भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Monday, July 28, 2008

'विदेह' १ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १३ ) १४.समयकेँ अकानैत- श्री पंकज पराशर पोथी समीक्षा

१४. पोथी समीक्षा
श्री पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। पराशरजी एखन हिन्दी पत्रिका ’कादम्बिनी’मे वरिष्ठ कॉपी सम्पादक छथि।

समयकेँ अकानैत

समयकेँ अकानैत

पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण,( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंहक रचनाक पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।।  एहिमे युवा कविक ४८ गोट पद्यक संग्रह अछि। एहिमे कविक १९९६ केर ३ टा, १९९८ केर ६ टा १९९९ केर ६ टा, २००० केर ५ टा, २००१ केर ३ टा, २००२ केर ३ टा, २००३ केर ९ टा आऽ २००४ केर १३ टा पद्य संकलित अछि। कवि नहिये जोनापुरकेँ बिसरैत छथि. नहिये द्वारबंगकेँ, नहिये गणेसरकेँ नहिये देवसिंहकेँ। ५ टा पद्यमे ओऽ बुद्धकेँ सेहो सोझाँ अनैत छथि| मुदा एतए ई देखब सेहो उचित होयत जे महावीर विदेहमे छह टा बस्सावास बितेलन्हि मुदा बुद्ध एकोटा नहि। से कवि जैन महावीरक प्रसंग जौँ बिसरल छथि, तँ हमरा सभ आशा करैत छी जे ई प्रसंग सभ कविक दोसर पद्य संग्रहमे सम्मिलित कएल जएतन्हि, कवि ताहि तरहक रचना सेहो रचथु।
एहि संग्रहक ४८म पद्य थीक ’समयकेँ अकानैत’ जकर नाम पर एहि पोथीक नामकरण भेल अछि।

सोहरक धुन पर समदाओन गबैत
पिंडदानक मंत्रकेँ सुभाषितानि कहैत

फेर किसिम-किसिम के तांत्रिक सब
छंदमे दैत अछि बिक्कट-बिक्कट गारि

आऽ अकानैत कवि अन्तमे कहैत छथि

कतेक आश्चर्ययक थिक ई बात
कि एहि छन्दहीन समयमे
छन्देमे निकलैत अछि
ई सबटा आवाज।

१.कजरौटी

काजर बनेबा लेल सरिसबक तेलक दीप जराओल जाइत अछि। कवि कहैत छथि,

काजरक लेल सुन्न हमर आँखि
कतेक दिनसँ तकैए कजरौटी दिस अहर्निश
मुदा मैञाक स्मृति दोषक कारणेँ वा सरिसबक तेलक
अभावक कारणेँ
हमर आँखि जकाँ आब कजरौटीयो
सुखले रहैत अछि सभ दिन

कविक संवेदना मोनकेँ सुन्न आकि झुट्ठ कए दैत अछि, के एहन संवेदनाक अनुभव नहि करत, कविताक पाठक नहि बनत?

२.खबरि

ओहिना खबरि देखैत रहब प्रूफ
भीजल जारनि जेकाँ धुँआइत-धुँआइत
जरि जायब एहिना एक दिन

एकटा समय अबैत अछि सभक जीवननमे जखन अपन कार्यक्षेत्रक नीरसताक प्रति लोक सोचए लगैत अछि, जहिना कवि एहि पद्यमे कएने छथि।

३.महापात्र

अश्पृश्यता जकर प्राचीन ग्रंथमे कोनो चरचा नहि तकर वीभत्स रूपक वर्णन १७ शब्दमे (पंक्ति ओना १२ टा अछि) कवि कएने छथि। चमैन बच्चाक जन्मसँ छठिहारि धरि सेवा करैत अछि आऽ तकर बाद अश्पृश्य भए जाइत अछि।

४.प्रेममे पड़ल लोक

प्रेममे पड़ल लोकक वर्णन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोणसँ कवि कएने छथि।

५.हमर गाम
कवि ९ टा शब्दकेँ १० टा पाँतीमे लिखने छथि, दोसर रूपेँ कही तँ ’मोनमे” ई एकटा शब्द अछि मुदा कवि मोन आऽ मे केँ दू पाँतिमे दए गामक दृश्य उपस्थित कए देने छथि।

६. माधव हम परिणाम निरासा

विद्यापतिक जोनापुर (दिल्ली) आगमनक प्रसंग लए कवि विद्यापतिक कविताक शस्त्रक बहन्ने अपन पद्यक शस्त्र सक्षम रूपेँ चला रहल छथि।

शक्तिहीन सत्ताक दृष्टिहीन-चारण टहंकारसँ उठबैत

७.काहुक केओ नहि करए पुछारे

विद्यापतिकेँ तुरंत कयल जाय
देशसँ बाहर...

सदावत्सले मातृभूमिक बदलामे
कामिनीक नांगट देहक आ
नव अनुगामिनी राधाक कोनो बाधा नहि मानबाक
करैत अछि रसपूर्ण वर्णन

८.बोधगया ९.पुनर्निष्कासन ११. वैशाली १२.स्थविर १३.सारनाथ बुद्धक प्रसंग लए उठाओल गेल अछि।

१०.सैनिकोपाख्यानमे सैनिकक मनोव्यथा एहि रूपमे आयल अछि

बिसफीयो वला पंडितजी तँ महाराजे टा प्र लिखलनि..

आऽ

कास-पटपटीक जंगलमे
हम आइयो कटैत छी अहुरिया

१४.जुत्ता
हरिमोहन झाक जमाय पर लिखल कथा मोन पाड़ि दैत अछि।

१५.छठिहारसँ पहिने
छठिहारक राति बिधना भाग्य लिखैत छथि, मुदा कवि कहैत छथि जे जे बिधना की लिखत से हमर चानी आ तरहत्थ चीन्हैत अछि।

१६.बनारस : किछु चित्र
काशीक विश्वनाथक चित्र सोझाँ अबैत अछि वाराणसीक नाम लेने, मुदा कवि बनारसक चित्र खेंचि दैत छथि,
बनारस
बेर-बेर गनैत अछि लहास
१७.मनियाडरक दूपतिया
डाकपीन दू टाका सैकड़ाक दरसँ कमीशन पहिने कटैए
टाका दैत पढ़ि कए सुनबैए-

मनियाडर पाइक संगे संदेश सेहो अनैत अछि, ओहिमे जे छोट स्थान देल रहैत अछि अंदेशक लेल ताहिमे दुइये पाँति लिखल जा सकैत अछि तेँ कवि लिखैत छथि,दूपतिया।

१८.आँखि

नोनछाह नोरक स्वाद बुझनेँ रही अनचोक्के
जखन सिरमा लग बैसल माय कनैत छलीह
गिरैत नोरसँ अनजान..
फेर-
असहाय आ बेबस नजरिसँ दुलार करैत माय
कोना ल’ सकैत छलीह कोरामे हमरा
सबहक सोझाँ
दादी आ दीदीक नजरिसँ बाँचि कए?

आपात चिकित्सा कक्षसँ घुरैत बेटाक मायक प्रति भावनाक स्फोट अछि ई पद्य।
समयकेँ अकानैत

पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण,( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंहक रचनाक पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।। (पोथीक शेष कविता पर समीक्षा अगिला अंकमे- अनुवर्तते)
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।

विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx आ’ .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

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