भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, July 27, 2008

विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक ११ ६. पद्य स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)गंगेश गुंजनज्योति झा चौधरीगजेन्द्र ठाकुर

६. पद्य
अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
इ.पद्य ज्योति झा चौधरी
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर

अ.पद्य विस्मृत कवि स्व. श्री रामजी चौधरी (1878-1952)
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
8.
भजन विनय

लक्ष्मीनारायण हमर दुःख क्खन हरब औ॥
पतित उधारण नाम अहाँके सभ कए अछि औ,
हमरा बेर परम कठोर कियाक होइ छी औ।।
त्रिविध ताप सतत निशि दिन तनबै अछि औ॥
अहाँ बिना दोसर के त्राण करत औ॥
देव दनुज मनुज हम कतेक सेवल औ,
कियो ने सहाय भेला विपति काल औ॥
कतेक कहब अहाँके जौँ ने कृपा कर औ,
रामजीके चाड़ि अहाँक के शरण राखन औ॥

9.
भजन विनय
एक बेर ताकू औ भगवान,
अहाँक बिना दोसर दुःख केहरनाअन॥
निशि दिन कखनौ कल न पड़ै अछि,
कियो ने तकैये आन
केवल आशा अहाँक चरणके आय करू मेरे त्राण॥
कतेक अधमके तारल अहाँ गनि ने सकत कियो आन,
हमर वान किछु नाहि सुनए छी,
बहिर भेल कते कान॥
प्रबल प्रताप अहाँक अछि जगमे
के नहि जनए अछि आन,
गणिका गिद्ध अजामिल गजके
जलसे बचावल प्राण॥
जौँ नहि कृपा करब रघुनन्दन,
विपति परल निदान,
रामजीके अब नाहि सहारा,
दोसर के नहि आन॥

10.
महेशवानी

सुनू सुनू औ दयाल,
अहाँ सन दोसर के छथि कृपाल॥
जे अहाँ के शरण अबए अछि
सबके कयल निहाल,
हमर दुःख कखन हरब अहाँ,
कहूने झारी लाल॥
जटा बीच गंगा छथि शोभित चन्द्र विराजथि भाल,
झारीमे निवास करए छी दुखियो पर अति खयाल॥
रामजीके शरणमे राखू,
सुनू सुनू औ महाकाल,
विपति हराऊ हमरो शिवजी करू आय प्रतिपाल॥


11.
महेशवानी

काटू दुःख जंजाल,
कृपा करू चण्डेश्वर दानी काअटू दुःख जंजाल॥
जौँ नहि दया करब शिवशंकर,
ककरा कहब हम आन,
दिन-दिन विकल कतेक दुःख काटब
जौँ ने करब अहाँ खयाल॥
जटा बीच गंगा छथि होभित,
चन्द्र उदय अछि भाल,
मृगछाला डामरु बजबैछी,
भाँग पीबि तिनकाल॥
लय त्रिशूलकाटू दुःख काटू,
दुःख हमरो वेगि करू निहाल,
रामजी के आशा केवल अहाँके,
विपति हरू करि खयाल॥



12.
महेशवानी

शिव करू ने प्रतिपाल,
अहाँ सन के अछि दोसर दयाल॥
भस्म अंग शीश गंग तीलक चन्द्र भाल,
भाँग पीब खुशी रही ,
रही दुखिया पर खयाल।
बसहा पर घुमल फिरी,
भूत गण साथ,
डमरू बजाबी तीन
नयन अछि विशाल॥
झाड़ीमे निवास करी,
लुटबथि हीरा लाल,
रामजी के बेर शिव भेलाह कंगाल॥

13.

महेशवानी

शिवजी केहेन कैलौँ दीन हमर केहेन॥
निशिदिन चैन नहि
चिन्ता रहे भिन्न,
ताहू पर त्रिविध ताप
कर चाहे खिन्न॥
पुत्र दारा कहल किछु ने सुनै अछि काअ
ताहू पर परिजन लै अछि हमर प्राण॥
अति दयाल जानि अहाँक शरण अयलहुँ कानि,
रामजी के दुःख हरू अशरण जन जानि॥
(अनुवर्तते)
आ.पद्य गंगेश गुंजन
गंगेश गुंजन(1942- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक। उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार। एकर अतिरिक्त्त हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोट (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आ' शब्द तैयार है (कविता संग्रह)।
३. गाम
चारि पाँती मातृभूमि मिथिलाक नाम
पाँच फूल देश केर शहीदक नाम
नोर चारि ठोप हमर श्रम केर
स्मतृतिमे अव्यतीतक नाम

माटि, मेघ, वायु, सौँस पर्वतकेँ
नदी, वृक्ष, पक्षी आऽ निर्झरकेँ
अपन सूर्य तारा आऽ चन्द्रमा,
ग्राम नगर गली केर बसातक नाम
गुंजनक सश्रु स्वाधीन प्रणाम
गढ़ि रहल छथि फेरसँ एखन ओऽ मुरुत
हुनक मन, बांहि आँखि अथक हौँसला
चकचक देहक श्रमकणकेँ सादर प्रणाम
हे हमर विवेक, हमर दुःख-सुख,
हे हमर गाम!


इ.पद्य ज्योति झा चौधरी


ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति

बालश्रम
बालपनक किलकारी भूखक ताप सऽ भेल मूक,
पोथी बारि कोदारि पाडैत हाथक मारि अचूक।
कादो रौद बसातमे श्रम केनाइ भेल मजबूरी;
गरीबीक पराकाष्ठा ! पेट आ पीठक घटैत दूरी,
किछु धनहीनता आ’ किछु माता पिताक मूर्खता,
मुदा, सभसँ बेसी स्वार्थी समाजक संवेदनहीनता,
जे बालक केँ माताक आश्रय सॅं वञ्चित केलक,
लेखनि के छीन कोमल हाथमे करची धरेलक,
माल जालक सेवा करैत बाल्य जीवन कुदरूप,
अपने भविष्यकेँ दरिद्र करैत अज्ञान आ' अबूझ,
विद्योपार्जनक ककरा फुर्सति ? स्थिति तऽ तेहन भेल,
चोर बनक आतुर अछि बालपन दू दाना अन्न लेल।
ई.पद्य गजेन्द्र ठाकुर
मोनक जड़िमे
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल।

पर्वत शिखर सोझाँ अबैत हियाऊ गमाबथि,
बल घटल जेकर पार दुःखक सागर करैत।
करबाक सिद्धि सोझाँ छथि जे क्यो विकल,
भोथलाइत प्यासल अरण्यपथ मे हँ बेकल।

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल,
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च नञि जानि किए सेजल।

हाथ दए तीर आनि दए करोँट तखन तत,
मनसिक अन्हारक मध्य विचरणहि सतत।
प्रकाशक ओतए कए उत्पत्ति ठामहि तखन,
विपत्तिक पड़ल क्यो आब नञि होएत अबल।

मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रम भेटल,
पंक्त्तिबद्ध कए पुनः किञ्च जानि किए सेजल।

करबाक अछि लोक कल्याणक मन वचन कर्महि ,
नञि अछि अपन अभिमान छोड़ब अधः पथ ई।
घुरत अभिमान देशक तखन अभिमानी हमहुँ छी,
नञि तँ फुसियेक अभिमान लए करब पुनः की।
मोनक जड़िमे राखल सतत कार्यक क्रमक ई,
पंक्त्तिबद्ध पुनः किञ्च जानि कए सेजल छी।

c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

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