ISSN 2229-547X VIDEHA
‘विदेह'१४७ म अंक ०१ फरबरी २०१४ (वर्ष ७ मास ७४ अंक १४७)
ऐ अंकमे अछि:-
पाखलो (कोंकणी उपन्यास)-
तुकाराम रामा शेट- मैथिली अनुवाद-
डॉ. शंभु कुमार सिंह
एक
आइ रबि छिऐ। हमर निन्न कनी देरीसँ खुजल। हम अपन कम्मल सुलूकेँ ओढ़ा देलिऐ। ओछौनपर पड़ल-पड़ल हमर नजरि देबालपर गेल। गोविन्द अपना
संगे भगवानक दुनू फोटो लऽ गेल छल। चिक्कनि माटिसँ ढौरल देबालपर आब
कोनो फोटो नै रहै। ओ एकदम सुन्न बुझाइ।
हम ओछौनेपर पड़ल-पड़ल सोचैत रही। गोविन्द नोकरी करैले
पणजी शहर
छल। बाबूजीक मुइला पछाति ओ अपन माएकेँ अपना संगे पणजी लऽ गेल छल। हम दुनू गोटे ऐ घरमे रहैत रही। हम आ हमर भगिनी।
हम उठलौं, खिड़की खोललौं, आ केबाड़ खोलैएबला रही आकि एतबेमे आलेसक
अबाज सुनैमे आएल।
“यौ
पाखलो!
अखनि धरि सुतले छी? पाखल्या... यौ पाखल्या...”
बिना
किछु बजने हम केबाड़ खोलि देलौं। हम केबाड़ बन्न केलौं आ
एकटा बासन लऽ कऽ लगीचक होटल जाइले ओकरा पाछू-पाछू चुपचाप चलि देलौं।
आलेस
हमर नेनपनक मीत छी। हमसभ अखनो नीक मीता छी। एक्केठाम काज
करै छी। ओहो ड्राइवर आ हमहूँ। एक्के कम्पनीमे नोकरी करै छी आ एक्के रंगक ट्रक चलबै छी।
हमरा
गुमसुम चलैत देखि ओ बाजल-
“यौ जी! कोन सोचमे डुमल छी?
“किछुओ
तँ नै? चेतना एला पछाति हम कहलौं।
“किछु केना
नै? ओहिना बाजि रहल छी की? कनी
सोचू, जँ अहाँक बिआह भऽ जाए तँ भगिनीकेँ देखैवाली कियो तँ भऽ जेती?”
ऐ
बातपर हँसैत हम पूछि देलिऐ-
“के देत
हमरा अपन बेटी?”
ई बात सुनिते ओ जोर-जोरसँ
हँसए लगल। ओकर हँसी रोकैले आ किछु आर बजैले हम ओकरासँ पुछलौं-
“ऐं यौ
आलेस, अहाँक पासपोर्ट बनि गेल की?”
“हँ।”
“तखन दुबई कहिया जाए रहल छी?” हम पुछलियनि।
“अगिला
सप्ताह, कपेल (छोट गिरिजाघर)क प्रार्थनोत्सवक पछाति।”
“कपेलक
प्रार्थनोत्सवक बाद?”
“हँ, बरु ओइ दिन।”
“ओइ दिन
किअए? उत्सव पछाति चलि जाएब…।”
“नै, असलमे ओइ
दिन हमर मीत जा रहल अछि, ऐ लेल हम ओकरे संगे जाए चाहै छी।”
“तखन तँ
अहाँकेँ हमरा कम्पनीक नोकरी छोड़ए पड़त।”
“एहेन
भिखमंगा नोकरी करबो के करए? ओहुना भारतमे रहि कऽ के नीक पाइ कमा सकैए? ओतए
मजूरीओ तँ बेसी छै?”
“तखन
अहाँक विदेश जाएब एकदम पक्का ने?”
“हँ”, एते कहि ओ अपन पैन्टक बेल्ट आर कसए लगल।
“विदेश
जुनि जाउ।”, हम पछिला किछु दिनसँ आलेससँ कहैत रहिऐ।
“हमरा
बाटमे अड़ँगा जुनि लगाउ।”, ओइ समए ओ हमरा कहलनि। हम चुपचाप बाट चलैत
रहलौं।
जखनि गोविन्द गाम छोड़ि पणजी शहर गेल छला, तखन हमरा बड़ खराप लागल छल, मुदा
आब तँ आलेस अपन गाम आ देश छोड़ि परदेस जाए रहल छल, आइ हमरा कन्निको खराप नै लागि रहल अछि।
हम दुनू गोटे होटल पहुँचलौं। भीतर जाइते सभ कियो
हमरा घूमि-घूमि कऽ देखए लगल। हम मोने-मन सोचलौं, “बुझाइत अछि जे ओकरा सबहक नजरि हमर कैल टनटन केश आ कैल रोइयाँपर चलि गेल छै, हमर लहसुनियाँ आँखि, उज्जर चाम आ गसगर देह…”
“पाखलो, अहाँक
बासनमे दूध दी, आकि चाह?” होटलबला हमरासँ पुछलक। हम भरि
बासन चाह लऽ लेलौं। दूटा बड़का पाँवरोटी आ एकटा कांकण (वलयाकार पाँवरोटी) लेलौं। आलेस अपन मीतक संग दुबई जाइबला
बात करैत
रहल। ओकर मीत ओतएसँ ओकरा लेल कोनो विदेशी समान अनैले कहैत
रहै। विदेश जाइसँ संबन्धित बात करैबला आलेसकेँ छोड़ि हम अपना घरक बाट
लेलौं।
पड़ोसक रुक्मिणी मौसी हमरा घर आएल छेली। ओ सुलूकेँ उठा कऽ मुँह धोऐले कहलथि
आ ओकरा छींटगर लाल फराक पहिरैलथि। हमहूँ अपन हाथ-मुँह
धो लेलौं। दूटा गिलासमे चाह ढ़ारलौं आ रुक्मिणी मौसीकेँ चाह पीबैले
पुछलियनि,
“अहाँकेँ चाह चाही की?”
“नै बाउ! हम अखने घरसँ चाह पीबि कऽ आएल छी, ओहुना हम
होटलक चाह नै पीबै छी।” रुक्मिणी मौसीक ऐ जवाबपर हम चुप भऽ गेलौं। हम सुलूकेँ बजेलौं। ओ थपड़ी पाड़ैत हमरा लग एली आ पुछए लागलि, “मामा
आइ रबि छिऐक ने?
आइ तँ अहाँ काजपर नै जाएब?”हम ‘हँ’ कहि
अपन माथ डोलौलौं।
“मौसी आइ अहाँ हमरा अपना ओइठाम नै लऽ जाएब।
आइ हम एतै रहब…मामाक संगे।” ओ मौसीसँ बाजलि।
“ठीक छै
दाइ...
आइ हम अहाँकेँ नै लऽ जाएब।” हम दुनू गोटा चाह पीबैते रही तावत
रुक्मिणी मौसी अपन डाँरक साड़ी सम्हारैत घरक बरतन-बासन
धोऐले चलि गेली।
सुलूक बाबूजी ओकरा सम्हारैले तैयार नै रहथि। ओइ समए ओ मात्र डेढ़ बर्खक छेली। नीक जकाँ बाजियो नै होइक। केवल दू चारि शब्दहि बाजि सकै छेली। आब तँ ओ साढ़े तीन बर्खक भऽ गेल अछि, मुदा देखबामे पाँच-साढ़े पाँच बर्खक बुझाइ छेली। गोर-नार
चेहरा! हम ओकरा माथपर अपन हाथ फेरलौं। मोम-सन नरम केश आ लहसुनियाँ आँखि! हम ओकरा आँखिमे देखलौं, आ ओ हमरा आँखिमे देखलक। ओ अपन आँखि पैघ कऽ
लेलक। ओकर लहसुनियाँ आँखिमे एक्के संग कएकटा दृश्य उभरि गेल।
एहेन बुझाइ छल जेना ओ किछु पुछए चाहै छेली! हमरा कनी आश्चर्य भेल।
“अहाँक
लहसुनियाँ आँखिसँ हमर कोनो पुरान संबन्ध अछि!” हमर नजरि ओकर गुलाबी केशपर गेल। ने जानि किएक ओकर गोर-नार चाम, गुलाबी केश देखि हमरा एहेन बुझाएल
जेना पूरा अकास मेघसँ आच्छादित भऽ गेल हुअए, ठीक तहिना हमर मोन अतीतक स्मरणसँ भरि गेल…। ताधरि रुक्मिणी मौसी घरक काज पूरा कऽ कऽ अपन घर जैपर रहथि, कि हम सुलूकेँ हुनका संगे लऽ जाइले कहलियनि।
“हम नै
जाएब।” सुलू अपन माथ डोला कऽ जवाब देलक।
“नै, हमरा
काजपर जाइक अछि,
अहाँ मौसीक संग चलि जाउ। दुपहरमे हम जल्दीए आबि अहाँकेँ लऽ आएब।” एते कहि हम सुलूकेँ समझेबाक
प्रयास केलौं।
सुलू कानए लगली, मुदा
पछाति जाए कऽ ओ मौसीक संगे जाइले तैयार भऽ गेली। रुक्मिणी
मौसी सुलूकेँ लऽ कऽ चलि गेली। हम केबाड़ बन्न कऽ लेलौं। हमरा दिमागमे आएल सभटा पुरान स्मृति एकटा गरज
आ चमकक
संगे बिखरि गेल! बुझू हम
अपना आपकेँ पूर्ण रुपेण ओकरेमे ताकऽ लगलौं…. अपन पहिचानक खोज करए लगलौं…।
दू
गोविन्दक दादी द्वारा कहल गेल खिस्सा अखनि धरि पाखलोकेँ
स्मरण छेलनि। शाली आ सोनू दुनू भाए-बहिन
रहथि। गामक सीमानपर हुनक घर छेलनि आ अपन किछु खेती-बारी
सेहो। ओ अपनो खेती-बारी करै छल आ दोसरोक खेतमे काज करैले चलि जाइ छल। एकर अतिरिक्त ओ गरमीमे मजूरीओक काज करै छल।
एकदिन शाली लकड़ी काटैले जंगल गेल छेली। कुमारि
शालीक संग तीनटा आर स्त्री लोकनि छेली। आन दिन जकाँ ओ सभ लकड़ी काटि
कऽ ओकर बोझ सेहो बना नेने रहथि; तखने हुनका सभकेँ सीटीक अबाज
सुनबामे एलनि। ओ चारू गोटे डरि गेली। तइ दिन पाखले (पुर्तगाली फिरंगी) जंगलमे शिकार करैले अबै छला, ओ सभ
एहेन सुनने छेली। फिरंगी सबहक मनमानी आ स्त्रीगणपर कएल गेल अत्याचारसँ
ओ सभ परिचित छेली। ओइ सीटीक अबाज सुनि ओकरा सबहक तँ जेना
होशे-हवास गुम भऽ गेल। ओ सभ बहुत घबरा गेली। तावत हाथमे बंदूक नेने तीनटा पाखले ओतए पहुँच गेल। बाघकेँ सोझहा आबि गेला पछाति जेना लोक लंक लऽ लैत अछि ठीक ओहिना ओ सभ लकड़ी बोझ छोड़ि पड़ाएल। तीनू पाखले ओकरा सबहक पीछा करए लगल। अपन जान बचबैले भागैवाली
शाली गिरैत-पड़ैत बहुत थाकि गेल छेली। आब आर बेसी गतिएँ दौगब ओकरा बुताक बात नै रहि गेल छल। ओ पाछू तकलक, तँ देखलक जे एकटा फिरंगी अपन कन्हापर बंदूक आ छातीपर एकटा तमगा लगौने मिलिट्री वेशभूषामे ओकरे पाछू दौगल
आबि रहल अछि। ओइ पाखलोकेँ देखि शाली अपन जान बचबैले अपन अंतिम शक्ति लगा कऽ दौगली। ओ सभटा स्त्रीगणकेँ पाछू छोड़ैत आर जी-जानसँ
दौगए लगली। बहुत बेसी दौगबाक कारणेँ आब ओ थाकि कऽ चकनाचूर भऽ गेल छेली। जोर-जोरसँ ऊपर-निच्चाँ
करैत ओकर छाती आब फाटि कऽ बाहर निकलि जाएत, ओकरा एहने बुझाए लगलै। ओकर दौगबाक
गति मंद हुअए लगलै आ एतबेमे ओ पाखलो ओकरा लगीच पहुँच
गेल। लगीचक आन-आन स्त्रीगणकेँ छोड़ि ओ पाखलो शालिए दिस बढ़ल आ अंततः ओ शालीकेँ अपन बाँहिमे कसि लेलक।
एतबेमे पाछूसँ दूटा आर
पाखले ओतए पहुँच गेल। ओहो सभ शाली दिस अपन हाथ बढ़ेलक, मुदा ओ
पाखलो ओइ दुनू पाखलेकेँ पुर्तगाली भाषामे किछु कहलकै। ई सुनि ओ दुनू पाछू हटल आ आगू भागैवाली स्त्री सबहक पीछा करए लगल।
पाखलोक बाँहिमे शालीक साँस फूलए लगलै आ
ओकर बाक् सेहो बन्न भऽ गेलै। ओइ फिरंगीक देहमे शैतान आबि गेल छेलै!
शालीकेँ होस आबि गेलै। अखनि धरि साँझ परि गेल रहै। पूरा जंगलमे अन्हार पसरि
गेल छेलै।
ऐ अन्हारकेँ देखि शालीकेँ बुझाइ जे जेना फेर ओकर दम निकलि जेतै। ओकरा देहपर
कोनोटा नूआ नै रहै, मुदा ओकरा देहपर किछु फाटल-चिटल
नूआ राखि
देल गेल रहै।
ओकरा माथक निच्चाँ कोनो कड़गर चीज रहै, मुदा की? से पता नै चलि सकलै। ओ जड़बत भऽ गेली।
ओकर करेज
धक-धक करै छेलै, देहक
पोर-पोरमे दरद होइत रहै। ओ जेतए केतौ अपन हाथ रखै तँ ओकरा सूखल खून हाथ लगै। ओ बहुत डरि गेल छेली, मुदा
कानि नै सकै छेली।
ओ उठि कऽ बैस गेली; तखने
अकस्मात्
टॉर्चक इजोत बरलै। ओकर इजोत ओकरा समुच्चा देहपर पड़लै जइसँ ओकर आँखि चोन्हिया गेलै। छने भरिले अपन आँखि बन्न कऽ कऽ फेर खोललक तँ देखलक जे वएह पाखलो ओकरा लगीच आबि रहल छेलै। आन दूटा पाखलो जेतए ठाढ़ रहै ओत्तै रहल। पछाति जाए कऽ ओ दुनू ओही टॉर्चक इजोतमे आगू बढ़ि गेल।
शाली दिस आबि रहल पाखलो नांगटे देह
छल। ओ फेर डरसँ सिहरि गेली। ओ फटलका नूआ-फट्टा लऽ कऽ
अपना छातीकेँ झँपैत ठाढ़ होइक प्रयास करए लगली, मुदा टुटल
गाछ जकाँ धरतीपर गिर गेली। ताधरि ओ पाखलो शालीकेँ झट दऽ अपन हाथेँ
पकड़ि लेलक। ओ पाखलो शालीक देहक निच्चाँ ओछौल गेल कपड़ा उठा लेलक।
शालीक माथक निच्चाँ राखल टोपी शालीक माथपर राखि ओ जोर-जोरसँ
हँसए लगल। शालीक घबराहटि बढिते जा रहल छेलै। ओ डरेँ थरथर
काँपए लगली। ओकरा बुझेलै जे एकटा बड़का अजगर खूब पैघ मुँह बौने ओकरा अपन ग्रास बना लेतै। ओ जोरसँ चिकरली, मुदा ओकर अबाज ओकरा मुहसँ नै
निकलि सकल।
ओ फेरसँ शालीकेँ चुम्मा-चाटी
करब शुरू कऽ देलकै आ ओकरा अपन बाँहिमे कसि लेलकै।
ओइ अन्हार गुप्प जंगलमे ओ अजगर सरिपहुँ ओकरा अपना
काबूमे कऽ लेलकै। झार-झंखार आ पात सभसँ अजीब तरहेँ अबाज आबए लगलै।
·
साँझ पड़िते ई बात सौंसे गाममे पसरि गेलै। सीता कहै छेली, जे केना ओ पाखलोक चंगुलसँ बँचि गेली।
शाणूक घरनी बतबै छेली जे केना पाखलो कुमारि शालीकेँ उठा कऽ भागि गेल ओ ओकर इज्जति लूटि लेलक। शालीकेँ तँ पाखलो नोचि-चोथि नेने हेतै, ई सभ सोचि-सोचि आन सभ लोक ओकरा प्रति अपन दया-भाव देखबैत रहै।
“पाखलो शालीक शीलभंग कऽ देलकै।”
ई बात सौंसे गाममे आगिक भांति पसरि गेलै। ओकर भाय जे नोकरीसँ घर घुमैत रहै ओकरो ई बात बुझनामे आबि गेलै। ओ गोस्सासँ लाल भऽ गेलै, संगे डरि सेहो गेलै। ओकरा हाथमे कुड़हरि रहै जेकरा ओ अपन कन्हापर राखि लेलक।
“ऐ कुड़हरिसँ जँ हम ओइ पाखलोकेँ जित्ते नै काटि देलियनि तँ हमरो नाओं नै।”
ओ बेर-बेर यएह शब्द दोहरबैत रहै। शालीकेँ ताकए जाइले ओ केतेको लोकसँ मिनती केलक मुदा कियो ओइ अन्हार जंगलमे जाइले किएक तैयार
होइतै? ओ एकटा लालटेम जरौलक आ असगरे चलि देलक।
लोक सभ ओकरा पागल कहए लगलै। “पाखलो अहाँकेँ गोली
मारि देत।”
ई कहि लोक-सभ ओकरा डरेबाक प्रयास केलकै मुदा ओ अपन जिदपर अड़ल रहल। ओ असगरे चलि देलक, तखने दादी सेहो ओकरा संगे जाइले तैयार भऽ गेलै। दादी कार्रेर (बस) क चालक रहै। शकल-सूरतमे ओ सोनूएँ-सन रहै। दुनू युवा जाइले तैयार भऽ गेल। दादी शालीक
कानमे किछु कहलकै। ओ दुनू पातोलेक बाटे जंगल नै जाए कऽ सीधे गामक पुलिस स्टेशन दिस चलि देलक। एहेन देखि गामक किछु आर बूढ़ आ जुआन सभ ओकरा संग भऽ गेलै। सभ कियो
पुलिस-स्टेशन पहुँच गेल। दादी पुलिस-स्टेशनक कैब, (पुर्तगाली पुलिस अधिकारी) देसाई साहेबकेँ शोर पारलकै। ओ दरबज्जा नै खोलि खिड़की खोललक आ ओतैसँ बाहरक दृश्य देखलक।
“पाखलो भीतरमे छै की?” दादी कान्स्टेबलसँ पुछलकै।
“नै।”
साधारण भेषमे कान्स्टेबल कहलकै।
“तखन गेलै केतए”?
दादी फेर पुछलकै।
“कार्मोक प्रधान आ हुनक दूटा संगी
भोरे-भोर शिकारपर गेल छथि, अखनि धरि नै आएल छथि। हुनका पणजी
शहर सेहो जेबक छन्हि, ऐ लेल आब ओ काल्हिए
औता।”
कान्स्टेबल कहलकै।
“साँचे?”
“हँ, साँचे।”
देवकीकृष्ण भगवानक किरिया।
कान्स्टेबल देसाई कहलकै।
नै, नै ओ झूठ बाजि रहल अछि। हमरा सभकेँ पुलिस स्टेशनक भीतर जाए कऽ देखबाक चाही।
“पहिने दरबज्जा खोलू, हमरा सभकेँ देखि कऽ पाखलो भीतरे गुबदी मारि देने हएत।”
सोनू जोरसँ चिकड़ि कऽ कहलक आ अपन
कुड़हरि नचबए लागल।
जाउ! जाउ! बन्न करू अपन ई नाटक। कान्स्टेबल
गोस्सासँ कहलकै।
“अखनि जँ अहाँक बहिनक इज्जति पाखलो
लूटि नेने रहितए तँ अहाँ कि अहिना चुप बैस रहितौं?”
सोनू गोस्सासँ बाजल।
“आब अहाँ किछु बेसीए बाजए लगलौं अछि, ऐसँ बेसी जँ किछु बाजलौं तँ हमरा बन्दूक निकालए पड़त।”
“अहाँ एना किएक बाजि रहल छी कॉन्स्टेबल?” दादी बीच्चेमे टोकलक। कारी शीशोक लकड़ी सन देहबला दादी कोयला जकाँ गरम भऽ गेल।
“अहाँ कि कोनो बाहरी लोक छी? फिरंगीक पेटपोस्सा, अपन आ आनक कोनो गरैन नै? एहेन-एहेनकेँ तँ पाखलोएक संग भगा देबाक
चाही।”
“हँ साँचे!”
एते कहि सभ लोक हँ-मे-हँ मिलेलकै।
नै, नै हमरा सभकेँ अहाँक बातपर भरोस नै अछि। हमरा सभकेँ देखए दिअ, पाखलो निश्चिते भीतर दुबकल अछि। एते कहि
सोनू भीतर जाइक जिद करए लगल।
“नै, नै एहेन बात नै छै। जँ एहेन रहितै तँ
अहाँ सभ अखनि धरि पड़ा गेल रहितौं। पाखलोसँ अहाँ
सभकेँ गोली खाए पड़ितए। अहाँ सभकेँ जँ अखनो
विश्वास नै होइत अछि तँ भीतर आबि जाउ मुदा
जल्दीए बहरा जाएब।”
सभ कियो पुलिस स्टेशनक भीतर ढुकि गेल। ओतए
तीनटा पुलिसक अतिरिक्त कियो ने रहए। एक
कान्स्टेबल देसाई, दोसर नायक कासीम आ तेसर धोणू पुलिस।
सोनू आ दादी, दुनू शालीकेँ तकैले पातोलेक जंगल दिस चलि देलक। सोनू शालीक नाओं लऽ लऽ कऽ चिकड़ए लागल,
मुदा ओकरा कोनो जवाब नै भेटलै। जंगलमे भालू सभ कानैत रहए। चारू दिस कीड़ा-मकोड़ाक अबाज आ तैपरसँ अन्हार
आ सन्नाहटि पसरल रहै। दुनूगोटे राति भरि जंगलक खाक छानैत रहल मुदा ओकरा कानमे मात्र ओकरे द्वारा लगौल गेल अबाजक प्रतिध्वनि सुनाइत रहलै। सोनू छने भरिले बहुत निराश भऽ गेल। गाम-घरमे केकरो देहमे भा आबि गेलासँ जे स्थिति होइ छै ओहिना सोनूक देह काँपए लगलै। ओ अपन देहपर नियंत्रण केलक आ अपन आँखि नम्हर कऽ कऽ गोस्सासँ बाजए लगल-
“हम सौंसे जंगलमे आगि लगा देबै, आ जरा कऽ सुड्डाह कऽ देबै। यएह जंगल
पाखलोकेँ शरण देने छै। सुड्डाह कऽ देबै एकरा, सुड्डाह कऽ देबै। ओ बुदबुदाए लगल।”
एते कहैत ओ
काँपए लगल। ओ लालटेमक बतिहरि उकसा देलकै। लालटेमक इजोत भभकए लगलै। ओइ बतिहरिसँ ओ सौंसे जंगलकेँ जरेबाक तैयारी करए लगल, मुदा दादी ओकरा
रोकि लेलकै।
“अहाँ ई कोन पगलपन कऽ रहल छी?”
