भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c)२०००-२०२३. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। Editor: Gajendra Thakur

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि। सम्पादक 'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका ऐ ई-पत्रिकामे ई-प्रकाशित/ प्रथम प्रकाशित रचनाक प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ मूल आ अनूदित आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार रखैत छथि। (The Editor, Videha holds the right for print-web archive/ right to translate those archives and/ or e-publish/ print-publish the original/ translated archive).

ऐ ई-पत्रिकामे कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

 

(c) २००-२०२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.htmlhttp://www.geocities.com/ggajendra  आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html  लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha  258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै।इंटरनेटपर मैथिलीक प्रथम उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि,जे http://www.videha.co.in/  पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

Sunday, October 26, 2008

'विदेह' १५ अगस्त २००८ ( वर्ष १ मास ८ अंक १६ )-part-I

'विदेह' १५ अगस्त २००८ ( वर्ष १ मास ८ अंक १६ ) एहि अंकमे अछि:-

श्री रामाश्रय झा 'रामरंग' (१९२८- ) प्रसिद्ध ' अभिनव भातखण्डे' जीक मैथिली रचना "विदेह"क लेल।
१.संपादकीय २.संदेश
३.जितेन्द्र झा रिपोर्टिंग--मैथिली रिपोर्ताज
नेपालक (किछु भारतक) मिथिला मैथिल मैथिलीक सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक समाचार
४. गद्य -
विज्ञानपर-ज्योतिप्रकाश लाल पुरातत्त्वपर-सुशांत झा
श्री प्रेमशंकर सिंह बीसम शताब्दीमे मैथिली साहित्य
उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आगाँ) ज्योतिक दैनिकी
शोध लेख:हरिमोहन झा समग्र/ सामाजिक लेख-वृद्ध समस्या जितमोहन झा
५. पद्य
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी,नचिकेता विनीत उत्पल
श्री गंगेश गुंजनजीक-राधा ज्योति झा चौधरी
पंकज पराशर शैलेन्द्र मोहन झा
प्रकाश झा आऽ महाकाव्य महाभारत (आगाँ)
६. संस्कृत मैथिली शिक्षा(आगाँ)
७. मिथिला कला(आगाँ)
८.पाबनि-संस्कार-तीर्थ -कृष्णाष्टमी/ कुशी अमावस्या पर विशेष नूतन झा
९. संगीत शिक्षा -श्री रामाश्रय झा 'रामरंग'
१०. बालानां कृते-
११. पञ्जी प्रबंध (आगाँ) पञ्जी-संग्राहक श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी )
१२. संस्कृत मिथिला
१३. भाषापाक रचना लेखन (आगाँ)
14. VIDEHA FOR NON RESIDENT MAITHILS (Festivals of Mithila date-list)-
Videha Mithila Tirbhukti Tirhut...
The Comet-English translation of Gajendra Thakur's Maithili Novel Sahasrabadhani by Jyoti
महत्त्वपूर्ण सूचना:(१) विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे नवम अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ' रहल अछि।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(२) 'विदेह' द्वारा कएल गेल शोधक आधार पर १.मैथिली-अंग्रेजी शब्द कोश २.अंग्रेजी-मैथिली शब्द कोश आऽ ३.मिथिलाक्षरसँ देवनागरी पाण्डुलिपि लिप्यान्तरण-पञ्जी-प्रबन्ध डाटाबेश श्रुति पब्लिकेशन द्वारा प्रिन्ट फॉर्ममे प्रकाशित करबाक आग्रह स्वीकार कए लेल गेल अछि। पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना:(३) 'विदेह' द्वारा धारावाहिक रूपे ई-प्रकाशित कएल जा' रहल गजेन्द्र ठाकुरक 'सहस्रबाढ़नि'(उपन्यास), 'गल्प-गुच्छ'(कथा संग्रह) , 'भालसरि' (पद्य संग्रह), 'बालानां कृते', 'एकाङ्की संग्रह', 'महाभारत' 'बुद्ध चरित' (महाकाव्य)आऽ 'यात्रा वृत्तांत' विदेहमे संपूर्ण ई-प्रकाशनक बाद प्रिंट फॉर्ममे प्रकाशित होएत। प्रकाशकक, प्रकाशन तिथिक, पुस्तक-प्राप्तिक विधिक आऽ पोथीक मूल्यक सूचना एहि पृष्ठ पर शीघ्र देल जायत।
महत्त्वपूर्ण सूचना (४):महत्त्वपूर्ण सूचना: श्रीमान् नचिकेताजीक नाटक "नो एंट्री: मा प्रविश" केर 'विदेह' मे ई-प्रकाशित रूप देखि कए एकर प्रिंट रूपमे प्रकाशनक लेल 'विदेह' केर समक्ष "श्रुति प्रकाशन" केर प्रस्ताव आयल छल, एकर सूचना 'विदेह' द्वारा श्री नचिकेताजीकेँ देल गेलन्हि। अहाँकेँ ई सूचित करैत हर्ष भए रहल अछि, जे श्री नचिकेता जी एकर प्रिंट रूप करबाक स्वीकृति दए देलन्हि।
महत्त्वपूर्ण सूचना (५): ७ सितम्बर २००८ केँ मिथिलांगन संस्था द्वारा श्रीराम सेन्टर, मण्डी हाउस, नई दिल्लीमे साँझ पाँच बजेसँ मैथिली नाटक-गीत-संगीत संध्याक आयोजन होएत।
१२-१४ सितम्बर २००८ केँ राजेन्द्र भवन आऽ श्रीराम सेन्टर, मण्डी हाउस, नई दिल्लीमे, मैलोरग संस्था द्वारा त्रिदिवसीय कार्यक्रम नीचाँक सूचना अनुसार होएत।
१२ सितम्बर- उद्घाटन समारोह, (राजेन्द्र भवन, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग,नई दिल्ली-२)-लोकगीत/ मैलोरंगक नव अंक आऽ कतेको पुस्तकक लोकार्पण/ रंगकर्मी प्रमीला झा नाट्य वृत्तिक वितरण/ एकल एवं एकांकी प्रस्तुति/ मधुबनी पेंटिंग प्रदर्शन। साँझ ६.३० बजेसँ।
१३ सितम्बर २००८- नाटक गोरखधंधा (श्रीराम सेंटर, सफदर हासमी मार्ग, नई दिल्ली-०१)साँझ ६.३० बजेसँ।
१४ सितम्बर २००८: सेमीनार: मिथिलाक सांस्कृतिक विरासत: संरक्षण आऽ विकासक सम्भावना १० बजेसँ चारि बजे धरि (साहित्य अकादमी सभागार, फिरोजशाह मार्ग, नई दिल्ली-१)
नाटक बलचन्दा (अवितोको, मुम्बई द्वारा) नाटक पाँच पत्र (मैलोरंग, दिल्ली)।साँझ ६.३० बजेसँ।
एकर अतिरिक्त पुस्तक-प्रदर्शनी, वाद-विवाद, चर्चा आदि आयोजन संग-संग चलत।
१५-१६ सितम्बर २००८ केँ इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, मान सिंह रोड नई दिल्लीमे अहर्निश बिहार महोत्सवक आयोजन भऽ रहल अछि।
महत्वपूर्ण सूचना (६): "विदेह" केर २५म अंक १ जनवरी २००९, ई-प्रकाशित तँ होएबे करत, संगमे एकर प्रिंट संस्करण सेहो निकलत जाहिमे पुरान २४ अंकक चुनल रचना सम्मिलित कएल जाएत।

विदेह (दिनांक १५ अगस्त सन् २००८)
१.संपादकीय (वर्ष: १ मास: ८ अंक:१६)
मान्यवर,
विदेहक नव अंक (अंक १६, दिनांक १५ अगस्त सन् २००८) ई पब्लिश भऽ गेल अछि। एहि हेतु लॉग ऑन करू http://www.videha.co.in |
एहि अंकसँ श्री गगे श गुंजन जीक गद्य-पद्य मिश्रित "राधा" जे कि मैथिली साहित्यक एकटा नव कीर्तिमान सिद्ध होएत शुरू भए रहल अछि, "विदेह" मे पहिल खेप पढ़ू।विस्मृत कवि रामजी चौधरीक अप्रकाशित पद्य सेहो ई-प्रकाशित भए रहल अछि। श्री मौन जी, श्री पंकज पराशर, श्री सुशान्त, प्रकाश, ज्योतिप्रकाश लाल, जितमोहन, विनीत उत्पल शैलेन्द्र मोहन झा आऽ परम श्रद्धेय श्री प्रेमशंकर सिंहजीक रचना सेहो ई-प्रकाशित कएल गेल अछि।एहि अंकमे नचिकेताजीक टटका लिखल कविता सेहो ई-प्रकाशित भए रहल अछि।
मैथिली रिपोर्ताजक नव विधाक प्रारम्भ कए रहल छथि पुण्यधाम जनकपुरधामक युवा पत्रकार श्री जितेन्द्र झा।
श्री हरिमोहन झाजीक सम्पूर्ण रचना संसारक अवलोकन सेहो शुरू भए रहल अछि।
ज्योतिजी पद्य, बालानांकृते केर देवीजी शृंखला, बालानांकृते लेल चित्रकला आऽ सहस्रबाढ़निक अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत कएने छथि।
शेष स्थायी स्तंभ यथावत अछि।
अपनेक रचना आऽ प्रतिक्रियाक प्रतीक्षामे।
गजेन्द्र ठाकुर

ggajendra@videha.co.in ggajendra@yahoo.co.in
२.संदेश
१.श्री प्रो. उदय नारायण सिंह "नचिकेता"- जे काज अहाँ कए रहल छी तकर चरचा एक दिन मैथिली भाषाक इतिहासमे होएत। आनन्द भए रहल अछि, ई जानि कए जे एतेक गोट मैथिल "विदेह" ई जर्नलकेँ पढ़ि रहल छथि।
२.श्री डॉ. गंगेश गुंजन- "विदेह" ई जर्नल देखल। सूचना प्रौद्योगिकी केर उपयोग मैथिलीक हेतु कएल ई स्तुत्य प्रयास अछि। देवनागरीमे टाइप करबामे एहि ६५ वर्षक उमरिमे कष्ट होइत अछि, देवनागरी टाइप करबामे मदति देनाइ सम्पादक, "विदेह" केर सेहो दायित्व।
३.श्री रामाश्रय झा "रामरंग"- "अपना" मिथिलासँ संबंधित...विषय वस्तुसँ अवगत भेलहुँ।...शेष सभ कुशल अछि।
४.श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, साहित्य अकादमी- इंटरनेट पर प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना स्वीकार करू।
५.श्री प्रफुल्लकुमार सिंह "मौन"- प्रथम मैथिली पाक्षिक पत्रिका "विदेह" क प्रकाशनक समाचार जानि कनेक चकित मुदा बेसी आह्लादित भेलहुँ। कालचक्रकेँ पकड़ि जाहि दूरदृष्टिक परिचय देलहुँ, ओहि लेल हमर मंगलकामना।
६.श्री डॉ. शिवप्रसाद यादव- ई जानि अपार हर्ष भए रहल अछि, जे नव सूचना-क्रान्तिक क्षेत्रमे मैथिली पत्रकारिताकेँ प्रवेश दिअएबाक साहसिक कदम उठाओल अछि। पत्रकारितामे एहि प्रकारक नव प्रयोगक हम स्वागत करैत छी, संगहि "विदेह"क सफलताक शुभकामना।
७.श्री आद्याचरण झा- कोनो पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन- ताहूमे मैथिली पत्रिकाक प्रकाशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भविष्य कहत। ई हमर ८८ वर्षमे ७५ वर्षक अनुभव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर श्रद्धापूर्ण आहुति प्राप्त होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।
८.श्री विजय ठाकुर, मिशिगन विश्वविद्यालय- "विदेह" पत्रिकाक अंक देखलहुँ, सम्पूर्ण टीम बधाईक पात्र अछि। पत्रिकाक मंगल भविष्य हेतु हमर शुभकामना स्वीकार कएल जाओ।
९. श्री सुभाषचन्द्र यादव- ई-पत्रिका ’विदेह’ क बारेमे जानि प्रसन्नता भेल। ’विदेह’ निरन्तर पल्लवित-पुष्पित हो आऽ चतुर्दिक अपन सुगंध पसारय से कामना अछि।
१०.श्री मैथिलीपुत्र प्रदीप- ई-पत्रिका ’विदेह’ केर सफलताक भगवतीसँ कामना। हमर पूर्ण सहयोग रहत।
११.डॉ. श्री भीमनाथ झा- ’विदेह’ इन्टरनेट पर अछि तेँ ’विदेह’ नाम उचित आर कतेक रूपेँ एकर विवरण भए सकैत अछि। आइ-काल्हि मोनमे उद्वेग रहैत अछि, मुदा शीघ्र पूर्ण सहयोग देब।
१२.श्री रामभरोस कापड़ि भ्रमर, जनकपुरधाम- "विदेह" ऑनलाइन देखि रहल छी। मैथिलीकेँ अन्तर्राष्ट्रीय जगतमे पहुँचेलहुँ तकरा लेल हार्दिक बधाई। मिथिला रत्न सभक संकलन अपूर्व। नेपालोक सहयोग भेटत से विश्वास करी।
१३. श्री राजनन्दन लालदास- ’विदेह’ ई-पत्रिकाक माध्यमसँ बड़ नीक काज कए रहल छी, नातिक एहिठाम देखलहुँ। एकर वार्षिक अ‍ंक जखन प्रि‍ट निकालब तँ हमरा पठायब। कलकत्तामे बहुत गोटेकेँ हम साइटक पता लिखाए देने छियन्हि। मोन तँ होइत अछि जे दिल्ली आबि कए आशीर्वाद दैतहुँ, मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-विदेशक मैथिलकेँ जोड़बाक लेल।
१४. डॉ. श्री प्रेमशंकर सिंह- "विदेह"क निःस्वार्थ मातृभाषानुरागसँ प्रेरित छी, एकर निमित्त जे हमर सेवाक प्रयोजन हो, तँ सूचित करी।
(c)२००८. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ’ जतय लेखकक नाम नहि अछि ततय संपादकाधीन।
विदेह (पाक्षिक) संपादक- गजेन्द्र ठाकुर। एतय प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक लोकनिक लगमे रहतन्हि, मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ आर्काइवक/ अंग्रेजी-संस्कृत अनुवादक ई-प्रकाशन/ आर्काइवक अधिकार एहि ई पत्रिकाकेँ छैक। रचनाकार अपन मौलिक आऽ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) ggajendra@yahoo.co.in आकि ggajendra@videha.co.in केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकैत छथि। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ’ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आऽ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत। एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक 1 आ’ 15 तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

-जितेन्द्र झा पताः जनकपुरधाम, नेपाल एखन ; नई दिल्ली
स्तंभ - जितेन्द्र झा रिपोर्टिंग -मैथिली रिपोर्ताज
नेपालक (किछु भारतक) मिथिला मैथिल मैथिलीक सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक समाचार
भाषा हित कि भोट्क लोभ
नयी दिल्लीक मैथिली भोजपुरी एकेडमीक अध्यक्ष एवं दिल्लीक मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित मैथिली भोजपुरी एकेडमीकेँ आन एकेडमीसँ आगू बढल देखऽ चाहैत छी, से कहलनि अछि । मैथिली भोजपुरी एकेडमी द्वारा आयोजित भिखारी ठाकुरक विदेशिया नाटक मन्चन कार्यक्रममे दीक्षित ई बात कहलनि । मैथिलीक लेल अलग एकेडमीक माँगक प्रति दीक्षित कहलनि जे हमरा सभकेँ जोड़क बात करक चाही तोडक नञि । एकताक दोहाइ दैत मुख्यमन्त्री भने अलग एकेडमीक् बातसँ कन्नी कटने होथि मुदा मैथिली भाषा साहित्यमे लागल प्रबुद्धबर्ग मानैत छथि जे अलग एकेडमीसँ मात्र मैथिलीक वास्तविक विकास भऽ सकत । ओना एकेडमी भोट बटोरबाक साधन मात्र नञि बनए ताहि दिश सेहो ध्यान देब जरुरी अछि । एकेडमीक आयोजनमे ६ अगस्त मंगलक राति विदेशिया आऽ ७ अगस्त बुधक राति महेन्द्र मलंगियाक काठक लोक मन्चित कएल गेल छल। मैथिली भोजपुरी एकेडमी आन एकेडमीसँ आगू बढय से दीक्षितके कहब रहनि । सरकारी ढिलासुस्तीकेँ स्वीकारैत ओऽ एक दिन सबहक आवाज सुनल जायत, कहलनि । नव दिल्लीमे एकेडमी द्वारा आयोजित कार्यक्रममे भोजपुरी नाटक विदेशिया देखलाक बाद दीक्षित नाटक खेलनिहार रंगकर्मीकेँ प्रशंसा केने रहथि । नाटयशालामे भोजपुरी आऽ मैथिली भाषीक भीड़ लागल छल । तहिना मैथिली भोजपुरी एकेडमीक उपाध्यक्ष अनिल मिश्र, एकेडमी, विहारक समॄद्ध संस्कॄतिकेँ बखानैत एहन प्रस्तुति निरन्तर होइत रहत, से जनतब देलनि।

"हमर सिंहासन अटल अछि" मलंगिया
'जाधरि हमर कलम चलैत रहत ताधरि मैथिली नाटककारक रुपमे हमर ऊँचाइ धरि कियो नञि पहुँचि सकैत अछिए। ई सिंहनाद छनि मैथिलीक प्रख्यात नाटककार महेन्द्र मलंगियाक । समकालीन मैथिली साहित्यकारकेँ चुनौती दैत, ओ नाटककार अपन सिंहासन किनको बुते डोलाएल पार नञि लगतए से दाबी करैत छथि। मैथिली नाटककार महेन्द्र मलंगिया एखन मैथिलीक सभसँ लोकप्रिय आऽ ख्यातिप्राप्त नाटककारमे चिन्हल जाइत छथि। चुनौतीपुर्ण शैलीमे मलंगिया कहैत छथि, हमर हाथमे जाधरि कलम अछि, हम अपन स्थानपर टिकले रहब, हमर सिंहासन अटल अछि। मैथिली नाटकक भीष्मपितामह कहल जाए तँ केहन लगैए, ताहि जिज्ञासामे मलंगिया मुस्कियाइत कहलनि जे हमर नाटक लोककेँ पसिन छञि हमरा ताहि पर गर्व अछि, हम जाहि स्तरक नाटक लिखैत छी, तेहन रचना एखन नञि भऽ रहल छञि। ओऽ जनकपुरक रंगकर्मीक खुलिकऽ प्रशंसा करैत छथि। मैथिली रंगकर्ममे लागल जनकपुरक कलाकारक मलंगिया प्रसंशा करैत कहलनि, जनकपुरक कलाकारसँ बहुत आशा कएल जाऽ सकैत अछि । मैथिली नाटकमे शेक्सपियर कहल जाएबला मलंगिया ४ दशकसँ बेशी समय नेपालमे बिता देने छथि। ओऽ नेपालमे मैथिली साहित्यक संरक्षण लेल सन्तोषप्रद काज नञि भऽ सकल, बतौलनि । नेपालमे दोसर सभसँ बेशी बाजल जाएबला भाषा मैथिलीमे रंगकर्मक समयसापेक्ष बिकास नञि भऽ सकल मलंगियाक कहब छनि। लोकतन्त्र बहालीक बाद सेहो नेपाल सरकार मैथिलीक लेल किछु नञि कऽ सकल हुनक आरोप छन्हि। नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान द्वारा मैथिली भाषा, साहित्यक लेल भेल काजके ओऽ कौराके संज्ञा देलनि । प्रतिष्ठानद्वारा मैथिलीलेल भऽ रहल काज प्रति मलंगिया असन्तुष्टि ब्यक्त कएलनि । मैथिली रंगकर्ममे निरन्तर कार्यरत संस्थाकेँ सरकार दिशसँ कोनो तरहक सहयोग नञि भेट रहल बतबैत, ताहि प्रति खेद ब्यक्त कएलनि। सरकारी उपेक्षाक कारण सेहो मैथिली रंगकर्म ओझराहटिमे पडल, मलंगिया मानैत छैथ ।
मैथिली साहित्यमे नाटककार आऽ निर्देशकक रुपमे ख्यातिप्राप्त मलंगिया रंगकर्मकेँ रोजीरोटीसेँ जोडल जाए, से कहैत छथि। जाऽ धरि रोजीरोटीसँ रंगकर्म नञि जुटत ताऽ धरि बिकास सम्भव नञि, मलंगिया स्पष्ट कहैत छथि। जनकपुरमे मिथिला नाटय कला परिषदसँ आबद्ध भऽ मैथिली नाटककेँ जन-जन धरि पंहुचएबाक अभियानमे लागल मलंगिया राजतन्त्रमे मैथिली भाषा संस्कृतिक संरक्षणक लेल कोनो काज नञि भेलाक कारणे सेहो मैथिली पछुआएल अछि, से कहलनि ।
मैथिली भाषामे आम दर्शकक मोनमे गडि जाएबला नाटक लिखिकऽ मैथिली साहित्यक श्री बृद्धिमे योगदान देनिहार मलंगिया नाटककार नाटक लिखैत काल दर्शकक मानसिकता, उमेर , शिक्षा आऽ पेशाकेँ ध्यानमे राखए से सलाह दैत छथि। 'हम दर्शककेँ लक्षित कऽ नाटक लिखैत छी, तेँ हमर लिखल नाटक लोककेँ नीक लगैत छञि, मलंगिया अपन सफ़लताक रहस्य बतबैत कहलनि ।
बिदेशिया नाटक
बिदेशिया घुरि जो
विदेश जएवाक बाध्यता समाजक एकटा कटु सत्य अछि । अपन गामघर छोडिकऽ कियो विदेश जाय नञि चाहै-ए, मुदा परिस्थितिक आगू ककरो किछु नञि चलए छञि। किछु एहने परिवेशकेँ पर्दापर देखेबाक प्रयास कएल गेल विदेशिया नाटकमे । मैथिली भोजपुरी एकेडमीद्वारा दिल्लीमे आयोजित विदेशिया नाटकमे किछु एहने देखल गेल । वियाह भेलाक किछुए दिनक बाद विदेशिया गाम छोडि दैत छञि, विदेश जाऽ कऽ पैसा कमाय लेल। गाम संगहि विदेशियाकेँ छुटि जाइत छञि, अपन नवकी कनियाँ, गामक संगी-साथी आऽ याद सेहो । ओ पाईक लोभसँ घर छोडने रहैया, मुदा ओऽ पाई तँ नईहे कमासकल शहरमे अपन जीवनके एकटा आओर साथी बनालैयऽ। एम्हर ओकर पहिल कनियां विदेशियाके बाट जोहैत रहैयऽ। विदेशियाक यादमे ओऽ कखनो बटुवाके पुछैयऽ तँ कखनो बारहमासा गबैयऽ । नाटकक निर्देशक संजय उपाध्याय विदेश जएबाक ग्रामीण प्रबॄतिकेँ सुखान्त बनेलहुँ से कहलनि। गामक सोझ आऽ सुशील कनियाकेँ छोडि विदेशिया विदेशमे रइम जाइयऽ । ओकरा आब शहरिया संगी निक लगै छइ, जे दुगोट बच्चाक माय सेहो अइ। विदेशिया अपना आपके बिसरि जाइयऽ। गामक कनिया नइ शहरक छम्मकछल्लो आब ओकर प्राण भऽ गेल छञि । एहिबीच भिखारी विदेशियाकेँ निन्नसँ जगबैत अछि। नाटकमे भिखारी बनल रंगकर्मी अभिषेक शर्मा नाटकक माध्यमसँ लोक अपन गाम घरके याद करलेल विवश भऽ जाइयऽ, से कहलनि । विहारक सुपौल जिलाक रंगकर्मी शारदा सिंह नाटकमे देखाएल गेल विषय बस्तु समाजक सत्य रुप रहल बतौलनि । विदेशिया गाम तँ घुरैयऽ मुदा असगरे नई चारि गोटेक संगे , दूटा बालगोपाल आऽ तकर माय। किछु झोंटाझोंटी आऽ कलहक बाद दु्नू सौतिन आऽ विदेशिया गामेमे रहऽ लगैयऽ । नाटक अन्ततः सुखान्त भऽ कऽ समाप्त होइत अछि । ई कथा गामसँ बाहर रहनिहार एकटा निम्न मध्यमबर्गीय युवककेँ जिनगीक मात्रे नञि अछि । बहुतो युवक गाम देहात छोडिते अपन माटि पानिकेँ बिसरि जाइत अछि । शरीरसँ मात्र नञि मोनसँ सेहो विदेशिया भेनिहारकेँ ई नाटक अपन गाम अपन वास्तविक पहिचानक याद दियबैत रहत ।
आब चलू नेपाल दिस


