ऊँच-नीच- बेचन ठाकुर
नअम दृश्य-
(स्थान- सरकारी गाछी। मंगलक सिरकी। दुनू परानी कोनियाँ-पथिया बीनै छथि।)
मंगल- दुखन माए, बौआक नाओं तँ लिखा गेलौ। दूरे बड़ छै। तीन दिन जाइमे आ तीन दिन अबैमे लगल। कहै तँ छियौ कौलेज तेतेटा छै से की कहबौ। बाप जनमे ओतेटा मकान नै देखने रहिऐ। विद्यार्थी सभ रंग-बिरंगक गाड़ीसँ पढ़ैले अबै-जाइ छै। लगै छेलै जेना उ सभ मास्टर होइ। एगो मुंशासँ पुछलिऐ तँ उ कहलक विद्यार्थी सभ छिऐ।
मरनी- ओते बड़का लोक सबहक बीचमे दुखन केना रहतै आ केना पढ़तै-लिखतै?
मंगल- रसे-रसे सभ ठीक भऽ जेतै। अपने सभ गर लगि जेतै।
(मणिकांतक प्रवेश।
मणिकांत- की हौ मंगल? तूँ तँ तेते कातमे चलि एलह जे दूर बुझाइए।
मंगल- की कहबै मालिक? लिखलाहाकेँ के मेटेतै? अहीं कहने रहिऐ बौआक नाओं लिखबैले। ओहीमे हमर डीहो बीिक गेल। चन्द्रेश मालिक लेलनि।
मणिकांत- भगवान गाम नै गेलखिन हेन। कनी दिन आरो कष्ट काट। बहुत जल्दी तोहर दिन-दुनियाँ बदलि जेतौ। ऐ समाजमे ातेहर हाथ पकड़ैबला कियो नै रहतौ।
मंगल- अहाँक मुँहमे अमृत बसए। मालिक, आइ हम केना मन पड़लौ?
मणिकांत- मन नै पड़लह। जरूरी छल। तँए एलौं।
मंगल- की जरूरी छल मालिक?
मणिकांत- एगो पथिया लेबाक छल। केते पाइ दियौ?
मंगल- अहाँकेँ जे देबाक अछि से दियौ आ नै तँ सेहो ठीक।
मणिकांत- बिकाइ छै केतेमे?
मंगल- एक सए-सबा सएमे बिकाइ छै। अहाँकेँ जे देबाक अछि से दियौ आ जे पसीन होइए से लिअ।
मणिकांत- हेऽऽ सभ सए टाका लैह आ एगो चिक्कन पथिया दैह।
(दारू पी कऽ झुमैत-झामैत रबीयाक प्रवेश।)
रबीया- भैया रौ, हम दुनू परानी विचार केलौं जे भैयाकेँ अपने ऐठाँ रखि ली, बड़ दिक्कत होइत हेतै गाछीमे।
मंगल- रबीया, विचार तँ बड़ बढ़ियाँ छौ, मिल्लतबला छौ। मुदा तोरो तँ बड़ दिक्कत छौ। एक दिनुका तँ बात नै छै जे दिक्कत-सिक्कत रहि जाएब। छोड़, प्रेम छै तँ सभ किछु छै। हमरा एतै रहए दे। अहिना धियान रखिहे। ओहए कम नै भेलै।
रबीया- भौजी, ओइ दिन हमरा दुनू भाँइमे उठ्ठम-पटका भऽ गेल रहए। कोनो कारण नै रहए। दुनू भाँइ खेने-पीने रही। तहीमे भऽ गेल रहए। निसाँ टुटल तँ सोचलौं। बड़ तकलीफ भेल भौजी।
मरनी- नै पचैए तँ किअए पीबै जाइ छी?
रबीया- हे भौजी, माफ करियौ। बड़ गलती भेल हमरासँ।
मरनी- माफ तखने करब जखनि फेर एहेन गलती नै हएत।
रबीया- भौजी, दारू-ताड़ी तँ हम पीबे करब। तखनि झगड़-दन नै करब, से गछै छी।
मरनी- बौआ, एम्हर-ओम्हर केनाइ छोड़ू आ धिया-पुताक पढ़ाइ-लिखाइपर धियान दियौ। पढ़ल-लिखलक जुग एलैए। बिनु पढ़ने केकरो गुंजाइश नै हेतै।
रबीया- ई बैंह भौजी, अहाँ बड़ चलाक छी। अपने जकाँ बोनक पता तोड़बैले चाहै छी। एहेन सड़ल काज हम नै कऽ सकै छी। धिया-पुताकेँ पढ़ाइ खातिर डीहो बेचि ली। ई कोनो नीक काज नै।
मरनी- बुझलौ, अहाँ बड़ नीकवाली छी तैं सरकारी गाछीमे सिरकी तनने छी। अहाँ अपन नीक अपने लग रखू।
भैया, हम जाइ छियौ। तोरा सभकेँ कोनो तरहक दिक्कत हेतौ तँ हम ओकर बेवस्था करब। बेटा, तैयार छै।
(रबीयाक प्रस्थान।)
मरनी- दुखन बाउ, देखहक, भला जुग संसार नै।
मंगल- तोरा कोन जरूरी छौ ओतेक लबर-लबर करैक। रारकेँ सुख बलए होइ छै। पीलहाकेँ दिन-दुनियाँ दोसर होइ ैछ। उ हरिदम पी कऽ बुच्च रहैए। ओकरासँ बसी बाते नै करक चाही।
मरनी- ठके कहलहक।
पटाक्षेप।
तेसर अंक-
पहिल दृश्य-
स्थान- बंगलूरक एकटा पार्क। साँझक समए। डाक्टर पार्कमे घूमि रहली अछि। पार्कमे किछु लोक घूमि रहल अछि आ किछु लोक बैस कऽ गप-सप्प कऽ रहल अछि।)
डाक्टर- हमर पापाक उदेस पूर्ण भेल। हम आइ डाक्टर बनलौं। रिजल्टो नीक अछि। भगवतीसँ प्रार्थना करै छियनि जे हमर सेवा नीक रहए। सेवा पैघ धर्म होइए। हे भगवती। हमरा उ शक्ति दिअ जइसँ हम जनसेवामे नीक प्रतिष्ठा पाबि सकी।
(इंजीनियरक प्रवेश। ऊहो पार्कमे घूमि रहल अछि। दुनू एक-दोसर दिस ताकि-ताकि टहलि रहल अछि। दुनू एक-दोसरकेँ नै चिन्हैए, भटकि रहल अछि।)
यौ विद्यार्थी, यौ विद्यार्थी।
इंजीनियर- की? (दुनू एक-दोसर दिस टक-टक ताकि रहल अछि।)
की कहलौं?
(डाक्टर किछु नै बाजि रहली अछि।।)
किअए टोकलौं? किछु किअए नै बजै छी?
डाक्टर- (मुस्की दैत) हम अहांकेँ चिन्है छी आ भटकै छी। अपनेक परिचए?
इंजीनियर- हमर नाओं दुखन मल्लिक, पिता श्री मंगल मल्लिक।
डाक्टर- बस करू, बस करू। बूझि गेलौं, चिन्ह गेलौं।
इंजीनियर- तहन हमहूँ चिन्ह गेलौं। अहाँ चन्द्रप्रभा छी ने?
डाक्टर- अबस्स छी। चिनहल लोक केतौ अनचिन्हार होइ।
इंजीिनयर- परिस्थिति अनचिन्हार बना दइ छै चन्द्रप्रभा।
(डाक्टर संगी शांति पार्कमे घुमैए आ दुनूपर धियान रखैए।)
डाक्टर- दुखन, मनुक्ख परिस्थितिक दास होइत अछि आ परिस्थिति अन चिन्हारोकेँ चिन्हार बना दैत अछि। स्थिति-परिस्थितिक गप छोड़ दुखन। एकर क्षेत्र बड़ पैघ छै। आब अपना सभ किछु अप्पन गप-सप्प करी। आइ-काल्हि की सभ करै छेँ?
इंजीनियर- गरीब आदमी की कऽ सकैए चन्द्रप्रभा? कौहुना जीबै छी। तोरा दऽ तोहर पापा कहने छेलखुन जे बंगलूरमे डाक्अरी पढ़ाइ पढ़ैए। भरिसक तोहर पढ़ाइ खतम भऽ गेल हेतै?
डाक्टर- एम.बी.बी.एस. पूर्ण भऽ गेल। कम-सँ-कम एम.डी. अबस्स करब आ तूं अपन कह ने, की कऽ रहल छेँ?
इंजीनियर- हमरो इंजीनियरिंग पूर्ण भऽ गेल एतै। हमर घरक स्थिति एतेक खराब अछि जेकर वर्णन नै। तूहूँ बुझिते हेबहीं। माता-पिता केना रहैत हेथीन से नै कहि। हमर पढ़ाइ खातिर हमर डीहो बीकि गेल। तोरे पापा लेलखुन।
डाक्टर- हमरे पापा लेलखिन?
इंजीनियर- हँ, हमरा सामनेक गप अछि। हुनका कागतपर माता-पिताक संग हमहूँ दसखत आ निशान देने छी।
डाक्टर- हमरो पापा जे छथिन, से अजीब किसिमक लोक छथिन।
इंजीनियर- नै चन्द्रप्रभा, जुगक अनुसारे ठीक छथिन। आइ-काल्हि एहेने लोकक पूछ होइ छै।
डाक्टर- तोहर अगिला विचार की केना छौ?
इंजीनियर- नोकरी-चाकरी भेट जेतै तँ कऽ लेबै। मतो-पिताकेँ ने देखबाक अछि? हमरा खातिर हुनका सभकेँ केते तकलीफ भेल हेतनि आ केते होइत हेतनि?
डाक्टर- से तँ ठीके। माता-पिता अपन बाल-बच्चा लेल की की ने करैए। बाल-बच्चा नम्हर भेलापर ओकरा सभकेँ बिसरि जाइए।
इंजीनियर- ओतबे नै, मारबो-पीटबो करैए। देखै आ सुनै छी तँ होइए माता-पिता धिया-पुताक जनम किअए दइ छै?
डाक्टर- लगैए जेना तों मातृभक्त आ पितृभक्त होइ।
इंजीनियर- माता-पिताक धिया-पुता जदी डाक्टर-इंजीनियर भऽ गेलै तँ उ धिया-पुता माता-पिता भऽ गेलै आ उ माता-पिता धिया-पुता भऽ गेलै की?
डाक्टर- से केतौ होइ।
इंजीनियर- एगो बात बुझही चन्द्रप्रभा, मातृदेवो भव:। पितृदेवो भव:। गुरु देवो भव:। अतिथि देवो भव:। जदी ऐ सभपर गंभरतापूर्वक विचार करबीहीं तहन रहस्य स्पष्ट हेतौ। चन्द्रप्रभा, एते काल हम तोहर समए लेलियौ। तइले क्षमा चाहै छियौ। कारण समए मूल्यवान होइ छै।
डाक्टर- से तँ होइ छै। मुदा सभ ठाम नै होइ छै। एतए नै हेतै। कारण अपना सभ जीवनोपयोगी गप-सप्प केलौं। ओना तोरा बेसी जरूरी छौ तँ जा सकै छेँ।
इंजीनियर- जरूरीए नै बड़ जरूरी अछि। हमर हरेक काज समैसँ होइए। आब जेबाक आज्ञा दे।
डाक्टर- बेस जो। मुदा।
इंजीनियर- मुदा की?
