भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

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Sunday, October 26, 2008

'विदेह' १५ अगस्त २००८ ( वर्ष १ मास ८ अंक १६ ) - part-II

'विदेह' १५ अगस्त २००८ ( वर्ष १ मास ८ अंक १६ ) - part-II

मिथिला कला(आँगा)
चित्रकार- तूलिका, ग्राम-रुद्रपुर, भाया-आन्ध्रा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी।

एक बेर कुबेर कोनहुना लक्ष्मीकेँ पत्नीक रूपमे प्राप्त कए लेलन्हि आऽ हुनका लेल समुद्रमे एकटा’कोवर’ घर बनेने रहथि। कोबर चित्रमे पुरैनक पात, पुष्पित बांस, मत्स्य,सांप, काछु, नवग्रह, शंख आदिक प्रयोग होइत अछि। धारावाहिक रूपें विभिन्न प्रकारक कोबरक चित्र देल जायत। एहि अंकमे कोबर (पुरैन) देल जाऽ रहल अछि।

7. मिथिला कला(आँगा)
चित्रकार- तूलिका, ग्राम-रुद्रपुर, भाया-आन्ध्रा-ठाढ़ी, जिला-मधुबनी।


( अनुवर्तते)
1.जन्माष्टमी/ कृष्णाष्टमी 2.कुशी अमावस्या

भादवमास कृष्णपक्ष अष्टमी तिथिक १२ बजे रातिमे कृष्णक जन्म भेलन्हि।
सतयुगमे केदार नाम्ना राजा परम्परानुसार वृद्धावस्था प्राप्त भेलापर पुत्रकेँ राज्यभार दए तपस्याक लेल बोन चलि गेलाह। केदारक एकेटा पुत्री छलन्हि वृन्दा नाम्ना। ओऽ भरि जिनगी यमुना तटपर घोर तपस्या केलन्हि। अन्तमे भगवान प्रकट भए वर मँगबाक लेल कहलन्हि। वृन्दा कहलखिन्ह जे अहाँ हमर वर बनू। ओऽ बोन जतए बृन्दा तपस्या कएलन्हि वृन्दावनक नामसँ प्रसिद्ध भेल। ओतए यमुनाक नदीक निचुलका दक्षिण तटपर मधुपुरी नामक नगर बसेलक। शत्रुघन ओहि दैत्यकेँ मारि मधुपर (मथुरा) जितलन्हि। द्वापरमे ई शूरसेनक राजधानी बनल। यादव,अंधक भोज एतए राज केलन्हि। भोजराज उग्रसेनकेँ हुनकर बेटा कंस गद्दीपरसँ उतारि देलकन्हि। हुनकर बहिन यदुवंशी क्षत्रिय वासुदेवसँ बियाहल छलीह। एक दिन कंस देवकीकेँ सासुर पहुँचाबए जाऽ रहल छलाह मुदा आकाशवाणी भेल जे देवकीक आठम बच्चा कंसकेँ मारत से ओऽ अपन बहिन बहिनोईकेँ कारागारमे धऽ देलक। देवकीक सात टा सन्तानकेँ ओऽ मरबा देलक। भादव मासक रोहिणी नक्षत्रक कृष्णपक्षक अष्टमी तिथिक अन्हरियामे मूसलधार बरखामे कारागारमे प्रकाश भए गेल आऽ भगवान शंख-चक्र-गदा-पद्म लए ठाढ़ भए गेलाह, कहलन्हि जे हमरा जन्म होइत देरी वृन्दावन नन्दक घर दए आउ आऽ ओतए एकटा बचिया चण्डिका जन्म लेने अछि, ओकरा आनि कए कंसकेँ दए दिऔक। मायासँ सभ पहरेदार सूति जाएत, फाटक सभ अपने खुजि जाएत, यमुना मैय्या स्वयं रस्ता दए देतीह। वासुदेव सएह कएलन्हि। भोरमे कंस एकटा पाथरपर एकटा रजक द्वारा पटकबाय जखने ओहि बचियाकेँ मारए चाहलन्हि उड़ि गेलीह आऽ कहलन्हि जे हुनका मारए बला वृन्दावन पहुँचि गेल अछि। कंस कतेको राक्षसकेँ पठेलक कृष्णकेँ मारबाक लेल मुदा वैह सभ मारल गेल। पैघ भए कृष्ण मथुरा आबि कंसकेँ मारि माता-पिताकेँ कारागारसँ छोड़ाओल आऽ फेर किछु दिनका बाद गोपी-सखाकेँ छोड़ि द्वारका चलि गेलाह।

नूतन झा; गाम : बेल्हवार, मधुबनी, बिहार; जन्म तिथि : ५ दिसम्बर १९७६; शिक्षा - बी एस सी, कल्याण कॉलेज, भिलाई; एम एस सी, कॉर्पोरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर; फैशन डिजाइनिंग, एन.आइ.एफ.डी., जमशेदपुर।“मैथिली भाषा आ' मैथिल संस्कृतिक प्रति आस्था आ' आदर हम्मर मोनमे बच्चेसॅं बसल अछि। इंटरनेट पर तिरहुताक्षर लिपिक उपयोग देखि हम मैथिल संस्कृतिक उज्ज्वल भविष्यक हेतु अति आशान्वित छी।”

कृष्णाष्टमी / जन्माष्टमी
कंसक प्रकोपसँ मनुषक रक्षालेल द्वापरयुगमे स्वयं विष्णुदेव भगवान श्रीकृष्णक रूपलऽ मथुराक कारावासमे देवकीक कोखसँ जाहि दिन पृथ्वी पर अवतरित भेलाह, ताहि दिनकेँ कृष्णाष्टमीक रूपमे मनओल जाइत अछि। सावन मासक कृष्णपक्षक अष्टमीकेँ अर्धरात्रिकऽ भगवानक जन्म भेल छनि। जन्मक पहिल दिन कृष्णाष्टमी कहाइत छैक आऽ जन्मक बादक दिन जन्माष्टमी। ताहि कारणेँ व्रतो दू प्रकारक होइत अछि, कृष्णाष्टमी व्रत आऽ जन्माष्टमी वा जयन्ती व्रत।
शास्त्रक अनुसारे एहि दिन पूजाक बेसी महत्व अछि व्रतसँ परन्तु मिथिलावासी दुनुकेँ बराबरे महत्व देने छथि। कृष्णाष्टमी व्रतसँ एक दिन पहिने अरबा-अरबाइन खाइत छथि आऽ व्रतक दिन निराहार रहि सॉंझमे फलाहार करैत छथि। कतेक लोक सेहो रातिकऽ जगरना करैत छथि। ठाम-ठाम बालकृष्णक प्रतिमाकेँ सुन्दर पीताम्बर पहिना पालनामे झुलायल जाइत अछि। तकर बाद भोरे पारणा करैत छथि। कतेक लोक कृष्णाष्टमी नहि कऽ जन्माष्टमी व्रत करैत छथि।
स्कन्दपुराणमे जयन्तीव्रतक विशेषता मानल गेल अछि।सूर्योदयसॅं चन्द्रोदय तक अष्टमी रहए आऽ निशाभाग रातिमे रोहिणी नक्षत्रक योग होए तँ ई व्रत अवश्य करबाक चाही। यदि सोम वा बुद्ध दिनक पड़ैत अछि तथा नवमीयुक्त होए तँ बेसी प्रशस्त होइत अछि।जॅं रोहिणी नक्षत्रक योग नहि होए तँ जन्माष्टमी व्रतक संगे जयन्ती व्रत सेहो करबाक चाही नहि तँ जन्माष्टमी व्रतक महत्व नहि रहि जाएत ई धारणा अछि।
एहि वर्ष कृष्णाष्टमी-जन्माष्टमी २३/२४ अगस्तकेँ अछि। महाराष्ट्रमे एहिदिन दही-हांडीक प्रथा बहुत प्रचलित अछि।
कुशोत्पतन / कुशी अमावस्या
भादवमासक अमावस्याकेँ कुशी अमावस्या कहल जाइत अछि। एहि दिनक विशिष्टता यैह अछि जे एहि दिनक उखाड़ल कुशक उपयोग वर्षपर्यन्त भऽ सकैत अछि। कुश मिथिलांचलमे प्रत्येक पूजा पाठमे काज आबैत अछि। ताहिलेल गृहस्थ सऽ लऽ कऽ साधु सभ कुश संजोगिकऽ राखए छथि। आन अमावस्याक उपाड़ल कुशक उपयोग मात्र एक मास तक भऽ सकैत अछि आऽ अनदिना कुश उपाड़ि कऽ दोसर सुर्योदय तक काज लेल जा सकैत अछि।
श्मशान भूमि, बाटपरक यज्ञस्थली, पिण्डदानक स्थान वा अन्य कोनो अपवित्र भूमि परक कुश नहि उपर्युक्त होइत अछि। पितृजीवि बालक तथा पिताक अछैत बालक कुश उपाड़क काज नहि कऽ सकैत छैथ।
कुश उपाड़क मंत्र निम्नलिखित अछि :
''ॐ कुशाग्रे वसते रुद्र: कुशमध्ये तु केशवः।
कुशमूले वसेद् ब्रह्मा कुशान्मे देहि मेदिनि॥
ॐ कुशोऽसि कुशपुत्रोऽसि ब्रह्मणा निर्मित: पुरा।
देव पितृ हितार्थाय त्वां समुत्पाट्याम्यहम्‌॥"
एहि वर्ष कुशी अमावस्या ३० अगस्त, शनि दिनक पड़ल अछि।

१०. संगीत शिक्षा-गजेन्द्र ठाकुर
रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, वागयकार, शिक्षक आऽ मंच सम्पादक छथि।
२.राग विद्यापति कल्याण – त्रिताल (मध्य लय)

स्थाई- भगति वश भेला शिव जिनका घर एला शिव, डमरु त्रिशूल बसहा बिसरि उगना भेष करथि चाकरी।
अन्तरा- जननी जनक धन, “रामरंग” पावल पूत एहन, मिथिलाक केलन्हि ऊँच पागड़ी॥