सशस्त्रक सनसनी
मधेश एखन दू दर्जनसँ बेशीक संख्यामे रहल सशस्त्र समूहसँ आक्रान्त अछि। कहियो सशस्त्रक विरोधमे जनकपुरक जानकी मन्दिरमे पत्रकार रैली निकालैत अछि तँ कहियो सिरहाक कर्मचारी कार्यालयमे ताला लगाकऽ सशस्त्रक विरोध प्रदर्शन करैत अछि । तहिना सर्लाहीमे बस चालकक हत्या भेलासँ शुरु भेल यातायात बन्दसँ जनजीवन कष्टकर भऽ रहल अछि । मधेशक माँगकेँ अपन नारा बनाकऽ खुलल दू दर्जनसँ बेशी संगठनकेँ एखन मधेशमे तीब्र बिरोधक सामना करऽ पड़ि रहल छन्हि ।
चालकक हत्या
सर्लाही । राजमार्गमे एखनो शान्ति सुरक्षाक अबस्था बेहाळे अछि । सर्लाही जिलामे हथियारधारी लुटेरा समुह ७ तारिखक रातिमे एकटा बस चालकक गोली मारि हत्या कऽ देलक । राजधानी काठमाण्डू जाऽ रहल बसक चालक कॄष्ण खवासक गोली लागि मॄत्यु भेल छल । पूर्व पश्चिम राजमार्ग अन्तर्गत सर्लाहीक जंगलमे राति ९ बजे ओऽ समुह बसमे लूटपाटक प्रयास कएने रहए । बस नञि रोकि भागऽ लगलाक बाद लुटेरा समूह गोली चलौने छल। गोली लागि घायल भेनिहार चालक खवासकेँ उपचारक बास्ते लालबन्दी अस्पताल लऽ जाइत अबस्थामे बाटेमे मृत्यु भेल, से स्थानीय प्रहरी जनौलक अछि । चालकक गोली लगलाक बाद खलासी बसकेँ नियन्त्रणमे लऽ कए दुर्घटना होबऽ सँ बचौने छल। प्रहरी घटनामे संलग्न होएबाक आशंकामे सात गोटेकेँ पकडलक अछि । दोसर यातायात व्यवसायी आऽ मजदुर चालक हत्याक बिरोधमे चक्काजाम जारी रखने अछि। सरकार समस्या समाधान लेल आगू नञि आएल, कहैत यातायात मजदूर देशव्यापि आन्दोलनक चेतावनी देलक अछि । मजदूर आऽ व्यवसायी पुर्वान्चलक तीन अन्चल आऽ जनकपुर अन्चलमे चक्काजाम कएलाक बाद जनजीवन प्रभावित भेल अछि । बन्दक कारण उपभोग्य वस्तुक अभाव होबऽ लागल अछि ।
कार्यालय बन्द
सिरहा । सिराहामे ११ दिनक आन्दोलनक बाद कर्मचारी काज करब शुरु कएलक अछि। १३ तारिखकऽ भेल सर्वपक्षीय बैसारमे प्रशासन आऽ राजनीतिक दलक प्रतिनिधि समस्या समाधान करबाऽ लेल प्रयास करबाक प्रतिबद्धता जनेलाक बाद कर्मचारी आन्दोलन स्थगन कएलक अछि ।
विभिन्न समूह द्वारा कर्मचारीक ऊपर भऽ रहल चन्दा आतंक, धमकी, अपहरण जेहन घटना नियन्त्रण हुअए से माँग करैत सिरहाक कर्मचारी जिलाक आकस्मिक सेवा छोड़ि सम्पूर्ण कार्यालय बन्द कएने छल। स्थानीय प्रशासन समस्या समाधान लेल कोनो प्रयास नञि कएलक, से कहैत कर्मचारी कार्यालय बन्द कएने छल। कार्यालय बन्द भेलासँ सेवाग्राहीकेँ समस्या झेलऽ पडल छल। सशस्त्र समूह कहियो कर्मचारी अपहरण ,तँ कहियो कार्यालयमे आबि हुलहुज्जत करैत अछि - कर्मचारीक कहब छञि । कर्मचारीक एहन समस्या रहितो सुरक्षानिकाय मूकदर्शक बनल, आरोप लगाओल गेल अछि ।
धमकी बन्द नञि भेल
जनकपुर । नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषा सशस्त्र समूहक समाचार बहिष्कार कऽ देलक अछि। संचारकर्मीकेँ धमकी आऽ चेतावनी नञि रुकलाक बाद बाध्य भऽ पत्रकार सशस्त्र समूहक समाचार बहिष्कार कएलक, से कहल गेल अछि । नेपाल पत्रकार महासंघ धनुषाक सचिव अजित तिवारी द्वारा जारी विज्ञप्तिमे पत्रकारपर धमकी आऽ चेतावनी बन्द नञि हएबा धरि जनकपुरक सम्पूर्ण संचार माध्यममे सशस्त्र समूहक समाचार बहिष्कार जारी रहत। पत्रकार महासंघ केन्द्रीय समिति आऽ धनुषा समिति बेर-बेर सशस्त्र समूहक एहन क्रियाकलाप रोकि प्रेस स्वतन्त्रताक प्रति प्रतिबद्ध होबए लेल आग्रह करितो, तकरा अनदेखी कएल गेल, विज्ञप्तिमे जनाओल गेल अछि । स्थानीय प्रहरी प्रशासनकेँ सशस्र दिशसँ भेटि रहल धमकीक बिषयमे जानकारी करबितो सुरक्षा निकायसँ कोनो पहल नञि भऽ सकल, महासंघ जनौलक अछि। सशस्त्र समूहक धमकी आऽ चेतावनीक विरुद्ध महासंध धनुषा शाखा विरोध जुलूस प्रदर्शन सेहो कएलक। जानकी मन्दिरसँ शुरु भेल पत्रकारक रैली जनकपुरक प्रमुख चौकपर प्रदर्शन कएने छल । समाचार बहिष्कार भेलाक बादो सशस्त्र समूह प्रेस स्वतन्त्रताक प्रति प्रतिबद्ध होएत कि नञि से देखब बाँकी अछि।
राजनीतिक दल चुप किए ?
जनकपुर । नेपाल पत्रकार महासंघक अध्यक्ष धर्मेन्द्र झा पत्रकारकेँ धाक-धमकी आऽ दवावसँ पीडित होइतो राजनीतिक दल एहि प्रति अपन धारणा स्पष्ट नञि दऽ सकल बतौलनि अछि । परिवर्तनक हरेक मोर्चांमे राजनीतिक दलक संगे पत्रकार रहितो पत्रकार समस्यामे रहल अबस्थामे राजनीतिक दल चुप्पी सधने, आरोप झा लगौलनि अछि । धनुषा पत्रकार महासंघद्वारा १३ अगस्तकऽ जनकपुरमे आयोजित विचार गोष्ठीमे सभापति झा राजनीतिक दलकेँ प्रेसक प्रति अपन धारणा स्पष्ट करबाक चाही, से कहलनि ।
कैदी पडाएल
सिराहा । सिराहा जिला कारागारसँ ५४ गोटे कैदी फरार भऽ गेल अछि। डयुटीमे रहल प्रहरीकेँ नियन्त्रणमे लऽ कऽ १३ अगस्तक साँझमे ५४ कैदी भागल बताओल गेल अछि। भगबाक क्रममे प्रहरीक गोली लागि एक गोटे कैदी सोनेलाल यादवक मृत्यु भेल अछि। एहि बीच सिरहा कारागारसँ फ़रार भेनिहार ५४ कैदी मध्य पाँच गोटेकेँ प्रहरी पकडलक अछि। जिला प्रहरी कार्यालय सिरहाक अनुसार पकडेनिहारमे प्रमोद प्रधान, विन्देश्र्वर सदा, कामेश्र्वर यादव, अमिरि साफ़ी आऽ उमरुद्विन मियां अछि। कैदी गन्ति करऽ आएल प्रहरीकेँ नियन्त्रणमे लऽ कऽ कैदी कारागारक मूलद्वार तोडि भागल छल ।
३. गद्य -
ज्योतिप्रकाश लाल सुशांत झा
श्री प्रेमशंकर सिंह बीसम शताब्दीमे मैथिली साहित्य
उपन्यास सहस्रबाढ़नि (आगाँ)ज्योतिक दैनिकी
शोध लेख:हरिमोहन झा समग्र/ सामाजिक लेख जितमोहन झा
१. विज्ञानपर-ज्योति प्रकाश लाल २.पुरातत्त्वपर- सुशान्त झा
ज्योति प्रकाश लाल, ग्राम-जगतपुर, सुपौल, बिहार (भारत)।
ज्योतिप्रकाश लाल विप्रो टेक्नोलोजी, हैदराबादमे सॉफ्टवेअर अभियन्ता छथि, स्पेन आऽ यू.एस.ए.मे पहिने काज कए चुकल छथि। एप्लिकेशन आऽ वेब आधारित सॉफ्टवेअरक निर्माणमे संलग्न। माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन, वाशिंगटनमे विन्डोज ऑपेरेटिंग सिस्टमपर शोध आऽ विकासमे योगदान। स्कूल, कम्प्य़ुटर इंस्टीट्यूट आऽ सरकारी पोलीटेकनिकमे शिक्षणक पूर्व अनुभव। वर्तमानमे साक्षातकार आऽ व्यक्तित्व विकासपर पोथी लिखबामे व्यस्त।
श्री लालमे संगठनात्मक शक्ति छन्हि आऽ ओऽ विभिन्न ग्रुप आऽ फोरमसँ जुड़ल छथि। किछु आर अनुभवी सहयोगीक संग ओऽ www.jyoticonsultant.com द्वारा मुफ्त कैरिअर सुझाव दए रहल छथि।
आजुक समय मे कम्प्युटर शिक्षाक महत्व
(Importance of Computer Education in Modern Days)
कम्प्युटर: कि आ किएक?
आजुक दिन मड कम्प्युटर शब्द किनको सँ बाँचल नहि अछि। ओना तँ हिन्दी वा मैथिली मँ कम्प्युटरक नामि अछि “संगणक” मुदा ऍहि नामि सँ बहुतो लोकनि अनभिञ होयब आओर ई शब्द किछ अनगराईल बुझायल जायति। खैर…. अपन मातृभाषा मैथिली मे एहेन ढेर अंग्रेजी शब्दक प्रयोग करैत छी जे विशुद्ध मैथिली मे विचित्र बुझाएल जायति छैक। आइ केँ दिन मे सभ केँ ‘कम्प्युटर साक्षर‘ (Computer Literate) होवाक चाही। ‘कम्प्युटर साक्षरता‘ (Computer Literacy) सँ मतलब जेँ कोनो भी आदमी ‘कम्प्युटर अनुप्रयोग‘ (Computer Applications) कँ प्रयोग मे लाबि सकैथि। दोसर तरहेँ यदि इ बात केँ कही तँ एकटा ऐहेन आदमी जेँ कम्प्युटर कँ प्रयोग कड केँ कोनो काम कड सकैथि।
कम्प्युटर सँ लगभग सभ काम भड सकैति अछि। जाहि कारणे वर्तमान समय मे कम्प्युटर एकटा महत्वपुर्ण अंग बैनि गेइल छैक। आजुक छोट – मोट व्यापारीयो एकटा कम्प्युटर खरीदबाक आ कम्प्युटर ऑपरेटर रखवाक हिम्मत करैत छैथि। एकर लोकप्रियता आ माँगक पाँछा ढेर कारण अछि। उदाहरणक तौर पर देखि तड: जेना कोनो दरख्वास्त वा चिठ्ठी कोनो ओफिस मे देबाक जरुरत होयत अछि तड दरख्वास्त कँ टाइपराइटर (Typewriter) पर टाइप करा कँ देति छी, मुदा इ टाइप करायल दरख्वास्त मे बहुतो कमी आ अपुर्णताक संभावना रहैति छैक, जेना Spelling Mistakes के संभावना, पाराग्राफक Alignment मे समस्या, पृष्टक Margins मे समस्या, इत्यादि।
इ सभटा समस्याक समाधान अपने कम्प्युटर सँ बिना बहुत कठिनाई सँ कँ सकैति छी। कम्प्युटर मे Spelling Checking केँ सुबिधा अछि जेँ अपने – आप बता दैति जेँ कोन – कोन शब्द्क हिज्जै (Spelling) गलत अछि। एकर अलावा कम्प्युटर Grammatical Errors सेहो पकैर सकैति अछि। इ सब सुविधा (Facilities) सँ लिखल दरख्वास्त वा चिठ्ठी मे कोनो Spelling Mistakes आ Grammatical Errors केँ संवाभना कम अछि। पाराग्राफक Alignment आ Margins केँ तरीका बहुत ही सुविधाजनक अछि। एकर अलावे एकटा दरख्वास्त वा चिठ्ठी लिखवाक आ ओकर छायाप्रति (Printouts) निकलवाक तक जेँ – जेँ सुविधा (Facilities) होवाक चाहि वो सभटा कम्प्युटरक सोफ़्ट्वेयर पैकेज (Software Package) मे छैक।
वर्तमान समय मे कम्प्युटर बहुत आँगा बढि गेल अछि। Banking Sector मे जहिना धुम – धडाका सँ प्रयोग मे अछि तहिना Medical केँ क्षैत्र मे। जहिना रेलक सवारी केँ आरक्षण मेँ कम्प्युटरक Whistle बाजि रहल अछि तहिना हवाई जहाज केँ सेहो उड़ा रहल अछि। मोटा – मोटी यदि एक लाईन मे कही तँ नवयुग मे कम्प्युटर ओहिना सब क्षैत्र मे जरुरी अछि जहिना तरकारी मे नोन।
वर्तमान समय मे कम्प्युटरक आवश्यकता केँ आधार पर इ कहल जा सकैति अछि जेँ यदि अहाँ कम्प्युटर नहि जानैत छी तँ अहाँ निरकक्षर छी। अंग्रेजी मे सेहो मुहावरा (Proverb) बनि गेल अछि – “If you are not a computer literate it means you are illiterate.”
आइ केर समय मे जिनका पास Internet केँ सुविधा उपलव्ध अछि तँ हुनका लेल बहुतो चीज बदैलि गेल छैकि। यदि आइ केँ समय सँ दस – बारह साल पाँछा केँ समय मे जाई आ पत्राचारक माध्यम केँ बारे मे सोची तँ पहिले स्मृति-पट्ल पर थोक मे पोस्टकार्ड, अन्तरदेशी आ लिफाफाक खरीदवाक बात आबि जायति। एकर पाँछा एकटा कारण अछि जेँ ओहि समय मे पत्राचारक माध्यम लेल पोस्ट – ऒफिश केँ प्रखर भुमिका छलि। आओर सबहक लेल डाकक माध्यमे सुगम आ सरल छलि। पत्र कें अलावे गाम – गाम मे मनीओडर पहुँचेबाक मे सेहो डाक अग्रणी छळि। एवम प्रकारे डाक पत्राचारक आ मनीओडर वास्ते एक मात्र साधन बुझला जायति छलि। मुदा नहुँए – नहुँए समय आ दुनिया मे परिवर्तनक लीला जारी रहैत अछि। ई पत्राचारक परिवर्तनक लीला मे कुरियर (Courier) आ ई-मेल (E – mail / Electronic - Mail) आयलि आ धुम – धड़ाका सँ पत्राचारक माध्यम पर कब्जा कँ लेलक। आजुक दिन मे जिनका कुरियर वा ई – मेलक सुविधा अछि वो सब पोस्ट – ऒफिश केर रास्ता – पेरा बिसरि गेल छैथि। सब लोकनि जेँ प्रत्येक दिन डाकिया केर इंतजार मे दरवाजा पर एकटक लगा केँ बैठल रहैति छलाह वो सब आई डाकिया केँ चिन्हेतो नहि छैथि। कारण बहुतो पत्राचार ई – मेल सँ ही सम्भव भड जायति अछि, खास कड केँ शहरी परिवेश मे।
किएक?? आ ई – मेल केँ प्रखर जगह बनेवाक कारण की? एकर कारण तँ बहुत अछि आ ताहि मे सब सँ पैघ कारण अछि जेँ ई – मेल बहुत ही सस्ता आ तेज अछि। सस्ता सँ मतलब अछि जेँ यदि हम एकटा दस पन्ना केँ पत्र कतोँ डाक सँ भेजब तँ जेँ भेजबा मे पाय लागत वो पाय ई – मेल भेजबा मे लागल पाय सँ बहुत ही ज्यादा होयत। आओर तेज सँ मतलब जेँ डाक सँ भेजल पत्र यदि गन्तव्य स्थान पर चारि दिन मे पहुँचत तँ ई – मेल कयलि पत्र दुइ मिनट मे गन्तव्य स्थान पर पहुँचि जायति। एकर अलावा डाक सँ भेजल पत्र कँ गन्तव्य स्थान सँ ही पावि सकैति छी मुदा ई – मेल केँ कोनो स्थान पर पावि सकैत छी। मतलब डाक सँ भेजल पत्र यदि कोलकत्ताक केँ अछि तँ वो पत्र कोलकत्ता मे ही प्राप्त भड सकैत अछि, मुदा ई – मेल मे वो बात नहि अछि; ई – मेल कँ विश्व केँ कोनो जगह मे पावि सकैत छी। आइ यदि कोनो शहर मे नौकरी खोजवा लेल जाइ तँ साक्षात्कार (Interview) लेबे बलाक पहिल प्रश्न यैहि होयत जेँ “कम्प्युटर केँ जानकारी अछि? ” वा “Do you know computers?”. आइ छोट – मोट अस्पतालो मे बिल वा रसीद कम्प्युटर सँ निकालल जायति अछि। यैहि काम पहिल समय मे बिना कम्प्युटर सँ होयति छलि। यदि विकसित शहर केँ किराना दुकान कँ देखि तँ वो दुकान सँ भी कोनो समान खरीदवाक वाद कम्प्युटर सँ ही निकलल रसीद भेटत। दैखि तँ कम्प्युटर पुरा दुनिया मे छा रहल अछि चाहे वो दवाई केँ दुकान मे हो वा बैक मे।