डाक्टर- मुदाक जवाब बादमे। अखनि तोरा समैक अभाव छौ।
इंजीनियर- समैक अभावमे मुदाक जवाब हमरा अखनि दे। नै तँ हमरा नीन्न नै हएत।
डाक्टर- तोहर गप अतिभावपूर्ण होइ छौ। मन होइए सुनिते रहूँ।
इंजीनियर- आब दासर दिन चन्द्रप्रभा। अखनि चललियौ।
(इंजीनियरक प्रस्थान।)
डाक्टर- दुखन इंजीनियर बनल। ई पाथरपर दुबि जनमेनाइ भेल। एते गरीब विद्यार्थी इंजीनियर बनल। ई बड़ पैघ बात भेल। धन्यवाद ओकर माता-पिताकेँ जे एते पैघ काजक बीड़ा उठा आेकरा सफल केलक।
शांति- (मुस्काइत) की चन्द्रप्रभा, मामला किछु गड़बड़ छै की?
डाक्टर- किछु गड़बड़ नै शांति। तोरा शक केना भेलौ शांति?
शांति- शक किअए ने हएत? बड़ी कालसँ तूँ सभ गप करै छेलेँ।
डाक्टर- उ हमर लंगोटिया संगी छल। मैट्रिकक पछाति पहिल बेर भेटल छल। तँए बेसी काल गप-सप्प भेल।
शांति- उ करै की छै?
डाक्टर- इंजीनियर अछि।
शांति- जोड़ी तँ बड़ नीक छौ।
डाक्टर- (मुसकुराइत) तूहूँ खूम छेँ। जे बात हम सोचनौं ने रहिऐ से बात आइ हमरा सोचैसँ मजबूर करै छेँ। ई फाइल मम्ी-पापाक छिऐ। ऐमे हमर कोनो डिसीजन नै।
शांति- से किअए? तूँ बच्चा छिहिन की?
डाक्टर- मम्मी-पापाक नजरिमे बच्चा छिहे।
शांति- मुदा तूँ अपन नजरिमे आकि हमरा नजरिमे कथी छिहिन?
डाक्टर- डाक्टर छी।
शांति- तोहर उमेर केते छौ?
डाक्टर- पच्चीस मानि ले।
शांति- अठारहसँ सात बेसी भेलौं। कानूनक नजरिमे सेहो योग्य छेँ।
डाक्टर- हमहूँ ई सभ बुझै छिऐ। बच्चा जकाँ नै बुझा। छोड़ ई गप-सप्प। जाधरि सरकारी नोकरी नै करब ताधरि हम ऐ विषयमे किछु ने सोचब।
शांति- भगवान करए, तोरा सरकारी नोकरी जल्दी होउ आ ओइ लड़काकेँ सेहो होइ। संगी-साथी छेँ। तँए मजाक केलियौ। माफ करिहेँ।
(डाक्टर आ शांति हँसए लगैए।)
पटाक्षेप।
दोसर दृश्य-
(स्थान- रेलमंत्री नित्यानंद मिश्रक आवास। आवासपर नित्यानन्द आ अंगरक्षक वरूण झा रेल मंत्रज्ञलयक संबन्धमे गप-सप्प कऽ रहल छथि।)
नित्यानंद- वरूण, जखनि हमरा रेल मंत्रालय भेटल तखनि बड़ प्रसन्नता भेल। मुदा आब तंग छी।
वरूण- से किअए मंत्री साहैब?
नित्यानंद- मंत्रालयक अंदरमे बड़ घूसखोरी छै। तेहेन तेहेन पैरबी अबैए जे नहियोँ चाहि कऽ ओकर काज करए पड़ैए। बदलामे पाइ केते होइए से अहाँ बुझिते छिऐ।
वरूण- से किअए नै बुझबै। कारण बहुत काज हमरो हाथसँ होइए। की करबै साहैब सभ मंत्रालयक ओहए स्थिति छै। कोनो उन्नैस छै तँ कोनो बीस।
नित्यानंद- हँ, से तँ छै। मुदा तकलीफ ओतए होइए जेतए योग्यक काज नै होइ छै आ अयोग्यकेँ भऽ जाइ छै। ई सभ मालक कमाल छिऐ। कखनो-कखनो होइत रहैए जे जनप्रतिनिधि भऽ कऽ पब्लिक संग बड़ गद्देदारी करै छी। फेर जनिते छी जे लोभ पापक कारण होइ छै।
वरूण- अहूँ की करबै? ई मौका बेर-बेर भेटबे करत, से कोनो निश्चित छै। नै, अनिश्चित। तहन जे अबै छै आबए दियौ।
(इंजीनियरक प्रवेश।)
इंजीनियर- (नित्यानंदकेँ) सर प्रणाम।
(नित्यानंद ऊपर-निच्चाँ निहारि कऽ गुम्म छथि।) (वरूणकेँ)
सर प्रणाम।
वरूण- की बात हउ, बाजह?
इंजीनियर- रेलबेक इंजीनियर लेल एगो पैरवीक जरूरी छेलै।
वरूण- साहैबसँ बात कर।
इंजीनियर- सर, रेलबे इंजीनियरक पी.टी. आ मेन्स निकालि गेल अछि। ज्वाइनिंग लेल दू लाख टाका मांगै छथि। हम गरीब लोक। ओते पाइ केतएसँ आनब?
नित्यानंद- पढ़ले केना?
इंजीनियर- माता-पिता डीहो धरि बेचि देलखिन। एगो सरकारी गाछीमे सिरकी तानि रहैत हेतै।
नित्यानंद- नाम की छियौ?
इंजीनियर- दुखन मल्लिक।
नित्यानंद- कोन मल्लिक?
इंजीनियर- डोम मल्लिक सर।
(नित्यानंद आ वरूणक नाक-भौं सिकुड़ि जाइए।)
नित्यानंद- अच्छा, हुनकासँ गप कर। हम कनी अबै छी।
(नित्यानंदक प्रस्थान।)
इंजीनियर- सर, एकटा गरीबपर कृपा करितिऐ।
वरूण- हम का किरपा करी। किरपा तँ ऊपरबला करत हई। गरीब आदमी इंजीनियर बनअ ता। बिनु मालके कमाल कैसे होई? तहूमे डोम बा। जातो गमाई, सुआदो ना पाई। ई कैसे हो सकअ तँ?
इंजीनियर- अहूँ सभ जाित-पाति आ ऊँच-नीचक भेदभाव रखै छिऐ सर? भारत धर्म निरपेक्ष राट्र अछि। ऐ राष्ट्रक शीर्षपर बैस एकर गरिमा नष्ट कऽ रहल छी।
वरूण- हमरा एतना भाषण अच्छा नाही लगत हई। अपन-अपन जाति ले सभ हरान हई। कम-सँ-कम एको लाख हऊ तँ तोहर काज होइ जाई।
इंजीनियर- सर, नै छै।
वरूण- कोइ उपए देखअ, तँ होइ जाई।
इंजीनियर- सर, हमरा कानो उपए नै छै। सर एगो गरीबकेँ कल्याण कऽ दैतिऐ। आजीवन कृतज्ञ रहितौं।
वरूण- बक बक काहे करह ता? टाका ना, नोकरी ना।
(नित्यानंदक प्रवेश। दुखन िनत्यानंदक पएर पकड़ि लइए)
नित्यानंद- की भेलौं बौआ? की दिक्कत छौ?
इंजीनियर- सर कहलखिन, कम-सँ-कम एक लाख टाकाक ओरियान करैले। तहिन हएत। सर, हम एक लाख टाका केतएसँ आनब? डीहो बीिक गेल अछि। कोनो आशा नै अछि।
नित्यानंद- गरीब छेँ तँए एके लाख। नै तँ ऐ नोकरी लेल दस-दस लाख टाका पार्टी पएर पर रखि जाइए।
इंजीनियर- सर, लोक सभ बजैत रहै छै, एकटा घर डयनो बकसै छै।
वरूण- जा, डयने बकस देई। हमरा लोगन डायन नै न बा।
(इंजीनियर कनैत-कनैत प्रस्थान।)
साहैब, लड़िकन तेज बा। लेकिन गरीब बा। अपने लोगन के भी पेट हई, बाल-बच्चा हई।
(चन्द्रेश आ चन्द्रप्रभाक प्रवेश।)
चन्द्रेश- मंत्री साहैब प्रणाम।
नित्यानंद- प्रणाम प्रणाम। कहू की बात?
चन्द्रेश- अहाँक समधिक सारहूक भाए हमर लंगोटिया संगी। ओहए पठेलथि जे मंत्री साहैबकेँ हमर नाओं कहबनि। भऽ जेतै पैरवी। हमर बेटी अहाँक बेटी छी। (चन्द्रप्रभा कर जोड़ि प्रणाम करैए।)
नित्यानंद- की पैरवी अछि बाजू?
चन्द्रेश- ई हमर बेटी छी। एम.बी.बी.एस. कमप्लीट भऽ गेल छन्हि। एम.डी. करैले चाहैए। मुदा नोकरी करैत। रेलबे डाक्टरक पी.टी. निकलि गेल छन्हि। मेन्स आ ज्वाइन लेल पैरवी। आर किछु नै।
नित्यानंद- अपनेक नाओं?