“ई पगलपन नै छै दादी। ऐ जंगलमे आगि
लगा कऽ हम ओइ पाखलोकेँ सुड्डाह कऽ देबै।”
सोनू अपन दाँत आ ठोर पीसैत बाजल।
“नै, नै, एना ओ तँ नै मरि सकत, हँ जंगल अवस्से जरि कऽ सुड्डाह भऽ जेतै। एते कहि दादी ओकरा रोकैक प्रयास केलकै। ऐ
बातकेँ लऽ कऽ दुनूमे घिच्चातानी भऽ गेलै,
आ ऐ बीच सोनूक हाथसँ लालटेम गिर गेलै आ बुता गेलै। चारू दिस गुप्प अन्हार भऽ गेलै।
बहुत राति भीजलापर ओ दुनू गाम घूमल।
अखनि मुर्गा पहिले-पहिल बाँग देने हेतै। खाम्हसँ ओंगठि
कऽ बैसल सोनूकेँ निन्न आबए लगलै, तखने दरबज्जापर खट-खटक अबाज भेलै। सोनू उठि कऽ केबाड़ लग गेल। ओकरा केबाड़ लग पहुँचैसँ पहिने केबाड़ धकेलि कऽ तीनटा पाखले भीतर आबि गेलै।
सोनू ओइ केबाड़ लग खाम्हे जकाँ ठाढ़ रहल! घरमे बरैत लालटेमक इजोतमे ओ पुलिस प्रधान
कार्मो रेयसकेँ चिन्ह गलै। गोर-गहुमा चाम आ तैपर गुलाबी मोंछ। पुलिस प्रधान अपन कन्हासँ शालीकेँ निच्चाँ उतारि देलकै। ओ शालीकेँ कहुना बैसेबाक प्रयास
केलक मुदा असफल रहल, हारि कऽ ओ अपन अंगा खोलि ओछा देलकै आ ओइपर शालीकेँ सुता कऽ तीनू पाखले घूमि गेल। ओकरा सबहक जूत्ताक अबाज शनैः-शनैः कम भेल जा
रहल छल।
शाली धरतीएपर घोलटल छेली। ओकर आँखि खुजले रहै। सोनूकेँ तँ बुझू जे कियो ओकरा पएरमे काँटी ठोकि देलकै,
ओ भावशून्य ठाढ़ भऽ सभ किछु
देखैत रहल। ओकर नजरि कोनमे राखल कुड़हरिपर गेलै। लालटेमक इजोतमे ओइ कुड़हरिक चमकैत
धार सोनूक असहायतापर हँसैत रहै। ओ चमक सोनूक
करेजकेँ चालनि केने जा रहल छल।
सोनू जखनि शाली
लग आएल,
तँ शाली नहुँ-नहुँ अपन आँखि
खोललक। दुनूक बाक्े हरा भऽ गेल रहै। सोनू शालीकेँ शोर पारलकै तँ ओ ‘आहि-आहि’
कहि कऽ जवाब देलकै। सोनू ओकरा पानि पीबैले देलकै। एतबेमे
सोनूक अंदरक भाव बाहर निकलि गेलै।
·
शालीक शीलभंग
कएला पछाति पाखलो ओकरा सोनूक ओइठाम छोड़ि देने छेलै ऐ लेल गामक लोक सभ सोनूकेँ समाजसँ बाड़ि देने छेलै। शालीकेँ गर्भ छन्हि ई बात सौंसे गाममे पसरि गेलै। सौंसे गाममे ने तँ कियो सोनूसँ बात करै आ ने कियो ओकरा काजपर बजबै। सोनूक रोजी बन्न भऽ गेलै।
ओइ घटनाक दोसरे
दिन शाली आत्महत्या करैक प्रयास केने छेली, मुदा सोनूकेँ बीच्चेमे घर आबि जाइक कारणेँ ओकर जिनगी बँचि गेलै। गर्भवती होइक लाजक कारणेँ ओ कएक बेर घरसँ भागि गेल छेली मुदा सभ बेर सोनू ओकरा घुमा लइत।
Illustration -01
ओकर घर गामक सीमानपर रहै। ऐ लेल गामक आन लोकसँ ओकरा
विशेष संपर्क नै रहै। तेकरा बादो गामक मौगी सभ शालीकेँ देखि ओकरा नाओंपर थूक फेकै। ओकरापर फब्ती कसैत रहै। शाली वेचारी सभ किछु सहन केने जा रहल छेली। “चाहे
जे किछु भऽ जाए मुदा अपन जान नै देब शाली!” सोनू
ओकरा कहलकै। ओ ईहो कहलकै- “बीया
चाहे कथुक हुअए वा केहनो हुअए जँ एकबेर ओ माटिमे पड़ि जाइ छै तँ ओकर
पालन-पोषण माटिकेँ करैए पड़ै छै। माटि बंजर नै होइक
चाही।”
सोनूकेँ काज
भेटब मोसकिल भऽ गेलै, आ ओ दुनू प्रायः उपासे रहए लगल। ऊपरसँ लोक सबहक ऊँच-नीच सुनैत-सुनैत ओ आजिज भऽ गेल छल। ओ बहुत परेशान
रहए लगल। “जँ आर किछु दिन गाममे रहलौं तँ भूखसँ
मरि जाएब आ लोकक ऊँच-नीच तँ सुनहि पड़त।”,
अहिना सोचि कऽ ओ एकदिन गाम छोड़ि कऽ शेलपें चलि गेल। शाली घरमे असगरे रहि गेली। सोनू कहियो-काल गाम आबै आ
शालीकेँ अन्न-पानि दऽ कऽ आपस चलि जाइ।
भोरका पहर रहै।
शाली केबाड़सँ झलकैत सरंग दिस निहारै छेली। तखने ओ चौकैठसँ भीतर अबैत कार्मो
प्रधानकेँ देखलकै। ओकर तँ करेजा धक् दऽ रहि गेलै। अपन कनहा आ छातीपर तमगा लगौने
कार्मो प्रधान अपना हाथक बंदूक धरतीपर रखैत ओत्तै बैस गेल। शाली तँ डरक मारल काँपए लगली। कार्मो प्रधान ओकरा किछु कहए चाहै छल मुदा बाजि नै सकल। ओकरा कोंकणी नै अबै छेलै साइत ऐ लेल ओ चुप रहि गेल। पछाति जाए कऽ ओ जे किछु पुर्तगाली भाषामे कहलकै तेकरा शाली नै बूझि सकली। ओ शालीकेँ अपना लगेमे बैसैक इशारा केलकै। आ फेर किछु खिन्न भऽ कऽ चुप रहि गेल। भऽ सकै छै जे ओकरा पश्चाताप भेल होइ, “एहेन शालीकेँ लगलै।” ओ उठल,
अपन बंदूक अपना कनहापर रखलक आ चलि देलक। ओकरा जूताक अबाज शालीक करेजक धुकधुकीक पाछाँ गुम्म भऽ गेलै।
शाली अपना घरमे
पाखलोकेँ सहारा देने छै, कियो ई बात सौंसे गाममे छिड़िया देलकै। ई खबरि सौंसे गाममे लुत्ती जकाँ पसरि गेलै। सोनूकेँ ई खबरि जखनि शेलपेंमे भेटलै तँ ओ अपन हाथसँ कान दाबि लेलक। आब ओ कोन मुँहे गाम जाएत? एहेन सोचि ओ अपन कान ऐंठ लेलक।
कार्मो रेयश
पुलिस स्टेशनक सभ पाखलोक प्रधान छल। ओकरा लिस्बनसँ भारत एनाइ छह-सात बर्खक लगधक भऽ गेल रहै आ ऐ गामक पुलिस-स्टेशनमे ओकर दोसर बरख रहै। ओकर डील-डॉल- लाल, गोर,
गुलाबी केश आ मोछबला रहै। बाघ-सन ओकर दुनू आँखिसँ लोककेँ डर भऽ जाइ। ओ जहियासँ ऐ गाममे आएल तहिएसँ ऐ गामक लोकपर अपन हुकुम चलबए लागल छल। दू मास धरि ओ लोक सभकेँ खूब डरौलक-धमकौलक-सतौलक आ
पीटलक। आब ओ लोककेँ सताएब तँ बन्न कऽ देने छल मुदा गामक
लोककेँ ओकरासँ बहुत डर लगै।
दोसरे दिन साँझमे जखनि शाली अपन घरक दीप लेसै छेली, तखने दरबज्जापर जूताक अबाज सुनलक। कार्मो प्रधान
सीधे घरमे घूसि गेल, आ बन्दूक कनहापरसँ निच्चाँ राखि बैस गेल। डरसँ शालीक हाथसँ दीप छूटि गेलै आ चारू दिस अन्हार भऽ गेलै। प्रधान अपना जेबीसँ सलाइ निकालि दीप लेसलक आ हँसए लगल। ओकर हँसीक अबाजसँ पूरा घर गूँजायमान भऽ गेलै। ओ शालीकेँ
अपना लग बैसा लेलक आ ओकर गाल, ठोर आर ठुड्डीकेँ सहलाबए लगलै। ओ स्वयं
हँसि रहल छल आ शालिओकेँ हँसेबाक प्रयास कऽ रहल छल। मुदा शाली डरसँ काँपि रहल छेली। जइ समए पाखलो शालीकेँ अपना बाँहिमे
घीचै छल ठीक ओइ समए ओकर नजरि ओकरा नोरपर गेलै। ओ ओकर गरम नोरकेँ पोछलक आ ओकरा समझबै-बुझबैले पीठपर थपकी मारए लगल। बादमे ओ शालीक
ठुड्डीकेँ उठबैत ओकरा अपना दिस देखैले इशारा करए लगल।
मुदा शाली ओकरा दिस नै देखि सकली। ओ अपन दुनू हाथेँ अपन आँखि झाँपि, काँपैत-काँपैत ओतएसँ जाइक उपक्रम करए लगली। एतबेमे पाखलो ओकरा अपन दुनू
हाथेँ अपना बाँहिमे कसि लेलकै।
दोसर दिनसँ भोरे-भोर गामक लोक सभ कार्मोकेँ शालीक घरसँ निकलैत देखलकै। ओकरा देखते लोक सभ शालीक नाओंपर थूक फेकए लागल आ ओकरा संबन्धमे भिन्न-भिन्न प्रकारक बात सभ करए लगल।
“हे-बे देखिऔक! शालीक भड़ुआ।”
“ओ पाखलोकेँ अपना घरमे राखि धंधा शुरू कऽ देने छै वा अपन नव दुनियाँ बसा नेने
अछि?”
“दुनियाँ केहेन यौ? धंधा कहिऔ,
धंधा।”
“छी! छी!
ओ लाज-शरम पीबि गेल
अछि।”
“औजी! लाज-शरम रहतै केतएसँ! ओ तँ अपन जातिओ-धरम भ्रष्ट कऽ नेने अछि।”
·
तीन
गामबलाक नजरिमे
हम पाखलोएक रूपमे ऐ धरतीपर जनम लेलौं। ठीक ओइ साल पुर्तगाली सरकार गामसँ पुलिस-स्टेशन हटा
लेलकै। हमर बाप ओइ समए गाम छोड़ि पणजी शहर चलि
गेला। हुनकर रूप कहियो हमरा आँखिक सोझहा नै आबि सकल। नेनपनमे हम हुनका कहियो देखने रहियनि की नै? सेहो हमरा स्मरण नै अछि।
हमर माए शाली, वास्तवमे एकटा देवीक रूपमे ऐ संसारमे आएल छेली। हुनकर वर्ण तँ श्याम छेलनि मुदा सुन्नरि छेली। एकदम सोटल देह। ओ प्रायः लाल आकि हरिअर रंगक साड़ी पहिरै छेली आ माथपर सिनूरक टीका लगबै छेली। ऐ
परिधानमे ओ एकदम सुन्नरि लगै छेली। एकदम सांतेरी माए-सन। हमर जनम एकादशी दिन भेल छल, ऐ लेल माए हमर नाओं ‘विठ्ठल राखने छेली। ओइ एकादशीक दिन सांतेरी माएक मंदिरमे त्योहार भऽ रहल छेलै। ऐ धरतीक पाथरसँ बनाैल गेल श्री विठ्ठलक कारी प्रतिमा ओइ दिन ओइ मंदिरमे स्थापित कएल गेल रहै। ई बात हमर माए बतौने छेली। ओ अपन
मधुर अबाजसँ हमरा ‘विठू’ कहि बजबै छेली।
कार्मो
प्रधानकेँ पणजी शहर चलि गेला पछाति हमर माएक हालति आब सरिपहुँ बहुत खराप हुअ लागल छल। सौंसे गाम ओकरा मंदिरक दासीक सदृश देखैत रहै जखनि कि ओ एकटा पतिव्रता नारी छेली। गामहिमे एकटा ब्राह्मणक घरमे नौरीक काज कऽ कऽ ओइसँ प्राप्त मजूरीसँ ओ हमर पालन-पोषण केने छेली।
दादी अपन बेटा
गोविन्दक संग हमरो स्कूल भेजए लागल। ओइ दिनसँ हम आ
गोविन्द दुनू गोटे खास मीत बनि गेलौं। विद्यालयक प्रवेश-पंजीमे शिक्षक हमर नाओं पाखलो लिख
देलनि। अही नाओंसँ हम ओइ विद्यालयमे मराठी
माध्यमसँ चारिम कक्षा धरि पढ़ाइ केलौं। हाजरी दैत काल हमर ऐ नाओंपर हमरा कक्षाक आन-आन छात्र लोकनि हमर खूब मजाक उड़बए जे हमरा बहुत खराप लगै छल। प्रवेश-पंजीमे हमर नाओं
पाखलो लिख देल गेल रहए ईहो लेल हमरा बहुत खराप
लगै छल।
गोविन्द हमरासँ
एक कक्षा आगू छल तेकर पश्चातो हमरा ओकरासँ
दोसती भऽ गेल छल। हम ओकरा संगे माल-जाल लऽ कऽ जंगल धरि जाइत रही। जंगल जाइत काल हमरा काँट-कुशक कोनो डर नै होइ छल। ओतए हम सभ कणेरा-काण्णां, चारां-चुन्नां (जंगली फल) खाइ छेलौं। ‘घूस-गे बाये घूस’ (गोवाक क्षेत्रमे खेलल जाइबला एकटा खेलमे प्रयुक्त
शब्द जइमे एहेन मान्यता छै जे ई शब्द बाजलासँ कोनो खास लोकक देहमे कोनो आत्माक
प्रवेश भऽ जेतै।) शब्द बाजि कऽ एक
दोसरापर भा आबए धरि कोयण्या-बाल, गड्ड्यांनी
(गोवा क्षेत्रमे नेना सबहक द्वारा खेलल जाइबला एकटा खेल।) आदि खेलै छेलौं। आन-आन चरबाह सबहक संग हमहूँ चरबाह बनि गेल छेलौं।
गोवाकेँ स्वतंत्र होइसँ पहिनेक बात छी। तखन हमर उमेर नअ-दस बर्खक रहल होएत। गामक बन्न पड़ल पुलिस-स्टेशन एकबेर फेर चालू
भऽ
गेल रहै। ओतए तेशेर नाओंक एकटा नव पुलिस प्रधानक नियुक्ति भेल छेलै। ओ कहियो काल सएह पणजीसँ गामक पुलिस स्टेशन अबैत-जाइ छल। ओ अपना लेल ओतए एकटा धौरबी राखि नेने
छल। ओकरा ओ अपना संगे घोड़ा-गाड़ीपर घुमबैत
रहै छल।
गामक बगलबला जमीनक लेल दत्ता जल्मी आ सदा ब्राह्मणक बीच बहुत दिनसँ विवाद छेलै। ओकरा सबहक बीच मोकदमा चलि रहल छेलै। दू-तीन साल बीति गेला पछाइतो अखनि धरि केकरो पक्षमे फैसला नै भेल छेलै। सदाकेँ एकटा युक्ति सुझलै। एकबेर ओ नव
पुलिस प्रधान (तेशेर)केँ अपना घर बजा कऽ खूब मासु-दारू खुऔलक-पिऔलक। ओइ दिन ओकर नजरि ओकरा स्त्रीपर
गेलै। ओइ क्षण ओ ओकरा प्रति आसक्त भऽ गेल आ ओ जइ कक्षमे रहथि तइ दिस देखते रहि गेला। सदा प्रधानसँ विनती केलक जे ओ मोकदमा ओकरे पक्षमे करा दइ। कनीकाल चुप रहला पछाति प्रधान ओकरा हँ कहि देलकै। शर्तक रूपमे ओ सदासँ ओकर स्त्री माँगि लेलकै। सदाकेँ जल्मीक जमीनक संगे-संग गामक सभसँ पैघ जमीन केगदी भाट(क्षेत्र विशेषक नाओं) भेटैबला रहै।
चारिए-पाँच दिन पछाति पुर्तगालीक विरोधमे काज करैक
अभियोगमे दत्ता जल्मीकेँ भीतर कऽ देल गेलै। तेकर
बाद ओकर की भेलै तइ संबन्धमे केकरो कोनो
पता नै चलि सकल। कियो कहै जे दत्ता फेरार भऽ गेलै तँ कियो कहै जे प्रधान ओकरा मारि देलकै।
ओइ दिन पछातिसँ
सदाक घर लग सभ दिन एकटा गाड़ी लागए लगलै। सदाक स्त्री सभ साँझ नव-नव साड़ी पहिरए, नीक जकाँ अपन केश-विन्यास करए, काजर,
टुकली, पौडर आदि लगा
अपन श्रृंगार करए आ तेशेरक गाड़ीमे बैस जाए। तेशेरक गाड़ी सदाक बंगलापर धूरा उड़बैत फुर्र भऽ जाइ।
दोसर भोर ओ गाड़ी हुनका एतए पहुँचा दइ। ओ गाड़ीक पछिला सीटपर लेटल रहै छेली। हुनकर केश आ चोटी सभ उजरल-उभरल रहै, आँखिक काजर नाक आ गालपर लेभराएल रहै छेलै।
मोकदमाक फैसला
सदा जमींदारक पक्षमे भऽ गेल छेलै ऐ लेल ओ सत्यनारायण भगवानक पूजा करैले सोचलक। पूजामे अबैले ओ भरि गामक लोककेँ हकार देलकै। सदा ओ ओकर स्त्री पूजापर बैस चुकल छेली। तखने प्रधान तेशेर अपन गाड़ी लऽ कऽ ओतए आबि गेल।
ओ पूजापर बैसलि सदाक स्त्रीकेँ उठा लेलक।
पूजामे आएल सभ लोककेँ ऐ घटनासँ बड्ड आश्चर्य भेलै। केगदी चास-बासक कागत-पत्तर सदाकेँ थम्हबैत ओ ओकरा स्त्रीकेँ लऽ कऽ आगू बढ़ल, तखने सदाक छोट भाए ओकरा रोकैक
प्रयास केलकै। तेशेर ओकरापर बन्दूकसँ निसान
साधि लेलकै आ आब गोली दागैए बला रहै की सदा ओकरा रोकि देलकै। तेशेर अपन बन्दूक निच्चाँ कऽ लेलक। तेकरा पश्चात् ओ जनूकेँ एक दिस धकलैत ओकरा
स्त्रीक हाथ पकड़ि आगू बढ़ि गेल। ऐपर सदा अपना स्त्रीसँ कहलकै-
“ओकरा संग एना जाए कऽ अहाँ हमर नाक
कटाएब की?”
ई सुनि सदाक स्त्री अपन मुँह चमकबैत बजली-
“अहाँकेँ नाको अछि की? जँ अहाँकेँ नाके चाही तँ हे ई लिअ...”
एते कहि ओ अपन नाकक नथिया निकालि
सदाक पएर लग धरतीपर फेकि देलकै आ प्रधान तेशेरक
संग चलि देलक।
तेसरे दिन प्रधान ओकरा लऽ कऽ पुर्तगाल चलि गेल।
प्रधान तेशेरकेँ पुर्तगाल जाइसँ ठीक एकदिन पहिनेक गप छी। रातिक लगभग दू वा तीन बजैत हेतै। कियो
हमरा घरक केबाड़ खोलि घर घूसि गेल। हमर माए कम कएल लालटेमक इजोतकेँ कनी तेज केलक। देखलौं तँ एकटा अनभुआर लोक! ओ बाजल-
“बहिन हमरा केतौ नुका दिअ, हमरा पाछू फिरंगी पुलिस लागल अछि।
एकबेर जँ हम ओइ पुलिस प्रधान तेशेरक हाथ आबि गेलौं
तँ ओ हमर जान लऽ लेत। हम जीवित नै बँचि सकब।”
एतबेमे दूरसँ अबैत जूताक ध्वनिसँ
बुझाइ जे कियो आबि रहल छै। हमर माए ओकरा ओढ़बैले
अपन साड़ी देलकै आ ओ साड़ी ओढ़ा कऽ ओकरा हमरे लग सुता देलकै। किछुए छनक पश्चात् घरमे इजोत देखि प्रधान तेशेर हमरा घरमे घुसि गेल। हमर माए बहुत डरि गेली। तेशेर सौंसे घरक तलाशी लऽ लेलकै आ ओतए के सूतल छै? ओकरा संबन्धमे
पुछए लागल-हमर माए डरैत-डरैत बजली-
“ओ हमर ब-ब-बहिन थिकीह... साहेब।”
एते सुनि ओ लोकनि चलि गेल।
ओइ राति ओ
अनभुआर लोक हमरे ओइठाम ठहरल आ भोर होइते ओ चलि गेल। ओ अपन नाओं रामनाथ कहने छल आ ओ गोवाक स्वतंत्रता संग्राममे भाग
नेने छल। ओ आ ओकर दूटा संगी, गामक पुलिस-स्टेशनकेँ उड़बैले आएल छल। ओकरा संगीकेँ तँ फिरंगी पकड़ि नेने छेलै मुदा एकरा
पकड़ैले ओ सभ एकर पछोर कऽ रहल छेलै। ओ डाइनामाइट लगा कऽ पुलिस-स्टेशन उड़ा देलकै। भोर होइते ई खबरि गाम आ आस-पासक इलाकामे पसरि गेलै।
ई तइ दिनक गप छी जखनि गोवाकेँ मुक्ति भेटल छेलै। ओइ
दिन दूटा बड़का धमाका सूनल गेल छेलै। ई धमाका बमक छेलै, ई बात लोककेँ पछाति पता लगलै। उजगाँव आ बाणस्तारी गामक दुनू पुल उड़ा देल गेल
रहै। भारतीय सेनाकेँ गोवामे प्रवेश करैसँ रोकैले ओ पुर्तगाली मिलिट्री द्वारा
तोड़ल गेल छेलै। ओ के आ किएक तोड़ने छल, पहिने ऐ बातक पता केकरो नै चलि सकलै। दुपहरमे गामक आसमानमे एकटा हवाइजहाज
उड़ैत रहै। ओइ हवाइजहाजसँ परचा सभ गिराैल जा रहल छेलै जे हवामे उड़ियाइ छल। ओइ
परचा सभकेँ लुटैले हम सभ बच्चा लोकनि बहुत दूर धरि दौगलौं। हमरो एकटा परचा भेटल, जेकरा लऽ कऽ हम दादीक ओतए पहुँचलौं। परचा
पुर्तगालीमे लिखल रहै जेकरा दादी हमरा सभकेँ अपन भाषामे सुनबैत रहथि-
“ई इंडियन मलेटरीक पत्रक छै। ओ कहने
छथि- अहाँ सभ डरब नै, अहाँ सबहक जिनगीकेँ कोनो खतरा नै अछि। अहाँ सभ पुर्तगाली राजसँ मुक्त भऽ गेल
छी।”
ओइ दिन हमरा
विद्यालयमे छुट्टी छल। कांदोले गाममे उत्सवक माहौल रहै। किछु लोक लौह अयस्कक बार्ज (मालबाहक जहाज) सँ पणजी गेल छल।
गोवाकेँ मुक्ति भेटलाक किछुए दिन बाद गोविन्दक दादी हमरा घर आएल छला। “भारत सरकार बहुत रास पाखलेकेँ पकड़ि ओकरा जहाजमे बैसा पुर्तगाल भेज देने अछि।”
हमरा माएकेँ ई खबरि वएह देलनि।
बुझाएल जे ऐ खबरिसँ ओ किछु हतप्रभ भेली, मुदा ओ चुप आ गुमसुम रहली। हमर बाबूजी कार्मो चीफ, जे पणजी शहरमे छला, हुनको ओइ जहाजसँ भेज देल गेल छेलनि, ऐ लेल माएकेँ
दुःख भेलनि की? से हम बूझि नै सकलौं। मुदा बादमे हुनका आँखिमे नोर आबि गेल छेलनि।
·
हम बारह-तेरह बर्खक रहल हएब, तखने हमर माए मरि गेली।
बरखाक मौसिम
रहै। केतेको दिनसँ दिन-राति लगातार बरखा भऽ रहल छेलै। नदीक बाढ़िक पानि गाम धरि पहुँच गेल रहै। गामक केलबाय मंदिरक चारू दिस
बाढ़िक पानि आबि गेल रहै। ओइ बाढ़िमे पाँचटा गर खसि पड़ल छेलै। माल-जाल आ गोहाल सभ बाढ़िमे भासि गेल रहै।
हमर घर सीमानक
बाहर पहाड़ीक कोनमे कनी ऊँचगर स्थानपर छल। अखनि धरि बाढ़िसँ घरकेँ कोनो छति नै भेल
छेलै मुदा लगातार होइत बरखा आ हवाक कारणेँ हमरो घर ओइ दिन खसि पड़ल। घरक एकटा चार कर्र-कर्रक अबाजक संग टूटि कऽ खसि पड़ल। हम जखनि सूतल रही तखने ओ हमरापर गिरल। हम आ हमर माए दुनू गोटे मरि जैतौं।
हमर माए हमरा बचबैले दौग कऽ एली जेकरा कारणेँ
हुनका माथमे बहुत चोट लागि गेलनि। पहिने तँ हुनका माथपर कोरो टूटि कऽ गिरल आ पछाति
जाए कऽ पूरा चारे हुनका माथपर खसि पड़लनि। ओ बेहोश भऽ गेली। हम हुनका मुँहपर
पानिक छीट्टा देलियनि तखन हुनका चेत एलनि। हम बँचि गेलौं आ हमरा चोट नै लागल, ई जानि ओ बहुत खुश भेली। बादमे हमरा अपन कोरामे लऽ कऽ खूब कानए लगली। जखनि ओ हमरा कोरा नेने छेली तखने हमरा हाथमे हुनक चोटसँ
निकलल खून लागल। देखलौं तँ हुनका माथमे चोट लागल छेलनि। हुनक माथ काच जकाँ फूटि
गेल रहनि। हम जोरसँ चिचियेलौं, मुदा माए हमरा
चुप रहबाक इशारा केलथि। हमर चिचियाएब सुनि ऐ बरखाक रातिमे कियो आबय बला नै छल।
हुनकर कहनानुसार हम हुनका लजैनीक पात पीसि कऽ हुनका माथपर लगा देलियनि। किछु काल
पछाति हुनका माथसँ खून बहब बन्न भऽ गेलनि।
घरक बँचलाहा
हिस्साकेँ हम सोंगर लगेलौं। हवा बहिते रहै आ रुकि-रुकि कऽ बरखा सेहो भऽ रहल छेलै। संगे हवा घरक बँचलाहा हिस्साकेँ नोचने जा रहल
छल। छप्पड़क बीच दने पानि आबि रहल छेलै। घरमे कन्निको सूखल जगह नै छेलै।
माएकेँ बहुत चोट
लागल छेलनि तँए ओ दरदसँ अर्राहै छेली आ बीच-बीचमे अपन टाँग हिला रहल छेली। दीप जरा हम
हुनका सिरमा लग बैस गेलौं। दीप हवाक कारणेँ बीच-बीचमे बुता जाइ छेलै जेकरा हम फेरसँ जरबैत रही। अन्हर आ बरखा औरो तेज भऽ गेल
रहै। हम पानि गरम कऽ कऽ माएकेँ पिऔलियनि। चोटक दरदक कारणेँ ओ भरि राति कुहरैत
रहली। राति भीजलापर हुनका बोखार आबि गेलनि आ से बढ़िते गेल। “भोर होइते हम डाकदरकेँ बजा अनबनि।”
हम सोचलौं। मुदा राति कटिते ने रहए।
दोसर दिन, भोरे-भोर गोविन्दक दादी डागदरकेँ बजा
अनलनि। डागदर हुनका सुइया-दबाइ देलथि, मुदा कोनो लाभ नै भेल।
ओ बीच-बीचमे आँखि खोलै छेली। हुनक सौंसे देह उज्जर भऽ गेल रहनि आ आँखि भीतर दिस घीचल
जा रहल छल। हुनक हाथ-पएर काँपि रहल छेलनि। ओ
हमरा अपना लग बैसैक इशारा केलनि। ओ हमरा किछु कहए चाहै छेली से तँ हम बूझि गेलौं मुदा ओ किछु बाजि नै सकली।
ओइ दिन हुनक
बोखार बहुत बढ़ि गेल रहनि। हुनक आँखि बन्न हुअ लागल रहए। बोखारसँ ओ काँपि रहल छेली। बादमे
हुनका गरसँ घर्र-घर्रक अबाज भेल ओ ओइ अबाजक संगे, जेतए सुतल छेली तेतए किछुए पलमे सभ किछु
शांत भऽ गेल। ओ हमरा छोड़ि कऽ चलि गेली! हमरा अनाथ कऽ कऽ
चलि गेली!
