३.८.१.बृृषेश
चन्द्र लाल- कहिआधरि
ढुनैत रहब !
२.कामिनी
कामायनी- ई
केक्कर शोणित ?/खिड़की/भरोस ३.मुन्नी
कामत जीक दू गोट कविता
१.जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’-भक्ति गजल २.डाॅ. शिव
कुमार प्रसाद केर तीन गोट कविता
१
जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
भक्ति गजल
गीता वेद पुराण बुझै छी
कण कणमे भगवान बुझै छी
तों विपत्तिमे दौगल अएलें
हम तोरे हनुमान बुझै छी
जकरा ल’ग विवेकक धन छै
हम तकरे धनवान बुझै छी
सभ नारीकें नमन करी हम
परधन बालु समान बुझै छी
घूस लेब आ देब कथू ले’
हम अपनहि अपमान बुझै छी
सत्यक खातिर लडय स्वयंसं
हम ओकरे संतान बुझै छी
२
डाॅ. शिव
कुमार प्रसाद केर तीन गोट कविता-
खेबैया
सबहक नाॅकेँ भेटल खेबैया
बिनु खेबैया हमरे नाॅ अछि
देखू पार आब केना लगैत अछि
बिनु खेबैया हमरे नाॅ अछि।
किनको टाका पार लगौतन्हि
किनको नेता पार लगौतन्हि
अपन-अपन बाँस भिरौने
बहुतो पार उतरलौ जाइ छथि
बिनु खेबैया हमरे नाॅ अछि।
दूर-दूर धरि नजरि खिरौने
ताकि रहल छी आँकि रहल छी
किनका पछुऔने पार लगत नाॅ
कियो संगी नै भेटि रहल अछि
बिनु खेबैया हमरे नाॅ अछि।
किनको बड़का पैघ हबेली
किनको बड़का पागक डौड़ही
किनको सार किनको मामा
धोती जिनक अकास सुखाइत अछि
बिनु खेबैया हमरे नाॅ अछि।
माय हमर नव कुम्भ नहेली
माय हमर नव कुम्भ नहेली
नै हुनका मन पापक गेठरी
नै हुनका मन बाँझक धोकरी
नैना-भुटुकाक साँस हास सन
जिनगी भरि ओ खूब नहेली
माय हमर नव कुम्भ नहेली।
नै कहियो ओ चानन केली
नै कहियो संन्यासिन भेली
गिरहस्थीकेँ स्वर्ग बूझि ओ
कर्मक संग प्रभु गुण गेली
माय हमर नव कुम्भ नहेली।
नै ओ िवदुषी नै ओ सुन्नरि
नै आडम्वरी नै कनसोही
बाट-बटोही सभ जन हिनका
मनुक्ख रूपमे भेटल सिनेही
माय हमर नव कुम्भ नहेली।
मन प्रयागमे त्रिविध तापकेँ
कर्मक हूलासमे अपन गर्वकेँ
अपन मनोरथ परक दुखमे
आजीवन ओ डुमौने रहली
माय हमर नव कुम्भ नहेली।
देख एलौ हम पटना
हलसल-फुलसल बसमे बैस कऽ
पहुँचि गेलौं हम पटना
देख एलौं हम पटना।
भरि रस्ता हम उड़िते गेलौं
रातिक नीन भेल सपना
केतबो गुहारि देव-गोसाओनकेँ
मन पड़ैत छल फेकना
देख एलौं हम पटना।
बाप जनम नै देखने छलौं
एहेन मनुक्ख जंगल
भोजे बेरमे पहुँचि गेल
ओ पपिआहा घर-घुसना
देख एलौं हम पटना।
चोर-उच्चका डेग-डेगपर
भीड़ देखि कऽ जी उड़ैत छल
बाहर-भीतर जाएब कठीन छल
बेथाक नाओं अछि पटना
देख एलौं हम पटना।
हुनकर बात काटि हम एलौं
बाल-बोधकेँ छोड़ि कऽ एलौं
नेताजी कि बात बनौता
मोन रहत ई घटना
देख एलौं हम पटना।
मन होइत अछि उड़ि कऽ पहुँचि जाइ
अपन सोहागक अंगना।
मेटा रहल अछि झँपा रहल अछि
अपन परिचिति
देख एलौं हम पटना।
अमित मिश्र
६ टा भक्ति गजल
1
भाँग खा कोना नशेरी भेलौं अहाँ
भूत सन तन अपन कोना केलौं अहाँ
साँप माला साजि बसहा बुढ़बा लऽ यौ
तीन लोकक नाँप कोना लेलौं अहाँ
विषकें पी नीलकण्ठी छी बनल यौ
होश दैवक उड़ल से जीयेलौं अहाँ
तीन नैनक वाण खा जे जरि जरि मरल
ओकरो सीधे तँ मोक्षे देलौं अहाँ
दानमे आगू अहाँ छी निर्धन बनल
"अमित"कें शिव बिसरि कोना गेलौं अहाँ
फाइलातुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
2122-2122-2212
बहरे-जदीद
2.
