकक असर ई छल जे हुनका दस साल
लागि गेलनि ई कहैमे, जे
सच्चे अहॉंक कद छोट अछि। हम अपन चलाकी मात्र अपन मॉंकेँ कहने रहियनि। सासुरमे बजितौं तँ सभ तुरन्त
खुलाशा कऽ दितथि। परिणामस्वरूप
हमर पतिदेवक व्यवहार सेहो बदलि जैतनि। मुदा हम बुझैत रहिऐ जे ई हुनकर डर बा अज्ञानता नै छलनि बल्कि
बढ़िया शिष्टाचार छलनि जे ब्याहमे
कतेक दिन चलि सकैत छै। हमर मानब अछि जे ब्याहक किछु साल बाद पति-पत्नीमे औपचारिकता
नै रहि जाइ छै आ तकरे बाद ई
परख होइत छै जे के बेसी नीक इन्सान छथि। नीक मतलब
व्यवहार आ विचार सँ नीक भेनाइ जे सर्वप्रथम
परिवार, दोसर पाठशाला आ तेसर कार्यक्षेत्र, ऐ तीनूक असर होइ छै। आर्थिक परिस्थितिसँ मूल सिद्धान्तपर असर नै एबाक चाही।
हमर पतिदेवक आदर्श बड़ ऊँच छलनि। हुनकर ई असर
छलनि जे दियादनी सभकेँ चपटने रहै
छलखिन मुदा हम सासुरमे हमेशा डेरायले रहै छलौं। आ
वापस अपन घर लौटलापर एको बेर परिवार बा संगीक
कुनो चर्चा केनाइ सम्भव नै छल। जहिया चर्चा करी तँ अगिला दिन खाना बना कऽ बैसल बाट ताकैत रही आ ओ जरूरी
काजमे फँसल रहै छलथि। बहुत बेर हमर
बहस भेल जे अकरा तँ जिम्मेवारीसँ भागनाइ कहैत छै मुदा हुनका लग कुनो जवाब नै रहनि। परिवारमे छोट हेबाक सभ्यता आ काजमे नब होइक बहाना। ओना हम मानैत छी जे एक मध्यवर्गीय परिवारक होइतो हमर पतिदेव कम उम्रमे एक बहुराष्ट्रीय कम्पनीमे कार्यरत छलथि आ बहुत संगी साथीसँ घिरल रहै छलथि। संगी सबहक
पत्नी सभ हुनका बड्ड पसन्द करैत
छलनि। देखैमे तँ नीक रहैथे, संगे घरक खर्चा सम्हारैमे तँ बेसीये सक्कत हाथ रहनि। हम कहियो हुनकर बिल नै सम्हारलौं। बस हमरा ई बुझल रहए जे
हमरा कारणे कोन बिल बेकारमे बढ़ि रहै छै।
हुनकर बहुत
संगी सभ छलनि आ अपन अविवाहित जीवनमे ओ पार्टी सभमे व्यस्त रहैत छलथि। जौं हम ओहेन स्वतंत्र आ रंगीन जीवन बितेने रहितौं आ पुरूष रहितौं तँ मुम्बइ कखनो नै छोड़ितौं। ओहुना जौं मात्र हम अपने दऽ सोची तैयो
हमरा मुम्बइक बड्ड मोन पड़ैत
अछि। सते ओ स्वप्न नगरी छै। हमर हृदय आ
आत्मा बेर-बेर ओतै घूमैत रहैत अछि। चारकोपक ९० फीट रोड, मन्दिर, पेण्टिंगक दोकान, रासनक दोकान, माछक
बजार, पानीपुरीक ठेला, हरियर
भाजीक दोकान,
गोविन्दाक खेल, घर-घरमे
गणपति विराजित करैक प्रथा,
दुर्गापूजाक दाण्डिया आ आरो मारिते याद जे
ऑंखिमे पानि आनि दैत अछि। ई बम्बइ शहर छल
जतए हम सॉंझमे भगवानक पूजा केनाइ शुरू केने रही। कारण ओतए सॉंझमे घरपर फूल बेचए आबै
