भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, March 03, 2013

'विदेह' १२४ म अंक १५ फरबरी २०१३ (वर्ष ६ मास ६२ अंक १२४)- PART II



. पद्य





...http://www.videha.co.in/BindeshwarNepali.jpgबिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"- प्रेम / गजल .http://www.videha.co.in/sumit_kariyan.jpgसुमित मिश्र- गजल १-

.http://www.videha.co.in/Ramvilas.jpgरामवि‍लास साहुक दूटा कवि‍ता .http://www.videha.co.in/hem_narayan.jpgहेम नारायण साहु जीक कवि‍ता
http://www.videha.co.in/Ramvilas.jpgरामवि‍लास साहुक दूटा कवि‍ता
रामवि‍लास साहु जीक दूटा कवि‍ता-

जीयब केना

जीयब तँ जीयब केना
दुनि‍याँ बदलि‍ गेल जेना
चारूकात अधरमे कुकरमे
दि‍न-दहारे डाका पड़ैए
चौबटि‍यापर इज्‍जति‍ लुटाइए
गाम-शहरमे दारू बि‍काइए
मानव पीब दानव बनैए
चोरी-डाका सि‍नाजोड़ी करैए
बीच बजार बलत्‍कारी होइए
कतए चलि‍ गेल धर्मक नीति‍
जेनए देखि‍यौ कुरि‍ति‍ये रीि‍त
जीयब तँ जीयब केना
दुनि‍याँ बदलि‍ गेल जेना।

चलैत बाट डर लगैए
चौर सि‍पाही खेल करैए
सरकारक कानून उन्‍टा बनलए
ि‍नर्दोषी लेल जहल बनलए
दोषी घूमि‍-घूमि‍ मौज करैए
सरकार अपराधीक बीच
गरीब जनता पीसाइत रहैए
सभ हत्‍यारा कंश बनलए
सरकार धृष्‍टराष्‍ट बनलए
अधि‍कारी मंत्री माल लुटैए
देशक जनता बौक बनलए
देखि‍ कवि‍ सोचमे पड़लए
जीयब तँ जीयब केना
दुनि‍याँ बदलि‍ गेल जेना।।




मोनक आगि

पूर्णिमाक चान मलि‍न भेल
देखि‍ तरेगन कनखी मारए।
सोलह श्रृंगार काएल
भेल मलि‍न।
पिया बि‍नु भेलौं वि‍रहिन
राति‍क फूल भोरे भेल मलि‍न।
मृग तृष्‍णामे मृग बौआइए
भटकि‍-भटकि‍ जहि‍ना परान गमबैए।
तहि‍ना मन हमर भरमैए
मोन आगि‍ रहि‍-रहि‍ जड़ैए।
नै पि‍या पि‍यास मुझाइए
सोलहकलासँ सजल चानकेँ
जहि‍ना अन्हरा नै देखैए
तहि‍ना परदेशि‍या पि‍या
अपनाकेँ वि‍रान बुझैए।
ि‍नरदैयाकेँ प्रेम केना जगतै
प्रेम बि‍नु दुनि‍याँ केना चलतै।
की चकबा चकबी जकाँ
साँझ पड़ैत बि‍छुड़ि‍ पड़तै?
पूर्णिमाक चन देखि‍ राति‍ बि‍तेतै
कहैए कवि‍ राखू मोनमे धीरज
एक दि‍न मेटत अमृतसँ पि‍यास
अपन मोनक आगि‍केँ राखू दाि‍ब।


http://www.videha.co.in/hem_narayan.jpgहेम नारायण साहु
हम छी मैथि‍ल-

हम छी मैथि‍ल हमर छी मि‍थि‍ला
मि‍थि‍ला हमर गाम छी।
हमर अप्‍पन धाम छी।
कि‍एक एकरा ि‍बसरि‍ रहल छी
ऐ माटि‍-पानि‍केँ छोड़ि‍ पड़ाए रहल छी।
ऐ भूमि‍केँ समुच्‍चा जगमे नाम जपैए
संसारक लोक जय-जय गान करैए।
मि‍थि‍लाक सभ्‍यता-संस्‍कृति‍केँ
कि‍एक बि‍सरि‍ रहल छी?

ऐठामक लोक-गाथा
ठोहि‍ पाड़ि‍ कानि‍ रहल छै।
कतए गेल जट-जटीन
ओ झड़नी गीत...
गामक गल्ली-कुच्‍ची गबैत छल कहि‍यो
कतए गेल अल्हा-रूदल ओ लोरि‍कक नाच
जे ठेहुनि‍या दऽ मंचपर ललकारैत छल?
बि‍ला गेल महराइ केर खि‍स्‍सा
धर्मराज सन धर्मात्‍माक भक्‍त
हरि‍या डोम सन भक्‍त कहबैत छल?
बि‍नु कोनो भेद-भावक
भक्‍त केर घर भोजन करै छल!