सजल दरबार छै जननी
भगत भरमार छै जननी
किओ नै हमर छै संगी
खसल आधार छै जननी
भटकि रहलौं जगत भरिमे
सगर अन्हार छै जननी
दुखक सागर बनल छी हम
सड़ल पतवार छै जननी
दबल छी बोझ तऽर मैया
अहींपर भार छै जननी
मफाईलुन
1222 दू बेर सब पाँतिमे
बहरे-हजज
3.
लिख रहल छथि पत्र सीता सुकुमारि यौ
अपन पाहुन लेल नेहक रस ढारि यौ
उपरमे छै लिखल शादर अछि नमन यौ
गामपर हेतै कुशल पूछै छथि सारि यौ
छी अयोध्यामे अहाँ हम जनकपुरमे
सहल नै जेतै विरहकें ई मारि यौ
गाम जा गेलौं बिसरि निज पति धर्म यौ
जोहि रहलौं बाट डिबिया बारि यौ
सून लागै घर बगैचा काटैत अछि
प्राण बिनु तन हमर गेलै हारि यौ
हमर बहिनक हाल सेहो बेहाल अछि
भाइ संगे आबि जैयौ दिअ तारि यौ
फाइलातुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
2122-2122-2212
बहरे-जदीद
4.
डूबि रहलै नैया बीच भँवर मैया
काँपि रहलै छाती फेर हमर मैया
थाकि गेलौं तोहर घरक बाटपर माँ
तन सकै नै चलबै कोन डगर मैया
तारि देलौं सबकें चरणमे बजा माँ
बाज एतै बारी कखन हमर मैया
दानवक दलपर बनि काल टूटि पड़लें
थम्हतै कहिया संकटक लहर मैया
जोड़ि कर विनति बस एतबे करब हम
"अमित" दिश दे एक्को बेर नजर मैया
फाइलातुन-मफऊलातु-फाइलातुन
2122-2221-2122
5.
लाल रंगक मोहमे फँसलनि हनुमान
ते तँ लाले रंग सन बनलनि हनुमान
पवनपुत्रक नाम के नै जानै एतऽ
सूर्यकें जहियासँ मुँह रखलनि हनुमान
काँपि रहलै राक्षसी सेना रण बीच
प्रेत भूतक काल बनि हँसलनि हनुमान
राम सेवकमे सबसँ आगू हनुमान
सुनि कऽ आज्ञा सिन्धुपर उड़लनि हनुमान
जपब चलिसा शुद्ध मोनसँ सब दिन भोर
"अमित"पर तखनेसँ बड ढरलनि हनुमान
फाइलातुन-फाइलातुन-मफ
ऊलातु
2122-2122-2221
6.
आइ नाँचल मधुवन झूमि राधा संग
प्रेममे नाँचल गोपी तँ कान्हा संग
खा कऽ मक्खन खेलथि खेल नटखट चोर
साँझ धरि जंगलमे रहि कऽ मीता संग
नाथि देलनि नागक नाँक यमुना जा कऽ
माँथपर चढ़ि केलनि नाँच यमुना संग
फोड़ि देलनि चूड़ी तोड़ि देलनि हार
जखन रचलनि मोनक रास राधा संग
गायपर बैसल बजबैथ वंशी मधुर
कान्हपर चढ़ि घूमथि गाम बाबा संग
फाइलातुन-मफऊलातु-मफऊलातु
2122-2221-2221
१.मिहिर झा-भक्ति गजल २.बिन्देश्वर ठाकुर-भक्ति गजल/ गजल१-२ ३.रामविलास
साहु जीक दूटा कविता
१
मिहिर झा
भक्ति गजल
जटाधारी मनोहारी रमाजोगी लगैए ई
शक्तीधारी गंगाधारी महादेवा लगैए ई
वरोदाता विषोधाता नटोराजा लगैए ई
ब्रिखारूढ़ा गणोराजा भस्माभूता लगैए ई
सदोध्याना हिमोवासा कलाधारी लगैए ई
हतोकामा नितोयोगी सदाचारी लगैए ई
महाबाधा महापीडा महातृष्णा हरैए ई
मनोलोका अधोलोका नभोलोका लगैए ई
रक्षपूज्या मोक्षदाता गौरीप्रिया लगैए ई
दंभविघ्ना शांतकारा ध्यानमग्ना लगैए ई
२
बिन्देश्वर ठाकुर
भक्ति गजल
अहीं छी हमर भवानी मैया हम अहाँकेँ मानै छी
करब सभ दिन पूजा पाठ मनसँ हम ई ठानै छी
उजड़ल घर बसाबू माँ एना किए फटकारै छी
राति भरि निन्द नै आबे सदिखन अहाँ लऽ कानै छी
क्षमा करु या सजा दिअ हम तँ अहिंक सन्तान छी
अज्ञानी हम पुत्र अहाँके बिधान ने किछु जानै छी
चिनी लैताह,दूध
लैताह कही ने माइ गै बाबूकेँ
लड्डु आ पेड़ा हमहुँ बनेबै तै तँ चिक्कस सानै छी