छलै आ हमरा फ्रीजमे फूल राखि कऽ भोरे भगवानकेँ चढ़ेनाइ नै पसन्द छल। आ बीच-बीचमे
हम भोरे-भोर काजपर सेहो भागैत रही। सब्जी भाजीक
खरीदारीमे हम बहुत गुजराती आ मराठी सेहो सीख गेलौं। जेना ओतए चाउरक चोखा, आलूक बटाटा, मटरक
बटाटा, प्याजक कान्दा, धनिया
पत्ताक कोतमीर आदि होइत छलै।
हमर पतिदेव ऐमे बेसी जानकार
छलथि जेनाकि हमर पिताजी बंगाली आ उड़िया बड्ड
बढ़ियासँ बाजि आ बुझि
लैत छलथि। हमरा मोन अछि जे जखन हम बाबुजी संगे बजार जाइ तँ हुनका
बेसी काल देखियनि मिरचाइवालीसँ पुछथिन- “लंका मिष्टी
होबे की नाई?” मिरचाई मीठ अछि की नै? आ ओ खिसियाइ- “लंका केमोन कऽरे
मिष्टी होबे?” मिरचाइ कोना मीठ हेतै।
हमर सभसँ बढ़िया
समय बियाहक बादक छल जखन सप्ताह भरिक काजक बाद हम दुनु सप्ताहान्तमे घरमे शान्तिसँ समय बिताबै छलौं।
नौकरानीकेँ सेहो
सप्ताहान्तमे नै काज रहैत छलै
कारण हमरा घरक काज अपने केनाइ पसन्द
छल। हम सभ शनि दिन साईंधाम मन्दिर जाइत छलौं आ घुरती काल खरीदारी करैत बाहर खा कऽ घर लौटैत छलौं। घर आबि कऽ तरकारी काटि कऽ सप्ताह भरिक
खानाक तैयारी करै छलौं फेर
पूरा परिवारसँ बात करैत छलौं आ फेर देर राति
तक बॉलीवुडक फिल्म देखैत छलौं। लोकल
विडियो क्लबक मेम्बर बनल छलौं से जे सभसँ नब
फिल्मक सी. डी. ओकरा
लग रहैत छलै से दऽ जाइत छल। परिवारसँ बात
केनाइ तँ टॉनिक छल हमरा लेल, नब शहरमे। आ
देर तक फिल्म देखैक परिणामस्वरूप रविदिन सुतनाइ। सुतनाइ।। आ सुतनाइ।।।
२
अवनीश मण्डल
विहनि कथा
गप्पक खाैंइचा-
स्कूलमे सरजी सँ पुछलियनि-
“सरजी, खोंइचा छोड़ाएल
गप केहेन होइ छै?”
सरजी कहला-
“हौ बौआ, गपे तीन रंगक
होइ छै। एकटामे खोंइचा होइते ने छै, दाेसरमे गुड़मी-खीरा जकाँ पातर
होइ छै आ तेसरमे बेल जकाँ तेहेन सक्कत होइ छै जे ओ सोहेबे ने करैए।”
३.
मुन्नी
कामत -एकांकी- पात-पातसँ
बनल परिवार
प्रथम-दृश्य-
(बड़की भौजी असगरे तामशसँ लाले-लाल अछि, जेना लगैत अछि
जे ओकरा देह मे आ बोलमे कोइ लुंगिया मेरचाय रगड़ि देने हुअए।)
बड़की भौजी- उंउ कइर-झुमरि, कइर-लुठबी बुझै कि छै अपनाकेँ? हमरासँ मुँह
लगाओत। नमहर छोटक लिहाज नै, बाप रो बाप मुँहमे मेचो नै परै छै बजैत कला। आय अबए दै छिऐ
टुनमा बाबूकेँ, कहबै नै
बनत हमरा एे मोगिया संगे हमरा भीन करि दिअए।
(शंकर कअ प्रवेश)
शंकर- टुनमा माए, हे यैयय टुनमा
माए, कि भेल? एना किआ
तिलमिला रहल छी!
