भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

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Friday, August 01, 2008

'विदेह' १५ जुलाई २००८ ( वर्ष १ मास ७ अंक १४ )१४. पोथी समीक्षाश्री पंकज पराशर (१९७६- )समयकेँ अकानैत

१४. पोथी समीक्षा
श्री पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। पराशरजी एखन हिन्दी पत्रिका ’कादम्बिनी’मे वरिष्ठ कॉपी सम्पादक छथि।

समयकेँ अकानैत
समयकेँ अकानैत

पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह ’समयकेँ अकानैत’ मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण,( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंहक रचनाक पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।।

१९. रातिक तेसर पहरमे
गामसँ गेल लोक फेर नहि घुरल गाम
गाम आब दिनोमे लगैत अछि मसान

आऽ फेर असोथकित भेल ग्रामदेवता
टुकुर-टुकुर तकैत छथिन बाट

गामसँ भेल पलायनक टीस अछि ई पद्य।

२०.अन्हारक मुरुत

मुरुत ...
छोड़ि दैत अछि नियन्त्रण अपनो परसँ
---------------------------------------
--------------------------------------
मूर्तिपूजक एहि देशमे
मूर्तिक ई इतिहास बड़ पुरान अछि।
हमरा बुझने एहि पद्य संग्रहक ई सभसँ गंभीर आऽ नीक पद्य अछि। मुरुतक स्वप्नक पोटरी देखायब आऽ बिनु प्रकाशक अन्तहीन अन्धकार दिशि बढ़ैत जाएब। मुरुत करैत अछि परम्पराक परिक्रमा आऽ फेर फेंकि देल जाइत अछि घिनाएल डबड़ामे।
२१.मृत्युक बोझ
चारि वर्षक आँखिमे खचित बाबाक नोराएल आँखि
गामक अबाल-वृद्ध सबहक अँतड़ी सुखाएल लहास
श्राद्धक, भोज खयबाक उत्साहोसँ नहि मेटाएल

म्त्युक तांडव विभिन्न कारणसँ कविक हृदय रसहीन भए गेलन्हि स कविताक नीरस हैब उचिते छन्हि से कवि कहैत छथि।

२२. हमर बाट (अग्रज अफसर कचि रमेशजी लेल)

पोथीक बात उद्वेलित करैए से नीक बात
मुदा सुविधाभोगी जीवन कए की करबै

आऽ फेर-
चलबै हमरा संग
हमर बाट पर मीता?

२३.मनोहर पोथी
जकर शिक्षा नहि बना सकतै
ओकरा जीवनकेँ मनोहर

आऽ

कि हम बचा सकबै एकरा दुनूकेँ
एहि उदारवादी आ बाजारवादी बिहाड़िसँ?

२४. हे हमर पिता!

हमरा दिक् लगलासँ भुतियाइयो जाइ


हम क’ सकी पूर्ण
अहाँ अपूर्ण यात्रा

२५.माटि

माटि चूल्हिक लेल होइ कि कोठीक लेल
आऽ
मैञा माटि चीन्हैत छथिन
हम माटि नहि चीन्ह पबैत छी

२६.माटिक गाड़ी

उसरल अछि दिवारी थान
कतय भेटत आब

२७.पूर्वज

इतिहासक कोन चक्कीमे पिसा गेलाह
हमर पूर्वज

२८.रखैल

ओ ककर तकैत अछि बाट

२९.सर्वनाम

ठीक अछि सबटा वस्तु जात

आऽ

खेत जोतबाक लेल ट्रैक्टर अछि
बड़द पोसबाक जरूरति नहि रहल आब
तखन

शहरमे संज्ञाक संकट
गाममे सर्वनाम सन हालति

३०.कान्ह पर सवार बैताल

कमलाक कथामे मिलैत बलानक कथा

आऽ
कान्ह पर लदने चलि रहल छी विशाल प्रश्नवाचक जकाँ

३१.सवयंसँ संवाद

यक्ष्मासँ जर्जरित छाती

स्वयंसँ स्वादक बात आब
टारल नहि जा सकैए बेशी दिन

३२. छोट-छोट चीजक मादे एकालाप

पोथीक बीचमे राखल मोरक पंख

पद्य पढ़नहारकेँ सेहो बहुत किछु मोर पाड़ि दैत छथिन्ह कवि।

३३. बीसम शताब्दीक श्वेतपत्र

पत्नी कहैत गेलि
वस्तु अबैत गेल

आऽ
हम पड़ल छी मृत्युशय्यापर
बीसम शताब्दी जकाँ

३४. द्विज

मूल ठामसँ उखड़ल लोक
कोना जमि जाइत अछि आन ठाम
बहिन गेल छलीह सासुर आ संग हमहूँ रही
सोचैत
कि बहीन रहि सकतीह एहि ठाम

३५.हम घर कोना घुरब

कुहरैत छी मुक्तिक लेल
के करत हमरा मुक्त

३६. कुरुक्षेत्र

नागा आ कूकीक संघर्ष बढ़ले जा रहल अछि

आऽ

टाकाक रिमोटसँ संचालित
अभिनेत्रीक देह

३७.प्रश्नकालमे

कालाहांडीक निवासीक भोजन आ मुसहरीक निवासीक
जलखै बेर-बेर नचैए आँखिक आगूमे

३८. तुलसी चौरा पर जरैत दीप

रोज साँझकेँ दीप जरबैत माय
दीप जरबैत छलीह आ कि स्वयंकेँ?