दादी असगरे आबि कऽ
अंतिम संस्कारक तैयारी करए लगला। शेलपेंमे रहै बला मामा धरिकेँ खबरि दइबला हमरा कियो ने भेटल। बरखा बहुत जोर-जोरसँ भऽ रहल छेलै।
गाममे आएल बाढ़िक पानि अखनि धरि सटकल नै छेलै।
श्मशान घाटपर दादी असगरे चितापर लकड़ी राखैत जा रहल छला आ हम हुनक संग दऽ रहल
छलिऐ। हमर माएक अंतिम यात्रामे दादीक अलाबे आन कियो ने आएल रहए। अनहार-मुनहार भऽ गेलापर चिता बनि कऽ तैयार भेलै। हम माएक लहाशकेँ चितापर चढ़ा कऽ
अपना हाथेँ आगि देलिऐ। मुदा चितामे आगिए ने लगै। एक तँ तीतले लकड़ी आ तैपरसँ बरखा बरिसैत।
दादी बहुत प्रयास केलनि, मुदा बरखा आ तेज हवाक
कारणेँ चिताकेँ धाहो धरि ने लागि सकलै। अधरतिया भऽ गेल रहै आ हम दुनू गोटा अखनि
धरि श्मशान घाटमे छेलौं। चिताकेँ आगि लगेबाक प्रयासमे दादी
थाकि चुकल छला। जखनि कोनो उपाए नै चललनि तँ
चुपचाप काम करै बला दादी किछु कालक ले ठाढ रहला आ
बजला-
“बाउ! अहाँक हाथे अहाँक माएक चिताकेँ आगि नै लागि रहल अछि? आब की उपाए?”
“आब कोनो तरहेँ ऐ लहाशकेँ माटिमे
गारए पड़त!” एते कहि ओ कोदारिसँ माटि खोदब शुरू कऽ देलनि।
हुनकर बात सुनि
हम सोचए लगलौं- “हँ, हम ठहरलौं भागहीन पाखलो! पाखलेक वंशज छी, ऐ लेल हमरा हाथेँ माएक चिताकेँ आगि नै लागि रहल अछि। हमरा पाखलो नै होइक चाही। हमर ई पाखलेपन हमरा मोनकेँ चोट पहुँचा रहल छल। आइ ऐ पाखलेपनक एहसास हमरासँ सहन नै भऽ रहल छल।”
एक आदमीक नमती बरबरि एकटा खदहा खुनल गेल।
“माटि दइसँ पहिने अपन माएकेँ प्रणाम
करियनु।”
दादीक एते कहला पछाति
हम होशमे एलौं आ दुनू हाथ जोड़ि माएकेँ प्रणाम केलौं।
·
किछुए दिनमे हम पाखलोसँ खलासी बनि गेलौं। जइ कार्रेरपर गोविन्दक दादी ड्राइवर
छला ओइ कार्रेरपर ओ हमरा खलासीक रूपमे राखि लेलनि। हमर काज छल यात्री सबहक समान ऊपर
चढ़ाएब आ उतारब। बाजारक दिन तँ कार्रेरमे
बहुत भीड़-भाड़ रहै छेलै। कार्रेरक भीतर
यात्री लोकनि, तँ ऊपर केराक घौर, कटहर, अनानास सन बहुतो रास चीज होइ छल।
कार्रेर बुझू हकमैत-हकमैत सड़कपर चढै-उतरै छल। मुदा जाधरि हम खलासी रहलौं ताधरि कार्रेरकेँ किछु नै बिगड़लै आ ने तँ
हम एक्कोटा टिप चुकए देलिऐ।
बस मालिकक भाय यात्री लोकनिसँ पाइ ओसलै छल। ओ बहुत ठसकमे घुमै छल, मुदा राति होइते ओकर सभटा हेकड़ी खतम भऽ जाइ छल। घर पहुँचला पछाति ओ पावलूक ओइठाम
जाए कऽ भरि दम शराब पीबि लइ छल। एकदिन ओ हमरा शराब आनैले कहलनि। हम हुनका शराब तँ
आनि देलियनि मुदा दादी हमरा देख लेलथि आ बहुत डाँट-फटकार केलथि। “आब फेर कहियो शराब आनए नै जाएब।” एते कहैत ओ हमरा गामक केलबाय देवीक किरिया देलथि। एकटा आर एहने सन स्मरण... .एकबेर गैरेजक मैकेनिक
लाडू आ हम कार्रेर धोइले नालीपर गेलौं। हमसभ गाड़ीक पीतरिया चदराकेँ इलायचीसँ
रगड़ि-रगड़ि साफ केलौं। गाड़ी धुऐकाल हमसभ पानिसँ भीज गेल छेलौं। सौंसे देह
जाड़सँ काँपए लागल छल, ऐ लेल लाडू एकटा बीड़ी
सुनगा अपना ठोरमे दबलक आ गाड़ी धुअए लगल। ओ एकटा बीड़ी हमरो देलक। हमहूँ
बीड़ी सुनगेलौं आ पीबए लगलौं। एतबेमे दादी ओतए पहुँच गेला आ हमरा बीड़ी
पीबैत देखि लेलथि। ओ हमरापर बहुत गोस्सा भेला आ संगे ओइ गोस्सामे हमरापर कएक थापड़ मारि बैसलथि। हम कानए लगलौं। हम हुनकर पएर
पकड़लियनि, माँफी माँगलियनि, मुदा ऐ सभसँ दादीक गोस्सा कम नै भेलनि। “आब जँ फेर अहाँ
कहियो बीड़ी पीलौं तँ अहाँकेँ अपन माएक किरिया!” ओ हमरा किरिया
देलथि।
हम जहियासँ खलासी बनल छेलौं तहिएसँ दादीक ओइठाम रहै छेलौं। हम आ गोविन्द दुनू
गोटे भाइक सदृश भऽ गेल छेलौं। गोविन्द हमरासँ बेसी बुधियार आ चलाक छल, संगे तत्वज्ञानी आ आस्तिक सेहो। हमर माए जहियासँ हमरा छोड़ि कऽ गेल रहथि तहिएसँ हम प्रायः कानैत रहै छेलौं। एहेन स्थितिमे नेना रहितो गोविन्द हमरा समझबैत-बुझबैत रहै छल। ओ कहै छल, “अहाँकेँ पता अछि! जखनि हमर तामू गाए बच्चा देने छेली तँ ओहो चारिए मासक भीतर मरि गेल छेली, तखन हुनका बाछाकेँ के देखने रहै? ओइ समैक छोट बाछा आइ बड़का बरद बनि गेल छै। पाखल्या! …..यौ पाखल्या! कानू जुनि! अहाँकेँ देखि हमरो कननी आबि जाइए।”
हमर आजी सेहो पछिले साल भगवानक घर
गेल छेली। ओ कहै छेली, “सभटा जनम लइबला
प्राणीकेँ एकदिन मरइ पड़ै छै, एकरा लेल लोककेँ
दुख नै करैक चाही।”
ई सभ सुनि हमर कानब बन्न होइ छल। हम
ओकर भाषण सुनैत जा रहल छेलौं आ ओ कोनो तत्वज्ञानी जकाँ बजिते जाइ छल...
“मनुख जनमक संग मृत्यु सेहो अपना संगे आनने अछि। जनमकालमे
ओ नेना रहैए, नेनासँ ओ जुआन भऽ जाइत अछि, जुआनसँ बूढ़ आ फेर जनमक आखिरी आ अंतिम अवस्थामे मनुखकेँ मृत्यु भेटै छै।
अवस्थाक ऐ चक्रसँ हरेक प्राणीकेँ गुजरइए पड़ै छै। जेतए-जेतए प्राणी छै ओतए-ओतए मृत्यु पसरल छै। चाहे धरती हुअए, जल हुअए आकि अकास, सभठाम मृत्यु निश्चित अछि।”
जखनि हम हुनकासँ पुछियनि, “अहाँ ई सभ केतए
सीखलौं? ई सभ अहाँ किताबमे पढ़ने छी की?” तखन ओ जवाब दिअए, “हमरा ई सभ विणे आजी बतबै छेली।”
एकबेर फेर माएक यादि अबिते हमरा आँखिमे नोर आबि गेल आ हमरा समक्षहि हमरा छोड़ि
कऽ गेल हमर माएक मूर्ति हमरा सोझमे ठाढ़ भऽ गेल। रामायण, महाभारत आ आन-आन कथा-पिहानी सुनाबैवाली..., हमरा मरगिल्ला खोआकेँ
पैघ करैवाली..., हम बँचि गेलौं ऐ खुशीमे हमरा अपन छातीसँ लगबैवाली
हमर माए..., अपना आँखिक सोझमे देखल गेल हुनक मृत्यु, हुनक लहाश, ई सभटा हमरा यादि आबि गेल। आँखिमे
आएल नोर पोछि हम हुनका प्रणाम केलियनि।
·
चारि
गोविन्द जइ बरख पणजीमे नोकरीपर लागल, पाखलो ओइ बरख लौह–अयस्कक खदानपर ट्रक ड्राइवर बनि गेल। ओकर
काज देखि कऽ साले भरिक भीतर कम्पनी ओकर नोकरी पक्की कऽ देलकै। ओकरा चारि सौ पचास रूपैआ दरमाहा भेटैत रहै आ एकर अलाबे ओवरटाइम सेहो। ओकर खेनाइ-पीनाइ होटलमे होइ छेलै आ ओ केतौ सुति जाइ छल।
पाखलो आ आलेस दुनू अपन पएरक तरेँ दूभिकेँ मसोरैत लदानक गैरेज लग जा रहल छल। काल्हि आनल गेल लौह–अयस्कक चूर्णक ढेर देखि कऽ ओ बहुत
अचरजमे पड़ि गेल। ओ दुनू गैरेज पहुँचल। ट्रक
स्टार्ट कऽ धूराक मेघकेँ पाछू छोड़ैत ओ लोकनि ट्रक तेजीसँ बढ़ेलक।
साँझमे पाखलो आ
आलेस अपन-अपन ट्रक आनि गैरेज लग लगा देलक। कल्हुका हिसाबे आइ एक खेप बेसी लगेलक। आइ दुनू बहुत बेसी प्रसन्न देखैमे आबि रहल छल। पाखलो अपना देहपर एक नजरि देलक। ओ धूरासँ सानल बुझाइ छल। ओकर कपड़ा पूर्ण रूपसँ धूरामे सानल रहै। माथक केश,
मोछ आ सौंसे देह धूरासँ सानल रहै। ओ हाथ-पएर धुऐले आलेसक संग नल दिस चलि देलक।
नलपर जमा भेल
सभटा मजुरनी पाखलोक मजाक उड़बए लगली। एकटा मजुरनी अपन एकटा छोट सन
एेना निकालि पाखलोकेँ ओकर अपने रूप देखैले देलकै। ओ
एेना लेलक,
ओइमे अपन अजीब रूप देखि हँसए लगल। ओकरा बुझेलै जे ओ ललका मुँह बला बनरबा छै।
“पाखल्या, बगलबला झीलमे जेना धूरा जमै छै तहिना तोरो देहपर जमल छह।”
एकटा मजुरनी पाखलोकेँ पएरसँ माथ धरि देखैत कहलकै।
“ओ तँ धूरेक मिलपर नोकरी करै छै।”
एकटा दोसर
मजुरनी ओकर मजाक केलकै। ई सुनि सभटा मजुरनी हँसए लगली। ओकरा संग पाखलो सेहो हँसए लगल।
“ओ धूरासँ भरल अछि ऐ लेल अहाँसभ ओकरापर हँसि
रहल छी?”
आलेस मजुरनीसँ पुछलकै….;
“नहएला पछाति ओकरा देखि लेबै, ओ सेब सन लाल आ एकदम फिरंगी सन भऽ जाएत, जे देखि कोनो बाप ओकरा अपन बेटी दइले तैयार भऽ जेतै।”
“आलेस, पाखलोक लेल अहाँ अपने जातिमे कोनो कन्या ताकि दिऔ”, पहिल मजुरनी कहलकै।
“...से किएक? ओकरा तँ कोनो पाखलिने चाही। पाखल्या! अहाँ अपना लेल
लिस्बनसँ एकटा पाखलिन लऽ कऽ आबि जाएब।”
ऐ बातपर सभ कियो हँसए लगल मुदा
पाखलोक भौंह तनि गेल।
“ओ... हो... एकर मामाक बेटी छै ने?” बीच्चेमे स्मरण आबि गेलासँ दोसर
मजुरनी पहिलसँ बाजलि।
“एकर मामा सोनू परसूए शेलपेंसँ गाम
आएल छै। ओकर बेटी बिआहै जोग भऽ गेल छै।”
“शी... ई तँ पाखलो छै ने?”
“पाखलोसँ ओकर बिआह...? शी...” पहिल मजुरनीक अपन डाँड़पर बान्हल तोलिया झारैत कहलक। ओकर ई कहब सुनि सभ कियो
चुप भऽ गेल। पाखलोकेँ बहुत खराप लगलै आ ओकर भौंह तनि गेलै।
नहा-धो कऽ ओ लोकनि निच्चाँ उतरए लागल। उतरैत काल
आलेस सीटी बजा रहल छल आ पाखलो चुपचाप चलि रहल
छल। ओइ मौनक स्थितिमे ओकरा अपन मामा, सोनूक पछिला बात सभ स्मरण आबि गेलै।
सोनूक बिआहमे
पाखलोक माए,
ओकरा कोरामे लऽ कऽ गेल छेली। बिआहसँ ठीक दू दिन पहिने, सोनू अपन बिआहक
खबरि अपन बहिनकेँ देने छेलै। ओ बिआहमे कोनो
बिध-बेवहार करैले तैयार नै रहथि, मुदा सोनूक जिद्दक
कारणेँ ओकरा मानए पड़लै।
सोनूक दुनियाँ केवल दू बरख धरि चलि सकल। ओकरा एकटा बेटी भेलै मुदा तेसरे बरख ओकर घरनी ओकरा
सदाक लेल छोड़ि कऽ चलि गेली।
पाखलो एकटा पैघ साँस छोड़लक। ढलानसँ
निच्चाँ उतरैत ओकर पएर लड़खड़ा गेलै।
आलेस आ पाखलो नदीक कछेर बला होटल पहुँच गेल। आन दिन जकाँ ओ सभ होटलक भीतर जाइले अपन-अपन माथ निच्चाँ झुकौलक। पाखलो चाह
पीबि लेलक मुदा ओकरा दिमागसँ अखनि धरि ओइ
बातक निशाँ नै उतरल छेलै। आलेस ओतए जमा भेल
मित्र सभसँ गप करए लगल।
पाखलो होटलसँ
बाहर निकलल आ खेत दिस खुलल पेड़ा बाटे चलय लागल। ओ बहुत दुखी अछि, एहेन ओकरा चेहरासँ बुझाइ छेलै। मजुरनी
सभ द्वारा कएल गेल गपक नह ओकर करेजके नोचने-फारने जा रहल छेलै।
“शी... ई तँ पाखलो छै ने?”
“पाखलोसँ ओकर बिआह...? शी...”
