जड़ उपवनमे सुमन फुलाैल यौवन महमह भान अय।
श्रैंगारिक वेलामे सपनहिं
प्रियतम छूलनि कपोल हमर।
अर्द्ध निन्नमे चिहुँकल जहिना,
सासु मरोड़लि लोल हमर।
अभिनव औता आजु सुनल दुरभाषमे अपने कान अय।
जड़......।
झट उठि देखल धर्म मातृ केर,
आनन परिमल पुष्प बनल।
पूत दर्शनक आशमे डुमलि,
मंजुल मुसकी पनकि रहल,
चलू रम्भा भंडार चढ़ाबू हेता भुखल अहँक पराण अय।
जड़......।
असमंजसमे दुहु भैरवी,
मातृक लोचन सुधा भरल।
बामा हम तँ नेहक लुत्ती,
तनय अनल प्रेम धधकि रहल।
जननी हृदए छोहसँ आकुल स्वार्थहि हमर जहाँन अय।
जड़......।
चरण छूबि नाथक माता केर,
कएलौं चटपट स्नान हम।
कुमकुम केसर जूही चमेली,
कुलदेवी गमगम अनुपम।
देवकी नन्दन बंसी बजाबथु बोरि-बोरि द्राक्षा तान अय
जड़......।
संभवि अहाँ ननदि नै अनुजा,
बनि कम कएलौं ताप हमर।
नै तँ फँसि विरहक संतापे,
पीब लेतौं कखनौं जहर।
आनब उपहारेमे अहीं लेल विज्ञ, धान्यवर चान अय
जड़......।
छेलौं रैनि केर निर्वांणक प्रतीक्षा करैत।
केना काटब ऐ संतापी जामिनीकेँ,
ओ तँ छेली हमरे कटैत।
झकझोड़ि देलक अन्तर्मनकेँ
नैनाक पूछल अंतिम प्रश्न-
अहूँ अहिना करब की?
पददलित केलक विष रहित फनकेँ।
दुहू नैन नोरसँ सरावोरि,
देलनि हमर आत्माकेँ मड़ोरि।
निःछल करूणामयी भऽ भाव विभोर
देखए लगलौं अवलाक धधकैत ज्वार
सुनैत गेलौं सुनैत गेलौं।
निरूत्तर हमर बेथा क्षीण भऽ गेल-
मंचसँ नेपथ्य भरिगर लागल
की सोचैत छेलौं? वास्तविकता......।
चाननक सेजपर पड़लि अर्धांगिनी
धान्य, रजत, कांचन, भरल......।
मुदा! सदिखन खसैत् वेदना केर दामिनी?
छल अपूर्ण यौवन अतृप्त नैन
हा! तात केना कएल वरन
एक गाही वयसक सुकन्या केर
कंतक वयस पचपन......।
गामक चुलबुली मोनालिसा
कुहरि रहलि कनक गृहमे-
असहाय तातक देल विपदाकेँ
भोगि रहलि जोगि रहलि।
केना पार करती लछिमन रेखा-
अपन विंहुसल हिलोरकेँ
केतए करती प्रस्फुटित
हमरासँ कएली अपन पीड़ा प्रकट
पाषाणी नर कऽ देलनि जीवन विकट
बूढ़ कंतक डोलि गेल आसन
शंकाक अजगर तोड़ि देलक प्रीति स्तंभ
कठोर आदेश देलनि अपन दाराकेँ-
आजुक पश्चात्पर पुरूषसँ गप्प
कथमपि नै करब
नै तऽ?