कम्प्युटर प्रयोग करवा सँ मुख्य लाभ:
(अ) समयक बचत (Saving of Time): कम्प्युटर प्रयोग करवा सँ समयक बहुत बचत होयति अछि। जेँ कोनो हिसाब – किताब करवा मे ७ – ८ घंटा लगैति अछि, ओहि काम कड कम्प्युटर ७ – ८ मिनट मे कड सकैति अछि।

(ब) एकदम सही परिणाम (Accuracy in Results):कम्प्युटर कोनो भी हिसाब – किताबक परिणाम सही दैति अछि। कोनो तरह केँ हिसाब मे गलती नहि करैत अछि।

(स) दुबारा काम करवाक जरुरत नहि (Elimination of Repeatitive Tasks): कोनो काम एक बेर जँ कम्प्युटर सँ भड गेल अछि तँ ओहि काम केँ Save कड केँ रखवाक बाद दुबारा ओहि काम केँ बिना करनाय परिणाम पावि सकैति छी।

(द) आदमी केँ मेहनतक बचत (Saving of Man Powers): यदि एक आदमी सँ कम्प्युटर प्रयोगक उपरांत आठ घंटा मे सँ छः घंटाक बचि जायति अछि तँ वो छः घंटाक उपयोग कोनो दोसर काम मे भड सकैति अछि जाहि सँ उत्पादन (Production) बढ़ि सकैति अछि।
(म) थकावटक संभावना नहि (Lack of Tiredness or Always attentive): आदमी लगातार ४ – ५ घंटा काम करत तँ छःटम घंटा मे काम करवाक रफ्तार आ फुर्ती कम भड जायति अछि। मतलब आदमी मे थकान महसुस करवाक अवगुण वा गुण अछि मुदा कम्प्युटर एक मशीन रुप मे थकान अनुभव नहि कड सकैति अछि। कम्प्युटर आठ घंटा लगातार काम करक उपरांतो नंवम घंटा मे काम ओहिने रफ्तार आ फुर्ती सँ करैत अछि जाहि रफ्तार आ फुर्ती सँ वो पहिल घंटा मे करल छलि।

कना पाबि कम्प्युटरक शिक्षा:
सब नौकरी करैय बला दुइ तरहेँ कम्प्युटरक शिक्षा पावैति अछि। पहिल, रोजगार करैय बला केँ अपन कम्पनी सँ खुद कोनो – कोनो कम्प्युटर साक्षरता योजना केँ अन्तरगर्त्त शिक्षा वा ट्रेनिंग (Training) मिल जायति अछि। दोसर, नौकरी खोजनिहार केँ नौकरी ढुढ़वा सँ पहिले कोनो डिपलोमा (Diploma) केँ कोर्स (Course) करै परैति छैक।
कम्प्युटर शिक्षा (Computer Education) आजुक दिनक जरुरत बनि गेइल छैक। जिनका – जिनका नौकरी लेवाक अछि हुनका सभकेँ प्रारंभिक जानकारी (Fundamental Knowledge of Basic Computer Operation) चाहवे करी। कम्प्युटर शिक्षित (Computer Literate) होवाक लेल अनेको साघन अछि, जेना:

(अ) Short - term Computer Course or Diploma: आजुक दिन शहर – शहर मे अनेको कम्प्युटर सँस्थान खुजलि अछि। जाहि सँ तीन, छः वा बारह महीना केँ कोर्स (Course) कड सकैति छी। कुछ कोचिंग सँस्थान (Coaching Institute) वगैरह सेहो खुजलि अछि जाहि जगह सँ जरुरतक क्रैश कोर्स (Crash Course) सेहो कड सकैति छी।

(ब) कोनो कम्प्युटर कोच (Computer Coach) सँ: अगर सुविधा भड सकै तँ कोनो कम्प्युटर जानिहार कड पकैर सकैति छी। जेना घर मे केओ भाई, कोनो चाची वा कोनो दोस्त, तँ हुनका सँ सेहो कम्प्युटर सीख सकैति छी। Privite Jobs मे तत्कालिक रुप सँ कोनो सर्टिफिकेटक (Certificate) केँ जरुरत नहि होयत। बाद मे मँगला पर कम्प्युटर कोर्स कड केँ सर्टिफिकेट द्ड देबैकि।

(स) किताबक मदद सँ: अगर घर मे कम्प्युटर अछि तँ, जे विषय वा सोफ्ट्वेयर पैकेज (Software Package) सिखवाक अछि, वो किताव बाजार सँ खरीद केँ कम्प्युटर सीख सकैति छी।

(द) CD - Rom केँ सहायता सँ: बाजार मे बहुतो CD – ROM (Compact Disk – Read Only Memory) वा CD बहुतो कम्प्युटरक Basic Courses वा Operations केँ लेल मिलैत अछि। जाहि सँ लगभग सभटा Basic Computer Operations सीखल जा सकैति अछि।

गाँव – देहहात मे कम्प्युटरक उपयोग
आजुक समय मे ओरगेनिक खेती (Organic Farming) केँ बहुत बोल – बाला अछि। आओर ढ़ेर Software Packages कृषि केँ लेल Applied Computer Science केँ आधार पर उपल्ब्ध अछि जाहि सँ धान, गेहुँ इत्यादि फसल सभ केँ उत्पादन मे नया रुप देल जा सकैत अछि। साथे – साथ Pest Control, Weed Control, Plant diseases इत्यादि के सेहो पह्चानि सकै छी। इ सभक वास्ते Multi - Media (जेँही सँ फोटो देखल जा सकैति अछि आ सँगे – सँग आवाजो सुनल जा सकैत अछि) आधारित Software Package (Software Application) बनल अछि आओर सुबिधापुर्वक देखल आ सुनल जा सकैति अछि। एकर अलावा इ Software केँ मदद सँ भिन्न प्रकारक कृषि – संबंधी Decision - Making सेहो भड सकैति अछि।
यदि कम्प्युटर शिक्षित छी तँ आइ केँ दिन मे बैंकिग ए.टी. एम (ATM), जेँ छोट – छोट शहर आ बाजार मे उपलब्ध अछि, कँ ओपेरेट करवा मे आसानी होयत। पैसा निकाल – बाहर करैय मे कोनो दिक्कत नहि होयति। एकर अलावे लगभग सभ बैंक मे Internet Banking केँ सुबिधा उपलब्ध अछि। इ सुबिधाक उपयोग वो व्यक्ति कँ सकैति छैथि जिनका Computer Operation बुझल होय।
आइ केँ समय मे ए.टी. एम (ATM) आकारक रेलवे आरक्षण मशीन लगभग प्रत्येक रेलवे स्टेशन पर मिल जायति। आ ओकर Operation कम्प्युटर जँका होयति छैक। कम्पुटर सिखला उपराँत आरक्षण करवा मे सुविधा होयति। इ एकटा कम्पुटर सीखल व्यक्ति कँ Indirect फायदा होयत।
आजुक दिन मे गाँव – देहहात मे Teachers Training मे काफी दिक्कत आ Staff केँ कमी होयति अछि। यदि कम्पुटर सँ Training देल जाय तँ Training ज्यादा प्रभावी आ सफल होयति। कम्पुटर सँ Video - Conferencing भ सकैति अछि। Video - Conferencing सभ क्षैत्र मे बढ़िया भुमिका निभायत, चाहे Pest Control वा Teachers Training होय।
कम्पुटर शिक्षित व्यक्ति यदि कोनो बाहरक यात्रा (Tour and Travels) करवा लेल सोचेत छैथि तँ हुनका इन्टरनेट सँ सभटा Tourism Department केँ जानकारी प्राप्त भ सकैति अछि। वो Online Hotel Booking, Ticket Booking इत्यादि कँ सकैति छैथि।
गाँव मे कियो Printing Press स्थापित करवा लेल सक्रिय छैथि तँ हुनक बढ़िया Publishing केँ लेल कम्पुटर आ Publishing Software के व्यवस्था करैक चाही।

गृहणी / अवकाश – प्राप्त व्यक्ति के लेल कम्प्युटर शिक्षा
हम एक बेर गाम पर एकटा एम. ए. (M. A.) पास भौजी, जेँ पटना मे रहैति छथिन्ह, सँ पुछ्लहु, ’ये भौजी, ये भौजी, अहाँ पटना मे रहैत छी, खाली समय मे जखन बच्चा सब स्कूल मे रहैत अछि, कम्पुटर किएक नहि सीख लैत छी, आगु काम दैति’। जबाब मे भौजी बाजलिह, ’धोड़ि जाउ, हम की करब कम्पुटर – फम्प्युटर सीख कैय’। मुदा आइ छोट – छोट शहरक नजरिया बदलि गेल छैकि। छोट – छोट शहर मे कौल – सेन्टर (Call - Centre), डाटा – ईन्ट्री (Data - Entry) इत्यादि खुजि गेल छैक आ ओकर काम मिलैत छैक। कौल – सेन्टर मे अँग्रेजी के अलावा हिन्दी मे सेहो Customer Handling होयत छैक। डाटा – ईन्ट्री जेँ एकटा पढ़्ल – लिखल औरत भि अपन ४ – ५ घंटा समय द्ड कड पुरा कड सकैति छैथि। इ काम एकटा अवकाश – प्राप्त व्यक्ति भि कड सकैति छैथि। छोट – मोट जगह पर DTP, Accounting Package वा Graphics Designing जानकार आदमी केँ जरुरत होयति छैक आ इ कोर्स करवा मे कोनो ज्यादा समय नहि लागैति छैक। ३ – ६ महिना मे कियो आदमी इक बढ़िया Trainer केँ Guidance मे Expert भड सकैति छैथि।

कोन कम्प्युटर खरीदी? Branded वा Assembled Computer?
पहिल चीज जेँ अहाँक जरुरत आ बजट केहेन अछि? Branded कम्प्युटर मे fixed type केँ Machinery रहैति छैक आ Assembled मे अपन जरुरतक मुताबिक Machinery लगवा सकैति छी। तुल्नात्मक ढ़ंग सँ देखि तँ Assembled कम्प्युटर सस्ता परत। मुदा जखन कम्प्युटर Assemble कराबी तँ जान-पह्चान बला दुकान वा आदमी सँ करायब तँ बढ़िया रहत।

कोन Type केँ कम्प्युटर खरीदी? Laptop वा Desktop कम्प्युटर खरीदी?
Laptop ऐहेन कम्प्युटर अछि जकरा अहाँ कतों आराम सँ Move कड सकैति छी, सुतैत – बैठेति काम कड सकैति छी। मोटा – मोटी कही तँ Laptop वो व्यक्ति कड बढ़िया सँ Suit करैति छैक जेँ व्यक्ति कड सदिखन Mobile रहै पड़ेति छैक। विद्दार्थी लोकनि लड Desktop Computer हि बढ़िया होयति छैक। कुर्सी पर बैठ कड केँ काम करवा मे आलस आ सुस्ती ऐवाक संभावना कम रहैति छैक। विद्दार्थी लोकनि केँ आलस कम होयतैन तड पढ़वा मे ज्यादा मन लागतैन।

केहेन Configuration केँ कम्प्युटर खरीदी?
जखन कम्प्युटर खरीदवाक हुए तँ इ बात ध्यान मे राखल जाय जेँ कम्प्युटर लेबे केँ कि उद्देश्य अछि? आ कम्प्युटर सँ कि काम करवाक अछि? कोनो सामान्य Data Entry आ Composing केँ वास्ते Hi - Fi कम्प्युटर केँ जरुरत नहि अछि। हाँ, जेँ केयो D.T.P. (Desk Top Publishing) वा Publisher केँ कामक लेल कम्प्युटर खरीदवाक इच्छुक छैथि तँ हुनका लेल उत्तम कम्प्युटर होवाक चाहि।
ओना एकटा बात इलेक्ट्रोनिक सामान (Electronic Goods) मे सदिखन ध्यान मे राखि जेँ आइ जेँ समान केयो खरीद कड रहल छैथि, छः मासक उपरांत ओहि समान सँ उत्कृष्ट समान आ सस्ता सेहो बाजार मे उपलब्ध भड जायति। ताहि कारणे कम्प्युटर जखन खरीदी तँ Advanced वा Latest Configuration केँ साथ खरीदी। जाहि कारणे भविष्य मे २ - ३ सालक उपरांत Compatibility बनल रहत।
कम्प्युटर खरीदवा मे मुख्यतः CPU आ ओकर Speed, RAM केँ क्षमता (Capacity), Hard Disk केँ Storage Capacity आ Monitor केँ ध्यान मे राखवाक प्रयास होयवाक चाहि।
Hardware Recommendation for a new computer(एकटा सलाह) CPU:2.0/ 2.6 GHz Pentium IV RAM: 512 MB/ 1 GB
Warranty: सब Hardware पर १ – ५ सालक वारंटी मिलत, इ लेल दुकानदार सँ खुलाशा कड केँ बात कड लेबा सँ बढ़िया रहत। सँगे – सँगे कम्प्युटर पर जेँ भि Software Package वा Operating System चाहैत छी वोहि लेल सेहो दुकानदार के पहिले बता देला सँ ठीक रह्त।
कम्प्युटर बना रहल अछि आदमी केँ जीवन सरल:
पहिले हि ढ़ेर गप – शप कम्प्युटर केँ उपयोगिता आ लाभ पर भड चुकल अछि, जाहि मे देखल गेल जेँ कम्प्युटरक सहयोग सँ शीघ्रता, सही आ संगठित रुपेन काम सम्भव अछि। मुदा किछ बात और अछि जेँ सभ व्यक्ति केँ लेल उपयोगी अछि। जेना ई-मेल एकटा ऐहेन बढ़िया सुविधा अछि जकरा सँग सुबह, दुपहरिया, साँझ वा राति, सदिखन उपयोग मे ला सकैति छी।
विद्दार्थी लोकनि खातिर बढ़िया – बढ़िया पुस्तक CD केँ रुप मे उपलब्ध अछि जाहि सँ सभ विषयक तैयारी आ Exercise इक सही (Systematic) रुपेन सम्भव अछि। बहुतो संख्या मे इन्टरनेट पर Online Books आ Exercise सेहो उपलब्ध अछि। जाहि सँ विद्दार्थी लोकनि केँ पढ़ाई – लिखाई सुगम भड सकैति अछि।
अखबार घर पर मँगावी वा नहि मँगावी, सँगे – सँगे घर पर अखबार पढ़वाक मौका लागे वा नहि लागे, मुदा इन्टरनेट केँ द्वारा सभटा अखबार, चाहे हिन्दी मे हो वा अंग्रेजी मे, पढ़ि सकैति छी। मतलब अनेको अखबार आ E-Journels इक कम्प्युटरक माउस (Mouse) केँ Click सँ पाबि सकैति छी। एकर अलावे सभटा टी.वीक (TeleVision) News Channels केँ Website सेहो उपलब्ध अछि, वो Website सँ Audio आ Video दुनु तरहक समाचारक आनंद लड सकैति छी। ऐतवे नहि Online Channels सेहो उपलब्ध अछि, जे ठीक TV केँ प्रतिरुप अछि।
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सुशांत झा,ग्राम+पत्रालय-खोजपुर, मधुबनी(बिहार),हिनकर पिता श्री पद्मनारायण झा 'विरंचि' ताहि समयक मिथिला मिहिर आऽ आर्यावर्तक प्रसिद्ध स्थाई स्तंभकार। पठन-लेखन विरासतमे भेटल छन्हि सुशान्तजीकेँ।
सम्प्रति सुशांत जी इंडिया न्यूजमे कॉपी राईटर छथि,-मिथिला विश्वविद्यालयसँ स्नातक(इतिहास), तकर बाद आईआईएमसी(भारतीय जनसंचार संस्थान) जेएनयू कैम्पससँ टेलिविजन पत्रकारितामे डिप्लोमा(2004-05) ओकरबाद किछु पत्र-पत्रिका आऽ न्यूज वेबसाईटमे काज,दूरदर्शनमे लगभग साल भरि काज। संप्रति इंडिया न्यूजसँ जुड़ल|

की बलिराज गढ़ मिथिलाक प्राचीन राजधानी अछि?

हमर गाम खोजपुरसँ करीब एक किलोमीटर दक्षिण दिस बलिराजपुर नामक एकटा गाम छैक। ई गाम मुधुबनी जिला मुख्यालयसँ करीब 34 किलोमीटर उत्तर-पूब दिसामे छैक। एतय एक टा प्राचीन किला छैक जे 365 बिगहामे पसरल छैक आऽ एकर देखभाल भारत सरकारक पुरातत्व विभाग कऽ रहल अछि। किलाक खुदाई भेलापर एहिमे सँ मृदभांड आऽ विभिन्न तरहक बस्तु निकललए आऽ सोनाक सिक्का सेहो भेटलैक। किलाक बाहर जे बोर्ड लागल छैक ताहि के मुताबिक ई किला मौर्यकालीन हुअक चाही। किला के कात करोटमे जे गाम छैक ओहिमे भांति-भांतिक किंवदन्ति पसरल छैक, किलाक विषयमे। जतेक लोक, ततेक तरहक बात। किछु लोकक कथन छन्हि जे ई किला राक्षस राज बलिक राजधानी छलै -आऽ किछु गोटा तँ राजा बलिकेँ देखबाक सेहो दावा केलन्हि अछि। साँझ भेलाक बाद लोक सभ किला दिस जाइसँ बचए चाहैत छथि। भऽ सकैत अछि जे ई अफवाह सरकारी कर्मचारी लोकन्हि फैलेने हुए-कारण जे ओकरा सभकेँ ड्यूटी करएमे कनी आराम भऽ जाइत छैक। लोक सभ राजा बलिक डरे किछु चोरबऽ नञि चाहए छैक।

किला अद्भुत छैक। किलाक देबार भग्नावस्थामे रहितहु अपन यौवनक याद दिआ रहल अछि। किलाक देबार एतेक चाकर छैक जे ओहपर तँ आसानी सँ एकटा रथ निकलिये जाइत हेतैक। देबारमे लागल ईंटा दू-दू फीट नमहर आऽ लगभग गोटेक फुट चाकर छैक। चीनक देबारसँ कम मोट नहि हेतैक ई अपन यौवन कालमे। किलामे एकटा पोखरि छैक, ककरो नहि बूझल छैक, जे कहिया खुनेलय ई पोखरि। बूढ़-पुरानक कहब छन्हि जे ई पोखरि राक्षसक कोरल अछि। किछु लोकनिक तँ ई मत छन्हि जे एहिमे एकटा सुरंग सेहो छैक-जकर रस्ता कतओ आर निकलैत छैक। सुनैत छियैक जे राज-परिवारक सदस्यकेँ आपतकालमे बाहर निकालैक लेल एहन सुरंग बनायल जाति छलैक। किलाक कात-करोटमे जे गाम छैक तकर नाम सेहो ऐतिहासिक। किलाक पूब दिस छैक फुलबरिया नामक गाम आऽ ओकर बगलमे सटल छैक गढ़ी गाम..जे आब अप्रभंश भऽ कऽ गरही भऽ गेलैए। किलाक पच्छीम दिस छैक रमणी पट्टी नामक गाम आऽ ओहिसँ सटल छैक भुपट्टी। किलाक दक्षिणमे छैक बिक्रमशेर, जतय प्राचीन सूर्य मंदिरक अवशेष भेटलैए। ई बात ध्यान देबाक जोग जे सूर्य मंदिर देशमे बड्ड कम जगह छैक। बलिराज गढ़क खुदाई पहिल बेर 1976 मे भेलैक, जखन केन्द्रमे साइत डॉ कर्ण सिंह एहि बिभागक मंत्री छलाह। गढ़क उद्धारक लेल मधुबनीक पूर्व सांसद भोगेन्द्र झा आऽ कुदाल सेनाक अध्यक्ष सीताराम झाक बड्ड योगदान छन्हि। किछु इतिहासकार लोकनिक कहब छन्हि, जे ई किला बंगालक पालवंशीय राजा लोकनिक किला भऽ सकैत अछि वा फेर मौर्य सम्राटक उत्तरी सुरक्षा किला भऽ सकैत अछि। ओना किछु गोटेक कहब छन्हि जे एकर बड्ड संभावना- जे ई किला मिथिलाक प्राचीन राजधानी सेहो भऽ सकैत अछि।

एकर पाछू ओऽ ई तर्क दैत छथिन्ह, जे एखुनका जे जनकपुर अछि, ओऽ नव जगह अछि आऽ ओतुक्का मंदिर १८हम शताव्दीमे इंदौरक महाराणी दुर्गावतीक द्वारा बनबाएल गेल अछि। विद्वान लोकनि जनकपुरक ऐतिहासिकताक संदिग्ध मानैत छथि। हमरा एहि संबंधमे एकटा घटना मोन पड़ि रहल अछि। १० साल पहिने पटनामे वैशालीक एकटा सज्जन हमरा भेटलाह आऽ कहलन्हि जे बलिराज गढ़ वास्तबमे मिथिलाक प्राचीन राजधानी अछि। हुनकर कहब छलन्हि जे ह्वेनसांगक एकटा विवरणक मुताबिक पाटलिपुत्रँस एकटा खास दूरी पर वैशाली अछि, वैशालीसँ एतेक दूरीपर कांठमांडू (काष्ठमंडप) अछि आऽ काठमांडूक दच्छिन आऽ पूब दिशामे मिथिलाक प्राचीन राजधानी छैक। एखुनका जनकपुर ओहि मापदंडपर सही नञि उतरि रहल अछि। पता नञि एहि बातमे कतेक सत्यता छैक। एकर अलावा, रामायणमे सेहो मिथिलाक प्राचीन राजधानीक संदर्भमे किछु संकेत छैक। रामायणक संकेत सेहो बलिराजपुरकेँ मिथिलाक राजधानी होएबाक संकेत कय रहल अछि।