चन्द्रेश- चन्द्रेश झा।
वरूण- झा हऽ स्वजातीय हऽ तँ पैरवी काहे ने होई? तोहार पैरवी ना होई तँ केकर होई।
नित्यानंद- वरूण, अन्दरसँ चाह आनि कऽ दियनु कुटुमकेँ।
(वरूण अन्दर जा कऽ चारि गो चाह अनलक। चारू गोटे चाह पीऐए।)
चन्द्रेश बाबू, अपने वरूणसँ गप करू। हम कनी अबै छी।
चन्द्रेश- हम तँ गरीब छी। कमाइ छी तँ खाइ छी। बाप-दादाबला जमीन बेचि कऽ बेटीकेँ डाक्टर बनेलौं। इहएटा संतान अछि। प्रबल इच्छा छल बेटीकेँ डाक्टर बनाबी।
वरूण- बेटी, डाक्टर बा। ई कम भारी बात बा। दस-दस लाख टाका भेटत हई। तूँ अप्पन लोग हऽ। कम-से-कम एक लाख तँ लगबे करी।
चन्द्रेश- सर, हम नै सकबै। कनी मंत्री साहैबकेँ बजबियनु। हुनकासँ भेँट कऽ चलि जाएब। बेकारमे एलौं।
(वरूण नित्यानंदकेँ अन्दरसँ बजा अनलनि।)
नित्यानंद- की कहता? कहलनि अहाँले कम-सँ-कम एक लाख। नै राधाकेँ मन घी हेतनि आ ने राधा नचती।
(नित्यानंदक पएर पकड़ि) मंत्री साहैब, पएर पकड़ै छी। कृपा कएल जाउ। बड़ आशासँ आएल रही। अपने कुटुम छी। स्वजातीय छी। बड़ गरीब छी। एकटा गरीबकेँ ताड़ियौ साहैब।
नित्यानंद- अच्छा पएर छोड़ू।
चन्द्रेश- पएर तँ नै छोड़ब। जाधरि हँ नै कहबै।
नित्यानंद- कुटुम आ स्वजातीय छी तँए हँ कहि दइ छी। वरूण बाबूकेँ किछु दऽ देबनि। (चन्द्रेश नित्यानंदक पएर छोड़ि देलनि।)
चन्द्रेश- जे सकबनि तइमे कोताही नै करबनि।
नित्यानंद- हम जाइ छी। जरूरी अछि।
चन्द्रेश- प्रणाम मंत्री साहैब।
(नित्यानंदक प्रस्थान।)
वरूण बाबू, एक हजार टाका मिठाइ खाइले लेल जाउ।
वरूण- लाबऽ। तूँ जीत गेलह। बड़ी भाग्यकेँ तेह हऽ। जातिक नाम पर जीत गेलह। (चन्द्रेश वरूणकेँ एक हजार टाका देलनि।) तूँ सभ जा।
चन्द्रेश- वरूण बाबू, प्रणाम।
(चन्द्रेश आ चन्द्रप्रभाक प्रस्थान।)
वरूण- ऐमे पूरा घाटा बा। खैर, जाति बा।
पटाक्षेप।
तेसर दृश्य-
(स्थान- इंजीनियरक डेरा। साँझक समए। प्रसन्न मुद्रामे इंजीनियर बैस कऽ भविसक संबन्धमे सोचि रहल छथि।)
इंजीनियर- जइ देशक मंत्री घूसखोर रहतै आ जाति-पातिपर चलतै, ओइ देशक कल्याण केना संभव छै। उ देश गर्तमे जेबे करतै। ध्रुव सत्य छै। कारण उ घूस लऽ कऽ अधलाकेँ नीक बनेतै। काज अधला हेतै। प्राय: सभ सरकारी तंत्र सभ फेल भऽ रहलैए। खाली कागत टाइट रहए। जगहपर किच्छो होउ पब्लिक जानए। केना ओकरा बाजल गेलै, टाका ना, नोकरी ना।
खैर, नै रेलबे तँ मारुतीए कंपनी सही। नै सरकारी नोकरी तँ प्राइवेटे नोकरी सही। एक-सँ-एक प्राइवेट कंपनी छैल लाख-लाख टाका तनखा छै। ओकर तुलना कहियो सरकारी नोकरी करतै। खाली एस-आराम छै सरकारी नोकरीमे। तँए लोक एते हरान रहै।
(डाक्टरक प्रवेश)
डाक्टर- की हाल-चाल छौ दुखन?
इंजीनियर- ठीक छौ। केम्हर-केम्हर एलेँ हेन मुनहारि साँझमे?
डाक्टर- एकटा टटका खुशखबरी देबाक रहए तोरा। तँए एलौं।
इंजीनियर- की?
डाक्टर- रेलबे डाक्टमे हमरा भऽ गेलौ। पापा आएल छेलखिन। मंत्री साहैबसँ गप भऽ गेलै।
इंजीनियर- की केना माल लगलौ?
डाक्टर- किछु नै, मात्र एक हजार टाका।
इंजीनियर- मंगनीमे भऽ गेलौ। लगैए बाभन छेलेँ तँए तोरा भऽ गेलौ चन्द्रप्रभा। कारण मंत्रीओ साहैब बाभने छथिन।
डाक्टर- से तँ हुनकर बडीगाडो ब्राह्मणे छथिन। हँ, तूँ ठीके कहलेँ। हमरा ब्राह्मणे दुआरे भेल। तूँ केना बुझलिही ई भाँज?
इंजीनियर- हम ओकर भुक्तभोगी छी। हमरा ओहए मंत्री साहैब डोम दुआरे नै केलथि। अपन सभ मजबूरी सुनेलियनि। पएर धरि पकड़लियनि। मुदा टस-सँ-मस नै भेला। बडीगार्ड कहलनि “ना टाका, ना नोकरी।” तनखा केते भेटतौ तोरा चन्द्रप्रभा?
डाक्टर- अठारह हजारसँ बहाली छै।
इंजीनियर- तहने हमहूँ कोनो बेजाए नै छी। हमहूँ मारूती कंपनीमे ज्वाइन कऽ लेलौं आइ।
डाक्टर- तोरा केते भेटतौ?
इंजीनियर- पैंतालीस हजारसँ बहाली अछि। मुदा नोकरी प्राइवेट अछि। तूहीं ठीक छेँ चन्द्रप्रभा।
डाक्टर- तूहीं ठीक छेँ दुखन।
इंजीनियर- तूहीं ठीक तँ तूहीं ठीक। यानी सभ ठीक।
डाक्टर- दुखन, अपना-अपना जगहपर कोइ केकरोसँ कम नै अछि। खैर, ई बात आब छोड़। आब हम एगो नबका बात कहए चाहै छियौ।
इंजीनियर- अबस्स कह।
डाक्टर- कहैक हिम्मत जे नै होइए।
इंजीनियर- एहेन कोन गप छै जे कहैक हिम्मत नै होइए?
डाक्टर- जिनगीसँ संबन्धित अछि। (मुस्कुराए लगैए।)
इंजीनियर- जिनगीमे कोनो एगो गप अछि। अनन्त गप अछि। तइमे कोन?
डाक्टर- मम्मी-पापाक डर होइए। हुनका सभकेँ हमरापर बड़ बिसवास छन्हि।
इंजीनियर- पहिने बात खोलि कऽ बाज ने, तहन विचार हेतै।
डाक्टर- हमर संगी पार्कमे तोरा दऽ किछु-किछु कहै छल। सएह गप।
इंजीनियर- की कहै छेलखुन? हमरासँ किछु गलती भेलै हेन की?
डाक्टर- नै नै, गलती-सहीबला गप नै छै। दोसर गप छै।
इंजीनियर- कोन दोसर गप छै?
डाक्टर- कोनो गप नै छै। (मुस्कुराए लगैए।)
इंजीनियर- नै कोनो गप छै, तँ जो अपन डेरापर। राति भऽ गेलै।
डाक्टर- तूहीं जो अपन डेरापर। राति भऽ गेलै।
इंजीनियर- बताहि भऽ गेलेँ की?
डाक्टर- तूहीं बताह भऽ गेलेँ।
इंजीनियर- हम बताह नै भेलौं। हम तँ पूरा ठीक छी।
डाक्टर- हमहूँ तँ पूरा ठीक छी।
इंजीनियर- चन्द्रप्रभा, एकटा डाक्टरकेँ एते बेसी झिझक शोभा नै दइ छै।
डाक्टर- से तँ हमहूँ बुझै छी। मुदा गपे तेहने छै। (मुस्कुराए लगैए।)
इंजीनियर- आब हम निकलि जेबौ डेरासँ।
डाक्टर- हमहूँ निकलि जेबौ तोरे संग। (नजरिसँ नजरि मिलबए लगल।)
इंजीनियर- तोहर नजरि हमरा एकटा नब संदेश दऽ रहल अछि।
(डाक्टर इंजीनियर दिस एकटक तकैत गुसुम अछि।)
संदेश दूटा दिलक मिलान लगैए। की हमर अनुमान सत्य अछि?
डाक्टर- (मुड़ी डोलबैत) हूँ। (फेर नजरिसँ नजरि मिलबैत)
इंजीनियर- आबो बाज ने?
डाक्टर- आब बजैए पड़त। बड़ समए नष्ट भेल। बड़ राति भऽ गेल। डेरो जेबाक अछि।
इंजीनियर- बात तँ बुझाइए गेल। तैयो जे किछु बजबाक छौ से जल्दी बाजि दही आ चलि जो।
डाक्टर- किअए, हम तोरा जानपर छियौ?
इंजीनियर- (मुस्कुरा कऽ) नै नै, से बात नै छै। आब लगै छौ हमराऽऽऽ।
(इंजीनियर डाक्टरसँ नजरि मिला रहल अछि। दुनू एक-दोसर दिस एकटक तकैत गुमसुम अछि। दुनू उठि जाइए।)
आइ आइ आइ। (हाथ फैला कऽ।)
डाक्टर- लऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽव। (हाथ फैला कऽ)
इंजीनियर- यू। (दुनू एक-दोसरसँ आइ लव यू, आइ लव यू कहि चिपकि गेल, फेर दुनू हटि गेल।)
इंजीनियर- जा, ई की भऽ गेल? की कऽ लइ जाइ गेलौं?
डाक्टर- होनीकेँ कियो रोकि सकलै हेन? होनी तँ हाथ धरा कऽ होइ छै। दुखन, आब हमर एकटा विचार अछि। से कहियौ?
इंजीनियर- अबस्स कही।
डाक्टर- हमर विचार अछि जे दुनू गोटे गाम जइतौं आ अपन गौआँ-समाजकेँ दर्शन करितौं।
इंजीनियर- विचार तँ उत्तम छौ। मतो-पिताकेँ देखना बहू दिन भऽ गेल। तोरो बहू दिन भऽ गेल हेतौ। जेबही केना?
डाक्टर- संगे चलब।
इंजीनियर- गामसँ दूर तँ नै कोनो बात। मुदा गाममे कियो संगे जाइत देखता तँ की कहता?
डाक्टर- के की कहता?
इंजीनियर- लोक सभ कहता जे चन्द्रेश बाबूक बेटी मंगला बेटा संगे एलै। डोमसँ ब्राह्मणी छुआ गेलै। लोक सभ ईहो कहि सकै छथि जे जे दुनू एक्के संग किअए आएल। दालिमे किछु कारी छै। (दुनू बैसल)
डाक्टर- गाम-घर तँए ने एते पछुआएल छै। लोक सभ हरिदम अनकर इ्रना-मीनामे लगल रहैए। अपना दिस तकैक फुरसत नै रहै छै।
इंजीनियर- चल, देखल जेतै। हाथी चलए बजार कुत्ता भुकए हजार। एगो कह तँ चन्द्रप्रभा, अपना सबहक जोड़ी केहेन हेतै?
डाक्टर- लोककेँ तँ बड़ खराब लगतै। मुदा हमरा बड़ नीक लगत आ तोरा?
इंजीनियर- हमरा नीक नै लगत।
डाक्टर- से किअए?
इंजीनियर- कारण हम डोम छी आ तूँ ब्राह्मणी छेँ। तूँ ऊँच छेँ हम नीच।
डाक्टर- इहए मानसिकता समाजकेँ डाँड़ तोरि कुहरा रहलए। अहीपर काबू पेनाइ छै। तहन ने समाजक विकास हएत। समाजेक विकाससँ राष्ट्रक विकास हएत। देशक रग-रगमे ऊँच-नीचक भावना घोंसियाएल अछि। ई भावना झट दऽ नै हटि सकैए। रसे-रसे हटत। देखही, बीड़ा उठेनिहारकेँ कनी बेसी भीर होइते छै।
इंजीनियर- अपना सबहक जोड़ी तँ सचमुच बड़ नीक हेतै। खैर, गाम चल। देखल जेतै। हमरा तँ एक्के सप्ताहक छुट्टी अछि आ तोरा?
