१.बिन्देश्वर ठाकुर- प्रवासक वेदना/ सुनि
लिअ दू बात हमर/ अन्हार जिनगी २.अब्दुल रजाक- गणतान्त्रिक देश
१
आइ मिथिलामे सीया सीया शोर भऽ गेलै
राति कारी छलै से इजोर भऽ गेलै
जनकक धिया जानकी एली घर घर बाजए बधैया
छम छम नाचए बरखा रानी दूर भऽ गेलै बलैया
धरती उज्जर, हरियर
कचोर भऽ गेलै
राति कारी .
. . . .
उमरिक संग संग ज्ञानो बढ़ल बनली चंचल धिया
आँगुर कंगुरिया शिव धनुष उठेलनि सगरो एकर चर्चा
सीया धिया जगतमे बेजोर भऽ गेलै
राति कारी .
. . .
नित दिन गौरीक पूजा कएलनि वर परमेश्वर पएलनि
त्याग तपस्या एहन देखू महलछोड़ि विपिन बौएलनि
लव-कुशक
प्रेम पुरजोर भऽ गेलै
राति कारी .
. . .
जानकी उत्सव आउ मनाबी बैसाखक शुक्ल नवमी
जिनकर ऋणसँ उऋण ने हेतै ई मिथिलाक धरती
"अमित" जागू नव दिवसक भोर भऽ गेलै
राति कारी .
. . . .
२
गजल
--------------------------
मोनके बात कहि दिअ
प्रेमके संग बहि दिअ
दिल हमर अखन खाली
ताहिमें प्रिय रहि दिअ
मीठगर चोट नेहक
कनि अहाँ प्रिय सहि दिअ
ठोरपर हँसिक मोती
हँसि हँसिक प्रिय गहि दिअ
भावना हमर लिअ बुझि
दर्द मधुरसन नहि दिअ
--------------------------
फायलुन्-फाइलातुन्.
२१२-२१२२
१. जगदीश
प्रसाद मण्डल २.रामदेव
प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’ जीक गीत एवं
झारू
१
जगदीश
प्रसाद मण्डल
चान कौसिकीय......
चान कौसिकीय धड़ि धार
डूमि जखन मोती पेलक।
अड़ैक मन तरपि-तरकि
अरपित-सँ-तरपित पेलक।
चन्द्र कौसिकीय धड़ि धार
डूमि जखन......।
लाभ-लोभ ससरि-पसरि
जिनगी धार बहि पेलक।
पटे-पट पटि पट पटिया
गंग अकसि-हकसि धेलक।
चन्द्र कौसिकीय धड़ि धार
डूमि जखन......।
शिखर शीश सरणि सेज
खुनि धरती धार बनेलक।
धारे-धार धड़ि धड़िया
सागर-गंगा पाटि पेलक।
चन्द्र कौसिकीय.......।
सगर सागर संग संगोड़ि
चीत शान्त चेतन पेलक।
कमल नील अकास चढ़ि
सत् सागर अकास फुलेलक।
चन्द्र कौसिकीय......।
अधम-धम-सुधम बोन
सुधम-धम डेगैत धेलक।
गीत जिनगीक गाबि गबिया
हार हरि चढ़ैत पेलक।
चन्द्र कौसिकीय......।
परदेश जेतै.....