बि‍सरि‍ गेल सभ दि‍ना-भदरीक गाथा
बि‍सरि‍ गेल सभ चुहरमलक गाथा
कतेक गि‍नाबी मि‍थि‍लाक संस्‍कृति‍क गाथा
मन पड़ैए तँ दुखाइए माथा।

ऐ मातृभूमि‍क संतान भऽ
माएकेँ छोड़ि‍ कि‍अए पड़ाइ छी।
हम छी मैथि‍ल हमर छी मि‍थि‍ला
कि‍अए एकरा बि‍सरि‍ रहल छी।

 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://www.videha.co.in/AshishAnchinhar.jpgआशीष अनचिन्हार-गजल. http://www.videha.co.in/shiv_kumar_prasad.jpgडॉ. शि‍व कुमार प्रसादक दूटा गीत
http://www.videha.co.in/AshishAnchinhar.jpgआशीष अनचिन्हार
गजल

शोणितसँ छै बनल नोर हम्मर
भेलै हँसी तँ अंगोर हम्मर

हम तँ छी आब साँझक भरोसे
नीलाम भेल छै भोर हम्मर

हम देखबै किए दोसरक दिस
तोंही तँ छहक चितचोर हम्मर

कोनो सुधार नै देशमे छै
लोक तँ बड्ड कमजोर हम्मर

बाटक हिसाब नै पूछ मीता
टुटि गेल आब संगोर हम्मर


दीर्घ-दीर्घ-लघु-दीर्घ+ लघु-दीर्घ-दीर्घ+ लघु-दीर्घ-दीर्घ हरेक पाँतिमे

http://www.videha.co.in/shiv_kumar_prasad.jpgडॉ. शि‍व कुमार प्रसादक दूटा गीत-

सम्‍पर्क-सहायक प्राध्‍यापक (सेलेक्‍सन ग्रेड), हि‍न्‍दी वि‍भाग, . प्र. साह महावि‍द्यालय, (ि‍नर्मली काॅलेज ि‍नर्मली) ि‍नर्मली- सुपौल।
बौआ केर उबटन

कजरौटी केर काजर संगे
बौआ केर उबटन बि‍ला गेल।
सोइरी केर अशौचक संगे
भारतीय संस्‍कार हरा गेल।
बौआ केर......

नव युगक नव संस्‍कारमे
जॉनसन बेबीक पाउडर मि‍लि‍ गेल
माइक स्‍तन छोड़ि‍ कऽ नेना
बोतल संगे माए भुला गेल।
बौआ केर......

सि‍नेहक डोरि‍ तोड़ि‍ कऽ ममता
सुन्‍दरता केर मोल बि‍का गेल
दाइ नौरि‍नक संग पाबि‍ कऽ
नेना माइक शोक भुला गेल
बौआ केर......

अपन आन सभ पाइपर बि‍क गेल
सम्‍बन्‍धक सभ आँच बुता गेल
धन लक्ष्‍मीक चकाचौंधमे
तन मन रागक रंग मेटा गेल
कजरौटी केर काजर संगे
बौआ केर......

सोहर जन्‍म बधैया संगे
मूड़न उपनैनक महत मेटा गेल
लकदक गाड़ी वस्‍त्राभूषणमे
बरूआ केर आचार्य भुला गेल
कजरौटी केर काजर संगे
बौआ केर......




शहर ओ गेल......

शहर ओ गेल मनुक्‍ख बनै लेल
गाममे रहि‍ बन-मानुख छल
शहरक पाथर केर जंगलमे
सभकेँ सभ आइ पथरा गेल।
शहरक पाथर केर जंगलमे
सभकेँ सभ आइ पथरा गेल।

गाममे सभ छल भाए-बहि‍न सभ
कि‍यो बाबू कि‍यो काका छल
भैया-भौजी बेटी-भतीजी
नै कि‍यो बि‍नु नाता छल।
शहरमे जाइते रि‍श्‍ता-नाता
सभटा मटि‍या-मेट भऽ गेल
शहरक पाथर केर जंगलमे
सभकेँ सभ आइ पथरा गेल।

पथराएल शहरी पाथरमे
कन्नि‍को मानवता नै बाँचल
चारि‍ बरखसँ चालीस बर्ख केर
नेना-युवती बलि‍ चढ़ि‍ गेल
शहरक पाथर केर जंगलमे
सभकेँ सभ आइ पथरा गेल।

बाट-बटोही देखतो आन्‍हर
सनि‍तो रूदन बहि‍र भऽ गेल
पशुतो एहेन कुकर्म सुनि‍-सुनि‍
चुड़ुक पानि‍मे डूमि‍ मरि‍ गेल
शहरक पाथर केर जंगलमे
सभकेँ सभ आइ पथरा गेल।
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
१.http://www.videha.co.in/JagdanandJha.jpgजगदानन्द झा मनुगजल १-४ 2.http://www.videha.co.in/PankajNawalshri.jpgपंकज चौधरी "नवलश्री" भक्ति गजल/ भगवती गीत १-२/ कविता १-२/ गजल १-७
http://www.videha.co.in/JagdanandJha.jpgजगदानन्द झा मनु
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी 