सांसद भोगेन्द्र झाक मुताबिक, राजा बलिक राजधानी महाबलीपुरम भय सकैत अछि, जे दच्छिन भारतमे छैक। सभसँ पैघ बात ई जे पूरा मिथिलामे बलिराजपुरसँ पुरान कोनो किला नहि अछि, जे मिथिलाक प्राचीन राजधानी होएबाक दावा कय सकए। किलाक भीतर उबड़-खाबड़ मैदान छैक, जे राजमहलक जमीनक भीतक धँसि जएबाक प्रमाण अछि। एतय एकाध जगह खुदाई भेलैए आऽ ओहीमे काफी कीमती धातु आऽ समान भेटलैक अछि। अगर एकर ढ़ंगसँ खुदाई कएल जाय तँ नञि जानि कतेक रहस्य परसँ आवरण उठि जायत। एखन धरि सरकारक तरफसँ कोनो ठोस प्रयास नहि भऽ पाओल अछि, जञिसँ बलिराज गढ़क प्राचीनताकेँ दुनियाक सोझाँ रखबाक कोसीस कएल जाय। बस एकटा कामचलाऊ सड़कसँ एकरा बगलक गाम खोजपुरसँ जोड़ि देल गेलैक आऽ इतिश्री कय देल गेलैक।

यदि बलिराज गढ़क खुदाई ढ़ंगसँ कएल जाय आऽ एतय एकटा नीक संग्रहालय बना देल जाय तँ बढ़िया काज होयत। मिथिलांचलक हृदयस्थलीमे रहबाक कारणेँ एतय मिथिला पेंटिंगक कोनो संस्थान वा आर्ट गैलरी सेहो खोलल जाऽ सकैत अछि। एकटा नीक(चाकर आऽ चिक्कन हाईवे) क संग नीक विज्ञापन बलिराजगढ़क पर्यटक सभकेँ निगाहमे आनि सकैत अछि। एहिसँ इलाकाक गरीबी दूर करबामे सेहो मदद भेटत। यदि एकरा बुद्धा सर्किट वा रामायण सर्किटक अंग बना लेल जाय तँ आर उत्तम।
बीसम शताब्दी मैथिली साहित्यक स्वर्णिम युग
-प्रोफेसर प्रेम शंकर सिंह

डॉ. प्रेमशंकर सिंह (१९४२- ) ग्राम+पोस्ट- जोगियारा, थाना- जाले, जिला- दरभंगा। मैथिलीक वरिष्ठ सृजनशील, मननशील आऽ अध्ययनशील प्रतिभाक धनी साहित्य-चिन्तक, दिशा-बोधक, समालोचक, नाटक ओ रंगमंचक निष्णात गवेषक, मैथिली गद्यकेँ नव-स्वरूप देनिहार, कुशल अनुवादक, प्रवीण सम्पादक, मैथिली, हिन्दी, संस्कृत साहित्यक प्रखर विद्वान् तथा बाङला एवं अंग्रेजी साहित्यक अध्ययन-अन्वेषणमे निरत प्रोफेसर डॉ. प्रेमशंकर सिंह ( २० जनवरी १९४२ )क विलक्षण लेखनीसँ एकपर एक अक्षय कृति भेल अछि निःसृत। हिनक बहुमूल्य गवेषणात्मक, मौलिक, अनूदित आऽ सम्पादित कृति रहल अछि अविरल चर्चित-अर्चित। ओऽ अदम्य उत्साह, धैर्य, लगन आऽ संघर्ष कऽ तन्मयताक संग मैथिलीक बहुमूल्य धरोरादिक अन्वेषण कऽ देलनि पुस्तकाकार रूप। हिनक अन्वेषण पूर्ण ग्रन्थ आऽ प्रबन्धकार आलेखादि व्यापक, चिन्तन, मनन, मैथिल संस्कृतिक आऽ परम्पराक थिक धरोहर। हिनक सृजनशीलतासँ अनुप्राणित भऽ चेतना समिति, पटना मिथिला विभूति सम्मान (ताम्र-पत्र) एवं मिथिला-दर्पण, मुम्बई वरिष्ठ लेखक सम्मानसँ कयलक अछि अलंकृत। सम्प्रति चारि दशक धरि भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रोफेसर एवं मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली विभागाध्यक्षक गरिमापूर्ण पदसँ अवकाशोपरान्त अनवरत मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ अभिवर्द्धित करबाक दिशामे संलग्न छथि, स्वतन्त्र सारस्वत-साधनामे।
कृति-
लिप्यान्तरण-१. अङ्कीयानाट, मनोज प्रकाशन, भागलपुर, १९६७।
सम्पादन- १. गद्यवल्लरी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६६, २. नव एकांकी, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९६७, ३.पत्र-पुष्प, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९७०, ४.पदलतिका, महेश प्रकाशन, भागलपुर, १९८७, ५. अनमिल आखर, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००० ६.मणिकण, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ७.हुनकासँ भेट भेल छल, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००४, ८. मैथिली लोकगाथाक इतिहास, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ९. भारतीक बिलाड़ि, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, १०.चित्रा-विचित्रा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००३, ११. साहित्यकारक दिन, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकाता, २००७. १२. वुआड़िभक्तितरङ्गिणी, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८, १३.मैथिली लोकोक्ति कोश, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, २००८, १४.रूपा सोना हीरा, कर्णगोष्ठी, कोलकाता, २००८।
पत्रिका सम्पादन- भूमिजा २००२
मौलिक मैथिली: १.मैथिली नाटक ओ रंगमंच,मैथिली अकादमी, पटना, १९७८ २.मैथिली नाटक परिचय, मैथिली अकादमी, पटना, १९८१ ३.पुरुषार्थ ओ विद्यापति, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर, १९८६ ४.मिथिलाक विभूति जीवन झा, मैथिली अकादमी, पटना, १९८७५.नाट्यान्वाचय, शेखर प्रकाशन, पटना २००२ ६.आधुनिक मैथिली साहित्यमे हास्य-व्यंग्य, मैथिली अकादमी, पटना, २००४ ७.प्रपाणिका, कर्णगोष्ठी, कोलकाता २००५, ८.ईक्षण, ऋचा प्रकाशन भागलपुर २००८ ९.युगसंधिक प्रतिमान, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८ १०.चेतना समिति ओ नाट्यमंच, चेतना समिति, पटना २००८
मौलिक हिन्दी: १.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, प्रथमखण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७१ २.विद्यापति अनुशीलन और मूल्यांकन, द्वितीय खण्ड, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना १९७२, ३.हिन्दी नाटक कोश, नेशनल पब्लिकेशन हाउस, दिल्ली १९७६.
अनुवाद: हिन्दी एवं मैथिली- १.श्रीपादकृष्ण कोल्हटकर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली १९८८, २.अरण्य फसिल, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१ ३.पागल दुनिया, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००१, ४.गोविन्ददास, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली २००७ ५.रक्तानल, ऋचा प्रकाशन, भागलपुर २००८.
बीसम शताब्दी: मैथिली साहित्यक स्वर्णिम युग (आगाँ)
यथार्थतः मैथिली सहित्य अपन परम्परावादी प्रशस्त मार्गक परित्याग कऽ कए गद्यक आश्रय ग्रहण कऽ नवीन मार्गपर डेग राखि शनैः-शनैः अग्रसर भेल तकर श्रेय आऽ प्रेय दुनू विगत शताब्दीकेँ छैक जे साहित्य सरिताक प्रवहमान धारा सदृश कलकल छलछल करैत अग्रसर भेल, तकर साक्षी थिक विभिन्न विधादिक साहित्येतिहासक प्रकाशन। एहि स्वर्णिम कालक सहस्राब्दीक सम्पूर्ण साहित्यकेँ स्थूल रूपेँ दू धारामे विभाजित कयल जा सकैछ- काव्य-धारा अऽ गद्य धारा। युग संधिक उत्कर्ष बेलामे साहित्यिक गतिविधिक क्षेत्र काव्यसँ बेशी गद्यकेँ प्रधानता भेटल। लोकक ध्यान राजनीति आऽ सामाजिक सुधार दिस गेलैक आऽ काव्यक विकासक लेल अनुकूल आराम वा पलखतिक वातावरण आब नहि रहलैक। नवोदित रचनाकारकेँ कविता सदृश विलास-वस्तुक लेल साधन आऽ समय नहि रहलनि। युग-सन्धिक उत्कर्ष बेलामे उद्भूत विभिन्न साहित्यिक विधादि भीतिपर दृष्टिनिक्षेप अकारान्त क्रमसँ कयल जाइत अछि, जे विगत शताब्दी कोन रूपेँ एकरा स्वर्णकाल उद्घोषित करबाक दिशामे अवदान कयलक तकर संक्षिप्त रूपरेखा अपनेक समक्ष प्रस्तुत कयल जाऽ रहल छल।

कविता सकल जीवनकेँ अपनामे समाहित करैत अछि आऽ मैथिली कविता एकर अपवाद नहि। विगत शताब्दीक मैथिली काव्यधाराक सर्वेक्षणसँ ज्ञात होइछ जे काव्यकार दुइ भागमे विभक्त छथि- किछु तँ परम्परागत रूपक अनुयायी छथि तँ किछु नव प्रयोग कयनिहार सेहो। शताब्दीक सन्धि बेलामे मैथिली काव्यकेँ पारम्परिक एवं नवीन दुनू रूपमे अभिव्यक्ति भेटलैक। पारम्परिक एवं आधुनिक काव्य जटिल रूपेँ मिझरा गेल अछि। काव्यकार लोकनि लोकप्रिय धुन एवं शैलीपर आधारित गीतक रचनाक सामाजिक, राजनीतिक चेतना जगयबाक प्रयास कयलनि। स्वाधीनताक पश्चात् मैथिली काव्यकेँ आगू बढ़यबामे मैथिली पत्रिकादि महत्त्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कयलक। स्वाधीनोत्तर काव्यक प्रवृत्ति सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थितिक कारणेँ आऽ समाजवादी विचारधाराक प्रसादक कारणेँ प्रगतिशील कहल गेल अनेक काव्यक रचना भेल। चीनी आक्रमण तथा पाकिस्तानक संग भेल युद्धसँ राष्ट्रवादी जोश, एकताक भावना एवं देश-भक्तिक स्फुरण भेल। राष्ट्रीय जागरण एवं वीरताक चित्रण करैत कतोक काव्यक रचना भेल। मैथिली काव्यधारा भारतीय भाषाक समकालीन प्रवृत्तिसँ सेहो प्रभावित भेल। किछु कवि एहनो दृष्टिगोचर भऽ रहल छथि जनिक रचनामे कोनो विशेष प्रवृत्तिक कारणेँ हुनका फराक कयल जाऽ सकैछ। आलोच्यकालक काव्य-साहित्यकेँ निम्नस्थ वर्गमे विभाजित कयल जा सकैछ:

१.महाकाव्य, खण्डकाव्य, प्रबन्ध काव्य।
२.पारम्परिक गीति काव्य।
३.मुक्तक काव्य।
४.नव रूप आऽ नव विषय एवं अन्यान्य जकरा अन्तर्गत पद्यबद्ध कथा, हास्य ओ व्यंग्य, प्रगतिशील, देशप्रेम, देशभक्तिपरक सम्बोधगीत एवं शोक गीत, प्रेम ओ शृंगार तथा नव कविता।

विगत शताब्दीक सत्तरिक दशकक मध्यमे किछु युवा कवि नवकविताक रचना करब प्रारम्भ कयलनि। जीवनक प्रति रुचि, मानवीय मूल्य आऽ वातावरणमे परिवर्तन तथा व्यक्तिवादी प्रवृत्ति एहन कविताक प्रमुख स्वर अछि। एहि आन्दोलनक फलस्वरूप काव्य साहित्यमे परिवर्तनक स्वर गुंजित होमय लागल जे सम्पूर्ण साहित्यमे दृष्टिगोचर होइछ।

विवेच्य शताब्दीमे कविक ध्यान आजुक मानव एवं ओकर बहुविध समस्या तथा ओकर बहुविध तत्व दिस विशेष रूपेँ आकृष्ट भेल अछि, तथापि प्राचीन विषय-वस्तु जेना सत्यता, वीरता, प्रेम, पराक्रम आदि तँ आदर्श रूपेँ रहबे करत। एहि प्रकारेँ आधुनिक काव्य-धारा विषय-वस्तुक क्षेत्रमे निस्संदेह समृद्ध भेल अछि, तथा नव-नव काव्य रूपक सेहो स्थापित भेल अछि। अमित्राक्षर वामुक्तवृत्त तथा अनेक नव-नव लय तथा छन्द-बन्धनक सफल प्रयोग एहि युगक प्रवृत्ति भऽ गेल अछि।

छन्दकेँ वर्तमान पीढ़ीक कवि पूर्णतः त्यागि देलनि से एक ध्यानाकर्षक वैलक्षण्य थिक। स्वयं कोनो मौलिक छन्द उद्भाषित करबाक एकोगोट प्रयोग नहि देखि पड़ैछ। एहन काव्यकारक संदर्भ, संकेत, उपमा, प्रतीक सभ नव-नव आऽ पारम्परिक कविताक रसिक लोकनिकेँ काव्योपयुक्त शब्द राशि छलनि तँ ऐंस्ट युगक बहुतो कवि अपन नव शब्द भण्डार बनौलनि। एकर कारण थिक जे कवि लोकनि कृत्रिमताक कोनो खास दर्शन अपनौलनि। नव तूरक कोनो कविक विषयमे ई नहि कहल जाऽ सकैछ, जे आयामिक वा अन्य प्रकारक कोनो खासवादक प्रभाव हुनकापर पड़लनि अछि। तथापि बहुतो दृष्टान्त, सन्दर्भ, संकेत, प्रतीक, मिथकक प्रयोग तथा शब्दावलीमे किछु प्रभाव ताकल जाऽ सकैछ। काव्यक भाषा, बिम्ब आऽ अलंकारक क्षेत्रमे हुनका सभकेँ नव-नव उद्भावना करबाक छनि।

गद्य धारा-
आधुनिक भारतीय भाषामे गद्य-साहित्यक आविर्भाव भारतीय जीवनमे ओहि मंजिलक द्योतक थिक, जखन मध्ययुगीन वातावरणसँ बहरा कऽ वैज्ञानिकताक प्रतीक बनल। हमर समग्र गद्य साहित्य जीवनक परिष्करण आऽ उत्थानक साहित्य थिक। आइ एकरा माध्यमे हम अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञानक सम्पर्कमे अयलहुँ। मुसलमानी शासन कालमे अरबी-फारसी साहित्यक सम्पर्क भेलासँ गद्य रचनाकेँ प्रोत्साहन नहि भेटि सकल। पूर्व आऽ पश्चिमक सम्पर्कक फलस्वरूप नवचेतना उत्पन्न भेल, समाज अपन हेरायल शक्तिकेँ जमाकऽ गतिशील भेल, साहित्यमे गद्यक श्रीवृद्धि भेल। अतएव विगत शताब्दी मैथिली गद्यक स्वर्णकाल थिक। आब तेँ ई साहित्यक प्रधान अंग बनि गेल अछि। एहि समयमे मिथिलांचलवासी पश्चिमक एक सजीव आऽ उन्नत्तिशीलजातिक सम्पर्कमे अयलाह आऽ ओऽ जाति अपना संग यूरोपीय औद्योगिक क्रान्तिक पश्चात् सभ्यता लऽ कए आयल। नवीन शिक्षा पद्धति, वैज्ञानिक आविष्करादिक प्रवृत्तिसँ मैथिली साहित्य अछूत नहि रहल। शासन सम्बन्धी आवश्यकता तथा जीवन परिस्थितिक कारणेँ गद्य सदृश नवीन साहित्यक माध्यमक आवश्यकता भेल आऽ वास्तवमे गद्य द्वारा मैथिलीमे आधुनिकताक बीज वपन भेलैक। वस्तुतः नवयुगमे नव शिक्षा-पद्धतिमे पालित-पोषित शिक्षित समुदायक आविर्भावक कारणेँ मैथिली गद्य-परम्पराक क्रमबद्ध इतिहास विगत शताब्दीसँ उपलब्ध भऽ रहल अछि। नवीनता जँ भेटैत अछि मात्र गद्यक रूपमे- नवीनता एहि अर्थमे जे ई साहित्यक प्रमुख आऽ स्थायी अंग बनि गेल अछि। गद्यक अटूट परम्परा भेटैछ जे एकर उज्जवल भविष्यक संकेत करैछ। मिथिलांचलमे आधुनिकताक बीजवपन गद्य रचनासँ मानल जयबाक चाही। वास्तवमे गद्यक इतिहासमिथिलांचलक जीवनमे बढ़ैत पाश्चात्य प्रभावक इतिहास कही तँ अनुचित नहि हैत।

गद्य-साहित्यक प्रसंगमे ई बात स्मरण रखबाक चाही जे विगत शताब्दीमे अधिकांश उपयोगी आऽ व्यावहारिक विषयसँ सम्बन्धित रचना भेल। वर्तमान समयमे गद्यमे अनुनाद, आलोचना, इतिहास, उपन्यास, कथा, नाटक-एकांकी, निबन्ध, पत्रिका तथा विविध रूपमे रचित गद्य साहित्यक रचना भऽ रहल, कारण जाहि-जाहि साधन द्वारा गद्यक विकास भेल अछि ओऽ सभ नवीन आवश्यकताक पूर्तिक लेल व्यावहारिक दृष्टिकोणमे सन्निहित अछि। साहित्यकार सभक द्वारा एकरा सजयबाक आऽ सँवारक कार्य कयल गेल। मैथिली गद्यक गाथा मिथिलांचलक नवजीवनक प्रभातकालीन चेतना, स्फूर्ति, ग्राहिका शक्ति आऽ गतिशीलताक आशा भरल गाथा थिक। जाहि दिन गद्यक कोनो प्रथम पृष्ठ प्रेसमे मुद्रित भेल हैत से दिन निस्सन्देह साहित्यक क्रान्तिक दिन रहल हैत।

अनुवाद

विगत शताब्दीक चतुर्थ दशकमे मैथिली साहित्यान्तर्गत अनुवादक सूत्रपात भेल। आरम्भिक कालमे ओकर गति मन्थर रहलैक; किन्तु स्वाधीनताक पश्चात् एकर विकासमे गति आयल आऽ वर्तमान समयमे ई एक अत्यन्त सशक्त विधाक रूपमे प्रतिफलित भेल अछि तथा एकर सर्वोपरि उपलब्धि थिक जे प्रचुर परिमाणमे गद्य आऽ पद्य प्रकाशमे आयल अछि। एहि प्रकारक सहित्यिक उपलब्धि अतीतमे नहि छल। आधुनिक, प्राचीन भारतीय भाषाक संगहि संग पाश्चात्य भाषा आऽ साहित्यक सहस्राधिक गद्य-पद्य मैथिली गद्य साहित्यक श्रीवृद्धिमे सहायक भेल अछि।

आलोचना

साहित्यिक सृजन आऽ ओकर आलोचनाक धारा समानान्तर चलैछ। प्रत्येक युगक साहित्य एक एहन आलोचनाक उद्भावना करैछ जे ओकर अनुरूप होइछ। एहि प्रकारेँ प्रत्येक युगक आलोचना सेहो ओहि युगक रचनाकेँ अनुकूल स्वरूप प्रदान करैछ। वस्तुतः देश आऽ समाजक परिवर्तनशील प्रवृत्ति एक भाग साहित्य निर्माणकेँ दिशा दैछ आऽ समीक्षा ओकर स्वरूप निर्धारित करैछ। अतएव रचनात्मक साहित्यक इतिहास आऽ समीक्षाक इतिहासमे धारावाहिकताक समानता रहैछ।

मैथिलीमे आलोचनाक उदय विगत शताब्दीमे भेल आऽ एकर विचित्र स्थिति अछि तथा ई ओकर सभसँ दुर्बल अंग थिक। विवेच्य कालक मैथिली आलोचना विधाक सम्पूर्ण विकास यात्राकेँ दृष्टिमे राखि हम एकर तीन रूप निर्धारित कयल अछि। प्रथम रूप संस्कृत समालोचना सिद्धांत वा निर्णयात्मक अछि। एहि प्रणालीक अनुगमन कयनिहार संस्कृत आचार्य लोकनिक रूप थिक। द्वितीय अछि पाश्चात्य समालोचना सिद्धांत। तृतीय रूप अछि जाहिमे प्राचीन भारतीय आऽ पाश्चात्य सिद्धान्तक समन्वय कयल गेल अछि। जीवनक नव परिस्थिति एवं नव सामाजिक चेतनाक कारणेँ विशुद्ध भारतीय दृष्टिकोण अपनायब तँ असम्भव थिक। किन्तु दुर्भाग्यवश अन्य दू रूपक कोनो विशिष्ट आऽ निश्चित परम्परा स्थापित नहि भऽ सकल अछि। साहित्यक उत्कर्षक सन्धि बेलामे आलोचना शास्त्र विभिन्न मत वादक अजायब घर बनि गेल अछि। ओकर प्रधान आधार वैयक्तिक रुचि-अरुचि अछि ने कि कोनो सिद्धान्तक आधार। एकहि आलोचकक समीक्षामे परस्पर विरोधी बात आऽ ओकर सुसंगत रूप नहि भेटैछ।

