पसीझक काँट भाग ३ मीत भाइक दिल्ली यात्रा आऽ आगाँ
ई विशुद्ध व्यंग्य-रचना थिक। एहिमे वर्णित कोनो घटना-दुर्घटनाक वर्णन ककरो आहत करबाक लेल नहि वरन् विशुद्ध मनोरंजनक लेल कएल गेल अछि।
आब मीत भाइ बेटाकेँ ताकए लेल आऽ बेटाक नहि भेटलाक स्थितिमे अपना लेल नोकरी तकबाक हेतु दिल्लीक रस्ता धेलन्हि।मुदा एहि बेर तँ मीत भाइ फेरमे पड़ि गेलाह। बुधि जेना हेरा हेल छलन्हि, वा अपनासँ बेशी बुधियार लोकनिसँ सोझाँ-सोझी भए जाइत छलन्हि।
अहाँ कहब जे पहिने की भेल से तँ कहबे नञि कएलहुँ तखन हमरा सभ कोना बुझब जे की भेल। तँ सुनू, एकर उत्तर सेहो हमर लग अछि।
हम एहि कथाक कथाकार छी से हमरा सभटा बुझल अछि जे की होएबला अछि। ओना यावत हम कथा सुनबैत रहब तावत बीचोमे पुरनका प्लॉटसँ हटि कए हम कथा कहए लागब। मुदा विश्वास करू जे कथा चहटगर बनाबए लेल हम ई करब। हमर अपन कोनो स्वार्थ एहिमे नहि रहत।तँ आगाँ बढ़ी।
जखने दरभंगासँ ट्रेन आगू बढ़ल तँ मीत भाइक सरस्वती मंद पड़ए लगलन्हि। कनेक ट्रेन आगू बढ़ल तँ एकटा बूढ़ी आबि गेलीह, मीत भाइकेँ बचहोन्ह देखलखिन्ह तँ कहए लगलीह -
“बौआ कनेक सीट नञि छोड़ि देब”।
तँ मीत भाइ जबाब देलखिन्ह-,“माँ। ई बौआ नहि। बौआक तीन टा बौआ”।
आऽ बूढ़ी फेर मीत भाइकेँ सीट छोड़बाक लेल नहि कहलखिन्ह।मीत भाइ मुगलसराय पहुँचैत पहुँचैत शिथिल भए गेलाह। तखने पुलिस आयल बोगीमे आऽ मीत भाइक झोड़ा-झपटा सभ देखए लगलन्हि। चेकिंग किदनि होइत छैक से। ताहिमे किछु नहि भेटलैक ओकरा सभकेँ। हँ खेसारी सागक बिड़िया बना कए मीत भाइक कनियाँ सनेसक हेतु देने रहथिन्ह, लाल काकीक हेतु। मुदा पुलिसबा सभ एहिपर लोकि लेलकन्हि।
“ई की छी”।
”ई तँ सरकार, छी खेसारीक बिड़िया”।
”अच्छा, बेकूफ बुझैत छी हमरा। मोहन सिंह बताऊ तँ ई की छी”।
” गाजा छैक सरकार। गजेरी बुझाइत अछि ई”।
”आब कहू यौ सवारी। हम तँ मोहन सिंहकेँ नहि कहलियैक, जे ई गाजा छी। मुदा जेँ तँ ई छी गाजा, तेँ मोहन सिंह से कहलक”।
”सरकार छियैक तँ ई बिड़िया, हमर कनियाँ सनेस बन्हलक अछि लाल काकीक..........”