असगरे केकरा संगे बात करै छिऐ।
बड़की भौजी- ओइ ऊपरबला सँ, जे नमहर बना कऽ
तँ पठेलक ऐ घरमे पर भैलू कुत्तो जकाँ नै यऽ। आब तँ छोटकीकेँ बोल फुटए लगलैए। अपन
बेज्जति करबैसँ नीक यऽ कि पहिले सर्तक भऽ जाइ। हम भीन हइ लऽ चाहै छी।
शंकर- धुर्रर, बताह भेलिऐ कि! लोग कि कहत चुप
रहू। चलु हम हाथ-पएर
धोने अबै छी जल्दि खेनाइ लगाउ बड़ जोड़ भुख लगल अछि आ अहूँ कनी संगे खा लिअ तामश हटि
जएत।
(पटाक्षेप।)
दोसर-दृश्य-
पंकज- छोटकी
कि भेलै यइ? आय
भौजी पुरे घरकेँ अपना माथपर उठेने छै।
छोटकी- अहाँकेँ भौजी
बेसी बलगर अछि तइ खातिर छोट-मोट बातपर हंगामा खड़ा केने रहैए। असल बात तँ ई छै कि
दुनू पावर मिलल छै ने,
साउसोकेँ आ जेठानियोकेँ तँइ मति छिन्नु भऽ गेल छै।
पंकज- (तमसा कऽ कहै।) अहाँकेँ बजैक
तमीज नै अछि। अहाँ अपन माइयो संगे अहिना बजैत रहिऐ आकि अतए सठियेलियइ हेँ। ठीके
भौजी कहै छै अहाँकेँ जुवान नै रेती छी रेती। खब्बरदार जे हमरा माए सनक भौजीक विरूध
एको गो अनरगल शब्द बजलौं तँ जीह घीचि लेब। धनि ई भौजी जे हम जिंदा छी। बिनु माएक
तँ हम अनाथे भऽ गेल रही, यएह
भौजी जे माए बनि हमरा सहारा देलक। आइ ओकर एगो बात अहाँकेँ घोंटल नै जाइए।
छोटकी- हम छोट छी तँ अकर मतलब कि
बड़काकेँ एड़ी तर मसलैत रही। हम आगू भऽ कऽ लड़ैले नै जाइ छी, मुदा एगो बात
बूझि लिअ कोइ आगु भऽ कऽ जे हमरा बात कहत तँ पाछु सँ हम छोड़ब नै। नमहर लोककेँ अपन
बेवहारसँ छोटक आगु नमहर भऽ कऽ रहए पड़ै छै तबे उ नमहर कहाइ छै।
(दूरेसँ शंकरक अवाज सुनाइत अछि)
शंकर- बौआ पंकज हौ
कथीकेँ बहस करै छहक दुनू गोरे। आबा घरसँ बाहर आबह। जेना छोट बच्चा लड़ाइ-झगड़ा कऽ फेर
एक्केठीम आ ओकरे संगे हसए-खलए लगैत अछि तहिना एकरा दुनूकेँ झगरा छै। तूँ आब एना
बात नै बढ़ाबह।
पंकज- अबै छी
भैया।
(पटाक्षेप।)
तेसर दृश्य-
(3-4टा बच्चाक संगे पायल आ काजल घरक बाहर खेलाइत अछि।
खेल-खेलमे
दुनू बहिन आपसमे लड़ए लगैए, तखने
बड़की भौजी बच्चाकेँ चिख-पुकार सुनि घरसँ बाहर अबैए आ एक थप्पर अपन बेटी
पायलकेँ आ एक थप्पर छोटकीकेँ बेटी-काजलकेँ मारैत अछि।
(थप्पर लगैत पाँच सालक काजल मुँह भरे खसि पड़ैत अछि।
तखने छोटकियो दौगल अबैए।)
छोटकि- बाप रे बाप, मारि देलक हमरा
बेटीकेँ। मुँहसँ खुन बोकड़ैत अछि। कोइ दौगू डॉक्टरकेँ बजेने आउ। काजल... बेटी काजल....!
