भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Saturday, July 26, 2008

विदेह 01 अप्रैल 2008 वर्ष 1 मास 4 अंक 7 10. पंजी प्रबंध पञ्जी संग्राहक-श्री विद्यानन्द झा”मोहनजी” पंज्जीकार

10. पंजी प्रबंध पञ्जी संग्राहक-श्री विद्यानन्द झा”मोहनजी” पंज्जीकार
श्री विद्यानन्द झा पञीकार ‘मोहनजी’ जन्म-09.04.1957,पण्डुआ, ततैल, ककरौड़(मधुबनी), रशाढ़य(पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा, पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आ' संरक्षणमे संल्गन। कृति- पञ्जी शाखा पुस्तकक लिप्यांतरण आ' संवर्द्धन- 800 पृष्ठसँ अधिक अंकन सहित। पञ्जी नगरमिक लिप्यान्तरण ओ' संवर्द्धन- लगभग 600 पृष्ठसँ ऊपर(तिरहुता लिपिसँ देवनागरी लिपिमे)। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज(दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।

श्रोत्रिय ब्राह्मण सात श्रेणीमे क्रमबद्ध छथि, आ’ योग्य एवम् वंशज पन्द्रह श्रेणीमे। पञ्जीक संख्या 209 अछि, जाहिमे 56 पंजी श्रोत्रिय आ’ 153 पंजी योग्य आ’ वंशजक अछि।
पंजी-प्रबन्धक प्रारम्भ राजा हरसिंहदेवक कालमे शुरू भेल। ज्योतिरीश्वर ठाकुरक वर्ण-रत्नाकरमे हरसिंहदेव नायक आकि राजा छलाह।
आइ काल्हि पञ्जी-प्रबंध मात्र मैथिल ब्राह्मण आ’ कर्ण-कायस्थक मध्य विद्यमान अछि। मुदा प्रारम्भमे ई क्षत्रिय(प्रयः गंधवरिया राजपूत)केर मध्य सेहो छल।
वर्णरत्नाकरमे 72 राजपूत कुलक मध्य 64 केर वर्णन अछि, जाहिमे बएस आ’ पमार दोहराओल अछि। दोसर ठाम 36 राजपूत कुलक वर्णन अछि। 20 टा नामक पूर्वहुमे चर्च अछि। विद्यापतिक लिखनावलीमे, जे प्रायः हुनकर नेपाल प्रवासक क्रममे लिखल गेल छल, चन्देल आ’ चौहानक वर्णन अछि। गाहनवार वा मिथिलाक गंधवरिया राजपूतक दू टा शखा मिथिलामे छल, भीठ भगवानपुर आ’ पंचमहला(सहर्सा, पूर्णियाँ)। गंधवरिया,पमार,विशेवार,कंचिवाल, चौहान आदि मिथिलाक महत्त्वपूर्ण राजपूत छथि।मुदा गंधवरिया मिथिलामे महत्त्वपूर्ण छथि आ’ एखनहु मधुबनीसँ सहरसा-पूर्णियाँ धरि छथि।
वर्णरत्नाकरक राजपूत कुलवर्णनक निम्न लगभग 62 टा कुल अछि। सोमवंश,सूर्यवंश, डोडा, चौसी, चोला, सेन, पाल, यादव, पामार, नन्द, निकुम्भ, पुष्पभूति, श्रिंगार, अरहान, गुपझरझार, सुरुकि, शिखर, बायेकवार, गान्हवार,सुरवार, मेदा, महार, वात, कूल, कछवाह, वायेश, करम्बा, हेयाना, छेवारक, छुरियिज, भोन्ड, भीम, विन्हा, पुन्डीरयन, चौहान, छिन्द, छिकोर, चन्देल, चनुकी, कंचिवाल, रान्चकान्ट, मुंडौट, बिकौत, गुलहौत, चांगल, छहेला, भाटी, मनदत्ता, सिंहवीरभाह्मा, खाती,रघुवंश, पनिहार, सुरभांच, गुमात, गांधार, वर्धन, वह्होम, विशिश्ठ, गुटिया, भाद्र, खुरसाम, वहत्तरी आदि। एखनो गंगा दियारामे राजपूत आ’ यादव दुनूक मध्य ‘बनौत’ होइत छथि, आ’ दुनूमे बहुत घनिष्ठता अछि।
पर्वतमे रहनिहार आ’ वनमे रहनिहारक वर्णन सेहो अछि वर्ण रत्नाकरमे। जनक राजाक विरुद ज(कबीला) सँ बनल प्रतीत होइत अछि।
(अनुवर्तते)

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