जगदीश
चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’
गजल
1
धनसं सुन्दर तन चाही
तनसं सुन्दर मन चाही
बाहर-बाहर दुनियां
ई
भीतर राम भजन चाही
नै चाही मोटर आ बंगला
हमरा नीलगगन चाही
हम पावन आ शान्त आत्मा
ई धियान सदिखन चाही
मित्र, मोक्ष
नै चाही हमरा
मरण और जीवन चाही
हानि-लाभ हो
दुख-सुख हो
बिछुडन आ’मिलन
चाही
सरल वार्णिक बहर,वर्ण-10
2.
मोटर आ ने महल चाही
कविता गीत गजल चाही
ओ रस्तापर कांट छिटैए
ओकरा लेल जहल चाही
महिशासुर अछि उत्पाती
मां दुरगाक दखल चाही
किए’खाधि आ
पर्वत कत्तौ
स’भ खेत
समतल चाही
घर दफ्तर वा करखाना
सभठां लोक कुशल चाही
अहिल्याक संताप हरैले’
नयनमे गंगाजल चाही
भार चंगेरा मैथिलीक हो
जागल मिथिलांचल चाही
सरल वार्णिक बहर,वर्ण-10
3
सदिखन कोनो बियोंतमे बाझल करैए आदमी
आदमीकें कतेक पांतमे बांटल करैए आदमी
आदमीक विवेक देखलहुं सांढ आ महिशा जकां
हरियर जजात बाधक धांगल करैए आदमी
आदमी केर रूप देखल बिलाइ आ कुकुर जकां
आदमीक डरसं एतय भागल करैए आदमी
आदमी केर देशमे किए आदमी केर टान अछि
आदमीक पेट पर किए नाचल करैए आदमी
सोचैत छी हम आदमीक सुविचार कें की भ’ गेलै
आदमीकें पाइसं सतत नापल करैए आदमी
आदमी ले’ वैह
सरिपहुं आदमी भगवान थिक
आदमी केर दुख-दर्द जे
बांटल करैए आदमी
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-19
4
माटि-पानि ले’ देश-कोस ले’ अहांक योगदान की
अहां उपस्थित छी दुनियामे तकर प्रमाण की
अहां बान्हि नेने छी पट्टी अपन दूनू आंखि पर
आब अहां लेल कोनो राक्षस की आ भगवान की
ओ नंगटे ठाढ भ’ गेल अछि
ऐ चौबटिया पर
आब ओकरा लेल कोनो सम्मान की अपमान की
अहां जनैत छी लहरि गनि क’ कमाएब पाइ
अहां लेल नोकरी की आ नून-तेलक दोकान की
अहां तं बातेसं क’ दै छिऐ
सभकें लहूलुहान
अहां ले’ कोनो
तीर की आ अहां ले’ कोनो
कमान की
अहां तं नारद छी घुमैत रहै छी तीनू लोकमे
अहांक लेल बाइक की मोटर की वायुयान की
साल भरिसं संगे रहै जाइ छी अहां दूनू गोटे
आब अहां सभक लेल परिछन की चुमान की
सरल वार्णिक बहर, वर्ण-18
रामदेव
प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’
झारू-
झारू बिनु ने घरक शोभा, ने हमरा बिनु हएत हवन
हमरा बिनु ने मंदिर-मस्जिद, और ने देशक संसद
भवन।
गीत-
झारूसँ नै घृणा करू
ई तँ अनुचित बात छी
मिलै छै जइसँ जगमे शान्ति
तेकर हम सुरूआत छी।
जइ घर नै छै हम्मर आदर
तइ घर घुसतै दुक्खक बादल
पएर पसारत रोग बेमारी
ओ घर भूतक जमात छी
मिलै छै जइ......।
की हमरा बिनु तनक शोभा
फुटतै कि मोन ऐ बिनु आभा
के कहौत हमरा बिनु मानव
केकर ई ओकात छी
मिलै छै जइ......।
के नै लइ छै हम्मर सेवा
राजा-रंक-दानव और देवा
के गिन सकतै रूप-रंग हमर
सौचैबला बात छै
जइसँ मिलै छै......।
किशन कारीगर
(आकाशवाणी दिल्ली)
दूधपीबा नेना
आजुके दिन जनमल “कारीगर”
खुशी सँ हम कहू
कोना?
हर्षित भेल अछि
मोन हमर
देलहुँ स्नेहबश
अहाँ जे शुभकामना।
केखनो के हँसी हम
केखनो अपने मने
कानी
मेला घूमै काल माए
बाबू संगे
करी हम कोनो बहन्ना।
आई मोन होइए फेर
सँ
बनि जाए हम
दूधपीबा नेना
रूसल छी आई ने
मानब
हमरा किन दियए ने
एकटा झुनझुना।
दाई के कोरा मे
खूम खेलाई
बाबाक कोरा मे हम
कानी
मामा संगे आबि जो
रे बौआ
सोर करैथ हमर
बुरहिया नानी।
ओई कोरा सँ ओई
कोरा जाई
केखनो क’ कानी केखनो खेलाई
फेर झुल्ला गाड़ी
पर बैसी क’
अंगने-अंगने
घूमलहुँ हम आई।
कियो दुलारैथ कियो
पुचकारैथ
कान पकड़ि के
उठाबैत-बैसाबैथ
आउ बौआ एम्हर आउ
सभ कियो हमरा सोर
पारैथ।
लुक्का-छिप्पी हम
खूम खेलाई
तहि दुआरे बड़का
बाबू खिसिआइथ
कतए हेरा गेल
दुलरूआ बौआ
टुकुर-टुकुर ताकैथ
बुरहिया दाई।
आइओ रूसले रहब आ
कि हँसब
खेलौना पिप गाड़ी, आ कि झुनझुना?
जन्मदिन पर पुछलीह
हमर माए
किछु ने फुराए, की कहत दूधपीबा नेना।
सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर
भक्ति गजल
हम निर्बुद्धि-पापी बैसल कानै छी
पुत्र अहीँके जननी क्षमा माँगै छी
तोहर दुआरि बड भीड़ हे मैया
कखन देब दर्शन आब हारै छी
अष्टभुजा नवरुप जगदम्बिके
दशो दिशा विभूषित अहाँ साजै छी
ममतामयी झट दया-दृष्टि करु
नाव भँवरसँ दुःखियाके उबारै छी
अरहुल फूल आ ललका चुनरी
असुर विनासिनी जगके तारै छी
"सुमित" बालक जुनि ज्ञान हे दुर्गे
चरण बैसिकऽ गीत अहीँके गाबै छी
वर्ण-12
जगदानन्द झा ‘मनु’
ग्राम पोस्ट- हरिपुर डीहटोल, मधुबनी
गजल
१.गजल
घोड़ा जखन कोनो भऽ नाँगड़ जाइ छै
कहि ओकरा मालिक झटसँ दै बाइ छै
माए बनल फसरी तँ बाबू बोझ छथि
नव लोक सभकेँ लेल सभटा पाइ छै
घर सेबने बैसल मरदबा छै किए
चिन्हैत सभ कनियाँक नामसँ आइ छै
कानूनकेँ रखने बुझू ताकपर जे
बाजार भरिमे ओ कहाइत भाइ छै
खाए कए मौसी हजारो मूषरी
बनि बैसलै कोना कऽ बड़की दाइ छै
पोसाकमे नेताक जिनगी भरि रहल
जीतैत मातर देशकेँ ‘मनु’ खाइ छै
(बहरे रजज, मात्रा क्रम २२१२ तीन तीन बेर)
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२.गजल
आइ सगरो गाममे हाहाकार छै
मचल एना ई किए अत्याचार छै
आँखि मुनने बोगला बैसल भगत बनि
खून पीबै लेल कोना तैयार छै
देखतै के केकरा आजुक समयमे
देशकेँ सिस्टम तँ अपने बेमार छै
देखते मुँह पाइकेँ कोना मुँह मोरलक
मांगि नै लेए खगल सभ बेकार छै
भरल भिरमे एखनो धरि एसगर छी
केकरो मनपर ‘मनु’क नै अधिकार छै
(बहरे जदीद, मात्रा क्रम – २१२२-२१२२-२२१२)
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३.गजल
अहाँ पिआर करु हमरा हमर बसन्ती पिया
अपन बाबूक नहि हम आब रहलहुँ धिया
बहुत जतनसँ सोलह बसन्त सम्हारलहुँ
आब नहि सहल जाइए हमर टूटेए हिया
नेह रखने छी नुका कए कोंढ़ तर अहाँ लए
रुकि नहि जुलूम करु हमर तरसेए जिया
आब आँकुर फूटल पिआरक अछि चारू दिस
अहाँ जे रोपलौं करेजामे हमर प्रेमक
बिया
आउ हमरा सम्हाइर लिअ हमर सिनेहिया
अहाँकेँ सप्पत दै छी करियौ नै ‘मनु’
एना छिया
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१८)
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४.गजल
खाल रंगेल गीदड़ बड्ड फरि गेलै
एहने आइ सभतरि ढंग परि गेलै
घुरि कऽ इसकूल जे नै गेल जिनगीमे
नांघिते तीनबटिया सगर तरि गेलै
देखलक भरल पूरल घर जँ कनखी भरि
आँखि फटलै दुनू डाहेसँ मरि गेलै
सभ अपन अपनमे बहटरल कोना अछि
मनुखकेँ मनुख बास्ते मोन जरि गेलै
बीछतै ‘मनु’ करेजाकेँ दरद कोना
जहरकेँ घूंट सगरो पी कऽ भरि गेलै
(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम २१२२-१२२२-१२२२)
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५.गजल
लुटेए गाम गाबेए कियो लगनी
किए लागल इना सभकेँ शहर भगनी
कियो नै सोचलक परदेश ओगरलक
भऽ गेलै गामपर माए किए जगनी
उठेलहुँ बोझ हम आनेक भरि जिनगी
अपन घरमे रहल सदिखन बसल खगनी
बिसरलहुँ सुधि सगर कोना कऽ हम हुनकर
बनेलहुँ अपन जिनका हम घरक दगनी
अपन जननी जनमकेँ भूमि नै बिसरल
भरल बाँकी तँ अछि सभठाम ‘मनु’
ठगनी
(बहरे हजज, मात्रा क्रम १२२२ तीन तीन बेर सभ पांतिमे)
जगदीश
प्रसाद मण्डल
जगदीश प्रसाद मण्डलक दूटा अनुपम गीत
भगवती गीत-
एना किअए बनेलौं हे मइये
एना किअए बनेलौं।
दुनियाँ रचै-बसैले
दुनियाँ अहाँ बनेलौं।
भूमा भोग भगा-भगा
माइयक कोर छोड़ेलौं।
हे मइये......।
सूखल रोटी अल्लू सनि सानि
दिन-राति किअए खुएलौं
बाँकी भगा-भगा कऽ
रोग-वियाधि पठेलौं
एना किअए......।
जामंतो फूल-गाछ सिरजि
जामंतो फूल-फल सजेलौं
चीन्ह-पहचीन्ह विस बिसरा
अगुआ थारी खिंचलौं हे मइये
एना किअए......।
बानि वहारि नयन दहाड़ि
बनवासी बना पठेलौं।
कलपि-तड़पि तैयो कहै छी
हीआ जोगि जोगेलौं हे मइये
एना किअए......।
आनक बोझ......
आनक बोझ उठाबै खातिर
अपनो बोझ भड़कि गेलै।
दबि-दबि, उनरि-उनरि
जुन्ने बीच ससड़ैत गेलइ।
मीत यौ, अपनो......।
पसरल पानि धार तरहत्थी
बीतल-अतल बनैत गेलै।
सिर ससरि-ससरि सर
अपनो पएर पिछड़ैत गेलै।
मीत यौ, अपनो......।
रहलै ने सुधि-बुधि मिसिओ
मोसिआनी बदलैत गेलै।
उज्जर कागज-कलम कहि-सुनि
आखर कारी अंकड़ैत गेलै।
मीत यौ, आखर......।
घूरि घूर घुड़लै जखन
मारि मेघ मारैत गेलै।
कटि कोदारि कोदरकट्टा भऽ भऽ
रूप
अमावस धड़ैत गेलै।
मीत यौ, जुन्ना बनि
ससरैत गेलै।
मीत यौ, आनक......।
राजदेव
मण्डल
तीनटा कविता-
गन्तव्यक भरम
मन भऽ गेल पुलकित
गाबए लगलौं गीत
मिलि गेल मंजिल
भऽ गेल हमर जीत
जेकरा बुझलौं मंजिल
ओ कहलक-
“अहाँकेँ
नै अछि अकिल
लटकल छी अधरममे
फँसल छी भरममे
जेकरा ताकैले एते प्रयास
से धेने अछि अहींक आस
किएक बखतकेँ करै छी नाश
ओ तँ अछि अहींक पास।”
दरदक भोर
अखन तँ भेलै दर्दक भोर
साँझमे देखबै अन्तिम छोर
चिचिआइत मन करै शोर
कानब तँ सुखि जाएत नोर
तानब तँ छूटि जाएत जोड़
डरे धेने छी केकर गोड़
थाह नै भेटए थोड़बो-थोड़
ताकब दरदक अन्तिम कोर
छोड़ि देत ओ हमर पछोड़।
केहेन मांग
असली मांग
बजल अर्द्धांग
“जिनगी
भरि बनले रहब बताह
काटिते रहब हम कठ आ काह
पलिवारक नै अछि परबाह
डूमि जाएत आब घरक नाह
जरि गेल सभ मनक चाह
केना कऽ चलब काँट भरल राह।”
करै छी जौं गप्पपर विचार
मन बहैत अछि तेज धार
तँए,
पटियापर पटुआ गेलौं
लाजे कठुआ गेलौं
केना करब एकरा सम्हार
पाबि नै रहल कोनो पार
रखबाक छै सबहक मान
करए पड़त एकर निदान।
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा
खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा
द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ
मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
मन्त्रद्रष्टा ऋष्यश्रृङ्ग- हरिशंकर श्रीवास्तव “शलभ"- (हिन्दीसँ
मैथिली अनुवाद विनीत
उत्पल)
चतुर्थ परिच्छेद
ऋष्यश्रृंग
आश्रमक स्थापना
किछु
दिन अयोध्याक रनिवास मे रहैक बाद ऋष्यश्रृंग अप्पन स्त्रीक संग मालिनी घुरल।
मालिनी सं पश्चिम भाग स्थित अप्पन आश्रम कऽ सुव्यवस्थित केलक।1 ओहि आश्रम मे
वेदक अध्ययनक व्यवस्था करल गेल, जे कतेक रास आचार्यक देख-रेख मे संचालित
छल।
एकर बाद
ऋष्यश्रृंग शान्ताक संग कौशिकीक कातक कज्जल वन स्थित अप्पन पुण्याश्रम सेहो घुरल।
ई वहि पुण्याश्रम छल, जतय सं
गणिका हुनका अंगक राजधानी मालिनी लऽ गेल छल। अंतर्मुखी युवक ऋष्यश्रृंगक बिना ई
आश्रम सून छल। मन सं वेदक सार्थक पाठ करय बला ऋष्यश्रृंग के आबैत लता हिल-हिलकऽ
स्वागताभिवादनक मुद्रा मे आबि गेल। पिता विभाण्डक अप्पन पुत्रक अहि उपलब्धि पर
हर्षोत्फुल छल। शान्ता जेहन पुत्रवधू कऽ पाकऽ ओ पुलकित भऽ उठल।
अहि
पुण्याश्रम मे ऋष्यश्रृंगाश्रमक स्थापना केल गेल, जाहि के पहिलुक कुलपति ऋष्यश्रृंग छल।
उत्तर वैदिक काल मे विश्वविद्यालयक स्तरक मान्यता अहि आश्रमके प्राप्त छल। तहियौका
आर्य जातिक शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक, भौतिक आ
सांग्रामिक उन्नतिक कारण हुनकर शिक्षा प्रणाली छल। रामायण काल में ऋष्यश्रृंगाश्रम
बड़ चर्चित छल। महाभारत मे सेहो एकर संक्षिप्त विवरण भेटैत अछि। पंडित रामदीन
पांडेय लिखैत अछि जे ऋष्यश्रृंग अप्पन युगक महान आचार्य छल। चिकित्सा शास्त्र मे
हुनकर अद्भुत प्रवेश छल। महाभारत युग मे ई आश्रम बड़ रास हरिहर छल। युधिष्ठिर
वनवास काल मे लोमश ऋषिक संग अहि आश्रम मे आयल छल। आश्रम मे दस हजार छात्र सभोजन, सवस्त्र आ