·
ई अबाज मंगुष्ठी झरनाक पानिक
छल, ने कि कपड़ा-लत्ता धोबा आ पानि भरैले अबैवाली कन्या आ स्त्रीगणक बजबाक। आइ
पाखलो कनी देरीसँ आएल रहए। ओ किछु अन्यमनस्क सन लगै छल। ओ झरनासँ गाम दिस जाइबला लोकपेड़िया दिस देखलक। ओइ
लोकपेड़ियाक बाटेँ अन्हरिया गाममे पएर रखने छल।
ओ अपन देहसँ कपड़ा उतारलक आ
मंगुष्ठक गाछक जड़िमे राखि देलक। ओ झरनाक कछेरमे बैस गेल। बहैत पानिमे ओ अपन पएर खुलल
छोड़ि देलक। ओकरा जाड़ लगलै। ओ जाड़ ओकरा नसमे समा गेलै। ओ अपन आँखिक पिपनी बन्न
कऽ लेलक। दुपहरमे धूरापर चलैत जे पएर छक-छक पाकैत रहै ओइ पएरकेँ अखनि जाड़ लागि
रहल छेलै। ई सोचि पाखलो एकटा नम्हर साँस छोड़लक आ आँखि बन्न कऽ लेलक। ओ प्रायः
आबि कऽ पहिने अपन पएर ठंढा पानिमे डुमबैत रहए। जखनि सभटा कन्या आ स्त्रीगण
पानि भरि कऽ चलि जाइ, तखने ओ नहबै छल आ अपन कपड़ा-लत्ता धुऐ छल।
ओ पानिमे डुमकी लगौलक। छपाकक अबाज भेलै ऐ
लेल ओ अपन माथ उठौलक तँ देखलक जे शामा हँसि रहल छेली। ओहो हँसल। शामा झरनाक ऊपरका
धारपर अपन घैल भरए लगली। “आइ पानि भरबामे देरी किएक भेल?” पुछबनि, पाखलो सोचलक। मुदा ओ चुप रहल। शामा घैल अपना डाँरपर रखलक आ छोटकी घैल अपना
हाथमे राखि चलि देली। नजरिसँ दूर होइत धरि पाखलो ओकरा देखते रहि गेल।
ओ होशमे आएल! की शामा पानिमे पाथर
फेकने छेली? ओ सोचए लागल, ‘हँ’,
ओकर एक मोन कहै छेलै जे “ओ आएल छेली आ हमरा
सचेत करैले ओ पाथर फेकने छेली। ओकर दोसर मोन कहै–नै, ओ पाथर मारए एहेन काज नै कऽ सकैए। भऽ सकै छै ऊपरका मंगुष्ठ निच्चाँ गिरल
होइक।”
ओ ई सोचते छल ताधरि एकटा
मंगुष्ठ पानिमे गिरलै। पाखलो ओ लाल मगुष्ठ उठौलक। ओकरा फोड़लक। फोड़ला पछाति ओ ओइ
खटमिट्ठी मंगुष्ठकेँ अपना मुँहमे लेलक। खाइत काल ओकरा एकटा घटना यादि एलै। ऐ घटनाक
बहुतो बरख भऽ गेल रहै। जंगलमे काजू आ काण्ण खाइत-खाइत गोविन्द आ ओ ऐ झरनापर आएल
छल। मंगुष्ठी झरनाक मंगुष्ठ बहुत पाकि गेल छेलै। पाखलो आ गोविन्द ओइ मंगुष्ठपर
पाथर मारए लगल। ओइ समए शामा झरनापर आबि रहल छेली, ई गोविन्द देखलक आ देखते अपना हाथसँ
पाथर फेकि देलक आ पाखलोसँ कहलकै- –
“पाखल्या, हाथसँ पाथर फेकि दिऔ, विन्या मामाक शामा आबि रहल
छथि।”
“किएक?” पाखलो पुछलकै।
“यौ, मंगुष्ठी झरनाक जगह ओकरे छै ने, हमसभ जे मंगुष्ठ
झटाहि रहल छी ई बात जँ ओकरा बाबूकेँ पता लागि गेलनि तँ से नीक गप नै होयत। ओ गारिओ
देता आ मारबो करता। गोविन्दक कहला पछाइतो पाखलो अपना हाथसँ पाथर नै फेकलक। ओ लगातार
झटाहते रहल। गोविन्दक रोकलाक पश्चाते ओ रुकल। ताबत शामा ओतए आबि गेली। ओ लाल रंगक
पाकल मंगुष्ठकेँ देखलक। ओकरो मंगुष्ठ खेबाक मोन भेलै। ओहो पाथर मारि-मारि मंगुष्ठ
झखारए लगली। ओकर दू-तीन पाथरसँ एकटा पातो नै गिरलै। पाखलो आ गोविन्द दुनू हँसए
लगल। ओ लजा गेली। ओकरे आनल पाथरसँ पाखलो मंगुष्ठ झटाह’ लागल।
जल्दीए ओ पाथर ओतै फेकि मंगुष्ठक गाछपर चढि गेल आ मंगुष्ठक गाछक डारिकेँ हिलाबए लागल।
मंगुष्ठ सभ ढब-ढब कऽ गिरए लगलै। छिट्टा आनैले शामा घर चलि गेली। मुदा आपस अबैत काल
ओकरा संगे ओकर बाबूजी सेहो आबि गेला। धरतीपर पसरल काच मंगुष्ठ देखि कऽ ओ पाखलोकेँ
ओकरा माए आ ओकर जाति लगा कऽ गारि देलकै।
तेकरा बादसँ जखनि कहियो शामा
ओकरा बाटमे भेटैक ओ अपन माथ झुका कऽ चलि जाइ छेली।
जइ दिनसँ पाखलो ड्राइवर भेल
छल तइ दिनसँ ओ मंगुष्ठी झरनापर नहाइले अबै छल। पाखलोकेँ देखि शामा कहिओ-कहिओ हँसि दइ
छेली। शामाक यौवनक भार देखि कऽ ओकरा मोनमे उमंग आबि जाइ छेलै। एकदिन तँ शामा ओकर आ
गोविन्दक हाल-समाचार सेहो पुछने छेली। तइ दिन, ओ प्रायः पाखलोकेँ देखि कऽ हँसै छेली
आ पाखलोक मोनमे ओकरा प्रति नब अंकुर पनकी दऽ रहल छेलै।
पाखलोसँ ई खबरि सुनि, गोविन्द पाखलोक खूब
मजाक उड़ौलक।
“पाखल्या, हुनकर स्वभाव बहुत नीक छन्हि। ओ कनी कारी अबस्स छथि मुदा देखैमे नीक
छथि। अहाँक जोड़ी खूब जँचत।” ई बात पाखलोक मोनमे घुमैत रहै आ
ओ नहबैत काल अपना-आपमे ओ उफान महसूस करै छल।
दोसर दिन रबि रहै। पाखलो
घूमबाक लाथे बाहर निकलल। बाट चलैत-चलैत ओ मंगुष्ठ झरना लग पहुँच गेल। झरनाक शीतल पानिसँ ओ एक
आँजुर पानि पीबि लेलक आ लगीचक आमक गाछ दिस चलि देलक। ओइ आम गाछक नम्हर जड़ि ऊपर
धरि आबि गेल रहै आ कोनो नेना जकाँ अपन कुल्हा ऊपर कऽ धरतीपर पसरि गेल रहै। पाखलो
एकटा जड़िपर बैस गेल आ प्रकृतिक सौंदर्य देखए लागल।
आइ चैत मासक पूर्णिमा छेलै।
गामक लोक सभ सांतेरी मंदिर लग वसंत पूजा करैबला रहै मुदा तइसँ पहिने प्रकृति फूल आ
फल सबहक लटकनि लगा कऽ वसंत ऋतुक स्वागत कऽ चुकल छेलै। आमक गाछक अजोह आम सभ
गोटपंगरा पाकए लागल छेलै। काजूक गाछपर लाल आ पीअर काजू लागल रहै। हरिअर अजोह काजू सभ
पकबाक बाट जोहि रहल छल आ अखनि धरि डारिपर फुल्ली सभ डोलि रहल छेलै।
शनैः–शनैः बसात सिहकए लगलै।
पाखलोकेँ लगलै– आब ई प्राणदायी बसात ऐ प्रकृतिकेँ नब जान दऽ देतै।
गाछ–बिरीछकेँ पागल बना देतै। बसातक सिहकबक संगे पाखलोक मोनमे
विचारक लहरि हिलकोर मारए लगलै। ई बसात पच्छिम दिसक पहाड़केँ पार करैत, खेतक बीचोबीच धरतीकेँ चीरैत नदीकेँ पार करैत पूबरिया पहाड़ दिस उछलैत बिना
रूकने आगू बढि जाएत। ओ केतएसँ आएल हेतै? कोन ठामसँ आएल हेतै? ई कहब ओतेक सरल नै अछि। ओ सभ ठाम भ्रमण करैबला प्रवासी अछि।
बसातकेँ अबिते धरती ओइ बसातमे
रंग उछालि ओकर स्वागत केलक। बसात धरतीक माथक चुम्मा लेलकै। गाछ सबहक आलिंगन केलकै।
लत्तीसभकेँ बाँहिसँ पकड़ि कान्हपर रखलकै आ फेर निच्चाँ राखि देलकै। फूल, फल आ पात सबहक चुम्मा
लेलकै आ पूरा बगैचामे सभकेँ हाथसँ इशारा करैत ओ आपस चलि गेल।
पाखलोकेँ मोनमे भेलै, “जे हमहूँ बसाते जकाँ ऐ
इलाकामे घूमि-फिरि रहल अछि। हम अपन जनमे कालसँ ऐ इलाकामे रहि रहल छी। मुदा हम बसात
जकाँ आबि कऽ चलि नै जाइ छी अपितु एतुका निवासी भऽ गेल छी। ऐ आम गाछक सदृश हमरो
जड़ि बहुत भीतर धरि गेल अछि। ऐ माटिक बलपर हम पैघ भेलौं, फड़लौं-फुलेलौं। ऐ माटिक संस्कारमे
पलल-बढ़ल पाखलो थिकौं हम।”
साँझ खतम भऽ कऽ गोधूलि भऽ रहल
छेलै। मंगुष्ठी झरनापर पानि भरि कऽ कन्या आ स्त्रीगण घर जा रहल छेली। पाखलोक धियान
ओम्हर नै छेलै, अपितु आइ शामा पानि भरैले नै आएल छेली, ऐ लेल ओकरा जीवनकेँ फाँसी लागि गेल
रहै। हाड़-मांसुसँ बनल पाखलोकेँ एकटा कुमारि कन्यासँ सिनेह भऽ गेल
रहै आ ओ ओकरासँ बिआह करैले सोचि रहल छल। जेकरा एक नजरि देखि लेलासँ ओकरा नस-नसमे
उमंग आबि जाइ छेलै वएह शामा आइ झरनापर नै आएल छेली, तँए ओ अपनाकेँ मंद महसूस करै
छल।
गोधूलि खतम होइपर रहै आ
अन्हार अपन पएर पसारि रहल छल। सांतेरी मंदिर लग पाखलोकेँ पेट्रोमैक्सक जगमग करैत
इजोत देखा पड़लै। ओकरा आइ हुअए बला वसंत पूजाक स्मरण आबि गेलै। वसंत पूजा दिन
सांतेरी माएक पालकी बड़ धूमधामसँ बाहर निकलै छै। ओ प्रकृतिमे आएल वसंत ऋतुसँ भेँट करै छथि। ओइ राति ओ मंदिर
आपस नै जाइ छथि अपितु बाहरे प्रकृतिक संग रहै छथि। वसंत ऋतुक दिन गाम भरिक लोक भरि
राति उत्सब मनबैए। पूजाक लेल तँ शामा अवस्से औती, तखनहिँ हम हुनकासँ भेँट कऽ लेब। पाखलो सोचलक। शामासँ
भेँट करैक बहन्ने ओकरा पूरा देहमे जोश आबि गेलै, आ गाम दिस जाइले ओ तीव्र गतिएँ
चलए लागल।
मंगुष्ठी झरनापर सभ दिन जकाँ
पाखलो आइओ अपन कपड़ा धुऐ छल। रबि लगा कऽ आइ तीन दिन भऽ गेल रहै। गोविन्द रबिकेँ
किएक नै एला? ओ यएह सोचि रहल छल। एतबेमे दूरसँ – “पाखल्या!
यौ पाखल्या!” गोविन्द सन अबाज सुनबामे आएल। ओ
पाछू घूमि कऽ देखलक। गोविन्दकेँ देखते पाखलो तुरन्त उठल आ ओकरा दिस दौग कऽ गेल।
दुनू एक दोसरासँ हाथ मिलेलक। गोविन्दक कनहा अपन हाथसँ हिलबैत पाखलो पुछलकै-
“अहाँ रबि दिन किएक नै एलौं?”
“की कही, हमरा ऑफिसक मित्र लोकनि हमरा पिकनिकपर लऽ कऽ चलि गेल छला। हम जाइ बला नै
रही, मुदा की करितौं ओ सभ हमरा जबरदस्ती लऽ गेला। हमर मोन
करैत रहए जे आबि कऽ अहाँसँ भेँट करी।” गोविन्द अपन मोन खोलि देलक।
“जाए दिअ, अखने मिललौं यएह की कम अछि?
“चलू पहिने अहाँ नहा
लिअ”
गोविन्दक कहलापर पाखलो झरनामे
नहाबए लागल। गोविन्दकेँ किछु कहबाक उत्सुकता रहनि। ओ अपना हाथसँ पानि निकालि
पाखलोक देहपर छिट्टा मारए लगल, पाखलो सेहो हुनकापर पानि फेकलक। ओइसँ गोविन्दक कपड़ा नीक
जकाँ भीजि गेलै। पाखलोकेँ कनी खराप लगलै। ओ गोविन्दसँ माफी माँगलक। गोविन्द एकरा
सभकेँ मजाकमे उड़ा देलथि।
पाखलो नहा कऽ अपन देह पोछलक।
अपन कपड़ा सुखबैले लारि देलकै। बादमे दुनू गोटे आमक जड़िपर आबि बैस गेल। पाखलो
गोविन्दक आँखिमे देखलक। गोविन्द किछु कहए चाहै छल, ई हुनका आँखिसँ पाखलोकेँ पता लागि गेल।
“कोनो नब समाचार?”
पाखलो पुछलकै।
“समाचार? एकटा नब समाचार अछि।”
“कोन समाचार?”
“हमरा लेल एकटा संबन्ध
आएल अछि।”
“अहाँक लेल संबन्ध?
केतएसँ? केकर?” पाखलो एकक
पछाति एक प्रश्न केलक।
“ई सभ हम अहाँकेँ बादमे
कहब। पहिने बताउ, जे शामा आइ पानि भरैले आएल छेली?”
“हँ... नै..., अखनि धरि तँ नै।” पाखलो सोचि कऽ जवाब देलक।
“नै ने? तखन तँ हमर अनुमान ठीके भेल। हम अहाँकेँ आर नै उलझाएब। हमरा लेल विन्या
आपाक दिससँ शामाक लेल संबन्ध आएल अछि। हम ओकरा साफ मना कऽ देलिऐ।”
पाखलोकेँ बतबैले आनल गेल रहस्य
गोविन्द खोलि देलक।
“मुदा संबन्धक लेल
अहाँ मना किएक कहलौं?” पाखलो फेर प्रश्न केलक।
“एकर जवाब तँ बड्ड सरल
छै यौ।” गोविन्द बाजल-
“शामाक जोड़ीक लेल
अहाँक प्रयोजन अछि हमर नै। अहाँकेँ स्मरण अछि, हम एकबेर अहाँकेँ
कहने रही – “शामा आ अहाँक जोड़ी केहेन रहत?” किछु कालक लेल दुनू गोटे चुप भऽ गेल।
बादमे गोविन्द बाजए लगला-
“हम दुपहरकेँ घर गेल
रही। खएला पछाति माए हमरा ऐ संबन्धक बारेमे बतौलनि। हम साफ मना कऽ देलियनि,
मुदा किएक? से नै बतौलियनि।”
“नै गोविन्द, ऐ संबन्धकेँ नकारि अहाँ नीक नै केलौं। अहाँ हमरा लेल त्याग कऽ रहल छी। ई
हमरा नीक नै लागि रहल अछि।”
पाखलो कहलक।
“एहेन नै छै पाखलो,
अहाँ बुझैत नै छी। अहाँकेँ कियो ने अछि। आ शामा अहाँकेँ पसिन्न
सेहो अछि। ओ अहाँकेँ भेट जेती तँ हमरा खुशी होएत।”
“मुदा हमरा संग...”
पाखलो किछु कहैबला रहथि।
“ओ सभ बादमे देखल जेतै।”
एते कहि गोविन्द चुप भऽ गेल। पाखलोक
मोन विचलित भऽ गेलै, मुदा शामाक सभ स्मरण अखनो ओकरा मोनमे महकैत रहै। शामा द्वारा
गोविन्दक लेल कएल गेल पूछारि..., ओकर मीठ-मीठ बोली..., फूल-सन ओकर हँसी...
सभटा।
ओकरा दुनूकेँ देखि शामा
झरनासँ बिना पानि भरने आपस चलि जाइ छेली।
तेकर बाद ओ शामासँ भेँट केलक आ “हमरासँ बिआह करब?”
पुछलकै। शामा ओकरा “हँ” कहतै
ओकरासँ यएह अपेक्षा छेलै पाखलोकेँ, मुदा ओ बाजलि, “नै अहाँ पाखलो थिकौं! ” पाखलो शामाकेँ किछु कहैले
मुँह खोल नै छल आकि ओ ओतएसँ चलि देली। पाखलोक मोन तँ बुझु जे नागफनीसँ भरल
रेगिस्तानक सदृश भऽ गेलै।
·
पाँच
शंभुक
होटलमे रातिक भोजन कएला पछाति हम दीनाक घर दिस चलि देलौं। आइ बहुत काज केने रही तइले
सौंसे देहमे दरद छल। भूइयाँपर पड़िते हमरा निन्न आबि जाएत, एहेन बुझाइ छल।
बान्हपर
पहुँचबाक देरी नहुँ-नहुँ बसात सिहकए लागल। अहा! ....केहेन शीतल बसात छै! बसात लगिते देहमे हरिअरी
आबि गेल। बान्हक एक दिस खेत-पथार आ दोसर दिस मांडवी नदी बोहै छेलै। बगलक
नारिकेलक गाछसँ अबाज आबि रहल छेलै। चारू दिस अन्हारे-अन्हार छेलै! ऐ
अनहरियामे जान आबि गेल रहै। अन्हारमे ऊपर भगजोगनी भुकभुक करै छेलै। नदीक
कारी पानिमे माछ सभ उछलैत रहै आ ओकर लहरि भगजोगिनिएँ जकाँ दीप्यमान भऽ रहल छेलै।
बान्हक
बीच्चेमे मूलपुरुष (ग्रामदेवता)क मंदिर नुकाएल रहै। ओ मंदिर एकदम
टूटि गेल रहै। मंदिरक ऊपर चार नै छेलै। मंदिरक चारू कातक देबाल सभमेसँ आगूक देबाल
तँ एकदम्मे टूटि गेल रहै। बाँकी तीनू देबालपर सिम्मर, बर, अश्टी सन पैघ-पैघ गाछ सभ
जनमि गेल छेलै। गोविन्दक विचारसँ मूलपुरुषकेँ खुब पैघ खुलल मंदिर भेटल छन्हि। ओ
कहै छल-
“ऐ चारू
गाछपर आकासक छत छै आ ऐ मंदिरमे मूलपुरुष रहै छथि।”
चलैत–चलैत
हम मूलपुरुषक मंदिर लग पहुँच गेलौं। ऐ मंदिरमे हम एकबेर साँप देखने रही, ओ स्मरण
अबिते हमर सौंसे देह सिहरि गेल।
नेनपनमे
एकबेर हम आ गोविन्द माछ मारैले नदीपर गेल छेलौं। बहुत काल पछाति हमरा बंसीमे एकटा
खर्चाणी (माछ) फंसल छल। ओकरा हम एकटा नारिकेलक सिक्कीमे गूथि लेलौं। बाटमे
मूलपुरुषक मंदिर भेटल। बंसी निच्चाँ राखि हम दुनू गोटे मूलपुरुषकेँ गोर लगैले गेलौं।
मूलपुरुषक कारी मूर्ति, मंदिरक टुटलाहा भागमे पाथरक ढेरीक बीचमे छेलनि। हम अपन
हाथक माछ मंदिरक सीढीपर राखि देलौं। हम दुनू गोटे मूर्ति लग माथ टेकलौं। ने जानि केतएसँ
ओइ मूर्ति लगक पाथरपर एकटा साँप आबि अपन फन काढ़ि ठाढ़ भऽ गेलै। हम दुनू गोटे बहुत
डरि गेलौं आ पाछू हटि गेलौं। पछाति जाए कऽ ओ साँप ससरि कऽ ओइ पाथरक ढेरीमे ढूकि
गेल। गोविन्द तँ डरक कारणेँ बुझू जे पाथरे बनि गेला। हम सभ भगवानक सीढीपर माछ रखने
छेलौं, ऐ लेल हुनका खराप लागलनि की? हमरा मोनमे एहेन भेल। हम आपस सीढी लग गेलौं आ ओतए राखल
माछ उठा कऽ नदीमे फेकि देलौं। हमसभ पुनः मूलपुरुषक पएरपर गिर कऽ हुनकासँ माफी
माँगलियनि।
हम
गोविन्दसँ पुछलियनि-
“हम माछ
राखने छेलौं ऐ लेल मूलपुरुषकेँ गोस्सा आबि गेलनि की? मंदिर भ्रष्ट भऽ गलै की?”
“नै यौ, एहेन
केतौ होइक? गामक
लोकतँ हुनका माछो चढबै छन्हि।” गोविन्द जवाब देलक।
“तखन साँप
किएक देखैमे आएल?
हम माछ राखने रही, ऐ लेल मूलपुरुषक मंदिर भ्रष्ट भऽ गेलै की?”
“अहाँक माछ
रखलासँ मंदिर केना भ्रष्ट भऽ जेतै?”
“हम...।”
“चुप रहू,
पाखलो भेलौं तँ की भेल? पछिला बेर तँ हम इमली आ आँवला रखने छेलौं, तखनो मंदिर भ्रष्ट
भेल छेलै की? नै
ने!
अहाँ चुप रहू आ केकरो किछु नै बतेबै।”
हम
मूलपुरुषक मंदिर लग पहुँच गेलौं। मंदिरक चारू दिस पहाड़ छेलै आ बीचमे मंदिर। रातुक
अन्हारमे पहाड़ कारी देखाइत रहै। ऊपर तरेगनसँ सजल अकास। जेना घरक धरेन आ छप्पड़, ऐ
दुनूक बीचसँ इजोत अबै छै ओहने इजोत अकास आ पहाड़क बीच पसरि रहल छेलै।
हम
अपन जूता खोललौं आ मूलपुरुषकेँ गोर लगलौं। रातिक अन्हारमे मूलपुरुषक मूर्ति नै लखा
दैत रहै। हमरा भेल जे जेना मूलपुरुष एतए अन्हारक एकटा बड़काटा रूप लऽ कऽ
पूरा संसारपर पसरि गेल छथि।
मूलपुरुषक
मंदिर बहुत प्राचीन छै। मांडवी नदीक कछेरपर ऐ गामकेँ बसौनिहार आदिपुरूष वएह छथि।
पहिने ई गाम बाढ़िमे डूमि जाइ छेलै मुदा मांडवी नदीपर बान्ह बान्हि ओ ऐ
गामक सृष्टि केने रहथि। हुनका मरलाक ऊपरान्त ऐ गामक लोक सभ हुनकर स्मरणमे ई मंदिर
बनौने छल। ऐ तरहेँ ई मंदिर आ मूलपुरुष द्वारा बनाैल गेल ई बान्ह, दुनू बहुत पुरान
अछि।
हम
मूलपुरुष द्वारा बनाैल गेल ओइ बान्ह धने चलि रहल छेलौं। आ ऐ बान्हक कारणेँ बसल
गाममे हम, माने पाखलो रहैत रही।
·
दीनाक बैसकी
घरमे सभ दिन जकाँ हम चटाय बिछा कऽ बैस गेलौं। दिनाक बेटा एकटा चिट्ठी आनि हमरा
हाथमे थमा देलक। ओ चिट्ठी गोविन्देक छेलै। बहुत दिन पछाति ओ हमरा चिट्ठी लिखने रहए, ऐ लेल हमरा बड्ड प्रसन्नता भेल। गोविन्दक संग घूमब-फिरब, केगदी भाटक पोखरिमे नहाएब, हेलब, ई सभ
सोचैत-सोचैत हम चटायपर सूति गेलौं आ माथ धरि कम्मल ओढ़ि लेलौं।
बहुत राति बीति गेल, मुदा
हमरा निन्न नै आबि रहल छल। हमरा मोनमे केगदी भाटक पोखरिक चित्र बेरि-बेरि आबि जाइ छल! लील रंगक अकासक प्रतिबिंब पानिमे चमकै छेलै। अकासक रंगीन
मेघ पोखरिक लहरिपर हेलि रहल छल। अकास अपन छवि पोखरिक पानिमे देखि मोने-मन खूब प्रसन्न होइ छल आ “ई रूप नीक नै अछि।” ई सोचि
ओ अपन रूपकेँ नव रूपमे रंगै छल आ मेघक वस्त्र पहिरै छल।
पोखरिक लग केगदी (केबड़ा) झाड़ ओ केबड़ाक गाछ सबहक बड़काटा जंगल
रहै, ओ पोखरिक महार केबड़ाक झाड़ीसँ भरल रहै। जखनि केबड़ाक झाड़पर फूल फूलाइ छै ओइ
समए हमसभ नहाइले गेल छेलौं। केबड़ा फूला गेल छेलै। पीअर-पीअर
केबड़ा हरिअर-हरिअर पातसँ बाहर आबि, अपन जी
देखा-देखा कऽ कबदा रहल छेलै। पूरा वातावरण केबड़ाक सुगन्धसँ भरल रहै। हम आ गोविन्द
पोखरिमे कूदि गेलौं। दुनूगोटे हेलैत-हेलैत केबड़ाक द्वीप लग पहुँचलौं।
द्वीपपर केबड़ाक बहुत घनगर जंगल रहै। दुनू गोटे केबड़ाक झाड़क अंदर घूसि केबड़ाक
फूल तोड़ए लगलौं। फूल तोड़ि पोखरि पार केलौं। ओ सभटा पोखरिक कछेरपर राखि देलिऐ।
बादमे बेंग जकाँ हमसभ पोखरिमे डुमकी लगौलौं। भरि दम साँस घीचि ओहिना पानिमे डूमि
गेलौं,
तँ ओइ साँसक संगे बाहर भेलौं। सौंसे देह डुमल छल, मुदा माथक केश हेलैत नारिकेल सदृश बुझाइ छल।
हमरा गामक क्षेत्रफल आन गामक अपेक्षा कनी पैघ छै।
गाममे खेतक मैदान, जंगल ओ पहाड़ हमरा सभकेँ घुमैले कम पड़ि
जाइ छल। नाहपर पतवारि चलाबैत हमसभ नदीमे झिझरी खेलैत रही। नदीमे नहएला पछाति हेलि
कऽ नदी पार करैत रही। अज्ञातवासक कालमे पांडव लोकनि द्वारा बनाैल गेल पोखरिमे हमसभ
नहाइले जाइत रही।
ओ पोखरि बहुत सुन्नर रहै। पैघ-पैघ
पाथरपर पोखरिक चारू दिस नीक चित्रकारी कएल गेल रहै। चारू दिससँ सीढी होइत लोक
पोखरिमे ढूकैक छल। पोखरिक चारू दिस पाथरक
मेहराब छेलै। हर एक मेहराबक भीतर दू-तीनटा कक्ष इजोतसँ भरल। ऐ कक्ष सबहक
देबालक खाम्हपर लत्ती सभ आ आदिकालीन माल-जाल, चिड़ै-चुनमुनीक आकृति बनल रहै। एहेन बुझाइत रहै जेना ऐ मनोहर आकृति बला कक्षमे भगवान
अमृत-कलश राखि देने होथि, ठीक ओहिना लेटेराइट पाथरसँ निर्मित ऐ
पोखरिमे कौआक आँखि-सन साफ पानि देखि कऽ केकरो मोन मुग्ध भऽ
जाइ छेलै। एतेक स्वच्छ पानिमे हमसभ नहाइ छेलौं। नहएला पछाति गोविन्द मेहराबक
कक्षमे जाए कऽ कोनो ऋषि-मुनि जकाँ ध्यानस्थ भऽ बैसैत रहथि। तखन
बुझाइ जे ओइ लेटेराइट पाषाणसँ महाभारतक काल घूमि एलै।
पछिला किछु सालक स्मृतिसँ हमर रोइयाँ ठाढ़ भऽ गेल। ओह... हमर माए! हमरा एहने लागल, जे हमर साँस कियो बन्न कऽ देलक, हमरा गरमे फंदा बान्हि देलक। एकबेर हम आ गोविन्द जखनि ऐ
पोखरिमे नहा रहल छेलौं तखने भट बाबू ओइ बाटे जा रहल छला। हमरा पोखरिमे नहाइत देखि
ओ, “पाखलो
पोखरि भ्रष्ट केलक! पाखलो पोखरि भ्रष्ट केलक!” चिकरए लगला! हुनकर
चिकरब सुनि ओतए पाँच-छह लोक जमा भऽ गेल। भट बाबू हुनका
लोकनिकेँ आदेश देलथिन, जे ओ सभ हमर कान घीचि कऽ बाहर आनथि। ओ
लोकनि हमर कान घीचैत हमरा बाहर आनलथि। बादमे भट बाबू अपन छड़ीसँ हमरा खूब मारलथि।
ओ हमरा मारैत-मारैत सांतेरी मंदिर धरि लऽ गेला। भरि गामक लोक हमरा देखैले
ओतए जमा भऽ गेल छल। ओ हमरा सांतेरी मंदिरक सीढ़ीपर नाक रगड़ैले बाध्य
केलथि। हम अपन नाक रगड़लौं, माँफी माँगलौं, मुदा ओ
हमरा पोखरिक लग बला लोहाक स्तंभसँ बान्हि देलनि।
काल्हिए हम ऐ स्तंभपर नारिकेल फोड़ने छेलौं। सबहक संग ढोल आ ताशा बजा कऽ शिगमो (धार्मिक उत्सव) खेलने छेलौं आ आइ हम स्वयं गामबलाक लेल एकटा तमाशा बनल रही। भट बाबू हमरा ऊपर
नारिकेलक खट्टा ताड़ी उझलि देलथि। एतबे नै कियो हमरा ऊपर घोरणक छत्ता झारि देलक।
घोरण काटिते हम जोर-जोरसँ चिकरए लगलौं। मुदा हमर असहायतापर
किनको कन्निको क्षोभ नै भेलनि।
हमर ई हालति देखि गोविन्द कानैत-कानैत
दौगल हमरा माएकेँ बजा आनलक। ओ “हमर बच्चा…”,“हमर
बच्चा…” कहैत कानल-कानल, दौगल एली मुदा हमरा सोझ अबिते ओ एकदमसँ गिर गेली। ओ बेहोश भऽ गेली आ बहुत काल
धरि उठि नै सकली। हुनका उठबैले हम दौगै बला रही, मुदा जेतए बान्हल रही, ओत्तै रहि गेलौं। हुनका कियो ने
उठौलक,
उनटे लोक सभ ई तमाशा देखैत रहल। कनीकाल पछाति ओ अपन ठेघुन
टेकैत उठली। हुनका नाकसँ शोणित बहैत रहनि। हाथ आ पएरमे घाव भऽ गेल रहनि। ओ उठि कऽ
हमरा लग एली आ “हमर बच्चा…” कहैत हमरा गर लगौली। हम दुनू गोटे कानए लगलौं। ओ हमर बन्हन खोलबाक प्रयास करए
लगली मुदा ओइ समए चारि-पाँच लोक हुनका पाछाँ घीचि लेलकनि। बादमे
हुनको घीचि कऽ मंदिर लग लऽ गेल। ओ हमरा छोड़बैले भट बाबूक हाथ-पएर पकड़ैत रहली मुदा ओ हुनका ठोकर मारि धकेलि देलनि। एते देखते हमरा गोस्साक
पारावार नै रहल। हमरा देहक गरम खून दौगए लागल। हम जेतए बान्हल
रही ओत्तै चिकरि-चिकरि कऽ रहि गेलौं। बादमे हमर खून ठंढा
भऽ गेल आ ओ शनैः शनैः हमरा शरीरसँ निकलि रहल अछि, बुझाए
लगलै...,
हमरा बुझाएल जेना हमरा पूरा शरीरक सभटा खून बहि गेल हो!