३९. मोसकिल भ’ गेल अछि

इजोरिया रातिक निःशब्दामे विरहा सुनब

४०.अभिशप्त
निज गामकेँ पिकनिक स्पॉट बुझि
ओ अबैत छथिन गाम कोनो काज निकाल’ वा
मोन बहटार’

मुदा आबतँ ताहू लेल लोक गाम नहि अबैत छथि। दुर्गा पूजामे छागरक बलि चढ़ेबाक कबुलाक पूर्तियो लेल कहाँ क्यो अबैत अछि आब।

४१. खुट्टी पर टाँगल झोरा

हरदम बोध करबैत छल पिताक उपस्थितिक।

४२.साँझ होइत गाममे
निरन्तर अस्पष्ट होइत जा रहल साँझक गाछ तर
साँझमे घुरल सुग्गा जकाँ

४३. मायक लेल किछु कविता

काँकोड़ सन होइत अछि माय
जकरा प्रसवक बाद ओकर बच्चे खा जैत छैक

४४. सप्पत

आबतँ साँचे लगैए झूठ सन
आ झूठे साँच सन
४५. प्राक् इतिहास

अदौ कालसँ दिमागक खोहमे नुड़िआइत
हमर असंख्य प्राक इतिहास

४६. रामभोग

आब चुनाव-नाथसँ शुरू करैए
अयोध्या नाच

४७.संबंध

हम कोना कहि सकब
अहाँ हमर किछु नहि लगैत छी मीता

४८.समयकेँ अकानैत

एहि संग्रहक टाइटिल पद्य अछि ई कविता।
जतए छल कलमदान
ओतए एतेक रास शालिग्राम
किछुए दिनक बाद
गायब भ’ जाइत अछि
हमर अपूर्णकविता अपूर्ण लेख
मेहनतिसँ ताकल किछु महत्वपूर्ण साक्ष्य
हिन्दी कवि मुक्तबोध मोन पड़ि जाइत छथि एहि पद्यसँ। एहि संग्रहक सभटा पद्य भावना आऽ स्मृतिसँ जुड़ल अछि। आब किछु तकनीकी विषय। एहि संग्रहमे मैथिलीक मानकताक विषय किछु पाछाँ रहि गेल अछि, जेना मैथिलीमे विभक्ति संगहि बाजल आऽ लिखल जाइत अछि, मुदा संग्रहक नामसँ लए सभटा पद्यमे कवि अपन हिन्दी शिक्षाक अनुरूपेँ विभक्ति हटा कए लिखने छथि। अगिला संस्करणमे ई भाषायी असुद्धि दूर होएबाक चाही। जेना सुभाषचन्द्रजीक लेखनीमे सेहो मानकता किछु दोसर रूपेँ आयल अछि। मुदा ध्वनि विज्ञानसँ ओऽ संबंधित अछि। श्री सुभाष जी ऐछ लिखैत छथि, मुदा मैथिलीमे “अछि” एकर उच्चारण होइत अछि “अ इ छ”, हिन्दीमे ह्रस्व इ लिखल पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि, देवनागरी वर्णक जेना लिखल जाइत अछि, तहिना बाजल जाइत अछि, ह्रस्व इ एकर अपवाद अछि। मुदा मैथिलीमे से नहि अछि। तहिना छै केँ छैक वा छञि, नै केँ नञि लिकल जएबाक चाही। पराशर जी मैथिलीक मैञा केर प्रयोग कएने छथि, मायक जे उच्चारण माञ कहने लिखने अबैत अछि, तकर दृष्टिसँ ई प्रयास स्तुत्य अछि। मुदा श्री सुभाषजी ( हुनकर कथा “विदेह” क एहि अंकमे ई-प्रकाशित अछि) अपन लेखनीमे मैथिलीक असल स्वरूप अनबाक लेल किंचित् प्रयोग कएने छथि, तकर किछु उद्देश्य अछि, मुदा पराशरजीक विभक्ति हटा कए लिखब मात्र टाइप दोष बनि रहि गेल अछि।
फेर दोसर गप जे ई पद्य संग्रह भावना आऽ स्मृतिक विस्फोट अछि, मुदा कखनो काल कए लगैत अछि जे हमरा सभ पद्य नहि गद्य पढि रहल छी, जापानी “हैबून” जेकाँ।

तेसर गप जे एहि पोथीमे आइ एस बी एन नम्बर नहि अछि। मैथिली प्रकाशनक सूचीबद्धता नहि भए पाबि रहल अछि, मुदा ई प्रायशः एहि दू-चारि सालमे प्रकाशित सभ मैथिली ग्रंथ सभक संग अछि।
समयकेँ अकानैत

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