गजल-१ 
रहब आब नै दास बनि हम 
अपन नीक इतिहास जनि हम
 

जखन ठानलहुँ हम अपनपर
 
समुद्रो लएलहुँ तँ सनि हम
 

उठा मांथ जतएसँ तकलहुँ
 
दएलहुँ
 तँ नक्षत्र गनि हम 

हलाहल दुनीयाँक पीने
चलै छी अपन मोन तनि हम
 

जमल खून मारलक धधरा
 
लएलहुँ विजय विश्व ठनि
 हम

(बहरे मुतकारिब, मात्राक्रम-१२२) 

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गजल-२ 
हकन नोर माए कनै छै 
तकर पुत्र मुखिया बनै छै
 

कते आब बैमान बढ़लै
गरीबक टका के गनै छै
 

पतित बनल नेता तँ देशक
 
दुनू हाथ ओ मल सनै छै
 

पएलक कियो जतय मोका
 
अपन बनि कs ओहे टनै छै
 

बनल
 भोकना जेठरैअति
मुदा 'मनु' तँ सभटा जनै छै
 

(बहरे मुतकारिब, मात्राक्रम-१२२)

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गजल-३ 

मनुखक एहि दुनियाँमे कोनो मोल नहि रहल 
हमरा लेल केकरो लग  दूटा बोल नहि रहल 

बजाएब  कतए ककरा  सभटा साज टूटिगेल 
छल एकटा फूटल ओहो आब ढोल नहि रहल 

सभतरि घुमैत अछि   मनुखक भेषमे हुडार
नुकाबै लेल ओकरा लग कोनो खोल नहि रहल  

रातिक भोजन ओरिआनमे माएक मोन अधीर 
छल हमर बाड़ीमे एकटा से ओल नहि रहल 

हँसैत  मुस्काइत रहए   जतएकेँ लोकसभ   
मिथिलाक गाममे 'मनु' आब ओ टोल नहि रहल 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१९) 

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गजल -४ 


होए मोन हरखीत ढोलो सोहाइ 
नै बिनु कारने मीठ बोलो सोहाइ 

प्रियगर भेट नवकी कनियाँ गेलै जँ 
हाथक हुनकर नोनगर ओलो सोहाइ 

जेबीमे जखन भरल रुपैया होइ
तहने महग सस्ताक मोलो  सोहाइ 

सिम्बर तूरकेँ नीक गदगर मसलंग 
सुन्नर ओहिपर आब खोलो सोहाइ 

भरि सन्दूक घर जाहिमे भेटै सोन 
एहन घरक महकैत झोलो सोहाइ 

(बहरे हमीद, २२२१-२२१२-२२२१)

जगदानन्द झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी 



http://www.videha.co.in/PankajNawalshri.jpgपंकज चौधरी "नवलश्री" भक्ति गजल/ भगवती गीत १-२/ कविता १-२/ गजल १-७
भक्ति गजल
श्वेत अछि परिधान माँ हे
ठोढ़ पर मुस्कान माँ हे

हाथ पुस्तक कमल आसन
सजल वीणा तान माँ हे

भारती जय माँ भवानी
जग करै गुणगान माँ हे

बुधि बिना बकलेल सन हम
माँगि रहलौं ज्ञान माँ हे

क्रोध आलस लोभ भागय
दूर हो अभिमान माँ हे

"नवल" माँगत आर नै किछु
पाबि ई वरदान माँ हे

*बहरे रमल / मात्राक्रम-२१२२
भगवती गीत १-२
ममतामयी माँ ममता दे तू
ममतामयी माँ ममता दे तू सभ कष्ट कलेश मिटा दे तू
ममतामयी माँ...}

डोलल नैया बिन खेबैया आश तोरे टा बांचल मैया
जुनि कर देरी हाथ बढा दे}२ भवसागर पार लगा दे तू
ममतामयी माँ...

हम अज्ञानी ज्ञानक भूखल माँ दानी तोर दानक भूखल
जीवनमे छै घोर अन्हरिया}२ माँ ज्ञानक दीप जड़ा दे तू
ममतामयी माँ...

परम पावन होयत तन-मन धन्य होयत माँ ई जीवन
सुतकें विनती सुनि ले मैया}२ बस एक दरस त' देखा दे तू
ममतामयी माँ....}
 हेयै जगजानी मैया विनती त' सुनियौ

हेयै जगजानी मैया विनती त' सुनियौ
बेटा के दशा देखि } २ नैना ने मुनियौ
हेयै जगजानी मैया..

श्रद्धा सुमन ल' ऐलहुं शरणमे
तन-मन-धन सभ } २ अहिंक चरणमे
मानब कथीसँ मैया } २ आर कथी अनियौ...
बेटाकें दशा देखि..

जतय-जतय गेलियै वैह ठुकरेलकै
दीन के कियो ने } २ कोर लगेलकै
आश अहिं  बाँचल } २ पाथर ने बनियौ..
बेटाकें दशा देखि...

अहूँ नै सुनबै जँ दुखनामा
आन के सुनतै } २ कहू ककरा माँ
कहिया हरब दुःख } २ आर कते कनियौ...
बेटाकें दशा देखि...
हेयै जगजानी मैया विनती त' सुनियौ
बेटाकें दशा देखि } २ नैना ने मुनियौ
हेयै जगजानी मैया } 3  

कविता १-२
श्रमक मोल !!