भैया यौ, परदेश जेतै।
नै छै लज्जति गाम-घरमे
नै छै चालि-बेवहारमे।
बोली-वाणी एकोमे नै छै
नै छै आस-बिसवासमे।
अहीं कहू भाय, केना कऽ रहतै
भैया यौ, परदेश जेतै।
मर्त बनि भूमि मर्द जखने
धड़ि धड़ लज पट-पेटमे।
हँसि-हँसि छाती चढ़ि-चढ़ि
कू लजति सू रणक्षेत्रमे।
अहीं कहू भाय, केना कऽ जेतै
भैया यौ, परदेश जेतै।
छेलै भूमि कहियो भूमा सून
बास-सुबास सजल छेलै
देव-दानव मानव बनि बन
अरूप-सरूप बनैत गेलै।
जिनगी केना टक टिक पौतै
भैया यौ, परदेश जेतै।
दूर बसि दुर्वासा देखि-देखि
ललकारी ललकारि भरै छै।
दूर देश दुर-दुर दुरदुरा
अपन पौरुष पाबि कहै छै।
अहीं कहू भाय, दम केना अँटतै
भैया यौ, परदेश जेतै।
कमल सगर किलकारी भरि-भरि
बेथा-कथा हिल-हिल कहै छै।
भूम-कुभूम भूमहुर बनि-बनि
त्राहि-माम कंश कृष्ण कहै छै।
अहीं कहू भाय, केना नै लीबतै
भैया यौ, परदेश जेतै।
आन अपन अपना-अपना
मद बोतल-शीशी भरै छै।
पीविते मद मदहोश बनि-बनि
चीन-पहचीन बिसरए लगै छै।
अहीं कहू भाय, बिसरल मन केना पड़तै
भैया यौ, परदेश जेतै।
घोड़ा-हाथी, ऊँट बनि बन
रह-राही रणबास चलै छै।
योद्धा-युद्ध सरसिज सिरजि
भूमिवीर नाओं धड़बए लगै छै।
अहीं कहू भाय, किअए ने रहतै
नै यौ भैया, जेबे करतै, जेबे करतै।
ओज ओझरी.....
ओज ओझरी सोझ आबि-आबि
पछुआ पोझरी पएर पकड़लक।
ओज-सोझ सोझरी करैमे
सोझरी पएर पोझरी पकड़लक।
सोझरी पएर पोझरी पकड़लक
पछुआ पोझरी......।
घीचि-घीचि पाछू पछुआ पकड़ि
टिकासन चढ़ि आसन जमौलक
कखनो चीत मुँहभर कखनो
चालि चलि चौताला मारलक।
चालि चलि चौताला मारलक।
पछुआ पोझरी......।
पोझरी केना ओझरी बनि-बनि
सोझरी बाट सोझिया भगौलक।
छाती हाथ धीर धकेल-धकेल
पोझरा-सोझरा सरसिज चढ़ौलक।
पोझरा-सोझरा सरसिज चढ़ौलक।
पछुआ पोझरी......।
अपने रोपल गाछी भुताइ
आकि पोखरि नाओं चढ़ौलक
पोखरि भुताइ आकि गाछी
मन मंदिर बिस-बिसा कहलक।
मन मंदिर बिस-बिसा कहलक।
पछुआ पोझरी.......।
पानि बीच......
पानि बीच समुद्र बसल छै
आकि समुद्र पानि कहबै छै?
सजि-सजि साजि सरोवराे-झीलो
तहिना संग सगरो सजबै छै।
पानि-बीच समुद्र बसल छै
आकि समुद्र पानि कहबै छै।
बनि धुँआ धुँधकारी बनि-बनि
अकास नील सजबए लगै छै।
धड़-धड़ि धार धड़ि-धड़ि धरती
कमल नील खिलबए लगै छै।
पानि बीच...।
बूने-बून बड़-बड़ बनि-बनि
धड़ धरती धन राशि धड़ै छै।
दस दुआरी लक्ष्मी बनि-बनि
अकास-पताल बखार बनै छै।
पानि बीच...।
मन मंडल धनमंडल बनि-बनि
हीय पताल हीय अकास बसै छै
मह-मह महि-महि मुखमंडल
मक्खन बनि अमृत बसै छै।
पानि बीच...।
कखनो मधु कटि कट कखनो
नम-नम नाम धड़बए लगै छै।
चढ़ि अकास अकैस झकैस
धड़-धरती धन राशि धड़ै छै।
पानि बीच...।
सुवास-अकास मह महा-महा
सिम-सिर समीर सजबए लगै छै।
जूही-बेली संग सहेली
लटपट-खटपट करए लगै छै।
पानि बीच...।
एबा-जेबा बाट बनि-बनि
गंग अकास बहए लगै छै।
धड़-धड़़ा धरती तेज-गैत
नाभि कमल सिलबए लगै छै।
पानि बीच...।
नरम-गरम सरम बनि-बनि
सिंगार सजि सिर चलए लगै छै
पेब प्रेम पहिया प्रसून बनि
भक्त प्रेम रस पबए लगै छै।
पानि बीच...।
बंसी धार......