डाक्टर- हमरो तँ सएह छौ। चल, फेर जल्दी एबाको छै। देखही दुखन, जाधरि सभ जाति एक नै हएत, ऊँच-नीचक भावना नै हटत ताधरि लोकमे इर्ष्या-द्वेषक भावना जकड़ल रहत। तइसँ मानवता हटत आ देशक विकास रूकत।
इंजीनियर- गप तोहर ओराइते नै छौ। आब छोड़ बादमे हेतै। काल्हि सबेरे निकलबाक छै।
पटाक्षेप।
चारिम दृश्य–
(स्थान- चन्द्रेशक हवेली। चन्द्रेश आ मनीषा चन्द्रप्रभाक बिआहक संबन्धमे गप-सप्प करै छथि।)
चन्द्रेश- चन्द्रप्रभा मम्मी, आइ चन्द्रप्रभाक अबैया अछि। आब जौं आेकरा देखबै तँ चिन्हबो नै करबै। दोसरे रंग भऽ गेलए। बंगलूर हम गेल रही ऐ बेर तँ चिन्हैमे हमरो धोखा भेल। ओतुक्का जलवायु अपना औरसँ अलग छै।
मनीषा- तहन तँ ओकर बिआह सेहो जल्दी करए पड़तै। कारण सभ किछु समैपर नीक होइ छै। उमेरो छै आ सरकारी नोकरी सेहो छै। मुदा एगो बात पूछी?
चन्द्रेश- पूछू ने।
मनीषा- डाक्टर बर चाही वा इंजीनियर बर चाही वा कोनो आइ.ए.एस. ऑफीसर।
मनीषा- मुदा ऐ बर सबहक मांग केते हएत, से बुझै छिऐ?
चन्द्रेश- केते हएत, दस पेंटीसँ ऊपरे हएत। तेकर चिन्ता हमरा अछिए नै? कारण बैंकमे ओते राखल छै।
मनीषा- ब्राह्मणमे दहेज बड़ बेसी होइ छै। जौं बीस पेंटीमे ओहन कुटुम पकड़ाएत तं की करबै?
चन्द्रेश- जमीन बेचि कऽ लगा देबै। जौं ओइसँ आगू बढ़तै तँ कोनो जमीनदारे घरमे कऽ देबै। हमर बेटी ओइ घरमे रानी बनि राज करती।
मनीषा- तहन डाक्टर भऽ कऽ कोन फेदा?
चन्द्रेश- हुनर केतौ बेर्थ गेलैए। गामेपर क्लिनिक खोलि लेतै। खू पाइ कमेतै। बड़ प्रतिष्ठा भेटतै।
(डाक्टरक प्रवेश। मम्मी-पापाकेँ पएर छूबि प्रणाम कऽ मम्मी लग बैस गेल। मम्मी ऊपर-निच्चाँ निहारि रहल अछि।)
मनीषा- (चन्द्रप्रभाक देह सहलाबैत) बेटी, तूँ तँ दोसरे रंग भऽ गेलही। पापा कहै छेलखुन। हमरा बिसवास नै होइ छल। केना एहेन भऽ गेलही? कथी खाइ छेलही ओतए?
डाक्टर- मम्मी कथी खेबै। जे तूँ सभ खाइ छीहे, सएह। ओतुक्का जलवायु दुआरे एहेन परिवर्तन भेलै हेन।
मनीषा- आकि कोनो दबाइ खाइ छेलही?
डाक्टर- नै गै मम्मी, सभ किछु एतुक्के जकाँ छेलै। एकदम साधारण रहन-सहन छल।
चन्द्रेश- बेटी, सर्विसक हाल-चाल कह।
डाक्टर- पापा, हॉस्पीटलमे बड़ प्रतिष्ठा अछि।
चन्द्रेश- बेटी, एकटा विचार पूछै छियौ?
डाक्टर- अबस्स पापा।
चन्द्रेश- तोहर बिआहक संबन्धमे किछु सोचल जाए?
डाक्टर- ई बात तँ मम्मीसँ पूछक चाही।
चन्द्रेश- नै बेटी, तूँ सभ तरहसँ नम्हर छिही। जदी हमरासँ कोनो अनुचित िनर्णए भऽ जेतै तँ हम पाउल जाएब। जखनि बेटा-बेटी अठारहसँ टपल तखनि ओकरासँ मित्रवत् बेवहार हेबाक चाही।
डाक्टर- से तँ ठीके।
चन्द्रेश- बेटी, हमर शुरूएसँ विचार अछि जे तोहर बिआह जातिमे राजा कुलमे करी। आ तोहर विचार?
डाक्टर- हमर विचार अछि सीता आ सावित्री जकाँ बिआह करी।
चन्द्रेश- जेना सीता आ सावित्री अपन मन-पसीन बरसँ बिआह केली तहिना होइतै तहन नीक रहतै। जाति-पाति कोनो बड़ पैघ चीज नै छिऐ। अस्सल जाति एक्केटा अछि, मनुख जाति। खाली बेवहार नीक होइक चाही, विचार नीक चाही आ कर्म नीक चाही।
चन्द्रेश- तोहर कहब इहए ने छौ जे डोमोक बेवहार-विचार-कर्म नीक होइ तऽऽऽ ओकरासँ ब्राह्मणी बिआह कऽ सकैए। सएह ने?
डाक्टर- सोलहन्नी। भगवान राम शबरी ऐठाम अँइठ बैर खने रहथिन की नै?
च्नद्रेश- हँ, से तँ ठीके छिऐ।
डाक्टर- से किअए? बिना कारणे। शबरीमे प्रेम-श्रद्धाक गुण छेलै। उ गुण भगवानकेँ आकर्षित केलक आ उ आकर्षित भेला।
चन्द्रेश- भगवानकेँ तँ लोककेँ तारैक रहै छन्हि। तँए उ किछु कऽ सकै छथि। मुदा हम जे हुनकर देखौंस करब से हमरा बुते संभव नै छै। हम अपना जकाँ करब। जातिक प्राथमिकता हम देब्बे करबै। हम सभसँ पैघ जाति छी ब्राह्मण। जदी हमहीं हूसि जाएब तँ दुनियाँ अनहेर भऽ जेतै। रस्ता-पेरा लोक चलए देत। हमरा जे एते प्रतिष्ठा अछि से माटिमे मीलि जाएत।
डाक्टर- पापा, अहाँ भगवानकेँ मानै छिऐ की नै। (मुस्कुराइत)
चन्द्रेश- नै किअए मानबै। हुनकेपर तँ दुनियाँ चलै छै।
डाक्टर- जखनि अनेक जाति भगवान वा भगवतीक पूजा करै छथि तँ कहाँ कियो कोढ़िया भऽ जाइ छथि वा कियो राजा भऽ जाइ छथि?
चन्द्रेश- तूँ जनमल हमरे सीखबए चललेँ।
डाक्टर- नै पापा, से बात नै छै। (मुस्कियाइत अछि।)
धिया-पुता केतबो काबिल भऽ जाए मुदा माए-बापक आगूमे ओ बच्चे रहतै।
चन्द्रेश- (प्रसन्न भऽ) हँ, ई तोहर कहब जाइज छौ। जे बसी काबिल रहै छै, ओ तीनठाम गूँह मखै छै, पएर, हाथ आ नाकमे।
डाक्टर- से सभसँ भऽ सकै छै। अहूँसँ भऽ सकै छै।
चन्द्रेश- (खिसिआ कऽ) बेटी, फेर तूँ हूसि रहल छेँ। हमरासँ हूसल काज नै भऽ सकै छौ, नै भऽ सकै छौ, नै भऽ सकै छौ। बेटी, तोरा डाक्टर बनबैमे हमरा की खरच अछि से हमहींटा बुझै छी। गूरक मारि धोकरा जनै छै। तोरा नोकरीले हमरा मंत्री साहैबक पएर पकड़ए पड़ल जे तोरा सामनेक गप छै। आइ हमर कहल करैले तैयार नै छेँ। बापक तूँ अवहेलना करै छेँ अवहेलना अवहेलना अवहेलना।
मनीषा- (गंभीर मुद्रामे) बुच्ची, कनी चाह बनेने आउ।
(डाक्टरक प्रस्थान।)
चन्द्रप्रभा पापा, बेटी डाक्टर अछि। ओकरापर ओते किअए खिसिआ जाइ छिऐ? जुग ठीक नै अछि। आ जँ तामसे-पित्ते किछु कऽ लिअए।
चन्द्रेश- ओहीक डरे हम खाली खिसिआ रहल छी। नै तँ मारैत-मारैत मारि दैतिऐ आ माटिक तरमे गाड़ि दैतिऐ। मुदा दर-दुनियाँमे अछि तँ एगो। माया-मोह घेर लइए।
चन्द्रप्रभा मम्मी, हमरा लगैए उ केतौ हूसि गेल अछि वा हूसएवाली अछि। तँए ओकर एहेन बात होइ छै। चाह लऽ कऽ आबए दियौ। हम चाह पी कऽ अंदर चलि जाएब। अहाँ ओकरासँ पियारसँ मनक बात लेब।
मनीषा- हमरा कहतै से? आब उ बच्चा नै ने छै।
चन्द्रेश- बेटीकेँ माएसँ बड़ सिनेह रहै छै। अहाँकेँ भेद कहि देत। हमरा पूरा बिसवास अछि।
(डाक्टरकेँ चाह लऽ कऽ प्रवेश। मम्मी-पापाकेँ चाह देली। दुनू परानी चाह पीऐ छथि। शीघ्र चाह पी कऽ कप रखलनि।)
चन्द्रप्रभा मम्मी, हम कनी अबै छी। एक गोरक हिसाब देखबाक अछि।
मनीषा- बेस जाउ। ताबे हम दुनू माइ-धीन गप-सप्प करै छी।
(चन्द्रेशक प्रस्थान)
बुच्ची, पापा लकीरक फकीर छथुन। पहुलका गपकेँ रीतिक मोटरी जकाँ उघै छथुन। आब ओइ मोटरीकेँ उघैमे फेदा नै छै। ई समैक फेड़ छिऐ। जदी तूँ आनो जातिसँ बिआह कऽ लेबही तँ कोनो अनरगल नै हेतै। खाली लड़िका गुणगर होइ।
बुच्ची, तोरा नजरिमे जदी कोनो गुणगर लड़िका छै तँ बाज। हम तोरा पापाकेँ समझा-बुझा कऽ कहबनि। आशा अछि जे ओ मानि जेता।
डाक्टर- मम्मी छेँ। तोरासँ की छुपेबै आ केते दिन छुपेबै। उगल सुरूजकेँ वादल केते दिन झाँपि सकैए?
पापाकेँ नै कहबीन तँ कहै छियौ।
मनीषा- पापासँ केते दिन छुपेबनि? बात बढ़ि गेला पछाति जदी ओ बुझथिन तहन तँ ओ औरो आगि बबुला भऽ जेथुन। तूँ साँच बात बाज। हम हुनका मना लेबनि।
डाक्टर- कहै तँ लाज होइए। (मुस्कियाए लगैए।)
मनीषा- लाजसँ काज नै चलतौ। डाक्टर भऽ कऽ एते लाज।
डाक्टर- बात कहबौ तँ तोरा घृणा बुझेतौ। ओना हमरा घृणा नै बुझाइए आ ने अछि। हेबाको नै चाही।
मनीषा- तूँ हमरो ओझराबए लगलेँ। बेसी ओझरौठ नीक नै लगै छै। (खिसिआ कऽ) कहबाक छौ तँ कह। नै तँ तूँ बुझही आ तोहर पापा बुझथुन।
डाक्टर- मम्मी खिसिया नै, कहै छियौ। (मुस्की दैत।)
मम्मी, हमरा हमरा, दुखन दुखन, से सँ।
मनीषा- बाज ने, लाजक बात नै छिऐ। जिनगीक बात छिऐ।
डाक्टर- हमरा दुखनसँ लव भऽ गेल अछि। (मुड़ी झूका लइए।)
मनीषा- दुखन के छिऐ?
