भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Sunday, July 20, 2008
विदेह वर्ष-1 मास-1 अंक-1 4.कथा
1.शनैः-शनैः
परम शांति आऽ कि घोर कोलाहल। आरुणि ठाकुर किछु अस्वस्थ छथि आऽ कलकत्तामे वुडलैण्ड नर्सिंग होमक समीपस्थ स्थित विशालकाय अपार्टमेंटक अपन फ्लैटमे असगरहि अध्यावसनमे लीन अपन अतीतक पुनर्विश्लेषणमे रत छथि। अशांतिक क्षण हुनका रहि-रहि कय अनायासहि यादि आबि रहल छन्हि। जखन ओऽ अपन समस्या सभ अपन हित-संबंधी सभकेँ सुना कय अपन मोनक भार कम करैत रहथि। शनैः-शनैः समस्या सभ बढ़ैते चल गेल एतेक तक कि आब दोसरकेँ सुनेलापरांत मोन आर उचटि जाइत छलन्हि। ताहि द्वारे आब ओ’ अपने तक सीमित रहय लगलाह। हित संबंधी सभ बुझय लगलाह जे आरुणि समस्यासँ रहित भय गेल छथि।
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बच्चेसँ सपनामे भयावह चीज सभ देखाइ पड़ैत छलन्हि आरुणिकेँ। अखन धरि हुनका यादि छन्हि कोना आध-आध पहर रातिमे ओऽ घामे-पसीने भय जाइत रहथि आऽ हुनकर माता-पिता चिंतित भय बीयनि होकैत रहथि छलखिन्ह। पिताक-पिता आ’ तकर जन्मदाता के ? भगवान जौँ सभक पूर्वज तखन हुनकर पूर्वजके ? लोकसभ एहि प्रश्न सभकेँ हँसीमे उड़ा दैत छलाह, परंतु बादमे जखन आरुणि दर्शनशास्त्र पढ़लन्हि तखन हुनका पता चललन्हि जे एकर उत्तरक हेतु कतेक ऋषि-मुनि सेहो अप्पन जीवन समर्पित कय चुकल छथि मुदा ई प्रशन एखनो अनुत्तरिते अछि।
कख्ननोकेँ निन्दमे हुनका लागन्हि जे ओऽ घरक छत पर छथि आऽ नहि चाहितो शनैः-शनैः छतक बिना घेरल भाग दिशि गेल जा रहल छथि। गुरुत्वक कोनो शक्ति हुनका खीचि रहल छन्हि तावत धरि जावत ओऽ नीचाँ नहि खसि पड़ैत छथि। की ई छल कोनो प्रारब्धक दिशानिर्देश आऽकि कोनो भविष्यक दुर्घटनासँ बचबाक संदेश।
किछु दिन तकतँ आरुणि सुतबाक सही समयक पता लगबैत रहलाह परंतु शनैः-शनैः हुनका ई पता लागि गेलैन्ह जे स्वप्न आऽ निन्न एहि जीवनक दूटा एहन रहस्य अछि जे नियम विरुद्ध अछि आऽ अनुत्तरित अछि।
आऽ आरुणि पैघ भेलथि, फेर हुनकर पढ़ाइ शुरु कएल गेल- अगस्त्यक स्तोत्र- सरस्वति नमस्तुभ्यम वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भम् करिष्यामि सिद्धिर्भवतुमे सदा।
श्रीगणेषजीक अंकुश क संग गौरिशंकरक अभ्यर्थना सिद्धिस्तु। साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वसिनी उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिःपतिः सिद्धिःसाध्ये सतामस्तु प्रसदांतस्य धूर्जटेः जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला।