चली कर्तव्यक पथ पर अविचल
बनी श्रमिक श्रमक सत्कार करी
संतोष रहए संग जिज्ञाशा
लोभ-आ-द्वेषक प्रतिकार करी।

करी कर्म सतत नै किछु बाधक
अप्राप्य प्राप्त करी बनि साधक
बस श्रमसँ सफल करी जीवन
सभ स्वप्न अपन साकार करी।

ने त' सुखसँ बेशी नेह रहए
ने दुःखसँ दुबकल देह रहए
चिंता छोड़ी नित करी चिंतन
संघर्ष सहर्ष स्वीकार करी।

चलि काल संग बनी कालविजयी
संग छूटत पाछू रहि जाएब
जँ श्रमसँ देह चोराएब त'
एहि कालक धारमे बहि जाएब   
क्षण भरि नै व्यर्थे नष्ट होए
क्षण-क्षण के एहन जोगार करी।

सभ लेख विधि केर टलि जाएत
श्रमसँ भाग्य बदलि जाएत
खींची भाग्यक रेखा पुनि
आ श्रमसँ स्वयं श्रृंगार करी।
हमर देश पर-गत्ती-सील !!

जेमहर देखू बीले-बील
हमर देश पर-गत्ती-सील !

भ्रष्टाचार उजागर भेल त' पोखरिसँ बढि सागर भेल
आतंकक से पंक पड़ल सभ छै बलिक छागर भेल
फूसि बजै त' ठेहुन-छाबा जे सच बाजल बागर भेल
कतरि रहल छै सभके जेबी खांकी खादी आर वकील।
हमर देश पर-गत्ती-सील !

जनता आगाँ छुच्छ सोहारी नेताजीक छनि भरल बखारी
सरकारेक भाग जगै छै जँ बनल योजना कोनो सरकारी
पाँच बरख धरि कुर्सीक माया मतदानक बेर खोजपुछारी 
निर्धन लाचारक के पूछत खटैत-खटैत छै ढोढी ढील।
हमर देश पर-गत्ती-सील !

धिया कंठ लागल की करतै टाका छापि कत'सँ अनतै
सभटा खेत जँ एखने गेलै बांकी धिया बेर की गनतै
नोरसँ भीजल माएक आँचरि नुका-नुका कते ओ कनतै
धिया बापक डीह बिकेलै ब'रक बापक झोड़ा सील।
हमर देश पर-गत्ती-सील !                      
    
घूसे पर काटै घुसकुनिया करिया धन सभके चाही
दलमलित छै दल-दलित संरक्षण सभके चाही
प्रतिभाक प्रतिकार करए आरक्षण सभके चाही
व्यथा कथा के कहतै ककरा सगर व्यवस्था सोहरल पील।
हमर देश पर-गत्ती-सील !
गजल-१

सगतरि बखान मिथिला कें 
महिमा महान मिथिलाकें

छथि राम सजल बनि दुल्हा
छाती उतान मिथिलाकें

पाहुनसँ भरल अछि आँगन
दलमल दलान मिथिलाकें

धूमन गगूल शरबत आ
परसबइ पान मिथिलाकें

अवधेश देखि गदगद छथि
सभ ओरियान मिथिलाकें

अरिपन पड़ल सजल डाला
देखब चुमान मिथिलाकें

आओत "नवल" कोजगरा
बाँटब मखान मिथिलाकें 

वर्ण क्रम: २२१२+१२२२





गजल-२
जग भरिक उपरागसँ अकच्छ भेल छी
राति-दिन लागैत दागसँ अकच्छ भेल छी

मौध मुँह पर मुदा मोन माहुर भरल
ऐ फुसियाहा अनुरागसँ अकच्छ भेल छी

हम जँ बजलौं अहाँसँ त' रुसि रहता ओ
ऐ संबंधक गुणा-भागसँ अकच्छ भेल छी

दंश सहलौं कते मिसिया भरि मौध लेल
प्रेमक मधुर परागसँ अकच्छ भेल छी

"नवल" टूटितै नै जे निन्न होएतै एहन
राति-राति भरिक जागसँ अकच्छ भेल छी

*आखर-१६
गजल-
सभसँ ऊपर देश भारत
जगसँ सुन्नर देश भारत

मुकुट पर्वत हिन्द चरणहि
छै रमणगर देश भारत

माय मानी माटि के सभ
तें हिलसगर देश भारत

धर्म सभटा जाति सभटा
बड़ दिलह्गर देश भारत

अपन अन्नक बल भरै छै
पेट अनकर देश भारत

सहब ककरो यातना नै
आब बलगर देश भारत

ठाम सभके मान सभके
"नवल" नमहर देश भारत

 >बहरे रमल/मात्रा क्रम :२१२२+२१२२











गजल-४

"गाँधीजी"क धरती पर बहलै शोणित केर धार कोना
"भगत सिंह" केर आँगनमे जनमल अत्याचार कोना

कतए गेलै "आजाद"क नगरी रूसि "लक्ष्मी" कत' पड़ेली
देव आ विद्वानक नगरीसँ बिला रहल संस्कार कोना