वर्तमानमे प्रवणता सभसँ बेशी देखल जाइछ जे भारत एवं पाश्चात्यक विभिन्न विश्वविद्यालयमे मैथिली विषयपर अनुसंधान भेल अछि आऽ भऽ रहल अछि, जकर संख्या लगभग तीन सहस्रादिसँ अधिक अछि। किन्तु मैथिली अनुसंधानक जे स्थिति अछि ताहिपर कतिपय प्रश्न चिन्ह लागि गेल अछि। अधिकांशतः अनुसंधान अप्रकाशित अछि। वर्तमान परिप्रेक्ष्यमे ओकर प्रकाशनक प्रयोजन अछि, जाहिसँ यथार्थ स्थितिक रहस्योद्घाटन भऽ सकय तथा ई विधा अभिवद्धिति भऽ सकय।

इतिहास-लेखन

साहित्येतिहासक लेखन तँ ओहि साहित्यक दर्पण समान होइछ जकर अवलोकनहि सँ साहित्यक यथार्थताक परिज्ञान पाठककेँ होइछ। विगत शताब्दीकेँ स्वर्णकाल उद्घोषित करबाक आऽ मातृभाषानुरागी प्रबुद्ध पाठककेँ अपन मातृभाषाक गौरव-गरिमाक आख्यान प्रस्तुत करबाक लेल कतिपय इतिहासकार एकर साहित्यिक परम्पराक पुनराख्यान निमित्त साहित्येतिहासिक ग्रन्थक रचना आऽ ओकर प्रकाशन कयलनि। किन्तु एहि साहित्येतिहासक ग्रन्थक अवलोकनोपरान्त निराश होमय पड़ैछ, कारण निष्पक्ष भावेँ मैथिलीक वैज्ञानिक पद्धतिक अनुसरण कऽ कए अद्यापि इतिहास नहि लिखल गेल अछि जे चिन्तनीय विषय थिक। प्रत्येक इतिहासकार दलगत भावनासँ उत्प्रेरित छथि जाहि कारणेँ महत्त्वपूर्ण कृतिकारक चरचा पर्यन्त नहि भऽ सकल अछि। एहि सन्दर्भमे हम दुइ इतिहासक चर्चा करब। साहित्य अकादमीक सत्प्रयाससँ “इण्डियन लिटरेचर सिन्स इण्डिपेनडेन्स” (१९७३) प्रकाशित भेल जकर त्रुटिक विषयमे मिथिला मिहिरक कतोक अंकमे एकर भर्त्सना कयल गेल। युग-संधिक उत्कर्ष बेलामे “ए हिस्ट्री ऑफ मोडर्न मैथिली लिटेरेचर”(२००४) प्रकाशमे आयल अछि जकरा कतिपय कारणेँ साहित्य जगतमे विवादास्पद ओ अपूर्ण सेहो अछि जकरा इतिहास कहबामे संकोचक अवबोध होइछ। वर्तमान संदर्भमे प्रयोजन अछि एक एहन साहित्येतिहासक जाहिमे साहित्यिक यथार्थ स्वरूपक उद्घाटन हो तथा उपेक्षित लेखक लोकनिक कृतित्वक सम्यक रूपेण उल्लेख प्रवृत्तिक अनुरूप हो।

उपन्यास

आधुनिक भारतीय भाषा साहित्यक अन्तर्गत उपन्यास लेखनक प्रादुर्भाव पश्चिमक नव सभ्यता आऽ प्रिंटिंग प्रेसक देन थिक आऽ मानव जीवनकेँ समग्र रूपसँ देखबाक प्रयास मैथिली उपन्यासान्तर्गत विगत शताब्दीक प्रथम दशकमे भेल। ई.एम.फॉस्टर (१८७९- ) क कथन छनि जे जीवनक गुप्त रहस्यकेँ समग्र रूपसँ अभिव्यक्तिक क्षमता जतेक उपन्यासमे अछि ओतेक अन्य कोनो विधामे नहि। इएह कारण अछि जे विगत शताब्दीमे उपन्यास अपन सीमाक कारणेँ महत्त्वपूर्ण विधाक रूपमे साहित्यमे प्रवेश पौलक तथा प्रधान साहित्यिक रूप बनि गेल जकर द्वारा मानव अपन वाह्य एवं आन्तरिक समस्यादिकेँ सोझरयबाक प्रयासमे संलग्न अछि।

मिथिलांचलक नव-चेतना, आकांक्षा आऽ विषमता, राष्ट्रीय संग्रामक विभिन्न मतवाद सामाजिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक विषमता आदिक अभिव्यक्ति मैथिली उपन्यासक प्रमुखरूपेँ मुखरित भेल। विगत शताब्दीक चतुर्थ दशकक आरम्भिक साल मैथिली उपन्यास जगतमे विशेष महत्त्व रखैत अछि। “मिथिला” (१९२९) मासिक पत्रमे हरिमोहन झा (१९०८-१९८९)क “कन्यादान” धारावाहिक रूपेँ उपन्यास प्रकाशित होमय लागल। उपन्यास लिखबाक प्रेरणा हुनका जनार्दन झा “जनसीदन” सँ भेटलनि। स्त्री-शिक्षाक आवश्यकता तथा नव-पुरान सम्बन्धी विचारक संघर्ष देखयबाक लेल एकर रचना कयल गेल छल। पुस्तकाकार प्रकाशित होइतहि ई उपन्यास लोकप्रिय भऽ गेल। सामाजिक जीवनक एतेक व्यापक चित्रण एहिसँ पूर्व नहि भेल छल। सामाजिक कुरीतिक पर्दाफाश होइत देखि कए रुढ़िवादी तिलमिला गेलाह, किन्तु नवयुवक वृन्द एकर स्वागत कयलनि। एहि उपन्यासक प्रभाव मुख्यतः तीन रूपमे पड़ल- प्रथम समाजक मनोवृत्तिकपर, द्वितीय कन्या लोकनिक व्यक्तिगत जीवनपर तथा तृतीय मैथिली लेखक समुदायपर।

जतय स्वाधीनतापूर्व मैथिली उपन्यासक संख्याअत्यल्प छल ततय स्वाधीनोत्तर युगक प्रवेश एहि विधामे नव स्पन्दन आनि देलक आऽ एकर सहस्रमुखी धारा प्रवाहित भेल आऽ युग संधिक उत्कर्ष बेलामे अनेक उपन्यासकार प्रादुर्भूत भऽ अपन प्रतिभाक किरण बिखेरि कऽ एकरा समुन्नतशील बनौलनि तथा संदर्भमे बना रहल छथि। उपन्यास-लेखनक क्षेत्रमे एक कीर्तिमान स्थापित कयलनि विलक्षण प्रतिभासम्पन्न उपन्यासकार ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (१९१८-१९८६) जे क्वालिटी आऽ क्वान्टिटीक दृष्टिएँ डेढ़ दर्जन उपन्यास एहि साहित्यकेँ भेंट देलनि जे अद्यापि कोनो उपन्यासकार द्वारा सम्भव नहि भऽ सकल अछि। हिनक एक नवतम् उपन्यास “सोना रूपा हीरा” प्रकाशनक पथपर अछि।
दुइ शताब्दीक संधि बेलामे उपन्यास साहित्यमे नव-नव मार्ग प्रशस्त भेल अछि, जाहिसँ ई एक सशक्त विधाक रूपमे चर्चित-अर्चित भऽ रहल अछि। प्रथम विसशव-युद्धक पश्चात् कांग्रेसक नेतृत्वमे राजनीतिक चेतनाक जागरण भेल संगहि सामाजिक आऽ आर्थिक आन्दोलनक जन्म भेल। उपन्यासकार जमीन्दारीक अत्याचार, दरिद्र किसान, अंग्रेज शासक नीति, नागरिक जीवन, नारी समस्या, समाजमे व्याप्त कुसंस्कार, विवाह प्रथा, शिक्षा आदि अनेक विषयकेँ लऽ कए उपन्यासक निर्माण कयलनि। मिथिलांचलक ग्रामीण जीवनक चित्रणक प्रमुखता आरम्भिक कालमे अवश्य रहलैक, किन्तु आब ओहिमे शहरी मध्यवर्गक मजदूरक जीवनक आर्थिक, राजनैतिक आऽ मनोवैज्ञानिक समस्याक प्रमुखता भऽ गेल अछि। एहि दृष्टिएँ उपन्यास क्षेत्रमे अनेक प्रयोग भेल अछि तथा पाश्चात्य विचरक प्रभाव साहित्यपर स्पष्ट लक्षित भऽ रहल अछि। अधुनातन समयमे मैथिलीक अनेक आधुनिक जीवनक विसंगति, अनेक जटिल राजनीतिक, आर्थिक आऽ मनोवैज्ञानिक यथार्थताकेँ लऽ कए अपन कृतिक निर्माण कऽ रहक छथि आऽ शैली आऽ व्यक्तित्वक दृष्टिसँ नवीनता उद्भासित कऽ रहल छथि।
(अनुवर्तते)
१. हरिमोहन झा समग्र २.वृद्ध-बुजुर्ग समस्यापर लेख-जितमोहन झा

स्व. श्री हरिमोहन झा (१९०८-१९८४)
जन्म १८ सितम्बर १९०८ ई. ग्राम+पो.- कुमर बाजितपुर , जिला- वैशाली, बिहार, भारत। पिता- स्वर्गीय पं. जनार्दन झा “जनसीदन” मैथिलीक अतिरिक्त हिन्दीक लब्धप्रतिष्ठ द्विवेदीयुगीन कवि-साहित्यकार। शिक्षा- दर्शनशास्त्रमे एम.ए.- १९३२, बिहार-उड़ीसामे सर्वोच्च स्थान लेल स्वर्णपदक प्राप्त। सन् १९३३ सँ बी.एन.कॉलेज पटनामे व्याख्याता, पटना कॉलेजमे १९४८ ई.सँ प्राध्यापक, सन् १९५३ सँ पटना विश्वविद्यालयमे प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष आऽ सन् १९७० सँ १९७५ धरि यू.जी.सी. रिसर्च प्रोफेसर रहलाह। हिनकर मैथिली कृति १९३३ मे “कन्यादान” (उपन्यास), १९४३ मे “द्विरागमन”(उपन्यास), १९४५ मे “प्रणम्य देवता” (कथा-संग्रह), १९४९ मे “रंगशाला”(कथा-संग्रह), १९६० मे “चर्चरी”(कथा-संग्रह) आऽ १९४८ ई. मे “खट्टर ककाक तरंग” (व्यंग्य) अछि। “एकादशी” (कथा-संग्रह)क दोसर संस्करण १९८७ ए. मे आयल जाहिमे ग्रेजुअट पुतोहुक बदलाने “द्वादश निदान” सम्मिलित कएल गेल जे पहिने “मिथिला मिहिर”मे छपल छल मुदा पहिलुका कोनो संग्रहमे नहि आएल छल।श्री रमानथ झाक अनुरोधपर लिखल गेल “बाबाक संस्कार” सेहो एहि संग्रहमे अछि। आऽ हुनकर “खट्टर काका” हिन्दीमे सेहो १९७१ ई. मे पुस्तकाकार आएल। एकर अतिरिक्त हिनकक स्फुट प्रकाशित-लिखित पद्यक संग्रक “हरिमोहन झा रचनावली खण्ड ४ (कविता)” एहि नामसँ १९९९ ई.मे छपल आऽ हिनकर आत्मचरित “जीवन-यात्रा” १९८४ ई.मे छपल। हरिमोहन बाबूक “जीवन यात्रा” एकमात्र पोथी छल जे मैथिली अकादमी द्वारा प्रकाशित भेल छल आऽ एहि ग्रंथपर हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कार १९८५ ई. मे मृत्योपरान्त देल गेलन्हि। साहित्य अकादमीसँ १९९९ ई. मे “बीछल कथा” नामसँ श्री राजमोहन झा आऽ श्री सुभाष चन्द्र यादव द्वारा चयनित हिनकर कथा सभक संग्रह प्रकाशित कएल गेल, एहि संग्रहमे किछु कथा एहनो अछि जे हिनकर एखन धरिक कोनो पुरान संग्रहमे सम्मिलित नहि छल। हिनकर अनेक रचना हिन्दी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तेलुगु आदि भाषामे अनुवादित भेल। हिन्दीमे “न्याय दर्षन”, “वैशेषिक दर्शन”, “तर्कशास्त्र”(निगमन), दत्त-चटर्जीक “भारतीय दर्शनक” अंग्रेजीसँ हिन्दी अनुवादक संग हिनकर सम्पादित “दार्शनिक विवेचनाएँ” आदि ग्रन्थ प्रकाशित अछि। अंग्रेजीमे हिनकर शोध ग्रंथ अछि- “ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी”।
प्राचीन युगमे विद्यापति मैथिली काव्यकेँ उत्कर्षक जाहि उच्च शिखरपर आसीन कएलनि, हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली गद्यकेँ ताहि स्थानपर पहुँचा देलनि। हास्य व्यंग्यपूर्णशैलीमे सामाजिक-धार्मिक रूढ़ि, अंधविश्वास आऽ पाखण्डपर चोट हिनकर लेखनक अन्यतम वैशिष्ट्य रहलनि। मैथिलीमे आइयो सर्वाधिक कीनल आऽ पढ़ल जायबला पीसभ हिनकहि छनि।
हरिमोहन झा समग्र

हरिमोहन झा जीक समग्र रचनाक एक बेर सिंहावलोकन कएल जाए।
कथा-एकांकी
१. १.अयाची मिश्र (एकाङ्की) २. मंडन मिश्र (एकाङ्की) ३. महाराज विजय (एकाङ्की)४. बौआक दाम (एकाङ्की)५.रेलक झगड़ा (एकाङ्की) ६. संगठनक समस्या- पत्र शैली ७. “रसमयी”क ग्राहक – पत्र-शैली ८.पाँच पत्र –पत्र-शैली ९. दलानपरक गप्प१०.घूरपरक गप्प११.पोखड़िपरक गप्प १२. चौपाड़िपरक गप्प १३.धर्मशास्त्राचार्य १४.ज्योतिषाचार्य १५.पंडितजी
१६.कविजी १७.परिवर्तन १८.युगक धर्म १९.महारानीक रहस्य २०.सात रंगक देवी २१.नौ लाखक गप्प २२.रंगशाला २३.अँचारक पातिल २४.चिकित्साक चक्र २५.रेशमी दोलाइ २६.धोखा २७.प्रेसक लीला २८.देवीजीक संस्कार २९.एहि बाटे अबै छथि सुरसरि धार ३०. कन्याक जीवन ३१. रेलक अनुभव ३२. ग्रामसेविका ३३. मर्यादाक भंग ३४. तिरहुताम ३५.टोटमा ३६.तीर्थयात्रा ३७.अलंकार-शिक्षा ३८.बाबाक संस्कार ३९.द्वादश निदान ४०.ग्रेजुएट पुतोहु ४१.ब्रह्माक शाप ४२.आदर्श भोजन ४३.सासुरक चिन्ह ४४.कालीबाड़ीक चोर ४५.कालाजारक उपचार४६.विनिमय ४७.दरोगाजीक मोंछ ४८.शास्त्रार्थ ४९.विकट पाहुन ५०.आदर्श कुटुम्ब ५१.साझी आश्रम ५२.घरजमाय५३.भदेशक नमूना ५४.बीमाक एजेन्ट ५५.अंगरेजिया बाबू
पद्य
१.सनातनी बाबा ओ कलियुगी सुधारक २.कन्याक नीलामी डाक ३.मिथिलाक मिहिर सँ ४.ढाला झा
५.टी. पार्टी ६.बुचकुन झा ७.पंडित लोकनि सँ ८.निरसन मामा ९.आगि १०.अङरेजिया लड़कीक समदाउनि
११.गरीबनीक बारहमासा १२.श्री यात्रीजीक प्रति : मैथिलीक उक्ति १३.सौराठ १४.अलगी १५.अशोक-वाटिकामे
१६.पटना-स्तोत्र १७.श्रद्धेय अमरनाथ झाक प्रति श्रद्धांजलि
१८.हिन्दी ओ मैथिली १९.बुचकुन बाबाक चिट्ठी
२०.जगमग-जगमग दीप जराऊ २१.कलकत्ता गेला उत्तर
२२.अकाल २३.कलकत्ता हमरा बड़ पसन्द २४.सलगमक खण्ड २५.बूढ़ानाथ २६.नवकी पीढ़ीसँ २७.पंडित ओ मेम
२८.पंडित-विलाप २९.गंगाक घाटपर ३०.समयक चक्र
३१.महगी-माहात्म्य ३२.रस-निमन्त्रण ३३.अकविताक प्रति : कविताक उक्ति ३४.हम पाहुन छी ३५.अनागत प्रेयसीसँ
३६.मत्स्य-तीर्थ ३७.मिष्टान्न ३८.हे राजकमल ३९.घटक सौं ४०.पंडितजी सौं ४१.कनियाँक समस्या ४२.मुक्तक
४३.गजल ४४.मातृभूमि ४५.नारी-वन्दना ४६.हे दुलही के माय ४७.मात्रूभूमि वन्दना ४८.चन्द्रमाक मृत्यु ४९.मिथिला वन्दना ५०.कवि हे! आब कोदारि धरु ५१.महगी ५२.नव पराती ५३.चालिस आ चौहत्तरि
५४.प्रयोगवादी कविता ५५.स्व. ललित नारायण मिश्रक स्मृतिमे ५६.उद्गार ५७.अन्तिम सत्य ५८.मधुर भाषा मैथिली छी ५९.छगुन्ता ६०.विद्यापति पर्व महान हमर
६१.आठ संकल्प ६२.घूटर काका ६३.वनगाम-महिषी स्मृति
६४.मैथिली-वन्दना ६५.हे मातृभूमि केर माटि
६६.कहू की औ बाबू ६७.कश्मीर हमर थीक ६८.मंगल प्रभात ६९.बुचकुन बाबाक स्वप्न ७०.जय विद्यापति
७१.शुभांशसा ७२.पारिचारिका स्तोत्र ७३.मनचन बाबा
७४.एहि बेरक फगुआ ७५.परतारु जुनि ७६.हे मजूर! कष्ट लखि अहाँक (कविजी: प्रणम्य देवता) ७७.हे हे मजूर! (कविजी: प्रणम्य देवता) ७८.अबि! अनन्त कोमल करुणे! (कविजी: प्रणम्य देवता) ७९.हे वीर! हलायुध धर खड्ग(कविजी: प्रणम्य देवता) ८०.अयि! प्रचंड चंडिके! (कविजी: प्रणम्य देवता) ८१.झाँसीक रानी(कविजी: प्रणम्य देवता)
८२.हे प्रगतिशील महिला समाज(कविजी: प्रणम्य देवता)
८३.प्रिये! हम जाइत छी ओहि पार(कविजी: प्रणम्य देवता)
८४.धन्य-धन्य मातृभूमि (अयाची मिश्र : चर्चरी)
८५.धन्य ई मिथिलेशक दरबार(अयाची मिश्र : चर्चरी)
८६.हे डीह! अमर कीर्तिक निधान! (अयाची मिश्र : चर्चरी)
८७.हरिहर जन्म किएक लेल (माछक महत्व : खट्टर ककाक तरंग)
८८.केहन भेल अन्हेर(खट्टर ककाक टटका गप्प : खट्टर ककाक तरंग)
खट्टर ककाक तरंग (कथा-व्यंग्य)
कन्यादान (उपन्यास)
द्विरागमन (उपन्यास)
जीवनयात्रा (आत्मकथा)
(अनुवर्तते)