हम अचंभित सुन्न शिथिल
कलंकित चरित्र लऽ कऽ
धूरि गेलौं निःतरंग अपन पुरान पथपर
काॅपि रहल दुहु पग......।
कोन अपराध कएलौं
हम तँ छेलौं पोछैत नोर।
अतृप्त नैनसँ झहरैत नोर।
ठिठुरल कदम्ब जमुना ठहरल सखी हँसी उड़ौल अर्पणकेँ।
विकल जड़ चेतन नभ धरती,
जल बुन्न बनल घन घनन घटा,
त्रासित राधा मन अछि परती।
नवनीत......।
सभ जनितो अहाँ अनजान बनल,
भेटत की जन संहारेसँ,
अवला चित्कार आ नोर भरल।
नवनीत......।
जनिक नाथ लुप्त भू आंचलसँ,
संगहि करूणित वृन्दा-मथुरा,
लेब पाप सभक युद्ध माॅचत जँ,
नवनीत......।
डुमू पीयूष राधा-रसमे,
उत्ताप प्रेम तिल सुनगि रहल
नै आब ई यौवन अछि वशमे
नवनीत......।
कंत विनय विवश केतए रे हीय ‘आरती’ हराएल।
सुनू शिव छलिया स्वांगी बनि हमरा विरहएलौं,
संग महादेव नाम दियरकेँ कलंकित कएलौं
मधुप......।
हम कएल केतेक अनुग्रह रे अहूँ हमरा वचन देल,
मंजुल मिलन केतए गेल रे, केतए बात कलित गेल,
मधुप......।
हम अभागलि मैथिली रे, अपनै देल घात,
नुपूर खनकि दुःख कातर रे, तोड़ल दामिनी गात,
मधुप......।
विकल मल्हार सुनि शिव, आनन हँसीसँ उमड़ाएल,
जुनि हहरू सिये, अहँक लखन रघुवर संग आओल,
मधुप......।
टिहुकि उठल ना।
मूक शिशिर पुचकारथि केना?
दूर द्वीप सजना।
जामिनी बनल कंत बिनु विजन,
तरूणी माघ मनाैल क्रन्दन,
सरस वसन्त क ललित रात्रिमे-
हहरै कंगना।
प्रियतम......।
दादुर ठहकए तृप्ति सरोवर,
अश्रुधारसँ सींचित कोबर,
कीर मृदुल सुनि चैतो बीतल,
विह्वल नैना।
प्रियतम......।
अहँसँ सिनेहक धंधा कएलौं,
पौन आस बैशाख बुड़एलौं
हृदैक मीन नीर बिनु व्याकुल -
सुन्न पलना।
प्रियतम......।
जेठक रौदी काटि रहल छल,
सूखल कानन झाँटि रहल छल,
उदधि अकासे जलसँ तिरपित-
लवालव अँगना।
प्रियतम......।
सौन-भादो मौन मनाैल,
तुहिन गात तर आश्विन आएल,
कातिक-अगहन बिहुँसथि -
पूस मांगै छथि ललना।
प्रियतम......।
मिथिला हम चललौं, टाटानगरीसँ आइ अय।
अहाँ जौं एना रहब तँ हम केना जीअब,
सदिखन कनिते-कनिते बेथे जहर पीअब।
एना अहाँ रूसब तँ हम कऽ लेब दोसर सगाइ अय,
मिथिला......।
अहाँ केर रूप देखिते कामदेवो कानैत छथि,
‘‘मृगनयनी‘‘ केँ ओ उर्वशी मानैत छथि।
बिहुँसल मादक घुघना लागै लौंगिया मिरचाइ अय,
मिथिला......।
छगनलाल ज्वेलरीसँ कनक हार लाएब,
आजु रैन पूनमकेँ, पार्कमे घुमाएब।
हहरल मनक तृष्णा, नै बनू हरजाइ अय,
मिथिला......।
ऊठू प्रिये, अहाँ जल्दी नहाबू,
कोप भवनसँ उठि कऽ लगमे आबू।
मंदहि मुस्की मारू, हम अनलौं अछि मलाइ अय,
मिथिला......।
बतही काकीक हाथ रूमाल।
अध वयसि चोकटलही भौजी,
बाट पसारलि प्रेमाजाल
मैथिली कुहरथि पर्णकुटीमे,
सूर्पनखा बनली रानी।
नेना पेट क्षीर बिनु आकुल,
मोबाइल नचाबथि पटरानी।
अर्द्धांगिनी नेत्रीसँ कुपित भऽ
शंखनाद केलनि मामा।
हस्त ऊक लऽ मामी खेहलथिन्ह,
फूजल मामा केर पैजामा।
अपन पुतोहुकेँ झोंकि अन लमे,
बनि गेली गामक सरपंच।
धर्माचार्य देव मंदिर केर,
मुदा हृदए भरल परपंच।
केतेक घरमे सान्हि काटि,
शांति समिति केर आब प्रधान।
रक्षक छथि चुटकीमे बैसल,
केना बाँचत अवला केर मान?