बिसरल-बिलटल छै अपनैती "मालवीय-मौलाना"कें
जाति-पाति आ भेदभावक पसरल एते विकार कोना

आब नै जनमै "लाल" किए की देशक माटि भेलै उस्सर
लोभी-कपटी-कुकर्मी सभके लागल एते पथार कोना

ने नेत ठीक ने नाम नीक टाका बल पर नेता बनलै
करै ओसूली जनता सभसँ चतरल भ्रष्टाचार कोना

मतकें मान बिना बुझने बेर-बेर मतदान केलहुं
मतकें मान नै बूझब जा जागत गुम सरकार कोना

छोड़ब नै अधिकार अपन फांड़ बान्हि ली चलू "नवल"
बिनु मँगने नै भीख भेटै भेटत फेर अधिकार कोना

>आखर-२१










गजल-

प्रीत बनि क' हियामे रहबे करब हम
बनि नेह शोणितमे बह्बे करब हम

वेग मोडू बसातक हमर पएर छोडू
बसातक संगे-संग बहबे करब हम

किए बिसरैमे लागल छी हमरा अनेरे
छाँह बनि अहाँ संग रहबे करब हम

नै बुझलहुँ अहीं त' दोख अनकर कथी
ई तिरस्कारक तीर सहबे करब हम
        
छै किछु दिन लेल जिनगी तकर मोहे की
रेतीक भवन बनि ढहबे करब हम
         
मिठ लागत की क'रू तकर परवाह नै
जे सच छै उचित छै कहबे करब हम

अहाँ घोंटी गरल बूझि की पीबी सुधा कहि
"नवल" नेह-छाल्ही त' मह्बे करब हम

*आखर-१६










गजल- ६
हुनका संग लिअ' बढू आगाँ जे छथि अभियानक पक्षमे
चलू करै छी नव पहल पुनि नव-क्रांतिक उपलक्षमे

नमन करैत छी हुनका जे संग चलथि बनि सहभागी
हुनको भ्रम के दूर करब जे सभ छथि ठाढ़ विपक्षमे

चलू करी अनुपालन हुनकर जे छथि ज्ञानक अगुआ
पछुवाएल छथि जे अज्ञाने तनिको आनब समकक्षमे

कर्मठ छै जे कर्मभूमिमे हारत-जीतत हएत सफल
ओ की जानै मोल एकर जे बस गप छाँटै सूतल कक्षमे

"नवल" नाच नै आबै जकरा तकरा लै सभ अंगने टेढ़
घुरबाक लूरि ने जकरा से त्रुटि तकबे करतै अक्षमें

*आखर-२२
गजल- ७
जिनगी भरि बस व्यर्थक चिंता
मरितहुँ लागल स्वर्गक चिंता

अन्नक खगल छै निर्धन चिंतित
करए धनिकहो अर्थक चिंता

पहिलुक भेटिते दसकें ललसा
दस पुरिते शुरू शतकक चिंता

बहुअक छथि बिआहल सभ मारल
काँचकुमारकें घटकक चिंता

आशा फ'रक लागल छै सभके
ककरो "नवल" नै कर्मक चिंता

*मात्रा क्रम: २२२+१२२+२२२


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.http://www.videha.co.in/KaminiKamayini.jpgकामिनी कामायनी- आस्थाक पूर्ण कलश .http://www.videha.co.in/BinitaJha.jpgबिनीता झा- चैन .
http://www.videha.co.in/JyotiJhaChaudhary.JPGज्योति झा चौधरी-पिया जल्दी सँ आउ ने (वैलेन्टाइन डे पर विशेष)