स्थाई- रे

सा गम॑ प म॑ प - - म॑ग॒ - रे सा सारे नि सा -, नि
ग तिऽऽ व श ऽ ऽ भे ऽ ला ऽ शि ऽ व ऽ ऽ जि

ध़ नि सा रे सा नि॒ – प़ ध़ नि॒ ध़ प़ – नि सा - - सा
न का ऽ घ र ऽ ऽ ए ऽ ला ऽ शि व ऽ ऽ ड

रे ग॒ म॑ प प – प नि॒ ध प म॑ प धनि सां सां गं॒
म रु ऽ त्रि शू ऽ ल ब स हा ऽ बि सऽ ऽऽ रि उ

रें सां नि रें सां नि॒ ध प म॑ प पनि॒ ध प - -ग -- रे
ग ना ऽ ऽ भे ऽ ष क र थि चाऽ ऽ कऽ ऽरी ऽऽ, भ

अन्तरा प


प नि सां सां सां - - ध नि - ध नि नि सां रें सां -, नि
न नी ऽ ज न ऽ ऽ ऽ ऽ क ध न ध न ऽ, रा

नि सां – गं॒ रें सां सां नि – ध नि सां नि॒ ध प ग॒

म॑ प नि सां सां नि॒ ध प म॑ प पनि॒ ध प- -ग – रे
थि ला ऽ क के ल न्हि ऊँ ऽ च पाऽऽ गऽ ऽड़ी ऽऽ,भ
***गंधार कोमल, मध्यम तीव्र, निषाद दोनों व अन्य स्वर शुद्ध।
बालानां कृते


१.रघुनी मरर-गजेन्द्र ठाकुर
२. देवीजी:व्यायाम आवश्यक- ज्योति झा चौधरी
रघुनी मरर

चित्र: ज्योति झा चौधरी
देवदत्त, काशीराम आऽ रघुनी मरर तीन भाँय। गाय चराबए जाथि। एक बेर अकाल आयल तँ रघुनी भागि कए सहरसाक बनमां प्रखण्डक बिदिया बरहमपुर गाममे अपन डेरा खसेलन्हि।एतए जमीन्दार रहथि जुगल आऽ कमला प्रसाद। जुगल प्रसाद एक बेर दंगल करेने छलाह, ओहि दंगलकेँ जितने छलाह रघुनी। रघुनी हुनके लग गेलाह। एक सय बीघा जमीन देलन्हि जुगल प्रसाद हुनका। सुगमां गाममे बथान बनओलन्हि रघुनी। खेती करथि आऽ परिवारसँ दूर सुगमा गाममे रहथि।

एम्हर जुगल प्रसादक घरमे कलह भेल आऽ अपन जमीन-जत्था ओऽ गागोरी राजकेँ बेचि देलन्हि। रघुनीकेँ जखन ई पता चललन्हि तँ हुनका बड्ड दुख भेलन्हि।

एक दिन संगीक संग रघुनी नाच देखबाक लेल सिमरी गामक चौधरीक दलान पर गेल। चौधरी नाचक बाद नटुआकेँ औँठी आऽ दुशाला देलखिन्ह। रघुनी नटुआकेँ कहलखिन्ह जे बथान परसँ अपन पसिन्नक एक जोड़ी गाय हाँकि लिअ। नटुआ खुशीसँ दू टा निकगर गाय हाँकि अनलक आऽ खुशीसँ चौधरीकेँ देखेलक। मुदा चौधरीकेँ बुझेलए जे रघुनी हुनका नीचाँ देखबए चाहैत छथि। मुदा सोझाँ-सोँझी भिरबाक हिम्मत तँ छलए नहि।

से चौधरी देवी उपासक जादूक कलाकार मकदूम जोगीसँ भेँट कएलक। ओऽ जोगीकेँ कहलक जे रघुनीकेँ हमर नोकर बना दिअ। जोगी सरिसओ फूकि छिटलक मुदा रघुनी छल देवी भक्त से जोगीक जादू नहि चललैक।

चण्डिकाक सिद्धि कएलक जोगी आऽ रघुनी पर जादू सँ सए टा बाघसँ घेरबा कए मारि देलक। मुदा भक्त छल रघुनी से चण्डिकाक बहिन कामाख्या आबि रघुनीकेँ जिया देलन्हि। दोसर जादू लेल जोगी सरिसओ मन्त्राबए लेल जे सरिसओ मुट्ठीमे लेलक तँ मुट्ठी बन्दक-बन्दे रहि गेलैक।
फेर चौधरीकेँ पता चललैक जे रघुनी गागोरी राजाक लगान नहि देने अछि। से ओऽ राजा लग गेल आऽ कहलक जे रघुनी ने तँ अपने लगान देने अछि आऽ उनटले लोक सभकेँ लगान देबासँ मना कए रहल अछि।

गाम पर रघुनी नहि रहए आऽ सिपाही सभ ओकर भाए देवदत्त मररकेँ लए विदा भए गेलाह। रस्तामे केजरीडीह लग देवदत्त रघुनीकेँ देखलन्हि, रघुनी सेहो देवदत्तकेँ देखलन्हि। मुदा सिपाही सभ रघुनीकेँ नहि देखि सकलाह। मुदा जखन राजा देवदत्तकेँ काल कोठरीमे दए सिपाही सभकेँ ओकरा मारबाक लेल कहलक तँ उनटे जे कोड़ा चलबय तकरे चोट लागए। फेर राजा देवदत्तसँ कहलक जे गलती भेल आब अहाँ जे कहब सैह हम करब। देवदत्तक कहला अनुसार जे रैयत लगान नहि भरलाक कारणसँ जहलमे रहथि से छोड़ि देल गेलाह आऽ राजा रघुनी मररसँ सेहो माफी मँगलन्हि।

२. देवीजी: ज्योति झा चौधरी
देवीजी : व्यायाम आवश्यक

चित्र: ज्योति झा चौधरी
गामक विद्यालयमे प्रतिदिन व्यायामक शिक्षा देल जाएत छल; प्रार्थनाक समय, कक्षामे जाइ सऽ पहिने। कतेक बालककेँ इ बड्ड कष्टकारी लागैत छलै।ओ सब प्रार्थनाकाल प्रतिदिन नुका जाइ छल।शिक्षक सबसॅं ई बात नुकैल नहि रहल।ओ सब बच्चा सबहक अहि काज सऽ बहुत अप्रसन्न भेला।ओ सब देवीजीके नियुक्त केला ओकरा सबके बुझाबऽ लेल। देवीजी पता कर लगली जे ओ सब कत नुकाइत अछि।बेसी देर नहिं लगलैन इ ज्ञात करैत जे किछु बच्चा सब कक्षाक बेंचक नीचामे नुका जाइत छल। एक दिन देवीजी जहन प्रार्थना शुरु भेल तऽ कक्षामे जाकऽ तकनाई शुरी केली। किछु बच्चा सब ठीके नुकायल छलाह।
देवीजी तत्काल ओकरा सबके प्रार्थना लेल पठेलखिन। तकर बाद ओकरा सबके बुझेलखिन जे व्यायाम कतेक आवश्यक छै।ई शारीरिक आर बौद्धिक दुनु तरहक विकास लेल आवश्यक छै। अहि सॅं स्फूर्ति आबैत छै।भोरे-भोर व्यायाम केला सॅं दिनभरि मोन प्रसन्न रहै छै आ सबकाज में मोन लागै छै।जहिना खेनाई आवश्यक होइत अछि तहिना व्यायाम सेहो आवश्यक छै। कसरत करक अभ्यास स्वस्थ जीवनके आधार होइत अछि।तकर बाद ओ व्यायामक शिक्षक के रोचक तरीका स व्यायाम सिखेबाक आ शिक्षक सबके सेहो संगे व्यायाम करैके सलाह देलखिन।सब हुनकर बात मानलक। बच्चो सब अहि स प्रभावित भेल आ व्यायाम स भगनाई छोड़लक। देवीजी पुनश्च अपन कार्यमे सफल भेली।

बच्चा लोकनि द्वारा स्मरणीय श्लोक
१.प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त्त (सूर्योदयक एक घंटा पहिने) सर्वप्रथम अपन दुनू हाथ देखबाक चाही, आ’ ई श्लोक बजबाक चाही।
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्॥
करक आगाँ लक्ष्मी बसैत छथि, करक मध्यमे सरस्वती, करक मूलमे ब्रह्मा स्थित छथि। भोरमे ताहि द्वारे करक दर्शन करबाक थीक।
२.संध्या काल दीप लेसबाक काल-
दीपमूले स्थितो ब्रह्मा दीपमध्ये जनार्दनः।
दीपाग्रे शङ्करः प्रोक्त्तः सन्ध्याज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपक मूल भागमे ब्रह्मा, दीपक मध्यभागमे जनार्दन (विष्णु) आऽ दीपक अग्र भागमे शङ्कर स्थित छथि। हे संध्याज्योति! अहाँकेँ नमस्कार।
३.सुतबाक काल-
रामं स्कन्दं हनूमन्तं वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं दुःस्वप्नस्तस्य नश्यति॥
जे सभ दिन सुतबासँ पहिने राम, कुमारस्वामी, हनूमान्, गरुड़ आऽ भीमक स्मरण करैत छथि, हुनकर दुःस्वप्न नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
४. नहेबाक समय-
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू॥
हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु आऽ कावेरी धार। एहि जलमे अपन सान्निध्य दिअ।
५.उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तत् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥
समुद्रक उत्तरमे आऽ हिमालयक दक्षिणमे भारत अछि आऽ ओतुका सन्तति भारती कहबैत छथि।
६.अहल्या द्रौपदी सीता तारा मण्डोदरी तथा।
पञ्चकं ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशकम्॥
जे सभ दिन अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा आऽ मण्दोदरी, एहि पाँच साध्वी-स्त्रीक स्मरण करैत छथि, हुनकर सभ पाप नष्ट भऽ जाइत छन्हि।
७.अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरञ्जीविनः॥
अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनूमान्, विभीषण, कृपाचार्य आऽ परशुराम- ई सात टा चिरञ्जीवी कहबैत छथि।
८.साते भवतु सुप्रीता देवी शिखर वासिनी
उग्रेन तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः।
सिद्धिः साध्ये सतामस्तु प्रसादान्तस्य धूर्जटेः
जाह्नवीफेनलेखेव यन्यूधि शशिनः कला॥
९. बालोऽहं जगदानन्द न मे बाला सरस्वती।
अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्त्रयम् ॥

