भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल अखनो ५ जुलाई २००४ क पोस्ट'भालसरिक गाछ'- केर रूपमे इंटरनेटपर मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितिक रूपमे विद्यमान अछि जे विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,आ http://www.videha.co.in/ पर ई प्रकाशित होइत अछि।
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Sunday, July 27, 2008
विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक १० ५. कथा १०.फूसि-फटक-गजेन्द्र ठाकुर
१०.फूसि-फटक
“कोनो काज भेला पर हमरासँ कहब। कलक्टरक ओहिठाम भोर-साँझ बैसारी होइत अछि हमर। घंटाक-घंटा बैसल रहैत छी, आबए लगैत छी तँ रोकि कए फेर बैसा लैत अछि, दोसर-दोसर गप शुरू कए दैत अछि”।
“ठीक छैक भाइ जी। कोनो जरूरी पड़त तँ कहब। नाम की छन्हि हुनकर”।
“बड्ड नमगर नाम छन्हि, भा.प्र.से. प्रशांत। आब भा.प्र.से. केर पूर्ण रूप हुनकासँ के पुछतन्हि से प्रशांते कहैत छन्हि”।
“भारतीय प्रशासनिक सेवाक संक्षिप्त रूप छैक भा.प्र.से., ई हुनकर नामक अंग नहि छन्हि”।
“अच्छा तँ फेर सैह होय। ताहि द्वारे नेम-प्लेट पर नामक नीचाँ लिखल रहैत छैक”।
“ठीक छैक भाइ जी। कोनो जरूरी पड़त तँ अहाँकेँ कहब”।
मीत भाइक गप पर भाष्कर बाजल। ओना भाष्करक अनुभव यैह छैक जे जखन कोनो काज ककरोसँ पड़ैत छैक तँ यैह उत्तर भेटैत छैक-
“परुकाँ साल किएक नहि कहलहुँ, ककर-ककर काज नहि करएलहुँ। मुदा एहि बेर तँ कोनो जोगारे नहि अछि। कहियो कोनो काज नहि कहने छलहुँ आऽ आइ कहलहुँ तँ हमरासँ नहि भऽ पाबि रहल अछि, से जानि कचोट भऽ रहल अछि”। आऽ जखन ओऽ बहराइत छथि, तखन ई बाजल जाइत अछि-
“फलनाक बाल-बच्चा सभ बड़ टेढ़। कहियो घुरि कए नहि आयल छल भेँट करए। आऽ आइ काज पड़ल छैक तखन आयल अछि”।
भाष्करक बाबूजीक संगी एक दिन वात्सल्यसँ एक बेर कोनो बङ्गाली बाबूकेँ हिनका सोँझा एक गोट बड़ नीक गप कहने छ्लाह-
“देखू दादा। ई छथि भाष्कर। हमर अत्यंत प्रिय मित्र सत्यार्थीक बेटा”।
“हुनकर बेटा तँ बड्ड छोट छल”।
“यैह छथि। अहाँ बड्ड दिन पहिने देखने छलियन्हि तखन छोट छलाह, आब पैघ भए गेल छथि। कहैत छलहुँ जे हिनकर पिता हिनका लेल किछु नहि छोड़ि गेलाह। मुदा हमर पिताक मृत्यु १९६० ई. मे भेल छल आऽ हमरा लेल ओऽ नगरमे १२ कट्ठा जमीन, एकटा घर आऽ एकटा स्कूटर ओहि जमानामे छोड़ि गेल छलाह। आऽ जौँ ई बच्चा ककरो लग कोनो कजक हेतु जायत, तँ एकरा उत्तर भेटतैक