किनहरि बैसि कन्ह-कन्हुआ
बंसी धार लगौने छिऐ।
चेल्हबा-पोठी बोर बना
रेहुक सिरा चभने छिऐ।
रेहुक सिरा चभने छिऐ।
बंसी धार...।
लहकि-लहकि लहकी लहका
घिड़नी चाइल धड़ौने छिऐ
धारे बीच खेला-खेला
हेला हेल हेलबै छिऐ।
हेला हेल हेलबै छिऐ।
बंसी धार...।
बिनु छिपे छीप छीप-छीप
उनटा पटैक मारै छिऐ।
पुछड़ी-पूछ पकड़ि-पकड़ि
हरदा-हरदी भरै छिऐ।
हरदा-हरदी भरै छिऐ।
बंसी धार...।
सुआद-कुआद बुझने बिना
धारा जिनगी हेलै छिऐ।
हारि थाकि मन मारि-मारि
उदय-अस्त देखै छिऐ।
उदय-अस्त देखै छिऐ।
बंसी धार...।
जीबठ बान्हि......
जीबठ बान्हि जिनगी जखन
आगू डेग उठबए लगै छै।
धड़ धरती अस-असा अकास
सहर-सिहरि डोलए लगै छै।
सहर-सिहरि डोलए लगै छै।
आगू डेग......।
भरल वायु वायुमंडल जहिना
कसम-कस भरल पड़ल छै।
बिनु हिलकोरे बाँटि ने पाबए
समर सगर पड़ल छै।
समर सगर पड़ल छै।
आगू डेग......।
मृत भूमि अमृत भूमि बनबए
अगुआ डेग हुअए लगै छै।
पछुआ पछ पछाड़ि-पछाड़ि
छाती सिर मढ़ए लगै छै।
छाती सिर मढ़ए लगै छै।
जीबठ बान्हि......।
मढ़िते छाती सिर जखन
सिर-सिर, सिर-सिर करए लगै छै।
पबिते पुन्ज प्रकाश जखनि
पुष्प कमल सजबए लगै छै।
पुष्प कमल सजबए लगै छै।
जीबठ बान्हि......।
पाबि पुष्प पुष्प बाटिका
जन-जनक फुलवाड़ी कहै छै।
नित्या-नन्द संग-संग सीता
जानकी जनक कहबए लगै छै।
जानकी जनक कहबए लगै छै।
जानकी जनक......।
बिनु िजनगानी जिनगी ओहने
तार बिनु सितार कहै छै।
एकतारा कखनो सितार बनि
पौरुष बुद्ध लहरए लगै छै।
पौरुष बुद्ध लहरए लगै छै।
जीबठ बान्हि......।
राति-दिन......