अहीं जननी, दुख
हरनी करु हमर उद्धार हे
शक्ति स्वरुपा जगदम्बे हम अहाँकेँ पहचानै छी
सरल बार्णिक
आखर:१९
गजल
१
सब खुशी भेटत बस मन होबाक चाही
सरकारी नोकरी लेल धन होबाक चाही
जङ्गल उजड़लासँ रोग सभ बढ़लै
स्वस्थ रहबाक लेल वन होबाक चाही
दानव चपेटामे पिसा रहल लोक एतऽ
रावन ला रामक आगमन होबाक चाही
बात बनौलासँ केवल काम कोना चलतै
घर सुद्धी करब तँ हवन होबाक चाही
जनताक खुन चुसने नेता जी कहै छथि
चुनावमे उपरका सदन होबाक चाही
सरल बार्णिक
आखर:१६
२
पानसन पातर ई ठोर अहाँके
अहाँ छी चान्द हम चकोर अहाँके
जुनि घबराउ सभ नीक भऽ जेतै
अहाँ छी राति हम भोर अहाँके
संसारक गति बदलि जाए मुदा
अमर रहए प्रेमक डोर अहाँके
समय पैघ बलवान छै अपने
नै चलत ओइ आगू जोर अहाँके
नै बहाउ नयनसँ आँसू कनियो
मोती सन मोल अछि नोर अहाँके
सरल बार्णिक
आखर=१३
३
रामविलास
साहु जीक दूटा कविता-
मिथिलाक पियास
मिथिलाक पियास
नै मुझा सकल कोइ
जे मुझबैक प्रयासो केलन्हि
ओ सभ दिन ठकिते रहलै
मिथिलाक पियास बढ़ैत गेलै
अपन अश्रुकेँ पीबैत गेलै
पियाससँ मन व्याकुल भेलै
मिथिला तँ मैथिली लेल पियासल
मैथिली-रस पीबए चहै छलै
से रस कड़ुआएले छलै
पियासल मिथिला तड़ैप-तड़ैप
मैथिली लेल मड़ैत रहलै
कहैले मैथिली भाषा
सभ जनक भाषा छी
मुदा सभ दिन अपनेमे झगड़ैत रहलै
एक दोसरसँ छुबाइत रहलै
तँए मैथिलीक विकास नै भेलै
मकड़जालमे फँसल रहलै
तॅए आइ धरि नै
मिथिलाक पियास मुझलै
जाधरि मिथिलामे मैथिली
सभ जनक भाषा नै बनतै
ताधरि नै मिथिलाक पियास मुझतै।
किअए छुबाइ छी
छुबैसँ जखन छुबाइ छी
तँए कि परिवर्त्तन देखै छी
काज जखन नै छुबाइए
देहक लहू पानि नै बनैए
नै किनको लकबा मारैए
तँ केना छुबाइ छी?
पानि छुबाइए मुदा दूध नै
पान-मखनसँ मान बढ़ैए
चुड़ा-दहीक भोग लगैए
भात देखि मुदा मन ओकिऐ
भेद-भावक जाल बना
मनुक्खकेँ मनुक्ख नै बुझै छी
समाजकेँ कमजोर केना छी
एतेक धिनौना कुकर्म करै छी
तैयो अपनाकेँ पैघ बुझै छी
गंगा नहाए पूजा करै छी
उन्टे कहै छी छुबाइ छी।
पंकज
चौधरी (नवलश्री)
भक्ति
गजल-१
माय हम
आराधक बनल छी
सुनु
याचना याचक बनल छी
बस साधन
भेटए आशीष के
करी
साधना साधक बनल छी
सुर-तान के अवगति ने
किछु
वरदानसँ
वादक बनल छी
नौग्रहसँ
लड़ैत नवरातिमे
सप्त्शतिक
पाठक बनल छी
ममता
भरल आँचरि भेटल
"नवल" हम बालक बनल छी
*आखर-१२
भक्ति
गजल-२
श्वेत
अछि परिधान माँ हे
ठोढ़ पर
मुस्कान माँ हे
हाथ
पुस्तक कमल आसन
सजल
वीणा तान माँ हे
भारती
जय माँ भवानी
जग करै गुणगान
माँ हे
बुधि
बिना बकलेल सन हम
माँगि
रहलौं ज्ञान माँ हे
क्रोध
आलस लोभ भागय
दूर हो
अभिमान माँ हे
"नवल" माँगत आर नै
किछु
पाबि ई
वरदान माँ हे
*बहरे रमल / मात्राक्रम-२१२२
भक्ति
गजल-३
हम दान
मँगै छी माँ
निज-मान मँगै छी माँ
बस चानक
किछु गुण दे
नै चान
मँगै छी माँ
बकलेल
बिना ज्ञानक
बस
ज्ञान मँगै छी माँ
हम
बेसुर बिनु रागक
सुर-तान मँगै छी माँ
सुन
कोखि हमर जननी
संतान
मँगै छी माँ
बड़ आश "नवल" रखने
वरदान
मँगै छी माँ
मात्रा क्रम : २२१+१२२२
इरा
मल्लिक
भक्ति गजल- 1
राखु लाज हमर जगजननी
शरण मेँ एलौँ माँ जगतारिणी
कानि व्यथा किनका सौँ कहबय
