शक्तिक आराधना क पर्व थिक नवरात्रि ! शक्ति क बिना यदि देखल जाय तँ शिवो अपूर्ण छथि ! शक्तिये सँ सम्पूर्ण ब्रह्मांड संचालित अछि ! शक्तिक आराधना क ई नौ दिन (नवरात्रि) बहुत महत्वपूर्ण मानल गेल छल ! कहल गेल अछि जे अइ नौ दिन मे ब्रह्मांड क सम्पूर्ण शक्ति जागृत होइत छल ! इ ओ शक्ति अछि जै सँ विश्व (संसार) क सृजन भेल छल !
नवरात्रिक परंपरा :- नवरात्रि मे माँ दुर्गा क नौ रूपक तिथिवत पूजा - अर्चना कएल जाइत छनि ! देवी दुर्गा क ई नौ रूप एहि प्रकारेँ छनि,(१) शैलपुत्री, (२) ब्रह्मचारिणी, (३)चंद्रघंटा, (४) कुष्मांडा, (५)स्कंदमाता, (६)कात्यायनी,(७) कालरात्रि, (८)महागौरी आर (९) सिद्धिदात्री। जिनका बारे मे विस्तार सँ नीचाँ पढ़ब !अपन देश भारत क सभ प्रान्त में नवरात्रि मनाबए क अपन अलग - अलग परंपरा अछि ! एहि नौ दिन तक छोट कन्या (लड़की) क़ए देवी स्वरुप मानल जाइत छनि, नवरात्रि क अवसर पर हुनका भोजन कराऽ कऽs दक्षिणा देला कऽ उपरांत हुनकर पैरक पूजा कएल जाइत छनि ! कन्याभोज आर कन्यापूजन क ई परंपरा लगभग सभ प्रान्त मे देखि सकैत छलहुँ !
माँ देवीदुर्गा क अलग - अलग नौ रूप
माँ क प्रथम रूप (शैलपुत्री) :- माँ देवीदुर्गा क प्रथम रूप छनि शैलपुत्री ! पर्वतराज हिमालय क घर जन्म लेला सँ हिनकर नाम शैलपुत्री पड़लनि ! नवरात्री क प्रथम दिन हिनकर पूजा - अर्चना होइत छनि ! माँ क महिमा अपरमपार छनि ! हिनकर पूजन सँ भक्तगण सर्वदा धन - धान्य सँ परिपूर्ण रहैत छथि ! हमरा सभ केँs एकाग्रभाव सँ मन केँ पवित्र राखि कऽ माँ शैलपुत्री क शरण मे आबए के प्रयास करवाक चाही !
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर शैलपुत्री क रूप में प्रसिद्ध अम्बे, अहाँकेँ हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम अहाँ केँ बारंबार प्रणाम करैत छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
माँ क तेसर रूप (चंद्रघंटा) :- माँ देवीदुर्गा क तेसर रूप छनि चंद्रघंटा ! नवरात्री त्योहार क तेसर दिन हिनकर पूजाक बहुत महत्व अछि ! माँ क ई रूप बहुत शांतिदायक आर कल्याणकारी छनि ! हिनकर मस्तक पर घंटाक आकार क अर्धचन्द्र छनि ताहि हेतु हिनकर नाम चंद्रघंटा देवी पड़ल छनि ! हिनकर देहक रंग स्वर्ण (सोना) क समान चमकीला छनि ! हिनका दस हाथ छनि ओ दसो हाथ मे खडग अस्त्र - शस्त्र आर बाण सु-शोभित छनि ! माँ चंद्रघंटा क कृपा सँ भक्तगण क समस्तपाप आर बाधा विनष्ट होइत छनि ! हमरा सभ केँ चाही कि अपन मन, वचन, कर्म आर काया केँ विधि - विधान क अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध आर पवित्र कऽ कए माँ चंद्रघंटा क शरणागत भऽs कऽ हुनकर उपास - आराधना मे तत्पर रही !
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर कुष्मांडा क रूप मे प्रसिद्ध अम्बे, अहाँकेँ हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम अहाँ केँ बारंबार प्रणाम करैत छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
माँ क पाँचम रूप (स्कंदमाता) :- माँ देवीदुर्गा क पाँचम रूप छनि स्कंदमाता ! नवरात्रि क पाँचम दिन हिनकर पूजा - अर्चना होइत छनि ! मोक्ष क द्वार खोलए वाली माँ स्कंदमाता परम सुखदायी छथिन ! माँ अपन भक्त क समस्त इच्छाकेँ पूर्ति करैत छथिन ! माँ स्कंदमाता क कोरा मे भगवान स्कंदजी बालरूप मे विराजमान छथिन, भगवान स्कन्द (कुमार कार्तिकेय) क नाम सँ सेहो जानल जाइत छथि ! भगवान स्कंद प्रसिद्द देवासुर संग्राम मे देवतागण क सेनापति रहथि ! पुराण मे हिनका कुमार आर शक्ति कहि कऽ हिनकर महिमा क वर्णन कएल गेल अछि ! भगवान स्कंदक माता हेबा क कारण हिनकर (माँ दुर्गा क पाँचम रूपक) नाम स्कंदमाता पड़लनि !