लगल पाँति पतिआनी गाड़ि-गाड़ि
राति-दिन बिचड़ैत रहै छी।
भद्र-भद्रता तँ यएह ने भेल
मरि मुँह कुहरैत रहै छी।
मरि मुँह कुहरैत रहै छी।
राति-दिन......।
करनी-धड़नी बढ़नी बानि बनि
घटनी-बढ़नी कहैत रहै छी
कोयल बोल मुँह ककह ककैह
मुँह बाझ अमरीत घोड़ै छी।
मुँह बाझ अमरीत घोड़ै छी।
राति-दिन......।
बनि माली थल-मैल मैल
मृत सिंगार सजबैत रहै छी।
मुँह देखि मुंगबा बाँटि-बाँटि
बाड़ी सिर सजबैत रहै छी।
बाड़ी सिर सजबैत रहै छी।
राति-दिन......।
फूइस-फाइस बाँटि-बाँटि
अनिष्ट-इष्ट कहैत रहै छी
भूख मन भूक-भूका भूका
सजमन सिर सजबैत रहै छी।
सजमन सिर सजबैत रहै छी।
राति-दिन......।
तेहरौनी......
तेहरौनी जोत-इजोत पाबि
उठा हाथ छह चास कहै छै।
पबिते हर हरहरा हरहरा
रूप सिंगार परकीत कहै छै।
रूप सिंगार परकीत कहै छै।
तेहरौनी......।
असिया आस आस असिया
सजि सेज श्रृंग शेर कहै छै।
पबिते पौरुष प्रकृति प्रेम
भजन भक्त भजि-भजि कहै छै।
भजन भक्त भजि-भजि कहै छै।
तेहरौनी......।
रूप बहुरूप सरूप गढ़ि-गढ़ि
साले-साल उसरैत कहै छै।
अहिना आगू असिया-असिया
चौसठि सिंगार सजैत रहै छै।
चौसठि सिंगार सजैत रहै छै।
तेहरौनी......।
प्रेम परकीत सोभाव गुण
बरैस-बरैस बेरसैत रहै छै।
तोष-आसु घोड़ि-घोड़ि घोड़
अमृत रस विषपान करै छै।
अमृत रस विषपान करै छै।
तेहरौनी......।
गेल उमरिया......
गेल उमरिया बित फुसिए मायामे
दगल-दाग लगलै कंचन कायामे।
देख-देख दुनियाँ मन भड़छलै
रंग-रूप रस पीबामे
भूक भौक भौकिया-भौकिया
चोकड़ि गेल फल खेबामे।
गेल उमरिया......।
असिया आस आश मारै छै
कुन्ज–निकंुज बोन भटकैमे
कद-कद कदम गाछ हिलै छै
कृष-कृष कृष्णकेँ पेबामे।
कृष-कृष कृष्णकेँ पेबामे।
दगल दाग......।
राधा पाश पकड़ि-पकड़ि
झुलना कृष्ण झुलबै छै।
बात-बाट संग मीलि मिल
एकबट्ट बनि बन झुलै छै।
एकबट्ट बनि बन झुलै छै।
कद-कद कदम गाछ हिलै छै।
कृष-कृष......।
कर-करनाम......
डिबिया ऊपर मोमरी इजोत
कर-करनाम करैत एलै।
बनि फूल खेल खेलि
मोमरी मन भरैत एलै।
मोमरी मन भरैत एलै।
कर-करनाम......।
जेहेन तेल तेहेन इजोत
रसि रस राशि रसैत एलै।
कठ-कठगैनी हँसि-हँसि कटि
डिबिया रासि जरैत एलै।
डिबिया रासि जरैत एलै।
कर-करनाम......।
बनि इजोत बन-बन करए
गन्ह हवा गन्हकैत एलै।
सिक्त-सिक्त शिखा पकड़ि
परिचए अपन धड़ैत एलै।
परिचए अपन धड़ैत एलै।
कर-करनामा......।
पात बीच फूल फूलि फुला
करिया झुमैड़ खेलैत एलै।
बिनु पाते मगर पसीद
रंग-रभस करैत एलै।
रंग रभस करैत एलै।
कर-करनाम......।
मनुख कहाँ......