जे परुकाँ किएक नै अएलहुँ आऽ परोछमे कहतन्हि, जे काज पड़लन्हि तखन आयल छथि। मुदा एकरा समस्या पड़लैक तखन अहाँकेँ पुछबाक चाही छल, मुदा से तँ अहाँ नहि कएलहुँ। आऽ अहाँक लग आयल अछि, तखन अहाँ उल्टा गप करैत छी। आऽ जौँ ई बच्चा सहायताक लेल नहि जायत आऽ अपन काज स्वयं कए लेत आऽ ओहि श्रीमानकेँ से बुझबामे आबि जएतन्हि तँ उपकरि कए अओताह आऽ पुछथिन्ह जे काज भऽ गेल आकि नहि। कहलहुँ नहि। आऽ तखन ई बच्चा कहत जे काज भऽ गेल, हगवानक दया रहल। से दादा क्यो कोनो काजक लेल आबए तँ बुझू जे कुमोनसँ आऽ समस्या भेले उत्तर आयल अछि आऽ तेँ ओकर सहायता करू”।
अस्तु मीत भाइक कथा आगू बढ़बैत छी। भाष्कर कोनो काजे कलक्टरक ऑफिस गेल रहथि। गपशप भइए रहल छलन्हि आकि मीत भाइ धरधड़ाइत चैम्बरमे अएलाह। भाष्करक पीठ सोझाँ छल ताहि लेल चीन्हि नहि सकलखिन्ह। बाहर रूमसँ निकलि स्टेनोक कक्षमे बैसि रहलाह। १०-१५ मिनटक बाद जखन भाष्कर बाहर निकललाह तँ स्टेनोक रूमसँ मीत भाइ बहराइत छलाह। एहि बेर मीत भाइक पीठ भाष्करक सोझाँ छलन्हि आऽ ताहि द्वारे एहि बेर सेहो सोझाँ-सोँझी नहि भऽ सकल।
डेरा पर जखन पहुँचलाह भाष्कर तखन मीत भाइ सेहो पाछाँ-पाछाँ पहुँचि गेलाह।
“कहू मीत भाइ। कतएसँ आबि रहल छी”।
“ओह। की कहू कलक्टर साहेब रोकि लेलन्हि। ओतहि देरी भऽ गेल”।
“हुनकर स्टेनोसँ सेहो भेँट भेल रहय”।
“नहि। ओना बहरएबाक रस्ता स्टेनोक प्रकोष्ठेसँ छैक। मुदा ओऽ सभ तँ डरे सर्द रहैत अछि”।
फेर भाष्कर एकटा खिस्सा सुनबए लगलन्हि मीत भाइकेँ।
तीन टा कारी कुकुर छल। एके रङ-रूपक। ओकरा सभकेँ मोन भेलैक जे गरमा-गरम जिलेबी मधुरक दोकान जाऽ कए खाइ। से बेरा-बेरी ओतए जएबाक प्रक्रम शुरू भऽ गेल।
पहिने एकटा कुकुर पहुँचल ओहि दोकान पर। मालिक देखलकैक जे कुकुर दोकानमे पैसि रहल अछि, से बटखरा फेंकि कए ओकरा मारलक। बेचाराकेँ बड़ चोट लगलैक। मुदा जखन गाम पर पहुँचल तँ पुछला पर कहलक जे बड़ सत्कार भेल। जोखि कए जिलेबी खएबाक लेल भेटल। दोसर कुकुर अपनाकेँ रोकि नहि सकल आऽ अपन सतकार करएबाक हेतु पहुँचि गेल मधुरक दोकान पर। रूप-रङ तँ एके रङ रहए ओकरा सभक से मधुरक दोकानक मालिककेँ भेलैक जे वैह कुकुर फेरसँ आबि गेल अछि। ओऽ पानि गरम कए रहल छल। भरि टोकना धीपल पानि ओहि कुकुरक देह पर फेकलक। बेचारा कुकुर जान बचाऽ कए भागल। आब गाम पर पहुँचला पर फेरसँ ओकरा पूछल गेलैक, जे केहन सत्कार भेल।
“की कहू। गरमा-गरम जिलेबी छानि कए खुएलक। बड़ नीक लोक अछि मधुरक दोकानक मालिक”। बेचारा अपन लाज बचबैत बाजल।