पिया जल्दी सऽ आऊ ने

http://www.videha.co.in/KaminiKamayini.jpgकामिनी कामायनी
आस्थाक पूर्ण कलश

पोखरिक माटि सँ पितड़िया फुल्डालि माँजैत/
बाबी ओइ दिन बड़ उदास भऽ गेल छलीह/
जखन घासक छिट्टा ,माथ सँ उतारि/
घुटनक आंगनवाली /आँचर मे बान्हल /
गंगा मैयाक परसाद देलकन्हि /
हरिद्वार सँ आएल छल/ कुम्भ नहा कऽ /
माथ  पर बोझ छल ,कतेक रास खिस्साक /
सह सह करैत लोक / मुंडे मूँड चारु दिस /
तिल रखबाक जग्गह नहि /
उपरका स्वास उपरे /
निचुलका नीचे /
मुदा सहस्त्र बाहु सन बेटा /
माय बाबू दुनु केँ पजिया कऽ भीड़केँ धकियाबैत /
आबि गेला घाट पर /
ओ निर्मल, ओ कन कन जल /
डुबकी पर डुबकी /
उतरि गेल सभ पाप /
वएह तँ स्वर्ग / आँखिसँ देखल /
ओ घंटी आ शंख सँ गुंजैत ,/
इन्द्रक दरबार सन सजल / मैयाक आरती ।  
ओइ दिन तँ शुरुआते छलै पोथीक /
बाँचैत रहली कतेको दिन / मास /
सुध बुध बिसरल /
बाबी संग कतेको मइया सभ लइत रहली उसास /
देती की माते , हुनको ई पुण्य लाभ /
बा  अहिना कोन मे पड़ल पड़ल /
जिनगी होइत रहत खाक।
माल जाल / पशु /पाखी /
मृतककेँ उद्धार करए वाली /
पतितपाविनी /सुनौथ हमरो सबहक विलाप ।
 दलान पर/
आंगन मे/
ओसारा पर/
गोहाली मे /
पोखरिक महाड़ पर/
बनैत रहलै बिसबासक पुल/
कुजरनी अपन तरकारी बेच कऽ/
मलाहीन माछ /तेलिन तेल /
कुम्हइन अपन माटिक बासन बेचि /
पुरहिताइन लोटा /हसूली /
बन्हकी राखि करैत रहली बाटक ओरियान
नहि जाति / नहि कुल गौरवक गुमान /
कतेक दिन सँ एतबे लागल धियान /
जे गंगा असननीया जेबै /
 ओहो माघ आबि गेलै /लागि  गेलै संगम मे कुम्भ /
 बिन कोनो पुरुख पातकेँ नेहोरा  पाती केने /
मोटरी चोटरी बान्हने/ अधरतिए /
टीसन पर/ पहुँच गेल रहै/नहा धो कऽ/ नब नब वस्त्र मे /
सम्पूर्ण गामक आधा सँ बेसीए स्त्रीगण सभ /
स्कूल /कॉलेज मे / पढ़य /पढ़बए वाली बेटी /पुतौह /
अस्पताल मे काज करैत सिस्टर /
डिग्री धारी नवतुरिया संग /
गामक मुखिया सहजों पीसी सेहो /
बुझैत अपना केँ महान /
बहरायल छल / सबहक संग /
करबक लेल अपन कल्याण /
साध हेतै पूर्ण आब /
करबाक गंगा अस्नान ।

http://www.videha.co.in/BinitaJha.jpgबिनीता झा- चैन
चैन
जखन गेलौं चैन लग बैसय,
ओ मुँह बिचका कऽ पड़ा गेल।
पहिने घुमय छल अंगना मे,
ने कहि कतऽ आब बिला गेल।
जखन गेलौं ओकरा दुनियाँ मे ताकय,
बिच्चे मे बाट हमर अपने हेरा गेल।
कहियो भरमा कऽ सपना देखौने छल,
आइ काज पड़ल तँ आंगन मे बैसल छोड़ि गेल।
ओ जे गेल तँ चलिये गेल,
दिन-राति बाट सभ ताकैत रहि गेल।


 
http://www.videha.co.in/JyotiJhaChaudhary.JPGज्योति झा चौधरी

पिया जल्दी सँ आउ ने (वैलेन्टाइन डे पर विशेष)                       

पिया कथीक अछि एहेन गुमान
अहॉं किछु तँ बताउ ने
छोड़ू- छोड़ू ने डोली कहार
अहॉं ओहिना लऽ जाउ ने ऽऽ

ऑंखि हमर अछि द्वारे पर गारल
पूरी पकवान बनि राखल सेरायल
केने बैसल छी सोलह सिंगार
अहॉं जल्दी सऽ आउ ने ऽऽ
छोड़ू-छोड़ू ने डोली कहार
अहॉं ओहिना लऽ जाउ ने ऽऽ


सॉंझक आघात सँ इजोत पड़ायल
दिन भरिक असगरूआ मोन अघायल
तुलसी चौड़ा पर दीपक कतार
अहॉं घर जगमगाउ ने ऽऽ
छोड़ू-छोड़ू ने डोली कहार
अहॉं ओहिना लऽ जाउ ने ऽऽ


संगे लऽ जायब अगिला बेर कहलहुँँ
विश्वास राखिक हम नहिं किछु बजलहुँ
बीतल जाइए उमरक बहार
अहॉं काज बिसराउ नेऽऽ
छोड़ू-छोड़ू ने डोली कहार
अहॉं ओहिना लऽ जाउ ने ऽऽ

 

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://www.videha.co.in/RajdevMandal.jpgराजदेव मण्‍डलक दू गोट कवि‍ता .http://www.videha.co.in/Jagdish_Prasad_Mandal.JPGजगदीश प्रसाद मण्‍डलक दूटा गीत

http://www.videha.co.in/RajdevMandal.jpg
राजदेव मण्‍डलक
दूटा कविता-

राजदेव मण्‍डल जीक दूटा कवि‍ता

दगध सुर

कलीकेँ स्‍वर सुनि‍
पि‍क भेल पागल
अन्‍तरमे कि‍छु जागल
लेलक कान मुनि‍
मनमे गप्‍पकेँ गुनि‍
कली बजैत अछि‍ अपनहि‍ धुनि‍-
मधुमासक आगमन भेल
अहाँ फँसि‍ गेलौं कोन खेल
हृदय केना बि‍सरि‍ गेल
के बनौलक एहेन जेल
जतए चलैत अछि‍ फरेबी खेल
हमरा बना देलौं बकलेल
आकि‍ अहाँ बनि‍ गेलौं सन्‍त
वि‍योगक दाहसँ दग्‍ध छी कन्‍त
साँचे अनन्‍त अछि‍ वसन्‍त
कि‍न्‍तु हमर नै देखब अन्‍त।