एहि श्लोककेँ बजैत काल प्रायः आरुणि पशुपतिःपतिःक सामवेदीय तारतम्यक बाद अनायासहि हाऽ हाऽ कऽकय जोरसँ हँसय लगैत छलाह आऽ बीचहि मे रुकि जाइत छलाह। पिता सोचलखिन्ह जे कम वयसमे पढ़ाई शुरु केलासँ आरुणिक कुर्सी पर बैसि कय माथपर हाथ राखि कय बैसबाक आदतितँ खतम होयतन्हि।सय तकक खाँत ओऽ एके बेर मे सीखि गेलाह जखन ओऽ देखलन्हि जे बीसक बाद गणनामे पशुपतिःपतिःक जेकाँ लयबद्धता छैक।
मायक एकटा गप्प हुनका पसिन्न नहीं छलन्हि। ओऽ बिचमे गप्प करैत-करैत आरुणिक बातकेँ अनठिया दैत छलथिन्ह। एकबेर मायक क्यो संगी आयल छलीह। आरुणिक कोनो बातपर माय ध्यान नहीं दय रहल छलीह। आरुणिक हाथमे भरिघरक चाभीक झाबा छलन्हि तेँ ओऽ कहखिन्ह जे जौँ हुनकर बात नहीं सुनल जयतन्हि तँ ओऽ झाबाकेँ सोझाँअक डबरामे फेंकि देताह। माय सोचलखिन्ह जे हाँ-हाँ केलापर झाबा फेकियेटा देताह तैँ आर अनठिया देलखिन्ह। परिणाम दुनु तरहेँ एके हेबाक छल। चाभी बहुत खोज केलो पर नहि भेटल। एखनो घरक सभ अलमीरा आदिक चाभी डुप्लीकेट अछि। एतेक दिनक बाद ई सभ सोचि आरुणिक मुँहपर अनायासहि मुस्की आबि गेलन्हि।
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सिद्धांतवादी पिताकेँ नोकरीमे किछु ने किछु दिक्कत होइते रहैत छलन्हि ताहि द्वारे ओऽ आरुणि जल्दी सँ जल्दी पैघ देखय चाहैत छलाह। तेसर सँ सोझे पाँचम वर्गमे फनबा देल गेलन्हि।फेर भेल ई जे होलीक छुट्टीमे नियमानुसार सभ गोटे गाम गेल छलाह। नियम ई छल जे होली आऽ दुर्गापूजामे सभ बेर गाम जयबाक नियम जेकाँ छलैक। पिताजी सभकेँ छोड़ि कय वापिस भय गेलाह। फेर दरमाहा बन्द भय गेल छलन्हि प्राय़ःसे गाम चिट्ठी आयल जे आब सभकेँ गामहि मे रहय पड़तन्हि। मायतँ कानय लगलीह मुदा आरुणि खूब प्रसन्न भेलाह। मुदा सरकारी स्कूलमे ओहि समय वर्गक आगाँमे (नवीन) लगाकय एक वर्ग कममे लिखबाक गलत परम्परा नवीन शिक्षा नीतिक आलोकमे लेल गेल छलैक कारण नवीन नीतिमे आर किछुओ नवीन नहि छल। पिताजीकेँ जखन एहि बातक पता चललन्हि तँ ओऽ तमसायलो छलाह आऽ एकर प्रतिकार स्वरूप पाँचम क्लासक बाद जखन ओऽ सभ शहर वापस अयलाह तँ आरुणिकेँ फेर एक वर्ग तरपाकय सोझे छठम वर्गक बदलामे सातम वर्गमे नाम लिखवा देलन्हि। छठम वर्गक विज्ञान आऽ गणितक पढ़ाइ पाँचमे वर्गमे कय लेबाक पिताक निर्देशक उद्देश्यक जानकारी आरिणिकेँ तखन जाकय भेलन्हि जखन प्रवेश-परीक्षामे यैह दुनु विषय पूछल गेल आऽ आरुणि छठा आऽ सातम दुनु वर्गक प्रवेश परीक्षामे बैसलाह आऽ सफल भेलाह। बहुत दिन बाद तक जखन क्यो आनो संदर्भमे छठम वर्गक चर्चा करैत छल तँ आरुणिकेँ किछु अनभिज्ञताक बोध होइत छलन्हि।
गामक प्रवासमे एकबेर आरुणि पिताकेँ चिट्ठी लिखने छलाह कारण हुनकर जुत्ता शहरेमे छूटि गेल छलन्हि। जुत्तातँ आबिये गेलन्हि संगहि चिट्ठीक तीन टा शाब्दिक गल्तीक विवरण सेहो आयल आऽ ईहो मोन पाड़ल गेल जे एकबेर दौरिकय गणितक प्रश्न हल करबाक प्रतियोगितामे तीनक बदला हड़बड़ीमे दुइयेटा प्रश्नकेँ हल कऽकय ओऽ कोना कॉपी जमा कय देने छलाह।