दुख हरहु माँ दुखनिवारिणी
दृग सौँ झहरै नीर दर्श बिन
सुधि लीजै हे माँशोकनिवारिणी
नित पूजा नहिँ ध्यान धरय छी
चित्त नै थिर हे माँ सुखकारिणी
बीच भँवर मेँ डूबि रहल छी
धरू पतवार माँ भवतारिणी
वर्ण- 12
भक्ति गजल- 2
अहाँ प्रभू केखनो मोहिनी बनलियै
तँ केखनो नारद जीकेँ श्राप देलियै
अहाँके महिमा अछि अगम अपार
केहेन रचना जगत के रचलियै
जग के कण-कण मेँ व्यापित अहीँ छी
केहन अनुपम इ सृष्टि गढ़लियै
गँध मादक मनोरम वन सँपदा
तृण सँ सुरभित धरा के सजलियै
ऊँच पर्वत नदियाँ समुद्र झरना
सत्य शिव रूप सुँदर कहलियै
बाल वृध्द जवानी सँ गृहस्थी बसल
ममता प्यार सँग करुणा जगलियै
आखर-14
भक्ति गजल- 3
माटि तोहर हम लगायब माँ
आ टहल-टिकोरा उठायब माँ
सुँदर सबरँग फूल तोड़बै
ग्रीमहार गूँथि पहिरायब माँ
अर्हुल कमल फूल सँ अगबे
अहाँक वेणीसाज सजायब माँ
चुनि गेँदा चँपा बेलि भरि डालि
अँचरी मेँ मुनरी टँकायब माँ
जूही गुलाबक मुकुट बनेबै
जगजननी दर्शन पायब माँ
माँ के अनुपम रूप निहारब
रचि गीत मधुर सुनायब माँ
आखर- 12
भक्ति गजल- 4
हम किछु नै अहीँ अधार हमर छी
अहीँ तँ माए मार-सम्हार हमर छी
थिकौँ हम नीच पतित पातकी सुत
यै जननी अहीँ रखबार हमर छी
अहि दुनियाँक मायाजाल मेँ फसलौँ
जानि गेलौँ अहीँ माँ उबार हमर छी
बीतल वयस नाम सुमिरन बिन
हे करुणामयी माँ पुकार हमर छी
मझधार मेँ डूबि रहल मोर नैया
उबार करहु पतवार हमर छी
तन थाकल मन थाकि रहल अछि
तमस भरल मोनक उजियार हमर छी
जखन शरण हम अहाँके धेलहुँ
सबसे पैघ माँ सरकार हमर छी
आखर-14
१.राजदेव
मण्डलक तीन गोट कविता २.जगदीश
प्रसाद मण्डलक गीत ३.मनोज कुमार मण्डल- नहि त'अ ई बहि चलत
१
राजदेव मण्डल जीक तीनटा कविता-
स्वरक चेन्ह
स्वर आबि रहल आकाशक कोनो छोरसँ
दरद उठि रहल देहक पोरे-पोरसँ
अहाँक सोर पाड़ब हम सुनि रहल छी
असंख्यमे सँ अहाँक स्वर चुनि रहल छी
टपब खेत-खरिहान देश-कोस
मनमे अछि मिलन केर जोश
बियावान झाड़-पहाड़
नदी-नालाकेँ करैत पार
पहुँचब एक दिन अहाँक पास
लगौने छी मनमे आस
स्वरक चेन्ह अछि ठामे-ठाम
नै बिसरब आब अहाँक गाम
किएक भऽ रहल छी अधीर
मनमे उठैए रहि-रहि पीर
हएत शुभ मिलन रहू थीर
बरसत एक दिन शान्तिक नीर।
सुखक भाय
तोड़ि रहल छी फूल
गड़ि गेल हाथमे शूल
भऽ रहल केहेन स्पर्शक सुख
हाथमे गड़ल काँटक दुख
नै छोड़ि सकैत छी
आ ने तोड़ि सकैत छी
चलैत जिनगीकेँ नै मोड़ि सकैत छी
विचारक क्रमकेँ जोड़ि सकैत छी
फड़तै अलग-अलग फल
किन्तु एकेटा उद्गम स्थल
सुख आ दुख दुनू छी भाय
रहत सँगे नै छै उपाय।
हएत अगारी
सभ खेलै छलै अपन-अपन खेल
नै छलै केकरो आपसी मेल
सभ चलैत छल अपन-अपन चाल
अपने समांगपर फूटै छलै गाल
लोकक सिखऔलपर तोड़ैत छल गाल
सबहक भेल छलै हाल-बेहाल
कतेक प्रयास कतेक नोकसान
तब देलक हमरा गप्पपर धियान
बनल एकता कतेक छान-बान्ह
बालुक बान्ह कोन ठेकान
खुश भऽ सभ ठोकए लगल ताल
चुप्प नेता भऽ गेल वाचाल
ओझरा कऽ फँसल ओ लोभक जाल
ठाढ़ भऽ गेल कठिन सवाल
फेर बनलौं एकबेर बकलेल
जखैन नेते स्वार्थी भऽ गेल
पुन: ताकबै खेल रहतै जारी
जे नै भेलै से हेतै अगारी।
२
जगदीश
प्रसाद मण्डल
वृद्ध केना......