इजोतक वस्‍त्र
घर-दुआरि‍केँ नीप
हाथमे लेने जरैत दीप
अन्‍हारसँ लड़बाक इच्‍छा
कऽ रहल समैक प्रतीक्षा
हवाक झाेंका कऽ रहल खेल
दीया अपनाकेँ बचेबाक लेल
आँचर तर ढुकि‍ गेल
जेना इजोत वस्‍त्र बनि‍ गेल
आँखि‍केँ असंख्‍य दीप सुझाएल
जे छल मुझाएल
बाट अछि‍ असीम, अपार
अड़ल चारूभर अन्‍हार
एक दीप अछि‍ ज्‍वलि‍त
तँ करत अनेकोकेँ प्रज्‍वलि‍त
नेसि‍ रहल धेने इहए आस
ठामहि‍-ठाम खेलत उजास।


http://www.videha.co.in/Jagdish_Prasad_Mandal.JPG
जगदीश प्रसाद मण्‍डल जीक दूटा गीत-

मरम देखि‍......

मरम देखि‍ मर्माहत होइ छै
मर्म देखि‍ मर्माहत होइ छै।

डाह मरम मरण देखि‍
मर्माहत टुक-टुक तकै छै।
तारन-मारन देखि‍-देखि‍
ति‍लमि‍ला ति‍ल-ति‍ल खसै छै।
ति‍लमि‍ला ति‍ल-ति‍ल खसै छै।
मरम देखि‍......

मर्मक आहत देखि‍-देखि‍
घात-अवघात हृदए लगै छै।
तइर तीर तीड़ि‍-तीड़ि‍
सगर देह सकबेधल देखै छै।
सगहर देह सकबेधल देखै छै।
मरम देखि‍......

मर्म मारि‍ सुमारि‍ छोड़ि‍
कुमारि‍ मारि‍ मारैत रहै छै।
अढ़ि‍-मोड़ि‍ एँठि‍ रस्‍सी
बाट-घाट सकबेधल देखै छै।
बाट-घाट सकबेधल देखै छै।
मरम देखि‍......

मर्म एक दुनि‍याँ बसि‍
जि‍नगीक पाठ पढ़ैत रहै छै।
दोसर मरम मरण बनि‍
भूत-राकश टहलैत रहै छै।
भूत-राकश टहलैत रहै छै।
मरम देखि‍......




चालनि‍-सूप......

चालनि‍-सूप चालनि‍ एलौं
भाय यौ, सूप-चालनि‍ चलनि‍ एलौं।
कखनो घाट कखनो अगम
बीच पानि‍ चलि‍आइत एलौं।
पकड़ि‍ पाँखि‍ सुगना गीधक
चाल चील चि‍लचि‍लाइत एलौं
भाय यौ, चालनि‍......

कखनो सि‍मटी बालु बनि‍
संगे-संग पथराइत एलौं।
दोखरा-तेखरा कखनो बनि‍
मुरही संग भुजाइत एलौं
भाय यौ, मुरही संग भुजाइत एलौं।
चालनि‍-सूप......

जल्‍ला सि‍र गाछ पकड़ि‍
बाँस जाल जलि‍आइत एलौं।
अल्हुआ-सुथनी फल पकड़ि‍
मरि‍या-अरि‍या फेकाइत एलौं
भाय यौ, मरि‍या-अरि‍या फेकाइत एलौं।
चालनि‍-सूप......

करनी-धरनी बढ़नी बनि‍
अंगने घर बहराइत एलौं।
गुड़ा-खुद्दी खखरी बनि‍
गुड़चल्‍ला-चला चलनि‍ एलौं
भाय यौ, गुड़चल्‍ला चला चलनि‍ एलौं।
चालनि‍-सूप......

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http://www.videha.co.in/BalMukundPathak.jpgबाल मुकुन्द पाठक- गजल १-
गजल

मिललौँ अपन चानसँ भेल पुलकित मोन
बीतल पहर विरहक भेल हर्षित मोन

छल आँखि सागर ताहिसँ सुनामी उठल
बहलौँ तकर वेगसँ भेल विचलित मोन

बाजल तँ जेना बुझु फूल झहरल मुखसँ
ठोरक मधुर गानसँ भेल शोभित मोन

ओकर बढ़ल डेगसँ दर्द हरिया उठल
पायलक सुनिते स्वर भेल जीबित मोन

प्रीतक तराजू पर तौललौँ धन अपन
विरहक दिया जड़िते भेल पीड़ित मोन

बहरे सलीम ,मात्राक्रम २२१२  २२२१  २२२१

.गजल

पिया बिन ऐहि घर रहिये कऽ की करबै
विरह सन आगिमे जड़िये कऽ की करबै

अपन कनियाँ जखन कहि नै सकब हमरा
पिया करमे अपन धरिये कऽ की करबै

निवाला जखन नै भेटत तँ बुझबै दुख
गरीबक दुख अहाँ सुनिये कऽ की करबै

उड़ाबै देखि खिल्ली लोक हमरा यौ
समाजक बनि हँसी रहिये कऽ की करबै

जखन दर्दक इलाजेँ नै अहाँ लग यौ
तखन बेथा हमर सुनिये कऽ की करबै

बहरे हजज ,मात्रा क्रम १२२२ तीन बेर


 
ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
.http://www.videha.co.in/BindeshwarNepali.jpgबिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"- प्रेम / गजल .http://www.videha.co.in/sumit_kariyan.jpgसुमित मिश्र- गजल १-

http://www.videha.co.in/BindeshwarNepali.jpgबिन्देश्वर ठाकुर "नेपाली"
धनुषा नेपाल , हाल:कतार
प्रेम / गजल
प्रेम