मनुख कहाँ हम बनि पेलिऐ
मीत यौ, मनुख कहाँ हम बनि पेलिऐ।
नै भेल लूड़ि-बूधि जीबै केर
नै बदलल चाइल-प्रकृति
अपने जेना जे अबैत गेल
तनलिऐ तहिना तानि गीत।
तनलिऐ तहिना तानि गीत।
ताल-मात्र बूझि नै पेलिऐ
मनुख कहाँ हम बनि पेलिऐ।
चालनि चाल चालि नै ताबे
गुर-चौल कात केना रखबै।
आँकर-पाथर जा नै बेरतै
सुआद-कुआद केना बुझबै।
अखनो धरि से कहाँ बुझलिऐ
मनुख कहाँ हम बनि पेलिऐ।
उत्तर-पूब सोपान सजल छै
अकास-पताल पकड़ि बैसल छै।
सत तल जेना उत्तर बसल छै
अतल-पतल सेहो बनल छै।
आइयौ कहाँ से बूझि पेलिऐ
मनुख कहाँ हम बनि पेलिऐ।
ढहि केतौ ढनमन केतौ
ढनमन-टनमन होइते एलिऐ
मन मनुआ मन्हुआँ महुरा
अमृत-मृत पीबैत एलिऐ।
अमृत-मृत पीबैत एलिऐ।
मनुख कहाँ हम बनि पेलिऐ।
जहिया दुनियाँ-जहान जनबै
मनसुख तहिया बनि जेबै।
सोंखि-सोंखि सुख-चाइन पेबै
आनन-कानन भड़मैत पेबै।
आनन-कानन भड़मैत पेबै।
जीता जी जिनगानी पेलिऐ
जीता जी जिनगानी पेलिऐ।
2
रामदेव
प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’ जीक गीत एवं
झारू
झारू
सुति उठि लागू भोरे बाबू
माए-बाबूकेँ गोड़ यौ।
एकड़ा सन जगमे नै कियो
सेवापर दिऔ जोर यौ।
गीत-
माए गइ बोल तोहर छौ,
बाइबिल वेद कुरान गइ।
शान्तिकेँ बरदान गइ ना-2
तूँ तँ जगमे अनुपम,
केकर उपमा देबै हम।
सौंसे दुनियाँमे नै,
कियो तोरा समान गइ। शान्ति...।
आगू तूँ पाछू भगवान,
जगमे तुहीं एक महान।
तोरे नाओंसँ पुज्जित
मंदिरक भगवान गइ। शान्ति...।
तूँ तँ ममता केर अकास।
पहिल गुरु केर प्रकाश।
तुहीं जगमे देखेलही,
जीबै केर समान गइ। शान्ति...।
तूँ तँ अल्ला, ईषू, महेश,
कार्तिक गणपति और गणेश।
माए गइ चरण तोहर छौ,
गंगामे स्नान गइ। शान्ति...।
१.राजदेव मण्डल- दू टा कविता २.राजीव रंजन
मिश्र
१
राजदेव
मण्डल
दू टा कविता-
१
पसरैत प्रशाखा
जर्जर बूढ़ अनचिन्हारक गाछ
हवा नचा रहल छै नाच
लटकल असंख्य डारि-पात
चारूभर आ काते-कात
सहने हएत कतेक अधात
केतेक छूटल केतेक साथ
करैत एक दोसरसँ बात
परेमसँ भेल स्नात।
हमर चलैत अन्तिम साँस
स्वजन-परिजन आस-पास
एकेटासँ बढ़ि केतेक रास
सँगे चलैत सिरजन विनाश
झूठ-साँच मध्य नचैत नाच
हम बन छी अनचिन्हक गाछ।
२
खसैत बुन्द
खसैत बून-बून
गाबै गुन-गुन
चिड़ै चुन-चुन
झिंगुर झुन-झुन
बरसैत मगन धन
देखैत मन नयन
नाचैत सुमन मन
तृषित भीजैत तन
सूखल कण-कण
अमृतसँ मिलन।
चलैत रहत आखेट
नै टुटत जिनगीक गेँठ
आबि गेल जेठ
दुख गेल मेट
सभ किछु समेटि
आब हएत भेँट।
२
राजीव
रंजन मिश्र
गजल
माए सदति अनमोल लगैत छथि
मिठगर अमृत सन बोल बजैत छथि
सदिखन सहल सभ बात कचोट
ने
गाए बनल अहलाद बँटैत
छथि
मोनक अपन सभ बात
दबौवलथि
सन्तान लै सुख चैन रचैत
छथि
दमसब हुनक नित बाट
सुझैत टा
बिहुँसथि मनुख जे नेह
करैत छथि
माए सुनर उपहार सनेश
थिक
खनहन रहथि "राजीव" रटैत छथि
२२१२ २२१ १२१२
२
जानकी गीत
माँ जानकीक जनमदिन घर घर मे हम मनाबी
सभ मिलि ख़ुशी मनाबी अ-क्षत दीप हम जराबी
माँ जानकीक जनमदिन...........