2.जितमोहन झा- वृद्ध-बुजुर्गक सामाजिक स्थितिपर
थम्हने राखू ई डोरी (वृद्ध-बुजुर्ग समस्यापर लेख)
टूटल ऐनक (चश्मा), फाटल-पुरान किताब आर कपड़ा की इएह अछि बुजुर्गक पहचान? काल्हि तक हमर आँगुर थाम्हि कए हमरा चलब सिखाबएबला हमर माँ- बाबूजी आइ अपन लरखड़ाबैत कदमसँ बेर-बेर खसि कए सम्हरि कए चलब सीखि रहल छथि !
बुढापा जिनगीक एक एहन कटु सत्य अछि जकरा ज़हरक घूँट बूझि कए आजुक बुजुर्ग पीबि रहल छथि! अपनेक अनदेखीसँ परेशान बुजुर्ग आइ तिरस्कृत आऽ अपमानित भए जीबाक लेल विवश छथि ! घरसँ वृधाश्रमक दिस पलायन करैत बुजुर्ग जिंदगीक एक कड़वा सत्यकेँ उजागर करैत छथि! कहल गेल अछि
"जे माँ हमरा जन्म देलखिन हुनकर दिल (आत्मा) नञि दुखेबाक चाही ........”
मुदा ई बात आइ खाली खिस्से-पिहानी धरि सीमित अछि! छोट बच्चाक डरलापर तुरंत झटसँ अपन हृदयसँ लगाबएबला, अपन आँचलसँ हुनकर आँखि पोछए वाला, स्वयं भूखल-प्यासल रहि कए अपन बच्चाकेँ पेट पालए वाला बुजुर्ग आइ अपने घरमे अपन पहचान खोजैत नज़रि अबैत छथि!
एक निरीक्षणसँ पता चलल की अपन देशमे १२ व्यस्कक पाछाँ एक बुजुर्ग छथि! जाहिमे ७ करोड़क उम्र ६० सालसँ बेशी छनि! हुनकामे सँ २.७ करोड़क अनुपातमे बुजुर्ग कुनू ने कुनू बीमारीसँ ग्रसित छथि!
बुजुर्ग लोकनिक ई अनदेखी युवा वर्गक भविष्यकेँ कतेक अंधकारमय बनेतनि, ई हम सभ निक जेकाँ जनैत छी ! कनी सोचू जे काल्हि तक जिनकर एक आवाज़ पर घरक सदस्य काँपि उठैत रहथि ! आइ हुनका "पागल" कहि कए संबोधित कएल जाइत छनि! आब हुनकर आवाज़ घरक सदस्य तँ दूर वरन सून दिवार, खिड़की आर दरवाजासँ टकरा कए स्वयं हुनके तक पहुँचैत छनि !
हमर कहबाक मतलब ई जे हमरा सभ केँ किछु एहन करबाक चाही जाहिसँ वर्तमान आकि भविष्य सुधरए नञि की ऐहेन करी जाहिसँ आगा चलिकए हमरा सभकेँ अपन भविष्यसँ मुँह नुकाबए पड़ए! बुजुर्ग माँ-बाबूजी कुनू कूड़ा-करकट नञि बल्कि हमर घर-आँगनक शोभा छथि! जिनका हमर प्यार, देखभाल आकि अपनापनक जरुरत छनि, ओतय आँगनक घन गाछ (पेड़) छथि, हमसभ ओई गाछक टहनी -पत्ता छी, जखन ओऽ गाछ मजबूत रहत तखने हम सब हरल-भरल रहब .........
बुजुर्ग माँ-बाबूजी रिश्ताक मजबूत डोरी छथि, हुनका थम्हने रहू। .......
सहस्रबाढ़नि
-गजेन्द्र ठाकुर

शोभाबाबू कहलन्हि- “ओऽ बचियो जौँ जीबति रहितए तँ सम्बन्ध जुड़ल रहितए”।
मुदा नन्द जेना कतहु दोसर ठाम चलि गेल छलाह। अपन ओहि विषयपर, जे हुनका प्रितगर छलन्हि बच्चेसँ। ई जे पारिवारिक जंजाल, हाटसँ तरकारी आनब, बच्चाक परीक्षाक परिणामक चिन्ता करब, ई सभ अपन अग्रजक कहलासँ कुमोनसँ कए रहल रहथि।

गंगा ब्रिजक उद्घाटन भए गेल आऽ दुनू पुत्र वर्गमे प्रथम नहि केलखिन्ह। फेर पुत्री सेहो विज्ञान लेने छलीह, अन्तर स्नातकमे ताहूमे जीवविज्ञान। मुदा शनैः-शनैः छमाही आएल, वार्षिक परीक्षा आएल मुदा सभकेँ अंक तँ नीक आबन्हि, मुदा प्रथम स्थान नहि प्राप्त होइत छलन्हि। गंगा-ब्रिज आऽ परीक्षाक अंकमे तँ कोनो परस्पर संबंध नहि छल, मुदा नन्दक लेल माता-पिताक कर्मसँ पुत्र-पुत्रीक आगाँ बढ़बाक सम्बन्ध छल। गंगा-पुल निर्माणमे जे भ्रष्टाचार छल ओकर विरुद्ध अभियानमे हुनकर विफलता आऽ अग्रजक कहलापर पारिवारिक उत्तरादायित्व पूरा करबाक प्रयास एकर कारण छल।

एहि बीच एक बेर बच्चा सभक काका आऽ नन्दक अग्रज पटना डेरापर अयलाह। नन्द गोर लागि कए कहलन्हि-
“गंगा पुल देने आयल छी आकि स्टीमरसँ”।
“आयल तँ छी स्टीमरसँ, बुझले नहि छल ए जे गंगा पुलक उद्घाटन भए गेल छैक। से घुरब तँ पुलक रस्ते जाएब। सुनैत छियैक जे नबका-नबका डीलक्स कोच सभ ढेरक-ढेर खुजल छैक”।

“नहि कोनो जरूरी नहि अछि पुलसँ जएबाक। बड्ड गड़बरी भेल छैक एकर निर्माणमे। कहियो ढसि जएतैक”।

अग्रजकेँ किछु बुझि नहि पड़लन्हि जे की भेल अछि नन्दकेँ।

“मोन ठीक रहैत छह ने। दमा बेशी तंग तँ नहि कए रहल छह”। दुनू भाँए दमाक रोगी छलाह।
“नञि से सभ ठीक अछि। मुदा अहाँक कहलासँ सभटा पुरान गप बिसरबाक चेष्टा कएलहुँ। ओहि पुल निर्माणमे जे सभ भेल, मजदूर सभ पायापरसँ घुरछाही खाऽ कए खसैत देखैत रहलहुँ, सैकड़ामे मजदूरसभ मरि गेल। आऽ भ्रष्टाचारमे घर भरलन्हि अभियन्ता लोकनि। आब जखन पुलक उद्घाटन भेल तखन मात्र १७ टा मजदूरक नाम शिलापर लिखि कए टाँगि देलन्हि आऽ सभ अभियन्ताकेँ पुरस्कारक घोषणा भए गेल। कहिया ई पुल टूटि कए खसि पड़त तकर कोनो ठेकान नहि। हम संघर्ष शुरू कएलहुँ तँ दरमाहा बन्द कराऽ दञि गेल। सभ स्थानांतरणक बाद दरमाहा बन्द भए जाइत अछि आऽ परिवारकेँ गाममे छोड़ए पड़ैत अछि। अहाँक कहलासँ संघर्षकेँ छोड़ि एहि स्थानांतरणमे अयलहुँ। बिसरए चाहलहुँ सभटा। खसैत लहास, कनैत हुनकर सभक परिवार। सपनामे अबैत रहल ई सभ। आब देखू तीनू बच्चाक परीक्षा परिणाम, सभदिन प्रथम करैत अबैत रहथि, आब की भए गेलन्हि। हम जे संघर्ष बीचेमे छोड़लहुँ तकर छी ई परिणाम”। नन्द हबोढ़कार भए कानए लगलाह।

“धुर बताह। जे भ्रष्टाचार कएलन्हि से ने जानताह। जे मजदूर लोकनिक अधिकार मारलन्हि तिनका ने फल भेटतन्हि। अहाँ तँ अपना भरिसक संघर्ष करबे कएलहुँ। आऽ अपन पारिवारिक जीवन के नञि चलबैत अछि। दोसराक गलतीक द्वारे अपन बच्चासभकेँ बिलटऽ देबैक। एहिमे एकर सभक कोन कसूर छैक?”

फेर दुनू भाएँक गाम घरक गप-शप शुरू भेलन्हि। नन्द बजैत-बजैत कतहु बीचमे गुम भए जाइत छलाह। अग्रजकेँ बुझल छलन्हि जे ई बिहारि आब नहि थम्हत। बोल-भरोस दैत रहलाह, मुदा बच्चेसँ देखने छथि नन्दक जिदपना, नहि जानि आब की करत। भाबहुसँ सोझाँ-सोँझी गप नहि होइत छलन्हि। मुदा अपरोक्ष सम्बोधन कए कहलन्हि-
“कनियाँ आब अहींपर अछि। बच्चा सभपर ध्यान राखब”।

नन्द अग्रजकें संग लऽ जाऽ कए महेन्द्रूघाटमे स्टीमरपर छोड़ि अएलाह, कारण हुनका डर छलन्हि जे कतहु ई बीचेमे बससँ पुलक रस्ते नहि बिदा भए जाथि आऽ पुल तँ आइ नहि तँ काल्हि धसबे करत।

तकर बाद ज्योतिष कुण्डली इत्यादिक खोज-बीन प्रारम्भ केलन्हि नन्द। भिन्न-भिन्न तरहक पाथर सभ, रत्न सभ बच्चा सभक आऽ अपन आँगुरमे पहिरए लगलाह। एक बेर हनुमान चलीसा कीनि कए अनलन्हि तँ जतेक गोटे घरमे छल सभक लेल एक-एकटा। पाँच-दस टा फाजिले घरमे रहैत छल, लोक सभक लेल। जे बाहरसँ आबथि हुनका एक-एक टा हनुमान चलीसा पकड़ा देल जाइत छलन्हि। एहि धोखा-धोखीमे एक दिन नन्दकेँ एकटा ठक तान्त्रिकसँ भेँट भए गेलन्हि। नन्दक मनोविज्ञानकेँ ओऽ तेनाकेँ पकड़लक जे नन्द ओकरा भगवानक दूत बुझए लगलाह। ओऽ सभ वस्तुक समाधान रखने छल।
(अनुवर्तते)
२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
तेसर दिन :
२७ दिसम्बर १९९०, वृहस्पतिवार :
आइ जखन उठलहुँ तँ पॉंच बाजल छल। आधा घंटाक अन्दर सभ जागि जएता तैँ हमसभ किछु सहेली सभ मिलिकए जल्दीसॅं नित्यक्रियासॅं निवृत्त भऽ गेलहुँ, लाइन लागऽ सँ बचए लेल। नास्ताक बाद सभ करीब साढ़े सात बजे खिदिरपुर डॉक दिस विदा भेलहुँ। मार्गमे हाइकोर्ट, नेताजी स्टेडियम, आकाशवाणी भवन, इण्डियन गार्डेन, मोहन बगान, मलेटरी छावनी फोर्ट विलियम (जतए १९७१ क लड़ाईमे भारतीय सेना द्वारा नष्ट कएल पैटण्ट टैंक राखल छैक) , हॉर्स रेस कोड देखैत खिदिरपुर डॉक पहुचलहुँ। ओतए बहुत तरहक व्यापारिक जहाज सभ छलैक। जेना कि जापान जाए लेल कैमेलवर्ट लाइन्स, ब्लू ओशियन, अकबर इत्यादि। दू टा फोल्डिंग ब्रिज जे ऊँच जहाजकेँ रस्ता दैक लेल बीचसँ अलग भऽ दुनु कातमे लम्बवत ठाढ़ भऽ जाइत छल। एक ब्रिजक नाम बास्कल छलैक आर दोसरकेँ सभ मूविंग ब्रिज कहैत छल।
डॉकक बाद हमसभ बिरला औद्यौगिक एवम्‌ तकनीकी संग्रहालय (Birla Industrial and Technical Museum) पहुचलहुँ। एतय सभसँ पहिने हम सभ बोन्शाई गार्डेन पहुचलहुँ। एतय विशालकाय वृक्षक प्रजातिकेँ विशेष प्रक्रियासँ ओकरा छोट आकार दऽ गमलामे जीवित राखल गेल छलैक। ४५ वर्षक उम्र वला बड़क गाछ राखल गेल छलैक, एक गमलामे। बाहरक बगानक बाद हमसभ अन्दर प्रवेश केलहुँ। आइस्टिन न्यूटन गैलिलियो आदि वैज्ञानिकक प्रतिमा विराजित छल। पहिल कमरामे डायनेमो छलैक, जाहिसँ ज्ञात होइत अछि, जे मनुष चालन शक्तिकेँ प्रथम स्त्रोतक रूपमे पशु जल एवम्‌ वायुकेँ शक्तिक कोना प्रयोग करैत छल। अन्य कमरा सभमे अनेकानेक मॉडल राखल भेटल। आइ ई यात्रा वस्तुत: शैक्षणिक यात्रा लागि रहल छलै। एकर बाद भोजनक लेल कनी विराम लेल गेल।
हमर सबहक अगिला लक्ष्य छल नेहरू चिल्ड्रन्स म्यूज़ियम। ई तीन मंजिला भवन छल। सभसँ ऊपरमे सम्पूर्ण रामायणक ६१ प्रसंगक क्रमिक रूपसँ पुतला द्वारा प्रदर्शित कएल गेल रहैक। शेषमे अलग-अलग देशक प्रसिद्ध गुड़िया सभ राखल गेल रहैक। गुड़िया सभ देखि अपन बचपन मोन पड़ैत छल जखन कनिया-पुतरा खेलाइत छलहुँ। बचपन तँ एखनो नहि गेल छल कारण दिन भरि व्यस्ततामे भने माता पिताकेँ बिसरि जाइत छलहुँ लेकिन लॉज पहुँचलापर घरक मोन जरूर पड़ै-ए। ओतएसँ लौटि कए फेर सभ किछु यथावत भोजन, अगिला दिनक तैयारी, दैनिकी आऽ फेर विश्राम।
६. पद्य
विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी,
श्री गंगेश गुंजन ज्योति झा चौधरी
श्री पंकज पराशर,
महाकाव्य महाभारत (आगाँ) श्री जितमोहन -भक्ति-गीत
१.श्री उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ .२.विनीत उत्पल३.विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (१८७८-१९५२)


१.श्री उदय नारायण सिंह ‘नचिकेता’ जन्म-१९५१ ई. कलकत्तामे। १९६६ मे १५ वर्षक उम्रमे पहिल काव्य संग्रह ‘कवयो वदन्ति’- १९७१ ‘अमृतस्य पुत्राः’ (कविता संकलन) आऽ ‘नायकक नाम जीवन’ (नाटक)- १९७४ मे ‘एक छल राजा’/ ’नाटकक लेल’ (नाटक)- १९७६-७७ ‘प्रत्यावर्त्तन’/ ’रामलीला’(नाटक)- १९७८मे जनक आऽ अन्य एकांकी- १९८१ ‘अनुत्तरण’(कविता-संकलन)- १९८८ ‘प्रियंवदा’ (नाटिका)- १९९७-‘रवीन्द्रनाथक बाल-साहित्य’(अनुवाद)। १९९८ ‘अनुकृति’- आधुनिक मैथिली कविताक बंगलामे अनुवाद- संगहि बंगलामे दूटा कविता संकलन- १९९९ ‘अश्रु ओ परिहास’- २००२ ‘खाम खेयाली’- २००६मे ‘मध्यमपुरुष एकवचन’(कविता संग्रह। भाषा-विज्ञानक क्षेत्रमे दसटा पोथी आऽ दू सयसँ बेशी शोध-पत्र प्रकाशित। १४ टा पी.एच.डी. आऽ २९ टा एम.फिल. शोध-कर्मक दिशा निर्देश। बड़ौदा, सूरत, दिल्ली आऽ हैदराबाद वि.वि.मे अध्यापन। संप्रति निदेशक, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर।
अन्तर्द्वन्द्व

ज्वालामुखी केर तरजुमा करै कहै छी
तऽ सोचमे पड़ि जाइ छी...
जे कोना-कोनाकेँ जोड़ब छिन्न-भिन्न शब्दकेँ
टुकड़ी-टुकड़ी भेल ध्वनि आ अर्थकेँ
अहाँक नायिकाकेँ बना देलहुँ अछि
अपन उपन्यासक मुख्य पात्र!
ठीक जेना हमर खूँखार खूनी पात्रकेँ
अहाँ बनौने छलहुँ अपन हीरो!
नाग कन्याकेँ बजा कए लऽ अनलियनि
हुनकासँ बियाह रचबा लय
ता कि अगिला प्रजन्म संग जुड़ि जाय
पाताल आ पृथ्वीक सबटा भीषणता
आब अहाँ कहू ई सबटा गप जे कहलहुँ
से कोना-कोना कए ज्वालामुखीकेँ
अपन पेट आ हृदयक तर दबा कए
शब्दमे उगरैत रही सबटा लावा
कथा-पिहानी अन्य पृथ्वी केर
आ जोड़ि अपनाकेँ क्रोधित विश्वकेर संग
तनावकेँ लऽ आनी अपन कलम केर सियाही बना कए
आ प्रयास करैत रही ता कि तरजुमा कऽ सकी
ज्वाला केर, दहन केर, “आह” केर
आ खोज कऽ सकी ओहि मुखकेँ
जे हमरहुँ माटि पर उगि सकै छल
मुदा कथा बनि कए जागि उठल छथि अनकर “जुबान” मे।
(उदयपुर, १४.०७.२००८)


२.विनीत उत्पल (१९७८- )। आनंदपुरा, मधेपुरा। प्रारंभिक शिक्षासँ इंटर धरि मुंगेर जिला अंतर्गत रणगांव आs तारापुरमे। तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालयसँ गणितमे बीएससी (आनर्स)। गुरू जम्भेश्वर विश्वविद्यालयसँ जनसंचारमे मास्टर डिग्री। भारतीय विद्या भवन, नई दिल्लीसँ अंगरेजी पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्लीसँ जनसंचार आऽ रचनात्मक लेखनमे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन, जामिया मिलिया इस्लामियाक पहिल बैचक छात्र भs सर्टिफिकेट प्राप्त। भारतीय विद्या भवनक फ्रेंच कोर्सक छात्र।
आकाशवाणी भागलपुरसँ कविता पाठ, परिचर्चा आदि प्रसारित। देशक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सभमे विभिन्न विषयपर स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता कैरियर- दैनिक भास्कर, इंदौर, रायपुर, दिल्ली प्रेस, दैनिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली, फरीदाबाद, अकिंचन भारत, आगरा, देशबंधु, दिल्ली मे। एखन राष्ट्रीय सहारा, नोएडा मे वरिष्ट उपसंपादक .।
ककर गलती
कतेक दिवससँ
सोचैत रही
जे
गाम जाएब
परञ्च
दिल्लीक उथल-धक्कासँ
मुक्त होएब तखन नञि।

पिछला दशहरामे
जखन गाम पहुँचलहुँ
तs आड़ि पकड़ि टोल
घुसैत रही।

ओहि ब्रह्मबाबाक ठामपर
एकटा स्त्रिगन बैसल रहथि
की कहू, धक्कसँ रहि गेलहुँ
कंठक थूक कंठहिमे सूखि गेल

स्त्रिगन कोनो भूत नहि छलीह
ओऽ कोनो डायन-जोगिन नहि रहथि
ओऽ गौरी दाई छलीह
बियाहक ठामे साल
विधवा भs गेलीह

ताहि दिनसँ ओऽ नवयुवती
उजरा नुआ पहिरैत छथि
सीथमे चुटकी भरि सेनूर नहि
गुमसुम रहैत समय काटि रहल छथि।


तs हुनका देखि कs
हरदम सोचैत छी
की यैह मिथिला थिक
यैह हमर संस्कृति थिक
जे मन केँ मारि कए एकटा
नवयुवती जीवन काटि रहल अछि
ओकरा कियो देखनिहार नहि छैक

ओ नवयुवतीक मांग
जुआनीमे उजड़ि गेल
ताहि दिनसँ हुनकापर
की बितैत होयत
पति बीमारीसँ मरि गेलखिन

एकरामे गौरी दायक की दोष
दोष तs हुनक पिताक छनि
जिनका वरक बीमारीक जानकारी नहि छल
मुदा ओहो की करताह
घटक बनि कs गेल रहथि
द्वितीकार जे बतोलथि
सैह ने सत्य मानितथि

ई गप सच छल
जे गौरी दाय
अपन पिताक गलतीक
सजा भोगि रहल छथि
भाग्यकेँ कोसि रहल छथि

आब की कही
देश-परदेशमे तs
वर- कनिया बदलि जाइत अछि
जेना हर छः मास पर
बदलैत छी हम अपन अंगा

मुदा, ई गौरी दाय
बीसेक साल बादो
नहि बदललीह
ओहि दिनसँ
पतिक वियोगमे
दिन-राति घुटैत छथि

कियो कतहुसँ खुशियोमे
हुनका नोत नहि दैत छथि
कियो अपन नवजातकेँ
खेलाबए ले
नहि दैत छथि

की करती गौरी दाय
कियो हुनका देवी कहैत अछि
तऽ डायन-जोगिन कहबासँ
लोक-वेद पाछुओ नहि रहैत छथि।

मनुखो नहि भेल
ओई दिन जखन
भिनसरे काल
सूर्य उगयसँ पहिने
जखन आफ़िससँ डेरा पहुचलहुँ
डेड़िया पर एकाएक
डेग अटकि गेल

सोचय लगलहुँ
देखुत्, सांझ काल
जाइत छी आफ़िस
भोर-भिनसरे डेरा घुरैत छी

ई देशक राजधानी छी
मीडियामे काज करैत छी
मुदा,
रातिक घरमे नहि रहैत छी
जखन कि चिड़ै-चुनमुन सेहो
सांझ पड़ैत घर लौटैत अछि

एहि ठाम अपन बाबा सेहो
मोन पडैत छथि
बाबा कतेक तमसाइत रहथि
जखन हम अनहार
भेलापर घर नहि लौटैत रही

कहथिन ई बेहुदा भs गेल
साँझक बेला बीतलाक
बादो घर नहि लौटैत अछि
कोना सुधरब अहाँ
आई, पापा स शिकाइत हम करब