१२. पञ्जी प्रबंध-गजेन्द्र ठाकुर
पञ्जी प्रबंध

पंजी-संग्राहक- श्री विद्यानंद झा पञ्जीकार (प्रसिद्ध मोहनजी)
श्री विद्यानन्द झा पञीकार (प्रसिद्ध मोहनजी) जन्म-09.04.1957,पण्डुआ, ततैल, ककरौड़(मधुबनी), रशाढ़य(पूर्णिया), शिवनगर (अररिया) आ’ सम्प्रति पूर्णिया। पिता लब्ध धौत पञ्जीशास्त्र मार्त्तण्ड पञ्जीकार मोदानन्द झा, शिवनगर, अररिया, पूर्णिया|पितामह-स्व. श्री भिखिया झा | पञ्जीशास्त्रक दस वर्ष धरि 1970 ई.सँ 1979 ई. धरि अध्ययन,32 वर्षक वयससँ पञ्जी-प्रबंधक संवर्द्धन आ' संरक्षणमे संल्गन। कृति- पञ्जी शाखा पुस्तकक लिप्यांतरण आ' संवर्द्धन- 800 पृष्ठसँ अधिक अंकन सहित। पञ्जी नगरमिक लिप्यान्तरण ओ' संवर्द्धन- लगभग 600 पृष्ठसँ ऊपर(तिरहुता लिपिसँ देवनागरी लिपिमे)। गुरु- पञ्जीकार मोदानन्द झा। गुरुक गुरु- पञ्जीकार भिखिया झा, पञ्जीकार निरसू झा प्रसिद्ध विश्वनाथ झा- सौराठ, पञ्जीकार लूटन झा, सौराठ। गुरुक शास्त्रार्थ परीक्षा- दरभंगा महाराज कुमार जीवेश्वर सिंहक यज्ञोपवीत संस्कारक अवसर पर महाराजाधिराज(दरभंगा) कामेश्वर सिंह द्वारा आयोजित परीक्षा-1937 ई. जाहिमे मौखिक परीक्षाक मुख्य परीक्षक म.म. डॉ. सर गंगानाथ झा छलाह।
६म छठि – परहट सकराढ़ी मूलक हर्षनाथ झाक श्वसुर खण्डबला भौर मूलक श्यामनाथ ठाकुरक बालक महेश्वर ठाकुरसँ कन्दा छठम स्थानमे छथि- तँ (१) महेश्वर ठाकुर (२) हर्षनाथ झा (३) सिद्धिनाथ झा (४) पीताम्बर झा (५) शशिनाथ झा (६) कन्या- एहि तरहेँ खण्डबला भौर मूलक महेश्वर ठाकुर छठम छठि कहौताह।

७म छठि- कन्याक पिताक मातामहीक पितामह- यथा हरिअम मूलक बलिराजपुर मूल ग्रामक सेवानाथ मिश्रक पौत्री, बालमुकुन्द मिश्रक पुत्री कन्याक पिता शशिनाथ झाक मातामही छथि, तँय (१) सेवानाथ मिश्र-पुत्र(२)बालमुकुन्द मिश्र (३)जामाता-सिद्धिनाथ झा (४) जामाता-पीताम्बर झा (५) पुत्र शशिनाथ झा (६) पुत्री-कन्या, अस्तु, हरिअम बलिराजपुर सेवानाथ मिश्र ७म छठि भेलाह।

८म छठि- कन्याक पितामहीक मातृ मातामह-यथा- सोदरपुर मूलक सरिसब मूल ग्राम वाला (१) गदाधर मिश्र-जामाता (२) बालमुकुन्द मिश्र-जामाता (३)सिद्धिनाथ झा(४)जामाता पीताम्बर झा- पुत्र(५) शशिनाथ झा (६) कन्या। ताहि हेतु सोदरपुर सरिसव गदाधर मिश्र आठम छठि छथि।

९म छठि- कन्याक मातामहक प्रपितामह- खण्डबला मूलक भौर मूलग्राम (१)धर्मनाथ ठाकुर-पुत्र (२) योगनाथ ठाकुर-पुत्र (३)दुर्गानाथ ठाकुर-पुत्र (४) नारायणदत्त ठाकुर-जामाता (५) शशिनाथ झा-तनिक (६) कन्या- अर्थात् धर्मनाथ ठाकुरसँ कन्या- ६म स्थानमे छथि। तँय धर्मनाथ ठाकुर नवम् छठि भेलाह।

१०म छठि- कन्याक प्रमातामह (दुर्गानाथ ठाकुरक) मातामह- बभनियाम मूलक कड़राइन मूलग्रामक सन्तलाल झासँ कन्या छठम स्थानमे छथि- यथा (१) सन्तलाल झा- हिनक जमाय, (२)योगनाथ ठाकुर (३)पुत्र दुर्गानाथ ठाकुर पुत्र(४) नारायणदत्त (५) जमाय- शशिनाथ झा तनिक पुत्री (६) कन्या। एहि हेतुए बभनियाम मूलक सन्तलाल झा १०म छठि।

११म छठि करमहा मूलक नड़ुआर मूलग्रामक बछरण झासँ कन्या- छठम् स्थानमे छथि- यथा
(१)बछरण- पुत्र (२)खेली- जमाय-(३)दुर्गानाथ ठाकुर (४)तनिक पुत्र- नारायणदत्त ठाकुर- जमाय (५)शशिनाथ (६) पुत्री-कन्या- अस्तु बछरण झा ११म छठि।

१२म छठि- कन्याक मातामहक मातृमातामह खण्डवला मूलक भौर मूलग्रामक जीख्खन ठाकुर-सँ कन्या छठम स्थानपर, क्रम- (१)जीख्खन ठाकुर (२) खेली झा जमाय (३) दुर्गानाथ ठाकुर (४) पुत्र- नारायणदत्त- जमाय (५) शशिनाथ-पुत्री (६) कन्या।

१३म छठि- कन्याक मातामहीक प्रपितामह हरिअम मूलक बलिराजपुर मूलग्रामक योगीलाल मिश्र। यथा- (१)योगीलाल –पुत्र (२) कमलनाथ मिश्र (३) पुत्र- शक्तिनाथ मिश्र (४) जमाय- नारायणदत्त ठाकुर- जमाय (५) शशिनाथ-पुत्रे (६)कन्या।

१४म छठि- कन्याक मातामहीक पितृमातामह अर्थात् सोदापुर मूलक दिगउन्ध मूलग्रामक कौशिल्यानन्द मिश्र- यथा- (१) कौशिल्यानन्द मिश्र- तनिक जमाय (२) कमलनाथ मिश्र तनिक (३)पुत्र शक्तिनाथ मिश्र, तनिक जमाय (४) नारायण दत्त ठाकुर तनिक (५) जमाय शशिनाथ झा- तनिक पुत्री (६) कन्या।

१५म छठि- कन्याक मातामहीक प्रमातामह अर्थात् खण्डवला मूलक भौर मूलग्रामक महाराज कुमार बाबू गुणेश्वर सिंह यथा- (१) बाबू गुणेश्वर सिंह- पुत्र (२) बाबू ललितेश्वर सिंह (३) जमाय- शक्तिनाथ मिश्र- तनिक जमाय (४) नारायणदत्त ठाकुर (५) तनिक जमाय- शशिनाथ झा- तनिक पुत्री (६) कन्या।

१६म छठि- कन्याक मातामहीक मातृमहीक मातृमातामह अर्थात् खौआल मूलक सिमरवाड़ मूलग्रामक- पद्मनाथ झासँ कन्या छठम् स्थानमे छथि-

यथा- (१) पद्मनाथ-जमाय (२)बाबू ललितेश्वर सिंह (३)जमाय शक्तिनाथ (४) जमाय-नारायणदत्त (५) जमाय-शशिनाथ, (६) पुत्री-कन्या।

उपरोक्त प्रकारे कन्याक सोलह छठि प्राप्त भेल।

वरपक्ष: कन्यहिँ सदृश वरहुकेँ उत्तेढ़ (बत्तीस) मूलक बनाओल जाइत छैक। एहि मध्य दू-प्रकारक परिचय रहैत छैक- (१)वरक पिता-पितामहादि तथा हुनका लोकनिक मातृकुलक जे वरक हेतु पितृकुल भेल, दोसर दिस वरक मायक पितृकुलक जाहि मध्य वरक मातामहादि तथा हुनका लोकनिक मातृकुलक परिचय।

कोनहु कथा जँचबाक हेतु पञ्जीकार सभसँ पहिने कन्याक छठिक निर्धारण कए लैत छथि। ततःपर वरक उतेढ बनबैत छथि। तखन देखबाक रहैत छन्हि जे कन्या जिनकासँ छठि छथि से तऽ वरक परिचयमे नहि पवैत छथि। जँ से कोनो छठि भेट गेलाह, तँ देखबाक रहैछ जे वरक कोन पक्ष (पितृ-मातृ)के अएलाह। मातृ-पक्ष रहने अधिकार हो आओर पितृ-पक्षमे रहने नहि हो, से वचन पूर्वमे कहि आएल छी।