निशुल्क शिक्षा प्राप्त करैत छल।2
अहि
आश्रमक ब्रह्मचारी मे भक्ति, शुद्धता आ पवित्रताक संग धार्मिक वृत्तिक उदात्त आ गरिमामय
छल। ओ सभ दैनिक क्रिया, संध्योपासन, व्रतक अनुपालन आ
धर्म समन्वित उत्सव से हुनक जीवन मे उन्नति, आत्मविश्वास, आत्मबल आ आत्मिक शक्ति प्रचुर रूप सं भेटैत छल।
आचार्य कुल मे अग्नि-परिचर्याक सभ दिन पालन, ब्रह्मचारीक लेल एकटा धार्मिक व्रतक समान छल आ ई
आश्रमक अनुशासनक महत्वपूर्ण अंग छल। आचार्य ऋष्यश्रृंगक कुशल कुलपतित्व मे ई आश्रम
जम्बूद्वीप में चर्चित भऽ गेल। वेद आ ओकर सभटा अंगक संग चिकित्सा शास्त्रक गहन
ज्ञान ब्रह्मचारी छात्र सभके देल जायत छल। समिधा आ मेखला सं अप्पन व्रतक नियम सं
पालन करैत ब्रह्मचारी श्रम,
तप आ गुरुसभक आशीर्वादक प्रभाव सं अध्ययन मे सफलता प्राप्त करैत छल।
ऋष्यश्रृंग आश्रम मे तप ब्रह्मचर्य जीवनक आवश्यक अंग छल। तप सं हुनका मे आत्मसंयम, आत्मचिंतन, आत्मविश्वास, आत्मविश्लेषण, न्याय प्रवृत्ति, विवेक भावना अ
आध्यात्मिक वृत्तिक उदय होयत छल।
कुलपति
ऋष्यश्रृंग अपने यज्ञ देवताक साकार रूप छल। कहल जायत अछि जे ओ जीवनभरि यज्ञ केलक आ
करौलक। ओ एहन कतेक रास यज्ञक संपादन करैलक जकरा लेल मात्र वहि टा सक्षम छल।
गृहस्थक लेल ओहि युग मे पांच महायज्ञक विधान छल। ओ यज्ञ छल, व्रह्म यज्ञ, पितृ यज्ञ, देव यज्ञ, भूत यज्ञ आ
नृयज्ञ।3
पहिलुका
विद्वान ऋषिक प्रति श्रद्धा व्यक्त करैत वेद मंत्रक पाठ कऽ अप्पन बौद्धिक उत्कर्ष
करब आ याज्ञिक समारोहक अवसर पर स्वाध्यायक व्यवस्था करब ब्रह्मयज्ञक
विधानक अंतर्गत छल। पितरक श्राद्ध तर्पण सभ पितृ यज्ञक अंतर्गत संपन्न होयत छल।
देवताक लेल अग्निक आहुति आ इंद्र, अग्नि, प्रजापति, सोम,
पृथ्वी अदि देवताक नाम अग्नि मे समिधा प्रदान करव देव यज्ञ छल। अनिष्टकारी
प्रेतात्माक तुष्टिक लेल भूत यज्ञ आ अतिथि देवताक सत्कार नृयज्ञ छल।
वेदक
मंत्रद्रष्टा ऋष्यश्रृंग
वेदक
महत्ता सार्वदेशिक आ सार्वकालिक अछि। सभ्यताक उषाकाल सं वेद समादृत आ अपौरुषेय
अछि। अहि देशक प्रज्ञा पर्वत सं निकलल पतित पावनी गंगाक संस्पर्श पात्र सं सभटा
विश्व चमत्कृत आ आह्लादित भेल अछि। शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रंथ शतपथ
ब्राह्मणक स्पष्ट कथन अछि,
'यावन्तुं ह वै
इमा पृथिविं वित्तेन पूर्ण ददत लोकं जयति त्रिभिस्तावनां जयति: भूयांसं च
अक्षयं च य एवं विद्वान: अदृश्व: स्वाध्यायमधीते, तस्मात् स्वाध्याये अधेयतव्य:।'
शतपथ
व्राह्मण 11-5-6-11
(अर्थात धनसं
परिपूर्ण पृथ्वीक दान करहि सं जतेक फल भेटैत अछि, वेदक अध्ययन से सेहो ओतेक फल भेटैत अछि।
ओतबै टा नहि, ओकरो से
वढि़ के मनुख अविनाशशाली अक्षय लोक कऽ प्राप्त करैत
अछि। ताहि सं वेदक स्वाध्याय करब वड़ आवश्यक आ
उपादेय अछि।)
पुरान
कालक ऋषि वड़ निष्ठावान आ तप:शील मनुख छल। समाधिस्थ अवस्था मे ओ अप्पन परिवेशक
अतिक्रमण कऽ मंत्रक दर्शन केलक। ताहि सं ऋषि वेदमंत्रक रुाष्टा नै, द्रष्टा कहल
जायत अछि। ऋग्वेदक प्रत्येक मंत्रक द्रष्टा कियो नै कियो ऋषि अछि। हुनकर संख्या
लगभग तीन सौ टा अछि। अहि मे किछु ऋषिक नाम अछि4-
मधुच्छन्द, शुन:शेष, कण्व, गौतम, अगस्त्य, गुत्समद, विश्वामित्र, ऋषभ, देवश्रव, वामदेव, अत्रि, पृथु, कृष्ण, अपाला, देवल, भृगु, च्यवन, सुमित्र, अग्निपूर्य, वर्हिष, सुदास, श्रष्यश्रृंग, प्रचेता, उध्र्वग्रीवा, अधमर्षण, भारद्वाज, वीतहव्य, गर्ग, वशिष्ठ, मेधातिथि, वत्स, शशकर्ण, नारद, विश्वमना, नाभाग आदि। ई
पुरुष सभक अलावा स्त्री सेहो मंत्रद्रष्टा छल। अहि मे लोपमुद्रा, गौरी, जुहू, शची, घोषा, लोमशा, विश्वधारा आदिक
नाम उल्लेखनीय अछि। ई ऋषि सभ अप्पन मंत्रमे मूलत: ईश्वरक दिव्य
विभूतिक प्रति अप्पन श्रद्धात्मक उद्गार व्यक्त केने अछि।
यजुर्वेदक
विभाजन
चतुर्वेद
मे यजुर्वेदक संबंध यज्ञानुष्ठान से अछि। अहि मे संकलित मंत्रक विषय यज्ञ विधिक
संपादन करब अछि आ कोन यज्ञ मे कोन कांडक मंत्रक व्यवहार करबाक चाहि, ओकर विधि
यजुर्वेद मे देल गेल अछि। ताहि सं वेद कर्मकांड प्रधान अछि। वर्षक गणना ते कठिन
अछि, मुदा
ऋष्यश्रृंग सं लगभग पांच पीढ़ी पहिने यजुर्वेदक विभाजन भऽ गेल छल, जे कृष्ण
यजुर्वेद आ शुक्ल यजुर्वेदक नाम से जानल जायत अछि।
अहि
संबंध मे विष्णु पुराणक तृतीय अंशक अध्याय पांच मे एकटा कथा अछि। महर्षि वैशम्पायन
यजुर्वेद जेहन वृक्षक सत्ताइस शाखाक रचना केने अछि। ओकरा अप्पन शिष्य के पढ़ौलक।
हुनकर परम धार्मिक आ हुनकर सेवा मे तत्पर रहि बला शिष्य याज्ञवल्क्य छल। एकटा काल
मे सभटा ऋषि सभ ई नियम बनौअलखिन जे कियो ऋषि महामेरु पर स्थित हमर अप्पन समाज मे
शामिल नहि होयत ओकर सात राति के भीतर ब्रह्महत्याक पाप लागत। अहि तरह जाहि काल के
ऋषि सभ नियत केने छल,ओकर
वैशम्पायन अतिक्रमण कऽ देलक। एक बाद ओ प्रमादवश अप्पन भानजाक हत्या कऽ देलक। एकर
बाद ओ अप्पन शिष्य सं बाजल,
अहां सभ कोनो तरहक विचार नै कऽ हमरा लेल ब्रह्महत्याक पाप के दूर करहि बला
व्रत करू।
अहि पर
याज्ञवल्क्य बाजल, 'भगवन! ई सभ ब्राह्मण
बड़ निस्तेज अछि। हुनक कष्ट दैके कोन जरूरत अछि? हम असगरे अहि व्रत अनुष्ठान करब। अहि सं
वैशम्पायन तमसा गेल। ओ बाजलखिन, अहां ई सभ ब्राह्मणक अपमान केने छी। अहां जे किछु हमरा सं
पढ़ने छी,ओ छोडि़
दिओ। अहां अहि द्विज श्रेष्ठ के निस्तेज कहैत छी। हमरा अहां जेहन आज्ञा भंगकारी
शिष्यक कोनो प्रयोजन नहि अछि।
'लिओ, हम जे किछु अहां
से पढ़ने छी, ओकरा
घुरा रहल छी'।
ई कहि
याज्ञवल्क्य रुधिर सं भरल मूर्तिमान यजुर्वेद वमन कऽ हुनका घुरा देलक आ स्वेच्छा
सं चलि गेल। याज्ञवल्क्य के वमन करल यजुश्र्रुती के दोसर शिष्य तीतर बनिके ग्रहण
कऽ लेलक। ताहि सं ई सभ तैत्तिरीय कहौलक।
याज्ञवल्क्य
यजुर्वेदक प्राप्तिक इच्छा सं संयम चित्त सं सूर्यनारायणक स्तुति करलक। भगवान
सूर्य अश्व रूप मे प्रगट भऽ कऽ अभीष्ट वर मांगहि लेल कहलक। तखन याज्ञवल्क्य हुनका
प्रणाम कऽ बाजल, अहां
हमरा ओहि यजुश्र्रुतीक उपदेश दिये जे हमर गुरु नहि जानैत अछि। हुनकर एहन कहला पर
सूर्य हुनका 'अयातयाम' नामक
यजुश्र्रुतीक उपदेश देलक,
जकरा हुनकर गुरु वैशम्पायन सेहो नहि जानैैत छल।
माध्यन्दिन
शाखा
याज्ञवल्क्य
ओहि वाज श्रुत के अप्पन कण्व आदि पंद्रह शिष्य के प्रदान करलक। ओहि मे मध्यन्दिन
महर्षि द्वारा प्राप्त यजुर्वेदक विशेष शाखा के माध्यान्दिन कहल जा लागल। शुक्ल
यजुर्वेदक माध्यान्दिन शाखाक मंत्र के महर्षि कात्यायन महर्षि कश्यप के, महर्षि कश्यप
महर्षि विभाण्डक के आ महर्षि विभाण्डक ऋष्यश्रृंग के देलक। ऋष्यश्रृंग अहि मंत्रक
प्रखर दृष्ट छल। अहि मंत्रक सं अे राजा रोमपादक एतय वृष्टि यज्ञ केने छल।
ऋष्यश्रृंग अहि शाखाक मंत्रद्रष्टाक संग अहि शाखा स्वरूपक ओत-प्रोत
ब्रह्मनिष्ठ छल, जाहि सं
ओ जतय कत्तौ जायत छल, ते
हुनकर पदार्पणक संग ओहि भूमि पर इंद्र देवता वर्षा कऽ दैत छल।5
वाजसेनी
पुत्र याज्ञवल्क्य द्वारा नष्ट हय के कारण शुक्ल यजुर्वेदक अहि संहिताक नाम
वाजसनेय संहिता पड़ल। अहि प्रकार यजुर्वेदक तैत्तरीय आ वाजसनेय अहि दोनों शाखाक
निर्माण भेल। वाजसनेय संहिता मे राष्ट्रक उन्नति आ ओकर सुख-शांतिक लेल बड़
रास भावना सभ अभिव्यक्त केने अछि। 'हे पितृदेवो! नमस्कार! अहांक कृपा से
वसंत ऋतु राष्ट्र के सुखी करय'। 'हे पितर
नमस्कार! अहांक
कृपा से देश मे ग्रीष्म अनुकूल रहय'।6
ऋतु
सभके राष्ट्रक अनुकूल बनाबै आ जल प्रबंधन मे विशेषज्ञता प्राप्त करय बला
ऋष्यश्रृंग अप्पन समय मे मंत्रक सिद्धता प्राप्त कऽ चुकल छल। बाल्मीकिक काल मे
शुक्ल यजुर्वेदक बड़ प्रभाव छल। ऋष्याश्रम मे एकर गहन अध्ययन होयत छल। मुदा ओहि
काल तैत्तिरीयक शिक्षालय सेहो कार्यरत छल। अयोध्यामे एहन एकटा शिक्षण संस्थानक
उल्लेख वाल्मीकि केने अछि। अयोध्या काण्ड (32-15,16) मे राम लक्ष्मणक आदेश दैत अछि, लक्ष्मण! यजुर्वेदीय
तैत्तरीय शाखाक अध्ययन करहि वला व्राह्मण के जे आचार्य आ संपूर्ण वेदक विद्वान अछि, संग ही जाहि मे
दान प्राप्तिक योग्यता अछि आ जे माता कौशल्याक प्रति भक्तिभाव राखि प्रतिदिन हुनका
लग आवि के हुनकर आशीर्वाद प्रदान करैत अछि, हुनका सवारी, दास, दासी, रेशमी वस्त्र आ जतेक धन सं व्राह्मण संतुष्ट हुयअ, ओतेक धन खजाना
से दियाविओ।
आश्रम
व्यवस्था
रामायण
कालक विभिन्न ऋष्याश्रमक अध्ययन सं ई ज्ञात होयत अछि जे आश्रम मे गुरुक वाद आचार्य
आ कुलपतिक गणना केल जायत छल। कुलपतिक अधीन दूर-दूर ठाम सं आयल
सैकड़ों छात्र विद्याध्ययन करैत छल। श्रोत्रियक संज्ञा ओहि अध्यापक वर्ग कऽ देल
जाय छल जिनकर तामसिक वृत्तिक परंपरागत वैदिक अध्ययन आ तपस्या सं शमन भऽ चुकल अछि।
तापसगण तपोनिरत रहैत आ अपना लग आवहि वला के शिक्षा दैत छल। ओ वनवासी छल अ हुनकर
उपदेश अरण्यक मे लिपिवद्ध अछि। उपाध्याय लोक शुल्क लऽ कऽ शास्त्र विशेष वढ़ावैत
छल। ललित कलाक अध्यापक शिक्षक छल। तुंवरू अप्सराक गान-शिक्षक छल। एकर
अलावा, आश्रम
मे परिव्राजक सेहो रहैत छल। ओ निवृत्ति मार्गी होयत छल। ओ अवकाशक काल घूमि-घूमि कऽ निर्वेद
आ वैराग्यक जीवनक सर्वोच्य ध्येयक तरहे प्रचार करैत छल।7 दोसर आश्रमक
तरहे अहि ऋष्यश्रृंगक आश्रम मे अध्यापक के कोनो वान्हल आय नहि छल। शिष्य सं नियत
शुल्क लै के प्रथाक प्रमाण नै भेटैत अछि। एतय गुरु पुरोहित सेहो होयत छल। अहि सं
यज्ञ याज्ञादिकक अवसर पर दान दक्षिणा पर्याप्त भेट जायत छल। एकर अलावा, अतिरिक्त आश्रम
के कृषि सं सेहो पर्याप्त आय होयत छल। आश्रमक छात्र मे तपस्वी जना त्याग आ
सहिष्णुता अपेक्षित छल। स्नातक वनहि धरि हुनकर नैष्ठिक व्रह्मचर्य व्रतक पालन करव
अनिवार्य छल। अहि आश्रम मे ज्ञान-विज्ञानक अजरुा धारा वहैत छल। विद्यार्थी पिता-पुत्रक परंपरा
सं वरावर आवैत रहैत छल। अहि आश्रम मे कतेक रास परिवारक कतेक पीढ़ी शिक्षा प्राप्त
कऽ चुकल छल। अहि आश्रम मे मुनि-शिक्षक अप्पन स्त्री (मुनि पत्नय:) आ संतान (मुनि दारका:) संग रहैत छल।
प्राचीन
भारतक इंद्र खंडक (पूर्वी
भाग) दूटा
आश्रम मिथिलाक सीरध्वज जनकाश्रम आ अंगक उत्तरवरिया भाग स्थित कज्जल वनक ऋष्यश्रृंग
आश्रम तत्वक विवेचन, विश्लेषण, चिंतन, अनुसंधान आ
निर्णयक लेल प्रसिद्ध छल। तहियौका भारतक सभ आश्रम मे संग्रामिकताक शिक्षा देल जायत
छल। स्वयं राम वशिष्ठाश्रम सं दोसर विषयक संग संग्रामिकता मे स्नातक आ विश्वमित्रक
सिद्धाश्रम से स्नातकोत्तरक शिा पायल छल। आश्रम मेे संग्रामिकताक शिक्षा शत्रु (असुर) के संहार शक्ति
के चुनौती दैक लेल छात्र के देल जायत छल। जतय-जतय असुरक सैन्य
छावनी छल ओतय स्थित आश्रम मे संग्रामिकताक उच्चा शिक्षा दैक व्यवस्था छल।
ऋष्यश्रृंग
आश्रम आसुरी गतिविधि सं दूर एकांत प्रदेश मे छल। ताहि सं अहि आश्रम मे
संग्रामिकताक शिक्षाक कोनो महत्व नहि छल।
यज्ञ
ऋष्यश्रृंग
अपने वृष्टि यज्ञक अद्वितीय आचार्य छल। अप्पन ससुर अंग नरेश रोमपादक राज्य मे
कहियो अकाल नहि पड़य, एकरा
लेल ओ शुक्ल यजुर्वेद संहिताक वाजसेनीय मध्यन्दिन शाखा सं कतेक रास ऋषि-मुनिकऽ साक्षी