(जहिना छोटकी काजलकेँ कोरामे उठाबैत अछि सभ अबाक् रहि
जाइत अछि। काजलकेँ मुँहसँ खुनक पमारा निकलैत अछि। काजल मुर्छित भऽ जाइत अछि। बड़की
भौजी दौग कऽ एक लोटा पानि अनैए आ काजलक मुँह पर पानि छिटैए।)
बड़की भौजी- बुच्ची
काजल, बाबू कि
भेल आँखि खोलू।
छोटकी- ई मगरमछक नोर लऽ कऽ सहानुभूति देखबै लऽ अतए नै आउ।
हमरा बेटीकेँ ऐ अवस्थामे पहुँचा कऽ आब हमदर्दी देखबै छी! अगर अहाँ एक
बापक बेटी छी तँ हमरा नजरिसँ दूर भऽ जाउ। हम अहाँक मुँह देखए नै चाहै छी।
(बड़की भौजी कनैत घर चलि जाइत अछि। पंकज डॉक्टरकेँ
संगे दौगैत अबैत अछि।)
डॉक्टर- (काजलकेँ देखि ओकर खुन सब पोछैत) चिंताक कोनो बात
नै छै, अगुलका
दाँत ठोरमे कनियेँ गरि गेल रहै आ छोट बच्चा छै तँइ मुर्छित भऽ गेलै। हम किछु दवाइ
लिखि दै छी। मंगबा लिअ तीन दिनक खोराक अछि आ घबरा नै किच्छो नै भेलै। बच्चाकेँ
अहिना छोट-मोट चोट
लगिते रहै छै।
पंकज- चलु
डॉक्टर सहाएब, हम
अहाँकेँ छोड़ि अबै छी।
(पटाक्षेप।)
चारिम दृश्य-
(बड़की भौजी आ शंकर दुनूक बीच ऐ प्रसंग पर चर्चा होइत
अछि।)
शंकर- पायल
माए, अहाँ ई
ठीक नै केलौं। घरक झगड़ाकेँ तामशसँ अहाँ छोट बच्चापर निकालि लेलौं।
बड़की भौजी- छोटकी आ बौआ तँ यएह सोचै छै कम-सँ-कम अहाँ तँ हमरा
समझू, हम तँ
झगड़ा छोड़बै खातिर दुनूकेँ कनिकबे जोरसँ मारलिऐ, हमरा कपारमे दोष लिखल छेलै तँइ ई घटना
घटलै।
छोटकी- घटना घटलै कि
घटना घटेलिऐ। हमरासँ लड़ि कऽ मन नै शांत भेल तँ हमरा बच्चोकेँ नै छोड़लौं।
(पंकज दिश ताकैत) सुनै छिऐ आय
अखने भीन होउ नै तँ हम अपना देहपर मटिया तेल छीट कऽ आगि लगा लेब।
पंकज- अच्छा शान्त
रहू, हमहुँ
नै आब जड़िमे रहब। ऐ खुनक खेल खेलाइ सँ तँ नीक रहत जे अलगे रहू मुदा शांतिसँ रहू।
शंकर- बौआ कि बजै छहक
तूँ। एकरा सभकेँ बातमे आबि कऽ तुहों अहिना बजए लगलहक। खबरदार जे फेरसँ भीनक नाओं
लेलहक।
पंकज- भैया, ई हमर आखिरी
फेसला छी। आब हम जड़मे नै रहब।
शंकर- बौआ, लोक कि कहतह, एना नै करह।
जल्दिबाजीमे कोनो फेसला नै करल जाइ छै।
पंकज- हमरा लोकक
परबाह नै छै अगर परवाह छै तँ अपन बच्चा आ परिवारक। जखनि हमर बच्चा लहु-लोहान छल
तखनियेँ हमर मन तोरासँ भीन भऽ गेलौ।
(सभ मुँह लटका अपना-अपना कमरामे चलि
जाइत अछि।)
(पटाक्षेप।)
अंतिम दृश्य-
(घरक सभ सदस एक संगे एकट्ठा होइत अछि।)
राधेश्याम- बौआ पंकज, कि भेलै जे बात
भीन-भिनाओज
पर चलि एलै।
पंकज- बाबु
हम कोनो तर्क-वितर्क
करैले नै चाहै छी, हमरा
जड़मे नै बनैए तँइ हम भीन हएब।
राधेश्याम- छोट-मोट बातपर
घबड़ेनाइ आ जिनगीक संघर्षसँ मुकरनाइ ई इंसानक काज नै भगोराक काज छी।
पंकज- बाबू, आय हमर बेटीकेँ
ई हाल भेल काल्हि किछु और हएत। अतेक दिनसँ काजलक माए संगे होइत रहै तँ हम किछो नै
कहैत रहिऐ, आब
हमरा बच्चा संगे करए लागल अखनो जे हम किछो नै बजब तँ कहीं काल्हि अंजाम ईहोसँ
बूड़ा नै हुअए।
राधेश्याम- बौआ,
काजल संगे जे भेलै उ संयोग मात्र रहै। एनाहियो तँ भऽ सकैए कि काल्हि आइयोसँ
नीक होय। बौआ भिन्न भेनेसँ खाली अंगना नै मनो बटाइत अछि। सम्मलित परिवार एक शरीर