वृद्ध केना भेलिऐ
आँइ यौ बौआ
वृद्ध केना भेलिऐ।
बाटे बहकि-बहकि
धक बाढ़ि हेललिऐ।
वाम-दहिन भाँज बिनु
बूझि सूर भड़लिऐ।
वृद्ध केना......।
बसि बास पीपही गछिया
रिआइते खिया खिऔलिऐ
िनमोछा-निमोछी कहि सुनि
आम-कटहर भेलिऐ।
बौआ,
आम-कटहर......।
सात दिन सातो जनम
बुझियो नै पेलिऐ।
तेहने आसो आस
पाबि-पाबि झखौलिऐ।
वृद्ध केना......।
वृद्ध-सँ-समृद्ध कहबए
समृद्ध समाज सेज सजैए
साज श्रंृगार सोल्हो कला
वसन्त रीति सजबैए।
बौआ......।
सभ चाहए वसन्ती-वसन्त
धक्का बुढ़ाढ़ी खाइत एलिऐ।
गजुआ-बँझिया बाँझ-बाँझीन
लस-लस्सा बनैत रहलिऐ।
बौआ,
लस-लस्सा
बनैत रहलिऐ
वृद्ध केना......।
३
मनोज कुमार मण्डलक कविता
नहि त'अ ई बहि चलत
सुख -दुखक बीच बहैत
कर्म सरिता'क नीर
जीवनक ई छै सुधा
छुधा मेटा लिअ वीर
नहि त'अ ई बहि चलत
धारा गतिक अप्पन चाल
बदलैत पाबि पवनक आस
स्वकर्म सं होएत छै भूचाल
लहड़ लहडा लिअ वीर
नहि त'अ ई बहि चलत
कर्मवीरक जीवन अमृत
कायरक विष पहाड़
कोन ठेकान ई भेटत जीवन
लगा लिअ डुबकी अहिमे एकबेर
नहि त'अ ई बहि चलत
अनंत फूल सं शोभाए मान
महकैत मह -मह हर पल
खेलैत काया -कामनिक बेर -बेर
अप्पन नयन जुरा लिअ वीर
नहि त'अ इ बहि चलत
काल गति एक रंग
कर्म -अकर्मक संगे -संग
शरीरक श्रम सामान बनल
श्रमसाध्य सँ सर्व कल्याण करू वीर
नहि त'अ ई बहि चलत
१.जगदानन्द
झा 'मनु'- भक्ति गजल १-५ २.नवीन
कुमार ‘आशा’- हनीमून
जगदानन्द
झा 'मनु'
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
भक्ति गजल
१.गजल
चलि अहाँ कतए किए गेलहुँ मुरारी
एहि दुखियाकेँ हरत के कष्ट भारी
तान ओ मुरलीक फेरसँ आबि टारू
बिकल भेलहुँ एतए एसगर नारी
द्रोपतीकेँ लाज बचबै लेल एलहुँ
नित्य सय सय बहिनकेँ कोना बिसारी
बनि कऽ फेरसँ सारथी भारत बचाबू
सभक रक्षक हे मधुसुदन चक्रधारी
वचन जे रक्षाक देलहुँ ओ निभाबू
कहत कोना ‘मनु’ अहाँकेँ हे बिहारी
(बहरे रमल, वज्न – २१२२-२१२२-२१२२)
********************************
२.गजल
हे राम बसु मनमे हमर
ई प्राण धरि तनमे हमर
सदिखन अहीँक ध्यानमे
नै मन बसै धनमे हमर
प्रभु दरसकेँ आशासँ ई
भटकैट मन बनमे हमर
एतेक मन चंचल किए
प्रभु रहथि कण कणमे हमर
हे राम ‘मनु’पर करु दया
नै मन बहै छनमे हमर
(बहरे रजज, मात्रा क्रम
२२१२-२२१२)
***************************
३. गजल
अहाँ तँ सभटा बुझैत छी हे माता
सुमरि अहाँकेँ कनैत छी हे माता
दीन हीन हम नेना बड़ अज्ञानी
आँखि किए अहाँ मुनैत छी हे माता
अहाँ तँ जगत जननी छी भवानी
तैयो नहि किछु सुनैत छी हे माता
श्रधाभाव किछु देलौं अहीँ हमरा