राखि सफल वृष्टि यज्ञ केने छल।
वैदिक
युग मे यज्ञक सवसे वेसी महत्ता छल। यज्ञ अग्नि संपन्न होयत छल। उत्तर वैदिक काल मे
सेहो यज्ञक महत्व कम नहि छल। देवता आ मनुखक वीच संवंध स्थापना मे यज्ञक महत्वपूर्ण
स्थान छल। उत्तर वैदिक काल धरि कतेक रास यज्ञ प्रचलित भऽ गेल छल जहि मे अग्निहोत्र, दर्श, पूर्णमास, चतुर्मास्य, आग्रयण, निरूढ़, सौत्रामणी, पिण्डपितृ यज्ञ, सोम यज्ञ, षोडशी, अतिरात्र, पुरुषमेध आ
पंचमहायज्ञक अलावा गवामयन,
वाजपेय, राजसूय
आ अश्वमेध जेहन यज्ञ तहियौका भारतीय समाज मे मान्य छल। यज्ञ आर्यक मिलन स्थल सेहो
छल। ऋष्यश्रृंगाश्रम मे यज्ञक संपादनक विशेष पाठ¬क्रम छल। कज्जल
वनक पुण्याश्रम वेद ध्वनि सं गुंजायमान छल।8
सभ्यताक
समन्वय
उत्तर
वैदिक कल मे भगवान शिवक महत्ता वड़ वढ़ल छल। ओ युग आर्य आ आर्येतर जाइतक सम्मिलन, सम्मिश्रण आ समन्वयक
युग छल। भगवान शिव आर्येतर जाइतक अराध्य देव छल। हुनका दरकिनार कऽ समन्वित आर्य
सभ्यता आ संस्कृतिक गठन असंभव छल। एहन स्थिति मे युगद्रष्टा ऋषि केर भगवान शिव दिस
आकृष्ट होयव स्वाभाविक छल। वैदिक रुद्र जे उपहन्तु (ध्वंसक) छल, ओ उत्तर वैदिक
काल मे कल्याणकारी शिव वनि गेल। वेद मे रुद्र सं कतेक रास रुद्र के उद्भूत मानल
गेल अछि, जे
भगवान शिवक व्यापकता कऽ रेखांकित करैत अछि। ताहि सं अहि रुद्र के गणपति, कुम्भकार, कर्मकार, रथकार, वाजीगर आ निषाद
जेहन दलित, उपेक्षित
आर्येतर जाइतक स्वामीक तरहे स्वीकार करल गेल अछि। अहि तरहे भगवान शिव उपर्युक्त
शोषित, दलित, उपेक्षित आ
अनार्य जाइतक उपास्य आ आराध्य देव छल।9 तत्कालीन तत्वदर्शी ऋषि अहि आर्येतर जाइत के आर्य
सभ्यता संस्कृतिक महासिन्धु मे विलीन कऽ दैक लेल संकल्पित छल। एकरा लेल ओ शिवक
सामान्य देवक तरहे नहि मुदा महादेवक रूप मे पूजा करलक।
अनार्यक
परमपूज्य आराध्य देवता रहैत भगवान शिवक प्रतिष्ठा, महानता आ व्यापकताक कारण ई छल जे ओ अप्पन
ऐश्वर्य सं देवता के, शक्ति
सं असुर के आ योग सं प्राणि सभके पराभूत केने छल।10 ई निर्विवाद अछि जे भारतीय सभ्यता आ
संस्कृतिक गठन मे भगवान शिवक विराट भूमिका अछि। जौं शिव के अहि सं अलग कऽ देल जाय
ते अहि सभ्यता, संस्कृति
के स्थित हेवाक लेल कोनो आधार नहि भेट सकत।
ऋष्यश्रृंग
आश्रमक समस्त क्षेत्र मे व्रात्यक निवास छल। अथर्ववेदक (11-2-7) अनुसार देवता सभ महादेव के विभिन्न दिशाक
व्रात्यक स्वामी नियुक्त केने छल। संभवत: अहि प्रतीकक स्वरूप भगवान विष्णु एतय
व्रह्मशिला पर शिवलिंगक स्थापना केने छल। वराहपुराणक उत्तराद्र्धक एकटा पुरा कथा
मे अहि तथ्य कऽ रेखांकित करल गेल अछि।
विष्णु
द्वारा स्थापित शिवलिंग के ऋष्यश्रृंग फेर सं पुनर्जागृत करलक। एकर उल्लेख शिव
पुराणक चतुर्थ रुद्र संहिताक सातम श्लोक मे भेल अछि। एकर अनुसार, कौशिकी कात
स्थित शिव धाम मे दधीचिक रणभूमि मे श्रृंगेश्वर, वैद्यनाथेश्वर आ जपेश्वर नामक शिवलिंग
प्रसिद्ध अछि।
'श्रृंगेश्वरश्च
नाम्नावै वैद्यनाथ स्तथैव च।
जप्याश्वरस्तथा
ख्यातौ यो दधीचिरण स्थले।'
चौवीस
हजार श्लोक वाले वायु पुराणक एकटा अंश शिवपुराण अछि। ऋष्यश्रृंग द्वारा पुनर्जागृत
केल जाय वला भगवान शिवक ई इष्टलिंग उत्तर वैदिक काल सं आय धरि मंत्रयुक्त, मंत्रहीन, क्रियायुक्त, क्रियाहीन, ज्ञानी, अज्ञानी सभक लेल
दर्शनीय वा पूजनीय अछि।
दूर ठाम
धरि फैलल विशाल व्रह्मशिला सं ई इष्टलिंग जुड़ल अछि। एखुनका शिवलिंग सं तीन गुना
वेसी मोट ओ दस फीट नीचा व्रह्मशिला धरि अछि। लिंगक आंतरिक स्वरूप भव्य आ अद्भुत
अछि। शिव पार्वतीक असंख्य प्रतिमा ओहि पर उत्कीर्ण अछि। ऋष्यश्रृंग अहि शिवलिंग के
पुनर्जागृत कऽ आर्य आ आर्येतर संस्कृति कऽ एकाकार कऽ देने छल। ऋष्यश्रृंग द्वारा
एकरा पुनर्जागृत करहि के कारण ई इष्टलिंग श्रृंगेश्वरक (या सिंहेश्वर) नाम सं विख्यात
भेल।
दक्षिात्य
मे तपस्या
उत्तर
वैदिक काल धरि आर्य संपूर्ण उत्तर भारत मे पसैर चुकल छल। अे कतेक रास समृद्ध जनपदक
सेहो स्थापना केलक। उत्तर भारत मे कतेक रास ऋष्यश्रृंग आश्रम स्थापित छल। कनि-कनि असुर
दक्षिणापत्य दिस सिमटैत गेल। एतय मुख्यत: हुनकरे शासन छल। तकर वादो आर्य सभ्यता आ
संस्कृति के दक्षिणात्य मे पसारैलक उद्देश्य सं कतेक रास ऋष्याश्रम मिशनरीक तरहे
काज कऽ रहल छल। अहि ऋष्याश्रम के समय-समय पर निरीक्षण करैक दायित्व भगवान शिव पर छल। ओ अहि
ठाम अवाध आवैत-जायत
छल। क्याकि ओ असुर सभहक सेहो अराध्य देव छल। राम सवसे पहिलुक आर्य देवता छल जे
दक्षिणात्व मे पइर राखलक। ओ एतय कार्यरत आर्य ऋष्याश्रम के असुर सं अभय कयलक।
निशिचर हीन करौं मही भुज उठाय प्रण कीन्ह।
उत्तर
भारतक ऋषि सेहो दक्षिणात्य जा कऽ तप करैत छल। तपक लेल दक्षिणात्यक ठाम वड़ उपयुक्त
चल। ऋष्यश्रृंग सेहो दक्षिणात्यक जे ठाम मे अखण्ड तपस्या केने छल ओ तप:पूत स्थल आय
श्रृंगेरी क्षेत्रक नाम से चर्चित अछि। श्रृंगेरी ग्राम, श्रृंगेरी पर्वत
आ श्रृंगेरी तालाव आययो ओहि महान तपस्वीक तपस्याक साक्षी अछि। हजार वरखक वाद आद्य
शंकराचार्य अप्पन पहिलुक मठ श्रृंगेरी मे स्थापित केने छल आ ओतय सं दिग्विजयक लेल
अप्पन अभियान शुरू केने छल। शंकराचार्य ओहि ठाम पर देखलक जे प्रकृति विरोध धर्म
प्रेम, सेवा आ
दयाक आगू प्राणी कोन तरह अप्पन स्वाभाविक धर्म के विसुरि के कल्याण काज मे निरत भऽ
जायत छल। थाकल-मांदल
योगी शंकर एकटा वटवृक्षक नीचा वैसल छल। वड़ गर्मी चल। आपसी द्वेष के विसुरि के
एकटा नेवला आ सांप खेल रहल छल। ओतय सांप अप्पन आहर एकटा वेंग कपा मुंह सं पकडि़
पइन मे छोडि़ दैत छल। ओ विस्मित भऽ जायत अछि। ई ऋष्यश्रृंगक तपस्या स्थली छल, जकर महत्ता आय
धरि दृष्टिगोचर होयत अछि। अे महान ऋष्यश्रृंगक प्रति श्रद्धावनत भऽ कऽ अप्पन शिष्य
सं कहै छथिन, जतय
व्रह्म मे अप्पन अंतकरण के लगा दै वला ऋष्यश्रृंग आय धरि तपस्या कऽ रहल अछि। आ जतय
स्पर्श मात्र सं कल्याण दहि वला तुंगभद्रा सुशोभित होयत अछि, जतय अभ्यागत
पुरुषक पूजा सं कल्पवृक्ष के सेहो लजावै वला, समस्त वेद कऽ पढ़य वला, सैकड़ों टा यज्ञ सं प्रसन्न हैय वला
शान्तचित्त सज्जन लोक सभ निवास करैत अछि।11
शंकराचार्य
अहि तपस्थलीक स्तुति करलक आ ओतय विद्याग्रहण मे समर्थ विद्वान शिष्य के अप्पन
मुख्य भाष्यक अध्ययन सेहो करैलक। एतय सं वौद्ध के सेहो शास्त्र से पराजित कऽ सनातन
धर्मक पुनस्र्थापनाक लेल दिग्विजयक लेल चलल छल शंकराचार्य। अभियानक पूर्व आचार्य
शंकर श्रृंगेरी मे अप्पन पहिलुक मठ निर्माण कऽ वेदांत विद्यापीठक स्थापना कएलक।
एत्ते सं सनातन धर्मक प्रचारार्थ मीमांसक व्रह्मचारीक समुदाय सन्यास सम्प्रदाय मे
दीा ग्रह करैत छल।12 ऋष्यश्रृंग
सेहो अप्पन कालक अद्वितीय मीमांसक छल। ओ ऋषि कुल आश्रम मे कतेक ऋषिक आत्मज आ मानस
पुत्र के मीमांसाक अध्ययन करावैत रहल।
श्रृंगवेरपुर
वृतान्त
ऋष्यश्रृंग
अप्पन प्रताप सं उत्तर पश्चिम गंगाक वाम कात पर सेहो तपस्या करले छल। ई ठाम निषाद
शासकक अधीन छल। आजुक काल मे ई ठाम इलाहावाद-उन्नाव राजमार्ग पर स्थित अछि। एतय गंगा
कात पर एकटा वड़ पैग टील अछि जकर लगभग आधा हिस्सा गंगा मे कटि चुकल अछि। यहि ठाम
अछि ऋष्यश्रृंगक तपोभूमि श्रृंगवेरपुर। एतय मंदिर मे ऋष्यश्रृंग आ मां शान्ताक
भव्य मूर्ति स्थापित अछि। रामायण मे श्रृंगवेरपुरक वड़ महत्व अछि। अप्पन वनवासक
काल श्रीराम अप्पन अनुज आ स्त्रीक संग एतय नाव सं गंगा पार केने छल। पुरवासी सभक
संग भरत जखन राम मे मिलैक लेल चित्रकूट गेल छल, तखन ओ श्रृंगवेरपुर आयल छल। कालिदासक रघुवंश आ
भवभूतिक उत्तर रामचरित मे अहि पुण्य स्थलक गौरवपूर्ण उल्लेख अछि। तुलसीदास एकर
सिंगरौरक प्राचीन नाम सं उल्लेख केने अछि-
'केवट कीन्ह वहुत
सेवकाई
सो
जामिनी सिंगरौर गंवाई।'
ई ठाम
ऋष्यश्रृंगक तपस्या भूमि अछि। ऋष्यश्रृंग मंदिर सं आध किमी दूर गंगा मे विभाण्डक
कुण्डक नाम सं घाट सेहोवनल अछि।
श्रृंगवेरपुर
निवासी राजा रामदत्त सिंह (18वीं सदी) आध्यात्म-रामायणक टीक मे
एतय ऋष्यश्रृंग आश्रम हेवाक संग अहि महर्षिक जीवनक अन्यान्य वृतान्त के अहि ठाम सं
जोड़वाक यत्न केने अछि। हमर विचार सं अप्पन जन्मभूमिक प्रति मोह हेवाक कारण राजा
एहन केने होयत। श्रृंगवेरपुर के ऋष्यश्रृंगक जन्मभूमि मानवाक एतिहासिक भूल अछि
क्याकि महाभारत मे स्पष्ट लिखल अछि-
'एषा देवनदी
पुण्या कौशिकी भरतर्षभ
विश्वामित्राश्रमौ
रम्य एश चात्र प्रकाशते।
आश्रमश्चैव
पुण्याख्य: काश्यपस्य
महात्मन:।
ऋष्यश्रृंग
सुतौ तस्य तपस्वी संयतेन्द्रिय:।'
कौशिकीक
कात पर जतय विश्वामित्रक आश्रम छल, ओतय पुण्याश्रम मे महर्षि काश्यपक जितेन्द्रिय वंशज
ऋष्यश्रृंगक आश्रम छल। एक ऋषिक अप्पन मुख्य आश्रमक अलावा कतेक ठाम हुनकर उपआश्रम
होयत छल।
पुण्याश्रम
मे द्वादश वर्षीय यज्ञ
ऋष्यश्रृंगक
मुख्य आश्रम कौशिकीक कात पर पुण्याश्रम मे छल। ओ जतय-जतय तप करलक ओतय
उपाश्रम वनौलक। ओ अप्पन जीवन मे कठिन तप आ योग साधनाक संग यज्ञ के मोक्ष प्राप्तिक
साधना वनैलक। ओ समस्त भारतक पवित्र स्थलक सेहो भ्रमण केलक।
ओ कतेक रास
कठिनतम यज्ञ केलक, जाहि मे
द्वादश वर्षीय यज्ञ सेहो छल। अहि यज्ञक वड़ पैग मार्मिक वर्णन भवभूति अप्पन उत्तर
रामचरितक प्रथमांक मे केने अछि।
अयोध्या
मे सभ दिन कोनो नै कोने उत्सव हैत छल। अहि वीच एकटा विदेशी अयोध्या आवैत छल आ
राजधानी मे उत्सव नै हैत देखि के एकर कारण जानैल चाहैत अछि। नट एकर उत्तर दैत अछि
जे उत्सव नै हैक कारण अछि जे रामक माता महर्षि वशिष्ठक स्त्री अरुन्धतीक संग अप्पन
दामाद ऋष्यश्रृंगक आश्रम मे यज्ञ देखहि लेल गेल छथिन।
'वशिष्ठाधिष्ठिता
देव्यो गता रामस्य मातर:।
अरुन्धती
पुरस्कृष्य यज्ञे जामातुराश्रमम्।'
ई सुनि
के ओ विदेशीक प्रश्नाकुलता आरो वढि़ जायत अछि। ओ पूछि दैत अछि जे ई जमाता के अछि? नट उत्तर दैत
अछि जे राजा दशरथक पुत्री शान्ताक पति अछि ऋष्यश्रृंग, हुनके कते हैवला
यज्ञ मे भाग लैक लेल रामक माता सव गेल छथिन।
'विभाण्डक
सुतास्ताम ऋष्यश्रृंग उपयेमे
तेन च
साम्प्रतं द्वादश वार्षिक सत्र माख्यं।
तदपुरोधात
कठोर गर्भापति वधूं जानकी विमुप्य
गुरुजनस्तत्र: गत:।'
ई
स्पष्ट अछि जे रामक माता ऋष्यश्रृंग के अप्पन जमाता मानैत अछि। यहि कारण अछि जे
गर्भवत सीता के छोडि़ के अप्पन पुत्री शान्ता आ जमाता ऋष्यश्रृंगक प्रति अकूत
स्नेहक कारण माता ऋष्यश्रृंगक अश्रम मे पधारैत अछि।
मुनि
अष्टावक्र सेहो यज्ञ मे उपस्थित छल। ओ अहि महान यज्ञक समाचार लऽ कऽ पहिने अयोध्या
घुरैत अछि। राम शान्ता के अप्पन पैग वहीन आ ऋष्यश्रृंग के अप्पन पैग वहनोई जेहन
सम्मान दैत यज्ञ कऽ लऽ कऽ पूछैत अछि
'निर्विघ्न: सोमपीथी आवुंते
मे
भगवान
ऋष्यश्रृंग आर्या च शान्ता।।'
राम
ऋष्यश्रृंग के आवुंत (वहनोई) आ भगवान (पैग) आ शान्ता के पैग वहीन (आर्या) जेहन सम्मान दैत
अछि।
सीता
सेहो कुशल पूछैत अछि,
अवि
कुशलं स जमातु अस्स।
एतवे टा
नै सीता के ईहो जिज्ञासा अछि जे ऋष्यश्रृंग के हुनकर याद आवैत अछि की नै?
अहमेव
सुमरेति?
अष्टावक्र
एकर उत्तर त्वरित दैत अछि
अथ किम्? (आैर क्या?)