जकाँ होइत अछि। जेना शरीरक कोनो अंगमे एगो काँट गड़ैसँ ओकर दरदक लहरि पुरे शरीरमे
दौगैत अछि तहिना सम्मलित परिवारमे कोनो एक व्यक्तिकेँ किछो हो छै तँ ओकर दरदक
एहसास पुरे परिवारक हर सदस्यकेँ होय छै। असगर रहनेसँ इंसान स्वार्थी भऽ जाइत अछि।
जेना शरीरक कोनो अंगमे घाव भऽ गेलापर ओकरा काटि कऽ अलग करि कऽ बजैए मलहम लगा कऽ
ठीक करल जाइत अछि, तहिना
परिवारक बीच बरहल मन-मोटओकेँ प्यारक मलहमसँ आ आपसी समझौतासँ दूर करैत अछि। आय
बड़की कनियाँकेँ एक थप्पर तोरा नजरि एलह आ ओकर अतेक सालक दुलार बिसरि गेलहक। जे
भौजी माए बनि हरिदम तोरा आगु ठाढ़ रहह उ अगर तोरा बेटीकेँ एक थप्पर माइरे देलकह
तँ कि गुनाह केलकह।
छोटकि कनिया हमर एगो बात सुनह, सासुरमे सासु
माएक रूप आ दियादिनी बहिनक रूप होइत अछि। अोकरा जाबे तक जिनगीमे उतारबहक नै घर
स्वर्ग नै बनतह बस मकान बनि कऽ रहि जेतह। जतए रहै आ खाइक सुविधा होय छै और किछो
नै।
(सब एक संगे हाथ जोड़ि कऽ)
बाबु हमरा सभकेँ माफ करि दिअ, हम सभकेँ सभ
गुनेहगार छी। जँए अहाँकेँ मन दुखेलौं। हम आपसमे कहियो नै लड़ब ने कहियो भीन हएब।
(पटाक्षेप।)
इति।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
जगदीश
प्रसाद मण्डल- चारि
गोट विहनि कथा-
बच्चा गेने दूधो गेल
जहिना कियो धन-धरमकँ संगे जाइत देखि बिलखि-बिलखि तड़सैए
तहिना सुखलाही दीदी टुटैत जिनगीक बाट देखि कानि रहल छथि।
‘सुखलाही’ तेसर नाओं छियनि।
पहिने समाजोक लोक सुखिया रखलकनि। पतिक सम्बन्धक पछाति सुखली कहए लगलनि।
सासुरसँ नैहर आबि जहियासँ बसली तहियासँ सुखलाही दीदी सभ कहए लगलनि।
बड़ धुमधामसँ माए-बाप सुखियाक बिआह
केलखिन। पढ़ल-लिखल
बरक संग। मुदा भाग्यकेँ दोषी बना समाजमे दीदीक रूपमे जीब रहल छथि।
किछु दिन पूर्व धरि परिवारोकेँ संग
रखबाक परिपाटी नहियेँ जकाँ छल मुदा आब तँ सोझे अछि। पति सुशील
दिल्लीयेमे दोसर बिआह कऽ लेलखिन। मुदा मिथिलांगना सुखिया, शुभ-कामना देलखिन-
“दुनियाँमे
कतौ रहू, सुखसँ
रहू, अहींक
सुख ने हमरो सुख छी।”
परिवारक बिगड़ल दशासँ हटि सुखिया
नैहर आबि बसि गेलीह। दस कट्ठा जमीन पिता भायसँ अलग कऽ देलखिन। सझिया परिवार
रहितो हिसाब-किताब
समगम छलनि। पिताक मुइला पछाति भायसँ अलग भेली।
गाममे इन्दिरा आवाशक कोठा देखि सुखलाही
दीदीकेँ सेहो मन जगलनि। मुदा कि कहि घर मंगबै! जेकर पति पचास हजार महिना कमाइ छै, से पचास हजार ले
कहबै जे विधवा छी! कथमपि
नै।
होलीक धुमसाहीमे सुशील पाँचो तूर गाम
एलखिन। अपन तँ डीहो-डावर नै, सासुरक गाम। फुगुआक पीहकारीमे सौतीन फँसि गेली। चालीस हजारमे
एकटा जर्सी गाए कीनि कऽ खूटापर बान्हि, चल गेली।
पनरहिये बच्चा, मास पुरबो ने
कएल आकि मरि गेलै। सुखलाहीक जिनगीक सपना- ‘र्इटाक अपन घर हएत, गाए भाइये गेल, जारनो-काठी आ खाइयोक उपाए भइये गेल..।’
मुइल बच्चा देखि सुखलाही दीदी कानि-कानि कहै छथिन-
“बच्चा
गेने दूधो गेल।”
दूधे पीब लिअ
कुम्भ मेलासँ दुनू बेकती, बस स्टैण्डसँ पएरे अबैत रही। सीमा
कातेमे रामधन नजरि पड़ल। रामधन दबाइ आनए झंझारपुर जाइत रहए। नजरि मिलिते गप
करैक जिज्ञसा जागल। पुछलिऐ-
“रामधन, गामक की हाल-चाल अछि?”