अर्पित ओकरे करैत छी हे माता
नहि हम जानी किछु पूजा-अर्चना
जप तप नहि जनैत छी हे माता
जगमे आबि ओझरेलहुँ एहेन
अहाँकेँ नहि सुमरैत छी हे माता
छी मैया हमर हम पुत्र अहीँकेँ
एतबे तँ हम बजैत छी हे माता
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)
**************************
४.गजल
धूप आरती हम अनलहुँ नहि
जप-तप करब सिखलहुँ
नहि
सदिखन कर्तव्यक बोझ उठोने
अहाँक ध्यान किछु धरलहुँ नहि
की होइत अछि माए पुत्रक नाता
एखन तक हम बुझलहुँ नहि
हम बिसरलहुँ अहाँकेँ जननी
अहुँ एखन तक सुनलहुँ नहि
अपन शरणमे लऽ लिअ हे माता
ममता अहाँक तँ जनलहुँ नहि
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३ )
****************************
५.गजल
निर्धन जानि कऽ छोरि गेलहुँ माँ
कोन अपराध हम केलहुँ माँ
केहनो छी तँ हम पुत्र अहींकेँ
सभ सनेश अहींसँ पेलहुँ माँ
मूल्यक तराजुमे नै एना जोखू
ममताकेँ पियासल भेलहुँ माँ
दर-दर भटकि खाक छनै
छी
दर्शन अपन नै दखेलहुँ माँ
‘मनु’केँ अपन सिनेह नै
देलहुँ
सोंझाँ सँ दूर आब भगेलहुँ माँ
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१२)
२
नवीन
कुमार ‘आशा’
हनीमून
स्वामी पाओल पुरुषोत्तम राम
हुनक हृदये मे बसैत अछि प्राण ।
विवाहक रातिये सँ हुनक अछि संग
ओ छथि कृष्ण आ हम राधा ।
प्रियतम कहलथि नहि गढ़ेलौंह गलाक हार
नहि बढ़ेलौंह अहाँक श्रृंगार
नैना-भुटका मे उलझि कय रहलौंह
नहि अहाँकेँ विदेश घुमेलौंह हे प्रियतमा---
बाजि उठलाह अनचौके प्रियतम
कनी भऽ आबी कहलथि हमरा सँ
विआहक पुरे पचासम साल
हनीमून पर चलब गोवा ऐ साल
किछु तँ बाजु यै प्राण
एक बेर तँ खोलू अपन जुआन ।
तड़प हुनक हृदयक कचोट करि गेल
नहि चाहैत आँखि मे नोर भरि गेल ।
अजबारि देलक ई जीवन जग सँ
मोन करैए बाँहि मे समेटी लड़खड़ाइत पग सँ
क्षण-क्षण मृत्यु नजदीक देखै छी
तइयो ने जानि मोह मे फँसे छी
पड़ल छी मृत्यु सज्जा पर हम
तखनो नै जानि कविता गढ़ै छी ।
१.बृृषेश चन्द्र लाल- कहिआधरि ढुनैत रहब ! २.कामिनी कामायनी- ई केक्कर शोणित ?/खिड़की/भरोस ३.मुन्नी कामत जीक दू गोट कविता
१
बृृषेश
चन्द्र लाल
कहिआधरि ढुनैत रहब !
छोडू कमला आ कोशी
कतेक बाढ़िक कथा कहैत रहब,
कटान, ढ़हैत
मकान आ वएह बलानक कथा
कहिआधरि ढ़ुनैत रहब ?!
बनल नहि बरक्कत एतेक दिनसँ
प्रकोप आ प्रताड़नाक बादो
बाढ़िमे कहुना जीअलहुँ
बहलहुँ , बढ़लहुँ
नहि !
उप्लाकए उढ़रैत माछ खएलहुँ
बाढ़ि बान्हि , पकड़लहुँ
नहि !!
चुप्पे टोलाइत देखैत रहलहुँ
बहतैक कखनधरि ,
मुदा, सम्हरलहुँ
नहि !!!
