भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति
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पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor:
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Wednesday, July 23, 2008
विदेह दिनांक 15 फरबरी, 2008 (वर्ष: 1 मास: 2 अंक: 4 ) 3. महाकाव्यमहाभारत (आँगा)
महाभारत (आँगा) ------
यश छल सुशासनसँ आ’ छल
जन-जीवन अति संपन्न।
छल अहिना दिन बीति रहल
अयलाह नारद एकदिन जखन,
स्वागत भेलन्हि खूब हुनकर
ओहो रहथि आनंदित तखन।
देखल शील-गुण पांडवक
मुदा कहल द्रौपदीसँ सुनू बात ई,
छी पत्नी पांडवक मुदा निवासक
नियम किए नहि बनेने छी,
नारदक बात समीचीन छल
से नियम बनेलथि पाँचो गोटे,
एक-एक मास रहथु सभ लग
द्रौपदी नियम नहि भंग हो।
बारह वर्ष पर्यंत छोड़य पड़त
गृह त्रिटि भेल जौँ,
पालन नियमक होमय लागल
किछु काल धरि ई,
कनैत अएलाह विप्र
एक अर्जुन पुछलन्हि बात की।
चोर छल चोरेने गौकेँ हाक्रोस
विप्र छल करि रहल,
शस्त्र छल गृहमे द्रौपदी संग
युधिष्ठिर जे रहि रहल।
विप्रक शापसँ नीक सोचि
मूरी झुकेने गेल अर्जुन,
शस्त्र आनि छोड़ायल गौकेँ
घुरि आयल गृह तखन।
माँगल आज्ञा युधिष्ठिरसँ दिय’
गृहत्यागक आज्ञा,
नियम भंगक कएल हम अपराध,
की बाजल अहाँ।
अर्जुन ई अपराध लागत
जखन पैघक द्वारा होयत,
छोट भाय कखनो अछि
आबि सकैत बड़ भाय घर।
मुदा निकलि गेलाह अर्जुन
आज्ञा लय माता भायसँ,
भ्रमण देश-कोसक करैत
पहुँचल हरिद्वार गंग तट,
स्नान करैत कल नजरि
छल नागरा कान्याक जौँ,
कोना बचि सकैत पहुँचि
गेलाह पातालक निकट।
विवाह प्रार्थना स्वीकारल
अर्जुन ई छल वरदान भेटल,
जलमे रस्ता बनत चलि
सकब अहाँ व्यवधान बिन।
मणिपुर पहुँचि जतय चित्रांगदा
राजकन्या छलि रूपवती,
विवाहक प्रस्ताव अर्जुनक
स्वीकारल मानल राजा सशर्त,
दौहित्र होयत हमर वंशज
भेल ई विवाह तखन जा कय।
चित्रांगदाक पुत्र भेल बभ्रुवाहन
नाम राखल गेल जकर ई,
परम प्रतापी पराक्रमी योद्धा
बनल बालक पाछू सुनय छी।
फेर ओतयसँ निकलि अर्जुन
पहुँचल प्रभास तीर्थ द्वारका निकट,
शस्त्र-प्रदर्शनक आयोजन केलन्हि
कृष्ण निकट परवत रैवतक।
प्रेम देखि सुभद्रासँ कृष्ण छलाह
सुझओने नव उपाय ई,
अपहरण करब जीतब युद्ध
यादवसँ बनत तखने बात ई।
बनलि सारथी वीर सुभद्रा
संग्राम छल बजरल जखन,
बुझा-सुझा मेल छल करओने
कृष्ण जा कय तखन।
विवाह भेल तदंतर अर्जुन
संग सुभद्रा गएलाह पुष्कर,
पुरल जखन ई वनवास कृष्णक संग पहुँचल इंद्रप्रस्थ।
देखि नववधू प्रसन्न कुंती
आनंद नहि समटा रहल,
द्रौपदीसँ पाँच पुत्र, आ’
अभिमन्यु सुभद्रासँ भेल छल।
बीति छल रहल दिन जखन
अएलाह जीर्ण शरीर अग्नि,
रोगक निदान छल खांडव
वन रहय छल ओ’सर्प तक्षक।
इंद्रक अछि मित्र ओ’ जखन
करैत छी जरेबाक हम सूरसार,
नहि जरबय दैत छथि इंद्र,
करू कृपा अहाँ हे इंद्र अवतार ।
छी प्रस्तुत मुदा अस्त्र अछि
नहि हमरा लग ओतेक,
इंद्र युद्धक हेतु चाही योग्य
शस्त्रक मात्रा जरूरी जतेक।
देल गांडीव धनुष तूणीर
अक्षय वरुणक रथ नंदिघोष,
चलल डाहबाक हेतु अग्नि
पेलाक बाद अर्जुनक तोष।
इंद्र मेघकेँ पठओलन्हि कृष्ण
कएल सचेत जे, वायव्यक
प्रयोग कएल अर्जुन मेघ बिलायल से।
तक्षकक मृत्योपरान्त इज़ंद्र भेलाह
प्रकट ओतय,
माँगल अर्जुन दिव्यास्त्र हु
नकासँ मौका देखि कय।
जाऊ शिवक उपासना करू
दय सकैत छथि वरदान ओ’,
छल मय आयल अग्निक
कोपसँ बचि लग अर्जुनक ओ’।
सेवा करबाक बात छल मोनमे
लेने कृतज्ञ छल ओ’, बनाऊ
सभा भवन अनुपम नहि
बनल जे कतहु हो’।
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"भालसरिक गाछ" Post edited multiple times to incorporate all Yahoo Geocities "भालसरिक गाछ" materials from 2000 onwards as...
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जेठक दुपहरि बारहो कलासँ उगिलि उगिलि भीषण ज्वाला आकाश चढ़ल दिनकर त्रिभुवन डाहथि जरि जरि पछबा प्रचण्ड बिरड़ो उदण्ड सन सन सन सन...
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खंजनि चलली बगढड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरली अपन वस्तुलक परित्याकग क’ आनक अनुकरण कयलापर अपनो व्यिवहार बिसरि गेलापर व्यंपग्यय। खइनी अछि दुइ मो...
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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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