अपन काज बिसरि रामधन बाजल-
“कनी बैस
लिअ, जखन
गामक हाल-चाल
पुछलौं तँ कहिये दइ छी।”
अपनोसँ बेसी जिज्ञासा पत्नीकेँ भेलनि। अह्लादि बजली-
“कनी
हाथो-पएर जिरा
जाएत आ समाचारो बूझि लेब।”
जेबीसँ तमाकुलक डिब्बी निकालि रामधन बाजल-
“भने
अहूँ कखैन खेने हएब कखैन ने, तमाकुलो खाइये लेब।”
रस्ताक झमारल रहने हुअए जे जल्दी स्नान भोजन कऽ ओछाइन
पकड़ी। मुदा तीन गोटेमे दू गोटे एक दिस अनेरे हल्लुक होइतौं। तइसँ नीक अपन गरमी
दाबि लेलौं। तहूमे सौभरी महात्म्य कथा पढ़ैक मौका भेटल। अगुतबैत कहलिऐ-
“तमाकुलोमे
लाड़नि चलाबह आ मुहोँ चलाबह। ठेहिआएल छी, बेसी काल अँटकि नै हेतह।”
रामधन बाजल-
“अहीं
दुआरे तीन दिनसँ एकटा पनचैती अँटकल अछि।”
“कथीक
पनचैती?”
“सुरतिया
घरपर गीध बैस गेलौं, तेकरे
तेहेन घमरथन गाममे होइ छै जे की कहूँ। थनो-पुलिस भऽ गेलै।”
जिज्ञासु होइत पुछलिऐ-
“थाना-पुलिस किअए
भेल?”
बाजल- “ढोढ़बा-मंगला चाहे
दोकानपर बैस चीलमो पीबैत रहए आ गपो करैत रहए। ढोढ़बा कहलकै सुरतियाकेँ पतिया-प्राश्चित
लगतौ। तइपर मंगला कहलकै,
जे पतिया-प्राश्चित
लेत तेकर मोछ उखाड़ि लेबै।”
रामधनक बात सुनि कऽ हँसी लागल, पुछलिऐ-
“तब की
भेल?”