माथपर हाथ धए
कथा रचलहुँ कटानपर
श्लोकपर श्लोक
दहाएल माछक तरानपर
लए कोदारि आ बेल्चा
कोशी–कमलासँ
न्यायहेतु लड़ए निकलहुँ नहि !!!!
हम महान छी कथामे
अपने जगतमे
जनकमे जानकीमे
मण्डन आ विद्यापतिमे
शंकर आ गंग बजबैत छी
बेसाहल पीडाकेँ तप कहि
चौपेटि सैंतिकए खूब सजबैत छी
नव त्वरित गतिक बदला
इतिहासक गतिसँ
हाट–बजार
चौक चौबटियामे
चिचिआ–चिचिआकए
अपनाकेँ भजबैत छी !
लोककेँ मसल्ला भेटि जाइत छैक
भुजिभाजिकए खाऽ लैत अछि हमरेसभकेँ
आ हमसभ, तैयो
ढोल फेर वएह बजबैत छी !!
छोडू कमला आ कोशी
कतेक बाढ़िक कथा कहैत रहब,
कटान, ढहैत
मकान आ वएह बलानक कथा
कहिआधरि ढुनैत रहब ?!
२
कामिनी
कामायनी- ई
केक्कर शोणित ?/खिड़की/भरोस
ई केक्कर शोणित ?
माझ आँगन मे /
बइसल/ सिलबट्टा पर /पिसा रहल छल भांग /
हाँकी रहल छलथि गाछी पप्प क/दलान पर/
तापि रहल छथि पतौह जरा क /जुटल नीफिकिर
लोग ।
उमहर /नहू नहू /करिक /समुच्चा खेत
खरिहान /
कनैत रहल हकन्न /पड़ाईत रहल नवतुरिया /
जिल्ला के जिल्ला पा र /समुद्र क पार /
नेने माथ पर अपन /स्वप्नक पोटरी/
आ पेट मे /संग्राम करैत /बयालीस हाथ क’ अंतड़ी ।
टमाटरक चटनी संग /गिड़इत सोहारी /
करैत रहले करेज शीतल /
भ जाए कीछु पाय /नई रहब परदेश तखन /
सपना के महल बनबए ले/
पठबइत रहल /मनियाडर/कटैत रहले दिवस /
बग्गे बानी /हुलिया /बिगाड़ि /सर्कस क जोकर
बनि /
करैत रहल/
मनोरंजन
सबहक /मुदा
असगर मे /
बहैत रहलै नॉर के कात करि/शोणित सदिखन /
मोंन पड़े जखन जख़न गाम
।
ओ हेराइल /भोथियाइल लोक के निर्दोख आंखि स /
झकेत सपना पर /लागि गेल रहैक/ड्कूबा सब हक नजरि/
ओहि पान /मखानक / जनक/जानकी / गौतम /याज्ञवल्यक /
गंडक /बागमती स’ सिंचित /तपोमय /यज्ञ भूमि पर /
लागय लागले /
कलंकक कारी टीका /
वीभत्स आरोपक /लिखाए लागले /करिया सियाही स/
मिथिला के आजम गढ़ /
तखन चित्कार कयने छल मों न /
सियासत क शतरंजी चालि/
के बली चढि गेले /ओ सुतल /
बिरहा /नचारी गबईत/संतोषी मनुख क
भूखेल ,पिछड़ल प्रदेश ।
नब त’ आकाश
कुसुम /पुरनको
बंद पड़ल/ कल
कारख़ाना /मिल /फैक्ट्री /
अनेकों आश्वाशनक
बादो खुजले नहिं जखन /
तखन परदेश मे चिचियाति अरमान /
कोन कोन राकस् क /हाथि लागि /
बोकरए लागले शोणित /
अपराधी ओ युवा / वा हमर घिनौन राजनीति /
खेलईत रहल गोटरस/नुकेने मुंह बाउल मे /
शूतरमुरगक जका/संकीर्ण /गर्हित जातिवाद्क अड़ मे /
जरेत रहलै कुसियारक मधुर खेत ।
कलपति छथि महाकाल /
ने जनम लेबे दिओ /
वेद, सांख्यक
भूमि पर आतंक्क ज्वालामुखी /
हमहू छी
गवाह अप्पन
भूमि के /
लाल ;पियर धोती / पा ग आ टोपी /दिवाली आ दाहा/
लोटा आ’ बदना /कीर्तन आ अजान /
बला माटि पा नि मे /
पिछला कतेक दशक स/
विदेशी आसुरी शक्ति /
किएक बारूद सानि रहल छै/
कराबिओ जांच शीघ्र एकर /
दूर फेंकू पोखरी स/सड़ल माछ /
महकइत पानिओ के सफाई
के समय आबि गेलै /
जागु सरकार /जागु /बड्ड कष्टकर छै /
आतंकवाद के पट्टी माथ पर/ बान्ही क /जीनाए /
समय के तकाजा अछि /
एहु क्षेत्र के इंसाफ चाहि आब ।
2
खिड़की ।
दिन मे तीन बेर /
भिनसर ,दुपहरिआ’ सांझ /
खोलि क खिड़की /
हेरय छी हमहू दुनिया जहांन के /
के कत्त स’ आबि रहल
अछि/
के किमहर जा रहल अछि /
ओकरा हाथ मे ओ की ?