” लऽ चलू एकरा जेलमे सभटा कहि देत”। मोहन सिंह कड़कल।
मीत भाइक आँखिसँ दहो-बहो नोर बहय लगलन्हि। मुदा सिपाही छल बुझनुक। पुछलक
“कतेक पाइ अछि सँगमे”।
दिल्लीमे स्टेशनसँ लालकाकाक घर धरि दू बस बदलि कए जाए पड़ैत छैक। से सभ हिसाब लगाऽ कए बीस टाका छोड़ि कए पुलिसबा सभटा लऽ लेलकन्हि। हँ खेसारीक बिड़िया धरि छोड़ि देलकन्हि। तखन कोहुनाकेँ लाल काकाक घर पहुँचलाह मीत भाइ।मुदा रहैत रहथि, रहैत रहथि की सभटा गप सोचाऽ जाइत छलन्हि आऽ कोढ़ फाटि जाइत छलन्हि। तावत गामसँ खबरि अएलन्हि जे बेटा गाम पर पहुँचि गेलन्हि। मीत भाइ लाल काकी लग सप्पथ खएलन्हि जे आब पसीधक काँट बला हँसी नहि करताह।
“नोकरी-तोकरी नहि होयत काकी हमरासँ” ई कहि मीत भाइ गाम घुरि कए जाय लेल तैयार भऽ गेलाह।
मुदा लालकाकी दिल्ली घुमि लिअ, लाल किला देखि लिअ, ई कहि दू-चारि दिनक लेल रोकि लेलखिन्ह। मुदा असल गप हमरा बुझल अछि। लालकाकी हुनकासँ गामघरक फूसि-फटक सुनबाक लेल रोकने छलखिन्ह।
रानूजी आऽ ममताजीसँ कहने रहियन्हि अपन-अपन रचना पोस्ट करबाक लेल मुदा किएक तँ ताहिमे विलम्ब भए रहल अछि, ताहि द्वारे हमही फेरसँ आबि गेल छी मीत भाइक श्रृंखला लए। एकर पुरातन रूप ’विदेह’ ई-पत्रिकामे छपल छल, मुदा एतए ताहिमे ढ़ेर रास परिवर्तन कएल गेल अछि। पहिल तँ ई "विदेह"मे मीत भाइक श्रृंखलाक रूपमे सन्कल्पित नञि छल से ताहि द्वारे एहिमे छह घंटा लगाकए एकरा श्रृंखलाबद्ध कएल गेल अछि। दोसर कारण अछि जे हम आब जीतूजीक मैथिल-मिथिलाक लेल मीत भाइ श्रृंखला शुरू करबाक निर्णय कएने छी। से पुरनका खिस्सा नञि बुझने श्रृंखलाक तारतम्य गड़बड़ा जाइत, ताहि लेल "विदेह"क परिवर्त्तित कथा-व्यंग्य एतय नव रूपमे देल जाऽ रहल अछि। भगवतीक इच्छा रहतन्हि तँ ई शृंखला चन्द्रमाक कला जेकाँ बढ़ैत रहत।
ReplyDeletekhesari sagak biriyaa ke gaanja bana paai aith lelakanhi, ee pulisba sabh hoite achhi badmash
ReplyDeleteहम बौआ नहि बौआक तीन टा बौआ।
ReplyDeleteमीत भाइ धन्य छी।
धन्यवाद, एहिना उत्साहवर्धन करैत रहू।
ReplyDeletegam me te bad hoshiyari karait rahathi mita bhai aab rasta me ki bhelanhi, ha...ha...ha...
ReplyDeletenik
ReplyDelete“ई की छी”।
ReplyDelete”ई तँ सरकार, छी खेसारीक बिड़िया”।
”अच्छा, बेकूफ बुझैत छी हमरा। मोहन सिंह बताऊ तँ ई की छी”।
” गाजा छैक सरकार। गजेरी बुझाइत अछि ई”।
”आब कहू यौ सवारी। हम तँ मोहन सिंहकेँ नहि कहलियैक, जे ई गाजा छी। मुदा जेँ तँ ई छी गाजा, तेँ मोहन सिंह से कहलक”।
”सरकार छियैक तँ ई बिड़िया, हमर कनियाँ सनेस बन्हलक अछि लाल काकीक..........”
” लऽ चलू एकरा जेलमे सभटा कहि देत”। मोहन सिंह कड़कल।
मीत भाइक आँखिसँ दहो-बहो नोर बहय लगलन्हि। मुदा सिपाही छल बुझनुक। पुछलक
“कतेक पाइ अछि सँगमे”।
kamal chai pulisba sabhak
उत्कृष्ट रचना। गामक आ गामक लोकक मोन पड़ि गेल। मीत भाइ श्रृंखलाकेँ आगू बढ्बैत रहू। जे क्यो आहत होयताह, तँ रच्नाक सार्थकता सिद्ध होएत।
ReplyDeletevastava me bad nik katha, ehina kutsit mansikta bala lok ke miit bhai ahat karait rahathi se aagrah.
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