मुुनि
अष्टावक्र सीताक लेल हुनकर ननद शान्ता के ई प्यार भरल संदेश सेहो राम के दैत अछि
जे सीताक गर्भावस्थाक काल जहि वस्तुक इच्छा हुए, ओ हुनका उपलव्ध कराओल जाय।
गर्भ
दोधेअस्या भवति सोऽवस्यम चिरात सम्पादयित्व।
एकर
संगे अष्टावक्र सं संदेश भेजकऽ ऋष्यश्रृंग सलहज के यज्ञ मे नहि वजावैक कारण
वुझावैक संग संवोधोचित परिहास सेहो कऽ लैत अछि
वत्से! कठोर गर्भेति
नानितासि।
वत्सोऽपि
रामभद्रस द्विनोदार्थमेव स्थापित:। तत्पुत्र पूर्णोत्संगामायुष्यति दक्ष्याम्।
अर्थात
वत्से! (वच्ची) गर्भवती हेवाक
कारण अहां एतय नहि आवि सकलहुं आ वत्स राम ते अहांक मनोरंजनक लेल अयोध्यामे अछियै।
हम ते अहां के पुत्र सं भरल गोदवाली देखव। ऋष्यश्रृंग द्वारा राम के वत्स आ सीता
के वत्से कहिके पुरारव सं स्पष्ट अछि जे दूनूक प्रति ऋष्यश्रृंगक छोट साढ़ आ सलहजक
प्रेम छल।13
ई
द्वादश वर्षीय महायज्ञ कौशिकी तट स्थित ऋष्यश्रृंगक मूल आश्रम मे भेल छल। किछु
विद्वान एकरा रेवा नदी (नर्मदा) आ समुद्रक संगम स्थल पर हय के गप करैत अछि।14 जे संदिग्ध अछि।
ओहि साधन विहीन युग मे अप्पन मूल आश्रम सं हजार मील दूर एतेक वृहद दीर्घकालीन कठिन
यज्ञक संपादन करव उपयुक्त नहि जानि पड़ैत अछि। ओहि ठाम पर अहि यज्ञक कोनो चिह्न
सेहो नहि अछि। कोनो ठोस वहिर्साक्ष्य सेहो नहि अछि जे सिद्ध कृ सकय जे यज्ञ अमुक
ठाम पर भेल छल। मुदा ऋष्यश्रृंगक कौशिकी तट स्थित मूल आश्रम अहि महान यज्ञक साक्षी
अछि। आश्रमक लग कोशीक कात मे सतोखर गाम वसल अछि। एतय हजारों वरख पुरान सात विशाल
यज्ञ कुण्ड तालावक रूप में एखनो अछि। दू टा कुंड ते कोशी के पेट मे चलि गेल मुदा
पांच टा एखनो अछि। किछु दशक पहिने अहि कुंडक जीर्णोद्धार करय लेल खोदल गेल ते ओहि
मे राखक वड़ मोट-मोट परत
निकलल छल। परत एतेक मोट छल जे ओ कोनो एक दिन या एक माहक यज्ञक राख नहि भऽ सकैत
अछि। ई निश्चित रूप सं वरख भरि चलल यज्ञक राख होयत। सात कुंड एक संग रहवाक कारण
एकरा सप्त पुष्कर कहल जायत छल। कुंड पुष्करेक रूप छल। वहि सप्त पुष्कर आव सतोखर
वनि गेल अछि।
ऋष्यश्रृंग
जेहन महान वैज्ञानिक द्वारा संपादित अहि तरहक यज्ञ कतेक अर्थ मे महत्वपूर्ण अछि। ई
आैषधिक अनुसंधान, शोध आ
परीक्षण सेहो अप्पन यज्ञशाला मे करैत छल। आयुर्वेदिक गुण सं युक्त समिधाक चयन आ
प्रयोग, वनस्पतिक
गुण-दोष
विवेचन आ हुनकर व्यवहारक गवेषणात्मक अध्ययनक लेल अहि ठामक अतिरिक्त आैरो ठाम ओ एहि
तरहक महान यज्ञ करने होयत ते ऋष्यश्रृंग जेहन महान याज्ञिकक लेल असंभव नै। मुदा
सभी कोण सं परीक्षणक पश्चात ई निर्विवाद अछि जे ओ ऋष्यश्रृंग आश्रम (वर्तमान
सिंहेश्वर) मे
द्वादश वर्षीय यज्ञ केने छल, जाहि मे आर्यावर्तक सभ ऋषि-मुनि भाग लेने
छल। संगेसंग अयोध्या सं रामक माता, वशिष्ठक स्त्री अरुन्धतीक संग यज्ञ मे भाग लैक लेल
आयल छल। वारह वरख तक अनवरत ई क्षेत्र वेदमंत्रक समूह गान सं गूंजैत रहल छल।
महानदीक
प्रगट हेवाक
प्राकृतिक
जल रुाोत के सुव्यवस्थित कऽ ओहि सं सिचार्ईक व्यवस्था करहि मे ऋष्यश्रृंग
सिद्धहस्त छल। एखुनका छत्तीसगढ़क सिहोवा मे महानदीक उद्गम अछि। ऋष्यश्रृंग सं
पहिने अहि नदीक अस्तित्व नहि छल। विशाल पत्थर सं झांपल उद्गम के भगीरथक प्रयास सं
ई ऋषि नदी मे अवतरित केने छल। परीक्षण सं हुनका ज्ञात भेल जे सिहोवाक शिला मे अगाध
जल रुाोत अछि। जौ जल रुाोतक निकासी आ वहाव सुव्यवस्थित कऽ देल जाय, ते ई एकटा वड़
पैग नदीक रूप लऽ सकैत अछि।
ऋष्यश्रृंग
एहने करलक। ओ लोककल्याण,
लोक रंजन आ लोक मंगलक लेल जनसहयोग सं अहि दुष्कर काजक संपादन करलक। अहि प्रकार
महानदी प्रकट भेल। किंवदंति ते ई अछि जे हुनकर कमंडल मे पुत्रेष्ठि यज्ञक वचल
मंत्रसिक्त जल छल। ओहि से ऋष्यश्रृंग महानदीके प्रगट केलक।15 कथा जे भी हिए, सिहोवा एखुनका
रायपुर जिला मे अचि। ई दण्डकारण्य क्षेत्रक प्रमुख स्थान अछि। सिहोवा पर्वत शिखर
पर ऋष्यश्रृंगक मंदिर अछि आ माता शान्ताक नाम पर एकटा गुफा सेहो अछि। प्राकृतिक
वातावरण सं संपन्न ई एकटा दर्शनीय स्थल अछि। महानदीक उद्गमक रमणीयता ते अकथनीय
अछि। मध्य प्रदेश मे चांदा (चन्दनपुर) मे सांदक या भाण्डक आश्रम अछि जे विभाण्डकक विगड़ल
रूप अछि। सोयतकलां (शाजापुर) मे ऋष्यश्रृंगक मंदिर सेहो अछि। वेहट (जिला ग्वालियर) ऋष्यश्रृंग गुफा
मे हुनकर मूर्ति स्थापित अछि। उज्जैन मे सेहो ऋष्यश्रृंगक आश्रम अछि, जतय वर्षाक लेल
हुनकर मूर्ति वनाके अनुष्ठान केल जायत अछि।
वंश
विस्तार
ऋष्यश्रृंगक
वंश विस्तार सेहो भेल अछि। हुनकर पुत्र सारंग ऋषि छल। ओ वड़ तपोनिष्ठ छल। ओ वेदक
गहन अध्ययन केने छल। हुनकर चारि टा पुत्र भेल। चारो पुत्र उग्र, वाम, भीम आ वामदेव
आजन्म व्रह्मचर्य व्रत धारण कऽ योग साधनारत भऽ कऽ व्रह्म मे लीन भऽ गेल। शेष चारि
पुत्र वत्स, धौम्यदेव, वेददृग आ
वेदवाहु व्रह्मचर्य पूर्वक गृहस्थ आश्रम मे प्रवेश कयलक। हुनकर वंशज शिखवाल (श्रृंगीवाल) व्राह्म अछि, जे संपूर्ण देश
मे पसरल अछि। ओ समृद्ध, विद्यानुरागी
आ उत्कृष्ट समाजसेवी अछि।
वेदवेत्ता
सारंगक पुत्र वत्सक वंश मे मीमांस शास्त्रक रचयिता जैमिनी भेल।
ओना
ऋष्यश्रृंग वैदिक कर्मकाण्ड आ याज्ञकर्म मे विशेष दक्ष छल। मुदा अहि ऋषिराजक
पश्चात व्राह्मण ग्रंथ आ उपनिषदक रचनाकाल मे ऋषि सभ द्वारा जीव व्रह्म संवंधी
विशेष चिंतन मनन अन्वेषण करैत रहय सं वैदिक यज्ञादि परंपरा मे विकृति आ विभिन्नता
आवि गेल। तखन महर्षि जैमिनी यज्ञ मे पूर्ववत एकरूपता आनय के उद्देश्य सं वेदक
प्रमाणक मुताविक, यज्ञक
निरूपण आ प्रतिपादन करैत यज्ञादि कर्मक सार्थक विवेचन करलक। अप्पन कामनाक पूर्तिक
लेल विधिवत यज्ञ करव जैमिनीक अनुसार धर्म अछि। ताहि सं ओ मीमांसाक दर्शन आरंभ
अथातो धर्म जिज्ञासा सूत्र सं केने अछि।
ओना तै
वैदिक कर्मकाण्डक विधान मे तहियौका विरोधक निवारण आ वैदिक उक्तिक अर्थक समुचित
निरूपण दिस श्रुतिकाल मे ऋषि सभहक ध्यान गेल छल जकर प्रमाण वैदिक संहिता मे
प्रयुक्त मीमांस आदि संज्ञा पद सं भेटैत अछि। ई दर्शन कर्म पर विशेष वल दैत अछि आ
वेदक अपौरुषेय आ नित्य मानैत अछि। एकर साहित्य संपत्ति सेहो विशाल अछि।
पांचम
परिच्छेद
ऋष्यश्रृंगक
समकालीन दोसर चर्चित ऋष्याश्रम
रामायणकालक
शिखर पुरुख छल ऋष्यश्रृंग। हुनकर आश्रम विद्याक स्थायी केंद्र छल। एकर अलावा पूरे
देश सेहो आश्रम सं भरल-पुरल छल। ओहि मे ज्ञान-विज्ञानक
अजस्त्र मंदाकिनी प्रवाहित छल। रामायण काल आसुरी शक्ति पर आर्यक विजयक जुग छल। ई
विजय अस्त्र-शस्त्र
सं संभव नै छल। अहि काल मे आर्यावर्त छोट-छोट राज्य मे वंटल छल। सव राज्य स्वतंत्र
छल आ सभहक अप्पन पृथक सेना छल। महर्षि वनहि सं पहिने विश्वामित्र लग सेहो
चतुरंगिणी सेना छल। सेना मे हाथी, घोड़ा, रथ,
पैदल सभ चल। चित्रकूट यात्राक काल भारतक अक्षौहिणी सेना मे नौ हजार हाथी, साठ हजार रथ, दोसर-दोसर आयुधधारी
असंख्य धनुर्धर आ एक लाख अश्वारोही सैनिक छल। अहि तरहे रामायणकाल शस्त्र परिचालनक
युग छल। अहि कारण देश मे पसरल प्राय: सभटा आश्रम मे सैन्य शिक्षा, आयुध परिचालन, शोध आ निर्मणक
शिक्षा अनिवार्य छल। सिद्धाश्रम, भारद्वाजाश्रम, अगस्त्याश्रम, सुतीक्षण आश्रम, वाल्मीकि आश्रम, वशिष्ठ आश्रम आदि मे संग्रामिकताक शिक्षाक भरपूर
प्रवंध छल।
आर्य
सभ्यता आ संस्कृतिक समूल नष्ट करहिक लेल रावण मलद, करुष आ जनस्थान मे अप्पन विशाल सैन्य
छावनी वनैने छल। अहि स्थान मे आर्य ऋषि-महर्षिक वड़ पैग-पैग आश्रम छल
जतय रहि के विद्यार्थी सव तरहक शिक्षा आ व्यावहारिक ज्ञान ग्रहण करैत छल।
विश्वामित्रक सिद्धाश्रम आ अगस्त्याश्रम मे जखैन कहियो अध्ययन, चिंतन-मनन, अनुसंधान आ
यज्ञादि क्रिया होयत छल,
तखैन आसुरी छावनी मे तैनात सेना विघ्न उपस्थित करैत छल। ई राक्षस वलवान आ
युद्ध कला मे निपुण छल। स्वयं विश्वामित्र एकरा दशरथक आगू स्वीकार केने छल-
मारीचश्च
सुवाहुश्च वीर्यवन्तौ सुशिक्षितौ
रामायण
वालकांड 20/5
एहन
वलवान राक्षसक संहारक लेल सिद्धाश्रम मे गहन शोध कऽ निर्माण करल गेल दूटा विद्या
उल्लेखनीय अछि। ई दूटा विद्या सभ तरहक ज्ञानक जननी छल। वला आ अतिवला, एकर प्रभाव सं
भूख-प्यासक
कष्ट नहि होयत छल। राम पहिने आचमन करि के अपना के पवित्र केलक आ फेर महर्षि
विश्वामित्र सं अहि दूनू विद्या के ग्रहण करलक।
अहि
प्रकार कतेक रास रहस्यमई विद्या सेहो आश्रम मे सृजित केल जायत छल।
आश्रमक
वायुमंडल वैदिक मंत्रक घोष सं गुंजायमान रहैत छल। ई वैदिक मंत्रक पूर्ण फल प्राप्त
करहि के लेल एकरा शास्त्रानुसार यथा स्वर पढ़हि के विधान छल। अर्जित ज्ञात कतो
शिथिल या विस्मृत न भऽ जाय,
एकरा लेल प्राचीन शिक्षाविद दैनिक स्वाध्याय आ अभ्यास प्रणाली निकाललक।
स्वाध्याय के अपने मे स्वयं शिक्षण विधि करव वेसी उपयुक्त अछि। मुनि कुमार
ऋष्यश्रृंग छात्र जीवन मे पितृ सेवा आ स्वाध्याय मे एत्ते निमग्न रहैत छल जे हुनक
मे काम चेतनाक उदय नहि भेल।
स्नातक
मे सामाजिक कत्र्तव्यक पालन करावैक लेल तत्कालीन शिक्षाविद ऋणानि त्रीणि केर
सिद्धांतक प्रतिपादन केलक,
जकर समाज मे महत्वपूर्ण ठाम अछि। एकर मुताविक, संसार मे जन्म लय वला सभ लोक पर देव ऋण, ऋषि ऋण आ पितृ
ऋणक भार आवि जायत अछि। यज्ञक अनुष्ठान, शास्त्रक स्वाध्याय आ संतानोत्पादन सं मनुख अहि सभ ऋण
सं मुक्त भऽ सकैत अछि। स्नातक सभ मे पवित्र सामाजिक उत्तरदायित्वक भावना उत्पन्न
करहि के लेल ई सिद्धांत वड़ उपादेय छल।
ऋष्यश्रृंगक
काल मे दोसर जे महत्वपूर्ण आश्रम आर्यायर्त मे संचालित छल, ओकर संक्षिप्त
परिचय एना अछि-
सिद्धाश्रम
मलद
प्रदेश मे आधुनिक वक्सर लग विश्वामित्रक ई चर्चित आश्रम छल। एकरा महाश्रम सेहो कहल
जायत अछि। एतय छात्र सभके अलग-अलग तरहक अस्त्र-शस्त्रक शिक्षा
देल जायत छल। एतय नव-नव अस्त्र-शस्त्रक अविष्कार आ ओकर परीक्षण सेहो करल जायत छल।
आर्य सभ्यता-संस्कृतिक
ई पूर्वी केंद्र छल। रावण जेहन महाप्रतापी सम्राट सेहो अहि महाश्रम सं सदिक्खन डरल
रहैत छल। यहि कारण छल जे ओ एकटा सैनिक छावनी एतय वनैले छल जे मारीच, सुवाहु, ताड़का जेहन
महाभट सं संचालित होयत छल। करुष मलदक स्त्री सेहो वड़ वहादुर आ साहसी होयत छल।
विश्वामित्र भगवान राम के एतय सैनिक शिक्षा देने छल। संगेसंग ओ कतेक रास नव आ
परंपरागत पचपन दुर्लभ अस्त्र देलक आ हुनकर प्रयोग करहि के विधि वतौलक।1 कोशी तट पर सेहो
हुनकर तपस्या स्थल छल। एतय ओ एतेक कठिन तपस्या केने छल, जाहि सं सृष्टिक
मूल चक्र धरि हिल उठल छल। ओ कोशी तट पर पइन माइट आ वातावरणक अनुसार चीना, मडुआ, खेरही जेहन अनाज
आ भैंस जेहन पशुक विकास करलक। ओ अप्पन कालक प्रख्यात कृषि आ पशु वैज्ञानिक सेहो
छल।
उत्तर
वैदिक काल मे आर्यक वीच ई विवाद भऽ गेल जे विजित दस्यु कऽ की करल जाय? जौ ओकर वध करल
जाय ते आर्यक सेवा चाकरी के करत? जौं ओकर जीवित राखल जाय ते समाज मे ओकर की पद होयत आ दासी-पुत्रक कुटुम्व
मे कोन स्थान होयत?