“दुनू
गोटे पटका-पटकी कऽ
थाना गेल।”
थानाक नाओं सुनिते चकित भऽ गेलौं, कहलिऐ-
“आब
तोहीं कहह जे जखन थाना गेल तखन की पनचैती हेतै। अच्छा एकटा बात कहअ तँ, सुरतिया ओ घर
छोड़ि देलक आकि उठिते-बैसतै, खाइते-पीबिते अछि।”
“ओ तँ
कहै छै जे सोझामे बाजत तेकर जीह काटि लेबै। चिड़ै छलै, सबहक घरपर बैसै
छै, हमरो
घरपर बैसल।”
कहलिऐ- “तब तँ
फड़िआएले अछि, झंझट
कहाँ देखै छिऐ किछु जे पनचैती करबै।”
जिज्ञासा करैत रामधन पुछलक-
“केहेन
पनचैती हेबाक चाही।”
कहलिऐ- “अनेरे
कोन धो-धामे
दूधकेँ दूरि कऽ धोर-मट्ठा दही बना खेबह, तइसँ नीक जे दूधे पीब लैह।”
बाम-दहिन
रतुका खर्चा अनैले कनीयेँ दिनमे चौकपर जाइ छलौं। ओना
अगुआएल छलौं मुदा पाछूसँ एकटा मोटर साइकिलबला हमरासँ अगुआ गेल। अध बाट लग जखन
एलौं तँ, दू
लग्गा आगू मोटर साइकिल एकाएक रूकए लगल आकि नजरि बढ़ल। एकटा चित्रकबरा बिलाइ
पच्छिमसँ पूब मुहेँ अपन रस्ता धेने, पहिने असथिरेसँ मुदा मोटर साइकिलकेँ अबैत देखि
दौग कऽ टपि गेल।
गामेमे घरसँ
उत्तर बीघा डेढ़ेक हटि चौक अछि। चौक कि आन गामक चौक जकाँ तँ नहियेँ अछि तँए
कि कनहा मामाकेँ मामा नै कहबै। हँ एते जरूर अछि जे आन गामक चौकमे ताड़ियो-दारू बिकाइ छै
हमरा गामक चौकपर से नै अछि। महज आठ-नौटा दोकान छै, जइमे एकटा किताबक, एकटा दवाइ, एकटा साइकिल
तीनटा नोन-तेलक सँ
लऽ कऽ बेसाह धरिक, दूटा
चाहक आ एक्केटा पानक अछि।
आगूमे मोटर
साइकिलकेँ रूकैत देखि हमहूँ अनमेना केलौं। पेशाब करए बैस गेलौं। से नै करितो तँ
एक्कैसमी शदीक मनुखसँ भेँट केना होइतए। मोटर साइकिल लऽ स्टार्ट केनहि पएर रोपि
ठाढ़ भेल बेचारा ऐ आशामे जे कियो आगू बढ़त तखन ने बढ़ब, बिलाइक बाट
काटब बड़ खराप होइ छै, काल्हियो
गुरुदेवक मुहेँ सुनलौं।
तइ बीच एकटा छह-सात बर्खक छौड़ा
बिस्कुट कीनए दौगल टपि गेल। ने बिलाइये देखलक आ ने बिलाइक बाट काटब देखलक।
पेशाबे करै काल दूटा बातमे उठल। एकटा ई जे जखन तेल-पेट्रोलपर
चलैबला इंजनकेँ बिलाइ रोकि सकैए तखन पएरे चलनिहारकेँ तँ ससरए नै देत। दोसर बात
उठल जे ने मोटर-साइकिलबला
एकटा अछि आ ने बिलाइ एक्केटा छै, नै किछु तँ दसो-बीस करोड़ हेबे
करतै। तखन ई बट-कट्टा
बिलाइ मोटर-साइकिल
रोकि कते तेल पीबैत हएत!!
मोटर-साइकिल आगू बढ़िते चाहक दोकानक आगूमे ठाढ़ भेल जे
रहए से देखने छल। लग अबिते पूछि देलक-
“भाय, ओतए किअए अँटकल
छेलिऐ, किनकासँ
काज छलए?”
मोटर साइकिल रोकि सोल्हम शताब्दीक जेठजन जकाँ बाजल-
“बिलाइ
बाट काटि देने छल।”
एतबे बजिते छल आकि चाहक दोकानपर घौंचाल भेल। एक गोटे
पूछलक-
“बाम-सँ-दहिन गेल अाकि
दहिन-सँ-बाम।”
“बाम-सँ-दहिन।”
दोसर बाजल- “बूड़ि
कहीं कऽ दहिन-सँ-बाम कटै छै आकि
बाम-सँ-दहिन।”
तेसर बाजल- “एकरा
सबहक खच्चरपन्नी तोंही सभ बुझबहक, हौ मोटगरहा कीलबला, बाजह तँ जखन तोरा कोनो काज घरवैयासँ नै
छेलह तखन तूँ ओकरा घर लग किअए साइकिल लगा ठाढ़ छेलहक?”
