भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, July 27, 2008

विदेह 01 मई 2008 वर्ष 1 मास 5 अंक 9 5. कथा9.पसीधक काँट

5. कथा
9. पसीधक काँट

मीत भाइक खिस्सा की कहब। गामसँ निकललथि नोकरी करबाक हेतु मुदा यावत लाल काकाक लग रहलाह तावत कनैत-कनैत हुनका अकच्छ क’ देलखिन्ह।
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मीत भाइ गाममे रहथि तँ पसीधक काँटक रस पोखड़िमे द’ कए पोखरिक सभटा माँछ मारि देथि।

एक बेर पुबाड़ि टोलक कोनो बच्चाक मोन खराप भेलैक तँ हिनका सँ अएलन्हि पुछबाक हेतु जे कोन दबाइ दियैक। मीत भाइ पसीधक काँटक रस पियाबय कहलखिन्ह। फेर मँहीस चरेबाक हेतु डीह दिशि चलि गेलाह। एक गोट दोसर मँहीसबार गाम परसँ अबैत देखा’ पड़लन्हि तँ पुछलखिन्ह जे हौ बाउ, पुबाड़ि टोल दिशि सँ कोनो कन्नारोहटो सुनि पड़ल छल अबैत काल? बुझू। ओ’ तँ धन रहल जे मरीजक बापकेँ रस्तामे क्यो भेँटि गेलैक आ’ पूछि देलकैक, नहि तँ अपन बच्चासँ हाथ धोबय जा’ रहल छल।
फेर मीत भाइ कंठी ल’ लेलन्हि, मुदा घरमे सभ क्यो माँछ खूब खाइत छलन्हि। एक बेर भोरे- भोर खेत दिशि कोदारि आ’ छिट्टा लए बिदा भेलाह मीत भाइ। बुन्ना-बान्नी होइत छल, मुदा आड़िकेँ तड़पैत एकटा पैघ रोहुकेँ देखि कए कोदारि चला देलन्हि आ’ रोहु दू कुट्टी भ’ गेल। दुनू ट्कड़ीकेँ माथ पर उठा कए विदा भेलाह मीत भाइ गाम दिशि। तकरा देखि गोनर भाय गाम पर जाइत काल बाबा दोगही लग ठमकि कए ठाढ़ भए गेलाह, मोनमे ई सोचैत जे वैष्णव जीसँ रोहु कोना कए लए ली। आ’ ‘बाबा दोगही’ मीत भाइक टोलकेँ गौँआ सभ ताहि हेतु कहैत छल, जे क्यो बच्चो जे ओहि टोलमे जनमैत छ्ल से संबंधमे गौँआ सभक बाबा होइत छल।
“यौ मीत भाइ। ई की कएलहुँ। वैष्णव भ’ कए माछ उघैत छी”।
”यौ माछा खायब ने छोड़ने छियैक। मारनाइ तँ नञि ने”।
अपन सनक मुँह लए गोनर भाइ विदा भए गेलाह।
से एक दिन गोनर झा टेलीफोन डायरी देखि रहल छलाह, तँ हुनका देखि मीत भाइ पुछलखिन्ह, “की देखि रहल छी”।
गोनर झा कहलखिन्ह जे “टेलीफोन नंबर सभ लिखि कए रखने छी, ताहिमे सँ एकटा नंबर ताकि रहल छी”।
“ आ’ जौँ बाहरमे रस्तामे कतहु पुलिस पूछि देत जे ई की रखने छी तखन”।

“ ऐँ यौ से की कहैत छी। टेलीफोन नंबर सभ सेहो लोक नहि राखय”।
”से तँ ठीक मुदा एतेक नंबर किएक रखने छी पुछला पर जौँ जबाब नहि देब तँ आतंकी बुझि जेलमे नहि धए देत”।
”से कोना धए देत। एखने हम एहि डायरीकेँ टुकड़ी-टुकड़ी क’ कए फेंकि दैत छियैक”।
आ’ से कहि गोनर भाइ ओहि डायरीकेँ पाड़-फूड़ि कए फेंकि देलखिन्ह।