डाक्टर- अपन डोमीनक बेटा। इंजीनियर छिऐ। मारूती कंपनीमे पैंतालिस हजार तनखा पबैए। दुनू गोरे संगे गाम एलौं।
मनीषा- किछु छै। मुदा छै तँ डोम। केतए राजा भोज, केतए गंगू तेली। पढ़ि-लिखि कऽ तूँ खनदानक नाक कटेलेँ। तूँहीं कह ब्राह्मणमे डाक्टर-इंजीनियर लड़िकाक अभाव छै?
डाक्टर- मम्मी, अखने तूँ कहलेँ जाति-पाति कोनो चीह नै छिऐ आ तुरन्त गप पलटि कऽ कहै छेँ जे ब्राह्मणमे डाक्टर इंजीनियर लड़िकाक अभाव नै छै। एकर माने तोरा मनमे कटारी छौ।
मनीषा- हम की जानए गेलिऐ जे तूँ पढ़ि-लिखि कऽ एते नीच खसि पड़मेँ। मम्मी छियौ, तँए घटोसि लइ छियौ। मुदा काज नीक नै केलेँ। जिनगीक फैसला सोचि-समझि कऽ लेबाक चाही।
डाक्टर- मम्मी, हम बड़ सोचि-समझि कऽ ई फैसला लेलौं। आखिर ई फैसला हमरे जिनगीकेँ उगाएत-डुमाएत किने? से कोनो हम नै बुझै छी?
मनीषा- तूँ लाल बुझक्करि छेँ किने लाल बुझक्करि।
पटाक्षेप।
पाँचम दृश्य-
(स्थान- चन्द्रेशक हवेली। दुनू परानी बेटीक संबन्धमे विचार-विमर्श कऽ रहल छथि।)
चन्द्रेश- (प्रसन्न मने) चन्द्रप्रभा मम्मी, किछु रहस्यक भाँज लगल की नै?
मनीषा- लगल तँ, मुदाऽऽऽ।
चन्द्रेश- की मुदा?
मनीषा- बजैबला गप नै छै। बड़ हूसि गेल अछि।
चन्द्रेश- से की?
मनीषा- कहैत तँ लाज होइए। मुदा कहब नै तँ बुझबै केना?
चन्द्रेश- एते कियो गपकेँ चौथारए। जे रहस्य छै से बाजू।
मनीषा- चन्द्रप्रभाकेँ डोमीनक बेटा दुखनसँ प्रेम भऽ गेल छै।
चन्द्रेश- (आँखि लाल-पिअर करैत) अखनि बजा आनू तँ पाँती-पाँती अही बेंतसँ दागि दइ छिऐ।
मनीषा- अहाँकेँ कहै छेलौं तँ हमर गपक कोनो मोजरे नै दइ छेलौं। कहै छेलौं, हमर बेटी बड़ बुझनुक अछि। आब की भेल?
चन्द्रेश- हम की जानए गेलिऐ जे विद्यार्थी बाहर पढ़ैले जाइए आ छौड़ा-छौड़ीक खेल करैए। (कनीकाल गुम्म भऽ जाइ छथि। फेर खिसिआ कऽ।)
डाक्टर भऽ गेल तइसँ की? मुदा हमरा ओहेन बेटी नै चाही, नै चाही, नै चाही। जे हेतै से हेतै। मुदा ओकरा जीअ नै देबै। लेाक प्रतिष्ठा लेल हरान अछि। बड़ी कठिनसँ प्रतिष्ठा भेटैए। तेकरा ई छौड़ी माटिमे मिला देलक। कहू तँ, लोक हमरा मालिक कहैए आ ओइ मालिकक बेटी एना करए? धनि हम जे उ डोमबा छौड़ा इंजीनियर बनल आ हमरे बेटीपर हाथ फेर देलक। ओहू सारकेँ नै जीअ देब। नै रहतै बाँस आ नै बजतै बौसरी। (खिसिआ कऽ उठि अन्दर जाइले तैयार भेला।) पहिने ओइ छौड़ीक जान लेबै। तहन ओइ छौड़ाक।
मनीषा- हाँ हाँ हाँ हाँ। औगताउ नै। बुधि-विवेकसँ काज लिअ। धैर्यसँ काज लिअ। (चन्द्रेश रूकि गेला।) गाड़ल मुर्दाकेँ किअए उखाड़ै छी? ओइपर औरो माटि दियौ।
चन्द्रेश- अच्छा, एगो गप कहू तँ उ छौड़ा डोमबा गाम एलै हेन की नै?
मनीषा- हँ, एलै हेन चन्द्रप्रभे संगे।
चन्द्रेश- आँइ, लोक देखने हएत तँ कि कहत? अच्छा, ओइ सारले किछु उपए सोचए पड़त।
(ब्रह्मानंदक प्रवेश। चन्द्रेश आँखि लाल-पीअर करैत गुम्म भऽ बैसल छथि।)
मनीषा- बैसू बौआ। (ब्रह्मानंद बैसला।)
ब्रह्मानंद- भौजी, भैयाकेँ बड़ तमसाएल देखै दियनि?
मनीषा- हँ, बेटीपर खिसिआएल छथिन।
ब्रह्मानंद- की भेलै से ओकरा अबिते-अबिते?
मनीषा- अहाँ अप्पन लोक छी तँए कहए पड़त। ओना इ्र सभ गप गुप्त रहबाक चाही। केतौ बजबै नै।
ब्रह्मानंद- एहनो केतौ बाजल जाइ।
मनीषा- हमर बेटी बंगलूरेमे मंगला डोमबाक बेटासँ फँसि गेल अछि। कहू तऽऽऽ केतए ब्राह्मण आ केतए डोम? कनियोँ मेल खाइ छै।
ब्रह्मानंद- एको मिसिआ नै। कहू तँ दुनू पढ़ल-लिखल छै। तहूमे डाक्टर-इंजीनियर। लोक पढ़ि-लिखि कऽ और बेकूप बनि जाइए। ऐसँ नीक अमरूखे।
चन्द्रेश- बौआ, आब की हेतै? (शांत भऽ कऽ।)
ब्रह्मानंद- एकर किछु कारगर उपए सोचए पड़तै।
चन्द्रेश- हमर विचार अछि ओइ डोमबाकेँ मरबा कऽ सिस्से खतम कऽ दिऐ। नै रहतै बाँस आ ने बजतै बौसरी।
ब्रह्मानंद- ई कनी बेसी भऽ गेलै। मंगला गरीब आदमी छै। उजड़ल-उपटल छै। एक्के गो बेटा छै। तेकरा बड़ी कठिनसँ पढ़ा-लिखा कऽ इंजीनियर बनौलक। हमरा विचारसँ ओइ छौड़ाकेँ कनी बेसी पीटाइ देल जाए जे ओकरा मन रहतै आ फेर एहेन गलती नै करतै।
मनीषा- हमरा विचारसँ ई नीक नै हेतै। कारण सौंसे गाम हल्ला भऽ जेतै। गाम-गाम बात पसरि जेतै। तहन आरो अपना सबहक प्रतिष्ठापर पड़त। ऐसँ बढ़ियाँ केस कऽ दियौ।
ब्रह्मानंद- नै भौजी, केसमे दुनू पाटी पेराइ छै। बेसी मालेबला पेराइ दै। कारण पुलिसकेँ माल चाही माल। उ वेचारा घर-घराड़ी बेचि बेटाकेँ इंजीनियर बनौलक। सेहो जेहल चलि जाएत। ओकरासँ पलिसकेँ की भेटतै? किछु नै। दोसर गप उ हरिजन छिऐ। हम जे कहलौं पीटैबला गप, सएह करू।
चन्द्रेश- ओइमे जदी उ केस कऽ देत तहन?
ब्रह्मानंद- ओत्ते पीटेबे नै करबै। बचा कऽ पीटबै जे देखार नै होइ आ चोट खूम रहै। तइमे ग्राम-कचहरीसँ काज चलि जेतै। सरपंच तँ ग्रामीण होइ छथि किने। उ ममिला सलटिया लेथिन।
चन्द्रेश- तहन केना जोगार सेट हेतै?
ब्रह्मानंद- जोगारे जोगार छै। पाँच-सात गोरे चलू ओकरा ऐठाम। तीन परानी अछि। उकट-पुकट बात बजबै, गारि-फझ्झति देबै। ओइपर कनियाेँ नै कनियोँ खिसियाएत। तहीपर धुइन देबै। झगड़ा फँसेनाइ तँ अपना हाथमे छै।
चन्द्रेश- बेस तँ अहाँ जाउ चारि-पाँचटा खच्चर छौड़ाकेँ बजेने आउ।
ब्रह्मानंद- ओकरा सभकेँ किछु माल-पानी दिअ पड़ै छै।
चन्द्रेश- से लिअ। (एकटा पँचसौआ जेबीसँ निकालि कऽ चन्द्रेश ब्रह्मानंदकेँ सिकरेट पीबए लगैत।) (ब्रह्मानंदक प्रस्थान।)
आइ सारकेँ बापसँ भेँट करेबै। सारकेँ कनियोँ आँखिमे पानि नै जे ओही मालिकक किरपासँ हम इंजीनियर बनलौं आ हुनके बेटीपर हम केना हाथ फेरै छिऐ।
(ब्रह्मानंदक संग नरेश, भद्रेश, उग्रेश, सुरेश आ महेशक प्रवेश। छओ निसाँमे चूर अछि।)
ब्रह्मानंद- चलू भैया। आइ सारकेँ छठी रातिक दूध बोकरेबै। बड़ आगि मुतैए सार।
चन्द्रेश- चलै चलू। (चन्द्रेश ब्रह्मानंद, नेरेश, भद्रेश, उग्रेश सुरेश आ महेशक प्रस्थान। फेर मनीषाक प्रस्थान। अन्दरमे मंगल आ मरनी अपन बेटासँ गप-सप्प कऽ रहल अछि पर्दा उठैए। तीनू परानी आगू बढ़ि जाइए। फेर पर्दा खसैए।)
मरनी- बौआ, हम तँ तोरा काल्हि चिन्हबो ने केलियौ।
मंगल- हमहूँ अकचकाएले रहि गेलौं। जखनि गरसँ देखलौं तब बुझलिऐ हमरे बौआ छी। एतने दिनमे केना एहेन भऽ गेलही?
इंजीनियर- एतुक्का पानि आ ओतुक्का पानिमे बड़ अंतर छै। शुरूमे ओतुक्का पानि हमरो नै नीक लगै छल। बादमे नीक लागए लगल। सभ पानिक कमाल छी।
मरनी- नोकरी-तोकरी भेलै की नै?
इंजीनियर- भेलै की।
मरनी- केते महिना कमाइ छिही?
इंजीनियर- माए, तोरा सबहक असिरवादसँ पैंतालिस हजार महिना कमाइ छियौ।
मरनी- एलही तँ बाउक हाथमे पाइ कहाँ देलही?
इंजीनियर- रखने िछऐ। आइ दऽ देबनि।
मंगल- आबो घरपर धियान नै देबही तँ केना हेतै? आब तूँ हाकीम भेलही। कए आदमी एतै-जेतौ तोरा गल। की कहै जेतै?