हुनकर स्वभावमे क्रोधक प्रवेश कखन भेलन्हि से तँ हुनको नहि बुझबामे अयलन्हि मुदा पिताजी हुनका क्रोधक समान कोनो दोसर रिपु नहि एहि संस्कृत श्लोकक दस बेर पाठ करबाक निर्देश देने छलखिन्ह- से धरि मोन छन्हि। एकटा घटना सेहो भेल छल जाहिमे स्कूलमे एकटा बच्चा झगड़ाक मध्य सिलेटसँ हुनकर माथ फोड़ि देने छलन्हि। आरुणि सेहो सिलेट उठेलथि मुदा ई सोचि जे ओकर माथ फूटि जयतैक हाथ रोकि लेने छलाह। एकर परिणामस्वरूप हुनकर पिता दू गोट काज केलन्हि। एकतँ हुनकर सिलेटकेँ बदलि कय लोहाक बदला लकड़ीक कोरबला सिलेट देलखिन्ह जकर कोनो ने कोनो भागक लकड़ी खुजि जाइत छलैक आऽ दोसर जे कॉलोनीमे समकक्ष अधिकारीक बैठक बजाकय कॉलोनीअहिमे स्कूल खोलि देल गेल जतय आरुणि पढ़य लगलाह। बादमे क्यो पंडित जखन वाल्मीकि रामायणक सुन्दरकाण्डक पाठ तँ क्यो ज्योतिष कँगुरिया आँगुरमे मोती आऽ कि मूनस्टोन पहिरबाक सलाह अही उद्देश्यक हेतु देबय लगैत छलाहतँ ओऽ संस्कृत श्लोक हुनका मोन पड़ि जाइत छलन्हि।
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बाल संस्कारक अंतर्गत सहायता माँगयमे आऽ समझौता करयमे अखनो हुनका असहजता अनुभव होइत छन्हि। मुदा हारि आऽ जीत दुनुकेँ बराबड़ बूझि युद्ध करबाक विश्वास हुनकामे नहीं रहलन्हि विशेषकरिके पिताक मृत्युक बाद। आऽ विजय हुनकर लक्ष्य बनैत गेलन्हि शनैः-शनैः। जकर ओऽ जी-जानसँ मदति कएलन्हि सेहो समयपर हुनकर संग देलकन्हि। समय-समय पर केल गेल समझौता सभ हुनकर संघर्षकेँ कम केलकन्हि। जतेकसँ दोस्तियारी छलैन्ह तकरे निभेनाइ मुश्किल भय रहल छलैन्ह। फेरतँ नव शहरमेँ नव संगीक हेतु स्थान नहि बचल।
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महत्वाकांक्षाक अंत नहि आऽ जीवन जीबाक कला सभक अद्वितीय अछि। आरुणि ई नाम आब कखनो-कखनो घरमे सुनाइ पड़ैत छल। कलकत्ता शहर प्रतिभाक पूजा करैत अछि। मुदा व्यवसायी होयबामे एकटा बाधा छल-अंग्रेजीक संग बाङलाक ज्ञान जे ओऽ बाट चलैत सीखि गेलाह।व्यस्त जीवनमे बीमारीक स्थितिअहिमे हुनका आराम भेटैत छलैन्ह। बीमारियेमे सोचबाक आदति मोन पड़ैत छलैन्ह। आऽ ई फ्लैट किनलाक बाद मायकेँ सेहो बजा लेलखिन्ह। ओना हुनका बुझल छलन्हि जे माय एहि सभसँ प्रभावित नहि होयतीह। कारण ओऽ अधिकारी प्त्नी छलीह आऽ पुत्रकेँसेहो ओहि रूपमे देखबाक कामना छलन्हि। ई नव शहर हुनक पुत्रक व्यक्तित्वमे सैद्धांतिकताक स्थानपर प्रायोगिकताक प्रतिशतता बढ़ा देने छलन्हि। आब समयाभावक कारण स्वास्थ्य खराब भेलेपरांत सोचबोक समय पुत्रकेँ भेटैत छलन्हि।