संस्कृत मिथिला
-गजेन्द्र ठाकुर
लक्ष्मीधर
कृत्यकल्पतरुक लेखक लक्ष्मीधर भट्ट हृदयधरक पुत्र छलाह। हुनकर पिता राजा गोविन्दचन्द्रक दरबारमे शान्ति आऽ युद्धक मंत्री छलाह। लक्ष्मीधर मीमांसक छलाह। चण्डेश्वर, वाचस्पति आऽ रुद्रधर अपन-अपन रचनामे लक्ष्मीधरक उद्धरण प्रचुर मात्रामे देने छथि। लक्ष्मीधर एगारहम शताब्दीक दोसर भाग आऽ बारहम शताब्दीक पहिल भागमे अवतरित भेल छलाह।
लक्ष्मीधरक कृत्यकल्पतरु महाभारतक एक तिहाइ आकारक अछि आऽ जीवन जीबाक कला आऽ निअमक वर्णन करैत अछि। मैथिल-स्मृतिशास्त्रक ई श्रेष्ठतम योगदान अछि। चण्डेश्वरक विवाद रत्नाकर पूर्ण रूपसँ कृत्यकल्पतरुपर आधारित अछि, विद्यापतिक विभागसार सेहो कल्पतरुक विषयसूचीक प्रयोग करैत अछि।
लक्ष्मीधरक विचार- राजाक कार्य कानून आऽ न्याय प्रदान केनाइ छैक। व्यवहार तार्किक रूपसँ राजधर्मक रूपमे बुझल जाऽ सकैत अछि। राज्यक सात टा पारम्परिक तत्त्वक सेहो चरचा अबैत अछि। राजाक कर्तव्यक छह प्रकारक षडगुण्यम केर सेहो चर्च अछि। राजशाहीकेँ ओऽ सरकारक एकमात्र विकल्प कहैत छथि। मुदा लक्ष्मीधर राजाक दैविक उत्पत्तिमे विश्वास नहि करैत छथि। राजा जनताक ट्रस्टी अछि, न्यायी अछि आऽ धर्मक अनुसार कार्य करैत अछि। मुदा राजाकेँ धार्मिक-कानून बदलबाक कोनो अधिकार नहि छल। सर्वभौमिकताक अभिषेकक बाद राजाक शिक्षा-दीक्षा आऽ जनताक प्रति आदरपर ओऽ बहुत जोड़ देलन्हि। लक्ष्मीधर राजकर्मचारीक आचार-संहितापर बड़ जोर दैत छथि। दुर्गक विवरण ओऽ राजमहल आऽ किलाक रूपमे करैत छथि।

इंग्लिश-मैथिली कोष मैथिली-इंग्लिश कोष
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रसमय कवि चतुर चतुरभुज शब्दावली-गजेन्द्र ठाकुर
रसमय कवि चतुर चतुरभुज- विद्यापति कालीन कवि। मात्र १७ टा पद्य उपलब्ध, मुदा ई १७ टा पद हिनकर कीर्तिकेँ अक्षय रखबाक लेल पर्याप्त अछि। उदाहरण देखू-
दिन-दिन दुहु-तन छीन, माधव
एकओ ने अपन अधीन।
हे कृष्ण! दिनपर दिन दुनूक तन विरहसँ क्षीण भेल जाऽ रहल अछि, आऽ दुनूमे केओ अपन अधीन नहि छथि।

