भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, July 27, 2008

विदेह १५ मई २००८ वर्ष १ मास ५ अंक ११ ११. बालानां कृते-गजेन्द्र ठाकुर

११. बालानां कृते-गजेन्द्र ठाकुर
बालानां कृते
-गजेन्द्र ठाकुर
गोनू झा आ’ दस ठोप बाबा
चित्र ज्योति झा चौधरी

मिथिला राज्यमे भयंकर सुखाड़ पड़ल। राजा ढ़ोलहो पिटबा देलन्हि, जे जे क्यो एकर तोड़ बताओत ओकरा पुरस्कार भेटत।
एकटा विशालकाय बाबा दस टा ठोप कएने राजाक दरबारमे ई कहैत अएलाह जे ओऽ सय वर्ष हिमालयमे तपस्या कएने छथि आऽ यज्ञसँ वर्षा कराऽ सकैत छथि। साँझमे हुनका स्थान आऽ सामग्री भेटि गेलन्हि। गोनू झा कतहु पहुनाइ करबाक लेल गेल रहथि। जखन साँझमे घुरलाह तखन कनिञाक मुँहसँ सभटा गप सुनि आश्चर्यचकित हुनका दर्शनार्थ विदा भेलाह।
एम्हर भोर भेलासँ पहिनहि सौँसे सोर भए गेल जे एकटा बीस ठोप बाबा सेहो पधारि चुकल छथि।
आब दस ठोप बाबाक भेँट हुनकासँ भेलन्हि तँ ओऽ कहलन्हि “अहाँ बीस ठोप बाबा छी तँ हम श्री श्री १०८ बीस ठोप बाबा छी। कहू अहाँ कोन विधिये वर्षा कराएब”।
“हम एकटा बाँस रखने छी जकरासँ मेघकेँ खोँचारब आऽ वर्षा होएत”।
“ओतेक टाक बाँस रखैत छी कतए”।
“अहाँ एहन ढोंगी साधुक मुँहमे”।
आब ओऽ दस ठोप बाबा शौचक बहन्ना कए विदा भेला।
“औऽ। अपन खराम आऽ कमण्डल तँ लए जाऊ”। मुदा ओऽ तँ भागल आऽ लोक सभ पछोड़ कए ओकर दाढ़ी पकरि घीचए चाहलक। मुदा ओऽ दाढ़ी छल नकली आऽ ताहि लेल ओऽ नोचा गेल। आऽ ओऽ ढ़ोंगी मौका पाबि भागि गेल। तखन गोनू झा सेहो अपन मोछ दाढ़ी हटा कए अपन रूपमे आबि गेलाह। राजा हुनकर चतुरताक सम्मान कएलन्हि।

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बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥
c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

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