ओहि छुतपनमे हम
बाबा कs मनाबी
हुनका पैर जाँती आऽ
शपथ खाइ,
कही बाबा काल्हिसँ जल्द आयब
कतैक ताम-झाम करैत रहि आऽ
किएक कि पापाक थापड़्क
नामसँ कांपि जाइत छल
हमर रौंआ

मुदा, आब जखन बाबा नहि छथि
पापा किछु नहि कहैत छथि
हम आइ अपन पैरपर ठाढ़ छी
चाहियो के सांझ खन घर नहि
लौटि सकैत छी

सोचैत छी,
स्वर्गमे बाबा
बैसल हेता आओर सोचैत हेता
ई बेहुदा
हमर गप नहिए मानलक
साँझ खन चिडिया-चुनमुन सेहो घर
लौटि अबैत अछि
मुदा ई मनुखो भऽ मनुखो नहि भेल.
की फ़र्क पड़ैत अछि

ओहि दिन
संपूर्ण वैशालीमे
श्मशान सनक
शांति छल

जहि दिनक
आम्रपालीक तथागत
कलयुगक यथार्थ
बतौलखिन आs कहलखिन

नहि चाहि केकड़ो
तँ की फ़र्क पड़ैत अछि
चाहि केकड़ो
तs की फ़र्क पड़ैत अछि

कहब
एक बेर धोखा देलहुँ
कहब
एक बेरि धोखा खएलहुँ।


३.. विस्मृत कवि स्व. रामजी चौधरी (1878-1952)पर शोध-लेख विदेहक पहिल अँकमे ई-प्रकाशित भेल छल।तकर बाद हुनकर पुत्र श्री दुर्गानन्द चौधरी, ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी कविजीक अप्रकाशित पाण्डुलिपि विदेह कार्यालयकेँ डाकसँ विदेहमे प्रकाशनार्थ पठओलन्हि अछि। ई गोट-पचासेक पद्य विदेहमे एहि अंकसँ धारावाहिक रूपेँ ई-प्रकाशित भ’ रहल अछि।
विस्मृत कवि- पं. रामजी चौधरी(1878-1952) जन्म स्थान- ग्राम-रुद्रपुर,थाना-अंधरा-ठाढ़ी,जिला-मधुबनी. मूल-पगुल्बार राजे गोत्र-शाण्डिल्य ।
जेना शंकरदेव असामीक बदला मैथिलीमे रचना रचलन्हि, तहिना कवि रामजी चौधरी मैथिलीक अतिरिक्त्त ब्रजबुलीमे सेहो रचना रचलन्हि।कवि रामजीक सभ पद्यमे रागक वर्ण अछि, ओहिना जेना विद्यापतिक नेपालसँ प्राप्त पदावलीमे अछि, ई प्रभाव हुंकर बाबा जे गबैय्या छलाहसँ प्रेरित बुझना जाइत अछि।मिथिलाक लोक पंच्देवोपासक छथि मुदा शिवालय सभ गाममे भेटि जायत, से रामजी चौधरी महेश्वानी लिखलन्हि आ’ चैत मासक हेतु ठुमरी आ’ भोरक भजन (पराती/ प्रभाती) सेहो। जाहि राग सभक वर्णन हुनकर कृतिमे अबैत अछि से अछि:
1. राग रेखता 2 लावणी 3. राग झपताला 4.राग ध्रुपद 5. राग संगीत 6. राग देश 7. राग गौरी 8.तिरहुत 9. भजन विनय 10. भजन भैरवी 11.भजन गजल 12. होली 13.राग श्याम कल्याण 14.कविता 15. डम्फक होली 16.राग कागू काफी 17. राग विहाग 18.गजलक ठुमरी 19. राग पावस चौमासा 20. भजन प्रभाती 21.महेशवाणी आ’ 22. भजन कीर्त्तन आदि।
मिथिलाक लोचनक रागतरंगिणीमे किछु राग एहन छल जे मिथिले टामे छल, तकर प्रयोग सेहो कविजी कएलन्हि।
प्रस्तुत अछि हुनकर अप्रकाशित रचनाक धारावाहिक प्रस्तुति:-
विविध भजनावली

॥ श्री गणेशाय नमः ॥
१.
॥ विनय ॥

जय गणेश शंकर सुत सुन्दर अति कृपालु दीनन जन
पालक लम्बोदर अति रूप गजानन, युअ यश कहि न सकत सहसानन।
हमछी अति गमार कछु जानन निज पद कमल देहु उर ध्यानन॥
रामजी अरज सुनहु कछु कानन। वर्णत चहत राम गुण आनन॥

२.

॥ राग ध्रुपद ॥

सेवो मन शंकर अति कृपाल सेवक दुःख भंजन हौ दयाल,
जटा शोभित गंग धार तन छाय भस्म उर मुंड माल
उपवित भुजंगम दृग विशाल बिजया नित पीबत फिरत मतवाल।
कर त्रिशूल बघ छाल बिराजित दास आस राखन के सुर ररु
कैलाश वास गिरजा लिअ संग बहुवजत ताल शोभए शशिभाल॥
काशीपति तेरो यश अपार सुनि आय धाय तेरो द्वार
रामजी अति दीन कर नेहाल जिमि वेगि मिलए अव्धेश लाल॥

३.

राग संगीत

नाचत स्वयंग ये॥
कुंज बन चहुं ओर सुन्दर सघन बृक्ष बनाय मण्डित लकत सुमन लजाय सुर तरु जगमगात मयंक॥१॥
कठताल डम्फ मंजीर बाजत गोपी गण चहुं दिसि छाजत कुहिकि कलरव मोर नाचत राधा लेत मृदंग॥२॥
बेनु आदि स्वराग बाजत षट त्रिंशरागिन राग गावत गण सब सुनत धावत यमुना बढ़त तरंग॥३॥
तिहुं लोक आनन्द होत सुनि-सुनि पवनजल सब फिरत पुनि-पुनि रामजी गृह कार्य झाँकत कौतुक रंग॥४॥

४.

तिरहुत

वारि वयस पहु तेजल सजनी गे कि कहु तनिक विवेक,
कबहु नैन नहि देखल सजनीगे अवधि बितल दुई एक।
भावैन भवन शयन सुख सजनीगे ज्यौं मिलत भरि अंक।
एहेन जीवन लय कि करव सजनीगे आनो कहत कलंक।
भूषण वसन भरि सम सजनी प्राण रहत अब से शेष।
निर्दय भय पहु वैसल सजनीगे रामजी सहत कत शोक॥

५.

तिरहुत

निठुर श्याम नहि बहुरल सजनीगे कैलनि बचन प्रमाण।
कओन विधि दिवस मनायव सजनीगे हित नहि दोसर आन॥
नयन वरिस तन भीजल सजनीगे दिन दिन मदन मलान।
शिर सिन्दूर भावै सजनीगे भूषण भावे न कान॥
केहेन बिधाता निर्दय भेल सजनीगे आनक दुख नहि जान।
रामजीके आश नहि पुरत सजनी मदन कयल निदान॥
१. श्री गंगेश गुंजन २. श्रीमति ज्योति झा चौधरी
१. श्री डॉ. गंगेश गुंजन(१९४२- )। जन्म स्थान- पिलखबाड़, मधुबनी। एम.ए. (हिन्दी), रेडियो नाटक पर पी.एच.डी.। कवि, कथाकार, नाटककार आ' उपन्यासकार।१९६४-६५ मे पाँच गोटे कवि-लेखक “काल पुरुष”(कालपुरुष अर्थात् आब स्वर्गीय प्रभास कुमार चौधरी, श्री गंगेश गुन्जन, श्री साकेतानन्द, आब स्वर्गीय श्री बालेश्वर तथा गौरीकान्त चौधरीकान्त, आब स्वर्गीय) नामसँ सम्पादित करैत मैथिलीक प्रथम नवलेखनक अनियमितकालीन पत्रिका “अनामा”-जकर ई नाम साकेतानन्दजी द्वारा देल गेल छल आऽ बाकी चारू गोटे द्वारा अभिहित भेल छल- छपल छल। ओहि समयमे ई प्रयास ताहि समयक यथास्थितिवादी मैथिलीमे पैघ दुस्साहस मानल गेलैक। फणीश्वरनाथ “रेणु” जी अनामाक लोकार्पण करैत काल कहलन्हि, “ किछु छिनार छौरा सभक ई साहित्यिक प्रयास अनामा भावी मैथिली लेखनमे युगचेतनाक जरूरी अनुभवक बाट खोलत आऽ आधुनिक बनाओत”। “किछु छिनार छौरा सभक” रेणुजीक अपन अन्दाज छलन्हि बजबाक, जे हुनकर सन्सर्गमे रहल आऽ सुनने अछि, तकरा एकर व्यञ्जना आऽ रस बूझल हेतैक। ओना “अनामा”क कालपुरुष लोकनि कोनो रूपमे साहित्यिक मान्य मर्यादाक प्रति अवहेलना वा तिरस्कार नहि कएने रहथि। एकाध टिप्पणीमे मैथिलीक पुरानपंथी काव्यरुचिक प्रति कतिपय मुखर आविष्कारक स्वर अवश्य रहैक, जे सभ युगमे नव-पीढ़ीक स्वाभाविक व्यवहार होइछ। आओर जे पुरान पीढ़ीक लेखककेँ प्रिय नहि लगैत छनि आऽ सेहो स्वभाविके। मुदा अनामा केर तीन अंक मात्र निकलि सकलैक। सैह अनाम्मा बादमे “कथादिशा”क नामसँ स्व.श्री प्रभास कुमार चौधरी आऽ श्री गंगेश गुंजन दू गोटेक सम्पादनमे -तकनीकी-व्यवहारिक कारणसँ-छपैत रहल। कथा-दिशाक ऐतिहासिक कथा विशेषांक लोकक मानसमे एखनो ओहिना छन्हि। श्री गंगेश गुंजन मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक बुधिबधियाक लेखक छथि आऽ हिनका उचितवक्ता (कथा संग्रह) क लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार भेटल छन्हि। एकर अतिरिक्त्त मैथिलीमे हम एकटा मिथ्या परिचय, लोक सुनू (कविता संग्रह), अन्हार- इजोत (कथा संग्रह), पहिल लोक (उपन्यास), आइ भोर (नाटक)प्रकाशित। हिन्दीमे मिथिलांचल की लोक कथाएँ, मणिपद्मक नैका- बनिजाराक मैथिलीसँ हिन्दी अनुवाद आऽ शब्द तैयार है (कविता संग्रह)। प्रस्तुत अछि गुञ्जनजीक मैगनम ओपस "राधा" जे मैथिली साहित्यकेँ आबए बला दिनमे प्रेरणा तँ देबे करत सँगहि ई गद्य-पद्य-ब्रजबुली मिश्रित सभ दुःख सहए बाली- राधा शंकरदेवक परम्परामे एकटा नव-परम्पराक प्रारम्भ करत, से आशा अछि। पढ़ू पहिल बेर "विदेह"मे गुञ्जनजीक "राधा"क पहिल खेप।-सम्पादक। मैथिलीक प्रथम चौबटिया नाटक पढबाक लेल क्लिक करू बुधिबधिया ।
गुंजनजीक राधा
विचार आ संवेदनाक एहि विदाइ युग भू- मंडलीकरणक बिहाड़िमे राधा-भावपर किछु-किछु मनोद्वेग, बड़ बेचैन कएने रहल।
अनवरत किछु कहबा लेल बाध्य करैत रहल। करहि पड़ल। आब तँ तकरो कतेक दिन भऽ गेलैक। बंद अछि। माने से मन एखन छोड़ि देने अछि। जे ओकर मर्जी। मुदा स्वतंत्र नहि कए देने अछि। मनुखदेवा सवारे अछि। करीब सए-सवा सए पात कहि चुकल छियैक। माने लिखाएल छैक ।
आइ-काल्हि मैथिलीक महांगन (महा+आंगन) घटना-दुर्घटना सभसँ डगमगाएल-
जगमगाएल अछि। सुस्वागतम!
लोक मानसकें अभिजन-बुद्धि फेर बेदखल कऽ रहल अछि। मजा केर बात ई जे से सब भऽ रहल अछि- मैथिलीयेक नाम पर शहीद बनवाक उपक्रम प्रदर्शन-विन्याससँ। मिथिला राज्यक मान्यताक आंदोलनसँ लऽ कतोक अन्यान्य लक्ष्याभासक एन.जी.ओ.यी उद्योग मार्गे सेहो। एखन हमरा एतवे कहवाक छल । से एहन कालमे हम ई विहन्नास लिखवा लेल विवश छी आऽ अहाँकेँ लोक धरि पठयवा लेल राधा कहि रहल छी। विचारी।

राधा
राधा कतेक दिनक बाद ई एहन क्षण
कतेक युगक बाद ई अलौकिक मन
कतेक दिनक बाद मन पड़ले सब टा
कतेक दिनक बाद एहन हतल तन
कोना क सम्हारल हो,
कोना योगा क' राखी
कहां ओहन बासन बाकस बा घैल,
राखि दी निहारी; ताही मे एकरा
ई सभटा दुर्लभ आ दिव्य बोध सभ-टटका
सौंसे पृथ्वी, भरि ब्रह्‌‌माण्ड
क्यो नहि जागल हो कत्तहु क्यो नहि,
मात्र महाअनुभूति यत्न,
स्वच्छ अनन्त नील मेघ मध्य हंसथि
जेना दिनकर
कनथि जेना आसन्ध्या दीनानाथ,
आर कतहु किछुओ नहि दृश्य-श्रव्य
मात्र अन्तहीन सुरक्षित एकान्त,
मात्र सूर्य जकां, हुनके सन धधकैत एकसर
एकटा हरियर फलगर गाछ,
कात मे यमुना धार ,
अपन कदमक गाछ जकाँ रही ठाढ़
भरि जीवन
कतेक युगक बाद ई एहन सन मन!
हतप्रभ अछि मन भेल आ कि हत आस
एना कियेक कंठ सुखाय, एतेक किये पियास
ए ना कियेक वाक हरण भेल अनायास
आंखिक सोझां पसरल ई केहन अन्हार
कान सेहो भऽ गेलय बज्र-बहीर
सबकिछु अछि बौक विकट निर्विकार
ए ना कोना भऽ गेल निस्बद्द ई संसार
बीच दुपहरि-दिन देखार
बसातो अछि जत कतहु स्तब्ध ठाढ़
कत छी हम ककरा लग कथी लेल
भने तँ निबहि रहल छल जीवन सोझ साझ!
एहि हृदय कें ई की भेलैक
हमरा संग ई की भेल ?
ई जीवन की मात्र कालक गायक दूध
एक रती ताक मे हो तल विचल
औंट मे हो विलम्ब,
फाटि जाय, बा रहि जाय जँ चूल्हि पर
लगि जाय एको रती कि स्वाद सब बेकार
रस सब बेरस तकर पौड़ल दही
सेहो बेस्वाद
ई एहन दुर्लभ मनुख-जीवनक एहनो सार!
फाटल दूध जनमल दही सन बेकार स्वादक
जबरदस्ती भोग आ दुखताह मने
ऊघब एकेक पल, दिन आ मास वर्ष
कांच जाड़नि सँ जरैत चूल्हि,
धुंआइत आंखि कें नोरबैत
निर्ममताक कर्मक कर्म सिज्झू-अधसिज्झू
करैत भानस उतारैत तप्त बासन
कछमछ करैत बदलैत ताकैत
बैसवा लेल सुभीतगर आसन
अति सीमित भूमि पर घुसकबैत
फेर सरियबैत पोन तऽरक चटकुन्नी
सम्हारैत देह पर आंचर,
झंपैत मृदु अंग निज
घामे नहायल ताप सिंचित सुकोमल
आंगी विहीन यौवन कें झांपब
मात्र बेर-बेर लोक केर आंखिक कौआ दुआरे
भिजल नूआ सँ सटल यौवन देखाइत पार
तकरा लोक लज्जे अनवरत
नुकवैत झँपैत रहवाक
क उपक्रम,
ई की ओ
कि ओ
हमर सखि, हम
एतेक टा ई महान मानुहन्ना-तन बनल की
करय लेल भानस आ झांपय लेल युवा तन
लोक-संबंधीक धाखें सम्हारैत रहबा लेल
भरि जिनगी आंचर !
यैह सब टा अर्थ, बाकी ?
समाज आ लोक लज्जा....
६/४/०५

२. ज्योतिकेँwww.poetry.comसँ संपादकक चॉयस अवार्ड (अंग्रेजी पद्यक हेतु) भेटल छन्हि। हुनकर अंग्रेजी पद्य किछु दिन धरि www.poetrysoup.com केर मुख्य पृष्ठ पर सेहो रहल अछि। ज्योति मिथिला चित्रकलामे सेहो पारंगत छथि आऽ हिनकर मिथिला चित्रकलाक प्रदर्शनी ईलिंग आर्ट ग्रुप केर अंतर्गत ईलिंग ब्रॊडवे, लंडनमे प्रदर्शित कएल गेल अछि।
मिथिला पेंटिंगक शिक्षा सुश्री श्वेता झासँ बसेरा इंस्टीट्यूट, जमशेदपुर आऽ ललितकला तूलिका, साकची, जमशेदपुरसँ। नेशनल एशोसिएशन फॉर ब्लाइन्ड, जमशेदपुरमे अवैतनिक रूपेँ पूर्वमे अध्यापन।
ज्योति झा चौधरी, जन्म तिथि -३० दिसम्बर १९७८; जन्म स्थान -बेल्हवार, मधुबनी ; शिक्षा- स्वामी विवेकानन्द मि‌डिल स्कूल़ टिस्को साकची गर्ल्स हाई स्कूल़, मिसेज के एम पी एम इन्टर कालेज़, इन्दिरा गान्धी ओपन यूनिवर्सिटी, आइ सी डबल्यू ए आइ (कॉस्ट एकाउण्टेन्सी); निवास स्थान- लन्दन, यू.के.; पिता- श्री शुभंकर झा, ज़मशेदपुर; माता- श्रीमती सुधा झा, शिवीपट्टी। ''मैथिली लिखबाक अभ्यास हम अपन दादी नानी भाई बहिन सभकेँ पत्र लिखबामे कएने छी। बच्चेसँ मैथिलीसँ लगाव रहल अछि। -ज्योति
खरहाक भोज
खरहा सब भामि-भामि
बाड़ीमे अछि भोज करैत
जतेक छल रोपल साग-पात
कुचरि-कुचरि कऽ चरैत
एहन असहति दृष्य देख
गृहस्थक तामसे मोन जरैत
प्रतिदिनक निरंतर प्रयास
बाड़ी छल फूलैत-फलैत
अतेक दिनका कएल धैल
पर ई सभ पानि फेरैत
भीड़ल सब ओकरापर
चारू दिससॅं खिहारैत
कियै ओ ककरो हाथ आयत
नहि देरी भेल ओकरा पड़ाइत।
बिन मेहनति आ' बिन धैर्य
मनुषकेँ अछि किछु नहि भेटैत
पशु - पक्षी सब लुझिकऽ
अपन जीवन अहिना बिता लेत।
1.भक्तिगीत 2. महाभारत
प्रकाश झा, ग्राम+पो.- कठरा, भाया-पुटाई, थाना- मनीगाछी, दरभंगा, बिहार (भारत)
हमर मिथिलाक दर्शन

मैथिल छी हम, मैथिली बजबामे अछि कोन लाज
देश हो वा परदेश ज्यो हम करै छी ओऽ तऽ काज
मिथिला के याद करबैछ सदिखन, विद्यापतिजी माथपर शोभैत पाग।

हमरा लोकनिक पिता जनक, बहिन सीता, बहनोइ छथि राम
कमला-कोशी अछि चरण जकर पखारैत ओ अछि हमर मिथिला धाम।

मैथिल कवि लोकनिक पोथीमे पढ़ैत रहए छी जे खिस्सा
मनमे उठैत रहैत अछि जिज्ञासा जे आओर कतेक बाकी अछि प्रशंसा

कोइलिक कु-कू राग सुनि मोन म मारऽ...लगैत अछि टीस
तखने किछु काल बाद नम्र हृदय सऽ निकलैत अछि गोसाउनिक गीत

विद्यापति, मण्डन, अयाची आऽ मैथिलपुत्र प्रदीप
हिनकर लोकनिक सुन्दर लेखन पढ़ि मोनमे जड़ैत अछि शब्दक दीप

एहि मातृभूमिपर पान, मखान, खराम कऽ अछि एकटा इतिहास
बाढ़-बोन के आड़ि-धुरपर बैस, नीक लगैछ मड़ुआ रोटी- सागक स्वाद।

चहु ओर हरियाली, घर फूसक, लच-लच करैत ओऽ खरहीक टाट।
भोरे सुइत-उठि कए बाधमे सुन्दर लगैत अछि शीतल घास।
घरक चारपर कुम्हर, कदीमा आओर सजमनिक अछि लत्ती पसरल
नजरि नञि लागए कोनो डैनियाहीके, ताहि लऽ एकटा खापैड़मे कारी-चून लेपल राखल।
पछबाड़ि कातक बारीमे राखल एकटा कटही गाड़ी पुरान
बाबू-कक्का चौकपर बैसल, बाबा धेने छथि दलान।