ई विवाद
युद्धक रूप लऽ लेलक। शास्त्रक अनुसार, वशिष्ठ आ विश्वामित्र मे अहि समस्याक लऽ कऽ विरोधभाव
वढि़ गेल। वशिष्ठ रक्त शुद्धिक पक्षधर छल आ विश्वामित्र दस्यु सभ के आर्य वनावैल
चाहैत छल। विश्वामित्रक अनुसार, आर्यत्व जन्म सं नै गायत्र मंत्रक जप सं शुद्ध भऽ कऽ सत्य आ
ऋत सं प्रेरित भऽ कऽ यज्ञोपवीत धारण करहि सं ओकर शुद्धि होयत अछि। कोनो मनुख अहि
प्रकार सं नया जन्म ग्रहण कऽ सकैत अछि। द्विज वनि के आर्य भऽ जायत अछि। तहियौका
समाज मे ई उदारवादी रीति वहि सिखैने अछि। अहि तरहे तहियौक भारतीय समाज संरचना मे
विश्वामित्रक वड़ पैग योगदान अछि। ई हुनकर कौशिकी तटक चिंतन-साधनक प्रतिफल
अछि।2
राजा
जनकक आश्रम
महर्षि
याज्ञवल्क्य अहि आश्रमक आचार्य छल। ई मिथिलाक विद्वान नरेश सीरध्वज जनकक देख-रेख मे संचालित
होयत छल। एतय जागतिक रहस्य,
जीवनक विभिन्न जटिल गुत्थी, जीवन-मरणक समस्याक समाधान आ ज्ञान-विज्ञानक तत्व
के सार्थक अन्वेषण करल जायत छल।3 अहि आश्रमक नाम एतेक पसैर गेल छल जे मिथिलाक अमराई के
संचालित गौतम आश्रम फीका छल।
भारद्वाज
आश्रम
ई आश्रम
प्रयाग मे छल। एकरा विश्वविद्यालयक मान्यता प्राप्त छल। ई सर्वशक्ति आ साधन संपन्न
आश्रम छल। श्रीराम के मना कऽ भरत सदलवल फेर सं अयोध्या लऽ जाय के लेल चित्रकूटक
वाट मे प्रयागक भारद्वाज आश्रम मे एक रात्रि निवास केने छल। वाल्मीकीय रामायणक
अयोध्याकण्डक अध्याय 89-90
मे एकर वर्णन अछि। ई स्वागत वृतांत सं पत चलैत अछि जे ई आश्रम कतेक साधन
संपन्न छल। भारद्वाज विश्वकर्मा, इंद्र, यम,
वरुण, कुवेर, पृथ्वी, आकाश, नदी, देव, गंधर्व, अप्सरा, चित्ररथ वन (जेकर गाछ अलंकार
सं लदल अछि), उत्तम अन्न, भक्ष्य, भोज्य, लेह्य आ चोष्यक
प्रचुर मात्रा मे व्यवस्था करैत भगवान सोम आदि देवताक आह्वान कयलक आ देवता सभ
हुनकर आदेशानुसार भरत केर स्वागतक सभ व्यवस्था कयलक। एतवे टा नै, हुनकर योगवल सं
मलय अ दर्दुर नामक पर्वतक सुगंध युक्त शीतल हवा सभ लोकक थकान ह लेलक। आमंत्रित नदी
मे मैरेय भरि गेल। सैनिक छक कए एकर रस पान केलक। पांच योजन धरि समतल धरती पर नीलम
आ वैदुर्य मणिक समान कतेक तरहक कोमल घास उगि गेल। आश्रम मे वेल, कैथ, कटहल, आंवला, विजौरा आ आमक
घना वृक्ष छल। चारि-चारि कोठली सं युक्त असंख्य चवूतरा छल। हाथी, घोड़ाक राखहिके
लेल अलग शाला छल। राजपरिवारक लेल सुनर द्वार युक्त दिव्य भवन छल। एतय सव तरहक
दिव्य रस, दिव्य
भोजन आ दिव्य वस्त्र छल। भरतक लेल कतेक प्रकारक रत्न सं सज्जित महल छल। अतिथिक
स्वागत लेल हजार दिव्यांगनाएं छल। एतय अप्सराक नृत्य आ गीत चलि रहल छल। सभ लोक
भरपेट मन जोगर भोजन केलक आ छककय मैरेय केर पान केलक। अप्सराक संयोग पावि के भरतक
सैनिक हम अयोध्या नहि घुरव,
अहि दण्डकारण्य मे रहव,
जेहन परस्पर गप करि रहल छल। मृग, मोर अ मुर्गाक मांसक संग मदिरापान कऽ सैनिक झूमि रहल
छल। आजवाइन मिलाकऽ वनाओल गेल, वराही कंद सं तैयार करल गेल आ आम आदि फल के गरम करल रस मे
पकाओल गेल उत्तमोत्तम व्यंजनक संग्रह, सुगंधमय रसवला दाल आ श्वेत रंगक भात सं भरल सहस्त्र
स्वर्ण आदि केर पात्र ओतय सभ दिस राखल छल, जेकरा फूलक ध्वजा सं सजाओल गेल छल। भरतक संग आयल सभ
लोक हुनका आश्चर्यचकित भऽ के देखलक। आश्रम मे सहस्त्र सोना के अन्न पात्र, लाख व्यंजन
पात्र आ एक अरव थाली संग्रहित छल। सात-आठ तरुणी स्त्री मिलकऽ एक-एक पुरुख के
नदीक मनोहर तट पर उवटन लग के नहावैत छल। पैग-पैग आंखि वाली
रमणी अतिथि सभ के पैर दवावैक लेल आयल छल। ओ हुनकर भीजल अंग के सूखल वस्त्र सं पोछि
के वस्त्र धारण कराकऽ हुनक स्वादिष्ट पेय पियावैत छल।
महर्षि
भारद्वाज द्वारा सेना सहित भरत के करल गेल ई अनिर्वचनीय आतिथ्य सत्कार अद्भुत आ
स्वप्नक समान छल। अहि वृतांत सं ई पत चलैत अछि जे ई आश्रम कतेक समृद्ध आ साधन
संपन्न छल। सैनिक शिक्षाक उद्देश्य सं ई आश्रम वनल छल, एहन प्रतीत होयत
अछि।4
अगस्त्याश्रम
नासिक
सं 36 किलोमीटर
दक्षिण पूर्व वर्तमान अगस्तिपुर मे ई आश्रम छल। एकर कुलपति महर्षि अगस्त्य छल। ई
सैनिक शिक्षा, आयुध-अनुसंधान आ
व्रह्म विद्याक केंद्र छल। ई क्षेत्र जनस्थान कहल जायत अछि। महर्षि अगस्तक आश्रम
ते ओहि युग मे भय आ आदरक सम्मानित छल। अहि आश्रम मे एतेक विध्वंसक शस्त्र-अस्त्र तैयार
होयत छल जहि सं राक्षसराज रावणक ह्मदय मे सदिक्खन आतंक वनल रहैत छल। रावण अहि डर
सं ओतय अप्पन पैग सैनिक छावन कायम कऽ देने छल। राम रावणक वध पैतामह नामक अस्त्र सं
केने छल। महर्षि अगस्त्य अप्पन आश्रम मे रावण-वधक लेल एकर
अविष्कार केने छल। भगवान राम के ओ अहि उद्देश्य सं हुनका भेंट केने छल। पैतामह
अस्त्र मे पहाड़ के वेधय के शक्ति छल।5 एकर अतिरिक्त अगस्त्य राम के हीरा आ सुवर्ण जड़ल
दिव्य धनुष, सूर्यक
समान देदीप्यमान अमोघ वाण,
तीक्ष्ण आ प्रज्जवलित अग्निक समान वाण सं सदिक्खन भरल रहि वला अक्षय तरकस आ
सोनाक म्यान आ सोनाक मूठ वला तलवार भेंट दऽ कऽ राक्षस केर संहारक लेल आह्वान केने
छल।6
अगस्त्य
आश्रम मे ज्ञानक विभिन्न विभाग छल। व्रह्म थान, अग्नि थान, विष्णु थान, महेंद्र थान, विवस्वान थान, वायु थान, वारुण थान प्रभृति। व्रह्म थान मे वेदक अध्ययन होयत
छल। अग्नि थाम मे साम गान होयत छल। एतय मंत्रोच्चारणक संग समिधा आहूत होयत छल।
विष्णु थान मे राजनीति, अर्थाशास्त्र, पशुपालन, आक्रमणकारी आ
रक्षणशील आयुधक ज्ञान प्रदान करल जायत छल। विवस्थान थान मे ज्योतिषक पढ़ाय होयत
छल। चिकित्सा विज्ञान सेहो एतय पढ़ौओल जायत छल। गरुड़ थान मे यातायात, यान आदि के
ज्ञान उपलव्ध होयत छल। कार्तिकेय थान मे व्रह्मचारी गुल्म,पत्ति, वाहिनी आदिक
संचालनक शिक्षा प्राप्त करैत छल। कौवेर थान मे जल संतरण, पोत संचालन आदि
केर शिक्षा देल जायत छल।7
महर्षि
अत्रि आश्रम
ई आश्रम
चित्रकूटक दक्षिण मे संचालित छल। ई तहियौका आर्य सभ्यताक मुख्य केंद्र छल।
हस्तशिल्प कला मे ई अग्रणी छल। वनवास काल मे महर्षि अत्रिक स्त्री अनुसूइया सीताजी
के एहन दिव्य वस्त्र आ आभूषण पहिनेने छल जे नित्य नवीन, निर्मल आ
सुहावना वनल रहैत छल। संगेसंग ओ सीताजी के पतिव्रत धर्मक सेहो शिक्षा देने छल।8
वाल्मीकि
आश्रमक संवंध मे इतिहासकार मे मत अलग-अलग अचि। ई तमसाक तट पर स्थित छल। ई विश्वविद्यालय
अप्पन काल मे शिक्षाक महान केंद्र छल। महाकवि भवभूतिक अनुसार, एतय छात्रा सभ
सेहो अध्ययन करैत छल। एतय अलग-अलग शास्त्रक संग शस्त्र/अस्त्रक सेहो
शिक्षा देल जायत छल। एकर प्रमाण स्वयं रामक पुत्र लव-कुश छल। वशिष्ठ आश्रम
अयोध्या मे स्थित छल, जतय
भगवान राम शिक्षा पाओल।
गुरु
गृह गये पढ़न रघुराई, अल्पकल
विद्या सव पाई।
रामचरितमानस, वालकाण्ड
महर्षि
वशिष्ठक दोसर आश्रम हिमालयक तलहटी मे सेहो छल, जकर वर्णन रघुवंश नामक महाकाव्य मे कालिदास केने अछि।
अहि आश्रम मे छात्र संघ सेहो छल, जकर वाल्मीकि मेखलीना महासंघा कहि के उल्लेख केने अछि। अहि
संघक राजसभा मे सेहो प्रभाव छल। नैमिषारण्य मे महर्षि शौनक के सेहो चर्चित आश्रम
छल। एतौका अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सभ वड़ प्रसिद्ध छल। अहि मे धार्मिक, राजनीतिक आ
वैज्ञानिक विचार पर संवाद होयत छल।9
एकर
अलावा, महर्षि
सुतीक्ष्ण, महर्षि
शरभंग, महर्षि
मतंग आ महर्षि जावालिक आश्रम शिक्षाक प्रमुख केंद्र छल।
-------------
षष्ठ
परिच्छेद
श्रष्यश्रृंगक
श्रृंगेश्वर (सिंहेश्वर)
विहार
राज्यक जिला मुख्यालय मधेपुराक रेलवे स्टेशन दौरम मधेपुरा कहलावैत अछि। एतय सं आठ
किलोमीटर उत्तर ऋष्यश्रृंगक श्रृंगेश्वर आव सिंघेश्वर या सिंहेश्वर थानक नाम सं
प्रसिद्ध अछि।
लगभग दू
सौ वरख पहिने हरिचरण चौधरी नामक एकटा लकड़ीक व्यवसायी कोशीक जलमार्ग सं नेपाल सं
लकड़ी आनि के व्यवसाय करैत छल। एक वेर हुनका व्यवसाय मे वेसी लाभ भेल। ओ शिवभक्त
व्यवसायी श्रृंगेश्वर नाथ (सिंहेश्वर नाथ) केर एकटा भव्य मंदिर वनैलक। जखन भागलपुर
केर जिला आ सत्र न्यायाधीश केर एतय क्षेत्रीय सनातन धर्मी वनाम पंडागण (जय नारायण ठाकुर
आ 13 अन्य) वाद संख्या 3/1937 चलि रहल छल, ओहि सिलसिला मे
हरिचरण चौधरी के पैंसठ वर्षीय प्रपौत्र दरवारी चौधरी अप्पन गवाही मे वाजल छल जे
वर्तमान मंदिरक पूव भरि दीवाल पर स्वयं हरिचरण चौधरी, पश्चिम भरि
दीवाल पर लालजी चौधरी आ उत्तर भरि दीवाल पर शिवू चौधरी के चित्र अंकित अछि। अहि
तथ्यक पुष्टि ओ अप्पन साक्ष्य मे केने छल। ताहि सं कतिपय स्थानीय वुद्धिजीवी
द्वारा मंदिर मे उत्कीर्ण अहि चित्र के वुद्ध आ दोसर वौद्ध भिक्षु केर मानव सरासर
भूल अछि।
ऋष्यश्रृंगक
जन्मभूमि आ कर्मभूमि हेवाक कारण अहि क्षेत्रक प्राचीन महत्व अछि। एतय के कण-कण मे
ऋष्यश्रृंग एखनो रमैत अछि। एतय के माटि अहि ऋषिराजक यज्ञाग्निक वुझल भस्म अछि।
ताहि सं नदी सं आच्छादित ई क्षेत्र वड़ उर्वर अछि। एकर प्राचीनता के वुझैक लेल
सवसं पहिने श्रृंगेश्वर नाथ (स्ंिाहेश्वर) केर नदी सभ (कोशी आ ओकर दोसर
सभ धार) केर
अध्ययन करव आवश्यक अछि। कोशीक कतेक रास छाड़न धार सूखि गेल अछि आ ओकर धार आव
निस्तेज भऽ गेल अछि। मुदा भारत सरकारक कोशी नियंत्रण योजना सं पहिने चीन के
ह्वांगहो नदी सं वढि़ के अप्पन विनाशकारी वाढ़ कोशी जग जाहिर छल। देखू जे भोलानाथक
नगरी आ ऋष्यश्रृंगक तपस्थली मे कोशी आ ओकर छाड़न धारक स्थिति की छल?
कोशी
धार भगवान शिव के वड़ प्रिय अछि। महाकवि कालिदासक अनुसार, कोशीक तट पर
साक्षात शंकर वसैत अछि। ताहि सं कोशी शंकरक तरहे तांडव करैत अछि।
महाभारत
मे कौशिकी तीर्थक वृहत चर्चा अछि2, जे अहि देशक सांस्कृतिक भूगोल केर रेखांकित करैत अछि। एकरा
जानैक लेल सिंहेश्वर मे प्रवाहित कोशीक विभिन्न धारक जानकारी आवश्यक अछि।3
मुख्य
कोशी नदी भीमनगर सं दक्षिण चलिके शिवनगर गामक निकट दू भाग मे वंटि जायत अछि। ओतय
पूव भरि वला धार से वैवाह (धसान) आ चिलौनी नामक धार वनैत अछि आ पश्चिम भरि वला धार सं
परवाने, तिलावै, वड़हरी आ सोनेह
नामक धार अपन स्वरूप ग्रहण करैत अचि। तिलावै नदी एखन सुपौल जिलाक थुमहा, वसहा, तुलापट्टी, रामनगर, रामपुर आदि गाम
के स्पर्श करैत सिंहेश्वर स्थानक चर्चित गाम वभनी भेलवा आवैत अछि। ई गाम रामपुरक
अग्निकोण मे आ तिलावै के पाश्र्व भाग मे अछि। कहल जायत अछि जे कहियो ई गाम भववावा
थानक नाम सं प्रचलित छल। मुगल सम्राट शाहजहांक काल मे भववावा एकटा समाज सेवी छल, जिनकर जन्म अहि
ठाम पर भेल छल। 350 ईपू अहि
गाम मे हुनकर स्मारक छल।
तिलावै
वभनी भेलवा गाम सं कनि नैऋत्य कोण मे झुकि के सिंहेश्वर थानक मार्र्ग मे स्थित
गम्हरिया नामक गाम आवैत अछि। अहि गाम मे सोनाय महाराज नामक एकटा धार्मिक आ समाज
सेवी लोकदेवक स्मारक अछि,
जिनका प्रणाम करि के तिलावै सं आगू वढि़ जायत अछि।
सोनेह
एकटा छोट धार अछि जे सिंहेश्वर थानक नैऋत्य कोण स्थित दलदली चौर सं प्रवाहित होयत
अछि। ई परवाने धारक एकटा टूटल धार अछि। ई अप्पन उद्गम सं दक्षिण दिस चलि के लंवा
दूर तय करि के वंशीरौता गाम मे तिलावै धार मे प्रवेश करि जायत अछि।
परवाने
धार रूपौली सं दक्षिण चलि के सिंहेश्वरक चर्चित गाम रामपट्टी मे प्रवेश करैत अछि, जतय धसान आ
वरहरीक धार अहि मे मिलिकए एकर जलभंडारक वृद्धि करैत अछि। परवाने आ धसानक ई संगम
सिंहेश्वर आ गौरीपुर सं कनि दूर ठाम अछि। धसानक अलग अस्तित्व अछि मुदा वरहरी
परवानेक एकटा उपधार अछि,
जे आव मृत भऽ गेल अछि। एक चौर सं चलि के वरहरीक धारा परवानेक समानांतर दक्षिण
भरि चलैत अछि आ अप्पने वाम भाग सं डंडारी, चम्पानगर, वैरवन्ना आदि गामक स्पर्श करैत अछि।
परवाने
धार रामपट्टी सं चलिके सिंहेश्वर थान आवैत अछि, जतय ओ भगवान शंकरक चरण स्पर्श करैत अछि। कोशीक चिलौनी
धार लालपुर सं दक्षिण चलिके दाहिना पाश्र्व मे सरोपट्टी गाम के स्पर्श करैत अछि।
लालपुर गाम के लगभग दू सौ वरख पहिने भानुदास नामक कुशाग्र वंशीय राजभर सरदार वसैने
छल। अहि गामक लग गौरीपुर अछि। सिंहेश्वर नाथ मंदिर लग चिलौनी दू भाग मे वंटिके
समानांतर मधेपुरा आवैत अछि। गौरीपुर सं दक्षिण पूर्वी धारक कात रामपुर नामक गाम
अछि, जतय दू
सौ वरख पुरान एकटा व्रह्मस्थान अछि।
चम्पारण्य
तीर्थ
महाभारत
मे वर्णित कौशिकी तीर्थ मे एकटा तीर्थ अछि चम्पारण्य। ई क्षेत्र तत्कालीन अंग
नरेशक अधीन छल। महाभारत सं पूव अंग देशक राजधानी मालिनी छल। वाद मे राजा रोमपादक
प्रपौत्र चम्पा नामक एकटा राजाक नाम पर चम्पा या चम्पावती कऽ देल गेल।4 महाभारत काल मे
ई चम्पा नगरी चम्पकक वाग सं परिवृत छल।5 ताहि सं अहि चम्पारण्य सं चम्पा राज्यक अरण्य भाग