इंजीनियर- से तँ ठीके। केतौ नीक ठाम जमीन भँजियाउ। हम पाइ पठा देब। अहाँ जमीन कीनि ओइपर बढ़ियाँ घर बना लेब। बाउ, अहाँ ई काज छोड़ि दियौ आब?
मंगल- से किअए बौआ? अपन काज करैमे कोन हरजा?
इंजीनियर- से हरजा कोनो नै। मुदा अहाँ सभकेँ उमेर बसी भऽ गेल। लोक की कहत जे इंजीनियर भऽ कऽ माए-बापकेँ खटबै छै?
मंगल- बौआ, बैसारी भऽ जाएब तँ मन आ देह असोथकित भऽ जाएत। रंग-बिरंगक बेमारी हएत। तइसँ सभ परानी परेशान रहब।
इंजीनियर- ईहो गप तँ कटैबला नै अछि। तँ एगो हएत जे कोनो धंधे खोलि देब आ ओहीमे लगल-भीड़ल रहब। अपन काजमे लाज किअए? मुदा उमेर भेने हल्लुको काज भारी भऽ जाइ छै। बांस काटि कनहापर आनब से आब अहाँ बुते पार नै लगत।
मंगल- ठके छै। कोनो धंधे खोलि दिहेँ।
(चन्द्रेश, सभ कियोक प्रवेश। इंजीनियर कुरसीपर सँ उठि गेलथि। मंगल आ मरनी सेहो उठि गेल।)
इंजीनियर- मालिक प्रणाम। (चन्द्रेश गुम्म छथि।)
बैसल जाउ, मालिक सभ। गरीब आदमी देबाल बरबरि।
(मरनी अन्दरसँ चटाइ आनि बिछा देलक।)
मंगल- मालिक सभ प्रणाम। आइ केम्हर सुरूज लगलै हेन? बैसै जाइ जाउ, मालिक सभ। (कियो नै बजै छथि।)
चन्द्रेश- (खिसिआ कऽ।) मंगला, पहिने तूँ अपन बेटाकेँ पूछ-की केलकौ हेन?
मंगल- की केलही मालिककेँ?
इंजीनियर- हम कहाँ किछु केलियनि मालिककेँ?
ब्रह्मानंद- मालिककेँ नै, मालिकक बेटीकेँ?
इंजीनियर- से मालिक, अपन बेटीकेँ पूछथुन जे ककर दोख?
ब्रह्मानंद- केकरो दोख छै ने रउ?
इंजीनियर- प्रेमसँ केकरो दोख नै होइ छै। जेतए प्रेम छै तेत्तै ईश्वर छै।
नरेश- हमहूँ एतए एकरा माएसँ प्रेम करबै। तँ ईश्वर रहतै ने?
भद्रेश- अखनि प्रेमसँ तोरा बापक मुँहपर दू चाट दिऐ। तँ ईश्वर रहतै किने?
उग्रेश- प्रेमसँ केरो बहुकेँ लऽ कऽ भागि जाइ। तँ ईश्वर रहतै किने ओतए?
सुरेश- हम तोरा बहिनसँ बिआह कऽ लेबौ। तँ ईश्वर रहतै की नै?
मंगल- मालिक सभ, अहाँ सभ एना किअए बजै छिऐ अर्र-बर्र बताह जकाँ।
महेश- जखनि हम सभ बताहे छी तखनि हरामी बच्चा इंजीनियरबाकेँ दू चाट दिऐ तँ केहेन मन हेतै सारकेँ।
(महेश कहैत मातर इंजीनियरकेँ दू चाट गालपर बैसा देलक। सभ कियो लुधकि गेल। चन्द्रेश आ ब्रह्मानंद ठाढ़ छथि। मरनी हमरा बेटाकेँ मारि देलक मारि देलक चिचिआ रहल अछि। इंजीनियर बेहोश भऽ खसि पड़ल। तैयो मानाइ नै छोड़ै जाइए। बढ़ियाँ जकाँ मारि भऽ रहल अछि।)
चन्द्रेश- मंगला दुनू परानीकेँ छोड़ि दइ जाही। एकरा सबहक कोनो दोख नै छै। (दुनू परानीकेँ कियो ने मारैए। इंजीनियर मरनासन भऽ गेल।)
आब हरामीकेँ छोड़ि दही। सारकेँ कनियोँ दिमाग हेतै तँ आब एहेन काज केतौ नै करत। हरामी बच्चा, जही पातमे खेलक ओही पातमे छेद केलक। (सभ कियो छोड़ि देलक। सभ हकमि रहल अछि।)
महेश- बेकारे मारै जाइ गेलही। सार अही बेत्थे मरि जेतै। आब हमरा एकरापर बड़ दया अबै छौ।
चन्द्रेश- मरए दही, हरामी बच्चाकेँ। अपना सभ चलै चल।
(सातो गोटेक प्रस्थान।)
पटाक्षेप।
छअह दृश्य-
(स्थान- मंगलक घर। मंगल आ मरनी चिन्तित मुद्रामे बैसल छथि। इंजीनियर रोगी जकाँ बैसल छथि।)
मंगल- बौआ, काल्हि एना किअए भेलै, से किछु नै बूझि सकलिऐ? की केने छेलही हुनका?
इंजीनियर- हुनकर बेटीसँ हमरा प्रेम भऽ गेलै और कोनो बात नै।
मरनी- ई नीक बात तँ नै भेलै। उ ब्राह्मण छथिन आ अपना सभ डोम। उ बड़ अमीर छथिन आ अपना सभ बड़ गरीब छी। अपना जातिमे लड़िकी नै छै जे तूँ ओते ऊँच जातिमे पैसलेँ।
इंजीनियर- माए, प्रेममे ऊँच-नीच नै देखल जाइ छै।
मरनी- हौ दुखन बाउ, उ जे अपना सभकेँ एते मारलक हेन से हमर विचार अछि जे थाना जाइ आ तोहर की विचार?
मंगल- रूक, हम कनी मणिकांत मालिककेँ बजेने अबै छी। एहेन तरहक कोनो काज बिना सोचने-विचारने नै करबाक चाही। तूँ दुनू माइ-पूत गप-सप्प कर आ हम अबै छी। (मंगलक प्रस्थान।)
मरनी- तूँ जे कहलिही प्रेममे ऊँच-नीच नै देखल ाजइ छै, से किअए?
इंजीनियर- कारण आन्हर होइ छै।
मरनी- लोक धिया-पुताकेँ अहीले पढ़बै-लिखबै छै?
इंजीनियर- नै माए, प्रेम मुर्खोमे होइ छै। प्रेमक कोनो सीमा नै छै।
मरनी- ऐसँ फेदा की छै?
इंजीनियर- ऐसँ मानवता अबै छै। ऊँच-नीचक भेद-भाव हटै छै। बड़का-छोटका एक हेतै। तब समाजक विकास हेतै।
मरनी- एकर चिन्ता तोरे किअए छौ?
इंजीनियर- जाबे एकर चिन्ता केकरो हेतै नै आ उ बीड़ा उठेतै नै ताबे समाजक विकास केना हेतै?
मरनी- बीड़ा उठबैक फल भेटलौ। बढ़ियाँ भेलै ने?
इंजीनियर- कोनो बीड़ा उठबैबलाकेँ ई सभ परेशानी झेलैए पड़ै छै। महात्मा गाँधीकेँ देश स्वतंत्र करबैमे कोन-कोन परेशानीक सामना करए पड़लनि।
(मंगलक संग मणिकांतक प्रवेश।)
मालिक प्रणाम। बैसल जाउ। (इंजीनियर कुरसीपर उठि निच्चाँ बैसलथि आ मणिकांत कुरसीपर बैसला।)
मणिकांत- कह बौआ, एना किअए भेलौं?
इंजीनियर- चन्द्रेश मालिकक बेटी आ हम बंगलूरमे रहै छी अपन-अपन डेरामे। दुनू गोटे एक दिन अचानक पार्कमे मिल गेलौं। गप-सप्प भेल। ऊहो प्रेम संबन्धी नै, एकदम सामान्य। तूँ की करै छेँ तँ तूँ की करै छेँ? फेर हम अपन डेरा चलि गेलौं।
दूर दृष्टि रहने एक दिन उ हमरा डेरापर पहुँच प्रेम संबन्धी गप-सप्प करए लगली। हमहूँ दूर दृष्टिक आदर करैत ओकरा हँ कहि देलिऐ। तेकरे सजा हम भोगि रहल छी। अस्सल गप इहए छै।
मणिकांत- बात बुझा गेल। तोरा सबहक बात बुझए बला समाज अखनि नै भेलै हेन। रसे-रसे हेतै। तूँ सभ जाित-प्रथाकेँ तोड़ैक दृष्टि रखि ई काज करै जाइ गेलेँ। की हमर अनुमान गलत छै?
इंजीनियर- हण्ड्रेड परसेन्ट सत्य। अपने सभ बड़ अनुभवी छिऐ। अहीं सभ जकाँ जौं समाजक कर्णधार हुअए तँ समाजक आशातीत कल्याण हएत।
मणिकांत- तूँ सभ भरिसक बड़का यानी ऊँच आ छोटका यानी नीचकेँ एक करैक परियास कऽ रहल छिही।
इंजीनियर- जी, जी। लगैए, अपने अंतर्यामी होइ।
मणिकांत- नै नै। अंतर्यामी तँ ईश्वर छथिन। समाजक जे समस्या देखै सुनै छी आ अनुभव करै छी। तइ अधारपर बजलौं। मंगल, एकरा सबहक परियास एकटा पैघ बीड़ा छै उ बीड़ा भविसक लेल नीक छै। आब की कहै छह से कहह।
मंगल- मालिक, दुखन माएक विचार छै जे थाना जाइ। अहाँक की विचार?
मणिकांत- हमरा विचारे थानाक चक्करमे नै पड़ह। गरीब आदमी छह। हरान-हरान भऽ जेबह। उ सभ पाइबला छै। सभकेँ जहल खटा देतह। उचित-अनुचितक फैसला होइमे बड़ समए लगै छै। उजड़ल-उपटल छह। कनी बर्दाशे कऽ कऽ चलल। समाजेमे सरपंच साहैबसँ फैसला करा लैह। ऊहो बड़ अनुभवी छथि। एम.ए.,एल.एल.बी. छथिन। तँए ने अपन रामनगर पंचाइतमे िनर्विरोध चुनल गेलखिन। दूध-पानि बेरबैक उद्भुत क्षमता हुनकामे छन्हि। अपन पंचाइतक टी.एन.सेशन छथिन ओ। ऐसँ आगू तोरा सबहक अपन विचार।
मंगल- मालिक, हम अपनेकेँ सभ दिन मानैत रहलौं आ मानैत रहब। अपनेक देखाएल रस्तापर चललौं। तँए बेआ, आइ इंजीनियर अछि। हम अहाँक कहल अबस्स करब।
मणिकांत- तहन काल्हि पंचैती करा लैह।
मंगल- बेस मालिक। मुदा पंचैतीमे अहां रहबेटा करबै।
मणिकांत- बेस, काल्हि अबस्स रहबै। अखनि जाए दैह। (मणिकांत दासक प्रस्थान।)
मंगल- दुखन माए, आब काल्हि देखही की होइ छै?