विद्यालयकेँ मुँह नै देखल,
धएने कुरसी शिक्षा सचिव।
कुटिल तंत्र केर ईह लीलामे
मारल गेलनि मूक गरीब।
मुंडी इनारमे हुरहुर जनमल,
कमीशन लागत दस परसेन्ट।
नौकरशाह मोटरमे घूमथि,
आँखि गोगल्स काँखिमे सेन्ट।
सभ काजमे दियौ भेँट,
शौच करू वा लघुशंका।
रामराज्यकेँ बिसरि जाऊ,
आर्यावर्त आब सद्यः लंका।
राजनीतिमे अज्ञ-विज्ञ केर,
नै कोनो अछि वर्ग विभेद।
अपने पीबथि ताड़ी दारू,
मंत्री विभाग मद्य निषेद्य।
राग वसंतक गेल जमाना
सुनू ब्रितानी विकट संगीत।
डंकल कुरथी पाक बनल
आ अप्पन वारिक पटुआ तीत।
भालपर गदरल चाह उमंग।
पूरन भैया होरी खेलथि,
नव नौतारि सारि केर संग।
कखनौं डुमकी लैत अधरमे,
जुट्टीमे कखनौं हिलकोर।
नील, वैंजनी लाल गुलालसँ,
रंगलनि चम्पा पोरे-पोर।
‘टिल्लू’ नैनपर अचरज पसरल,
देखि भ्राता केर बसन्ती वुन्न।
एखनौं श्रृंगारक आह भरल मुदा -
आँखि अन्हार कान छन्हि सुन्न।
हम पुछलयनि केना कऽ कएलौं,
मधुसँ उगडुम मधुर प्रबंध।
सकल तन अछि बेकार मुदा हम,
ध्राण शक्तिसँ सूॅघल गंध।
भौजी लऽ बाढ़नि आ खापड़ि,
झाड़ि देलनि भैया केर अंग।
कुरता फाटल नैन नोरायल
भूतल खसल होरी के रंग।
आएल बरमूडा मिनी स्कर्ट।
मुन्ना भैया चुनरी ओढ़ू,
भौजी पहिरलनि जोलही सर्ट।
काकी मरौत काढ़ने बैसलि,
काका गर धरम केर वाना।
कदली कनियाँक हाँथमे वीयर,
आबि गेल माॅडर्न जमाना।
भरि दिवसक गणना जौं करबै,
बहुआसिनक सात बेर सतमनि।
भरल साँझ स्वामी आएल छथि,
अॅइठार बैसलि लऽ मुँहमे दतमनि।
अस्सी दशकमे मायसँ मम्मी
फेर माॅम आब भेली मम्मा।
मायक भ्राता केर नाम की राखब?
मामा पिघलि बनला झामा।
अपन नेनासँ बेस पियरगर,
संकर झवड़ा चायनीज कुकुर।
भुटका-नाथकेँ छाड़ि घरमे
टाॅमी संग गेलि अंतःपुर।
चरण स्पर्श निर्वांण लेलक आब,
छुट्टो कैंचाकेँ भऽ गेल वाय।
भौजी एकसरि मधुशालामे
भैयासँ गेलनि मोन अघाय।
नेना पच्छिमक बोली उगलै।
माँ मैथिली केना बजती दैया।
बात अंगरेजिया माथ घुसल नै,
मुदा करै छथि याँ! याँ! याँ
तिलकोर मखान नीक नै लागए,
नै सुस्वादु मकैयक लावा।
पाॅपकाॅर्न चाउमीन दलिया लेल,
मोँछ पिजौने बैसलनि बाबा।
कीर मधुर ध्वनि बजबथि साज।
जननी वीणा वादिनी हर्षित,
अवतार लेलनि सद्यः ऋृतुराज।
गर्वित उपवन मधुपक गुंजन,
वर्णक पुष्पक दिव्य सोहनगर।
सरिता लवलव शांत उदधि छथि,
महु रसालमे उमड़ल मज्जर।
माघक सातम धवल इजोरिया,
भेल नवल ऋृतु नृप छठिहार।
चिनुआर भरल पायस पूआसँ,