"ई तँ ओहने सन छल जे एक बेर महादेवक दूध पीबाक सोर भेल छल। जे क्यो निकलैत छल शिवलिगकेँ दूध पिअओलाक बाद, पुछला पर कहैत छलाह जे माहदेव हुनका हाथसँ दूध पिलन्हि। हमहु गेल रही। मन्दिरक बाहरक गलीमे दूधक टघार देखने रही। जौँ भगवान दूध पीबि रहल छथि तँ ई टघार कतएसँ आयल। मुदा जखन शिवलिंग पर दूध चढ़ा कए बाहर निकललहुँ तँ लोक सभ पुछय लगलाह जे भगवान दूध पीबि रहल छथि। आब कहितहुँ जे नहि पीबि रह्ल छथि तँ सभ कहितए जे ई पापी छथि, से सभक हाथसँ भगवान दूध पीबि रहल छथिन्ह आऽ एकरा हाथसँ पीबाक लेल मना कए देने छथिन्ह। सैह परि ओहि कुकुर सभक भेल छल। आब आगाँ सुनू”। भाष्कर आगाँक खिस्सा शुरू कएलन्हि।
दुनू कुकुर जिलेबी खाऽ कए आबि गेल। एक गोटेकेँ जोखि कए देलकैक आऽ दोसरकेँ तँ छानैत गेलैक आऽ दैत गेलैक जोखबो नहि कएलकैक। तेसर कुकुर ई सोचैत दोकान दिशि बिदा भेल। साँझ भऽ रहल छल। मधुरक दोकानक मालिक दोकान बन्न करबाक सूरसार कए रहल छल। आब जे ओऽ कारी कुकुरकेँ देखलन्हि तँ पित्त लहड़ि गेलन्हि। हुनका भेलन्हि जे एके कुकुर बेर-बेर एतेक नीक सत्कार भेटलो पर घुरि-फिरि कए आबि रहल अछि। से ओऽ एहि बेर ओकरा लेल विशेष सत्कार करबाक प्रण कएलन्हि। जखने ओऽ कुकुर दोकानमे पैसल आकि दोकानक मालिक दरबज्जा भीतरसँ बन्न कए डंटासँ कुकुरकेँ पुष्ट ततारलन्हि। फेर रस्सामे बान्हि दोकानक भीतरमे छोड़ि दोकान बाहरसँ बन्न कए गाम पर चलि गेलाह। बेचारा कुकुर बड्ड मेहनतिसँ बनहन तोड़ि बाहर भेल आऽ नेङराइत गाम पर पहुँचल। जखन सङी-साथी सभ सत्कारक मादी पुछलकन्हि तखन ओऽ कहलन्हि जे की कहू, खोआबैत-खोआबैत जान लए लेलक। जखन कहियैक जे गाम पर जाए दियऽ तँ कहए जे आउर खाऊ, आउर खाऊ। आबइये नहि दैत छल। ततेक खोअएलक जे चल नहि भऽ रहल अछि।
“से मीत भाइ, जखन कलक्टर अहांकेँ दबाड़ि रहल छल तखन ओकरा सोझाँ हमही बैसल छलहुँ। हमर पीठ अहाँक सोझाँ छल तेँ अहाँ हमरा नहि देखि सकलहुँ। फेर अहाँ स्टेनोक प्रकोष्ठमे किछु काल बैसलहुँ आऽ जखन ओतएसँ बाहर निकललहुँ तँ लोक सभकेँ भ्ल होएतैक जे अहाँ कलक्टरसँ ओतेक काल धरि गप कए रहल छलहुँ। मुदा कोनो बात नहि। हम ई ककरो नहि कहबैक। मुदा आजुक बाद मिथ्या कथनसँ अहाँ अपनाकेँ दूर राखू। बाजू मुरहीक भुज्जा बनाऊ, माए आइये पठओलन्हि अछि,खाएब”?
मीत भाइ मूरी गोतने हँ मे मूरी डोलओलन्हि।
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