Illustration -02
हमर माए कानि रहल छेली आ हुनका सबहक पएर पकड़ि रहल छेली, मुदा हुनक गोहारि कियो ने सुनि रहल छल। ओ जहिना हमरा छोड़बए आगू
आबथि, लोक हुनका रोकि लैक। बादमे जखनि ओ गोस्सासँ महाजनकेँ गारि पढ़ब शुरू कऽ देलनि
तँ लोक सभ हुनको घसीटए लागल आ जइ स्तंभसँ हम बान्हल रही ओइ स्तंभसँ हुनको बान्हि
देलनि। आब हमर मुँह पूब दिस तँ हुनक मुँह पच्छिम दिस भऽ गेल। हम दुनू गोटे एक्के
स्तंभसँ बान्हल छेलौं, मुदा एक दोसराकेँ देखि नै पबै छेलौं। ओ “हमर
बच्चा…”,“हमर बच्चा…” कहि कऽ कानै छेली, तँ हम माए..., माए..., चिकरि कऽ कानि रहल छेलौं। किछु समए
पछाति ओ कोनो तरहेँ अपन हाथ पाछू आनि हमरा छूलनि। हम दुनू दिनभरि ओइ स्थितिमे रहलौं।
पोखरिक शुद्धिकरण करबैले ओ होम-जाप
करौलनि। चारिटा केराक थम्ह आनल गेल आ पुरहित लोकनि होम शुरू केलनि। ओ लोकनि
होमाग्नि जरौलनि। मंत्रोच्चारण करैत ओ लोकनि ओइमे समिधा झोंकए लगला। हमरा बुझाएल
जे ई सभ हमरा आ हमरा माए, दुनूकेँ ऐ आगिमे झोंकि देत। होम चलिते
काल एकटा पुरहित ओइ होमसँ आगि आनि हमरा पएरपर राखि देलक। हमरा बुझाएल, जेना हम काल्हि होलिका जरौने छेलौं तहिना ई सभ आगि लगा हमरा दुनू माय-पुतकेँ जरा देत। मुदा ओ एना नै केलक। आगिक कारणेँ हमरा पएरमे फोका भऽ गेल छल
जे दर्द करैत रहए। होम-हवन चलि रहल छल आ फाँसीपर चढ़ैबला अपराधी
जकाँ हम जेतए बान्हल रही, ओतैसँ हुनका सभकेँ देखि रहल छेलौं।
गामक लोक सभ ऐ घटनाकेँ एकटा उत्सव जकाँ देखि रहल छला।
दादी ओइ दिन गामसँ बाहर गेल रहथि। साँझ खन घूमिते
गोविन्द हुनका हमरा सबहक खबरि देलक आ संगे लऽ कऽ
पोखरिपर आबि गेल। हमरा आ हमरा माएकेँ स्तंभसँ बान्हल देखि कऽ दादी बहुत दुखी भेला।
जइ दादीक आँखिमे हम आइधरि नोर नै देखने रही; ओइ दिन
देखि लेलौं। ओ हमरा छोड़ा देलथि। ओइ काल ई देखैले ओइठाम
गामक कियो ने रहथि।
ऐ घटना पछाति हमरा गामक लोकपर कन्निको गोस्सा नै आएल, किएक तँ गाममे हमरा छोड़ा कऽ आनै बला आ गोविन्द सन हितैशी आर कियो ने रहथि। नारिकेलक फुटलका खोली जकाँ गरि जाइबला ऐ घटनाक स्मृति आब शेष रहि गेल
अछि। ऐ घटना सभमेसँ एक, स्तंभपर नारिकेल तोड़बाक अछि, ई बतबैवाली हमर माए..., हमरा प्रह्लादक होलिकाक आगिसँ बँचबैवाली
हमर माए...,
हमरा आँखिक सोझ ठाढ रहली आ हमरा आँखिसँ अनायासे नोर खसए
लगल।
·
हम गोविन्दक माएकेँ शोर पारलौं। ओ हमरा घरक भीतरेसँ अबाज
देलथि। ओइ समए ओ चाउर बीछै छेली। ओ उठि कऽ बाहर एली आ हमरा देखि कऽ बजली-
“आउ बाउ, बैसू!।”
हम घरक अंदर गेलौं। ओ हमर हालचाल पुछए लगली।
“एतेक
दिन धरि केतए छेलौं अहाँ?”
“नै बाय... ”
हम किछु कहए चाहै छेलौं
“.... आइ-काल्हि काजमे बेसी बेस्त रहै छी तइले एबाक अवसर नै भेटैए की?”
“...असलमे आइयहु तेहने काज छल, मुदा गोविन्दसँ भेँट करैक रहए ऐ
लेल ओवरटाइम छोड़ि कऽ आएल छी।”
ओ अदहनमे चाउर गिराबए गेली आ
हम ओइठामक बेंचपर बैस गेलौं। बेंचक एक कोनमे ट्रंक आ ओइपर गोविन्दक किताब राखल छेलै।
हम एकटा उपरला किताब निकाललौं, ओ अंग्रेजीमे छल, ऐ लेल हम नै पढ़ि सकलौं आ ओ आपस राखि देलिऐ। बादमे सबसँ निच्चाँ बला किताब निकालौं, मुदा ओ पुर्तगालीमे छल ऐ लेल ओहो राखि देलौं।
ट्रंक लग कपड़ा टाँगबाक एकटा हैंगर रहै जैपर दादीक दूटा कमीज आ गोविन्दक एकटा
पैन्ट टाँगल रहै। अखनि धरि तँ गोविन्दकेँ पणजीसँ आपस आबि जाइक चाही! ऐ लेल हम खिड़कीसँ बाहर देखलौं। मुदा रस्ता सून छल। मैदानसँ होइत ओ रस्ता अपन
देह टेढ-मेढ़ केने सीधे गाम धरि आबि रहल छल। आगू पैघ-पैघ
गाछ-बिरीछक कारणेँ शहर गेल गोविन्दक छाँह धरि नै बुझाइ छेलै।
दादी बजारसँ आबि गेल छला। ओ हमर हालचाल पुछलनि। हम
कनी मोटगर-डटगर भऽ गेल रही ऐ लेल ओ हमर प्रशंसा केलनि।
ओइ दिन दुपहर धरि दादी, ओकर माए, आ हम,
गोविन्दक रस्ता-पेड़ा देखैत रहलौं। ओ नै आएल, ऐ लेल हमसभ कनी निराश छेलौं। बहुत काल पछाति हमसभ भोजन केलौं। दादी सुतैले
गेला आ हम ‘पुनः आएबए ई कहि चलि देलौं।
रस्तामे आलेससँ भेँट भेल। ओकरा देखि हमरा कनी आश्चर्य
भेल, किएततँ ओ कहियो अपन ओवरटाइम नै छोड़ै छल। एतए धरि जे रबियोक दिन ओ भोरे-भोर उठि कपेल गेला पछाति ओ काजपर जाइ छल। हम पुछलियनि-
“आलेस! बीच्चेमे काज छोड़ि कऽ आएल छी की?”
“आबए
पड़ल! नारिकेलक गाछसँ रस निकालऽ बला मजदूर पेद्रूक देहांत भऽ गेलै।”
आलेस बतौलनि।
“की भेल
छेलै ओकरा?” हम पुछलौं।
“पता नै, हमरा निकलिते ओ मरि गेल।” आलेस कहलनि। आलेसक संगे हमहू ओकरा घर
धरि गेलौं।
दोसर दिन पेद्रूक अंतिम संस्कारमे हमरो जाए पड़ल। छोटका गिरिजाघरक लगीच बला श्मशान घाटमे ओकर अंतिम संस्कार भेलै।
पेद्रू एकटा हिन्दू मौगी रखने रहए, किन्तु ओ ओकरासँ बिआह नै केने रहए। ओ जा धरि छेली ताधरि पेद्रूक संसार नीक
जकाँ चललै, मुदा जखनि ओ मरि गेली तँ ओकरा श्मशानक बाहरे गारल गेल
छेलै। किएक तँ ओकर अंतिम संस्कार श्मशान घाटमे नै करए देल गेल रहै ऐ लेल पेद्रू
कानि रहल छल।
ई घटना स्मरण अबिते हम स्वयं उधेड़बुनमे पड़ि गेलौं। ऐ
उधेड़बुनमे हमरा एकटा पछिला गप स्मरण आबि गेल। ऐ छोटका गिरिजाघरमे हमरा बपतिज्म (ईसाई धर्मदीक्षा) देल गेल छल। तइ समए हम बहुत छोट छेलौं।
तखन स्कूलो नै जाइ छेलौं। अपन माएकेँ बता कऽ हम आलेसक ओइठाम गेल रही। ओकरा घरमे
ओकर पिताजी हमरासँ पुछलथि-
“अहाँ
तँ पाखलो छी ने?”
“हँ” हम जवाब
देलौं।
“किएक
तँ अहाँ पाखलो छी ऐ लेल ईसाई भेलौं ने?”
हम चुप रहलौं।
“अहाँ
काल्हि आलेसक संग आएब, काल्हि उत्सव छै।”
दोसर दिन हम आलेसक संग गेलौं। ओइ समए हमरा ओतुका
पादरी बपतिज्म देलनि। ऐ बातक खबरि हम केकरो नै लागए देलिऐ।
घर एला पछाति, आलेसक ओइठाम जे हमरा बिस्कुट खाइले
देल गेल छल, ओकरा हमर माए बाहर फेकि देलथि। ओ हमरा धमकी देलथि-
“विठू! एना जँ
अहाँ केकरो-कहाँसँ किछुओ खेबाक चीज लऽ लेब तँ हम अहाँक जान लऽ लेब।”
हमरा गाममे ऐसँ पहिने ईसाई आ हिन्दूक बीच कहियो झगड़ा-फसाद नै
भेल छल,
मुदा ‘ओपिनियन पोलऽक समए गामक बजारक वार्डमे
ईसाई आ हिन्दू, दुनू समुदायक लोकक बीचमे झगड़ा भऽ गेल। ओइ दिन कियो
एक दोसराकेँ ओकर धर्म लगाकेँ गारि देलकै, आकि झगड़ा बाझि गेल। ओइ राति एक
दोसराक घरक आगूक तुलसी चौरा आ क्रॉस तोड़ि देल गेल। घर-दरबज्जाक
आगू तोड़ल गेल तुलसी चौरा आ क्रॉसक माटिक ढेर लागि गेल। दोसर दिन झगड़ा आर भयानक
रूप लऽ लेलकै। लोक सभ डंडा, तलवार आ ढाल लऽ कऽ एक
दोसराकेँ मारि दइले तैयार छेलै। किछुकेँ मारियो देल गेलै। हम ऐ दुनू समुदायक बीच
घूमि रहल छेलौं, आ की भऽ रहल छै देखि रहल छेलौं। हमरा मारैले कियो ने अबै छल। “हम नै तँ ईसाई रही, आ ने
हिन्दू,
ऐ लेल हमरा छोड़ि देल गेल की? हमर संबन्ध दुनूसँ अछि, ऐ लेल हमरा ओ लोकनि नै मारलनि की?” हमरा मोनमे ऐ तरहक प्रश्न उठय लागल।
दुनू समुदायमे हमर मीत लोकनि छला आ हम हुनका सभसँ मिलै छेलौं।
जँ झगड़ा आर बढ़ि जेतै तँ खूनक
नाली बहि जेतै, ऐ लेल दुनू समुदायक लोक डरि गेला। बादमे हम दुनू
समुदायक लोकसँ मिलि कऽ हुनका सभकेँ समझौलौं-बुझौलौं, हुनका
बीच समझौता करबौलौं। ओइ समए हम हुनका सभकेँ एकजुट करै बला आ एक दोसराक समाद लऽ जाइ
बला दूत बनि गेल छेलौं।
ऐ गाममे हमर परिचय फकत एते अछि जे
हमर नाओं पाखलो छी, हमर जाति पाखलो छी, आ हमर
धर्म सेहो पाखलो छी।
·
छह
केगदी भाटक पैंतीस-चालीस
रैयत, मूलपुरुषक मंदिर लग जमा भऽ गेल छल। सुभलो आ सोनूक बीच बैसल दादी सभसँ नीक लगै
छला। रैयत, किसान, कुणवी (गोवा राज्यक आदिनिवासी) सहित गामक सभ लोक ओतए जमा छल।
रैयत सभ अपन-अपन माँग ओतए रखलक। जमींदार केकरो घर
तोड़ि देने रहै तँ केकरो घर नै बनाबए दैत रहै। किछु रैयतकेँ जमींदार बेदखल कऽ देने
रहै तँ किछुकेँ हफ्ताक नारिकेल नै देने रहै। ऐ तरहक बहुत रास माँग रहै। सबहक
चेहरासँ गोस्सा आ नाराजगी झलकैत रहै।
प्रस्तुत कएल गेल सभ माँगपर जखनि चर्चा हुअ लागल तँ
किछु हल्ला-गुल्ला हुअए लागलै। सुभलो गाँवकर लोक सभकेँ चुप करैक प्रयास
केलनि,
मुदा हल्ला आर बढ़िते गेल। तखने दादी उठि कऽ अपन दमगर अबाजमे
बाजए लागल-
“हम सभ ऐ
कांदोले गामक गाँवकर सदा जमींदारक केगदी भाट रैयत थिकौं। ओना हमरहिमेसँ किछु ओकरा
खेतक हिस्सेदार सेहो छी। हम सभ ओकरा खेत-भाटमे काज करै छी, मुदा
हमरा जतबाक आवश्यकता अछि ततबो हमरा पेटकेँ नै भेटैए, अपितु
ओ सभ जमींदारक गोदाममे चलि जाइत अछि। केगदी भाटमे हरएक नारिकेल तोड़बाक दिन लाखो
नारिकेलक ढेरी लागि जाइत अछि, मुदा सदा जमींदारक मर्जीक बिना हमरा सभकेँ एकोटा नारिकेल खाइले नै भेटैए। ऐ भाटमे नारिकेलक गाछ लगाबी हमसभ, ओकरा
पानि पटा कऽ नम्हर करी हमसभ, भाटमे खाद छीटी हमसभ, ओकर ओगरबाहि करी हमसभ, ओकर हत्ता बनाबी हमसभ, सुरक्षा करी हमसभ आ दूटा नारिकेल खाइले हमरा सभकेँ जमींदारक मुँह देखए पड़ैए। ऐ
माटिक पूतकेँ ऐ भाटमे घर-मकान नै बनाबए देल जाइ छै। तैपर जबरदस्ती
ओकरा सबहक घर तोड़ि देल जाइ छै। आब हमरा सभकेँ हमर न्याय भेटबाक चाही। हमरा सभपर
जे अत्याचार भेल अछि से दूर होइक चाही, माने दूर होइक चाही।”
“हँ, हँ”,
जमा भेल भीड़सँ ऐ तरहक नारा सुनैमे आएल। बादमे दादी आर जोरसँ बाजए लागल। ओकर अबाज
लोकक कानमे गूँजए लगलै।
पाखलोक पूरा देहमे बिजलौका चमकि गेलै। ओ अपन गरम भेल
कानपर गोविन्दकेँ हाथ रखबाक लेक कहलकै।
भगवानपर अक्षत छीटला पछाति हुनकर गोहारि केलासँ जे
लोकक शरीरपर भा आबि जाइ छै, तहिना दादीक भाषण सुनि लोक सभपर भा आबि गेलै, एहने बुझाइ! दादीक बाजब जारी रहै-
अपन मौगीक परतापें ओकरा ई केगदी भाट भेटल छै। यएह सदा, दत्ता जल्मीकेँ जित्ते मारि कऽ ओकर खाजन भाट (क्षेत्र विशेषक खेत) फिरंगीक सहायतासँ अपना नामे करवा
नेने अछि। ओकरा कन्निको लाज-शरम नै छै। ओहूपर ओ गाममे राजा जकाँ घूमि
रहल अछि। ई गाम सदा जमींदारक नै थिकै। गामक खेत-भाट
हमरा सबहक छी। ऐ खेतमे काज करै बलाक खेत-भाट थिकै। कागतपर लिखा नेने ई ओकर नै भऽ जेतै। जँ एहेन हेतै तँ ओ ऐ देशकेँ
सेहो कागतपर लिखवाकेँ राखि लेत आ ओ ऐ देशहुँकेँ कागतपर लिखि केकरो हाथेँ बेचि लेत।
आब हमसभ जमींदारकेँ देखा देबै जे ई खेत-भाट हमरे सबहक छी।
खेत-भाटमे काज करै बलाक छी। हमरा सबहक असहयोगेक कारणेँ केगदी भाटमे नारिकेल तोड़ब अखनि
धरि बाँकी रहि गेल अछि। ओइ समए जमींदारकेँ एहसास भऽ जाइक चाही रहए।
मुदा ओ तँ अकिलेक आन्हर अछि। सुनलौं अछि जे भाटमे
नारिकेल तोड़ैले ओ गामसँ बाहरक पाडेकर (पेशेवर नारिकेल तोड़ैबला) केँ लाबैबला अछि। ओकरा अएबासँ पहिने हम सभ सभटा नारिकेल तोड़ि कऽ देखा देबै
जे ओ भाट हमरा सबहक छी। चलै चलू, आइए, एखने ओइ भाटक सभटा नारिकेल तोड़ि देबै, चलै चलू, ढाल आ
गड़ाँस लऽ कऽ अबैत जाउ!