विहि- विधाता
सञानि- युवती
तनु- वयश, देह
आँतर- अन्तर, भीतर
गोए- नुकाएब
वेकत- व्यक्त
गेहा- ठाम
परि- प्रकारे
विरहानल- विरहक आगि
काँती- कान्ति
धमित- धिपाओल
निरूपए- निरीक्षण
परिहर- उपेक्षा
अचिरहिँ- अल्पकालहि
वामे- प्रतिकूल
निअ- निज, अपन
मलयज- चानन
सयानि- विरह विदग्धा नायिका
धनि- धन्या-नायिका
हेरसि- निहारैत
हरषि- हर्षित भए
परिहरि- मेटाय
नखत- तरेगण
मधुरि-दल- उभय-ओष्ठ
मनसिज- कामदेव
अवनत- नीचाँ झुकनाइ
हुतासन- ज्वाला
(अनुवर्तते)
ज्योतिरीश्वर शब्दावली
गोण्ठि- मलाह
कबार- तरकारी बेचनिहार
पटनिआ- मलाह
लबाल- लबरा
लौजिह- ललचाइत जीह बला
पेटकट- जकर पेट काटल छैक/ अनकर पेट कटैत अछि।
नाकट- नककट्टा
बएर- बदरीफल
बाबुर- बबूर
खुसा- शुष्क
चुसा- चोष्य
फरुही- मुरही/ लाबा
करहर- कुमुदक कन्द
मलैचा- मेरचाइ
सारुक- भेँटा (श्वेत कुमुदक) कन्द
बोबलि- घेचुलि –खाद्य कन्द
बाँसी- वंशी
हुलुक- हुडुक्का (वाद्य यंत्र)
जोहारि – प्रणाम
तोरह – तौलह
बराबह- फुटा कए राखह
खुटी- महिला द्वारा कानक ऊर्ध्वभागमे पहिरए जायबला खुट्टी
सिङ्कली- सिकड़ी
चुलि- चूड़ी
त्रिका- माँग टीका
खञ्जरीट- खंजन पक्षी
साँकर- चीनी, लालछड़ी
बिरनी- वेणी, जुट्टी
कम्बु- शंख
पञु- पद्म
राउत- सैनिक पदाधिकारी
राजशिष्ट- राजाक दरबारी
पुरपति- नगरक मुख्य
साधि- सेठ
गन्धवणिक- कस्तूरी आदि सुगन्धी बेचनिहार
बेलवार- सीमारक्षक
राजपुत्र- एकटा पदाधिकारी
द्वारिक- राजदरबारमे प्रवेशक अनुज्ञा देनिहार
पनिहार- द्वारपाल
अगहरा- अग्रहार पाबि काज कएनिहार
रौतपति/ राजपुत्रपति- रौत सभक प्रधान
सन्धिविग्रहिक- विदेशमंत्री
महामहत्तक- प्रतिरक्षामंत्री
प्रतिबलकरणाध्यक्ष- शत्रुसेनाक जासूसीक विभाग
स्थानान्तरिक- राजाक पर्यटनक व्यवस्था केनिहार अधिकारी
नैबन्धिक- दस्तावेज लिखनिहार
वार्तिक- गुप्तवार्ता संग्राहक, वार्तिक आऽ महावार्तिक पञ्जीमे उच्च पदवी
आक्षपटलिक- द्युतग्रुहक अधिकारी
खड्गग्राह- हाथमे खड्ग लेने राजाक रक्षक- खर्गा
प्रमत्त्वार- बताहेकेँ रोकएबला अधिकारी
बिश्वास- राजाक अंतरंग सहायक
अग्रजाणिक- राजाक प्रयाणमे आगा-आगा चलनिहार सुरक्षा-दल
गूढ़ पुरुष- गुप्तचर
प्रणिधि- गुप्तचर
वार्तिक- गुप्तचर
सूपकार- भनसीया
सूपकारपति- भनसिया-प्रधान
सम्बाहक- भनसियाक परिचारक
बलिष्ठ- शारीरिक बलबला अंगरक्षक, बैठा
श्रोत्रिय- वैदिक
आध्यायिक- अध्येता
मौहूर्तिक- ज्योतिषी
आम्नायिक- वैदिक वा तान्त्रिक, युद्धविषयक परामर्शदाता
चूड़ामणि- भविष्यकथनशास्त्र
पँचरुखी काँच- प्रिज्म
महथ- उच्च कोटिक सैनिक पद, महथा/ मेहता/ महतो
मुदहथ- जिनका हाथमे राजाक मोहर रहैत छल
महसाहनि- आपूर्ति अधिकारी
महसुआर- प्रधान भनसिआ
महल – महर, समृद्ध गोपाल, जेना नन्द महर
सेजवार- सय्यापाल
पनहरि- ताम्बूलवाह
राजवल्ल्भ- दरबारी
भण्डारी- भाण्डागारिक
कलबार- वणिक
चोरगाहा- चाँवर होकिनहार
सुखासन- आरामकुर्सी
चौपाड़ि बहरघर, दलान, पाठशाला
अँचरा- गमछा
समरहर- अंगमर्दन
विदान- व्यायाम-३६ प्रकारक
तमारु- तामाक लोटा
पनिगह- पानि फेकबाक पात्र
तमकुण्ड- तामाक गँहीर अढ़िया
अप्यायक- तृप्तिकारक
फेना- बरकाओल चीनीक मधुर
जेञोनार- भोज
स्वर्गदुर्लभ- पान
दण्डिया- डंटाक उपरका पासि
भृङ्गार- स्वर्णकलस
आरहल- आरम्भ कयल
किटाएल- क्रुद्ध
नियोगी- एक प्रकारक फकीर
बुसक- भूसाक
धुनि- घूड़
संकोच- छोट होयब
अपगत- अलक्षित
सम्भार- प्रसार
कौशिक- उल्लू
गोमायु- सियार
नओबति- प्रहरी-दल
चतुःसम- द्रव- भीतरका धरातल नीपबाक
माठ- खाजा-माठ
उनच- उलोँच, चद्दरि(ओछेबाक)
दर्द्दुर- बेङ
झिकरुआ- झीङुर
निविल- निविड़ घन
काकोल- कार-कौआ
कोल- सूगर
शिवा- गिदरनी
फेत्कार- भूकब
सार्थवाह- व्यापारी यात्रादल-हरवल्ल्भा
प्रसारी- संचारशून्य मेघ
अखलु- प्रतीत होइत अछि
अखउलि- पूर्वमे कहल
वारिभक्त- पानिमे राखल बासी भात
सौहित्य- तृप्तता
उपचय- वृद्धि
पाण्डुरता- श्वेत भेनाइ जेना शरदमे मेघ कारीसँ उज्जर भऽ जाइत अछि
प्रसन्नता- स्वच्छता
सफरी- पोठी माछ
तरङ्ग- चञ्चलता
शालि- दाना भरल झुकल धान
मरुआ- तुलसी जतिक पुष्पवृक्ष
विशेषकच्छेद- कपार गलपर कस्तूरीसँ चित्र बनायब
दर्शनविधि- दाँत आऽ ठोर रँगब
वसनविधि- वस्त्र रँगब
वर्णिकाविधि- चित्रलेखन
शेखरयोजन- खोपा बान्हब
पत्रभङ्गि- शरीरमे कस्तूरी लेपन
गन्धयुक्ति- अतर-फुलेल बनायब
पानककरनी- शरबत बनायब
पट्टिकावान- पटिआ बीनब
तर्कुकर्म- सीकी-शिल्प
आकरज्ञान- भूतत्त्वविज्ञान
अक्षरमुष्टिका- आँगुरक संकेतसँ अक्षर-भावक निर्देश
दोहदकरण- कृत्रिम उपचारसँ वृक्षकेँ दुर्भिक्षमे पुष्पित करब।
छलितयोग- एकप्रकारक योग
रसवाद- रसायनविज्ञान
दुकूल- घोघट-ओढ़नीक लेल प्रयुक्त वस्त्र
क्षौम- तीसीक सोनसँ बनल वस्त्र
कौशेय- कीटकोशसँ बनल तसर वस्त्र
कमरूबाल- कामरूप बला
बङ्गाल- वङ्गबला
गुञ्जर- गुर्जर
कठिबाल- काठियाबाड़बला
बरहथी- बारह हाथक
बैङ्गना- भट्टासन रंगबला
पञ्चहर- पाँच खण्डक महल
पञ्चसम- पञ्च सुगन्धिद्रव्यक चूर्ण
प्रदीपकलस- अहिबातक पातिल, कलसमे राखल मङ्गलदीप जे बसातसँ मिझाय नहि
षेमा- राजा आऽ सेनाक अस्थायी शिविर
वारिगह- हथिसार वा घोड़सार
एकचोइ/ दोचोइ- एक वा दू मुख्य स्तंभ बला तम्बू
मण्डबा- मड़बा
कपलघड़- कपड़ाक घर
बरागन- बेरागन, सोम-रवि आदि
चेष्टसार- द्यूतशाला
सहिआर- अम्पायर
खेलबार- द्यूतशालाक मालिक
दण्डसाह- दण्डसाक्षी
कात- काँति, हारि-जीत लेल राखल द्रव्य
उपनय- समीप आनब
भुजङ्ग- समदिया, चुगला
घल- झुण्ड
अगिरानि- अग्रगामी रक्षक दल
सेनगाह- सेनानायक
रजाएस- राजादेश
घोल- घोड़ा
पाएन- पएर रखबाक वलय
पलानि- जीन लगाए घोड़ाकेँ कसब
थलबार- घोड़सारमे रहि अश्वक पालन कएनिहार
पाग- मुरेठा
सरमोजा- माथमे पहिरबाक मोजा
गान्ती- गाँती
बाग- चाबुक
साङ्कल- कड़ी
डाम्भ- काँच नारिकेर
फरेन्द- फाँक
कोन्ते- बरछी
लउली- लाठी
जाठी- फड़ाठी
कोन्तिआ- बरछीबाला
धमसा- नगाड़ा
महुअरि- फूँकि कए बजयबाक एक वाद्य
अनायत- ववश, बहीर
षतबार- पहरादार
बाइति- वाद्यध्वनि
टाप- घोड़ाक खूरपात
मुहरव- मुखध्वनि
पलानि- कसि कय
करुअक- कयलक
सर्वांवसर- आम दरबार
वेकल्हेण्टे- डाँड़
पाट- रेशमी
धलि- धड़िया, कप्पा
पाझि- पक्षी
टोपर- टोप सन झपना
सइचान- बाज पक्षी
पितशाल- पीरा साँखु
सरल- धूप सरड़
सिम्बलि- सीमर
सिंसप- सीसी
सहोल- साहोड़
पाउलि- पाँड़रि
बंझि- बाँझि
गिरिछ- रिछ
गुआ- सुपारी
नरङ्ग- सन्तोला
नमेरु- रुद्राक्ष
बउर- बकुल, भालसरि
छोलङ्ग- छोहारा
जुड़- शीतल
एला- अड़ाँची
सुखमेला- छोटकी अड़ाँची
मधुकर- शतावरी
कम्पूर कदली- कर्पूरकदली
कपिञ्जल- तितीर
धारागृह- फुहारासँ युक्त स्नानगृह
स्थेय- भगनिहार नहि
परम्परीण- वंशपरम्परासँ चल अबैत
पुरुष- रक्षक, सिपाही
कार- कारी
काबर- चितकाबर
चलक- चरक, श्वेतवर्ण
गोल- गौर
कइल- कपिल
पाण्डर- पाण्डुर
शीकरविक्षेप- फुहारा छोड़ब
गण्डूष- कुड़रा
नाकजलबुद्बुद- नाकसँ जलमे हवा छोड़ि बुदबुद बनायब
पिण्ड- पीड़ी
पारी- बेढ़
साटि- खुट्टा
चुत- आम
पस्रवण- सोता
पहाल- गिरि
डोङ्कल- डोंगर
चुली- चोटी
कोइआर- कोविदार
सैम्ब- सीमर
सीसमु- सीसो
साङ्कु- साँखु
समि- शनि, सैनि
सहोल- साहोड़
पञोकठ- पद्मकाठ
सभर- साँभर, अष्टापद मृग
कुटुम्बिनी- खीरी
कठहरिआ- कठखोदी
पेच- उल्लू
स्रुच- काठक लाड़नि, दाबि
पञ्चामृत- दही, दूध, घृत, मधु, शर्करा
पञ्चकषाय- शरीरमे लगयबाक पाँच सुगन्धिद्रव्यक चूर्ण
चषाल- यूपक माथ परक थुमहा
उदूखल- उक्खरि
चमस- बाटी
संभृति- सामग्री
सप्तधान्य- जओ, गहुम, तिल, काउन, साम, चीन, नीवार
आषाढ़दण्ड- पलाशदण्ड
तरुत्वच- वल्कल
वृक्षी- मुनिक बैसबाक आसन
दारुपात्र- कठौत
करण्डक- छिट्टा, पथिआ
बह्आरि- बहुरिआ, पुतोहु
बिदान- दाओ, मुद्रा
उभरि- उछलि कए ऊपर आबि, कुश्तीक दाओ
अवधा- अधोमुख, कुश्तीक दाओ
विद्यावन्ति- नर्तकी
सोताक ककना- मङ्गल सूत्र
सिङ्कली- सिंकड़ी
शाख- शंखाचूड़ी
खुन्ती- खुट्टी- कानक उपरका भागमे पहिरल जाइछ
चूलि- चूड़ी
तृका- माँगटीका
दशञुधि- दसौन्ही- राजाकेँ कालक सूचना देनिहार, सम्प्रति भाट
समहथ- समहस्त, बाजा सभपर एकबेर हाथ दए संगीत निकालब
मण्डल- हाथ-पएरक चक्राकार संचार कए एक मुद्रासँ दोसर मुद्रामे पहुँचबाक क्रिया
अङ्गहार- अङ्गसभकेँ विलासपूर्वक उचित स्थानमे पहुँचाएब
भाल- भूजाबलाक चूल्हि
ओबारी- पातिल
शिवा- गिदड़नी
भीम- भयानक
उल्कामुख- एक जातिक गीदड़ जकड़ा मुहसँ धधरा बहराइत छैक
जन्ताक- जाँतक
चुञ्ची- स्तन
पसार- दोकान
पेचा- उल्लू पक्षी
षीषील- खिखीड़
नेउर- बीजी
अपर्यन्त- असीम
पाट- पट्टवस्त्र
कापल- कपड़ा
सकलात- गलैचा
दुसुखासन- सुखद शय्या
लचसूचिका- नओ सुइयापर बिनायल बिछाओन
परिकर-नायक- दलपति
वर्हि- कुश
समिध- जारनि
दृषद- पाथर
लाज- लाबा
इष्टाङ्गना- भावी पत्नी
सुरती- सूरतसँ आयल, सम्प्रति सुरती तमाकू
जातीफल- जायफल
सूक्ष्मेला- छोटकी अड़ाँची
गुलत्वक- दालिचीनी
पत्रक- तेजपात
पिर्प्पली- पीपरि
कटुकी ओ दुलाह- दुलार काँट, वनौषधि
मूल्य परिछेद- मूल्य पटाएब
निष्क्रय- विनिमय
कर्षक्रय- सोनाक मुद्रा कीनब
अङ्कपरिस्थिति- लेखा-जोखा
हरण-भरण- माल लेब-देब
व्यवच्छेद- फरिछोट
नष्टकाक- कार कौआ
सलभ- फतिंगा
ग्रहिल- लगारी
सद्विचक्षण- नीक विद्वान्
वपा- भीड़-स्तूपाकार भूमि
खोल- खाधि
हस्तकाण्ड- लग्गा
गुणकाण्ड- नपबाक लग्गा
वत्सदन्त- बाछाक दाँत सन
भल्ल नख- भालुक नखक सदृश
तृपर्व- तीन पोर बला
सप्तपर्व- सात पोरबला
आलीढ़- दहिना ठेहुनकेँ उठाय ओ बामा ठेहुनकेँ नीचाँ रोपि ठाढ़ भेल
प्रत्यालीढ़- आलीढ़क विपरीत
समपाद- दुनू ठेहुन एक सरल रेखापर रोपि ठाढ़ भेल
बिशाख- दुनू टाँग चिआरि ठाढ़ भेल
स्थानक- ठाढ़ होएबाक ढ़ंग
असन- भाला
गोकर्ण- छोट भाला
मुकुल- कलिकाकार तीर
डाण्ड- पतबार, पानि उपछबाक कठौत
चाड, चडक- नाओ सभक बेड़ा
जुज्झार- लड़ाकू, युद्ध-पदाति
गणक- गणितज्ञ
ताराविद् – तारा देखि दिशाक ज्ञान करओनिहार
गुणवृक्ष- मस्तूल
सेकपात्र- नाओसँ पानि उपछबाक कठौत
वोहित- जहाजक बेड़ा
बिआरी- रात्रिभोजन
चोरगाहि- चामरिग्राहिणी
पटा- छोट पीढ़ी
बधा- खुट्टी लगला उत्तर खराऊँ मुदा डोरी लगला उत्तर बधा
तमारु- ताम्रपत्र
बटइ- बटेर
तेरिआ- तीन खुट्टाक- दू बिआनक महीस
लेबारी- नार-पुआर
अधतेरह- तेरहसँ आध कम अर्थात् साढ़े बारह
अँचओलनि- हाथ-मुँह धोलनि
देवरूपा- एक प्रकारक चानी