वुझवाक चाहि। एकरा एखुनका चम्पारण जिला वुझवाक भौगोलिक भूल अछि। छठम शताव्दीक रचना
शक्ति संगम तंत्रक अनुसार विदेह भूमिक सीमा अहि तरहे देल गेल अछि,
'गण्डक तीरमारम्य
चम्पारण्यान्तक शिवे
विदेह
भू समाख्याता तैरमुक्त भिवं सुत।'
शक्ति
संगम तंत्र 7/27
विदेह
भूमि पश्चिम मे गण्डकी तीर आ पूव मे चम्पारण्य धरि पसरल अछि। विदेह भूमि मिथिलाक
पूव ई क्षेत्र चम्पारण्य अछि। वर्तमान चम्पारण जिला मिथिलाक पश्चिम मे स्थित अछि।
महाभारतकार
जे चम्पारण्य तीर्थक वर्णक केने अछि, ओ तीर्थ वड़ पुण्य प्रदान करय वला अछि। महाभारतक
अनुसार, ओतय एक
रात्रि रहय सं सहरुा गाय केर दानक फल भेटैत अछि।6 ऋष्यश्रृंगक तपोभूमि कौशिकी तीर्थ मे
वीराश्रम आ कुमारतीर्थ सेहो अछि, जे चम्पकारण्य तीर्थक उत्तर भरि के सीमा आ पूव सीमा पर
स्थित क्रमश: वीरपुर
आ कुमारखंड के रेखांकित करैत अछि। ई चम्पकारण्य तीर्थ सिंहेश्वर थान निर्दिष्ट
होयत अछि। ई समस्त क्षेत्र चम्पा नरेशक अरण्य भाग छल। एतौका वेसी गाम मे चम्पा
देवीक पूजा होयत अछि। शंकरपुर मे वरहगाडि़याक जमींदार वावू एकदेश्वर सिंह चम्पा
देवीक मंदिर वनाय के ओतय चम्पाक मूर्ति स्थापित केलक, जतय प्रत्येक
वर्ष मेला लागैत अछि। अन्य देवी-देवताक अलावा वांतर जाइतक मान्य कुल देव चम्पावती
सेहो अछि।8 वांतरक
अलाा दोसर कतेक रास जाइत चम्पादेवीक भगैत गावैत अछि। ताहि सं सिंहेश्वर थानक
चम्पारण्य तीर्थ नै मानव एकटा एतिहासिक भूल अछि।
परवाने
नदी सिंहेश्वर सं दक्षिण दिस चलि के जोतनार गाम के स्पर्श करैत अछि। कौशिकी तीर्थ
मे एकटा ज्योतिस्मर तीर्थ सेहो अछि, जतय ह्मद मे नहावय सं वड़ पुण्य भेटैत अछि। ई जोतनार
गाम महाभारत कालीन ज्योतिस्मर तीर्थ अछि।9 तहयौका भौगोलिक साक्ष्यक आधार पर समूचा क्षेत्र चम्पा
राजाक वनभाग छल। चम्पावतीक वनदेवी सेहो कहल गेल अछि।10 जो एकटरा
पौराणिक मान्यता अछि। महाभारतक अनुसार ऋषि आ राजाक एकटा दल प्रभास तीर्थ सं यात्रा
शुरू कऽ कौशिकी तीर्थ सेहो गेल छल। अहि दल मे भृगु, वशिष्ठ, गालव, कश्यप, गौतम, विश्वामित्र, यजदग्नि, अष्टक, भारद्वाज, अम्वरीष आ वालखिल्य ऋषि छल आ राजा मे शिवि, दिलीप, नहुष, अम्वरीष आदि छल।11 अहि यात्रा
वृतांत अहि क्षेत्रक पौराणिकता आ दर्शनीयता के रेखांकित करैत अछि।
पौराणिक
सिंहेश्वर थान
सिंहेश्वर
स्थान भगवान शंकरक पावन तपस्थली अछि। षोड महाजनपद मे शीर्षस्थ जनपद अंग देशक ई
महत्वपूर्ण तीर्थस्थल अछि। अंग देशक निर्माण मे सेहो भगवान शिवक उल्लेखनीय योगदान
अछि।
दक्षिण
मे मन्दराचल पर्वत आ उत्तर मे मूजवान पर्वत धरि पसरल विशाल वन्य प्रदेश श्लेषात्मक
वन छल, जतय
कन्दर्प दहनक पश्चात भगवान शिव समाधिस्थ भेल छल। कोशी के कतेक धार वन मे वहैत छल।
वाराह पुराणक उत्तरार्धक एकटा पुरा कथाक अनुसार, ओहि वन मे भगवान शिव के खोजैत देवराज
इंद्रक संग विष्णु आ व्रह्मा पहुंुचल। भगवान शिव एकटा सुनर हरिणक रूप मे विचरण
करैत छल। तीनों अंतयार्मी देवता अहि हरिण के देखहि के वुझि गेल जे ई भगवान शंकर
अछि आ ओ हरिण के पकड़हि मे सफल भऽ गेल। इंद्र हरिणक सींगक अग्र भाग, व्रह्मा मध्य
भाग आ विष्णु निम्न भाग पकड़लक। एकाएक सींग तीन भाग मे टूटिके विभाजित भऽ गेल।
तीनो देवताक हाथ मे सींगक एक-एकटे भाग रहल आ हरिण लुप्त भऽ गेल। तखनै आकाशवाणी भेल
कि आव शिव नहि भेटत। देवता सभ अप्पन-अप्पन हाथ मे आयल सिंहक भाग के पावि के संतोष कऽ
लेलक।
कहल
जायत अछि जे विष्णु लोक कल्याणार्थ अप्पन भागक सींग के जहि ठाम पर स्थापित करलक, ओ वर्तमान
सिंहेश्वर (श्रृंगेश्वर) अछि। अहि तरहे
एकर सिंहेश्वर नाथ नाम सार्थक भेल।
वाराह
पुराणक अहि पुरा कथाक अनुसार तीनों देवता कोशीक तीर पर भगवान शिव से भेंट करय लेल
पहुंचल छल। अहि तथ्य के कालिदास कृत कुमारसंभव मे स्पष्ट करल गेल अछि। ओकर अनुसार, कोशी के प्रपात
लग भगवान शिवक निवास अछि आ देवता सं ओतय भेंट करयक स्थान निर्दिष्ट करल गेल अछि।12
अत: कोशीक तीर पर
इंद्र, विष्णु
आैर व्रह्मा का शंकर सं भेट करव पूर्व निर्दिष्ट आ निर्धारित ठाम दिस हुनकर आगमनक
सूचक अछि।
मुदा
वाराह पुराणक अंतिम अध्यायक कथा जे प्रमाणक रूप मे प्रचलित अछि, ओ स्पष्ट नै अछि
जे मृग रूप महादेवक श्रृंग मूल पावैक भगवान विष्णु ओकरा एतय स्थापित केने छल। ताहि
सं अहि विषय पर प्रवुद्ध पाठक अपने सं विमर्श, विश्लेषण आ विवेचन करय, यहि उचित अछि। मिथिला तत्व विमर्श, पृष्ठ 80 मे विद्वान लेखक
महामहोपाध्याय परमेश्वर झाक सेहो यै मत अछि।
चौवीस
हजार श्लोक वला वाराह पुराण एकटा सतोगुण पुराण अछि, जहि मे विष्णुक वराह अवतार वर्णित अछि।
महाभारत आ पद्मपुराण ओहि वड़ क्षेत्रक उल्लेख तऽ नै अछि, मुदा अहि
क्षेत्रक स्थान निर्देशक लेल अप्पन जानकारी केर वेस स्पष्ट करैत अछि। ओहि मे
अतीतकालीन पुरा कथा अछि,
जे जागतिक रहस्य केर उद्घाटन करैत अछि। एहन पुराणक निर्मल जल मे प्रक्षेपक
शैवाल जाल सेहो कम नै अछि। प्रक्षेप मे संकलित पुराकथाक तात्विक नीर-क्षीर विवेचन
निष्पक्ष-प्रवुद्ध
वर्ग कऽ सकैत अछि।
परवर्ती
साक्ष्य
कहल
जायत अछि जे सिंहेश्वरक जंगल मे पर्याप्त गोचर भूमि छल। एतय दूर-दूर ठामक गोपाल
अप्पन गाय कऽ चरावैक लेल आवैत छल। एहन मान्यता अछि जे एकटा विशेष ठाम पर कुंआरी
गाय आवैत छल आ ओकर थन सं दूध टपकैत लागैत छल। ई सिलसिला अनवरत चलैत रहल। एक दिन
गोपालक दूध टपकैत दृश्य अप्पन आंखि सं देखलक। ओकर वाद कतेक दिन धरि ओ ई देखैत रहल।
ओहि निर्दिष्ट ठाम पर ओहि गाय के आविके आ ओकर थन सं दूध टपका केर ओहि ठाम के
सिंचित करव एकटा कौतूहल छल। ओहि गोपालक जिज्ञासावश ओतय सं माटि हटाकऽ देखलक ते ओ
विस्मित भऽ गेल। एकटा शिवलिंग माटिक नीचा झांपल छल, जतय गायक धन सं दूध टपकैत छल। ओ गोपालक
सेहो नियमित अहि शिवलिंगक पूजा करय लागल। दोसर सव गोपालक सेहो ओतय भक्ति अर्चना
करय लागल। वाद मे कोनो भक्त ओतय छोट-सन मंदिर वनैलक। कहल जायत अछि जे यहि ठाम ओ पूर्वकालक
गोचारण स्थल अछि आ सिंहेश्वर मंदिरक शिवलिंग वहि अछि जेकरा कोनो अनाम गोपालक माटि
सं हटा के दर्शन-पूजन
केने छल।
सिंहेश्वरक
थानक अलावा देवघर आदि मंदिरक शिवलिंगक कथा किछु एहिने तरहे अछि। जे भी हुए सभ
शिवलिंगक स्थापना आ ओकरा खोज निकलैक श्रेय गोपाल केर जायत अछि। मुदा एकर प्रत्यक्ष
लाभ दोसर समुदायक लोक के भेटैत अछि।
शिवलिंगक
तीन रूप अछि, भावलिंग, प्राणलिंग आ
इष्टलिंग। भाव कलाविहीन,
सद्रूप काल आ दिक् सं अपरिच्छिन्न आ परस्पर अछि। एकर साक्षात श्रद्धा सं होयत
अछि। प्राण लिंग कलाहीन आ कला युक्त दूनू अछि। वुद्धि सं एकर साक्षात संभव अछि।
इष्ट लिंग कला युक्त होयत अछि ताहि सं नेत्र सं एकर दर्शन संभव अछि। अहि तीनो के
क्रमश: सत, चित आ आनंद कहल
गेल अछि। परम तत्व भाव लिंग अछि, सूक्ष्म प्राण लिंग अछि आ स्थूल इष्ट लिंग अछि। सिंहेवर थान
मे स्थापित शिवलिंग इष्ट लिंग अछि, जे मंत्रयुक्त, मंत्रहीन, क्रियायुक्त, क्रियाहीन, ज्ञानी, अज्ञानी सभक लेल दर्शनीय आ पूजनीय अछि।
कहल
जायत अछि जे लगभग एक सौ वरख पहिने सिंहेश्वर मंदिर मे स्थापित शिवलिंगक सव तरफ
जलढ़रीक निमित संगमरमर वैसावैक लेल खोदल गेल छल। मजदूर सभ करीव आठ फीट नीचा खोदलक।
ओ किछु अद्भुत दृश्य देखलक। लिंगक आंतरिक स्वरूप भव्य आ अद्भुत छल। शिव पार्वतीक
असंख्य प्रतिमा ओहि पर मुद्रित छल। वाह्य रूप सं तीन गुना मोटा आकार नीचा पसरल छल।
एकर विशालता देखहि के ओ चकित रहि गेल। किछु मजदूर ते अप्पन संतुलन सेहो विसुरि
गेल। एहन स्थिति मे खुदाईक काज स्थगित कऽ देल गेल। एकर सत्यापन किछु अभियंता केने
अछि। ओ शिवलिंग सं अलग खुदाई केलक ते आठ-दस फीटक गहराई मे एकटा विशाल चट्टान
देखलक जाहि सं शिवलिंग जुड़ल छल। एकटा विशाल चट्टानक कारण कोशीक उफनावैत धार अहि
मंदिर के क्षति नहि पहुंचा सकल। अहि मंदिरक पौराणिकताक देखैत आय धरि एकर जाहिना के
ताहिना वनरल रहैक श्रेय अहि चट्टानी आधारशिला के देल जा सकैत अछि।
किरातक
भूमि
अहि मे
कोनो मत भिन्नता नहि अछि जे प्राचीन काल मे एतय घनघोर जंगल आ नदीक संग पहाड़ सेहो
छल जे कतिपय भौगोलिक कारण सं धरतीक संग धंसि गेल। एहने ठाम भगवान शिवक लेल उपयुक्त
छल क्याकि उपनिषदकरक मुताविक भगवान शिव निर्जन जंगल आ पहाड़ मे निवास करैत छल।14 जंगल, गिरिगह्वर मे
रहै वला किरात जेहन निवासी मे हुनकर लोकप्रियता वढ़ैत गेल। कालांतर मे ओ जगत्पति आ
देवताक द्रष्टा मानल जा लागल आ ओ आर्य आ अनार्य दूनूक द्वारा पूजित हुए लागल।
प्राचीन
काल मे जहि कियो विदेशी जाइत भारत पर आक्रमण कऽ अप्पन विस्तार केलक आ अप्पन राज्य
स्थापित केलक हुनकर वर्णन महाभारत, पातंजलिक महाभाष्य, मनुस्मृति आ अन्यान्य स्मृति ग्रंथ मे
अछि। महाभारतक अनुसार, यवन, शक, पह्लव, किरात, चीन आदि जाइतक
प्रवेश भारत मे भऽ चुकल छल।15 मनुक मुताविक, पौण्ड्रक, द्रविड़, कम्वोज, किरात, दरद, चीन,
खश, यवन, शक, पारद आ पह्लव
विदेशी जाइत छल।16 अहि
विदेशी जाइत आर्य सभ्यता अा संस्कृति पर प्रभाव डालैत भारतीय धर्म आ संस्कृति मे
अपना केर आत्मसात कऽ देलक। कलांतर मे ओ विदेशी नहि रहि गेल। हुनकर पूर्ण रूप सं
भारतीयकरण भऽ गेल। एहने विदेशी जाइतक एकटा जइत किरात छल, जकरा प्राचीन
वर्ण व्यवस्था मे मनु शुद्रक रूप मे मान्यता देलक।
तहियौका
हिन्दू समाज जहि समुदायक तिरस्कर केलक, ओ भगवान शिवक शरण मे गेल। क्याकि अमरकोश मे किरात के
म्लेच्छक एकटा भेद मानल गेल अछि।17 कुमार संभव (8.29)
केर मुताविक, ई जाइत
हिमालयक परवर्ती प्रदेश मे रहैत छल। भगवान शिव हिमालयक कैलास शिखर पर रहैत छल ताहि
सं ई जाइत के भगवान शिव के तादात्मक कथा जुड़ल अछि। वायु पुराण (47.48) आ व्रह्मांड
पुराण मे हुनकर धारक कात मे रहय वला जाइतक तरहे उल्लेख करल गेल अछि। संगेसंग
विष्णु पुराण (2.3.8) मे एकर निवास
स्थान पूर्वी भारत मानल गेल अछि।
भले ही
भारतीय पुरा साहित्य मे अहि जाइत के विदेशी आ अनार्य मानल गेल अछि, मुदा एकर मूल
पुरुष आर्य छल। एकर प्रमाण हरिवंश पुराणक महाराज सगरक चरित-वृतांत मे स्पष्ट
अछि जे राज्य मे लोग सं विजयी क्षत्रिय देशांतर गेल छल, मुदा ओ अप्पन
व्राह्मण पुरोहित के नहि पावि के अप्पन मूल आर्य धर्म सं भ्रष्ट भेल गेल जाहि सं
कतेक रास जाइत व्राह्मणक वर्चस्व के स्वीकार नै भेल ताहि सं म्लेच्छ कोटि मे दऽ
देल गेल।
भागवत
पुराणक स्कन्द 9 के 23म अध्याय मे
उल्लिखित अछि जे महाराज ययातिक पुत्र द्रुह्यक संतान उत्तर दिश जाइके म्लेच्छक
राजा भऽ गेल। अहि तरहे गतायातक प्रक्रिया चंद्रगुप्तक काल धरि भेल गेल। एकर अलावा, अहि देशक लोग
तहियौका सैन्य-वल मे
नियुक्त भऽ कऽ म्लेच्छक देश मे जा के म्लेच्छ वनि गेल। मुद्राराक्षस नाटकक पंचम
अंक मे एकर उल्लेख अछि।
अहि देश
मे वर्जन (जाइत-च्युत) कऽ प्रथा वड़
पुरान अचि। जौं केकरो सं ज्ञात आ अज्ञात, छोट या वड़ अपराध भेल अछि ते धर्मक ठेकेदार हुनक जाइत
सं वहिष्कार कऽ देत छल आ ओकर एत्ता वेसी तिरस्कार करैत छल जे ओकर लाख अनुनय-विनय करहि के
वादो ओकर जाइत मे नहि घुरावैत छल। नतीजा ई हैत छल जे हुनकर दोसर उदार समुदाय मे
शामिल भऽ मूल सनातन धर्म सं विस्थापित भऽ तथाकथित म्लेच्छ मे शामिल हेवाक कारण
हुनकर संख्या वढ़ैत गेल। हुनका फेर सं सनातन धर्म मे आनय केर प्रयास नहि भेल।
हालांकि याज्ञवल्क्य आदि स्मृतिकार एहन तरहक अपराधक प्रायश्चितक व्यवस्था देने अछि
मुदा ई स्मृति मे सिमटल रहि गेल। जेकर हाथ मे न्याय आ धर्मक व्यवस्था छल हुनकर हठधर्मिता
आ सदा सर्वथा समाज मे वर्चस्व स्थापित राखवाक प्रवृति अहि समाज कऽ क्षीणकाय कऽ
देलक।19 किरात
आदि जाइत केर अहि धरती पर वहुलांश अहि रहस्य के रेखांकित करैत अछि। महाभारत काल मे
अहि क्षेत्र पर किरातक वाहुल्य छल। गंगा सं उत्तर आ महानन्दा सं पूरव नेपाल धरि ई
जाइत पसरल छल। अहि क्षेत्र मे हुनकर सशक्त संस्कृति फलफूल रहल छल। राजा विराटक
दोसर स्त्री सभ मे एकटा किरात कन्या सेहो छल, जे मोरंग वा नेपालक तराई मे रहि वाली छल। किरात एक
शक्तिशाली जाइत छल। तहियौका किरातार्जुन कीर्ति जेहन परवर्ती साहित्य मे एकर चर्चा
आयल अछि।20 अहि
क्षेत्र मे अन्यान्य जाइतक संग किरता के सेहो वड़ संघर्ष करय पड़ल।21
महाभारत
मे अर्जुन पाशुपतास्त्र प्राप्त करहि हिमालय जाइत अछि। ओतय भगवान शिव अप्पन प्रिय
भक्त किरातक वेश मे भेटैत अछि। शिव के नहि चिन्ह सकय के कारण अर्जुन ओहि किरात वेश
शिव सं युद्ध करैत अछि, मुदा
हुनका सं परास्त भऽ जायत अछि। फेर शिवक वास्तविकता के वुझि अ अहि अवढरदानी के
प्रसन्न करहि के लेल अर्जुन माटिक वेदी वनाके हुनकर अराधना करैत अछि आ वेदी पर