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर स्कंदमाता क रूप मे प्रसिद्ध अम्बे, अहाँकेँspan> हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम अहाँ केँ बारंबार प्रणाम करैत छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
माँ क छठम रूप (कात्यायनी) :- माँ देवीदुर्गा क छठम रूप छनि कात्यायनी ! नवरात्रि क छठम दिन हिनकर पूजा - अर्चना होइत छनि ! हिनकर पूजासँ अद्भुद शक्ति क संचार होइत अछि वा दुश्मन क संहार करए मे माँ सक्षम बनबैत छलीह ! माँ क नाम कात्यायनी कियेक पड़लनि ओकर बहुत पैघ कथा अछि ! जकरा हम संक्षिप्त मे कहए चाहब :- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि रहथिन, हुनकर पुत्र
ऋषि कात्य भेलखिन ! हुनके गोत्र मे विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन जन्म लेने छलाह ! ओ भगवती पराम्बा क उपवास करैत बहुत वर्ष तक बहुत पैघ तपस्या केलखिन ! हुनकर आकांक्षा रहनि जे माँ भगवती हुनका घर पुत्री क रूप मे जन्म लेथि! माँ भगवती हुनकर प्रार्थना स्वीकार केलखिन ! किछु समय क बाद जखन दानव महिषासुरक अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ि गेलनि तँ भगवान ब्रह्मा, विष्णु आर महादेव तीनू अपन - अपन तेजकेँ अंश दऽ कए महिषासुर क विनाशक लेल एक देवीकेँ उत्पन्न केलखिन ! महर्षि कात्यायन सभसँ पहिने हुनकर पूजा केलखिन ताहि कारण हिनकर नाम कात्यायनी पड़लनि !
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर कात्यायनी क रूप मे प्रसिद्ध अम्बे, अहाँकेँ हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम अहाँ केँ बारंबार प्रणाम करैत छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
माँ के सातम रूप (कालरात्रि) :- माँ देवीदुर्गा के सातम रूप छैन कालरात्रि ! दुर्गापूजा के सातम दिन माँ कालरात्रि के उपासना के विधान अछि ! माँ के उपासनासँ समस्त पाप - विघ्न के नाश होइत अछि आर भक्तगण काँ अक्षय पुण्य - लोकक प्राप्ति होई छैन ! माँ कालरात्रि के देहक रंग घोर अंधकार के समान एकदम कारी छैन ! हुनकर माथा के केश बिखरल रहे छैन ! हुनका तीनगोट नेत्र (आँख) छैन ओ तीनो ब्रह्मांड के समान गोल छैन ! हिनकर स्वरूप ओना त देखै में बहुत भयानक (डरावना) छैन मुदा सदा ओ शुभ फल दै वाली छथिन !
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आहाके हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम आहाँ के बारंबार प्रणाम करे छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
माँ के आठम रूप (महागौरी) :- माँ देवीदुर्गा के आठम शक्तिरूप छैन महागौरी ! दुर्गापूजा के आठम दिन हिन्करे पूजा - अर्चना के विधान छैन ! माँ अपन पार्वती रूप में भगवान शिव काँ पाटी के रूप में प्राप्त करै हेतु बहुत कठोर तपस्या केना रहथिन ! कठोर तपस्या के कारण हुनकर देह एकदम करी भोs गेल रहेँन ! हुनकर तपस्या सँ प्रसन्न आर संतुस्ठ भोs के जखन भगवान शिव हुनकर देह के गंगाजी के पवित्र जल सँ रगैर के धोल्खिंन तखन माँ विधुत प्रभा के समान बहुत कान्तिमान - गौर भोs गेलैथ तहिसँ हुनकर नाम महागौरी पर्लेंन !
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर महागौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आहाके हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम आहाँ के बारंबार प्रणाम करे छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
माँ के नवम् रूप (सिद्धिदात्री) :- माँ देवीदुर्गा के नवम् रूप सिद्धिदात्री छैन ! माँ सभ तरहक सिद्धि प्रदान करै वाली छथिन ! नवरात्री के नौवा दिन हिनकर पूजा - अर्चना होई छैन ! नवदुर्गा में माँ सिद्धिदात्री अंतिम छथिन बांकी आठ दुर्गा माँ के पूजा - पाठ विधि - विधान के संग करैत भक्तगण दुर्गा पूजा के नौवा दिन हिनकर उपासना करैत छैथ ! हिनकर उपासना पूर्ण केला के बाद भक्तगण के लौकिक - परलौकिक सभ प्रकार के कामना के पूर्ति होई छैन !
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता !
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: !!
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान आर सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आहाके हमर बारंबार प्रणाम ! वा हम आहाँ के बारंबार प्रणाम करे छी ! हे माँ हमरा पाप सँ मुक्ति प्रदान करू !
॥ सिद्धकुंजिकास्तोत्रम् ॥
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
अथ मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सःज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वलऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
॥ इति मंत्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि !
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि !!१!!
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि !
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे !!२!!
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका !
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते !!३!!
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी !!४!!
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि !
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी !!५!!
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु !
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी !!६!!
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः !
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं !!७!!
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा !
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा !!८!!
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे !
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे !!९!!
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति !
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् !!
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा !!
। इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।
बड्ड नीक सामयिक प्रस्तुति। जय माँ।
ReplyDeletebad nik prastuti
ReplyDeletejitu ji ahank blog takait-takait pahuch gelahu, atyant uchcha kotik achhi, mon se likhay jait chhi, kundthagrast bhay nahi.
ReplyDeleteअपने लोकेनकेँ बहुत - बहुत धन्यवाद ..
ReplyDeleteअहिना लेखकदलकेँ प्रोत्साहित करेत रहू .....
sadhuvad jitu ji.
ReplyDeleteee blog samanya aa gambhir dunu tarahak pathakak lel achhi, maithilik bahut paigh seva ahan lokani kay rahal chhi, takar jatek charchaa hoy se kam achhi.
ReplyDeletedr palan jha