आब कतेक हम विवरण करबए, शब्दसँ अछि ठेक भरल
मिथिलांचलमे मैथिली भाषाक लेल छी हम मैथिल भिड़ल

मिथिला चित्रकला एखनो धरि केने अछि राज देश-विदेश
संगहि प्रकाशझाक ई प्रस्तुति पढ़ि बुझबइ एकटा छोट सनेस।
2. महाभारत
महाभारत (आँगा)
-गजेन्द्र ठाकुर
६.भीष्म-पर्व

भीष्म कहल छथि ओऽ अजेय परञ्च युद्ध भरिसक करब।
सक भरि युद्ध करबाक बात कहल भीष्म दुर्योधनकेँ,
चारिम दिन कएल आक्रमण प्रबल वेगेँ,
अर्जुन कएल प्रयत्न रोकबाक हुनका व्यर्थ,
पाँचम छठम आऽ सातम दिन सेहो बीतल।

आठम दिनक युद्ध भेल घनघोर,
अर्जुनक दोसर पत्नी उलूपीक पुत्र इरावान,
युध्य मध्य मरल अर्जुन भेल अधैर्य।
कएल युद्ध भयंकर भीष्मकेँ नहि टेरल,
दुर्योधन छल चिन्तित कर्णक ठाम गेल,
घुरि भीष्मकेँ कहल अहाँ छी अन्हेर कएल।
एहन रहत तखन बनाएब कर्णकेँ सेनाध्यक्ष,
भीष्म कहल बताह छी अहाँ भेल,
कर्णक वीरता विराटयुद्धमे नहि देखल?
नवम दिनक युद्ध छल भयङ्कर,
अर्जुनक रथकेँ भीष्म वाणसँ तोपल,
कृष्ण-अर्जुन अपघात रथ क्षतिग्रस्त,
घोटक रुकल अर्जुन शिथिल पस्त।
कौरवक उत्साह छल देखबा जोगर,
कृष्ण क्रोधित रथक पहिया लए छूटल,
मारब भीष्म खतम करब ई युद्ध।
अर्जुन पैर पकड़ि कए कहल हे कृष्ण
शस्त्र नहि उठएबाक कएने प्रतिज्ञा छी
लज्जित रथसँ कूदि छी हम आएल,
भीष्म सेहो देखल भए भाव-विह्वल।
रूप तेजमय शस्त्र लेने कृष्ण।
कृष्णक क्रोध भेल जा कए शान्त,
साँझक शंख कएल दिनक युद्धांत।
रातिमे युढिष्ठिर पुछलन्हि हे नन्दक नन्द,
भीष्मक पराजयक अछि की रहस्य,
भीम कहल अर्जुन नहि जानि किएक,
नहि प्रयोग कए रहल दिव्यास्त्र भीष्मपर।
कृष्ण कहलन्हि चलू पाँचू भाँय,
पूछि आबी हुनकहिसँ हुनक उपाय।
सभ पहुँचि पूछल बताऊ हे भीष्म,
अहाँक रहैत नहि हारत कौरव कथमपि।
सत्य धर्म दुहु भए जाएत अलोपित,
भीष्म कह छी देखि रहल भए त्रस्त।
अर्जुन नहि करि रहल प्रयोग दिव्यास्त्र,
मुदा हस्तिनापुरक सिंहासनसँ कटिबद्ध,
हा दुर्भाग्य! असत्यक मर्यादाक रक्षार्थ!
अछि शिखण्डी द्रुपदक पुत्र अहाँक पक्ष,
पूर्वजन्मक स्त्री अछि शिवक कएल व्रत,
हमर वधक लेल अछि सतत प्रतिपल।
द्रुपदक घरमे स्त्रीक रूप जन्म छल लेल,
दानवक वरसँ पुरुष रूप बनि गेल।
गुण स्त्रीत्वक अछि ओकरामे पार्थ,
स्त्रीगण हमर वाणक नहि छथि पात्र।
शिखण्डीकेँ सोझाँ कए जे वाण अहाँ चलाएब,
पूर्ण विवश तखने हम पार्थ भए जाएब।
भए आस्वस्त प्रणाम कए भीष्म पांडवगण,
घुरल दसम दिनुका युद्धक छल अयोजन।
आइ सेहो भीष्मक वाणक भेल बरखा,
मुदा शिखण्डी आएल सोझाँ हुनकर।
राखल अस्त्र भीष्म चलाओल वाण शिखण्डी,
मुदा कोनो नहि जोड़ ओकर वाणक छल किन्तु,
कृष्ण कहल लए अढ़ शिखण्डीक अर्जुन,
भीष्मक देहकेँ गाँथू करू नहि चिन्तन।
अर्जुनक शंका सुनि कहल तखन कृष्ण,
अस्त्र-शस्त्र संग जीतत क्यो नहि भीष्म,
अपनहि छथि ओऽ उपाय एहन बताओल,
बिनु विलम्ब कए वाण अहाँ चलाऊ।
अर्जुनक वाणक शुरू भेल बरखा,
खसल भीष्म पृथ्वी नहि शय्या छल वाणक,
शरशय्यापर खसैत भीष्मक देरी छल,
युद्ध खतम भेल ओहि दिनक तत्काल।

कौरव पाण्डव जुमि अएलाह समक्ष,
भीष्म कहल दिअ गेरुआ माथतर। अह।
महग गेरुआ लए प्रस्तुत दुर्योधन छल,
ताकल भीष्म अर्जुन दिस अर्जुन भए साकांक्ष,
तीन वाण चलाओल आधार माथक भेल,
प्यासल भीष्म जलक लेल कहल पुनः ई,
दुर्योधन स्वर्ण-पात्रमे जल अनबाओल,
ताकल भीष्म अर्जुन दिस फेर पार्थ चलाओल,
वाणसँ सोत निकलल जलक ऊपर दिस,
पानि खसल मुख भीष्म भेलाह फेर तिरपित।
सूर्य छथि अखन दक्षिणायणमे जाओ सभ क्यो,
प्राण त्यागब हम उत्तरायणमे पहुँचल कर्ण सेहो।
करबद्ध प्रणाम कए लए आशीर्वाद ठाढ़ ओतए ।
भीष्म कहल हे कर्ण युद्धकेँ रोकू कुन्तीपुत्र अहाँ छी,
अर्जुनकेँ नहि हरा सकब अहँक तुच्छ इच्छा ई।
कोन युद्धमे अर्जुनसँ छी बलशाली देलहुँ प्रमाण?
अहाँ बुझाएब दुर्योधन मानत छी हम जानि।
कर्ण कहल हम सारथीपुत्र दुर्योधनक पाओल सम्मान,
राजा भेलहुँ दुर्योधनक ऊँच उठाओल हमरा,
पाण्डव पौत्र अहाँक रहथि शस्त्र उठाओल किएक?
कौरवगणकेँ अहाँ किएक नहि बुझाओल,
युद्ध बढ़ल अछि आगाँ हम नहि छोड़ब दुर्योधन मजधार।

७. द्रोण-पर्व

(अनुवर्तते)
1.श्री डॉ. पंकज पराशर 2. शैलेन्द्र मोहन झा
श्री डॉ. पंकज पराशर (१९७६- )। मोहनपुर, बलवाहाट चपराँव कोठी, सहरसा। प्रारम्भिक शिक्षासँ स्नातक धरि गाम आऽ सहरसामे। फेर पटना विश्वविद्यालयसँ एम.ए. हिन्दीमे प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। जे.एन.यू.,दिल्लीसँ एम.फिल.। जामिया मिलिया इस्लामियासँ टी.वी.पत्रकारितामे स्नातकोत्तर डिप्लोमा। मैथिली आऽ हिन्दीक प्रतिष्ठित पत्रिका सभमे कविता, समीक्षा आऽ आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित। अंग्रेजीसँ हिन्दीमे क्लॉद लेवी स्ट्रॉस, एबहार्ड फिशर, हकु शाह आ ब्रूस चैटविन आदिक शोध निबन्धक अनुवाद। ’गोवध और अंग्रेज’ नामसँ एकटा स्वतंत्र पोथीक अंग्रेजीसँ अनुवाद। जनसत्तामे ’दुनिया मेरे आगे’ स्तंभमे लेखन। रघुवीर सहायक साहित्यपर जे.एन.यू.सँ पी.एच.डी.।
स्वर

सुर साधनाक शूर सबहक दाबी छनि
कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डक स्वर मात्र साते टा स्वरमे अछि मिज्झर

दाबीक निसांमे मातल ओ लोकनि नहि जनैत छथि
आइ कतेक तरहक रंग बनाकए रसायनज्ञ लोकनि
हटा चुकल छथि सतरंगा अवधारणाक आवरण

सुरक शूरवीर सब किएक नहि स्य्नि पबैत छथि
गर्भक सुरक्षित लोकसँ आगिमे झोंकाइत ओहि शिशुक आकुल पुकार
जकर मायक भयाक्रान्त स्वर सत्ताक चक्रवर्तीत्वक अनघोलमे हेरा गेल?

ओहो चिल्का दुनियाक सारेगामामे कऽ सकैत छल निबद्ध
अपन दुधहा किलकारीक स्वर धैवत आ पंचममे

कोना अश्लील गर्वोक्ति करैत गछलक अछि भाइ
विशाल अश्वमेधी अभियानमे अपसयाँत सम्राट बुश
जे जँ ईराकपर ओ नइ कएनेँ रहितियैक आक्रमण
तँ छओ लाख पचपन हजार इराकी आइ जीवित रहितथि
तकर सबहक प्राणांतक स्वर सुनलियै गवैय्या लोकनि?

कलस्टर बम केर विस्फोटक बाद छिड़ियाएल सहस्रो लोकक
अंग-अंगसँ बहराएल जीवनक सेहेन्ता
आ लेबनानमे उड़ैत बमवर्षक यानक आसुरी स्वर
संगीतक कोन स्वर लिपिमे लिपिबद्ध करबैक
मियाँ तानसेन?

कोन राग-भासमे गाओल जा सकैत अछि
सल्फास खा-खा कए आत्महत्या कएनिहार किसानक कथा
कोन तालमे बजतै छटपटाहटिक तबला?

ओहि संगीत केर की हेतैक संचारी भावक स्थायी भाव?

• * * *

ककरा-ककरा लग नहि हाथ पसारलक लगमावाली
दू सय टाकाक लेल हैजामे रद-दस करैत घरवलाक लेल
जिनका अठारह धूर बाड़ीयोपर क्यो नहि देलकनि
दू सय टाका डागडरकेँ बजेबाक लेल कर्ज

आ नहि फटलैक गामक छाती ओकर मुइलोपर
आसन जमा कए श्राद्धक भोज खाइत ओहि आँगनमे

हाक्रोसकेँ कोन-कोन राग आ कोन तालमे गाओल जा सकैए
बाबा हरिदास?

जकर साओनोमे जाँकल रहैत छलै गोठुल्ला
ताहि किसनीक लहास दस टा गोइठामे झरका कए भसा देल गेल
गामक डबरामे दू टा घैलमे पाथर भरि कऽ ओकरा गऽरमे

लहास डुबबाक ओ स्वर कोन जलतरंगक छल
अमता घरानाक गायक लोकनि कनेँ कहबैक?

स्वर साधनाक ओ कोन अवस्था थिकै जाहिमे
भोलानाथसँ दुःख हरबाक कौलैत करैत
असंख्य मैथिल जन नोर-झोर भेल
गीतसँ इतिहासक अन्हारमे हेरा जाइत छथि
जतयसँ सुरहीन भेल घुरैत छथि आँखि पोछैत, नाक सुड़कैत
फेर एहि असार संसारमे

विचित्रवीणापर ई कोन राग बाजि रहल अछि
जकर श्मशानोन्मुखी स्वर मार्गपर तांडव करैत
ओ हेंजक-हेंज लोककेँ लऽ जा रहल अछि ओहि गुफामे
जतयसँ घुरबाक सभटा हाहाकारी स्वर
अश्वमेधी आकांक्षामे बिलाइत रहैत अछि!

2. शैलेन्द्र मोहन झा
रसमय कवि चतुर चतुरभुज- विद्यापति कालीन कवि। मात्र १७ टा पद्य उपलब्ध, मुदा ई १७ टा पद हिनकर कीर्तिकेँ अक्षय रखबाक लेल पर्याप्त अछि। उदाहरण देखू-दिन-दिन दुहु-तन छीन, माधव,एकओ ने अपन अधीन।
हे कृष्ण! दिनपर दिन दुनूक तन विरहसँ क्षीण भेल जाऽ रहल अछि, आऽ दुनूमे केओ अपन अधीन नहि छथि।
मुदा "विदेह" प्रस्तुत कए रहल अछि आधुनिक रसमय कवि शैलेन्द्र मोहन झाक विदेहमे दोसर रचना

सौभाग्यसँ हम ओहि गोनू झाक गाम, भरवारासँ छी, जिनका सम्पूर्ण भारत, हास्यशिरोमणिक नामसँ जनैत अछि। वर्तमानमे हम टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, सम्बलपुरमे प्रबन्धकक रूपमे कार्यरत छी।

सपना

सुतल रही दुपहरियामे तँ देखलौ हम एक सपना
भयल विवाह हमर यै भौजी कनिया चान्द के जेना
हम्मर, टुटि गेल सपना ये भौजी, भरल दुपहरियामे...

जहन भेँट भेल हुनकर हम्मर, भेलहुँ हम प्रसन्न
देखि कऽ हुनकर रूप हे भौजी, भय गेलौँ हम दङ
नाम पुछलियनि हुनकर हम तँ कहलनि ओऽ जे रजनी
स्वप्न सुन्दरी ओऽ बनि गेलि हम्मर हृदयक रानी

हमरा पुछली कहु हे साजन केहन हम लगै छी?
हम कहलियनि सुनु हे सजनी आहाँ चान्द लगै छी
चन्दामे तँ दागो छञि, आहाँ बेदाग लगै छी
आँखि अहाँक ऐश्वर्या जेहन नाक अछि जुही चावला
केश अहाँक अछि नीलम जेहन गाल वैजन्तिमाला

एहि के बाद पुछलियनि हमहू केहन हम लगै छी?
कहय लगलि खराब छी, छी अहूँ ठीक-ठाक
लेकिन एहि यौवनमे साजन भेलहुँ कोन टाक*
कनिक लगै छी सन्नी जेना, किछु-किछु राहुल राय
किछु-किछु गुण गोविन्दा बाला, यैह अछि हम्मर राय

तहन कहलियनि चलु हे सजनि घुरए लेल दरभंगा
आहाँ लेल हम सारी किनब, अपनो लेल हम अंगा
दू टा टिकट अछि उमा टाकीजक, अगले-बगले सीट
दुनू गोटे बैस कऽ देखब “ममता गाबय गीत”**
हुनक हाथ लेल अपन हाथमे उठि विदाय हम भेलहुँ
हुनक हाथ लेल अपन हाथमे उठि विदाय हम भेलहुँ
तखने जगा देलक पिंटूआ, तखने जगा देलक पिंटुआ***, नीन्दसँ हम उठि गेलहुँ
हम्मर टूटि गेल सपना ये भौजी, भरल दुपहरियामे......

*= हमर केश किछु बेशी कम अछि
**= प्रसिद्ध मैथिली सिनेमा
***= हमर छोट भाई
संस्कृत शिक्षा च मैथिली शिक्षा च

(मैथिली भाषा जगज्जननी सीतायाः भाषा आसीत् - हनुमन्तः उक्तवान- मानुषीमिह संस्कृताम्)
(आगाँ)
-गजेन्द्र ठाकुर
वयम् इदानीम् एकं सुभाषितं श्रुण्मः।
आचार्यात् पादमादत्ते
पादं शिष्यः स्वमेधया।
पादं सब्रह्मचारिभ्यः
पादं कालक्रमेण च।

इदानीं श्रुतस्य सुभाषितस्य तात्पर्यम् एवम् अस्ति। एकः छात्रः संपूर्ण ज्ञानप्राप्ति समये प्रकार चतुष्टयेन ज्ञानं प्राप्नोति। प्रथम् पादभागम् आचार्यात् प्राप्नोति- पुनः पादभागम् सअध्ययनेन प्राप्नोति- पुनः पादभागम् सतीर्थेहि सः विचार विनमयेन् चिन्तनेन च प्राप्नोति- पुनः पादभागम् कालक्रमेण प्राप्नोति, एवं छात्रः संपूर्णं ज्ञानं प्राप्नोति।

सम्भाषणम्

वाणः यथा गद्यं लिखति तथा अन्यः न लिखति।
वाण जेना गद्य लिखैत छथि तेना क्यो आन नहि लिखैत छथि।

यथा रविवर्मा चित्रं लिखति तथा अन्यः न लिखति।
जेना रविवर्मा चित्र बनबैत छथि तेना क्यो आन नहि लिखैत छथि।

प्रातः काले कूप्यां जलम् आसीत्।
भोरमे बर्तनमे जल छल।

स्वातंत्र्यसंग्राम काले कः कः आसीत्।
स्वतंत्रता संग्राममे के के रहथि।

गांधीजी सुभाषचन्द्र बोसः भगवत सिंहः बल्ल्भभाई

प्रातः काले मन्दिरे पूजा आसीत्।
प्रातः काल मन्दिरमे पूजा छल ए।

जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री आसीत्।
जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री छलाह।

कन्याकुमारीम्/ मथुराभ्यां/ धारानगरे विवेकानन्दः/ कृष्णः/ भोजः आसीत्।
कन्याकुमारीमे/ मथुरामे/ धारानगरीमे विवेकानन्द/ कृष्ण/ भोज छलाह।

संग्रामकाले बहुजनाः सैनिकाः आसन्।
संग्राम कालमे बहुत गोट सैनिक छलाह।

द्वापरयुगे कौरवाः आसन्।
द्वापरयुगमे कौरव छलाह।

परह्यः अहं महाराष्ट्रः आसम्।
परसू हम महाराष्ट्रमे छलहुँ।

अहं पण्डितः अस्मि।
हम पंडित छी।

वयं शिशवः आसम्।
हमसभ शिशु छलहुं।

एकं कारयानम्/ दूरदर्शनम्/
एकटा कार/ दूरदर्शन

गोविन्दः पूर्वं महाधनिकः आसीत्।
गोविन्द पूर्वमे महाधनिक छल।

किम् किम् आसीत् कानि कानि आसन्।
की की छल।

गोविन्दस्य गृहे शुनकः/ दूरदर्शनम्/ विदेशीयघटकः/ रजतपात्रम्/ सुवर्णहारः आसीत्।
गोविन्दक घरमे कुकुर/ दूरदर्शनम्/ विदेशी घड़ी/ रजतपात्र/ स्वर्णहार छल।

सेवकाः/ धेनवः/ ग्रंथाः/ कपाटिकाः/ यंत्राणि/ पक्षिणः/ कम्बलाः/ सङ्गणकाणि आसन्।
सेवकसभ/ गायसभ/ कपाटिकासभ/ यन्त्रसभ/ चिड़ै सभ/ कम्बल सभ/ कम्प्युटर सभ छल।

अहं गृहिणी अस्मि।
हम गृहणी छी।
कथा
पूर्वं कलिंगदेशे सत्यगुप्तः नाम एकः महाराजः आसीत्। तस्य पुत्रः कमलापीडः। कमलापीडः अतीव बुद्धिमान्- चतुरः किंन्तु सह बहुअहंकारी आसीत्। सः महाराजाम् अपि उपहासित स्म। पुत्रस्य स्वभावं दृष्ट्वा महाराजः बहु दुःखितः आसीत्। महाराजस्य बहु दुःखम् अस्ति। किमर्थं मम पुत्रः बहुअहंकारी आसीत्। इति महाराजस्य दुःखम् आसीत्। कदाचित् राजकुमारः महाराजस्य समीपम् आगत्य पृष्टवान्। अस्माकम् समीपे महत् सैन्यम् अस्ति। सैन्यस्य का आवश्यकता। वृथा धनव्ययः भवति। तदा महाराजः पुत्रम् वदति। युद्धकाले सैन्यस्य बहु आवश्यकता अस्ति। सैन्यस्य पोषणार्थं धनव्ययं कुर्मः चेत् हानिः नास्ति। अनन्तरम् राजकुमारः वदति। युद्धकाले यदि धनं दद्मः बहवः सैनिकाः लभ्यन्ते। इदानीं सैन्यपोषणस्य आवश्यकता नास्ति। तदा महाराजः किमपि न वदति। तस्मिन दिने रात्रौ महाराजः पुत्रम् आह्वयति। किंचित् आहारं स्वीकरोति- एकत्र स्थापयति। महाराजः पुत्रं वदति। काकान् आह्वयतु। तदा राजकुमारः वदति। किम् भवान् मूर्खः वा। रात्रि समये काकाः आगच्छन्ति वा। इति पृच्छति। तदा महाराजः वदति। अन्नं दत्तं चेत् अपि यथा काकाः न आगच्छन्ति, रात्रि समये तथा युद्धकाले धनं दद्मः चेत् अपि सैनिकाः न लभ्यन्ते। सैनिकस्य पोषणार्थं धनं व्यर्थं न भवति। तदा राजकुमारस्य दुःखं भवति। राजकुमारः स्वस्य अविवेकं ज्ञातवान्। पितुः समीपे क्षमां प्रार्थितवान्।

धन्यवादः।
(अनुवर्तते)

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सिद्धिरस्तु

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