मिथिला जिनक छल नैहर,मैथिल
अपन छलथि यौ
हम मैथिलक धरम बुझि,करतब
अपन पुराबी
माँ जानकीक जनमदिन...........
मिथिलेशनंदनी छथि सदति ममताक रूप सुन्नर
चललीह जे बाट सत्तक हम गीत हुनक नित गाबी
माँ जानकीक जनमदिन...........
धियाक रूपे गुनगर,भार्याक
रूपे लुरिगर
दुहि कुलकँ लाज रखलीह गहि मान हम बढाबी
माँ जानकीक जनमदिन...........
हे माए हम छी बुरिबक,महिमा
ने जानि सकलहुँ
रही ने आब निरसल नब रूप धए देखाबी
माँ जानकीक जनमदिन...........
"राजीव" यैह बिनबैथ,जग जननि जानकीसँ
मैथिलकँ ज्ञान जागय,इतिहास
पुनि रचाबी
माँ जानकीक जनमदिन...........
१.बिन्देश्वर ठाकुर- प्रवासक वेदना/ सुनि
लिअ दू बात हमर/ अन्हार जिनगी २.अब्दुल रजाक- गणतान्त्रिक देश
१
बिन्देश्वर ठाकुर, गिद्धा ७ योगियारा, धनुषा नेपाल, हाल :कतार।
प्रवासक वेदना/ सुनि
लिअ दू बात हमर/ अन्हार जिनगी
१
प्रवासक वेदना
हमर जिनगीक कोनो हिसाब नै रहल
पढ़बाक लेल कोनो किताब
नै रहल
बैसल छी एखनो असगरे
एकान्तमे
किन्तु पीबाक लेल कोनो
शराब नै रहल ।।
सपनामे ओहे चेहरा अबैए
अबैत अछि वएह ठाम आ गाम
कतबो बिसरऽ चाही दिलसँ
नै बिसरि पाबी जनकपुर
धाम।।
छी मैथिल हम मिथिलाक
बासी
दूर छी तैयो अपन
प्रदेशसँ
विवशताक मारल,परताड़ल
पत्र लिखै छी अलग
देशसँ।।
माए बाबूकेँ चरण वन्दना
दोस्तकेँ हमर सलाम रहल
अनजान-सुनजानपर ध्यान
नै देबै
माफ करब सभ कहल सुनल।।
मन लगाबी कतबो एतऽ
जिउ टाङ्गल अछि दुरापर
दिन कटै छी राति यै
भारी
सदखैन जान अस्तुरापर।।
प्रेमक मल्हम फोन बनल
अछि
जीबाक माध्यम दु बात
अछि
थाकल ठेहयाएल आबी जौँ
कखनो
लागै नै केओ साथ अछि।।
कते कहू प्रवासक वेदना
लिखैत सेहो शरम लगैए
नोर आँखिसँ टपटप चुबए
कलम पकड़ैत हाथ कपैए।।
बस ईएह विनती नीकसँ रहब
नीकसँ राखब गाँउ समाज
एक दिन हमहूँ लौट कऽ
आएब
जगमग करतै मिथिला राज।।