पुष्प अर्पण करैत अछि। ओ ई देखहि के आश्चर्यचकित रहि जाइत अछि जे जे फूल शिवक लेल
ओ मृत्तिका वेदी पर चढ़ावैत अछि ओ ओहि किरात पर आवि जायत अछि। आव अर्जुन किरात वेश
शिव के चिन्है मे विलम्व नै होयत अछि।22 विक्रमोर्वशीयम (1.11) मे कालिदास सेहो लिखने अछि जे
पाशुपतास्त्र प्राप्त करहि के लेल अर्जुन कठिन तपस्या केने छल।
भारत मे
जखैन शिशुनाग वंश, नन्दवंश, मौर्यवंश, शुंग वंश, आंध्र वंश आदि
केर राज्य छल। ओकर समानांतर नेपाल मे लगभग सात सौ वरख धरि किरातक राज्य छल। अशोकक
धर्म चक्र विजय काल मे नेपाल मे किरात राज्य स्थ्यांकु छल। वौद्ध धर्मक अनुश्रुति
मे सम्राट अशोक अप्पन कन्या चारुमति आ जामाता देवपालक संग नेपाल जाकऽ किरात शासकक
सहायता सं कतेक रास विहार आ वौद्ध स्तूप वनैने छल।23
किरात
दवंग आ स्वतंत्र विचार वला जाइत छल। सातम शतावद् मे व्राह्मणवादी व्यवस्था आ
कर्मकाण्ड के सर्वथा नकारैक कारण एतौका किरातक नव नामांकरण वांतर करल गेल जकर अर्थ
अछि कुपथ्य आ त्याज्य। तहियौका समाज व्यवस्थाकार एकरा संगठित हिन्दू समाजक लेल
कुपथ्य मानलक। जहि जाइतक सभ्यता संस्कृति महाभारत सं लऽ कऽ गुप्त-स्वर्ण-युग धरि अप्पन
यशोज्जवल गाथा कहय मे सक्षम हुए, जाहि जाइत हजार वरख धरि राज्य सत्ताक संचालन केने हुए, ओ म्लेच्छा आ
शुद्रे टा नै, समाजक
लेल कुपथ्य सेहो भऽ गेल।
व्यस्थाकार
वर्ण व्यवस्थाक वंधन एतेक मजवूत कऽ देलक आ शासक के सदण्ड एकर कार्यान्वयनक दायित्व
सौंपलक जाहि सं सामाजिक कलस्विनीक प्रवाह स्थिर भऽ गेल। ई सच अछि जे मनु द्वारा
संचालित वर्ण व्यवस्था मे ऊंच-नीचक भावना आ भेद-भावक दृष्टि छल, जे परवर्ती
हिंदू समाज के जर्जरित करय के कारण वनि गेल। भगवान वुद्ध अहि व्यवस्था पर एतेक
वेसी प्रहार करलक जे मरणासन्न अवस्था मे आनि के छोडि़ देलक। मुद शुंगक काल मे ई
फेर जीवित भऽ गेल।
अलवरुनी
ग्यारहम शताव्दी मे भेल छल। हुनकर कथन अछि, प्राचीन काल मे कर्म परायण राजा जनता के कतेक रास
श्रेणी आ कर्म
मे विभक्त करहि मे जोड़ दैत छल। संगेसंग हुनक एक-दोसरा सं भेंट आ
क्रम तोड़ैक सं रोकहि के यत्न करैत छल। ताहि सं ओ भिन्न-भिन्न श्रेणीक
लेक के एक-दोसरा
सं संवंध राखहि सं रोकि देलक आ प्रत्येक श्रेणीक लोग के विशेष प्रकारक काज आ शिल्प
सौंप देलक। ओ कोनो लोक के अप्पन वर्गक अतिक्रमण करहि के लेल अनुज्ञा नै दैत छल। जे
अप्पन श्रेणी सं संतुष्ट नहि छल, हुनका दंड देल जायत छल।24 एहने समाजक संवेदनशीलता मारल गेल आ एक-दोसरा सं नै
मिलय आ पारस्परिक संपर्कक अभाव मे हुनकर गतिशीलत अवरुद्ध भेल। व्राह्मण सेहो
व्यवस्थाक नाम पर अप्पन अधिकार के खुलि के दुरुपयोग केलक। विराट भारतीय समाज मे
रहि के कतेक रास जाइत अहि सं विमुख भऽ कऽ अप्पन दायरा मे सिमटल चलि गेल। जे कहियो
गतिशील जाइतक रूप मे चर्चित छल, ओ अंतर्मुखी वनैत गेल।
ग्यारहम
सदी मे निशिहरदेव किरात वंशी राजा भेल जिनकर राजधानी निशिहरपुर छल ई वर्तमान
शंकरपुर अंचल अछि। हुनकर भवन आ दुर्गक अवशेष एकटा टीलाक रूप मे अवस्थित अछि आ जाहि
पर एकटा मंदिर निर्मित अछि। मंदिर परिसर मे राखल गेल राजभवनक स्मृति चिह्न, नक्काशीदार
प्रस्तर खण्ड, प्रस्तरक
चौखट आदि पालयुगक प्रतीत होयत अछि। संभवत: ई किरातक अंतिम राजा छल। हुनकर अराध्य
उगरी महाराज नामक एकटा सिद्ध पुरुष छल जे गुडि़या (त्रिवेणीगंज
निवासी) कमार
जाइत छल। हुनका लोक देव खेदन महाराज सं वैर छल। टेंगराहा चौर मे ओ मायाक वाघिन के
भेजि के खेदन महाराजक वध करैने छल, जे खेदन महाराज के भगैत गीत सं ज्ञात होयत अछि।
कर्नाट
क्षेत्रीय नान्यदेव 1097
ई. मे अहि
क्षेत्र पर अप्पन अधिकार जमा केर सत्तासीन भऽ चुकल छल। आहि काल सिंहेश्वर मे किरात
आ कुषाण वंशक छोत्त-छोट राज्य छल जे वाद धरि कर्नाटक करद वनल रहल।
कुषाण
वंशी राजभर
कुषाण
चाइत चीनक गोवी प्रांत मे रहय वला यू-ची जाइतक एकटा शाखा छल। यू-ची जाइतक पांचटा
शाखा छल, हिऊमी, चाउयांग-मी, ही-तुम, ताउ-मी आ कोई-चाउआंग। कोई-चाउआंग के कुषाण
कहल जायत अछि। गोवी प्रांत मे हुं-ग-नू जाइत यू-चि जाइत पर आक्रमण कऽ हुनका सभ के गोवी
प्रांत से निकालि कऽ वाहर कऽ देलक। ई सभ लोक भागि के सरदरिया आयल। मुदा ओतय सं
सेहो हुनका सभ के भागय पड़ल। सरदरियाक यु-सुन नामक एकटा जाइत हूणक सहायता सं हुनका
सभ पर आक्रमण कऽ देलक आ ओतय सं सेहो विस्थापित कऽ देलक। लगभग 140 ईपू ई सभ
वैक्ट्रिया आयल। ओहि काल वैक्ट्रिया मे शकक शासन छल। एहि पर रहैत कुषाण अप्पन शेष
चारि शाखा पर विजय प्राप्त कऽ वेसी शक्ति संपन्न भऽ गेल।
ओकर
प्रथम राजा कुजूल कैडफिसेस छल, जे शक्तिशाली आ महत्वाकांक्षी छल। ओ पह्लव शासक के परास्त
कऽ गन्धार आ सीमाप्रांत केर अप्पन अधीन कऽ लेलक। ओ वाद मे वौद्ध धर्मावलम्वी भऽ
गेल। ओ अस्सी वरख धरि युद्ध मे संलग्न छल। ओ कुषाण वंशक नीव के आओर मजवूत करलक।
एकर वाद
ओकर पुत्र विमकैडफिसेस सत्तासीन भेल। ओ अप्पन योग्य पिताक योग्य पुत्र सावित भेल।
भारत विजयक सेहरा हुनके सिर वान्हल गेल। हुनकर मृत्युक वाद हुनकर पुत्र कनिष्क
प्रथम आ ओकर वाद कनिष्क द्वितीय कुषाण वंशक शासक भेल। कनिष्क अप्पन राजधानी सीमा
प्रांतक पुरुषपुर मे वनौअलक। ओ अप्पन प्रभुत्व पुरुषपुर से पाटलीपुत्र धरि स्थापित
केलक।
मान्यताक
अनुसार, कनिष्क
कठोर संघर्षक वाद पाटलीपुत्र के पराजित केलक आ वौद्ध विद्वान अश्वघोष के जमानतक
रूप अपना संगे लऽ गेल। अश्वघोषक संपर्क मे आवि के ओ सेहो वौद्ध धर्मावलम्वी भऽ
गेल। ओ पहिलुक शैव धर्मावलम्वी छल।25 संभावत: अश्वघोष जेहन वौद्ध विद्वान अप्पन अधिकार मे लहि के
लेल ओ मगध पर चढ़ाय केलक। ओ पूर्वी भारत पर अप्पन अधिकार जमा के शांति स्थापित
केलक। तिरहुत प्रमंडल मे कनिष्कक छिद्रांकित ताम्र-मुद्रा प्राप्त
भेल अछि अहि क्षेत्र मे सेहो नवीन प्रशासनिक इकाईक रूप मे विभक्त कतेक रास राज
प्रतिनिधिगण कुषाण शासक अधन क्षेत्र विशेषक सत्ताक संचालन करैत छल।
कुषाणक
पतन आ गुप्त साम्राज्यक उदय आ मध्यवर्ती युग मे दूटा प्रमुख राज्य सत्ता अस्तित्व
मे आयल। पहिलुक नाग वंश आ द्वितीय वाकाटक वंश। अहि दूनू के अतिरिक्त भार शिव वंश
कुषा साम्राज्यक भग्नावशेष पर सत्तासीन भेल, जकर प्रभुत्व अहि पूर्वी क्षेत्र मे वेसी छल। हिन्दू
पालिटी (भाग-2 कलकत्ता, 1924) मे डॉ. काशी प्रसाद
जायसवालक अभिमत अछि कि ई भार शिव नागा, अपने कंधे पर भगवान शिव के भार को ढोते थे। ई वहि
जाइत अछि जे कुषाण वंशक पतनक वाद सेहो लगभग दू सौ वरख धरि अहि क्षेत्र मे सत्तासीन
छल। कोशी आ दरभंगा प्रमंडल मे वहि लोक 15म शताव्दी धरि कतो-कतो शासक रूप मे
अवस्थित छल।
एहन
मान्यता अछि जे कनिष्कक पाटलीपुत्र विजय अभियानक संग विहारक कुषाण वहुलांश मे
प्रवेश केलक। ई उत्तर आ दक्षिण विहार दूनू दिस पसैर गेल। ई वहादुर आ कष्ट सहिष्णु
छल। जा धरि राज्य सत्ता पर हिनकर अधिकार रहल ता धरि ई क्षत्रपक रूप मे सम्मलित
होयत रहल। सिंहेश्वर थान मे ई वड़ संख्या मे छल। ओ शैवमत अपनैलक आ कालांतर मे शिवक
भार ढोयै के कारण ई भार शिव नागा सेहो कहावय लागल। वड़ वाद शिवनागा शव्द गौण भऽ
गेल आ ओ मात्र भार या राजभरक नाम पर चर्चित भऽ गेल। डॉ. के.पी. जायसवालक अनुसार
उत्तर विहारक अधिकंश ठाम पर गुप्त युगक उदय सं पूर्व भार शिव नागा द्वारा राच्य
करहि के संकेत अछि।26 सिंहेश्वर
के रायभीर, वसंतपुर
आदि गाम मे भर जाइतक निवास अछि। रायभीर सं ओ अप्पन राज्यक संचालन करैत छल। ओतय
हुनकर दुर्ग सेहो छल जे कोशीक भीषण वाढ़ धो-पोंछकऽ खत्म कऽ देलक।
एखुनका
सिंहेश्वर मंदिर कुषाण वंशीय भर जाइतक छल। दीर्घकाल धरि अहि मंदिरक व्यवस्था करैत
आ ओकर भाग खायत छल। पिछला सर्वे मे भानुदास नामक एकटा व्यक्तिक नाम खतियान मे दर्ज
अछि, जे
सिंहेश्वर थान मंदिरक भूमिक स्वामीत्व दीर्घकल धरि छल। भानुदास मंदिर मे सेवक आ
अन्यान्य कार्यकर्ता सभहक नियुक्ति करैत छल आ मंदिरक आय प्राप्त करैत छल। अहि
व्यवस्था मे किछु विकृति आवि गेल। भानुदास कुषाण वंशी राजभर जाइतक छल। अव राजभर (या भर) मंदिरक अधिकारी
वनि गेल आ प्रत्यक्ष रूप सं दान-दक्षिणा आ चढ़ौआक राशि स्वयं ग्रहण करय लागल। अहि
जाइत केर दान-दक्षिणा
आ चढ़ौआ ग्रहण करहिक नै ते कोनो धार्मिक आधार छल आ न अधिकार। क्षेत्रीय लोक सभ एकर
विरोध केलक आ संघर्ष छेड़ देलक। आखिर दीर्घकाल सं मंदिर मे स्थापित अप्पन
स्वामीत्वक जनाक्रोशक कारण राजभर छोडि़ देलक। वाद मे परसरम निवासी वावू हरदत्त
सिंह मंदिर पर स्वामीत्व ग्रहण केलक। मुदा हुनको भागय पड़ल। मंदिर परिसर मे रहय
वला सन्यासीक दवंगताक आगू हुनको किछु नहि चलल। कहल जायत अछि जे वावू हरदत्त सिंह
सं कतेक वेर सन्यासीक घोर संघर्ष भेल। मुदा अहि सन्यासीक प्रवलताक आगू ओ सेहो
अप्पन हथियार डालि देलक। अहि सन्यासी मे रघुवरदास आ स्वामी वीर भारती वड़ चर्चित
भेल। रघुवरदास मंदिर परिसर मे रामजानकी मंदिरक निर्माण करैले छल।
ऊपर
उल्लेख करल जा चुकल अछि जे कनिष्कक पाटलीपुत्र विजय अभियानक पश्चात कुषाण वहुलांश
मे विहार मे प्रवेश करलक। ओ उत्तर विहारक संग दक्षिण दिस सेहो गेल। रांची जिलाक
वेल्दाग आ कर्रा मे क्रमश: कुषाण राजा जुविष्कक एक स्वर्ण मुद्र आ कनिष्कक ताम्र
मुद्रा भेटल अछि।27 जे
दक्षिण विहार मे कुषाणक शासनक पुष्टि करैत अछि। राजा सीत आ वसंत कुषाण वंशीय छल।
राजा सीतक गढ़ कोडरमा मे अछि। ओ टिकैत राजा छल। छोटा नागपुर मे कहावत अछि, घटले घटवाल
वढ़ले टिकैत। यानी धन घट जाने से घटवाल आ धन वढि़ जाय सं ओ टिकैत भऽ जायत छै। छोटा
नागपुर मे वड़ संख्या मे घटवाल वसैत अछि। ओ अपना के क्षत्रीय कहैत अछि। मुदा विहार
सरकार हुनकर उत्तर विहार के राजभर य भर के तरहे हुनका सेहो पिछड़ी जाइतक सूची मे
दर्ज कऽ देने अछि। घटवलक नाक-नक्श आ शारीरिक संरचना भर जइत से मिलैत-जुलैत अछि। दूनू
के परंपरा आ धार्मिक कृत्य सेहो समान अछि। दूनू शिवक उपासक अछि। अहि सं ई मानय मे
कोनो संकोच नहि अछि जे घटवाल सेहो कुषाण वंशीय अछि। छोटा नागपुरक प्राकृतिक परिवेश
हुनका आओर वेसी श्यामवर्ण वना देने अछि जखैनकि हिमालयक पाश्र्वभूमि मे निवास करैक
कारण भर या राजभर हुनका सं वेसी साफ अछि। घटवाल सेहो टिकैतक रूप मे कतेको रास
राजवंश स्थापित केने अछि। एखनो अहि राजवंशक लोक क्षत्रीय सं अप्पन संवंध जोड़ैत
अछि। राजा सीत केर छोट भाय राजा वसंतक गढ़क भग्नावशेष सिंहेश्वरक वसंतपुर गाम मे
अछि। छोटानागपुरक घटवल सिंह या राय पदवी धारण करैत अछि। उत्तर विहार के भर या
राजभरक उपाधि सेहो राय अछि। रायभीर अहि उपाधि केर द्योतक अछि आ राय उपाधि राजवंशी
हेवाक प्रमाण अछि। राय का अर्थ होयत अछि राजा।
वसंतपुरक
वड़ भूभाग मे राजा वसंतक गढ़क अवशेष पसरल अछि, जाहि मे ओकर गौरवशाली अतीतक कथा जुड़ल अछि। कालांतर
मे सिंहेश्वर सं तीन कुषाण वंशीय राजकुमार श्रीदेव, विजलदेव आ कांपदेव क्रमश; श्रीनगर (मधेपुरा), विजलपुर (पंचगछिया) आ कांप (सोनवर्षा) मे अलग-अलग अप्पन
राजधानी वनैलक।28 श्रीनगर
मे राजा श्रीदेव निर्मित विशाल गढक अवशेष अछि। अहि गाम मे एहन दूटा अवशेष अछि।
दूनू पर मंदिर अछि जतय भगवान शिव स्थापित अछि। मुख्य अवशेषक ऊंचाई 12 सं 15 फीट धरि अछि।
अहि अवशेषक उत्तर भागक मंदिर परिसर मे सैकड़ों प्रस्तर खंड पड़ल अछि जाहि पर कोनो
अनाम मूर्तिकार वड़ कुशलत,
निष्ठा आ शालीनता सं दुर्लभ नक्काशी केने अछि। अवशेष के एकटा प्रस्तर स्तंभ (शिलालेख) पर मकरध्वज जोगी
100 अंकित
अछि। अहि पर गहन गवेषण आ पुरातात्विक सर्वेक्षणक आवश्यकता अछि।
मधुवनी
जिलाक अन्धराठाड़ गाम मे गंगासागर पोखरि पर स्थित मंदिरक एकटा प्रस्तर स्तंभ कर
सेहो मकरध्वज जोगी 700 अंकित
अछि। अहि मिथिला तत्व विमर्श मे कोनो वौद्ध भिक्षु सं संवंधित मानल जायत अछि।29 भऽ सकैत अछि जे
मकरध्वज योगी नाथ पंथी आ सहजयान सम्प्रदायक कोनो योगी हुए।
निषादक धरती
अन्यान्य
उपेक्षित समुदाय मे निषाद जाइत सेहो छल, जाहि पर भगवान शिवक विशेष कृपा छल। अथर्ववेद (6.39.3) मे भगवान रुद्र
आदिम जाइतक संग निषादक स्वामीक रूप मे स्वीकार करल गेल छल। चर्म धारण करहि के कारण
शिव के कृतिवासन कहल गेल अछि। संभवत: निषाद सं संवंध हेवाक कारण शिव के चर्म परिधान धारण
करय वला मानल गेल अछि।
तहियौका
समाज मे चतुर्वणक अतिरिक्त अनुलोम प्रतिलोम जेहन अंतर्जातीय विवाहक कारण कतेक रास
जाइत आ ओकरा सं कतेक रास उपजाइतक विकास भऽ चुकल छल। वोधायन एहने वर्णसंकर जाइत के
व्रात्यक संज्ञा देने अछि।30
अहि सूत्र मे वोधायन निषाद जाइत चर्चा केने अछि, जेकरा मुताविक व्राह्मण पुरुख आ शूद्र