कुलदेवी साजल उपहार।
भगजोगिनी केर पंचम सुर सुनि,
आँगन महमह मुग्ध दलान।
दशो दिस मलमल गेना फूलल,
सरिसब बूट भरल खरिहान।
रवि संग सुषमा अछिंजल उष्मा,
पात-पातपर पछबा वसात।
विरहिनी बैसलि कंत आशमे
वयः तापसँ उपटल गात।
मातु उमा मन मुदित विभूषित,
सजल नुपूर चरण चमकल।
शिवरात्रिक अवाहन भेलै,
नाथ कुशेश्वर छथि गमकल।
संवत जड़ल आ होली आएल,
अबीर गुलाबी हरिअर लाल।
क्षितिज धरित्री एक बनल छथि,
ढोलक डुग्गी झाॅझक ताल।
छोट पैघ केर भेद मिटाएल,
वृद्ध जुआन संगमे बाल।
छोटकी कनियाँ ठोर रंगलि आ -
बरक भरल पानसँ गाल।
भैया भांग सुधामे सानल,
शिथिल पड़ल छथि माँझ ओसार।
रंगलौं हम भौजीक चरणकेँ,
विदा बसन्त ऐ लोकसँ पार।
नवतुरिया होरी
बागमती करेहक आंतमे, ओझराएल हम्मर गाम।
भदैया संग रब्बी बुड़ल, जिरातमे फाटलि गंग।
बीति गेल फागुन मुदा, ऊँच जोताँस जलमग्न।
नेना टोली हेरि रहल, सम्मत लेल खर पतवार।
रामू बाबा सूतल खाट पर, ऊड़ल खोपरिक चार।
पौत्रक नीन जहिना फूजल, झमाड़ल कुंभकरण।
झट सनि ऊठू औ बाबा देखू नभ तरेगन।
राम लोचन दौड़लनि गाड़ि पढ़ैत बड़ी पोखरिक मोहारि।
बनि कपीश नेना भुटका देलक खोपड़ी जाड़ि।
लालिमा देखि आदित्यकेँ कदबा कएल दलान।
शंभू रंगलनि गोबर थालसँ छोटका पाहुनक कान।
तीन फुटिया लाला पैघ खोंचाह, हाकिमपर फेकल रंग।
फूदन चिनुआरक घैलमे, मिलाैल चिन्नी भंग।
भरि कठौत पायस भरल, घिवही पूआ केर संग।
भौजी तन बोरल गुलालसँ, उमड़ल मातृ उमंग।
चैतावर टिटही तानमे, गाबथि टलहा दल।
छोट छीन गुंजन-सुमन्त, घूमथि भूत बनल।
सा रा रा रा गूंजि रहल लूटकुन जीक बथान।
सियाराम जय गानसँ गमगम मैथिल दलान।
डाक्टर भैयाक सारपर ढ़ारल कारी मोबिल।
देखि नेना गण केर होरी गहुमनो घुसि गेल विल।
उपवन बुलबुल गावय ना ......।
सन-सन पुरबा मलय वसात,
झन-झन देह झनकाबए ना......।
कुहकै कुक कोइली बबुर वन,
चहकै अलि पाटलि मधुवन,
फड़कै मोर मोरनि लोचन,
फनकै मृगी पद फन-फन,
भन-भन मन भनकावय ना।
सन-सन......।
भाविनी खिलायलि गहवर,
वहिना मुदित हीय फरफर,
सखी नेह मातलि कोहवर
भौजी रेह गाबथि सोहर,
क्षण-क्षण तन छनकावय ना।
सन-सन......।
प्रियतम बेथित ई आखर,
नोरक सियाही झरझर,
कोमल शय्या भेल खरखर,
सुखि देह वक सन पातर
कण-कण पट सिहरावय ना।
सन-सन......।
उपटल फागुन केर रस बून,
हहरल नुपूर स्वर झुन-झुन,
विकल नैन भेल अधर सुन्न
अछि कोन कांतामे अवगुन?