पटाक्षेप।
सातम दृश्य-
(स्थान- गामक मिडिल स्कूलक। पंचैतीक तैयारी। स्कूलपर मंगल, इंजीनियर, रबीया आ मणिकांत उपस्थिति छथि।)
मणिकांत- की हौ मंगल, नअ बजेक समए छेलै आ साढ़े नअ बजि रहल अछि। अखनि धरि ओ सभ कहाँ कियो एला। सरपंच साहैब सेहो नै पहुँच सकला।)
मंगल- कहने तँ छियनि आ ऊहो कहने छथि जे अबस्स आएब।
(सरपंच साहैब-मोतीलालक प्रवेश। सभ कियो उठि गेला। प्रणाम-पाती भेल। मोतीलाल कुरसीपर बैसला। मणिकांत सेहो कुरसीपर बैसला। मंगल, इंजीनियर आ रबीया निच्चाँमे बैसला।)
मोतीलाल- मंगल, हम अदहा घंटा लेट छीअ से हमरा माफ करिहअ। की करबै, बड़ फाइल रहै छै। टुनटुनमा बकरीसँ उनटे कलम खिआ लेलकै आ कलमबलाकेँ मारबो केलकै। तहीक पंचैतीमे देरी लगि गेल।
ओइ पाटीकेँ नै देखै छिऐ।
मंगल- की जानए गलिऐ, उ सभ किअए ने आएल?
रबीया- भैया रौ, नै बुझै छिहीन चोर केतौ इजोत सहैए।
मोतीलाल- केतौ किछु नै बाजि दी। अबिते हेता। कोनो जरूरी काजमे बाझि गेल हेता।
(चन्द्रेश आ ब्रह्मानंदक प्रवेश। प्रणाम-पाती भेल। दुनू आदमी कुरसीपर बेसला।)
चन्द्रेश, बड़ देरी भेल?
चन्द्रेश- ब्रह्मानंदक पत्नीकेँ बच्चा होइबला छै। पत्नीकेँ अस्पताल पठबैक जोगारमे ई लागल रहथि। कहै छला, हम अस्पताल जाएब। हम हिनका जबरदस्ती अनलियनि।
मोतीलाल- हिनका नै अनक चाही अहाँकेँ। कारण हिनका कोन जरूरी हेतनि कोन नै। आखिर पति छथिन ने?
चन्द्रेश- ठीक छै हिनका जल्दीए छोड़ि देबनि।
मोतीलाल- चन्द्रेश बाबू, और कियो एता अहाँ दिसक?
चन्द्रेश- कहने तँ कएक गोटेकेँ छियनि। मुदा ओइमे जे सभ अबथि।
रबीया- सरपंच साहैब, उ गुंडा सार सभ कहाँ एलै जे हमरा भैया-भौजी आ भतीजाकेँ अधमौगति कऽ मारलक?
मोतीलाल- चूप बुरबक, पंचैतीमे लोक अंट-संट नै बजै छै।
रबीया- हँ यौ सरपंच साहैब (मुडी डोला कऽ) हम डोम छी, छोटका छी तँ बड़ बुरबक आ जे हमरा घर पैस हमरा सभकेँ मारलक-पीटलक से बड़ काबिल।
मोतीलाल- नै बौआ, से बात नै छै। अस्सल बात ई छै जे कर्म गुणे लोक बुरबक-काबिल होइ छै।
(रामानंद, कृष्णानंद, चन्द्रकांत, उमाकांत, शोभाकांत आ इन्द्र नारायणक प्रवेश। सभ कियो प्रणाम-पाती कऽ निच्चाँमे बैसला।)
और कियो एता, चन्द्रेश बाबू?
चन्द्रेश- आइबो सकै छथि। ताबे पंचैती शुरू करू। बड़ लेट भऽ रहल अछि। अहूँकेँ बड़ फाइल रहैए।
मोतीलाल- आब पंचैती शुरू कएल जाए?
सभ कियो- जी, कएल जाए।
मोतीलाल- मंगल, तूँ पंचैती किअए बैसेलहक?
मंगल- चन्द्रेश मालिक हमरा सभ परानीकेँ पाँचटा गुंडासँ पीटबौलथि आ अपने ठाढ़ रहथि। हमर बेटाकेँ अखनि धरि होश नै अछि। पकड़ि कऽ अनलौं हेन।
मोतीलाल- की यौ चन्द्रेश बाबू, ठीक बात छिऐ?
चन्द्रेश- बिल्कुल ठीक अछि। मुदा, मंगलासँ पुछियनु जे ओकर बेटा हमरा बेटीसँ प्रेम करै छै। से किअए? अँए यौ सरपंच साहैब, धनि हम जे आकर बेटा पढ़ि-लिखि कऽ इंजीनियर बनि सकल आ से हमरे बेटीपर हाथ फेर दिअए।
मंगल- सरपंच साहैब, हिनका पुछियनु जे हमरा बेटाकेँ इंजीनियर बनैमे केते पाइ अपना दिससँ मदति केलखिन। हँ एगो गुण नै बिसरबनि जे बेरपर किछु समान लऽ कऽ जाइ छेलियनि तँ उचित सँ बड़ कममे जरूर लऽ लइ छेलखिन।
चन्द्रेश- हम तँ उचितसँ बेसी दइ छेलिऐ। मुदा एकरा कम बुझाइ छेलै। तहन हमरा ऐठाम किअए अबै छल?
मंगल- हमर पसारी छथिन आ गामक मािलक छथिन तँए।
मोतीलाल- अहाँ सभ ई उकटा-पैंची छोड़ै जाइ जाउ। मंगल, तोरा बेटासँ पुछै छिअ जे उ हिनका बेटीसँ प्रेम करै छै की नै?
इंजीनियर- जी करै छिऐ।
मोतीलाल- चन्द्रेशक बेटी तोरासँ प्रेम करै छह की नै?
इंजीनियर- ई जवाब हिनकर बेटीसँ लेल जाए श्रीमान्।
मोतीलाल- चन्द्रेश, अपन बेटीकेँ बजाएल जाए।
चन्द्रेश- ब्रह्मानंद अहाँ घर चलि जाउ। बुच्चीकेँ किनको संगे जल्दी पठा देब आ अहाँ अस्पताल चलि जाएब।
ब्रह्मानंद- बेस हम जाइ छी। (ब्रह्मानंदक प्रस्थान।)
चन्द्रेश- सरपंच साहैब, कहू तँ, केतए ब्राह्मण आ केतए डोम। जमीन असमानक फरक छै। हमर प्रतिष्ठा आ मंगलाक प्रतिष्ठा दुनू कहियो एक रंग भऽ सकैए? डोम आ ब्राह्मणमे बिआह केकरो सोहेतै? तइमे हमर जातिमे केहेन लगतै। उ सभ हमरा जीअ देता? जाति प्रबल होइ छै आ प्रतिष्ठा बड़ी कठिनसँ भेटै छै।
मोतीलाल- अच्छा, बेटीकेँ आबए दियनु। स्थिति-परिस्थिति कबूझब तहन ने कोनो िनष्कर्ष निकलत। ओना आजूक समाजक जे बेवस्था छै, तइमे अहाँक कहब ठीक अछि। ममिला तँ अहां आ मंगलबला नै छै। अहाँ दुनू आदमी समाजक बेवसथा बुणे ठीक छी। मुदा दुनूक बेटा-बेटीमे कोन तरपेस्की छै, से तँ दुनू प्रत्यक्ष हएत, तहने बुझबै।
(डाक्टर आ डाक्टरक पितियौत बहिन उमाक प्रवेश। दुनूकेँ मोतीलाल कुरसीपर बैसैक आदेश देलनि। दुनू कुरसीपर बैस गेली।)
बुच्ची, अहाँ आ दुखनक बीच कोनो संबन्ध अछि?
डाक्टर- जी, उ हमर प्रेमी छथि।
मोतीलाल- एकतरफा आकि दूतरफा?
डाक्टर- दूतरफा। कोइ केकरोसँ कम नै।
मोतीलाल- तहन ओइ वेचाराकेँ किअए पीटबौलिऐ?
डाक्टर- (अकचकाइत) हम, नै तँ, नै, हमरा किछु नै बूझल अछि।
मोतीलाल- की दुखन, बात सत्य छिऐ? हाथ एकरे भऽ सकै छै?
इंजीनियर- बात तँ बिल्कुल सत्य छै। मुदा चन्द्रप्रभाक हाथ नै भऽ सकै छै, नै भऽ सकै छै, नै भऽ सकै छै।
चन्द्रेश मालिकक प्रत्यक्षक घटना छी।
डाक्टर- हमर पापा एहेन घटिया काज केलथि, एहेन घटिया काज केलथि, एहेन घटिया काज केलथि? नीक नै केलथि, नीक नै केलथि, नीक नै केलथि।
(अचेत भऽ खसि पड़ै छथि। चन्द्रेशक समांग चन्द्रप्रभामे लगि जाइ छथि। दुखन चन्द्रप्रभाक मुँहपर अपन बापक गपछासँ हौंकए लगै छथि। चन्द्रेश दुखन आँखि लाल-पीअर कऽ रहलए। उमा पानि आनि आकर मुँह पोछैए। कनीकाल पछाति चन्द्रप्रभा होशमे एली। की भेलै, की भेलैक हल्ला शांत भेल।)
मोतीलाल- बुच्ची, आब ठीक छी?
डाक्टर- (मुड़ी डोला कऽ) हँ।
मोतीलाल- किछु और सवालक जवाब दऽ सकै छी?
डाक्टर- जी, बढ़ियाँ जकाँ।
मोतीलाल- अहाँकेँ ओना किअए भऽ गेल छल?
डाक्टर- ई घटना जे हमर पापा दुआरा कएल गेल, हमरा एक्को रत्ती पसीन नै। हमर दिल ओकरा बरदास नै कऽ सकल।
मोतीलाल- अहाँ सभ डाक्टर-इंजीनियर छी। जातिक वा आर्थिक दृष्टिसँ बहुत ऊँच-नीच छी। तइमे प्रेम किअए भेल?
डाक्टर- श्रीमान्, प्रेममे जाति-पाति वा अमीर-गरीव नै देखल जाइ छै।
मोतीलाल- किछु उदेस अछि की?
डाक्टर- बड़ पैघ उदेस अछि। बड़ पैघ बीड़ा अछि।
मोतीलाल- की उदेस अछि?
डाक्टर- जाति-प्रथाकेँ खतम केनाइ।
मोतीलाल- दुखन, अहूँक किछु उदेस अछि?
इंजीनियर- जी, अबस्स अछि। ऊँच-नीचकेँ एक केनाइ।
मोतीलाल- बात बुझा गेल। ई सभ अही दुआरे प्रेमक दुनियाँमे पएर देलक हेन।
आब अगिला कार्यक्रम की अछि?
इंजीनियर- अगिला कार्यक्रम हमरा सबहक बिआह अछि।
मोतीलाल- की बुच्ची, अहाँकेँ ई उचित बुझाइए?
डाक्टर- उचिते नै, महा उचित।
मोतीलाल- की चन्द्रेश बाबू? अहाँ किछु नै बजै छी?
चन्द्रेश- की बाजी, किछु नै फुराइए।
मोतीलाल- बुच्ची अहाँ आ दुखन अपन-अपन घर जाउ।
(डाक्टर, उमा आ दुखनक प्रस्थान।)
चन्द्रेश बाबू, ममिला बड़ गड़बड़ अछि। ई सभ नै मानैबला अछि। एकरा सबहक संग कोनो परियास काज नै करत। बेकारमे बेज्जति हएत। कानूनो एकरे संग देतै।
चन्द्रेश- किछु हेतै, हम एकरा नै मानब, नै बरदास कऽ सकब।
मोतीलाल- तहन पंचैतीक कोनो महत नै। सएह ने?
