भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, September 21, 2008

गोपेशजी नञि रहलाह- प्रस्तुति गजेन्द्र ठाकुर


समय रूपी दर्पणमे
(प्रस्तुत अछि गोपेशजीक कविता जे २००६ केर नचिकेताजीक “मध्यम पुरुष एकवचन” जेकाँ उत्तर-आधुनिक अछि, मुदा लिखल गेल २५-३० वर्ष पूर्व। हिनकर प्रस्तुत कविता नवीन कविताक शैलीमे लिखल गेल अछि।)


समय रूपी दर्पणमे

देखइत छी हम अपन मूह

आऽ करइत छी अनुभव

जे किछु नव नहि होइछ

जनमइ अछि

नित्य अहलभोर

किछु एहन-एहन इच्छा

उठइ अछि मोनमे भावनाक तरङ्ग

जे आइ किछु नव होएत



मुदा सुरुज भगवान छापि दैत छथि

दिनुक माथपर किछु एहन-एहन समाचार

जाहिमे हम अपनाकेँ

अभियोजित नहि कए पबैत छी

दूर-दूर उड़इत गर्दाक पाँखिएँ

पोसा पड़बा जहिना मोट भए जाइत अछि

तहिना हमर भावना-तरंग

अनुभवक सम्बल पाबि मोट भए कए

सिद्ध करैछ जे

नव किछु नहि होइछ



जे किछु हमरा सोझाँ अबैछ

से थिक समयक शिलाखंडपर

खिआएल पुरनके वस्तु, पुरनके विचार,

जे नव होएबाक दम्भ भरैत अछि

आऽ थाकल ठेहिआएल मोनक पीड़ा हरैत अछि



स्व. श्री गोपालजी झा “गोपेश” क जन्म मधुबनी जिलाक मेहथ गाममे १९३१ ई.मे भेलन्हि। गोपेशजी बिहार सरकारक राजभाषा विभागसँ सेवानिवृत्त भेल छलाह। गोपेशजी कविता, एकांकी आऽ लघुकथा लिखबामे अभिरुचि छलन्हि। ई विभिन्न विधामे रचन कए मैथिलीक सेवा कएलन्हि। हिनकर रचित चारि गोट कविता संग्रह “सोन दाइक चिट्ठी”, “गुम भेल ठाढ़ छी”, “एलबम” आऽ “आब कहू मन केहन लगैए” प्रकाशित भेल जाहिमे सोनदाइक चिट्ठी बेश लोकप्रिय भेल। वस्तुस्थितिक यथावत् वर्णन करब हिनक काव्य-रचनाक विशेषता छन्हि। श्री मायानन्द मिश्रजीसँ दूरभाषपर गपक क्रममे ई गप पता चलल जे गोपेशजी नहि रहलाह, फेर देवशंकर नवीन जी सेहो कहलन्हि। हमर पिताक १९९५ ई.मे मृत्युक उपरान्त हमहूँ ढ़ेर रास आन्ही-बिहाड़ि देखैत एक-शहरसँ दोसर शहर बौएलहुँ, बीचमे एकाध बेर गोपेशजी सँ गप्पो भेल, ओऽ ईएह कहथि जे पिताक सिद्धांतकेँ पकड़ने रहब। फेर पटना नगर छोड़लहुँ आऽ आइ गोपेशजीकेँ श्रद्धांजलिक रूपमे स्मरण कए रहल छियन्हि। स्मरण: हमरा सभक डेरापर भागलपुरमे गोपेशजी आऽ हरिमोहन झा एक बेर आयल छलाह। गोपेशजी सनेस घुरैत काल मधुर लेलन्हि आऽ हरिमोहनझा जी कुरथी!
गोपेशजीक कवितामे सेहो वस्तुस्थितिक यथावत सपाट वर्णनक आग्रह रहैत अछि जे हुनकर चरित्रगत विशेषता सेहो छलन्हि। हरिमोहन झाजीक अन्तिम समयमे प्रायः गोपेशजीकेँ अखबार पढ़िकेँ सुनबैत देखैत छलियन्हि। हरिमोहनझाक १९८४ ई.मेमृत्युक किछु दिनुका बादहिसँ ओऽ शनैः शनैः मैथिली साहित्यक हलचलसँ दूर होमए लगलाह। एहि बीच एकटा साक्षात्कारमे शरदिन्दु चौधरी सेहो हुनकासँ एहि विषयपर पुछबाक कोशिश कएने छलाह मुदा गोपेशजी कहियो ने कन्ट्रोवर्सीमे रहलाह, से ओऽ ई प्रश्न टालि गेल छलाह।

7 comments:

  1. bar nik samsmaranatmak lekh.

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  2. गोपेशजीकेँ हमर श्रद्धांजली।

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  3. gpesh ji ke hamro shradhanjali.

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  4. gopesh ji ke sradhanjali hamro

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  5. bad sajjan lok chhalah gopesh ji, hamra te kaik ber bhet chhal

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  6. gopesh ji ke hamro dis se shraddha suman arpit chhanhi

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