नै सोचू नै घबराउ अहाँ
एक दिन हम जरुर आएब
संगमे दसैं, तिहार तथा
भ्यालेनटाइन सेहो मनाएब।।

दुश्मन कतबो दुआरपर होइतो
लाख कोसक बीच होइ छै
प्रीतम दूर पहाड़पर होइतो
घर-आङ्ग्नक बीच होइ छै।।

आजुक दिन प्रेमक प्रतीक
प्यार करी से मन करैए
अहाँ संगक झगड़ा-प्यार
दुनु हमरा याद अबैए।।

गजल
देखब मनमानी कतेक दिन करै छी 
विधवा संग कहानी कतेक दिन करै छी 

समय चक्रमे अहूँ मुरछाएब
जीवनक गुलामी कतेक दिन करै छी

मानव भऽ मानवता सीखू 
दोसरक गुलामी कतेक दिन करै छी 

मलिन नै करु मिथिलाक संस्कृति
बौआ -बुच्चीक ढुवानी कतेक दिन करै छी

समएमे एखनो निक पथ रोजु 
मानवताक ग्लानी कतेक दिन करै छी
http://www.videha.co.in/sumit_kariyan.jpgसुमित मिश्र
करियन ,समस्तीपुर
गजल-1

पहाड़ संग टकरेबाक लेल अटल विश्वास चाही
नै मिझा सकै एहन ज्वालामुखीके प्रकाश चाही

पिँजराक बंधन में बन्न पंछी कोना कऽ उड़ि सकत
कोनो सपना पूरा करबाक लेल मुक्त आकाश चाही

करेज पर चोट करैत भविष्य केर किछु सवाल
शीप वा मोती पाबऽ लेल सागर पिबाक पियास चाही

अन्हारेमे आयल दिनकर सँ संसार रोशन छै
अज्ञानता सँ जीतबाक लेल निरंतर प्रयास चाही

ई चलायमान दुनिया अनवरत चलैत रहत
मुदा अचल नाम लेल पहचान किछु खास चाही

माटि पर गिरल फूल सँ भी घर-आँगन गमकत
मुदा ओझरायल बाटमेँ सही राहके तलाश चाही

कृपा करब माँ शारदे आब नाव फँसल मँझधार
हरेक खेल जीत सकी "सुमित" के एतबे आश चाही

वर्ण-20

गजल-2

सबटा मोनक बात हुनक आँखि बता गेल
बहल एहन बसात हमर होश उड़ा गेल

नदीकेँ धारकेँ विपरीत चलबाक कोशिश
भासैत जा रहल स्वप्न सब किछु हेरा गेल

पाथरपर फूल उगायब जुनि छै कठिन
डेगहिँ-डेग मिलल निराशा आश जगा गेल

स्वार्थक बदरी मानवतापर मँडरायल
भाइ-भाइमे दुश्मनी गामक-गाम जरा गेल

संस्कृतिकेँ झकझोरैत नव जमानाकेँ दौड़
लोक-लाज गुम अपन उपस्थिति देखा गेल

गरीबी केर लत्ती चहुँ ओर लतरल अछि
गमकैत फुलबाड़ी "सुमित" पल भरिमे सुखा गेल

वर्ण-17

 

ऐ रचनापर अपन मंतव्य ggajendra@videha.com पर पठाउ।
. http://www.videha.co.in/JyotiJhaChaudhary.JPGज्योति झा चौधरी २.http://www.videha.co.in/RajnathMishra.jpgराजनाथ मिश्र (चित्रमय मिथिला) . http://www.videha.co.in/UmeshMandal2.jpgउमेश मण्डल (मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव-जन्तु/ मिथिलाक जिनगी)
.
http://www.videha.co.in/JyotiJhaChaudhary.JPGज्योति झा चौधरी


http://www.videha.co.in/APARAJITA1.jpg

.
http://www.videha.co.in/RajnathMishra.jpgराजनाथ मिश्र
चित्रमय मिथिला स्लाइड शो
चित्रमय मिथिला (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )

.
http://www.videha.co.in/UmeshMandal2.jpgउमेश मण्डल

मिथिलाक वनस्पति स्लाइड शो
मिथिलाक जीव-जन्तु स्लाइड शो
मिथिलाक जिनगी स्लाइड शो
मिथिलाक वनस्पति/ मिथिलाक जीव जन्तु/ मिथिलाक जिनगी  (https://sites.google.com/a/videha.com/videha-paintings-photos/ )


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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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