एक दिन मीत भाए भोरे-भोर पोखड़ि दिशि जाइत रहथि तँ जगन्नाथ भेटलखिन्ह, गोबड़ काढ़ि रहल छलाह। कहलखिन्ह,” यौ मीत भाइ, अहूँ सभकेँ भोरे-भोर गोबड़ काढ़य पड़ैत अछि ?”
मीत भाइ देखलन्हि जे हुनकर कनियो ठाढ़ि छलखिन्ह से एखन किछु कहबन्हि तँ लाज होएतन्हि, से बिनु किछु कहने आगू बढ़ि गेलाह। जखन घुरलाह तँ एकान्त पाबि जगन्नाथकेँ पुछलखिन्ह, “भाइ, पहिने बियाहमे पाइ देबय पड़ैत छलैक, से अहाँकेँ सेहो लागल होयत। ताहि द्वारे ने उमरिगरमे बियाह भेल”।
”हँ से तँ पाइ लागले छल”।
”मुदा हमरा सभकेँ पाइ नहि देबय पड़ल छल आ’ ताहि द्वारे गोबरो नहि काढ़य पड़ैत अछि, कारण कनियाँ ओतेक दुलारू नहि अछि”।
एक बेर बच्चा बाबूक ओहिठाम गेलाह मीत भाइ। ओ’ पैघ लोक आ’ तेँ बड्ड कँजूस। पहिने तँ सर्दमे गुरसँ होएबला लाभक चर्च कएलन्हि, जे ई ठेही हँटबैत अछि आ’ फेर गूरक चाह पीबाक आग्रह। मुदा मीत भाए कहि देलखिन्ह जे गुरक चाह तँ हुनको बड्ड नीक लगैत छन्हि, मुदा परुकाँ जे पुरी जगन्नाथजी गेल छलाह से कोनो एकटा फल छोड़बाक छलन्हि से कुसियार छोड़ि देलन्हि, आ’ तकरेसँ तँ गुर बनैत छैक। ओहि समयमे चुकन्दरक पातर रसियन चीनी अबैत छल, से बच्चा बाबूकेँ तकर चाह पिआबय पड़लन्हि।
किछु दिन पहिने बच्चा बाबू एहि गपक चर्च कएने छलाह जे ओ’ जोमनी छोड़्ने छलाह तीर्थस्थानमे आ’ तैँ जोम खाइत छलाह। हरजे की एहिमे। मीत भाइ खूब जबाब देलन्हि ऐ बेर एहि बातक। अधिक फलम् डूबाडूबी।
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मीत भाइक बेटा भागि गेलन्हि। पुछला पर कोढ़ फाटि जाइत छलन्हि।
“यौ, लाल काका बियाह तँ करा’ देलन्हि, मुदा तखन ई कहाँ कहलन्हि जे बियाहक बाद बेटो होइत छैक”।

आब मीत भाइ बेटाकेँ ताकए लेल आ’ अपना लेल नोकरी सेहो दिल्लीक रस्ता धेलन्हि।
मुदा एहि बेर तँ मीत भाइ फेरमे पड़ि गेलाह। जखने दरभंगासँ ट्रेन आगू बढ़ल तँ सरस्वती मंद पड़ए लगलन्हि। कनेक ट्रेन आगू बढ़ल तँ एकटा बूढ़ी आबि गेलीह, मीत भाइकेँ बचहोन्ह देखलन्हि तँ कहए लगलीह
“बौआ कनेक सीट नञि छोड़ि देब”।
तँ मीत भाइ जबाब देलखिन्ह,
“माँ। ई बौआ नहि। बौआक तीन टा बौआ”।
आ’ बूढ़ी फेर सीट छोड़बाक लेल नहि कहलखिन्ह।
मीत भाइ मुगलसराय पहुँचैत पहुँचैत शिथिल भए गेलाह। तखने पुलिस आयल बोगीमे आ’ मीत भाइक झोड़ा-झपटा सभ देखए लगलन्हि। ताहिमे किछु नहि भेटलैक ओकरा सभकेँ। हँ खेसारी सागक बिड़िया बना कए कनियाँ सनेसक हेतु देने रहथिन्ह लाल काकीक हेतु। मुदा पुलिसबा सभ लोकि लेलकन्हि।
”ई की छी”।
”ई तँ सरकार, छी खेसारीक बिड़िया”।
”अच्छा, बेकूफ बुझैत छी हमरा। मोहन सिंह बताऊ तँ ई की छी”।
” गाजा छैक सरकार। गजेरी बुझाइत अछि ई”।
”आब कहू यौ सवारी। हम तँ मोहन सिंहकेँ नहि कहलियैक, जे ई गाजा छी। मुदा जेँ तँ ई छी गाजा, तेँ मोहन सिंह से कहलक”।
”सरकार छियैक तँ ई बिड़िया, हमर कनियाँ सनेस बन्हलक अछि लाल काकीक..........”
” ल’ चलू एकरा जेलमे सभटा कहि देत”। मोहन सिंह कड़कल।
मीत भाइक आँखिसँ दहो-बहो नोर बहय लगलन्हि। मुदा सिपाही छल बुझनुक। पुछलक
“कतेक पाइ अछि सँगमे”।
दिल्लीमे स्टेशनसँ लालकाकाक घर धरि दू बस बदलि कए जाए पड़ैत छैक। से सभ हिसाब लगा’ कए बीस टाका छोड़ि कए पुलिसबा सभटा ल’ लेलकन्हि। हँ खेसारीक बिड़िया धरि छोड़ि देलकन्हि।

तखन कोहुनाकेँ लाल काकाक घर पहुँचलाह मीत भाइ।
मुदा रहैत रहथि, रहैत रहथि की सभटा गप सोचा जाइत छलन्हि आ’ कोढ़ फाटि जाइत छलन्हि। तावत गामसँ खबरि अएलन्हि जे बेटा गाम पर पहुँचि गेलन्हि। लाल काकी लग सप्पथ खएलन्हि मीत भाइ जे आब पसीधक काँट बला हँसी नहि करताह। “नोकरी-तोकरी नहि होयत काकी हमरासँ” ई कहि मीत भाइ गाम घुरि कए जाय लेल तैयार भ’ गेलाह।
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