सभ कियो ओइ जोशक संग उठल आ ढाल-गराँस लऽ कऽ केगदी भाट दिस
चलि देलक। भाटमे हर एक नारिकेलक गाछमे गुच्चाक गुच्छा नारिकेल लागल रहै।
एतेक पैघ केगदी भाट, जेकर
नारिकेल तोड़ैले मासक मास लागि जाइ छेलै, एक्के दिनमे एक चौथाईसँ बेसी नारिकेल तोड़ि देल गेलै। गुच्छाक गुच्छा नारिकेल
गिर रहल छल। भाटमे नारिकेलक बड़का-बड़का ढेर लागि गेल छेलै। साँझ पड़ि गेल रहै मुदा अखनि धरि सभ कियो नारिकेल
तोड़बामे बेस्त रहए। एतबेमे-
“पाखलो
गिर गेलै,
पाखलो गिर गेलै।”
एहेन हल्ला मचि गेल। नारिकेल तोड़ब छोड़ि सभ कियो पाखलो लग जमा भऽ गेल।
पएरक छान छूटि गेलाक कारणेँ पाखलो नारिकेलक गाछसँ निच्चाँ खसि पड़ल छल। नारिकेलक गाछसँ ओकर पेट, जाँघ, हाथ-पएर आ छाबा घसीटा गेल छेलै जेकरा कारणेँ ओकर चाम निकलि गेल छेलै। ललाटक घावसँ
खून बहि रहल छेलै। दादी आ सोनू ओकरा सहारा दऽ उठा कऽ
बैसैलक आ पानि पियौलक। होशमे एला पछाति, की भेल छल? ई
जानि पाखलो हँसए लगल।
बैसल पाखलोकेँ गोविन्द हाथक सहारा दऽ उठौलक। चलू, घर चलै छी! गोविन्द पाखलोसँ कहलक। सोनू बाजल-
“नै, पाखलोकेँ हम अपन घर लऽ जाएब, ई बहुत जख्मी भऽ गेल छै आ एकरा बहुत चोट लागल छै। एकरा हम घर लऽ
जाए कऽ जे किछु दबाइ-बिरो करैक हेतै से करबा देबै।”
ओइ दिनक नारिकेल तोड़ब बन्न भेल। पाखलो अपन मामाक घरक
रस्तापर चलि रहल छल।
·
दोसर दिन फेर नारिकेल तोड़ब शुरू भेल। पाखलो अपना
माथपर रुमाल बान्हि ठाढ भऽ गेल। दोसरा जकाँ ओहो नारिकेल तोड़ैले सोचि रहल छल, मुदा ओकर मामा ओकरा गाछपर चढबासँ मना कऽ दलकै। एकर बाबजूदो ओ नारिकेल तोड़ि
लितए, मुदा सौंसे देहमे भऽ रहल दरदक कारणेँ ओ एहेन नै कऽ सकल। रजनी जीरा पीसि कऽ
ओकरा पीठ आ कन्हापर लगौने छेली। घावसँ जीरा नै निकलि जाए ऐ लेल ओ नारिकेलक गाछपर नै
चढ़ल।
काल्हि रजनी पाखलोक शरीरपर भेल घावकेँ धो-पोछि कऽ दवाइ लगौने छेली। ललाटपर जे
घाव भेल रहै, ओइपर दबाइ लगा कऽ पट्टी बान्हने छेली।
कुल्हा आ पीठपर जीरा पीसि कऽ लगौने छेली। रजनीक ई रूप देखि कऽ पाखलोकेँ अपन माएक
स्वरूप यादि आबि रहल छेलै। रजनी केलबायक मूर्ति-सन
सुन्नरि लागि रहल छेली।
रजनी ओकर मामक एकलौती बेटी छेली। ओ बहुत शांत आ विनम्र स्वभावक छेली।
रजनी जखनि दूध आनि कऽ पाखलोकेँ पीबैले देने छेली, ओ
पीबैत काल पाखलोकेँ रजनीक वात्सल्य भावक एहसास भेल छेलै। छने भरिले ओकरा मोनमे
भेलै जे ऐ ममतामयी देवीक चरण छूबि ली। काल्हिसँ पाखलो एकटा अलगे दुनियाँमे विचरण
कऽ रहल छल। ओकरा मोनमे केतौ कोनो मंदिरक रचना भऽ रहल छेलै।
जखनि जीपक हार्न सुनैमे एलै तखन पाखलो होशमे आएल।
देखलक तँ केगदी भाटमे पुलिसक एकटा गाड़ी आएल छल, जेकरा
संगे सदा जमींदार सेहो छल।
पुलिस जहिना केगदी भाटमे आएल तहिना हवामे दू-तीन फायरिंग केलक। सभ कियो डरि गेल आ नारिकेल तोड़ब बन्न कऽ देलक। दादीकेँ
बहुत गोस्सा एलै आ ओ गोस्सेमे सभसँ कहलक-
“अहाँ
सभ केकरोसँ डरब नै। नारिकेल तोड़ब जारी राखू।”
Illustration -03
इन्स्पेक्टर अपन रूल हाथमे नेने आगू आएल। ओ दादीकेँ
अपना हाथेँ पकड़लक आ ओकरा जीपमे बैसबैले घीचए लागल। पाखलो ओकरा रोकलकै। सभ कियो
पुलिसक चारू दिस जमा भऽ गेल। दू-तीन गोटे जीपमे बैसल जमींदारकेँ निच्चाँ
उतारि देलक। इन्स्पेक्टर चिकड़ल, आ गोस्सासँ बाजल-
“अहूँ
सभ जँ बेसी बकबक केलौं तँ अहूँ सभकेँ मारि लागत।”
“जाउ, जाउ,
चुप रहू! जँ अहाँ एतए बेसी रंगबाजी केलौं तँ एतए
जमा भेल सभ गोटए अहाँ सहित अहाँक पुलिसोकेँ पीटत। हमसभ पुर्तगाली पुलिसक हाथ तँ
ढेर एलौं तँ अहाँ सबहक हाथ केतएसँ आएब।”
दादी चिकरल। ताधरि पुलिसपर कियो दू-तीन चपत धरा देलकै।
ओ संभवतः पाखलो छेलै। इन्स्पेक्टर पाखलोकेँ पकड़ि लेलक, मुदा
दादी ओकरा छोड़ा लेलकै। इन्स्पेक्टर दादी दिस ‘चिबा जाइ आकि गिर जाइ’ बला नजरिसँ देखलक।
“अहाँ
सभ एतए लोकक रक्षा करए आएल छी वा गोलीसँ उड़बए?” दादी इन्स्पेक्टरसँ पुछलकै।
“अहाँकेँ
तँ सबसँ पहिने ओइ लोककेँ अंदर करैक चाही छल, जे अहाँकेँ एतए आनने अछि। वएह
असली चोर छी, लुटेरा छी, आ दोसराक दमपर अपन पेट भरै बला छी, आ ओकरे कहलापर अहाँ हमरा सभकेँ चलान करए आएल छी?” दादी उच्च स्वरेँ इन्स्पेक्टरसँ
पूछि रहल छल आ जमींदार गोस्सासँ दादी दिस देखि रहल छल।
“अहाँ
हमरा थाना लऽ जाइले आएल छी ने! त हमरा सभकेँ लऽ चलू। सभ कियो जीपक
अंदर आबि जाउ।” एते कहैत पाखलो जीपमे बैस गेल। ओकरा संगे
आर पन्द्रह-सोलह लोक जीपमे बैस गेल। बाँकी लोकक लेल जीपमे बैसैक जगह नै
छेलै। इन्स्पेक्टर आठ-नअ लोककेँ जीपसँ निच्चाँ उतारि देलकै आ
बाँचल सात गोटा कऽ लऽ कऽ चलि देलक। बाँकी लोकनि ओहिना मुँह
ताकैत रहि गेल। सातो लोककेँ ओइदिन पुलिस-स्टेशनेमे रहए पड़लै। दोसर दिन सोनू आ
सुभल्या गाँवकरक संग पाँच लोककेँ छोड़ि देल गेलै मुदा दादी आ पाखलोकेँ नै छौड़लकै।
जेना श्राद्धक घरमे छूतकाह रहै छै तहिना केगदी भाटमे नारिकेल यत्र-तत्र पड़ल रहै मुदा कियो ओकरा हाथ नै लगाबै।
गाममे एकटा आर पैघ घटना भऽ गेलै। दादी सहित गामक आनो-आन लोकपर जमींदार मोकदमा कऽ देलकै। गामबला सभ सेहो मोकदमा लड़ल। मोकदमा बहुत
प्रसिद्ध भऽ गेलै मुदा फैसला जमींदारक पक्षमे भऽ गेलै आ दादी आ पाखलोकेँ एक मासक
कैद भऽ गेलै। ओइ दिन गामवासीकेँ बहुत दुख भेल रहै। दोसरे दिन जमींदारकेँ सेहो कैद
भऽ गेलै,
किएक तँ ओ सरकार लग जमीनक नकली कागजात पेशी केने रहै। दोसर
दिस मजदूर आ रैयत लोकनिकेँ सेहो ओ बिना कारणेँ फँसौने छेलै, ऐ
गुनाहक खातिर जमींदारकेँ सजा भेटल छेलै। ‘जेकर जोत तेकर जमीन’, ऐ नियमक तहत कार्यापाट आ उबरेदांडो गाम रैयत सभकेँ भेटलै आ केगदी भाट, खाजन भाट मजदूर लोकनिकेँ। ऐ गामबला सभकेँ बुझाइ छेलै जे आब ओ वास्तवमे
स्वतंत्र भऽ गेल अछि।
पूरा मास धरि जहलक सजा काटला पछाति दादी आ पाखलो
छूटि कऽ आएल। भाटसँ नारिकेल चोरि करै आ लोक सभकेँ भड़कबैक जुर्ममे पाखलो आ दादीकेँ
एक मासक सजा भेल छेलै। ओ दुनू गोटे बड़ स्वाभिमानक संग एला। गामक हितमे लड़ै बला
एकटा सम्माननीय गामवासीक नजरिसँ गामक लोक सभ हुनका लोकनिकेँ फूलक माला पहिरा कऽ स्वागत कएल। लोक सभ दादीकेँ
सम्मान दऽ गाममे स्वतंत्रतताक उत्सवक मनौलनि। ऐसँ पहिने एतेक रास खुशी गामक लोक
कहियो नै महसूस केने रहए।
दादीक घर मिलैले गाम ओ बाहरोसँ लोक सभ आबि रहल छल। ऐ
समए पाखलो दादीएक ओइठाम बैसल रहए, मुदा पाखलोकेँ कियो पुछलकै धरि नै, ऐ लेल ओकरा कनी खराप लगलै। “लोकक नजरिमे हुनका हमर पाखलेपन नजरि
एलनि। हुनका सबहक बीच हम एकटा पाखलो थिकौं” ओकरा लगलै। ओ तखने ओतएसँ निकलि गेल।
घरसँ बाहर एला पछाति ओ सोनू मामाक घरक रस्ता पकड़ि लेलक।
ओकरा मोनमे विचार आबि रहल छेलै-
“रजनी
हमरा देखि कऽ बहुत प्रसन्न हेती। ओ हमरासँ पुछती तँ हम हुनका कैदक सभटा खिस्सा
सुनेबनि। हमरा पीठपर जे रूलसँ मारल गेल अछि तेकर दाग देखेबनि, ई देखि
ओ अपन दुख प्रकट करती, आ फेर तेल गरम कऽ हमरा पीठपर लगौती....।”
सोचैत-सोचैत पाखलो सोनू मामाक घर पहुँच गेल।
रजनी ओकरा दूरेसँ अबैत देखि लेलक। ओकरा चिन्हते ओ ‘विठू’ कहि दौगैत ओकरा सोझहा आबि गेली।
·
सात
कैदसँ छुटलाक पन्द्रहे दिनक अंदर
दादीक देहान्त भऽ गेलै। हमरा रस्ता देखौनिहार चलि गेला। खाली हमरे किएक? अपितु
सौंसे गामेकेँ सम्हारैमे ओकर पूरा हाथ छेलै। सौंसे गामे कानि रहल छल।
ओइ दिन केगदी भाटमे नारिकेल
तोड़ैत काल दादी आ हमरा सभकेँ पुलिस पकड़ि कऽ लऽ गेल छल आ हमरा सभकेँ खूब मारल-पीटल गेल छल। पुलिसक मारिसँ दादीक एकटा पएरमे घाव भऽ गेल रहै जे अन्त धरि ठीक नै
भऽ सकल रहै। कैदसँ छुटला पछाति ओ घाव आर विस्तार भऽ गेलै आ जेतए घाव रहै ओकर चारु भाग लोहा सदृश कड़ा भऽ गेल रहै। घावसँ खून बहैत रहै। गमैया
डागडर आ बैद्य लोकनिसँ बहुतो दबाइ-बिरो कएल गेल मुदा तेकर कोनो असर नै
भेलै।
ओइ राति हम, गोविन्द, गोविन्दक माए, सुभलो गाँवकर आ गामक किछु लोग दादीक लग
बैसल रही। दादीकेँ बोखार रहनि आ हुनक आँखि बन्न भेल जा रहल छेलनि। अधरतियामे दादीक
गलामे एकटा हिचुकी भेलनि आ ओइ हिचुकीक संगे दादी अपन अंतिम साँस लेलनि। बुझाएल
जेना ब्राह्माण्डसँ गरम श्वासक तंतु टुटि गेल हो।
बिना हिलल-डोलल हुनक शरीर शांत भऽ गेलनि।
ओइ दिन हमरा लागल जे हमरापर बड़का बिपति आबि गेल।
सौंसे गाम दादीक अंतिम संस्कारमे आएल रहै।
गामक हितमे अपन जीवनमे कष्ट उठौनिहार दादीक ई आत्मबलिदान दिवस रहै। अपन पिताजीकेँ
मुखाग्नि दैत गोविन्दपर की बीतल हेतनि? ई अनुमान करब ओतेक सहज नै अछि। हमरा
मुहसँ शब्द नै निकलि रहल छल। ऐ तरहक दुखक मापन कोनो मापक यंत्रसँ संभव छै की?
चिता धधकैत रहै। गोविन्दक आँखिसँ
बरखाक बून जकाँ अश्रुप्रवाह भऽ रहल छल। हमरा आँखिक तँ बुझू जे नोरे सूखि गेल हो। ई
दृश्य हम अपन आँखिक सोझामे देखि रहल छेलौं।
गोविन्द ओइ दिनसँ गुमसुम रहए
लागल। ओना तँ पहिनो ओ बहुत किछु सोचैत आ गम्भीर रहै छल, मुदा
आब तँ ओ औरो गंभीर रहए लागल। हम ओकरा समझेलौं-बुझेलौं, आ ओ बुझिओ गेल, मुदा ओ अपना आपकेँ बदलि नै रहल छल।
नोकरीपर जाइले ओकरा पन्द्रह दिन पहिने चिट्ठी आबि गेल रहै, किन्तु
ओ घरेपर बैसल रहल।
चिट्ठी एलाक एक मास पछाइते ओ
नोकरीपर जा सकल। ओकर माए एतए घरपर असगरे रहि जेती, ऐ बातक
दुःश्चिन्ता ओकर खेने जा रहल छेलै।
ओ अपन माएओकेँ अपना संगे पणजी लऽ जाइले
सोचलक। गोविन्दक माए अपन बेटाक संग पणजी जा रहल छेली, ऐ लेल
हुनका बिदा करैले आस-पड़ोसक कएकटा स्त्रीगण आएल छेली। गोविन्द
अपन सभटा समान बान्हि नेने छल। अंतमे ओ देबालपर लटकल दादीक फोटो आ महादेवक फोटो
उतारि पणजी लऽ जाइ बला समानक बीच राखि लेलक।
भगवान जानथि ऐ बातक खबरि गामक
बुजुर्ग सुभलो गाँवकरकेँ केना लागि गेलनि? ओ गोविन्देक घर दिस आबि रहल छला। हाथमे
एकटा बाँसक लाठी नेने ओकरा जमीनपर टिकबैत ओ आगू बढि रहल छला। ओ तौलिया आ कमीज
पहिरने छला। “ओ आबि रहल छथि”, ई गप हमही सोनूकेँ कहने रही। ओ घर
धरि पहुँच गेला। गोविन्द हुनका बजा कऽ बैसैलथि।
“बेटा
गोविन्द! अहाँ अपना माएओकेँ पणजी लऽ जा रहल छी की?” सुभलो गाँवकर पुछलनि।
“हँ”
गोविन्द नहुएँ बाजल।
“तखन हम
जखनि कखनो ऐ बाट दने जाएब तँ हमरा के बजाैत?”
ऐ प्रश्नक जवाब गोविन्द लग नै रहै। ओ चुप रहल।
“ई गप
हम बूझि सकै छी जे नोकरिएक चलते अहाँकेँ पणजी जाए पड़ि रहल अछि, आ हमसभ अहाँकेँ बिदा करए आएल छी, ई कनी नीक नै लागि रहल अछि।”
“आखिर
हम की करी? नोकरीक कारणेँ जाए पड़ि रहल अछि।” गोविन्द बाजल।
“आब
गामक सीमान बाँचबो कहाँ केलै? लोकबेद अपन सीमानकेँ लाँघि सौंसे दुनियाँ
दिस अपन रुख कऽ रहल अछि।”
जइ सोच-विचारसँ गोविन्द शहर जाइक निर्णए केने रहए, ओ ओइ विषयमे कहि रहल छला। कनीकाल धरि
सभ कियो चुप रहल।
“खैर! अहाँ जेतए केतौ जाउ नीके रहू!” अपन ई इच्छा बेक्त करैत सुभलो गाँवकर बाहर निकलि
गेला।
पणजी लऽ जाइबला सभटा समान ओ बान्हि नेने रहए। हम कहलियनि-
“गोविन्द, गाड़ी छूटैमे आब कम्मे समए अछि।”
हमर कहब ओ संभवतः नै सुनलनि। हुनकर आँखि भरि एलनि आ
हुनका आँखिसँ टप-टप नोर खसए लगलनि।
समान सभकेँ कन्हापर लादि हम गाड़ी लग गेलौं ओकरा ऊपर
चढ़ा देलिऐ। गाड़ी छुटबाक समए भऽ गेल रहै। गोविन्द अपना माएक संगे ओइपर बैस गेल।
हम पुछलियनि-
“आब
कहिया आएब?”
“देखा
पर चाही।”
“ऐ
पन्द्रह दिन पछाति खामिणी आ सांतेरी देवीक मेला छै, आएब की
नै? आ अगिला तीन मासमे गामक केलबाईक शिगमो
सेहो छै। आएब की नै?” हम जल्दीसँ पुछलिऐ।
“केलबाईक
शिगमोमे आएब।”
“आ
खामिणी सांतेरी?” हम पुछलियनि।
“नै।”
“हम असगरे
केना आबि सकै छी?”
गाड़ी चलि पड़ल। हम आर जे किछु पुछलौं से सभटा ओइ गाड़ीक अबाजमे दबि गेल।
गोविन्द अपन हाथ हिला कऽ हमरासँ बिदा लेलनि। गाड़ी आगू बढि गेल आ अगिला मोड़ पछाति
ओ आँखिसँ ओझल भऽ गेल।
·
गोविन्दक पणजी चलि गेला पछाति हम
अपना आपकेँ एसगरुआ बुझए लगलौं। हम दिनभरि पीपरक गाछक निच्चाँ चबूतरापर बैस
गोविन्देक संबन्धमे सौचैत रही। ओइ समए सोनू मामा ओइ रस्ता दने जा रहल छला। ओ अपना
डाँड़मे तोलिया लपेटने रहथि आ ऊपर उज्जर कमीज पहिरने रहथि। हमरा सोझ अबिते ओ पुछलनि-
“अहाँ
एतए बैस की सोचि रहल छी?”
“किछुओ
तँ नै।” हम कहलियनि।
“किछु केना
नै, अहाँक मीत पणजी चलि गेला, अही लेल अहाँ उदास छी ने?”
हम चुप रहलौं।
“चलू, हमरा घर चलू।”
हम हुनका संग चलि देलौं। पछिला किछु दिनसँ हम सोनू मामाक ओइठाम आन-जान करै छेलौं।
दुपहरिक रौदमे चलैत-चलैत
हमसभ घर पहुँचलौं। घरक भीतर गेला पछाति कनी ठंढा महसूस भेल। लाल आ कारी रंगक फराक
पहिरने रजनी दू लोटा पानि भरि बरंडाक बैसकमे राखि घर चलि गेली। हम दुनूगोटे हाथ-पएर धोइ तोलियासँ हाथ पोछलौं। भोजनक लेल पीढ़ी रखबाक अबाज अंदरसँ आएल। ताबत
रजनी बाहर एली आ हमरा सभकेँ भोजनपर बजा कऽ लऽ गेली। हमरोबहुत जोरसँ भूख लागल रहए।
भोजन कएला पछाति हम बरंडाक सोपो (कुर्सीनुमा बैसकी) पर बैस गेलौं। कोनो आन काजसँ हम घरसँ
बाहर निकलहि बला रही तावत हमरा कियो अबाज देलक।
“विठू।”
हम उनटि कऽ देखलौं।
ई रजनीए छेली जे हमरा अबाज दऽ रहल छेली।
“हँ।”
हम ओकरा कहलिऐ।
ओ हमरा माए सन मधुर अबाजमे बजा रहल छेली। ओइ समए
हमरा लागल जेना हम अतीतमे पहुँच गेल छी। हमरा संबन्धमे हमर सभटा खिस्सा सोनू मामा
ओकरा बता देने रहथि संगे हमर माए द्वारा राखल हमर नाओं सेहो।
रजनी हमरा किछु कहए चाहि रहल छेली, मुदा बहुत देर धरि हुनका मुहसँ कोनो शब्दे नै निकललनि। ओ ओतै ठाढ रहली।
“विठू, अहाँ एतै रहल करू। अहाँ अपन सभटा कपड़ा-लत्ता एतै लऽ आउ।”
ई सुनते हम ओकरा दिस आश्चर्यसँ देखलौं। बादमे हम अपन माथ झुका अपन पएर दिस
देखए लगलौं।
ओ हमरासँ बेर-बेर आग्रह केने जा रहल छेली आ हम अपन पएर
निहारने जा रहल छेलौं।
“किछु नै
सोचू, अहाँ एतै रहू।”
“ओ बेर-बेर हमरासँ आग्रह केने जा रहल छेली। हुनकर आग्रह तोड़बाक हिम्मत हमरामे नै
रहए।”
हम ‘हँ’ कहि देलिऐ।
सात-आठ मास धरि रजनी हमर सहोदर बहिन सदृश सेवा करैत रहली। हमरा कपड़ा-लत्ता, ओछौन सभटा वएह साफ करैत रहली। नहेबाक पानि गरम करएसँ
लऽ कऽ सभटा काज वएह करै छेली, ऐ लेल हम कहियो काल गोस्सा कऽ कऽ
ओकरा डाँटियो दिऐ, मुदा ओ चुप रहै छेली।
एकदिन हम हुनका कहलियनि-
“हम की
अहाँक सहोदर भाय थिकौं जे अहाँ हमर एतेक धियान राखै
छी?” एते सुनते हुनका आँखिमे नोर आबि गेल छल। ओ अपन बाँहिसँ तकरो पोछलथि।
“सहोदर नै
छी तइसँ की? से जे हो, छी तँ अहाँ हमर भाइए ने? आ हम
तँ अहाँकेँ अपन सहोदरे भाय मानै छी।”
एते कहैत ओ कपसि-कपसि कऽ कानए लगली। हम हुनकासँ माँफी
माँगलियनि। हमरो आँखिमे जखनि नोर आबि गेल तखने ओ चुप भऽ सकली। हम जहिना हँसलौं, ओहो हँसए लगली आ कपड़ा धुअए इनारपर चलि गेली।
हम चिन्तामे डूमि गेलौं। पाखलोक जनमल केतौ रजनीक भाय
बनि सकैए? खूनक संबन्ध नहिओ रहने ओ हमर बहिने
सदृश हमर सेवा करैत रहली, तँए की ओ हमर बहिन नै भेली? ऐ तरह एकक पछाति एक प्रश्नमे हम उलझैत गेलौं। फेर हम गोविन्दक प्रश्नक
तंतुकेँ सोझराबए लगलौं।
ओइ दिन बेर-बेर यादि आबि रहल छल। नारिकेलक गाछसँ
गिरला पछाति रजनीक दबाइ लगेलासँ जे जलन भऽ रहल छल तेकरा कम करैले ओ घावपर नहुँ-नहुँ फूक मारि रहल छेली। तखन हमर संबन्ध ओकरासँ की छल? हमरा
ओ ओकरा बीच कोनो संबन्ध नै रहलाक बाबजूदो ओ हमरा दबाई लगौलक। हम
कष्टमे रही आ ओ हमरा घावपर दबाई लगबैवाली ममतामयी छेली।
सभटा घावक संग-संग भौं आ पिपनीक घाव ठीक भऽ गेल रहए, मुदा ओतए करिया दाग रहि जाइक कारणेँ रजनीकेँ बहुत खराप लागैक। ओ हमरा बेर-बेर कहै छेली-
“भौंपर
कारी दाग नै रहबाक चाही। एतेक सुन्दर गोर-नार देहपर आमक कोलपति जकाँ बुझाइत अछि।
आब ओकर की करब?”
भौंहेक कारणेँ लहसुनियाँ आँखि बँचि गेल।
“हम
चुपचाप ओकर गप सुनने जा रहल छेलौं। कारी दाग रहि गेल छल, एकर
हमरा एकोरत्ती दुख नै छल। हमरा बुझाइ छल जे हमर लहसुनियाँ आँखि बँचि जाइसँ नीक
होइतए,
ओकरा फूटि जाइक चाहि रहए आ संगे दागसँ सौंसे देह कारी भऽ जाइक
चाही रहए। हमरासँ हमर गोराइ सहन नै भऽ रहल छल। मुदा भगवान हमरा गोर बनेने रहथि, एकरा लेल रजनी भगवानक उपकार मानै छेली।”
“हमरा
भगवाने भाय भेजने छथि, हमरा ओकरा ठीक करैक अछि।”
रजनी बेर-बेर बजने जा रहल छेली आ हमरो भगवाने सदृश बनबैले हमर सेवा
कऽ रहल छेली। तखन हम हुनका कहियनि-
“हमरो
भगवान देवी सदृश बहिन भेजने छथि।”
एते कहिते हमरा कानमे मंदिरमे बाजैबला घंटाक सदृश आभास हुअए लागल।
·
आठ
रजनीक बिआह भेल एक मास भऽ गेल रहै। ओ दुरागमनमे अपन
नैहर आबैबला रहथि, तँए सोनू मामा खेतक काज जल्दीए निबटा कऽ
आबि गेल छला। रजनीकेँ नीक खेती-बारी बला घर-बर
मिलल रहै तँए सोनू मामा बहुत खुश छला। मुदा दोसर दिस हुनका ऐ बातक दुखो रहनि जे
बहुत कम्मे उमेरमे ओ रजनीक बिआह कऽ देने रहथि। ओकरा नेनपनेमे ओकरा माथपर सांसारिक
बोझ आबि गेल रहै। ओकरा एहेन बुझाइ। ओ पाखलोपर बेकारक शंका करैत रहथि, ऐ बातक हुनका ग्लानि भऽ रहल छेलनि।
पाखलो आ रजनी, एक दोसराकेँ नीक जकाँ बूझैत रहथि, ऐ लेल सोनू मामाकेँ ऐमे किछु खराप नै बुझा रहल छल। मुदा जँ यएह संबन्ध कहियो कोनो दोसर मोड़ लऽ लिअए तखन? तखन तँ गाममे जगहँसाइए भऽ जाएत। ई गामे ओकरा छोड़ए पड़ि जाइतै। ऐ लेल ओकर
मोन सशंकित रहै छल। ऐ खातिर जेतेक जल्दी भऽ सकए, रजनीक बिआह भऽ जाइक चाही, यएह नीक रहत। सोनू मामा सोचने रहथि।
रजनीक बिआह करपें गामक भास्करक संग बड़ उधव-बाधवसँ भेल रहै। बिआहक तैयारीमे पाखलो पन्द्रह-बीस
दिन धरि बहुत कष्ट उठौने रहए। बियाहोक दिन ओ खूब मेहनति केने रहए।
बिआहक दोसरे दिनक गप रहै। रजनीकेँ घरमे नै रहलाक
कारणेँ पाखलो कनमूँह सन रहए। ओ अहिना घरसँ बहराइ छल, तखने
दरबज्जापर ओकरा सोनू मामासँ भेँट भेलै। ओ पाखलोसँ पुछलनि-
“की भेल?” “किछु नै।”, कहैत पाखलो घरसँ निकलि गेल।
ओइ दिन पछातिसँ पाखलोक पहिने जकाँ होटलमे खेनाइ-पीनाइ आ केतौ सुति गेनाइ आरंभ भऽ गेल। ओकरा बुझाइ छेलै जेना ओ ऐ गाममे एकटा
अजनबी सदृश छै आ ओकरासँ सिनेह रखैबला एतए कियो ने छै।
ओ बहुत उदास रहै छल। ओकरा माथपर किछु रेखाक अलाबे किछु नै देखाइक। बीच-बीचमे ओ खेनाइओ-पीनाइ छोड़ि दइ। ओ पूर्ण रूपेँ कमजोर
हाथी सन भऽ गेल रहए। ओकर हाड़ सभ झलकए लागल रहै, गाल
पिचकि गेल रहै आ आँखि धसि गेल रहै।
पाखलो काजपर नै गेल छल। ओ दुपहरकेँ पीपरक गाछक चबूतरापर
बैसल रहए। आलेस आ ओकर मीत सभ काजपरसँ आपस आबि गेल रहथि।
“पाखलो
आइ काजपर नै गेल आ भरि दिन चबूतरेपर बैसल रहल” ई कहि ओ सभ पाखलोकेँ किचकिचबए लागल। “पाखलो! आइ
अहाँ काजपर किएक नै एलौं?”