एकरा माथ पर’ ई की ?
सूंघय छी हमहू हवा के /
पाथने रहेत छी कान /
अहि बदलति समय के /
बड्ड लग स देखबा के उत्कंठा मे /
चाहेत छी जाई /बाहर दूर धरि/
छूबी/ दसो आंगुर स /
महसूस करि अहि बदलाव के /
मुदा समय एकर अनुमति नहीं दैतै/
बुझल अछि खूब हमारा /
मात्र एक गवाह क ‘रूप मे /
ठाढ़ छी पल्ला पकड़ने /
समय के संग हम /
समय के कैद मे ।
3
भरोस ।
बेकल /विह्वल भरोस /
अपना स हारल /समय स मारल /
लज्जित /संकुचित /निराशा के गर्त मे धसल /
पाबि नहि रहल अछि /जिबा के कोनो ठेकान ।
केकरा कहतै/आ पतियेते त के /
की कहिओ ओकरो पुरखा के जमींदारी छल/
बिन लिखा पढ़ी /कलम दवात् क /बही खाता के /
चलैत छलई/कारोबार /खेत स खरिहान /
आ गाछी स बथान धरि के /सोन ,चानी,रूपा /
स ऊपर बइसल ईमान /एकरे अग्रज /
धेने अपन पिता धर्मक
ध्वजा दुनु हाथे /
क ल जोड़ने लोक चा रहु दिस
/
निर्बल आ सबल् क मध्य एक गोट मजगुत कड़ी /
मुदा हे लॉर्ड मेकाले /ई संताप अहि के
देल /
हमरा सन मंद बुद्धि वला /दोषी अहीके
मानैत छी/
तेहेन शिक्षा के चलन /
तार तार भेल हमर आवरण /
जे नहीं लिखल गेल बही मे /
हेतय कोना सही ?
रोमन लिपि मे दस्तखत करे लेल /
फड़केत आंगुर /
गुरेर क ताकने छल ईमान के जाही
दिन /
पेटकुनिया देने कोठी के दोग मे धर्म अपन
/
ध्वजा समेटने /ओसारा पर/बइसल /कल्पैत कुहरेत /
भरोस के देखि /शोक स आंखि सदा के लेल बन्न /
करि/नब भविष्य के /नब मुहावरा गढ़वा लेल छोड़ि देने छल।
३
मुन्नी
कामत जीक दू गोट कविता-
किअए बेटी बनेलहक विधाता?
पजेब अछि पएरमे
जेकर घ्वनि मघुर अछि
मुदा पकर बहुत मजगुत
कहैत अछि कि तूँ अजाद छेँ
मुदा अछि सीमा
कदम-कदमपर।
एगो एहेन दिवारक जे
बनल अछि;
बनु बालु-सिमेंटसँ
सोचक दिवार!
चाहे आसमानमे उड़ी हम
मुदा ओइ दिवारक ऊंचाइ
नै खतम होइत अछि
आखिर कतेक जनम तक
पाछाँ करत ई दिवार!
आ कखैन तक हम कहब
किअए बेटी बनेलहक विधाता!!!
दुनियाँ तबाह भऽ गेल!
बाबू किअए एहेन
समैक घारा बदललैए
सच्चे कहैए छेलैए
मुसहरु कक्का
“दू हजार
बारहमे
दुनियाँ तबाह भऽ गेलै!
नित अतए अन्याय होइ छै”
मनुख-मनुखकेँ
मारने फिरै छै
आन गोरेक कअ बात छोरह
भाय-भाय आ बेटा बापकेँ
कोदाइरसँ काटने फिरै छै।
अपने घरमे सभ हराएल रहै छै
पड़ोसी जकाँ सभ घोसिआएल रहै छै
नै छै केकरोसँ मेल-मिलान
घर-घर नचि रहल छै कोन अभिशाप।
अंगनामे तुलसी सुखाएल जाइ छै
नारीक लक्ष्मी रुप हराएल जाइ छै
नै डरै छैय कोइ भगवानसँ
नित गिरै छै अपने इमानसँ।
ईमानदारी लुप्त भऽ
बेइमानी उजागर भेलै
झूठक खेती पनपति गेलै
मनसँ मन दूर भेलै
सच देखहक बाबू यएह छिऐ
ठीके दुनियाँ तबाह भऽ गेलै।
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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