२
सुनि लिअ दू बात हमर
भला करब तँ भला मिलत
बुरा करब तँ बुरा मिलत
ई छै जगत जननीक धरती
कर्मक फल अवश्य मिलत।।
हे मानव नीक कर्म करु
करै छी किएक खिसिआएल सन
चोरीक धन नै रहत सभ दिन
करै छी किएक धधियाएल सन ।।
ऐठाम सभ किछु नाशवान छै
जाए पड़त ई जग छोड़ि कऽ
बिनु भक्तिक सुख नै
भेटत
रहब कते मुँह मोड़ि कऽ।।
सुनै छी जानकी मन्दिरमे
गिट्टी बालु गिरबै छी
अपन स्वार्थ पुरा हेतु
जनताकेँ घिसियबै छी।।
एखनो ज्ञानक ताला खोलू
आबि जाउ नीक पथपर
दुर्दशासँ बचौथिन मैया
आसन हएत स्वर्ग रथपर।।
हम सभ मैथिल एक रही
एकजुट भऽ साथ चली
पहिचान बनाबी अपन
मिथिलाक
इतिहासक पन्नापर चमकैत
रही।।
३
अन्हार जिनगी
चिड़ै चुनमुन चिरबिर कएलकै
चारु दिस भोर भेलै
प्रकाशक किरण पृथवीपर उतरलै
घर-आङ्गन इजोर भेलै
मुदा हुनका
चेहरापर कारी पर्दा लगलै
कोनो बन्दी जकाँ
कोनो चोर जकाँ
अथबा,कोनो निरीह बस्तु जकाँ
जकर महत्व किछु नै।
सड़कपर अपन कमर हिलबैत
फिलिपिनी परीकेँ देखि
ओकर मन धुजा-धुजा भऽ गेलै
तन सिहैर गेलै आ
सपना चकनाचुर भऽ गेलै
मुदा विवशता छै
बाध्यता छै
अपन सुन्दर आ लचकदार
शरीरकेँ
देखएबाक स्वतन्त्रता नै
छै हुनका
सुन्दरताक बयान सुनब
अधिकारसँ वंचित छै ओ
जेना कोनो जेलमे रहल
प्राणी होइ
वा,कोनो पिजड़ामे बान्हल सुगा।
बाहरक रङ्गीचङ्गी
वातावरणमे
अपनाकेँ तिरस्कृत भेल
महशुस करैत
जखन अबै छथि ओ अपन घरमे
आ
देखै छथि टि.भी पर सनीलियोनकेँ हट सिन
प्रियङ्का
चोपड़ाकेँ अर्धनग्न वस्त्रमे
ठीक ओहने निहारै
छथि अपना शरीरकेँ
कतेक मिलल
कतेक सुन्दर
शरीर ! मुदा नै कियो तारीफ करऽ बला
ऐ फूलकेँ
नै कियो सुगन्ध लेबऽ
बला
ऐ वासनाकेँ
मन खिन्न भऽ जाइ छै
खाड़ीकेँ रानी सभकेँ
मन बेपिरीत भऽ जाइ छै
एहन समाज आ संस्कारसँ
जकर सीमा
बस पर्दाक भीतर
एकटा कैद जिनगी जकाँ
केवल अन्हार... अन्हार....