चारिम बाजल- “एतबो नइ
तोरा अखैन धरि अकीलसँ भेँट भेलह जे किसान परिवारक माए-बहिनसँ लऽ कऽ
पुरुष-पात्र
धरि अर्ध नग्न भऽ अपन काज करैत अछि। तखन तूँ किअए ठाढ़ भेलहक।”
ताबे हमहूँ
चौकपर गेलौं। गरदम-गोल
होइत देखि मन भेल जे जा कऽ देखिऐ, मुदा फेर भेल जे आन-गामबलासँ एक्के
गोटेकेँ गप करक चाही। जखने बेसी मुँह एक दिस हेतै आकि...। मुदा बिनु
बुझनहि कहलिऐ-
“अनेरे
तूँ सभ अनगौंआँकेँ बाट रोकै छहक। जाउ, जाउ भाय सहाएब।”
छातीक बीख-
साइठ बर्खक जिनगीमे समए, जुन्ना एेँठल बाँसक खुट्टा जकाँ बना
देलक। अपनो छगुन्ता लगैत रहए जे ऑल-रौनडर कलाकार जकाँ ओहन कलाकार ने तँ छी जे सभ पार्ट
असकरो खेलि सकै छी। आकि सभ पार्ट खेलेनिहार लेबड़ा छी। दर्जनो नाओं आ दर्जनो
उपनाओंसँ भरि दिन काज चलैए।
जँ पैघ पार्ट
खेलेनिहार हीरो छथि आ फगुआमे भाव-प्रदर्शन मने-मन करैत रहता तँ कि होली खेलब भेल। होली
तँ सतरंगा रंगक पावनि छी। जे जीबए से खेलए फागु। खैर जे होउ, अनेरे दुनियाँ
लए मगर-मारी किअए
करब।
हम चटवाहो छी।
केहनो-केहनो
नागक डँसल बीखकेँ उतारि दइ छिऐ। चरि-कोसीक लोक जनै छथि ओहिना नै छी। जिनका
पुछबनि ओ कहि देता जे छाती बीख उतारैबला चटबाह फल्लाँ। सोलहे-सतरह बर्खक रही
तहिये चनौरा गहबर जा चाटीक सीख लेलौं। तहियेसँ गामक चटवाहमे बहाली भऽ गेल। मुदा
समैक चालिमे पड़ि ऐ बुढ़ाड़ीमे छातीक चटवाह बनि गुनधुनमे पड़ल छी।
भेल एना जे
सौंसे गाममे चारियेटा चटवाह छलौं, भदवारि आ जेठमे बेसी सँपकटिया भेने रेजानिस-रेजानिस भऽ जाइ
छलौं। तखन अपनामे सीनियर-जुनियर कऽ कऽ बँटबारा कऽ लेलौं। जखन कतौसँ कियो
बजबए आबए तँ पहिने पूछि लिऐ जे कोनठाम बीख छै।
ठेहुनसँ निच्चाँ एक गोटेक भाँजमे, जाँघसँ डाँढ़
धरि दू गोटेक भाँजमे आ सीनियर जानि हमरा छातीक भार भेटल। से करीब बीस बर्खसँ
खुब नाआें कमेलौं। खूब जसो परोपट्टामे अछि।
बीच्चेमे रमेश बाजल- “आब की करै छी?”
“एकटा
छुटि गेल। जखन गाममे जेठुआ अमार परदेश जाइक उठल, तखन हमरो मन डोलल। मुदा हमरा मनमे उठल जे
रोजगार गाममे करै छी, सएह ओतौ
करब आकि दोसर? जँ अपन
रोजगार रहत तँ अबै-जाइमे
नीक रहत। मुदा बदलने जिनगी बदलि जाइ छै। तखन तँ पहपटिमे पड़ि जाएब। नै गेलौं।”
रमेश पुछलक- “अखन?”
बुढ़ाड़ीमे ज्ञान भेल, से खुशी अछि। जे नामी मनतरिया छला, जे केहनो-केहनो साँपक बीच
उतारै छला आ जखन बुढ़ाड़ीमे अपने कटलकनि तँ कहलखिन जे डाक्टर लग लऽ चलू। सुनि
हमरो भक खुजल मुदा लोको-लाजक परीछा तँ काजेमे होइ छै। तँए कहै छिऐ जे साइठ बर्खमे
सरकारो घरसँ लोक रिटायर होइए, हमहूँ साइठ टपि गेलौं। तँए सेवा निवृत्ति भऽ गेल छी।
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