“ओहिना।”
“ओहिना कियो
अपन काज छौड़ै छै की? किएक यौ! अहाँ पाखलोक जनमल छी ऐ लेल अहाँ मामा
अपन बेटी नै देलनि की?”
आलेसक एते कहब सुनि पाखलोकेँ बहुत गोस्सा आबि गेलै। ओ गोस्सेसँ आलेस दिस
देखलक।
“अहाँ
ओहिना हमरापर नाराज नै होउ। मामाक बेटीक बिआह भेला पछातिसँ अहाँ किछु बदलि सन गेल
छी। अहाँक पागलपनक हालति देखि कऽ...।”
“चुप
रहू आलेस! हमरा बेकारक गोस्सा नै दिआउ।”
एते कहि पाखलो ओतएसँ चलि देलक। ओकरा आइ आलेसपर बहुत गोस्सा एलै, मुदा करबो की करितए? यएह बात भरि गामक लोक-बेद बाजि रहल छल। तखन हुनका सबहक मुँहपर के ताला लगाबए? हिनका
सबहक सोचे एहेन छन्हि तखन कैल की जाय? पाखलो एहेन सोचलक।
ओकरा माथमे बहुत दरद भऽ रहल छेलै।
“जँ हम अहिना
सोचैत रहलौं तँ एक दिन निश्चिते हम पागल भऽ जाएब। हमरा मोनकेँ चिन्ता करैक आदति सन
भऽ गेल अछि, हम एकरासँ नै निकलि सकब।”
सोचैत-सोचैत ओ रस्तापर चलि रहल छल। जुवांव ओकरा अबाज देलकै।
जखनि कि जुवांवकेँ देखते ओकरा गोस्सा आबि जाइ छेलै, मुदा आइ ने जानि की भऽ गेलै? पाखलो ओकरा जवाब देलकै आ दारूखानामे
पैसि गेल। जुवांव हँसल आ ओकरा बैसैले एकटा मछिया देलकै। पाखलो बैसल नै। ओ एकटा
पँचटकही निकाललक आ ओकरा दिस बढेलक। जुवांव नारिकेलक फेनी (शराब) ओकरा गिलासमे ढारि देलकै। छने भरिले
ओकरा मोनमे भेलै जे ऐ गिलाससँ जुवांवक माथ फोड़ि दी। जुवांव गिलास उठा कऽ पाखलोक
हाथमे थमा देलकै। नव गैंहकीक खुशीमे ओ हँसि रहल छल। पाखलो एकबेर गिलासकेँ मुहसँ
लगौलक आ क्षणहिमे हँटा लेलक। ओकरा गरामे जलन भऽ रहल छेलै तैयहुँ ओ गिलासकेँ मुहसँ
लगौलक आ गटागट पीबि गेल। ओकर गरा छिला गेलै। खाली गिलास जुवांव फेरसँ भरि देलकै।
दोसर गिलास पाखलोक गरामे एकटा हिचुकीक संग अटकि गेलै। गरा आ नाक जरए लगलै। ओकरा
लगलै जे ओकर नियंत्रण बिगड़ि रहल छै, ओ ओतै बैस
रहल।
रजनी घर आएल छेली, एहेन
ओकरा कियो बतेने छेलै। एते सुनते ओ सोनू मामाक घर दिस अपन पएर बढौलक।
घरमे सोनू मामा खेत जाइक हड़बड़ीमे रहथि। हुनका कान्हपर हर छेलनि। पाखलो पुछलक-
“रजनी
आएल छेली की?”
“आएल छेली।
दू दिन रहि कऽ चलि गेली।”
रजनी आएल छेली, सोनू मामा हमरा किएक नै बतौलनि? ओ
सोनू मामसँ पुछैले सोचि रहल छल, मुदा चुप्पे रहल।
बाहर जाइक हड़बड़ीमे सोनू मामा अपन घरक केवाड़ बन्न
केलनि आ पाखलो ओतएसँ मुँह लटका कऽ आपस भऽ गेल।
·
एक दिन आलेस पाखलोकेँ गोविन्दक संबन्धमे खबरि देलक।
गोविन्द अपन ऑफिसमे काज करैवाली एकटा ईसाई युवतीसँ बिआह कऽ नेने छल। ई गप सुनि
पाखलोकेँ बहुत आश्चर्य भेल रहै।
गोविन्दकेँ गाम एला एकटा अरसा बीति गेल रहै। ओ मेला आ
शिगमोमे सेहो नै आएल छल। गोविन्दक संबन्धमे ई खबरि सुनि ओ ओकरासँ भेँट करब सोचलक।
पणजी शहरक एकटा बड़का भवनमे गोविन्दक ऑफिस छेलै। “हम ओइ
ऑफिस केना जाउ?” पाखलो यएह सोचि रहल छल। फेर ओ हिम्मत केलक। पणजी शहरक ‘जुन्ता
हाउस’क सीढी चढैत ओ ओकरा ऑफिस पहुँचल।
ऑफिसक सभटा कर्मचारी ओ स्त्रीगण ओकरा देखए
लागल। ई कोन नव प्राणी आबि गेल? सभ कियो आश्चर्यक दृष्टिसँ पाखलोकेँ
देखए लागल। किछु स्त्री आ युवती सभ ओकरा देखि कऽ हँसए लगली। पाखलोकेँ अपना-आपमे केना दन लागलनि। एतबेमे अपन बॉसक केबिन गेल गोविन्द बहराएल। ओ पाखलोक लग
आएल। गोविन्दसँ मिलला पछाति, ऑफिसक मायावी संसारमे आएल पाखलोकेँ कनी
राहत भेटलनि।
“यौ
गोविन्द!”
पाखलो शोर पारलक।
गोविन्द हुनका जवाब नै दऽ कऽ हुनकर हाथ थामि कैंटीन दिस लऽ गेल। दुनू एक
दोसराक हाल-समाचार पुछलक। बहुतो दिनसँ गोविन्द गाम नै गेल छल ऐ लेल
पाखलो ओकरा उलहन देलकै। दुनू गोटे चाह पीबए लागल।
“हम यएह
एलौं।”
एते कहैत गोविन्द बीच्चेमे चाह पीब छोड़ि बहरा गेल आ जल्दिए एकटा युवतीक संगे
घूमि आएल। ओ साड़ी पहिरने छेली। हुनका माथपर एकटा टिकुली सेहो रहनि आ ओ बहुत धनिक
घरक बुझाइ छेली।
“ई हमर
मिता छी,
हमसभ एकरा पाखलो कहैत छिऐक।”
गोविन्द ओकरा पाखलोक माने बुझेलकै। पाखलो ओकरा दिस देखलक। ओ हँसली। किछु काल
पहिने यएह युवती पाखलोकेँ देखि कऽ हँसै छेली। गोविन्द पाखलोसँ आगू कहलकै-
“भविसमे
यएह हमर घरनी हेती। हिनक नाओं मारिया छियनि।”
पाखलो जखनि आश्चर्यसँ गोविन्द दिस देखलक तँ गोविन्द अपन माथ निच्चाँ दिस झुका
लेलक।
“जँ
गोविन्द एकटा ईसाई युवतीसँ बिआह कऽ लेत तँ गामक लोक एकरा संबन्धमे की सोचत? ओ सभ
की चुप बैसतै?”
पाखलोकेँ एहेन बुझेलै। मुदा ओ चुप रहल। बादमे ओ अपन ऐ बेमतलबक विचारकेँ एकदिस
राखि हँसए लगल।
पाखलोकेँ हँसैत देखि बुझू जे गोविन्दक माथक भार कम भऽ
गेलै।
“आब जाति-पाति आ धरम केतए रहि गेल छै? दक्खिनी आ उत्तरी ध्रुव आब सटि गेल छै।”
गोवन्द एहने सन किछु बात करता। पाखलोकेँ लगलै। मुदा गोविन्द चुप रहल। पाखलोकेँ
गोविन्दसँ बहुत रास गप करैक छेलै, मुदा
गोविन्द लग ओतेक समए नै रहै। बादमे पाखलो दुनूकेँ
“अच्छा, फेर भेँट हेतै!”
कहलक आ बहरा गेल।
पाखलो लिफ्टमे चढ़ल। ओइ काल ओकरा एकटा बातक स्मरण भऽ
गेलै-
“आलेस
दुबई जाइबला छथि ऐ लेल ओ पासपोर्ट बनेबाक जोगाड़मे रहथि। किछुए दिनमे ओहो विदेश
चलि जेता आ ऐ तरहेँ गाममे हमर एकोटा मीत नै रहि जाएत। हम
एकदम एसगर भऽ जाएब।”
ई गपतँ गोविन्दकेँ कहब बिसरिए गेलौं। आब तँ गोविन्दो कहियो गाम एता, एहनो संभावना नहिएक बरबरि छल। बुझाइत अछि जे गोविन्दो आब गामबलाक लेल बाहरिए
लोक भऽ गेला।
पाखलो लिफ्टसँ निच्चाँ उतरए लगल तँ ओकर माथ घूमए लगलै।
ओकरा बुझेलै, जेना-जेना लिफ्ट निच्चाँ दिस जा रहल अछि तेना-तेना ओहो निच्चाँ गिरल जा रहल अछि। लिफ्ट रुकला पछाति ओ एसगर भऽ गेल, ओकरा एहने बुझेलै। ओ लिफ्टसँ बाहर निकलल।
पणजीसँ गाम अएबा काल बसमे ओकरा रुक्मिणी मौंसीसँ भेँट भेलै। “रजनीकेँ
बेटी भेल छै।”
ई समाचार पाखलोकेँ वएह देने छेली। ई सुनि पाखलोक खुशीक कोनो ठेकान नै रहलै।
बससँ उतरि पाखलो एकपेड़िया हएत हाली-हाली गाम जाए लागल। साँझ पड़ि गेल रहै।
पूर्णिमाक चाँद आसमानमे साफ झलकैत रहै। पाखलोक मोनमे रजनीक बेटीक छवि आबि रहल छेलै।
ओ देखैमे केहेन हेती? ओ अपन माए-सन हेती आकि केकरो आन सन? ऐ तरहक कएकटा प्रश्न ओकरा मोनमे उठए लगलै। रजनीकेँ गोर रंग पसिन्न छै। ओकरा
चन्द्रमाक ऐ ज्योत्सना-सन बेटी होमक चाही। काजर लगएला पछाति
कारी आँखि वाली ओकरे सन सुन्नरि बेटी होमक चाही। पूर्णिमाक ज्योत्सना चारुदिस पसरल
रहै आ जेना नहरक पानि बहै छै तहिना ओकरा रस्तामे चन्द्रमा अपन ज्योत्सना पसारने छेलै।
·
रजनी पाँच मासक अपन बेटीकेँ संग लए कांदोले गाम अपन
बाबूजीक घर आएल छेली। पन्द्रह-बीस दिन बीति गेल छेलै, मुदा अखनि धरि ओ अपन पतिक घर नै गेल छेली। ओ अपन बेटीक नाओं सुलू राखने छेली।
ओ देखैमे बहुत गोर आ सुन्नरि छेली। ओकर केश गुलाबी छेलै आ आँखि लहसुनियाँ। ओ कोनो
फिरंगीक बेटी सन बुझाइ छेली।
रजनीकेँ ओकर घरबला घरसँ निकालि देने छथि, ई अफवाह सौंसे गाममे पसरि गेल रहै, आ साँचो रहै। ओकर घरबला ओकरा मारि-पीटि कऽ सुलूक संग ओकरा बापक ओतए पठा देने रहै। “रजनीकेँ पाखलोएसँ ई बेटी भेल छै।” ई
आरोप ओकर घरबला ओकरापर लगौने रहै, आ सरिपहुँ देखैमे फिरंगी सन लगैवाली
सुलूकेँ देखि लोको सभ एकरा साँच मानि नेने रहै।
रजनी अचानक अपना बेटीकेँ लऽ कऽ घर
आबि गेल छथि। ओइ दिन ई सुनि सोनूकेँ बहुत धक्का लागल रहै। ओ एना किएक एली? सोनूक
मोनमे एहेन प्रश्न उठए लगलै। अपना बापकेँ देखि रजनीक सब्रक बान्ह टूटि गेलै आ ओ
कानए लगली। आखिर भेलै की? ओ बुझिए नै पाबि रहल छल। बादमे रजनीक
देहपर दाग सभ देखि कऽ ओकरा सभकुछ समझमे आबि गेलै। ओ रजनीकेँ सांत्वना देलकै। बहुत
देर धरि तँ ओ चुप रहली मुदा पछाति जाए कऽ सभटा घटना हुनका बता देली। सुलूएकेँ लऽ कऽ ओकर घरबला ओकरापर शंका करै छेलै। ओकर ई आरोप रहै जे, “पाखलोएसँ
रजनीकेँ ई बेटी भेल छै।” ई आरोप साँचो भऽ सकैए। सोनूओकेँ अहिना बुझेलै आ ओकरा बहुत
गोस्सा आबि गेलै। ओकर आँखि लाल भऽ गेलै आ ओ गोस्सासँ पाखलोकेँ गरियाबए लगलै। “पहिने
हमर बहिन पाखलोक जातिमे हमर नाक कटा चुकल अछि। आ आब ओकरे बीया हमरा बेटीक भविस
खराप करैपर तुलल अछि” सोनू बाजए लागल। बादमे ओकर गोस्सा आर बढिते गेलै आ ऐसँ आगू
ओ किछु बाजि नै सकल।
“ऐमे
पाखलोक कोनो दोष नै छन्हि। हमर घरेबला हमरापर झूठ आरोप लगा
रहल छथि।”
रजनी सोनूकेँ कहलकै। मुदा ओ ई सभ सुनैले तैयारे नै छेलै। बहुत काल पछाति ओ सभ
किछु सुनलक आ कहलक-
“हमर तँ
भागे फूटल अछि।”
दोसर दिन ओ रजनीक घरबलासँ भेँट कऽ सभ किछु समझा कऽ कहलकै-
“सुलू
सन बच्चा बहुतो लोककेँ भऽ जाइ छै, ई सभ तँ भगवानक हाथमे छन्हि।”
ओ बहुत समझेबाक प्रयास कएलक, मुदा रजनीक घरबला किछुओ नै
मानलकै।
सुलूक पालना आब नानाक घरमे झूलए लगलै आ रजनी अपन
बेटीक संग अपन समए बिताबए लगली।
पाखलो ऐ बीच प्रायः भोरे-भोर
काजपर निकलि जाइ छल आ रातिएक पहर काजसँ घुमैत रहए। रजनीकेँ ओकर घरबला घरसँ निकालि
देने छै आ आब ओ अपन बापेक संग रहि रहल छेली, ई गप ओकरा पता नै रहै। सभ कियो
पाखलोकेँ एकटा अलगे दृष्टिसँ देखए लागल छल, मुदा लोक सबहक ई दृष्टि पाखलोकेँ
आने समए जकाँ बुझा रहल छेलै।
पाखलो दुपहरकेँ होटल जाइ छल। होटलमे आर पाँच-छह लोक बैसल रहै आ गप कऽ रहल छेलै। फेर ओकरा सबहक हँसीक अबाज एलै। पाखलोकेँ
भीतर घुसिते अबाज बन्न भऽ गेलै। बादमे ओ सभ पाखलोकेँ देखि फुसफुसा कऽ
बाजब शुरू केलक।
“हमरामे
कोनो परिवर्तन भेल अछि की?”
एहेन प्रश्न पाखलोक दिमागमे एलै। ओ अपन सौंसे देहकेँ निहारलक। ओइमे कोनो
परिवर्तन नै भेल छेलै। पैट-सर्ट जेतए छेलै
ओतै तँ रहै! आ दाढ़ी तँ ओ काल्हिए नौआसँ कटौने छल। एहेन स्थितिमे हम हिनका सभकेँ कौआ केना
नजरि आबि रहल छी। पाखलोक मोनमे ई उधेड़बुन हुअए लगलै।
रजनी गाम आएल छेली, ई गप
पाखलोकेँ बीस दिन पछाति पता लागि सकलै। ओ दोसरे दिन भोरे-भोर
उठि कऽ सोनू मामाक घर दिस चलि देलक। बिआह पछाति ओ रजनीसँ भेँट नै केने छल। बीचमे
ओ रजनीसँ भेँट करैले दू-तीन बेर सोनू मामाक घर गेलो रहै, मुदा रजनीसँ भेँट नै भऽ सकलै। मुदा आइ ओकरा रजनीसँ निश्चिते भेँट हेतै, ई जानि ओ जल्दी-जल्दी मामाक ओइठाम पहुँच गेल। केबाड़सँ
भीतर जाइकाल ओकर माथ चौकठिसँ टकरा गेलै, जेकर अबाज सुनि रजनी बहरेली।
देखलनि तँ पाखलो आएल छला। पाखलोकेँ देखि रजनी बहुत खुश भेली।
“अहाँक
माथमे चोट लागि गेल अछि ने!”
रजनी पाखलोसँ पुछलक।
“हँ! मुदा
भेल किछु नै।”
“किछु नै
भेल! चलू देखए दिअ।”
रजनी देखलनि, हुनका माथपर एकटा टेटर भऽ गेल छेलनि। रजनी ओकरा दबाबए लगली।
“ओह! हमरा
किछु नै भेल अछि, आ ने दरदे कऽ रहल अछि।”
एते कहैत पाखलो अपन माथसँ ओकर हाथ हटा देलकै। रजनी सुलूकेँ बाहर लऽ एली का
बजली-
“देखू
दाय! मामा आएल छथि।”
पाखलोकेँ देखि सुलू हँसि पड़ली। सुन्नरि सुलूकेँ देखि पाखलो रजनीसँ कहलकै-
“रजनी, सुलूकेँ कारी काजर लगा देल करिऔक, नै तँ एकरा केकरो नजरि लागि जाएत।” एते कहि पाखलो हँसए लगल। ताबत घरसँ निकलल सोनू मामा सेहो आबि गेला। सोफो (कुर्सीनुमा बैसकी) पर बैसल पाखलोकेँ देखि ओ ठाढ़े रहला आ
दरबज्जा दिस आँगुरक इशारा करैत बजला, “निकल जाउ एतएसँ। आजुक बाद फेर कहियो हमरा
ओतए नै आएब।”
पाखलोकेँ किछुओ बुझैमे नै एलै। ओ अवाक भऽ ओतै ठाढ रहल आ सोनू मामा दिस ताकिते
रहि गेल। सोनू मामा पुनः गोस्सासँ बाजए लगला-
“अहींक
कारणेँ ई सभ भेल छै। जँ अहाँ एतए नै रहितौं तँ एतेक सभकिछु नै होइतै। अहींक कारणेँ
रजनीक घरबला ओकरा घरसँ निकालि देने छै। अहाँ एतए कहिओ नै आबि सकै छी।”
पाखलो अवाक भए देखते रहि गेल।
“रजनीक
घरबला रजनीपर आरोप लगौने छै जे एकर बेटी अहींक जनमल छी। अहींक
कारणेँ ई सभ भेल छै, ई खबरि अहाँ नै सुनने छी की? एतए अएबामे
अहाँकेँ कन्निको शर्म नै भेल? दोसरक बेइज्जती कराबए एतए आएल छी?”
रजनी बीच्चेमे टोकलक-
“ऐमे
हिनकर कोनो दोष नै छन्हि, अहाँ
अनेर हिनकापर शंका कऽ रहल छी।”
रजनीक ई कहब सोनू मामा नै सुनलथि। ओ बाजिते जा रहल छला...
“अहींक
कारणेँ रजनीक भाग फूटि गेलै। जँ अहाँ एतए आएब तँ लोकबेद ऐ आरोपकेँ साँच मानि लेत, ऐ लेल अहाँ एतए कहियो नै आएल करु। पाखलोएक जाति हमर नाक कटौने अछि, ओकरे खून थिकौं अहाँ। पाखलोक वंशज छी अहाँ। अहीं हमर बर्बादीक कारण थिकौं।”
पाखलोक पएर थरथरबए लगलै। ओकरा किछुओ समझमे नै आबि रहल
छेलै, मुदा धीरे-धीरे सभ किछु समझमे आबि गेलै। ओकर बेटी फिरंगी-सन लगै छेली ऐ लेल ओकर घरबला ओकरापर ई आरोप लगौने छल। पाखलो ऐ संबन्धमे किछु बाजैबला रहथि मुदा सोनू मामा ओकरा निकलि जाइले कहने रहथि ऐ लेल
ओ बाहर आबि गेल रहए। ओकरा माथमे चक्कर भऽ रहल छेलै आ बुझाइत रहै जेना ओ फाटि
जेतै। ओकरा दिमागमे सोनू मामा शब्द कोनो मड़िया जकाँ चोट कऽ रहल छेलै।
“...रजनीक घरबला घरसँ बाहर कऽ देलकै ...रजनीकेँ अहींसँ बेटी भेल छै... पाखलोएक जाति हमर नाक कटौने अछि... पाखलोक वंशज छी अहाँ...अहाँ एतएसँ चलि जाउ।”
·
“बारह
चौबीस ट्रकक दुर्घटना भऽ गेलै!”
“केकर? ट्रक
ड्राइवर के छेलै?”
“पाखलो!”
एकटा खलासी निच्चाँ आबि लोक सभकेँ ई खबरि देलकै। सभ कियो ऊपर दिस दौगल। किछु गोटए ट्रकसँ गेल तँ किछु ओहिना दौग पड़ल। रस्ता नदीक कछेर
होइत एकटा घाटीक बीचसँ जाइत रहै। रस्ताक एक दिस घाटी रहै आ दोसर दिस खदहा!