घन-घन घट सनकावय ना।
सन-सन......।
कपोल सिनुरिया बनल रसाल।
टीशन चलला लऽ घटही कार,
आबि रहल थिन्ह सासु आ सार।
छहछह तन मन भरल उमंग,
गृह घुरलनि विधि माताक संग।
झटपट शांभवि चाह बनाबू,
पहिने रूहे आफजा लाबू।
मम्मी छथि बड़ जोड़ पियासलि
भूक्खे समस्तीपूरसँ मैसूर आयलि।
जलखै सेबै दलिपूड़ी क बोर,
मझिनी भुजल परोर आ इचना झोर।
जुनि करू अकरहरि श्रवण जमाय,
अहँक सासु तँ हमरो माय।
माय हमर आडम्वरि धर्मी,
सनातन पालिका संग षट्कर्मी।
मतिसुन्न लक्ष्मीनाथ बजार गेलनि,
फुलल परोर माँछ इचना लेलनि।
देखिते भरल माँछक झोरा,
फुजलनि सासु वन्न मुँह बोरा।
पाहुन देलखिन घर घिनाय,
केना करब हम नहए खए?
काल्हि हमर छी व्रत एकान्त
मछैन गृह केर सगरो प्रान्त।
फेकू माँछ सटल तरकारी,
ग्ंागाजलसँ धोयब आँगनवाड़ी।
गैस चढ़ल अन्न नै खायब,
बौआसँ अंगूर सेव मंगाएब।
काल्हुक लेल चाही आमक चेरा,
माटिक चूल्हि आ बाँस चंगेरा।
सिंगापूरी नै चिनियाँ केरा,
शुद्ध सुधा गुड़ सानल पेरा।
शांभवि ई मैसूर नै गाम,
केतए हम ताकू जारनि आम?
विकट भेल रवि व्रत एकान्त,
ऐ चक्कर हमर जीवन अशान्त।
लूटकुन माथमे शोणित अटकल,
भाय वहिन मुँह मुस्की फटकल।
हम की करब सभ दोष अहाँकेँ,
पावनि मास किएक बजौलौं माँ के?
ताकए चललनि कर्नाटक केर गाम,
हाँथ चूल्हि माँथ गठरी आम।
सोझहे आबि खाटपर खसलनि।
शांभवि जोर ठहक्का हँसलनि।
सुनू प्रिये तारू सूखल अछि,
जल बिनु हम्मर हीय विकल अछि।
एहेन बेथा नै हँसि उड़ाबू,
त्रास कंठगत नीर पियाबू।
न्याय-धर्म भू हिन्द घेराएल अनाचार केर जालमे।
परदारा आ परक द्रव्य दिस,
अधम कुलोचन हुलकि रहल।
राजकोष केर बात की कहू?
श्वेत वस्त्र बीचि फुदकि रहल।
जनतंत्रक आंचर वसुधापर मुस्की कौरव भालमे।
न्याय ......।
उदयन दर्शन आब अलौकिक,
भेल विदेहक कथा विलुप्त,
सभजन लागल भौतिकतामे
बुद्ध अयाची पुंज शुशुप्त,
खर खबाससँ मालिक धरि नाचय कैंचा केर तालमे।
न्याय ......।
काटर लऽ कऽ गृहस्थ धर्मकेँ,
पालन कऽ रहलनि मनुसंतान।
जानकी माता पातरि सजाबथि,
मधुशाला पैसलनि हनुमान।
गर्भक कन्या भ्रूण हत्यासँ समायलि कालक गालमे।
न्याय ......।
जाति, पंथ, भाषा विभेद ई,
प्रजातंत्रकेँ साड़ि रहल।
कुटिल राजर्षिक चक्रव्यूह,
अपने अपनाकेँ जाड़ि रहल
देवभूमिकेँ दियौ मुक्ति फँसि गेल दलालक चालमे।
न्याय ......।
अहँक कोरकेँ छोड़ि आब हम,
नै जाएब दोसर ठाम।
माँ मिथिले......।
वौरएलौं सगरो आर्य भुवनमे,
केतौ ने भेटल चैन।
अकबक विकल दिवस दुःख भोगलौं,
तमस कटै छल रैन।
माँ मिथिले......।
नवटोल नववोल देखलौं नवल चालि,
भाउज भावहुक नै भान।