व्यसायमे सफलता प्राप्तिक पूर्व आरुणि एकटा कागज प्रिंटिंग प्रेसमे काज केनाइ शुरु केलन्हि। अपन मित्रवत प्रिंटिंग प्रेस मालिकसँ दरमाहाक बदला पर्सेंटेज पर काज करबाक आग्रह केलन्हि। ऑर्डर आनि बाइंडिंग आऽ प्रिंटिंग करबाबथि आऽ आस्ते-आस्ते अपन एकटा प्रिंटिंग प्रेस लगओलथि। किछु गोटे हिनका अहिठामसँ छपाइ करबाकय ग्राहककेँ बेचथि। हुनका जखन एहि बातक पता चललन्हि तँ ओऽ एकटा चलाकी केलथि जे सभ बंडलमे अपन प्रेसक कैलेंडर धऽ देलखिन्ह। जखन अंतिम उपभोक्ताकेँ पता चललैक जे ओ’ सभ अनावश्यके दलालक माध्यमसँ समान कीनि रहल छलाह तँ ओऽ सभ सोझे आरुणि प्रिंटिंग प्रेस केँ ऑर्डर देबय लागल। आरुणिकेँ घरमे अपन नाम कखनहुँ काले सुनि पड़ैन्ह। किताबक ऊपर छपल हुनकर नाम तँ कोनो कंपनीक छलैक- आऽ ओऽ ओकरासँ निकटता अनुभव नहि कऽ पाबि सकैत छलाह। संसारक कुचालि हुनकर पिताक अंत केने छलन्हि मुदा आरुणि व्यावसायिक युद्ध मस्तिष्कसँ लड़ैत आऽ जितैत गेलाह।
मायक एलाक बाद आरुणि ई नाम बीसो बेर दिन भरिमे सुनाइ पड़य लागल। ओकर संगी लोकनि उपरोक्त घटना सभकेँ जखन आरुणिक मायकेँ सुनबैत रहैत छलाह ई सोचि जे ओऽ अपन मित्रक बड़ाइ कय रहल छलाह तँ आरुणि असहजताक अनुभव करय लगैत छलाह आऽ गप्पकेँ दोसर दिशि मोड़ि दैत छलाह।
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हुनकर मायतँ जेना हुनक विवाहक हेतु आयल छलीह। माय जखन जिद्द ठानलन्हि तँ हुनका आश्चर्य भेलन्हि कारण घरमे जिद्दक एकाधिकारतँ हुनकेटा छलन्हि। मुदा माय बूझि गेल छलीहजे हुनकर बेटा प्रक्टिकल भय गेल छन्हि आऽ जिद्द केनाइ बिसरि गेल छन्हि। आरुणि सोचलन्हि जे छोटमे बड्ड जिद्द पूरा करबओने छथि तेँ आब पूरा कर्बाक समय आयल अछि। विवाह फेर बच्चा। माय अपन नैतमे पतिक रूप देखलैन्ह। पतिक मृत्यु बेटाकेँ प्रैक्टिकल बना देने छल मुदा आब ई नहीं होयत। कजे बेटा नहि कय सकल से आब नैत करत। नैतक नाममे बेटा आऽ पति दुहुक नामक समावेश केलन्हि-जयकलित आरुणि। फेर पढ़ाइ शुरु- सिद्धरस्तु-श्री गणेशजीक अंकुश आऽ वैह उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिःपतिः। हुनकर बेटाकेँ पेशंट पढ़ेलखिन्ह ओऽ तँ घर सम्हारैत छलीह। आब पुतोहु घर सम्हारलैन्ह, बेटाकेँ तँ फुरसतिये नहि। आब बाऽ पढेतीह नैतकेँ।
उतपत्स्येत हिमम कोऽपि समानधर्मा कालोह्यम निरवधिर्विपुला च पृथ्वी।
पृथ्वी विशाल अछि आऽ काल निस्सीम,अनंत, एहि हेतु विश्वास अछि जे आइ नहीं तँ काल्हि क्यो ने क्यो हमर प्रयासकेँ सार्थक बनायत।
आरुणि अपनाकेँ अपन मायसँ दूर अनुभव केलन्हि, किछु अस्वस्थ सेहो छथि आऽ वुडलैण्ड नर्सिंग होमक समीपस्थ स्थित विशालकाय अपार्टमेंटक अपन फ्लैटमे असगरहि अध्यावसनमे लीन अपन अतीतक पुनर्विश्लेषणमे रत छथि।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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