मैथिलीक मानक लेखन-शैली
1. जे शब्द मैथिली-साहित्यक प्राचीन कालसँ आइ धरि जाहि वर्त्तनीमे प्रचलित अछि, से सामान्यतः ताहि वर्त्तनीमे लिखल जाय- उदाहरणार्थ-
1.
ग्राह्य अग्राह्य
एखन अखन,अखनि,एखेन,अखनी
ठाम ठिमा,ठिना,ठमा
जकर,तकर जेकर, तेकर
तनिकर तिनकर।(वैकल्पिक रूपेँ ग्राह्य)
अछि ऐछ, अहि, ए।

2. निम्नलिखित तीन प्रकारक रूप वैक्लपिकतया अपनाओल जाय:
2.भ गेल, भय गेल वा भए गेल।
2.जा रहल अछि, जाय रहल अछि, जाए रहल अछि।
2.कर’ गेलाह, वा करय गेलाह वा करए गेलाह।
2.
3. प्राचीन मैथिलीक ‘न्ह’ ध्वनिक स्थानमे ‘न’ लिखल जाय सकैत अछि यथा कहलनि वा कहलन्हि।
3.
4. ‘ऐ’ तथा ‘औ’ ततय लिखल जाय जत’ स्पष्टतः ‘अइ’ तथा ‘अउ’ सदृश उच्चारण इष्ट हो। यथा- देखैत, छलैक, बौआ, छौक इत्यादि।
4.
5. मैथिलीक निम्नलिखित शब्द एहि रूपे प्रयुक्त होयत:
5.जैह,सैह,इएह,ओऐह,लैह तथा दैह।
5.
6. ह्र्स्व इकारांत शब्दमे ‘इ’ के लुप्त करब सामान्यतः अग्राह्य थिक। यथा- ग्राह्य देखि आबह, मालिनि गेलि (मनुष्य मात्रमे)।
6.
7. स्वतंत्र ह्रस्व ‘ए’ वा ‘य’ प्राचीन मैथिलीक उद्धरण आदिमे तँ यथावत राखल जाय, किंतु आधुनिक प्रयोगमे वैकल्पिक रूपेँ ‘ए’ वा ‘य’ लिखल जाय। यथा:- कयल वा कएल, अयलाह वा अएलाह, जाय वा जाए इत्यादि।
7.
8. उच्चारणमे दू स्वरक बीच जे ‘य’ ध्वनि स्वतः आबि जाइत अछि तकरा लेखमे स्थान वैकल्पिक रूपेँ देल जाय। यथा- धीआ, अढ़ैआ, विआह, वा धीया, अढ़ैया, बियाह।
8.
9. सानुनासिक स्वतंत्र स्वरक स्थान यथासंभव ‘ञ’ लिखल जाय वा सानुनासिक स्वर। यथा:- मैञा, कनिञा, किरतनिञा वा मैआँ, कनिआँ, किरतनिआँ।
9.
10. कारकक विभक्त्तिक निम्नलिखित रूप ग्राह्य:-
10.हाथकेँ, हाथसँ, हाथेँ, हाथक, हाथमे।
10.’मे’ मे अनुस्वार सर्वथा त्याज्य थिक। ‘क’ क वैकल्पिक रूप ‘केर’ राखल जा सकैत अछि।
10.
11. पूर्वकालिक क्रियापदक बाद ‘कय’ वा ‘कए’ अव्यय वैकल्पिक रूपेँ लगाओल जा सकैत अछि। यथा:- देखि कय वा देखि कए।
11.
12. माँग, भाँग आदिक स्थानमे माङ, भाङ इत्यादि लिखल जाय।
12.
13. अर्द्ध ‘न’ ओ अर्द्ध ‘म’ क बदला अनुसार नहि लिखल जाय(अपवाद-संसार सन्सार नहि), किंतु छापाक सुविधार्थ अर्द्ध ‘ङ’ , ‘ञ’, तथा ‘ण’ क बदला अनुस्वारो लिखल जा सकैत अछि। यथा:- अङ्क, वा अंक, अञ्चल वा अंचल, कण्ठ वा कंठ।
13.
14. हलंत चिह्न नियमतः लगाओल जाय, किंतु विभक्तिक संग अकारांत प्रयोग कएल जाय। यथा:- श्रीमान्, किंतु श्रीमानक।
14.
15. सभ एकल कारक चिह्न शब्दमे सटा क’ लिखल जाय, हटा क’ नहि, संयुक्त विभक्तिक हेतु फराक लिखल जाय, यथा घर परक।
15.
16. अनुनासिककेँ चन्द्रबिन्दु द्वारा व्यक्त कयल जाय। परंतु मुद्रणक सुविधार्थ हि समान जटिल मात्रा पर अनुस्वारक प्रयोग चन्द्रबिन्दुक बदला कयल जा सकैत अछि।यथा- हिँ केर बदला हिं।
17. पूर्ण विराम पासीसँ ( । ) सूचित कयल जाय।
17.
18. समस्त पद सटा क’ लिखल जाय, वा हाइफेनसँ जोड़ि क’ , हटा क’ नहि।
18.
19. लिअ तथा दिअ शब्दमे बिकारी (ऽ) नहि लगाओल जाय।
20.
ग्राह्य अग्राह्य