स्त्री सं निषादक उत्पति भेल अछि।31 मुदा गौतम धर्म सूत्र (4.14) केर अनुसार निषाद व्राह्मण पिता आ
क्षत्रिय माता से भेल अछि,
जे उत्तम संकरताक परिचायक अछि।
विष्णु
पुराण मे ते एकर उद्भवक एकटा अद्भुत कथ कहल गेल अछि, जकर मुताविक ऋषि सभ पुत्रहीन मृत राजा
वेनक जांघ केर पुत्रक लेल यत्नपूर्वक मंथन करलक। ओकर जांघ के मथय सं एकटा पुरुख
उत्पन्न भेल, जे जलल
ठूंठक समान कारि, वड़ नाट
आ छोट मुह वला छल। ओ अति चतुर भऽ कऽ ओहि सभ व्राह्मण सं वाजल, हम की करी? व्राह्म कहलक, निषीद (वैठ)। ताहि सं ई
निषाद कहलायल। ओहि सं उत्पन्न लोग विन्ध्याचल निवासी पापपरायरण निषाद गण भेल।32
अहि कथा
लेखनक पांछा पुराणकारक मंशा जे रहल हुए मुदा रामायण मे निषादराज गुहक वृतांत अछि
जे सानुज आ सपत्नीक भगवान राम के नदी पार करैने छल। हुनकर भक्तिक प्रशंसा वाल्मीकि
आ तुलसीदास सेहो केने अछि।
महाभारतक
अनुसार, निषाद
व्राह्मण पिता आ शूद्र माताक संयोग सं उत्पन्न भेल अछि।33 मनु निषाद के
मत्स्य धातो निषादानां कहने अछि जे मछली मारय वला जाइत छल।34 मनुक मुताविक, निषाद नाव खेवैत
अछि आ हुनकर निम्न जाइत मे गणना करल गेल अछि। जंगल, पहाड़ मे ई आखेटक रूप मे जानल जायत अछि।
आखेट कर्मक कारण ई व्याध सेहो कहल जायत अछि। मिथुन-रत क्रौंच के
एकटा निषाद द्वारा वध किए जाय सं दयाद्र्र भऽ कऽ महर्षि वाल्मीकि के एत्ते पैग शोक
भेल आ वहि श्लोकक रूप मे परिणत भऽ गेल।
निषादक
कतेक रास उपजाइत वनल, एहन
स्मृति मे उल्लेख अछि। तहियौक पुक्कस जाइत निषाद पुरुख आ शूद्र स्त्रीक संयोग सं
उत्पन्न भेल अछि।35 अहि
जाइतक काज विल मे रहय वला जीव के मारव छल। व्राह्मण पुरुख आ शूद्र स्त्री सं
उत्पन्न पारशव जाइत के सेहो निषाद कहल जायत अछ।36 ओहि तरहे शूद्र पुरुष आ निषाद स्त्री से
कुक्कुटक जाइतक उद्भव भेल।37
निषाद जाइतक पुरुख आ आयोगव जाइतक स्त्री सं जे संतान होयत अछि ओ मार्गव कहलायल
जाइत अछि जे आर्यावर्त मे कैवर्त सेहो कहल जायत अछि। हुनकर कर्म नाव चलावैक छल।
'निषादं मार्गवं
सूते दासं नौकर्म जीविनम्
कैवर्त
मिमियं प्राहुरार्यावर्त निवासिन:।1'
तैत्तिरीय
संहिता (10.34)
निषाद
पुरुष आ वैदेह स्त्री सं उत्पन्न प्राचीन काल मे चमड़ाक काज करहि वला कारावर जाइत
उल्लेख अछि।38 निषाद
स्त्री अ वैदेह पुरुख सं उद्भूत आंध्र जाइतक सेहो उल्लेख वायु पुराण (10.36) आ मत्स्य पुराण(50.76) मे अछि। मनु
अप्पन स्मृति (10.37) मे निषाद पुरुख
आ वैदेह स्त्री सं उत्पन्न अहिण्डक जाइतक चर्चा केने अछि, जे कारागारक
देखभाल करैत छल।
एहन
कतेक रास निषाद प्रसूत जाइतक आपस मे मिश्रण भऽ जेवाक कारण समान कर्मा शक्तिशाली
जाइतक विलयन भऽ गेल। उपयुक्त उपजाइत आव ते खोजै सं नहि भेटैत अछि। एहन कतेक रास
उपजाइत समान व्यवसाय परक निषाद, धीवर, मल्लाह, कैवर्त आदि जाइत मे विलन भऽ गेल। ओहि छोट-छोट उपजाइतक
अप्पन अस्तित्व रक्षाक लेल एहन भऽ जायव स्वभाविक छल। वैश्य पुरुष आ क्षत्रीय
स्त्री सं उत्पन्न संतान कर्मा जाइत धीवर कहैलक।39
कौरव आ
पांडवक दादा शान्तनु धीवर(मछुआरा) जरूथक पुत्री योजनगन्धा (सत्यवती) सं व्याह केने
छल। अहि विवाहक पूर्व योजनगन्धा महर्षि वशिष्ठक पौत्र पराशरक संयोग सं कृष्ण
द्वैपायन के जन्म देने छल,
जे अप्पन कालक महाना आचार्य भेल आ महर्षि वेदव्यासक नाम सं विख्यात भेल।
आदिकवि वाल्मीकि के किछु लोग व्याध (निषाद) मानैत अछि। मुदा दूनू व्राह्मण छल। रामायण आ महाभारत
एकर साक्ष्य अछि।
रामायण
मे वाल्मीकि दू ठाम पर अप्पन परिचय स्वयं दैत अछि। राम द्वारा संपादित अश्वमेघ
यज्ञक काल वाल्मीकि अहि यज्ञ मे सीता कऽ लऽ कऽ आवैत अछि आ राम के अप्पन परिचय दैत
अछि
प्रचेतसोअहं
दशमपुत्रौ (उत्तरकांड
96/19)
अर्थात
हम प्रचेताक दसवां पुत्र छी।
एक दोसर
ठाम वाल्मीकि परोक्ष रूप सं अप्पन रामायण में अप्पन परिचय देने अछि।
इति
संदिश्य वहुशो मुनि प्राचेतसस्तदा
वाल्मीकि
परमोदारस्तष्णी मासीन्महा (उत्तरकांड 93/17)
अर्थात
अहि तरहे महायशस्वी प्रचेताक पुत्र वाल्मीकि दूनू शिष्यक शिक्षा दऽ कऽ चुप भऽ गेल
छल।
प्रचेता
व्रह्मक पुत्र छल। मनुस्मृति (1.34.35)
केर अनुसार व्रह्मा प्रजाक सृजनक कामना सं घोर तप द्वारा शुरू मे प्रजाक पति
दस महर्षि के उत्पन्न केलक। ओ महर्षि मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु आ नारद अछि। वाल्मीकि अहि दस महर्षि मे एकटा
प्रचेताक पुत्र छल। ताहि सं हुनकर व्राह्मण हेवाक मे कोनो संदेहक गुंजाइश नहि अछि।
आध्यात्म
रामायण (अयोध्या
काण्ड, सर्ग6, श्लोक 65, 66) मे राम आ वाल्मीकिक
वन मे मिलय केर प्रसंग अछि। वाल्मीकि राम के अप्पन विषय मे वतावय अछि, हम जन्म से
द्विज छलहुं मुदा हमर आचरण शूद्र जेना छल। शूद्र स्त्री सं हमरा अजितेन्द्रिय
द्वारा कतेक रास पुत्र उत्पन्न भेल। चोरक संग रहैक कारण हम सेहो चोर भऽ गेलहुं।
स्कन्द
पुराण मे सेहो उल्लेख अछि जे ओ व्राह्मण छल आ हुनकर नाम अग्नि शर्मा छल। मुदा
शिकार (व्याघ्र
कर्म) आ
दस्युकर्म मे ओ लिप्त छल। वाद मे सप्तर्षिक कृपा सं ओ महर्षि वाल्मीकि वनि गेल छल।
40
ओहि
तरहे वेदव्यास सेहो व्राह्मण छल नै कि शूद्र। महाभारतक आदि पर्व मे हुनकर जन्मक कथा
अछि। ओ महर्षि पराशरक पुत्र छल। हुनकर मां सत्यवती एकटा अप्सराक कन्या छल। राजा
उपरिचर अहि कन्याक पालन-पोषणक भार मल्लाहक मुखिया जरूथ केर सौंपने छल। ओ नाव चलावैक
लेल तट पर जायत छलि जतय हुनकर मिलन ऋषि पराशर सं भेल। संपूर्ण कथ महाभारत (आदिपर्व 63.70-86) मे अंकित अछि।
पराशर
महर्षि वशिष्ठक पौत्र छल। सत्यवती सं जन्म लऽ कऽ कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास) गुण, जाइत आ वर्णक
दृष्टि सं महर्षि पराशरक वंश मे आवैत अछि। पराशरक पुत्र भला कोन आधार पर शूद्र कहल
जायत अछि?
समान
व्यवसाय परक जाइत मे कतेक उपजाइतक तिरोहित भऽ जायके पश्चात निषादक वाइस उपजाइत
एखनो अस्तित्व मे अछि। ई उपजाइत अछि, कोवट, कैवर्त, चौरा, तीवर, धीवर, वेलदार, विन्द, मल्लाह, सुरहिया, वनपर, गोढ़ी, खुलवट, कौल, जेठौत, परवतिया, चौदहा, राजवंशी, लहेरिया, महिषी, मुरियारी, केवट आ धोवी।
निषादक
अहि उपजाइत मे कैवर्त आ गोढ़ी सिंहेश्वरक कमरगामा, दुलार, तरहा, चम्पानगर, डंडारी, वभनी, गम्हरिया, टोका जीवछपुर, जलवार, महुली आदि गाम मे वहुलांश मे रहैत अछि। ई संपन्न कृषक
अछि आ राजनीति मे हिनकर वर्चस्व अछि। ई एखनो भगवान शिवक उपासक अछि।
मूर्ति
स्थापना
प्रत्येक
वरख आषाढ़ पूर्णिमा केर कौशिकी मे नव जल उतरैत अछि। जलधारा तीव्र गति सं आगू वढ़ैत
अछि। प्रत्येक वरख आषाढ़ पूर्णिमा के इतिहास क्षण भरि एतय रूकि के पद्म पलाश
अर्पित कऽ जायत अछि। लागैत अछि, शून्य मे वेद ध्वनी गूंजि रहल अछि। नै जानय कहिया सं
श्रृंगेश्वरक कौशिकीक जल पीयर भऽ गेल। तहिया सं कोशी पाण्ड, पडुआ या परवान
धार वनि गेल।
श्रृंगेश्वर
थान मे ऋष्यश्रृंग एखनो जीवित अछि। श्रीमद्भागवत सुनावैत शुकदेवजी कहैत अछि
'गालवो दीप्तिमान
रामो द्रोण पुत्र:
कृपस्तथा।
ऋष्यश्रृंग
पितास्माकं भगवान वादरायण:।।
इमे
सप्तर्षयस्तत्र भविष्यन्ति स्वयोगत:।
इदानि
मासते राजव स्वे स्वे आश्रम मण्डले।।'
(गालव, दीप्तिमान, राम, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, ऋष्यश्रृंग, महर्षि वेदव्यास
ई सातों ऋषि आठम सावर्णी मन्वन्तर मे सप्त ऋषि पद पर आरूढ़ होयत)
अहि
श्लोक सं ई सिद्ध भऽ गेल अछि जे ऋष्यश्रृंग आव आवय वला आठम सावर्णी मन्वन्तर मे
सप्त ऋषि मेे से एकटा पद अवश्य ग्रह कऽ अहि कौशिकी अंचल के फेर सं महिम मंडित करत।
ऋष्यश्रृंगक
मूर्तिक स्थापना
ऋष्यश्रृंगक
तपोभूमि सिंहेश्वर थान मे अहि ऋषिराजक भव्य प्रतिमाक अभाव खटकैत छल। ऋष्यश्रृंग
वंशोद्भव फारविसगंज (अररिया) निवासी गोलोकवासी मोहनलाल जी पाण्डेयक आत्मज श्री
गोपाल पंडित (सिखवाल
व्राह्मण) कुचामण
सिटी जिला नागौर (राजस्थान) निवासी द्वारा
संगमरमर निर्मित ऋष्यश्रृंगक भव्य प्रतिमा अप्पन माता श्रीमति पार्वती देवीक
आदेशानुसार मंदिर परिसर मे स्थापित करैलक। अहि प्रतिमाक प्राण-प्रतिष्ठा-अनुष्ठान वैदिक
मंत्रोच्चारणक संग दिनांक 20
जून, 2002 (गंगा
दशहरा) के
संपन्न भेल। मंदिरक विकास मे ई एकटा नव अध्याया जुडि़ गेल।
सिहेश्वर
मेला
एतय
प्रत्येक वरख फाल्गुन शिवरात्रि मे वड़ मेला लागैत अछि। जखैन कोशीक विभीषिकाक कारण
अहि क्षेत्र मे यातायातक घोर असुविधा छल, पूर्णिमा आ भागलपुर सं एकर संवंध टूटि जायत करैत छल
तखैन अहि ऐतिहासिक मेलाक वड़ उपयोगिता छल। वैलगाड़ी पर सवार भऽ कऽ दूर-दराजक लोग अप्पन
रसद-पइनक
संग अहि मेला मे आवैत छल,
अप्पन शिविर लगावैत छल,
मेलाक आनंद लैत छल आ साल भरिक लेल अप्पन घरेलू उपयोगक वस्तु कीनैत छल। एतवेटा
नै, पहिने ई
मान्यता प्रचलित छल जे वावा (भगवान शिव) केर विवाह भऽ जाय केर वाद लोक अप्पन वाल-वच्चा सभहक
विवाह तय करैत छल। एतदर्थ फाल्गुन महाशिवरात्रि के कन्य आ वरक देखा-देखी आ संवंध तय
भऽ गेलाक संग व्याहक लेल उपयोगी समानक खरीद-फरोख्त सेहो अहि मेला मे होयत छल आ दहेज
मे दैक लेल मवेशी सेहो मेला मे कीनन जायत छल। अप्पन दूरक कुटुम्व से भेंट-मुलाकात सेहो
अहि मेलाक विशिष्ट ठाम छल। तहैयौका काल मे अहि मेलाक आर्थिक टा नै सांस्कृतिक
महत्व सेहो वड़ छल। कोशीक वाढ़, मलेरिया आ दोसर प्राकृतिक आपदा सं जूझैत लोकक लेल ई एकट
उल्लेखनीय विश्राम स्थल छल,
जतय आवि के किछु दिनक लेल लोक अप्पन कष्ट कं विसुरि जायत छल, आगूक योजना
वनावैत छल, आ अप्पन
जिजीविषा के तरंगित कऽ जय भोलानाथ, जीयव के फेर आयव, जेहन प्रार्थना कऽ घुरैत छल।
ई मेला
सदी सं उल्लास आ आनंदक संगम रहल अछि। वावा भोलेनाथक पूजा-अर्चनाक वाद
माटि खोदि केर वनायल चूल्हा पर अपने सं भोजन वनायव, दिन भरि मेल घूमव, टिकुली-सिनूर सं लऽ कऽ
दोसर घरेलू सामान कीनव आ रात मे पन्ना लाल थियेटर कंपनीक नौटंकी देखव मेला
दर्शनार्थी सभहक दिनचर्या छल। ई थियेटर कंपनी उत्तरप्रदेश सं प्राय: सभ वरख आवैत छल।
एकर संस्थापक पन्ना लाल अपने एकटा कुशल कलाकार छल। लैला मजनूं, शीरी फरहाद, सुलताना डाकू, भक्त पूरन मल, माया मछन्दर, अमर सिंह राठौर
आदि हुनकर श्रेष्ठ आ चर्चित नाटक छल जकर अहि मेला मे सफल मंचन होयत छल। नगारेक
आवाज पर वहरेतवील मे सभ कलाकार अप्पन भूमिका के गावि के प्रस्तुत करैत छल।
मंत्रमुग्ध दर्शक पात्र सं अप्पन साधारणीकृत कऽ अपूर्व आनंद, प्रेम, करुणा, राग-विराग, आक्रोश आदि भावक
अनुभव करैत छल। अहि थियेटरक ई एकटा विशिष्ट गुण छल।
गलढर सं
चौठारी धरि चारि दिन धर मधेपुरा कचहरीक हाकिम-हुक्काम अहि
मेलाक कैम्प करैत छल। सीरिज इंस्टीट्यूशनक चुनल गेल स्काउट कैलाश पति मंडल शिक्षक
नेतृत्व मे मेला आ मंदिर परिसरक विधि व्यवस्थाक संचालन करैत छल। अनुमंडल मुख्यालय
सं आरक्षी वल आ चौकीदारक ड¬ूटी
सेहो मेला मे रहैत छल। कतेक वरख मेलाक अंत मे हैजा आ आगलग्गी सं जान आ सामान के
क्षति सेहो भेल अछि।
सभ
रविवार आ वुधवार के हाट मे विक्र-वट्टाक अलावा अहि मेला मे भरपूर कमाई कऽ एतौका
दुकानदार भगवान शिवक प्रसाद वुझि वरख वाद अगुलका मेलाक प्रतीक्षा करैत छल। मुदा, धीरे-धीरे समय वदलि
गेल। यातायातक सुविधा सं लोकक पारस्परिक दूरी कम भऽ गेल। अहि क्षेत्रक कतेक गाम
शहर वनि गेल जतय घरेलू उपयोगक सामान वहुलांश मे भेटय लागल। पहिने भगवान शिवक दरवार
मे जतेक यज्ञ मुण्डन आ मनौतीक लेल ओयत छल आव वुद्धिवादक विस्तारक कारण ओहि मे
गुणात्मक कमी आवि गेल। आव एतवै टा जरूर भेल अछि जे सभ साल हजार व्याह अहि मंदिर
परिसर भे हुए लागल। सिनेम थियेटरक महत्व के किछु कम कऽ देने अछि, मुदा थियेटरक
रंगीनी दिन-प्रतिदिन
वढ़ैत गेल। पन्ना लालक मर्यादित थियेटर आव नै अछि। हुनकर स्थान रौता कम्पनी, शोभा थियेटर आदि
लऽ लेने अछि। आव मर्यादित मनोरंजनक स्थान अश्लीलता ग्रहण कऽ लेने अछि। यै कारण अछि
जे प्रशासन के विधि व्यवस्था आव आओर कड़ा करय पड़ैत अछि आ समय-समय पर असामाजिक
तत्व सं मुकावला सेहो।
अहि
मेला मे सर्कस आ मौतक कुआं सेहो दर्शक के वड़ आकर्षित करैत अछि। सरकार द्वारा कृषि, उद्योग आ
अन्यान्य नव-नव
उपकरणक प्रदर्शनीक संग जनसंपर्क विभाग, खादी ग्रामोद्योग आदिक स्टाल मे दर्शकक भीड़ रहैत
अछि। जीप, ट्रैक्टरक
वाहुल्यक कारण आव हाथीक उपयोगिता कम भऽ गेल अछि मुदा मवेशी मे घोड़ा, बैल,भैंस आ वकरी
सभहक खरीद-विक्री
होवत अछि। सरकारी स्तर पर ई मेला पंद्रह दिन धरि, मुदा ओना एक माह धरि चलैत अछि।
(क्रमश:)
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