चन्द्रेश- नै, महत तँ बड़ छै। अपने बुजुर्ग छिऐ, बड़ अनुभवी छिऐ। उचित फैसला करिऔ।
मोतीलाल- देखियौ, हम तँ अपना भरि उचितोचित फैसला करब। पाटीकेँ पीक लगै वा अधला, ओइसँ हमरा कोनो मतलब नै? की हौ मंगल, तोहर की विचार?
मंगल- मालिक, नअ करिऐ आकि छअ करिऐ। सभ मंजूर।
मोतीलाल- आब हम फैसला देमए चाहै छी। ऐ बीचमे किनको किछु बाजबाक अछि तँ बाजि सकै छी।
(कनीकाल कियो किछु नै बजै छथि।)
अखनि धरि अहाँक फैसला सराहनीय रहल अछि। अहाँपर सभकेँ बिसवास छन्हि।
चन्द्रकांत- अहाँक फैसलामे दूध-पानि बेरा जाइए। अहाँक फैसला जे काटत, से दोखी भऽ सकैए।
रबीया- अहाँक फैसला ले लोक केतए-केतएसँ अबैत रहैए। बिना कारणे टिटही नै लगै छै।
मोतीलाल- तहन हमर फैसला सुनै जाइ जाउ।
जाति एक्केटा अछि, मनुक्ख जाति। वैज्ञानिक लोकनि एकरा होमोसेपिएन्स कहै छथि। हम सभ अपन वर्चस्व लेल जाति अलग-अलग बनबै छी जेइमे अपन-अपन स्वार्थ लेल हरिदम झगड़ होइत रहैए। जाति-प्रथासँ मानसिक तनाव बढ़ैए आ समाजक विकास रूकैए। कर्मक प्रधानता छै। कर्मसँ ऊँच-नीच होइ छै। जइ मनुक्खक कर्म नीक छन्हि, ओ गुणगर छथि, ओहए ऊँच छथि। गुणक प्रधानता रहक चाही। डाक्टर आ इंजीनियरक सोच ऊँच छन्हि। तँए दुनूक प्रेमकेँ हम स्वागत करै छियनि। सहर्ष दुनूक बिआह हेबाक चाही।
(थोपरीक बौछार भऽ रहल अछि।)
मुदा बिआहोपरांत दुनूक संबन्ध राम-सीता जकाँ हुअए। लिखो-फेंको पेन जकाँ नै। (थोपरीक बौछार भेल।)
धनिक लोक यानी ऊँच लोक गरीब लोक यानी नीच लोकक परिश्रमसँ ऊँच होइ छथि। बदलामे उ गरीबक शोषण करै छथि। ई मानवताक विरूद्ध भेल। हमरा विचारे ऊँच-नीच दुनू एक-दोसरक उपकारकेँ मानथि आ अपन-अपन अधिकार-करतबमे तिरोटी नै करथि। तहने समाजक विकास संभव हएत। (थोपरीक बौछार भेल।)
मंगल दुनू परानीकेँ चन्द्रेश पीटबेलखिन। ई हिनकर गलती भेलनि। ऐ प्रेम प्रसंगमे मंगल दुनू परानीक कोनो दोख नै छन्हि। ऐ गलती लेल चन्द्रेशकेँ जुर्माना लगतनि।
(थोपरीक बौछार भेल। चन्द्रेशक मुड़ी निच्चाँ भऽ जाइए।
रबीया- सरपंच साहैब, पंचैती खतम भऽ गेल ने?
मोतीलाल- नै कनी और छै।
रबीया- कनी जल्दी करियौ। हमरा कनी पोखरि दिस जाइक अछि।
मोतीलाल- तँ पहिने पोखरि दिससँ भऽ आबह। तहन पंचैती सुनिहअ।
रबीया- सार सभकेँ ओकाइत रहै छै नहियेँ आ पुड़ी-जिलेबीक भोज करत। सड़लाहा डलडामे पुड़ी छानत तँ कमो-समो खाएब तँ पेट खराब हेबे करत। अहाँक पंचैती सुनैमे बड़ नीक लगै छै। जाधरि बरदाश हएत अबस्स सुनब।
मोतीलाल- देखिहअ, धोतीमे नै भऽ जा।
पंचैतीमे उपस्थित महानुभावसँ हमर आग्रह जे हमर फैसलापर जदी कियो टिप्पणी करता हुनका हम स्वागत करबनि।
रबीया- सरपंच साहैब, हमरा कहलिऐ कनी और दै, से कहाँ कहलिऐ? ओइ दुआरे हम पोखरि दिस नै जा रहल छी।
मोतीलाल- हँ, जुर्माना की केना लगतनि? से छुटलै अछि आ फैसलाक कागत बनेनाइ छुटल अछि।
किनको कोनो तरहक विरोध बेक्त करबाक हुअए तँ बेहिचक बेक्त करी।
(सभ कियो गुम्म रहै छथि।)
की चन्द्रेश, अपनेकेँ ई फैसला मान्य अछि?
चन्द्रेश- (कनीकाल गुम्म भऽ) रहब तँ समाजेमे। जदी संपूर्ण समाजकेँ मान्य छन्हि तँ हम केना कही जे हमरा अमान्य अछि। हमरो मान्य अछि। (मुड़ी झूका लइ छथि।)
मोतीलाल- तहन बिआहक की केना करबै?
चन्द्रेश- अपने जे जेना कहिऐ।
मोतीलाल- मंगल, तूँ बिआहकेँ की केना करबहक?
मंगल- हम किच्छो नै बाजब, सरपंच साहैब। अपने सबहक विचारे विचार।
मणिकांत- श्रीमान्, अपने जे कहबै, ओकर आदर सभ कियो करता।
मोतीलाल- तहन हमर विचार अछि जे डाक्टर-इंजीनियरक बिआह आइए, अखनि आ एत्तै भऽ जाए।
(थोपरीक बौछार भऽ गेल।)
दुनू पक्ष तत्काल कम-सँ-कम खर्चमे निमहि जेता। भोज-भात बिआहोपरान्त करै जाइ जेता। (थोपरीक बौछार भेल।)
मुदा एकटा आवश्यक बात चन्द्रेश बाबूकेँ कहए चाहै छियनि। ओ ई जे गुणगर बेटीकेँ गुणगर बर भेटलनि तँए डालीमे एककट्ठा बास-डीह दिअ पड़तनि।
(थोपरीक बौछार भेल।)
और जुर्मानामे ओइपर काज चलैबला घर बनाबए पड़तनि। (थोपरीक बौछार भेल।)
गोर लगाइमे अपन जमाएकेँ जे देथुन वा नै देथुनहम किछु नै कहबनि।
की चन्द्रेश, मनोमान अछि किने?
चन्द्रेश- श्रीमान्, जाइतो गमेलौं, सुआदो ने पेलौं।
मोतीलाल- अस्सल सुआद तँ अहाँ पेलौं आ पएब। योग्य बेटीकेँ योग्य बर भेटलनि। ई सभसँ पैघ सुआद भेल। दोसर समाजमे मानवता एत्तै। ऊहो सुआद कम नै बुझियौ।
चन्द्रेश- जे कहिऐ अपने।
मोतीलाल- औपचारिक तौरपर एगो कागत बनेनाइ आवश्यक अछि जे दुनू पक्षकेँ समैपर काज आबए।
(मोतीलाल कागत लिखलनि। दुनू पक्षसँ हस्ताक्षर/निशान लेलनि। किछु गवाहीक हस्ताक्षर/निशान सेहो भेल। एक प्रति कागत चन्द्रेशकेँ देलखिन आ दोसर प्रति मंगलकेँ देलखिन।)
दुनू पक्ष बिआहक तैयारी करू। चट मंगनी पट बिआह।
(मंगल आ चन्द्रेशक प्रस्थान।)
जाधरि समाजमे ई सभ परिवर्तन नै हएत ताधरि समाज पछुआएल रहत। आ समाजे पछुआएल रहत तँ देश कहियो आगू नै बढ़ि सकैए।
रबीया- सरपंच साहैब, आब बरदाश नै हएत। कनी अबै छी पोखरि दिससँ। चाह-नाश्ता हमरोले रहए देबै।
मोतीलाल- जा, जाल्दी आबह। (रबीयाक प्रस्थान। मंगल मरनी आ इंजीनियरक प्रवेश। चन्द्रेश आ ब्रह्मानंदक प्रवेश। चन्द्रेशक पक्षमे चाह-पान-जलखैक जोगार अछि। डाक्टरक संग उमा, आ चारि-पाँचटा दाइ-माइक प्रवेश। बर-कनियाँ कुरसीपर बैसलथि।)
चन्द्रेश बाबू, आब अपने सभ अगिला कार्यक्रम देखियौ। हमरा चलबाक आज्ञा देल जाए। करीमनगर जेबाक अछि पंचैतीमे।
चन्द्रेश- ई नै भऽ सकैए। अहाँकेँ रहै पड़त।
(परमानन्द आ कृष्णानंदक प्रवेश।)
मोतीलाल- जदी हमरा रहै पड़त तँ जे करब से जल्दी करू।
चन्द्रेश- ब्रह्मानंद, जलखै चलाउ।
(ब्रह्मानंद, परमानंद आ कृष्णानंद जलखै चला रहल छथि। फेर पानि चलल। चाह चलल। रबीयाक प्रवेश।)
रबीया- सरपंच साहैब, हमरो ले छै आकि सधि गेलै?
मोतीलाल- तूँ बड़ देरी लगा देलहक। लगैए सधि गेल हेतै।
रबीया- अँए यौ, भरि मन पोखैरो दिस नै केलौं आ नश्तो छूटि गेल। एहने बेवस्था?
मोतीलाल- चन्द्रेश बाबू, एगो जलखै छूटि गेल अछि।
चन्द्रेश- के छूटल छथि?
रबीया- हम छूटल छी।
चन्द्रेश- ब्रह्मानंद, रबीया जलखैमे छूटल छथि।
(परमानंद रबीयाकेँ जलखै देलनि। खाइते-खाइते कछमछाइत धोतीक ढेका पकड़ि रबीयाक प्रस्थान।)
मोतीलाल- चन्द्रेश बाबू, आब बड़ देरी भऽ रहल अछि हमरा। अगिला कार्यक्रम जल्दी कएल जाए।
चन्द्रेश- जनानी सभ, जयमाला करबै जाइ जाउ।
ब्रह्मानंद, अहाँ सभ पान चलाउ।
(जनानी सभ जयमाला करबै छथि। ब्रह्मानंद परमानंद आ कृष्णानंद पान चलबै छथि। जयमाला भेल। थोपरीक बौछार भेल। रबीयाक प्रवेश। चन्द्रेश-मंगल आ ब्रह्मानंद-रबीयामे फुटा-ॅफुटा समधी मिलन भेल। थोपरीसँ सभा गूंजि रहल अछि। बर-कनियाँ श्रेष्ठ जनकेँ पएर छूबि प्रणाम केलनि। सभ कियो असीरवाद देलखिन। बर-कनियाँ दर्शककेँ कर जोड़ि प्रणाम कऽ रहल छथि।)
पटाक्षेप।
इति शुभम्।
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