1. होयबला/होबयबला/होमयबला/ हेब’बला, हेम’बला
1.होयबाक/होएबाक
2. आ’/आऽ आ
2.
3. क’ लेने/कऽ लेने/कए लेने/कय लेने/
3.ल’/लऽ/लय/लए
3.
4. भ’ गेल/भऽ गेल/भय गेल/भए गेल
4.
5. कर’ गेलाह/करऽ गेलह/करए गेलाह/करय गेलाह
5.
6. लिअ/दिअ लिय’,दिय’,लिअ’,दिय’
6.
7. कर’ बला/करऽ बला/ करय बला करै बला/क’र’ बला
7.
8. बला वला
8.
9. आङ्ल आंग्ल
9.
10. प्रायः प्रायह
10.
11. दुःख दुख
11.
12. चलि गेल चल गेल/चैल गेल
12.
13. देलखिन्ह देलकिन्ह, देलखिन
13.
14. देखलन्हि देखलनि/ देखलैन्ह
14.
15. छथिन्ह/ छलन्हि छथिन/ छलैन/ छलनि
15.
16. चलैत/दैत चलति/दैति
17. एखनो अखनो
17.
18. बढ़न्हि बढन्हि
18.
19. ओ’/ओऽ(सर्वनाम) ओ
19.
20. ओ (संयोजक) ओ’/ओऽ
21. फाँगि/फाङ्गि फाइंग/फाइङ
22. जे जे’/जेऽ
23. ना-नुकुर ना-नुकर
23.
24. केलन्हि/कएलन्हि/कयलन्हि
24.
25. तखन तँ तखनतँ
25.
26. जा’ रहल/जाय रहल/जाए रहल
26.
27. निकलय/निकलए लागल
27. बहराय/बहराए लागल निकल’/बहरै लागल
27.
28. ओतय/जतय जत’/ओत’/जतए/ओतए
28.
29. की फूड़ल जे कि फूड़ल जे
29.
30. जे जे’/जेऽ
31. कूदि/यादि(मोन पारब) कूइद/याइद/कूद/याद
31.
32. इहो/ओहो
33. हँसए/हँसय हँस’
33.
34. नौ आकि दस/नौ किंवा दस/नौ वा दस
34.
35. सासु-ससुर सास-ससुर
35.
36. छह/सात छ/छः/सात
36.
37. की की’/कीऽ(दीर्घीकारान्तमे वर्जित)
37.
38. जबाब जवाब
38.
39. करएताह/करयताह करेताह
39.
40. दलान दिशि दलान दिश
40.
41. गेलाह गएलाह/गयलाह
41.
42. किछु आर किछु और
42.
43. जाइत छल जाति छल/जैत छल
43.
44. पहुँचि/भेटि जाइत छल पहुँच/भेट जाइत छल
44.
45. जबान(युवा)/जवान(फौजी)
45.
46. लय/लए क’/कऽ
47. ल’/लऽ कय/कए
47.
48. एखन/अखने अखन/एखने
48.
49. अहींकेँ अहीँकेँ
49.
50. गहींर गहीँर
50.
51. धार पार केनाइ धार पार केनाय/केनाए
51.
52. जेकाँ जेँकाँ/जकाँ
52.
53. तहिना तेहिना
53.
54. एकर अकर
54.
55. बहिनउ बहनोइ
55.
56. बहिन बहिनि
56.
57. बहिनि-बहिनोइ बहिन-बहनउ
57.
58. नहि/नै
58.
59. करबा’/करबाय/करबाए
59.
60. त’/त ऽ तय/तए
60.
61. भाय भै
61.
62. भाँय
63. यावत जावत
63.
64. माय मै
64.
65. देन्हि/दएन्हि/दयन्हि दन्हि/दैन्हि
65.
66. द’/द ऽ/दए
तका’ कए तकाय तकाए
पैरे (on foot) पएरे
ताहुमे ताहूमे
पुत्रीक
बजा कय/ कए
बननाय
कोला
दिनुका दिनका
ततहिसँ
गरबओलन्हि गरबेलन्हि
बालु बालू
चेन्ह चिन्ह(अशुद्ध)
जे जे’
से/ के से’/के’
एखुनका अखनुका
भुमिहार भूमिहार
सुगर सूगर
झठहाक झटहाक
छूबि
करइयो/ओ करैयो
पुबारि पुबाइ
झगड़ा-झाँटी झगड़ा-झाँटि
पएरे-पएरे पैरे-पैरे
खेलएबाक खेलेबाक
खेलाएबाक
लगा’
होए- हो
बुझल बूझल
बूझल (संबोधन अर्थमे)
यैह यएह
तातिल
अयनाय- अयनाइ
निन्न- निन्द
बिनु बिन
जाए जाइ
जाइ(in different sense)-last word of sentence
छत पर आबि जाइ
ने
खेलाए (play) –खेलाइ
शिकाइत- शिकायत
ढप- ढ़प
पढ़- पढ
कनिए/ कनिये कनिञे
राकस- राकश
होए/ होय होइ
अउरदा- औरदा
बुझेलन्हि (different meaning- got understand)
बुझएलन्हि/ बुझयलन्हि (understood himself)
चलि- चल
खधाइ- खधाय
मोन पाड़लखिन्ह मोन पारलखिन्ह
कैक- कएक- कइएक
लग ल’ग
जरेनाइ
जरओनाइ- जरएनाइ/जरयनाइ
होइत
गड़बेलन्हि/ गड़बओलन्हि
चिखैत- (to test)चिखइत
करइयो(willing to do) करैयो
जेकरा- जकरा
तकरा- तेकरा
बिदेसर स्थानेमे/ बिदेसरे स्थानमे
करबयलहुँ/ करबएलहुँ/करबेलहुँ
हारिक (उच्चारण हाइरक)
ओजन वजन
आधे भाग/ आध-भागे
पिचा’/ पिचाय/पिचाए
नञ/ ने
बच्चा नञ (ने) पिचा जाय
तखन ने (नञ) कहैत अछि।
कतेक गोटे/ कताक गोटे
कमाइ- धमाइ कमाई- धमाई
लग ल’ग
खेलाइ (for playing)
छथिन्ह छथिन
होइत होइ
क्यो कियो
केश (hair)
केस (court-case)
बननाइ/ बननाय/ बननाए
जरेनाइ
कुरसी कुर्सी
चरचा चर्चा
कर्म करम
डुबाबय/ डुमाबय
एखुनका/ अखुनका
लय (वाक्यक अतिम शब्द)- ल’
कएलक केलक
गरमी गर्मी
बरदी वर्दी
सुना गेलाह सुना’/सुनाऽ
एनाइ-गेनाइ
तेनाने घेरलन्हि
नञ
डरो ड’रो
कतहु- कहीं
उमरिगर- उमरगर
भरिगर
धोल/धोअल धोएल
गप/गप्प
के के’
दरबज्जा/ दरबजा
ठाम
धरि तक
घूरि लौटि
थोरबेक
बड्ड
तोँ/ तूँ
तोँहि( पद्यमे ग्राह्य)
तोँही/तोँहि
करबाइए करबाइये
एकेटा
करितथि करतथि
पहुँचि पहुँच
राखलन्हि रखलन्हि
लगलन्हि लागलन्हि
सुनि (उच्चारण सुइन)
अछि (उच्चारण अइछ)
एलथि गेलथि
बितओने बितेने
करबओलन्हि/ करेलखिन्ह
करएलन्हि
आकि कि
पहुँचि पहुँच
जराय/ जराए जरा’ (आगि लगा)
से से’
हाँ मे हाँ (हाँमे हाँ विभक्त्तिमे हटा कए)
फेल फैल
फइल(spacious) फैल
होयतन्हि/ होएतन्हि हेतन्हि
हाथ मटिआयब/ हाथ मटियाबय
फेका फेंका
देखाए देखा’
देखाय देखा’
सत्तरि सत्तर
साहेब साहब

VIDEHA MITHILA TIRBHUKTI TIRHUT---
Mulla Taqia has said that Kameswara Thakur founder of the Oinivara Dynasty of Sugaon, who had been ousted by Illyas was reinstated in Tirhut and Mus¬lim officers were appointed for the propagation of Muslim Law.
Firuz Tughlaq's visited Tirhut many times. Kamesvara Thakura (A .D 1324-53)
Of Khauare Jagatpur mula and was of Kasyapagotra. But Jayapati's son Hitgu and his son Oin Thakur, an ancestor of Kamesvara had procured Oini village from some Kshatriya ruler. Since than his mulagrama became 'Dinivara'. He had six brothers.' He made over the kingdom to his son Bhogisvara. Thakura dynasty, or Sugaon Dynasty of Kamesvara modern Sugarma, P. O. Rajnagar, district-Madhubani. The family name of 'Oinivara' is after the name of its - Biji¬purusha.

Oin Thakur was the great-grand-father of Kamesvara Thakur, is said to have established himself in Oini village with the help of Nanyadeva's descendants. Bhogisvara Thakura (A.D.1353-70)-Kamesvara did not like to shoulder the burden of a reign. He made over the kingdom to his son Bhogisvara Thakura after that Ganesha Raya who was, however, murdered by Arjuna Raya, Kumara Ratnakara and others. Though he ruled for a very short period due to his intelligence became one of the fomous king.
Devasimhadeva lived before the year 1410 A.D. assumed the title (Viruda) `Garudanarayana' .Under his patronage Vidyapati Wrote Bhuparikrama which was later on, incorporated in Purushapariksha written for his son Sivasimha.
Sridatta compiled the Ekdgnidanapaddhati and Harihara grandfather of Murari, was his Chief Judge. Vidyapati dedicated some of his poems also to him. Devasimha married Hasini Devi daughter of Mahamahopadhyaya Ramesvara of Jalayamula and had two sons - Sivasimha and Padmasimha from her.
ShivSimha ascended throne after his father's death in A. D. 1412-13 at the age of 50. By this time the poet Vidyapati had become much more familar and intimate with the king who recognised the poet's greatness and granted him his native village of Bisphi on the occasion of his being installed the ruler of Mithila and changed his capital from Devakuli to Gajarathapuras.He even struck coins in his name, specimens of which were found from a village called Pipra in the Champaran District. He is also said to have erected a Masoleum known as Mamoon Bhanja at Jaruha, near Hajipur.
He faught against the Mohammadans but it is said that he was defeated, arrested and brought to Delhi. Vidyapati showed his poetic genius and obtained his release. Lakhimadevi (A-D. 1412-16) queen Lakhima fled with the royal family, to take shelter in village Rajabanauli in Saptari Parganna (near modern Janakapur in Nepal Kingdom). She waited for twelve years in the hope of meeting or knowing anything of her consort. She e laid down her life as a sati. After Sivasimha's death his first wife Maharani Padmavati Mahadevi ruled for about one year six months, and after that Lakhima Mahadevi ruled for six years and after her reign, Padmasimha came to the throne.He died only after a year and his wife Visvasa Devi took the management of the state reigned for 12 years with great success.
The collateral branch of Harismhadeva assumed power. Dhirasimha began to rule though Narasimha lived on to that year. Lakshminathadeva, Kamsa narayana, came to the throne after the demise of Ramabhadra¬deva. a very great patron of poetry written and composed in Maithili language, assumed the title of Rttpanarayana. Sikandar Lodi who marched into Tirhut defeated the Tirhut king.
But after some time the Bengal Ruler ended the illustrious Oinivara Dynasty.