तात पूत एक्के संग बैसल,
करथि सुरारस पान।
माँ मिथिले......।
मैथिल दीन जनेर फँकै छथि,
मुदा देव पितरक मान।
छोट पैघ बीच लक्षिमन रेखा,
नै केकरो अपमान।
माँ मिथिले ......।
उदयनसँ दर्शन सीखि बाँटब,
अयाचीसँ, आत्म सम्मान।
भारती मंडनसँ ब्रहम ज्ञान लेब,
आरसी यात्रीसँ स्वाभिमान।
माँ मिथिले ......।
उर्मि धिआक त्याग देखिक,
कण-कण भाव विभोर,
वैदेहीक सती धर्मसँ उमड़ल,
कमलामे हिलकोर।
माँ मिथिले ......।
गोविन्द मधुपक सुनब पराती,
खोलि क दुनू कान।
शिव शक्तिकेँ श्रद्धासँ पूजव,
सुनबैत विद्यापति गान।
माँ मिथिले......।
खोरा चाउर संग भाटा अदौरी,
वथुआ तिलकोर मखान।
आचमनि श्वेत वलानक जलसँ,
गलोठि पतैलीक पान।
माँ मिथिले......।
आन धामसँ रास सोहनगर,
कुलदेवी क गहवर।
पच्छिमक त्वरित गीतसँ रूचिगर
अपन वैन सोहर।
माँ मिथिले......।
छोड़ि कत चलि गेलौं तात।
कॉपि रहल छथि सूर्यमुखी आ,
कुहरथि वृद्ध कनैलक पात।
टोलक सभटा नेना भुटका,
आश लगौने घूमथि वथान।
के देत उदयन धामक पेड़ा,
के देत मिठगर मगही पान।
पंडित बाबा खाट पकड़लनि,
ककरा मुखसँ सुनता गान।
श्यामजी अश्रु इनारमे पैसलनि,
आब के कहतनि पैघ अकान।
आर्या माँक दुआरि सुन्न अछि,
सत्संगी सभ ओलतीमे ठाढ़।
भक्ति सागरक धार विलोकित,
लुप्त गगनमे अहँक कहाँर।
अनसोहाँत ई दैवक लीला,
केना बनौलनि मर्त्य भुवन?
विज्ञानक आँगनसँ बाहर,
जन्म मरण जीवन दर्शन।
करती केना श्रृंगार मेनका,
करतनि के रूपक वर्णन।
देवराज छथि कोप भवनमे
जल बिनु करब केना तर्पण?
सुख दुखसँ अहाँ विलग विदेह।
अंतिम भीख मॅगै छी बाबू,
दर्शन दियौ एक बेर सदेह।
टुटल हम्मर आश औ ना।
मातु-पितु अहँक भक्तिमे लीन,
बूझल सभ जन वम वम लेलनि हमर घर वासऔ।
टुटल ......।
सुखाएल करम-धरममे रक्त,
शारदालीन संगमे शंकरपर विश्वास औ।
टुटल ......।
जीवनसँ दूर भागि गेल हर्ख,
जननी उठलि भूमिसँ छोड़ि मोहक पाश औ।
टुटल ......।
करम गति फॅसल बीच मॅझधार,
उदधि मरूस्थलि भेली हीयमे पसरल त्रास औ।
टुटल ......।
होईछ अपन भागपर छोह,
हरू दुःख वा करू हम्मर निरस जीवनक नाश औ।
टुटल ......।
केना कऽ अंतिम नमन करब,
आँचरकेँ अहाँ कलंकित कएलौं
पुत्र जन्म सेहंतित सपनामे
करूणाधारिणी निर्दयी भेलौं।
नै देखलौं आदित्य नै शशिक शिखा,
नै नभ देखलौं नै देखलौं वसुधा
नै भेटल छोह नै मृदुल क्षेम,
नै मोती माणिक्य रजत हेम,
पाँच मास अहँक गर्भमे रहलौं
जनपरिजनक तिरस्कार सहलौं
अपैत बूझि कएलौं अहाँ गर्भपात
भेल अपूर्ण नेनापर वज्रपात
अछि कोन ओ शक्ति मनुसुतमे
जे बेटीमे नै दर्शित भेल
मणिकर्णिका क शंखनाद सुनिते