२
अब्दुल रजाक, हरिपुर ४, धनुषा (नेपाल), हाल : कतार
गणतान्त्रिक देश
राणा शासनक बाद राजा
शासन भेलै
निर्दलसँ फेर बहुदल
भेलै
जब-जब लोकक बुद्धि फैलैत गेलै
बहुदलसँ देश गणतन्त्र
भेलै।।
गणतन्त्रक गन्ध जब खतम
नै भेलै
नेताक स्वार्थमे तब
बेमेल भेलै
जनता जनार्दनक हालत
देखियौ
गरीबी, रोजगारी सबकेँ सन्देश भेलै।।
विज्ञानक बिदद्वारा
गतिमान भऽ
जब जब कपड़ा बनएबाक
बिस्तार भेलै
कपड़ा बड़का की पहिरथिन
कन्या लोकनि
चट्टी सजा अत्याधुनिक
भऽ गेलै ।।
शिक्षा संगे सभ्यताक
बिकास भऽ
लोग कहै छथि समाज
होशियार भेलै
मुदा मर्द बिना के
परिवार छै केहन
अपङ्ग समाजक एक उपहार
भेलै।।
चौक चौराहाक हानि भेलै
तास जुआक अखाड़ा भेलै
भला कहू तँ बुरिबक छी
बुरिबक काज कएनिहार भला
आदमी भेलै।।
परिवार डुबल तँ की डुबल
?
समाज डुबल तँ किछु भेलै
देशक चिन्ता कएनिहारकेँ
चिन्ता केहन
परदेश आबि देशक चिन्ता
भेलै।।
विदेह नूतन अंक गद्य-पद्य भारती
१. मोहनदास (दीर्घकथा):लेखक: उदय प्रकाश (मूल हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद विनीत उत्पल)
२.छिन्नमस्ता- प्रभा
खेतानक हिन्दी उपन्यासक सुशीला झा
द्वारा मैथिली अनुवाद
३.कनकमणि दीक्षित (मूल नेपालीसँ
मैथिली अनुवाद श्रीमती रूपा धीरू आ श्री धीरेन्द्र प्रेमर्षि)
४.तुकाराम रामा शेटक कोंकणी उपन्यासक मैथिली
अनुवाद डॉ. शम्भु
कुमार सिंह द्वारा
पाखलो
बालानां कृते
१.कुन्दन कुमार
कर्ण- बाल गजल २.अमित मिश्र-नेङगरा दरबान
१
बाल गजल
----------------------------------------
फुल फुललै फुलबारीमें,
बनल जतरा
ताही ऊपर खेलैछै कते भमरा
नाचै मयुर डुबिक अपने मनक धुनमें
लागै बड निक चुन चुन जे करै बगरा
सब गाछीपर जे बानर कुदै छरपै
बर गाछीपरसं सुनबै सुगा फकरा
कोर्इली कुचरै गाछपर भिनसरमें
बोली मधुर बहुत निक लागलै हमरा
खेलब कुदब अहीना फुलक सँग सदिखन
हम बांटब नितदिन पंक्षी क खुब अहरा
----------------------------------------
मफ्ऊलात्-मफार्इलुन्-मफार्इलतुन्
२२२१-१२२२-१२११२
२
अमित मिश्र
नेङगरा दरबान
राजा जीक गाछीमे, दरबान
बनि एलै चोर
भरि राति खेलक आम चलि गेल भोरे-भोर
कहियो लीची कहियो आम कहियो जामुन, कटहर
बदलि-बदलि कऽ
सब दिन खाए अंगुर आ बरहर
मालीकें जे पता चलल तँ ओ बहुते तमसाएल
आइ रातिमे सब सिखेबै,
मुदा चोरबे नै आएल
दोसर दिन जे चोरबा एलै,
माली फोंफ काटै छल
एकटा पुरना गाछपर चोरबा चुप्पेचाप चढ़ै छल
एकटा ठाढ़ि कोकनल छलै पड़लै जखने टाँग
ठाढ़ि सहित धरतीपर खसल टूटल हाथ आ टाँग
ओ बुझै छल किओ नै देखै मुदा देखै छथि भगवान
देलनि सजाय एहन जे बनि गेल ओ नेङगरा दरबान
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