Jyoti Jha Chaudhary, Date of Birth: December 30 1978,Place of Birth- Belhvar (Madhubani District), Education: Swami Vivekananda Middle School, Tisco Sakchi Girls High School, Mrs KMPM Inter College, IGNOU, ICWAI (COST ACCOUNTANCY); Residence- LONDON, UK; Father- Sh. Shubhankar Jha, Jamshedpur; Mother- Smt. Sudha Jha- Shivipatti. Jyoti received editor's choice award from www.poetry.com and her poems were featured in front page of www.poetrysoup.com for some period.She learnt Mithila Painting under Ms. Shveta Jha, Basera Institute, Jamshedpur and Fine Arts from Toolika, Sakchi, Jamshedpur (India). She had been honorary teacher at National Association For Blind, Jamshedpur (India). Her Mithila Paintings have been displayed by Ealing Art Group at Ealing Broadway, London.
SahasraBarhani:The Comet
The sequence of life and death had completed one rotation around the unknown centre along the circular path. Nand was being brought up by his mother. He was loved by his teachers. His practical copy was very neat and clean and his handwriting was as good as he himself.
One more incident happened. Mother’s both sons were sleeping on the floor in front of puja room. When mother came there in the morning she saw the dead body of cobra snake cut into four pieces. Perhaps Bijji had done that in order to protect the boys. Nand started living with this memory.
The division of property occurred meanwhile. All good fields were divided into two parts. People started telling that unjustified for both brothers. Nand got admission in B.Sc. (Maths) R. K. College, Madhubani. Initially he found maths to be hard to understand and so started learning it by heart. He started this way of learning Maths just to avoid the people’s criticise of selection of Maths by him. But gradually he started understanding that too. The memory of football ground in the village was remained merely as a memory; he never got a chance to play there. The teacher used to give a set of 300 questions and used to say that the person who would solve70% out of those questions correctly would get first division (i.e. +60%) marks in real examination. Nand had solved 70% maths question from those given set of questions and as per teacher’s presumption he secured first class marks. He applied for admission in an Engineering College in 1959. He got admission in Mujjaffarpur Institute of Technology on the basis of his good academic records. The only available branch in that institute during those days was civil engineering so he had opted that subject. He went there in his tradition Maithil dress- dhoti and kurta. Dikshit sahib showed him the workshop where such dress could be proved dangerous in case dhoti was stuck in the machines. He suggested wearing shirt and pants during working in workshop. Nand had to buy two shirts and two pairs of trousers. It needed time to buy fabrics and then give it to tailor so he bought readymade shirts and trousers. But while going to village he used to change his dress and wear dhoti kurta in the temple of the village. He never visited his village in shirts and pants. Engineering studies lasted for five years from 1959-1963. After that, he got a job of Assistant Engineer in Bihar Government. After one year of this job he got a post of Additional Engineer in 1964. Study of engineering was quite expensive so it was agreed at the time of marriage that Nand’s in-laws would bear all expenses of studies. Expenses of summer vacation and Durga Puja holidays were not provided by Nand’s in-laws. Whenever Nand’s in-laws used to say that they had made them engineer then he used to remind them the above fact. The circle of time started enlarging itself. First it has completed one rotation and then started expanding. A story of happiness and grief, progress and degradation. The pleasure of daytime of Independence Day: 15 August 1947; he was walking by holding a flag in his hand with children of school. Affection to congress remained with him always. But the driving back of Indian Army in the battle field during war with China in 1965 and decision of not using air-force in that war were worse than the worst nightmare. Every time when All India Radio was announcing that Indian Army was being driven back, Nand’s heart used to stop beating. So when vacancy of engineers in the Army was open, Nand and Saha had applied for the post. Wife of Saha Sahib started crying and objected his decision. Nand’s wife didn’t deny at all. But Nand was rejected because of overweight. He was demoliged and he got a new passion of reducing weight from then. He had only one dream to have a house in place of cottage in the village. So after studying all designs from surveys he started construction of his house in such a way that no part will go to the government’s property for road. The construction of house was completed half only. He kept on gaining new experiences from wherever he got transferred to. Against the current trend he started talking to his wife directly. The surprising thing was that in place of criticising that people started copying his style. He was favoured by the local tribal community known as aadivasi on Dehri-On-Sone project. His honesty against bribe was sustained in all circumstances. He put his heart and soul in his job. The jeep provided by the government was used vigorously by Kalit to render his job.
While driving his jeep fast he always took care of pedestrians specially children. He never met any accident while driving. He helped people of all caste from his village to get teaching job. He also motivated local residents to do job. The local poor aadivasi people started calling him God. He suffered asthma attack first time here. The doctors arranged herbal medicine from the forest somehow for him. Allopathic medicine is still unable to ensure permanent cure from asthma but that herbal medicine had a miraculous effect of avoiding the second attack for many years. Friends started calling him Bholenath that means innocent guy. Many tried to teach him the act of bribe but the he had witnessed the helplessness of the villagers so closely that he never thought about that. How could he do that when the villagers were offering him so much affection in spite of poverty?
He got his daughter. The second child was a son. Daughter was born in maternal uncle’s house and son in his own house. Growing phase of kids began as usual- laughing, crawling etc. The process of growth of a baby is just like the making of this world. Nand was in Delhi to attend some training. He had a dream one night. Naveen was sitting in the barandah of his cottage. The baby whome Nand was loving a lot, went to play and returned after some time with some ache in his tummy. People rushed to that child. People started giving advices but the child died very soon. Nand woke up. He recalled the death of daughter of his elder sister. Some old lady had touched her tummy and she died after that because of stomach ache. Nand had strong faith in existence of ghosts, demons, witches etc. Such thoughts made him crying loudly. His friends woke up quickly. When he narrated everything to his friends then someone told him that his nephew’s age is extended. Many suggested awakening the scientific attitude of an engineer in him. But nothing could prevent him from leaving the training and going to his village. He reached home on third day and terrified by seeing his brother having clean shaved hair. Everyone seemed to be very sad when he entered the village. As soon as he reached home his mother started crying loudly. His nightmare was turned into reality. Perhaps Nand’s nephew wanted his uncle participate in his last rites. Nand printed dates of birth and death and the uttering of Naveen While calling him kaka on the back of his nephew’s picture by his fountain pen. He passed away before completion of construction of the house but he called his uncle in his dream for his last rites.
Construction of the new house was started after birth of a daughter. She used to recall that the foundation was too deep. But her father used to remind that her uncle used to put her in that by his hands. She used to sit on baa’s lap to solve the confusion. Nand’s mother was called baa by all grand-children. She used to call Nand’s son Nand’s nand, sometimes Gopal and sometimes Rajkumar. She was really enchanted by her grandchild’s laughter and curly black locks. The construction of dream house was finally completed but ba started suffering pain in her stomach at the same time. The family had already suffered two deaths by such mysterious stomach pain. So Nand didn’t like to take any chance. He consulted many famous allopathic doctors and wandered many cities and all his effort ended as diagnosis of the deadly cancer disease. The treatment was more painful than knowing the presence of the disease. The Chemotherapy, killing tumours i.e. cancerous cells by using radium, was started. Ba was exhausted and died in Patna. Her funeral was held in the bank of the river Ganges. Rest of her last rites was performed in the village. Ba couldn’t see the second son of Nand but she was always being remembered by family members. Ba’s photo was quite inspiring for her grand children. The fruits of the mango tree donated in last rites of ba were not eaten by her grand children. They used to put it on the grave where urn of their grandfather was buried. The process of burning the cow with hot sticks in order to perform last rites had ignited both children’s hatred for that cruel custom. They owed not to repeat that custom in future. Before bidding the world good bye, ba was quite successful in making the family recovering its old glory and re-establishing its image as intellectual entity being worshippers of the Goddess Saraswati. At her last days of life Buchia came to meet her from Baarh. Both ladies lost in their past days. One had become ba and other burhiya didi for the children. The tales told by burhiya didi had become very famous among the children. Those were like a novel to be narrated night by night. In every night when story was told the youngest child used to sleep at earliest and the oldest at the latest so in the next night the oldest used to insist burhiya didi to continue from that point where he left but that was not tolerable for other as others used to sleep earlier. To solve that quarrel burhiya didi used to start from far away where the oldest one slept and when he used to oppose she had a clever answer that she narrated till that point and she didn’t bother when the oldest one slept. Then all used to agree to continue from the point when the youngest one went to sleep.



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सिद्धिरस्तु

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पूर्वपीठिका : इंटरनेटपर मैथिलीक प्रारम्भ हम कएने रही 2000 ई. मे अपन भेल एक्सीडेंट केर बाद, याहू जियोसिटीजपर 2000-2001 मे ढेर रास साइट मैथिलीमे बनेलहुँ, मुदा ओ सभ फ्री साइट छल से किछु दिनमे अपने डिलीट भऽ जाइत छल। ५ जुलाई २००४ केँ बनाओल “भालसरिक गाछ” जे http://gajendrathakur.blogspot.com/ पर एखनो उपलब्ध अछि, मैथिलीक इंटरनेटपर प्रथम उपस्थितिक रूपमे अखनो विद्यमान अछि। फेर आएल “विदेह” प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका http://www.videha.co.in/पर। “विदेह” देश-विदेशक मैथिलीभाषीक बीच विभिन्न कारणसँ लोकप्रिय भेल। “विदेह” मैथिलक लेल मैथिली साहित्यक नवीन आन्दोलनक प्रारम्भ कएने अछि। प्रिंट फॉर्ममे, ऑडियो-विजुअल आ सूचनाक सभटा नवीनतम तकनीक द्वारा साहित्यक आदान-प्रदानक लेखकसँ पाठक धरि करबामे हमरा सभ जुटल छी। नीक साहित्यकेँ सेहो सभ फॉरमपर प्रचार चाही, लोकसँ आ माटिसँ स्नेह चाही। “विदेह” एहि कुप्रचारकेँ तोड़ि देलक, जे मैथिलीमे लेखक आ पाठक एके छथि। कथा, महाकाव्य,नाटक, एकाङ्की आ उपन्यासक संग, कला-चित्रकला, संगीत, पाबनि-तिहार, मिथिलाक-तीर्थ,मिथिला-रत्न, मिथिलाक-खोज आ सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक समस्यापर सारगर्भित मनन। “विदेह” मे संस्कृत आ इंग्लिश कॉलम सेहो देल गेल, कारण ई ई-पत्रिका मैथिलक लेल अछि, मैथिली शिक्षाक प्रारम्भ कएल गेल संस्कृत शिक्षाक संग। रचना लेखन आ शोध-प्रबंधक संग पञ्जी आ मैथिली-इंग्लिश कोषक डेटाबेस देखिते-देखिते ठाढ़ भए गेल। इंटरनेट पर ई-प्रकाशित करबाक उद्देश्य छल एकटा एहन फॉरम केर स्थापना जाहिमे लेखक आ पाठकक बीच एकटा एहन माध्यम होए जे कतहुसँ चौबीसो घंटा आ सातो दिन उपलब्ध होअए। जाहिमे प्रकाशनक नियमितता होअए आ जाहिसँ वितरण केर समस्या आ भौगोलिक दूरीक अंत भऽ जाय। फेर सूचना-प्रौद्योगिकीक क्षेत्रमे क्रांतिक फलस्वरूप एकटा नव पाठक आ लेखक वर्गक हेतु, पुरान पाठक आ लेखकक संग, फॉरम प्रदान कएनाइ सेहो एकर उद्देश्य छ्ल। एहि हेतु दू टा काज भेल। नव अंकक संग पुरान अंक सेहो देल जा रहल अछि। विदेहक सभटा पुरान अंक pdf स्वरूपमे देवनागरी, मिथिलाक्षर आ ब्रेल, तीनू लिपिमे, डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि आ जतए इंटरनेटक स्पीड कम छैक वा इंटरनेट महग छैक ओतहु ग्राहक बड्ड कम समयमे ‘विदेह’ केर पुरान अंकक फाइल डाउनलोड कए अपन कंप्युटरमे सुरक्षित राखि सकैत छथि आ अपना सुविधानुसारे एकरा पढ़ि सकैत छथि।
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