ऊपरका रस्तासँ जाइबला एकटा ट्रक निच्चाँ खदहामे खसि
पड़ल छेलै। ट्रकक परखच्ची उड़ि गेल रहै जइमे पाखलो मारल गेल। एहेन सभकेँ बुझाइ छेलै।
किछु लोक निच्चाँ गेल। देखलनि तँ क्षतिग्रस्त ट्रकक बगलमे पाखलो पड़ल छल। ओकरा
देहक कपड़ा फाटि गेल रहै आ सौंसे देह नोचा गेल रहै।
पाखलो अपन क्षतिग्रस्त ट्रककेँ देखलक। ट्रकक अगिला
शीशा टूटि गेल रहै। लोहाक चदरा पूर्ण रूपसँ ट्रकसँ पिचकि गेल रहै। ओकरा देखि
पाखलोक आँखिमे नोर आबि गेलै। पाखलो उठल। ट्रकक सामने गेल आ ओइपर अपन हाथ फेरलक। आब
ओइ ट्रकपर भगवानक कोनो फोटो नै रहै, मुदा ट्रकमे लगौल गेल चाननक माला अखनो
धरि रहै जे कि पाखलो लगौने रहै।
पाखलो जखनि ठाढ भऽ रहल छल तखन ओकरा कानमे बहुत रास
प्रश्न सभ उठए लगलै। दुर्घटना केना भेलै? हम बँचि केना गेलौं? ऐ तरहक केतेको प्रश्नमे ओ उलझि-सन गेल।
पाखलो नीचेसँ रस्ताक एक दिस झाड़ी दिस आँगुर देखौलक।
ओकरा कमीजक एकटा बड़काटा टुकड़ी ओइ झाड़ीक बीच लटकल रहै। दुर्घटनाक समए ट्रकक
दरबज्जा अचानक खुजलै आ ओ बाहर खसि पड़ल छल। ओतएसँ ओ सीधा झाड़ीपर गिर अटकि गेल, जइसँ ओकर कमीज फाटि गेलै आ देह नोचा गेलै। ओतएसँ ओ धीरे-धीरे निच्चाँ
गिरल, जखनि कि ओकर साथी ट्रक गँहीरगर खदहामे गिर गेलै।
एतेक पैघ ट्रक आटाक लोइया बनि गेल रहै आ एकटा हाड़-मांसक लोक बँचि गेलै।
“पाखलोक
भाग नीक रहै तँए ओ बँचि गेल।”
लोक सभ एहने कहैत रहै। कारण ताकला उत्तर जखनि लोककेँ जवाब नै भेटै छै तँ ओ
ओकरा अपन भागपर छोड़ि दइ छै।
पाखलोकेँ डागदरक ओइठामसँ एला पछाति कम्पनीक प्रबन्धक
दुर्घटनाक जाँच करब शुरू केलक। प्रबन्धक ओकरासँ बहुत रास प्रश्न केलकै, मुदा ओ एकोटा प्रश्नक जवाब नै देलकै। ओकरा दिमागमे दुर्घटनाक विषयमे किछुओ नै
रहै। आइ भोरे जे किछु भेल छेलै, ओकरा दिमागमे बेर-बेर वएह प्रश्न आबि रहल छेलै। असलमे वएह प्रसंग दुर्घटनाक कारण छेलै। ओ भोरे
सोनू मामाक ओइठामसँ आएल आ ओइ तनावमे ट्रकपर चढि गेल। ट्रक चलबैत काल वएह घटना ओकरा
दिमागमे चलि रहल छेलै। रजनीक संग भाए-बहिनक संबन्ध रहितो ओकरापर ई आरोप लागल
छेलै। सोनू मामा ओकरा कहने रहथि, “एतएसँ निकलि जाउ, आ कहिओ
नै आएब!” “चलि जाउ” ई कहि
ओकरा निकालि देल गेल छेलै। तखन सोनू मामाक रिश्तामे ओ कियो ने रहै? पाखलो
सोचि रहल छल। वएह विचार ओकरा दिमागमे टीस मारि रहल छेलै आ ओ अचेतन अवस्थामे चलि
गेल छेलै। ठीक ओइ काल अगिला मोड़पर ट्रकक दुर्घटना भऽ गेल रहै। अखनि धरि वएह विचार, वएह प्रश्न ओकरा दिमागकेँ झकझोरि रहल छेलै।
कम्पनीक प्रबंधक द्वारा पुछल गेल सवालक जवाब हम नै दऽ
रहल छेलिऐ ऐ लेल ओ गोस्सा भऽ गेल आ ओइ गोस्सामे ओ हमरा गालपर फटाफट दू-तीन थापड़ मारि बैसल।
पाखलोक गालपर थापड़क निशान भऽ गेलै। ओ अपन गालकेँ
हँसोतए लागल। तथापि ओकरा सौंसे देहमे भऽ रहल दर्द ओकरा ओतेक कष्ट नै दऽ रहल छेलै, मुदा भोरक घटनासँ जे ओकरा करेजमे घाव भेल रहै ओ अखनि धरि हरिअर रहै।
·
सात-आठ माससँ पाखलोक बेवहार देखि लोककेँ
बुझाइ जे पाखलो पागल भऽ गेल छै। ओकर केश, दाढ़ी आ मोंछ बढि गेल छेलै आ ओइ
दाढीमे ओकर मुँह नुका गेल रहै। ओकर माथ तँ झलकैते नै रहै। गाल पिचकि गेल
रहै आ आँखि धँसि गेल रहै। देखैमे ओ बहुत विचित्र लागि रहल छेलै। जँ कोनो अनजान लोक
ओकरा देखि लैक तँ डरि जाइ।
जइ दिन ट्रकक दुर्घटना भेल छेलै ओइ दिन पाखलो जंगल
चलि गेल रहै। ओ ओत्तै चारि-पाँच दिन बितौलक आ बादमे गाम घूमल। ओइ
दिनसँ ओ गाममे अजीबोगरीब तरहेँ बाजए लागल आ संगे अपन हाथ सेहो हिलबैत रहै छल। बीच-बीचमे अपन आँखिकेँ सेहो विचित्र रूपसँ छोट-पैघ
करैत रहै छल। ओ दिनभरि घूमिते रहै छल। जंगल, भाट, मळार,
दोउड़े आदि ठाम घूमिते रहै छल आ केतौ बैस
जाइ छल। नारिकेल, कटहर, आमक
गाछ सबपर चढैत रहै छल आ केतौ दूर अपन नजरि गड़ौने रहै छल। लोक सबहक कहब रहै जे, “ओ बहुत
डरि गेल छै।”
ओकरा कार्याक देवचार (एकटा आत्मा) गड़ैस
नेने छै।
लगातार काजसँ अनुपस्थित रहबाक कारणेँ कम्पनी ओकरा
नोकरीसँ निकालि देने रहै। यद्यपि ओकर जेतेको हिसाब निकलैत रहै से कम्पनी ओकरा दऽ
देने रहै। ओ पाइ पाखलो ओइ दिन गामक बूढ़-बुजुर्ग आ नेना लोकनिमे बाँटि देने छल।
दोसर दिन धरि ओकरा लग खएबा धरिक पाइ नै रहलै। ओ अपन पैन्टक जेबी उनटौलक आ ओइ
स्थितिमे गाममे घूमए लागल। ओ मात्र घूमिते रहै छल। घुमैत काल ओकरा दिन-रातिक कोनो परवाहि नै रहै छेलै। एतेक धरि जे ओ रौद आ बरखामे
सेहो घूमिते रहै छल। ओकरा घूमबाक कोनो सीमा नै रहै।
ओकर किछु मीत लोकनि ओकरा कहियो काल चाह-पानि दऽ दैत रहै। कहियो काल खोआ-पीआ सेहो दैत रहै, नै तँ
ओ भूखले रहै छल। ऐ सबहक बाबजूद ओकर घूमब-फिरब बन्न नै भेल रहै। ओ कखनो केगदी भाटमे देखाइक तँ कखनो खेतक बान्हपर।
ओ कहिओ
केकरो भाटसँ नारिकेलकेँ हाथ धरि नै लगौलक। केकरो कोनो कष्ट नै देलक, एकरा सबहक बाबजूद लोक ओकरासँ डरए लगल छल। एतए धरि जे छोट-छोट
नेनासभकेँ ओकर माए, पाखलोक नाओं लऽ कऽ डराबए
लागल छेलै।
ओइ दिन बरखा भऽ रहल छेलै। पाखलो सोनू
मामाक घर लगक पीपरक गाछक निच्चाँ ठाढ़ छल। ओकरा देखि रजनी दौग कऽ ओकरा लगीच गेली
ओकरा अपना घर बजा अनली।
“सुलू दाई! एतए आउ, देखू
अहाँक मामा आएल छथि।”
रजनीक एते कहिते सुलू घरसँ दौगल एली, मुदा पाखलोकेँ देखते डरि गेली।
“ई
अहाँक मामा छथि! हुनका लग जाउ!”
रजनी
सुलूकेँ कहलथि। तखन पाखलोक बजएलापर सुलू ओकरा लग गेली। पाखलो ओकरा कोरामे उठौलक आ
फेर निच्चाँ राखि देलकै। सुलू हँसली। पाखलो सेहो हँसए लगल। दुनूक हँसी देखि
रजनीकेँ नीक लगलै। पाखलो अपन फटलका पैन्टक जेबीमे किछु ताकबाक प्रयास केलक मुदा
ओकरा किछुओ नै भेटलै। तखन ओ अपन दोसर पैन्टक जेबीमे हाथ देलक आ ओइसँ दूटा आमला
निकालि सुलूक हाथपर राखि देलक। बादमे ओ सुलूक माथपर अपन हाथ फेरलक, ओकरा गालपर चुम्मा लेलक आ दुलार-मलार करए लगल-
“विठू! अहाँ ऐ तरहक पगलपन नै करल करू, ऐ तरहेँ पगलपन कऽ अहाँ अपन की
हालति बना नेने छी से कहिओ देखने छी? अहाँक गाल पिचकि गेल अछि आ आँखि धँसि
गेल अछि।”
एते
कहैत रजनीक आँखिमे नोर आबि गेलै। ई देखि पाखलोक मोन सेहो पसीज गेलै आ ओ बाजल-
“अहाँ
कानि किएक रहल छी?”
“नै तँ! हम कानि कहाँ रहल छी? ओहो! अखनि
धरि अहाँ ठाढे छी? आउ बेंचपर बैसू, हम भीतर जा रहल छी, पहिने
अहाँकेँ किछु खुआएब तखन हमसभ गप-सप्प करब।”
रजनी भोजन परसए भीतर चलि गेली। पाखलो
सुलूकेँ दुलार करए लगल। रजनी पाखलोक लेल भोजन परसि बाहर आबि कहली, “चलू
भोजन लागि गेल अछि।”
एते
कहि ओ ओकर हाथ धुआबए लगली।
एतबेमे दरबज्जापर किनको छाँही देखा
पड़लै। दरबज्जाक बाहर सोनू मामा अपन पएरक जूता निकालि रहल छला। सोनू मामाकेँ देखि
पाखलो घरसँ भागल आ बहुत दूर धरि भागिते रहल!
सोनू मामा, रजनी आ
सुलू ओकरा देखिते रहि गेल।
·
पाखलो आब गाममे छोट-पैघक
लेल हँसीक पात्र बनि गेल छल। नेना सबहक संग आब पैघ लोक सभ सेहो पाखलोक मजाक उड़बए
लागल छल। नेना सभतँ ओकरा पाछूए लागि जाइ छेलै। ओकरापर पाथर फेकै, ओकरा ‘पागल पाखलो’ कहि कुढाबै। जखनि पाखलोकेँ बहुत गोस्सा आबि जाइ तँ ओ नेना सभ दिस आँखि तरेर कऽ
देखैक जइसँ नेना सभ डरि कऽ भागि जाइ।
पाखलो कलमाक चबूतरापर बैसल छल। तखने नेना सबहक एकटा
दल आबि धमकलै। सभटा नेना ओकरा लग जमा भऽ गेल आ ‘पागल पाखलो’, ‘पागल पाखलो’ कहि ओकरा कबदाबए लागल। एतबेमे ओ अपन माथ नोचब शुरू कऽ देलक आ फेर जोर-जोरसँ हँसैत बाजए लागल-
“हम
पागल पाखलो! हा,
हा, हा, हा... हम पाखलो नै छी! हम पागल छी! पागल! हा, हा, हा,
हा...।”
“अहाँ
पागलो छी ओ पाखलो सेहो छी।”
नेना सभ बाजए लागल। एकटा नेनातँ ओकरापर पाथर फेकि देलकै आ पछाति जाए कऽ सभटा
नेना सभ हल्ला-गुल्ला करए लगल।
Illustration-04
“अहाँ
पागल पाखलो, पाखलो, पाखलो।”
पाखलो ओकरा सबहक दिस आँखि तरेर कऽ देखलक आ
“हम
पाखलो नै,
हम पाखलो नै”
कहैत अपन माथ ओइठाम चबूतरापर पटकए लागल किछुए क्षण पछाति ओ बेहोश भए ओतए गिल
पड़ल। तेकर बाद ओतए जमा भेल नेना सभकेँ कियो भगा देलकै।
दोसर दिनसँ पाखलो रस्तापर रौदेमे रहए लागल। अपन गोर
देह, गुलाबी केशमे कारिख पोतए लागल। अपन कारी देहकेँ देखि ओ हँसए लगल आ रस्तासँ आबै-जाइबला केँ
कहए लागल-
“देखू! हमहूँ
अहीं सन बनि गेलौं ने?”
अपना आपकेँ कारी करैले भरि-भरि दिन
रौदमे ठाढ़ रहए लागल। कारिख लगा कऽ कारी कएल गेल ओकर देह किछुए दिनमे बेरंग भऽ
गेलै ओ फेर पहिने-सन देखाबए लागल। ओ अपन सभटा गुलाबी केश
काटि लेलक आ पूरा टकला भऽ गेल। मोंछ आ दाढीक संग ओ अपन आँखिक पिपनी सेहो काटि
लेलक। ओकर जेतेको गुलाबी केश छेलै ओ सभटा काटि लेलक जेकरा कारणेँ ओ औरो बेदरंग
लागए लागल। ओइ दिन साँझकेँ ओ एकटा आमक गाछक निच्चाँ जेतेको सूखलका पात छेलै से
सभटा जमा केलक आ ओइमे आगि लगा देलक। “हमर गोर चाम जरि जाइक चाही आ हमरा कारी
भऽ जाइक चाही।” एते सोचि ओ अपन फाटल कपड़ा सहित आगिमे
ठाढ भऽ गेल। ओकरा कपड़ामे आगि लागि गेलै। ओइ समए कियो
आबि ओकरा आगिसँ बाहर धकेल देलकै आ आगि मिझा देलकै। ओइ आगिमे पाखलोक देहक किछु
रोइयाँ झुलसि गेलै। हाथ-पएर आ मूँहक चाम जरि गेलै। देहमे फोका
निकलि गेलै आ सौंसे देह लाल भऽ गेलै।
Illustration-05
अस्पतालमे जेतए ओकरा
राखल गेल रहै, ओतए ओ दू दिन बितौलक। जहिना ओकर मोन कनी नीक भेलै
ओहिना ओ दोसरे दिन अस्पतालक ड्रेसमे भागि गेल आ गाम आबि गेल। गामक लोककेँ अस्पतालक
ड्रेसमे पाखलोक पागलपनक एकटा नव रूप देखबामे एलै। ओ पहिने जकाँ गाममे एम्हर-ओम्हर घूमए लागल।
पातोले जंगलमे किछु स्त्रीगण आ किछु युवती सभ लकड़ी
बीछै छेली। ओकरा सभकेँ देखि पाखलो ओतए गेल। ओइमे शामा सेहो छेली। ओकरा देखि ओ शोर
पारलक आ ओकरा लग गेल। शामा डरि गेली आ पाछू हटए लगली। पाखलो ओकरा रूकैले कहलकै
मुदा ओ रूकली नै भागए लगली। “ठहरू, ठहरू!” कहैत
पाखलो ओकरा पाछू दौगए लागल।
दौगैत-दौगैत ओ रूकल। जोरसँ चिकरैत शामा गाम दिस
भागली।
“पागल पाखलो युवती सबहक पाछू पड़ल छै।” ई गप सौंसे शहरमे पसरि गेल।
·
नअ
तेसर दिन धरि हम ओइ घटनाक संबन्धमे सोचि रहल छेलौं।
हम की केलौं? किएक केलौं? हमरा किछुओ नै बुझैमे आबि रहल छल। हम शामकेँ देखि ओकरा लग गेल छेलौं। ओकरा अबाज
लगेलौं। ठहरू! ऐमे हमरा किछु बेसी खराप नै देखा रहल छल, मुदा आब यएह गप हमरा सालि रहल छल। हम किएक ओकरा रूकए
कहलिऐ आ ओकरा पाछू किएक दौगलिऐ? ऐ तरहक
प्रश्न हमरा दिमागमे बेरि-बेरि घूमि रहल छल।
मुदा हँ... ओइ दिन खूब मोन लागल रहए। ओइ दिन
शामाक ओतए जाएब व्यर्थ भऽ गेल रहनि। ओ हमरासँ बिआह करैले तैयार नै छेली आ हमरा
पाखलो कहै छेली, ओइ मुहेँ हम हुनका चिकरैले बाध्य केलौं! हमरा
पागल कहै छेली ने! शी! शी! ई सभ ठीक नै। ओइ दिन ओकरा पएरमे काँट गरि गेल हेतै! हम ई
नीक नै केलौं।
रजनीक घरबला रजनीकेँ फेर अपना घर लऽ गेल छला। एहेन
लोक सभ बजै छला। हमहूँ एहने किछु सुनने रही। ई गप साँच छै की? यएह जनैले आ रजनीक संबन्धमे पुछैले हम शामाकेँ रूकैले कहने रहिऐ। शामा हमर
जान-पहिचानक छेली, मुदा हमरा द्वारा ठहरू! ठहरू! कहबाक
माने ओ किछु आर निकालि लेलथि की? आकि हम ओहिना हुनका रूकए कहलियनि? हमरा कोनो जवाब नै भेट रहल छल।
गोवा जखनि स्वतंत्र भेल रहै ओइ समए पाखलो लोकनि
जंगलमे यत्र-तत्र नुका गेल रहए। भूखक कारणेँ ओ सभ जहरबला फल खा-खा कऽ मरि गेल छल। हमहूँ ओहिना मरब की? ई सोचि हम डरि गेलौं। हम द्वन्द्वमे
पड़ि गेलौं आ हमरा मोनमे डर समा गेल।
गाम जएबासँ हम डरि रहल छेलौं। गाम जएबामे हमरा लाज
लागि रहल छल। पाखलो युवती सबहक पाछू भागि रहल छेलै। ओहो बापे जकाँ भऽ गेलै। लोक सभ
एहने कहैत रहै। ओ सभ हमरा मारि देता, हमरा मारता आ जित्ते गारि देता।
हमरा छोड़ा कऽ आनैबला आब ओइ गाममे कियो रहबो नै केलै। दादीतँ नहिए
रहला आ गोविन्द तँ गामे नै अबै छला। ओ तँ गामक लेल बाहरी लोक भऽ कऽ रहि गेला अछि, आ हम,
एकटा एसगर पाखलो।
गाम गेलौं तँ गामक नेना सभ हमरा पाखलो, पाखलो, पागल पाखलो कहि कऽ कढ़ौता। सभ कियो हमरा पाखलोएक
नजरिसँ देखैत रहए। हम ओकरा सभ जकाँ देखैले की नै केलौं। कारी होइले रौदमे ठाढ रहलौं
आ गुलाबी दाढ़ी-मोंछ काटि लेलौं। अंतमे फोंका होइ धरि, घाव होइ
धरि हम अपन देह जरबैत रहलौं। देहक चाम जरि गेल आ घावसँ खून बहि गेल। वासनाक कारणेँ
जनम लइबला पाखलेपन तँ आब हमरा देहसँ चलिओ गेल हएत। कंकालपर ठाढ भेल ऐ देहकेँ ई
धरती सम्हारि नेने अछि।
हमर पहिलुक रूप बदलि गेल अछि। सौंसे देह कारी भऽ गेल
अछि। लोकक रुप रंग आ हमर रूप रंगमे आब कोनो फरक नै रहि गेल अछि। हम एत्तहि जनमलौं, पैघ भेलौं आ हिनके सबहक बीच रहलौं। हम एतुके लोक सभमेसँ एक छी। ऐ माटिक
संस्कारमे पललौं, बढ़लौं, तखन हम
पाखलो केना?
हमर माए हमर नाओं ‘विठू’ रखने
छेली! ओ हमरा विठूए कहि बजबै छेली। हमर नाओं विठू छी। ऐ नाओंसँ किनको तँ बजाइक चाही ने? आ जँ हमरा कियो विठू कहि नै बजबैए तँ
की हम विठू नै भेलौं? हम विठू छी! हम विठूए छी!
रजनीक शोर पारब हम अखनि सुनि रहल छेलौं। हमर कान, मोन आ हमर सौंसे संवेदनाकें हम विठू छी, ई बूझैमे आबि रहल छल।
जंगलक रस्ता पार करैत हम पहाड़ीपर चढ़ि गेलौं। ओइ
पहाड़ीसँ निच्चाँ रजनीक सासुर देखाइत रहै।
हम जखनि पहाड़ीसँ निच्चाँ उतरि रहल छेलौं तखने हमरा
स्मरण आएल। रजनीक घरबला ओकरापर आरोप लगा ओकरा घरसँ बाहर निकालि देने रहै आ एक बरख
पछाति घर लऽ गेल रहै। अखनि जँ हम रजनीसँ भेँट केलौं तँ ओकर घरबला फेर ओकरा घरसँ
निकालि देतै। हमरा एहेन लागल आ संगे एकटा झटका सेहो। हम ओतै ठाढ़ रहलौं।
हमर एक मोन कहै छल, जे हम
ओतए गेलौं तँ नीक नै हएत, आ दोसर मोन हमरा आगू दिस घीचि रहल छल।
रजनीक घरबला ओकरा घर लऽ जाए कऽ नीक केने रहए। हमरा ऊपर लगौल गेल दोषारोपण आब नै
रहल। लोकक नजरिमे आब हम पाक-साफ छेलौं। ओहो! नीके
भेलै। हमरा दिमागसँ द्वन्द्व हटि गेल। तनाव चलि गेल। आब हमरा आजादी महसूस भऽ रहल
छल। आब हम रजनी आ सुलूसँ भेँट करब। रजनी हमरा भाय मानै छथि आ हम ओकरा बहिन। ई गप
हम ओकरा घरबलासँ कहबै। बादमे हम निर्णए लेलौं आ पहाड़ी दने निच्चाँ
उतरए लगलौं।
हम पहाड़ीसँ उतरि हाली-हाली
जा रहल छेलौं। ओतए कुळवाड्याक चरबाह नेना सभ हमरा देखलक।
“यएह
देखू पाखलो! यएह देखू पाखलो!
पाखल्या!”
ओकरा सबहक ई शोर सुनि हम डरि गेलौं आ काँपए लगलौं ओ पहाड़ीक ढलानसँ दौगए लगलौं।
पाखलो,
पाखलो, ऐ तरह अबाज पाछूसँ आबि रहल छल। हम दौगैत-दौगैत पहाड़क सुनसान घाटीमे पहुँच गेलौं।
साँझुक पहर ओइ घाटीक समूचा क्षेत्र बड्ड मनोरम बुझाइत
रहै। मुदा हम ओइ दिस बेसी धियान नै देलौं। घाटी पार कऽ हम कारपें गामक
सीमानपर पहुँचलौं। सीमानक लग एकटा बड़काटा झील रहै आ ओइ झील लग एकटा पोखरि सेहो
रहै। रस्ता चलैत काल ओइ पोखरिमे किछु गिरैक अबाज एलै। हम पोखरिक लग गेलौं। एक ठाम
पानिमे घुरमी होइत रहै आ पानिक बुलबुला आबि रहल छेलै। चरबाह आकि आन कियो ओइ पोखरिमे किछु फेंकने हेतै यएह मानि हम आगू-पाछू
देखए लगलौं, मुदा ओतए कियो ने छल।
हम पोखरि कातसँ कुसरीक फूलक एकटा कोंढी तोड़लौं आ रजनीक घर दिस ओकरासँ भेँट करैले
हाली-हाली चलए लगलौं।
Illustration-06
मुनहारि साँझकेँ हम रजनीक गाममे पएर रखलौं। ओतुका लोक
सभ घरसँ बाहर आबि हमरा देखए लागल। हम रजनीक घर लग पहुँच गेलौं। ओतए देहरीएसँ अबाज
देलिऐ मुदा घरसँ कोनो उत्तर नै आएल। हम ओतएसँ बहरेलौं, देखलौं
घरसँ बाहर सुलू कानि रहल छेली। हम ओकरा अबाज लगेलिऐ आ कोरामे उठा लेलिऐ। ओ हिचुकी-हिचुकी कानि रहल छेली। हम ओकरा चुप करैक प्रयास केलौं। अपन हाथक कसरीक फूलक
कोंढ़ी ओकरा हाथमे दऽ देलिऐ। हम ओकरासँ पुछलिऐ-
“माए केतए
गेल छथि?”
“हम नै
जनै छी।”
“हुनका
बहुत मारने छथि।”
“के, कखन?”
“बाबा।”
Illustration-07
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