वृद्ध कुंवरक यौवन झट धुरि गेल
दुःख एक्के बातक तातप्रिया
सृष्टि देलनि संततिकेँ गरल पिआ
पावन आर्यभूमिक सुनयना
वैदेहीकेँ देली माटि मिला
भववंधनक ई केहेन दर्शन
नीर क्षीर बिनु बितल जीवन
तजि गेल प्राण तँ अनल अर्पण
अमिय मधुसँ पुत्र कएलनि तर्पण
एक बेर हमरो जौं कहितौं अहाँ
जीवनमे सुधा वोरि देतौं माँ
देतौं सतरंगी परिधान
पुत्रसँ वढ़ि कऽ करितौं सम्मान
दिअ आशीष हमर जननी
फेरि वेटी बनि नै आवी अवनी
नै सूखए पुनि नव किसलय दल
नै जलसँ पहिने भेटए अनल।
पसरल सगरो हाँहाँकार
तरूण-वरूणक अग्निवेशसँ
जीव-अजीवमे अशंातिक ज्वार
मोन विरंजित हृदए सशंकित
वनल सरोवर कलुष मसान
सूखल किसलयक कोमल कांति
धधकि रहल नव लता वितान
नष्ट करब ऐ प्रलय भयंकर
प्रकट भेलनि अपने देवेश
घन घन घटाक संग आगमन
शीतल पावस बूनक बेस
नव रंग नव धुन नव मुस्कान
घुरल सृष्टिमे नवल जान
पुष्प खिायलि कांचन उपवन
फूरल भ्रमरकेँ मधुर गान
मंातलि सरोवर कलकल सरिता
नूतन नीरक खहखह धारा
आएल कृषकमे दिव्य चेतना
भागल वेदनाक पुरा अँधियारा
पंकज प्रस्फुटित भेल सरोवर
वकः काक चित शांत सोहनगर
भरल घटामे मोर मजूरक
नाच मधुर बड़ लागए रूचिगर
गोधूलिक पवन वेगमे
चहकि उठल भगजोगिनी
वयः तापमे उमड़ि गेलि
मिलनक वियोगमे तरूणी
उन्मत्त घटा संग मधुर प्रेममे
नर-नारी भऽ गेल विभोर
दुई मासक ई रूचिगर पावस
उमड़ाैल नव सृष्टिक जोर
विपुल मृगी नैना,
किएक अहाँ बनलौं औ -
प्रवासी सजना।
आगि भेल शीतल उधिया रहल पानि,
सुवासित जीवनमे उफनि गेल ग्लानि,
सुन्न प्रेयसीक सिनेह हृदए अँगना,
विपुल मृगी नैना ......।
उमड़ि रहल विरह प्रखर आतप समान,
मुरूझाएल शुष्क अधर मरूघटमे प्राण,
धँसल बान्ह मर्यादाक सजना,
विपुल मृगी नैना ......।
क्षणहिमे जीवन अभिशापित वनल,
सूखि गेल नेह पुष्प नोरसँ भरल,
आब कहि ने सकव हम सजना
विपुल मृगी नैना......।
आब नै दोहराबू अय नानी।
नाना बनल छथि सियार,
भक् छथि जेना हुलुक बिलार,
दंतक गणना घटि कऽ बीस
हुरथि गूड़-चूड़ाकेँ पीस
गाबथि दारा दरद जमानी।
आब......।
वरन् केर बर्ख भेल चालीस,
अर्पित अहँक चरणमे शीश,
अहाँ लेल लबलब दूध गिलास,
नोर पीबि अपन बुझाबथि त्रास,
क्षमा करू! छोड़ू आब गुमानी।
आब......।
अवकाश क बीति गेल दस साल,
पेंशनसँ आनथि सेब रसाल,
भरि दिन पान अहाँ केर गाल
ऊपरसँ मचा रहल छी ताल,
चमेलीसँ भीजल अछि चानी
आब......।
केतेक दिन सुनता पितृ उगाही,
संतति पूरि गेलनि दू गाही,
माॅ छथि, चुप्प! साधने नोर,
केना बनि जेता आत्म बलिदानी
आब......।
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